कोरोना काल में स्कूलों के दोबारा खुलने पर मां-बाप और शिक्षक ये सावधानियां बरतें
भारत के कई राज्यों में लगभग 17 महीने के बाद स्कूल फिर से खुल गए हैं। ज्यादातर छात्र एक बार फिर अपने स्कूल में जाकर और अपने पुराने दोस्तों से मिलकर बेहद खुश नजर आए। हालांकि ज्यादातर अभिभावकों के मन में कोविड-19 को लेकर बैठे डर के कारण स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति काफी कम थी। स्कूलों के प्रबंधन ने सोशल डिस्टैंसिंग, अल्टरनेट सिटिंग अरेंजमेंट, व्यवस्थित लंच ब्रेक, थर्मल स्क्रीनिंग और मास्क पहनने जैसी चीजों को कड़ाई से लागू किया, लेकिन अभिभावक इस बात को लेकर आशंकित थे कि क्या ये उपाय उनके बच्चों को कोरोना वायरस से संक्रमित होने से रोक पाएंगे।
महामारी की संभावित तीसरी लहर को लेकर भी अभिभावकों के मन में सवाल हैं। ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) की एक रिपोर्ट कहती है कि देश में कोरोना की तीसरी लहर आएगी और यह अक्टूबर में अपने पीक पर पहुंच सकती है। ऐसे में कई अभिभावक सवाल उठा रहे हैं कि जब एक महीने बाद तीसरी लहर आनी ही है तो अभी स्कूलों को खोलने की क्या जरूरत थी। वहीं, आईआईटी कानपुर की एक अन्य रिसर्च में कहा गया है कि फिलहाल तीसरी लहर आने की कोई संभावना नहीं है।
अब बच्चों के माता-पिता पसोपेश में हैं कि आखिर किसके दावे पर यकीन करें। लोग इस बात को लेकर डरे हुए हैं कि अगर तीसरी लहर आई और उसका असर बच्चों पर हुआ तो उन्हें कैसे बचाएंगे। अमेरिका से खबरें आईं है कि वहां तीसरी लहर में बच्चे बड़ी संख्या में कोरोना वायरस का शिकार हो गए हैं। बच्चों की कोरोना वैक्सीन को लेकर भी अनिश्चितताएं हैं, और उसका आना भी अभी बाकी है। अभिभावक इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि बच्चों को वैक्सीन की 2 डोज लगवाने के बाद ही स्कूल भेजें या बगैर वैक्सीन लगाए ही स्कूल भेजना शुरू करें।
राज्य सरकारों ने बच्चों की जिम्मेदारी स्कूलों पर डाल दी है, और स्कूलों के मैनेजमेंट ने ये जिम्मेदारी अभिभावकों पर डाल दी है। आज देश भर के परिवारों में इस बात को लेकर असमंजस है कि बच्चों को स्कूल भेजा जाए या फिर घर पर ही ऑनलाइन पढ़ाई करवाई जाए और हालात के ठीक होने का इंतजार किया जाए।
1 सितंबर को दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु के स्कूल सख्त एसओपी (standard operating protocol) दिशानिर्देशों के तहत फिर से खुल गए, लेकिन छात्रों की उपस्थिति काफी कम थी। ज्यादातर लोगों ने अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजने का फैसला किया। जहां तक बच्चों का सवाल है, तो वे डेढ़ साल से भी ज्यादा समय के बाद स्कूल लौट कर अपने पुराने दोस्तों से मिलने पर बेहद खुश नज़र आए।
मुझे बहुत से लोग मिले, जो अपने बच्चों को लेकर परेशान हैं। उन्होंने मुझे बताया कि पिछले 17 महीनों के दौरान घर में रहने से बच्चों का सामाजिक विकास रुक गया है और उनके सामाजिक आचरण में काफी बदलाव आया है। घर में ऑनलाइन क्लासेज हो रही हैं, बाहर खेलना-कूदना बंद है, इसलिए वे सिर्फ टीवी और मोबाइल पर अपना ज्यादा वक्त बिताते हैं। छोटे छोटे बच्चे अपना ज्यादातर समय मोबाइल फोन और लैपटॉप पर लगाते हैं, इसके कारण उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। छोटे बच्चे बोलना नहीं सीख पा रहे हैं और उनकी स्पीच थेरेपी करानी पड़ रही है। आजकल के टीनेजर्स काफी जल्दी गुस्सा हो जाते हैं और बाहरी दुनिया के संपर्क में न आने के कारण वे चिड़चिड़े हो गए हैं।
बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में मैंने AIIMS के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया का इंटरव्यू लिया और उनसे महामारी की तीसरी लहर की संभावना के बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि तीसरी लहर की संभावना अभी भी मौजूद है क्योंकि भारत में अधिकांश लोगों को अभी भी वैक्सीन लगनी बाकी है, इसके कारण बड़ी संख्या में लोगों के शरीर में एंटीबॉडी नहीं बन पाए हैं। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि अगर तीसरी लहर आती है तो हो सकता है कि कोरोना के मामलों में इजाफा हो, लेकिन दूसरी लहर की तुलना में इस बार अस्पताल में भर्ती होने वालों और जान गंवाने वालों की संख्या में कमी देखने को मिल सकती है।
डॉ. गुलेरिया ने कहा कि अब तक किए गए सीरो सर्वे के मुताबिक, ज्यादातर लोगों ने वैक्सीन की एक डोज ले ली है, और अगर तीसरी लहर आती है तो गंभीर बीमारी के बहुत ज्यादा मामले सामने नहीं आएंगे। उन्होंने बताया कि आमतौर पर कोविड की वैक्सीन गंभीर बीमारी, अस्पताल में भर्ती होने और मौतों से सुरक्षा प्रदान करती हैं। उन्होंने कहा, ICMR मॉडलिंग डेटा में अक्टूबर से जनवरी तक तीसरी लहर की रेंज दिखाई गई है, जबकि अन्य मॉडलिंग डेटा में कई वेरिएबल्स के आधार पर दूसरे निष्कर्ष सामने आए, हम ये नहीं जानते कि ये वेरिएबल्स क्या हैं।
AIIMS डायरेक्टर ने मुझे बताया कि काफी कुछ कोरोना वायरस पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा, ‘ अगर ये वायरस अन्य वेरिएंट्स में बदल जाता है और फिर फैलता है, तो निश्चित रूप से मामलों की संख्या में वृद्धि होगी। यह बड़े पैमाने पर लोगों के व्यवहार पर भी निर्भर करता है। अगर भारत में लोग आने वाले त्योहारों के महीनों में कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन करते हैं, तो हो सकता है कि तीसरी लहर या तो बिल्कुल न आए या अगर आती भी है तो यह घातक नहीं होगी।’
जब मैंने पूछा कि क्या संभावित तीसरी लहर बच्चों को ज्यादा प्रभावित कर सकती है, डॉ. गुलेरिया ने कहा, ‘तीसरी लहर की चपेट में बच्चों के ज्यादा आने की बात इसलिए कही जा रही थी क्योंकि अब तक किसी भी बच्चे का वैक्सीनेशन नहीं हो पाया है। अगर हम भारत, यूरोप और ब्रिटेन में दूसरी लहर के आंकड़ों पर गौर करें तो हम पाएंगे कि बहुत कम बच्चे इस वायरस से प्रभावित हुए थे और उनमें गंभीर रूप से बीमार होने के मामले बहुत कम थे।’
डॉ. गुलेरिया ने कहा, ‘कोविड की चपेट में आने वाले स्वस्थ बच्चों को आमतौर पर हल्के संक्रमण का सामना करना पड़ा। इसके अलावा ICMR सीरो सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि 55 से 60 फीसदी बच्चों में पहले से ही वायरस के खिलाफ मजबूत एंटीबॉडी विकसित हो चुकी है। इसका मतलब है कि आधे से भी ज्यादा बच्चे पहले ही कोरोना से संक्रमित हो चुके थे और उनके शरीर में एंटीबॉडी बन गई है । इसलिए कुल मिलाकर अब हम कह सकते हैं कि काफी संख्य़ा में बच्चों में एंटीबॉडी विकसित हो चुकी है। ऐसे में अगर तीसरी लहर आती भी है तो हो सकता है कि बच्चे गंभीर रूप से बीमार न हों और उन्हें हल्के संक्रमण का ही सामना करना पड़े।’
जब मैंने पूछा कि क्या मां-बाप को अभी अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहिए या नहीं, एम्स निदेशक ने कहा, ‘ मां-बाप अपने बच्चों को उन राज्यों के स्कूलों में भेज सकते हैं जहां पॉजिटिविटी रेट कम है, जैसे कि दिल्ली में। फिर भी छात्रों को स्कूलों में कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन करना चाहिए, और शिक्षकों एवं स्कूल के सभी कर्मचारियों को वैक्सीन लगवा लेनी चाहिए।’
डॉ. गुलेरिया ने कहा, ‘स्कूलों को 50 पर्सेंट अटेंडेंस के साथ या अलग-अलग शिफ्ट में शुरू करना चाहिए, और छात्रों को हैंड सैनिटाइजर समेत कोरोना से बचाव के लिए अन्य चीजें देनी चाहिए। स्कूल उन्हीं इलाकों में खोले जाने चाहिए, जहां पॉजिटिविटी रेट कम है। इसकी लगातार मॉनिटरिंग की जानी चाहिए और पॉजिटिविटी रेट में बढ़ोत्तरी पाए जाने पर स्कूलों को बंद भी किया जाना चाहिए । स्कूल खोलने का मतलब यह नहीं है कि हम उन्हें स्थायी रूप से खोल रहे हैं, इसके पीछे जोखिम और फायदे वाली एनालिसिस है। हमें स्कूलों को केवल कम पॉजिटिविटी रेट वाले इलाकों में खोलने की इजाजत देनी चाहिए, और वह भी कड़ी निगरानी और कोविड उपयुक्त व्यवहार का पूरी तरह पालन करते हुए।’
जब मैंने बताया कि अमेरिका में महामारी फिर से फैल गई है और पिछले 15 दिनों के दौरान रोजाना 2 लाख मामले सामने आ रहे हैं, और बच्चे भी बड़े पैमाने पर संक्रमित हो रहे हैं, तो AIIMS डायरेक्टर ने कहा: ‘यह सच है कि अमेरिका में अब डेल्टा वेरिएंट के मामले बढ़ रहे हैं। अमेरिका में कुछ राज्य ऐसे भी थे जहां कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन नहीं किया जा रहा था, लोगों ने मास्क पहनना बंद कर दिया था और वे पार्टियों में जाने लगे थे। हमें इन देशों से सीखना चाहिए और जो गलतियां वहां की गई हैं, उनसे बचना चाहिए।’
बच्चों के वैक्सीनेशन पर डॉ. गुलेरिया ने कहा, ‘अगर हम सभी बच्चों के वैक्सीनेशन का इंतजार करते रहे, तो हम अगले साल तक स्कूल नहीं खोल पाएंगे। उस समय भी अगर कोई नया वेरिएंट सामने आ जाता है तो बच्चों को बूस्टर डोज देने को लेकर सवाल उठने लगेंगे। यदि हम वैक्सीन और नए वेरिएंट्स की राह देखते रहे तो स्कूलों को लंबे समय तक नहीं खोल पाएंगे।’
उन्होंने कहा, ’12 साल और उससे ज्यादा की उम्र के बच्चों के लिए पहले से ही ZyCov-D वैक्सीन को मंजूरी दी जा चुकी है। इसी तरह, भारत बायोटेक का टीनेजर्स पर कोवैक्सिन का ट्रायल पहले ही पूरा हो चुका है और उसका विश्लेषण जारी है। एक बार ये टीके आने के बाद, 12 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के बच्चों को टीका लगाया जा सकता है। यहां तक कि अमेरिका की फाइजर कंपनी का टीका भी भारत में बच्चों को दिया जा सकता है। इसलिए, इस समय भारत के कई राज्यों में स्कूलों को फिर से खोलने से जोखिम कम है, और फायदा ज्यादा है। हम स्कूलों के फिर से खुलने के लिए अनंतकाल तक इंतजार नहीं कर सकते।’
डॉ. गुलेरिया ने अपने इंटरव्यू में जो कुछ कहा है, उसे भारत में स्कूल जाने वाले बच्चों के मां-बाप को ध्यान से सुनना चाहिए। पहला, स्कूलों को केवल उन्हीं इलाकों में फिर से खोला जाना चाहिए जहां पॉजिटिविटी रेट बहुत कम है, दूसरा, सभी स्कूलों को कोविड उपयुक्त व्यवहार का सख्ती से पालन करना चाहिए, और तीसरा, यदि स्कूल कड़ी देखरेख में कम पॉजिटिविटी रेट वाले इलाकों में फिर से खोले जाते हैं तो रिस्क कम है और फायदा ज्यादा है।
डॉ. गुलेरिया ने सही कहा कि हम स्कूलों के फिर से खुलने के लिए अनंतकाल तक इंतजार नहीं कर सकते। टीनेजर्स के लिए वैक्सीन पहले ही बनाई जा रही है, और स्कूल अब सख्त कोविड उपयुक्त व्यवहार और कड़ी निगरानी का पालन करते हुए शुरू हो सकते हैं। बच्चों को उनके व्यक्तित्व विकास के लिए स्कूलों में भेजना जरूरी है, लेकिन माता-पिता को भी उन पर निगरानी बनाए रखनी चाहिए। स्कूलों में जहां बच्चों को मास्क पहनना चाहिए, भीड़-भाड़ से बचना चाहिए और बार-बार हाथ धोने चाहिए, वहीं शिक्षकों और स्कूल के कर्मचारियों को वैक्सीन लगवा लेनी चाहिए।
Reopening schools during Covid: What parents, teachers must guard against
Schools in several states across India reopened after a gap of nearly 17 months with most of the students happy to return to their alma mater and meet their friends. However the attendance was low due to fear about Covid-19 in the minds of most of the parents. While social distancing, alternate seating arrangements, wearing of masks, staggered lunch breaks and thermal screening were scrupulously followed by school managements, parents continued to be sceptical about whether these measures would prevent their wards from getting infected by Coronavirus.
There are questions in the minds of parents about a possible third wave of pandemic. An ICMR (Indian Council of Medical Research) report says that the third wave could reach its peak in India in October. Several parents are questioning the advisability of reopening schools if a third wave is going to come after a month. Another research study from IIT, Kanpur, says there is no possibility of a third wave coming soon.
Parents are now confused about which report to trust, with news coming from the US about a large number of school children infected with Covid-19 virus as pandemic is sweeping large parts of that country. There are also uncertainties about a Covid vaccine for children, which is yet to come. Parents are confused about whether to send their children only after they get vaccinated with two doses.
State governments have left the responsibility of taking care of students to the schools, while school managements have left the decision about sending children to the parents. Families across India are presently confused about whether to continue with online classes, and wait and watch till the situation eases.
On September 1, schools in Delhi, UP, Haryana MP, Rajasthan and Tamil Nadu reopened under strict SOP guidelines, but attendance was thin. Most of the parents chose not to send their children to school. On their part, children were happy to return to their temples of learning and meet old friends after a year and a half.
I have met many parents who told me that social behaviour of their children have undergone a sea change during the past 17 months. With playgrounds and parks closed, most of the children had been showing fatigue after being locked inside their homes with their cellphones and computers. Small kids have been spending too much screen time on cell phones and laptops, adversely affecting their mental health. Some of the kids now require speech therapy, because they are unable to speak coherently. Teenagers nowadays get angry too easily and they have become rude and petulant, due to lack of exposure to the outside world.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Wednesday night, I interviewed AIIMS director Dr Randeep Guleria and asked him about the possibility of a third wave of pandemic. He said, the possibility of a third wave still exists because most of the people in India are yet to take vaccines to create antibodies for protection. He said, cases may rise if a third wave comes, but the number of hospitalizations and deaths could be less compared to the second wave.
Dr Guleria said, according to serosurveys conducted so far, most of the people have taken a single dose of vaccine, and if at all the third wave comes, there will be not too many cases of serious illness. Covid vaccines, he pointed out, normally provide protection from serious illnesses, hospitalization and deaths. He said, in the ICMR modelling data, the range for a strong third wave has been shown from October till January, while other modelling data had other conclusions based on several variables, “which we do not know”.
The AIIMS director told me that it all depends on the behaviour of the virus. “If it mutates into other variants and spreads, then the number of cases will surely rise. It also depends on the behaviour of people at large. If people in India follow Covid appropriate behiavour during the oncoming festive season, then the third wave may either not come at all or if it comes, it will not be deadly.”
To my question on whether the possible third wave could affect children more, Dr Guleria said, “this theory about the third wave targeting children was floated because none of the children had been vaccinated so far. If we go through the data about the second wave in India, and in Europe and UK, we will find that very few children were affected by the virus and there were few cases of serious illnesses among them.”
Dr Guleria aid, “Healthy children who had Covid, faced mild infections, by and large. Moreover the ICMR serosurvey data show that 55 to 60 per cent children had already developed strong antibodies against the virus. It means that more than half of the children already had mild Covid infection and had developed antibodies already. We can, therefore, say that children, by and large, have acquired immunity. So, even if a third wave comes, children may not be infected with severe diseases and they may face mild infection. “
To my question whether parents should now send their children to schools or not, the AIIMS director said, “They can send them to schools in those states where the positivity rate is low, like in Delhi. Yet, students must follow Covid appropriate behaviour in schools, and teachers and all school workers must get themselves vaccinated.”
Dr Guleria said,”Schools should start with 50 per cent attendance, or with staggered timings, and they must provide hand sanitizers and other Covid precautions for students. Schools can function in those areas only, where the positivity rate is low. There must be constant monitoring and surveillance, and if it is found that the positivity rate is rising, then we may have to shut down the schools. Opening schools does not mean that we are opening them permanently, there is a risk-benefit analysis behind it. We should allow schools to open only in areas with low positivity rate, and that too, under close supervision and following good Covid appropriate behaviour.”
When I pointed out that the pandemic had struck again in the US, with 2 lakh cases reported daily during the last 15 days, and children being infected on a large scale, the AIIMS director replied: “It’s true Delta variant cases are on the rise in the US now. There were some states in US where Covid appropriate behaviour was not being followed at all, with people having stopped wearing masks and attending parties. We should learn from these countries and avoid making mistakes that were committed there.”
On vaccination for children, Dr Guleria said, “If we keep on waiting for vaccination of all children, we may have to reopen schools only next year. Even at that time too, if a new variant emerges, questions will arise about giving booster doses to children. We can never reopen schools for a long time, if we keep on waiting for vaccines and new variants.”
He added, “Already, ZyCov-D vaccine for children of age group from 12 years and above, has been approved. Similarly, Bharat Biotech’s Covaxin trials on teenagers are already complete and analysis is going on. Once these vaccines arrive, children in the 12-plus age group can be vaccinated. Even Pfizer vaccine from the US can be given to children in India. So, reopening schools in several states of India at this moment has less risks, and more benefits. We cannot wait interminably for the schools to reopen.”
Parents of school going children in India should go carefully through what Dr Guleria has said in his interview. One, schools should be reopened only in those areas where the positivity rate is very low, Two, all schools must following Covid appropriate behaviour strictly, and Three, risks are less and benefits are more, if schools are reopened in low positive areas, of course, under supervision.
Dr Guleria is right when he says that we cannot wait interminably for the schools to reopen. Vaccines for teenagers are already being prepared, and schools can now function by following strict Covid appropriate behaviour and close supervision. Sending children to schools for their personality development is a must, but parents must maintain close supervision. Children in schools must wear masks, avoid crowds, and wash their hands frequently, while teachers and school workers must get themselves vaccinated.
अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत: बेहद खौफनाक हैं ज़मीनी हालात
अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान छोड़ने और काबुल एयरपोर्ट पर तालिबान का पूरा कंट्रोल होने के बाद अब हालात तेजी से बदल रहे हैं। काबुल पहुंचने के बाद तालिबान ने अपनी सार्वजनिक घोषणाओं में नरम रुख अपनाने की बात कही थी, लेकिन अब तालिबान ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया है। तालिबान ने उन अफगानों के घरों के बाहर नोटिस चिपकाए हैं, जिन्होंने अमेरिका की मदद की थी। नोटिस के जरिए इन लोगों को तालिबान की अदालत में पेश होने के लिए समन जारी किया गया है। नोटिस पर अमल नहीं करनेवालों के परिजनों को जान से मारने की धमकी दी गई है।
खबर है कि तालिबान ने करीब 40 हजार उन अफगानों का बायोमेट्रिक डेटाबेस हासिल कर लिया है जिन्होंने इससे पहले के शासन में अमेरिका की मदद की थी। ये कयास लगाए जा रहे हैं कि तालिबान इस डेटाबेस के आधार पर उन लोगों से बदला ले सकता है।
इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा कि उनके सामने अफगानिस्तान से सेना की वापसी ही एकमात्र सबसे अच्छा विकल्प बचा था। बायडेन ने कहा, ‘अफगानिस्तान से निकलने की 31 अगस्त की डेडलाइन कोई मनमाने ढंग से तय नहीं की गई थी। अमेरिकी नागरिकों की जान बचाने के लिए इस डेडलाइन की रूपरेखा बनाई गई थी। मेरे पूर्ववर्ती राष्ट्रपति ने एक मई तक अफगनिस्तान से अमेरिकी सेना के हटने को लेकर तालिबान के साथ एक समझौते पर दस्तखत किया था।’
बायडेन ने कहा, ‘पिछली सरकार ने जो समझौता किया था उसके मुताबिक, अगर अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी सेना को हटाने की 1 मई तक की समयसीमा पर कायम रहता है, तो तालिबान अमेरिकी सेना पर हमला नहीं करेगा। लेकिन यदि हम रुके रहे तो फिर सारे दांव बदल जाएंगे। इसलिए हमारे सामने सिर्फ एक आसान सा फैसला करना था – वो ये कि या तो पिछली सरकार द्वारा किये गए वादों का पालन करें और अफगानिस्तान छोड़ दें, या फिर ये कहें कि हम अफगानिस्तान नहीं छोड़ रहे हैं और अपने हजारों और सैनिकों को इस जंग में झोंक दें। अब हमें इन्हीं दो में से एक विकल्प चुनना था, कि फिर से जंग में लौटना है या अपनी सेना को अफगानिस्तान से हटाना है। मैं इस जंग को हमेशा के लिए बढ़ाना नहीं चाहता था। मैं वहां से बाहर निकलने की मियाद को भी बढ़ाने के पक्ष में नहीं था।’
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि वह इस फैसले की पूरी जिम्मेदारी खुद लेते हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं इस फैसले की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं। अब कुछ लोग ये कह रहे हैं कि हमें वहां से लोगों को निकालने का काम कुछ पहले शुरू कर देना चाहिए था, ये भी कहा जा रहा है कि क्या हम इसे ज्यादा व्यवस्थित तरीके से नहीं कर सकते थे? मैं इस बात से असहमत हूं। आप कल्पना कीजिए कि अगर हमने जून या जुलाई में लोगों को निकालने का काम शुरू किया होता तो गृहयुद्ध के बीच हमें हजारों अमेरिकी सैनिकों के साथ-साथ एक लाख 20 हजार अफगानों को वहां से निकालना पड़ता। एयरपोर्ट पर तब भी काफी भीड़ होती। सरकार पर लोगों का भरोसा टूट जाता और सत्ता पर सरकार का नियंत्रण खत्म हो जाता। ऐसे में यह मिशन बेहद कठिन और खतरनाक साबित होता।’
बायडेन ने आईएसआईएस (खुरासान) के आतंकियों को सख्त चेतावनी भी दी। उन्होंने कहा, ‘हम अफगानिस्तान और अन्य देशों में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे। हमें इसके लिए जमीनी युद्ध लड़ने की जरूरत नहीं है। हमारे पास अन्य क्षमताएं भी हैं। जरूरत पड़ने पर हम जमीन पर अमेरिकी सैनिकों को उतारे बिना भी आतंकवादियों और अन्य लक्ष्यों पर हमला कर सकते हैं। हमने पिछले हफ्ते ही अपनी क्षमता का परिचय दिया। हमने तब आईएसआईएस-के को दूर से ही मारा, जब उन्होंने हमारे 13 सैनिकों और दर्जनों निर्दोष अफगानों की हत्या कर दी थी। साथ ही हम आईएसआईएस (खुरासान) को बताना चाहते हैं कि अभी तुम्हारा हिसाब होना बाकी है।’
बायडेन के इन वादों के बावजूद अफगानिस्तान में जमीनी हालात भयावह हैं। पूरे अफगानिस्तान में खाने-पीने के चीजों की भारी कमी हो गई है। यहां हजारों लोग रोटी और खाने के लिए तड़प रहे हैं। एक-एक रोटी के लिए मारकाट मची हुई है। एक-एक निवाले के लिए जद्दोजहद हो रही है। काबुल और अन्य शहरों में एटीएम से पैसे निकालने के लिए लोगों की लंबी कतारें दिख रही हैं, लेकिन अधिकांश बैंकों में कैश खत्म हो चुका है।
ऐसी खबरें हैं कि तालिबान के लड़ाके घरों में घुसकर पिछली सरकार का समर्थन करनेवालों को घसीटकर बाहर निकाल रहे हैं और उन्हें वहीं गोली मार दे रहे हैं। कुछ लोगों की जीभ काट दी गई। एक जाने-माने अफगान लोकगायक फवाद अंद्राबी को काबुल से 100 किलोमीटर दूर उनके घर के पास कत्ल कर दिया गया। तालिबान के लड़ाके उनके घर गए, उनके साथ चाय पी, फिर उन्हें घसीटकर घर के बाहर ले गए और एक दहशतजदा भीड़ के सामने उनके सिर में गोली मार दी। एक वीडियो सामने आया है जिसमें तालिबान के लड़ाके एक टीवी न्यूज एंकर के पीछे राइफल लेकर खड़े हैं। एक तलिबान समर्थक के साथ डिबेट कर रहा वह न्यूज एंकर डर के मारे कांप रहा था।
अगस्त के मध्य में एक महिला टीवी न्यूज एंकर बहिश्ता अरघंद ने तालिबान नेता मौलवी अब्दुल हक हेमाद का स्टूडियो में इंटरव्यू लिया और इसके बाद वह चुपचाप देश छोड़कर चली गईं। बहिश्ता ने कहा कि उन्हें अपनी जान का डर था और काबुल अब महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं रहा।
सबसे मजेदार बात यह है कि जहां जमीनी हालात अफगान पुरुषों और महिलाओं के लिए एक जैसे खौफनाक हैं, वहीं पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान से लेकर क्रिकेटर शाहिद अफरीदी तक तालिबान की तारीफों के पुल बांध रहे हैं। अफरीदी ने पाकिस्तानी मीडिया से कहा, ‘तालिबान बेहद पॉजिटिव मूड के साथ आए हैं। वे महिलाओं को काम करने दे रहे हैं। मेरा मानना है कि तालिबान को क्रिकेट बहुत पसंद है।’ अफरीदी को अफगानिस्तान का दौरा करना चाहिए और अफगान महिलाओं से मिलना चाहिए ताकि उन्हें पता चल सके कि वे तालिबान के बारे में क्या सोचती हैं।
लगता है तालिबान को लेकर पाकिस्तान ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली है। पाकिस्तान के हुक्मरानों को लगता है कि तालिबान उनके सीने पर लगा कोई तमगा है जिससे वे हिंदुस्तान को डरा देंगे। वे बिना सोचे-समझे तालिबान की हर हरकत को सपोर्ट करने में लगे हैं।
हैरानी इस बात की है कि पाकिस्तान कहता है कि हम तालिबान की फितरत को जानते हैं और अगर दुनिया ने उसका साथ नहीं दिया तो वह पुराने रास्ते पर चला जाएगा। पाकिस्तानी हुक्मरान कहते हैं अगर अमेरिका ने तालिबान को सपोर्ट नहीं किया तो वह फिर से 9/11 के रास्ते पर चला जाएगा, अगर भारत ने उसे मान्यता नहीं दी तो वह अलगाववादियों को समर्थन देकर कश्मीर में गड़बड़ करवाएगा। अब यह धमकी नहीं तो क्या है? यह सरासर भारत को ब्लैकमेल करने की कोशिश है। सच्चाई यह है कि आज अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान का कब्जा है और उसकी फितरत बंदूक से, जोर जबरदस्ती से हुकूमत चलाने की है। अब अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट (खुरासान) है, अल कायदा है, जैश-ए-मोहम्मद है, लश्कर-ए-तैयबा है। अब जहां दहशतगर्दी की ऐसी-ऐसी तंजीमें मौजूद हो वहां शांति की बात करना बेमानी है।
अमेरिका को अफगानिस्तान से एक न एक दिन जाना था, लेकिन वे इस तरह से जाएंगे, इतने बेगैरत होकर जाएंगे, ये किसी ने नहीं सोचा था। अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के सवाल पर चाहे बराक ओबामा हों, डॉनल्ड ट्रंप हों या फिर जो बायडेन, तीनों अमेरिकी राष्ट्रपति सेम पेज पर थे। सबका मानना था कि अब बहुत हो गया। उनका कहना था कि अफगानिस्तान में जंग खत्म हो गई, ओसामा को मारकर बदला ले लिया गया, अफगान सेना को प्रशिक्षित कर दिया गया, हथियार दे दिए गए, लोकतांत्रिक शासन आ गया, इसलिए अब वहां रुकने का मतलब नहीं।
आम अमेरिकियों में भी यही भावना थी कि सैनिकों को अफगानिस्तान से वापस बुला लिया जाए। इसीलिए पहले ओबामा ने, फिर डॉनल्ड ट्रंप ने और आखिर में जो बायडेन ने अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी की योजना बनाई। लेकिन उन योजनाओं का क्या हश्र हुआ? अमेरिकी फौज ने बिना किसी सही योजना के जिस तरह जल्दबाजी में अफगानिस्तान छोड़ा, जितनी हड़बड़ी दिखाई, उसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। यहां तक कि तालिबान और अफगान सेना को भी उम्मीद नहीं थी कि अमेरिका ऐसे हड़बड़ी में अफगानिस्तान छोड़ेगा। यही वजह है कि जब अमेरिका के आखिरी मिलिट्री प्लेन ने काबुल से उड़ान भरी तो काबुल में तालिबान ने जमकर फायरिंग करते हुए जश्न मनाया।
इस घटनाक्रम के बीच भारत कहां खड़ा है? मंगलवार को कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान की गुजारिश के बाद दोहा में तालिबान नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से मुलाकात की। स्तानिकजई ने भारतीय राजदूत से वादा किया कि तालिबान सभी भारतीय नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, भारत आने के इच्छुक अफगानों को सेफ पैसेज देगा और पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों को भारत के खिलाफ अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल नहीं करने देगा। हाथ कंगन को आरसी क्या? भारत को अभी ‘वेट ऐंड वॉच’ की रणनीति अपनानी होगी।
तालिबान के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहते। उन्होंने पहले ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, और पीएमओ एवं विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से मिलकर एक हाई-लेवल ग्रुप बनाया है। यह ग्रुप अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर कड़ी नजर रखेगा और उसके आधार पर भारत के रुख को तय करेगा।
मोदी ने इस ग्रुप को सबसे पहले अफगानिस्तान में भारत की प्राथमिकताएं तय करने को कहा है। इस ग्रुप की पिछले कुछ दिनों से लगातार बैठकें हो रही थीं, जिनमें तय किया गया कि सबसे पहले अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी, उसके बाद यह सुनिश्चित करना होगा कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आंतकी साजिशें रचने में न हो। अभी तक, भारत सहित दुनिया के अधिकांश देश तालिबान को लेकर सतर्क हैं। वे कोई भी फैसला लेने से पहले थोड़ा इंतजार करना चाहते हैं और देखना चाहते हैं कि आने वाले दिनों में तालिबान सरकार कैसे काम करती है।
Afghanistan under Taliban: the ground situation is scary
With the exit of US troops from Afghanistan and Taliban taking full control of Kabul airport, things are now moving fast. Taliban has started showing its true colours despite public announcements about following a moderate line. Taliban fighters have pasted notices outside the homes of those Afghans who helped the US, summoning them to attend “Taliban court” along with the threat to execute family members if they failed to do so.
There are reports that Taliban officials have accessed a huge biometric data base of nearly 40,000 Afghans who had helped the US and former regime. There are speculations that the Taliban may single out names of officials from this data base and carry out reprisals.
Meanwhile, the US President Joe Biden in his address to the nation a day after the unceremonious exit of US troops, said, withdrawal was the only best option before him. Biden said, “Leaving August 31 is not due to an arbitrary deadline. It was designed to save American lives. My predecessor, the former President, signed an agreement with the Taliban to remove US troops by May 1, just months after I was inaugurated.”
Biden said, “ …The previous administration’s agreement said that if we stuck to the May 1 deadline that they had signed on to leave by, the Taliban wouldn’t attack any American forces. But if we stayed, all bets were off. So we were left with a simple decision: Either follow through on the commitment made by the last administration and leave Afghanistan, or say we weren’t leaving and commit another tens of thousands more troops. Going back to war. That was the choice, the real choice. Between leaving or escalating. I was not going to extend this forever war. And I was not extending a forever exit.”
The US President said, he took full responsibility for the decision. “I take responsibility for the decision. Now, some say we should have started mass evacuations sooner and “Couldn’t this have been done in a more orderly manner?” I respectfully disagree. Imagine if we had begun evacuations in June or July, bringing in thousands of American troops and evacuating more than 120,000 people in the middle of a civil war. There still would have been a rush to the airport. A breakdown in confidence and control of the government. And it still would have been very difficult and dangerous mission.”
Biden also gave an ominous threat to ISIS(K) terrorists. He said, “We will maintain the fight against terrorism in Afghanistan and other countries. We just don’t need to fight a ground war to do it. We have what’s called over-the-horizon capabilities, which means we can strike terrorists and targets without American boots on the ground, very few if needed. We have shown that capacity in just the last week. We struck ISIS-K remotely, days after they murdered 13 of our service members and dozens of innocent Afghans. And to ISIS-K, we are not done with you yet.”
Biden’s promise notwithstanding, the situation on the ground in Afghanistan is scary. There is huge scarcity of foodstuff across Afghanistan, with thousands clamouring for bread and food. There are visuals of huge crowd of Afghans fighting over a piece of bread. There are serpentine queues of people in Kabul and other cities, waiting outside ATMs to withdraw money, but most of the banks have run out of cash.
There are reports of Taliban fighters entering homes, dragging out people who had supported previous regime, and shooting them on the spot. Some have their tongues slashed. A popular Afghan folk singer Fawad Andrabi was executed 100 km away from Kabul. Taliban fighters went to his home, sipped tea with him, then dragged him out of the house and shot him in the head in front of a horrified crowd. There is a video of Taliban fighters with rifles standing behind a TV news anchor who was engaged in a debate with a Taliban sympathizer. The news anchor was shivering.
In mid-August, a female TV news presenter Beheshta Arghand interviewed a Taliban leader Mawlawi Abdul Haq Hemad, in the studio and after the interview, the female anchor quietly left the country. Beheshta said, she feared for her life and Kabul was no more safe for women.
The most amusing part is that while the ground situation is scary for Afghans, male and female alike, there are leaders in Pakistan, right from Prime Minister Imran Khan to cricketer Shahid Afridi who are praising Taliban. Afridi told Pakistani media, “Taliban have come with a very positive mind. They are allowing ladies to work. And I believe, Taliban like cricket a lot.” Afridi should visit Afghanistan and meet Afghan women to know what they think about Taliban.
It appears as if the Pakistani leadership has shut its eyes to the ominous dangers. Pakistani leaders are harbouring the illusion that the return to power of Taliban is surely a big badge of achievement for Pakistan army, a development that, they believe, can frighten India. Pakistani leaders are blindly supporting every move of Taliban.
There are Pakistani experts who claim that Taliban may stray to its old ways of torture and medieval tendencies, if they do not get support from the US, India and Pakistan. Pakistani leaders have gone to the extent of saying that if India refuses to recognize the Taliban, it may extend support to separatists in Kashmir. Such views are nothing but efforts to blackmail India. The harsh realities on the ground are that with Taliban in power, ISIS(K) active in the provinces, and Jaish-e-Mohammed and Lashkar-e-Toiba active, Afghanistan has become a breeding ground for terrorists
The US had to return from Afghanistan someday, but nobody ever imagined they would retreat in such a shabby manner. On the issue of troops withdrawal, all the three US Presidents, Barack Obama, Donald Trump and Joe Biden, were on the same page. The US leadership was saying, enough is enough, after Al Qaeda chief Osama bin Laden was killed, the Afghan army was trained and equipped by the US and a democratic regime was installed.
The overall sentiment of Americans was that there was no point staying in Afghanistan and suffering huge losses. The plans for withdrawal were being drawn since the days of Obama regime, but nobody expected the US to withdraw in such a haphazard manner, without a proper plan. Even the Taliban and the Afghan army did not expect the US to leave in such a haste. That is why when the last American military plane flew out from Kabul, there was jubilation and celebratory firing by Taliban all over Kabul.
Where does India stand in the midst of such developments? On Tuesday, the Indian ambassador in Qatar Deepak Mittal met Taliban leader Sher Mohammed Abbas Stanekzai in Doha, following a request from Taliban side. Stanekzai promised the Indian envoy that the Taliban would ensure safety of all Indian nationals, safe passage for Afghans seeking to come to India and preventing Pakistan-based terror groups from using Afghan soil to target India. The proof of the pudding lies in eating. India will have to wait and watch.
Prime Minister Narendra Modi does not want to take any decision on Taliban in a hurry. He has already set up a high-level group consisting of National Security Adviser Ajit Doval, Minister of External Affairs S. Jaishankar, and other PMO and MEA officials. This group will keep a close watch on developments in Afghanistan and then decide.
Modi has asked this group to chalk out India’s priorities in Afghanistan. This group is now preparing details of Indian nationals now stuck in Afghanistan, and suggest ways and means to deter Pakistani terror groups from launching attacks against India. As of now, most of the nations across the world including India are watchful about Taliban. They want to wait and see how the Taliban government works in the coming weeks and months.