देश के युवाओं के नाम, नरेन्द्र मोदी का आह्वान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को दिल्ली कैंट में एनसीसी कैडेट्स की सलामी परेड में बिल्कुल अलग रंग में दिखे। उन्होंने हरे रंग की पगड़ी पहनी थी। अपने भाषण में मोदी ने कहा कि उन्हें इस बात पर गर्व है कि वो भी अपने स्कूल के दिनों में एनसीसी के एक्टिव कैडेट रहे और उन्हें जो ट्रेनिंग मिली, जो जानने-सीखने को मिला उसने उनके अंदर राष्ट्र धर्म और देश सेवा की भावना को विकसित करने में बड़ी भूमिका निभाई।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा-‘राष्ट्रधर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं हैं। राष्ट्रभक्ति से बड़ी कोई भक्ति नहीं हैं और राष्ट्र सेवा से बड़ी कोई सेवा नहीं हैं। मोदी ने ये भी बताया कि आप राष्ट्रधर्म कैसे निभा सकते हैं और देश की सेवा कैसे कर सकते हैं।’ उन्होंने कहा-एनसीसी के दिनों में उन्हें जो ट्रेनिंग मिली वह आज प्रधानमंत्री के तौर पर काम करने के दौरान बहुत काम आता है।
पीएम मोदी ने कहा कि देशभक्ति और देश की सेवा सिर्फ फौज में भर्ती होने से नहीं होती। देश के लिए हर पल सोचना और देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना होना भी देश की सेवा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि ये ऐसे विचार हैं जो एनसीसी में शामिल होने पर आपके दिमाग में आते हैं।
प्रधानमंत्री ने एनसीसी के कैडेट्स से यह सुनिश्चित करने की अपील की कि स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्र नशे से मुक्त हों। उन्होंने कहा-आपमें से ज्यादातर लोग जानते हैं कि कैसे ड्रग्स हमारी युवा पीढ़ी को बर्बाद कर रहे हैं। जहां एनसीसी-एनएसएस है वहां स्कूलों और कॉलेजों तक ड्रग्स कैसे पहुंच सकता है? उन्होंने कहा कि युवाओं में नशे की बढ़ती लत एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। खुद को नशे से दूर रखना और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करना देशभक्ति है, देश की सेवा है। मोदी ने कहा-ऐसे में एनसीसी कैडेट्स की ये जिम्मेदारी है कि वो नशे के खिलाफ जागरूकता फैलाएं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि युवा पीढ़ी स्टार्टअप और यूनिकॉर्न के जरिए देश की सेवा कर रही है। कोरोना काल में नौजवानों ने स्टार्ट अप और यूनिकॉर्न स्थापित करके इस फील्ड में दुनिया में टॉप-3 में पहुंचा दिया है। यह उनकी मानसिक शक्ति को दर्शाता है। कोरोना महामारी के दौरान देश में 50 से ज्यादा यूनिकॉर्न्स अस्तित्व में आए।
उन्होंने कहा कि देश के लोगों के द्वारा बनाए गए उत्पादों की खरीद सुनिश्चित कर देश के युवा ‘वोकल फॉर लोकल’ को बढ़ावा दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों के दौरान बॉर्डर के इलाकों में एनसीसी के लिए एक लाख से ज्यादा नए कैडेट्स का नामांकन हुआ है। उन्होंने कहा कि देशभर के 90 यूनिवर्सिटीज ने अपने पाठ्यक्रम में एनसीसी को एक वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल किया है और हमारे युवाओं को इसका लाभ उठाना चाहिए।
मोदी ने कहा- ‘यह हमारे लिए गर्व की बात है कि अब बेटियां भी हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। सीमाओं की सुरक्षा से लेकर फाइटर जेट के कॉकपिट की कमान भी अब बेटियों ने संभाल ली है।’ नरेंद्र मोदी ने लड़कियों से भी एनसीसी-एनएसएस जैसे फील्ड में आगे आने की अपील की। मोदी ने कहा कि उनकी सरकार ने आर्मी में कई ऐसे फील्ड्स में महिलाओं को आने की मंजूरी दे दी है जहां पहले महिलाएं नहीं आ पाती थी।
नरेंद्र मोदी ने एनसीसी कैडेट्स से जो कहा ये बातें उन्होंने पहली बार नहीं कही । यह नरेंद्र मोदी की सोच है। मोदी हमेशा कहते हैं कि जो लोग आजादी के बाद पैदा हुए उन्हें आजादी की लड़ाई लड़ने और देश के लिए बलिदान देने का मौका तो नहीं मिला लेकिन उनके पास देश के लिए जीने का मौका है। मोदी हमेशा कहते हैं राष्ट्रभक्ति सबसे बड़ी पूजा है। मोदी नौजवानों से यह भी कहते हैं कि कुछ बनने का सपना मत देखो, देश के लिए कुछ करने का सपना देखो। युवा पीढ़ी को मोदी के इन उपदेशों से प्रेरणा लेनी चाहिए।
Narendra Modi gives a clarion call to Indian youths
Prime Minister Narendra Modi on Friday wore a green Sikh cadet turban to address the annual PM’s NCC Rally at Delhi Cantonment. In his speech, Modi said, he was proud of the fact that he had been an active NCC cadet during his school days, and it was the valuable training that he got at NCC, that played a big role in inculcating the ideas of ‘Rashtra Dharma’ (duty to nation) and “Desh Seva” (service to the nation) since the time when he was a teenager.
“No religion is bigger than Rashtra dharma”, Modi said, adding, “No devotion is greater than Rashtra Bhakti (devotion to the nation), and no service is greater than ‘Rashtra Seva’. ..My training during my NCC days is playing a big role as I continue my duty as Prime Minister”.
Modi said, ideas of patriotism and national service are inculcated not only by joining the armed forces. These ideas take growth during the formative years when one joins the NCC. “To think about national interest every minute of your life, to think about ways to offer your service to the nation, to desire to do something great for our nation – these are ideas that come to mind when one joins the NCC, Modi said.
The Prime Minister appealed to NCC cadets to ensure that students studying in schools and colleges are free from drugs. “Most of you know how drugs are ruining our young generation. How can drugs reach schools and colleges where there is NCC-NSS? As young cadets, you must ensure that every youth is free from drugs”, Modi said.
The young generation of India, the PM said, has taken India to the Number 3 slot, by setting up start-ups and unicorns. “All these were created during Covid pandemic. It shows their mental strength. Over 50 unicorns came into existence in India during the Covid pandemic”.
Youths, he said, can play a big role in promoting “vocal for local” by ensuring that every Indian buys products made by Indians. Over one lakh new cadets have been enrolled in NCC in border areas during the last two years, he said. Ninety universities across India have added NCC as an elective subject in their curriculum, and our youths should take advantage of this, he added.
“It is a proud moment for us as girls are now joining Sainik Schools to join the armed forces. The number of NCC girl cadets is rising. Our daughters are now flying fighter jets in the Air Force. More girl cadets must now be included in the NCC”, Modi said.
There is nothing new in the Prime Minister speaking to NCC cadets at their annual rally. The points he raised were also not new, but these remarks reflect the thinking of our Prime Minister. Modi has always been saying, those were born after independence, could not get the chance “to die” in the struggle for India’s freedom, but they now have the opportunity “to live for the nation”. Modi has always been telling youths, “do not dream of becoming great, dream about doing something great for the country”. Our young generation must take inspiration from Modi’s exhortations.
अमित शाह और योगी ने क्यों कहा, अगर अखिलेश सत्ता में आए तो लौटेगा ‘गुंडाराज’
उत्तर प्रदेश में चुनाव को लेकर जैसे-जैसे मतदान की तारीख नजदीक आ रही है चुनाव प्रचार जोर पकड़ता जा रहा है। चुनाव आयोग की पाबंदियों की वजह से बड़ी जनसभाएं तो नहीं हो रही हैं लेकिन मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के सीनियर नेता अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर विधानसभा क्षेत्रों में घर-घर जाकर पार्टी का प्रचार (डोर-टू-डोर कैंपेन) करने में व्यस्त हैं। इस कड़ी में गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को मथुरा, दादरी और ग्रेटर नोएडा का दौरा किया और अपने डोर-टू-डोर कैंपेन के दौरान मतदाताओं से मुलाकात की।
मथुरा में पार्टी कार्यकर्ताओं और मतदाताओं की एक सभा को संबोधित करते हुए, अमित शाह ने कहा- यूपी का यह चुनाव देश के भाग्य का फैसला करने वाला चुनाव है क्योंकि अगर यूपी का विकास रुका, तो देश का विकास भी रुक जाएगा। अमित शाह ने कहा-अगर बीजेपी यूपी में अपनी सत्ता बरकरार रखती है तो राज्य प्रगति करेगा, लेकिन अगर अखिलेश यादव और उनके सहयोगी जीत गए तो प्रदेश में ‘गुंडा- माफिया राज’ वापस आ जाएगा।
बीजेपी के दिग्गज नेता ने कहा, ‘मतदाताओं को वोट डालते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी उपलब्धियों को याद रखना चाहिए। अयोध्या में अब मंदिर बन रहा है, काशी विश्वनाथ कॉरीडोर भी बन गया। कश्मीर से आर्टिकल 370 भी हट गया। मोदी सरकार में हमारे जवानों पर हमला हुआ तो हमने पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की और पाकिस्तान को उसके घर में घुसकर सबक भी सिखा दिया। अगर यूपी का विकास रुका, तो देश का विकास भी रुक जाएगा इसलिए वोट डालते वक्त मोदी को ध्यान में रखिएगा।’
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी बिजनौर में डोर-टू-डोर कैंपेन किया। उन्होंने मतदाताओं से कहा, ‘आप सभी इस बात के गवाह हैं कि कैसे उन्होंने (समाजवादी पार्टी) अंधेरा लाया और हम (भाजपा) आपके जीवन में रोशनी लेकर आए हैं। वे गुंडा राज लाए थे और हम कानून का राज वापस लेकर आए।’
योगी ने बताया कि उनकी सरकार ने क्या-क्या काम किए। कितने लोगों को घर दिया, कितने परिवारों को मुफ्त में राशन पहुंचाया। शौचालय बनवाए, किसानों को उनकी जमीनों के पट्टे दिए, रोजगार दिए, मुफ्त इलाज का इंतजाम किया, कितने लोगों को पेंशन दी, किसानों के लिए क्या-क्या किया। योगी ने तमाम तरह की योजनाएं गिनवाईं। इसके बाद उन्होंने कहा कि वे सारे काम इसलिए कर पाए क्योंकि उनकी सरकार ने भ्रष्टाचार नहीं किया। पिछली सरकारों में सिर्फ लूट और धांधली थी। इसके सबूत अब सामने आ रहे हैं। योगी ने एक और बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि अगर लोकल उम्मीदवार या मौजूदा विधायक से कोई शिकायत है तो उसे हल कर लिया जाएगा। क्योंकि यह चुनाव सिर्फ विधायक का नहीं बल्कि सरकार और मुख्यमंत्री चुनने का है।
बीजेपी के एक अन्य दिग्गज नेता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह गाजियाबाद के पास मोदीनगर में चुनाव प्रचार कर रहे थे। राजनाथ सिंह ने सीएम योगी आदित्यनाथ की जमकर तारीफ की। राजनाथ ने कहा-‘वो खुद भी यूपी के सीएम रहे हैं, लेकिन योगी जी उनसे काफी बेहतर हैं’
यूपी चुनाव में कानून-व्यवस्था का मुद्दा अब सभी मुद्दों पर हावी हो गया है। सपा के राज में गुंडाराज और माफिया का जिक्र योगी आदित्यनाथ पहले भी करते थे। योगी पहले भी कहते थे कि समाजवादी पार्टी के सरकार के वक्त में उत्तर प्रदेश में गुंडाराज था और वह कानून का राज लेकर आए। इसके जवाब में अखिलेश यादव हमेशा यही कहते हैं कि अब उनकी समाजवादी पार्टी बदल गई है। यह नई सपा है और वह गुंडों और माफियाओं को हावी नहीं होने देंगे। लेकिन जब समाजवादी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी की तो उसमें आजम खान और नाहिद हसन जैसे उम्मीदवारों के नाम आए जिनके खिलाफ गंभीर अपराधों में केस दर्ज है।
समाजवादी पार्टी ने कई ऐसे लोगों को टिकट दिए जिनके ऊपर योगी की सरकार आने से पहले से केस चल रहे हैं। इसके बाद तो बीजेपी ने माफिया और अपराधियों को लेकर समाजवादी पार्टी पर हमले तेज कर दिए। अमित शाह और योगी आदित्यनाथ ने भी इसी मुद्दे पर फोकस किया और इसे मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अब आगे मतदाताओं को फैसला करना है।
Why Amit Shah, Yogi said, ‘goonda raj’ will return if Akhilesh Yadav comes to power
With the Election Commission’s ban on all election rallies in force, senior leaders of mainstream political parties are now busy in door-to-door campaigning in most of the constituencies of western Uttar Pradesh. On Thursday, Home Minister Amit Shah visited Mathura, Dadra and Greater Noida and met voters during his door-to-door campaign.
Addressing a gathering of party workers and voters in Mathura, Amit Shah said, UP election results will decide the destiny of India in the coming years. Shah said, if BJP retained power in UP, the state will progress, but if Akhilesh Yadav and his allies win, “goonda-mafia raj” will return.
The BJP stalwart said, “while going to cast their votes, voters should remember the big achievements of Prime Minister Narendra Modi. These included building of Ram temple in Ayodhya, Kashi Vishwanath temple corridor, removal of Article 370 status for Jammu and Kashmir, and the attacks carried out by our armed forces on terror camps inside Pakistani territory. Remember, if the progress of UP is stalled, India’s progress could also come to a halt. So whenever you decide to vote, please do keep Narendra Modi in mind”.
UP chief minister Yogi Adityanath was also on a door-to-door campaign in Bijnor. He told voters, “all of you are witness to how they (Samajwadi Party) brought darkness, and we (BJP) brought light in your lives. They brought goonda raj, we brought back rule of law”.
Yogi said, all the good work done during his rule, like distributing free rations, building of toilets, giving pension, giving homes to poor people, free medical treatment for poor, would not have been possible, had there been rampant corruption. He told voters not to oppose BJP only because of their grouse against local MLAs. “If there are problems with local MLAs, these will be resolved, but remember, you are going to elect a government and a Chief Minister”, Yogi said.
Another BJP stalwart Defence Minister Rajnath Singh was in Modinagar near Ghaziabad. Rajnath Singh said, “if you compare my rule with Yogi’s rule, I can definitely say that Yogi’s governance was far better. I myself was chief minister, but Yogi ji is far better than me.”
Law and order has now become a priority issue in UP elections. Yogi Adityanath used to speak about “goonda raj” during Akhilesh Yadav’s rule, but the SP supremo used to say that he has brought about a sea change in his party. Akhilesh claims that he would not allow criminals and mafia leaders to rule, because his party has acquired a new image. But his claims have proved to be hollow, after the SP candidates’ lists were out. People with criminal cases against them, like Nahid Hassan and several others, are not contesting elections on SP symbol.
There are several candidates against whom criminal cases were filed even before Yogi became chief minister. Both Amit Shah and Yogi Adityanath are therefore focusing more on entry of criminals in Samajwadi Party and are trying to project it as the core election issue. It is now for the electorate to decide.
अमित शाह ने ग़िले-शिकवे दूर कर कैसे मांगा जाटों का समर्थन
उत्तर प्रदेश से जुड़े एक बड़े राजनीतिक घटनाक्रम में गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को जाट नेताओं से मुलाकात की। इस दौरान हुई बातचीत में शाह ने विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिए जाट समुदाय का समर्थन मांगा।
जाट समुदाय की विभिन्न ‘खाप पंचायतों’ के करीब 253 नेताओं ने बुधवार को शाह से मुलाकात कर अपनी मांगें रखीं। जाट नेताओं की प्रमुख मांगों में जाटों के लिए नौकरी में आरक्षण, चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न, गन्ना किसानों को बकाया रकम का तत्काल भुगतान और जेवर एयरपोर्ट का नाम जाट महाराजा के नाम पर रखना शामिल है। अमित शाह ने कहा, केंद्र सरकार जाटों की इच्छाओं का सम्मान करेगी और उन्हें उम्मीद है कि जाट बीजेपी को उसी तरह अपना समर्थन देते रहेंगे जैसे उन्होंने 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में दिया था।
अमित शाह ने कहा, ‘बीजेपी का जाट समुदाय के साथ पुराना रिश्ता है और इसे छोटी-मोटी बातों पर नहीं तोड़ा जा सकता।’ शाह ने नेताओं से उनकी शिकायतों के बारे में पूछा और उनकी मांगों को पूरा करने का वादा किया। उन्होंने कहा, ‘जब-जब हमारी पार्टी ने जाटों का समर्थन मांगा, उन्होंने हमेशा हमारी मदद की। कुछ कमी भी रही तो भी जाट बीजेपी से दूर नहीं हुए। मैं भी जयंत चौधरी (RLD प्रमुख) को चाहता हूं, लेकिन उन्होंने घर गलत चुन लिया है। हालांकि (मेलजोल की) संभावनाएं कभी खत्म नहीं होतीं, भविष्य में कुछ भी हो सकता है।’
अमित शाह ने RLD प्रमुख जयंत चौधरी के बारे में सार्वजनिक रूप से इतना खुलकर कभी नहीं बोला था। जाट नेताओं के साथ बैठक बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा के आवास पर हुई थी, और पश्चिमी यूपी के बीजेपी नेता संजीव बालियान की मदद से प्रवेश ने इसका आयोजन किया था।
मुलाकात के बाद बालियान आत्मविश्वास से भरे नजर आए। उन्होंने कहा, जाट मतदाता चुनाव से पहले भले ही बीजेपी से नाराज रहते हों, लेकिन वे वोट अंततः बीजेपी को ही देते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव RLD प्रमुख जयंत चौधरी के कंदे पर बंदूक रखकर अपने सियासी समीकरण साध रहे हैं। उन्होंने कहा, गठबंधन दोनों नेताओं के बीच हो सकता है, लेकिन जमीन पर इसका कोई असर नहीं है (दूसरे शब्दों में, पश्चिमी यूपी में मुसलमानों और जाटों के बीच पढ़ें)। बालियान ने कहा, चुनाव के बाद RLD के बीजेपी खेमे में शामिल होने की संभावना बन सकती है। उन्होंने इंडिया टीवी के रिपोर्टर से कहा, ‘राजनीति में कुछ भी हो सकता है।
पश्चिमी यूपी के जाट बेल्ट में खाप पंचायतों द्वारा लिए गए फैसलों को अंतिम माना जाता है, और ये फैसले अक्सर पार्टियों द्वारा लिए गए पॉलिटिकल स्टैंड पर भारी पड़ते हैं। यही वजह है कि खाप पंचायतों के प्रमुखों को बैठक में बुलाया गया था, जिसकी अध्यक्षता समुदाय के एक सम्मानित नेता चौधरी जयवीर सिंह ने की थी।
बैठक के बाद चौधरी जयवीर सिंह ने कहा, ‘हमें अखिलेश यादव से कोई दिक्कत नहीं है। एकमात्र समस्या यह है कि उनके शासन में गुंडागर्दी और लूटपाट की घटनाएं बढ़ जाती हैं, बहन-बेटियां सुरक्षित नहीं रहतीं। इसीलिए जाट पहले बीजेपी का समर्थन करते थे। योगी के राज में हमारे घरों की महिलाएं बिना किसी दिक्कत के बाहर आती जाती हैं।
योगी आदित्यानाथ के विरोधी भी मानते है कि उनके राज में कानून और व्यवस्था मे सुधार हुआ है। अपराधियों में पुलिस का, कानून का खौफ है और आम लोग खुद को महफूज महसूस करते हैं। अगर एक वरिष्ठ जाट नेता योगी के शासन की तारीफ करता है तो यह बीजेपी के लिए काफी मायने रखता है, क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों की आबादी 17 पर्सेंट से ज्यादा है।
जाट पश्चिमी यूपी के 21 जिलों की 97 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करते हैं। मथुरा में करीब 40 फीसदी, बागपत में 30 फीसदी और सहारनपुर में 20 फीसदी आबादी जाटों की है। चूंकि पहले चरण का मतदान पश्चिमी यूपी में ही होने जा रहा है, इसलिए सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि जाट किसका समर्थन करते हैं। बैठक के बाद नोएडा से जाट नेता गजेंद्र सिंह अत्री ने कहा कि जाटों को अब बीजेपी से कोई शिकायत नहीं है। उन्होंने तो गृह मंत्री को ‘चौधरी अमित शाह’ तक कह दिया।
हिंदू-मुस्लिम, जाट बनाम गैर-जाट और जाति बिरादरी जैसे मुद्दे अब खास मायने नहीं रखते। जाट समुदाय के दिमाग में कानून-व्यवस्था सबसे ऊपर है। शाह की बैठक के बाद सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वालों में RLD सुप्रीमो जयंत चौधरी शामिल थे। उन्होंने ट्वीट किया: ‘न्योता मुझे नहीं, उन 700 से ज्यादा किसान परिवारों को दो जिनके घर आपने उजाड़ दिए!’ RLD नेता मेराजुद्दीन ने शाह की खाप नेताओं के साथ मुलाकात को ‘राजनीतिक स्टंट’ करार दिया। उन्होंने कहा, ‘बीजेपी जाटों को पहले भी धोखा देती आई है और आगे भी धोखा देगी।’
ओबीसी नेता ओम प्रकाश राजभर, जिनका पश्चिमी यूपी में कोई जनाधार नहीं है, ने कहा: ‘इस तरह के दिखावे से कुछ नहीं होगा। जाटों को बीजेपी की असलियत समझ आ गई है। सिर्फ लॉलीपॉप देने से काम नहीं चलेगा।’ गुरुवार को अमित शाह ने जाट वोटरों को रिझाने के लिए मथुरा में घर-घर जाकर प्रचार किया।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को लेकर बीजेपी की चिंता वाजिब है। इसके दो कारण हैं। पहला, अखिलेश यादव का जयंत चौधरी के साथ गठबंधन, और दूसरा, एक साल से ज्यादा चले किसान आंदोलन का प्रभाव। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और मुसलमानों का वोट जीत हार तय करता है। अगर किसान आंदोलन का वोटरों के दिमाग पर असर हुआ, तो बीजेपी को नुकसान हो सकता है। इसकी वजह ये है कि आमतौर पर मुसलमनों का वोट बीजेपी को नहीं मिलता है। पिछले चुनाव में जाट बीजेपी के साथ लामबंद थे, तो बीजेपी ने पश्चिमी यूपी के 21 जिलों की 97 विधानसभा सीटों में से 82 सीटें जीती थी। समाजवादी पार्टी को सिर्फ 9 सीटें मिली थीं, जबकि बीएसपी 3 और कांग्रेस 2 सीटों पर सिमट गई थी।
जाट वोटों के महत्व के कारण ही बीजेपी नेतृत्व किसी भी कीमत पर जाटों को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकता। अमित शाह ने आगे बढ़कर पहल की, जाट नेताओं से बात की, उनकी नाराजगी दूर की, उन्हें जाटों और अपनी पार्टी के बीच लंबे समय से चले आ रहे संबंधों की याद दिलाई और उनकी सभी मांगों को पूरा करने का वादा किया।
यह एक काबिले तारीफ और ऐतिहासिक कदम था। इसलिए बैठक से बाहर निकले कुछ जाट नेताओं ने उन्हें ‘चौधरी अमित शाह’ कहा। उनमें से कुछ ने ‘अमित शाह जिंदाबाद’ के नारे भी लगाए। कुछ लोग कह सकते हैं कि जो लोग बीजेपी नेता के घर से निकले, वे क्या समाजवादी पार्टी के नारे लगाते।
जाट महाराजा के नाम पर जेवर एयरपोर्ट का नाम रखने का वादा हो, या उन्हें आरक्षण देने का वादा हो, या फिर जाटों को सत्ता में उचित भागीदारी देने की बात हो, ये सब सियासी बातें हो सकती हैं, लेकिन सपा के शासन की योगी राज से तुलना में जाट नेता जो अपनी बहन-बेटियों की सुरक्षा की बात करते हैं, कानून व्यवस्था की बात करते हैं, उसे गंभीरता से लेने की जरूरत है।
इन बातों का जमीन पर बड़ा असर हो सकता है। यह मुद्दा हर जाट परिवार से जुड़ा है और इसका निश्चित रूप से असर पड़ेगा। कानून-व्यवस्था इस बार पश्चिमी यूपी में सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनने जा रहा है।
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How Amit Shah reached out to Jat community seeking support
In a fresh political development in UP, Home Minister Amit Shah reached out to Jat leaders and held talks with them seeking the community’s support to the BJP in the forthcoming assembly elections.
Nearly 253 leaders from different ‘khap panchayats’ of Jat community met Shah on Wednesday and placed their list of demands, which included job reservation for Jats, conferring of Bharat Ratna on former PM Chaudhary Charan Singh, naming of Jewar airport in the name of Jat Maharaja, and immediate payment of sugarcane arrears to farmers. Amit Shah replied that the Centre would respect the aspirations of Jats, and he hoped the community will continue to extend support to BJP as it did in the 2014, 2017 and 2019 elections.
“BJP has a long standing relationship with Jat community”, Amit Shah said, “and this cannot be broken over minor issues”. Shah asked the leaders about their grievances and promised to fulfil their demands. “Whenever our party sought their support, Jats always came out wholeheartedly to lend a helping hand”, he said, “there might be some shortcomings, but Jats have not turned their back on BJP. ..I, too, like Jayant Chaudhary (RLD chief), but he has preferred to choose the wrong camp. Possibilities (of a rapprochement) cannot be ruled out, anything can happen in future”.
Never had Amit Shah come out so clearly about RLD chief Jayant Chaudhary in public. The meeting with Jat leaders was held at BJP MP Parvesh Verma’s residence, and was organized by Parvesh with the help of Sanjeev Baliyan, the BJP leader from western UP.
After the meeting, Balyan looked confident. He said, Jat voters express their annoyance before the elections, but they ultimately vote for BJP. He alleged that Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav was using Jayant Chaudhary as a tool to further his political agenda. The alliance, he said, may be between the two leaders, but it has not percolated to the ground level (in other words, read, between Muslims and Jats in western UP). Baliyan said, there could be possibilities of RLD joining the BJP camp after the elections. “Anything can happen in politics”, he told India TV reporter.
In the Jat belt of western UP, the decisions taken by Khap panchayats are considered final, and these decisions often override political stands taken by parties. This was the reason why chiefs of Khap panchayats were called to the meeting, presided over by Chaudhary Jaiveer Singh, a respected community leader.
After the meeting, Chaudhary Jaiveer Singh said, “we have no problem with Akhilesh Yadav. The only problem is, incidents of hooliganism and loot did rise during his rule, womenfolk were not safe in public, and these were the reasons due to which the Jats supported BJP in the past. During Yogi’s rule, our womenfolk were free to move around in public and there was no such problem”.
Even Yogi’s rivals admit that there were practically few incidents of lawlessness during his rule and the majesty of law and administration prevailed. A senior Jat leader praising Yogi’s rule means much for the BJP, because Jats in western UP constitute more than 17 per cent of the population.
Jats decide the fate of candidates in as many as 97 constituencies in 21 districts of western UP. There are nearly 40 pc Jats in Mathura, 30 pc in Baghpat and 20 pc in Saharanpur. Since the first phase of polling is going to take place in western UP, all eyes are set on whom the Jat community will support. Gajendra Singh Atri, a Jat leader from Noida, said after the meeting, that Jats have no grievance with the BJP anymore. He even described the Home Minister as “Chaudhary Amit Shah”.
Issues like Hindu-Muslim, Jat vs non-Jat, and caste biradari do not matter much now. Law and order is uppermost in the minds of Jat community. RLD chief Jayant Chaudhary was among the first to react after Shah’s meeting. He tweeted: “Do not invite me, invite the families of 700-plus farmers, whose homes have been destroyed (during the farmers agitation)”. RLD leader Merajuddin described Shah’s meeting with Khap leaders as a “political stunt”. He said, “BJP betrayed Jats in the past, and will betray in future too.”
OBC leader Om Prakash Rajbhar, who has practically no mass base in western UP, remarked: “Such showcasing won’t help. Jats have realized the truth about BJP. Merely offering lollypops won’t do.” On Thursday, Amit Shah went on a door-to-door campaign in Mathura to woo Jat voters.
There are two main reasons for which the BJP leadership is worried about western UP. First, the alliance between Akhilesh Yadav and Jayant Chaudhary, and, second, the effect of year-long farmers agitation. Jats and Muslims decide the fate of most of the candidates in western UP. If the farmers’ agitation makes an impact on the electorate’s mind, it can affect the BJP adversely. Reason: Muslim voters normally never vote for BJP. In the last elections, the Jat community stood firm as a rock behind BJP in western UP, and the party won 82 out of 97 constituencies in 21 districts. SP managed to win only nine seats, BSP won three and the Congress two.
It is because of the importance of Jat votes that the BJP leadership cannot take the risk of antagonizing Jat community, at any cost. Amit Shah took the initiative from the front, spoke to Jat leaders, allayed their grievances, reminded them of the long standing relationship between Jats and his party, and promised to fulfil all their demands.
This was a welcome and historic gesture. That is why, some Jat leaders who came out of the meeting, described him as “Chaudhary Amit Shah”. Some of them even chanted “Amit Shah Zindabad” slogan. Some sceptics may say, nobody expected these leaders, who went to a BJP leader’s meeting, would have chanted slogans in support of Samajwadi Party.
Promises of naming Jewar airport after Jat Maharaja, or giving them reservation, or proper representation in power, could be part of political game, but Jat leaders raising the issue of safety of their womenfolk and law and order as benchmarks for comparing the SP rule with Yogi’s rule, needs to be seriously taken into consideration.
These remarks can have a big effect at the ground level. This issue relates to every Jat family, and it will surely have the desired impact. Law and order is going to become the topmost electoral issue in western UP this time.
कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह बीजेपी में क्यों शामिल हुए
राहुल गांधी की कोर कमेटी के सदस्य और डॉ मनमोहन सिंह की कैबिनेट में मंत्री रह चुके आरपीएन सिंह का इस्तीफा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है। कांग्रेस को उसके नेता और कार्यकर्ता एक-एक कर छोड़ते चले जा रहे हैं। पार्टी का साथ छोड़ने वालों में विधानसभा चुनावों में टिकट पाने वाले कुछ उम्मीदवार भी शामिल हैं। इन उम्मीदवारों ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी या समाजवादी पार्टी जॉइन कर ली। आरपीएन सिंह 32 साल तक कांग्रेस में रहे, लेकिन गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर उन्होंने यह कहते हुए बीजेपी में शामिल होने का फैसला किया कि वह एक नई राह पर चलना चाहते हैं।
आरपीएन सिंह कुशीनगर के राजपरिवार से आते हैं और OBC में आने वाली सैंथवार कुर्मी जाति से ताल्लुक रखते हैं। वह पडरौना सीट से 3 बार विधायक भी रह चुके हैं। सिंह लोकसभा चुनाव में कुशीनगर सीट से पिछड़े वर्ग के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को हरा चुके हैं। अब संभावना यह जताई जा रही है कि बीजेपी छोड़कर सपा में शामिल हुए मौर्य का सामना विधानसभा चुनाव में आरपीएन सिंह से होगा। गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद सिंह बीजेपी में शामिल हो गए। वह यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों डिप्टी सीएम और राज्य बीजेपी प्रमुख स्वतंत्र देव सिंह की उपस्थिति में पार्टी में शामिल हुए।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, जो यूपी बीजेपी के प्रभारी भी हैं, ने खुलासा किया कि वह 2004 से ज्योतिरादित्य सिंधिया और आरपीएन सिंह को बीजेपी में शामिल होने के लिए मनाने में लगे हुए थे, और आखिरकार उनकी कोशिशें सफल हुईं। एक दिन पहले ही कांग्रेस ने आरपीएन सिंह को अपना स्टार प्रचारक बनाया था, लेकिन उनके अचानक इस्तीफा देने से पार्टी को बड़ा झटका लगा है। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने आरपीएन सिंह पर निशाना साधते हुए उन्हें कायर कहा। यूपी कांग्रेस प्रमुख अजय कुमार लल्लू ने कहा कि सिंह ‘हैवीवेट’ नहीं बल्कि ‘डेडवेट’ थे और उनके जाने से कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। स्वामी प्रसाद मौर्य ने दावा किया कि उन्होंने एक बार आरपीएन सिंह की मां को हराया था और उनके करीबी उम्मीदवारों को भी 2 बार हरा चुके हैं।
कांग्रेस के नेता आरपीएन सिंह को भले ही ‘डेडवेट’ कहें, लेकिन हकीकत यही है कि वह राहुल गांधी की मंडली के 4 मुख्य स्तंभों में से एक थे। जब राहुल गांधी ने 2016 में देवरिया जिले से अपनी ‘खाट यात्रा’ शुरू की थी, तब आरपीएन सिंह ने आगे बढ़कर मोर्चा संभाला था। वह राहुल की कोर टीम के सदस्य थे, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद शामिल थे। अब ये तीनों युवा नेता बीजेपी में हैं।
राहुल अब अपने पूर्व साथियों को डरपोक कह सकते हैं, कायर कह सकते हैं, लेकिन आम आदमी तो पूछेगा ही कि इन ‘कायरों’ को केंद्र में मंत्री क्यों बनाया गया? कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को आज आत्ममंथन करना चाहिए कि पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह और असम के हिमंत बिस्वा सरमा जैसे उनके पुराने दिग्गज बीजेपी में क्यों शामिल हो गए? जहां तक बीजेपी नेतृत्व का सवाल है, वह निश्चित रूप से आरपीएन सिंह नाम की मिसाइल का इस्तेमाल स्वामी प्रसाद मौर्य पर हमला करने के लिए करेगा, क्योंकि मौर्य लगातार ये दावा कर रहे हैं कि वह यूपी के चुनावों में बीजेपी को हराकर ही दम लेंगे।
मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस नेतृत्व कुछ भी सबक सीखना चाहेगा। मंगलवार की रात जब यह घोषणा की गई कि पार्टी के नेता गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है, तो पार्टी के एक अन्य नेता जयराम रमेश ने ट्विटर पर कटाक्ष किया। जयराम रमेश ने लिखा, ‘यही सही चीज थी करने के लिए। वह आजाद रहना चाहते हैं गुलाम नहीं।’ अब यह पाठकों के ऊपर है कि वे एक कांग्रेसी नेता के गुलाम नबी आजाद, जो कि आंतरिक-पार्टी लोकतंत्र का आह्वान करने वाले ग्रुप के दिग्गजों में से एक हैं, के बारे में किए गए इस ट्वीट का क्या मतलब निकालते हैं।
Why Congress leader R P N Singh joined BJP
The resignation of R P N Singh, a member of Rahul Gandhi’s core committee and a former minister in Dr Manmohan Singh’s cabinet, has come as a big jolt to the Congress in UP. The party is facing desertions by party workers and leaders. Even some candidates who were given party tickets have left the Congress, to either join the BJP or Samajwadi Party, main rivals in the assembly polls. R P N Singh was in the Congress for 32 years, but on the eve of Republic Day, he decided to join the BJP, saying that he wanted to embark a new path.
Hailing from an ex-ruler family of Kushinagar, R P N Singh belongs to Sainthwar Kurmi caste, an OBC. Singh was MLA thrice from Padrauna. He had once defeated Swami Prasad Maurya, the heavyweight OBC leader, from Kushinagar Lok Sabha seat. Maurya, who quit the BJP and joined SP, now faces the prospect of facing R P N Singh in the assembly polls. Singh joined the BJP after meeting Home Minister Amit Shah and BJP president J P Nadda. He joined the BJP in the presence of UP chief minister Yogi Adityanath, both the deputy CMs and the state BJP chief Swatantra Dev Singh.
Union Education Minister Dharmendra Pradhan, who is in-charge of UP BJP, revealed that he had been trying since 2004 to persuade both Jyotiraditya Scindia and R P N Singh to join BJP, and ultimately his efforts have borne fruit. A day before, the Congress had enlisted R P N Singh as one of its star campaigners, but the party had to face a jolt with his sudden departure. Congress spokesperson Supriya Shrinate described R P N Singh as a “coward”. UP Congress chief Ajay Kumar Lallu said, Singh was a “deadweight” not a “heavyweight” and his departure will not make any significant impact. Swami Prasad Maurya claimed that he had once defeated R P N Singh’s mother and had twice defeated candidates close to him in the past.
Congress leaders may call R P N Singh a “deadweight” but the fact remains that he was one of the four core pillars in Rahul Gandhi’s coterie. It was R P N Singh, who led from the front, when Rahul Gandhi started his “khaat yatra” from Deoria district in 2016. He belonged to Rahul’s core team that consisted of Jyotiraditya Scindia and Jitin Prasad. Now all these three young leaders are in BJP.
Rahul may now describe his former mates as “cowards”, but the man in the street may definitely ask why these “cowards” were made ministers at the Centre? Senior Congress leaders must self-introspect today why their former heavyweights like Capt Amarinder Singh of Punjab and Himanta Biswa Sarma on Assam have joined the BJP? As far as BJP leadership is concerned, it is surely going to use R P N Singh as a missile to fire at Swami Prasad Maurya, who has been claiming day in and day out that he would defeat the BJP in UP polls.
I doubt whether the Congress leadership would like to learn lessons. On Tuesday night, when it was announced that party leader Ghulam Nabi Azad has been conferred Padma Bhushan, another party leader Jairam Ramesh made a subtle jibe on Twitter. Jairam Ramesh wrote: “Right thing to do. He wants to be Azad, not Ghulam”. It is up to readers to analyze the meaning of this cryptic tweet from a Congress leader about Ghulam Nabi Azad, one of the stalwarts of the group that has been calling for inner-party democracy.
यूपी के चुनावी दंगल में अपराधियों की कैसे हुई वापसी?
बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को यह बता दिया कि बीजेपी के चुनाव प्रचार का फोकस क्या होगा। उन्होंने बाहुबली और अपराधिक चरित्र के नेताओं पर जमकर निशाना साधा। योगी ने कहा कि विधानसभा चुनाव के लिए जारी की गई समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों की लिस्ट, इस पार्टी के ‘दंगा प्रेमी’ और ‘तमंचावादी’ होने का सबूत है। उन्होंने कहा-‘उत्तर प्रदेश की जनता पलायन नहीं, प्रगति चाहती है। जनता दंगे और अपराधियों से मुक्त प्रदेश चाहती है।’
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने दावा किया कि पिछले 5 साल में दंगाई और पेशेवर अपराधी या तो राज्य छोड़कर भाग गए थे या जेल में चले गए थे। लेकिन अब उनमें से कई को अखिलेश यादव ने टिकट दिया है। योगी ने कहा कि समाजवादी पार्टी ने अपनी पहली लिस्ट में ही सहारनपुर और मुज़फ़्फ़रनगर के दंगाई, कैराना में हिन्दुओं के पलायन के ज़िम्मेदार लोगों को टिकट देकर अपनी मानसिकता साफ कर दी है।
मैंने इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स से इन तमाम विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि खंगालने को कहा। इन उम्मीदवारों के एफिडेविट चेक किए गए और हमारे रिपोर्टर्स ने इन उम्मीदवारों से बात की। इन उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि और इनके मुकदमों की लिस्ट देखेंगे तो आप चकित रह जाएंगे।
सबसे पहले कैराना की बात करते हैं। यहां से समाजवादी पार्टी ने नाहिद हसन को उम्मीदवार बनाया है। जब नाहिद हसन को समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार घोषित किया था उस वक्त वो फरार चल रहा था। लेकिन जब नाहिद पर्चा दाखिल करने गया तो पुलिस ने उसे दबोच लिया। अदालत ने नाहिद हसन को 14 दिन की कस्टडी में जेल भेज दिया है।
नाहिद का जब पुराना रिकॉर्ड खंगाला गया तो पता चला कि उसपर अभी कुल 17 मुकदमे चल रहे हैं। इनमें हत्या की कोशिश, बलवा, दंगा करने, लोगों पर हमला करने, धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और समाज में वैमनस्यता पैदा करने के मामले हैं। नाहिद के खिलाफ गुंडा एक्ट और गैंगस्टर एक्ट भी लगा है। एक साल पहले स्थानीय अदालत ने नाहिद हसन को भगोड़ा घोषित कर दिया था। लेकिन जैसे ही समाजवादी पार्टी ने उसे उम्मीदवार बनाया उसके अगले ही दिन वह नमांकन दाखिल करने पहुंच गया। लेकिन नामांकन दाखिल करने से पहले ही पुलिस ने नाहिद को पकड़ लिया। नाहिद को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। चूंकि जमानत की उम्मीद कम है इसलिए बैकअप के तौर पर नाहिद हसन की बहन इकरा हसन ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल किया है। नामांकन दाखिल करने के बाद इकरा हसन ने कहा कि उनके भाई पर जितने भी मामले चल रहे हैं वो फर्जी हैं। जबकि सच्चाई ये है नाहिद पर दर्ज कुल 17 मामलों में से ज्यादातर मामले योगी के सत्ता में आने से पहले दर्ज हो चुके थे।
उधर, हापुड़ के धौलाना सीट से समाजवादी पार्टी ने असलम चौधरी को टिकट दिया है। असलम चौधरी पर 10 मुकदमे चल रहे हैं। इनमें दफा 307 यानी हत्या की कोशिश, जान से मारने की धमकी, जमीनों पर जबरन कब्जे और गैंगस्टर एक्ट के तहत मामले चल रहे हैं। असलम चौधरी दंगे की साजिश करने, भड़काऊ बयान देकर बलवा कराने के मामले में भी आरोपी हैं। इंडिया टीवी के रिपोर्टर ने जब असलम चौधरी से उनपर चल रहे मुकदमों के बारे में पूछा तो उन्होंने ज्यादातर मुकदमों को झूठा और फर्जी बताया। हर मुकदमे की एक कहानी सुना दी। इसके बाद उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा मुकदमे तो योगी के खिलाफ थे, तो योगी साधु और हम अपराधी कैसे हो गए?असलम चौधरी बीएसपी के विधायक थे और कुछ दिन पहले ही समाजवादी पार्टी में शामिल हुए हैं। असलम चौधरी ने अपने हलफनामे में 10 मुकदमों का जिक्र किया है लेकिन पुलिस रिकॉर्ड से पता चलता है कि उनके खिलाफ कुल 21 केस लंबित हैं।
मेरठ शहर विधानसभा सीट से रफीक अंसारी सपा के उम्मीदवार हैं। रफीक अंसारी का दावा है कि उनपर हत्या की कोशिश का सिर्फ एक केस चल रहा है। यह मामला वर्ष 2007 का है। इस मामले में कोर्ट ने रफीक के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी जारी किया था जिस पर उन्होंने हाईकोर्ट से स्टे ले रखा है। रफीक अंसारी समाजवादी के मौजूदा विधायक हैं।
हाजी यूनुस बुलंदशहर सीट से राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के उम्मीदवार हैं। उनके खिलाफ हत्या की कोशिश का केस चल रहा है। यह केस समाजवादी पार्टी की सरकार के वक्त दर्ज हुआ था। लेकिन जनाब का कहना है कि यह झूठा मामला है। वे इस मुकदमे को लड़ाई-झगड़े का मामला बता रहे हैं। हाजी यूनुस के खिलाफ सात मुक़दमे चल रहे हैं। इनमें रेप, हत्या की कोशिश, जान से मारने की धमकी और मारपीट जैसे संगीन मुकदमे हैं। हालांकि हाजी यूनुस कह रहे हैं कि उनपर कोई गंभीर केस नहीं है और जो भी मामले हैं वो पारिवारिक विवादों से जुड़े हैं। हाजी यूनुस ने कहा कि अगर हमारी सरकार बन गई और उनके नेता मुख्यमंत्री बन गए तो उनके मुकदमे भी एक घंटे में खत्म हो जाएंगे।
आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की लिस्ट लंबी है। मदन सिंह कसाना ऊर्फ मदन भैया को आरएलडी ने लोनी सीट से चुनाव मैदान में उतारा है। लोनी इलाके में उनका खौफ है, उनकी छवि एक बाहुबली नेता की है। कुछ दिन पहले जब सीएम योगी आदित्यनाथ नोएडा में चुनाव प्रचार के लिए आए थे तब उन्होंने मदन भैया का नाम लेकर समाजवादी पार्टी पर निशाना भी साधा था। मदन भैया ने शुक्रवार को अपने राजनीतिक विरोधियों को चेतावनी देते हुए कहा कि वे हद में रहकर चुनावी बातें करें, वरना याद रखें कि उनका नाम मदन भैया है। जब इंडिया टीवी के रिपोर्टर ने मदन भैया से कहा कि यह तो धमकी वाला अंदाज है, इसीलिए लोग आपको बाहुबली कहते हैं। इस पर मदन भैया ने कहा-‘बाहुबली होना बुरा नहीं है, बाहुबली तो बजरंगबली भी हैं।’ मदन भैया ने कहा, उनके खिलाफ केवल दो मामले लंबित हैं और दोनों राजनीति से प्रेरित हैं।
एक बात तो हम सबने देखी कि यूपी में योगी सरकार ने अपने पांच साल के शासन में अपराधियों, गैंगस्टर्स और असामाजिक तत्वों के खिलाफ जबरदस्त एक्शन लिया। उनकी प्रॉपर्टी जब्त की, सरकारी जमीनों से कब्जे को हटाया। करीब 1500 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति वसूली। योगी सरकार आने से पहले किसी ने ऐसा नज़ारा नहीं देखा था कि अपराधी हाथ जोड़कर, गले में तख्ती लटकाकर थाने में पहुंचे और कहे कि जेल भेज दो वरना पुलिस ठोक देगी। क्या पहले कभी किसी ने देखा कि अदालत में अपराधी अपनी जमानत को रद्द करवाने के लिए आवेदन दे और कहे कि उसे जेल जाना है। जेल में वो ज्यादा सुरक्षित है। जेल से बाहर पुलिस एनकाउंटर कर देगी।
यह सही है कि योगी ने अपराधियों के दिल में कानून, पुलिस और प्रशासन का खौफ तो पैदा किया है। इसमें कोई दो राय नहीं है। योगी के राजनीतिक विरोधी भी इस बात को मानते हैं। लेकिन राजनीति का अपराधीकरण और अपराधियों का राजनीति में आना आज भी जारी है। इसे रोकने के लिए कानून भी बनाए गए लेकिन अपराधी उससे बचने का रास्ता ढूंढ लेते हैं। कानून यह है कि अगर किसी को दो साल से ज्यादा की सजा होती है तो वह चुनाव नहीं लड़ सकता। लेकिन सजा होने में 20 साल लग जाते हैं, तब तक वो कई बार चुनाव लड़ चुका होता है और कई बार तो मंत्री भी बन चुका होता है। दूसरी बात यह है कि अपराधियों के खिलाफ कितने केस चल रहे हैं, इसकी जानकारी जनता को नहीं होती।
इस बार चुनाव आयोग ने यह नियम बनाया था कि उम्मीदवारों को अपने आपराधिक रिकॉर्ड का पूरा ब्यौरा अखबारों में छपवाना होगा। जनता को बताना होगा। साथ ही राजनीतिक दल जिन लोगों को टिकट देंगे उनके खिलाफ चल रहे मामलों की जानकारी वेबसाइट पर डालनी होगी। अब यह नियम तो बन गया लेकिन जब हमारे रिपोर्टर्स ने समाजवादी पार्टी की आधिकारिक वेबसाइट देखी तो पता चला कि ब्यौरा तो अपलोड किया गया है लेकिन उसे देखकर कोई समझ ही नहीं सकता कि किसके खिलाफ कौन से अपराध का केस चल रहा है। वेबसाइट पर तमाम धाराएं लिख दी गई हैं जिससे आम आदमी यह नहीं समझ पाता कि अपराधी कितना बड़ा है और उस पर किस अपराध के लिए केस दर्ज हुआ है। चुनाव आयोग को इस कमी पर ध्यान देना चाहिए।
How criminals in UP are back in the electoral fray?
BJP’s chief ministerial candidate Yogi Adityanath on Friday set the tone and focus of his party’s campaign, by speaking out against ‘bahubali’ politicians who wield the gun, and have a past record of many criminal cases. He said, there were several “rioters” (danga-premi) and “tamachawaadi” (gun toting criminals) in the list of SP candidates. “The people of UP are no more escapist, they want progress and a state free from riots and criminals”, Yogi said.
The UP chief minister claimed that rioters and gangsters were on the run for the last five years during his rule, but many of them have now been given tickets by Akhilesh Yadav. Yogi alleged that the masterminds of Saharanpur and Muzaffarnagar riots and those behind the exodus of Hindus from Kairana have now become SP candidates.
I sent India TV reporters to check the affidavits filed by such candidates having criminal backgrounds, and the cases mentioned in those affidavits are eye-openers.
Take for instance, Kairana, from where exodus of Hindus took place five years ago due to threats from gangsters belonging to other community. SP has given ticket to Nahid Hasan, the MLA from Kairana. When he went to file his nomination, he was promptly arrested by police and sent to judicial custody.
There are 17 cases against Nahid Hasan, which include attempt to murder, rioting, cheating, criminal conspiracy, and creating ill-will between communities. Sections of Goonda Act and Gangster Act have also been added in these cases. A year ago, Nahid Hasan was declared absconder by a local court, but soon after getting SP ticket, he went to file his nomination papers. He was arrested and sent to 14 days’ judicial custody. Since there are slim chances of him getting bail, his sister Iqra Hasan has filed nomination as an independent for backup. Iqra claims that most of the cases filed against her brother were fake. The fact is, many of the cases out of the total number of 17 were filed against Nahid Hasan, even before Yogi came to power.
In Dhaulana seat of Hapur, Aslam Choudhary has been given the SP ticket. There are ten criminal cases including those of attempt to murder, pending against him. Other cases include threat to life, forcible occupation of land, rioting and making inflammable speeches. Cases under Gangsters Act have been lodged against Choudhary. When asked by India TV reporter, Aslam Choudhary said, most of the cases were false. Instead, he alleged that there were criminal cases against chief minister Yogi too. “How can he become a saint and I, a criminal?”, he asked. Aslam Chaudhary was BSP MLA, who joined SP recently. In his affidavit, he mentioned only 10 cases, but police records show, there are 21 cases pending against him.
In Meerut City, Rafiq Ansari is the SP candidate. He has a criminal case of attempt to murder filed in 2007, but he got a stay on from High Court on his arrest warrant issued by a lower court. Ansari is the sitting SP MLA.
There is another example. Haji Younus, the RLD candidate from Bulandshahr, has a criminal case of attempt to murder since Akhilesh Yadav’s rule, but Haji Younus says, the case is false. The fact is, there are seven cases of attempt to murder, attempt to rape, giving threat of life and other charges, against him. Haji Younus claims, most of these cases are related to family disputes. He says, if we have our own chief minister after polls, we will get all these cases closed, within an hour.
The list of candidates with criminal background is long. Madan Singh Kasana alias Madan Bhaiya, is the RLD candidate from Loni, Ghaziabad. He is feared in his locality for his ‘bahubali’ image. A few days ago, Yogi Adityanath mentioned his name during his poll campaign in Noida. On Friday, Madan Bhaiya warned his political rivals that they should remain within limits while criticizing him, “otherwise they must remember that my name is Madan Bhaiya”. When India TV reporter met him, Madan Bhaiya said, “it is not a shame if one becomes a Bahubali. Even Bajranbali (Lord Hanuman) was a ‘bahubali’”. He said, he had only two cases pending against him, and both were politically motivated.
It is an acknowledged fact that during the five years of Yogi’s rule, stringent action was taken against gangsters, criminals and anti-social elements. Properties of mafia gangsters were seized and in several cases demolished by using bulldozers. Forcible occupation of government land by mafia gangsters was removed in several cases.
More than Rs 1,500 crore worth properties were recovered. People of UP never saw in the past, videos of gangsters putting placards round their necks, begging police to arrest them and put in jail, before they die in encounters. Did anybody see in the past, criminals filing petitions in courts pleading for cancellation of their bail, and opting for judicial custody, because they considered themselves safe inside jail?
Even his rivals admit that Yogi struck terror of police, administration and law in the hearts of criminals during five years of his rule, but even to this day, criminalization of politics and entry of criminals in politics continue to be rampant.
Despite enactment of laws barring entry of criminals in politics, they find ways to circumvent the law. The law says, anybody convicted even for two years imprisonment stands disqualified from contesting polls, but there are instances where it takes even up to 20 years for getting a conviction. By that time, the criminal, taking undue advantage of legal delay, contests elections several times, and in some cases, also becomes a minister. Secondly, the common public who go to polling booths to cast their votes, do not know about the cases pending against candidates.
This time, Election Commission has made it mandatory for candidates to publish the list of cases pending against them in newspapers for the benefit of voters. Political parties, the EC has said, must put on their websites the list of cases pending against their official candidates.
Our reporters checked the official website of Samajwadi Party and found that the cases were uploaded, but nobody can clearly understand what are the cases pending against the candidates. Only sections of IPC and CrPC are mentioned, and the common man never understand the charges under which these sections have been mentioned. The Election Commission should go through this point and plug the loopholes.
अखिलेश- जयंत गठबंधन को लेकर पश्चिमी यूपी में असमंजस !
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल रहे हैं। पश्चिमी यूपी में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के बीच सीटों को लेकर हुए समझौते पर भी मुश्किलों के बादल मंडरा रहे हैं। दरअसल,अखिलेश यादव ने जिन सीटों के लिए राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) से समझौता किया था और जिन सीटों पर आरएलडी के लोगों को टिकट दिए, उनमें से कई उम्मीदवारों के खिलाफ बगावत हो गई है। स्थानीय जाट नेता समाजवादी पार्टी द्वारा मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारने का विरोध कर रहे हैं। आरएलडी सुप्रीमो जयंत चौधरी के लिए इन उम्मीदवारों को संभालना मुश्किल हो गया है। वहीं एक अन्य घटनाक्रम में समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया है। उधर, समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के एक और करीबी रिश्तेदार ने गुरुवार बीजेपी का दामन थाम लिया।
सबसे पहले आपको मथुरा की मांट विधानसभा सीट का हाल बताता हूं। सपा और आरएलडी के बीच मतभेदों का जीता-जागता उदाहरण इस सीट पर देखा जा सकता है। यहां समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन का एक उम्मदीवार पहले ही आरएलडी के चुनाव निशान पर पर्चा भर चुका है। अब इसी सीट पर समाजवादी पार्टी के टिकट पर दूसरे उम्मीदवार ने भी नामांकन कर दिया है। इस सीट पर सपा प्रत्याशी संजय लाठर और आरएलडी प्रत्याशी योगेश नौहवार ने पर्चा दाखिल किया है। यह कंफ्यूजन इसलिए हुआ क्योंकि पहले यह सीट आरएलडी को देने का फैसला हुआ था। इसलिए जयंत चौधरी ने योगेश नौहवार को चुनाव निशान एलॉट कर नामांकन दाखिल करने को कहा और योगेश नौहवार ने पर्चा भर दिया। लेकिन बाद में अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी से बात की और यह सीट समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को देने को कहा। अखिलेश की बात जयंत चौधरी मान गए और मांट सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार संजय लाठर ने पर्चा भर दिया।
संजय लाठर कह रहे हैं कि उन्हें पूरा भरोसा है कि योगेश नौहवार मान जाएंगे। लेकिन नौहवार अड़े हुए हैं। उनका कहना है कि वे तभी इस सीट से अपना नामांकन वापस लेंगे जब आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी खुद यहां से चुनाव लड़ेंगे। नौहवार का कहना है कि वे केवल 432 वोटों के मामूली अंतर से पिछला चुनाव हारे थे और इस बार इस सीट को नहीं बचा सके तो इसे दुर्भाग्य समझेंगे। योगेश नौहवार अगर किसी दबाव में जयंत चौधरी की बात मानते हुए पर्चा वापस ले लेते हैं तब भी वे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के लिए उतनी मेहनत तो नहीं करेंगे जिसकी उम्मीद जयंत चौधरी और अखिलेश यादव को होगी। अब इन दोनों में से जो उम्मीदवार भी मैदान से हटेगा वह दूसरे को जिताने के लिए जमीन पर काम तो नहीं करेगा। ऐसी मुश्किल कई सीटों पर है।
मेरठ की सिवालखास विधानसभा सीट को लेकर सपा और आरएलडी के अंदर तीन दिन से जंग छिड़ी हुई है। समाजवादी पार्टी के साथ हुए समझौते के तहत यह सीट आरएलडी को मिली है। लेकिन जयंत चौधरी ने समाजवादी पार्टी के नेता गुलाम मोहम्मद को आरएलडी का चुनाव चिन्ह दे दिया है। यानि चुनाव निशान राष्ट्रीय लोकदल का लेकिन उम्मीदवार समाजवादी पार्टी का। इस बात से आरएलडी के नेता नाराज हैं।
सिवालखास से समाजवादी पार्टी के नेता गुलाम मोहम्मद पिछला चुनाव हार गए थे। सीटों के बंटवारे के तहत अखिलेश यादव ने यह सीट आरएलडी को दे दी। आरएलडी के नेता चाहते थे कि किसी जाट नेता को मैदान में उतारा जाए और राजकुमार सांगवान को टिकट दिया जाए। लेकिन सिवालखास सीट आरएलडी को देने पर गुलाम मोहम्मद ने विरोध कर दिया। तब रास्ता यह निकाला गया कि गुलाम मोहम्मद आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़ लें। लेकिन अब आरएलडी में बगावत हो गई। राजकुमार सांगवान के समर्थकों ने जगह-जगह हंगामा शुरू कर दिया। सिवालखास विधानसभा क्षेत्र में कई जगह समाजवादी पार्टी और आरएलडी के कार्यकर्ताओं में भिड़ंत हुई है। आरएलडी के समर्थक गुलाम मोहम्मद के समर्थकों को प्रचार से रोक रहे हैं, गांवों में घुसने नहीं दे रहे हैं।
गुलाम मोहम्मद को टिकट देने पर आरएलडी में इस हद तक नाराजगी है कि कई जगह पार्टी सुप्रीमो जयंत चौधरी के खिलाफ नारेबाजी की गई। आरएलडी के झंडे और बैनर तक जलाए गए। उधर, गुलाम मोहम्मद ने कहा कि कोई विरोध नहीं हैं, राजकुमार सांगवान से उनकी बात हो गई है और वो मान गए हैं। हालांकि गुलाम मोहम्मद को टिकट देने से जाटों की उपेक्षा का मैसेज निचले स्तर तक गया है। जाट समर्थकों के बीच यह संदेश गया है कि उनके दावों की अनदेखी की गई है।
उधर, गौतमबुद्धनगर जिले की जेवर विधानसभा सीट पर गुर्जर नेता अवतार सिंह भड़ाना ने चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा था कि वे कोरोना से पीड़ित होने के चलते चुनाव मैदान से बाहर हो रहे हैं। भड़ाना बीजेपी छोड़कर आरएलडी में शामिल हुए थे। उन्होंने तीन दिन पहले पर्चा भी दाखिल कर दिया था। भड़ाना के इस ऐलान के बाद पार्टी की ओर से एडवोकेट इंद्रवीर भाटी को मैदान में उतारने का फैसला किया गया लेकिन देर रात भड़ाना ने ट्वीट किया कि उनकी आरटी-पीसीआर रिपोर्ट निगेटिव आई है, वह आरएलडी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। सूत्रों के कहना है कि भड़ाना ने अपने विधानसभा क्षेत्र में एक सर्वे कराया था और उसमें यह पाया कि बीजेपी बड़े अंतर से चुनाव जीतने जा रही है। इस वजह से उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया था लेकिन देर रात उन्होंने अपना मन बदल लिया।
उधर, बागपत के पास छपरौली विधानसभा सीट से आरएलडी ने पूर्व विधायक वीरपाल राठी को उम्मीदवार बनाया था जिसका जबरदस्त विरोध हुआ। नाराज लोग दिल्ली में चौधरी जयंत सिंह के घर पहुंच गए और उम्मीदवार बदलने की मांग करने लगे। लोगों ने जयंत चौधरी से यहां तक कह दिया कि अगर छपरौली से उम्मीदवार नहीं बदला गया तो जाट पंचायत बुलाई जाएगी और नए उम्मीदवार को निर्दलीय लड़ाया जाएगा। लोगों के विरोध के बाद जयंत चौधरी ने छपरौली से वीरपाल राठी को हटाकर अजय कुमार को उम्मीदवार बनाया है।
आमतौर पर नेता और कार्यकर्ता तब तक आपस में लड़ते हैं जब तक टिकट फाइनल नहीं हो जाता लेकिन समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल में उम्मीदवारों के नाम का ऐलान होने के बाद बगावत होना अच्छे संकेत नहीं हैं। इसके दो मतलब हो सकते हैं, पहली बात यह हो सकती है कि पार्टी के बड़े नेताओं अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने तो हाथ मिला लिया लेकिन निचले स्तर पर दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के दिल नहीं मिल पाए। दूसरी बात यह हो सकती है कि उम्मीदवारों का चयन करते समय इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि उनके खिलाफ अपने ही लोग आवाज उठा सकते हैं।
अगर पहले फेज से ऐसा माहौल बना तो अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। पश्चिमी यूपी में पहले चरण के चुनाव में सपा का सिर्फ आरएलडी के साथ गठबंधन है। लेकिन यूपी के बाकी इलाकों में तो बहुत सारी छोटी-छोटी पार्टियां हैं। सबकी अपनी-अपनी मांग है। इन पार्टियों के नेता काफी मुखर हैं। वे अपनी पार्टी के लिए और अपनी जाति के लिए खुलकर लड़ते हैं। अगर उन सबकी बात मान ली गई तो अखिलेश की अपनी पार्टी के लिए सीटें कम पड़ जाएंगी और अपनी पार्टी के नेता नाराज हो जाएंगे।
भारतीय राजनीति में अक्सर कहा जाता है कि गठबंधन बनाना आसान होता है लेकिन चलाना बहुत मुश्किल। इसी तरह से परिवार के नाम पर राजनीति करना आसान होता है लेकिन पूरे परिवार को साथ लेकर चलना मुश्किल होता है। अखिलेश की लीडरशिप में मुलायम सिंह यादव का परिवार टुकड़ों में बिखर रहा है।
गुरुवार को मुलायम सिंह यादव के नजदीकी रिश्तेदार प्रमोद गुप्ता ने भी समाजवादी पार्टी छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए। गुप्ता औरैया जिले की बिधूना सीट से सपा के विधायक रह चुके हैं। वे मुलायम सिंह की पत्नी साधना गुप्ता के जीजा लगते हैं। पांच साल पहले विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने उन्हें टिकट नहीं दिया था। जिसके बाद प्रमोद गुप्ता अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। अब जबकि अखिलेश के चाचा सपा गठबंधन में शामिल हो गए तब प्रमोद गुप्ता को बिधूना सीट से टिकट मिलने की उम्मीद थी। लेकिन बिधूना से बीजेपी विधायक विनय शाक्य और उनके भाई के सपा में शामिल होने के बाद समीकरण पूरी तरह से बदल गए। लिहाजा, टिकट न मिल पाने पर गुप्ता बीजेपी में शामिल हो गए और उन्होंने आरोप लगाया कि अखिलेश ‘वन मैन शो’ चला रहे हैं और अपने पिता की भी नहीं सुन रहे हैं। गुप्ता ने आरोप लगाया कि अखिलेश अपने परिवार के एक-एक रिश्तेदार को दरकिनार कर रहे हैं।
अखिलेश ने गुरुवार को कहा कि वे अपने परिवार में ‘वंशवादी राजनीति को खत्म’ करने के लिए बीजेपी के आभारी है। यह बात गौर करनेवाली है कि जब मंत्री और नेता बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो रहेथे तो अखिलेश खुशी से माला पहनाकर उनका स्वागत कर रहे थे। ठीक उसी उत्साह से बीजेपी के नेता भी मुलायम सिंह परिवार से बीजेपी में आनेवाले लोगों को भगवा पट्टे पहनाकर स्वागत कर रहे हैं।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अखिलेश मुलायम सिंह के अपने इलाके में दबदबे का पूरा इस्तेमाल कर रहे हैं। गुरुवार को समाजवादी पार्टी की ओर से यह ऐलान किया गया कि अखिलेश मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। मैनपुरी से ही मुलायम सिंह लोकसभा के सांसद हैं। मुलायम सिंह की प्रारंभिक शिक्षा करहल में ही हुई थी। उन्होंने जैन इंटर कॉलेज से पढ़ाई पूरी की और उसी कॉलेज में लेक्चरर बने थे।
मुलायम सिंह ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत मैनपुरी से ही की थी। उन्होंने मैनपुरी, आजमगढ़ और इटावा में कड़ी मेहनत की और अपना जनाधार बनाया। उन्होंने लगातार इन इलाकों के गांवों की यात्रा की और समाजवादी पार्टी की स्थापना की। इस इलाके में मुलायम सिंह के प्रभाव की बड़ी वजह यह भी है कि यहां यादव और मुसलमान एकजुट हैं, और दोनों के बीच सह-अस्तित्व की भावना है। इलाके के यादव और मुसलमान मुलायम सिंह और उनके परिवार का काफी सम्मान करते हैं। करहल से चुनाव लड़ना राजनीतिक तौर पर अखिलेश यादव के लिए प्लस प्वाइंट है। वहीं समाजवादी पार्टी के इस फैसले पर बीजेपी सांसद सुब्रत पाठक ने कहा कि हार के डर से अखिलेश ने अपने पिता के चुनाव क्षेत्र की सुरक्षित सीट चुनी है।
बीजेपी के नेता चाहे जो भी कहें लेकिन वर्ष 2002 को छोड़कर कई दशकों से करहल की सीट समाजवादी पार्टी के लिए एक सुरक्षित सीट रही है। 2002 में इस सीट से जीत हासिल करनेवाले बीजेपी उम्मीदवार भी बाद में समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर की तरह मैनपुरी को भी समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने मैनपुरी की चार में से तीन विधानसभा सीटें जीती थी। इस बीच गुरुवार को भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ ने भी ऐलान कर दिया कि वह गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। चुनाव का नतीजा क्या होगा, यह बताने की ज़रूरत नहीं है।
Akhilesh-Jayant alliance: Confusion on ground in Western UP !
Political developments are taking place at a fast pace with differences arising among Samajwadi Party and RLD leaders over fielding of candidates in western UP. Local Jat leaders are protesting fielding of Muslim candidates by Samajwadi Party, and RLD chief Jayant Chaudhary is having a tough time persuading them to fall in line. In another development, SP supremo Akhilesh Yadav has decided to contest from Karhal assembly seat in Mainpuri district. Another close relative of SP patriarch Mulayam Singh Yadav joined BJP on Thursday.
A glaring example of differences between SP and RLD was evident from Maant assembly seat in Mathura district, where both SP and RLD candidates have filed nominations. SP candidate Sanjay Lather and RLD candidate Yogesh Nauwhar filed their nominations from the same seat. The confusion arose because Jayant Chaudhary had earlier given ticket to Yogesh Nauwhar, but after Akhilesh Yadav spoke to the RLD chief, the latter decided to give the seat to SP, and Sanjay Lather filed his nomination on bicycle symbol. Lather says, he is hopeful Nauwhar would agree and withdraw his nomination. Nauwhar is adamant. He says, he will withdraw only if RLD chief Jayant Chaudhary contests from this seat. He says, he lost the last election by a slender margin of 432 votes, and would not concede this seat this time. Even if Nauwhar withdraws his nomination under pressure from his party chief, there are chances of he and his supporters sabotaging the prospects of SP candidate Sanjay Lather.
Similarly, for Siwalkhas seat in Meerut, a tug-of-war has broken out between SP and RLD camps for the last three days. Under seat sharing agreement, SP gave this seat to RLD, but Jayant Chaudhary has given the ticket to SP candidate Ghulam Mohammed on RLD symbol. Local RLD workers are up in arms. They want the nomination to be given to their own candidate Raj Kumar Sangwan. Ghulam Mohammed, who lost last time, opposed this, and a way was found out for Ghulam Mohammed to contest on RLD symbol. Clashes between workers of RLD and SP have broken out at several places in Siwalkhas. RLD workers are not allowing Ghulam Mohammed’s supporters to enter Jat dominated villages for campaigning. RLD workers have even raised slogans against their own party chief Jayant Chaudhary and have burnt RLD flags and banners. Ghulam Mohammed claims, differences have been ironed out after he spoke to Raj Kumar Sangwan. However, the message has gone down among Jat supporters that their claims have been ignored.
In Jewar assembly seat of Gautam Budh Nagar district, local Gurjar stalwart Avtar Singh Bhadana on Thursday declared that he was opting out from the race because he was suffering from Covid. Bhadana had left BJP and joined RLD. He had filed his nomination three days ago. RLD decided to field advocate Indraveer Bhati in his place, but late at night, Bhadana tweeted that his RT-PCR report was found negative, and he would contest on RLD ticket. Insiders say, Bhadana carried out a survey in his constituency and found that the BJP was going to win by a big margin. It was because of this that he decided to opt out of the race, but late at night, he changed his mind.
In Chhaprauli near Baghpat, Jat supporters objected to the nomination of RLD candidate Veerpal Rathi and demanded that the candidate be changed. They threatened to call a Jat panchayat and field an independent. To stall the rebellion, RJD chief Jayant Chaudhary has now decided to field Ajay Kumar to replace Rathi.
Normally, party workers stage protests when their candidates fail to get party tickets, but in western UP, the picture is quite the opposite. Workers of both SP and RLD, supposed to be electoral allies, are attacking each other and threatening to sabotage their prospects. This is quite serious. The reasons could be: One, while the supremos of both parties join hands to form a coalition, workers and local leaders of both parties were yet to reconcile to the views of their party chiefs. Two, while selecting candidates, care was not taken to rule out possibility of their own supporters objecting to the choice of candidates.
Akhilesh Yadav will now have to tread carefully. In the first phase of polls in western UP, SP has only one ally, RLD, but in other regions of UP, he has allies belonging to smaller, local, caste-based parties. The headaches are definitely going to increase. Each of these smaller parties are quite demanding and vociferous. Their leaders prefer to look after the interests of their own castes and communities. If Akhilesh Yadav accedes to most of the demands of these smaller parties, he will have fewer seats left for his own party. His own party leaders may then revolt.
In Indian politics, it is often said, it is easy to form a coalition, but difficult to keep all constituents together. Similarly, it can be said, ‘to run a family is easy, but to keep the entire flock together is difficult’. Under Akhilesh Yadav’s leadership, the MSY family is breaking into pieces.
On Thursday, Mulayam Singh Yadav’s close relative Pramod Gupta left SP and joined BJP. Gupta was SP MLA from Bidhuna seat in Auraiya district. He is the brother-in-law of Mulayam Singh’s wife Sadhana Gupta. Akhilesh did not give him a ticket five years ago, after which Gupta joined Akhilesh’s uncle Shivpal Singh Yadav’s Pragatisheel Samajwadi Party. This time since Akhilesh’s uncle has joined the alliance, Gupta hoped to get a ticket from Bidhuna, but the equations changed completely after BJP MLA from Bidhuna Vinay Shakya and his brother joined SP. Failing to get a ticket, Gupta joined BJP and on Thursday, alleged that Akhilesh was running a “one-man show” and was not even listening to his father. Gupta alleged, Akhilesh is sidelining each one of his family relatives.
Reacting to this, Akhilesh Yadav on Thursday said, he was grateful to BJP for “ending dynastic politics” in the Yadav family. The contrast is striking. When ministers and leaders quit BJP and joined Samajwadi Party, an elated Akhilesh Yadav welcomed them with garlands. With the same enthusiasm, senior BJP leaders are now welcoming members of MSY family to the party by putting saffron scarves on their shoulders.
There is no denying the fact that Akhilesh Yadav is using to the hilt, the dominance that Mulayam Singh used to command in his region. On Thursday, it was announced that Akhilesh will contest assembly election from Karhal in Mainpuri, from where Mulayam Singh is the Lok Sabha MP. Mulayam Singh Yadav had his early education in Karhal. He studied in Jain Inter College, Karhal, and later became a lecturer in the same college.
Mulayam Singh began his political foray in UP from Mainpuri. He toiled hard in Mainpuri, Azamgarh and Etawah and created his electoral base. He constantly travelled to villages in this region and founded the Samajwadi Party. One big reason is that Yadavs and Muslims co-exist in this region, and they accord utmost respect to Mulayam Singh Yadav and his family. For Akhilesh Yadav, this is a plus point for him politically while contesting from Karhal. BJP MP Subrat Pathak said, Akhilesh has chosen a safe seat from his father’s constituency because he feared defeat.
Whatever BJP leaders may say, Karhal has been a safe seat for Samajwadi Party over several decades, except 2002 election. The BJP candidate who won in 2002, also later joined SP. In the last assembly elections, the SP won three out of four seats in Mainpuri, which is considered a citadel of Samajwadi Party, just like Gorakhpur, which is a citadel of UP CM Yogi Adityanath. On Thursday, Bhim Army chief Chandrashekhar Azad ‘Ravan’ declared he would contest against Yogi Adityanath in Gorakhpur. The result is a foregone conclusion.