क्या पुतिन की शर्तों को मानेगा यूक्रेन?
रूस की सेनाएं उत्तर, पूर्व और दक्षिण-पूर्व की तरफ से यूक्रेन में लगातार आगे बढ़ती जा रही हैं। दोनों देशों के बीच जंग का आज तीसरा दिन है। रूस की एयरफोर्स, जिसमें पैराट्रूपर्स भी शामिल हैं, ने राजधानी कीव से 7 किमी दूर स्थित होस्टोमेल एयरपोर्ट पर कब्जा कर लिया है। एयरपोर्ट पर कब्जा करने के लिए लगभग 200 हेलीकॉप्टर लगाने वाले रूस ने दावा किया कि उसने कब्जे के लिए हुई भीषण लड़ाई में यूक्रेन की स्पेशल फोर्स के लगभग 200 सैनिक मार गिराए।
रूसी मीडिया ने दावा किया कि दक्षिणपूर्वी शहर मेलितोपोल पर रूसी सेना ने कब्जा कर लिया है, लेकिन शहर के मेयर ने बाद में इस रिपोर्ट का खंडन किया। कुछ ऐसे वीडियो सामने आए थे जिनमें रूसी बख्तरबंद गाड़ियां शहर की सड़कों से गुजरते हुए दिखाई दी थीं। रूसी सेना ने मेलितोपोल और मारियुपोल के बीच एक जगह पर नेवल इंफैंट्री के अपने सैनिकों को उतार दिया है।
यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोदिमिर जेलेंस्की ने कहा है कि सेना के 10 अधिकारियों सहित 137 ‘हीरो’ शहीद हुए हैं। शनिवार की सुबह रूस की एक मिसाइल ने राजधानी कीव में एक बड़े अपार्टमेंट के ब्लॉक को तहस-नहस कर दिया। इस घटना का वीडियो भी सामने आया जो कि दिल दहलाने वाला था। हालांकि इस घटना में कोई हताहत हुआ है या नहीं, इसका पता नहीं चल पाया। भारत में यूक्रेन के राजदूत ने आरोप लगाया कि रूस के हमले में एक किंडरगार्टन नर्सरी को भी नुकसान पहुंचा है।
एक्सपर्ट्स ने कहा है कि रूसी सेना ने अब तक चेर्नोबिल, खार्किव, चेरसन और मारियुपोल के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया है, और कीव समेत कई अन्य शहरों की तरफ बढ़ रही है। राजधानी कीव के कई इलाकों में गनफाइट चल रही है, जिसमें यूक्रेनी लड़ाकों के रूसी सैनिकों से भिड़ने की खबरें सामने आ रही हैं। सिटी सेंटर से 5 किमी दूर एक स्टेशन के पास गनफाइट के वीडियो भी सामने आए थे।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की निंदा करने वाले अमेरिका द्वारा पेश किए गए एक प्रस्ताव को रूस ने वीटो कर दिया, जबकि चीन, भारत और यूएई ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। भारत ने कहा, ‘मतभेदों और विवादों को दूर करने के लिए बातचीत ही एकमात्र रास्ता है। यह खेद की बात है कि कूटनीति का रास्ता त्याग दिया गया।’
शुक्रवार की रात रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेनी सेना से अपने प्रेसिडेंट और राजनीतिक नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह करने का आह्वान किया। पुतिन ने यूक्रेनी सेना से अपने नेताओं को सत्ता से हटाने का आह्वान करते हुए उन्हें ‘आतंकवादी, नशेड़ी और नियो-नाजी’ बताया। दूसरी ओर, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने पुतिन और उनके विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव को ‘अकारण और गैरकानूनी आक्रमण’ के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराते हुए उनके खिलाफ प्रतिबंध लगा दिए। यूरोपीय संघ सर्वसम्मति से उनकी संपत्ति को फ्रीज करने पर सहमत हो गया।
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने राजधानी कीव से निकलने के अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। एक वरिष्ठ अमेरिकी खुफिया अधिकारी के मुताबिक जेलेंस्की ने कहा, ‘यहां जंग चल रही है। मुझे गोला-बारूद चाहिए, सवारी नहीं।’
कई वीडियो सामने आए हैं जिनमें हजारों परिवार पोलैंड में घुसने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं। इन परिवारों में बच्चे भी थे, और बॉर्डर पर 40 किलोमीटर तक गाड़ियों की कतारें लगी थीं। कुछ ऐसे लोगों के वीडियो भी थे जो शून्य से भी नीचे के तापमान में 10 घंटे से ज्यादा पैदल चलकर पहुंचे थे, वहीं कई परिवार बर्फ पर ही सो रहे थे। कीव मेट्रो के अंदर कतारों में मास्क लगाकर बैठे बच्चों की तस्वीरें भी सामने आईं। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से 50,000 से ज्यादा लोग बेघर हो गए हैं।
शुक्रवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने लुहान्स्क के स्टारोबिल्स्क में रूसी मिसाइलों द्वारा तहस-नहस किए गए अपार्टमेंट के एक हिस्से के दृश्य दिखाए। मिसाइल हमले में पूरा आवासीय ब्लॉक खंडहर में तब्दील हो गया है। वीडियो में नजर आ रहा था कि मलबे में लोग अपनों को खोज रहे हैं।
अपने शो में हमने राजधानी कीव में सायरन बजने के तुरंत बाद बच्चों और उनके माता-पिता के डर से चीखने के वीडियो भी दिखाए। एक रूसी बमवर्षक विमान आसमान में उड़ते हुए आता है, बम गिराता है, और जल्द ही आस-पास के अधिकांश अपार्टमेंट मलबे में तब्दील हो जाते हैं।
रूस बार-बार दावा कर रहा है कि उसकी सेना आम लोगों को निशाना नहीं बना रही है, लेकिन जमीन पर हालात बिल्कुल अलग हैं। रूस के लड़ाकू विमानों ने रिहायशी इलाकों में भी बम बरसाए हैं। रूसी टैंकों ने भी नागरिकों पर हमला किया है। यूक्रेन की सरकार ने लोगों ने घरों में रहने का कहा है, या फिर सुरक्षित स्थानों पर, बम शेल्टर्स में जाने को कहा है। शहर में लोगों को सावधान करने के लिए सायरन बजाए जाते हैं। कीव के पास ही ओबीलोन के मेट्रो स्टेशन में रूस की सेना ने जबरदस्त गोलीबारी की और लोग बदहवास होकर इधर-उधर भागते हुए नजर आए।
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के भावुक शब्द सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं: ‘हमारा देश हमलावर रूसी सेना से अकेले ही लड़ रहा है। हमारे साथ लड़ने के लिए कौन तैयार है? मुझे कोई नजर नहीं आ रहा। यूक्रेन को NATO सदस्यता की गारंटी देने के लिए कौन तैयार है? हर कोई डरता है। हम अकेले यूक्रेन की रक्षा कर रहे हैं।’
यूक्रेन पर रूस का हमला शीत युद्ध के बाद की दुनिया के बारे में कई जरूरी सवाल खड़े करता है। यह दुनिया की सबसे ताकतवर सेनाओं के बीच शक्ति संतुलन से भी संबंधित है। क्या अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन के नेतृत्व में पश्चिमी देश पुतिन के रुख से डर गए हैं? क्या रूस और चीन के गठजोड़ ने दुनिया का समीकरण बदल दिया है? रूस के खिलाफ धमकी भरे बयान देने के बाद अमेरिका और NATO ने यूक्रेन की रक्षा के लिए सेना भेजने से इनकार क्यों कर दिया?
पुतिन अपने मकसद को लेकर बिल्कुल स्पष्ट हैं। वह कीव में वर्तमान सरकार को हटाकर एक कठपुतली सरकार बैठाना चाहते हैं। यूक्रेन पर बरसाए गए बमों और मिसाइलों ने आम नागरिकों को भारी नुकसान पहुंचाया है।
जो बायडेन रूस के खिलाफ प्रतिबंधों की घोषणा करके चैन से सो गए, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भी पुतिन के खिलाफ बड़ी-बड़ी बातें करके चले गए, फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रॉन भी रूस को आंखें दिखाकर निकल गए, लेकिन बर्बाद कौन हुआ, किसको फर्क पड़ा?
यूक्रेन के मासूम, बेकसूर और बेगुनाह लोगों को, जो रूस के हमले के बाद बदहवास होकर इधर-उधर भाग रहे हैं, बंकरों में छिप रहे हैं। एक लाख से ज्यादा यूक्रेनी नागरिकों ने सुरक्षित ठिकानों के तलाश में अपने घरों से निकल चुके हैं और उनकी जीवनभर की कमाई मिट्टी में मिल गई है। उनके आशियाने उनकी आंखों के सामने ध्वस्त हो रहे हैं। यह एक बेवकूफाना जंग का नतीजा है।
अमेरिका की कमजोर प्रतिक्रिया से दुनिया को निराशा हुई है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बायडेन ने खुद ही बार-बार रूस को यूक्रेन पर हमले को लेकर चेतावनी दी थी, पुतिन को नतीजे भुगतने की बात कही थी। जो बायडेन लगातार बयानबाजी करते रहे, लेकिन जब पुतिन ने अपनी सेना को यूक्रेन में भेज दिया, उन्होंने और उनके सहयोगियों ने फैसला किया कि वे यूक्रेन में अपनी फौज नहीं भेजेंगे। इस समय यूक्रेन के लोग भगवान भरोसे हैं, रूसी सेना की दया पर निर्भर हैं।
दुनिया के कई शहरों में रूस के हमलों के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। न्यूयॉर्क, पेरिस और यहां तक कि रूस के सेंट पीटर्सबर्ग समेत कई शहरों में ये प्रदर्शन हुए हैं। सेंट पीटर्सबर्ग में कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार भी किया गया। दुनिया में कोई भी जंग नहीं चाहता। सच तो यह है कि रूस के लोग भी जंग नहीं चाहते। कई रूसियों का कहना है कि यह पुतिन की लड़ाई है, रूस के लोगों की नहीं। दुनियाभर में शांतिप्रिय लोग इस लड़ाई के जल्द से जल्द खत्म होने की प्रार्थना कर रहे हैं। जिन लोगों को शून्य से नीचे के तापमान में अपने घरों से भागना पड़ रहा है, जो बर्फ पर, सबवे में और बंकरों में सो रहे हैं, वे जल्द से जल्द लड़ाई को खत्म होते हुए देखना चाहते हैं।
इन आम लोगों का इस बेवकूफाना जंग से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन लड़ाई की वजह से उनके लोगों की जिंदगियां जा रही हैं, वे अपनों को खो रहे हैं। इस जंग की वजह से बच्चे अनाथ हो रहे हैं, माता-पिता के सामने उनकी औलादों की मौत हो रही है। दुनियाभर के लोग यूक्रेन के लोगों पर थोपी गई इस मुसीबत के लिए सहानुभूति जता रहे हैं।
मुसीबत की इस घड़ी में, मैं भारत सरकार द्वारा युद्धग्रस्त यूक्रेन से अपने नागरिकों को निकालने के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना करना चाहता हूं। एयर इंडिया की 4 उड़ानें, 3 रोमानिया के लिए और एक हंगरी के लिए, भारतीय नागरिकों की घर वापसी के लिए उड़ान भर रही हैं। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी को व्यक्तिगत रूप से आश्वासन दिया है कि रूसी सेना को भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं। पोलैंड, हंगरी और रोमानिया में भारतीय वाणिज्य दूतावास के अधिकारी यूक्रेन से आए हमारे नागरिकों को बिना किसी दिक्कत के निकालने की व्यवस्था करने के लिए सक्रिय हैं।
एक सवाल यह भी है: आगे क्या? यह अब साफ हो गया है कि पुतिन पोजिशोन ऑफ स्ट्रेन्थ में पहुंचने के बाद ही यूक्रेन से बात करना चाहते हैं। वह कह चुके हैं कि सबसे पहले तो यूक्रेन घोषणा करे कि वह NATO में शामिल नहीं होगा, दूसरी बात कि यूक्रेन ऐलान करे कि वह ‘न्यूट्रल स्टैटस’ वाला मुल्क होगा और तीसरी ये कि यूक्रेन अपनी आर्मी को कम करे। इन तीनों शर्तों को मानने का मतलब होगा कि यूक्रेन हमेशा रूस के अंगूठे के नीचे रहेगा।
पहले दिन से ही रूस का मकसद यही था, इरादा यही था। पुतिन ने यह बात पहले भी कही थी कि यूक्रेन, अमेरिका और NATO के इशारे पर चल रहा था। अगर वह अपना रास्ता छोड़ देता है तो फिर रूस भी अपना शिकंजा हटा लेगा। एक बात साफ है कि पुतिन ने प्रेशर बनाया, और अब यूक्रेन को अपनी शर्तें मानने के लिए मजबूर करने के करीब पहुंच चुके हैं। दुनिया इन घटनाक्रमों पर नजर रखे हुए है।
Will Ukraine accept Putin’s conditions?
The Russian armed forces closed in on Ukraine from north, east and south-east, as fighting continued for the third consecutive day. Its airborne forces, including paratroopers, have captured the Hostomel airport, 7 km outside capital Kyiv. Nearly 200 Russian helicopters were used to capture the airport, and in fierce fighting, Russia claimed to have killed nearly 200 Ukrainian Special Forces soldiers.
Russian media claimed that the southeastern city of Melitopol has been captured by Russian army, but the Mayor of the city has denied the report. There were videos of Russian armoured vehicles passing through the city streets. Russian army carried out an amphibious landing of naval infantry at a place between Melitopol and Mariupol.
The Ukrainian President Volodymyr Zelenskyy has said, 137 ‘heroes’, including 10 army officers, have been killed. On Saturday morning, there were horrific videos of a Russian missile destroying a big apartment block in capital Kyiv, with casualties still unknown. A kindergarten nursery was also hit in Russian attack, the Ukrainian ambassador to India alleged.
Experts said, Russian forces have so far occupied Chernobyl, parts of Kharkiv, Cherson and Mariupol, and are closing in on Kyiv and several other cities. Gun battles are going on in several localities of the capital Kyiv, with Ukrainian fighters taking on Russian soldiers. There were videos of gun battles near a station, 5 km away from the city center.
At the United Nations Security Council, a resolution moved by the US condemning Russian invasion of Ukraine was vetoed by Russia, while China, India and UAE abstained. India said, ‘dialogue is the only answer to settle differences and disputes, and regretted that the path of diplomacy has been given up.
On Friday night, Russia President Vladimir Putin called on the Ukrainian army to revolt against its President and political leadership. Putin called upon the Ukrainian army to remove its leaders from power, calling them “terrorists, drug addicts and neo-Nazis”. On the other hand, US, Canada, UK and European Union slapped sanctions against Putin and his foreign minister Sergey Lavrov, holding them directly responsible for the “unprovoked and unlawful invasion”. The EU unanimously agreed to freeze their assets.
The Ukrainian President Zelenskyy has rejected US President Joe Biden’s offer to evacuate Kyiv. Zelenskyy said, “the fight is here: I need ammunition, not a ride”, according to a senior American intelligence official.
There were heart breaking scenes of thousands of families, including children trying to enter Poland from Ukraine, with a 40 km long tail back of cars waiting. There were visuals of people walking on foot for more than ten hours under sub-zero temperature, with several families sleeping on ice. There were images of Ukrainian kids, with masks, sitting in rows inside the subway of Kiev Metro. One report said, there were more than 50,000 people homeless after Russia invaded Ukraine.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Friday night, we showed visuals of an apartment block destroyed by Russian missiles in Starobilsk in Luhansk breakway region. The entire residential block has been reduced to ruins in the missile attack. There were visuals of survivors looking for their near and dear ones in the rubble.
In our show, we also showed videos of how children and their parents shrieked in horror, soon after siren was sounded in capital Kyiv. A Russian bomber aircraft zooms in the sky, dropping bombs, and soon most of the apartments nearby are turned into rubble.
Though Russia may claim that its army is not targeting civilians, the situation on the ground is opposite. There are visuals of hundreds of people crammed into subways and bomb shelters, cowering in fright, as siren wails, and missiles drop from the sky. There were visuals of civilians running away in fear as Russian forces begin shelling near Obolon metro station in Kiev.
The emotional words of Ukrainian president Zelenskyy sound scary: “Our country has been left alone to fight the invading Russian army. Who is ready to fight alongside us? I don’t see anyone. Who is ready to give Ukraine a guarantee of NATO membership? Everyone is afraid. We are defending Ukraine alone.”
The Russian invasion of Ukraine raise several key questions about the post-Cold War order. It also relates to balance of power among the world’s mightiest armies. Has the West led by US President Joe Biden bowed to Putin’s brazen invasion? Has the Russia-China axis changed the balance of world powers? Why did the US and NATO countries refuse to send armies to defend Ukraine after making threatening statements against Russia?
Putin is clear about his motive. He wants to decapitate or dislodge the present government in Kiev and install a puppet government. The bombs and missiles that were rained on Ukraine has caused huge casualties for the common citizens.
Joe Biden may have gone to sleep after announcing sanctions against Russia daily, UK prime minister Boris Johnson may limit his actions to issuing bombastic statements against Putin, French President Macron may have disappeared from view after issuing threats to Russia, but who are the ultimate losers?
The innocent and helpless citizens of Ukraine, whose lives have turned topsy-turvy after the Russian invasion. More than a lakh Ukrainian have left their homes in search of security and safety, with their lifetime savings ruined. Their apartments have turned into rubble in front of their eyes. These are the consequences of a mindless war.
The world is disappointed over the feeble reaction from the US. It was the US President Joe Biden who had been threatening Russia to be ready to face the consequences if it invaded Ukraine, but when the crunch time came, Biden and his allies in the West decided not to send their armies to defend Ukraine. At this point of time, the people of Ukraine are at the mercy of an aggressive Russian army.
There have been worldwide anti-Russian protests in New York, Paris and other major cities, and even in St. Petersburg, Russia, where several protesters were later rounded up. Nobody in the world wants a war. Even the Russians do not want a war, with many Russians saying, it is Putin who is at war. Peace loving people across the world are praying for an early end to this invasion. Those who are fleeing their homes in sub-zero temperature, sleeping on ice, and inside subways and bomb shelters, want the war to end, immediately.
These commoners have nothing to do with this mindless war, but it is the war that is destroying their lives, and their near and dear ones. Children are being orphaned, parents are losing their sons and daughters. People across the world are sympathizing with Ukrainians for the miseries that have been heaped on them.
In this hour of crisis, I would like to appreciate the efforts being made by the Indian government to evacuate its citizens from war-torn Ukraine. Four Air India flights – three to Romania, and one to Hungary – are scheduled to operate for evacuating Indian citizens. Russian President Putin has given a personal assurance to Prime Minister Modi that instructions have been given to Russian forces to ensure the safety of Indian citizens. Indian consulate officials are active in Poland, Hungary and Romania to arrange smooth evacuation of our citizens who have crossed over from Ukraine.
There is also a question: What next? It is now clear that Putin wants to negotiate from a point of strength. He is already on record for having demanded that Ukraine must declare that it will not seek membership of NATO, two, it must announce that it will be a country in eastern Europe having ‘neutral status’, and three, it must reduce its army strength. It is not rocket science to understand that this would mean Ukraine will remain as a satellite to Russia.
This was Russia’s aim since day one. Putin has already said that Ukraine must stop following diktats from the US and NATO. It was towards this end that Putin and his army applied pressure, and are now on the verge of forcing Ukraine to accept its conditions. The world is watching these developments carefully.
क्या यूक्रेन से जंग की आग फैलेगी ?
इस वक्त पूरी दुनिया में तीसरे विश्व युद्ध का खौफ है। जिस तरह से रूस ने यूक्रेन पर हमला कर उसकी घेराबंदी की है उससे खतरा बढ़ गया है। पिछले दो दिनों में रूस ने जल थल, नभ तीनों मार्ग से यूक्रेन पर हमला बोल दिया । साथ ही रूसी सेना ने यूक्रेन के कई शहरों को निशाना बनाया है। रूस की सेना यूक्रेन के काफी अंदर दाखिल हो चुकी है। इस हमले से कई शहरों में बड़े पैमाने पर तबाही हुई है। रूस के टैंक यूक्रेन की राजधानी कीव की तरफ बढ़ रहे हैं लेकिन बॉर्डर से आधे रास्ते तक की दूरी तय करने के बाद इवानकोव के पास उन्हें रोक दिया गया है।
यूक्रेन की राजधानी और अन्य शहरों पर रूसी सेना के बैलिस्टिक मिसाइलों से हुए हमले के भयावह दृश्य को पूरी दुनिया के लोगों ने देखा। शुक्रवार की सुबह रूसी सेना ने राजधानी कीव पर रॉकेट से हमले किए। यूक्रेन के विदेशी मंत्री ने इस हमले को ‘भयानक’ बताया। उन्होंने कहा कीव में इस तरह के हमले 1941 में हुए थे जब दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मन नाजी सेना ने आक्रमण किया था।
रूस और यूक्रेन की सेनाओं के बीच सूमी रीजन के ट्रॉस्ट्यानेट्स और अख़्तिरका में भीषण लड़ाई जारी है, वहीं खारकीव में भी दोनों सेनाओं के बीच जंग जारी है। रूसी सेना ने चेरनोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर कब्जा कर लिया है। साथ ही राजधानी कीव और कई अन्य शहरों में रूसी सेना दाखिल हो रही है। रूस की वायुसेना ने विलकोवो और तिरस्पोल पर हवाई हमले किए। वहीं पश्चिमी यूक्रेन में रूसी सेना ने स्टारोबिल्स्क में भारी गोलाबारी की जिससे बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। यूक्रेन के शहर गोलियों की आवाज और धमाकों से हिल गए हैं। रूसी हमले के खौफ के चलते एक लाख से ज्यादा लोगों ने यूक्रेन के शहरों से पलायन शुरू दिया है।
यूक्रेन के राष्ट्रपति के मुताबिक, रूस के हमले में यूक्रेन के सैनिकों समेत कम से कम 137 लोगों की मौत हुई है और 316 लोग घायल हुए हैं। हमले के पहले दिन रूस ने दावा किया कि उसकी सेना ने यूक्रेन के अंदर 83 टारगेट को नष्ट कर दिया। वहीं यूक्रेन का दावा है कि उसकी सेना ने खारकीव के पास रूस के चार टैंकों को तबाह कर दिया और लुहान्सक में रूस के 50 सैनिकों को मार गिराया। साथ ही यूक्रेन के पूर्वी हिस्से में रूस के छह विमानों को मार गिराने का भी दावा किया। हालांकि इन सभी दावों को स्वतंत्र रूप से अभी तक वेरिफाई नहीं किया जा सका है। उधर रूस समर्थित अलगाववादियों ने दावा किया है कि उन्होंने यूक्रेन के दो विमानों को मार गिराया।
वहीं अमेरिका ने अपनी सेना को यूक्रेन में नहीं भेजने का फैसला किया है। गुरुवार की रात अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन ने कहा- ‘हमारी सेना यूक्रेन में रूस से नहीं लड़ेगी, अमेरिका पूरी ताकत से नाटो क्षेत्र की रक्षा करेगा।’ बायडेन ने अमेरिका में रूस की सभी प्रॉपर्टीज को फ्रीज करने का ऐलान किया। साथ ही चार और रूसी बैंकों पर भी प्रतिबंध लगाने की घोषणा की।
बायडेन ने रूसी हमले को पूर्व नियोजित बताते हुए आरोप लगाया कि रूस के राष्ट्रपति पिछले कई महीनों से इस हमले की योजना बना रहे थे। उन्होंने कहा, वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनने के लिए डॉलर, यूरो, पाउंड और येन में व्यापार करने की रूस की क्षमता को अमेरिका सीमित कर देगा। बायडेन ने कहा-‘पुतिन हमलावर हैं, पुतिन ने युद्ध को चुना, उन्हें और उनके देश को इसका परिणाम भुगतना होगा।’
इधर, दिल्ली में गुरुवार को यूक्रेन के राजदूत ने इस संकट को खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद मांगी। मोदी ने सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक के बाद गुरुवार रात राष्ट्रपति पुतिन से टेलिफोन पर बात की। मोदी ने पुतिन से अपील की कि तत्काल हिंसा पर विराम लगाया जाय और सभी पक्ष कूटनीतिक बातचीत और संवाद की राह पर लौटें, इसके लिए ठोस प्रयास किये जाएं।
इसके साथ ही मोदी ने पुतिन से कहा कि भारत यूक्रेन में रह रहे अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। खासतौर से छात्रों के लिए जो वहां पढ़ने गए हैं । मोदी ने कहा उन्हें वहां से सुरक्षित निकालने के प्रयासों को भारत सर्वोच्च प्राथमिकता देता है । पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी को बताया कि आखिर किन कारणों से उन्हें सैन्य कार्रवाई करने का आदेश देना पड़ा। पुतिन ने कहा कि ‘डोनबास (पूर्वी यूकैन से अलग होने वाले क्षेत्रों) में यूकैन के सैनिकों ने वहां के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई’ की है। पुतिन ने पीएम मोदी से कहा, ऐसी परिस्थितियों में, यूक्रेन के इलाके में अमेरिका तथा नाटो की सैन्य गतिविधियों का जारी रहना रूस के लिए अस्वीकार्य था और इसी कारण एक विशेष सैन्य अभियान शुरू करने का फैसला लिया गया।
गुरुवार की देर रात अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने टेलीफोन पर बातचीत की। जयशंकर ने दोनों विदेश मंत्रियों से कहा कि इस संकट के समाधान के लिए बातचीत और कूटनीति के जरिए आगे बढ़ना ही सबसे अच्छा तरीका है।
इस वक्त यूक्रेन में जमीनी हालात बिल्कुल स्पष्ट हैं। अमेरिका और उसके नाटो सहयोगी रूस को चेतावनी देते रहे, बयान जारी करते रहे लेकिन जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो उसकी मदद के लिए अपने सैनिकों को भेजने से परहेज किया। अब तक अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने केवल एक ही ठोस कदम उठाया है और वह है, रूस के खिलाफ व्यापक आर्थिक प्रतिबंध। अमेरिका के राष्ट्रपति बायडेन ने नाटो देशों की एक वर्चुअल मीटिंग बुलाई है, लेकिन इस बात की संभावना नहीं है कि रूसी सेना से मुकाबले के लिए नाटो की सेना यूक्रेन में दाखिल होगी।
अगर यूक्रेन और रूस की तुलना की जाए तो रूस के आगे यूक्रेन की ताकत बहुत कम है। यूक्रेन के पास कुल दो लाख सैनिक हैं जबकि रूस के पास 8.5 लाख सैनिक हैं। रूस के पास 544 अटैक हेलिकॉप्टर हैं, जबकि यूक्रेन के पास केवल 34 अटैक हेलिकॉप्टर हैं। वायुसेना की बात करें तो पहले से ही रूस की वायुसेना बेहतर है। टैंकों की बात करें तो रूस के पास 12,420 टैंक हैं जबकि यूक्रेन के पास करीब 2,500 टैंक हैं। युद्धपोत में भी यूक्रेन का रूस से कोई मुकाबला नहीं है। रूस के पास 772 युद्धपोत हैं, जबकि यूक्रेन के पास 73 हैं। रूस के पास एक विमानवाहक पोत, 15 डिस्ट्रॉयर (विध्वंसक) और 70 पनडुब्बी है जबकि यूक्रेन के पास न तो विमानवाहक पोत है, न डिस्ट्रॉयर है और न ही पनडुब्बी है।
यूक्रेन के मसले पर चीन ने खुले तौर पर रूस का पक्ष लिया है। इतना ही चीन ने इस संकट के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया है। उसने आरोप लगाया कि अमेरिका यूक्रेन को हथियार देकर तनाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। चीन ने इसे रूस का हमला कहने से भी इनकार कर दिया है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से इस मामले में बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि रूस और चीन दोनों के पास वीटो पावर है। यूक्रेन ने भारत से मदद मांगी जो नरेंद्र मोदी के मजबूत नेतृत्व और दुनिया में भारत की बढ़े हुए प्रभाव का सबूत है। लेकिन भारत के लिए अमेरिका और रूस में से किसी एक को चुनना बेहद मुश्किल है। रूस भारत का पुराना और परखा हुआ दोस्त है वहीं अमेरिका भारत का नया और बड़ा पार्टनर है। अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत का रणनीतिक साझेदार है। अमेरिका और भारत के संबंध नई ऊंचाई पर पहुंच गए हैं।
भारत को अब दोनों विश्व शकर्तियों के बीच संतुलन बनाना होगा। भारत का फिलहाल फोकस यूक्रेन में फंसे करीब 20 हजार भारतीयों को सुरक्षित बाहर निकालने पर है। गुरुवार की रात को ‘आज की बात’ शो में हमने उन महिलाओं को अपने बेटे और बेटियों की सुरक्षा के लिए रोते हुए दिखाया जो इस वक्त यूक्रेन में हैं। यूक्रेन में फंसे भारतीयों की मुसीबत समझी जा सकती है। उनके परिवारों का दर्द और चिंता भी जायज है लेकिन हालात ऐसे हैं, कि कोई चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता। इन छात्रों की सहायता के लिए पूर्वी यूरोप में भारतीय दूतावासों ने हेल्पलाइन खोली है। छात्रों को भारत सरकार पर भरोसा करना चाहिए। मुझे याद है कि यमन में जब हालात बेहद बुरे थे तब प्रधान मंत्री मोदी ने अपने मंत्री रिटायर्ड जनरल वी. के. सिंह को वहां भेजा था । जनरल वी के सिंह अपनी जान मुसीबत में डालकर सभी भारतीयों को सुरक्षित वापस लेकर आए थे।
यूक्रेन संकट का असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर दिखने लगा है। रूस के हमले के बाद दुनियाभर के शेयर बाजार में हाहाकार मच गया है। कच्चे तेल की कीमत में भारी उछाल आया है। इसका सीधा असर आने वाले दिनों में पेट्रोल-डीजल की कीमत पर पड़ेगा। भारत में इसके गंभीर परिणाम होंगे और ऐसे संकेत हैं कि ईंधन की कीमतें मार्च के पहले सप्ताह तक बढ़ सकती हैं।
दरअसल, रूस ने यूक्रेन में अपनी सैन्य शक्ति का ट्रेलर दिखाया है। सैन्य नीति के जानकारों के मुताबिक रूस के पास जो फौजी ताक़त है उसके आगे यूक्रेन की सेना का कोई मुकाबला नहीं है। अगर रूस चाहे तो चौबीस घंटे में यूक्रेन पर कब्जा कर सकता है लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। पुतिन ने इसे ‘स्पेशल ऑपरेशन’ का नाम दिया। साथ ही पुतिन ने यह भी कह दिया कि उन्हें अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के एक्शन की फिलहाल कोई परवाह नहीं है। पुतिन का मकसद है नाटो की सेनाएं उनके दरवाजे तक न आएं। क्योंकि रूस के दबाव को कम करने के लिए यूक्रेन नाटो का सदस्य बनने की कोशिश कर रहा था और पुतिन नहीं चाहते कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बने।
पुतिन इस बात पर अड़े हुए हैं कि यूक्रेन इस बात का ऐलान करे कि वह कभी नाटो का सदस्य नहीं बनेगा। पुतिन का यह दबाव एक सीमित उद्देश्य के लिए है ताकि नाटो की सैन्य शक्ति रूस के आसपास नहीं पहुंच पाए। पुतिन इस बात का भी फायदा उठा रहे हैं कि उनसे डील करने के तरीकों में जर्मनी और फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों में मतभेद हैं। लेकिन इसके साथ पुतिन यह भी जानते हैं कि रूस की सैन्य ताकत चाहे जितनी हो उसकी इकोनॉमिक पावर इतनी नहीं है कि अमेरिकी और यूरोप के प्रतिबंधों को ज्यादा वक्त तक बर्दाश्त कर सकें।
आर्थिक तौर पर पुतिन ज्यादा लंबे वक्त तक लड़ाई नहीं लड़ सकते। इसलिए लगता है कि दबाव बनाने और यूक्रेन में घुसने के बाद वो सौदेबाजी करेंगे। सौदा यही होगा कि नाटो की सेनाएं रूस के आसपास से लौट जाएं और बदले में पुतिन की फौज यूक्रेन से वापस लौट जाए। इस वक्त तो यही लगता है। लेकिन जब जंग शुरू होती है तो इसके एक्सक्लेशन (फैलने और लंबा खिंचने) की संभावना बनी रहती है। एक जरा सी गलती जंग की आग को भड़का सकती है। इसलिए अभी वेट एंड वॉच की स्थिति रखनी होगी। इससे ज्यादा कहना जल्दीबाजी होगी।
Will the war in Ukraine escalate?
It is a scenario that could lead all of us to the brink of a Third World War. For the last two days, Russian armed forces have launched an invasion by land, air and sea, and have entered deep inside Ukraine. This invasion has caused widespread destruction and havoc in several cities. Russian tanks are moving towards the Ukrainian capital Kyiv, but its progress has been halted near Ivankov, halfway from the border to the capital.
People across the world watched in horror, visuals of ballistic missiles being rained by the Russian army on the Ukrainian capital and other cities. On Friday dawn, Russian army carried out rocket strikes on the capital, which was described by the Ukrainian foreign minister as “horrific”. He said, last time such attacks took place on Kyiv was in 1941, when German Nazi army had attacked the capital during the Second World War.
Fierce fighting is going on between Russian and Ukrainian forces in Trostyanets and Akhtyrka in Sumy region, and in Kharkiv, even as the Russian army has captured Chernobyl nuclear power plant and its army units are approaching the capital Kyiv, and several other cities. Russian air force carried out air strikes on Vilkovo and Tiraspol, while in western Ukraine, Russian army carried out heavy shelling in Starobilsk causing widespread damage. More than a lakh residents have started fleeing the cities of Ukraine in the face of Russian attacks, as the cities have been rocked by gunfire and missile attacks.
According to the Ukrainian President, at least 137 Ukrainians, including soldiers, have been killed since the Russian invasion, and 316 have been wounded. On the first day of the Russian invasion, Russia claimed, its army destroyed 83 specific targets inside Ukraine, while Ukraine claimed its army destroyed four Russian tanks near Kharkiv, killed 50 Russian soldiers in Luhansk and downed six Russian planes in the eastern part. All these claims could not be verified independently. Russian-backed separatists claimed they downed two Ukrainian planes.
The United States has decided not to send its armed forces into Ukraine. On Thursday night, US President Joe Biden said “our forces will not be engaged in a conflict with Russia in Ukraine. …The US will defend every inch of NATO territory with a full force of American power”. Biden announced freezing of all Russian assets in the US, and imposed sanctions on four more Russian banks.
Describing the Russian invasion as “premeditated”, Biden alleged that the Russian President has been planning this invasion for the last several months. He said, the US will limit Russia’s ability to do business in dollars, euros, pounds and yen, to be part of global economy. Biden said, “Putin is the aggressor, Putin chose this war and now, he and his country will bear the consequences”.
On Thursday, the Ukrainian ambassador in Delhi sought Prime Minister Narendra Modi’s help in defusing the crisis. Modi, after a top-level meeting Cabinet Committee on Security, had a telephonic talk with President Putin on Thursday night, during which he appealed for an immediate “cessation of violence” and called for concerted efforts from all sides to return to the path of diplomatic negotiations and dialogue”.
Modi also told Putin that India was concerned about the safety of its citizens in Ukraine, especially students, and said, India attaches the highest priority to their safe exit and return to India. On his part, Putin explained the “fundamental assessments” of Ukraine’s “aggressive actions against the civilian population of Donbass”. Putin told Modi that “given these circumstances and also the US and NATO allies’ military developments on Ukraine territory, unacceptable to Russia, he decided to launch the military operation.”
On Thursday late night, US Secretary of State Antony Blinken and Russian Foreign Minister Sergey Lavrov had separate telephonic talks with Indian foreign minister S. Jayashankar. The Indian foreign minister told both of them that “dialogue and diplomacy are the best way forward” to resolve the crisis.
On the ground, the situation is now crystal clear. The US and its NATO allies have been issuing statements warning Russia, but on the ground, the West, led by the US, has refrained from sending its troops to help Ukraine from protecting its territory from Russian invasion. The only tangible steps taken till now have been severe economic sanctions against Russia by the US and its allies. US President Biden has called a virtual meet of all NATO countries, but it is unlikely that NATO forces will enter Ukraine to take on the Russians.
Compared to Ukraine, Russia is a giant. Ukraine has nearly 2 lakh soldiers, while the Russian army has 8.5 lakh soldiers. Russia has 544 attack helicopters, while Ukraine has only 34 attack helicopters. Already, Russian air force has gained air superiority over the Ukrainian sky. Russia has 12,420 tanks, while Ukraine has nearly 2,500 tanks. Russia has 772 warships, while Ukraine has 73. Russia has one aircraft carrier, 15 destroyers and 70 submarines, while Ukraine has none.
China has openly taken sides with Russia in the Ukrainian crisis. It has blamed the US for this crisis. It has alleged that the US is trying to build up tension by arming Ukraine. China has refused to call it a Russian invasion.
Chances of the United Nations Security Council are slim, because both Russia and China have veto power. Ukraine has sought India’s help, which is indicative of India’s growing clout due to Narendra Modi’s strong leadership. For India, choosing sides between the US and Russia is a difficult one. Russia is India’s old and time-tested friend. The US is India’s strategic partner in the Indo-Pacific region. US-Indian relations have reached a new height.
India will now have to strike a balance between both world powers. India’s present focus is on the safe exit of nearly 20 thousand Indians trapped inside Ukraine. In my ‘Aaj Ki Baat’ show on Thursday night, we showed mothers crying for the safety of their sons and daughters, presently in Ukraine. Indian embassies in eastern Europe have opened helplines to provide assistance to Indian students trapped in Ukraine. Our students should have trust in the Indian government. I remember how Prime Minister Modi sent his minister retd General V K Singh to Yemen, for the safe return of Indians at a time there was firing and shelling from both sides.
The Ukraine war has caused a huge impact on world stock markets, including India, while the price of Brent crude has gone up. This will have serious implications in India, and there are signs that fuel prices in India may increase by the first week of March.
Strategically, what is happening in Ukraine is only a trailer of Russia’s military prowess. In a war, Ukraine stands nowhere against Russia, which has the capability to occupy the entire country within 24 hours, but Putin refrained from doing that. He named it as “special military operation”. By doing so, Putin has conveyed the message to the US and the West, that it does not bother the least about sanctions. Putin does not want the NATO forces to be deployed near the Russian border, if Ukraine is made a member of NATO.
Putin is insistent on his demand that the government in Kiev must announce that it will never become a member of NATO. Putin’s military pressure is aimed at achieving this limited objective. Putin is also taking advantage of the differences of opinion between France and Germany on this issue. Putin also knows that Russia has limited economic power, which can withstand the severe sanctions that have been imposed by the US and its allies.
From economic point of view, Putin cannot carry on the Ukraine war for long. The expected corollary is this: Putin may now seek a bargain, for bringing the invasion to a halt. He may demand that NATO forces withdraw from the Russian borders. But when a war begins, there are possibilities of escalation. A minor error can spread the flames of war. It is better to wait and watch. To jump to an early conclusion will not be correct.
नवाब मलिक का मामला : अपराध या राजनीति?
महाराष्ट्र की राजनीति में एक तूफान खड़ा हो गया है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में बुधवार को राज्य के कैबिनेट मंत्री और एनसीपी के वरिष्ठ नेता नवाब मलिक को गिरफ्तार कर लिया। मलिक की गिरफ्तारी दाऊद इब्रहिम की बहन की संपत्ति से जुड़े मामले में हुई। गिरफ्तारी के बाद ईडी ने नवाब मलिक को पीएमएलए (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट ने नवाब मलिक को तीन मार्च तक के लिए ईडी की हिरासत में भेज दिया है।
नवाब मलिक की गिरफ्तारी के कुछ देर बाद ही एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने अपने मुंबई स्थित आवास सिल्वर ओक में एनसीपी के मंत्रियों और नेताओं की एक हाई लेवल मीटिंग बुलाई। इस मीटिंग के बाद वे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मिले और अगले कदम को लेकर चर्चा की।
नवाब मलिक महाराष्ट्र सरकार के दूसरे मंत्री हैं जिनकी मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों में गिरफ्तारी हुई है। इससे पहले अनिल देशमुख को भी ईडी ने इसी आरोप में गिरफ्तार किया था। शरद पवार ने कहा- मलिक की गिरफ्तारी ‘राजनीतिक बदला चुकाने के लिए सत्ता का घोर दुरुपयोग’ करने का एक उदाहरण है, और किसी को भी बदनाम करने, उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए दाऊद इब्राहिम से उसके नाम को जोड़ देना आसान काम है। अगर कोई मुस्लिम कार्यकर्ता शामिल होता है तो वह दाऊद का नाम लेते हैं.. 25 साल पहले जब मैं मुख्यमंत्री था तब इसी तरह के आरोप मुझ पर लगाए गए थे।’
नवाब मलिक की कस्टडी पाने के लिए ईडी ने जो आवेदन दिया उसमें आरोप लगाया गया है कि नवाब मलिक ने दाऊद इब्राहिम के आतंकी नेटवर्क को उसकी बहन हसीन पारकर के जरिए फंडिंग की। नवाब मलिक ने हसीन पारकर की संपत्ति औने-पौने दामों पर खरीदी जो अपराध की श्रेणी में आता है। ईडी ने अपने आवेदन में नवाब मलिक को इस पूरे मामले का मुख्य साजिशकर्ता और लाभार्थी बताया है।
महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महा अघाड़ी गठबंधन में शामिल दल शिव सेना, कांग्रेस और एनसीपी ने गिरफ्तारी की निंदा की और आरोप लगाया कि केंद्र विपक्ष को कुचलने की कोशिश कर रहा है। शरद पवार ने पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से फोन पर बात की। ममता ने भी इस मुद्दे पर एनसीपी के साथ एकजुट रहने की बात कही।
शिवसेना ने राज्य की बीजेपी ईकाई को जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी। शिवसेना नेता संजय राउत ने आरोप लगाया कि बीजेपी अब पीठ में छुरा घोंप रही है। उन्होंने कहा कि जैसे अफजल खान ने शिवाजी महाराज के साथ किया था ठीक उसी तरह से बीजेपी भी कर रही है। उन्होंने कहा-हम लड़ेंगे, हम जीतेंगे, रावण और कंस मारे जाएंगे, यही हिंदुत्व है।
एनसीपी की मीटिंग में सभी नेताओं ने सर्वसम्मति से यह फैसला लिया कि नवाब मलिक से इस्तीफा नहीं लिया जाएगा। एनसीपी ने इस मामले को अदालत और जनता, दोनों के बीच लड़ने का फैसला लिया है। नवाब मलिक ने आरोप लगाया कि उन्हें अचानक गिरफ्तार कर लिया गया, बिना किसी सम्मन या वारंट के उनके घर से उठा लिया गया। ईडी की टीम सुबह पांच बजे नवाब मलिक के कुर्ला स्थित आवास पर पहुंची और उन्हें बलार्ड एस्टेट स्थित ईडी दफ्तर लाया गया और पूछताछ के बाद दोपहर करीब 2.45 बजे गिरफ्तार कर लिया गया।
ईडी के सूत्रों ने इस आरोप को खारिज कर दिया यह गिरफ्तारी राजनीतिक बदले के तहत की गई है। सूत्रों के मुताबिक यह गिरफ्तारी गहन जांच के बाद की गई है। जांच में नवाब मलिक और अन्य आरोपियों से जुड़े अवैध लेन-देन के सूबत मिले हैं। ये सबूत दस्तावेज के तौर पर हैं। ईडी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा- जहां तक ईडी का सवाल है तो हमारे लिए गिरफ्तारी अपवाद है, नियम नहीं।
क्या है नवाब मलिक से जुड़ा पीएमएलए मामला ?
नबाव मलिक ने मुंबई के कुर्ला में एक प्रॉपर्टी खरीदी थी। दावा है कि यह प्रॉपर्टी दाऊद इब्राहिम की थी। ईडी ने जब जांच की तो पता चला कि 1999-2003 की अवधि के दौरान दाऊद की बहन हसीना पारकर को इस तीन एकड़ की प्रॉपर्टी के एवज में 55 लाख रुपये का भुगतान किया गया था। 55 लाख में से पांच लाख रुपये चेक के जरिए दिए गए जबकि बाकी रकम नकद दी गई। यह जमीन मुनीरा प्लंबर के नाम थी और इसे हासीना पारकर ने जाली पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए अपने कब्जे में ले लिया था। पावर ऑफ अटॉर्नी में उसने अपने ड्राइवर और बॉडीगार्ड सलीम पटेल को इस प्रॉपर्टी को बेचने का अधिकार दिया था।
ईडी ने अपने रिमांड एप्लीकेशन में कहा-भारत में दाऊद इब्राहिम के आतंकी नेटवर्क को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए नवाब मलिक के एक्टिव सपोर्ट से जमीन का यह सौदा हुआ। इसमें हसीना पारकर द्वारा सलीम पटेल के माध्यम से जमीन पर कब्जा दिया गया। हसीना पारकर के अवैध कब्जे वाले हिस्से को खरीदकर नवाब मलिक ने डी-कंपनी को आर्थिक तौर पर मदद की।
ईडी ने कोर्ट में कहा-इस प्रॉपर्टी को हथियाने के लिए डी-गैंग के सदस्यों और नवाब मलिक की मिलीभगत थी। इन लोगों ने कई तरह के कानूनी दस्तावेजों को जोड़कर अपने आपराधिक कृत्यों पर पर्दा डालने की कोशिश की। जांच के दौरान ईडी को इस तरह के कई दस्तावेज मिले हैं।
कोर्ट के सामने ईडी के वकील और एडिशनल सॉलिसीटर जनरल अनिल सिंह ने कहा, इस केस में आरोपी ने प्रॉपर्टी के असली मालिक से जमीन खरीद का सौदा नहीं किया। इन्होंने हसीना पारकर से सौदा किया जो जमीन के मालिक द्वारा अवैध रूप से जारी पावर ऑफ अटॉर्नी का इस्तेमाल किया… अगर आप इस मामले को किसी भी एंगल से देखें तो साफ तौर पर यह मनी लॉन्ड्रिंग का मामला बनता है।
नवाब मलिक के वकील अमित देसाई ने कोर्ट से कहा कि ईडी 20 वर्षों के बाद टेरर फंडिंग का आरोप लगा रही है। देसाई ने कहा, ‘2022 में इस प्रॉपर्टी की असली मालिक (मुनीरा प्लंबर) 20 साल पहले की घटना को लेकर बयान दे रही हैं कि वह कुछ नहीं जानतीं और वह डरी हुई थीं।
नवाब मलिक को जब गिरफ्तारी के बाद मेडिकल जांच के लिए जे.जे अस्पताल ले जाया जा रहा था तो उन्होंने रिपोर्टर्स से कहा, ‘मैं डरूंगा नहीं, लड़ूंगा और जीतूंगा।’ एनसीपी के समर्थकों ने ईडी ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया और ईडी के खिलाफ नारेबाजी की। बीजेपी नेता किरीट सोमैया ने कहा, अब नेताओं और अंडरवर्ल्ड के बीच नेटवर्क का खुलासा हो चुका है, कई और मंत्री जेल जाएंगे।
शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने कहा, ‘बीजेपी नेता पिछले कुछ दिनों से नवाब मलिक के खिलाफ कार्रवाई को लेकर ट्विटर पर भविष्यवाणी कर रहे थे। नोटिस दिए बिना इस तरह से मंत्री को गिरफ्तार करना महाराष्ट्र का अपमान है।’
दिलचस्प बात यह है कि एनसीपी नेता छगन भुजबल भी महाराष्ट्र सदन घोटाला और मनी लॉन्ड्रिंग के केस में जमानत पर है। वह दो साल जेल में रहे। जिस वक्त छगन भुजबल को गिरफ्तार करके जेल भेजा गया था उस वक्त महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना की सरकार थी। तब शिवसेना ने छगन भुजबल की गिरफ्तारी को सही बताया था। शिवसेना बयान जारी कर कहा था-‘वक्त का पहिया घूम गया है….छगन भुजबल अपने कर्मों का फल भुगत रहे हैं’। लेकिन बुधवार को शिवसेना नेता संजय राउत ने नवाब मलिक की गिरफ्तारी को लोकतन्त्र की हत्या बताया। उन्होंने कहा-इस तरह के एक्शन का रिएक्शन बीजेपी को भी भुगतना होगा। जो आज जांच के नाम पर विरोधियों को परेशान कर रहे हैं, उनका भी हिसाब होगा।
नवाब मलिक के मामले को निष्पक्ष रूप से देखने दो नजरिए हैं।
पहला नजरिया इस केस की मैरिट है। यह सही है कि करोड़ों की जमीन लाखों में खरीदी गई। यह भी सही है कि इसमें दाऊद इब्राहिम की बहन हसीन पारकर और उनके ड्राइवर-बॉडीगार्ड सलीम पटेल के साथ डील हुई। नवाब मलिक यह बात खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस में मान चुके हैं कि उन्होंने यह प्रॉपर्टी सरदार वली खान से खरीदी थी। नबाव मलिक यह नहीं कह सकते कि उन्हें नहीं मालूम था कि सरदार वली खान को मुंबई ब्लास्ट के केस में सजा हुई थी। नवाब मलिक यह भी नहीं कह सकते कि वह हसीन पारकर को नहीं जानते। इसलिए केस तो बनता है।
इसे देखने का दूसरा नजरिया है इस केस की टाइमिंग। इसके बारे में दो बातें कही जा रही हैं। एक तो यह कि नबाव मलिक को ईडी ने इसलिए गिरफ्तार किया क्योंकि वह पिछले कुछ महीने से केन्द्र सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे। दूसरी बात यह है कि मुंबई में बहुत सारे लोग हैं जिन्होंने इसी तरह से कम पैसे में ज्यादा वैल्यू की जमीन खरीदी है। लेकिन पकड़ा गया नवाब मालिक को और वह भी बीजेपी नेता देवेन्द्र फड़नवीस की शिकायत पर? जो राजनीति की बात करते हैं वह इस केस की मेरिट की बात नहीं करते। इसीलिए मुझे लगता है कि इस मामले से महाराष्ट्र की रजनीति में कड़वाहट और बढ़ेगी।
नबाव मलिक शरद पवार के करीबी हैं और शरद पवार राजनीति के बहुत चतुर खिलाड़ी हैं। पहले ही ममता बनर्जी, शरद पवार से इस बारे में बात कर चुकी हैं। अब शरद पवार सभी गैर-बीजेपी पार्टियों को नरेन्द्र मोदी के खिलाफ खड़ा करने की कवायद शुरू करेंगे। इसलिए अब कड़वाहट कम होने का चान्स नहीं है। अब एक्शन- रिएक्शन की बात होने लगी है। जब बदले की कारवाई शुरू होगी तो यह लोकतन्त्र के लिए घातक होगा।
मुझे लगता है कि केस की मेरिट का भी ध्यान रखा जाना चाहिए और इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि ऐसे मामलों में दोनों तरफ से सियासत न हो। लेकिन ऐसा होता नहीं है। मुंबई में नवाब मलिक की गिरफ्तारी को चुनाव से जोड़ दिया गया है। शरद पवार के पौत्र और एनसीपी के विधायक रोहित पवार ने कहा कि यूपी चुनाव में माहौल बनाने के लिए और मुंबई में आगामी बीएमसी चुनावों के दौरान फायदा उठाने के लिए नवाब मलिक को गिरफ़्तार किया गया है।
अब आप सोचेंगे कि नवाब मलिक महाराष्ट्र की सियासत करते हैं, वे एनसीपी के नेता हैं और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री हैं। उनका यूपी चुनाव से क्या लेना देना? यूपी के चुनाव में उनका जिक्र क्यों हो रहा है? मैं आपको बता दूं कि असल में नवाब मलिक मूल रूप से यूपी के बलरामपुर के रहने वाले हैं। चूंकि वह मुसलमान हैं, इसलिए यूपी में उनका नाम विपक्ष के काम आ सकता है।
Nawab Malik’s case: Crime or politics?
In an action that could cause turmoil in Maharashtra politics, the Enforcement Directorate on Wednesday arrested senior NCP leader and minister Nawab Malik on money laundering charge in connection with a property belonging to Dawood Ibrahim’s sister, and produced him before PMLA (Prevention of Money Laundering Act) court. The court sent him to ED’s custody till March 3.
Within minutes, NCP supremo Sharad Pawar called a high-level meeting of all NCP ministers and leaders at his home Silver Oak in Mumbai, and later went to meet Chief Minister Uddhav Thackeray to chart a course of action.
Nawab Malik is the second NCP minister to be arrested, after Anil Deshmukh was arrested by ED on money laundering charge. Pawar said, Malik’s arrest was an example of “gross abuse of power for settling political scores”, and that invoking underworld don Dawood Ibrahim’s name was convenient to damage one’s reputation. “They take the name of Dawood, if a Muslim activist is involved…When I was chief minister 25 years ago, similar allegations were made against me.”
In its remand application, the ED has alleged that Nawab Malik funded the terror network of Dawood Ibrahim through his sister Hasina Parker, and that the acquisition of her property at throwaway prices by Malik falls under the definition of “proceeds of crime”. In the ED application, Nawab Malik was named as the key conspirator and “beneficiary of the entire charade”.
The ruling Maharashtra Maha Aghadi (mega alliance) of Shiv Sena, Congress and NCP denounced the arrest and alleged that the Centre was trying to crush the opposition. Sharad Pawar had a brief telephonic talk with West Bengal chief minister Mamata Banerjee, during which the Trinamool Congress supremo expressed her solidarity with NCP.
The Shiv Sena went to the extent of warning state BJP to be prepared for a retaliatory action. Shiv Sena leader Sanjay Raut alleged that the BJP was now involved in back stabbing, like Afzal Khan did to the great Marathi ruler Shivaji Maharaj. “We shall fight, we will win, and Ravana and Kansa will be killed, this is Hindutva”, he added.
At the meeting of NCP leaders, all of them were unanimous about not seeking the resignation of Nawab Malik. The NCP has decided to fight the case both in court and in public. Nawab Malik alleged that his arrest was sudden, and that he was picked up from his home without any summons or warrant. The ED team had reached the minister’s residence in Kurla at five in the morning, and took him to ED office in Ballard Estate, where he was put under arrest after questioning, at around 2.45 pm.
ED sources rejected the allegations that the arrest was a result of “political vendetta”. These sources said, the arrest was done after a thorough probe, in which documentary evidence was found about illicit financial transactions involving Nawab Malik and other accused. ”For us, arrest is an exception, and not the rule, as far as the ED is concerned”, a senior ED official said.
What is the PMLA case relating to Nawab Malik all about?
While probing the purchase of a Kurla property by Nawab Malik, the ED found that Rs 55 lakh was paid to Dawood’s sister Hasina Parker for a three acre of land during the period 1999-2003. Out of Rs 55 lakh, Rs 5 lakh was paid by cheque and the remaining amount in cash. The land belonged to one Munira Plumber, and it was acquired by Hasina Parker through a forged power of attorney, which gave her the rights to sell the land to her driver and bodyguard Salim Patel.
In its remand application, the ED said, “the active support of Nawab Malik and connivance for acquisition of portion of land by Hasina Parker through Salim Patel, was nothing but a successful attempt for financially strengthening the terror network of Dawood Ibrahim in India. By paying consideration for the illegally occupied share of Hasina Parker, Nawab Malik aided the D-company financially.”
The ED further told the court, “For usurping this property, members of D-gang and Nawab Malik connived together and executed several legal documents to put a façade of genuinity (sic) over this criminal act. During the investigation, various documents have been collected by the Directorate.”
Before the court, ED counsel and Additional Solicitor General Anil Singh said, our case is that they did not deal with the actual owner of the property to purchase it. They dealt with Hasina Parker and used a limited power of attorney issued by the owner illegally…If you look at it from any angle, it is a clear case of money laundering.”
Nawab Malik’s counsel Amit Desai told the court that ED is making the allegation of terror funding after 20 years. Desai said, “ In 2022, the original owner (Munira Plumber) is giving a statement for something that happened 20 years ago saying she doesn’t know and she was in fear.”
When Nawab Malik was taken to J J Hospital for medical tests, after his arrest, he told reporters, “Main daroonga nahin, ladhoonga aur jeetoonga” (I will not be cowed down, I shall fight and win). NCP supporters staged protest outside ED office, and shouted anti-ED slogans. BJP leader Kirit Somaiya said, several more ministers will now go to jail, now that a nexus between politicians and underworld network has been established.
Sharad Pawar’s daughter Supriya Sule said, “BJP leaders had been predicting action against Nawab Malik on Twitter since the last few days, this arrest of a minister without prior notice is an insult to Maharashtra”.
One interesting part is that NCP leader and minister Chhagan Bhujbal is on bail in the Maharashtra Sadan scam and money laundering case, after spending time in jail for two years. When Bhujbal was arrested, Shiv Sena was an ally of BJP, and had welcomed his arrest. Shiv Sena had then issued a statement saying, “the wheel of Time has turned fully, and Chhagan Bhujbal is facing the consequences of his act”. But, on Wednesday, Shiv Sena leader Sanjay Raut described Nawab Malik’s arrest as “murder of democracy”. He even threatened that action will be taken against BJP leaders in retaliation.
There are two ways to look at Nawab Malik’s case dispassionately.
One, merits of the case, in which crores worth property was bought at throwaway price, that there was a deal with Dawood’s sister Hasina Parker and her driver and bodyguard Salim Patel, Nawab Malik has admitted that he bought the property from Sardar Wali Khan., Nawab Malik cannot say that he did not know Sardar Wali Khan was declared convict by court in Mumbai serial blasts case, Nawab Malik cannot say that he does not know Dawood’s sister, hence, a case against him has been made out.
Two, the timing of arrest. It is being alleged that Nawab Malik was arrested because he was giving statements against the Centre recently, it is also being alleged there are many people in Mumbai who have similarly bought crores worth land at throwaway prices, but Nawab Malik was singled out for action? And, that too on charges levelled by BJP leader Devendra Fadnavis last year? Those who speak about politics, avoid speaking on the merits of this case. That is why, I think, this can cause more bitterness in Maharashtra politics.
Nawab Malik is a close associate of Sharad Pawar, who is a master in the game of politics. Mamata Banerjee has spoken to him, and Pawar may soon start uniting all non-BJP parties on a single platform. There appears to be few possibilities of the bitterness melting down, because Shiv Sena and NCP leaders are already in action-reaction mode. If there is retaliation, it will be harmful for democracy.
I feel, that the merits of the case must be kept in mind and it should not be politicized from both sides. But the chances are slim. Pawar’s grandson and NCP MLA Rohit Pawar has already alleged that Nawab Malik was arrested with an eye on UP assembly polls and the upcoming BMC election.
One may wonder why the arrest of a Maharashtra leader can cause repercussions in UP politics. For those who may not know, I can mention that Nawab Malik hails from Balrampur, UP. Since he is a Muslim, the opposition may take up his issue.
दुनिया में हो रही उथल-पुथल के वक़्त भारत को एक मजबूत नेतृत्व की ज़रूरत है
रूस और अमेरिका के बीच तनाव नाटकीय रूप से बढ़ चुका है। रूसी सांसदों ने देश के बाहर सेना भेजने और उनका इस्तेमाल करने के लिए राष्ट्रपति पुतिन को हरी झंडी दे दी है। उधर, यूक्रेन में हालात लगातार बिगड़ रहे हैं । रूस ने इसके दो अलग-अलग इलाकों में अपने सैनिकों को भेज दिया है। यूक्रेन से अलग होने वाले दो प्रांतों में रूसी फौज तैनात है और टैंकों ने मोर्चा सम्भाल लिया है। पूरी दुनिया चन्द दिनों में होने जा रही जंग के नतीजों को लेकर काफी परेशान है।
यूक्रेन में फंसे भारतीय नागरिकों को वापस लाने का काम भी शुरू हो चुका है। मंगलवार को एयर इंडिया के विमान से 242 भारतीय छात्र यूक्रेन से वापस लौटे। देर रात उनका विमान दिल्ली में उतरा। यूक्रेन में अभी भी बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक देश वापसी का इंतजार कर रहे हैं। उधर, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन ने रूस के बैंकों, कई रूसी अरबपतियों और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ नए आर्थिक प्रतिबंधों का ऐलान कर दिया है। ब्रिटेन, कनाडा, जापान. ऑस्ट्रेलिया और यूरोपियन यूनियन के 27 में से ज्यादातर देशों ने भी रूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया है। बायडेन ने यह ऐलान भी किया है कि वह रूस की सीमा से लगे बॉल्टिक देशों की सुरक्षा के लिए अमेरिकी सैनिकों को भेज रहे हैं।
कूटनीति के जानकारों को इस बात का डर है कि रूसी और नाटो की सेनाओं के बीच अगर जंग छिड़ी तो यह तीसरे विश्व युद्ध का भयावह रूप ले सकता है। यूक्रेन पर हमले के लिए लड़ाकू विमानों और रूसी टैंकों ने मोर्चा संभाल लिया है। फ्रांस के राष्ट्रपति और जर्मनी के चांसलर ने पुतिन से मुलाकात की, लेकिन वे दोनों पुतिन को मनाने मे नाकाम रहे।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन ने व्हाइट हाउस से अपने संक्षिप्त संबोधन में पुतिन पर अंतरराष्ट्रीय कानून का खुले तौर पर उल्लंघन का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि ‘यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की शुरुआत’ होने ही वाली है। उधर, राष्ट्रपति पुतिन ने अपने कदम पीछे हटाने के लिए दो शर्तें रखी हैं। पहली शर्त यह कि यूक्रेन क्रीमिया पर रूस की संप्रुभता को मान्यता दे। रूस ने क्रीमिया पर 2014 में कब्ज़ा कर लिया था। दूसरी शर्त यह कि यूक्रेन NATO में शामिल नहीं होगा और अपने सैनिकों की संख्या कम करेगा।
हालात उस वक्त बेहद जटिल हो गए जब पुतिन ने यूक्रेन के दो अलग-अलग इलाकों, डोनेत्स्क और लुगान्स्क को मान्यता देने का फैसला किया। इन देशों ने अलग राष्ट्र के तौर पर मान्यता के लिए आवेदन किया है। रूस की तरफ से स्वतंत्र घोषित किए जाने के बाद सोमवार की रात इन दोनों इलाकों में आतिशबाजी हुई। वहीं, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने संतुलित रुख अपनाया और सभी पक्षों से संयम बरतने और मसले के शान्तिपूर्ण हल के लिए राजनयिक प्रयासों को आगे बढ़ाने की अपील की।
यूक्रेन में तनाव पिछले साल दिसंबर में शुरू हुआ था, जब देश के राष्ट्रपति ने ऐलान किया कि उनका देश जल्द ही NATO में शामिल हो जाएगा। इसके बाद ही रूस ने यूक्रेन की सीमा पर सवा लाख सैनिकों को तैनात कर दिया और दूसरे पड़ोसी देश बेलारूस के साथ युद्ध अभ्यास भी किया। रूसी सेना ने यूक्रेन के पास काला सागर में परमाणु मिसाइलों के साथ भी वॉर एक्सर्साइज की। यूक्रेन को चारों तरफ से घेर लिया गया है। पुतिन ने कहा कि अमेरिका और यूरोपीय देशों को उनकी दो शर्तें माननी होंगी। पहली, यूक्रेन को NATO का सदस्य नहीं बनाने का वादा करना होगा और दूसरी, रूस के बॉर्डर के करीब तैनात अपने हथियार भी पीछे करने होंगे। बायडेन और पुतिन के बीच बातचीत हुई थी और दोनों देशों के विदेश मंत्री भी कई बार मिले, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब रूसी सेना और यूक्रेन की सेना आमने-सामने है।
यूरोप में अगर जंग हुई तो जाहिर तौर पर यह दुनिया के बाजारों में भारी उथल-पुथल होगी। यूक्रेन के बागियों के कब्जे वाले इलाकों में रूसी सेना के घुसने से सोना और कच्चे तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं। दुनियाभर के शेयर बाजारों में मंदी का दौर देखने को मिल रहा है। ज़रा सोचिए कि अगर बड़े पैमाने पर जंग छिड़ी, तो क्या होगा। यूक्रेन में युद्ध अगर छिड़ा तो निश्चित रूप से भारत के विदेश व्यापार और तेल आयात पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा। भारत सरकार का फोकस अब यूक्रेन में रह रहे करीब बील हजार भारतीयों को निकालने पर है। इनमें से करीब 18 हजार छात्र हैं। भारतीय दूतावास ने सभी भारतीय छात्रों को अस्थायी रूप से यूक्रेन छोड़ने को कहा है।
भारत के लिए यह निश्चित रूप से एक चुनौतीपूर्ण समय है। रूस भारत का पुराना दोस्त और हथियारों का सबसे बड़ा सप्लायर है। दूसरी ओर, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन भी भारत के बड़े व्यापारिक भागीदार हैं। हाल में भारत की अमेरिका के साथ भी नजदीकियां बढ़ी है। अमेरिका ने ट्रम्प प्रशासन के अंतिम वर्ष में भारत को 3.4 अरब डॉलर मूल्य के हेलीकॉप्टरों और अन्य रक्षा उपकरणों की आपूर्ति की।
भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा है, ‘दुनिया अब एक और संघर्ष नहीं झेल सकती और भारत का स्पष्ट रूप से मानना है कि तनाव में कमी आनी चाहिए।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को यूपी के बहराइच में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए परोक्ष रूप से यूक्रेन संकट का जिक्र किया। मोदी ने कहा, ‘आप देख रहे हैं कि इस समय दुनिया में कितनी उथल-पुथल मची हुई है। ऐसे में आज भारत का ताकतवर होना, भारत और पूरी मानवता के लिए बहुत जरूरी है। आज आपका एक-एक वोट भारत को ताकतवर बनाएगा। वैश्विक उथल-पुथल के दौर में एक मजबूत भारत जरूरी है।’
मोदी की बात सही है कि भारत का ताकतवर होना जरूरी है। इस समय भारत को एक वर्ल्ड लीडर माना जाता है। ऐसे में यूक्रेन और रूस के टकराव में भारत को एक-एक कदम फूंक फूंककर रखना है, क्योंकि इस टकराव का असर हमारे देश पर भी पड़ेगा। अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो हमारी अर्थव्यवस्था और हमारा घरेलू बजट जरूर प्रभावित होगा। वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत पहले ही 100 डॉलर प्रति बैरल को पार कर चुकी है। अगर तेल की कीमतें बढ़ीं तो जरूरी चीजों की कीमतों पर भी असर पड़ेगा।
सबसे बड़ी बात ये है कि जब दुनिया में अस्थिरता होती है, जंग के हालत होते हैं तो भारत के दुश्मन इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। आतंकवादी अपनी साजिशों को अंजाम देने का मौका तलाशते हैं। आतंकवाद को पालने पोसने वाले पाकिस्तान जैसे मुल्क ऐक्टिव हो जाते हैं।
मोदी पहले ही आतंकवाद का मुद्दा उठाकर चुनाव प्रचार की टोन बदल दी है। मंगलवार को अपनी रैली में उन्होंने बताया कि परिवारवादी कैसे आतंकवादियों पर अपना प्यार उड़ेलते रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘जो लोग देश की सुरक्षा को ताक पर रखते हैं, वे यूपी का कभी भला नहीं कर सकते। बहराइच की इस धरती ने आतंकियों के नापाक मंसूबों को हमेशा नाकाम किया है। जिन लोगों पर यूपी में एक नहीं बल्कि कईं कईं बम धमाकों के आरोप था, ये परिवारवादी उन आतंकवादियों को जेल से रिहा करने के लिए पक्का निर्णय करके बैठे थे। वे इन आतंकवादियों पर मुकदमा चलाने के सरकार के फैसले के खिलाफ थे। समाजवादी पार्टी की सरकार आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के भी खिलाफ थी।’
मोदी ने इसके बाद अहमदाबाद की स्पेशल कोर्ट के उस फैसले का जिक्र किया जिसमें 2008 में हुए सीरियल बम ब्लास्ट को अंजाम देने वाले 38 दोषियों को मौत की सजा दी गई थी। मोदी ने कहा, ‘ये न्यायालय ने सही काम किया, हमें न्यायपालिका का सम्मान करना चाहिए। लेकिन ये चुप बैठे हैं। क्योंकि इनकों मालूम है कि अब सारा खेल जनता के सामने खुल चुका है। कौन किसकी मदद कर रहा था, ये अब उत्तर प्रदेश का बच्चा-बच्चा जान चुका है।’
अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट में जिन दोषियों को मौत की सजा दी गई है उनमें से कुछ यूपी के रहने वाले हैं। इनमें से आजमगढ़ के एक दोषी के पिता की तस्वीर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के साथ सामने आ गई। यही वजह है कि बीजेपी ने यूपी चुनाव में आतंकवाद को अब बड़ा मुद्दा बनाया है।
सियासी फायदे की बात छोड़ दें तो पिछले 20 साल का अनुभव बताता है कि आतंकवाद से लड़ने के लिए देश को मोदी जैसे मजबूत लीडर की जरूरत है। मोदी के विरोधी भी मानते हैं कि जब-जब दहशतगर्दी का संकट आया तो मोदी ने बोल्ड फैसले लिए, हिम्मत दिखाई और आतंकवादियों को उनके अंजाम तक पहुंचाया। अहमदाबाद के सीरियल बम ब्लास्ट करने वाले 49 में से 38 दोषियों को जब कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई और 11 को उम्रकैद मिली तो पता चला कि गुजरात पुलिस ने पुख्ता केस तैयार किया था, और यह काम मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुआ।
जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो हमारी फौज ने पाकिस्तान को दो-दो बार घर में घुसकर मारा, आतंकवादियों के मंसूबे को नेस्तानाबूद कर दिया। आतंकवाद से लड़ने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति की जरुरत होती है, कठोर निर्णय लेने की आवश्यकता होती है। मोदी ने ऐसा करके दिखाया है, जब वह गुजरात में थे तब भी और आज जब केंद्र में हैं तब भी। इसीलिए लोगों को लगता है कि दुनिया में जब जंग के बादल मंडरा रहे हैं, जंग का खतरा सामने है तो देश को मोदी जैसे मजबूत लीडर की जरूरत है।
Turmoil in world: India needs a strong leader
The faceoff between Russia and the West led by US has escalated dramatically with the Russian lawmakers authorising President Putin to use military forces outside his country. The situation in Ukraine has turned volatile with Russia sending armed forces to two breakaway regions. The entire world is worried over the outcome of the conflict.
Air India on Tuesday evacuated 242 Indian students, who landed in Delhi after midnight, and more are lined up for evacuation. US President Joe Biden announced fresh sanctions against Russian banks, Russian oligarchs and their family members. UK, Canada, Japan, Australia and most of the 27 European Union nations have also imposed sanctions against Russia. Biden also announced that he was moving additional US forces to shore up defences in the Baltic states bordering Russia.
Experts fear that the conflict between Russian and Western armies could result in the outbreak of Third World War. Russian tanks and fighter jets have taken up positions for an impending attack on Ukraine. All efforts at persuading Putin to back out have failed, despite direct interference by the French President and German Chancellor.
In his brief address from the White House, President Biden accused Putin of flagrantly violating international law. He spoke about “beginning of a Russian invasion of Ukraine”. Russian President Putin has put two conditions for de-escalation: one, Ukraine must recognize Russia’s sovereignty over Crimea, that it annexed in 2014, and two, it must renounce its bid to join Nato and carry out partial demilitarization.
The situation has become more complex with Putin deciding to recognize both the breakaway regions, Donetsk and Lugansk, which have applied for recognition as independent countries. On Monday night, there were fireworks in both these breakaway regions, after they announced independence unilaterally. At the UN Security Council, India walked the tightrope and urged all sides to “exercise utmost restraint” and step up diplomatic efforts to find a “mutually amicable solution” to the crisis.
The tension in Ukraine began in December last year when its president announced that his country would soon join NATO. Russia retaliated by deploying 1.25 lakh soldiers on its border with Ukraine, and carried out war exercises with another neighbour, Belarus. Russian army also carried out war exercises with nuclear missiles in the Black Sea near Ukraine. Putin demanded that the West must promise not to induct Ukraine into NATO, and withdraw its weapons from Ukraine. Both Biden and Putin had virtual summit and foreign ministers of both the countries met several times, but the efforts did not yield any positive result. Now both Russian army posing as “peacekeepers” and NATO-aided Ukraine forces are poised at an eyeball-to-eyeball confrontation.
A war in Europe will naturally cause turmoil in world markets. With the Russian army entering rebel-held regions of Ukraine, prices of gold and crude oil have skyrocketed. There is a slump in stock markets across the world. Imagine the consequences if a full-scale war takes place. A war in Ukraine will surely cause an adverse impact on India’s foreign trade and also on oil imports. The focus of Indian government is now on evacuating nearly 20,000 Indians living in Ukraine. Out of them, nearly 18,000 are students. The Indian Embassy has asked all Indian students to leave Ukraine temporarily.
For India, it is surely a tightrope walk. Russia has been India’s old friend and a major supplier of arms. On the other hand, both the US and European Union are India’s big trading partners. India also a close friendship with the US, which has supplied it with 3.4 billion dollars worth helicopters and other defence equipment in the last year of Trump administration.
Indian Foreign Secretary Harsh Vardhan Shringla has said, “the world cannot afford another conflict and India is clearly of the view that there should be de-escalation of tension.
On Tuesday, Prime Minister Narendra Modi indirectly referred to the Ukraine crisis, while addressing an election rally in Bahraich, UP. Modi said, “ You can see there is so much turmoil in the world right now. In such a situation, it is essential that India must remain strong, both for its own sake and for mankind. Each vote from you will make India stronger. A strong India is crucial in times of global turmoil”.
Modi is right. India must remain strong in these tough times. India is one of the world leaders. India will have to put forward its steps carefully. The Ukraine conflict is surely going to affect us. If prices of crude oil rises internationally, it will surely affect our economy and our household budget. Already, world crude price has crossed 100 dollars a barrel. A hike in fuel prices is surely going to cause inflation due to rise in prices of essential commodities.
Moreover, in times of global uncertainty and turmoil, enemies of India, who have been lying in waiting, may try to take undue advantage. Terrorists may try to execute plots and cause mayhem. Their masterminds sitting in Pakistan are already active and may try to destabilize India.
Modi has already changed the tone of poll campaign by raising the issue of terrorism. On Tuesday, at his rally, he spoke about how ‘pariwarwaadi’ (dynasts) have been expressing their love for terrorists. “Those who put our security in jeopardy can never work for the welfare of UP. This soil of Bahraich has always foiled the evil designs of terrorists. These pariwarwaadis had been planning to get people who were accused of involved in several blasts, released from jail. They were against the government’s decision to prosecute these terrorists. The Samajwadi Party government was even against the banning of terror outfits.”
Modi then mentioned about the Ahmedabad Special Court verdict which gave death sentence to 38 convicts who had carried out serial blasts in 2008. “The court has done the right thing. We must respect the court verdict. But these people are silent. They have realized that they have been exposed before the people. Every child in UP knows who was helping whom.”
Some of the convicts who have been given the death sentence in Ahmedabad serial blasts, belong to UP. Already, a photograph of the father of one of the convicts, hailing from Azamgarh, with SP supremo Akhilesh Yadav is in circulation. This is the reason why BJP has made terrorism an issue in the UP elections.
Political expediency apart, it has been our experience during the last 20 years that the nation needs a strong leader like Modi to combat terrorism. Even his political rivals concede that whenever tough situations arose, Modi never failed in taking tough and bold decisions, and sent terrorists to their logical destinations. It was under Modi’s direction as chief minister that the Gujarat police painstakingly prepared a water-tight case against all the 49 convicts and secured the court’s verdict.
When Modi was prime minister, the Indian army struck the dens of terrorists twice, right inside enemy territory. He foiled the designs of terrorists and their masterminds. A strong political will, followed by bold decisions, is required to combat terrorists. Modi has done it, when he was in Gujarat, and now, when he is at the Centre. At a time when war clouds are hovering the horizon, and war could break out anytime, the nation needs a strong leader like Modi.
गंगा में तैरती लाशों के बारे में विदेशी मीडिया ने कैसे फैलाया आधा सच, आधा झूठ!
कोरोना की रफ्तार अब देश के लगभग हर हिस्से में कम होती जा रही है, लेकिन यूपी के विधानसभा चुनावों में गंगा नदी में तैरती लाशों का जिक्र बार-बार हो रहा है। सोमवार को हमारे हाथ कुछ ऐसे वीडियो लगे जिन्होंने गंगा में तैरती लाशों के बारे में फैलाए जा रहे झूठ का पर्दाफाश कर दिया। यहां तक कि द न्यूयॉर्क टाइम्स और द वॉशिंगटन पोस्ट ने भी पिछले साल गंगा नदी में तैरती लाशों की तस्वीरें छापी थीं, लेकिन सोमवार को हमें जो विजुअल्स मिले, उनसे साफ हो गया कि पिछले साल गंगा के पास लाशों को दफनाने को लेकर झूठी कहानी रची गई थी।
यूपी विधानसभा चुनाव में कोरोना को बड़ा मुद्दा बनाया जा रहा है। अखिलेश यादव, प्रियंका गांधी, ओमप्रकाश राजभर जैसे तमाम नेता कोरोना की दूसरी लहर के दौरान गंगा में बह रही लाशों की याद दिला रहे हैं। चुनावी सभाओं में वे प्रयागराज में गंगा के किनारे दफन लाशों का जिक्र कर रहे हैं।
पिछले साल अप्रैल-मई में गंगा नदी के किनारे दफनाई गई लाशों की विचलित करने वाली तस्वीरें और वीडियो अब विपक्ष और निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा सोशल मीडिया पर वायरल किए जा रहे हैं। विपक्ष के नेता आरोप लगा रहे हैं कि राज्य सरकार कोरोना से हुई मौतों की संख्या के वास्तविक आंकड़े छिपा रही है।
जब 8 फरवरी को तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के लिए चुनाव प्रचार करने लखनऊ आईं तो उन्होंने भी कहा था कि कोरोना काल के दौरान योगी सरकार नाकाम रही। ममता बनर्जी ने तो यहां तक दावा किया कि उत्तर प्रदेश में गंगा में बहाई गई लाशें पश्चिम बंगाल तक पहुंच गईं और उन्होंने इन शवों को निकालकर रीति-रिवाज के उनका अंतिम संस्कार करवाया।
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सोमवार को वर्चुअल मोड के जरिए रायबरेली के मतदाताओं को संबोधित करते हुए याद दिलाया कि कैसे यूपी में लोगों को कोरोना के पीक के दौरान मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा था, और अस्पतालों में ऑक्सीजन, दवाओं और यहां तक कि बिस्तर की भी किल्लत थी जिसके चलते कई लोगों को अपनों को खोना पड़ा था। उन्होंने आरोप लगाया कि योगी सरकार ने महामारी के दौरान लोगों की तकलीफ को कम करने की कोशिश तक नहीं की।
सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव लगातार कोरोना से जान गंवाने वालों की प्रयागराज में गंगा नदी के किनारे दबीं लाशों की तस्वीरों का जिक्र करते रहते हैं। पिछले साल अप्रैल-मई के दौरान रेत में दफन इन लाशों की तस्वीरें वाकई में विचलित कर देती हैं।
विदेशी मीडिया ने इन तस्वीरों को तुरंत उठा लिया और इन्हें भारत में कोरोना से हुई दुर्दशा के सबूत के तौर पर दिखाया। उस वक्त बीबीसी की हेडलाइन थी ‘India’s Holiest River swollen with Bodies’, न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा कि ‘The Ganges Is Returning The Dead, It Does Not Lie’, द वॉशिंगटन पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट को ‘The mystery of hundreds of bodies found in India’s Ganges river’ हेडलाइन दी तो द वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट की हेडलाइन थी ‘India Has Undercounted Covid-19 Deaths By Hundreds Of Thousands, Families And Experts Say’ जबकि द न्यूयॉर्क पोस्ट ने अपनी एक रिपोर्ट को ‘Indian Cops Put Nets over Ganges River To Prevent Dumping Of COVID Victims’ हेडलाइन दी।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया की ज्यादातर रिपोर्ट्स में ये दावा किया गया था कि गंगा के किनारे इस तरह का मंजर पहले कभी नहीं देखा गया था। रिपोर्ट्स में कहा गया था कि कोरोना से मरने वालों की संख्या छिपाने के लिए प्रशासन लाशों को गंगा में बहा रहा है, रेत में दफना रहा है।
इंडिया टीवी के संवाददाता मनीष भट्टाचार्य चुनावों की कवरेज के सिलसिले में प्रयागराज में थे। मैंने उन्हें गंगा किनारे उसी जगह जाने को कहा जहां कोरोना की दूसरी लहर की पीक के दौरान 10 महीने पहले लाशें दफन की गई थीं। उन्होंने जो तस्वीरें भेजीं वे चौंकाने वाली थीं। उस जगह आज भी सैकड़ों ताजी कब्रें हैं, सैकड़ों लाशें दफन हैं।
करीब 2 से 3 किलोमीटर तक हाल ही में दफनाई गई लाशों की कब्रें नजर आ रही थीं। मनीष ने वहां मौजूद लोगों से बात की जिन्होंने उन्हें बताया कि गंगा नदी के किनारे शवों को दफनाना कोई नई बात नहीं है। स्थानीय निवासियों ने कहा कि हिंदू धर्म में समाज के कुछ वर्गों में शव को गंगा में बहाने की परंपरा थी, लेकिन चूंकि जिला प्रशासन ने पर्यावरणीय कारणों से गंगा में शव बहाने पर पाबंदी लगा दी है, इसलिए इन समुदायों के लोग अब शव को गंगा के किनारे रेत में दफन करने लगे हैं।
स्थानीय निवासियों ने मनीष को बताया कि रोजाना औसतन 10 से 15 लाशें रेत में दफनाई जाती हैं। मनीष वहां देवी लाल प्रसाद नाम के एक शख्स से मिले, जो शवों को दफनाने का काम करते हैं। उन्होंने कहा, यह परंपरा पिछले कई दशकों से चली आ रही है। देवी लाल प्रसाद ने कहा, कोरोना काल में काम बढ़ गया था तो उनका बेटा भी इस काम में हाथ बंटाने लगा। उन्होंने कहा कि हर महीने औसतन 250 से 300 शव नदी के किनारे दफनाए जाते हैं।
जब हमारे एक रिपोर्टर ने इस पर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा की प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने थोड़ा तल्ख अंदाज में जवाब दिया, ‘मैंने जो कहा था उस पर आज भी कायम हूं।’
यूपी के मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, जो कि इसी इलाके के रहने वाले हैं, ने कहा, ‘मैं प्रयागराज का रहने वाला हूं, इसलिए मैं स्थानीय परंपराओं के बारे में जानता हूं। ये बीजेपी के खिलाफ किसी भी विषय का तिल से ताड़ बना देंगे। यूपी और देश में कोरोना संक्रमण को लेकर जितना शानदार प्रबंधन हुआ, वैसे दुनिया के बड़े-बड़े संपन्न देशों में भी नहीं हुआ। लेकिन यूपी को कैसे बदनाम किया जाए, देश को कैसे बदनाम किया जाए, ये एक सूत्री एजेंडा लेकर विपक्ष काम करता है। वे केरल से तुलना क्यों नहीं करते, जहां कोरोना से जान गंवाने वालों की संख्या यूपी के मुकाबले ज्यादा है।’
पिछले साल मई में कोरोना के पीक के दौरान यूपी में कोविड के रोज 40 हजार से भी ज्यादा मामले सामने आ रहे थे। स्वाभाविक रूप से, अन्य राज्यों की तरह, महामारी से जान गंवाने वाले लोगों की संख्या भी ज्यादा थी। पिछले 24 घंटों के दौरान यूपी में कोरोना के करीब 600 नए मामले सामने आए हैं, जबकि 7 लोगों की जान गई है। हालांकि प्रयागराज में आज भी गंगा के किनारे उतनी ही लाशें दफन हैं, जितनी पिछले साल मई में थीं। लेकिन अब न न्यूयॉर्क टाइम्स कुछ लिख रहा है, न वॉशिंगटन पोस्ट का कैमरा प्रयागराज तक पहुंच रहा है, न वॉल स्ट्रीट जर्नल को प्रयागराज में लाशें दिखाई दे रही हैं। लेकिन पिछले साल मई में जब विदेशी मीडिया ने इस तरह की तस्वीरें दिखाईं, गंगा किनारे दबीं लाशों के बारे में खबरें छापीं, तो भारत में अधिकांश लोगों ने इसे सच मान लिया। भारत को बदनाम किया जा रहा था, और हमारे देश सीधे-सादे लोगों ने ऐसी खबरों पर यकीन कर लिया था।
असल में सवाल मानसिकता का है, सोच का है। हम आज भी यह मानते हैं कि यदि न्यूयॉर्क टाइम्स ने कुछ लिखा है तो सही ही लिखा होगा, वॉशिंगटन पोस्ट में कुछ छपा है तो सच ही होगा। सोमवार की रात ‘आज की बात’ में मैंने आपको कल ही ली गईं तस्वीरें दिखाईं। यही अंतिम सत्य है। यही वास्तविकता है, जो आज भी प्रयागराज में नजर आती है। लेकिन विदेशी मीडिया ने बिना सबूत के, बिना जांच पड़ताल के, बिना रिश्तेदारों से बात किए, आधा सच, आधा झूठ लिख दिया। पिछले साल मई में गंगा के किनारे दफन लाशों को कोरोना से हुई मौतें बता दिया गया, लेकिन अब कोई भी यह जानने से लिए प्रयागराज नहीं आया कि क्यों आज भी हर महीने 250 से 300 लाशें गंगा किनारें दफनाई जा रही हैं, जबकि महामारी कमजोर पड़ चुकी है।
न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट अपने पत्रकारों और कैमरापर्सन को अब प्रयागराज में उसी जगह पर क्यों नहीं भेजते? कारण साफ है। पिछले कई दशकों से, ये अखबार हमेशा भारत को बदनाम करने की कोशिश करते रहे हैं। इन अखबारों ने भारत को हमेशा गरीबी से त्रस्त, अविकसित, सपेरों के देश के रूप में दिखाने की कोशिश की है। पश्चिम में भारत की यही छवि बिकती है। मुश्किल यह है कि भारत में भी अधिकांश लोग बिना सोचे-समझे विदेशी मीडिया पर भरोसा कर लेते हैं।
Bodies floating in Ganga : How western media spread half-truths !
The speed at which Covid pandemic had spread, has now decreased almost everywhere in India, but in the ongoing UP assembly election, mention is being made frequently about bodies floating in the river Ganga. On Monday, we got visual, which nails the lie that was being spread about bodies floating in Ganga. Even The New York Times and The Washington Post had published images of the bodies floating in river Ganga last year, but the visuals that we got on Monday clearly establish that a false narrative about burial of bodies near Ganga was created last year.
Opposition leaders like Akhilesh Yadav, Priyanka Gandhi Vadra, Om Prakash Rajbhar have been telling election rallies about how bodies of Covid-19 victims were floating in the river Ganga, and thousands of bodies were buried on the banks of Ganga in Prayagraj city.
Disturbing images and videos of bodies buried on Ganga river bank in April-May last year, are now being circulated on social media by opposition and vested interest groups. Opposition leaders are alleging that the state government is hiding real figures about the number of Covid-related deaths.
On February 8, when Trinamool Congress supremo Mamata Banerjee came to Lucknow to lend support to Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav, she mentioned how Yogi government failed to tackled the pandemic last year, when it was at its peak. Mamata Banerjee even claimed that bodies that floated in Ganga river even reached her state, West Bengal, where her administration performed their last rites.
Congress interim president Sonia Gandhi, while addressing voters of Rae Bareli on Monday through virtual mode, recalled how people in UP faced difficult times during the peak of pandemic, and were unable to get oxygen, medicines and even beds in hospitals, and many people lost their loved ones. She alleged that the Yogi government did not try to alleviate the sufferings of people during pandemic.
Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav has been consistently referring to pictures of Covid-19 bodies buried on the banks of river Ganga in Prayagraj. These are, of course, disturbing pictures of bodies buried in the sands during April-May last year.
The foreign media soon picked up those images to report how India was struggling to bear the full brunt of Covid pandemic. One BBC report was headlined, “India’s holiest river swollen with bodies”, The New York Times reported with headlines like “The Ganges Is Returning The Dead, It Does Not Lie”, The Washington Post headline was “The mystery of hundreds of bodies found in India’s Ganges river”, The Wall Street Journal headlined one report as “India Has Undercounted Covid-19 Deaths By Hundreds Of Thousands, Families And Experts Say”, The New York Post reported “Indian Cops Put Nets over Ganges River To Prevent Dumping Of COVID Victims”.
In most of the reports in international media, it was claimed that floating of bodies in Ganga, and burial of bodies on Ganga river bank were unprecedented events.
India TV reporter Manish Bhattacharya was in Prayagraj in connection with election reporting, I told him to go the Ganga river bank where bodies of dead people were buried 10 months ago, during the peak of pandemic. The visuals that he sent was shocking. There are still several hundred spots where bodies were buried recently.
On a two to three kilometre stretch, he noticed bodies that have been buried recently. Manish spoke to local residents who told him that burying of bodies on Ganga river bank was nothing new, it is part of custom of some local communities in Hinduism. Since the district authorities have prohibited floating of bodies in Ganga due to environmental reasons, people of these communities have been burying their near and dear ones in the sands of river Ganga.
On an average, the local residents told him, daily 10 to 15 bodies are buried in the sands. Manish met one Devi Lal Prasad, who helps relatives in burying their dead. He said, this has been the custom since past several decades. Devi Lal Prasad said, during Covid pandemic, the rush was heavy, and his son also helped him in burying the bodies. On an average 250 to 300 bodies are buried every month on the river bank, he said.
When one of our reporters sought Congress leader Priyanka Gandhi Vadra’s reaction on this, she appeared to be somewhat offended, and replied , “I stand by what I have said”.
UP deputy chief minister Keshav Prasad Maurya, who hails from this area, said, “I live in Prayagraj, I know the local customs. Our government did its best in helping people during the pandemic, but internationally, UP and India got a bad image. It is the handiwork of the opposition who works on a single-point agenda of tarnishing our image. Why don’t they compare us with Kerala, where the Covid death toll is higher compared to UP?”
At the peak of Covid pandemic in May last year, the number of daily fresh Covid cases was more than 40 thousand in UP alone. Naturally, the death toll, like in other states, was on the higher side. During the last 24 hours, there were only 600 fresh cases, and only seven deaths reported, across UP. Yet, the number of bodies being buried on the banks of Ganga in Prayagraj is still the same, as it was in May last year. But, you will not find The New York Times reporting about it, nor the Wall Street Journal sending a cameraperson to Prayagraj. But last year, in May, when the international media flashed images of bodies buried in sands, and published reports about burials of the dead near Ganga, most of the people in India immediately believed these to be true. India’s image was being tarnished, but gullible people in India believed those reports to be true.
It seems the problem is with the mindset. Even today, most of us still believe, any report published in the international media is the gospel truth. In ‘Aaj Ki Baat’ show on Monday night, we showed visuals taken yesterday itself. This is the final truth. This is reality, as it exists in Prayagraj. But the international media, without conducting proper investigation or collecting evidence from relatives, purveyed half-truth and half untruths. It was reported that all those who were buried in May last year, were victims of the pandemic. But now, nobody has come to Prayagraj to find out why 250 to 300 bodies are still being buried every month on the river bank, even at a time when the pandemic appears to be on the wane.
Why doesn’t The New York Times and Washington Post send their reporters and camerapersons to the same spot in Prayagraj now? The reason is clear. Over the last several decades, these newspapers have been always trying to project India in a poor light, as a poverty stricken, underdeveloped country, living in the age of snake charmers. This is what sells in the West. The problem is, most of the people in India immediately lap up these reports as gospel truth.
मोदी की दृढ़ इच्छाशक्ति ने आतंकियों को उनके अंजाम तक कैसे पहुंचाया
गुजरात की एक विशेष अदालत ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले में 2008 के अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट केस में 38 मुजरिमों को शुक्रवार को सजा-ए-मौत और 11 अन्य को उम्रकैद की सजा सुनायी। आजाद भारत के इतिहास में यह पहली बार है, जब किसी एक केस में अदालत ने इतनी बड़ी संख्या में मुजरिमों को मौत की सजा सुनाई है। इससे पहले 1998 में राजीव गांधी की हत्या के मामले में एक TADA अदालत ने सभी 26 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी।
14 साल पहले, 26 जुलाई 2008 को सिमी और इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने 20 से ज्यादा बम ब्लास्ट को अंजाम दिया था जिसमें 56 बेगुनाह लोगों की मौत हो गई थी और 200 से भी ज्यादा लोग घायल हुए थे।
स्पेशल जज एआर पटेल ने 7,000 से अधिक पन्नो के अपने फैसले में लिखा, ‘अगर ऐसे लोगों को समाज का हिस्सा बनने दिया जाता है, तो यह मासूम लोगों के बीच आदमखोर तेंदुओं को खुला छोड़ने के बराबर होगा।’ स्पेशल जज ने कहा, ‘चूंकि उन्होंने मासूमों पर कोई दया नहीं दिखाई, इसलिए इस अदालत के पास उनके ऊपर दया दिखाने का कोई कारण नहीं है।’
सजा पाने वाले सभी 49 मुजरिम फिलहाल 6 शहरों जयपुर, अहमदाबाद, गया, तलोजा, भोपाल और बेंगलुरु की जेलों में बंद हैं। अपने फैसले में, स्पेशल जज ने जिहाद और आतंकवाद के बीच अंतर करने के लिए कुरान का हवाला दिया और धार्मिक संगठनों से इन आतंकवादी संगठनों का बहिष्कार करने की अपील की। जज ने कहा कि मुजरिमों का मकसद गोधरा के बाद हुए दंगों के दौरान हुई हत्याओं का बदला लेना था। इसीलिए उन्होंने धमाके करने के लिए अहमदाबाद के हिंदू आबादी वाले इलाकों को चुना। जज ने कहा कि आतंकवादियों ने धमाके करने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में प्लानिंग की और ट्रेनिंग कैंप आयोजित किए।
स्पेशल जज ने कहा कि यह मामला इसलिए रेयरेस्ट ऑफ रेयर है क्योंकि मुजरिमों ने न सिर्फ ब्लास्ट किए, बल्कि ब्लास्ट के बाद जो लोग अस्पताल लाए गए, उन्हें भी टारगेट किया क्योंकि आतंकवादियों को पता था कि जख्मी लोग अस्पताल लाए जाएंगे तो उनके परिजन, अधिकारी और मंत्री भी अस्पताल पहुंचेंगे।
स्पेशल जज ए. आर. पटेल ने अपने फैसले में यह भी लिखा कि आतंकवादियों के निसाने पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह और स्थानीय बीजेपी विधायक प्रतापसिंह जाडेजा भी थे। यह तो नरेंद्र मोदी का नसीब था कि वह इन धमाकों का निशाना बनने से बच गए। यानी मुजरिमों का टारगेट आम जनता ही नहीं, राज्य की हुकूमत भी थी। जज ने कहा, आतंकवादियों का इरादा उपद्रव और अराजकता पैदा करके इस्लामिक राज कायम करने का था। जज ने कहा, ‘अगर ऐसे लोग देश में रहकर, राष्ट्र विरोधी आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते हैं, तो ऐसे लोगों को उम्र कैद की सजा देकर, जेल में रखकर पालने की जरूरत नहीं है, और सजा-ए मौत ही एकलौता रास्ता है।’
स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर सुधीर ब्रह्मभट्ट ने फैसले को मील का पत्थर बताया, जो देश में आतंकवादी हमलों को रोकने में मददगार होगा। गुजरात के पुलिस महानिदेशक आशीष भाटिया 2008 में धमाकों के वक्त अहमदाबाद पुलिस में संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) थे। अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट की जांच उन्हीं की निगरानी में हुई थी। स्पेशल जज ने अपने फैसले में आतंकियों और धमाकों की साजिश रचने वालों को शिकंजे में लेने के लिए तारीफ की।
गुजरात की पुलिस ने जिस तरह से इस मामले की जांच की, उसने पूरे भारत में फैले इंडियन मुजाहिदीन के नेटवर्क का पर्दाफाश कर दिया। मामले की जांच करने वाली टीम ने तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी और तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह की निगरानी में काम किया। सरकारी वकील सुधीर ब्रह्मभट्ट ने भी इस केस की कामयाबी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के रोल की तारीफ की।
जब अहमदाबाद में सीरियल बम ब्लास्ट हुए थे उस समय आईपीएस अभय चूड़ासमा, अहमदाबाद पुलिस में डीजीपी क्राइम थे। उन्होंने इस केस की जांच में अहम भूमिका निभाई थी। चूड़ासमा इस वक्त गांधीनगर रेंज के IG हैं। उन्होंने इंडिया टीवी से कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सीरियल ब्लास्ट पर आया यह फैसला एक मिसाल बनेगा।
अहमदाबाद की अदालत फैसला निश्चित रूप से गुजरात पुलिस की जांच और लीगल टीम की मेहनत का नतीजा है. लेकिन इसका क्रेडिट गुजरात की उस वक्त की सरकार को, उस वक्त के राजनीतिक नेतृत्व को भी देना चाहिए। अहमदाबाद में सीरियल ब्लास्ट नरेंद्र मोदी के लिए डायरेक्ट चैलेंज था। वह उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे जबकि अमित शाह सूबे के गृह मंत्री थे। अहमदाबाद में एक के बाद एक 20 से ज्यादा धमाके करके आतंकवादियों ने लीडरशिप को बड़ी चुनौती दी थी। मोदी ब्लास्ट के फौरन बाद अहमदाबाद पहुंचे और अधिकारियों से बात करके लेटेस्ट अपडेट लिया। इसके बाद तुरंत ही मोदी घटनास्थल पर भी जाना चाहते थे। वह अस्पताल जाकर घायलों से भी मिलना चाहते थे, लेकिन पुलिस अधिकारियों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि अधिकांश इलाके सुरक्षित नहीं थे और ब्लास्ट हो रहे थे। पहले ब्लास्ट के 2 घंटे बाद अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में भी जोरदार धमाका हो चुका था।
नरेंद्र मोदी अधिकारियों की चेतावनी के बाद भी नहीं रूके, घटनास्थल का दौरा किया और अस्पताल जाकर मरीजों से भी मिले। इस तरह मोदी ने अपनी स्ट्रॉन्ग लीडरशिप से गुजरात की जनता को एक बड़ा मैसेज दिया कि दुख की इस घड़ी में सरकार उनके साथ है, मुख्यमंत्री उनके बीच हैं। इसके साथ-साथ मोदी ने पुलिस अधिकारियों को भी निर्देश दिया कि वे जल्द से जल्द इन धमाकों के मुजरिमों को कानून की गिरफ्त में लें।
इस बात का जिक्र 13 साल पहले, 4 अप्रैल 2009 को ‘आप की अदालत’ शो में भी हुआ था। नरेंद्र मोदी ने तब बताया था कि किस तरह गुजरात की पुलिस ने अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट की जांच को एक मिसाल बना दिया, और कैसे उनकी सरकार की आतंकवाद विरोधी नीति को देश के दूसरे राज्यों ने भी अपनाया।
नरेंद्र मोदी से लोगों के लाख मतभेद हो सकते हैं, लेकिन उनकी देशभक्ति पर कोई सवाल नहीं उठा सकता। आतंकवाद का मुकाबला करने का जो जज्बा नरेंद्र मोदी में है, उस पर किसी को शक नहीं होना चाहिए। स्पेशल कोर्ट के फैसले ने साबित कर दिया है कि कैसे नरेंद्र मोदी ने अपने गृह राज्य में आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक युद्ध लड़ा। मोदी ने अपनी इच्छाशक्ति से आतंकवादियों और उनके सरगनाओं को उनके अंजाम तक पहुंचाया।
शुक्रवार की रात अपने ‘आज की बात’ शो में मैंने ‘आप की अदालत’ शो की जो वीडियो क्लिप दिखाई थी, वह इस बात का सबूत है कि मोदी जब मुख्यमंत्री थे तभी से वह दहशतगर्दी को जड़ से खत्म करने का इरादा रखते थे। ‘आप की अदालत’ शो में मैंने मोदी से पूछा था कि 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के वक्त अगर वह प्रधानमंत्री होते तो क्या करते।
मुझे मोदी का जवाब अभी भी याद है। उन्होंने कहा था, ‘हमें पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए। ये लव लेटर लिखना बंद करना चाहिए और अमेरिका के सामने पाकिस्तान के आतंकवाद को लेकर रोना बंद होना चाहिए।’ प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया। उन्होंने हमारी फौज को खुली छूट दे दी और हमारे जांबाज बहादुर फौजियों ने 2-2 बार पाकिस्तान को घर में घुसकर मारा।
मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री की इस इच्छाशक्ति का हम सबको सम्मान करना चाहिए। राजनीतिक दलों के नेता घरेलू मुद्दों पर आपस में लड़ सकते हैं, एक-दूसरे का विरोध कर सकते हैं, लेकिन जब बात आतंकवाद की आए, उसे फलने-फूलने में मदद करने वाले पाकिस्तान की आए, तो सभी राजनीतिक दलों और पूरे देश को एकजुट खड़े होना चाहिए। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सबको एक होना चाहिए।
How Modi’s strong will brought about a landmark verdict against terrorists
In a landmark judgement on Friday, a special court in Gujarat pronounced death sentence to 38 convicts in the 2008 Ahmedabad serial blasts case, while giving life imprisonment to 11 other convicts. This is the first time in India’s modern judicial history, when such a large number of convicts have been sentenced to death by a court in a single case. The earlier precedent was the Rajiv Gandhi assassination case in 1998, when a TADA court pronounced death sentence to all 26 convicts.
Fourteen years ago, on July 26, 2008, SIMI and Indian Mujahideen terrorists carried out more than 20 bomb blasts, killing 56 innocent persons and injuring more than 200 people.
Special Judge A R Patel, in his judgement running into more than 7,000 pages, wrote, “if such people are allowed to be part of society, it will amount to setting man-eater leopards free amongst the innocents”. The special judge said, “since they did not show any mercy to innocents, there is no reason for this court to show mercy to them”.
The 49 death convicts are presently lodged in jails in six cities, Jaipur, Ahmedabad, Gaya, Taloja, Bhopal and Bengaluru. In his judgement, the special judge quoted from Holy Quran to differentiate between jihad and terrorism, and appealed to religious organizations to boycott these terrorist outfits. The motive of the convicts, the judge said, was to avenge the killings during post-Godhra riots. Towards this purpose, they selected Hindu-populated areas of Ahmedabad and set off the explosives. The judge said, the terrorists underwent special training in different parts of India as part of meticulous planning.
The special judge said, this was a rarest of rare case because the terrorists also placed explosives near hospitals, because they knew that injured people would be brought to hospital, and their relatives, officials and politicians would visit the hospitals.
Special Judge A R Patel also wrote in his judgement that the then Chief Minister of Gujarat Narendra Modi, the then Home Minister Amit Shah and local BJP MLA Pratapsinh Jadeja were also among the targets. It was Narendra Modi’s fate that he could not be targeted by the terrorists. In other words, the target of terrorists were not only common people, but the state leadership too. The judge said, the aim of terrorists was to create disturbance and anarchy, and create Islamic Raj. “If such anti-national elements indulge in such terror attacks, there was no need to look after them in jails for the rest of their life, and capital punishment was the only way out”, the judge said.
Special Public Prosecutor Sudhir Brahmabhatt described the verdict as a milestone, which would act as a deterrence in preventing future terror attacks. Gujarat Police director general Ashish Bhatia, who was Joint Police Commissioner (Crime), Ahmedabad, during the blasts, was the person who supervised the entire investigation into the serial blasts. In his judgement, the Special Judge praised the work done by Ashish Bhatia and his team in nailing the terrorists and the conspirators.
The manner in which the investigation was done meticulously laid bare the entire setup of Indian Mujahideen throughout India. The investigation team worked under the overall supervision of the then CM Narendra Modi and the then Home Minister Amit Shah, and their role was praised by the Special Public Prosecutor.
Another IPS official who put in his efforts in cracking this case was Abhay Chudasama who was then DCP, Crime in Ahmedabad, and is now, IG, Gandhinagar Range. He meticulously put all the pieces in place in the jigsaw puzzle. Chudasama told India TV that the Special Court verdict will act as a precedent for future.
This historic verdict is surely the result of painstaking efforts made by Gujarat’s investigation and prosecution departments. But the credit for achieving this goes to the political leadership that prevailed in Gujarat at that time. The Ahmedabad serial blast was a direct challenge to Narendra Modi. He was the chief minister at that time, and Amit Shah was his trusted Home Minister. When twenty bombs exploded one by one across the city, Modi reached Ahmedabad, took latest updates from officials and wanted to go the scenes of crime. He also wanted to meet the injured people in hospital, but was advised by his officials not to go, since most of the areas were still not safe and secure. Two hours after the first blast, there was an explosion near Ahmedabad Civil Hospital.
Modi ignored his officials’ advice and went to the scenes of crime and also visited the hospital to meet the injured victims. By leading from the front, he sent a strong message to the people of Gujarat to convey that he was with the victims in their hour of distress. Modi also directed police officials to go after the perpetrators of the crime and nail them.
Thirteen years ago, on April 4, 2009, when Narendra Modi was my guest in ‘Aap Ki Adalat’ show, he mentioned how Gujarat Police made the investigation of Ahmedabad serial blasts an example for others to emulate, and how his government’s iron willed policy against terror was also followed by other states.
There could be differences of opinion with Narendra Modi, but none can question his patriotism. Nobody can doubt his zeal in tackling terrorism. The Special Court verdict has proved how Modi fought a decisive battle against terrorism in his home state. With his strong will, he showed the terrorists and their masterminds their right place.
The ‘Aap Ki Adalat’ video clip that I showed in my ‘Aaj Ki Baat’ show on Friday night indicates how Modi had made up his mind to uproot terrorism, when he was the chief minister. In the ‘Aap Ki Adalat’ show, I had pointedly asked Modi, who he would have done, had he been the Prime Minister when the 26/11 Mumbai terror attacks took place.
I still remember Modi’s reply. He said, “we should reply to Pakistan in its own language. We should stop writing ‘love letters’ to Pakistan and avoid complaining about terrorism from Pakistan before the United States”. Modi replied to Pakistan in its own language when he became the Prime Minister. He gave our armed forces a free hand, and our brave jawans and officers hit Pakistan inside its territory twice.
I think all of us should show respect to the strong will of our Prime Minister. On domestic issues, political leaders may criticize one another, but on issues relating to terrorism and its sponsor Pakistan, all political parties and the entire nation must stand united as one. We must fight the scourge of terrorism unitedly.