पाकिस्तान में ‘माल-ए-गनीमत’ बताकर क्यों बेचे जा रहे हैं अमेरिकी हथियार
पिछले महीने अफगानिस्तान पर हुए तालिबान के कब्जे का असर दिखने लगा है। अमेरिका ने अफगानिस्तान से जाते वक्त जो अत्याधुनिक हथियार और उपकरण वहां छोड़ दिए थे, अब वे पाकिस्तान के बाजारों में पहुंचने लगे हैं। अमेरिकी फौज के सामान अब पाकिस्तान के लाहौर, कराची, पेशावर और गुजरांवाला जैसे शहरों के बाजारों में सजे हुए हैं। पाकिस्तान में इन हथियारों को बेचनेवाले दुकानदारों ने अपनी दुकानों के बाहर बाकायदा बोर्ड टांग रखे हैं जिन पर ‘अमेरिकी फौज का माल-ए-गनीमत’ लिखा हुआ है। युद्ध में जीते जाने वाले सामानों का जब विजेता सैनिकों के बीच बंटवारा होता है, उसे माल-ए-गनीमत कहा जाता है।
अस्सी के दशक में अमेरिका ने अफगान मुजाहिदीन को सोवियत सेना से लड़ने के लिए भारी मात्रा में हथियार दिए थे। उस समय पेशावर दुनिया में अवैध हथियारों की राजधानी बन गया था। अब अमेरिकी फौज के बड़े बेआबरू होकर अफगानिस्तान से निकले के बाद जो हथियार और सैन्य उपकरण छोड दिए गए थे, वे सब अब पाकिस्तान के हथियार बाजारों की रौनक बढ़ा रहे हैं। ये हथियार काबुल, कंधार और मजार-ए-शरीफ से चोरी और स्मगलिंग के जरिए लाए गए हैं। इन शहरों में अमेरिकी सेना ने भारी संख्या में अपने हथियारों को अफगान सेना के लिए छोड़ा था लेकिन अब इन्हें तस्करी के जरिए पाकिस्तान पहुंचाया गया है।
पाकिस्तानी दुकानदारों ने कैमरे पर कबूल किया कि ये ‘लूट का माल’ है जिसे तालिबान ने अपने कब्जे में ले लिया था, और ‘चूंकि तालिबान हमारे भाई हैं, इसलिए हर पाकिस्तानी इन सामानों को खरीदने पर फख्र महसूस करता है।’ दुकानों में M16 अमेरिकी राइफल और M4 कार्बाइन भी बिक रहे हैं, लेकिन चोरी-छिपे। लेकिन अमेरिकी सेना के बुलेटप्रूफ जैकेट, नाइट विजन गॉगल्स, स्पाईकैम, नॉर्मल टेजर गन, टेजर स्टिक और असॉल्ट हथियारों के सामान खुलेआम बेचे जा रहे हैं।
अगस्त में जब अफगान सेना और तालिबान के बीच घमासान जंग छिड़ी हुई थी, उस वक्त पाक-अफगान सरहद पर तालिबान के लड़ाकों ने अमेरिकी और NATO सैनिकों के 30 से 35 हजार कंटेनर्स लूट लिए थे। इन सारे कंटेनर्स को तोरखम और चमन बॉर्डर के जरिए पाकिस्तान भेज दिया गया था। इनमें से ज्यादातर कंटेनर्स में अमेरिकी फौजियों की यूनिफॉर्म, उनके फेस मास्क के साथ दूसरे सामान और हथियार भी मौजूद थे। पाकिस्तानी दुकानदारों ने दावा किया कि उनके पास कलाशनिकोव और M 16 राइफल्स के अलावा उनकी एक्सेसरीज भी हैं। पाकिस्तानी टीवी रिपोर्टर अमेरिकी फौजियों का यूनिफॉर्म पहनकर और एयर गन हाथ में उठाकर इन दुकानों से अपने न्यूज चैनलों के लिए रिपोर्टिंग करने लगे हैं।
ये तो हुई उन अमेरिकी हथियारों और साजो-सामान की बात जिन्हें ‘माल-ए-गनीमत’ कहकर बेचा जा रहा है, लेकिन अमेरिकी सेना द्वारा अफगानिस्तान में बड़ी संख्या में छोड़े गए विमानों और हेलीकॉप्टरों का क्या हुआ? गुरुवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि कैसे तालिबान के लड़ाके एक अमेरिकी सुपर टुकानो लड़ाकू विमान के एक जेट इंडिन के पंखे से दूसरे पंखे तक रस्सियां बांधकर मस्ती में झूला झूल रहे हैं। अमेरिकी सैनिकों ने काबुल छोड़ने से पहले इन लड़ाकू विमानों के सारे सिस्टम डिसेबल कर दिए थे और अब वे किसी काम के नहीं हैं।
इन तस्वीरों में कम से कम 4 अमेरिकी सुपर टुकानो लड़ाकू विमान दिख रहे हैं जिन्हें अमेरिका की सेना ने नाकारा बनाकर अफगानिस्तान में ही छोड़ दिया। इनमें से प्रत्येक सुपर टुकानो लड़ाकू विमान की कीमत अन्तरराष्ट्रीय बाजार में 2,000 करोड़ रुपये है। अकेले काबुल में ही 73 अमेरिकी विमान हैं जिनमें से अधिकांश इस्तेमाल के लायक नहीं रह गए हैं। एक अनुमान के मुताबिक, अमेरिका के 200 से ज्यादा प्लेन और हेलीकॉप्टर अफगानिस्तान में ही रह गए है।
सवाल उठता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन ने सैनिकों की वापसी पर इतनी जल्दबाजी में फैसला क्यों लिया? अमेरिकी सैनिक अपने हथियार तो छोड़िए, अपने विमान और हेलीकॉप्टर तक साथ नहीं ले जा पाए। इनका इस्तेमाल अमेरिकी फौज कहीं और कर सकती थी। आखिर अफगानिस्तान से निकलने की ऐसी क्या जल्दी थी? सैकड़ों अमेरिकी नागरिक अभी भी अफगानिस्तान में फंसे हुए हैं और वहां से निकलने की लगातार कोशिश कर रहे हैं।
गुरुवार को तालिबान ने अमेरिकी नागरिकों, ग्रीन कार्ड धारकों, जर्मन, हंगेरियन और कनाडा के नागरिकों सहित 200 विदेशियों को काबुल से जाने की इजाज़त दे दी। इन्हें कतर एयरलाइंस की पहली चार्टर्ड फ्लाइट में काबुल एयरपोर्ट से दोहा ले जाया गया। लेकिन मज़ार-ए-शरीफ में फिछले कई दिनों से 3 चार्टर्ड प्लेन अमेरिकियों को ले जाने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन तालिबान ने अभी तक इजाजत नहीं दी ।
किसी ने नहीं सोचा होगा कि तालिबान के सामने सुपर पावर अमेरिका इतना मजबूर साबित होगा। जिस तालिबान को खत्म करने के लिए अमेरिका ने 20 साल तक जंग लड़ी, अब वह उसी के सामने हाथ जोड़कर अपने नागरिकों को अफगानिस्तान छोड़ने की इजाजत देने के लिए गिड़गिड़ा रहा है। खुद अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन तालिबान से गुजारिश कर रहे हैं कि वह उन लोगों को अफगानिस्तान छोड़ने की इजाजत दें, जो जाना चाहते हैं। जिस तरह से अमेरिकी फौज अरबों डॉलर के अपने विमान, हेलीकॉप्टर, टैंक, बख्तरबंद वाहन, हथियार और अन्य साजो-सामान छोड़कर अफगानिस्तान से भागी है, उसे अमेरिकी जनता न सिर्फ देख रही है, बल्कि राष्ट्रपति जो बायडेन की तीखी आलोचना हो रही है।
अमेरिकी खुफिया एजेंसियां तालिबान की ताकत को पहचनाने में जिस तरह नाकाम साबित हुई, उसे लेकर आम अमेरिकियों में काफी गुस्सा है। जिस तालिबान को अमेरिकी रणनीतिकार बदला हुआ बता रहे थे, और उससे मानवाधिकार और महिला अधिकारों के प्रति सम्मान की उम्मीद लगाए हुए बैठे थे, वे सारी उम्मीदें चूर-चूर हो गई हैं। तालिबान के सिपाही पत्रकारों के पकड़कर उन्हें कोडे से पीट रहे हैं, साथ ही महिला प्रदर्शनकारियों को भी बेल्ट और कोडों से पीटा जा रहा है। इन घटनाओं के साथ तालिबान ने अपना असली चेहरा दिखा दिया है। अमेरिकी नीति निर्माताओं की सारी उम्मीदें अब धराशायी हो चुकी हैं।
अपनी फितरत के मुताबिक तालिबान ने महिलाओं के सड़कों पर प्रदर्शन को गैर इस्लामी बताते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया है। अफगान महिलाएं अपना हक मांग रही थी, सरकार में हिस्सेदारी मांग रही थी, लेकिन तालिबान से इन महिलाओं को कोड़ों से की गई पिटाई मिली। तालिबान ने अपनी नई हुकूमत में कुख्य़ात आतंकी सरगनाओं को मंत्री बना कर जगह दी है। पूरे कैबिनेट में एक भी महिला को शामिल नहीं किया गया। तालिबान ने कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पुरुषों और महिलाओं के बीच पर्दे का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया है। तालिबान के एक वरिष्ठ नेता सैयद जकरुल्ला हाशमी ने एक अफगान टीवी शो में कहा कि महिलाओं का काम केवल बच्चे पैदा करना है। उन्होंने कहा, ‘महिलाएं कभी मंत्री नहीं बन सकतीं। यह उनके कंधों पर ऐसा बोझ डालने जैसा है जिसे वे नहीं उठा सकतीं।’
ऐसे ही एक और फरमान में तालिबान के संस्कृति उप मंत्री अहमदुल्ला वसीक़ ने कहा कि अफगानिस्तान में अब लड़कियां और महिलाएं आउटडोर गेम्स नहीं खेल पाएंगी क्योंकि ऐसे खेलों के दौरान उनका चेहरा और शरीर ढका हुआ नहीं होता। वसीक़ ने कहा, ‘खेलते वक्त लड़कियों का शरीर एक्सपोज हो जाता है। इसलिए, लड़कियों को इन खेलों में भाग लेने की कोई जरूरत नहीं है।’
तालिबान सरकार के इस फैसले की दुनिया भर के देशों ने निंदा की है। ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड ने कहा कि अगर महिलाओं को खेलों में भाग लेने पर पाबंदी लगाई गई, तो अफगानिस्तान के साथ ऑस्ट्रेलिया अपनी क्रिकेट सीरीज को रद्द कर देगा। बोर्ड ने कहा, अफगान क्रिकेट टीम को ऑस्ट्रेलिया की सरजमीं पर खेलने की इजाजत नहीं मिलेगी।
गुरुवार को ब्रिक्स वर्चुअल शिखर सम्मेलन में भारत, रूस, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और चीन के नेताओं ने अफगानिस्तान के हालात पर चर्चा की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अफगानिस्तान को किसी भी कीमत पर आतंकी संगठनों की पनाहगाह न बनने दिया जाए वरना ये संगठन दूसरे देशों पर हमला करेंगे। नई दिल्ली घोषणापत्र में काबुल एयरपोर्ट के बाहर (ISIS-K द्वारा) 26 अगस्त को किये गये आत्मघाती हमले की निंदा की गई। घोषणापत्र में कहा गया कि अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता कायम रखना जरूरी है ओर इसके लिए ‘समावेशी अंतर-अफगान वार्ता’ होनी चाहिए। शिखर सम्मेलन में सीमा पार आतंकवाद, टेरर फाइनेंसिंग नेटवर्क और आतंकवादियों के सुरक्षित पनाहगाहों के खिलाफ कदम उठाने पर भी ज़ोर दिया गया।
Why US assault weapons are being sold in Pakistan as ‘spoils of loot’
As a fallout of Taliban takeover in Afghanistan last month, a large number US-made weapons and other ultra-modern accessories have now made their way to the markets of Karachi, Lahore, Peshawar and Gujranwala in Pakistan. Shopkeepers in Pakistan have put boards outside their shops with “Ameriki Fauj Ka Maal-e-Ganimat” (war booty from US army) written on them.
Already, since the Eighties, when the US supplied huge quantity of weapons to Afghan Mujahideen based in Pakistan, Peshawar had become the capital of illegal weapon markets in the world. Now, these latest additions has led to thriving arms bazaars in the cities of Pakistan. These weapons, stolen and smuggled, have come from Kabul, Kandahar and Mazar-e-Sharif, where the US army left behind huge quantities of weapons, modern equipment and accessories to the Afghan army, and these were later smuggled into Pakistan.
Pakistani shopkeepers admitted on camera that these were “loot ka maal”(spoils of loot) which Taliban had taken over, and “since Taliban are our brothers, every Pakistani feels pride on buying these goods”. Apart from M16 US rifles and M4 carbines (sold secretly), bulletproof jackets, night vision goggles, spycams, normal taser guns, taser sticks and accessories of assault weapons are being sold openly in shops.
In August, when Taliban was locked in fierce combat with Afghan army troops, the fighters had occupied much of the bordering Pak-Afghan areas and captured 30-35,000 containers belonging to US and NATO forces. These containers were sent back via Torkham and Chaman border points to Pakistan. Most of these containers had US troop uniforms, face masks and other accessories. Pakistani shopkeepers claimed they had Kalashnikov, M16 rifles and their accessories too. Pakistani TV reporters have been reporting for their news channels from these shops, wearing US army uniforms and holding air guns in hand.
These were US weapons and accessories described as “spoils of loot”, but what about the large number of aircraft and helicopters left by US army in Afghanistan? In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Thursday night, we showed how Taliban fighters tied ropes from one end of a jet engine fan to another fan of a US Super Tucano jet fighter, and swinging on them during leisure time. All systems on these US jet fighters have been disabled by American troops before leaving Kabul and they are unfit for use any more.
At least four US Super Tucano jet fighters, each costing Rs 2000 crore in international market, have been left behind by US army, disabled and unfit for use. There are 73 US aircrafts in Kabul alone, and most of them cannot be used anymore. One estimate says, more than 200 US aircraft and choppers have been left behind in Afghanistan.
Questions arise why US President Joe Biden took a hurried decision on troops withdrawal and opted to leave behind so many US aircraft and choppers which the American armed forces could have used elsewhere. What was the hurry? There are several hundreds US citizens still holed up in Afghanistan, unable to leave.
On Thursday, Taliban allowed the first Qatar Airlines chartered flight to carry 200 foreigners, including US citizens, green card holders, Germans, Hungarians and Canadians, from Kabul airport to Doha. There are still three chartered planes waiting in Mazar-e-Sharif to carry US visa holders from Afghanistan, but Taliban is yet to give permission.
Nobody imagined the US would be so timid in the face of Taliban’s aggression. The US, which had fought a 20-year-old war against Taliban, is now beseeching Taliban leaders with folded hands to allow its citizens to leave Afghanistan. None other than US Secretary of State Antony Blinken is telling the Taliban to fulfil its promise to allow safe passage for those seeking to leave Afghanistan. The manner in which the US army practically fled Afghanistan leaving behind aircraft, choppers, tanks, armoured vehicles, huge number of assault weapons and other accessories is being noticed by the American people, who are taking their president Joe Biden to task.
Americans are angry with their intelligence agencies for having failed to estimate the capability of Taliban fighters, and the blitz that they undertook to occupy Afghanistan. The new Taliban, which the US policy makers had expected, would form an inclusive government, give respect to human rights and women’s equal rights, has bared its fangs now, if reports of beatings of journalists and women protesters are to be believed. All the hopes of American policy makers have now dashed to the ground.
The Taliban, true to its brutal nature, packed its all-male cabinet with dreaded terrorists carrying rewards on their head, ordered women not to come out on the streets to protest and remain in their homes, and directed colleges and universities to strictly adhere to gender segregation. One senior Taliban leader Syed Zekrullah Hashmi said on an Afghan TV show that women should restrict themselves to give birth to children only. He said, “women can’t be ministers. It is like you put some burden on her shoulders which she cannot carry.”
In another dictat, Taliban has issued orders that girls and women can no more take part in outdoor sports. Deputy Culture Minister Ahmedullah Wasiq said that all outdoor games for girls and women in Afghanistan have been prohibited. “By taking part in games, the body of woman gets exposed. Therefore, there is no need for girls to take part in sports”, Wasiq said.
Countries across the world have denounced this decision of Taliban government. Australian Cricket Board said that if women are disallowed from taking parts in sports, the board would call off its cricket series with Afghanistan. The board said, Afghan cricket team will not be allowed to play on Australian soil.
At the BRICS virtual summit on Thursday, leaders from India, Russia, South Africa, Brazil and China spoke on the situation in Afghanistan. Prime Minister Narendra Modi called for preventing terrorist outfits from using Afghanistan as a sanctuary for carrying out attacks on other countries. The New Delhi Declaration condemned the August 26 terror attack (by ISIS-K) outside Kabul airport, and called for “inclusive intra-Afghan dialogue” to ensure peace and stability in Afghanistan. The summit also discussed “cross-border movement of terrorists”, terror financing networks and safe havens for terrorists.
तालिबानी हुकूमत के आतंकी सरगनाओं के साथ कौन खड़ा है?
इस समय पूरी दुनिया में तालिबान की नई सरकार की चर्चा है। लोग हैरान हैं कि यह किसी मुल्क की सरकार है या आतंकियों की जमात। मैंने भी जब तालिबान के मंत्रियों के बैकग्राउंड की स्टडी की तो हैरान रह गया। इनमें से कोई सुसाइड बम बनाने में एक्सपर्ट है तो कोई कोड़े लगाने में, कोई शरिया के नाम पर लड़कियों की पढ़ाई के खिलाफ है तो कोई कहता है कि पीएचडी करने से कोई फायदा नहीं, पढ़ाई करने से कुछ नहीं होगा। सिर्फ इतना ही नहीं, तालिबान सरकार के 14 मंत्रियों के नाम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा घोषित आतंकवादियों की ब्लैकलिस्ट में शामिल हैं।
अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने एक तीखी टिप्पणी में कहा, ‘हमने गौर किया है कि नामों की घोषित सूची में विशेष रूप से ऐसे व्यक्ति शामिल हैं जो तालिबान के सदस्य हैं या उनके करीबी सहयोगी हैं और कोई महिला नहीं है। हम कुछ व्यक्तियों की संबद्धता और पूर्व के रिकॉर्ड को लेकर भी चिंतित हैं। हम तालिबान को उसके कार्यों से आंकेंगे, उसके शब्दों से नहीं।’
UNSC द्वारा जारी आतंकवादियों की ब्लैकलिस्ट में अफगानिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मुल्ला मुहम्मद हसन अखुन्द, दोनों डिप्टी पीएम, गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी (एक करोड़ अमेरिकी डॉलर के इनामी), उनके चाचा खलील हक्कानी, मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब, विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी और अन्य के नाम शामिल हैं।
अब सवाल यह उठता है कि क्या दुनिया भर की सरकारें तालिबान के मंत्रियों के साथ बातचीत करेंगी? क्या तालिबान सरकार को विश्व की प्रमुख शक्तियों से मान्यता मिलेगी? चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने बुधवार को घोषणा की थी कि चीन तालिबान सरकार की मदद करेगा और कोविड वैक्सीन, दवाओं, खाद्यान्न और जाड़े के साजो-सामान की सप्लाई के रूप में 3.1 करोड़ डॉलर की मदद देगा। उन्होंने यह बात पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्रियों की एक बैठक को संबोधित करते हुए कही। रूस इस बैठक में मौजूद नहीं था।
इस बीच ऐसी खबरें सामने आई हैं कि तालिबान के लड़ाके काबुल और अन्य शहरों में पत्रकारों और महिला प्रदर्शनकारियों पर चाबुक बरसा रहे हैं। बेल्ट और बेंत से उनकी पिटाई कर रहे हैं। प्रेस को आजादी देने का तालिबान का वादा भी हवा-हवाई साबित हुआ है।
पत्रकारों की सुरक्षा के लिए बनी समिति (CPJ) ने बुधवार को मांग की कि तालिबान पत्रकारों को हिरासत में लेना तुरंत बंद करे, उनके खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल बंद करे और मीडिया को बदले की कार्रवाई के खौफ के बिना स्वतंत्र रूप से काम करने दे। CPJ ने आरोप लगाया कि पिछले 2 दिनों में तालिबान ने काबुल में विरोध प्रदर्शन को कवर करने वाले कम से कम 14 पत्रकारों को हिरासत में लिया और बाद में रिहा कर दिया। CPJ का आरोप है कि इनमें से कम से कम 6 पत्रकारों को उनकी गिरफ्तारी या नजरबंदी के दौरान हिंसा का शिकार होना पड़ा। कुछ पत्रकारों को तालिबान ने प्रोटेस्ट मार्च का वीडियो बनाने से भी रोका।
बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने पत्रकारों को तालिबान की पिटाई के कारण अपनी पीठ पर पड़े चोट के निशान दिखाते हुए दिखाया था। तालिबान के लड़ाकों ने इन पत्रकारों को एक कमरे में बंद करके पीटा था।
तालिबान ने बुधवार को काबुल में चल रहे विरोध प्रदर्शनों की कवरेज के बाद, दैनिक अखबार ‘अल इत्तेला रूज़’ के वीडियो एडिटर और वीडियो रिपोर्टर, ताकी दरयाबी और नेमातुल्लाह नक़दी को हिरासत में ले लिया। इन दोनों पत्रकारों को एक पुलिस स्टेशन ले जाया गया, जहां उन्हें 2 अलग-अलग कमरों में बंद करके केबल से पीटा गया। इन दोनों पत्रकारों को हिरासत में टॉचर किया गया। अखबार के एडिटर और 2 अन्य पत्रकार जब पुलिस स्टेशन गए तो उन्हें भी हिरासत में ले लिया गया।
अखबार के प्रकाशक जकी दरयाबी ने बताया कि तालिबान द्वारा हिरासत में लिए गए इन 3 पत्रकारों में एडिटर कदीम करीमी, और लुत्फली सुल्तानी एवं अबर शायगन नाम के 2 अन्य पत्रकार शामिल थे। जैसा कि वीडियो में नजर आ रहा था, तालिबान द्वारा की गई पिटाई के बाद तकी दरयाबी की पीठ के निचले हिस्से, पैरों के ऊपरी हिस्से और चेहरे पर जबकि नक़दी के बाएं हाथ, पीठ के ऊपरी हिस्से, पैर के ऊपरी हिस्से और चेहरे पर चोट के लाल निशान थे। दरयाबी तो बिना मदद के चल भी नहीं पा रहे थे।
बुधवार को काबुल में पत्रकारों पर तालिबान के हमले की 2 और घटनाएं हुईं। लॉस एंजिलिस टाइम्स के लिए काम करने वाले 2 पत्रकार काबुल में महिलाओं के विरोध प्रदर्शन को कवर कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें तालिबान ने पकड़ लिया और एक पुलिस स्टेशन ले गए। उनके कैमरे को जब्त कर लिया गया। तालिबान के एक नेता ने उनसे कहा कि विरोध प्रदर्शन की कवरेज करना ‘गैर कानूनी’ है और उन्हें अपने कैमरे से प्रोटेस्ट की सभी तस्वीरों को डिलीट कर देना चाहिए।
एक अन्य घटना में तालिबान के 3 लड़ाकों ने ‘यूरोन्यूज’ के एक पत्रकार के चेहरे पर बार-बार थप्पड़ मारा, और उनका फोन एवं वॉलेट जब्त कर लिया। बाद में उनकी रिहाई के समय वॉलेट और फोन को वापस कर दिया। मंगलवार को तालिबान ने टोलो न्यूज चैनल के कैमरामैन वाहिद अहमदी को उस वक्त हिरासत में लिया था, जब वह काबुल में प्रेसिडेंशियल पैलेस के पास महिलाओं के विरोध प्रदर्शन का वीडियो बना रहे थे। उनका कैमरा जब्त कर लिया गया, हथकड़ी लगाई गई और फिर उन्हें काबुल में तालिबान के मिलिट्री हेडक्वॉर्टर ले जाया गया। न्यूज चैनल के अधिकारियों द्वारा तालिबान सांस्कृतिक आयोग से संपर्क करने के 3 घंटे बाद उन्हें रिहा किया गया। बाद में उन्हें कैमरा भी वापस कर दिया गया जिसमें फुटेज सही सलामत मिली।
मंगलवार को काबुल में प्रेसिडेंशियल पैलेस के पास हुई एक अन्य घटना में तालिबान के लड़ाकों ने एक लोकल ब्रॉडकास्टर के 2 पत्रकारों को जमीन पर पटक दिया, और फिर उनका माइक्रोफोन उनके सिर पर दे मारा जिससे वह टूट गया। इसके बाद वे उन्हें हथकड़ी पहनाकर राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय ले गए। तालिबान के लड़ाकों ने दोनों पत्रकारों को एक कमरे में जमीन पर पटक दिया और उनके साथ बुरी तरह मारपीट की। इन पत्रकारों को छाती, हाथ, कंधे, पीठ और पैरों में काफी चोटें आईं। हमलावरों ने पत्रकारों को मेटल रॉड से भी पीटने की धमकी दी। तालिबान के लड़ाकों ने बाद में इन पत्रकारों को छोड़ दिया, लेकिन उनके कैमरे का मेमोरी कार्ड और माइक्रोफोन अपने पास ही रख लिया।
मंगलवार को ही हुई एक और घटना में तालिबान ने एक इंटरनेशनल ब्रॉडकास्टर के पत्रकार को गिरफ्तार कर लिया। वह जनबाग स्क्वेयर पर महिलाओं के विरोध प्रदर्शन का वीडियो रिकॉर्ड कर रहे थे। गिरफ्तारी के बाद उन्हें एनडीएस कार्यालय ले जाया गया। तालिबान लड़ाकों ने उनके सिर पर बंदूकें तान दीं और विरोध प्रदर्शन के बारे में कोई रिपोर्ट प्रकाशित करने पर गोली मारने की धमकी दी। 2 घंटे बाद उन्हें छोड़ दिया गया। पत्रकार ने बताया कि उनकी पिटाई तो नहीं की गई लेकिन इस अनुभव ने उन्हें मानसिक तौर पर हिलाकर रख दिया था।
सिर्फ पत्रकारों को ही नहीं बल्कि सड़कों पर निकलने वाली बहादुर अफगान महिलाओं पर भी तालिबान ने बुधवार को चाबुक और डंडे बरसाए। ये महिला प्रदर्शनकारी कैबिनेट में महिलाओं के लिए समान अधिकार और प्रतिनिधित्व की मांग कर रही थीं। महिलाएं शांति से मार्च कर रही थीं, तभी उन्हें गाड़ियों में सवार होकर आए तालिबान के लड़ाकों ने रोका और बिजली के झटके देने वाले डंडों से उनकी पिटाई शुरू कर दी। तालिबान के लड़ाकों ने इन महिलाओं के ऊपर चाबुक भी बरसाए।
तालिबान के नए शिक्षा मंत्री अब्दुल बाक़ी हक्कानी ने कहा है कि छात्रों को उच्च शिक्षा की पढ़ाई करने की कोई जरूरत नहीं है बल्कि उन्हें मदरसों में ‘दीनी तालीम’ लेनी चाहिए। वह पहले ही अफगानिस्तान के कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों में पुरुष और महिला छात्रों के बीच पर्दा लगाने का फरमान जारी कर चुके हैं।
तालिबान के प्रवक्ता चाहे जितना दावा करें कि उनकी सरकार सबके साथ न्याय करेगी, जमीनी हकीकत बहुत ही कड़वी और क्रूर है। पत्रकारों को पीटा जा रहा है, उनके कैमरे जब्त किए जा रहे हैं और जान से मारने की धमकी दी जा रही है। बराबरी का हक मांगने वाली महिलाओं पर चाबुक बरसाए जा रहे हैं। अफगानिस्तान के आम लोग गहरे सदमे में हैं। एक तरह से देखा जाए तो उन्होंने अपनी आजादी खो दी है। यही वजह है कि जब महिला प्रदर्शनकारी अपने विरोध की आवाज बुलंद करती हैं तो ‘आजाद’ जैसे नारे काबुल की फिजाओं में तैरने लगते हैं।
अफगानिस्तान के लोगों, खासतौर से महिलाओं को अमेरिका से काफी उम्मीदें थीं। अमेरिका ने पिछले 20 सालों के दौरान देश के पुनर्निर्माण में मदद की थी। अब जबकि अमेरिका इन्हें बेबस और लाचार छोड़कर चला गया है, वे सदमे की हालत में हैं। पिछले 2 दशकों से अफगानिस्तान में महिलाएं बगैर किसी भेदभाव के आजाद हवा में सांस ले रही थीं, कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों में पढ़ रही थीं, दफ्तरों और कारखानों में काम कर रही थीं। अफगानिस्तान के लोगों ने अशरफ गनी को अपना राष्ट्रपति चुना, लेकिन जब तालिबान काबुल के दरवाजे पर पहुंच गया तो वह अपने लोगों को बेबस और बेसहारा छोड़कर भाग निकले। राष्ट्रपति के भागने के साथ ही अफगान सेना ताश के पत्तों की तरह बिखर गई और उसने तालिबान के आगे घुटने टेक दिए।
अशरफ गनी ने बुधवार को एक बयान में देश से भागने के लिए अपने साथी अफगानों से माफी मांगी। उन्होंने सफाई दी कि अगर वह मुल्क छोड़कर नहीं भागते तो काफी खून खराबा होता और काबुल में हजारों लोगों की जान चली जाती। गनी ने काबुल से भागते समय अपने साथ बड़ी मात्रा में कैश ले जाने के आरोपों से भी इनकार किया और कहा कि वह किसी भी तरह की जांच के लिए तैयार हैं। गनी के जाने के बाद अफगानिस्तान के लोगों को पंजशीर घाटी से तालिबान को टक्कर दे रहे नॉर्दन अलायंस से उम्मीदें थीं, लेकिन पाकिस्तान ने नॉर्दन अलायंस के ठिकारों पर बमबारी करके तालिबान की मदद की और वह पंजशीर घाटी में दाखिल हो गया। अब अफगानिस्तान के लोग अपने घरेलू मामलों में दखल देने के लिए पाकिस्तान से नफरत करने लगे हैं और उसके खिलाफ सड़कों पर उतरकर नारे लगा रहे हैं।
भारत की बात करें तो जम्मू और कश्मीर के 2 पूर्व मुख्यमंत्रियों, डॉ. फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने कहा कि वे तालिबान से सुशासन की उम्मीद करते हैं। फारूक अब्दुल्ला ने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि तालिबान सभी के साथ न्याय करेंगे और इस्लाम की शिक्षा एवं मानवाधिकारों का ध्यान रखते हुए अच्छी सरकार चलाएंगे।’ महबूबा मुफ्ती ने कहा, ‘तालिबान अब एक हकीकत बन चुका है। अगर वह अफगानिस्तान पर शासन करना चाहता हैं, तो उसे कुरान में निर्धारित सच्चे शरिया कानून का पालन करना होगा जो कि महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के अधिकारों की गारंटी देता है, न कि उसका जिसे वे सही कहते हैं, तभी वे दूसरे देशों के साथ संबंध कायम कर सकते हैं।’
उम्मीद तो बहुत अच्छी है, लेकिन जमीनी हकीकत कड़वी है। मैं महबूबा मुफ्ती और डॉ. फारूक अब्दुल्ला द्वारा तालिबान के बारे में दिए गए बयानों से हैरान हूं। जो नेता सियासत में अपने दम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला नहीं कर पाए, वे अब अफगानिस्तान में तालिबान पर अपनी उम्मीदें लगाने लगे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में ऐसे भी नेता हैं जो उम्मीद कर रहे हैं कि तालिबान और पाकिस्तान मिलकर कश्मीर में हिंसा भड़काएंगे और मोदी सरकार को परेशान करेंगे। यह एक देशविरोधी सोच है और ये मंसूबे ख्याली पुलाव बनकर रह जाएंगे।
क्या इन नेताओं को नहीं पता है कि तालिबान की कैबिनेट में कितने आतंकी सरगना हैं? क्या ये नेता तालिबान द्वारा आम अफगानों पर किए गए जुल्म के बारे में नहीं जानते? क्या ये नेता नहीं जानते कि तालिबान के आते ही औरतों के हक छीन लिए गए हैं, पत्रकारों की आवाज दबा दी गई है, इन पर कोड़े बरसाए गए हैं? क्या इन नेताओं को नहीं बता है कि महिलाओं को समान अधिकार, नौकरी और शिक्षा से वंचित कर दिया गया है? क्या इन नेताओं को आज भी तालिबान द्वारा महिलाओं पर चाबुक बरसाने की जानकारी नहीं है?
ये नेता इन सारी खौफनाक सच्चाइयों के बारे में जानते हैं। वे यह भी जानते हैं कि तालिबान न तो बदला है और न ही बदलेगा। लेकिन ये नेता अपने सियासी फायदे के लिए तालिबान की झूठी तस्वीर के आगे सलाम करने में लगे हैं। देश की जनता ऐसे अवसरवादियों को कभी माफ नहीं करेगी।
Terror masterminds of Taliban Govt : Who is supporting them?
People all over the world are wondering whether the new interim Taliban cabinet is indeed a government or a conglomerate of terrorist leaders and masterminds. I studied the track record of each of the Taliban ministers and was surprised to find some of them experts in making self-detonating explosives, some are experts on flogging, some are rabid misogynists who are against women’s education, and 14 members of Taliban government are on United Nations Security Council terrorism blacklist.
The US State Department in a stinging remark said, “We note the announced list of names consists exclusively of individuals who are members of the Taliban or their close associates and no women. We are also concerned by the affiliations and track records of some of the individuals…We will judge Taliban by its actions, not words.”
Among those on the UNSC terrorism blacklist are acting PM Mullah Mohammad Hasan Akhund, both his deputies, Home Minister Sirajuddin Haqqani (with a $10 million US bounty on his head), his uncle Khalil Haqqani, Mullah Omar’s son Mullah Yaqoob, Foreign Minister Ameer Khan Muttaqi and others.
Questions arise whether governments across the world will hold talks with the Taliban ministers? Whether the Taliban government will get recognition from major world powers ? On Wednesday, the Chinese Foreign Minister Wang Yi announced that China would help the Taliban government and give #31 million in aid in the form of Covid vaccines, medicines, foodgrains and winter supplies. He was addressing a meeting of foreign ministers of Pakistan, Tajikistan, Iran, Turkmenistan and Uzbekistan. Russia was absent from the meeting.
Meanwhile, reports continue to pour in of Taliban fighters flogging journalists and women protesters with canes, belts and whips, in Kabul and other cities. The Taliban promise of giving press freedom has simply evaporated.
The Committee to Protect Journalists (CPJ) on Wednesday demanded that Taliban must immediately cease detaining journalists, end the use of violence against them, and allow the media to operate freely and without fear of reprisals. CPJ alleged that in the last two days, Taliban detained and later released at least 14 journalists covering protests in Kabul. At least six of these journalists were subjected to violence during their arrests or detention, CPJ alleged. Some journalists were prevented by Taliban from filming protest march.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Wednesday night, we showed visuals of journalists showing injury marks on their back caused by Taliban, who flogged them inside a room.
On Wednesday, Taliban detained Taqi Daryabi and Nematullah Naqdi, a video editor and a video reporter with the daily newspaper ‘Etilaatroz’, following their coverage of ongoing protests in Kabul. The two journalists were taken to a police station, where they were separated in two rooms, beaten and flogged with cables. Both the journalists were tortured in custody. When the newspaper editor and two other journalists went to the police station, they were also detained.
The newspaper publisher Zaki Daryabi named three other journalists who were detained as editor Kadhim Karimi, and two reporters Lutfali Sultani and Aber Shaygan. Taqi Daryabi’s lower back,upper legs and face, and Naqdi’s left arm, upper back, upper legs and face were marked by red lesions after beatings by Taliban, as seen in the video. Daryabi was unable to walk unaided.
There were two other incidents of Taliban’s attack on journalists in Kabul on Wednesday. Two journalists working for Los Angeles Times, were covering women’s protest in Kabul, when they were caught by Taliban and taken to a police station. Their camera was confiscated. A Taliban leader told them that covering protests was “illegal” and they should delete all photos of protest from their camera.
In another incident, 3 Taliban fighters repeatedly slapped a journalist with EuroNews, in his face and confiscated his phone and wallet. These were later returned after his release. On Tuesday, Taliban had detained Wahid Ahmadi, a cameraman of TOLO news channel, while he was filming a women’s protest near the presidential palace in Kabul. His camera was confiscated, he was handcuffed and was taken to Taliban military headquarters in Kabul. He was released after three hours after the news channel officials contacted the Taliban cultural commission. The camera was returned later with the footage intact.
In another incident on Tuesday, near the presidential palace in Kabul, Taliban fighters shoved two journalists of a local broadcaster to the ground, and beat them on their heads with their microphone, which broke after impact. They were handcuffed and taken to National Directorate of Security. Inside a room, both the journalists were thrown to the ground, and beaten on head, chest, arms, shoulders, back and legs by Taliban fighters. The attackers threatened them that they would beat them with metal and electrical tools. They were later released, but Taliban fighters kept the memory card of camera and microphone with them.
In one more incident on Tuesday, Taliban arrested a journalist with an international broadcaster who was taking video of the women’s protest at Janbagh Square, and dragged him into the NDS office. Taliban fighters pointed guns to his head and threatened to shoot him dead if he published any report about the protest. He was released two hours later. The journalist said, he was not beaten, but he was psychologically shaken.
Not only journalists, but brave Afghan women who came out in the streets were also flogged with whips and batons by Taliban on Wednesday. The women protesters were demanding equal rights and representation for women in cabinet. The women were marching peacefully, when they were stopped by Taliban fighters, who came in vehicles, and began beating them with batons that emitted electric shocks and lashed them with whips.
The new Taliban education minister Abdul Baqi Haqqani has said that students need not go for higher education and should rather pursue “religious education” in madrasas. He has already implemented segregation of male and female students in colleges and universities of Afghanistan.
Much as the Taliban spokesman would claim that his government is in favour of justice to all, the ground realities continue to be harsh and brutal. Journalists are being beaten, their cameras confiscated and threatened with death. Women, who are demanding equal rights, are also being subjected to flogging and beating. The common people in Afghanistan are in deep trauma. They have practically lost their liberty. That is why cries like ‘Azad’ are renting the air of Kabul, when women protesters come out to march.
The people of Afghanistan, particularly women, had high hopes and expectations from the US, which had helped the country to rebuild itself during the last 20 years. Now that the US has left them high and dry, they are in a state of shock. For the last two decades, women in Afghanistan were living free, studying in colleges and universities, and working in offices and factories, without any segregation. The people of Afghanistan elected Ashraf Ghani as their president, but he fled when Taliban came knocking at the gates of Kabul, leaving his people high and dry. With the president having fled, the Afghan army fell like a pack of cards, and tamely surrendered to the Taliban.
On Wednesday, in a statement, Ashraf Ghani sought forgiveness from his fellow Afghans for fleeing the country, but said, he did this to avoid bloodshed. Ghani denied having taken huge amount of cash with him while fleeing, and said he was ready for a transparent probe into his finances. The people of Afghanistan had hopes with the Northern Alliance, which was strong in Panjshir valley, but Pakistan helped Taliban in bombing their positions, and Taliban made its entry into the valley. The people of Afghanistan now hate Pakistan for interfering in their domestic matters.
In India, two former Jammu and Kashmir chief ministers Dr Farooq Abdullah and Mehbooba Mufti said they expect good governance from Taliban. Dr Farooq Abdullah said, “I hope Taliban will deliver good governance, follow Islamic principles and respect human rights”. Mehbooba Mufti said, “Taliban has now become a reality. If they want to rule Afghanistan, they should follow the real Shariah rules which include rights for women, not the ones they say, then only they can have relations with other countries.”
Pious hopes indeed, but the ground realities are harsh. I am surprised over the statements made by Mehbooba Mufti and Dr Farooq Abdullah about the Taliban. Leaders who could not challenge Prime Minister Narendra Modi politically, are now resting their hopes on Taliban in Afghanistan. It is unfortunate that there are leaders in India who are expecting Taliban and Pakistan to join hands so that they can foment violence in Kashmir, and put Modi and his government in a tight spot. Such views are anti-national and their hopes are sure to vanish into thin air.
Are these leaders not aware about the number of terror masterminds sitting in the Taliban cabinet? Are these leaders not aware of the brutal atrocities that were committed by Taliban on common Afghans? Are these leaders not aware about the muzzling of press freedom, beating of journalists and women protesters by Taliban? Are these leaders not aware about women being denied equal rights, jobs and education? Are these leaders not aware of Taliban whipping women even today?
These leaders know the gruesome facts. They also know that Taliban had not changed, and will not change in future. But for their political advantage, these leaders are bowing before an imaginary and benevolent portrait of Taliban, for their selfish ends. The people of India will never forgive such leaders.
तालिबान शासन: आतंकियों का, आतंकियों के लिए, आतंकियों द्वारा
तालिबान ने मंगलवार को मुल्ला मुहम्मद हसन अखुन्द को प्रधानमंत्री बनाकर अपनी अन्तरिम सरकार का ऐलान कर दिया । अखुन्द वही शख्स है जिसने 2001 में बामियान की विश्व प्रसिद्ध बुद्ध मूर्तियों को तोपों से उड़ाने का आदेश दिया था। अखुन्द का नाम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा जारी सैंक्शन लिस्ट में है। वह तालिबान की सबसे ताकतवर कौंसिल, रहबरी शूरा, का प्रमुख है। 1996 से 2001 तक तालिबान की पिछली हुकूमत के दौरान अखुन्द विदेश मंत्री और उप प्रधानमंत्री था। अखुन्द तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक है। मुल्ला उमर की मौत का ऐलान दो साल बाद उस वक्त किया गया था, जब वह अमेरिकी हमलों के डर से छिप गया था। इसी दौरान मुल्ला उमर की मौत हो गई थी।
तालिबान के सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को उप प्रधानमंत्री बनाया गया है, वो इससे पहले प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार था। मुल्ला अब्दुस सलाम हनफ़ी को भी उप प्रधानमंत्री बनाया गया है। मुल्ला बरादर ने दोहा में अमेरिका के साथ हुई बातचीत में तालिबान का नेतृत्व किया था। इसी बातचीत के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सारे सैनिकों को वापस बुला लिया। तालिबान के पिछले शासन में उप रक्षामंत्री रहे बरादर को 2010 में पाकिस्तान में गिरफ्तार किया गया था लेकिन आठ साल बाद उसे रिहा कर दिया गया था। बरादर मुल्ला उमर का बहुत करीबी था और मुल्ला उमर ने ही उसे ‘बरादर’ (भाई) उपनाम दिया था।
इसी तरह पाकिस्तान की दहशतगर्द तन्ज़ीम हक्कानी नेटवर्क का चीफ और मोस्ट वांटेड आतंकी सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्री बनाया गया है। भारत से नफरत करनेवाला सिराजुद्दीन हक्कानी 2008 में काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर कराए गए भयंकर आतंकी हमले का मास्टरमाइंड था। इस हमले में 58 लोगों की मौत हुई थी। हक्कानी के सिर पर अमेरिका ने 50 लाख डॉलर (36.8 करोड़ रुपए) का इनाम रखा था। वह एफबीआई की मोस्ट वांटेड लिस्ट में है और उसे ‘विशेष रूप से ग्लोबल टेररिस्ट नामित’ किया गया है। एक और मोस्ट वांटेड आतंकवादी खलील हक्कानी को शरणार्थी विभाग का मंत्री बनाया गया है। हक्कानी नेटवर्क पर संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और भारत ने प्रतिबंध लगा रखा है।
तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर का बेटा मोहम्मद याकूब अब अफगानिस्तान का रक्षा मंत्री बना है। वह तालिबान के रक्षा आयोग का प्रमुख है। तालिबान की उदारवादी आवाज माने-जाने वाले आमिर खान मुत्तकी को विदेश मंत्री बनाया गया है। मुत्तकी तालिबान की पिछली हुकूमत में संस्कृति, शिक्षा और सूचना मंत्री था। वह तालिबान की उस टीम का हिस्सा था जिसने दोहा में अमेरिका के साथ बातचीत की थी।
शेर मुहम्मद अब्बास स्तानिकज़ई को उप विदेश मंत्री बनाया गया है। इंडियन मिलिट्री एकेडमी, देहरादून में ट्रेनिंग के दौरान उसके साथी उसे ‘शेरू’ के नाम से पुकारते थे। उसके आईएसआई से बेहद करीबी संबंध रहे हैं। तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद को उप सूचना मंत्री बनाया गया है।
तालिबान की 33 सदस्यीय अंतरिम सरकार में 12 लोग ऐसे हैं जिन्हें ग्वांतानामो बे स्थित अमेरिकी जेल में कैद करके रखा गया था । इनमें सूचना मंत्री मुल्ला खैरुल्लाह ख्वैरख्वाह, बॉर्डर और जनजातीय मामलों के मंत्री मुल्ला नूरुल्लाह नूरी, थल सेनाध्यक्ष कारी फसीहुद्दीन बदख्शानी और खुफिया निदेशक अब्दुल हक वसीक शामिल हैं। वसीक ने ग्वांतानामो बे स्थित अमेरिकी जेल में 12 साल बिताए थे।
तालिबान कैबिनेट के सदस्यों की लिस्ट पर एक नज़र डालने से साफ हो जाता है कि यह सरकार या तो आतंकवादियों से भरी हुई है या फिर आतंकी सरगनाओं से। इस अंतरिम सरकार में ज्यादातर पश्चिमी और पूर्वी पश्तून कबीलों के नेताओं का वर्चस्व है। इस लिस्ट पर पाकिस्तान के ISI की स्पष्ट छाप नजर आ रही है पाकिस्तान के थलसेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा ने कुछ दिन पहले खुद स्पष्ट किया था कि उनका देश तालिबान की सरकार बनाने में मदद करेगा। आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद ने काबुल में खास भूमिका निभाई। उन्होंने तालिबान के अलग-अलग कबीलों के नेताओं के बीच मतभेद को खत्म कर उन्हें एक साथ लाने का काम किया। लेकिन अभी-भी अफगानिस्तान में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो तालिबानी निज़ाम में पश्तूनों के वर्चस्व से नाराज़ हैं।
काबुल से लेकर हेरात तक मंगलवार को उस समय गुस्सा फूटा, जब अफगान महिलाएं विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए सड़कों पर उतरी। तालिबान के सिपाहियों ने महिलाओं को तितर-बितर करने के लिए उन्हें लाठियों से पीटा और हवा में फायरिंग भी की। ये प्रदर्शनकारी काबुल में पाकिस्तानी दूतावास के बाहर ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ जैसे नारे लगा रहे थे।
प्रदर्शनकारी पाकिस्तानी सेना द्वारा पंजशीर घाटी में नॉर्दन अलायंस रेजिस्टेंस फोर्स के ठिकानों पर बमबारी के खिलाफ भी नारे लगा रहे थे। तालिबान के सिपाहियों ने प्रदर्शनकारियों को डराने के लिए हवा में जबरदस्त फायरिंग की। 15 अगस्त को जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया था उसके बाद से यहां इतनी ज़बरदस्त फायरिंग नहीं देखी गई थी। तालिबान लड़ाकों ने टीवी कैमरापर्सन और पत्रकारों को बंदी बना लिया। हालांकि बाद में उन्हें छोड़ दिया। प्रदर्शनकारियों, खासतौर से महिलाओं ने बहादुरी का सबूत दिया और तालिबान की धमकियों और मारपीट का पूरी दृढ़ता से सामना किया।
महिलाओं को डंडों से पीटने की तस्वीरों से पूरी दुनिया में तालिबानी क्रूरताओं का संदेश गया है। प्रदर्शनकारी महिलाएं जान हथेली पर लेकर घरों से बाहर निकली थीं। परिवारवालों से कहकर आई थीं कि जिंदा वापस आएंगी या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं, क्योंकि सामने तालिबान था। इसीलिए काबुल की गलियों में जब महिलाएं अपने हुकूक की मांग को लेकर आगे बढ़ रहीं थी तो तालिबान ने इन्हें रोकने की काफी कोशिश की। दस मीटर से भी कम फासले से महिलाओं के ठीक सामने तालिबान ने गोलियों की बौछार शुरू कर दी। लेकिन हिम्मत दिखाते हुए महिलाओं ने फिर भी नारे लगाने बंद नहीं किए, उनके कदम नहीं रुके। हेरात में भी तालिबान लड़ाकों ने महिला प्रदर्शनकारियों को घेर लिया और उन्हें अज्ञात स्थान पर ले गए।
पाकिस्तान दुनिया को यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि नया तालिबान पुराने से अलग है, लेकिन पिछले तीन हफ्तों में हुई ज्यादातर घटनाएं कुछ और ही इशारा कर रही हैं। दुनिया ने महसूस किया है कि तालिबान की इस सफलता के पीछे पाकिस्तानी सेना और आईएसआई है। वे पिछले बीस साल से उन्हें शरण दे रहे थे। उन्हें पैसा, हथियार और नौजवान मुहैया करा रहे थे। वही पाकिस्तान अब तालिबान को एक ऐसा पेश कर रहा है मानो वो मुल्क में हुकूमत चलाने के मामले में गंभीर है। लेकिन दुनिया इस तथ्य को नज़रअन्दाज़ नहीं कर सकती कि तालिबान के लड़ाकों को पाकिस्तानी फौज के कमांडरों ने ही जंग लड़ने की ट्रेनिंग दी है।
पाकिस्तानी मंत्री खुलेआम कह रहे हैं कि उन्होंने तालिबान लड़ाकों को खाना खिलाया, कपड़े दिए, उन्हें युद्ध लड़ने की तरकीबें सिखाई और उन्हें पैसे भी दिए। आईएसआई प्रमुख खुद यह संदेश देने के लिए काबुल पहुंचे कि वे सरकार बनाने में तालिबान की मदद करने आए हैं। पाकिस्तानी मंत्रियों ने यहां तक दावा किया कि उनकी सेना ने पंजशीर घाटी में दाखिल होने में तालिबान की मदद की और पाकिस्तानी सैनिकों ने अहमद मसूद के ठिकानों पर हमले भी किए । अफगानिस्तान की आम जनता इन घटनाओं को करीब से देख रही है, अपने घरेलू मामलों में हो रही दखलन्दाज़ी से वह पाकिस्तान से काफी नाराज़ हैं। आम अफगान पाकिस्तान को एक नया अदृश्य हमलावर मानते हैं।
तालिबान के प्रति अपने जुड़ाव को दुनिया भर के सामने देखा कर पाकिस्तान खुद को भारत से इक्कीस साबित करना चाहता है। लेकिन अफगानिस्तान की अवाम इस बात को देख चुकी है, कैसे भारत ने पिछले बीस साल के दौरान काबुल में संसद भवन बनाया, अफागनिस्तान में बड़े बड़े बांध बनाए, शहरों को हाईवे से जोड़ा और पूरे मुल्क में बिजली का जाल बिछाया। अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत ने बहुत बड़ा योगदान किया है। 15 अगस्त तक पाकिस्तान हाशिए पर था, लेकिन जब तालिबान ने बिजली की रफ्तार से पूरे मुल्क पर कब्ज़ा कर लिया , तो पाकिस्तान और चीन खुल कर तालिबान के पक्ष में सामने आ गए। चीन और पाकिस्तान दोनों का मक़सद एक ही है। वो बै, अफगानिस्तान में भारत के हितों को नुकसान पहुंचाना और परोक्ष रूप से कश्मीर घाटी में हिंसा भड़काने की कोशिश करना, जहां आर्टिकल 370 खत्म किए जाने के बाद पिछले दो साल से ज्यादा समय से शांति है।
Taliban now has a government of the terrorists, by the terrorists, for the terrorists
Taliban on Tuesday announced the formation of its acting government with Mullah Mohammad Hasan Akhund as the prime minister. Akhund is the man who ordered the demolition of world famous Bamyan Buddha statues in 2001. Akhund is on the United Nations Security Council sanctions list. He heads the powerful decision making body Rehbari Shoora. Akhund was foreign minister and deputy prime minister during the first phase of Taliban rule from 1996 till 2001. He is one of the closest associates of late Mullah Omar, the founder of Taliban, whose death, in hiding, was announced after two years.
Taliban co-founder Mullah Abdul Ghani Baradar, who was a strong contender for PM post, is now the deputy PM. Mullah Abdus Salam Hanafi is also the new deputy PM. Mullah Baradar headed the negotiations with the US in Doha that led to the US withdrawing its troops from Afghanistan. Baradar, who was deputy defence minister during the previous Taliban regime, was arrested in Pakistan in 2010 but was released eight years later. Baradar was very close to late Mullah Omar, who gave him the nickname ‘Baradar’(brother).
The chief of Haqqani terrorist network based in Pakistan, Sirajuddin Haqqani has been appointed Interior Minister. A rabid India-hater, Sirajuddin Haqqani was the mastermind of the 2008 terror attack on Indian embassy in Kabul in which 58 people were killed. He carries a $5 million (Rs 36.8 crore) reward on his head announced by the US. He is on the FBI list and is a “specially designated global terrorist”. Another Minister for Refugees, Khalil Haqqani, is also a terrorist from Haqqani network, wanted by UN, US and India.
Mullah Mohammad Yaqoob, son of Late Mullah Omar, is the new Defence Minister. He heads the Defence Commission of Taliban. Amir Khan Muttaqi is the new Foreign Minister, considered a moderate voice of Taliban. Muttaqi was Culture, Education and Information Minister during the previous Taliban regime. He was part of the Taliban team that conducted negotiations with the US in Doha.
Sher Mohammed Abbas Stanekzai, known as ‘Sheru’ by his batchmates in Indian Military Academy, is now the deputy foreign minister. He is known to have close links with ISI. The official Taliban spokesman Zabiullah Mujahid is the new deputy information minister.
In the 33-member interim government, there are twelve who were sent to US jail in Guantanamo Bay. They include Information Minister Mullah Khairullah Khairkhwah, Border and Tribal Affairs Minister Mullah Noorullah Noori, Chief of Army Staff Qari Fasihuddin Badakhshani, and Director of Intelligence Abdul Haq Wasiq. Wasiq spent 12 years in US prison at Guantanamo Bay.
A close look at the list of cabinet members makes it clear that this government is packed with either terrorists or terror masterminds. The interim government is dominated by leaders from mostly western and eastern Pashtun tribes. The ISI stamp is clear on the list. Pakistan army chief Gen. Qamar Javed Bajwa had himself made it clear a few days ago that his country would help Taliban in forming the government. ISI chief Lt Gen Faiz Hameed played a major role in Kabul, bringing disparate Taliban groups on a single page. But there are a large number of groups across Afghanistan who resent the domination of Pashtuns in the government.
The anger was evident from Kabul to Herat on Tuesday, when Afghan women came out on streets to lead protest march. In Kabul, Taliban fighters swung clubs to beat women protesters and fired in air to disperse the march. These protesters were shouting anti-Pakistan slogans like ‘Pakistan Murdabad’ outside the Pakistani embassy in Kabul.
The protesters were shouting slogans against bombing of resistance group’s positions in Panjshir valley by Pakistani army. Taliban fighters fired a huge number of bullets in the air to scare away the protesters. Such a heavy firing has not been noticed in Kabul since August 15, when Taliban occupied the capital. Taliban fighters took TV camerapersons and reporters captive and hauled them away, but later released them. The protesters, particularly women, displayed bravery in the face of intimidation, threats and beatings by Taliban fighters.
The images of Taliban beating women with clubs have sent a strong message across the world about the brutalities being committed by Taliban. Many of these women protesters had told their family members that they may not return alive. Taliban fighters started firing bullets from 10 meters distance, but these women did not fear. They continued to shout slogans demanding freedom and liberty. In Herat too, Taliban fighters rounded up women protesters and took them to an undisclosed destination.
Pakistan is trying to show to the world that the new Taliban is different from the old one, but most of the incidents that have taken place in the last three weeks have proved otherwise. The world has realized that it is Pakistan army and the ISI, which are behind the resurgence of Taliban. They had been giving them sanctuary, providing them with money, weapons and fighters for the last two decades, and are now presenting Taliban as an Islamist group that is serious about governance. However, the world cannot be oblivious of the fact that though these Taliban fighters may be holding US-made weapons, seized from former Afghan army, they have been trained in warfare by Pakistani army commanders.
Pakistani ministers are on record having said that they have fed and clothed Taliban fighters, taught them how to fight battles and gave them money. The ISI chief himself reached Kabul to give the message that he had gone there in helping Taliban form a government. Pakistani ministers have also claimed that their army provided cover to Taliban in entering Panjshir valley, and that Pakistani troops attacked Ahmed Massoud’s positions. The people of Afghanistan are watching these developments closely and they are angry with Pakistan, for interfering in their domestic affairs. They consider Pakistan as the new invisible invader.
Pakistan, by displaying its affection towards Taliban, is trying its hand at oneupmanship against India. The common Afghans know how India worked in rebuilding Afghanistan by constructing its Parliament, its dams, highways and power lines. Till August 15, Pakistan was on the sidelines, but after Taliban carried out its blitz and captured Afghanistan, Pakistan along with China have come out openly to bolster the Taliban regime, by use of force. The aim of both China and Pakistan is to harm India’s interests in Afghanistan, and indirectly, try to engineer violence in Kashmir valley, which has been peaceful for more than two years since Article 370 was abrogated.
पंजशीर में जंग और काबुल में तालिबान के अन्दर रस्साकशी
अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी पर कब्जे की लड़ाई फिलहाल जारी है। यहां तालिबान और अहमद मसूद की अगुवाई वाली नॉर्दन अलायंस रेजिस्टेंस फोर्स के बीच घमासान जंग जारी है। सोमवार को जहां तालिबान ने पंजशीर के गवर्नर ऑफिस पर अपना झंडा फहराने का वीडियो रिलीज किया, वहीं नॉर्दन अलायंस ने बताया कि तालिबान के लड़ाकों ने सिर्फ पंजशीर घाटी के प्रवेश द्वार के पास एक सड़क और खाली दफ्तर पर कब्जा किया है।
अफगान पत्रकार नतीक मलिकज़ादा ने इस बात की पुष्टि की है कि पंजशीर घाटी पर तालिबान का कब्जा मुकम्मल होना अभी बहुत दूर की बात है। मलिकजादा ने लिखा है कि तालिबान ने गवर्नर के जिस ऑफिस पर कब्जा किया है वह मुख्य सड़क पर है जबकि पंजशीर के अंदरूनी इलाकों या अन्य दूसरी घाटियों तक तालिबान के लड़ाके अभी नहीं पहुंच पाए हैं। उन्होंने बताया कि कई पहाड़ी चोटियों पर अभी भी मसूद के लड़ाकों का कब्जा है और वे तालिबान को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
ऐसी भी खबरें आई हैं कि पंजशीर घाटी पर कब्जे की लड़ाई में पाकिस्तान की फौज भी तालिबान का साथ दे रही है। पिछले कुछ दिनों में नॉर्दन एलायंस ने तालिबान को भारी नुकसान पहुंचाया था। नॉर्दन अलायंस रेजिस्टेंस फोर्स के जवानों ने तालिबान के 650 से ज्यादा लड़ाकों को मार गिराया था। इस नुकसान के बाद पाकिस्तान की एयरफोर्स ने नॉर्दन एलायंस के लड़ाकों पर जबरदस्त बमबारी की और तालिबान के लिए आगे बढ़ने का रास्ता बनाया। मसूद के ठिकानों पर बमबारी करने के लिए पाकिस्तानी एयरफोर्स के ड्रोन और लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया गया। वहीं, मंगलवार को पंजशीर घाटी में तालिबान के 5 ठिकानों पर हवाई हमले की भी खबरें भी आई थीं।
गौर करने वाली बात यह है कि तालिबान का पूरी पंजशीर घाटी पर कब्जा करने का दावा अभी तक हकीकत में नहीं बदल पाया है। तालिबान समर्थक मीडिया ने अपनी खबरों में कहा था कि नॉर्दन अलायंस के नेता अहमद मसूद और अमरुल्ला सालेह पड़ोसी देश ताजिकिस्तान भाग गए हैं, लेकिन अहमद मसूद ने इन रिपोर्ट्स को खारिज करते हुए कहा, ‘हम पंजशीर में हैं और जंग अभी भी जारी है।’ रेजिस्टेंस ग्रुप ने हालांकि माना है कि उसके आधिकारिक प्रवक्ता फहीम दश्ती, मसूद के चचेरे भाई जनरल अब्दुल वदूद और मसूद के सबसे भरोसेमंद लोगों में से एक सालेह मोहम्मद रेगिस्तानी जंग में मारे गए हैं।
19 मिनट के अपने ऑडियो संदेश में अहमद मसूद ने आरोप लगाया कि उनकी रेजिस्टेंस फोर्स के जवानों की लड़ाई सिर्फ तालिबान के लड़ाकों से ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के सैनिकों से भी है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी एयरफोर्स के ड्रोन और लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल रविवार की रात को रेजिस्टेंस फोर्स के ठिकानों पर बमबारी करने के लिए किया गया था। मसूद ने दावा किया कि नेशनल रेजिस्टेंस फोर्स के लड़ाकों ने दो ड्रोन मार गिराए। उन्होंने माना कि हमले में उनके परिवार के कुछ सदस्य मारे गए हैं, लेकिन वह खुद पंजशीर घाटी में हैं, और सुरक्षित हैं। उन्होंने कसम खाई कि वह अपने खून की आखिरी बूंद तक तालिबान से जंग लड़ते रहेंगे।
तालिबान और नेशनल रेजिस्टेंस फोर्स के बीच जारी जंग में पाकिस्तान की संलिप्तता तो तभी साफ हो गई जब पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद बगैर किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अचानक काबुल पहुंच गए। उनके आने के बाद तालिबान और मसूद के आदमियों के बीच चल रही जंग ने एकाएक तेजी पकड़ ली है। पंजशीर घाटी की लड़ाई में भारी नुकसान झेलने के बाद तालिबान ने एक वक्त तो अपने लड़ाकों को वापस बुलाने का फैसला कर लिया था, लेकिन तभी ISI चीफ काबुल पहुंचे और लड़ाई ने एक नया मोड़ ले लिया। रेजिस्टेंस के नेताओं ने जंग में मारे गए तालिबान लड़ाकों के शवों से बरामद पाकिस्तान के राष्ट्रीय पहचान पत्र एवं अन्य दस्तावेजों को दिखाया, जिससे साफ पता चलता है कि तालिबान की आड़ में पाकिस्तानी सैनिक भी इस जंग में साथ-साथ लड़ रहे हैं।
तालिबान ने फिलहाल भले ही पंजशीर घाटी में घुसपैठ कर ली है, लेकिन हो सकता है कि आगे चलकर वह खतरनाक स्थिति में फंस जाए। पंजशीर घाटी के सिर्फ एक-तिहाई हिस्से पर ही उसका कब्जा हो पाया है। अब यह बात पूरी दुनिया जानती है कि पंजशीर घाटी में जारी जंग में पाकिस्तान न सिर्फ तालिबान की मदद कर रहा है बल्कि उसे उकसा भी रहा है। पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री शेख रशीद अहमद ने परोक्ष रूप से स्वीकार किया कि पंजशीर घाटी में मौजूद रेजिस्टेंस फोर्स की चौकियों पर पाकिस्तान की एयरफोर्स ने बमबारी की।
पाकिस्तान के मंत्री तालिबान के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश में दुनिया भर का दौरा कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, तालिबान पंजशीर घाटी पर कब्जा करने के लिए बेताब है क्योंकि सर्दियां शुरू हो जाने पर अधिकांश रास्ते बर्फ से ढक जाएंगे और सड़कें फिर अगले साल अप्रैल में ही फिर से खुल पाएंगी।
ऐसी खबरें हैं कि तालिबान के शीर्ष नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने इस लड़ाई में पाकिस्तान की मदद मांगी। इसके बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा से बात की और उनसे ISI चीफ लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को मदद के लिए काबुल भेजने की गुजारिश की। .
बदले में पाकिस्तान ने तालिबान नेताओं के साथ एक सौदा किया। पाकिस्तान ने तालिबान से गुजारिश की कि वह अफगानिस्तान की जेलों से सारे आतंकवादियों को रिहा न करे। ISI चीफ ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के लड़ाकों और अन्य आतंकवादियों की एक लिस्ट सौंपी जो अफगानिस्तान की जेलों में बंद हैं और जिनकी रिहाई पाकिस्तान कतई नहीं चाहता। तालिबान के नेताओं ने पाकिस्तान की यह गुजारिश तुरंत मान ली और इसके बाद पाकिस्तान ने पंजशीर में तालिबान की मदद के लिए अपनी एयरफोर्स को भेजा।
इस वक्त अफगानिस्तान में, और खासकर पंजशीर के मामले में प्रॉपगैंडा वॉर पूरे जोर-शोर से चल रही है। तालिबान वीडियो जारी करके पंजशीर के गवर्नर हाउस पर कब्जा करने का दावा करता है, लेकिन थोड़ी ही देर बाद अमरुल्ला सालेह और अहमद मसूद तालिबान के दावों को झूठा साबित करने वाले वीडियो जारी कर देते हैं।
नॉर्दन अलायंस दावा करता है कि उसने तालिबान के कमांडर्स को मार गिराया है, और इसके थोड़ी देर बाद तालिबान अपने उस कमांडर की वीडियो जारी कर देता है जिसमें दावा किया जाता है कि उनका कमांडर जिंदा है और पंजशीर में है। लेकिन ये कोई नहीं जानता कि ये वीडियो नए हैं या पुराने। इसी तरह नॉर्दन अलायंस के नेता अपने जिंदा होने के सबूत देते हैं और दावा करते हैं कि वे भागे नहीं हैं बल्कि तालिबान के लड़ाकों को ढेर कर रहे हैं।
दूसरी तरफ तालिबान नॉर्दन अलायंस के लड़ाकों के हथियार समेत सरेंडर करने का वीडियो जारी कर देता है। कुल मिलाकर दोनों तरह से प्रॉपेगैंडा वॉर चल जबर्दस्त चल रहा है और ये पता लगाना मुशकिल है कि कौन झूठ बोल रहा है और किसकी बात सच है, लेकिन एक बात साफ है कि पंजशीर वैली पर तालिबान का पूरा कब्जा नहीं हुआ है।
ये भी सही है कि तमाम कोशिशों के बाद भी तालिबान अभी तक अफगानिस्तान में अपनी सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाया है। रोज ही नए-नए नाम सामने आ रहे हैं। सोमवार को कहा गया कि रहबारी शूरा के प्रमुख मुल्ला मुहम्मद हसन अखुंद अफगानिस्तान के नए प्रमुख होंगे जबकि मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब को रक्षा मंत्री और सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्री बनाया जाएगा। कुछ ऐसी भी खबरें आई हैं कि नई सरकार की घोषणा 11 सितंबर को की जाएगी, क्योंकि इसी दिन अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन ने अमेरिका की धरती पर इतिहास का सबसे बड़ा आतंकी हमला किया था।
सच तो यह है कि सत्ता पर अपना दबदबा कायम करने के लिए कई गुट लगे हुए हैं। इसमें एक कांधार गुट है जिसका नेतृत्व तालिबान के सर्वोच्च नेता मुल्ला हैबतुल्लाह अखुंदजादा के साथ-साथ मुल्ला याकूब कर रहे हैं, दूसरा सिराजुद्दीन हक्कानी की सरपरस्ती वाला पाकिस्तान समर्थित हक्कानी नेटवर्क है, और तीसरा मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के नेतृत्व वाला दोहा राजनीतिक तालिबान गुट है।
ऐसी भी खबरें थीं कि हक्कानी ग्रुप के नेताओं के साथ हुई लड़ाई में बरादर जख्मी हो गए थे। पाकिस्तान चाहता है कि हक्कानी नेटवर्क के नेता नई सरकार में अहम पदों पर काबिज हों, ताकि ISI अफगानिस्तान की हुकूमत के जरूरी फैसलों पर असर डाल सके। पाकिस्तान के नेताओं और वहां की सेना के अफसरों को लगता है कि अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद उसकी भौगोलिक स्थिति ने उसे प्रासंगिक बना दिया है और दुनिया में फिर उसकी बात होने लगी है।
यही वजह है कि पाकिस्तान के मंत्री अब खुलकर दावा करने लगे हैं कि पिछले दो दशकों के दौरान पाकिस्तान ने तालिबान के नेताओं को संरक्षण दिया। वे खुलेआम कह रहे हैं कि पाकिस्तान ने ही उन्हें पनाह दी, पैसे दिए, हथियार दिए और यहां तक कि जंग लड़ने के लिए लड़ाके भी दिए। लेकिन काबुल में सरकार बनवाना और फिर उसे चलाना इतना आसान नहीं है।
अफगानिस्तान और तालिबान को जानने वाले लोग बताते हैं कि जो भी सरकार बनेगी वह ज्यादा दिन तक चल नहीं पाएगी। तालिबान के अलग-अलग गुटों में आपसी लड़ाई और सरकार पर कंट्रोल करने की तकरार को ज्यादा दिन टाला नहीं जा सकेगा, और अंतत: पाकिस्तान को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा।
The Battle of Panjshir and the battle for power in Kabul
The last word is yet to be written on the Battle of Panjshir that is presently going on between the Taliban and National Resistance Force led by Ahmed Masoud. While Taliban on Monday released video of its fighters capturing the Governor’s office in Panjshir by raising its official white flag, the Northern Alliance has claimed that Taliban fighters have only occupied one road and a vacant office, and that too, at the gateway to Panjshir valley.
Afghan journalist Natiq Malikzada has reported that the entire Panjshir valley can be captured only after a long-drawn battle. The Governor’s office that was captured by Taliban is located on a main road, while Taliban fighters are yet to reach the interior of other areas across Panjshir valley. He reported that Masoud’s fighters are still occupying hill positions and are giving the Taliban a stiff fight.
Reports have come about Pakistan’s Special Forces joining hands with the Taliban in the battle for capturing Panjshir valley. After more than 650 Taliban fighters were killed by Masoud’s men last week, Pakistan sent its air force plane to strafe Northern Alliance’s positions, in order to clear the routes for Taliban to move ahead. Pakistani air force drones and jet fighters were used to bomb Masoud’s positions. There were also reports on Tuesday about aerial strike on five positions held by Taliban in Panjshir valley.
The moot point is that Taliban’s claim of occupying the entire Panjshir valley is yet to materialize. Pro-Taliban media had reported that Northern Alliance leaders Ahmed Masoud and Amrullah Saleh have fled to neighbouring Tajikistan, but this was countered by Ahmed Masoud who said, “We are in Panjshir, our resistance will continue”. The resistance group has however admitted that its official spokesman Fahim Dashty, Masoud’s cousin General Abdul Wadood, and one of Masoud’s most trusted men Saleh Mohammad Registani have been killed in fighting.
In a 19-minute audio, Ahmed Masoud alleged that his resistance fighters were battling not only Taliban fighters but also Pakistani soldiers. He alleged that Pakistani air force drones and jet fighters were used on Sunday night to bomb resistance positions. Masoud claimed that National Resistance Force fighters downed two drones. He admitted that some of his family members died in the attack, but he was safe in Panjshir valley. He vowed to fight the Taliban till the last drop of his blood.
Pakistan’s involvement in the battle between Taliban and National Resistance Force became clear after the sudden, unannounced visit of Pakistani spy agency ISI chief Lt. Gen. Faiz Hameed in Kabul. After his arrival, the battle between Taliban and Masoud’s men has suddenly intensified. Taliban, after suffering heavy casualties, was on the point of withdrawing from Panjshir valley, when the ISI chief arrived in Kabul and the battle took a new turn. Resistance leaders have shown Pakistani nationality identity cards and other documents recovered from the bodies of dead Taliban fighters, which clearly show that Pakistani troops, in the garb of Taliban, have joined hands to fight the battle.
Taliban may have made fresh inroads into the Panjshir valley for now, but it may be walking into a death trap. Taliban has moved into only one-third of the entire area of Panjshir valley. The whole world now knows that Pakistan is aiding and abetting Taliban in its battle for Panjshir valley. Pakistan Interior Minister Sheikh Rashid Ahmed has indirectly admitted that Pakistani forces bombed resistance positions inside Panjshir valley.
Pakistani ministers are touring across the world trying to garner support for Taliban. On its part, Taliban is desperate to occupy the valley, because once winter sets in, most of the routes will be covered with snow, and the roads may reopen only in April next year.
There are reports that top Taliban leader Mullah Abdul Ghani Baradar sought Pakistan’s help in this battle, Pakistani PM Imran Khan spoke to the Army Chief Gen. Qamar Javed Bajwa, and requested him to send the ISI chief Lt Gen Faiz Hameed to Kabul to extend help.
In return, the Pakistani establishment cut a deal with the Taliban leaders. Pakistan requested Taliban not to allow terrorists released from Afghan jails to go scot free. The ISI chief handed over a list of TTP (Tehriq-e-Taliban Pakistan) fighters and other terrorists who were in Afghan jails. Taliban leaders readily agreed and Pakistan sent its air force planes to help Taliban in its battle for Panjshir valley.
At this moment, a propaganda war is going on in full swing between Taliban and National Resistance Force. When Taliban released videos of its fighters capturing the Governor’s house in Panjshir valley, NRF leaders came out with new videos of Taliban commanders and fighters killed by them. Taliban then countered this with a video showing its commanders are alive, but nobody knows whether the videos are new or old ones. NRF leaders circulated videos showing they are alive and giving a stiff fight to the Taliban, but this was countered by Taliban issuing videos of NRF fighters surrendering with their weapons. Nothing can be verified as truth in this propaganda war unleashed from both sides, but it is a fact that Taliban is yet to capture the entire valley.
It is also a fact that Taliban leadership is still unable to announce their new government in Kabul. New names are being floated daily. On Monday, it was reported that Mullah Muhammad Hassan Akhund, chief of Rahbari Shoora, will be the new head of state, with Mullah Yaqoob, son of late Mullah Omar, as defence minister, and Sirajuddin Haqqani as Interior Minister. There was another report about the new government’s announcement likely to be made on September 11, to coincide with the biggest terror attacks made on US soil by Al Qaeda chief Osama bin Laden.
The fact is that there are several groups that are involved in the jockeying for power. There is the Kandahar group led by their supreme leader Mullah Haibatullah Akhundzada, along with Mullah Yaqoob, there is the Haqqani network, supported by Pakistan and led by Sirajuddin Haqqani, and there is the Doha political Taliban group headed by Mullah Abdul Ghani Baradar.
There were reports of Baradar injured in a fight with Haqqani group leaders. Pakistan wants the Haqqani network leaders to occupy powerful slots in the new government, so that ISI can influence important decisions. The Pakistani politico-military establishment feels that Pakistan has now become relevant in world capitals after the Taliban takeover.
This is the reason why Pakistani ministers and leaders are now openly saying that they patronized Taliban for last two decades and provided sanctuary to all Taliban leaders, helping them with cash, weapons and fighters. But forming a government and running that government from Kabul will not be an easy task.
Experts who know a lot about the background of Pakistani and Afghan Taliban leaders, say that the new government in Kabul may not last long. Infighting between different camps inside Taliban will be difficult to stop, and in the final round, it will be Pakistan, which will have to bear the losses.
अफगानिस्तान: सबकी नजरें अब तालिबान की नई सरकार पर
अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी में तालिबान के लड़ाकों और नॉर्दन अलायंस के रेजिस्टेंस फोर्स के बीच घमासान जंग जारी है। हालांकि तालिबान ने दावा किया है कि पंजशीर पर उसका कब्जा हो गया है लेकिन रेजिस्टेंस फोर्स के नेताओं ने तालिबान के दावे को खारिज कर दिया है। तालिबान किसी भी कीमत पर पंजशीर घाटी पर कब्जा करना चाहता है और अहमद मसूद के नेतृत्व वाले नॉर्दन अलायंस की ये कोशिश है कि किसी भी कीमत पर तालिबान को पंजशीर घाटी से दूर रखा जाए।
तालिबान ने अपनी सरकार के गठन को कुछ दिनों के लिए फिलहाल टाल दिया है। हालांकि यह तय हो गया है कि मुल्ला अब्दुल गनी बरादर अफगानिस्तान की सरकार का नेतृत्व करेंगे। तालिबान के संस्कृति मंत्रालय की ओर से पहले से ही तमाम शहरों में शुक्रवार को सरकार के गठन को लेकर पोस्टर्स और बैनर लगाए गए थे। लेकिन शुक्रवार देर शाम यह ऐलान किया गया कि नई सरकार का गठन फिलहाल टाल दिया गया है।
शुक्रवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने पंजशीर घाटी में तालिबान और नॉर्दर्न अलायंस रेजिस्टेंस फोर्सेज के बीच चल रही भीषण जंग के वीडियो दिखाए। ऐसी खबरें हैं कि इस लड़ाई में तालिबान को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। पूरी घाटी और आसपास का इलाका गोलियों, रॉकेट लॉन्चर और मोर्टार की आवाज से गूंजता रहा। सैकड़ों परिवारों को सुरक्षित जगहों की तलाश में पलायन करना पड़ा। अहमद मसूद की अगुवाई वाले रेजिस्टेंस फोर्सेज ने दावा किया है कि उसने 500 से ज्यादा तालिबान लड़ाकों को मार गिराया है। वहीं दूसरी ओर तालिबान ने पूरे इलाके को टैंकों, बख्तरबंद गाड़ियों और मोर्टार से घर रखा है। इसके साथ ही घाटी की सभी सप्लाई लाइनों को काट दिया है।
अफगानिस्तान के 34 में से 33 राज्यों पर तालिबान का कब्जा हो गया है। लेकिन पंजशीर घाटी एक अकेला ऐसा इलाका है जहां तालिबान का झंडा नहीं है। यहां नॉर्दन अलायंस रेजिस्टेंट फोर्स के बैनर के तले अपना झंडा बुलंद किए हुए है। रेजिस्टेंस फोर्स के लड़ाके तालिबान को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। ये लड़ाके रॉकेट लांचरों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे तालिबान को भारी नुकसान हुआ है। कई अनवेरीफाइड सोर्सेस की तरफ से कहा गया है कि तालिबान को अब तक का सबसे बड़ा नुकसान हुआ है और उसके 450 से ज्यादा लड़ाके मारे गए हैं। साथ ही तालिबान के कई लड़ाकों को पकड़ भी लिया गया है।
तालिबान अमेरिका में बने टैंक, तोपखाने और रॉकेट लॉन्चर का इस्तेमाल कर रहा है, जबकि मसूद के लड़ाके बीएम4 सीरीज के रॉकेट लॉन्चर और भारी मशीन गनों के साथ मुकाबला रहे हैं। पंजशीर के पश्चिम में स्थित परवान प्रांत पर कब्जे की लड़ाई चल रही है। परवान प्रांत में 10 जिले हैं जबकि चरीकार इस प्रांत की राजधानी है। 6,000 वर्ग किमी के इस इलाके की आबादी करीब 7.5 लाख है। बहुत सारे लोग वहां चल रही लड़ाई के चलते भाग गए हैं। चरीकार को अगस्त के मध्य में तालिबान ने अपने कब्जे में ले लिया था, लेकिन मसूद लड़ाके चरीकार पहुंच गए और तालिबान का झंडा हटाकर अफगानिस्तान का झंडा लगा दिया। परवान प्रांत में ही बगराम एयरबेस भी है जो एक समय अमेरिकी सेना का मुख्यालय हुआ करता था। यह इलाका काबुल के उत्तर में स्थित है।
तालिबान के लड़ाकों का दावा है कि वे अभी तक पंजशीर के 20 प्रतिशत इलाके पर कब्जा कर चुके हैं। वे धीरे-धीरे पंजशीर के शुतुल और परवान जिलों में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं। वहीं रेजिस्टेंस फोर्सेज का कहना है कि पंजशीर की घेराबंदी करने का दावा गलत है। रेजिस्टेंस फोर्सेज ने दावा किया कि उन्होंने 357 तालिबान लड़ाकों को मार गिराया और 290 को घायल कर दिया है। कुल मिलाकर कहें तो फिलहाल यह लड़ाई शुतुल और परवान के आस-पास केंद्रित है।
तालिबान का दावा है कि उसने शुतुल समेत 12 चौकियों पर कब्जा कर लिया है वहीं अहमद मसूद की अगुवाई वाले नेशनल रेजिस्टेंस फोर्स के कमांडर्स ने इस दावे को खारिज कर दिया है। उनका कहना है तालिबान अभी तक पंजशीर में दाखिल नहीं हुआ है।
नॉर्दन अलायंस रेजिस्टेंस फोर्स के कमांडरों ने तालिबान के बख्तरबंद वाहन को नष्ट करने और तालिबान के टैंक पर कब्जा करने वाले अपने लड़ाकों की तस्वीरें पोस्ट कीं। उन्होंने दावा किया कि जिस वक्त तालिबान के लड़ाके जबाल सिराज पहाड़ियों से होते हुए शुतुल जिले में दाखिल होने कोशिश कर रहे थे तब तालिबान के इस हमले को पूरी तरह से बेअसर कर दिया गया। सैकड़ों तालिबान लड़ाके अपने टैंक और बख्तरबंद गाड़ियों को छोड़कर भाग गए। यह भी कहा जा रहा है कि वहां अब भी 40 से ज्यादा तालिबानी लड़ाकों के शव पड़े हुए हैं। तालिबान ने स्थानीय बुजुर्गों से यह अपील की है कि वे इन शवों को ले जाने की इजाजत दें।
इस बीच रेजिस्टेंस फोर्स के लीडर अमरुल्ला सालेह ने युनाइटेड नेशन से दखल देने की अपील की है। उन्होंने आरोप लगाया कि तालिबान बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल कर घाटी में घुसने की कोशिश कर रहा है। पंजशीर में दाखिल होनेवाले रास्तों पर जगह-जगह माइन्स बिछाई हुई है और तालिबान इन रास्तों पर पहले स्थानीय लोगों को आगे कर रहा है ताकि माइन ब्लास्ट में बेगुनाह लोग मारे जाएं और वह घाटी में दाखिल होने का रास्ता बना सके। सालेह ने यह भी आरोप लगाया कि तालिबान ने मेडिकल टीमों को घाटी में दाखिल होने से रोक दिया है।
पंजशीर घाटी चारों ओर से 10,000 फीट ऊंचे पहाड़ों से घिरी हुई है। इसे किसी भी आक्रमणकारी के लिए मौत का जाल माना जाता है। पंजशीर के लड़ाकों को वहां के भोगौलिक स्थिति का फायदा मिलता है। मसूद के लड़ाके तालिबान की हर हरकत पर कड़ी नजर रखे हुए हैं और पहाड़ी की चोटियों की निगरानी कर रहे हैं। पंजशीर घाटी में कुल मिलाकर छोटी-बड़ी 21 सब वैलीज है जिनके जरिए मसूद के लड़ाकों की तालिबान के हर रूट पर नजर रहती है।
तालिबान रेजिस्टेंस फोर्स के नेताओं से बातचीत की पेशकश कर रहा है, क्योंकि पंजशीर घाटी बगराम हवाई अड्डे और काबुल के करीब है। यह इलाका भविष्य में तालिबान सरकार के गले का कांटा हो सकता है। लेकिन अमरुल्ला सालेह और अहमद मसूद ने बातचीत से इनकार कर दिया है। उन्होंने सरकार में ताजिकों के लिए हिस्सेदारी की मांग की है। लेकिन तालिबान के नेता इसके लिए राजी नहीं है। मसूद के लड़ाकों का कहना है कि खून के आखिरी कतरे तक डटे रहेंगे। मार देंगे या मर जाएंगे, लेकिन जंग के मैदान में डटे रहेंगे।
इस बीच तालिबान सरकार के गठन की घोषणा में विभागों को लेकर अंदरूनी कलह के कारण देरी हो रही है। तालिबान का रहबरी शूरा (मार्गदर्शक समूह) शनिवार को विभागों के बारे में फैसला करने जा रहा है। पंजशीर घाटी में तनाव कम होने के बाद तस्वीर साफ हो जाएगी।
अब ये बात तो साफ है कि फिलहाल हथियारों की लड़ाई में पंजशीर के लड़ाके तालिबान के लड़ाकों पर भारी पड़ रहे हैं। तालिबान को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसलिए अब तालिबान ने दूसरा रास्ता अपनाया है। तालिबान ने पंजशीर घाटी में रसद की सप्लाई के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। खाने के सामान की सप्लाई ठप कर दी गई है। पंजशीर के ज्यादातर इलाकों में पावर सप्लाई और इंटरनेट को बंद कर दिया है। इसके कारण अब वहां के लोगों को दिक्कत हो रही है। अमरुल्ला सालेह ने आरोप लगाया है कि तालिबान पंजशीर घाटी में आम लोगों को भूखा रखने जैसे अमानवीय कदम उठा रहा है। इसके बाद तालिबान ने यह झूठी खबर फैलाई की सालेह भाग गए हैं। लेकिन सालेह ने तुरंत ट्वीट कर कहा कि पंजशीर के शेर डटे हैं और डटे रहेंगे।
तालिबान के लिए ये सरकार बनाना जितना मुश्किल है उससे भी ज्यादा मुश्किल होगा इस सरकार को चलाना। आईएमएफ और विश्व बैंक की तरफ से अफगान केंद्रीय बैंक को विदेशी धन नहीं मिल रहा है जिसके चलते अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था की हालत बहुत बुरी हो गई है। देश अब सूखे और वित्तीय संकट के कारण भोजन की कमी और भुखमरी से जूझ रहा है। काम चलाने के लिए तालिबान अब चीन से मदद मांग रहा है। चीन को लगता है कि यह दक्षिण एशिया में रणनीतिक रूप से कदम जमाने का अच्छा मौका है। चीन तालिबान की जरुरतों का इस्तेमाल जिनजिंयाग प्रांत में उइगर लोगों की बगावत को दबाने के लिए करना चाहता है। चीन को लगता है कि तालिबान वहां के हालात को कंट्रोल करने में उसकी मदद करेगा।
चीन की नजर अफगानिस्तान की विशाल खनिज संपदा पर है। अफगानिस्तान की मिनरल्स वेल्थ बहुत ज्यादा है। अमेरिका भी यहां चीन की गतिविधियों पर लगातार नजर बनाए हुए है। अमेरिका को आशंका है कि चीन अब तालिबान को आर्थिक मदद देने के बदले बगराम एयरबेस पर भी कब्जा करने की कोशिश में है। ये भारत के लिए खतरा हो सकता है। चीन उन मुल्कों में है जिन्होंने अफगानिस्तान में अपना दूतावास अभी-भी खुला रखा है। चीन ने लगातार तालिबान से बात की है। अगले हफ्ते अगर तालिबान की सरकार बनी तो चीन उसे मान्यता देने वाले मुल्कों में सबसे आगे हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
Afghanistan: All eyes on new Taliban govt now
Fierce fighting is going on between Taliban soldiers and Northern Alliance resistance forces in Afghanistan’s Panjshir valley. Though Taliban has claimed that Panjshir has fallen, the resistance force leaders have rejected the claim. The Taliban is making a last-ditch attempt to occupy the last province yet to fall to its fighters.
Meanwhile, in Kabul, the long-awaited announcement of Taliban government on Friday was postponed with reports that Mullah Abdul Ghani Baradar is going to lead the government. Taliban’s Ministry of Culture had put up big hoardings in Kabul and other cities about formation of a new government on Friday, but this did not materialize at the end of the day.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Friday night, we showed videos of fierce fighting going on between Taliban and resistance forces in Panjshir valley. There are reports of Taliban facing heavy casualties. There was nightlong firing of mortars, machine guns and rocket launchers in the valley, with hundreds of families fleeing to safer places. The resistance force led by Ahmed Massoud has claimed that it has killed more than 500 Taliban fighters. On the other hand, Taliban has laid siege to the entire area with tanks, armoured vehicles and mortars and has cut off all supply lines to the valley.
Taliban has occupied 33 out of all 34 provinces of Afghanistan, with Panjshir valley being the exception. The resistance force fighters are using multiple rocket launchers inflicting heavy casualties on Taliban. Unverified sources reported Taliban casualties at more than 450, with several Taliban fighters captured by the rebels.
Taliban is using US-made tanks, artillery and rocket launchers, while Massoud’s men are replying with BM4 series rocket launchers and heavy machine guns. Fighting is going on in Parwan province, which lies to the west of Panjshir province. Parwan province has ten districts while the town of Charikar is the provincial capital. This 6,000 sq km area has a population of roughly 7.5 lakhs, out of which many have fled due to fighting. Charikar was captured in mid-August by Taliban, but Masooud’s fighters entered the provincial capital and removed Taliban’s white flag. The famous Bagram air base, which used to be the headquarter of US army, is in Parwan province. It lies to the north of Kabul.
Taliban fighters claim they have regained control over 20 per cent of Panjshir province and are trying to lay siege to Shutul and Parwan. Resistance forces have said that the claim of laying siege is false, as scores of Taliban fighters have been killed by rebels. Resistance force claimed to have killed 357 Taliban fighters and maimed 290 others. In a nutshell, the fighting at this moment is centred around Shutul and Parwan.
While Taliban claims that it has occupied 12 outposts including Shutul, the National Resistance Force led by Ahmed Massoud has rejected the claim. Resistance leaders say that Taliban is yet to enter Panjshir valley.
Resistance commanders posted images of their fighters destroying a Taliban armoured vehicle and capturing a Taliban tank. They claimed that when Taliban forces entered Jabal Shiraj hills and were trying to enter Shutul district, the resistance force completely neutralized them. Hundreds of Taliban fighters fled leaving behind their tanks and armoured vehicles. More than 40 bodies of Taliban fighters are lying unclaimed. Taliban have asked local elders to allow them to take away the bodies of their fighters.
Meanwhile, resistance force leader Amrullah Saleh has appealed to the UN to intervene. He alleged that Taliban was committing war crimes by using old men, women and children as human shields to cross the mines-laden areas in their bid to enter Panjshir valley. He also alleged that Taliban has blocked medical teams from entering the valley.
The Panjshir valley lies ensconced, surrounded by 10,000 feet high mountains from all sides. It is considered a death trap for any invader. Massoud’s fighters are manning the hill tops keeping a close watch on Taliban movement. There are 21 sub-valleys and on each such route, resistance fighters are keeping watch on Taliban.
Taliban is offering dialogue to resistance leaders because, Panjshir valley is close to Bagram air base and Kabul. It could be a thorn in the neck for Taliban government in future. But Amrullah Saleh and Ahmed Massoud have ruled out dialogue. They have demanded proportional representation for Tajiks in government, which Taliban leaders have rejected. Massoud has vowed to fight till his last blood.
Meanwhile, in Kabul, the announcement of Taliban government is being delayed because of infighting over portfolios. The Rehbar Shoora (guidance group) of Taliban is going to decide about the portfolios on Saturday. The picture will become clearer after the tension in Panjshir valley subsides.
Though the resistance force fighters have a upper hand in Panjshir valley at the moment, Taliban has snapped off all food supplies, electricity and internet to Panjshir valley in order to subdue the rebels. Amrullah Saleh has alleged Taliban is resorting to inhuman measures like starving the civilian population in Panjshir valley. Taliban spread the false news that Saleh has fled, but the resistance leader immediately tweeted to say that the lions are still there and shall remain there.
For Taliban, not only government formation, but also governance is going to become a big headache. With foreign funds for Afghan central bank switched off by IMF and World Bank, the country is now staring at food shortage and starvation due to drought and financial crisis. The beleaguered Taliban leadership has sought financial help from China, which is ready to oblige because it is eyeing a strategic territory in South Asia. China, too, desperately needs help from Taliban leaders in quelling the insurgency by Uyghur separatists in Muslim-majority Xinjiang province. The East Turkestan rebels are demanding independence from China in Xinjiang.
China also has its eyes on Afghanistan’s vast mineral wealth and the prized asset called Bagram air base. If China gains control over Bagram, it could spell danger for India’s security. China is among a few countries which have kept their embassies open in Kabul. The Chinese government is maintaining close contact with Taliban leaders, and one should not be surprised if China becomes the first country to give recognition to the new Taliban government when it is announced.
सिद्धार्थ शुक्ला: ये कोई जाने की उम्र नहीं होती
लोकप्रिय टीवी अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला का अचानक दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनकी असामयिक मौत की खबर फैलते ही मुंबई की फिल्म-टीवी इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई। सिद्धार्थ की उम्र सिर्फ चालीस साल थी और वो शारीरिक तौर पर पूरी तरह फिट थे। वे अपनी फिटनेस का पूरा ख्याल रखते थे और उन्हें दिल की कोई बीमारी भी नहीं थी। इसलिए जब अचानक उनके निधन की खबर आई तो अधिकांश लोगों को यकीन ही नहीं हुआ कि हार्ट अटैक से उनकी मौत हो सकती है।
सिद्धार्थ शुक्ला ने अपने अभिनय से करोड़ों लोगों का दिल जीत लिया था। लोकप्रिय टीवी धारावाहिक ‘बालिका वधू’ में अपने रोल के कारण उन्हें काफी प्रशंसा मिली थी और उनका करियर आगे बढ़ रहा था। उस समय इंडिया टीवी पर युवा अवॉर्ड के समारोह में सिद्धार्थ को उनकी एक्टिंग के लिए सम्मानित किया गया था। यह सम्मान सिनेमा, टेलीविजन, संगीत, व्यवसाय और अन्य विधाओं में आनेवाले लोगों को दिया जाता है। आठ साल पहले सिद्धार्थ से मेरी वह पहली मुलाकात थी। वे अपने काम को लेकर बहुत जुनूनी थे। उन्हें बड़ी सफलता मिली थी और टीवी सीरियल के दर्शकों के बीच उनकी लोकप्रियता अपने चरम पर थी। तब मैंने उनसे कहा था ‘सफल होना आसान है, लेकिन उस सफलता को संभालना मुश्किल है’। तब सिद्धार्थ ने मुझसे कहा था, ‘सर, मैं कभी कोई टेंशन नहीं लेता, मैं कोई चिन्ता नहीं करता, लेकिन आप की सलाह याद रखूंगा।’
पिछले साल 2020 में सिद्धार्थ शुक्ला टीवी प्रतियोगिता बिग बॉस-13 के विजेता बने। बीस हफ्ते तक चले बिग बॉस में सिद्धार्थ ने जिस तरह से परफॉर्म किया, संयम रखा और अपनी परफॉर्मेंस से लोगों का दिल जीता, इससे उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई। यह उनकी लोकप्रियता का एक बड़ा मुकाम था। वहां शहनाज़ गिल समेत अन्य महिला कलाकारों को लेकर उनके किस्से मशहूर हुए लेकिन सिद्धार्थ ने हमेशा शालीनता बनाए रखी।
बिग बॉस प्रतियोगिता के दौरान मैंने ‘आप की अदालत’ लगाई थी जहां सिद्धार्थ से मैंने बहुत सारे सवाल पूछे थे। उनकी हाजिर जबाबी ने मुझे बहुत प्रभावित किया। सारे प्रतियोगियों में वो सबसे ज्यादा स्मार्ट लगे, आत्मविश्वास से भरे हुए थे। उस दिन मुझे ये लगा कि वे निश्चित तौर पर बिग बॉस के विजेता होंगे। उन्होंने इसे साबित भी कर दिखाया।
‘बिग बॉस’ सलमान खान भी सिद्धार्थ शुक्ला की बहुत ताऱीफ करते थे। पूरे शो में सिद्धार्थ शुक्ला मानसिक रूप से बेहद मजबूत और शारीरिक तौर पर बेहद फिट दिखे। इसलिए जब उनके आकस्मिक निधन की खबर मिली तो ये यकीन करना मुश्किल था कि वो दुनिया से इतनी जल्दी चले गए। सिद्धार्थ शुक्ला का इतनी कम उम्र में जाना बेहद दुखद है।
आम तौर पर चालीस साल की उम्र में हार्ट अटैक बहुत कम सुनने को मिलता है। सिद्धार्थ फिटनेस का पूरा ध्यान रखते थे। वे हाईप्रोटीन डाइट पर थे और रोजाना तीन-तीन घंटे वर्कआउट करते थे। उन्हें किसी तरह की कोई बीमारी नहीं थी। कोरोना महामारी में मैंने कई लोगों को कोविड से ठीक होने के कई महीने बाद ज्यादा वर्कआउट करने, ज्यादा डाइट कन्ट्रोल करने से बीमार होकर अस्पताल जाते देखा है। कई मामलों में हार्ट अटैक भी हुए हैं। लेकिन मुंबई में रहने के दौरान भी सिद्धार्थ शुक्ला कोविड से हमेशा बचे रहे।
मुंबई में जब दूसरी लहर के दौरान कोविड पीक पर था तब भी सिद्धार्थ शुक्ला ने सावधानी बरती। सिद्धार्थ की इम्युनिटी अच्छी थी उन्हें कोरोना का इंफेक्शन नहीं हुआ। ऐसे में उनको आए हार्ट अटैक से और भी हैरानी हुई। उन्हें उल्टा-सीधा खाने की आदत नहीं थी और उन्हें कोई टेंशन नहीं थी। उनका पारिवारिक जीवन खुशियों से भरा था। सिद्धार्थ का अपनी मां से बहुत गहरा लगाव था। उनके पिता की मौत कैंसर से हुई थी। उन्हें लंग्स कैंसर था। डॉक्टर्स ने उन्हें जबाव दे दिया और कहा कि दो साल से ज्यादा नहीं जी पाएंगे। लेकिन सिद्धार्थ के पिता सात साल और जीवित रहे। पिता की मौत के बाद अपनी मां और दो बहनों का सहारा सिद्धार्थ ही थे। वे एक खुशहाल जीवन जी रहे थे लेकिन अचानक परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। वे बड़ी खामोशी से इस दुनिया से चले गए।
सिद्धार्थ की ज़िंदगी से बहुत कुछ सीखा जा सकता है कि कैसे उन्होंने सफलता की एक-एक सीढ़ी चढ़ी। सिद्धार्थ ने 25 साल की उम्र में मॉडलिंग से अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने 2005 में तुर्की में एक अंतरराष्ट्रीय मॉडलिंग प्रतियोगिता जीती। इसके बाद उन्होंने म्यूजिक वीडियोज और विज्ञापनों के लिए काम किया। जल्द ही उनकी प्रतिभा का पता चला और उन्हें टीवी धारावाहिकों में अभिनय करने का मौका मिला। उनके अभिनय की शुरुआत सीरियल ‘बाबुल का आंगन छूटे ना’ से हुई थी। ब्लॉकबस्टर ‘बालिका वधू’ जिसने घर-घर में उन्हें एक नई पहचान दी, से पहले वे ‘जाने पहचाने से .. ये अजनबी’ और ‘लव यू जिंदगी’ जैसे टीवी शो में नजर आए। करण जौहर की फिल्म ‘हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया’ में सिद्धार्थ के रोल की काफी तारीफ हुई। उन्होंने टीवी प्रतियोगिता ‘खतरों के खिलाड़ी सीजन 7′ भी जीता। बिग बॉस 13 के दौरान इंडिया टीवी की वेबसाइट पर भी हम उन दिनों बिग बॉस को लेकर पोल कंडक्ट करते थे और सबसे ज्यादा वोट सिद्धार्थ शुक्ला को ही मिलते। सबसे ज्यादा ट्वीट उन्हीं के नाम पर आते थे। इसलिए जब उन्हें सीजन-13 का विजेता घोषित किया गया तो किसी को हैरानी नहीं हुई।
बिग बॉस प्रतियोगिता के दौरान, जितनी चर्चा उनके अच्छे आचरण की होती थी उतनी ही चर्चा उनकी फिटनेस की भी होती थी। यही वजह है कि उनकी मौत के बाद सबसे ज्यादा चर्चा इसी बात को लेकर है कि सिद्धार्थ शुक्ला जैसे फिटनेस फ्रीक की मौत हार्ट अटैक से कैसे हो सकती है? उनके अचानक निधन की खबर से उनके लाखों फैंस गमजदा हैं।
बुधवार की रात सिद्धार्थ ने रोज की तरह डिनर किया और सो गए। मुंबई पुलिस के मुताबिक, गुरुवार की सुबह उन्होंने सीने में दर्द की शिकायत की और गिर पड़े। उस समय उनकी मां, बहन और उनके बहनोई मौजूद थे। इन लोगों ने डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने चेक किया तो पल्स नहीं चल रही थी। सिद्धार्थ को कूपर अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
पोस्टमार्टम से पहले डॉक्टरों और पुलिस अधिकारियों को सिद्धार्थ के शरीर पर कोई बाहरी चोट का निशान नहीं मिला। गुरुवार की रात को पोस्टमार्टम पूरा हो गया था, लेकिन विसरा जांच के बाद ही मौत की सही वजह का पता चल पाएगा। तीन डॉक्टरों की एक टीम द्वारा किए गए पोस्टमार्टम में कहा गया, ‘कोई बाहरी या आंतरिक चोट नहीं मिली।’
सिद्धार्थ शुक्ला के आकस्मिक निधन ने सभी को स्तब्ध कर दिया है। एक बात तो समझ आ जाती है कि किसका जीवन कब कहां कैसे खत्म हो जाए इस पर किसी का कोई बस नहीं है। गुरुवार को मैंने कई डॉक्टर्स से बात की। इनमें से ज्यादतर ने कहा कि आप कितने भी फिट हों, डाइट का कितना भी ध्यान रखते हों, हार्ट अटैक पर किसी का बस नहीं चलता। अगर बेचैनी और घबराहट महसूस हो तो सीधे डॉक्टर के पास जाएं। गैस का दर्द समझकर अनदेखा न करें।
एक बार जब ये पता चल जाए की हार्ट अटैक नहीं है तो फिर घबराने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन ये सोचना ठीक नहीं है कि मेरी तो अभी उम्र कम है, मेरी कोई मेडिकल हिस्ट्री नहीं है। क्योंकि डॉक्टर कहते हैं कि हार्टअटैक किसी को भी हो सकता है और अगर इस पर तुरंत ध्यान नहीं दिया जाए तो ये जानलेवा भी हो सकता है। दुर्भाग्य से, सिद्धार्थ शुक्ला के साथ यही हुआ। ये कोई जाने की उम्र नहीं होती।
बार-बार उनकी मां के बारे में सोचकर दिल भर आता है। मां को वो इतना प्यार करते थे, मां के बारे में इतनी बातें करते थे। जिस मां को अपने बेटे पर इतना गर्व था, उनका दर्द असहनीय है। हम सब मिलकर ईश्वर से यही प्रार्थना कर सकते हैं कि सिद्धार्थ की मां और उनकी बहनों को इस आघात को सहने की शक्ति दे।
Sidharth Shukla: Difficult to believe that he is no more
A pall of gloom has descended on Mumbai’s film and TV industry after the sudden death of 40-year-old popular TV actor Sidharth Shukla due to a massive heart attack. Sidharth was a fitness freak, he was physically fit and had no previous heart ailments. When news came of his sudden death, most of the people could not believe it.
Sidharth Shukla had earned plaudits for his role in ‘Balika Vadhu’, a popular TV serial, and his career was on the ascendant. At that time, we, at India TV, had honoured him with Yuva Award, an award for upcoming artistes in the field of cinema, television, music, business and other genres.
That was my first meeting with Sidharth, eight years ago. He was passionate about his work in the field of acting. His popularity was at its peak among TV serial viewers. I had then told him, “it is easy to become successful, but it is hard to consolidate your success”. Sidharth had then told me, “Sir, I never bear any tension, I never worry, but I shall keep your advice in mind”.
Last year, in 2020, Sidharth was declared winner of the TV contest Bigg Boss 13. For twenty weeks, he exercised utmost patience, gave exemplary performance and earned encomiums from viewers, to win the contest. His popularity grew, and there was grapevine talk about his affairs with female artistes, including Shehnaz Gill. But, Sidharth maintained his cool. He never blew up.
At the Bigg Boss contest, I had held an ‘Aap Ki Adalat’, where I had put questions to Sidharth. I was impressed by his quick repartees. He appeared to be the smartest of the lot in the Bigg Boss house. His self-confidence impressed one and all, and I had then predicted that he would surely win the contest. He did.
The ‘Bigg Boss’ Salman Khan praised Sidharth for his talents. Throughout the show Sidharth looked mentally strong and physically fit. Today, when I heard news of his sudden death, it was a shock to me. His passing away at a young age feels one with sadness.
Normally, people at the age of 40 rarely suffer a cardiac arrest. Sidharth took care of his physique, had regular intake of high protein diet, followed a daily three-hour workout regimen, and had no previous history of ailments. During the Covid pandemic, I have known several persons who, after their recovery, undertook strenuous workouts and had to be hospitalized. There have been cases of heart attacks too.
Sidharth Shukla never got infected with Coronavirus, during his stay in Mumbai. His immunity worked for him during the second wave of pandemic, and yet, he had a cardiac arrest now. He was physically strong, mentally fit, never underwent stress, and worked like a normal human being. He had a happy family life. He had a close bonding with his mother. His father was suffering from lung cancer and doctors had given him two years’ time. His father survived for seven years. Sidharth lived a happy life with his mom and two sisters, but the sudden cardiac arrest has now brought agony to the family.
At the age of 25, Sidharth started his career with modelling. He won an international modelling contest in Turkey in 2005. He worked for music videos and ads. His talents were soon discovered and he got a chance to act in TV serials. His acting debut was in the serial ‘Babul Ka Aangann Chhootey Na’. He appeared in shows like “Jaane Pehchaane Se..Yeh Ajnabi” and “Love U Zindagi”, before he hit the blockbuster ‘Balika Vadhu’ that made him a household name.
One of his last public appearances was in the ongoing Bigg Boss OTT. His role in Karan Johar’s fil “Humpty Sharma Ki Dulhaniya” drew acclaim. He also won the TV contest ‘Khatron Ke Khiladi Season 7’. During Bigg Boss 13, India TV website used to conduct regular polls among viewers about the best contestant, and Sidharth used to win hands down. He used to get the largest number of votes and tweets from viewers.
During the Bigg Boss contest, his physical fitness got more praises compared to his good conduct. That is why, news of his sudden death due to a cardiac arrest shocked many. Millions of his fans were grieved when they learnt news about his sudden death.
On Wednesday night, Sidharth had a normal dinner and went to sleep. On Thursday early morning, he complained of chest pain and collapsed, according to Mumbai Police. His mother, sister and brother-in-law were present at that time. A doctor was called in. He found the actor had no pulse beat. Sidharth was taken to Cooper Hospital, where he was declared ‘brought dead’.
Before the autopsy, doctors and police officials found no external injuries on his body. The autopsy was completed on Thursday night, but the exact cause of death will be established only after viscera analysis. The autopsy finding by a team of three doctors reportedly says, “no external or internal injuries were found.”
The sudden demise of the actor has stumped everybody. I spoke to several doctors on Thursday. Most of them said, howsoever physically and medically fit one may be, whatsoever precautions one may take about diet and lifestyle, a cardiac arrest is difficult to predict. If you feel uneasiness in your chest or in your head, consult a doctor immediately. Do not ignore it because of assumptions that it could be due to hyperacidity.
Once heart attack is ruled out, there is nothing much to fear. But it will be incorrect to presume that just because I am young, and I do not have any previous history of heart ailment, I will never face a heart attack. Doctors say that heart attack can occur to even a normal, healthy person. If not treated in time, it can become fatal. Unfortunately, this is what happened to Sidharth Shukla, who had hardly spanned half of his life.
My thoughts are with his mother and sister, who gave him utmost love, care and affection. Sidharth too loved his mother deeply, and used to speak about her too often. The death of a young son can play havoc with a doting mother and I know, her pain at this point of time, is unbearable. We can only pray to God to give strength and fortitude to his mother and sister to face the grievous loss.