हिजाब के बहाने कट्टरपंथी कैसे मोदी को निशाना बना रहे हैं
कर्नाटक में पिछले एक महीने से ज्यादा समय से हिजाब विवाद जोरों पर है लेकिन अभी-भी कुछ कट्टरपंथी संगठनों द्वारा इस मुद्दे को भड़काने की साजिश से लोग अनजान हैं । मैंने इससे पहले के अपने ब्लॉग में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और इसकी छात्र शाखा कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) का उल्लेख किया था जो कि इस विवाद को उकसाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। गुरुवार को राजस्थान के कोटा में पीएफआई और उसकी छात्र शाखा ने एकता मार्च का आयोजन किया। ठीक इसी तरह के मार्च का आयोजन केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी किया गया। इन आयोजनों में एसडीपीआई (सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया) और पीएफआई समर्थकों ने हिस्सा लिया।
इस दौरान पीएफआई और अन्य नेताओं ने जो भाषण दिए उससे उनका एजेंडा बिल्कुल क्लियर होता गया। ऐसा लगता है कि यह एक सियासत, एक डिजाइन, एक एजेंडा है और इसी वजह से हिजाब विवाद जोर पकड़ रहा है। इनका लक्ष्य साफ है: चूंकि उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बदनाम किया जाए।
राजस्थान के कोटा में पीएफआई की मीटिंग ‘लोकतंत्र बचाओ’ बैनर तले आयोजित की गई। लेकिन यहां जो भी भाषण दिए गए वो हिजाब और मुस्लिम लड़कियों के धार्मिक अधिकारों के मुद्दे पर केंद्रित थे। हिजाब मुद्दे के साथ ही आरएसएस, राम मंदिर, सीएए- एनआरसी के नाम पर मुसलमानों को एक बार फिर डराया गया। मजहब और हिजाब के नाम पर मासूम बहनों-बेटियों को गुमराह किया गया। साथ ही हिजाब को कंधा बनाकर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पर भी हमला किया गया।
कोटा में पीएफआई की मीटिंग को राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने इजाजत दी थी। कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सांसद ओबैदुल्लाह खान आजमी ने भी इस मीटिंग में भाषण दिया। ‘एकता मार्च’ के बाद तकरीरों का दौर शुरू हुआ। एकता मार्च में शामिल लोगों को पीएफआई, एसडीपीआई और अन्य मुस्लिम नेताओं ने संबोधित किया। पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया के सेक्रेटरी जनरल अनीस अहमद ने भाषणों की थीम तय कर दी थी। उन्होंने इस कार्यक्रम में सबसे पहले हिजाब का मुद्दा उठाया और कहा-‘आज वे हमारी लड़कियों से हिजाब उतारने को कहते हैं… कल कुछ और मांग करेंगे।’ अनीस अहमद ने अयोध्या में बन रहे राम मंदिर मुद्दा उठाया। आरएसएस और मोदी-योगी पर निशाना साधा। अनीस ने आरएसस की तुलना आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) की। उन्होंने कहा-‘आरएसएस और आईएसआईएस दोनों की विचाधाराएं कट्टरपंथी हैं।’ उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पर बैन अल्पसंख्यकों की व्यक्तिगत पंसद में दखल है।
इस कार्यक्रम में पीएफआई की महिला शाखा, नेशनल वुमेन फ्रंट (एनडब्ल्यूएफ) ने भी हिस्सा लिया था। एनडब्ल्यूएफ की राजस्थान की अध्यक्ष वाजिदा परवीन ने भी तीखी तकरीर की। उन्होंने कहा कि 2014 में जब से मोदी सरकार आई है, तब से मुसलमानों का जीना दुश्वार हो गया है। अजमेर दरगाह के ख़ादिम सैयद सरवर चिश्ती भी इस मीटिंग में थे। सरवर चिश्ती ने अपने भाषण में कर्नाटक के हिजाब विवाद का भी ज़िक्र छेड़ा और कहा- ‘अल्लाहु अकबर के नारे में बहुत ताक़त है, इसकी मिसाल कर्नाटक में भी देखने को मिली जब मांड्या की छात्रा मुस्कान ख़ान ने अल्लाहु अकबर का नारा लगाया तो भगवा गमछे वाले भाग खड़े हुए। अगर वे जय श्री राम का नारा लगाते हैं, तो हमारा नारा अल्लाहु अकबर होना चाहिए।’ सरवर चिश्ती ने पीएम मोदी पर झूठ बोलने का आरोप लगाया। इतना ही नहीं उन्होंने अपने भाषण में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल को भी नहीं बख़्शा।
एसडीपीआई के उपाध्यक्ष मोहम्मद शफ़ी ने अपने भाषण में सबसे पहले यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को निशाने पर लिया और कहा कि योगी गर्मी उतारने की धमकी देते हैं तो हमारे अंदर सूरज से भी ज़्यादा गर्मी है। योगी आदित्यनाथ ने एक चुनावी भाषण के दौरान कहा था कि उनकी सरकार चुनाव के बाद गडबडडी रने वालों की गर्मी उतार देगी। मोहम्मद शफ़ी ने अपने भाषण में हरिद्वार और छत्तीसगढ़ में हुई धर्म संसद का मुद्दा भी उठाया और कहा-‘अगर धर्म संसद से ऐसी ही धमकियां मिलती रहीं तो हम भी जवाब देना जानते हैं।’
इस रैली में शामिल करीब-करीब सभी वक्ताओं ने हिजाब, सीएए, एनआरसी के मुद्दे को उठाया और मोदी-योगी पर निशाना साधा। उनका लक्ष्य स्पष्ट था: उत्तर प्रदेश में मुस्लिम महिलाओं को बीजेपी के पक्ष में वोट करने से रोकना। मोदी ने उत्तर प्रदेश में अपने एक चुनावी भाषण में कहा था कि कैसे तीन तलाक को खत्म करने के बाद से उन्हें उन मुस्लिम महिलाओं का आशीर्वाद मिल रहा है जो अब अपना जीवन सुकून से जी रही हैं। इसके बाद से ही पीएफआई, सीएफआई और एसडीपीआई जैसे संगठन मुस्लिम महिलाओं के मन में मोदी को लेकर एक डर बिठाने की कोशिश के लिए सक्रिय हो गए। सीएए के खिलाफ शाहीनबाग आंदोलन के दौरान भी ऐसा ही ट्रेंड देखने को मिला था।
कर्नाटक में हिजाब का मुद्दा अभी थमा भी नहीं है कि अब यह आंध्र प्रदेश में भी फैलने लगा है। गुरुवार को विजयवाड़ा में दो छात्राओं ने आरोप लगाया कि बुर्क़ा पहनकर आने पर उन्हें कॉलेज में एंट्री नहीं मिली। यह घटना विजयवाड़ा के लोयला कॉलेज में हुई । दरअसल, कॉलेज मैनेजमेंट ने इन छात्राओं से कहा कि हिजाब पहनकर कॉलेज परिसर में दाखिल हुआ जा सकता है लेकिन क्लास में छात्राओं को बुर्का उतारकर बैठना होगा। जब इन दोनों छात्राओं ने बुर्क़ा हटाने से मना कर दिया तो इन्हें एंट्री नहीं मिली जबकि बाक़ी छात्राएं अपना बुर्क़ा उतारकर क्लास में गईं और उन्होंने पढ़ाई की।
कर्नाटक सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने गुरुवार को एक सर्कुलर जारी कर कहा कि विभाग की तरफ से चलाए जा रहे सभी स्कूल-कॉलेज में हिजाब, नक़ाब, दुपट्टा या भगवा शॉल पहनने की इजाज़त नहीं होगी। साथ ही सभी स्कूल-कॉलेजों से कहा गया है कि वह हाईकोर्ट के आदेश का सख्ती से पालन कराएं। यह आदेश विभाग द्वारा चलाए जा रहे सभी रेजिडेंसियल स्कूलों, कॉलेजों और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों पर लागू है।
कर्नाटक के बेलगावी में विजया पैरा मेडिकल कॉलेज की छात्राएं हिजाब पहनकर पढ़ाई करने आईं तो मैनेजमेंट ने इन्हें एक अलग कमरे में बैठने को कहा। छात्राओं ने इसका विरोध किया। इसी बीच, कुछ मुस्लिम युवक भी कॉलेज के बाहर इकट्ठे होकर इस विरोध में शामिल हो गए। जिसके बाद कॉलेज प्रशासन ने पुलिस को बुला लिया। यह युवक पुलिसवालों से भी उलझ गए। जब युवक शांत नहीं हुए तो पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया।
मुझे लगता है कि हिजाब जैसे एक स्थानीय मुद्दे को जानबूझकर राष्ट्रीय स्तर पर विवाद खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। ऐसे लोग अलग-अलग तरह के तर्क देते हैं। कभी कहते हैं कि ये लड़कियां अपनी मर्जी से हिजाब पहनती हैं, हिजाब पर पाबंदी लगाना उनकी आजादी पर रोक लगाना है। कुछ लोगों का कहना है कि कुरान में ऐसा आदेश दिया गया है। जबकि कुरान में हिजाब का कोई उल्लेख नहीं हैं। हालांकि बड़ी संख्या में ऐसी लड़कियां हैं जो कोर्ट का आदेश मानते हुए हिजाब उतारकर कॉलेज आ रही हैं और परीक्षाएं दे रही हैं।
इस बीच एक तर्क यह भी आया कि हिंदू महिलाएं भी घूंघट निकालती हैं और अगर उस पर रोक नहीं है तो हिजाब पहनने पर पाबंदी क्यों? लेकिन ये असली मुद्दे से गुमराह करने की कोशिश है, क्योंकि बात स्कूल और कॉलेजों की है। कौन सी लड़की है जो घूंघट पहनकर स्कूल या कॉलेज जाती है? कौन सा ऐसा स्कूल या कॉलेज है जो किसी लड़की को घूंघट में क्लास अटैंड करने की इजाजत देता हैं? स्कूल-कॉलेज के जो नियम हैं उनका पालन सबको करना पड़ता है। नियम कानून न तो हिजाब के साथ भेदभाव करते हैं और न ही घूंघट को कोई छूट देते हैं। वैसे भी अभी पूरा मामला अदालत के सामने है। अदालत को सबके तर्क सुनकर फैसला देना है इसलिए थोड़ा सा धैर्य रखकर उसका इंतजार करना चाहिए।
How radicals are trying to target Modi in the name of ‘hijab’
The ‘hijab’ controversy has come to a boil in Karnataka for more than a month now, but people are still unaware of the machinations by some radical outfits in stoking this issue. In my earlier blogs, I had mentioned Popular Front of India and its student wing, Campus Front of India, as the main instigators. On Thursday, PFI and its students’ wing organized Unity March in Kota, Rajasthan. Similar marches were also organized in Kerala, Tamil Nadu and West Bengal in which SDPI (Social Democratic Party of India) and PFI supporters took part.
Watching the speeches made by PFI and other leaders at these protests, it appears that the controversy is gaining currency because of underlying politics, design and agenda. The target is clear: to defame Prime Minister Narendra Modi and UP chief minister Yogi Adityanath, as assembly elections are under way in Uttar Pradesh.
The PFI meet in Kota, Rajasthan, was organized under the banner “Democracy Bachao”, but most of the speeches by leaders centred around the issue of ‘hijab’ and the religious rights of Muslim girls. Along with the ‘hijab’ issue, speakers took the opportunity to strike fear in the mind of Muslims by raising bogeys like RSS, Ram Mandir, CAA(Citizenship Amendment Act) and NRC (National Register of Citizens) issues. In the guise of religion, the speakers tried their best to mislead Muslim women and girls. National Security Adviser Ajit Doval and RSS chief Mohan Bhagwat were also targeted by speakers.
The PFI meet in Kota was given permission by the Congress government in Rajasthan. Former Congress Rajya Sabha member Obaidullah Khan Azmi was one of the speakers. After taking out a “Unity March” procession, the protesters were addressed by PFI, SDPI and other Muslim leaders. PFI secretary general Anees Ahmed set the tone of speeches, saying “today they are asking our girls to take off the hijab, tomorrow they will demand something else.” He raised the Ayodhya Ram temple issue, and compared RSS with the international terrorist organization Islamic State(ISIS). “Both RSS and ISIS have radical ideologies”, he said. Anees Ahmed alleged that the ban on wearing of hijab in schools and colleges amounts to interference in the personal choice of minorities.
Wajida Parveen, head of the women’s wing of PFI in Rajasthan, National Women’s Front, alleged that Muslims in India are facing persecution since 2014 when the Modi government came to power. Syed Sarwar Chishti, the khadim of Ajmer Khwaja Mohiuddin Chishti dargah shrine, said, “Allahu Akbar slogan is a forceful one. When Muskaan Khan, the college student in Mandya raised Allahu Akbar slogan, those men wearing saffron shawls ran away. If they raise Jai Shree Ram slogan, our slogan should be Allahu Akbar”. Sarwar Chishti also alleged that Prime Minister Modi “is telling lies”. He also criticized NSA Ajit Doval in his speech.
SDPI vice-president Mohammed Shafi, in his speech, threw a challenge at UP CM Yogi Adityanath for his ‘garmi utaar denge’ remark. Yogi, during one of his election speeches, had said that his government would take disruptors to task after the polls. Mohammed Shafi said, “Yogi must know that we Muslims have more heat than that of the Sun”. He also said, “if we continue to get threats from Hindutva leaders, like they did at the ‘dharma sansad’ in Haridwar and Raipur, then we know how to respond.”
Almost all speakers at the rally raised issues like hijab, CAA, NRC, and targeted Modi and Yogi. Their aim is clear: to prevent Muslim women from casting their votes in favour of BJP in Uttar Pradesh. Modi, in one of his speeches in UP election rallies, had mentioned how by abolishing the Triple Talaq custom, he was getting the blessings of Muslim women, who are now living a peaceful life. Since then Muslim radical groups life PFI, CFI and SDPI have become active to instil fear about Modi in the minds of Muslim women. Similar trend was noticed during the Shaheen Bagh agitation in Delhi against CAA.
The ’hijab’ issue continues to roil Karnataka, and it is now spreading to Andhra Pradesh. On Thursday, Muslim girl students went to Loyola College in Vijaywada and demanded that they be allowed entry wearing ‘burqa’. Obviously, the college authorities disallowed their request. The authorities told them they can enter the campus wearing ‘burqa’, but inside classrooms, they will have to take the ‘burqa’ off. Two Muslim girls went away but other Muslim girls agreed and took off their ‘burqa’ inside the class.
The minority welfare department of Karnataka government, on Thursday, issued a circular directing all schools and colleges run by it to strictly implement the High Court order, and restrain all students from wearing hijab, shawls, saffrom scares and religious flags inside classrooms. It is applicable to all residential schools, colleges and English Medium schools run by the department.
At Vijaya para medical college in Belgavi, Karnataka, Muslim girls insisted on wearing ‘hijab’ inside classrooms, but were asked to remove them or go to a separate room. Other Muslim boys joined the protest, and after an altercation, local police took several youths into custody. Muslim students of DVS College in Shivmogga, Karnataka, also insisted on hearing ‘hijab’, and on being stopped, they took out a protest march to the district collectorate where they submitted a memorandum.
I suspect that some vested interests are trying to convert a local issue into a national one on the question of wearing hijab in schools and colleges. Protagonists of ‘hijab’ are giving varied arguments in their favour.
Sometimes they say, it is a personal choice of Muslim girls and in any ban on their personal choice amounts to interference in their liberty, while others say, it is a Quranic injunction, though there is no mention of the word ‘hijab’ in the holy book. Yet, there are many Muslim girls, who are themselves going to schools and colleges, without hijab, and are taking part in pre-Board examinations. Another argument raised is about why Indian women are allowed to wear ‘ghunghat’.
This is only an attempt to obfuscate the issue. Not a single Hindu girl goes to any school or college wearing ‘ghunghat’. Every student has to follow the rules and etiquette of uniform in educational institutions. The rules of uniform do not discriminate against ‘hijab’ and give special preference to ‘ghunghat’. The matter is before the high court, and the three-judge bench has to hear arguments from all sides, before giving its verdict. One should exercise patience and wait for the court to give its judgement.
दूसरे राज्यों के लोगों को ‘बाहरी’ बताने से चन्नी को बचना चाहिए था
यह एक ऐसा विवाद था जिसे आसानी से टाला जा सकता था। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने मंगलवार को रूपनगर (पहले इसका नाम रोपड़ था) में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की। विवाद को इस बात से और हवा मिल गई कि जब चन्नी इस बारे में बोल रहे थे, तब उनके बगल में खड़ी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ताली बजा रही थीं।
वायरल हुई वीडियो क्लिप में मुख्यमंत्री को मतदाताओं से पंजाबी में कहते हुए दिखाई दे रहे हैं, ‘प्रियंका गांधी पंजाब की बहू हैं। हमारी पंजाबन हैं। सब एक साथ आ जाओ पंजाबियों। यूपी के, बिहार के और दिल्ली के जो भइये यहां आकर राज करना चाहते हैं, उनको यहां पर घुसने नहीं देना है। जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल।’ जिस वक्त चन्नी ये सब बोल रहे थे उस वक्त बगल में खड़ीं प्रियंका गांधी मुस्करा रही थीं, तालियां बजा रही थीं।
राजनीतिक प्रतिद्वंदियों ने चन्नी के इस बयान को लेकर उन पर शाब्दिक बाणों की बौछार कर दी । यह तो साफ नहीं हो पाया कि चन्नी किस पर निशाना साधने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन विश्लेषकों के मुताबिक उनके निशाने पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल थे, जिनकी आम आदमी पार्टी पंजाब में कांग्रेस को कड़ी चुनौती दे रही है। मोहाली में मौजूद केजरीवाल ने चन्नी के बयान पर सबसे पहले प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, ‘चन्नी एक ऐक्सिडेंटल सीएम हैं। उन्हें पता ही नहीं है कि वह क्या कह रहे हैं, क्यों कह रहे हैं। चन्नी का बयान शर्मनाक है। इस तरह तो प्रियंका भी पंजाब की नहीं हैं। अगर चन्नी को बाहर के लोगों से एलर्जी है, तो वह प्रियंका गांधी को क्यों बुलाते हैं?’
पंजाब में सत्ता के एक और बड़े दावेदार शिरोमणि अकाली दल ने भी चन्नी पर निशाना साधा। शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल ने चन्नी के बयान को विभाजनकारी बताया। उन्होंने कहा, ‘यह कांग्रेस की मानसिकता और चरित्र को उजागर करता है। प्रियंका और राहुल गांधी को स्पष्ट करना चाहिए कि वे चन्नी के बयान का समर्थन करते हैं या नहीं। पंजाब सबका है और पंजाब हर किसी का खुले दिल से स्वागत करता है, सबकी सुरक्षा करता है, सबका सम्मान करता है। अकाली दल सबकी पार्टी है। मैं वादा करता हूं कि हमारी सरकार बनी तो पंजाब में सभी धर्मों और राज्यों के लोग सुरक्षित महसूस करेंगे।’
यूपी में इस समय जोर-शोर से चुनाव प्रचार हो रहा है, ऐसे में बीजेपी ने चन्नी के बयान को तुरंत यूपी के वोटरों को बीच एक भावनात्मक मुद्दे के तौर पर उठा लिया। चूंकि प्रियंका गांधी यूपी में कांग्रेस के प्रचार अभियान की प्रभारी हैं, इसलिए बीजेपी के नेता ने चन्नी के बयान को लेकर प्रियंका से सवाल पूछ रहे हैं कि वह प्रदेश के लोगों से किस मुंह से वोट मांगेंगी।
यूपी बीजेपी ने ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से हैशटैग #ShameOnCongress चलाया। बीजेपी के समर्थकों ने प्रियंका गांधी के ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ कैंपेन पर तीखा तंज कसा। यूपी बीजेपी ने ट्वीट किया, ‘प्रियंका वाड्रा हूं, कोई यूपी के लोगों को गाली दे, तो हंस सकती हूं।’ यूपी बीजेपी ने एक अन्य ट्वीट में कहा, ‘भाई-बहन की जोड़ी गजब की है। उत्तर प्रदेश के बाहर जाएंगे, तो उत्तर प्रदेश को बदनाम करेंगे। भारत के बाहर जाएंगे, तो भारत को बदनाम करेंगे।’
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इंडिया टीवी को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में चन्नी के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। राजनाथ सिंह ने कहा, ‘पंजाब के मुख्यमंत्री हों या कांग्रेस का कोई और नेता, इस तरह का बयान कांग्रेस के लोगों द्वारा अप्रत्याशित नहीं है। बराबर कांग्रेस ने बांटों और शासन करो, इसी पॉलिसी को अपनाया है, इसलिए ये कोई चौंकाने वाली बात नहीं है। लेकिन इस तरह के बयान बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होते हैं। लोगों को बचना चाहिए इससे, और इसका जवाब जनता देगी इस चुनाव में।’
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो झांसी में रोड शो कर रहे थे, ने इंडिया टीवी के रिपोर्टर से कहा, ‘कांग्रेस ने देश को एक ही जख्म नहीं दिया है। जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, आतंकवाद, नक्सलवाद, ये सभी कांग्रेस के द्वारा दिए गए जख्म हैं। और इसीलिए कांग्रेस को इस देश की जनता जनार्दन बार-बार सबक सिखा रही है। आज कम से कम सबक सीखे होते तो ऐसी बात नहीं कहते। श्रीमान चन्नी आज स्वयं संत शिरोमणि सद्गुरु रविदास जी महाराज की पावन जयंती कार्यक्रम में काशी आए थे। संत शिरोमणि रविदास जी महाराज ने ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ की बात कही थी।’
लखनऊ में, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कांग्रेस पर हमला करते हुए आरोप लगाया कि पार्टी के नेताओं ने अक्सर यूपी और बिहार के लोगों का अपमान किया है और उनका मजाक उड़ाया है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस ने ही यूपी और बिहार के प्रवासी मजदूरों को कोविड लॉकडाउन के दौरान मुंबई से पलायन के लिए मजबूर किया।
चन्नी ने यूपी-बिहार के लोगों पर जो कमेंट किया, दरअसल उसकी शुरुआत कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की बात से हुई। पंजाब में बाहरी लोगों की बात प्रियंका गांधी ने शुरू की थी। प्रियंका गांधी ने नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल का नाम लेकर दोनों नेताओं को पंजाब के लिए बाहरी बताया था। प्रियंका ने लोगों से कहा था, ‘समझदारी का इस्तेमाल करो। चुनाव का समय है। लंबी-लंबी बातें नहीं कहनी चाहिए। लेकिन पंजाब के लोगों, बहनों-भाइयों, अपने नेताओं को ठीक से पहचानो। पंजाब पंजाबियों का है। पंजाब को पंजाबी चलाएंगे। बाहर से आने वाले पंजाब नहीं चलाएंगे। अपनी सरकार बनाओ। ये बाहर से जो आते हैं आपके पंजाब में, उन्हें सिखाओ कि पंजाबियत क्या है।’
बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने कहा, ‘पंजाब से यूपी बिहार के लोगों को भगाने की बात करने वाले भूल गए हैं कि गुरु गोविंद सिंह का जन्म पटना में, बिहार की धरती पर हुआ था। प्रियंका यूपी की कैसी बेटी हैं, जो यूपी के लोगों को पंजाब में एंट्री नहीं देने की बात पर हंस रही हैं, ताली बजा रही हैं।’ बिहार के कैबिनेट मंत्री शाहनवाज हुसैन ने कहा कि पंजाब के सीएम ने यूपी-बिहार के लोगों का अपमान किया है, जिसका बदला यूपी के लोग लेंगे।
जब चन्नी ये कह रहे थे कि यूपी-बिहार के भइयों को घुसने नहीं देना है, तो वह ये भूल गए कि प्रियंका गांधी की शादी भी यूपी के भइयों से हुई है। चन्नी मुख्यमंत्री हैं, पुराने नेता हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि अगर यूपी बिहार के लोग पंजाब नहीं आएंगे तो क्या होगा।
पंजाब के उद्योग विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश में 14 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर काम करते हैं जिनमें से 10 लाख से ज्यादा मजदूर सिर्फ बिहार, यूपी और झारखंड से आते हैं। अगर बिहार और यूपी के लोग पंजाब नहीं आएंगे तो प्रदेश के 2.5 लाख इंडस्ट्रियल यूनिट्स में काम करने के लिए मजदूर नहीं मिलेंगे। बिहार और यूपी के लोग पंजाब नहीं आएंगे तो लुधियाना की टेक्सटाइल इंडस्ट्री को चलाना मुश्किल हो जाएगा। जालंधर में 750 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली 80 से ज्यादा ऑटो पार्ट्स निर्माता कंपनियों में संकट पैदा हो जाएगा।
यूपी बिहार के लोग पंजाब नहीं आएंगे तो पंजाब में खेती-किसानी का काम बुरी तरह प्रभावित हो जाएगा। पंजाब में संत रविदास के करोड़ों अनुयायियों के कारण ही चुनाव आयोग को मतदान की तारीख बदलनी पड़ी। चन्नी खुद संत रविदास के जन्मस्थान पर मत्था टेकने के लिए काशी गए थे। संत रविदास ने हमेशा प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया, तोड़ने की बजाय जोड़ने की बात कही। चन्नी को कम से कम संत रविदास की शिक्षाओं से सीखना चाहिए और लोगों को क्षेत्रीय आधार पर बांटने के बजाय एकता की बात करनी चाहिए।
पंजाब में नेताओं को दूसरे राज्यों से आये भाई-बहनों के बारे में बोलते समय सावधान रहना चाहिए, और उन्हें ‘बाहरी’ बताना बंद करना चाहिए। भारत में हम सभी सबसे पहले भारतीय हैं। अलग-अलग राज्यों के लोग उस गुलदस्ते के सुंदर फूलों की तरह हैं, जिसका नाम भारत है।
Channi should have avoided calling people from other states as ‘outsiders’
It was a controversy that could have been easily avoided. On Tuesday, the Punjab chief minister Charanjit Singh Channi, while addressing an election rally in Rupnagar (formerly Ropar) made an objectionable remark about people from Uttar Pradesh and Bihar. The confusion was worse confounded when Congress general secretary Priyanka Gandhi, standing near the chief minister, applauded his remark by clapping.
The video clip that went viral showed the chief minister, telling voters in Punjabi, “Priyanka Gandhi is the ‘bahu’ of Punjab. She belongs to Punjab. All Punjabis must join together to oust those ‘bhaiyaas’ from UP, Bihar and Delhi who want to come here and rule. Do not allow them to come here. Jo Bole So Nihal, Sat Sri Akal.” Priyanka clapped in approval over this remark.
Soon, political rivals started pillorying Channi for making this chauvinistic remark. It was not clear whom Channi was trying to target, but analysts say, his target was Delhi chief minister Arvind Kejriwal, whose Aam Aadmi Party is giving a stiff challenge to the Congress in Punjab. Kejriwal, who is in Mohali, was the first to react. He said, “Channi is an Accidental Chief Minister, he does not know what he is saying, and why he is saying. Channi’s remark is shameful. If one goes by Channi, even Priyanka does not belong to Punjab. If Channi has allery towards outsiders, why is he inviting them to speak?”
Shiromani Akali Dal, another major contender for power in Punjab, attacked Channi. SAD leader Sukhbir Singh Badal described Channi’s remark as ‘disruptive’ (vibhajankari). “It exposes the mindset and character of Congress. Priyanka and Rahul Gandhi must explain whether they support Channi’s remark or not. Punjab belongs to all (Indians) and we welcome all with an open heart. The people of Punjab protect and respect all (Indians). My party offers guarantee to protect people of all religions and states.”
With poll campaign in full throttle across UP, the BJP soon took this up as an emotive issue among UP voters. Since Priyanka Gandhi is in charge of the Congress campaign in UP, BJP leaders started asking how Priyanka would now seek votes in UP, after applauding Channi’s remark.
The UP BJP official Twitter handle started a raging debate with the hashtag #ShameOnCongress . BJP followers made fun of Priyanka’s slogan “Ladki Hoon, Ladh Sakti Hoon” (I am a girl, I can fight). UP BJP tweeted, “Priyanka Vadra hoon, koi UP ke logon ko gaali de, toh hans sakti hoon” (I am Priyanka Vadra, if somebody abuses people of UP, I can laugh). Another UP BJP tweet said, “”Bhai-behen ki jodi gazab ki hai, UP ke baahar jayenge, toh UP ko badnaam karenge, Bharat ke baahar jayenge, toh Bharat ko badnaam karengey” (What a pair of siblings. When they go out of UP, they defame UP, when they go out of India, they defame India).
Defence Minister Rajnath Singh, in an exclusive interview to India TV, described Channi’s remark as unfortunate. Rajnath Singh said, “Whether it is the Punjab CM or any other leader from Congress, such a remark from Congress leaders is not unexpected. Congress has always been following the ‘divide and rule’ policy, so this is no surprise. But such remarks are unfortunate and leaders should avoid making such remarks. The people will reply to this at the time of polling.”
UP chief minister Yogi Adityanath, who was doing a roadshow in Jhansi, told India TV reporter, “Congress has given so many wounds (to the people of India). They have given us the wounds of casteism, regionalism, linguistic parochialism, terrorism, Naxalism.. This is the ‘sanskar’ (tradition) of Congress. That is why, people of India are teaching lessons to the Congress frequently. Had they learnt the lesson, Shriman Channi, who had come to Kashi today, would not have said that. They should also learn from the teachings of Sant Ravidas, who advocated the need for a clean mind. Man changaa, toh kathauti me ganga.”
In Lucknow, Commerce Minister Piyush Goyal lashed out at the Congress alleging that the party leaders have frequently insulted and made fun of the people of UP and Bihar. He also alleged that it was the Congress which forced migrant labourers from UP and Bihar to leave their work places during Covid lockdown.
What chief minister Channi said should be seen as a corollary to what Priyanka Gandhi had been saying in her rallies in Punjab. Priyanka had described PM Narendra Modi and Delhi CM Arvind Kejriwal as outsiders in Punjab. She had told voters, “Use your mind judiciously. It is election time. There must be no scope for long talk. My brothers and sisters of Punjab, identify who are your true leaders. …. Punjab belongs to Punjabis, and Punjabis will rule Punjab. Outsiders cannot rule Punjab. Form your own government. Those who come here from outside, explain to them what Punjabiyat means.”
BJP MP Manoj Tiwari said, “those who are speaking about forcing out people of Bihar and UP from Punjab, must know that Guru Gobind Singh was born in Patna, on the soil of Bihar…What sort of a daughter of UP is Priyanka, who laughs when somebody makes a remark against people of UP and Bihar.” Bihar cabinet minister Shahnawaz Hussain said, the people of UP will surely punish those who have made fun of them in Punjab.
When Channi was making this highly objectionable remark, he probably forgot that his leader Priyanka Gandhi has been married to the family of ‘bhaiyyas’ from UP. Channi has been minister for long, and he knows what will happen if people from Bihar and UP are not allowed to work in Punjab.
According to data from Punjab industries department, out of more than 14 lakh migrant workers in the state, more than 10 lakh come from Bihar, UP and Jharkhand. If workers from Bihar and UP are prevented from working in Punjab, more than 2.5 lakh industrial units in this state will suffer. The world famous textile industry of Ludhiana, and more than 80 auto parts manufacturing units in Jalandhar having a turnover of Rs 750 crore, will suffer if migrant workers from Bihar and UP stop coming to Punjab.
Migrant workers from Bihar and UP are the backbone of the thriving agriculture farms of Punjab. It was because of the crores of followers of Sant Ravidas in Punjab, that the polling date had to be shifted by the Election Commission. It was Channi who went to Kashi to pay obeisance at the birthplace of Sant Ravidas, who spread his immortal teachings on love and brotherhood. Channi should at least learn from Sant Ravidas’ teachings and speak about unity instead of dividing people on regional lines.
Leaders in Punjab should be careful when they speak about their brethren from other states, and stop describing them as ‘outsiders’. All of us in India are Indian first. People from different states are like beautiful flowers in the bouquet, called India, that is Bharat.
हिजाब के सवाल पर कैसे हमारे दुश्मन भारत को बदनाम कर रहे हैं
हिजाब को लेकर विवाद अब कर्नाटक के लगभग 50 स्कूलों में फैल चुका है। दूसरी तरफ, विदेशों में निहित स्वार्थ वाले कई देश इस विवाद को लेकर भारत को बदनाम कर रहे हैं।
ताजा उदाहरण इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) का है, जिसके सचिवालय ने ‘कर्नाटक में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध’ को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। OIC के बयान में कहा गया कि ‘मुसलमानों को निशाना बनाकर किए जा रहे लगातार हमले इस्लामोफोबिया के बढ़ते चलन के संकेत हैं।’
मंगलवार को भारत ने OIC के इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘भारत का मानना है कि ओआईसी जम्मू-कश्मीर और भारत में मुसलमानों पर कथित खतरे से जुड़े मुद्दों के सवाल पर पाकिस्तान के हाथों में खेल रहा है। भारत से जुड़े मसलों पर ओआईसी के सचिवालय ने जो बयान जारी किया है, उसके पीछे एक खास मकसद है, वह है दूसरे मुल्कों को भारत के बारे में गुमराह करना ।’
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘भारत में हम अपने घरेलू मुद्दों का हल अपने संवैधानिक ढांचे और व्यवस्था के तहत लोकतांत्रिक तरीके से करते हैं। ओआईसी सचिवालय की ये मज़हबी सोच उसे इस हक़ीक़त को सही तरीके से ग़ौर भी नहीं करने देती। भारत के खिलाफ दुष्प्रचार को आगे बढ़ाने के लिए निहित स्वार्थ वाले कई देशों द्वारा ओआईसी का दुरुपयोग जारी है। नतीजतन, इससे सिर्फ OIC की साख को ही नुकसान पहुंच रहा है।’
ऐसे समय में जब भारत के शत्रु देश हिजाब मुद्दे का दुरुपयोग कर इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मजहबी रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं कर्नाटक में हालात चिंताजनक है। मंगलवार को, कर्नाटक के चिकमगलूर, तुमकुरु, कोडागु, मांड्या, कलबुर्गी और उडुपी में 50 से ज्यादा स्कूलों में मुस्लिम छात्राओं के अभिभावकों ने अपनी बच्चियों को क्लास के अंदर हिजाब पहनने पर जोर दिया, लेकिन प्रशासन ने उन्हें कर्नाटक हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश का हवाला देते हुए इसकी इजाजत नहीं दी। कर्नाटक हाई कोर्ट में बुधवार को तीसरे दिन भी मामले की सुनवाई जारी रही।
कुछ छात्राओं के अभिभावकों ने ‘अल्लाहु अकबर’ के नारे भी लगाए। ज्यादातर मुस्लिम छात्राओं के अभिभावकों ने अपनी बच्चियों को हिजाब के बिना क्लास में जाने देने से मना कर दिया। वहीं, कुछ जगहों पर तो अभिभावकों ने अपनी बच्चियों को बिना हिजाब के इम्तहान में बैठने तक नहीं दिया।
चिकमगलूर के मुदिगिरे उर्दू स्कूल में हिजाब पहनकर आई 35 छात्राओं को अलग क्लासरूम दिया गया था। जब वे स्कूल के अंदर गईं और क्लासरूम में बैठने लगीं, तो टीचर्स ने उन्हें हिजाब उतारने को कहा। लेकिन, इन 35 छात्राओं ने हिजाब उतारने से इनकार कर दिया। जब टीचर्स ने छात्राओं को समझाया कि वे पढ़ाई पर ध्यान दें तो छात्राएं बहस करने लगीं और स्कूल से बाहर निकल गईं। छात्राओं के बाहर निकलने पर बहस में उनके पैरेंट्स भी शामिल हो गए और टीचर्स से उलझ गए। इस बीच स्कूल पहुंची पुलिस ने छात्राओं को हाईकोर्ट के ऑर्डर के बारे में बताया और कहा कि उन्हें कोर्ट का आदेश लागू करना ही होगा।
मांड्या के गौसिया स्कूल में भी हिजाब को लेकर विवाद हुआ। एक बच्ची हिजाब पहनकर स्कूल पहुंची थी। लेकिन स्कूल में टीचर्स ने उसे हिजाब उतारने के लिए कहा। वह बच्ची इसके लिए तैयार भी थी, लेकिन बच्ची के पिता ने उसे हिजाब उतारने से रोक दिया और अपनी बेटी को घर वापस ले गए। हिजाब को लेकर उडुपी जिले के कापू कस्बे में भी हंगामा हुआ। इस स्कूल की कुछ छात्राओं ने इम्तिहान पर हिजाब को तरजीह दी और स्कूल में इसे उतारने से मना कर दिया। उनके पैरेंट्स ने भी हिजाब उतारने के आदेश का विरोध किया। इलाके के तहसीलदार ने आकर उन पैरेंट्स को समझाया, फिर भी विवाद खत्म नहीं हुआ। स्कूल के अधिकारियों ने 29 मुस्लिम छात्राओं को एक अलग कक्षा में बैठने और बिना हिजाब के परीक्षा देने की इजाजत दे दी, लेकिन उनमें से 8 ने इनकार कर दिया और अपने माता-पिता के साथ वापस चली गईं।
हिजाब पहनने की इजाजत नहीं मिली तो कलबुर्गी के सरकारी उर्दू स्कूल में एक भी छात्रा पढ़ने नहीं आई। सरकार के आदेश पर कलबुर्गी का ये स्कूल खुला तो मगर इसके सभी क्लासरूम खाली रहे। छात्राओं के पैरेंट्स ने स्कूल प्रशासन को बताया कि जब तक उनकी बेटियों को हिजाब के साथ आने की इजाजत नहीं मिलेगी, तब तक वे स्कूल नहीं आएंगी। इसी तरह कोडूगु के कर्नाटक पब्लिक स्कूल की 20 छात्राएं स्कूल के गेट से घर लौट गईं। उन्होंने हिजाब उतारने से मना कर दिया। टीचर्स ने इन बच्चियों को समझाया भी कि प्री-बोर्ड के एग्जाम चल रहे हैं, जो उनके लिए जरूरी हैं। टीचर्स ने इन स्टूडेंट्स को समझाया कि उन्हें कोर्ट का ऑर्डर मानना ही होगा, लेकिन इन लड़कियों ने कहा कि वे हिजाब नहीं उतार सकती हैं फिर चाहे उन्हें इम्तिहान ही क्यों न छोड़ना पड़े। ऐसा ही एक मामला शिमोगा के गवर्नमेंट गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल में हुआ।
मंगलवार को कर्नाटक हाई कोर्ट में 3 जजों की बेंच के सामने हिजाब मुद्दे पर मैराथन सुनवाई के दौरान 2 मुस्लिम छात्राओं के वकील देवदत्त कामत ने दलील दी कि कोई भी सरकार ‘कानून और व्यवस्था’ का हवाला दे कर मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने से नहीं रोक सकती। कामत ने अपनी दलील में कहा, हिजाब पहनने से किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है और इसे धार्मिक पहचान का प्रतीक भी नहीं कहा जा सकता । उन्होंने कहा, संविधान का अनुच्छेद 25 प्रत्येक भारतीय को अपने धर्म को मानने और उसके प्रचार की स्वतंत्रता देता है, और सरकारें ‘कानून और व्यवस्था’ का हवाला देकर एक सर्कुलर के ज़रिए उस पर रोक नहीं लगा सकती । उन्होंने कहा, ‘आजकल तो वकील और जज भी नामा (टीका या सिंदूर) लगाते हैं और यह धार्मिक पहचान का प्रदर्शन नहीं है। यह तो केवल आस्था का प्रतीक है।’
आज कोर्ट में हिजाब का पक्ष लेने वाले वकील का ज्यादा जोर इस बात पर था कि हाई कोर्ट अपना अंतरिम आदेश वापस ले ले। इस अंतरिम आदेश की वजह से शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक परिधान धारण नहीं किए जा सकते चाहे वे हिजाब हों या भगवा। चूंकि हिजाब पहनने पर कोर्ट की पाबंदी है, तो भगवा पहनने वाले गायब हैं क्योंकि वे भी सिर्फ प्रतिक्रिया के तौर पर भगवा शॉल पहनकर गए थे।
जब से इस मुद्दे में SDPI (सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया) और PFI (पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया) के लोग शामिल हुए हैं, ये सिर्फ शिक्षण संस्थाओं तक सीमित नहीं रह गया है। ये वन अपमैनशिप का मामला ज्यादा बन गया है। इसमें नुकसान उन लड़कियों का हो रहा है जो पढ़ना चाहती हैं, एग्जाम देना चाहती हैं। लेकिन उनके पैरेन्ट्स और PFI के स्टूडेंट संगठन CFI के ऐक्टिविस्ट लड़कियों के हिजाब पहनने की जिद पकड़े हुए हैं। लगता है ये बच्चियां सियासत और दम दिखाने के खेल के बीच फंस गई हैं।
हालांकि कुछ बड़ी उम्र की मुस्लिम महिलाएं भी ये कहती सुनाई दीं कि अगर बच्चियां हिजाब पहनना चाहती हैं तो उन्हें क्यों रोका जाए। लेकिन हम 8 से 10 साल की मुस्लिम लड़कियों के वीडियो भी देख रहे हैं, जिन्हें हिजाब पहनाकर स्कूलों में लाया जा रहा है। क्या ये उन बच्चियों की चॉइस है या उन पर पर्दा थोपा गया है? ये सवाल उठना तो लाजिमी है। मुझे लगता है इस पूरे मामले को स्कूल यूनिफॉर्म तक सीमित रखना चाहिए और सबको अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिए।
How our enemies are using ‘hijab’ to defame India
With the ‘hijab’ controversy spreading to nearly 50 schools across Karnataka, the issue is now being misused by vested interests abroad to project India in a bad light.
The latest example is that of the Organisation of Islamic Conference (OIC), whose general secretariat expressed deep concern over, what it called, “banning of Muslim girl students from wearing hijab in the state of Karnataka”. The OIC statement also says, “The continued attacks targeting Muslims … are indicative of the growing trend of Islamophobia’.
On Tuesday, India reacted strongly to the OIC statement. The Ministry of External Affairs spokesperson said, “India believes the OIC is allowing itself to be manipulated by Pakistan on issues related to Jammu and Kashmir and the alleged threat to Muslims in India….We have noted yet another motivated and misleading statement from the general secretariat of the OIC on matters pertaining to India.”
The MEA spokesperson said, “Issues in India are considered and resolved in accordance with our constitutional framework and mechanisms…democratic ethos and polity…The communal mindset of the OIC secretariat does not allow for a proper appreciation of these realities. The OIC continues to be hijacked by vested interests to further their nefarious propaganda against India. As a result, it has only harmed its own reputation.”
At a time when anti-Indian groups are trying to misuse the ‘hijab’ issue and give it a communal twist at international forums, the situation in Karnataka is worrying. On Tuesday, in as many as 50 schools of Karnataka, in Chickmagalur, Tumakuru, Kodagu, Mandya, Kalaburgi and Udupi, parents of Muslim girl students insisted on their wards wearing ‘hijab’ inside classrooms, but the administration did not allow them citing the interim order of Karnataka High Court, where the hearing continued for the third day on Wednesday.
Slogans of ‘Allahu Akbar’ were chanted by some parents, and in most of the cases, Muslim parents refused to allow their wards to enter classrooms without ‘hijab’. The parents went to the extent of asking their children to avoid taking preparatory examinations without ‘hijab’.
At the Mudigere Urdu School in Chickmagalur, 35 Muslim girls were allowed to sit in a separate classroom, but when the teachers asked them to remove ‘hijab’, they refused. When the teachers persuaded them to concentrate on their exams, the girl students protested, entered into arguments and then left the school. Their parents waiting outside had altercation with the school teachers and police, who pointed out that they had to implement the interim order of the High Court.
In Ghousia School in Mandya, a Muslim girl student insisted on wearing ‘hijab’ inside classroom, but when she was refused permission, she left the school. Her parents took her away. At the Govt Composite Urdu School in Kapu, Udupi district, some Muslim girl students insisted on giving exam while hearing ‘hijab’, but were disallowed. Their parents joined the argument, and the local tahasildar came to persuade the Muslim parents. The school authorities allowed 29 Muslim girl students to sit in a separate classroom and give exam without hijab, but eight of them, refused and went back with their parents.
At the Govt Urdu School in Kalaburgi, not a single Muslim girl student came to attend classes, as their parents insisted on the girls wearing ‘hijab’. Twenty Muslim girl students went back home. Similarly, in Karntaka Public School in Kodagu, twenty Muslim girls left for their homes from the school gates, after they were disallowed from hearing ‘hijab’. The students were supposed to sit for the pre-Board exams. Similar incident took place in Govt Girls Higher Secondary School in Shivmogga.
During the marathon hearing on ‘hijab’ issue before a three-judge bench in Karnataka High Court on Tuesday, advocate for two Muslim girl students, Devadatt Kamat argued that the state cannot bar Muslim girls from wearing ‘hijab’ citing ‘public order’. In his arguments, Kamat said, wearing of ‘hijab’ is an innocuous practice and cannot be termed as display of religious identity. He said, Article 25 of the Constitution gives freedom of practice and propagation of religion to every Indian, and the state cannot curb the same through a circular citing ‘public order’. “Even lawyers and judges wear certain ‘nama’ and this is not a display of religious identity. It is a practice of faith”, he said.
The advocate’s stress was more on withdrawal of the interim order barring wearing of religious dresses in schools and colleges. This includes both ‘hijab’ and ‘saffron shawls’. Since ‘hijab’ has been prohibited, the groups of boys who were wearing ‘saffron shawls’ have now disappeared. These boys were doing it as a reaction to Muslim girls wearing ‘hijab’.
The matter is now no more confined to educational institutions, because Muslim outfits like SDPI (Social Democratic Party of India) and PFI (People’s Front of India) have entered the scene. It has now become a case of one upmanship. But the ultimate losers are Muslim girls, who want to study, and who have been preparing for their board exams. These students are being prevented by their parents and CFI(Campus Front of India), the student organization of PFI. Muslim girls, studying in schools and colleges, are now caught in a web of communal politics and show of might.
Some elderly Muslim women have been heard saying why these girls are being prevented from wearing ‘hijab’. But we are also seeing videos of Muslim girls in the age group of eight to ten years, being brought to schools, wearing ‘hijab’. Can we say these young Muslim kids are exercising their personal choice? Or, has the veil been forced on them? These questions are bound to be raised. I personally believe that this entire issue must remain confined to wearing of school uniform, and everybody should wait for the court to give its verdict.
हिजाब पर अदालतों को अंतिम फैसला लेने दें
उत्तर प्रदेश विधानसभा के दूसरे चरण में सोमवार को 55 सीटों पर वोट डाले गए। दूसरे राउंड में कुल 61 फीसदी मतदाताओं ने अपने वोट डाले। वहीं पड़ोसी राज्य उत्तराखंड की 70 सीटों पर हुए चुनाव में 65.1 फीसदी वोटिंग हुई। जबकि गोवा की कुल 40 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में 78 फीसदी से ज्यादा वोटिंग हुई।
यूपी में दूसरे राउंड में 9 जिलों की जिन 55 सीटों पर वोटिंग हुई है, वे मुस्लिम बहुल जिले हैं । यह वही इलाका है जहां बीजेपी ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 55 में से 38 सीटें जीतकर शानदार चुनावी सफलता हासिल की थी। वहीं समाजवादी पार्टी को महज 15 सीटों से संतोष करना पड़ा था। पिछले चुनाव में बीजेपी का स्ट्राइक रेट बेहतर था क्योंकि मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच बंट गए थे। लेकिन सोमवार को समाजवादी पार्टी के नेताओं ने यह दावा किया कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती कहीं से भी इस रेस में नहीं हैं। पहली बार बीजेपी नेताओं ने यह दावा किया कि उन्हें मुस्लिम मतदाताओं और खासतौर से मुस्लिम महिलाओं का समर्थन मिल रहा है।
उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कानपुर देहात में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए मुस्लिम मतदाताओं से बीजेपी का समर्थन करने की अपील की। उन्होंने दावा किया कि उनकी पार्टी को मुस्लिम महिलाओं के वोट मिल रहे हैं। ये महिलाएं तीन तलाक कानून को खत्म किए जाने की वजह से उनकी पार्टी की मूक समर्थक रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में मुस्लिम महिलाओं का जिक्र कई बार किया।
उन्होंने कहा- ‘मेरी मुस्लिम बहनें चुपचाप, बिना किसी शोर-शराबे के, मन बनाकर मोदी को आशीर्वाद देने के लिए घर से निकल रही हैं। हमारी मुस्लिम महिलाएं-बहन-बेटियां जानती हैं कि जो सुख-दुख में काम आता है, वही अपना होता है…यूपी के लोगों ने इन्हें 2014, 2017 और 2019 में फिर एक बार हराया और अब 2022 में भी घोर परिवारवादी फिर से हारेंगे। इस बार उत्तर प्रदेश में रंगों वाली होली 10 दिन पहले ही मनाई जाएगी। 10 मार्च को जब चुनाव नतीजे आएंगे, धूम-धाम से रंगों वाली होली शुरू हो जाएगी।’
अपने भाषण में मोदी ने मुस्लिम बेटियों औऱ महिलाओं के अलावा मुस्लिम पुरुषों की भी बात की। मोदी ने उन्हें याद दिलाया कि कैसे पिछले सात साल में उन्होंने मुस्लिम लड़कियों की ज़िंदगी आसान बनाई है। मोदी ने कहा कि तीन तलाक से सिर्फ मुस्लिम महिलाओं की ही जिंदगी बर्बाद नहीं होती थी बल्कि उनके पिता और भाइयों की भी मुश्किलें बढ़ जाती थीं।
बीजेपी के नेता जानते हैं कि ज्यादातर मुसलमान उन्हें वोट नहीं देते लेकिन पिछले चुनावों में इन इलाकों में बीजेपी को मुसलमानों के 8 प्रतिशत वोट मिले थे। जब हमारे रिपोर्टर, मुस्लिम मतदाताओं से बात करते हैं तो मुस्लिम समाज के लोग यह तो मानते हैं कि राशन टाइम पर मिलता है, बेईमानी नहीं होती। मकान, गैस कनेक्शन देने में हिदू और मुसलमान के बीच कोई भेदभाव नहीं हुआ। मुस्लिम मतदाता यह भी मानते हैं कि कानून-व्यवस्था में जो सुधार हुआ, उससे उनकी ज़िंदगी में बदलाव आया है। जीवन में सुकून आया है। अब रोज-रोज के झगड़े और दंगों से छुटकारा मिला है। लेकिन इसके बाद भी वे बीजेपी को वोट नहीं देंगे।
यह पूछे जाने पर कि वे बीजेपी को वोट क्यों नहीं देंगे? एक शख्स ने कहा कि मौलवी साहब का फरमान आया है, किसी ने कहा कि हम तो हमेशा से बीजेपी के खिलाफ वोट देते आ रहे हैं। किसी का कहना है कि बीजेपी वाले हिंदू-मुसलमान करते हैं और धर्म के आधार पर समाज में विभाजन की कोशिश करते हैं। बीजेपी के नेता आजकल याद दिलाते हैं कि बीजेपी ने तीन तलाक का कानून खत्म करके महिलाओं को राहत दी है, इसलिए मुस्लिम महिलाएं इस बार उनके लिए वोट करेंगी। तो फिर हिंदू-मुसलमान कौन करता है? धर्म के आधार पर समाज में विभाजन की कोशिश कौन करता है? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है।
सोमवार को उत्तर प्रदेश में वोट देने आईं मुस्लिम महिला मतदाताओं के बीच ‘हिजाब’ एक बड़ा मुद्दा नजर आया। हमारे रिपोर्टर्स ने बरेली, रामपुर, बदायूं, मुरादाबाद में वोट देने आई महिलाओं से बात की और उनसे यह पूछा कि कर्नाटक के हिजाब विवाद को लेकर वो क्या सोचती हैं? क्या वोट देते समय वो हिजाब के मुद्दे को ध्यान में रखेंगी? ज्यादातर मुस्लिम महिला मतदाताओं की शिकायत यही थी कि हिजाब या किसी भी तरह का पोशाक पहनना उनके व्यक्तिगत पसंद-नापसंद का मामला है और इसमें दख़ल दिया जा रहा है। सरकार को ऐसे मामलों में दखल नहीं देना चाहिए। यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि यूपी की मुस्लिम महिला मतदाताओं को यह मुद्दा कितना प्रभावित करता है।
कर्नाटक में हिजाब विवाद के बीच नौवीं-दसवीं के स्कूल सोमवार को फिर से खुल गए। कई स्कूलों में मुस्लिम लड़कियां हिजाब पहनकर आईं, मगर हाईकोर्ट के आदेश का पालन कराते हुए स्कूल प्रशासन ने इन लड़कियों से कहा कि वह हिजाब उतारकर ही स्कूल के अंदर जा सकती हैं और क्लास अटेंड कर सकती हैं। बहुत सी छात्राओं ने अपने हिजाब हटाए और स्कूल जाकर पढ़ाई की। लेकिन, शिवमोगा के एक सरकारी स्कूल की 13 छात्राएं इस आदेश मानने को तैयार नहीं हुईं। इन छात्राओं और इनके माता-पिता की स्कूल के शिक्षकों के साथ बहस भी हुई। बहुत समझाने के बाद भी इन छात्राओं ने अपने हिजाब हटाने से इंकार कर दिया। हाईकोर्ट के आदेश की वजह से स्कूल प्रशासन उन्हें क्लास अटेंड करने की इजाजत नहीं दे सका और ये 13 छात्राएं घर लौट गईं।
कोप्पल के एक स्कूल में मुस्लिम छात्राएं हिजाब पहनकर आईं, उन्हें क्लास में भी जाने दिया गया। हालांकि, कुछ देर बाद प्रशासन के निर्देश पर उन्हें हिजाब निकालकर क्लास में जाने को कहा गया। सभी छात्राओं ने इस निर्देश का पालन किया और हिजाब हटाकर क्लास अटेंड की। ठीक इसी तरह कलबुर्गी के एक सरकारी स्कूल में नियमों के हिसाब से मुस्लिम छात्राओं को हिजाब के साथ आने की इजाजत है। इसलिए सोमवार को जब यह स्कूल खुला, तो मुस्लिम छात्राओं को हिजाब के साथ एंट्री दे दी गई। हालांकि, बाद में डिप्टी कमिश्नर के निर्देश पर हिजाब पहनकर आई छात्राओं से हिजाब हटाने को कहा गया और फिर छात्राओं ने अपने हिजाब हटाए और क्लास अटेंड की। यह विवाद महाराष्ट्र में भी फैल रहा है जहां लातूर के पास औसा में एनसीपी के बैनर तले हजारों महिलाओं ने समर्थन में धरणा-प्रदर्शन किया। इन महिलाओं ने मांग की कि उन्हें शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने की अनुमति दी जाए।
उधर, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने हिजाब विवाद को गैर-जरूरी बताया है। मदनी ने कहा कि सबको कर्नाटक हाईकोर्ट के फ़ैसले का इंतज़ार करना चाहिए। योग गुरु स्वामी स्वामी रामदेव ने कहा कि कौन क्या पहनना चाहता है, कैसे रहना चाहता है, यह किसी व्यक्ति की अपनी पसंद है और इस पर विवाद नहीं होना चाहिए। सभी को, अपने देश और लोकतंत्र को मज़बूत करना चाहिए।
स्वामी रामदेव की बात सही है कि देश हिजाब जैसे विवाद से आगे निकल चुका है लेकिन अपने सियासी फायदे के लिए इसका इस्तेमाल हो रहा है और लोग अपने-अपने ढंग से मतलब निकाल रहे हैं। कुछ लोग हिजाब को इस्लाम में अनिवार्य बताते हैं और इसे कुरान से जोड़ते हैं। लेकिन इस्लामिक विद्वान बताते हैं कि हिजाब का जिक्र कुरान में कहीं भी महिलाओं के लिबास के तौर पर नहीं हुआ है। हिजाब का जिक्र कुरान में पार्टीशन या पर्दा के तौर पर हुआ है। कुरान में ‘खिमार’ शब्द का प्रयोग किया गया है जिसका मतलब दुपट्टा या चुनरी होता है।
दूसरी बात यह है कि क्या बच्चियां स्कूल-कॉलेज में पहले हिजाब पहनकर आती थीं और अब इस पर पाबंदी लगाई गई है? इसपर उड्डुपी कॉलेज के प्रिंसिपल कहते हैं कि पिछले 35 साल से कोई लड़की हिजाब पहनकर नहीं आई। अब पीएफआई और सीएफआई के भड़काने पर उन्होंने हिजाब पहनकर क्लास में आने पर जोर दिया। उड्डुपी कॉलेज के प्रिंसिपल यह भी कहते हैं कि स्कूल या कॉलेज तक हिजाब पहनकर आने में कोई पाबंदी नहीं है, सिर्फ क्लासरूम में यूनिफॉर्म पहनना अनिवार्य है। वैसे भी इस मामले की सुनवाई अदालत में चल रही है। गेंद अब सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के पाले में है। इसलिए इसपर अंतिम फैसला अदालतों को लेने दें।
Let the courts have the final say on ‘hijab’
Over 61 per cent voters polled for the 55 UP assembly seats on Monday while the turnout was 65.1 per cent for the 70 seats in neighbouring Uttarakhand. More than 78 per cent voters casted their votes for the 40 assembly seats in Goa. However, the main thrust of all mainstream political parties was on the crucial state of Uttar Pradesh.
The nine districts of UP that went to polls on Monday were mostly Muslim-dominated. This was the region where the BJP had performed better in the 2017 assembly polls, winning 38 out of 55 seats, while the Samajwadi Party could only win 15. BJP’s strike rate last time was better because the Muslim vote was divided between SP and BSP, but on Monday, Samajwadi Party leaders claimed that BSP supremo Mayawati was nowhere in the race. For the first time, BJP leaders claimed that they were getting support from Muslim voters too, particularly from Muslim women.
Prime Minister Narendra Modi, addressing an election rally in Kanpur rural on Monday, appealed to Muslim voters to support BJP. He claimed that his party was getting votes from Muslim women, who have been silent supporters of his party because of the abolition of triple talaq. He mentioned Muslim women voters several times in his speech.
Modi said, “I know, my Muslim sisters are silently coming out of their homes to bless Modi. My Muslim daughters and sisters know that those who help them in dire need are their true benefactors….We defeated them in 2014, 2017 and 2019, and will again defeat the ‘pariwaarwadis’ (dynastics) in 2022. This year we will celebrate Holi on March 10 (counting day) itself, 10 days before the due date.”
In his speech, Modi reminded Muslim male voters how in the last seven years, his government has made life easier for Muslim girls. “Due to triple talaq, not only were the lives of their daughters and sisters became hell, but it also caused serious problems for fathers and brothers.”
BJP leaders know that normally Muslims do not vote for their party, but in the last UP elections, BJP got nearly eight per cent of Muslim votes. While speaking to our reporters, Muslim voters agreed that they are getting rations on time, there is no more corruption or discrimination in assistance for building houses or getting LPG connections, law and order has improved, their life has overall improved, there are no more communal riots, but these voters also say they will not vote for BJP.
Asked why, while one said, it’s the diktat from the local moulvi, another said, BJP leaders are trying to divide communities on religious lines. BJP leaders remind that it was through abolition of ‘triple talaq’ that married Muslim women are living a life of peace. Yet, nobody is forthcoming on the question, who is trying to create a religious divide between Hindus and Muslims?
On Monday, ‘hijab’ appeared to be an issue among Muslim women voters who went to vote in UP. Our reporters met several of them in Bareilly, Moradabad, Rampur and Badayun and sought their views. Most of them say, wearing of hijab or any dress was a personal choice and the government must not interfere. It will be too early to say how this issue could affect the voting preferences of Muslim women in UP.
In Karnataka, where the ‘hijab’ controversy has spread to most of districts, schools reopened on Monday for students of classes 9 and 10. Many Muslim girls went to schools, wearing ‘hijab’, but at the school gates, they were asked to remove them because of the High Court directive. In Shivmogga, 13 Muslim girl students, along with their parents, argued with the school administration, and insisting on attending classes by wearing ‘hijab’. When the administration said, it could not allow them because of High Court directive, the girls went away and did not attend classes.
In Koppal, Muslim girls were first allowed to sit in classes wearing ‘hijab’, but later, on the district administration’s order, they were asked to remove the veil. Similarly, in a government school in Kalburgi, Muslim girls wearing hijab were allowed in classes, but after the Deputy Commissioner’s order, they were asked to remove their veil. The controversy is spreading to Maharashtra, where in Ausa, near Latur, several thousand Muslim women staged a demonstration under NCP banner demanding they be allowed to wear hijab in educational institutions.
Jamiat Ulema-e-Hind chief Maualan Arshad Madni has described the ‘hijab’ controversy as unnecessary. He appealed to Muslims to wait for the court verdict. Yoga guru Swami Ramdev said, “it is a personal choice about what to wear and where to live. There should be no controversy on such matters, and all of us should work unitedly to strengthen our nation.”
Swami Ramdev is right when he says, that our nation has moved far ahead of controversies like ‘hijab’. Some vested interests are trying to take political advantage and twisting facts to suit their agenda. While some claim that hijab is compulsory in Islam, and link it with Holy Quran, other Islamic scholars say that nowhere in the holy book has ‘hijab’ been mentioned as an essential dress for Muslim women. The word hijab has been used only in the sense of a partition between men and women. The Holy Quran mentions ‘khimar’ instead of ‘hijab’, which means a sort of ‘chunri’ or ‘dupatta’.
Secondly, on the point whether Muslim girls used to come wearing hijab to colleges earlier, the principal of the Udupi college said that for the last 35 years, not a single Muslim girl attended school wearing hijab. The principal points out that the girls are now insisting on wearing hijab because they are being instigated by Campus Front of India and People’s Front of India. Even wearing hijab while entering school or college can be allowed, but girl students cannot be allowed to sit inside classrooms wearing hijab. Inside classrooms, uniform must be compulsory as a matter of discipline. The ball in now in the High Court and Supreme Court. Let the courts have the final say.
हिजाब को लेकर कुछ मुस्लिम लड़कियों का किसने किया ब्रेनवॉश?
देश के कई शहरों में शुक्रवार को मुसलमानों ने विरोध प्रदर्शन किया जिससे ‘हिजाब’ विवाद ने और जोर पकड़ लिया है। वहीं इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह उचित समय पर सभी याचिकाओं पर विचार करेगा।
चीफ जस्टिस एन. वी. रमन्ना ने कहा, ‘हम देख रहे हैं कि क्या हो रहा है। आपको भी यह सोचना चाहिए कि क्या इसे राष्ट्रीय स्तर पर लाना उचित है। हम संवैधानिक तौर पर बाध्य हैं और अगर मौलिक या संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होता है तो केवल एक नहीं बल्कि हर समुदाय के अधिकारों की हम रक्षा करेंगे। हम उचित समय पर इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे।’
चीफ जस्टिस ने कहा- अभी मैं केस की मेरिट पर कुछ नहीं कहना चाहता। इन चीजों को व्यापक स्तर पर न फैलाएं।… इसे सांप्रदायिक या राजनीतिक न बनाएं, पहले संवैधानिक सवालों पर हाईकोर्ट को फैसला करने दें।
चीफ जस्टिस एन. वी. रमन्ना, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कर्नाटक हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में उन शिक्षण संस्थानों में धर्मिक कपड़े पहनने पर रोक लगा दी है जिनमें यूनिफॉर्म पहले से निर्धारित है। याचिकाओं पर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल बहस कर रहे थे। हिजाब विवाद पर ये याचिकाएं दो मुस्लिम छात्राओं, आयशात शिफा और तरीन बेगम और यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बी.वी. श्रीनिवास की ओर से दाखिल की गई थी। इन याचिकाओं में मुसलमानों के ‘धार्मिक अधिकार’ को लागू करने की मांग की गई थी। कर्नाटक हाईकोर्ट में इस मामले पर अगली सुनवाई सोमवार को होगी।
इस बीच शुक्रवार को सूरत, मालेगांव, अलीगढ़, अमरावती और लातूर जैसे शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए जबकि मुंबई, हैदराबाद, दिल्ली, भोपाल और लुधियाना की कई मस्जिदों में इमामों ने इस मुद्दे पर अपनी बात रखी और मुस्लिम छात्राओं के ‘हिजाब’ पहनने के अधिकार का बचाव किया।
उधर, महाराष्ट्र के मालेगांव में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने शुक्रवार को मुस्लिम महिलाओं की एक बड़ी मीटिंग बुलाई। इस मीटिंग में बुर्का पहनी हजारों महिलाएं शामिल हुई और उन्हें यह बताया गया कि हिजाब या बुर्का पहनना उनका धार्मिक अधिकार और कर्तव्य है। इस मीटिंग में वक्ताओं ने कहा, यह पैगंबर का आदेश था कि सभी मुस्लिम महिलाओं को बुर्का या हिजाब पहनना चाहिए और धरती का कोई कानून इसे रोक नहीं सकता। जमीयत ने शुक्रवार को ‘हिजाब दिवस’ मनाने का ऐलान किया था जिसके चलते नासिक और मालेगांव में सुरक्षा बढ़ा दी गई थी।
मालेगांव की मीटिंग को एआईएमआईएम के विधायक मुफ्ती इस्माइल ने भी संबोधित किया। वहीं शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी मालेगांव में विरोध प्रदर्शन किया। एआईएमआईएम ने अमरावती में जिला कलेक्ट्रेट के बाहर धरना दिया। यह धरना मुस्लिम महिलाओं द्वारा दिया। महाराष्ट्र में लातूर के पास उदगीर में जमीयत के बैनर तले हिजाब को लेकर मुस्लिम महिलाओं द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया। एआईएमआईएम के बैनर तले गुजरात के सूरत में महिलाओं ने मौन मार्च निकाला। वहीं मुंबई के भिंडी बाजार स्थित हांडीवाली मस्जिद में शुक्रवार की नमाज में शामिल होने पहुंचे लोगों ने विरोध के तौर पर काली पट्टी बांध रखी थी।
अब जरा एक नजर इस बात पर डालते हैं कि हिजाब को लेकर प्रगतिशील मुस्लिम बुद्धिजीवी क्या सोचते हैं। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने शुक्रवार को इंडिया टीवी को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि ‘अगर समाज द्वारा हिजाब को एक अनिवार्य प्रथा के तौर पर स्वीकार किया जाता है तो मुस्लिम महिलाओं के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अंत में कुल मिलाकर देश पर बुरा असर पड़ेगा, क्योंकि ऐसी स्थिति में हमरा देश मुस्लिम महिलाओं द्वारा किए जा रहे अच्छे कामों से वंचित रह जाएगा।’
आरिफ मोहम्मद खान ने कहा, ‘अगर ‘हिजाब’ को सामाजिक मान्यता के रूप में स्वीकार किया जाता है, तो हम पुराने दिनों में वापस आ जाएंगे जब महिलाओं की भूमिका उनके घरों तक ही सीमित थी, ‘चिराग-ए-खाना (घर के अंदर दीपक) , या ‘शम-ए-महफिल’ (महफिल में मनोरंजन करने वाली) जैसी भूमिका रह जाएगी। उन आधुनिक मुस्लिम महिलाओं का क्या होगा जो एक दिन में 20 मरीजों की देखभाल करती हैं? क्या आप उन्हें ‘चिराग-ए-खाना’ कहेंगे? वह समाज के लिए एक ‘चिराग’ (रोशनी) है। क्या आप उन महिलाओं को ‘शम-ए-महफिल’ कहेंगे जो आज लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं और देश के लिए अपनी जान देने को तैयार हैं?’
शुक्रवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि कैसे एक चरमपंथी मुस्लिम संगठन ने कुछ मुस्लिम छात्राओं का ब्रेनवॉश किया और उनके जरिए ‘हिजाब’ का मुद्दा उठाया। दरअसल, इन लड़कियों ने इससे पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के एक विरोध मार्च में हिस्सा लिया था। जिसके बाद इस्लामी चरमपंथियों ने उन्हें एबीवीपी को छोड़कर मुस्लिम छात्रों के संगठन में शामिल होने के लिए कहा था। काफी सूझबूझ से योजना बनाने के बाद इसे अंजाम दिया गया। उडुपी के महिला कॉलेज की जो 6 लड़कियां हिजाब पहनकर आने की जिद पर अड़ गई थीं वे सभी मुस्लिम छात्र संगठन कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) की सक्रिय सदस्य हैं।
इन लड़कियों की पूरी क्रोनोलॉजी काफी रोचक है। दरअसल पूरा विवाद चार महीने पहले अक्टूबर माह से शुरू हुआ था। पिछले साल 29 अक्टूबर को उडुपी के मणिपाल में एबीवीपी के एक विरोध प्रदर्शन में हिजाब विवाद से जुड़ी 6 लड़कियां शामिल हुई थी। यह विरोध-प्रदर्शन एबीवीपी ने रेप की घटना के विरोध में किया था। उस वक्त की कुछ तस्वीरें और वीडियो भी सामने आए जिनमें हिजाब पहनी तीन लड़कियां दिख रही हैं। हमारे संवाददाता टी. राघवन की रिपोर्ट के मुताबिक, इन मुसलिम लड़कियों की तस्वीरें सामने आने के बाद कट्टरपंथी संगठन पॉपुलर फ्रन्ट ऑफ इंडिया (PFI) और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) के लोग एक्टिव हो गए। इन लोगों ने एबीवीपी के प्रदर्शन में शामिल इन लड़कियों और उनके माता-पिता से मुलाकात की और उन्हें एबीवीपी से अलग होने के लिए कहा। इन लड़कियों को समझाया गया कि इस्लाम में महिलाओं को ऐसे प्रदर्शन में हिस्सा लेने की इजाज़त नहीं है और अगर लड़कियां सक्रियता दिखानी चाहती हैं तो फिर इस्लाम की हिफाज़त के लिए आगे आएं।
7 नवम्बर को इन 6 लड़कियों को पीएफआई के समर्थन वाले स्टूडेंट विंग कैम्पस फ्रन्ट ऑफ इंडिया (सीएफआई) में शामिल कर लिया गया। पहले इन लड़कियों का कोई सोशल मीडिया अकाउंट नहीं था। नवंबर के पहले हफ्ते में इन लड़कियों ने ट्विटर पर अपना अकाउंट बनाया और फिर जिन मुद्दों को लेकर सीएफआई लड़ता है, उसी के हिसाब से ट्वीट करना शुरू कर दिया।
सोशल मीडिया एक्टिविस्ट विजय पटेल ने इन लड़कियों की ट्विटर पर होनेवाली गतिविधियों की पूरी पड़ताल की। विजय पटेल का कहना है कि सीएफआई में शामिल होने के बाद ही लड़कियों का झुकाव कट्टरपंथ की तरफ हुआ। ये लड़कियां सोशल मीडिया के जरिए सीएफआई का एजेंडा फैलाने लगीं। दिसंबर के पहले हफ्ते में अचानक देखा गया कि ये 6 लड़कियां क्लास रूम के अंदर भी हिजाब पहनकर आने लगीं। कॉलेज टीचर्स ने जब आपत्ति जताई तो इन लड़कियों ने उडुपी के डिप्टी कमिश्नर को ज्ञापन दे दिया और कॉलेज में हिजाब पहनने की इजाजत देने की मांग की।
शुरुआत में डिप्टी कमिश्नर ने मामले की जांच की बात कहते हुए कुछ दिनों तक इन लड़कियों को हिज़ाब पहनकर बैठने की अनुमति दी लेकिन इसी दौरान कॉलेज में पढ़नेवाले हिंदू लड़के इसके विरोध में खड़े हो गए। चेतावनी दी गई कि अगर उडुपी महिला कॉलेज में लड़कियों को हिजाब पहनकर क्लास रूम में बैठने की अनुमति दी गयी तो वे भी भगवा गमछा पहनकर कॉलेज आएंगे। यहीं से पूरा विवाद आगे बढ़ने लगा। हिंदू लड़के भी भगवा गमछा पहनकर कॉलेज आने लगे। 27 दिसंबर से इन मुस्लिम लड़कियों ने ‘हिजाब’ पहनकर कैंपस के बाहर ‘धरना’ देना शुरू कर दिया। सीएफआई के लोगों ने इन लड़कियों की पूरी मदद की। जल्द ही यह विवाद उडुपी के अन्य कॉलेजों में भी फैल गया। हिज़ाब बनाम भगवा प्रदर्शन की शुरुआत हो गई। धीरे-धीरे एक सोची समझी प्लांनिग के तहत इसे पूरे राज्य में फैलाकर एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना दिया गया। अब हालात यह है कि कर्नाटक में कॉलेज 15 फरवरी तक बंद कर दिए गए हैं वहीं सुरक्षाबलों ने शुक्रवार को उडुपी में फ्लैग मार्च किया।
यहां इस बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि हिजाब पहनकर स्कूल-कॉलेज जाने के लिए उकसाने वाले कौन हैं ? हिजाब पर एक कॉलेज में लगी रोक को मुसलमानों पर जुल्म करार देने वाले कौन हैं ? हिजाब को कुरान की हिदायत बताकर, एक स्कूल-कॉलेज के मसले को इस्लाम पर हमला बताने वाले लोग कौन हैं? स्टूडेंट्स को हिजाब के नाम पर खड़ा करने वाले कौन हैं? वे कौन लोग हैं जो ‘हिजाब’ मुद्दे पर मुसलमानों को लामबंद करने की कोशिश कर रहे हैं?
35 साल से उडुपी के इस कॉलेज में कोई लड़की हिजाब पहनकर नहीं आती थी लेकिन एक दिन ये लड़कियां एक वकील के साथ आईं और इतना बड़ा विवाद खड़ा हो गया। लड़कियों के साथ जो वकील आया वह सीएफआई से जुड़ा था। सीएफआई चरमपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का स्टूडेंट विंग है।
पीएफआई वही जेहादी संगठन है जिसके सदस्यों ने केरल में वर्ष 2010 में ईशनिंदा के आरोप में एक प्रोफेसर टीजे जोसेफ के हाथ काटे थे। प्रोफेसर टीजे जोसेफ न्यूमैन कॉलेज, थोडुपुझा में एक क्रिश्चियन अल्पसंख्यक संस्थान में मलयालम पढ़ाते थे। यह संस्थान महात्मा गांधी विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त है। प्रोफेसर जोसेफ ने एक प्रश्न पत्र सेट किया था जिसमें कथित तौर पर उन्होंने पैगंबर का अपमान किया था।
क्या यह सिर्फ संयोग है कि हिजाब प्रोटेस्ट के पीछे PFI है? या फिर यह एक प्रयोग है जो PFI दोहराना चाहती है। एक ऐसा प्रयोग जिसके तहत हिजाब के नाम पर देशभर में आंदोलन खड़ा करने का रास्ता कुछ लोगों को दिखाई देता है। हिजाब पर स्कूल-कॉलेजों में लगी रोक को मुसलमानों पर जुल्म करार देने का इरादा एक सोची समझी साजिश है जिसका देश के आम मुसलमान से कोई लेना-देना नहीं है। आपको याद होगा कि पीएफआई का नाम शाहीन बाग को लेकर भी काफी आया था। ये वही लोग हैं जिन्होंने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर धरने का आयोजन किया था। और अब हिजाब को बहाना बनाया जा रहा है।
चूंकि यह सवाल ऐसे वक्त में उठाया गया है जब यूपी में चुनाव हैं तो राजनीतिक दलों में इस बात की भी होड़ शुरू हो गई है कि कौन मुसलमानों का कितना बड़ा हिमायती है। भड़काने वाले बयान दिए जा रहे हैं। समाजवादी पार्टी की एक नेता ने कहा कि हिजाब पर हाथ डालने वालों के हाथ काट देने चाहिए। पिछले कुछ दिनों में तरह-तरह के व्हाट्सअप मैसेज सर्कुलेट हुए। पैटर्न वही पुराना है लेकिन लगता है कि इस बार लोग समझ चुके हैं, इसलिए बात ज्यादा नहीं बढ़ी। लेकिन इस पूरे मामले में पाकिस्तान को भारत को बदनाम करने का मौका मिला और उसने भारत की छवि खराब करने की कोशिश की। इसलिए सबको सावधान रहने की ज़रूरत है। यह मामला कोर्ट के सामने है। सबको अदालत पर भरोसा रखना चाहिए।
Who brainwashed some Muslim girls over ‘hijab’?
As the ‘hijab’ controversy gained momentum with protests held by Muslims in several cities of India on Friday, the Supreme Court said it would take up all petitions relating to at the appropriate time.
Chief Justice of India Justice N V Ramanna said, “we are watching what is happening. You also should think whether it is proper to bring these things at the national level. We are constitutionally bound and will protect if there is violation of fundamental or constitutional rights, not just of one but every community. We will intervene at the appropriate time.”
The CJI said, “right now, we do not want to express anything on merit. Do not push these issues to a larger level…Let us not make it communal or political, and let the High Court decide the constitutional question first.”
The bench of Chief Justice Ramanna, Justice A S Bopanna and Justice Hima Kohli was responding to senior advocate Kapil Sibal’s plea for early hearing of petitions filed by two more Muslim girl students challenging the Karnataka HC interim order which barred wearing of religious dresses in educational institutions where wearing of uniform is prescribed.
The petitions had been filed by two Muslim students Aishat Shifa and Thairn Begam, and Youth Congress president B V Srinivas seeking enforcement of “religious right” of Muslims. Karnataka High Court bench will take up the matter for further hearing on Monday.
Meanwhile, protests were held in cities like Surat, Malegaon, Aligarh, Amrawati and Latur on Friday, while imams in many of the mosques in Mumbai, Hyderabad, Delhi, Bhopal and Ludhiana spoke on this issue defending the right to wear ‘hijab’ by Muslim students.
Jamiat Ulema-e-Hind held a large meeting of Muslim women in Malegaon, Maharashtra, on Friday where thousands of women wearing ‘burqa’ were told by speakers that wearing of veil was their religious right and duty. The speakers said, it was the prophet’s directive that all Muslim women must wear ‘burqa’ or ‘hijab’, and no law on earth can stop this. Jamiat had given a call for observing ‘Hijab Day’ on Friday, and security was beefed up in Nashik and Malegaon.
The Malegaon meeting was addressed by AIMIM MLA Mufti Ismail. Sharad Pawar’s Nationalist Congress Party also organised a protest in Malegaon. AIMIM organised a protest dharna by Muslim women outside the district collectorate in Amrawati. In Udgir, near Latur, Maharashtra, Jamiat organised a protest by Muslim women over ‘hijab’. AIMIM brought out a silent march by women protesters in Surat, Gujarat. At the Handiwali Masjid in Bhindi Bazar, Mumbai, devout Muslims attending Friday prayers wore black bands as a mark of protest.
And now, a look at what progressive Muslim intellectuals think on this issue. Kerala Governor Arif Mohammed Khan in an interview to India TV on Friday, pointed out that “the interest of Muslim women will be adversely affected if ‘hijab’ is accepted as an essential practice by society. Muslim women will start suffering from inferiority complex. The ultimate loser will be the nation, which will be deprived of the good work being done by Muslim women in work places”.
Arif Mohammed Khan said, “If ‘hijab’ is accepted as a social norm, we will be going back to the old days when the role of women was confined to their homes, “chiraag-e-khaana” (lamp inside the home),or gatherings like “shamm-e-mefil” (entertainer at a gathering). What will happen to the modern Muslim woman, who looks after 20 patients on a single day? Will you call her a ‘chiraag-e-khana’? She is a ‘chraag’ (light) for the society. Will you call women ‘shamm-e-mehfil’ who are today flying fighter aeroplanes and are ready to offer their lives for the nation?”
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Friday night, we showed how an extremist Muslim outfit brainwashed some Muslim girl students and made them raise the ‘hijab’ issue. These girls, who had earlier taken part in a protest march by Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad, were asked by Islamic extremists to shun ABVP and join a Muslim students’ outfit. This was done after careful planning. One must note that all the six Muslim girl students of Udupi pre-university college who insisted on wearing ‘hijab’ inside classrooms, are active members of CFI (Campus Front of India), a Muslim students’ outfit.
Their chronology is interesting. On October 29 last year, three out of these six Muslim girls took part in an ABVP protest in Manipal, Udupi protesting a rape incident. There are images and videos which show the presence of these Muslim girls at the protest. Our Bengaluru correspondent T. Raghavan reports that soon after these images appeared, SDPI (Social Democratic Party of India) and PFI (Popular Front of India), both Muslim outfits active in the South, contacted the families of these three Muslim girls and requested their parents to ask the girls to dissociate themselves from ABVP. The girls were advised that taking part in such demonstrations is not permissible in Islam. They were told that if they wanted to be socially active, they should work for the “protection of Islam”.
On November 7, six girls from Udupi college, including these three, were admitted as members of CFI, which acts as the students’ wing of PFI. Earlier, these girls had no social media accounts, but in the first week of November, they opened Twitter accounts and started posting issues that were raised by CFI.
According to a social media activist Vijay Patel, soon after the girls became active on Twitter, they showed proclivities towards fundamentalism. They started publicizing CFI’s agenda on social media. In the first week of December, the six girls started attending college classrooms, wearing ‘hijab’. When the college teachers objected, they gave a memorandum to the Udupi deputy commissioner demanding that they be allowed to wear ‘hijab’ in college.
The DC initially allowed them to wear ‘hijab’ in order to ensure peace, but soon Hindu boys studying in the college started protesting. They came to college wearing saffron scarves. From December 27, these Muslim girls staged ‘dharna’ outside the campus by wearing ‘hijab’. They were assisted by CFI supporters. This controversy soon spread to other colleges of Udupi and a hijab versus saffron tug-of-war began. Political parties made an entry, and soon the protests spread across Karnataka, and it made headlines both in India and abroad. The situation now has come to such a pass that colleges in Karnataka have been closed till February 15, and security forces took out a flag march in Udupi on Friday.
One has to find out who are the persons who are inciting passions on an issue like wearing of ‘hijab’ in schools and colleges? Who are the persons who are complicating matters by labelling a ban on wearing of ‘hijab’ in a college as an attack on a community’s fundamental right? Who are the persons who are projecting this ‘hijab’ controversy in a college as ‘an attack on Islam’? Who are the persons who are trying to mobilize Muslims over ‘hijab’ issue?
For 35 years, not a single Muslim girl came to the particular college in Udupi wearing ‘hijab’, but on one day, six girls came with a lawyer to the college and demanded that they be allowed to wear ‘hijab’. The lawyer was working for Campus Front of India, the student wing of Popular Front of India, an extremist Islamic organization.
It must be noted that members of PFI in Kerala, cut off the right hand at the wrist of a Christian professor T. J. Jospeh, on allegation of blasphemy in 2010. Professor T. J. Jospeh was teaching Malayalam at Newman College, Thodupuzha, a Christian minority institution affiliated to Mahatma Gandhi University. The professor had set a question paper in which he had allegedly insulted the Prophet.
Is it just a coincidence that the same PFI is now behind the ‘hijab’ issue? Or, is it an experiment that the PFI is carrying out to test the water to spread its extremist views on Islam among Indian Muslims? It is nothing but a planned conspiracy to vitiate the communal atmosphere by projecting the ‘hijab’ issue as an attack on Muslim community. You may recall how PFI was behind the anti-Citizenship Amendment Act protest in Shaheen Bagh, Delhi.
Since the ‘hijab’ issue has become controversial during the UP assembly elections, there seems to be jostling among some political parties who are trying to project themselves as protectors of minorities. Provocative messages are being circulated on social media. One Samajwadi Party leader said, if any hand is raised against a Muslim woman’s ‘hijab’, it should be cut off.
The pattern is the same, as was being noticed during anti-CAA protests. But the common Muslim is now fully aware. Pakistan is trying to tarnish India’s image on this issue. We must all remain alert and careful. Since the matter is before the court, we must allow the court to give its verdict.
हिजाब पर बेवजह विवाद खड़ा करने की ज़रूरत नहीं
हिजाब विवाद अब कर्नाटक हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है लेकिन वहीं दूसरी ओर दिल्ली और अलीगढ़ समेत कई शहरों में मुस्लिम संगठनों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। यह निश्चित रूप से चिंता की बात है।
गुरुवार को कर्नाटक हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच ने एक अंतरिम आदेश देते हुए कहा कि स्कूलों और कॉलेजों में छात्रों को धार्मिक कपड़े नहीं पहनने चाहिए। साथ ही हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि वह तुरंत सभी शिक्षा संस्थानों को खोले। हाईकोर्ट अब इस मामले की अगली सुनवाई सोमवार को करेगा। हाईकोर्ट के आदेश के बाद, कर्नाटक सरकार ने सोमवार से 10वीं क्लास तक के स्कूलों को खोलने का फ़ैसला किया है जबकि प्री-यूनिवर्सिटी और डिग्री कॉलेज अगले आदेश तक बंद रखे जाएंगे।
इस बीच ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने दिल्ली के शाहीन बाग में विरोध मार्च निकाला। इस दौरान सभी प्रदर्शनकारियों ने अबुल फज़ल इन्क्लेव से शाहिद बिलाल मस्जिद तक मार्च किया और ‘अल्लाहु अकबर’ के नारे लगाए। वहीं वामपंथी छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) ने दिल्ली में हिजाब के समर्थन में कर्नाटक भवन के सामने प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी छात्र आगे बढ़ना चाहते थे लेकिन पुलिस ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। ठीक इसी तरह का प्रदर्शन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कैम्पस में भी हुआ।
जामिया मिलिया इस्लामिया के एक छात्र आसिफ़ इकबाल तन्हा ने गुरुवार को सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट किया। यह ट्विटर पर ‘अल्लाहु अकबर’ नाम से ट्रेंड हो गया। ट्विटर स्पेस ऑडियो में इस छात्र ने अपनी तस्वीर पोस्ट करते हुए दिल्ली के सभी मुसलमानों से ‘हिजाब’ के मुद्दे पर एकजुट होने और विरोध-प्रदर्शन के लिए आगे आने की अपील की। उसने आरोप लगाया कि अल्पसंख्यकों की पहचान और उनके मौलिक अधिकारों को चुनौती दी जा रही है और इसका विरोध किया जाना चाहिए। उसने इस बात का भी जिक्र किया कि कैसे इस्लामी संगठन (एसआईओ) कर्नाटक में मुस्लिम युवाओं को एकजुट करने का काम कर रहा है। इसके साथ ही आसिफ ने भगवा स्कार्फ पहने लोगों की भीड़ के सामने ‘अल्लाहु अकबर’ का नारा लगानेवाली मुस्लिम लड़की के साथ एकजुट होने की बात कही।
अब मैं आपको विस्तार से यह बताने की कोशिश करूंगा कि आखिर ‘हिजाब’ विवाद क्या है। हिजाब का मतलब एक ऐसा स्कार्फ होता है जो बालों और गर्दन को तो ढकता है, लेकिन इससे चेहरा नहीं ढका जाता। वहीं ‘नक़ाब’ घूंघट की तरह होता है जो सिर और चेहरे को तो ढकता है लेकिन आंखों को नहीं। इसके साथ ही महिला को सिर से पैर तक ढकने के लिए काले वस्त्र का इस्तेमाल किया जाता है जिसे ‘अबाया’ कहते हैं। वहीं भारतीय मुस्लिम महिलाएं आमतौर पर ‘बुर्का’ पहनती हैं। यह पूरे शरीर को ढकने के साथ ही चेहरे को भी ढकता है। इसमें चेहरे पर आंखों के पास जाली होती है ताकि बाहर की चीजें दिख सकें। वहीं ईरानी महिलाएं ‘चादोर’ पहनती हैं। यह सिर से लेकर पांव तक बुर्के की तरह लंबा कपड़ा होता है। जबकि ‘दुपट्टा’ सिर और कंधों पर लपेटा गया एक लंबा स्कार्फ होता है जिसे भारत में हिंदू और मुस्लिम महिलाएं समान रूप से इस्तेमाल करती हैं।
अब मैं आपको बताता हूं कि दुनिया में कई ऐसे देश हैं जिन्होंने हिजाब, नक़ाब या बुर्क़े पर रोक लगा रखी है। यूरोप के कई देशों जैसे कि फ्रांस, स्विटज़रलैंड, नॉर्वे, डेनमार्क, ऑस्ट्रिया और बुल्गारिया में बुर्क़े और नक़ाब पर पाबंदी लगी हुई है। पिछले साल स्विट्जरलैंड ने सार्वजनिक स्थानों पर चेहरे को पूरी तरह से ढकने पर रोक लगा दिया। 51.02 प्रतिशत मतदाताओं ने इस फैसले का समर्थन किया था। वहीं नीदरलैंड में बुर्का, घूंघट पहनने पर 150 यूरो का जुर्माना लगता है। यहां 14 साल तक इस मुद्दे पर बहस चली और फिर अगस्त 2019 से यह प्रतिबंध लगाया गया। फ्रांस ने वर्ष 2001 से अपने यहां बुर्का, हिजाब, नकाब आदि चेहरा ढकने वाली चीजों पर पाबंदी लगा रखी है।
श्रीलंका में कैबिनेट ने नेशनल सिक्योरिटी के मद्देनजर सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा ढकने पर पाबंदी लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी तो दे दी है लेकिन यह प्रस्ताव अभी तक लागू नहीं हुआ है। बेल्जियम ने वर्ष 2011 से बुर्का या हिजाब से चेहरे को ढकने पर प्रतिबंध लगा रखा है। हालांकि पिछले साल यहां फ्रेंच भाषी इलाके के विश्वविद्यालयों में हिजाब पहनने की इजाजत दी गई थी।
चीन ने अपने मुस्लिम बहुल शिंजियांग प्रांत में तो वर्ष 2017 से बुर्क़े और नक़ाब के साथ-साथ दाढ़ी बढ़ाने तक पर पूरी तरह से रोक लगा रखी है। चाइना ने ‘धार्मिक उग्रवाद’ के खतरों का हवाला देकर यह रोक लगाई है। डेनमार्क में बुर्का पहनने पर 135 यूरो का जुर्माना लगता है और यह 2018 से लागू है। वहीं ऑस्ट्रिया में 2017 से बुर्का के खिलाफ कानून है। यहां चेहरे को ढकने और इस कानून का उल्लंघन करने पर 150 यूरो का जुर्माना देना पड़ता है। बुल्गारिया में सार्वजनिक जगहों पर चेहरे को ढकने के खिलाफ 2016 से पाबंदी लागू है, लेकिन यहां पूजा स्थलों पर नकाब या घूंघट पहनने की इजाजत है।
पिछले साल जुलाई महीने में यूरोपियन यूनियन की सबसे बड़ी अदालत ने 2017 के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें नियोक्ताओं को यह इजाजत दी गई है कि वे कार्यस्थलों पर महिलाओं को हेड स्कॉर्फ पहनने से रोक सकते हैं। जर्मनी के दो प्रांतों ने भी सार्वजनिक जगहों और स्कूलों में हिजाब या नकाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया है। नॉर्वे ने स्कूलों में स्टूडेंट्स या टीचर्स के नकाब या हिजाब पहनने पर वर्ष 2018 से प्रतिबंध लगा रखा है। वहीं रूस के स्टाव-रोपोल इलाके में भी सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनने पर प्रतिबंध है।
कजाकिस्तान के कुछ इलाकों में भी स्कूलों और अन्य सार्वजनिक जगहों पर हिजाब, नक़ाब या हेड स्कार्फ पहनने पर लगा दिया गया है। वहीं उज़्बेकिस्तान में तो वर्ष 2012 से न सिर्फ़ नक़ाब और बुर्क़े पर पाबंदी है, बल्कि इनको बेचने पर भी रोक लगी हुई है। 2018 में जब एक इमाम ने उज़्बेकिस्तान में नक़ाब और दाढ़ी रखने पर लगी पाबंदी हटाने की मांग की, तो उसे बर्ख़ास्त कर दिया गया था। कनाडा ने वर्ष 2011 में उन सभी महिलाओं के लिए नक़ाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था जिन्होंने कनाडा की नागरिकता की शपथ ली थी, लेकिन बाद में वर्ष 2016 में कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया था।
हिजाब के पूरे विवाद के मद्देनजर मैंने इन तथ्यों को प्रस्तुत किया है। इस मामले में मुझे सिर्फ इतना कहना है कि अब मामला कोर्ट में है। जब तक कर्नाटक हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट सारे पक्षों को सुन न लें और कोई फैसला न दें, तब तक इस मामले में किसी भी तरह का विवाद खड़ा करने से बचना चाहिए। यह हमारे देश की बेटियों की शिक्षा से जुड़ा सवाल है। साथ ही यह देश के शिक्षा संस्थानों की स्वायत्तता के सवाल से भी जुड़ा है। इसलिए सबको कोर्ट के फैसले का इंतज़ार करना चाहिए।
No need to create tension over ‘hijab’
The ‘hijab’ controversy has now reached the Karnataka High Court and Supreme Court, but, on the other hand, some Muslim organizations have already started staging protest demonstrations in different cities, including Delhi and Aligarh. This is surely a matter of concern.
On Thursday, a three-judge bench of Karnataka High Court gave an interim order saying no religious clothes should be worn by students in schools and colleges. The high court asked the state government to immediately reopen all educational institutions, and posted the matter for further hearing on Monday. The Karnataka government immediately ordered reopening of all schools for classes 9 and 10 from Monday, but pre-university and degree colleges will remain closed until further notice.
Meanwhile, Asaduddin Owaisi’s All India Majlis-e-Ittehadul Muslimeen staged protest in Delhi’s Shaheen Bagh locality. The protesters marched from Abul Fazal Enclave to Shahid Bilal Mosque shouting ‘Allahu Akbar’ slogans. Ultra-leftist All India Students Association (AISA) also held a protest outside Karnataka Bhavan in Delhi, but were prevented by police from moving forward. A similar protest took place in Aligarh Muslim University campus.
A Jamia Millia Islamia student Asif Iqbal Tanha posted provocative posts on social media on Thursday, setting Twitter abuzz with the trend ‘Allahu Akbar’. In a Space audio, the student posted his image and appealed to all Muslims in Delhi to come forward to stage protests over the ‘hijab’ issue. He alleged that the identity and fundamental rights of minorities are being challenged, and it should be resisted. He also mentioned how Students Islamic Organization (SIO) was mobilizing Muslim youths in Karnataka. He called on youths to stand in solidarity with the Muslim girl who raised ‘Allahu Akbar’ slogan in front of a mob of people wearing saffron scarves.
For the sake of my readers, I will now try to elaborate what the ‘hijab’ controversy is all about.
‘Hijab’ means a headscarf meant to cover the hair and neck, but not the face. ‘Niqab’ is a cover or veil meant to cover the head and face, but not the eyes. It accompanies an ‘abaya’, a loose black garment that covers the woman from head to feet. ‘Burqa’ commonly worn by Indian Muslim women, covers the entire body and face, with a mesh window or grille for eyesight. ‘Chador’ is a full length cloth worm by many Iranian women, while ‘Dupatta’ is a long scarf loosely draped over the head and shoulders, commonly worn by Indian women, both Hindu and Muslim.
Now, a look at many countries across the world, where governments have made it an offence if any woman wears a ‘hijab’ or ‘burqa’ or ‘abaya’.
Last year, Switzerland, with a 51.2 per cent of voters’ backing, banned wearing of full face coverings in public places. In The Netherlands, since August, 2019, there is ban on wearing of burqas, veils and balaclavas, with a 150 euros fine. The ban was imposed after 14 years of debate. Since 2011, France has banned wearing of all face coverings, that include headgear, helmets, balaclavas, niqabs. The ban also includes burqa if it covers the face.
In Sri Lanka, the cabinet has cleared a proposal to ban wearing of face coverings in public places due to ‘national security concerns’, but the proposal is yet to be implemented. Belgium has banned wearing of full face coverings, including burqa, since 2011. However, last year, wearing of hijab was permitted in universities in a French-speaking region in Belgium.
China has clamped a complete ban on wearing of veils and burqas, including abnormal beard, in Muslim-dominated Xinjiang since 2017 citing threats from ‘religious extremism’. In Denmark, there is a ban on wearing of burqas since 2018, with a fine of 135 Euros. In Austria, there is a law since 2017 against wearing of veils. It bans covering from hairline till chins, and offenders will have to pay 150 Euros for committing offence. In Bulgaria, the ban is in force since 2016 against covering of faces in public, but it allows wearing of veils in place of worship.
In July last year, the European Union’s highest court upheld a 2017 ruling allowing employers to forbid women from wearing headscarves at work places. Two provinces in Germany have also banned wearing of veils or niqab in public places and schools. Norway has banned wearing of niqab or hijab by students or teachers in schools since 2018. In Stavropol region of Russia, there is a ban on wearing of hijab in public places.
In some regions of Kazakhstan, wearing of hijab, niqab and headscarves have been banned in schools and also in public. There is a ban on sale of religious face coverings in Uzbekistan since 2012, and the imam of a mosque was sacked when he appealed to the President to lift the ban on hijab for women and beards for men. Canada banned wearing of face veils including niqab in 2011, for all those women, who have taken Canadian citizenship oaths, but this order was later reversed by a court in 2016.
I have mentioned all these facts in order to put the entire controversy in perspective. I personally feel that we should all wait for the final judgement from Karnataka High Court, or from the Supreme Court. This issue is related to education of Muslim girls, and is also related to the autonomy of educational institutions. Therefore, we must all refrain from creating unnecessary tension and wait for the courts to give the judgement.