कृषि कानूनों को वापस लेकर मोदी ने कैसे एक झटके में विपक्ष के हमलों की हवा निकाल दी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु नानक देव जयंती के दिन तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का ऐलान कर दिया। इन कानूनों को पिछले साल लागू किया गया था। अचानक हुए इस ऐलान ने नरेंद्र मोदी के कद को और बड़ा बना दिया है।
नरेंद्र मोदी ने सिर्फ कानून वापस लेने का ऐलान ही नहीं किया बल्कि हाथ जोड़कर देश से माफी मांगी। उन्होंने किसी गलती के लिए नहीं बल्कि ये कहकर माफी मांगी कि वो अच्छे कानूनों पर भी कुछ किसान भाइयों को समझा नहीं पाए। नरेन्द्र मोदी को देश के लोगों को समर्थन हासिल है। उनकी सरकार के पास संसद में सवा तीन सौ से ज्यादा सांसदों का समर्थन है और उनकी सरकार को किसी तरह का खतरा नहीं है। किसी तरह का कोई दबाव नहीं है। इसके बावजूद मोदी ने कहा कि वह तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने जा रहे हैं क्योंकि उनकी सरकार किसानों के एक वर्ग को नए कानून के लाभ समझा पाने में विफल रही।
उन्होंने कहा-‘ऐसा लगता है कि हमारी तपस्या में कोई कमी रह गई, क्योंकि हमारे कुछ किसान भाई इन कानूनों को मानने को तैयार नहीं हैं इसलिए हमलागों ने उन तीनों कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है।’ पीएम मोदी ने करीब एक साल से धरने पर बैठे आंदोलनकारी किसानों से घर लौटने की अपील की।
मैंने 40 साल की पत्रकारिता में इंदिरा गांधी से लेकर अब तक की सारी सरकारें देखी है। लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ जब प्रधानमंत्री ने बिना किसी लाग लपेट के देश के सामने आकर बिना गलती के माफी मांगी हो, सिर्फ इसलिए माफी मांगी हो कि वह सभी लोगों को कृषि कानून पर सहमत नहीं कर पाए। नरेंद्र मोदी ने यह दिखा दिया कि उन्हें स्टेट्समैन क्यों कहा जाता है। वो दुनिया के सबसे लोकप्रिय राजनेता क्यों हैं। पीएम मोदी को जो कहना था वो उन्होंने 17 मिनट में कहा और फिर से अपने काम में लग गए। लेकिन उनकी इस घोषणा से राजनीतिक जगत में खलबली मच गई।
गांधी परिवार से लेकर शरद पवार, लालू यादव, कैप्टन अमरिंदर सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू समेत लगभग सभी राजनीतिक नेताओं ने अपने रिएक्शन दिए। देर शाम किसान मोर्चा संयुक्त मोर्चा ने भी एक बयान जारी कर पीएम की घोषणा का स्वागत किया लेकिन कहा कि जबतक संसद में इन कृषि कानूनों को निरस्त नहीं किया जाता है तब तक आंदोलन जारी रहेगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में राकेश टिकैत, शिव कुमार शर्मा कक्काजी, दर्शन सिंह, गुरनाम सिंह चढ़ूनी और बलबीर सिंह राजेवाल जैसे किसान नेता क्या कदम उठाते हैं। साथ ही इस फैसले का असर यूपी, पंजाब, उत्तराखंड और अन्य राज्यों में होनेवाले चुनावों पर क्या पड़ता है, यह देखना भी दिलचस्प होगा।
अब इससे बड़ी बात क्या होगी कि देश का प्रधानमंत्री जनता के सामने आकर ये कहे कि उसने नेक नीयत और पवित्र हृदय और पूरी ईमानदारी से किसानों के हित के लिए कानून बनाया लेकिन कुछ किसान इससे सहमत नहीं हैं और उनकी सरकार इन्हें नहीं समझा पाई है, इसलिए कानूनों को वापस ले रहा हूं। ये उनके बड़े दिल को दर्शाता है। मुझे याद है,बहुत पुरानी बात नहीं है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अपने सहयोगी दलों के विरोध के बावजूद अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील साइन की थी। वामपंथी दल तो संसद में मनमोहन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी ले आए थे लेकिन मनमोहन सिंह ना पीछे हटे और ना माफी मांगी। हमारे पूर्व प्रधानमंत्रियों के ऐसे कई उदाहरण हैं।
लेकिन नरेंद्र मोदी ने ऐसा नहीं किया। उनकी सरकार ने किसान नेताओं के साथ कई दौर की बातचीत की। उनकी जरूरतों के मुताबिक कानून में संशोधन की पेशकश भी की, यहां तक कि कानूनों को लागू होने से भी रोके रखा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक्सपर्ट कमेटी द्वारा इस कानून की समीक्षा को लेकर भी सहमति जताई और अंत में यह कहकर इन कानूनों को वापस लेने का फैसला किया कि सरकार किसानों के एक वर्ग को समझा नहीं पाई। पीएम मोदी ने कहा कि उन्हें जिस दिन से जिम्मेदारी मिली उस दिन से पूरी ईमानदारी, निष्ठा और समर्पण के साथ किसानों की भलाई के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि नए कानून इसलिए बनाए क्योंकि वर्षों से कृषि विशेषज्ञों और किसानों की ओर से जरूरी सुधार लाने की मांग की जा रही थी।
मोदी ने कहा, उनकी सरकार ने छोटे और सीमांत किसान जो देश के किसान वर्ग का 80 फीसदी हिस्सा हैं, के लिए कई तरह की कल्याणकारी योजनाएं लागू की। देश में 10 करोड़ से ज्यादा छोटे और सीमांत किसान हैं जिनके पास दो हेक्टेयर से भी कम जमीन है। उन्होंने कहा कि इन छोटे किसानों को बीज, मार्केटिंग, फसल बीमा और आर्थिक सहायता मुहैया कराई गई है।
यह एक तथ्य है कि मोदी सरकार ने पिछले सात वर्षों में किसानों के कल्याण के लिए काफी कुछ किया है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत 1 लाख 62 हजार करोड़ रुपए सीधे देशभर के किसानों के खाते में ट्रांसफर किए गए। करीब1 हजार मंडियों को ई-नैम (e-NAM ) के तहत जोड़ा गया। अनाज के भंडारण के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर पर एक लाख करोड़ रुपए खर्च किया। क्रॉप लोन, माइक्रो-इरीगेशन, किसान क्रेडिट कार्ड, सॉइल हेल्थ कार्ड और फसल बीमा जैसी तमाम योजनाएं नरेन्द्र मोदी की सरकार ने शुरू की। उन्होंने कहा कि एमएसपी को और ज्यादा असरदार और पारदर्शी बनाने के लिए जल्द ही एक कमेटी बनाई जाएगी। ये कमेटी एमएसपी के साथ-साथ जीरो बजट खेती, नेचुरल खेती और फसल के पैटर्न को वैज्ञानिक तरीके से बदलने पर विचार विमर्श करेगी।
नरेन्द्र मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेकर बड़ा दिल दिखाया। उन्होंने किसानों से कहा कि आपकी भलाई के लिए और ज्यादा मेहनत करूंगा। अगर आप देश के सबसे बड़े नेता हैं तो आपकी सोच भी सबसे बड़ी होनी चाहिए। नरेन्द्र मोदी की बात को सिर्फ किसानों से जुड़े कानून की वापसी तक सीमित करके नहीं देखना चाहिए। मोदी ने जो किया वह एक जवाब है उन सब लोगों को जो कहते थे कि मोदी को अंहकार है। मोदी का ईगो बहुत बड़ा है। जिस प्रधानमंत्री को अहंकार हो वो टीवी पर आकर पूरे देश के सामने बिना किसी लाग लपेट और बिना किसी गलती के हाथ जोड़कर माफी नहीं मांगता।
बिना किसी कसूर के क्षमायाचना करने के लिए बहुत हिम्मत और बड़ा जिगर चाहिए। मुझे लगता है आज देश के किसी और शीर्ष नेता में ना इतनी हिम्मत है ना किसी के पास इतना बड़ा दिल है। नरेन्द्र मोदी देश के चुने हुए प्रधानमंत्री हैं। संसद में उनके पास पूर्ण बहुमत और कृषि सुधारों को लागू करने के लिए कानून बनाने की संवैधानिक शक्ति है। वह चाहते तो अपनी जिद पर अड़े रह सकते थे लेकिन मोदी ने साल भर से दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे किसानों की भावनाओं का ख्याल किया और उनका विश्वास जीतने के लिए गुरुपर्व का दिन चुना। मोदी ने गुरू नानक देव जी के बताए रास्ते का अनुसरण किया जिन्होंने अपने अनुयायियों को शांति और भाईचारे का अर्थ सिखाया।
यह न किसी की हार है और न किसी की जीत है। पीएम मोदी ने तो बड़ा दिल दिखाया लेकिन किसान मोर्चे के नेताओं ने देश के प्रधानमंत्री की इस भावना का सम्मान नहीं किया। उन्होंने अपनी जीत का ‘जश्न’ तो मनाया लेकिन आंदोलन वापस लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वे तब तक धरने पर बैठे रहेंगे जब तक संसद तीनों कृषि कानूनों को निरस्त नहीं कर देती और एमएसपी की गारंटी देने वाला एक नया कानून नहीं लाया जाता है। सबसे आपत्तिजनक टिप्पणी बीकेयू नेता राकेश टिकैत की ओर से आई। राकेश टिकैत ने कहा- ‘क्या वह किम जोंग-उन हैं कि जैसे ही वह टीवी पर घोषणा करेंगे, कानूनों को निरस्त कर दिया जाएगा?’
टिकैत की टिप्पणी पर गौर फरमाते हुए जरा सोचिए, जिस नेता के साथ 139 करोड़ लोगों का समर्थन है, जो पूर्ण बहुमत की सरकार का प्रधान और दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र का मुखिया है, वो हाथ जोड़कर विनम्रता के साथ कानून वापस लेने की बात कर रहा है और राकेश टिकैत उसकी तुलना नॉर्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग से कर रहे हैं। ये लोकतन्त्र और प्रधानमंत्री की विनम्रता का अपमान है। राकेश टिकैत के रुख से साफ है कि इस तरह के किसान नेता यही चाहते हैं कि देश में माहौल खराब हो। उनकी दुकान चलती रहे। ऐसे नेता किसानों के कल्याण के बजाय क्षुद्र राजनीति में ज्यादा रुचि रखते हैं।
टिकैत ने जिस अंदाज में बात की वह उनका हल्कापन दिखाता है। यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने ऐसा बेतुका बयान दिया है। टी20 वर्ल्ड कप में जब भारत पाकिस्तान से हार गया तो टिकैत ने कैमरे के सामने आकर कहा कि यह मैच मोदी सरकार ने हराया जिससे देश को हिंदू-मुसलमान में बांटा जा सके। अगर किसी ने टिकैत से अफगानिस्तान के संकट के बारे में पूछ होता तो शायद वो कहते कि किसान आंदोलन की तरफ से ध्यान बंटाने के लिए तालिबान को भी मोदी ही सत्ता में लेकर आए। इसलिए ऐसी सोच का आप कुछ नहीं कर सकते। आप टिकैत और उन जैसे लोगों से बेहतर की उम्मीद नहीं कर सकते।
पीएम मोदी ने जैसे ही शुक्रवार को टीवी पर कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया तब से राकेश टिकैत समेत तमाम दूसरे किसान नेता सकते में हैं। उन्हें कतई उम्मीद नहीं थी कि मोदी कृषि कानूनों को वापस लेंगे। सच तो ये है कि अगर ये आंदोलन खत्म हो गया तो इनमें से कई नेताओं की दुकान बंद हो जाएगी। इसीलिए मुझे लगता है कि अब सरकार एमएसपी का कानून ले आए, बिजली से जुड़े कानून में बदलाव कर दे और संयुक्त किसान मोर्चे की सारी मांगें मान ले तब भी संयुक्त किसान मोर्चे के नेता आंदोलन वापस नहीं लेंगे। ये किसान नेता मोदी को धन्यवाद देने के बजाए मोदी पर सवाल उठा रहे हैं, आंदोलन को आगे बढ़ाने पर अड़े हैं। वहीं दूसरी ओर प्रकाश सिंह बादल, कैप्टन अमरिंदर सिंह और शरद पवार जैसे अनुभवी विपक्षी नेताओं ने पीएम मोदी को धन्यवाद दिया।
कांग्रेस, एसपी, बीएसपी और अन्य नेताओं की प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि कृषि कानूनों को वापस लेने के पीएम मोदी के फैसले ने इन पार्टियों को झकझोर दिया है, जो आनेवाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी पर हमले शुरू करने की योजना बना रहे थे। लेकिन मोदी के इस फैसले से विपक्षी दलों को बड़ा झटका लगा है। ये नेता ये कह सकते हैं कि मोदी ने कानूनों को वापस इसलिए लिया क्योंकि उन्हें आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार का डर था। जबकि सच्चाई इसके विपरीत यह है कि तमाम विपक्षी दल किसी बड़े मुद्दे के अभाव में आनेवाले चुनावों में अपनी हार देख रहे हैं।
प्रियंका गांधी, मायावती, असदुद्दीन औवैसी और अखिलेश यादव कह रहे हैं कि मोदी ने यूपी के चुनाव को देखते हुए फैसला किया। अगर ऐसा है भी तो इसमें गलत क्या है? कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी भी तो जीतने के लिए मेहनत कर रहे हैं। बीजेपी भी अपनी जीत की रणनीति बनाकर उसके तहत काम करे और फैसले ले तो इसमें बुरा क्या है? पंजाब में कांग्रेस की सरकार ने चुनाव से पहले बिजली के रेट कम किए और पुराने बिल माफ कर दिए। ये फैसले भी तो चुनाव को देखकर ही लिए गए। यह भी गलत नहीं है।
दरअसल, मायावती और अखिलेश की परेशानी की असली वजह दूसरी है। इन पार्टियों को लगता था कि पश्चिम उत्तर प्रदेश और पूर्वांचल में मुस्लिम वोटों का धुव्रीकरण होगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन को जाटों का अच्छा समर्थन मिल रहा था। जाटों को बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है और पिछले चुनाव में पश्चिमी यूपी की 136 में से 103 सीटें बीजेपी ने जीती थी। मायावती और अखिलेश को लग रहा था कि इस बार जाट वोट बीजेपी से दूर होगा और इसका फायदा उन्हें मिलेगा। लेकिन मोदी ने एक ही झटके में सारा खेल पलट दिया।
शुक्रवार की सुबह कृषि कानून वापस लेने का ऐलान कर अपने विरोधियों को टेंशन में डालकर मोदी काम में लग गए हैं। कहा ये जा रहा था कि कृषि कानूनों से सबसे ज्यादा नाराजगी पश्चिम उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड में है और मोदी कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान करने के बाद सीधे बुंदेलखंड पहुंच गए। यहां उन्होंने किसानों की दुर्दशा के लिए ‘परिवारवादी’ दलों को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कांग्रेस, एसपी और बीएसपी का नाम लिए बगैर बुंदेलखंड के सूखाग्रस्त इलाके में पानी सप्लाई नहीं करने का आरोप लगाया। पीएम मोदी रानी लक्ष्मी बाई के जन्मदिन के मौके पर झांसी के किले भी गए। इसी किले से रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजाया था। इस बार मोदी ने सियासी जंग का ऐलान कर दिया।
How Modi, by repealing farm laws, has taken the wind out of the sails of opposition parties
On the day of Guru Nanak Dev Jayanati, Prime Minister Narendra Modi took the opportunity to announce repeal of all the three farm laws that were enacted last year. By making this sudden announcement, Modi enhanced his stature as a statesman.
With folded hands, he apologized to the people of India, not for committing a mistake, but for his government’s inability to convince a section of farmers about the advantages of the farm laws. Modi has the people of India behind him, his government has the support of more than 325 members in Parliament, there was no danger to his government, nor any pressure, and yet, Modi said he was going to get the farm laws repealed because his government failed to convince the farmers.
“It appears there might be some shortcomings in our ‘tapasya’ (labour), because some of our farmer friends are unwilling to accept these laws, that is why we have decided to repeal them”, he said. Modi appealed to the agitating farmers who has been sitting on dharna for nearly a year, to return home.
In my 40 years of experience in journalism, I have seen many governments, including that of Indira Gandhi, but never witnessed a prime minister like Modi, who did not hesitate to humbly apologize to the people, for no mistakes that he had committed. Modi showed to the people why he is the most popular political leader and statesman on the planet. He spoke for 17 minutes and went to his routine work, but his announcement caused tremors in the political space.
There were reactions from almost all political leaders, ranging from the Gandhis to Sharad Pawar, Lalu Yadav, Capt. Amarinder Singh, Navjot Sidhu and others. Late in the evening, the farmers’ front Samyukta Kisan Morcha issued a statement welcoming the PM’s announcement but said the agitation will continue till the farms laws are finally repealed in Parliament. It will now be interesting to watch how farm leaders like Rakesh Tikait, Shiv Kumar Sharma Kakkaji, Darshan Singh, Gurnam Singh Chaduni and Balbir Singh Rajewal will respond in the coming days. It will also be interesting to watch the effects of this announcement on forthcoming polls in UP, Punjab, Uttarakhand and other states.
For a prime minister to come and tell his people that he had made the farm laws with “good intent, utmost sincerity and with a clear heart”, and then announce that he was repealing the three laws because his government failed to convince a section of farmers, shows his large-heartedness. I remember how the then Prime Minister Dr Manmohan Singh stuck to his stand on India-US nuclear deal despite strong opposition from his Left allies, who had brought a no-confidence motion against him in Parliament. Dr Manmohan Singh did not change his stand nor did he offer apology. There are many such examples of our former prime ministers.
Modi did not follow this line. His government held several rounds of talks with farmer leaders, offered to amend the laws to suit their requirements, even suspended the implementation of the laws, agreed to a Supreme Court appointed experts committee to re-examine the laws, and, at the end, decided to repeal them by saying it could not convince a section of farmers. On Friday, Modi said, he wanted farming to be profitable for the agriculturists and wanted to improve the conditions of farmers. He said, he framed the new laws because, for years, there had been demands from farm experts and farmers for bringing much-needed reforms.
Modi said, his government has implemented many welfare schemes for the benefit of small and marginal farmers, who constitute 80 per cent of India’s farming community. There are more than 10 crore small and marginal farmers who have land holdings of less than two hectares. Seeds, marketing, crop insurance and monetary help have been provided to these small farmers, he said.
It is a fact that Modi government has done a lot for the welfare of farmers in the last seven years. Rs 1.62 lakh crore money was sent directly to the bank accounts of farmers across India under Pradhan Mantri Kisan Samman Nidhi Yojana. Nearly 1,000 agriculture marketing centres (mandis) have been connected through e-NAM (electronic National Agricultural Market), Rs 1 lakh crore was spent on foodgrains storage, crop loan, micro-irrigation, kisan credit cards, soil health cards and crop insurance schemes have been implemented. He promised to set up an experts committee for transparent fixing of minimum support prices. He also promised to introduce zero budget natural farming and scientifically change crop patterns.
Whatever Modi as PM did on Friday (by repealing farm laws) should not be seen in isolation. In his own inimitable style, he effectively replied to those who were alleging that Modi was egotist and arrogant. An egotistic prime minister will never come before the nation and offer unconditional ‘apology’ with folded hands, for not being able to convince a section of farmers, particularly when he committed no mistakes.
This requires large heartedness and courage, which, I think, none of the leading politicians in India presently have. Modi is an elected prime minister, commanding a clear majority in Parliament. He has the Constitutional power to frame laws for ushering in agricultural reforms. Had he wanted, he could have stuck to his stand and refused to yield. But a statesman like Modi, who has grown from humble roots, know the difficulties that farmers went through while sitting on dharna for more than a year, on the borders of Delhi, braving summer and harsh winter. He respected the sentiments of Indian farmers and selected the sacred day of Guru Nanak Dev Jayanti to announce that he was repealing the farm laws. He followed the path of Guru Nanak, who taught his followers the meaning of peace and brotherhood.
Modi displayed his large heartedness, but the farmer leaders, while celebrating their ‘victory’ refused to call off their agitation. They said, they would continue to sit on dharna till Parliament repeals the three farm laws, and a new law to give statutory guarantee for minimum support prices is brought. The most objectionable comment came from BKU leader Rakesh Tikait who said, “is he Kim Jong-un that the laws will be repealed as soon as he makes the announcement on TV?”
Just notice the sheer arrogance in Tikait’s remark. Modi is an elected leader who represents 139 crore Indians and is the leader of the world’s most populous democracy. To compare Modi with the North Korean dictator is an outrageous insult to Indian democracy. It is an insult to the Prime Minister’s sense of humility. Farmer leaders like Tikait want disorder and anarchy in India. Such leaders are more interested in petty politics rather than the welfare of farmers.
It is not the first time that Rakesh Tikait has made such a ludicrous statement. When India lost to Pakistan in T20 World Cup, Tikait said in front of TV cameras that it was Modi who caused Team India’s defeat, so that Hindus and Muslims could be polarized. Had any reporter asked him about Afghanistan, Tikait would have replied that it was Modi who brought in the Taliban to power in order to divert people’s attention from farmers’ agitation. You cannot expect better from Tikait and his ilk.
All the farmer leaders, including Tikait, were shocked on Friday morning when Modi suddenly announced repeal of the three laws. It has taken the wind out of their sails. What I feel is: even if the government brings statutory MSP law, effects changes in electricity law, or accepts all the other demands of farmers leaders, they are not going to withdraw their agitation. Instead of thanking Modi for his large heartedness, they are now adamant about carrying on with the agitation. On the other hand, experienced political leaders like Sharad Pawar, Capt Amarinder Singh and Parkash Singh Badal have thanked Modi for repealing the farm laws.
Going through the reactions of Congress, SP, BSP and other leaders, it is clear that Modi’s sudden decision to repeal the farm laws has shocked these parties, which were planning to launch attacks on BJP during the forthcoming assembly polls. It has taken the wind out of their sails. These leaders may well say that Modi repealed the laws because he feared BJP’s defeat in the forthcoming assembly polls. The fact is the opposite: these parties are now staring at defeat in the forthcoming polls, in the absence of a single big issue.
Priyanka Gandhi, Mayawati, Asaduddin Owaisi and Akhilesh Yadav claimed that Modi took this step because of UP polls. If that is so, what is wrong in that? There is nothing wrong if the BJP changes and reformulate its strategy. In Punjab, the Congress government slashed power tariff and condoned all electricity arrears in view of forthcoming polls.
In reality, both the SP and BSP expected polarization of Muslim votes in western UP and Purvanchal. The farmer leaders were getting good support from Jat voters in western UP. Most of the voters earlier used to be BJP supporters. BJP had won 103 out of 136 assembly seats in western UP during the last elections. Both Akhilesh Yadav and Mayawati were hoping to get support from Jat voters this time, but, with a single strike, Modi has put paid to all such ambitions.
Modi has thus changed the emerging political game in western UP by repealing the farm laws. The political wind that was blowing in UP will now change after Modi’s announcement. The opposition parties are now confused and are in a quandary.
After putting the opposition on the defensive by making his Friday morning announcement, Modi went to Bundelkhand where he lashed out at “parivarwadi” (pro-dynasty) parties for ignoring the plight of farmers. He blamed the Congress, SP and BSP, without naming them, for not ensuring water supply in the dry region of Bundelkhand. Modi also went to the famous Jhansi fort, from where Rani Laxmibai had sounded the war bugle against the British. This time, it was Modi sounding the war bugle for the forthcoming elections.
यमुना की सफाई जल्द कराएं, दिल्ली के लोगों को बचाएं
दिल्ली की हवा सांस लेने लायक नहीं है और काली हो चुकी यमुना का पानी हाथ से छूने लायक नहीं है। सरकारों के रुख को देखकर लगता है कि दिल्ली की हवा के जहर को ताजी हवा ही खत्म करेगी जो पिछले एक पखवाड़े से दिल्ली पर मंडरा रही जहरीली हवा को अपने साथ बहाकर ले जाएगी। यह ताजी भी हवा करीब तीन दिन के बाद चलेगी। वहीं यमुना का पानी साफ होने में अभी तीन साल और लगेंगे।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को यमुना को साफ करने का एक्शन प्लान जारी करते हुए इसकी डेडलाइन भी तय कर दी। केजरीवाल ने वादा किया है कि फरवरी, 2025 तक यमुना साफ हो जाएगी। उन्होंने यमुना को साफ करने के लिए छह-सूत्रीय कार्य योजना का अनावरण किया। इस योजना में नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) की स्थापना, मौजूदा एसटीपी की क्षमता में वृद्धि और नई तकनीकी का उपयोग शामिल है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रदूषित पदार्थ नदी तक नहीं पहुंच सकें। उन्होंने सभी स्लम्स एरिया में सार्वजनिक शौचालयों की नालियों को बड़े सीवर नेटवर्क से जोड़ने और बरसाती नालों को प्रदूषित होने से रोकने का वादा किया है।
केजरीवाल ने वादा किया कि वह खुद अगले विधानसभा चुनावों से पहले यमुना में डुबकी लगाएंगे। मौजूदा समय में यमुना बेहद प्रदूषित हो गई है। इसका पानी बेहद गंदा हो चुका है। राजधानी में यमुना के 23 किलोमीटर के हिस्से में 22 नाले इसमें गिरते हैं। केजरीवाल जानते हैं कि दिल्ली में यमुना को साफ करना कोई नामुमकिन काम नहीं है, हालांकि ये बहुत मुश्किल काम है। इससे पहले भी केजरीवाल ने कम से कम पांच बार यमुना को साफ करने का वादा किया था। अब गुरुवार को उन्होंने एक नई डेडलाइन दे दी है।
केजरीवाल का कहना है कि यमुना पिछले 70 वर्षों में इतनी गंदी हो चुकी है कि इसे दो दिनों में साफ नहीं किया जा सकता है। केजरीवाल ने कहा-‘हमने युद्धस्तर पर काम शुरू कर दिया है और 6 सूत्री योजना के एक-एक प्वॉइंट को मैं खुद मॉनिटर करूंगा। मैंने हर प्वाइंट के लिए एक डेडलाइन फिक्स कर दिया है। 2025 में होनेवाले दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले दिल्ली के लोग साफ यमुना में डुबकी लगा सकेंगे।’
दिल्ली में यमुना की मौजूदा स्थिति क्या है? यहां यमुना के किनारे खड़े होकर आप सांस नहीं ले सकते। इतनी बदबू आती है और अगर गलती से इसके काले हो चुके पानी में हाथ लगा दिया तो दर्जनों बीमारियां साथ लेकर आएंगे। आखिर यमुना का पानी इतना गंदा क्यों है? इस सवाल का जबाव समझने के लिए किसी वैज्ञानिक अध्ययन की जरूरत नहीं है। इस नदी में रोजाना 18 बड़े और 24 छोटे नालों का पानी गिरता है।
हरियाणा की ओर से बहकर आनेवाली यमुना वजीराबाद बराज तक साफ रहती है जहां से पीने के पानी की सप्लाई के लिए इसके पानी को जमा किया जाता है। लेकिन असली दिक्कत इसके बाद शुरू होती है। दरअसल वजीराबाद बैराज के थोड़ा आगे नजफगढ़ नाले से इंडस्ट्रियल वेस्ट और सीवर का पानी यमुना में मिल जाता है। यह नाला यमुना में गिरने वाला सबसे बड़ा नाला है। यह नाला ही यमुना नदी को एक नाले में तब्दील कर देता है। शाहदरा नाला और बारापुला नाला सहित 17 अन्य बड़े नाले भी इस नदी में गिरते हैं। दिल्ली के 34 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में से अधिकांश 60 फीसदी क्षमता के साथ ही काम कर पाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो दिल्ली में 720 MGD (मिलियन गैलन रोजाना) गंदा पानी रोज निकलता है और इसमें से करीब पांच सौ MGD ही ट्रीट हो पाता है बाकी गंदा पानी यमुना में चला जाता है। झुग्गी बस्तियों की सारी गंदगी सीधे यमुना में गिरती है।
इससे पहले जब यमुना तुलनात्मक रूप से साफ थी तो इस नदी में मछलियों की 52 प्रजातियां पाई जाती थीं। अब केवल मछलियों की एक प्रजाति ही पाई जाती है और वो भी तेजी से विलुप्त होने के कगार पर है। इसकी वजह ये है कि यमुना के पानी में ऑक्सीजन का लेवल गिरकर जीरो हो गया है।
आमतौर पर नदियों के पानी का pH वैल्यू 7.4 होता है यानी ये पानी पीने लायक होता है। लेकिन दिल्ली में ज्यादातर जगहों पर यमुना के पानी का pH वैल्यू 11.4 तक है। अगर आम भाषा में कहें तो यह पानी छूने लायक भी नहीं है। यह पानी स्किन को जला सकता है। आमतौर पर घरों में आप अक्सर पानी का टीडीएस (Total Dissolved Solids) देखते होंगे। अगर RO से निकलने वाले पानी का टीडीएस बढ़ जाए तो पानी का स्वाद बदल जाता है। पीने लायक पानी का TDS 100 से कम हो तो बेहतर माना जाता है लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि दिल्ली में यमुना के पानी का TDS 1100 तक देखा गया है।
इसका मुख्य कारण यमुना में गिरने वाली वो नाले और नालियां हैं जो जीवनदायिनी यमुना को जहरीला बना देते हैं। सोचिए जिस पानी के पास खड़े होना मुश्किल हो उस पानी से सब्जियां उगाई जाएं तो वो सब्जियां कितनी जहरीली होंगी। यमुना के किनारे सब्जियां उगाकर उन्हें बाजारों में बेचा जाता है। इसीलिए सरकार ने यमुना के किनारे सब्जी की खेती पर रोक लगा रखी है। यमुना के गंदे पानी के कारण इन सब्जियों में ज्यादातर जहरीले पदार्थ होते हैं। दिल्ली में यमुना का पानी न केवल त्वचा की गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है, बल्कि आपके लिवर, किडनी और अन्य अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। यह कैंसर और जैनेटिकल डिसऑर्डर का कारण बन सकता है।
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि नदी ख़ुद को साफ करती है लेकिन इसके लिए ये जरूरी है कि नदी में बहाव बना रहे। दिल्ली में आने से पहले यमुना साफ रहती है और फिर दिल्ली से निकलने के बाद औरैया पहुंचते-पहुंचते काफी हद साफ हो जाती है। दिल्ली में यमुना का ज्यादातर पानी खींच (वाटर सप्लाई के लिए) लिया जाता है और बदले में नाले का पानी छोड़ दिया जाता है। बरसात के मौसम को छोड़ बाकी समय में दिल्ली में यमुना सूखी रहती है। फिर ऐसे यमुना को साफ करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। सवाल ये है कि दिल्ली के लोगों की प्यास बुझाने के लिए यमुना से पानी लेना जरूरी है तो फिर क्या किया जाए?
इसका एक ही उपाय है। सबसे पहले नालों के पानी को यमुना में सीधे जाने से रोका जाए। सीवेज वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और ज्यादा बनाए जाएं और इसके साथ-साथ दिल्ली में भूगर्भीय जल के पुराने स्रोतों को दोबारा जिंदा किया जाए। कुल मिलाकर यमुना को सियासी मुद्दा बनाने के बजाए, बड़े-बड़े वादे और दावे करने के बजाय, सही नीति और सही नियत से काम किया जाए तो यमुना का उद्धार हो जाएगा और अगर यमुना साफ हो गई तो दिल्ली वालों का उद्धार हो जाएगा। इसलिए मैं तो प्रार्थना करूंगा कि अरविन्द केजरीवाल यमुना को साफ करने में कामयाब हों और 2025 तक यमुना साफ हो जाए।
Save the people of Delhi: Rejuvenate and cleanse the Yamuna at the earliest
The air in Delhi is not fit for breathing, and the water in the blackish Yamuna river is not even fit for touching. Looking at the efforts being made by the government, it appears as if only a fresh wave of clean air, expected in the next three days, may drive away the poisonous air that has engulfed the capital for nearly a fortnight. For a clean Yamuna, we may have to wait for another three years.
On Thursday, Delhi chief minister Arvind Kejriwal unveiled a six-point action plan to cleanse the Yamuna by February, 2025. The plan includes setting up of new sewage treatment plants (STPs), increasing the capacity of existing STPs, use of new technology to ensure pollutants do not enter the river, in-situ treatment of major drains that fall into Yamuna and diverting all industrial waste to treatment plants. He promised connecting the drains of public toilets in all slums to the larger sewer network and completely stop stormwater drains from being polluted.
Kejriwal promised he would himself take a dip in Yamuna before the next assembly elections. At present, the Yamuna is a dirty river full of filth with 22 drains dropping sewage into it across the 23 km stretch of the river in the capital. Kejriwal knows, cleansing the Yamuna in Delhi is not an impossible task, though very difficult. In the past, Kejriwal had promised to cleanse the Yamuna at least five times. On Thursday, he gave a new deadline.
Kejriwal says, the Yamuna has become filthy over a period of 70 years and it cannot be cleansed in two days. “We have started work on a war footing, and I shall monitor each point of the six-point plan. I have fixed deadlines for each point. By next Delhi assembly elections in 2025, people in the capital will be able to take dip in a clean Yamuna.”
What is the present condition of Yamuna in Delhi? If you stand near its banks, you will be overpowered by a strong foul smell emanating from the river. You can get skin diseases if you touch its blackish water. You may not need any scientific study to find out why the Yamuna in Delhi is filthy. 18 big and 24 small drains spew sewage into this river daily.
The Yamuna that flows from Haryana into Delhi is clean till the Wazirabad barrage, where most of the water is collected to provide drinking water supply. The biggest Najafgarh drain that carries industrial effluent and sewage joins the river, and converts Yamuna into a drain. 17 other big drains, including Shahdara drain and Barapullah nullah, also fall into this river. Most of the 34 sewage treatment plants in Delhi work at only 60 per cent capacity. In other words, only 500 million gallons per day of sewage out of a total of 720 MGD sewage is treated, and the rest fall into the Yamuna, untreated. Sewers from the huge number of slums fall into Yamuna directly, untreated.
Earlier, when the Yamuna was comparatively clean, 52 different species of fish were found in the river. Now only one specie of fish is found and that too, is dwindling fast. This is because the oxygen level in the river has dropped to zero.
Normally, the potable water of a river has 7.4 pH (potential of hydrogen), but Yamuna water in Delhi has 11.4 pH. In layman’s language, the water can cause damage to your skin, if touched. Normally, potable RO water in homes is supposed to be lower than 100 TDS(total dissolved solids), but you will be surprised to know that the Yamuna water in Delhi has 1100 TDS.
The main culprits are the drains that fall into the Yamuna. The most worrisome fact is that there are people who grow vegetables on the Yamuna river bed, and sell them in markets. Most of these vegetables contain toxic substances due to the filthy Yamuna water. Yamuna water in Delhi can not only cause severe skin ailments, but can also damage your liver, kidneys and other organs. It can cause cancer and genetic disorders.
Experts say, rivers normally have self-cleansing capacity, but this can happen only if there is proper flow in the river. The filthy Yamuna in Delhi, becomes comparatively clean near Auraiya in UP, when it goes downstream due to proper flow. In Delhi, it is the opposite. Most of the water is collected for water supply, and the river is left dry for most of the months, except monsoon. On the other hand, huge drains disgorge millions of gallons of sewage into Yamuna daily. On one hand, drinking water supply is essential for Delhiites, but what is the alternative?
First, stop the flow of sewage drains into Yamuna, install more sewage treatment plants, and also rejuvenate all old sources of ground water in and around Delhi. Instead of politicizing the issue, let good policies (neeti) and sincere intent (neeyat) prevail. A clean Yamuna can invigorate the life of every resident in Delhi. I therefore pray that Arvind Kejriwal should succeed in his aim to cleanse the Yamuna by 2025.
वैक्सीन के बारे में कैसे अफवाहें फैला कर लोगों को डराया जा रहा है
आज मैं उन लोगों के बारे में लिखना चाहता हूं जो जानबूझकर कोरोना की वैक्सीन लगवाने से आनाकानी कर रहे हैं। ये दो तरह के लोग हैं: (1) वे जो कहते हैं कि कोरोना की वैक्सीन लगवाने से मौत हो सकती है, और (2) जो कहते हैं कि मरना तो एक दिन सबको है, इसलिए वैक्सीन लगवाने का कोई मतलब नहीं हैं। पहला ग्रुप उन लोगों का है जो मौत के डर से वैक्सीन नहीं लगवा रहे, और दूसरे ग्रुप को कोरोना की महामारी का कोई डर नहीं है। सरकार इन दोनों ही तरह के लोगों से परेशान है। चूंकि महामारी की रफ्तार बहुत कम हो चुकी है और यह कंट्रोल में है, इसलिए अब लोग इसे लेकर लापरवाह हो गए हैं, बेखौफ हो गए हैं, वायरस से डरना बंद कर दिया है। ऐसे में जिन लोगों के ऊपर सार्वजनिक स्वास्थ्य की जिम्मेदारी है उन्हें महामारी की एक नई लहर के आने का डर सता रहा है।
बुधवार को महाराष्ट्र सरकार ने सुपरस्टार सलमान खान का 5 महीने एक पुराना वीडियो जारी किया जिसमें वह लोगों से कोरोना वैक्सीन लगवाने की अपील करते हुए दिख रहे हैं। सलमान के लाखों प्रशंसक हैं और उनकी बात का असर होता है, लेकिन जब हमारे पत्रकारों ने मामले की छानबीन की तो पता लगा कि राज्य के ज्यादातर मुस्लिम बहुल इलाकों में रहने वाले लोग वैक्सीन लगवाने से झिझक रहे हैं। मौलानाओं और मशहूर हस्तियों की अपील के बावजूद इनमें से कई इलाकों में लोग वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार नहीं हैं।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में मुस्लिम बहुल इलाकों में गए और पाया कि मुसलमान किसी भी कीमत पर वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार ही नहीं थे। यहां तक कि मुंबई जैसे महानगर में भी कई लोग यह कहते हुए सुनाई दिए कि कुछ भी हो जाए वे वैक्सीन नहीं लगवाएंगे। उनका कहना था कि उन्होंने YouTube और WhatsApp पर वीडियो में देखा है कि कैसे वैक्सीन लगवाने के बावजूद कई लोगों की मौत हो गई। हालांकि कोई भी इन वीडियो की सच्चाई जांचने के लिए तैयार नहीं है।
हमारे देश में करीब 115 करोड़ लोगों को कोरोना की वैक्सीन लग चुकी है। पूरी दुनिया मान रही है कि भारत में बनी वैक्सीन असरदार है। दुनिया के 99 देशों में कोविशील्ड और कौवैक्सीन लगाई जा रही है। WHO ने Covaxin को भी मान्यता दे दी है। इसके बाद भी हमारे देश में बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें वैक्सीन पर भरोसा नहीं है और वे अफवाहों पर यकीन कर रहे हैं, ये सोचकर हैरानी होती है।
ये अजीब बात है कि अभी भी लाखों लोगों को हमारे वैज्ञानिकों, डॉक्टरों और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों पर भरोसा नहीं है, लेकिन वे वैक्सीन को लेकर WhatsApp और YouTube पर फैलाई जा रही निराधार अफवाहों पर यकीन कर रहे हैं।
इंडिया टीवी के संवाददाता दिनेश मौर्य मुंबई के शिवाजी नगर इलाके में गए। यह एक मुस्लिम बहुल इलाका है। सरकारी रिकॉर्ड के हिसाब से इस इलाके में वैक्सीनेशन कम हुआ है। दिनेश मौर्या ने शिवाजी नगर में गलियों और बाजारों में घूम रहे दर्जनों लोगों से बात की। उनमें से करीब तीन चौथाई लोगों ने बताया कि उन्होंने वैक्सीन नहीं लगवाई। जब इसका कारण पूछा गया तो उनमें से अधिकांश लोगों ने कहा, ‘क्या आप चाहते हैं कि हम वैक्सीन लगवाकर मर जाएं?’ कुछ लोगों ने कहा कि वैक्सीन की वजह से बीमारियां हो रही हैं, लोग मर रहे हैं। जब उनसे पूछा गया कि ये सब कहां से पता चला, तो उनमें से अधिकांश ने WhatsApp और YouTube का नाम लिया या कहा कि इंटरनेट पर समाचार में देखा था।
जाहिर सी बात है कि महाराष्ट्र सरकार ऐसे ही लोगों से परेशान है। इन्हीं लोगों के लिए घर-घर दस्तक दी जा रही है, वैक्सीन लेकर मेडिकल टीम हर घर में जा रही हैं, लेकिन अफवाहों का इतना असर है कि लोग वैक्सीनेशन की टीम को देखकर दरवाजा बंद कर लेते हैं। महाराष्ट्र में अभी तक वैक्सीन की 10.5 करोड़ डोज दी जा चुकी हैं, और इनमें से करीब 8 करोड़ लोगों को पहली डो़ज लग चुकी है। राज्य सरकार चाहती है कि नवंबर के महीने में महाराष्ट्र के सभी 12 करोड़ लोगों को पहली डोज लग जाए, लेकिन लोगों की बातें सुनकर ये काम पूरा होना मुश्किल लग रहा है।
महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने कहा कि सरकार ने फिल्म स्टार सलमान खान की सेवाएं लेने का फैसला किया है क्योंकि मुस्लिम बहुल इलाकों में कई लोग वैक्सीन लगवाने से हिचकिचा रहे हैं। इसी बात को दोहराते हुए मुंबई की मेयर किशोरी पेडनेकर ने भी कहा, ‘मुसलमानों के मन में वैक्सीन को लेकर मजबह से जुड़े भ्रम हैं, जिसके कारण अभियान में थोड़ी देरी हुई है। हमें उम्मीद है कि मुसलमान वैक्सीन लगवाएंगे और सलमान खान जैसे ऐक्टर्स को उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। राजेश टोपे ने कहा, ‘हम वैक्सीनेशन में तेजी लाने की कोशिश कर रहे हैं। सलमान खान केवल एक धर्म विशेष के स्टार नहीं हैं। वह सभी धर्मों के लोगों के बीच लोकप्रिय हैं। इसमें कोई राजनीति नहीं है। जहां भी हमें वैक्सीन को लेकर झिझक देखने को मिलती है, हम जागरूकता पैदा करने के लिए मौलवियों और मशहूर हस्तियों की मदद लेते हैं।’
महाराष्ट्र इस समय कोरोना के मामलों में नंबर वन पर है। प्रदेश में 66.25 लाख लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें से 1.4 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। महाराष्ट्र में बुधवार को कोरोना के 886 नए मामले सामने आए, जबकि 34 लोगों की जान चली गई। महामारी फैलने का खतरा अभी भी बना हुआ है, और राज्य सरकार एक नई लहर को उभरने से रोकने की पूरी कोशिश कर रही है। लेकिन सरकारी तंत्र पर अफवाहें भारी पड़ रही हैं, और लोगों के मन में वैक्सीन को लेकर डर पैदा कर रही हैं।
सलमान खान का यह वीडियो इसी साल 26 जून का है। 5 महीने पहले सलमान ने BMC (बृहन्मुंबई नगर निगम) की अपील पर अपना यह वीडियो रिकॉर्ड करके दिया था। BMC ने उस समय अपने ट्विटर हैंडल पर इस वीडियो को पोस्ट किया था, लेकिन उस वक्त चूंकि कोरोना की दूसरी लहर कम होना शुरू हो गई थी, और लोगों में खौफ था, इसलिए वे खुद वैक्सीनेशन सेंटर्स की तरफ भाग रहे थे। इन सेंटर्स के आगे भीड़ इतनी थी कि सरकार मैनेज नहीं कर पा रही थी। इसलिए BMC ने उस वक्त इस वीडियो का ज्यादा प्रचार नहीं किया। अब जबकि लोगों ने कोरोना का डर कम हो गया है और वे फिर से वैक्सीन लगवाने से हिचकिचा रहे हैं, सरकार ने सलमान खान का वीडियो फिर से जारी करने का फैसला किया। मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में मौलाना लगातार अपील कर रहे हैं कि मुसलमान आगे आकर वैक्सीन लगवाएं।
अफवाहों का असर पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में भी दिखा है। हमारे संवाददाता अनुराग अमिताभ भोपाल की सकलैनी मस्जिद इलाके में गए। उन्हें मस्जिद के बाहर सबसे पहले जो शख्स मिला, उसने वैक्सीन की एक भी डोज नहीं लगवाई थी। इसका कारण पूछने पर उसने कहा, ‘जब मुझे कोई बीमारी ही नहीं है तो मैं वैक्सीन क्यों लगवाऊं? वैक्सीन लगवाने के बाद भी लोग मर रहे हैं।’ हालांकि मस्जिद में मौजूद दूसरे लोगों ने कहा कि अब हालात बदले हैं, और समाज के जिम्मेदार लोगों की अपील के बाद मुसलमान भी वैक्सीन लगवा रहे हैं। हालांकि, उनमें से कई ऐसे थे जिन्होंने पहली डोज तो ले ली थी, लेकिन अभी तक दूसरी डोज नहीं ली है।
बुधवार को मध्य प्रदेश में वैक्सीन की 14 लाख से ज्यादा डोज लगाई गईं। अब तक राज्य में कुल 7.75 करोड़ डोज लगाई जा चुकी हैं। वैक्सीनेशन के मामले में मध्य प्रदेश का रिकॉर्ड अच्छा है। यहां की कुल जनसंख्या 7.5 करोड़ है, जिनमें से 5 करोड़ से ज्यादा लोगों को पहली डोज लग गई है और 2.5 करोड़ से ज्यादा लोगों को दोनों डोज लग चुकी हैं। लेकिन मुस्लिम बहुल इलाकों में वैक्सीनेशन की रफ्तार काफी धीमी है।
भोपाल की बिस्मिल्लाह कॉलोनी में हमारे रिपोर्टर को मुस्लिम महिलाएं वैक्सीन लगवाती नजर आईं। उनमें से कई ने कहा कि वे पहले वैक्सीनेशन से डरती थीं, लेकिन अब वैक्सीन का डर दूर हो गया है। राज्य सरकार ने दोनों डोज नहीं लेने वालों को राशन की सप्लाई बंद करने की धमकी दी है। हालांकि, राज्य के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी ने कहा कि फिलहाल किसी का राशन रोका नहीं गया है। उन्होंने कहा कि अभी लोगों को समझाया जा रहा है, उन्हें जागरुक किया जा रहा है जिससे लोग जल्द से जल्द वैक्सीन लगवा लें।
जो लोग वैक्सीन लगवाने से डरते हैं, उनसे मैं कहना चाहता हूं कि वैक्सीन आपका सुरक्षा कवच है। पूरी दुनिया में जिस-जिस देश में लोगों ने वैक्सीन नहीं लगवाई, जहां-जहां कम लोगों का वैक्सीनेशन हुआ, वहां सबसे ज्यादा मौतें हुईं। रोमानिया इसका एक बड़ा उदाहरण है, और यूरोप के कई देशों में यही हाल है। भारत में अब तक 38 करोड़ लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी हैं, और 37.5 करोड़ लोगों को पहली डोज लग चुकी है। दूसरे शब्दों में कहें तो बुधवार को पहली बार पूरी तरह से वैक्सीनेटेड लोगों की तादाद उन लोगों से ज्यादा हो गई जिन्होंने वैक्सीन की एक ही डोज ली है।
अब तक 75 करोड़ से ज्यादा लोग वैक्सीन लगवा चुके हैं, पर वैक्सीन लगवाने से किसी की मौत नहीं हुई। इसलिए इस तरह की अफवाहों पर ध्यान न दें। हमें तो इस बात की खुशी होनी चाहिए कि आज देश में वैक्सीन की कोई कमी नहीं है, बल्कि अब तो इतनी वैक्सीन का उत्पादन हो रहा है कि इसे दूसरे देशों को निर्यात किया जाने लगा है। केंद्र सरकार हर भारतीय को मुफ्त में वैक्सीन मुहैया करा रही है और प्राइवेट अस्पतालों में कई जगहों पर वैक्सीन की कीमत कम कर दी गई है क्योंकि एक्सपायरी डेट करीब आ गई है और स्टॉक भरा हुआ है।
याद रखें, अगर आपने वैक्सीन लगवाई है तो आपकी जान के लिए खतरा कम होगा। यदि आपको कोरोना हो भी गया तो हॉस्पिटल में भर्ती होने की नौबत शायद ही आएगी। इसलिए वैक्सीनेशन जरूर करवाइए। इसी में आपका और देश का भी भला है।
How rumours are still spreading fear about Covid vaccine in India
Today I want to write about people who are deliberately trying to avoid Covid vaccination. There are two types of such people: (1) those who say Covid vaccine can cause death, and (2) those who say, since everybody has to die some day, there is no point in getting vaccinated. The first group fears Covid vaccines, and the second group has no fear of the Covid pandemic. Both the Centre and state governments are worried about both these types of people. Since the spread of pandemic is now on the lower side, people, in general, have stopped fearing the virus and have, more or less, become callous. In the process, there is fear among those in charge of public health about a new wave of pandemic that could emerge.
On Wednesday, Maharashtra government released a five month old video of super star Salman Khan in which he appealed to people to get themselves vaccinated. Salman has millions of fans and his words carry weight, but when our reporters explored further, they found that people mostly living in Muslim-dominated localities of the state are now showing vaccine hesitancy. People in many of these localities are outrightly refusing to get vaccinated, despite appeals from Islamic clerics and celebrities.
India TV reporters went to Muslim dominated localities in Maharashtra and Madhya Pradesh, and found there was overall resistance to vaccination among Muslims. Even in a cosmopolitan metro like Mumbai, there are many who openly say they will not get vaccinated, come what may, because they have seen videos on YouTube and WhatsApp, about how people have died despite taking vaccines. But nobody is ready to vouch for the authenticity of these videos.
At a time when 115 crore vaccines have been administered across the length and breadth of India, such views are outrageous. The world has accepted India’s capability both in the manufacture of Covid vaccines and in carrying out mass vaccination drive. There are 99 countries in the world, including India, where Covishield and Covaxin (an indigenously manufactured vaccine recently approved by WHO) are being administered.
It is strange that there are still millions who do not trust our scientists, doctors, and senior government officials, but believe in baseless rumours peddled on WhatsApp and YouTube about vaccination.
India TV reporter Dinesh Maurya visited Shivaji Nagar, a Muslim dominated locality in Mumbai, where the percentage of vaccination is low. He spoke to dozens of people in streets and markets. Among them, nearly three fourth people said they are yet to take vaccine. Asked about the reason, most of the people said, “do you want us to die by getting vaccinated?”. Some said people are falling sick after being vaccinated and dying. Asked about facts, most of them said, they got their info on WhatsApp, YouTube and other internet websites.
Naturally, Maharashtra government is getting worried over vaccine hesitancy among sections of the population. There are reports of people in localities shutting the doors of their homes when vaccination teams arrive. So far, 10.5 crore vaccine doses have been administered throughout Maharashtra, and out of them roughly 8 crore people have taken their first dose. The state government wants the entire adult population to get vaccinated by the end of this month, but this seems to be a tall order.
The state health minister Rajesh Tope said, the government decided to rope in film star Salman Khan because many people in Muslim dominated areas are showing vaccine hesitancy. Echoing this sentiment, Mumbai Mayor Kishori Pednekar also said, “there are religious apprehensions among Muslims over vaccination, because of which there has been a slight delay in the drive. We hope, Muslims will take vaccine and actors like Salman Khan should encourage them.” Rajesh Tope said, “We are trying to speed up vaccination. Salman Khan is not the star acceptable to only one particular religion. He is popular among people belonging to all religions. There is no politics in this. Wherever we find vaccine hesitancy, we take help of religious leaders and celebrities to create awareness.”
Maharashtra currently ranks No.1 in the number of Covid cases. 66.25 lakh people were infected with Coronavirus out of which more than 1.4 lakh Covid patients died. 886 fresh Covid cases were reported in Maharashtra on Wednesday, while 34 people died. The danger of the pandemic spreading is still there, and the state government is trying its utmost to stem a fresh wave. But the rumour mill is working on overdrive and creating scare about vaccines among people.
The Salman Khan video was prepared on June 26 this year. Five months ago, Salman had got the video recorded on the appeal of BMC (Brihanmumbai Municipal Corporation). BMC had posted this video on its Twitter handle at that time, but since the second wave of pandemic was then on the wane, and common people in Mumbai were voluntarily coming forward in large numbers to take vaccine, out of fear, there were huge crowds outside vaccination centres, and the government had a meagre supply of vaccines at that time. The BMC did not publicize the video at that time. Now that people have stopped fearing the pandemic and are again showing vaccine hesitancy, the government decided to release the Salman Khan video again. Islamic clerics in Mumbai and other parts of Maharashtra are regularly appealing to Muslims to come forward and get the jab.
The rumour mills are also active in neighbouring Madhya Pradesh. Our reporter Anurag Amitabh went to Saqlaini mosque in Bhopal. The first man he met told him, “where is the need to take the jab, when I have no disease? People are dying even after taking vaccine”. However others present in the mosque countered him by saying that people are now coming forward to take the jab. There are, however, many who have taken the first dose, but are yet to take the second jab.
On Wednesday, more than 14 lakh Covid doses were administered across MP. Till now, 7.75 crore doses have been administered in the state. More than 5 crore out of the total 7.5 crore population in MP have taken the first dose, while more than 2.5 crore people have taken both the doses. But the pace of vaccination drive is slow in Muslim dominated areas.
In Bismillah Colony of Bhopal, our reporter saw Muslim women taking vaccines. Many of them said, they were afraid about vaccination earlier, but now the fear of vaccine is gone. The state government has threatened to stop supply of ration to those who have not taken both the doses. However, state health minister Prabhuram Chowdhary said, till now ration has not been discontinued to a single beneficiary. This was only meant to encourage people to line up and get their jab.
To those who are still afraid of vaccine, I want to tell this: Vaccine is your protection shield (Raksha kavach). In countries like Romania, where few people took vaccines, the number of Covid related deaths was higher. Till now, in India, more than 38 crore Indians have taken both the doses, and 37.5 crore Indians have taken their first dose. In other words, on Wednesday, the number of Indians who took both the doses is higher than those who have taken a single dose.
More than 75 crore Indians have been vaccinated till now, but there has not been a single case in which anybody died because of vaccination. Do not believe in rumours. There are ample stocks of vaccines available across India today. We should be happy to know that due to a bumper production of vaccines in India, we have again started exporting vaccines to different countries. The Centre is providing vaccine to every Indian free of cost, and in private hospitals too, vaccines are being given at a price lower than the fixed maximum, because the expiry dates of vaccines are near.
Remember, if you have taken your vaccine, the risk is lesser. Even if you are infected with the virus, there is less possibility of being hospitalized. Do get yourself vaccinated, for your own benefit and in the national interest.
पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के उद्घाटन से मोदी ने तय की यूपी अभियान की रूपरेखा
पूर्वी उत्तर प्रदेश में मंगलवार को भारत के सबसे लंबे एक्सप्रेसवे का उद्घाटन कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को दिखा दिया कि विकास के मुद्दे पर सियासत कैसे होती है। 341 किमी लंबा पूर्वांचल एक्सप्रेसवे लखनऊ से शुरू होता है, और अयोध्या, अमेठी एवं आजमगढ़ सहित 9 जिलों से गुजरते हुए गाजीपुर में नेशनल हाइवे-3 में जाकर मिल जाता है। भारतीय वायु सेना के लिए बनाई गई 3.2 किलोमीटर लंबी इमरजेंसी एयर स्ट्रिप पर मिराज, सुखोई, जगुआर फाइटर जेट और सुपर हरक्यूलिस ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट ने सामरिक शक्ति का शानदार नजारा पेश करते हुए लैंड किया। इस मौके पर प्रधानमंत्री के अलावा उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और मुख्यमंत्री भी मौजूद थे।
एयर शो का मकसद यह संदेश देना था कि एक्सप्रेसवे को परिवहन के साथ-साथ जंग जैसे हालात में हवाई पट्टी के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी के अभियान को भी टेक ऑफ करवा दिया।
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव यह दावा कर सकते हैं कि एक्सप्रेस-वे पर काम उनके कार्यकाल में शुरू हुआ था और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर फाइटर जेट्स की लैंडिंग उनके मुख्यमंत्री रहते हुए हुई थी। वहीं, कांग्रेस के नेता कह सकते हैं कि उनकी पार्टी के शासन वाले राजस्थान के बाड़मेर में नेशनल हाइवे की एयर स्ट्रिप पर वायुसेना के विमान पहले ही लैंड कर चुके हैं। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती दावा कर सकती हैं कि उत्तर प्रदेश में एक्सप्रेसवे बनाने की शुरुआत उनके शासनकाल में हुई थी, तो इसमें नया क्या है? बीजेपी की सरकार ने एक एक्सप्रेसवे बना दिया तो इसका इतना ढोल क्यों पीट रही है?
पीएम मोदी ने इसका जवाब दिया। मोदी ने याद दिलाया कि उत्तर प्रदेश के पिछले मुख्यमंत्रियों के लिए विकास उनके घरों तक ही सीमित था। उन्होंने कहा कि अच्छी सड़कों की कमी की वजह से उत्तर प्रदेश के शहर व्यावहारिक तौर पर एक दूसरे से कटे हुए थे। उन्होंने कहा कि इस एक्सप्रेस-वे के शुरू होने से पूर्वी उत्तर प्रदेश के लगभग सभी जिले अब सूबे की राजधानी लखनऊ से जुड़ जाएंगे।
मोदी ने कहा कि 22 हजार करोड़ रुपये की लागत से बने पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे से पड़ोसी राज्य बिहार के लोगों को भी फायदा होगा। उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफ करते हुए कहा कि इस एक्सप्रेसवे को निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरे पर्फेक्शन और ईमानदारी के साथ पूरा करना कोई आसान काम नहीं था। उन्होंने कहा, जब उन्होंने 3 साल पहले एक्सप्रेसवे का शिलान्यास किया था तो उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह इस एक्सप्रेसवे पर एयरफोर्स के प्लेन से उतरेंगे। उन्होंने पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे को यूपी की ‘शान’ और ‘कमाल’ बताया।
मोदी की यह बात तो सही है कि विकास अच्छी सड़कों के जरिए ही आता है। गुजरात और पंजाब में अच्छी सड़कों के कारण तेजी से औद्योगीकरण हुआ और इन राज्यों ने तरक्की की। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सड़कों के मामले में बहुत पिछड़े थे, लेकिन अब दोनों राज्यों में बेहतर सड़कें बनाई गई हैं। मोदी ने आरोप लगाया कि यूपी की पिछली सरकारों ने जानबूझकर सड़कों पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों ने पूर्वी यूपी को माफिया, और यहां के लोगों को भयानक गरीबी के हवाले कर दिया था।
प्रधानमंत्री ने यूपी में बीजेपी के प्रचार अभियान की लाइन और लेंथ तय कर दी है। उन्होंने राजनीतिक विरोधियों के जख्मों पर नमक छिड़कते हुए कहा कि 2016 तक यूपी में ‘राहजनी’ हुआ करती थी, लेकिन अब नई ‘राहें’ बन रही हैं। उन्होंने कहा कि हाईवे पर लूटपाट करने वाले अब जेलों में हैं, पहले यूपी में अंधेरा रहता था, लेकिन अब हर गांव रोशन है, हर घर में शौचालय है, हर घर में पानी की सप्लाई है, हर घर में नल है और हर नल में जल है।
एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के बाद प्रधानमंत्री ने राज्यपाल, मुख्यमंत्री, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ और वायुसेना प्रमुख के साथ एयरफोर्स के विमानों को इमरजेंसी एयर स्ट्रिप पर उतरते देखा।
45 मिनट तक चले इस शानदार एयरशो में मिराज, सुखोई, जगुआर लड़ाकू विमानों ने सुपर हरक्यूलिस और AN-32 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट के साथ एयर स्ट्रिप पर लैंड किया। वहां मौजूद विशिष्ठ अतिथियों के सामने लड़ाकू विमानों ने कई बार लैंडिंग और टेक-ऑफ किया।
मिराज, सुखोई और जगुआर सहित 5 लड़ाकू विमानों ने एक ऐरोहेड फॉर्मेशन में उड़ान भरी। इसके बाद मिराज, सुखोई और जगुआर लड़ाकू विमानों ने टच एंड गो लैंडिंग की। वहीं सुखोई-30 विमान ने एयर स्ट्रिप के काफी नजदीक हवा में कलाबाजी करते हुए उड़ान भरी तो वहां मौजूद लोगों ने जमकर तालियां बजायीं।
एक्सप्रेसवे पर किरण विमान द्वारा 2 सुखोई लड़ाकू विमानों के नेतृत्व में फ्लाईपास्ट के साथ एयर शो का समापन हो गया। यह हाल के दिनों में एक्सप्रेसवे पर वायुसेना के विमानों की चौथी लैंडिंग थी। इसके पहले यमुना एक्सप्रेसवे, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे और बाड़मेर के पास नेशनल हाइवे 925 पर वायुसेना के विमान लैंड कर चुके थे।
एक बात तो साफ है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी योगी के काम पर और मोदी के नाम पर चुनाव लड़ेगी। अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है और ऐसे में चुनावों में भगवान राम का नाम भी लिया जाएगा। योगी ने मंगलवार को इसका संकेत भी दिया। उन्होंने मंच पर जब मोदी का स्वागत किया तो उन्हें राम मंदिर का एक मॉडल भेंट किया। योगी ने अपने भाषण का समापन ‘जय श्री राम’ के नारे से किया, जो कि 90 के दशक में राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन का पसंदीदा नारा रहा है।
हालांकि मोदी ने सिर्फ विकास की बात की, इन्फ्रास्ट्रक्चर की बात की, गरीबों को मुफ्त राशन, मुफ्त दवा और मुफ्त वैक्सीन की बात की। उन्होंने सेना के मॉर्डनाइजेशन और देश की सुरक्षा की बात की। मोदी ने कहा कि सिर्फ विकास नहीं, देश की सुरक्षा भी जरूरी है, सेना की मजबूती भी जरूरी है। मोदी ने इल्जाम लगाया कि विरोधी दलों की सरकारों ने इन मुद्दों की तरफ ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया।
Modi outlines his UP campaign while opening India’s longest expressway
By inaugurating India’s longest expressway in eastern UP on Tuesday, Prime Minister Narendra Modi showed to the nation how one can purely focus on development in politics. The 341 km long Purvanchal Expressway starts from Lucknow, cutting across nine districts, including Ayodhya, Amethi and Azamgarh, and joins National Highway-3 in Ghazipur. On a 3.2 km stretch developed as an emergency air strip for Indian Air Force, Mirage, Sukhoi, Jaguar fighter jets and Super Hercules transport aircraft landed in a spectacular show of air power, watched by the PM, flanked by UP Governor and Chief Minister.
The objective of the air show was to convey the message that the expressway can be used both for day-to-day transport and can be used as an airstrip during warlike situation. Along with this, the Prime Minister’s UP campaign made a smooth take off.
Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav may well claim that work on the expressway began during his tenure, and the landing of fighter jets on Agra-Lucknow expressway took place when he was CM, Congress leaders may well say that IAF jets had already landed on an air strip at the national highway in Barmer, Rajasthan, ruled by their party, and Bahujan Samaj Party supremo Mayawati may claim that the actual work on Purvanchal Expressway began during her tenure, so what else is new? Why this tom-tomming ?
It was left to PM Modi to give a cogent reply. Modi said, during previous regimes, development in UP was confined only to the homes of chief ministers, and cities in UP were practically cut off from one another due to lack of good roads. He said, with the opening of this expressway, almost all the districts of eastern UP will now be connected with the state capital Lucknow.
Modi said, the Purvanchal Expressway, built at a cost of Rs 22,000 crore will also benefit the people of neighbouring Bihar. He praised UP Chief Minister Yogi Adityanath, and said, completion of this expressway within the stipulated timeline, with perfection and honesty, was not an easy task. He said, when he laid the foundation stone of the expressway three years ago, he never dreamt he would land on the expressway in an Air Force transport plane. He described the Purvanchal Expressway as UP’s ‘pride’ (shaan) and ‘wonder’ (kamaal).
Modi is right when he says, development can take place only with a good road infrastructure. The states of Gujarat and Punjab progressed and there was rapid industrialization due to good roads. Both UP and MP were lagging behind, but now both the states have built better roads. Modi alleged that roads in UP were deliberately left undeveloped by previous regimes, and the former rulers had left the people of eastern UP to live in dire poverty and at the mercy of mafia gangs.
The line and length of BJP’s campaign in UP has now been set by the PM. He rubbed salt into the wounds of political rivals, by saying that till 2016, there used to be ‘raahzani’ (highway robbery) in UP, but now new ‘raah’ (roads) are being made. “Those indulging in highway robbery are now in jails, earlier there was no power, but now villages are getting sufficient power, water and other facilities”, he added.
After the launch of the expressway, the Prime Minister alongwith the Governor, Chief Minister, Chief of Defence Staff and IAF Chief, watched IAF jets landing on the emergency airstrip.
In a spectacular show lasting over 45 minutes, Mirage, Sukhoi, Jaguar jet fighters landed on the airstrip, alongwith Super Hercules and AN-32 transport aircraft. Multiple landings and take-offs were done by the fighter jets in the presence of dignitaries.
An arrowhead formation fly was carried out by five jet aircraft including Mirage, Sukhoi and Jaguar. It was followed by touch and go landing by Mirage, Sukhoi and Jaguar fighters. A Sukhoi jet carried out Vertical Charlie low altitude manouevring as it rolled several times in the air, followed by loud clapping.
The air show ended with a flypast by Kiran aircraft over the expressway led by two Sukhoi fighters. This was the fourth expressway landing by IAF jets in the recent past, with previous landings done on Yamuna Expressway, Agra-Lucknow Expressway and National Highway 925 near Barmer.
One point is clear: BJP is going to fight the UP polls in the name of Modi and will seek votes on the work done by Yogi till now. The name of Lord Ram will also be invoked, as the construction begins on the Ram Janmabhoomi temple in Ayodhya. This was indicated on Tuesday when Yogi gifted a model of the Ram temple to the Prime Minister at the public meeting. Yogi ended his speech by chanting ‘Jai Shri Ram’, a favourite slogan during the Ram Janmabhoomi temple movement of the Nineties. On the other hand, Modi limited his speech to development , free ration, medicines and vaccine to the poor, modernisation of defence forces and national security. Modi said, development is essential, but national security is also paramount. He blamed opposition parties for not paying much attention to both these issues.
दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण पर सरकारों की अलग-अलग राय
पिछले 11 दिनों से दिल्ली की हवा में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ चुका है। हवा जहरीली हो चुकी है और दिल्ली वालों की सांसें फूल रही हैं, लोगों का दम घुट रहा है। दिल्ली में रहनेवाला हर कोई इसे महसूस कर रहा है लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार कोई भी सरकार इसकी कोई खास वजह नहीं बता पा रही है। दिवाली की रात से पूरे शहर पर प्रदूषण और धुंध के बादल छाए हुए हैं। आखिर क्या वह खास वजह है जिसके चलते हवा इतनी जहरीली हुई है, इसे लेकर भी सरकारों और एक्सपर्ट्स की राय अलग-अलग है।
दिल्ली सरकार के वकील ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में बताया कि पश्चिमी यूपी, हरियाणा और पंजाब में धान की पराली जलाने से एनसीआर में वायु प्रदूषण बढ़ा है और इसी वजह से यहां की हवा जहरीली हुई है। लेकिन केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली में प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह यहां चलने वाली इंडस्ट्री है। कंस्ट्रक्शन गतिविधियां और वाहनों से निकलनेवाले धुएं से यहां की हवा जहरीली हुई है।
केंद्र और राज्य दोनों सरकारें दिल्ली में प्रदूषण की अलग-अलग वजह बताती हैं। आश्चर्य की बात ये है कि बीमारी की वजह क्या है ये किसी को पूरी तरह पता नहीं है और इलाज करने के लिए सब तैयार हैं। फिलहाल दिल्ली में सभी स्कूल और कॉलेज बंद हैं, हरियाणा सरकार ने फरीदाबाद, गुरुग्राम, पानीपत और सोनीपत में भी सभी स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए हैं और दिल्ली सरकार ने अपने सभी दफ्तर बंद कर दिए हैं और अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम के लिए कहा है।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, दिल्ली, हरियाणा, यूपी और पंजाब की राज्य सरकारों को अगले 48 घंटों के भीतर वायु प्रदूषण से निपटने के उपायों के लिए एक इमरजेंसी मीटिंग बुलाने का निर्देश दिया।
चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने कहा, ‘हमें नहीं लगता कि सरकारें एक साथ बैठकर फैसला करेंगी जैसा कि हमने शनिवार को उम्मीद की थी। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन चीजों के लिए उन्हें तत्काल फैसला लेना चाहिए और ध्यान केंद्रित करना चाहिए, उसपर हमें फैसला करना पड़ रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, ‘हमने ऐसा पाया कि एनसीआर में कंस्ट्रक्शन गतिविधियां, गैर-जरूरी इंडस्ट्रीज का चलना, ट्रांसपोर्ट और कोयले से चलनेवाले पावर प्लांट्स वायु प्रदूषण के लिए ज्यादा जिम्मेदार हैं। हमने यह भी पाया कि कोर्ट द्वारा दिए निर्देशों का पालन वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा एनसीआर और आसपास के इलाकों में अच्छी तरह से किया गया। दिल्ली सरकार द्वारा भी इस संबंध में पहल की गई। हम इसकी तारीफ करते हैं।’
हालांकि कुछ अन्य पहलुओं पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को फटकार भी लगाई। कोर्ट ने यह चेतावनी भी दी कि अगर प्रदूषण को लेकर दिल्ली सरकार का ऐसा ही रवैया जारी रहा तो फिर मजबूर होकर कोर्ट को प्रदूषण के नाम पर हुए खर्च का ऑडिट करना पड़ेगा। असल में दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने कहा कि इस मामले में एमसीडी के मेयर्स से भी टारगेटेड एफिडेविट मांगा जाना चाहिए। उन्होंने कहा-‘ नगर निगम की तरफ से सड़कों पर स्वीपिंग का काम कराया जाता है। वे स्वतंत्र स्वायत्त निकाय हैं इसलिए उनके मेयर्स से यह एफिडेविट मांगा जाना चाहिए कि क्या सड़कों को साफ करने के लिए 69 रोड स्वीपिंग मशीन पर्याप्त हैं।’
इस पर चीफ जस्टिस ने दिल्ली सरकार से कहा-‘ आप अपनी जिम्मेदारी दूसरों पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं। आपने क्या किया..ये बताइये।’ वहीं जस्टिस सूर्यकांत ने कहा,’आपके इस तरह के बहाने हमें मजबूर कर रहे हैं कि कोर्ट दिल्ली सरकार के रेवेन्यू और सरकार के प्रचार के लिए बनाए गानों पर हुए खर्च का ऑडिट करे। जस्टिस सूर्यकांत ने दिल्ली सरकार के वकील को याद दिलाया कि कुछ अन्य मामलों को लेकर नगर निगम सुप्रीम कोर्ट में था और उसकी तरफ से यह दलील दी गई थी कि उसके पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी पैसे नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने हलफनामे में दिल्ली सरकार ने कहा कि कोर्ट के पिछले आदेश के मुताबिक दिल्ली में एक स्मॉग टावर लगाया गया है। 17 नवंबर तक दिल्ली में कंस्ट्रक्शन पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है। धूल उड़ने से रोकने के लिए 372 वाटर स्प्रिंकल्स लगाए गए हैं। दिल्ली के सभी सरकारी और प्राइवेट स्कूल भी बंद कर दिए गए हैं। दिल्ली सरकार ने यह भी कहा कि प्रदूषण में कमी लाने के लिए वह सीमित अवधि के लिए लॉकडाउन लगाने को तैयार है लेकिन हवा की कोई बाउंड्री नहीं होती इसलिए पड़ोसी राज्यों में भी लॉकडाउन लगाना चाहिए। दिल्ली सरकार ने दावा किया कि 20 हजार स्क्वॉयर फीट से ज्यादा के कन्स्ट्रक्शन साइट पर एंटी स्मॉग गन का इस्तेमाल किया जा रहा है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति इस बात की कोशिश कर रही है कि दिल्ली की सभी 1,636 औद्योगिक यूनिट को सीएनजी में बदला जाए।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘जहां तक पराली जलाने का सवाल है तो मोटे तौर पर हलफनामे में कहा गया है कि वायु प्रदूषण को बढ़ाने में इसका योगदान दो महीने तक ही रहता है। हालांकि मौजूदा समय में हरियाणा और पंजाब में बड़े पैमाने पर पराली जलाने की घटनाएं हो रही हैं।’
केंद्र की ओर से कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि पराली जलाना प्रदूषण का प्रमुख कारण नहीं है और कुल वायु प्रदूषण में इसका योगदान केवल 10 प्रतिशत होता है। उनकी इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पूछा, ‘क्या आप इस बात से सहमत हैं कि पराली जलाना मुख्य कारण नहीं है? इसका कोई वैज्ञानिक या तथ्यात्मक आधार नहीं है?’
केंद्र की तरफ से दायर हलफनामे का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वायु प्रदूषण का 75 प्रतिशत तीन प्रमुख कारकों- इंडस्ट्री, धूल और ट्रांसपोर्ट के कारण होता है। ‘ पिछली सुनवाई में हमने कहा कि पराली जलाना कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, शहर से जुड़े मुद्दे हैं। इसलिए अगर आप उसपर कदम उठाते हैं तो हालात में सुधार होगा। वास्तव में अब सब कुछ खुलकर सामने आ गया है। चार्ट के मुताबिक किसानों के पराली जलाने से प्रदूषण में केवल 4 प्रतिशत का योगदान होता है। इसलिए हम उस चीज पर निशाना साध रहे हैं जो पूरी तरह से महत्वहीन है।’
सोमवार को राजधानी का वायु गुणवत्ता सूचकांक 353 यानी ‘बहुत खराब’ था और अगले दो दिनों में इसमें सुधार की गुंजाइश नहीं है। हालांकि एक्यूआई पहले के दिनों की तुलना में कम है लेकिन सरकार यह कह कर आराम नहीं कर सकती कि हवा अब कम खतरनाक है। हवा में जहर तो है और सेहत के लिए खतरनाक भी है लेकिन पिछले साल के मुकाबले जहर जरा कम है। सोचिए हवा में जहर कम और ज्यादा क्या होता है ? जहर तो जहर है। नुकसान तो करेगा। बस आंकड़ों और एक्यूआई के नंबर को देखकर कैसे चुप बैठ जाएं। सबके घर में बड़े बुजुर्ग और बच्चे हैं ।डॉक्टरों का कहना है कि दिल्ली में एक दिन के लिए प्रदूषित हवा में सांस लेने का मतलब 15 सिगरेट पीने के बराबर है।
लेकिन जो उपाय किए जा रहे हैं उन्हें देखकर लगता है कि ये जहर अभी कुछ दिन और पीना पड़ेगा। क्योंकि असली कारण क्या है इसको लेकर सबकी राय अलग-अलग है। किसी ने पराली जलाने को जिम्मेदार बताया तो किसी ने कहा कि दिवाली में हुई आतिशबाजी वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। वहीं एक आवाज आई कि कार चलाने वाले प्रदूषण फैलाते हैं किसी ने कहा धूल उड़ाने वाले प्रदूषण फैलाते हैं और किसी ने कहा कि फैक्ट्री चलाने वाले सबसे ज्यादा जहर फैलाते हैं। बस उम्मीद कर सकते हैं कि कोर्ट की सख्ती कोई रास्ता निकालेगी।
लेकिन हमें ये जरूर मालूम है कि प्रदूषण तब खत्म होगा जब एक-दो दिन बारिश होगी। हवा अपने आप साफ हो जाएगी। जब तक ऐसा नहीं होता है तब तक आपको खुद ही जहरीली हवा से बचना होगा। अपने स्तर पर जो कर सकते हैं वो करें। सरकार से उम्मीद न रखें। घऱ में एरिका पाम, मनी प्लांट, मदर टंग प्लांट जैसे पौधे रखें जो हवा को साफ करते हैं और ज्यादा ऑक्सीजन देते हैं। बच्चों और बुजुर्गों को सुबह शाम घर से न निकलने दें और आप जब घऱ से बाहर निकलें तो मास्क लगाकर निकलें। अब तक मास्क कोरोना से बचा रहा है और अब प्रदूषण से भी बचाएगा।
How governments differ on main cause of air pollution in Delhi NCR
Most of the people presently living in Delhi know this for a fact that the air is heavily polluted and people are gasping for breath due to pollution and smog for the last 11 days. But you will be surprised to know that none of the governments responsible for controlling air pollution can pinpoint one major cause that has caused smog and polluted air since Diwali night. Opinions of governments and experts differ about what is the main cause which has made the air hazardous to breather in Delhi.
On Monday, the Delhi government counsel told the Supreme Court that paddy stubble burning in western UP, Haryana and Punjab was the main cause of air pollution in NCR, but the Centre told the court that industries, construction activities and vehicular emission in Delhi NCR were the main reasons for air pollution.
The surprising part is that while governments differ on the main cause of air pollution, they are ready with measures for tackling them. As of now, all schools and colleges are closed in Delhi, Haryana government has also closed all schools and colleges in Faridabad, Gurugram, Panipat and Sonepat, and Delhi government has closed all its offices and has asked its staff to work from home.
On Monday, the Supreme Court directed the Centre, Delhi government and state governments of Haryana, UP and Punjab, to hold an emergency meeting to devise emergency measures to tackle air pollution within the next 48 hours.
The bench of Chief Justice N V Ramana, Justice D Y Chandrachud and Justice Surya Kant observed, ‘We don’t think the executive governments will sit together and take a decision as we had expected on Saturday. It is very unfortunate that we have to set an agenda for them and the areas they have to focus on for taking urgent decisions.’
The bench said: “We find major contributors of air pollution in the NCR are construction activities, running of non-essential industries, transport and running of coal-fired power plants. We find some initiatives have been taken by Commission for Air Quality Management in NCR and adjoining areas, as also by Delhi government in compliance with directions passed by this court. We appreciate it.”
The apex court was however critical of Delhi government on other aspects. It warned that it may start an audit of money spent by Delhi government on combating air pollution. The Delhi government counsel Rahul Mehra had said, ‘Municipal Corporations are the ones which carry out road-sweeping tasks. They are independent autonomous bodies. It is for the corporations and mayors to file an affidavit stating whether the number of 69 mechanized road sweeping machines is adequate’.
On this, the Chief Justice of India said, “there is always some excuse or the other that can be given when the work is not done. You are passing the buck to the municipal corporations.” Justice Surya Kant said, “this kind of lame excuse will compel us to find out and hold an audit inquiry into the total revenue you are collecting and what you are spending on the popularity slogans instead of looking after the people.” Justice Surya Kant reminded the counsel that the municipal corporations were before the Supreme Court in some other cases and had pleaded that they do not even have money to pay salaries to their staff.”
In its affidavit before the apex court, Delhi government said, a smog tower has been built in Delhi as per SC directives, all construction activities in Delhi have been stopped till Nov 17, 372 water sprinklers have been deployed to prevent dust pollution, and schools and colleges have been closed. Delhi government also said, it was even ready to impose lockdown for a limited period, but since air has no boundaries, a similar lockdown has to be imposed in neighbouring states. Anti-smog guns are being used at construction sites with area more than 20,000 sq ft, it claimed. Delhi Pollution Control Committee is trying to implement the plan for use of CNG fuel in 1,636 industrial units.
The apex court said, “So far as stubble burning is concerned, broadly affidavits state that their contribution is not so much except for two months. However, at present a good amount of stubble burning is taking place in Haryana and Punjab.”
Solicitor General Tushar Mehta, appearing for the Centre, told the bench, “We have come to the conclusion that stubble burning is not the major cause of pollution and it contributes to only 10 per cent of the air pollution. Reacting on his submission, the bench asked, “Are you agreeing that stubble burning is not the main cause? That hue and cry has no scientific or factual basis?”
Referring to the affidavit filed by the Centre, the apex court said 75 per cent of the air pollution is due to three factors — industry, dust and transport. “In the last hearing, we mentioned stubble burning is not a major issue, city related issues are there. So if you take steps on them, the situation will improve….. In fact now the cat is out of the bag, the farmers’ stubble burning contributes to only 4 per cent of the pollution as per the chart. So we are targeting something which is totally insignificant.”
On Monday, the Air Quality Index in the capital was ‘very poor’ at 353, and this is unlikely to improve in the next two days. Though the AQI is lower compared to earlier days, the government cannot rest on its oars by saying that the air is now less hazardous. Poison, is after all, poison, no matter what the quantity is in the air. Aged men and women, and children, are hit hard because of air pollution in Delhi. Doctors say, that breathing the polluted air in Delhi for a day means as good as smoking 15 cigarettes.
Looking at the disjointed efforts being made by the governments, it seems the people of Delhi will have to bear this gas chamber torture for some more days. The reason: governments are not unanimous about the main cause of air pollution. While one holds paddy stubble burning as the main cause, another says bursting of firecrackers during Diwali was the main reason. A third blames the huge number of vehicles in Delhi which are emitting hazardous smoke. There are others who blame construction activities and industries. The common people can only hope that the Supreme Court, by taking a firm stand, may force the governments to take immediate measures.
We also know that light rains for a day or two, can clear the air and make it easier to breathe. Till then, people will have to remain indoors and avoid breathing outdoor air. Instead of relying on government initiatives, people can take small steps at homes to avoid polluted air. Keep money plant, areca palm, mother tongue plant at home. They help clean up the polluted air and give out oxygen. Do not allow the elderly and the kids to move outside their homes. Wear mask when you move outside. It will protect you, both from Coronavirus and polluted air.
आई टी एक्ट में बदलाव की जरूरत क्यों है?
आज मैं उस मुद्दे के बारे में बात करना चाहता हूं जिससे हम और आप रोज दो चार होते हैं। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर करोडों भारतीय एक्टिव हैं। इन प्लेटफॉर्म्स पर कब, कौन, किसे धमकी दे जाए, कब कौन गाली देने लगे, कब कोई कीचड़ उछालने लगे, इसका कोई अंदाजा ही नहीं लगा सकता। सिर्फ गालियां नहीं, ऐसी फर्जी तस्वीरें, गुमराह करने वाले वीडियो और नफरत फैलाने वाली पोस्ट वायरल की जाती है जिसके कारण समाज में टेंशन हो जाती है, दंगे जैसे हालात बन जाते हैं।
सबसे बड़ी परेशानी ये है कि कौन दंगा भड़काने की कोशिश कर रहा है, कौन गाली दे रहा है, इसको पकड़ना भी मुश्किल है क्योंकि ज्यादातर प्रोफाइल फेक होते हैं। इस तरह की फर्जी प्रोफाइलों पर पुरुषों और महिलाओं की तस्वीरें पोस्ट की जाती हैं, ऑनलाइन चैट के बाद लड़कियों को ब्लैकमेल किया जाता है, और ट्रोल्स के लिए तो मॉर्फ्ड इमेज का इस्तेमाल करना, गाली देना, धमकी देना और दूसरों को बदनाम करना आम बात है।
केंद्र इस तरह की गलत गतिविधियों में लिप्त लोगों के खिलाफ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में कड़े प्रावधान लाने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। ऐसे उकसाने वालों, ब्लैकमेल करने वालों और गाली देने वालों की तुरंत पहचान की जा सकती है और उन्हें सजा दी जा सकती है। सोशल मीडिया पर फर्जी प्रोफाइल या फर्जी अकाउंट बनाना अपराध माना जाएगा। चूंकि आम लोगों, पब्लिक फिगर्स और सिलेब्रिटीज को सोशल मीडिया पर गालियों, धमकियों और अपमानजनक स्थितियों का सामना करना पड़ता है, इसलिए कानून को सख्त बनाना होगा।
ताजा उदाहरण एक ट्रोल का है जिसने भारत के पाकिस्तान से टी20 मैच हारने के बाद स्टार क्रिकेटर विराट कोहली की 9 महीने की बेटी को धमकी दी थी। तेलंगाना के संगारेड्डी निवासी 23 वर्षीय आरोपी रामनागेश श्रीनिवास अकुबाथिनी सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। उसने आईआईटी हैदराबाद से पढ़ाई की है। उसे मुंबई पुलिस ने हैदराबाद पुलिस की मदद से गिरफ्तार किया था। कोहली की बेटी के खिलाफ उसकी धमकी को लेकर पूरे देश में नाराजगी देखने को मिली थी। गिरफ्तारी के बाद रामनागेश को मुंबई लाया गया। वह पहले भी नकली पहचान का इस्तेमाल कर ट्रोलिंग किया करता था, लेकिन उसका परिवार और उसके दोस्त उसे एक अच्छे छात्र के रूप में जानते थे जो विदेश में उच्च शिक्षा हासिल करने की प्लानिंग कर रहा था।
एक महीने पहले तक वह 24 लाख रुपये सालाना के पैकेज पर बेंगलुरु स्थित एक प्रमुख फूड डिलिवरी ऐप के लिए काम कर रहा था। बाद में उसने अमेरिका में मास्टर डिग्री की तैयारी के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। उनके पिता मेडक जिले के संगारेड्डी में एक ऑर्डनेंस फैक्ट्री में काम करते हैं। रामनागेश ने आईआईटी-जेईई परीक्षा में 2367वां स्थान हासिल किया था। वह पढ़ाई में काफी मेहनत करता था और कक्षा 10 की परीक्षा में टॉपर था, लेकिन उसके परिवार को उसकी ऑनलाइन ट्रोलिंग गतिविधि के बारे में पता नहीं था। एक क्रिकेट फैन के तौर पर वह भारत के पाकिस्तान और न्यूजीलैंड के हाथों लगातार हार से काफी निराश था।
रामनागेश ने विराट कोहली की बेटी को धमकी देता हुआ ट्वीट देर रात किया था। अपने ट्वीट में उसने विराट कोहली और उनकी ऐक्टर पत्नी अनुष्का शर्मा को भी टैग किया था। अगली सुबह जब उसे महसूस हुआ कि उससे बहुत बड़ी गलती हुई है, उसने अकाउंट डिएक्टिवेट कर दिया। इस दौरान उसने 2 और अकाउंट डिलीट किए। तब तक विराट कोहली की मैनेजर ने मुंबई पुलिस साइबर क्राइम सेल में शिकायत कर दी थी और FIR दर्ज कर ली गई थी। रामनागेश के परिवार का दावा है कि उन्होंने ‘गलती से’ ट्वीट पोस्ट किया था। उनके पिता ने कहा कि रामनागेश ने तुरंत अपनी पोस्ट हटा दी थी लेकिन तब तक वह ट्वीट तेजी से ट्विटर पर फैलने लगा था।
ट्वीट का स्क्रीनशॉट वायरल हो गया और मुंबई एवं दिल्ली पुलिस, दोनों को इस बारे में सूचित कर दिया गया। रामनागेश ने तुरंत अपना ट्विटर हैंडल @ramanheist बदल दिया और एक पाकिस्तानी यूजर @criccrazygirl होने का नाटक किया, लेकिन तब तक उसके हैंडल को फैक्ट-चेक वेबसाइटों द्वारा ट्रैक किया जा चुका था। मुंबई पुलिस ने कहा कि रामनागेश जांच में सहयोग कर रहा है, वह एक सीरियल ऑफेंडर नहीं लग रहा और उसे अपनी गलती का अहसास है।
क्रिकेटर विराट कोहली के साथ जो हुआ वह सिर्फ एक उदाहरण है। हमारे देश में सोशल मीडिया पर रोज ऐसे लाखों केस होते हैं। समस्या यह है कि कोई सख्त आईटी कानून नहीं है और न ही हमारा सिस्टम ऐसे मामलों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है। मौजूदा आईटी एक्ट 20 साल पुराना है। इसे 2001 में बनाया गया था जब फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम का वजूद ही नहीं था।
वक्त के हिसाब से अपराध और अपराध का दायरा बदल रहा है, इसलिए कानून भी वक्त के हिसाब से बदलने पड़ेंगे। प्रस्तावित संशोधनों के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी के खिलाफ बेहूदा, आपत्तिजनक या अश्लील टिप्पणी करता है, तो उसका पता लगाया जा सकता है और उसे ट्रैक किया जा सकता है, और उसे किसी भी फर्जी पहचान के पीछे छिपने नहीं दिया जाएगा। उसकी लोकेशन का पता तुरंत या एक निश्चित समय सीमा के भीतर लगाया जा सकेगा। ऑनलाइन यौन उत्पीड़न को नए आईटी अधिनियम के तहत परिभाषित किया जाएगा और मॉर्फ्ड इमेज पोस्ट करने और डराने-धमकाने वालों को सजा दिलाने के प्रावधान किए जाएंगे।
सरकार को दखल देने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि सोशल मीडिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां ऐसे अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहीं, जो अश्लील, बेहूदे और अपमानजनक कॉमेंट और वीडियो पोस्ट करते हैं। फेसबुक के ही एक पूर्व कर्मचारी एवं व्हिसलब्लोअर ने अमेरिकी कांग्रेस कमेटी के सामने खुलासा किया था कि कैसे उनकी कंपनी के बड़े अधिकारियों ने प्लेटफॉर्म पर पोस्ट की गई अभद्र टिप्पणियों को नजरअंदाज कर दिया। यह देखा गया है कि किसी बेहूदे कॉमेंट या तस्वीर के पोस्ट होने पर फेसबुक कोई शिकायत होने से पहले शायद ही कभी उस कॉमेंट या तस्वीर को हटाता है। इसी पृष्ठभूमि में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा है कि सोशल मीडिया पर हेट क्राइम, फेक न्यूज, साइबर बुलिंग, चाइल्ड पॉर्नोग्राफी और इसी तरह के अन्य अपराधों के खिलाफ प्रभावी सुरक्षा उपाय और सिक्यॉरिटी चेक्स होने चाहिए। इसीलिए सोशल मीडिया कपनियों को लेकर सरकार ने जो आईटी रूल्स तय किए थे, यह इसी दिशा में एक नया कदम है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के यूजर्स के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। भारत में व्हाट्सऐप के यूजर्स को छोड़ भी दिया जाए तो फेसबुक पर 34 करोड़, इंस्टाग्राम पर 14 करोड़, ट्विटर पर 2.25 करोड़ और भारतीय कू ऐप पर 1.5 करोड़ यूजर्स हैं। भारतीय न केवल अपनी राय व्यक्त करने के लिए बल्कि अपनी शिकायतों को आगे बढ़ाने के लिए भी ट्विटर का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि अधिकांश सरकारी एजेंसियों और अधिकारियों के अपने-अपने ट्विटर हैंडल हैं। इस सोशल मीडिया स्पेस का इस्तेमाल करके व्यापार, राजनीति, शादियां और यहां तक कि अपराध भी होते हैं।
इस साल के दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान बांग्लादेश में फेसबुक पर कुरान के कथित अपमान के बारे में एक फेक न्यूज पोस्ट की गई थी, जिसका नतीजा यह हुआ कि मुसलमानों की भीड़ ने गुस्से में हिंदू मंदिरों, पूजा पंडालों और घरों में आग लगा दी। भारत में एक बुजुर्ग मुस्लिम शख्स की दाढ़ी जबरन मुंडवाने का एक नकली वीडियो वायरल किया गया, जिसके चलते सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया था। इस साल गणतंत्र दिवस पर लाल किले तक किसानों के ट्रैक्टर मार्च के दौरान फेसबुक पर आपत्तिजनक पोस्ट किए गए थे। कुछ हफ्ते पहले असम में पुलिस की मौजूदगी में एक कैमरामैन द्वारा एक मृतक के शव पर कूदने के वीडियो से काफी गुस्सा फैल गया था, लेकिन वह वीडियो छिपा लिया गया था जिसमें लोग पुलिस पर हथियारों से हमला बोल रहे थे। त्रिपुरा में सांप्रदायिक तनाव को लेकर इसी तरह के वीडियो वायरल किए गए, जिससे कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा हो गई।
देश में नफरत फैलाने वालों को रोकने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम को जल्द से जल्द अपडेट करने की जरूरत है। कुछ लोग अनजाने में अपनी व्यक्तिगत खुन्नस निकालने के लिए सोशल मीडिया पर गड़बड़ पोस्ट करते हैं लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो जानबूझ कर समाज को बांटने वाले, नफरत फैलाने वाले पोस्ट डालते हैं। आजकल राजनीति में भी एक दूसरे को बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल होता है। कानून में बदलाव से इस तरह की हरकतों पर भी लगाम लगेगी। अगर आप किसी के बारे में सोशल मीडिया पर कुछ लिख रहे हैं, किसी पर कोई इल्ज़ाम लगा रहे हैं, कोई फोटो या वीडियो डाल रहे हैं तो फिर वह फैक्ट, तस्वीर या वीडियो सही है, उसकी गारंटी आपकी ही होगी। आपको अपनी पोस्ट को वेरिफाई करना होगा, वरना एक्शन होगा।
Why IT Act needs to be changed?
Today I want to talk about an issue which most of us face in our daily life. Millions of Indians are active on social media platforms like Facebook, Twitter, Instagram and WhatsApp, and almost every day one finds trolls abusing, defaming and threatening others, using fake information, images and videos. Sometimes such acts cause social tension and even riots.
The problem lies in tracing the originators of such lies, abuses, innuendoes and fake information, because most of their profiles are fake. Pictures of men and women are posted on such fake profiles, girls are blackmailed after online chats, and for trolls using morphed images, abusing, threatening and defaming others is an easy job.
The Centre is seriously thinking of bringing stringent provisions in Information Technology Act against those who indulge in such nefarious activities. Such instigators, blackmailers and abusers can be instantly identified and punished. Making fake profiles or fake accounts on social media will be considered an offence. Since common people, public figures and celebrities face abuses, threats and defamatory innuendoes on social media, the law has to be made stringent.
The latest example is that of a troll who had threatened star cricketer Virat Kohli’s nine-month-old daughter after India lost the T20 match to Pakistan. The 23-year-old accused Ramnagesh Srinivas Akubathini, a resident of Sangareddy in Telangana, is a software engineer who had passed out of IIT Hyderabad. He was arrested by Mumbai Police with the help of Hyderabad Police. There was national outrage over his sickening threat against Kohli’s daughter. Ramnagesh was brought to Mumbai after arrest. He had a history of online trolling using multiple fake identities, but to his family and friends, he was an avid student planning higher studies abroad.
Till a month ago, he was working for a prominent food delivery app, based in Bengaluru at an annual pay package of Rs 24 lakhs. He later quit his job to prepare for a master’s degree in the US. His father works in an ordnance factory in Sangareddy in Medak district. Ramnagesh ranked 2367 in the IIT-JEE examination. He used to study hard and was a topper in Class 10 exam, but his family did not know about his online trolling activity. An avid cricket fan, he was depressed after India lost back-to-back matches against Pakistan and New Zealand.
After his late night tweet threatening Virat Kohli’s baby daughter, in which he had tagged both Virat Kohli and his actor wife Anushka Sharma, he deactivated his account the next morning after realizing he had made a big mistake. He deleted two more accounts. By then Virat Kohli’s manager had already complained to Mumbai Police Cyber Crime Cell and an FIR had been filed. Ramnagesh’s family claims he posted the tweet “accidentally”. His father said, he immediately deleted his post, but, by then, the tweet was circulating fast on Twitter.
The tweet screenshot went viral and was flagged to both Mumbai and Delhi Police. Ramnagesh immediately changed his Twitter handle @ramanheist and pretended to be a Pakistani user @criccrazygirl but his handle was tracked down by fact-check websites. Mumbai Police said, Ramnagesh is cooperating in the probe, he may not be a serial offender and he has now realized his mistake.
What happened to cricketer Virat Kohli is just one example out of lakhs of such cases that take place daily on social media. The problem is: there is no stringent IT law and our system is not fully equipped to deal with such cases. The present IT Act is 20 years old. It was framed in 2001 when Facebook, Twitter, WhatsApp and Instagram hardly existed in the daily life of an Indian.
With fast-paced technological advancement, cyber security and safety have to be given a strong edge. Under the proposed amendments, if any person posts a defamatory, objectionable or obscene comment against anybody, he can be traced and tracked, and he would not be given to hide under any fake identity. Location will be traced in real time or within a definite time frame. Online sexual harassment will be defined under the new IT Act and provisions will be made for punishing those who post morphed images and make intimidatory threats.
The Centre had to step in because giant social media companies failed to take action against such evildoers, who post obscene, hateful and derogatory comments and videos. A former employee and whistleblower of Facebook has revealed before a US Congressional committee how top bosses in her company ignored hate comments that were posted on the platform. It has been found that once a hateful comment or image is posted, Facebook seldom removes the comment or image, unless a complaint is made. It is in this backdrop that the Minister of State for Electronics and Information Technology, Rajeev Chandrasekhar has said that there must be effective safeguards and security checks against hate crime, fake news, cyber bullying, child pornography and similar other crimes on social media. The new IT rules circulated to social media companies are a part of this series of proposed steps.
India is the world’s biggest market for social media platform users. In India, there are 34 crore Facebook users, 14 crore Instagram accounts, 2.25 crore Twitter accounts, and 1.5 crore users on Indian Koo app, leaving aside the users of WhatsApp. Indians use Twitter not only to express their opinions but also to air their grievances, because most of the government agencies and officials have Twitter handles. Business, politics, marriages, and even crimes take place using this social media space.
During this year’s Durga Puja festivities, a fake news about alleged desecration of Holy Quran was posted on Facebook in Bangladesh, and this resulted in angry Muslim mobs setting fire to Hindu temples, Puja pandals and homes. In India, a fake video of an old Muslim man’s beard being shaved forcibly was circulated resulting in communal tension. There were objectionable posts on Facebook during the farmers’ tractor march to Red Fort on Republic Day this year. Some weeks ago, in Assam, the video of a cameraman beating up a dead man in the presence of police caused outrage, but videos of people attacking a police party with weapons were withheld. Similar videos about communal tension in Tripura were also circulated, creating a law and order situation.
Information Technology Act needs to be updated at the earliest to prevent mischief mongers from creating tension. Some people use social media to settle personal scores. There are also people who want to divide society by creating communal tension. Politicians are using social media tools against their rivals daily. In the new provisions that are proposed to be incorporated, anybody who posts or circulates information, images and videos on social media will have to undertake the responsibility of proving that the information, image or video posted is true. Or else, face action.