Rajat Sharma

My Opinion

कश्मीरी अवाम पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को समझें और मिल कर नाकाम करें

akbकश्मीर घाटी में गुरुवार को जो कुछ भी हुआ, वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। दहशतगर्दों ने स्कूल में घुसकर वहां मौजूद स्टाफ के आई कार्ड चेक किए, फिर मुसलमानों को हिंदुओं और सिखों से अलग किया। आतंकियों ने मुसलमानों से कहा कि नमाज का वक्त हो गया है, आप लोग घर चले जाइए। इसके बाद 3 दहशतगर्दों ने महिला प्रिंसिपल, जो कि एक सिख थीं, और एक हिंदू टीचर को रोका और उनकी गोली मारकर हत्या कर दी।

यह खूनी वारदात सरकार द्वारा संचालित संगम ईदगाह बॉयज हायर सेकेंडरी स्कूल में सुबह 10.30 बजे हुई। उस वक्त सभी टीचर परीक्षा का शेड्यूल तैयार करने में व्यस्त थे। दहशदगर्दों ने 44 वर्षीय महिला प्रिंसिपल सुपिंदर कौर और उनके सहयोगी दीपक चंद, जो कि जम्मू के रहने वाले एक हिंदू थे, को स्कूल की बिल्डिंग से बाहर आने को कहा और फिर उनपर गोलियों की बौछार कर दी। खून-खराबे के बाद आतंकी आराम से कैंपस से बाहर निकल गए।

इन अलगाववादी दरिंदों ने इस तरह एक बार फिर इंसानियत का कत्ल कर दिया। इन राक्षसों ने एक बार फिर मुसलमानों, हिंदुओं और सिखों के बीच घाटी में पनप रही कश्मीरियत का खून करने की कोशिश की। इन हैवानों ने कश्मीर को एक बार फिर जन्नत से जहन्नुम बनाने की कोशिश की है।

गुरुवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में पहले तो हम मारे गए लोगों के परिजनों का रोना-बिलखना दिखाने से हिचक रहे थे, लेकिन फिर इन्हें दिखाने का फैसला किया ताकि दुनिया इन वीभत्स हत्याओं के बारे में जान सके। सॉफ्ट टारगेट पर हमला करने के पीछे का आतंकियों का मंसूबा साफ है। वे चाहते हैं कि घाटी में धार्मिक आधार पर विभाजन पैदा किया जाए। ये तस्वीरें दिखाती हैं कि पिछले 2 सालों से शांति और सौहार्द से रह रही घाटी में अशांति पैदा करने के लिए वे कितने बेताब हैं।

पिछले 5 दिनों में आतंकवादियों ने 7 निर्दोष नागरिकों की जान ली है, जिनमें से 4 गैर-मुस्लिम थे। आतंकियों ने जिन लोगों को मौत के घाट उतारा उनमें से 2 कश्मीरी पंडित भी थे। इन लोगों को केवल इसलिए मारा गया क्योंकि वे गैर-मुस्लिम थे। चुन-चुनकर की गई इन हत्याओं के पीछे का मकसद बिल्कुल साफ है।

अपने शो में मैंने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से बात की, जिन्होंने संकल्प लिया कि इन जघन्य अपराधों के दोषियों को सज़ा मिलकर रहेगी।

मनोज सिन्हा ने इन हत्याओं को ‘कायराना हरकत’ करार दिया। उन्होंने कहा कि पहली बार आतंकियों ने किसी महिला की इस तरह हत्या की है। उन्होंने कहा, ‘वह महिला प्रिंसिपल यतीम बच्चों की सेवा करती थीं, उनकी तालीम के लिए काम करती थीं। मृतकों के परिजनों की आंखों के आंसुओं की एक-एक बूंद का इन आतंकियों से सूद सहित और कायदे से हिसाब किया जाएगा। इन टारगेटेड किलिंग्स के पीछे के इरादे साफ हैं। आतंकवाद फैलाने की जो कोशिश कुछ यहां के लोग और कुछ कहीं और बैठे उनके आका कर रहे हैं, उनसे निपटने के लिए मैंने सुरक्षाबलों को पूरी आजादी दी है। इस तरह विशेष समुदायों से जुड़े लोगों को गोलियों से भून देने के पीछे एक साफ पैटर्न नजर आता है। ये लोग संदेश देना चाहते हैं कि इन्हें घाटी में शांति, सद्भाव और विकास नहीं चाहिए।’

लेफ्टिनेंट गवर्नर ने कहा, ‘पिछले 2 सालों से घाटी में शांति थी। अकेले इसी साल जुलाई में कश्मीर में 10.5 लाख लोग घूमने के लिए आए थे। अगस्त में यहां 11.28 लाख पर्यटक आए और सितंबर में पर्यटकों की संख्या 12.25 लाख के आंकड़े को पार कर गई थी। आतंकवादी आम लोगों की जिंदगी तबाह करना चाहते हैं। वे कश्मीर में विभिन्न समुदायों के बीच भाईचारे को खत्म करना चाहते हैं। लेकिन यदि ये हत्यारे पाताल में भी जाकर छिपे होंगे तो उन्हें खोजकर सजा देने का काम प्रशासन करेगा।’

सिन्हा ने कहा, ‘मैं जम्मू-कश्मीर के सामान्य नागरिकों से अपील करना चाहता हूं कि ऐसे तत्वों से सावधान रहने की जरूरत है। यहां की परंपरा और संस्कृति को कायम रखने की आवश्यकता है। मैं घाटी के सभी बुद्धिजीवियों और युवाओं से आग्रह करना चाहता हूं कि आतंकवादियों को सांप्रदायिक कलह के बीच न बोने दें और भाईचारे को किसी भी हाल में न बिगड़ने दें। हमें आतंकवादियों के बीच एक नया ट्रेंड देखने को मिला है और मैं वादा करता हूं कि शुक्रवार और शनिवार तक सबकुछ जनता के सामने होगा। हमने बुधवार को सुरक्षाबलों के कमांडरों के साथ शीर्ष स्तरीय बैठक की थी और नई रणनीति तैयार की गई है। जल्द ही हालात पर काबू पा लिया जाएगा। हम घाटी में सिखों, हिंदुओं और कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा का पूरा मुकम्मल इंतजाम करेंगे।’ मुझे लगता है कि लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास कुछ ऐसी खुफिया जानकारी थी, जिसे वह शेयर नहीं करना चाहते थे। ऐसा लगता है कि पुलिस ने हत्यारों की पहचान कर ली है और उन्हें पकड़ने की कोशिश कर रही है।

इन हत्याओं के बाद श्रीनगर के मेयर जुनैद मट्टू ने जो कहा, वह हर भारतीय और हर कश्मीरी को सुनना चाहिए। मट्टू ने कहा, ‘जो लोग आतंकवादियों को मिलिटैंट कहते हैं वे आम कश्मीरियों के दर्द को कभी नहीं समझ पाएंगे। बेगुनाहों और महिलाओं का खून बहाने वालों को किसी भी सूरत में मिलिटैंट्स नहीं कहा जा सकता। वे हैवान हैं। वे इस्लाम और इंसानियत के दुश्मन हैं। पूरे कश्मीर को साथ आकर इन्हें जवाब देना चाहिए।’

हमारे श्रीनगर के रिपोर्टर मंजूर मीर ने बताया कि स्कूल की तरफ जाने वाला रास्ता घने जंगल से होकर जाता है, और आतंकवादियों ने अपनी कायराना हरकत को अंजाम देने के लिए इसी बात का फायदा उठाया। परीक्षा की तैयारी में व्यस्त होने के कारण स्कूल में कोई छात्र नहीं था। शिक्षक स्कूल में सुबह की चाय पी रहे थे कि तभी तीनों युवक पिस्टल लेकर अंदर घुस गए। उन्होंने एक लाइन से सारे टीचर्स और महिला प्रिंसिपल को खड़ा किया और फिर लोगों का मजहब पता करने के लिए सबके पहचान पत्रों, यहां तक कि वोटर आई-कार्ड और आधार कार्ड की जांच की।

प्रिंसिपल सुपिंदर कौर अपने पीछे 2 बच्चे छोड़ गई हैं। उनकी बेटी आठवीं कक्षा में पढ़ती है और बेटा तीसरी कक्षा में पढ़ रहा है। उनके पति बैंक में नौकरी करते हैं। टीचर्स परीक्षा करवाने के लिए ड्यूटी चार्ट तैयार करने स्कूल आए थे। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि स्कूल में आतंकवादी घुस आएंगे, उनका धर्म पूछेंगे और फिर उनमें से 2 को गोली मार देंगे। हत्यारों के जाने के बाद सभी टीचर्स शॉक्ड रह गए और उनमें से ज्यादातर जहां थे, वे वहीं बैठकर रो रहे थे।

आतंकियों द्वारा कत्ल किए गए हिंदू टीचर दीपक चंद जम्मू के रहने वाले थे। उन्होंने 3 साल पहले ही नौकरी जॉइन की थी। वह अपनी पत्नी और 3 साल की बच्ची के साथ श्रीनगर में ही किराए के मकान में रहते थे और इस स्कूल में पढ़ाया करते थे। दीपक 5 दिन पहले पिता की बरसी मनाकर जम्मू से लौटे थे, लेकिन गुरुवार को जब स्कूल पहुंचे तो घर वापस लौटकर नहीं आए। दीपक की पत्नी कुछ कहने-सुनने की हालत में नहीं हैं। दीपक के चचेरे भाई ने इंडिया टीवी के रिपोर्टर को बताया कि उन्होंने उनसे फोन पर कहा था कि वह श्रीनगर में व्यापारी मक्खन लाल बिंद्रू की हत्या से घबराए हुए हैं, लेकिन यह भी कहा था कि चूंकि श्रीनगर के लोग अच्छे और मददगार हैं, इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है।

सरकार उन लोगों के जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश करेगी जिनके परिवार पर आतंकवादियों ने कायराना हमला किया और उनके अपनों की जान ली। पुलिस उन आंतकवादियों को पकड़ेगी या मौत के घाट उतार देगी, जिन्होंने बेगुनाहों का खून बहाया। लेकिन क्या इससे आतंकवादियों की साजिश नाकाम होगी? क्या इससे कश्मीरियत बच जाएगी?

बिल्कुल नहीं। कश्मीरियत सिर्फ तभी बचेगी जब लोग आतंकवादियों और उनके आकाओं के असली मकसद को समझेंगे और उसके हिसाब से करारा जबाव देंगे। इसलिए मैं आपको बताता हूं कि असली मकसद क्या है।

असल में पिछले 2 सालों में आतंकवादियों ने सुरक्षाबलों पर हमले करके देख लिए। वे नाकाम रहे और मारे गए। इसके बाद कश्मीर पुलिस पर हमले किए, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। फिर उन्होंने आम कश्मीरियों का खून बहाया, कश्मीरी मुसलमानों की जान ली, नमाज पढ़ते वक्त कश्मीरियों को पीठ पर गोली मारी लेकिन लोग नहीं डरे। कश्मीरी मुसलमानों ने आतंकवादियों को अपने घरों में पनाह देना बंद कर दिया। उल्टे लोग आतंकवादियों के बारे में सुरक्षाबलों को आतंकियों के बारे में खुफिया जानकारी देने लगे।

अब जब घाटी में शांति लौट आई है, व्यापार एवं सामान्य जीवन फिर से शुरू हो गया है, तो 4500 से ज्यादा कश्मीरी पंडित कश्मीर लौट आए हैं। नब्बे के दशक में चले गए 44,000 कश्मीरी पंडितों में से कइयों के वापस लौटने के संकेत मिलने लगे थे। इन कश्मीरी पंडितों को घाटी के लोगों ने फिर से गले लगाना शुरू कर दिया था। लौटने की इच्छा रखने वाले कश्मीरी पंडित परिवारों ने राज्य सरकार को ऐप्लिकेशन देकर फिर से कश्मीर में बसने की इच्छा जताई।

यही बात पाकिस्तान में बैठे आतंकियों को आकाओं को अखर गई। इसलिए अब पाकिस्तान की तरफ से आतंकवादियों को कश्मीरियत का कत्ल करने का हुक्म दिया गया है, जिससे एक बार फिर सिख और कश्मीरी पंडित, कश्मीरी मुसलमानों पर शक करें। वे चाहते हैं कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफरत पैदा हो। लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि कश्मीर के हिंदू, सिख और मुसलमान पाकिस्तान की इस साजिश को समझेंगे और सब मिलकर उसे नाकाम करेंगे।

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How Kashmiris can foil the evil designs of terrorists and their Pakistani handlers

akb fullWhat happened in the Valley on Thursday was unprecedented. Terrorists segregated Kashmiri Muslims from Sikhs and Hindus, asked Muslim teachers to leave the school and then killed the lady principal, a Sikh, and a Hindu male teacher. Before segregating, the three terrorists asked the teachers to show their IDs, checked each one of them, and then told Muslim teachers that it was time for their Namaaz and they should leave.

The bloodbath took place at the government-run Sangam Eidgah Boys’ Higher Secondary School at around 10.30 am. The teachers were then busy preparing the exam schedules for the students. The killers asked the 44-year old lady principal, Supinder Kaur, and her colleague Deepak Chand, a Hindu resident from Jammu, to come out of the school building, and they were shot multiple times. The terrorists coolly walked out of the campus.

In the process, the separatists have murdered humanity in cold blood. They have tried to kill the soul of Kashmiriyat that thrives in the Valley among Muslims, Hindus and Sikhs. They sought to convert the Kashmir paradise into a purgatory hell.

In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Thursday night, we were initially reluctant to show the screams and wails of the kin of those killed, but then decided to show these so that the world can realize the gruesome nature of the killings. The motive of terror groups behind taking out soft targets, with a clear intent to create communal division in the Valley, is apparent. These images show how desperate they are to create disturbance in a Valley that was living in peace and amity for the last two years.

In the last five days, terrorists have gunned down seven innocent civilians, out of whom four were non-Muslims. There were two Kashmiri Pandits among them. The civilians were killed only because they were non-Muslims. The aim behind these selective, targeted killings is clear.

In my show, I spoke to Jammu and Kashmir Lt. Governor Manoj Sinha, who vowed that the perpetrators of these heinous crimes will not go unpunished.

Manoj Sinha described the killings as “an act of cowardice”. He said, for the first time, a woman has been killed by terrorists. “The lady principal used to work for the upliftment and education of orphan children. ..Every drop of tear from the eyes of the kin of those killed will be accounted for, and the killers will have to pay for this act, with interest. These are targeted killings with clear motives on part of their handlers sitting elsewhere. I have given full powers to the forces to act fast and eliminate such elements. I find a clear pattern behind the killings of civilians belong to particular communities. They want to convey the message that they do not want peace and prosperity in the Valley.”

The Lt. Governor said, “For the last two years, there was peace in the Valley. In July this year alone, 10.5 lakh tourists visited Kashmir. In August 11.28 lakh tourists came here, and in September, the number of tourists crossed 12.25 lakhs. Terrorists want to destroy the lives of common people. They want to end communal brotherhood in Kashmir, but our government will try to catch the killers, even if they hide in ‘paataal’ (hell).”

Sinha said: “I appeal to the people of Kashmir to maintain communal harmony by upholding the great traditions and culture of this region. I appeal to all intellectuals and youths in the Valley not to allow terrorists to sow seeds of communal discord. We find a new trend among the terrorists, and I promise that by Friday and Saturday, we will be able to place new disclosures before the public. We had a top level meeting on Wednesday with force commanders and a new strategy has been prepared. The situation will be brought under control very soon. We will make full arrangements for the safety and security of Sikhs, Hindus and Kashmiri Pandits in the Valley.” I think the Lt. Governor has more secret information with him, which he was unwilling to share. It seems that police have identified the killers, and are trying to nab them.

Every Indian and every Kashmiri should hear what the Mayor of Srinagar Junaid Mattoo said after the killings. Mattoo said, “Those who describe terrorists as militants will never understand the pains of common Kashmiris. Those who kill innocents and women, can, by no stretch of imagination, be called militants. They are savages. They are enemies of Islam and Insaniyat (humanity). The entire Valley should rise and rebuff these elements.”

Our Srinagar reporter Manzoor Mir said, the road leading to the school goes through thick forest, and terrorists used this as a cover to carry out their cowardly act. There were no students in the school as they were busy preparing for their exams. Teachers were having morning tea in school, when the three youths walked in, carrying pistols. They checked identity cards, Aadhar and even voter I-Cards to check the religion of each of the teachers, who were asked to stand in a line, along with the lady principal.

Principal Supinder Kaur has left behind a daughter studying in Class 8 and a son studying in Class 3. Her husband works in a bank. The teachers had come to the school to prepare duty charts for conduct of examinations. No one had ever dreamed that terrorists would walk in, ask their religion and then shoot two of them dead. After the killers left, the teachers sat in a group, sad and shocked. Most of them were weeping.

The slain Hindu teacher Deepak Chand hailed from Jammu. He had joined service three years ago, had come to Srinagar with his wife and three-year-old daughter, stayed in a rented house, and had been teaching in this school. Deepak had returned from Jammu five days ago after carrying out rites for his father’s death anniversary, but Thursday was his last day. Deepak’s wife continues to be in a state of shock. His cousin told India TV reporter that Deepak had told him over phone that he was shocked over the killing of businessman Makhan Lal Bindroo in Srinagar, but had also said that since the people of Srinagar are nice and helpful, he had nothing to fear.

The government will help the families of those killed by terrorists, police and security forces will nab or shoot the killers, but the moot point remains: Will the conspiracies of terrorists come to an end? Can Kashmiriyat be saved?

Not at all. Kashmiriyat can be saved only when people realize the true motives of terrorists and their handlers, and rebuff them by giving a strong reply. Let me tell you what are the main motives.

For the last two years, terrorists made all out efforts to attack security forces, they were eliminated. They attacked Kashmir policemen, but failed to achieve their objective. They started killing civilians, including Kashmiri Muslims, shot people in the back when they were offering Namaaz prayers, but the common man remained unafraid. People in the Valley stopped giving shelter to terrorists. On the contrary, people started giving secret info about terrorists to the police.

The result: More than 550 terrorists were killed in the Valley during the last two years. Now that peace returned to the Valley and business and normal life resumed, more than 4,500 Kashmiri Pandits have returned to Kashmir. There were indications about the return of many out of the 44,000 Kashmiri Pandits who had left during the Nineties. Kashmiri Pandits who returned were welcomed with affection by the people of the Valley. Kashmiri Pandit families, who wished to return, started applying to the state government offering to return.

Handlers of terrorists sitting in Pakistan were offended by these developments. Terrorists were asked by Pakistani handlers to specifically select people from minorities and kill them, so that Hindus and Sikhs in Kashmir start suspecting their Muslim brethren. They want to create an abyss of hatred between communities. I am fully confident that Hindus, Sikhs and Muslims living in Kashmir, will understand this devious Pakistani plot and foil it.

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श्रीनगर में कश्मीरी पंडित की हत्या करने वाले को बहादुर बेटी ने खुली चुनौती दी

AKBआज मैं एक बहादुर कश्मीरी पंडित लड़की की कहानी लिखने जा रहा हूं, जिसने ‘द रेसिस्टेंस फोर्स’ से जुड़े आतंकवादियों को खुलेआम चुनौती दी है। इस नए आतंकी संगठन में लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिद्दीन के हत्यारे शामिल हैं। इस बहादुर बेटी ने अपने पिता के हत्यारों को चुनौती दी कि वे उसकी आंखों में आंखें डालकर बताएं कि उन्होंने उसके 68 वर्षीय फार्मासिस्ट पिता मक्खन लाल बिंद्रू पर गोलियां क्यों बरसाईं। बिंद्रू की मंगलवार शाम को मौके पर ही मौत हो गई। उन्हें 4 गोलियां मारी गई थीं।

बिंद्रू एक जाने-माने कश्मीरी पंडित व्यवसायी थे, जो नब्बे के दशक के दौरान उग्रवाद की शुरुआत के दौरान भी घाटी छोड़कर नहीं गए थे। उस समय लाखों कश्मीरी पंडितों ने आतंकवादियों की धमकी के बाद कश्मीर से पलायन किया था। बिंद्रू श्रीनगर में ही रहे और कट्टरपंथियों की धमकियों को धता बताते हुए अपनी दवा की दुकान चलाते रहे। उन्होंने और उनकी पत्नी ने दुकान का काम संभाला और यह कई सालों से गुणवत्तापूर्ण दवाओं के लिए एक भरोसेमंद नाम बनी हुई थी। बिंद्रू हिंदू हो या मुसलमान, सभी कश्मीरियों की मदद करते थे और यहां तक कि गरीबों को इलाज के लिए पैसे भी देते थे। बुधवार को घाटी के सैकड़ों हिंदू और मुसलमान भाईचारे का अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए बिंद्रू के अंतिम संस्कार में शामिल हुए। संक्षेप में कहें तो यही वो कश्मीरियत है जो सदियों से घाटी में फल-फूल रही है।

बिंद्रू के अंतिम संस्कार के दौरान उनकी बेटी डॉ श्रद्धा, जो PGI चंडीगढ़ में मेडिसिन की एसोसिएट प्रोफेसर हैं, ने आतंकियों को खुली चुनौती देते हुए उन्हें कायर कहा। उनका यह वीडियो जल्द ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने श्रद्धा का हत्यारों को लताड़ते हुए वीडियो दिखाया। डॉ श्रद्धा ने कहा, ‘मेरे पिता एक कश्मीरी पंडित थे। वह कभी नहीं मरेंगे। आतंकवादी केवल उनके शरीर को मार सकते हैं, लेकिन मेरे पिता की आत्मा और उनका जज्बा हमेशा जीवित रहेंगे। मेरे पिता एक योद्धा थे, वह एक योद्धा की तरह शहीद हुए। वह हमेशा कहते थे, ‘मैं खिदमत करते ही रुखसत हो जाऊंगा।’ आप एक व्यक्ति को मार सकते हैं, लेकिन आप मक्खन लाल की आत्मा को नहीं मार सकते। जिसने भी मेरे पिता को गोली मारी है, मेरे सामने आओ। मेरे पिता ने मुझे पढ़ाया-लिखाया है, लेकिन नेताओं ने तुम्हें बंदूकें और पत्थर पकड़ा दिए। तुम बंदूकों और पत्थरों से लड़ना चाहते हो? यह कायरता है। ये सभी नेता तुम्हारा इस्तेमाल कर रहे हैं।’

श्रद्धा जब बोल रही थीं तो उनकी आंखों में आंसू की एक बूंद तक नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘जिसने भी अपना काम कर रहे मेरे पिता की जान ली, अगर तुममें ताकत है तो सामने आओ और मेरे साथ बहस करो। तुम एक लफ्ज नहीं बोल पाओगे। तुम केवल इतना जानते हो कि कैसे पथराव किया जाता है और कैसे पीठ पीछे लोगों को गोलियां मारी जाती हैं।’

बहादुर डॉक्टर ने कहा, ‘मैं एक एसोसिएट प्रोफेसर हूं। मैंने शून्य से शुरुआत की थी। मेरे पिता ने अपना व्यवसाय साइकिल से शुरू किया था। मेरा भाई एक मशहूर डॉक्टर है। मेरी मां एक महिला होकर फार्मेसी की दुकान पर बैठती हैं। यह सब हमारे पिता मक्खन लाल बिंद्रू की वजह से है। वह एक कश्मीरी पंडित थे, वह कभी नहीं मर सकते। एक हिंदू होने के बावजूद मैंने कुरान पढ़ी है। कुरान कहती है कि शरीर का चोला तो बदल जाएगा लेकिन इंसान का जज्बा कहीं नहीं जाएगा। मेरे पिता की आत्मा हमेशा जीवित रहेगी। वह एक बहुत अच्छे इंसान थे जिन्होंने कश्मीर और कश्मीरियत की खिदमत की। पथराव करने और गोलियां चलाने से आप कभी भी कश्मीर या कश्मीरियत को नहीं जीत सकते।’

डॉ श्रद्धा ने आगे कहा: ‘मैंने कश्मीर में पढ़ाई की। मैं अपने स्कूल में पढ़ने वाली अकेली हिंदू लड़की थी। मैंने ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई नहीं की है। मेरे पिता ने हमें शिक्षा दी। सभी कश्मीरी पंडित अपने बच्चों को शिक्षा देते हैं, जो बाद में अमेरिका, ब्रिटेन और दुनिया के अन्य हिस्सों में जाकर काम करते हैं। मुझे आपकी हमदर्दी की जरूरत नहीं है। मेरे पिता ने मुझे शिक्षा और अपने जज्बे से काफी मजबूत बनाया है।’

हत्यारों ने इकबाल चौक में मक्खन लाल बिंद्रू को गोली मारने के बाद लाल बाजार इलाके में सड़क पर भेलपुरी बेचने वाले को गोली मार दी। इसके बाद उन्होंने एक और शख्स का कत्ल किया और भाग गए। घाटी हाल ही में आतंकियों द्वारा निहत्थे नागरिकों की हत्या करने की कई कायरना हरकतों की गवाह रही है। बिंद्रू के बेटे डॉक्टर सिद्धार्थ बिंद्रू, जो कि एक डायबेटोलॉजिस्ट हैं, ने इंडिया टीवी के रिपोर्टर मंजूर मीर से बातचीत में बताया कि कैसे उनके पिता उस वक्त भी बीमारों की सेवा में अपना सब कुछ न्योछावर कर देते थे, जब कश्मीर में दवाओं की शॉर्टेज थी। उनके बेटे ने कहा कि जो दवाएं कश्मीर में नहीं मिलती थीं, उन दवाओं को लेने के लिए उनके पिता दिल्ली जाते थे, और अपना पैसा खर्च कर फ्लाइट से आना-जाना करते थे, ताकि घाटी के लोगों को जल्द से जल्द दवाएं मिल सकें। उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता की हत्या नहीं हुई है, वह शहीद हुए हैं। वह कश्मीर के लिए ताउम्र जिए, और कश्मीरियत के वास्ते ही दुनिया से रुखसत हो गए।’

नेशनल कांफ्रेंस के संरक्षक और पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला ने बिंद्रू के परिजनों से मुलाकात कर उन्हें सांत्वना दी। अब्दुल्ला ने हत्यारों को ‘शैतान’ और ‘दरिंदा’ करार दिया। उन्होंने बिंद्रू के परिवार के सदस्यों से अपनी की कि वे उनकी मौत के बाद घाटी छोड़कर न जाएं। डॉ अब्दुल्ला ने डॉ सिद्धार्थ बिंद्रू को कश्मीर में रहने और अपने पिता की समृद्ध विरासत को आगे बढ़ाने की सलाह दी। उन्होंने कहा, ‘यदि आप घाटी छोड़कर चले जाएंगे तो आतंकवादी कश्मीरियत को तबाह करने के अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे।’

बिंद्रू की पत्नी बेहद गमगीन थीं। उनके परिजनों ने अभी तय नहीं किया है कि वे अब घाटी में रहेंगे या नहीं। बेटी श्रद्धा ने इंडिया टीवी को बताया: ‘मेरे पिता ने अपना पूरा जीवन कश्मीरियों की मदद के लिए समर्पित कर दिया, और फिर भी उनकी निर्मम हत्या कर दी गई। हमारा भरोसा टूट गया है। हमारे भरोसे का खून हुआ है। हम वादों पर कैसे यकीन कर सकते हैं? हम कश्मीर, कश्मीरियत और यहां की खूबसूरत फिजा से प्यार करते हैं। हम तो उन आतंकवादियों से भी नफरत नहीं करते जिन्होंने मेरे पिता की हत्या की।’

डॉ श्रद्धा ने कहा, ‘मैं सिर्फ कश्मीर के नौजवानों से इतना कहना चाहती हूं कि अगर जीतना है तो लोगों का दिल जीतो। जीवन में आगे बढ़ना है तो पहले तालीम लो। अगर कश्मीर चाहिए तो पहले कश्मीरियों की खिदमत करो। खून बहाने से खुद बर्बाद हो जाओगे। न कश्मीर मिलेगा, और न खुद बचोगे।’

अपनी भावनाओं पर काबू पाते हुए उन्होंने कहा: ‘मैं एक कश्मीरी हूं। मैं कश्मीरियों की समस्याओं को जानती हूं। कई कश्मीरियों के साथ गलत हुआ है। लेकिन एक ऐसे शख्स को गोली मारना जो कश्मीरियों की मदद कर रहा था? आप आने वाली पीढ़ियों को क्या संदेश दे रहे हैं? आप नफरत का मुकाबला नफरत से नहीं कर सकते। कश्मीरियों के लिए काम करने वाले शख्स को पीछे से गोली मारना कायरता है। मेरे पिता ने मुझे शेरों की तरह बहादुर बनना सिखाया। उन्होंने हमें मानसिक रूप से बहुत मजबूत बनाया। मैं घाटी में मुस्लिम लड़कों के बीच पढ़ने वाली अकेली हिंदू लड़की थी। मेरे सभी साथियों ने मेरे साथ अच्छा व्यवहार किया। इतने मुसलमान हमारे घर खाना खाने आते थे।’

यह पूछे जाने पर कि क्या उनका परिवार घाटी में रहेगा, श्रद्धा ने कहा: ‘हम डरते नहीं हैं, लेकिन हमारा भरोसा टूट गया है। यहां रहने का मन ही नहीं करेगा। ऐसे लोगों के साथ रहने का क्या मतलब है जो आपका भरोसा तोड़ते हैं?’

बुधवार को श्रीनगर के मेयर ने ऐलान किया कि जिस सड़क पर मक्खन लाल बिंद्रू की दवा की दुकान थी, वह अब उनके नाम से जानी जाएगी। हफ्त चिनार चौक से जहांगीर चौक तक सड़क का नाम बदलकर एमएल बिंद्रू रोड किया जाएगा।

मैं मक्खन लाल बिंद्रू और उनकी बेटी श्रद्धा को उनके साहस और दृढ़ इच्छाशक्ति के लिए सलाम करता हूं। एक बहादुर बेटी ही अपने पिता के हत्यारों को हिंसा का रास्ता छोड़कर तालीम हासिल करने की सलाह दे सकती है। लेकिन दहशतगर्दों के पास न तो दिल होता है और न ही दिमाग। उनका धर्म या इंसानियत में यकीन नहीं होता। वे न तो कश्मीर को जानते हैं और न ही कश्मीरियत को। वे केवल खून बहाना और गोलियां चलाना जानते हैं। वे सिर्फ बंदूक की भाषा समझते हैं, और उनका वही इलाज है। जिन आतंकियों ने मक्खन लाल बिंद्रू की हत्या की है, उनकी एक ही सजा है- मौत। क्योंकि वे कश्मीर के दुश्मन हैं और कश्मीरियत के हत्यारे हैं।

मुझे याद है कि कश्मीरी पंडितों पर जुल्म का सिलसिला 1990 में शुरू हुआ था। इसी तरह की हत्याओं ने, इसी तरह की दहशतगर्दी ने करीब 45,000 कश्मीरी पंडितों के परिवारों को घर-बार छोडकर भागने के लिए मजबूर कर दिया था। करीब 1.5 लाख कश्मीरी पंडित अपने देश में आज भी बेघरों की तरह रह रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कश्मीरी पंडितों की वापसी और उनके पुनर्वास का काम शुरू किया और उसका असर भी हुआ। कश्मीरी पंडितों में भरोसा जगा, और इसी वजह से करीब 4,000 कश्मीरी पंडित घाटी में वापस लौटे। घर वापसी का यह सिलसिला जारी है और धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहा है। और यही बात कश्मीर के दुश्मनों, सरहद पार बैठे आतंकी सरगनाओं को पसंद नहीं आई। आतंक के आकाओं ने तब लोगों के दिलों में दहशत पैदा करने के लिए उस शख्स को निशाना बनाने का फैसला किया, जो घाटी में कश्मीरी पंडितों का सबसे चर्चित चेहरा था।

मुझे यकीन है कि कश्मीरी पंडितों को डराने की, उन्हें कश्मीर से दूर रखने की पाकिस्तान की साजिश कभी कामयाब नहीं होगी। उन्होंने एक मक्खनलाल बिंद्रू को मार डाला, लेकिन हजारों मक्खनलाल बिंद्रू सामने आएंगे और कश्मीरियत को जिंदा रखेंगे।

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How a brave Kashmiri Pandit daughter challenged those who shot her father in Srinagar

akbToday I will write about the story of a brave Kashmiri Pandit girl who openly challenged terrorists belonging to The Resistance Force. This new terror outfit comprises of Lashkar and Hizbul killers. The daughter challenged the killers to come and debate with her on why they shot her 68-year-old pharmacist father Makhan Lal Bindroo, from point blank range, killing him on the spot on Tuesday evening. His body was riddled with four bullets.

Bindroo was a well-known Kashmiri Pandit businessman who did not migrate from the Valley during the onset of militancy, during the Nineties, when lakhs of Kashmiri Pandits fled after threats from terror groups. He continued to stay in Srinagar, and ran his medicine shop, defying threats from radicals. He and his wife ran the shop, which, over the years, became a trusted name for quality medicines. Bindroo used to help Kashmiris, both Hindus and Muslims, and even went to the extent of giving money to poor people for treatment. On Wednesday, hundreds of Hindus and Muslims in the Valley joined Bindroo’s funeral in a rare show of brotherhood. This, in essence, is Kashmiriyat that has thrived in the Valley for centuries.

It was during this funeral, that Bindroo’s daughter Dr Shraddha, an associate professor of medicine at PGI Chandigarh, openly challenged the terrorists and called them cowards. Her video soon went viral over social media. In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Wednesday night, we showed the video of Shraddha heaping scorn at the killers. Dr Shraddha said, “My father was a Kashmiri Pandit. He will never die. Terrorists can only kill his body, but my father will always remain alive in spirit. My father was always a fighter, he always said, ‘I will die with my shoes on’. You can kill one person, but you cannot kill the spirit of Makhan Lal. Whoever shot dead my father, come in front of me. My father gave me education, but politicians gave you guns and stones. You want to fight with guns and stones? This is cowardice. All these politicians are misusing you as tools.”

Without a drop of tear in her eyes, Dr Shraddha said: “Let the man who shot my father while he was working, if you have the guts and courage, come and have a face-to-face debate with me. You won’t be able to utter a word. All you can do is throw stones and shoot people from behind.”

The brave doctor said: “I am an associate professor. I started from zero. My father started his business from a bicycle. My brother is a famous diabetologist. My mother sits in the shop. This is what Makhan Lal Bindroo made us. He was a Kashmiri Pandit, he will never die. I am a Hindu and I have read the Holy Quran. The Holy Quran says, you may kill the body, but the spirit lives on. My father’s spirit will always remain alive….He was an awesome person who served Kashmir and Kashmiriyat. By throwing stones and firing bullets, you can never win Kashmir or Kahmiriyat.”

Dr Shraddha went on: “I studied in Kashmir. I was the only Hindu girl studying in school. I did not study in Oxford. My father gave us education. All Kashmiri Pandits give education to their children, who later go to the US, UK and work in other parts of the world. ..I do not need your sympathy. My father has made me strong by imparting education and will power.”

The killers after shooting M L Bindroo in Iqbal Chowk, went on a killing spree, and murdered two other civilians, including a vendor selling bhelpuri. The valley has, of late, witnessed terrorists carrying out acts of cowardice by targeting soft targets like unarmed civilians. Bindroo’s son, Dr Siddharth Bindroo, a diabetologist, spoke to India TV reporter Manzoor Mir, and spoke about how his father used all his resources to procure medicines whenever they were in short supply. He even flew to Delhi to procure medicines to help Kashmiris leaving in the Valley, his son said. “My father was not murdered, he became a martyr. As long as he was alive, he devoted his life to Kashmir and promotion of Kashmiriyat.”

National Conference patron and former Chief Minister Dr Farooq Abdullah met Bindroo’s family members and consoled them. Dr Abdullah described the killers as ‘shaitaans’, ‘darinda’ (savages). He appealed to Bindroo’s family members not to migrate from the Valley after his death. Dr Abdullah advised Dr Siddharth Bindroo to stay in Kashmir and carry forward the rich legacy of his father. “If you leave the valley, the terrorists will achieve their aim of demolishing Kashmiriyat”, he said.

Bindroo’s widow was inconsolable. The family members are yet to decide whether to stay on in the Valley or not. Daughter Shraddha told India TV: “My father devoted his entire life for helping Kashmiris, and yet he was murdered in cold blood. Our trust has been broken. Our trust has been murdered. How can we trust promises that are being made? We love Kashmir, Kashmiriyat, and the beautiful ambience here. We do not hate the terrorists who killed my father.”

“ I only want to tell the Kashmiri youths. If you want to win the battle, win the hearts of people. If you want to move forward in life, get education first. If you want to win Kashmir, serve Kashmiris first. If you continue to kill, you will destroy yourselves. Neither will you get Kashmir nor will you remain alive”, Dr Shraddha said.

Controlling her emotions, she said: ”I am a Kashmiri. I know the problems that Kashmiris have faced. Many Kashmiris have suffered. But to shoot a man who was helping Kashmiris? What message are you conveying to future generations? You cannot counter hate with hate. To shoot a man who was working for Kashmiris, from behind, is cowardice. My father taught me how to be brave as lions. He made us mentally very strong. I was the only Hindu girl studying among Muslim students in the valley. All my colleagues behaved well with me. Muslims came to our home for dinner.”

On asking whether her family would continue to stay in the valley, Shraddha said: “We are not afraid, but our trust has been broken. There is no incentive left to stay here. What is the point in staying with people who break your trust?”

On Wednesday, the Mayor of Srinagar announced that the road on which Bindroo’s medicine shop was located, from Haft Chinar Chowk to Jehangir Chowk, will be renamed M L Bindroo Road.

I salute Makhan Lal Bindroo and his daughter Shraddha for displaying courage and strong will. Only a brave daughter can give advice to the killers of her father to abjure violence and follow the path of education. But terrorists neither have a heart nor brains, they do not believe in religion or humanity, they neither know the true Kashmir nor Kashmiriyat. They only know how to spill blood and fire bullets. They understand the language of gun. They need a matching treatment. Those who killed M L Bindroo deserve death. Because they are enemies of Kashmir and killers of Kashmiriyat.

I remember, in 1990, more than 45,000 Kashmiri Pandit families were forced to migrate from the Valley when terrorist outfits went on a killing spree. Nearly 1.5 lakh Kashmiri Pandits are still living as homeless in their own country. Prime Minister Narendra Modi’s government started the process of rehabilitating Kashmiris and the efforts have shown results. Till date, more than 4,000 Kashmiri Pandits have returned to the Valley. The return of KPs is gradually gaining pace. And the handlers of terror outfits sitting across the border are feeling uneasy. The perpetrators of terror then decided to target the most known face of Kashmiri Pandits in the Valley, in order to strike terror in the hearts of people.

I am confident that Pakistan’s conspiracy to strike fear in the hearts of Kashmiri Pandits who want to return to the Valley will be foiled in the long run. They killed one Makhan Lal Bindroo, but thousands of Makhan Lals will surely come forward to keep the flame of Kashmiriyat alive.

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लखीमपुर खीरी घटना को सियासत में न उलझाएं, निष्पक्ष जांच होने दें

AKBलखीमपुर खीरी का घटना को लेकर सियासी घमासान जारी है और नेताओं के बीच घटनास्थल पर पहुंचने की होड़ लगी है। बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार ने राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और 3 अन्य नेताओं को लखीमपुर खीरी जाने की इजाजत दे दी है। राहुल गांधी अपने 2 मुख्यमंत्रियों भूपेश बघेल और चरनजीत सिंह चन्नी के साथ लखीमपुर खीरी जाने के लिए लखनऊ पहुंचे हुए थे।

इस बीच राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं को लखीमपुर खीरी में दाखिल होने से रोकने के लिए ईस्टर्न पेरीफेरल हाईवे पर बागपत के पास ट्रैफिक बंद कर दिया गया था। बहराइच में एक किसान के अंतिम संस्कार के दौरान कुछ घंटों के लिए इंटरनेट बंद रहा।

झड़प में मारे गए एक किसान के शव का अंतिम संस्कार करने से परिवार के लोगों ने मंगलवार को मना कर दिया था। उन्होंने इस बात पर आपत्ति जताई थी कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में गोली लगने का जिक्र नहीं है। किसान नेता राकेश टिकैत के दखल के बाद तीनों शवों का अंतिम संस्कार कर दिया गया जबकि चौथे शव का फिर से पोस्टमॉर्टम किया जाएगा। राज्य सरकार ने इस घटना की जांच के लिए एडिशनल एसपी अरुण कुमार की अध्यक्षता में 6 सदस्यीय विशेष जांच दल (SIT) का गठन कर दिया है।

लखीमपुर खीरी पुलिस की ओर से जो FIR दर्ज की गई है उसमें साफ तौर पर केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा का नाम मुख्य आरोपी के रूप में दर्ज है। उस पर किसानों की भीड़ को गाड़ी से कुचलने और पिस्टल से फायरिंग करने का आरोप है। आशीष के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या के आरोप दर्ज किए गए हैं। FIR में साफ तौर पर कहा गया है कि आशीष मिश्रा मौके पर मौजूद थे। वह थार जीप पर सवार था और उसके साथ अन्य गाड़ियों में 15 से 20 हथियारबंद लोग थे। FIR में कहा गया है कि आशीष मिश्रा थार जीप में ड्राइवर के पास बाईं तरफ वाली सीट पर बैठा था और उसे भीड़ पर फायरिंग करते हुए देखा गया। FIR में ‘दरिंदगी’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है।

FIR में कहा गया है कि आशीष मिश्रा जीप पलटने के बाद उससे कूदकर बाहर निकला और पास के गन्ने के खेत में छिपने के लिए भागा। FIR में यह भी जिक्र है कि यह सब पूरी तरह पहले से प्लान करने के बाद किया गया। FIR में इस्तेमाल किए गए ज्यादातर शब्द किसानों द्वारा जिले के अधिकारियों को दिए गए आवेदन में लिखे गए शब्दों से मेल खाते हैं।

इससे पहले मंगलवार को केंद्रीय राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी की जीप से किसानों को कुचलने का दर्दनाक वीडियो सामने आने के बाद राजनीतिक दलों ने केंद्रीय राज्यमंत्री को तत्काल पद से हटाने और उनके बेटे को गिरफ्तार करने की मांग की। घटनास्थल का 29 सेकेंड का दिल दहलाने वाला वीडियो किसानों द्वारा शेयर किया गया है। इस वीडियो में नजर आ रहा है कि एक खेत के पास सड़क के दोनों ओर काले झंडे और बैनर के साथ किसान जा रहे थे, लेकिन उनमें से कोई भी पीछे की तरफ नहीं देख रहा था। तभी अचानक पीछे से एक गाड़ी तेजी से आती है। इस वीडियो में ड्राइवर दोनों हाथों से स्टीयरिंग व्हील को थामे नजर आ रहा है। आगे खड़े किसान को जरा भी अंदाजा नहीं था कि गाड़ी उसे कुचलने जा रही है। गाड़ी उसे कुचलते हुए आगे बढ़ जाती है।

ये जानबूझकर की गई हत्या के हृदय विदारक दृश्य हैं। जब गाड़ी आगे चली गई तो पीछे कई लोग जमीन पर पड़े हुए थे। इनमें से कई लोग चीख रहे थे, उनकी सांसें तेज चल रही थी। कोई बेसुध था तो किसी की सांसें टूट रही थी। लेकिन हैरानी की बात ये है कि इस जीप के पीछे आ रही ब्लैक कलर की SUV ने भी रोड पर मौजूद शख्स को रौंद दिया। ये सब कुछ इतनी जल्दबाजी में हुआ कि वहां मौजूद लोगों को कुछ समझ ही नहीं आया। उन्हें जरा भी आभास नहीं था कि पीछे से कोई कार उनके चीथड़े उड़ाने के लिए आगे बढ़ रही थी। कुछ प्रदर्शनकारी तो छलांग लगाकर रास्ते से हट गए लेकिन कुछ लोग गाड़ी से कुचल दिए गए।

एक अन्य वीडियो में आसमानी रंग का कुर्ता पहने हुए एक शख्स थार जीप से उतरकर तेजी से भागता हुआ हुआ दिखाई दिया। उस शख्स का कई लोग पीछा करते हैं और वह खेतों की ओर भागता है। किसानों ने एक और वीडियो शेयर किया जिसमें एक शख्स अपनी पिस्टल लहराते हुए दौड़ रहा है और कुछ लोग उसे घेरे हुए हैं। किसानों का कहना है कि वह शख्स मंत्री का बेटा आशीष मिश्रा था। इस वीडियो को सोशल मीडिया पर बीजेपी सांसद वरुण गांधी और कांग्रेस नेता प्रियंका वाड्रा ने शेयर किया था। वरुण गांधी ने ट्वीट किया, लखीमपुर खीरी के खिसानों को जानबूझकर कुचले जाने का यह वीडियो किसी को भी अंदर से हिला देने वाला है। पुलिस को इसका संज्ञान लेना चाहिए और कार में जो लोग भी दिख रहे हैं उन्हें और उनसे जुड़े लोगों को गिरफ्तार करना चाहिए।

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी और उनके बेटे आशीष मिश्रा ने इंडिया टीवी के रिपोर्टर पवन नारा को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में दावा किया कि वे निर्दोष हैं। मंत्री ने कहा, ‘मेरा बेटा थार जीप में नहीं था। प्रदर्शनकारियों ने जब जीप पर हमला बोला तो उसमें ड्राइवर घायल हो गया, जिससे गाड़ी ने बैलेंस खो दिया और यह प्रदर्शनकारियों को कुचलती हुए आगे बढ़ गई।’ मंत्री के बेटे ने दावा किया कि वह घटनास्थल से कई किलोमीटर दूर दंगल के कार्यक्रम में मौजूद थे।

अजय मिश्रा टेनी ने स्वीकार किया कि वीडियो में दिख रही गाड़ी उनके नाम पर रजिस्टर्ड है और इसे उनका ड्राइवर हरिओम मिश्रा चला रहा था, जिसे प्रदर्शनकारियों ने पीट-पीट कर मार डाला। यह पूछे जाने पर कि कुर्ता पहने हुए गाड़ी से भागता हुआ शख्स कौन था, अजय मिश्रा ने उसे पहचानते हुए कहा कि वह पार्टी कार्यकर्ता सुमित जायसवाल था।

अजय मिश्रा ने बार-बार यही कहा कि वीडियो में जो गाड़ियां दिख रही हैं, उनमें उनका बेटा आशीष नहीं था। उन्होंने कहा, उन्हें नहीं पता कि किन परिस्थितियों में गाड़ियां भीड़ पर चढ़ गईं। उन्होंने कहा कि हो सकता है लोग जान बचाकर भाग रहे हों। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि ड्राइवर ने गाड़ी पर से अपना कंट्रोल खो दिया हो जिससे वह बाद में पलट गई। सुमित जायसवाल ने हमारे रिपोर्टर पवन नारा से बात करते हुए माना कि गाड़ी से उतरकर भागते हुए वही दिखाई दे रहे हैं।

विपक्ष के नेता आशीष मिश्रा की तत्काल गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार ने लखीमपुर खीरी घटना की तुलना ब्रिटिश शासन के दौरान हुए जलियांवाला बाग कांड से कर दी। पवार ने कहा, यह साफ तौर पर ‘शक्ति का दुरुपयोग’ था और सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा न्यायाधीश को इस घटना की जांच करनी चाहिए। शिरोमणि अकाली दल के सुप्रीमो प्रकाश सिंह बादल ने कहा कि वह किसानों की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर सरकार की असंवेदनशीलता और निष्क्रियता को लेकर स्तब्ध हैं। सीनियर बादल ने कहा, ‘दोषी चाहे भी हों, उन्हें सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए।’

इसमें कोई शक नहीं कि लखीमपुर खीरी में जो कुछ भी हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण था और किसानों की दर्दनाक तरीके से गाड़ियों से कुचलकर मौत हो गई। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कार्रवाई करने में अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी है। सरकार ने मामले की जांच के लिए SIT का गठन किया है, हाई कोर्ट के एक रिटायर्ड जज द्वारा न्यायिक जांच की घोषणा की है और मारे गए लोगों के परिजनों के लिए 45 लाख रुपये की मदद की घोषणा की है। मंत्री के बेटे के खिलाफ FIR दर्ज कर ली गई है और सब कुछ पारदर्शी तरीके से किया जा रहा है। इन सबके बावजूद विपक्षी दल इसे मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इससे भी किसी को शिकायत नहीं होनी चाहिए। सियासी दलों को अपनी आवाज उठाने का अधिकार है, लेकिन ऐसा करते हुए उन्हें राष्ट्र हित का ध्यान रखना चाहिए।

मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि शरद पवार जैसे सीनियर नेता ने इस घटना की तुलना जलियांवाला बाग से कर दी। कुछ नेताओं ने कहा कि ऐसा अत्याचार अंग्रेजों के जमाने में भी नहीं हुआ था, जबकि कुछ अन्य नेताओं ने उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर दी। मुझे लगता है ये कुछ ज्यादा हो गया।

सबकी कोशिश यह होनी चाहिए कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो, दोषियों को सजा मिले और आगे ऐसी घटना न हो। चुनाव आएंगे और जाएंगे, सरकारें बनेंगी और गिरेंगी लेकिन लोग अगर कानून अपने हाथ में लेने लगे, बदला लेने के लिए एक दूसरे की जान लेने लगेंगे तो प्रदेश कैसे बचेगा, देश कैसे चलेगा।

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Lakhimpur Kheri: Keep politics out, let the probe begin

akb fullThe political pot continues to boil over the Lakhimpur Kheri incident with politicians making a beeline to the trouble spot. On Wednesday, the Uttar Pradesh government gave permission to Congress leader Rahul Gandhi, his sister Priyanka Vadra and three other leaders to visit Lakhimpur Kheri. Rahul Gandhi had landed in Lucknow with his two chief ministers, Bhupesh Baghel and Charanjit Singh Channi, to visit the site of clash.

Meanwhile, traffic on the Eastern Peripheral highway has been curtailed near Baghpat to prevent political and social activists from entering Lakhimpur Kheri. Internet was shut for a few hours in Bahraich during cremation of a farmer.

On Tuesday, relatives of farmers who died in clashes, at first refused to cremate the bodies after objecting to no mention of bullet shots in the post mortem reports. After intervention from farmer leader Rakesh Tikait, the three bodies were cremated while the fourth body will undergo a second post mortem. The state government has set up a six-member Special Investigation Team headed by Additional SP Arun Kumar to probe into the clashes.

The FIR filed by Lakhimpur Kheri police clearly mentioned the minister’s son Ashish Mishra as the prime accused. He has been accused of ramming his vehicle into a crowd of farmers and firing from his pistol. Charges of murder under Sec 302 IPC have been levelled against him. The FIR clearly states that Ashish Mishra was present at the spot. He was inside the Thar jeep and there were 15 to 20 armed people accompanying him in other vehicles. The FIR states, Ashish Mishra was sitting on the left seat of Thar jeep near the driver, and was seen firing at the crowd. The word ‘darindgi’ (brutality) has been used in the FIR.

The FIR states, Ashish Mishra jumped from the overturned jeep, and ran to hide in a sugarcane field. The FIR also states, all this was done in a pre-planned manner. Most of the words used in the FIR match with the words written in the representation given by farmers to district authorities.

Earlier on Tuesday, chilling videos of the Union Minister of State Ajay Mishra Teni’s jeep crushing farmers did the rounds, with political parties demanding immediate removal of the minister and the arrest of his son. In the 29-second chilling video shared by farmers from the site of clash, it was shown protesters standing with black flags and banners on both sides of a road near a field. Some of the farmers were walking on the road, but none of them were looking at their back. Suddenly, a vehicle came speedily from behind. The video shows two hands of the driver on the steering wheel. The farmer standing in front did not know that the vehicle was going to crush him. The vehicle crushed him and moved forward.

These are heart rending scenes of deliberate murder. As the vehicle sped ahead, the video showed protesters lying on the road. Many of them were gasping for breath and screaming. Some of them were on their last breath. The surprising part is that a black coloured SUV following this vehicle also sped forward crushing the injured men lying on the road. As the vehicles moved with siren blaring, some of the protesters jumped out of the way, but some of them were thrown up and then crushed by the vehicles.

In another video, a man wearing a sky blue coloured kurta gets out of the Thar jeep and starts running through the field with protesters following him. The farmers also shared a video in which a man whips up his pistol, running, surrounded by a group of men. Farmers allege that the man was the minister’s son, Ashish Mishra. The video was shared on social media by BJP MP Varun Gandhi and Congress leader Priyanka Vadra. Varun Gandhi tweeted, “this video of Lakhimpur Kheri farmers being crushed deliberately shakes one to the core. Police should take cognizance and arrest those seen in the car and those associated with them”.

Union Minister of State for Home Ajay Mishra Teni and his son Ashish Mishra, in an exclusive interview to India TV reporter Pawan Nara, claimed that they were innocent. The minister said, “My son was not there in the Thar jeep. After the jeep was attacked by protesters, the driver was injured, the vehicle lost its balance and it ran over protesters”. The minister’s son claimed that he was present at the wrestling bout, several kilometres away from the trouble spot.

Ajay Mishra Teni admitted that the vehicle shown in the video is registered in his name and the vehicle was being driver by their driver Hari Om Mishra, who was beaten to death by protesters. Asked who was the man wearing a kurta running away from the vehicle, Ajay Mishra said, he recognized the man and he was a party worker Sumit Jaiswal.

Ajay Mishra took pains to say more than once that his son was not there in any of those vehicles. He said, he did not know under which circumstances the vehicles rammed into the crowd. It could be, he said, they were trying to run for safety. It could be, he said, that the driver lost control of the vehicle, which later overturned. Sumit Jaiswal, speaking to our reporter Pawan Nara, admitted that it was he who was fleeing from the vehicle.

Political leaders from the opposition are demanding immediate arrest of Ashish Mishra. Nationalist Congress Party supremo Sharad Pawar compared the Lakhimpur Kheri incident with the Jallianwala Bagh massacre that took place during British rule. Pawar said, this was clear “misuse of power” and a Supreme Court sitting judge should probe into the incident. Shiromani Akali Dal supremo Parkash Singh Badal said, he was shocked over what he called “insensitivity and inaction” on part of government over taking action against those responsible for the deaths of farmers. “The guilty, regardless of who they are, should get exemplary punishment”, the senior Badal said.

There is no doubt that whatever happened in Lakhimpur Kheri was unfortunate and farmers were crushed to death by vehicles. Yogi Adityanath’s government has left no stone unturned in taking action, it has set up an SIT to probe the clashes, has announced judicial probe by a retired High Court judge and offered Rs 45 lakhs assistance to the kin of those killed. FIR has been filed against the minister’s son and everything is being done transparently. In spite of all these, opposition parties are trying to make an issue out of this. Nobody should complain even on that score. Political parties have the right to raise their voice, but in doing so, they must keep the interests of the nation in mind.

I was surprised to find a senior and experienced political leader like Sharad Pawar comparing this incident with Jallianwala Bagh massacre. Some leaders said, even the British never resorted to such atrocities, while some other leaders demanded imposition of President’s Rule. I think these are extreme reactions.

Let an impartial probe be done, let the guilty be punished and let all steps are taken to prevent repetition of such incidents in future. Elections may come and go, governments may come and go, but if people start taking law into their hands, and kill one another out of revenge, then it will be a sad day for our nation.

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लखीमपुर हिंसा: सभी पक्ष शांति बनाए रखें

AKB उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में रविवार को सिख किसानों और बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद जबरदस्त टेंशन है। यूपी, हरियाणा और पंजाब में किसान संगठनों के साथ समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और अकाली कार्यकर्ताओं ने राज्यव्यापी विरोध-प्रदर्शन किया। मेरठ में विरोध प्रदर्शन के दौरान समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने एसएसपी और अन्य पुलिस कर्मियों पर पेट्रोल फेंका जिससे वे झुलस गए। कांग्रेस नेता प्रियंका वाड्रा को सीतापुर में हिरासत में रखा गया है। लखीमपुर जा रहे किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी को हिरासत में लेने के बाद रिहा कर दिया गया है। सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को लखीमपुर खीरी जाने से रोक दिया गया है।

लखीमपुर खीरी में जिस तरह से लोगों की हत्या की गई उससे पूरे देश में गम और गुस्सा है। यहां जिस तरह से लाशों पर सियासत हो रही है, उसका दुख भी कम नहीं है। सियासी फायदे के लिए राजनेता अपनी रोटियां सेंकने में लगे हैं। लखमीपुरी खीरी में रविवार को आठ लोगों की मौत हुई। मौत शब्द शायद ठीक नहीं है। जिन आठ लोगों की जान गई उनमें चार सिख किसान हैं, तीन बीजेपी के कार्यकर्ता हैं और एक लोकल जर्नलिस्ट है।

पुलिस ने लखीमपुर खीरी से बीजेपी सांसद और गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा समेत 14 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। इन लोगों पर हत्या, दंगा फैलाना और आपराधिक साजिश के आरोप लगाए हैं। हिंसा में आशीष मिश्रा के ड्राइवर समेत तीन लोगों की प्रदर्शनकारियों ने हत्या कर दी। देश की जनता ने वह वीडियो भी देखा जिसमें कुछ प्रदर्शनकारी घायल ड्राइवर को लाठियों से पीट-पीटकर मार रहे थे।

हिंसा दोनों तरफ से हुई, लाशें दोनों तरफ की गिरीं लेकिन इस सवाल का जवाब पाने में वक्त लगेगा कि इस हिंसा के लिए जिम्मेदार कौन है। यूपी सरकार ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से पूरे मामले की जांच कराने का भरोसा दिया है लेकिन विपक्ष ये मांग कर रहा है कि जांच सिटिंग जज से कराई जाए। यह आरोप लगाया जा रहा है कि प्रदर्शनकारी किसान हिंसा की तैयारी करके आए थे। मंत्री के काफिले का विरोध कर रहे इन किसानों के बीच कुछ शरारती और राष्ट्र विरोधी लोग घुसे थे जो मंत्री के काफिले को रोकने की कोशिश कर रहे थे। वहीं दूसरे पक्ष की ओर से यह आरोप लगाया जा रहा है कि मंत्री के समर्थकों ने किसानों को सबक सिखाने की नीयत से पूरी तैयारी के साथ प्रदर्शनकारियों पर हमला किया।

सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने वीडियो दिखाया कि कैसे यह झड़प हुई। हमने वह वीडियो भी दिखाया कि कैसे एक जलती हुई गाड़ी के पास एक शव पड़ा हुआ था और कुछ प्रदर्शनकारी एक घायल शख्स को पीट-पीटकर मार रहे थे। जिस शख्स पर लाठियां बरसाई जा रही थीं वह उस गाड़ी का ड्राइवर हरिओम मिश्रा था, जिसने विरोध कर रहे किसानों को कुचल दिया था। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि मंत्री का बेटा भी गाड़ी में था और जब ड्राइवर का संतुलन बिगड़ा और गाड़ी पलट गई तो वह भाग गया। किसानों का आरोप है कि आशीष मिश्रा के आदेश पर ही ड्राइवर ने गाड़ी से किसानों की भीड़ को कुचल दिया।

हमने एक और वीडियो दिखाया जिसमें साफ तौर पर नजर आ रहा है कि कुछ प्रदर्शनकारी श्याम सुंदर मंडल नाम के एक स्थानीय ग्रामीण की पिटाई कर रहे हैं। मरने से पहले हमलावरों ने जबरन उससे यह कबूल करवाने की कोशिश की कि आशीष मिश्रा के आदेश पर ही गाड़ी से भीड़ में शामिल लोगों को कुचला गया। मंडल के परिवार के लोगों का कहना है कि उसका हिंसा से किसी तरह का कोई लेना-देना नहीं था। वह तो गृह राज्यमंत्री द्वारा आयोजित कुश्ती प्रतियोगिता देखने गया था लेकिन इस झड़प में फंस गया। यह वीडियो वाकई बहुत भयानक और दुखद है।

इस वीडियो में मंडल यह कहते हुए सुना जा रहा है कि उसे आशीष मिश्रा ने यह देखने के लिए भेजा था कि वहां कितनी भीड़ जमा है। हमलावरों ने मंडल को बार-बार ये कबूल करने के लिए कहा कि उसे आशीष मिश्रा ने भीड़ पर गाड़ी चढ़ाने के लिए भेजा था। लेकिन मंडल ने यह कहने से इनकार कर दिया। इसके बाद लाठियों से पीट-पीटकर उसकी हत्या कर दी गई।

किसान नेताओं का कहना है कि प्रदर्शनकारी तभी हिंसक हुए जब भीड़ को गाड़ी से कुचला गया। हिंसा भड़काने का उनका कोई इरादा नहीं था। लेकिन मेरे पास जो वीडियो है वो इस बात का समर्थन नहीं करता । इस वीडियो में ये दिख रहा है कि लाठी-डंडे और तलवारों से लैसे सैकड़ों लोग गाड़ियों के काफिले को घेर रहे थे। इस वीडियो में लोग गालियां दे रहे हैं। गाड़ी से लोगों को खींचकर पीट रहे हैं। उनपर डंडे बरसा रहे हैं और पीछे से कुछ लोग ये कहते हुए भी सुनाई दे रहे हैं कि ‘गाड़ी पलटाओ.. गाड़ी को तोड़ दो..भागने मत दो…मारो…मार डालो…मत छोड़ो’।

किसान नेताओं का कहना है कि वे मंत्री को काले झंडे दिखाना चाहते थे लेकिन मंत्री का बेटा हर हाल में रास्ते से भीड़ को हटाना चाहता था और भीड़ को कुचलता हुआ वह तिकोनिया गांव तक चला गया। कुछ किसानों ने आरोप लगाया कि आशीष मिश्रा ने अपनी पिस्टल से गोलियां चलाई जिससे प्रदर्शनकारी और भड़क गए। हमारी रिपोर्टर रुचि कुमार ने वहां गांववालों से बात की। ग्रामीणों ने कहा-आशीष मिश्रा गाड़ी के अंदर मौजूद थे और उन्हीं की गाड़ी से किसानों को कुचला गया।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घटना पर तेजी से एक्शन लिया और उत्तर प्रदेश के तमाम आला अधिकारियों को लखीमपुर खीरी भेजा। किसान संगठनों के नेताओं और पीड़ित परिवारों के साथ इन अधिकारियों ने बात की और किसान नेताओं की मांग के मुताबिक सुलह का फॉर्मूला निकाला। राज्य सरकार ने मृतकों के परिवारों को 45 लाख रुपये का मुआवजा और प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया है। लेकिन इन सारे प्रयासों के जरिए शांति बहाल करने की कोशिश को राजनेताओं ने सियासी फायदे के चक्कर में बेकार कर दिया।

कांग्रेस लीडर प्रियंका गांधी सबसे पहले लखीमपुर खीरी के लिए निकलीं लेकिन उन्हें हिरासत में ले लिया गया। उन्हें सीतापुर के पीएसी गेस्ट हाउस में हिरासत में रखा गया है। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी लखीमपुर जाने के लिए निकले लेकिन उन्हें भी लखनऊ में ही प्रशासन ने रोक दिया। अन्य दलों के नेताओं को भी लखीमपुर खीरी जाने से रोक दिया गया। कांग्रेस ने अपने दो मुख्यमंत्रियों, पंजाब के चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल को लखीमपुर खीरी पहुंचने के लिए कहा लेकिन इन दोनों को भी रोक दिया गया। इससे जाहिर है कि कांग्रेस पार्टी इस घटना को कितनी अहमियत दे रही है क्योंकि राज्य में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं।

लखीमपुर खीरी केस में इतने सारे बयान, वीडियोज और इतने दावे हैं कि ये कहना बड़ा मुश्किल है कि कौन सा वीडियो पहले आया और कौन सा बाद में आया। ज्यादातर वीडियो हालांकि लोकल लोगों ने बनाए हैं इसीलिए ये कहना भी मुश्किल है कि भड़काने का काम किसने पहले किया, किसने रिएक्ट किया। गलती दोनों तरफ से हुई है। लेकिन यूपी और पंजाब के सभी अहम सियासी दल इस मैदान में कूद पड़े क्योंकि इन राज्यों में जल्द ही चुनाव होने हैं।

विपक्ष के नेताओं को लगा कि इस मुद्दे पर योगी आदित्यनाथ को घेरा जा सकता है। वो आश्वस्त थे कि किसानों की मौत इतना संवेदनशील मामला है कि इसे आसानी से नहीं सुलझाया जा सकेगा इसलिए सबने लखीमपुर खीरी जाने की कोशिश की। एक से एक बढ़कर मांग की। राजनीतिक लाभ लेने की होड़ शुरू हो गई। सरकार ने 45 लाख रुपए की मदद की राशि का ऐलान किया तो विपक्षी दलों में से किसी ने दो करोड़ देने की मांग की तो किसी ने 5 करोड़ की। जब राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से जांच कराने की मांग की तो विपक्षी दलों में से किसी ने हाईकोर्ट के सिटिंग जज से जांच कराने की मांग की तो किसी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच हो।

लेकिन मैं कहूंगा कि योगी आदित्यनाथ ने सूझ-बूझ से काम लिया और इसे प्रतिष्ठा का मुद्दा नहीं बनाया। उन्होंने तुरंत जांच का आदेश दिया, मुआवजे का ऐलान किया। उन्होंने तुरंत पुलिस के आला अधिकारियों को मौके पर भेजा। इन अधिकारियों ने इस मामले की गंभीरता को समझा और लोगों को समझा-बुझा कर इसे शांत किया। कम से कम इतना हुआ कि ये मामला और आगे नहीं बढ़ा। वरना, ऐसे मामलों में राजनैतिक बयानबाजी एक चिंगारी का काम करती हैं और आग कभी भी भड़क सकती है। शांति ही एकमात्र समाधान है और यही समय की मांग है।

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Lakhimpur clashes: Let peace prevail

akb

Lakhimpur Kheri in Uttar Pradesh is presently in the eye of a gathering political storm caused by violent clashes between Sikh farmers and BJP workers on Sunday. Samajwadi Party, Congress and Akali workers along with farmer organisations have staged state wide protests in UP, Haryana and Punjab. In Meerut, SP workers threw petrol on the SSP and other policemen during protests causing burn injuries. Congress leader Priyanka Vadra continues to be under detention in Sitapur, farmer leader Gurnam Singh Charuni was detained and later released while proceeding towards Lakhimpur, while all political leaders have been barred from visiting the trouble spot.

There is anger tinged with sadness over the inhuman manner in which people were killed during clashes in Lakhimpur Khiri, and now politicians are busy playing politics to their advantage. Death is not the right word for the eight persons who died in Lakhimpur. They were killed. Among those who lost their lives were four Sikh farmers, three BJP workers and a local journalist.

Police have registered FIR against 14 persons including Ashish Mishra, son of Minister of State for Home Ajay Mishra, who is the local BJP MP from Lakhimpur Kheri. Charges of murder, rioting and criminal conspiracy have been mentioned in the FIR. During violence, three persons accompanying Ashish Mishra, including his driver were killed by protesters. The nation has seen the video in which some protesters were beating the injured driver to death with lathis.

Both sides resorted to large scale violence, but it will take long before it is finally concluded who were the perpetrators of violence. The UP government has promised a judicial probe by a retired High Court judge, but the opposition is demanding probe by a sitting judge. It is being alleged that the protesters had come prepared for violence and there were anti-national elements among farmers who were trying to obstruct the minister’s convoy of vehicles. From the other side, it is being alleged that the minister’s supporters had come prepared to teach the protesters a lesson and farmers were attacked.

In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Monday night, we showed videos of how clashes took place. We showed video of how a body was lying near an overturned burning vehicle, and some protesters were beating an injured man to death. The man beaten to death was Hari Om Mishra, driver of the vehicle that crushed protesting farmers. Protesters alleged that the minister’s son was in the vehicle, and he fled when the driver lost balance and the vehicle overturned. Farmers allege that it was under Ashish Mishra’s orders that the driver rammed his vehicle into the crowd of farmers.

We showed another video which clearly shows some protesters beating a local villager named Shyam Sunder Mandal to death. Minutes before he died, the attackers tried to forcibly extract his confession that it was on Ashish Mishra’s orders that the vehicle was rammed into the crowd. Mandal’s family members say, he had nothing to do with the clashes. He had gone there to watch the wrestling bout organized by the Minister of State for Home, but was caught in the melee. The video is indeed horrifying and saddening.

In the video, Mandal is heard saying he was sent by Ashish Mishra to find out the strength of the crowd. He was prompted several times by his attackers to say that it was Ashish Mishra who ordered the vehicle to be rammed into the crowd. Mandal refused to say this. He was beaten to death with lathis.

Farmer leaders say the protesters turned violent only when the vehicle rammed into the crowd. They had no intention to cause violence. But I have a video which shows, the protesters were armed with lathis and swords, and had come prepared for a battle. There were several hundred protesters surrounding the convoy of vehicles. The video shows protesters abusing those inside the vehicles, forcibly pulling them out and beating them with lathis. In the background, one can hear shouts of “overturn the vehicles”, “smash the vehicles”, “don’t allow them to escape, kill them”.

The farmer leaders’ version is that they wanted to show black flags to the minister, but the minister’s son wanted to clear the crowd by all means, and the vehicle rammed through the crowd and went up till Tikonia village. Some farmers alleged that Ashish Mishra fired bullets from a pistol and this enraged the protesters. Our correspondent Ruchi Kumar met local villagers who said, Ashish Mishra was present inside the vehicle during violence and it was his vehicle that rammed through the crowd of farmers.

It goes to the credit of UP chief minister Yogi Adityanath who acted fast and sent top officials to the spot immediately. These officials worked out a compromise with the farmers. The state government has announced Rs 45 lakh assistance to families of those killed, and a government job for one member from each family. But all these efforts at restoring peace were marred by a phalanx of politicians seeking to reach the trouble spot.

Congress leader Priyanka Vadra was the first to leave for the spot, but was detained at the PAC guest house in Sitapur. Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav was prevented from leaving Lucknow for Lakhimpur, while other political leaders were also prevented from going towards the troubled zone. Congress asked two of its chief ministers Charanjit Singh Channi from Punjab and Bhupesh Baghel from Chhattisgarh to reach Lakhimpur, but they too, were prevented. This goes to show how much importance the Congress party attaches to this incident, with state assembly elections round the corner.

There are so many conflicting statements, claims and counter-claims, and videos relating to Lakhimpur violence that it will be difficult to conclude who incited violence on Sunday. Nobody knows which video came first and which one came later. Most of the videos were made by local villagers with their smart phones. It will, therefore, be difficult to say, who incited the crowd first, and who reacted later. Both sides appear to be in the dock at the moment. Now political parties of all hues have jumped into the fray, keeping the crucial UP and Punjab elections in mind.

The opposition has found an issue to corner Yogi Adityanath, because the death of so many people, including farmers, is, in itself, a sensitive issue. A race has begun among politicians for scoring brownie points over one another. While the BJP government announced Rs 45 lakh compensation for each of those who died in the clashes, opposition parties are demanding Rs 2 crore to Rs 5 crore compensation. While the state government has announced judicial probe by a retired HC judge, the opposition is demanding probe by a sitting HC judge, or a probe under Supreme Court’s supervision.

Yogi Adityanath did not lose time in taking decisions about announcing a judicial probe and compensation for the victims. He acted with foresight and did not make it a prestige issue. He sent senior most police officials to the spot to calm down tempers. He has managed to arrest the spread of violence. But incitement of farmers by politicians still continues, and even a spark can ignite a fire. Peace is the need of the hour.

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हाईवे ब्लॉक करने के लिए किसान नेताओं को सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लताड़ा?

AKB सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आंदोलन कर रहे किसानों से साफ-साफ कहा कि एक बार जब उन्होंने न्याय के लिए अदालत का रुख कर लिया तो वे ‘सड़कों पर धरना नहीं दे सकते।’ जस्टिस ए. एन. खानविलकर और जस्टिस सी. टी. रविकुमार की बेंच ने किसान महापंचायत के वकील से कहा: ‘आपने पूरे शहर का दम घोंट दिया है और अब आप शहर के भीतर आना चाहते हैं और यहां फिर से विरोध शुरू करना चाहते हैं। नागरिकों को स्वतंत्र रूप से आवाजाही करने का अधिकार है। क्या आपने कभी सोचा है कि सड़कों को अवरुद्ध करने के कारण उनके अधिकारों का हनन हो रहा है? क्या आपने आसपास के निवासियों से अनुमति ली है कि क्या वे आपके विरोध से खुश हैं? उनका काम-धंधा बंद हो गया है।’

कोर्ट ने यह भी कहा: ‘आप ट्रेनों को रोकते हैं, आप हाईवे को ब्लॉक करते हैं और फिर आप कहते हैं कि आपका विरोध शांतिपूर्ण है और जनता को कोई नुकसान नहीं हुआ है। क्या आप न्यायिक व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं? अगर आप अपना विरोध जारी रखना चाहते हैं, तो अदालत का रुख न करें।’

किसानों के संगठन ने सुप्रीम कोर्ट से संसद के पास जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन की अनुमति देने की अपील की थी। कोर्ट ने तब याचिका पर सुनवाई के लिए 8 अक्टूबर की तारीख तय की थी, और साथ ही याचिकाकर्ता को एक हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करने के लिए कहा था कि क्या वह किसानों द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शन में हिस्सा ले रहा है।

मेरे ख्याल से सुप्रीम कोर्ट ने वह बात कही जो देश के आम लोगों के दिल में है। इसने उन लोगों के दिल की बात कही है जो रास्ते रोके जाने के कारण नुकसान उठा रहे हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा के समर्थक 10 महीने से अधिक समय से दिल्ली बॉर्डर के एंट्री पॉइंट्स पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख राकेश टिकैत और उनके समर्थकों ने गाजीपुर बॉर्डर पर तंबू गाड़कर उसे जाम कर दिया है। गुरनाम सिंह चढूनी, जोगिंदर सिंह उग्रहां, दर्शन पाल और बलबीर सिंह राजेवाल का समर्थन करने वाले किसानों ने सिंघू और टीकरी बॉर्डर के एंट्री पॉइंट्स को ब्लॉक कर रखा है।

दिल्ली बॉर्डर के इन एंट्री पाइंट्स पर किसानों ने तंबू लगा रखे हैं, लंगर चला रहे हैं और इन सबके चलते पिछले करीब एक साल से आम आदमी को परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं। पहले जो रास्ता मुश्किल से 10 मिनट में तय हो जाता था, अब डायवर्ट किए गए रूट्स से उसे तय करने में 3 घंटे से ज्यादा का वक्त लग जाता है। मरीजों के लिए समय पर अस्पताल पहुंचना मुश्किल हो रहा है, किसानों की सब्जियां मंडी तक नहीं पहुंच पा रही हैं, दिल्ली में दूध सप्लाई करने वाले लोगों का दूध बर्बाद हो रहा है, लेकिन किसान आंदोलन के नेता कहते हैं कि वे क्या करें। वे कहते हैं कि अगर किसान परेशान है, तो जनता को भी परेशानी झेलनी पड़ेगी।

इसीलिए कोर्ट ने शुक्रवार को कड़ा रुख अपनाया। मैं पिछले कई महीनों से किसानों के विरोध को लेकर यही बात कह रहा हूं और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी तरह की भावनाएं व्यक्त की हैं।

अदालत ‘शांतिपूर्ण विरोध’ शब्द के इस्तेमाल पर नाराज थी। उसने 26 सितंबर को भारत बंद के दौरान जालंधर के पास सेना के काफिले को रोकने की घटना की तरफ इशारा किया, जिसके वीडियो मैंने अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में दिखाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, किसान नेताओं का रवैया संतुलित होना चाहिए। उन्हें विरोध करने का अधिकार है, लेकिन वे आम जनजीवन में व्यवधान पैदा नहीं कर सकते, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचा सकते या सुरक्षा कर्मियों पर हमला नहीं कर सकते। जब इंडिया टीवी के रिपोर्टर ने राकेश टिकैत से प्रतिक्रिया मांगी, तो उन्होंने बड़ी मासूमियत से दावा किया कि किसानों ने रास्ता नहीं रोका, बल्कि इसे तो पुलिस ने बंद कर रखा है।

अब सवाल यह है कि अगर किसान धरने पर बैठेंगे, बॉर्डर सील करेंगे, सड़क पर टेंट लगाएंगे, स्ट्रक्चर खड़े करेंगे तो रास्ते बंद होना तो लाजिमी है।

किसान नेताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को उनका पक्ष नहीं पता, पर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ महीने पहले 3 सदस्यों की एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने किसान नेताओं को कृषि कानूनों पर अपना पक्ष रखने की दावत दी थी, लेकिन किसान संगठनों ने इस से बात करने से इनकार कर दिया था। शुक्रवार को जब एक किसान नेता से पूछा गया कि अगर वह संसद को नहीं मानते, सुप्रीम कोर्ट की बात नहीं सुनते, फिर किसकी बात सुनेंगे तो जवाब मिला कि ‘हम जनता की बात सुनेंगे, क्योंकि लोकतंत्र में जनता सबसे ऊपर है।’

इन नेताओं को यह समझना चाहिए कि इसी जनता ने सांसदों को चुना है, और इन्हीं सांसदों ने कृषि विधेयकों को पारित किया है, और इसी संसद ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री चुना है। मोदी ने कई बार किसानों को आश्वासन दिया है कि नए कानून उनके फायदे के लिए बनाए गए हैं।

किसान नेताओं को अब जनता की चुनी हुई सरकार से बातचीत का सिलसिला फिर से शुरू करना चाहिए, या फिर सुप्रीम कोर्ट की सलाह पर अमल करना चाहिए। लोकतंत्र में जो संस्थाएं बनी हैं, जो परम्पराएं बनी हैं, उन्हीं के माध्यम से रास्ता निकले तो बेहतर होगा। लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं का जो रुख है, उससे लगता नहीं है कि वे रास्ता निकालने के मूड में हैं।

मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि आंदोलन करने वाले किसान संगठन सरकार के खिलाफ रोज-रोज नए मोर्चे खोल देते हैं। हरियाणा के झज्जर के अंबाला में धान की जल्द खरीद की मांग को लेकर चढूनी गुट के समर्थकों ने पहले ही विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। चढूनी ने धमकी दी है कि उनके समर्थक हरियाणा में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के मंत्रियों और विधायकों का घेराव करेंगे। पंजाब में कांग्रेस और अकाली दल भी इसमें शामिल हो गए हैं।

केंद्र ने इस साल उत्तर भारत में सितंबर के दौरान मॉनसून की बेमौसम बारिश के कारण धान खरीद को टालने का फैसला किया था। यदि धान की खरीद अभी शुरू होती है तो किसानों को बड़ा नुकसान होगा, क्योंकि धान में नमी होने पर उसकी कीमत ए ग्रेड धान के लिए निर्धारित 1960 रुपये प्रति क्विंटल की MSP से 10 से 20 प्रतिशत कम होगी। केंद्र को उम्मीद है कि 5 अक्टूबर तक बारिश बंद हो जाएगी और अच्छी धूप निकलने के बाद 11 अक्टूबर से धान की खरीद शुरू हो सकती है। ऐसे में किसानों को कम नमी वाले धान की बेहतर कीमत मिल सकती है। लेकिन यह बात न तो किसान नेता और न ही अकाली नेता किसानों को बता रहे हैं। ये नेता पंजाब में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए अपनी-अपनी सियासत चमकाना चाहते हैं और किसानों को इसका मोहरा बनाना चाहते हैं।

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Why Supreme Court lashed out at farmer leaders for obstructing highways

AKB The Supreme Court on Friday clearly told agitating farmers that once they have come to the court for justice, they “cannot go on protesting on the streets”. The division bench of Justice A N Khanwilkar and Justice C T Ravikumar told the counsel for Kisan Mahapanchayat: “You have strangulated the entire city by blocking the highways at crucial entry points from various states. Now you want to come inside the city to protest…Citizens have a right to move freely. Have you thought about their rights getting violated because of road blockade? Are the residents around the protest sites happy with the farmers blocking the highways? Their business has stopped.”

The court also said: ”You block train movement. You block highways and then come and say the protests are peaceful….Are you protesting against the judicial system?.. If you want to continue with your protests, then don’t come to court.”

The farmers’ body had appealed to the apex court to allow protests at Jantar Mantar near Parliament. The court then posted the petition for hearing on October 8, but asked the petitioner to file an affidavit clarifying whether it is participating in the ongoing farmers’ protest.

For me, the Supreme Court has expressed the voice of the common man. It has expressed the views of the people who have been suffering because of blockade of entry points.

For more than ten months, supporters of Samyukta Kisan Morcha have been staging protests at Delhi’s border entry points. Bharatiya Kisan Union chief Rakesh Tikait and his supporters have blocked the Ghazipur border, farmers supporting Gurnam Singh Charuni, Joginder Singh Ugrahan, Darshan Pal, and Balbir Singh Rajewal have blocked Singhu and Tikri border points.

They have set up tents, running langars (community kitchens) and the common man who has to enter or exit the border points has been facing ordeals for nearly a year. Earlier, it took hardly ten minutes and now it takes more than 3 hours to cross the border points by taking diversion routes. Patients are unable to reach hospitals in time, farmers are unable to supply grains, fruits and vegetables, those supplying daily milk to Delhi are facing huge losses, but the farmer leaders are saying they are helpless. If the farmers are suffering, then the common man should also suffer, their leaders say.

It was in this backdrop that the apex court on Friday took a stern stand. I have been saying the same things for the last several months over farm protests, and the apex court has conveyed similar feelings.

The court was furious over the words “peaceful protests”. It pointed to the obstruction of army convoy near Jalandhar on September 26 during Bharat Bandh, about which I had shown visuals in my prime time show ‘Aaj Ki Baat’. The apex court said, farmer leaders must have a balanced approach. They have the right to protest, but they cannot obstruct normal life, damage public property or attack security personnel. When India TV reporter sought Rakesh Tikait’s reaction, he coolly claimed that farmers have not obstructed highways, it was the police which have put obstructions.

One simple observation: if farmers squat on highways, put up tents, raise structures and serve ‘langars’, traffic on busy roads will have to stop and it has to be diverted.

The apex court had set up a 3-member committee several months ago to hear the farmers’ views on new farm bills, but the agitating farmer outfits refused to go before the committee. When a farmer leader was asked on Friday, whose words would they listen to, if they do not want to listen to the government or the Supreme Court, his reply was: ‘We will listen to the people, because people are sovereign in a democracy.”

These leaders must understand that it is the people which has elected members to the Parliament, and these MPs have passed the farm bills, and that it is Parliament which has elected Narendra Modi as Prime Minister. For umpteen number of times, Modi has assured farmers that the new laws have been made for their benefit.

Farmer leaders should now listen to the popularly elected government, and return to the discussion table for fresh rounds of talks, or they should follow Supreme Court’s advice. Institutions and traditions that have been nurtured in a democracy must be adhered to and the farmer leaders must find a way out of the impasse. But looking at the mood of some belligerent Samyukta Kisan Morcha leaders, there appears to be no silver lining on the horizon.

Already, supporters of Charuni faction have started staging protests in Ambala, Jhajjhar of Haryana demanding early procurement of paddy. Charuni has threatened that his supporters would gherao ministers and MLAs belonging to BJP and its ally in Haryana. In Punjab, Congress and Akali Dal have joined the chorus.

The Centre had delayed paddy procurement this year because of unseasonal monsoon rains during September in north India. If procurement starts now, the farmers will be the big losers, because paddy that has moisture content will fetch 10 to 20 per cent price less than the MSP fixed at Rs 1960 per quintal for A Grade paddy. The Centre expects rains to cease by October 5, and in bright sunshine, paddy procurement can start from October 11. Farmers can then get better rates with lesser moisture content. But neither farmer leaders nor Akali leaders are telling this plain fact to farmers. Politicians want to stir the pot to gain advantage in view of coming assembly elections in Punjab. They are trying to make farmers as pawns in their game of political chess.

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कैप्टन आउट, सिद्धू हिट विकेट, पार्टी क्लीन बोल्ड!

akb full_frame_74900पंजाब कांग्रेस में लगी जंगल की आग की लपटें अब दिल्ली तक पहुंच चुकी है। बिगड़ते हालात के बीच पार्टी नेतृत्व को यह सूझ नहीं रहा है कि इस संकट से कैसे निपटा जाए। वो भी ऐसा संकट जो नेतृत्व की खुद की गलतियों की वजह से उत्पन्न हुआ। पंजाब कांग्रेस के शिखर नेताओं में से एक, कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गुरुवार को ऐलान कर दिया कि अब वो कांग्रेस के साथ नहीं हैं। उन्होंने उस कांग्रेस को छोड़ने का ऐलान कर दिया जिससे वह पिछले 23 साल से जुड़े थे। उन्होंने कहा कि मैं राजनीति में 52 साल से हूं, मेरी अपनी मान्यताएं हैं, मेरे अपने सिद्धांत हैं। जिस तरह का व्यवहार मेरे साथ किया गया है..अगर आप 50 साल बाद मुझ पर शक करते हैं और मेरी विश्वसनीयता दांव पर है, अगर मुझपर भरोसा नहीं है तो फिर मेरे पार्टी में रहने का मतलब क्या है? दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल से मुलाकात के बाद चंडीगढ़ वापस लौटने के बाद उन्होंने यह बात कही।

कैप्टन ने संकेत दिया कि वह एक नई पार्टी बना सकते हैं। उन्होंने बीजेपी में शामिल होने से इनकार किया, लेकिन पार्टी के साथ भविष्य में किसी भी गठजोड़ से इनकार नहीं किया। कैप्टन अमरिंदर सिंह गांधी परिवार के उन दिनों से पारिवारिक मित्र थे, जब वे और राजीव गांधी एक ही स्कूल में पढ़ते थे। कैप्टन ने अगले साल की शुरुआत में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनावों में पार्टी के विनाश की भविष्यवाणी की। कैप्टन ने कहा, ‘कांग्रेस पतन की ओर जा रही है। पंजाब के लोगों को नवजोत सिद्धू पर कोई भरोसा नहीं है।” उन्होंने आने वाले चुनाव में सिद्धू को हराने का संकल्प लिया।

जहां तक कैप्टन और बीजेपी के बीच गठजोड़ की संभावनाओं का सवाल है तो हमें पंजाब की मौजूदा सियासत को और कांग्रेस की आज की हालत को समझना होगा। हमें बीजेपी की जरूरत और कैप्टन की मजबूरी को समझना होगा। कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब के बड़े नेता हैं लेकिन वे कांग्रेस छोड़ चुके हैं और उनके पास फिलहाल कोई पार्टी नहीं है। बीजेपी पंजाब में एक बड़ी पार्टी है लेकिन बीजेपी के पास कोई बड़ा पंजाबी सिख नेता नहीं है। यानी कैप्टन को पार्टी की जरूरत है और बीजेपी को कैप्टन की ।

फिलहाल अमरिन्दर सिंह ये कह रहे हैं कि वो कांग्रेस छोड़ेंगे लेकिन बीजेपी में नहीं जाएंगे। लेकिन कल क्या होगा कोई नहीं जानता। क्योंकि दो दिन पहले कैप्टन साहब ने कहा था कि वो दिल्ली में सिर्फ मकान खाली करने आए हैं। वह किसी राजनेता से नहीं मिलेंगे। लेकिन उन्होंने अमित शाह औऱ एनएसए अजित डोवल से मुलाकात की। अगर कोई ये कहता है कि ये मीटिंग अचानक फिक्स हो गई तो मैं कहूंगा कि ये सही नहीं है। कैप्टन अमरिंदर सिंह और अमित शाह से मुलाकात पहले तय हो चुकी थी। इसलिए कुछ भी हो सकता है। लेकिन 2 बात पक्की है। पहली बात ये कि अब कैप्टन कांग्रेस में वापस नहीं जाएंगे और दूसरी, कैप्टन अपनी सारी ताकत सिद्धू को और पंजाब में कांग्रेस को सबक सिखाने में लगाएंगे। ये अलग बात है कि कांग्रेस अब ये नहीं जानती कि सिद्धू उनके साथ रहेंगे या पार्टी छोड़कर चले जाएंगे।

मंगलवार को अपने समर्थकों के साथ पीसीसी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देनेवाले नवजोत सिंह सिद्धू ने गुरुवार को चंडीगढ़ में पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के साथ तीन घंटे लंबी बैठक की। इस बैठक में पार्टी के केंद्रीय पर्यवेक्षक हरीश चौधरी, सिद्धू के सहयोगी कुलजीत सिंह नागरा और परगट सिंह मौजूद थे। हालांकि इस बैठक में कुछ ठोस नहीं निकला। बैठक से पहले सिद्धू ने ट्वीट करके इकबालप्रीत सिंह सहोता को पंजाब पुलिस का नया डीजीपी नियुक्त किए जाने पर नाराजगी जताई थी।

सिद्धू ने डीजीपी सहोता पर गुरू ग्रन्थ साहिब की बेअदबी के मामले में दो निर्दोष सिख युवकों को फंसाने और बादल परिवार को क्लीन चिट देने का आरोप लगाया। उस वक्त बेदअबी के मामले की जांच के लिए बनी SIT को इकबाल प्रीत सिंह सहोता ही लीड कर रहे थे। इसलिए सिद्धू चाहते हैं कि डीजीपी को हटाया जाए और इसके साथ ही पंजाब के एडवोकेट जनरल अमर प्रीत सिंह देओल को भी बदला जाए। देओल ने पिछले महीने भ्रष्टाचार के एक मामले में पूर्व डीजीपी सुमेध सिंह सैनी का प्रतिनिधित्व किया था। मुख्यमंत्री चन्नी ने दोनों अधिकारियों को बदलने से इनकार कर दिया था। लेकिन सिद्धू के खेमे ने इससे अलग दावा किया है। चन्नी ने सिद्धू को तीन सदस्यीय कमेटी बनाने की पेशकश की। इस कमेटी में सीएम चन्नी, नवजोत सिद्धू और कांग्रेस नेता हरीश चौधरी होंगे। लेकिन इसपर भी स्थिति अभी अस्पष्ट बनी हुई है।

पंजाब कांग्रेस में सीरियल ड्रामा जारी है और राज्य के ज्यादातर पार्टी नेता सिद्धू से नाराज हैं। पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने मांग की है कि इस चेप्टर को जल्द बंद किया जाना चाहिए और मुख्यमंत्री के नेतृत्व को चुनौती देने की सभी कोशिश अब खत्म होनी चाहिए। राज्य सरकार के एक और मंत्री राज कुमार वेरका ने कहा कि सिद्धू ने अपनी मर्जी से इस्तीफा दिया और अब उन्हें सीधे मुख्यमंत्री से बात करनी चाहिए। ये रुठने-मनाने का वक्त नहीं है। राजकुमार वेरका ने सिद्धू को तीन बातों धैर्य, एडजस्टमेंट, और फ्लेक्सिबिलिटी पर अमल करने की सलाह भी दी। सिद्धू के समर्थन में अब तक केवल एक मंत्री रजिया सुल्ताना ने इस्तीफा दिया है। बाकी सभी मंत्री अगले दिन कैबिनेट की मीटिंग में वक्त पर पहुंच गए। सिद्धू के सबसे करीबी परगट सिंह भी कैबिनेट की मीटिंग में थे।

अब सिद्धू की भावी योजना को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले सिद्धू ने पिछले विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी से संपर्क किया था। गुरुवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल पंजाब में थे। उनसे सिद्धू के बारे में पूछा गया। केजरीवाल ने जवाब दिया: ‘कांग्रेस में कुर्सी की जंग छिड़ी है। पूरा पंजाब तमाशा देख रहा है। इसलिए अभी ये बात नहीं हो रही कि कौन कहां जा रहा है। जब सिद्धू से बात होगी तो देखा जाएगा। हम आपको बताएंगे।’

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से बार-बार कहा था कि सिद्धू पर भरोसा मत करो। कैप्टन कहते थे ये किसी का नहीं है, ना किसी का हो सकता है। लेकिन उस समय कैप्टन की बात किसी ने नहीं सुनी। आज कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता कह रहे हैं कि प्रियंका और राहुल को सिद्धू के चक्कर में नहीं आना चाहिए था। यही वजह थी कि सिद्धू के इस्तीफा देने के बाद उन्हें मनाने के लिए किसी को दिल्ली से पंजाब नहीं भेजा गया। सिद्धू से कहा गया कि बात करनी है तो चंडीगढ़ जाकर चीफ मिनिस्टर से मिलें। उनसे कहा गया कि चीफ मिनिस्टर सिद्धू को मनाने उनके घर पटियाला नहीं जाएंगे। सिद्धू को भी समझ आ गया कि गड़बड़ हो गई। इसलिए चुपचाप चंड़ीगढ़ जाकर दो घंटे सीएम चन्नी से बात की। हालांकि इस मीटिंग में कोई ठोस नतीजा नहीं निकला, लेकिन सिद्धू की वजह से पार्टी नेतृत्व को अब दिल्ली में नेताओं के बगावत का सामना करना पड़ रहा है।

बुधवार को कांग्रेस के सीनियर नेता कपिल सिब्बल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि पार्टी अध्यक्ष के बिना ‘हेडलेस’ है और कोई नहीं जानता कि कौन फैसला ले रहा है। उन्होंने पार्टी अध्यक्ष और एआईसीसी पदाधिकारियों के चुनाव की मांग दोहराई और कहा कि ‘हम जी-23 हैं, जी-हुजूर 23 नहीं।’ जो नेता ‘उनके’ करीबी थे, उन्होंने पार्टी छोड़ दी है, जबकि हम जिन्हें ‘उनके’ करीब नहीं माना जाता है, वे अभी भी वफादार हैं और ‘उनके’ साथ खड़े हैं। ‘उनके’ से सिब्बल का मतलब पार्टी के मौजूदा केंद्रीय नेतृत्व से था।

ठीक उसी शाम कांग्रेस समर्थकों ने सिब्बल के घर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। सिब्बल की कार में तोड़फोड़ की। उनके घर पर टमाटर फेंके गए। गुरुवार को पी चिदंबरम, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी और दिग्गज नेता के. नटवर सिंह सहित कांग्रेस के सीनियर नेताओं ने इस घटना की निंदा की। चिदंबरम ने अपने ट्वीट में कहा, ‘मैं असहाय महसूस करता हूं जब हम पार्टी के भीतर सार्थक संवाद आरंभ नहीं कर सकते। मैं उस वक्त भी आहत और असहाय महसूस करता हूं जब कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा अपने एक साथी और सांसद के आवास के बाहर नारेबाजी किए जाने की तस्वीर देखता हूं। लगता है कि भलाई इसी में है कि व्यक्ति चुप्पी साध कर रखे’।

कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा, ‘कपिल सिब्बल के घर पर हमले और गुंडागर्दी की खबर सुनकर स्तब्ध और निराश हूं। इस तरह की घटनाओं से पार्टी बदनाम होती है और इसकी कड़ी निंदा की जानी चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कायम रखने का कांग्रेस का इतिहास रहा है। मतभेद और धारणाएं लोकतंत्र के अभिन्न अंग हैं। असहिष्णुता और हिंसा कांग्रेस के मूल्यों और संस्कृति से अलग है।‘।

पार्टी के एक अन्य सीनियर नेता गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी में महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के लिए जल्द से जल्द कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाने का आह्वान किया है। अपनी चिट्ठी में उन्होंने कहा- वफादार लोगों द्वारा पार्टी छोड़कर जाने से उथल-पुथल पैदा हो गई है। वहीं वयोवृद्ध कांग्रेस नेता के. नटवर सिंह ने गुरुवार को कहा, ‘वर्तमान में पार्टी में कुछ भी सही नहीं है। इस वक्त कांग्रेस में सिर्फ 3 लोगों, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा की ही चलती है। किसी की बात नहीं सुनी जाती। उन्होंने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी में उन्होंने कोई पद नहीं ले रखा है लेकिन सभी मामलों में फैसले ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने का फैसला राहुल गांधी ने लिया था।

उधर, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे अन्य राज्यों में भी पार्टी के अंदर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। छत्तीसगढ़ के एक दर्जन से ज्यादा कांग्रेस विधायक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बदलने की मांग लेकर दिल्ली आ चुके हैं। गुरुवार को बघेल ने गांधी परिवार का बचाव करते हुए कहा, ‘सब जानते हैं कि सोनिया जी हमारी कार्यकारी अध्यक्ष हैं और अगर कपिल सिब्बल जैसे नेता नेतृत्व के बारे में सवाल उठाते हैं, तो हम क्या कह सकते हैं?’

आज कांग्रेस की जो हालत है उसे देखकर पार्टी के पुराने और अनुभवी नेता परेशान हैं। इनमें से अधिकांश ने व्यक्तिगत तौर पर मुझे कहा कि पार्टी का इतना बुरा हाल हमने कभी नहीं देखा। पंजाब में 3 महीने पहले ऐसा लग रहा था कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीत जाएगी लेकिन आज पार्टी का बुरा हाल है। ऐसी हालत में सब पूछते हैं कि आखिर पार्टी चला कौन रहा है? सोनिया गांधी खराब सेहत की वजह से पूरा समय नहीं दे पातीं। वो पार्टी की वर्किंग प्रेसीडेंट हैं लेकिन उनके सारे फैसले राहुल गांधी ले रहे हैं।

पार्टी के नेता कहते हैं कि सिद्धू को लेकर जो फैसला लिया गया वो प्रियंका गांधी का था। हाल ये है कि पंजाब में इतना बड़ा संकट है, पार्टी के बड़े-बड़े नेता खुलकर बयानबाजी कर रहे हैं, अमरिंदर सिंह ने पार्टी छोड़ दी, सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में असन्तुष्ट सक्रिय हैं, लेकिन लेकिन राहुल गांधी केरल चले गए और प्रियंका यूपी गई हैं। नतीजा ये है कि आम आदमी पार्टी अब सिद्धू पर डोरे डालने में लगी है। केजरीवाल ने सिद्धू को लेकर अपने तेवर बदले हैं और अमरिंदर सिंह बीजेपी से हाथ मिलाने को तैयार हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूछ रहे हैं कि इतना सब करने के बाद कांग्रेस को क्या मिला? एक पुरानी कहावत है..’सौ जूते भी खाए और सौ प्याज भी।’

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Captain out, Sidhu hit wicket, Party clean bowled !

AKBThe flames of Congress infighting in Punjab have reached Delhi, the knives are out and the party leadership is nonplussed over how to handle the crisis.

Capt. Amarinder Singh, one of the tallest Congress leaders in Punjab, announced on Thursday that he was no more in the party with which he was associated for 23 years. He said, “I have been in politics for 52 years, I have my own beliefs, my own principles. The way I have been treated..if you doubt me after 50 years and my credibility is at stake..if there is no trust, what is the point of me staying in the party?” He said this in Chandigarh, after his meetings with Home Minister Amit Shah and National Security Adviser Ajit Doval in Delhi.
The ex-army captain indicated he may float a new party. He ruled out joining BJP, but did not rule out any future tie-up with the party.

Capt Amarinder Singh had been a family friend of Gandhis, since the days when he studied in the same school with Rajiv Gandhi. He predicted doom for the party in Punjab assembly polls due early next year. The Captain said, “the Congress is going downhill.. the people of Punjab do not have any trust in Navjot Sidhu”. He vowed to defeat Sidhu in the coming elections.

As far as the possibility of tie-up between Captain and BJP is concerned, one has to understand the present position. BJP is one of the main parties in Punjab but it lacks a big Punjabi Sikh leader of stature. The captain has left the Congress party and is in need of a big political platform. In short: the captain needs a party and BJP needs a captain.

Till Thursday, the captain ruled out joining BJP, but politics is a game of unending possibilities. Nobody knows what can emerge by next week. Two days ago, the captain was saying he was not going to meet any leader in Delhi, but he met Amit Shah and Ajit Doval. If somebody claims that the meetings were fixed suddenly, I can say it is not correct. The captain’s meeting with Amit Shah was fixed in advance and the captain’s Delhi visit was for meeting the Home Minister.

Two facts are clear at this moment. One, the captain will not return to the Congress party, and two, he will use his full firepower to teach Sidhu a lesson. It is, of course, a different matter that the Congress, at this point of time, is not sure whether Sidhu will stay in the party or not.
On Thursday, Navjot Singh Sidhu, who resigned from the post of PCC chief along with his supporters on Tuesday, had a three hour long meeting with Punjab chief minister Charanjit Singh Channi in Chandigarh. Cenral party observer Harish Chowdhary, Sidhu’s associate Kuljit Singh Nagra and Pargat Singh were present in the meeting. Nothing tangible emerged. Before the meeting, Sidhu, via Twitter, had expressed annoyance over appointment of Iqbal Preet Singh Sahota as the new Director General of Punjab Police.

Sidhu alleged that as head of SIT, it was Sahota who had given a clean chit to Badal family and falsely implicated two innocent Sikh youths in the Guru Granth Sahib ‘beadabi’ (sacrilege) case. Sidhu also objected to appointment of Amar Preet Singh Deol as Punjab Advocate General. Deol had represented former DGP Sumedh Singh Saini in a corruption case last month. Chief Minister Channi refused to change both the officials, but the Sidhu camp claimed otherwise. Channi offered setting up a three-member coordination committee comprising Sidhu, Congress leader Harish Chowdhary and himself. The situation continues to remain unclear.

As the serial drama in Punjab Congress continues, most of the state party leaders are exasperated and annoyed with Sidhu. Former state party chief Sunil Jakhar demanded that the chapter must be closed soon and all efforts to challenge the chief minister’s leadership must end now. Another minister Raj Kumar Verka said, Sidhu had resigned on his own, and he must patch up with the chief minister on his own. He advised Sidhu to practise restraint, adjustment and flexibility. Only one minister, Razia Sultana, has till now resigned in support of Sidhu. Other ministers close to Sidhu had been attending cabinet meetings.

About Sidhu’s future plans, speculations are rife. Sidhu, who left BJP to join Congress, had earlier approached Aam Aadmi Party before the last assembly elections. On Thursday, Delhi chief minister and AAP supremo Arvind Kejriwal was in Punjab. He was asked about Sidhu. Kejriwal replied: “A battle for throne is presently going on and it is being watched by the people of Punjab. The question is not who is joining which party. Whenever we will have discussion with Sidhu, we shall see, we will tell you.”

Capt Amarinder Singh had told both Rahul and Priyanka Gandhi not to trust Sidhu. The captain had told them that Sidhu was unreliable and cannot be trusted. Nobody at that time heeded to his advice. Senior Congress leaders had also advised the Gandhi family not to trust Sidhu much. It was because of this, the central party leadership did not send anybody to Punjab, after Sidhu gave his resignation on Tuesday. Sidhu was told to meet the chief minister directly. He was told that the chief minister would not go to his home to meet him. Sidhu took the cue. He knew that the party leadership was unhappy, and he tamely decided to meet the CM.
Though no concrete results came from the meeting, but because of Sidhu, the party leadership is now facing a revolt of sorts among leaders in Delhi.

On Wednesday, senior Congress leader Kapil Sibal held a press conference to say that the party was “headless” without a president and nobody knows who is taking decisions. He reiterated the demand for election of party president and AICC office bearers and said “we are G-23 , and not Ji-Huzoor 23’. “Those leaders who were close to ‘them’ have left the party, while we who are not considered close to ‘them’ are still loyal and standing by ‘them’. “ By ‘them’, Sibal meant the present central party leadership.

The same evening, Congress supporters staged protest outside Sibal’s house, damaged a car and threw tomatoes at his residence. On Thursday, senior Congress leaders including P. Chidambaram, Anand Sharma, Manish Tewari and veteran leader K. Natwar Singh denounced the protest. Chidambaram in his tweet said, “I feel helpless when we cannot start meaningful conversations within party forums. I also feel hurt and helpless when I see pictures of Congress workers raising slogans outside the residence of colleague and MP. The safe harbour to which one can withdraw seems to be silence.”
Congress leader Anand Sharma said, “Shocked and disgusted to hear the news of attack and hooliganism at Kapil Sibal’s house. This deplorable action brings disrepute to theparty and needs to be strongly condemned. Congress has a history of upholding freedom of expression, differences of opinion and perception are integral to a democracy. Intolerance and violence is alien to Congress values and culture.”

Another senior leader Ghulam Nabi Azad, in a letter to Sonia Gandhi, has called for convening Congress Working Committee meeting at the earliest to discuss critical issues. In his letter, he has said that desertions by loyalists have led to turmoil.

Veteran Congress leader K. Natwar Singh on Thursday said, “nothing is right in the party at present. Only three persons, Sonia Ji, Rahul and Priyanka Gandhi are taking decisions for the leadership.” He slammed Rahul Gandhi saying he was taking decisions in all matters without holding any position in the party. He said, it was Rahul Gandhi who took the decision to replace Capt. Amarinder Singh.

Trouble is also brewing in other state units like Rajasthan and Chhattisgarh. Already more than a dozen Congress MLAs from Chhattisgarh have come to Delhi seeking replacement of Chief Minister Bhupesh Baghel. On Thursday, Baghel defended the Gandhis saying, “everybody knows Sonia Ji is our working president and if leaders like Kapil Sibal raise questions about leadership, what can we say?”

Senior and experienced party leaders are now worried over the internal crisis in Congress. Many of them personally told me they have never seen the party facing such a worse situation in their entire life. Nearly three months ago, it appeared that the Congress would retain power in Punjab, and now the party’s fortunes have plummeted to a low.
Questions are being asked as to who is running the party. Congress working president Sonia Gandhi is facing health related issues. She is unable to devote full time for the party. On her behalf, Rahul Gandhi is taking important decisions.

Party leaders say, the decision to induct Sidhu into the party was taken by Priyanka Vadra. These leaders said, at a time when the party is facing challenges in states like Punjab, Rajasthan and Chhattisgarh, Rahul Gandhi has left for Kerala and Priyanka has gone to UP. Capt. Amarinder Singh has left the party, Sidhu has resigned and the Aam Aadmi Party may try to win him over. Arvind Kejriwal has changed his tune about Sidhu, and the captain appears to be ready to join hands with the BJP.

Senior Congress leaders are asking, after doing so much, what did the party achieve? There is an old saying in Hindi “sau jootey bhi khaye, aur pyaaz bhi khaaye”. There is no matching English proverb for this, but it accurately reflects the present state of Congress, which invited the troubles on itself in Punjab by accommodating Sidhu.

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