वैक्सीनेशन: ये सच है, ‘मोदी है तो मुमकिन है’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 71 वें जन्मदिन पर देश के लाखों स्वास्थ्यकर्मियों ने उन्हें अनमोल तोहफा दिया। इन स्वास्थ्यकर्मियों ने एक दिन में सबसे ज्यादा कोविड वैक्सीनेशन का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया। जैसे ही रात में घड़ी की सुई 12 पर पहुंची, देशभर में 2.5 करोड़ से ज्यादा (2,50,07,051) लोगों को वैक्सीन दी जा चुकी थी। इससे पहले चीन ने जून महीने में एक दिन में सबसे ज्यादा 2.47 करोड़ वैक्सीन देने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था। देश में 17 सितंबर को वैक्सीनेशन ने रफ्तार पकड़ी और देश में कुल वैक्सीन की डोज लेनेवालों की संख्या बढ़कर 79.33 करोड़ तक पहुंच गई। वैक्सीनेशन के मामले में भारत ने अब यूरोप को पीछे छोड़ दिया है। यूरोप में अबतक जितने लोगों को वैक्सीन दी जा चुकी है उससे ज्यादा लोग भारत में वैक्सीन ले चुके हैं। भारत में रोजाना वैक्सीनेशन पिछले 30 दिनों में चौथी बार एक करोड़ को आंकड़े को पार कर गया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा कि शुक्रवार को वैक्सीनेशन की रफ्तार औसतन 15.62 लाख डोज प्रति घंटे, 26 हजार डोज प्रति मिनट और 434 डोज प्रति सेकंड रही। कर्नाटक में सबसे ज्यादा 26.9 लाख डोज, बिहार में 26.6 लाख डोज, यूपी में 24.8 लाख से ज्यादा डोज, मध्य प्रदेश में 23.7 लाख डोज और गुजरात में 20.4 लाख डोज दी गई।
इस उपलब्धि की तारीफ करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा-‘ हर भारतीय को आज रिकॉर्ड संख्या में किए गए टीकाकरण की संख्या पर गर्व होगा। मैं टीकाकरण अभियान को सफल बनाने के लिए डॉक्टर्स, प्रशासकों, नर्सों, हेल्थ केयर और सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स की सराहना करता हूं। हम कोविड 19 को हराने के लिए टीकाकरण को बढ़ावा देते रहें।’
नरेंद्र मोदी के कट्टर आलोचक माने जानेवाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्टीट किया, ‘उम्मीद करता हूं कि और दिनों में भी रोजाना वैक्सीन की 2.1 करोड़ खुराक दी जाएगी। हमारे देश को इसी गति की जरूरत है।’ स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने इसे ‘भारत और विश्व इतिहास का एक सुनहरा अध्याय’ बताया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण पूर्व एशिया के रीजनल ऑफिस की ओर से ट्वीट किया गया-‘भारत को एक और उपलब्धि के लिए बधाई’।
कुल मिलाकर, भारत को वैक्सीनेशन का 10 करोड़ का आंकड़ा छूने में 85 दिन लगे, 20 करोड़ का आंकड़ा पार करने में 45 दिन और 30 करोड़ के आंकड़े तक पहुंचने में 29 दिन और लगे। 40 करोड़ के आंकड़े तक पहुंचने में 24 दिन और लगे, और 50 करोड़ का आंकड़ा पार करने में 20 दिन, 60 करोड़ का आंकड़ा पार करने में 19 दिन और 70 करोड़ के आंकड़े तक पहुंचने में केवल 13 दिन लगे। देश ने 13 सितंबर को 75 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया था। देश में 16 जनवरी को सबसे पहले हेल्थकेयर वर्कर्स के लिए वैक्सीनेशन अभियान शुरू किया गया था जबकि फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए 2 फरवरी को वैक्सीनेशन शुरू हुआ। इसके बाद 45 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए वैक्सीनेशन अभियान 1 अप्रैल को शुरू हुआ था। 18 वर्ष से ज्यादा उम्र के हर शख्स के लिए वैक्सीनेश का अभियान 1 मई को शुरू किया गया था।
पिछले साल मार्च महीने में जब देश में कोरोना वायरस ने पांव पसारना शुरू किया तो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि भारत खुद कोरोना वैक्सीन बना सकता है। लोग सोचते थे कि अमेरिका अपनी वैक्सीन बनाएगा। पहले अपने लोगों को लगाएगा और फिर जैसा होता आया है, बची हुई वैक्सीन हमें देगा। नरेंद्र मोदी ने इस पूरी सोच को बदल दिया। वे खुद व्यक्तिगत तौर पर पुणे, गुजरात और हैदराबाद गए और उन्होंने वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को हौसला दिया। उन्होंने इन कंपनियों को सहायता दी और इसका नतीजा ये हुआ कि देखते ही देखते दो वैक्सीन, कोविशील्ड और कोवैक्सिन उपयोग के लिए तैयार हो गई। वैक्सीन बनने से पहले ही वैक्सीनेशन के लिए हेल्थ वर्कर्स की बड़े पैमाने पर ट्रेनिंग हुई।
वैक्सीन स्टोर करने, ट्रांसपोर्ट और सीरींज उपलब्ध करने का पूरा प्लान एडवांस में बनाया गया और जब वैक्सीन आ गई तो सबसे पहले हेल्थ वर्कर्स को वैक्सीन लगाने का फैसला हुआ। आपको हैरानी होगी कि पहले दौर में हेल्थ वर्कर्स भी वैक्सीनेशन के लिए पूरी तरह आगे नहीं आए थे। इनमें कुछ डॉक्टर्स और नर्सें भी थीं। ये लोग वैक्सीन लेने से झिझक रहे थे। इन लोगों को वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया बहुत धीमी गति से चली और आगे चलकर धीरे-धीरे इसे जनता के लिए भी खोल दिया गया। शुरुआत में वरिष्ठ नागरिकों और गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों को वैक्सीनेशन में प्राथमिकता दी गई।
जब जनता के लिए वैक्सीन लगाने का काम शुरू हुआ तो अफवाहें फैलने लगी। किसी ने कहा कि पूरे ट्रायल के बगैर ही वैक्सीन को मार्केट में आने दिया गया। किसी ने कहा कि यह ‘बीजेपी की वैक्सीन’ है। किसी ने मुसलमानों में अफवाह फैलाई कि इसमें सुअर की चर्बी मिली हुई है। इसका नतीजा ये हुआ कि कई राज्यों के गांव-देहात में लोग वैक्सीन लगाने के लिए पहुंचे हेल्थ वर्कर्स को मारने के लिए दौड़ते थे। हेल्थ वर्कर्स को जान बचाकर भागना पड़ता था। लेकिन हेल्थ वर्कर्स, खासतौर से आशा वर्कर्स ने काफी मेहनत की और ग्रामीणों को वैक्सीनेशन के लिए समझाने के प्रयासों में लगी रहीं।
इस साल अप्रैल-मई में जब कोरोना की दूसरी लहर आई तो लोग बड़ी संख्या में कोरोना के शिकार हुए। लाखों लोग कोरोना से संक्रमित हुए। अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे थे। जरूरी दवाएं और ऑक्सीजन कम पड़ने लगी। अस्पतालों के मुर्दाघर, श्मशान, कब्रिस्तान में लाशों के ढेर लगने लगे तो लोग डरे और तेजी से वैक्सीन के लिए दौड़े। उस समय एक साथ वैक्सीन की मांग काफी बढ़ गई। लोग जल्दी वैक्सीन लगवाना चाहते थे। मांग की तुलना में उत्पादन नहीं था तो लोग परेशान और नाराज हुए।
दरअसल, वैक्सीन का उत्पादन एक जटिल प्रक्रिया है। वैक्सीन निर्माताओं ने भी ये उम्मीद नहीं की थी कि मांग अचानक इतनी बढ़ जाएगी। राज्य सरकारें अब ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन की मांग कर रही थीं वहीं कुछ राज्यों में निचले स्तर की राजनीति भी शुरू हो गई। कुछ गैर-बीजेपी शासित राज्य सरकारों ने आरोप लगाया कि केंद्र बीजेपी शासित और गैर-बीजेपी शासित राज्यों के बीच भेदभाव कर रहा है।
अगस्त तक वैक्सीन का उत्पादन बढ़ा और साथ ही वैक्सीनेशन के आंकड़े भी बढ़ते गए। मुझे याद है 27 अगस्त को देश में 1 करोड़ 8 लाख डोज़ लगाई गई थी और 31 अगस्त को यह आंकड़ा 1 करोड़ 41 लाख डोज तक पहुंच गया। शुक्रवार को यह आंकड़ा 2.5 करोड़ के शिखर पर पहुंच गया। यह प्रक्रिया अभी-भी जारी है और जिन लोगों को अभी भी भारत की वैक्सीनेशन क्षमता को लेकर संदेह है या जो लोग इस उपलब्धि को कम करके बताना चाहते हैं उन्हें मैं कुछ आंकड़े समझना चाहता हूं।
दुनिया भर में 175 देश ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या 2 करोड़ से कम है यानि शुक्रवार को एक दिन में जितने लोगों को वैक्सीन दी गई वह 175 देशों की आबादी से ज्यादा है।
दूसरी बात, 79 करोड़ से ज्यादा लोगों को वैक्सीन की डोज देकर वैक्सीनेशन के मामले में भारत दुनिया के देशों में नंबर एक पर है। वहीं डबल डोज के मामले में भी भारत दुनिया में नंबर वन पर है। देश में 18 करोड़ 80 लाख लोगों को डबल डोज दी जा चुकी है। दूसरे नंबर पर अमेरिका है जहां 18 करोड़ लोगों को वैक्सीन की डबल डोज लगी है। इसके अलावा ब्राजील में साढ़े 7 करोड़, जापान में साढ़े 6 करोड़, जर्मनी में 5 करोड़ 20 लाख, इंग्लैंड में 4 करोड़ 40 लाख और फ्रांस में 4 करोड़ 30 लाख लोगों को डबल डोज दी जा चुकी है।
इसलिए कोविड वैक्सीनेशन में देश ने जो हासिल किया है उसे कम करके आंकना ठीक नहीं है। वैक्सीन अब पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है और नवंबर तक 100 करोड़ लोगों को वैक्सीन की डोज लग जाएगी। ये भारत जैसे बड़े देश की बड़ी विजय है।
Vaccination: It is true, ‘Modi Hai Toh Mumkin Hai’
On Prime Minister Narendra Modi’s 71st birthday, millions of health care workers of India gave him a priceless birthday gift. They set a world record for the fastest single day Covid vaccination drive. As the clock struck 12 at midnight, more than 2.5 crore (2,50,07,051) vaccination doses were given across the length and breadth of India.
The earlier world record of 2.47 crore single day vaccination was set by China in June this year. The vaccination number in India on September 17 went up continuously through the day with the cumulative number of doses administered in India to 79.33 crore. India has now crossed Europe in the total number of doses administered so far. The daily vaccinations in India has crossed one crore for the fourth time in the last 30 days.
The speed of vaccination on Friday averaged 15.62 lakh doses per hour, 26,000 doses per minute and 434 doses per second, said Prime Minister Modi in a tweet. Karnataka led the nation administering the highest number of over 26.9 lakh doses on Friday, followed by Bihar with 26.6 lakh doses, UP with over 24.8 lakh doses, Madhya Pradesh with 23.7 lakh doses, and Gujarat with over 20.4 lakh doses.
Hailing this achievement, PM Narendra Modi said: ”Every Indian would be proud of today’s record vaccination numbers. I acknowledge our doctors, innovators, administrators, nurses, health care and all frontline workers who have toiled to make the vaccination drive a success. Let us keep boosting vaccination to defeat Covid-19”.
Congress leader Rahul Gandhi, a staunch critic of Modi, tweeted: ”Looking forward to many more days of 2.1 crore vaccinations. This pace is what our country needs.” Health Minister Mansukh Mandaviya described it as “a golden chapter in Indian and world history”. The World Health Organisation’s Southeast Asia regional office tweeted: “Congratulations India for yet another milestone!”.
Overall, India took 85 days to touch the 10-crore mark, 45 more days to cross 20-crore, and 29 more days to reach 30 crore mark. It took 24 more days to reach 40 crore mark, and 20 more days to cross 50 crore mark, 19 more days to cross 60 crore, and only 13 days to reach 70 crore mark. The 75-crore mark was crossed on September 13.
India rolled out its vaccination drive on January 16 inoculating health care workers, while vaccination of frontline workers began on February 2. Vaccination drive for people aged over 60 years and for those above 45 years with morbidities, began on March 1. Vaccination of all Indians above age 45 years began on April 1. Vaccination drive for every one aged above 18 years was launched on May 1.
When Coronavirus spread across India in March last year, nobody dreamed that India could produce its own Covid vaccine. Many people thought the US would lead by producing vaccines, get Americans inoculated and then send vaccine doses to India.
Prime Minister Narendra Modi changed the entire thought process. He personally went to Pune, Gujarat and Hyderabad and encouraged Covid vaccine manufacturers to ramp up production, provided fullest support from the Centre, and very soon, India had two vaccines – Covishield and Covaxin – ready for use. Health workers across the length and breadth of India were trained how to keep the vaccines in protected conditions and administer them under strict protocol.
The plan for storing and transporting vaccine vials along with injections was prepared in advance. Healthcare workers were given first priority for inoculation, and you would be surprised to know, many of the healthcare workers, including some doctors and nurses, at that time hesitated. The process went on at a snail’s pace, and gradually it was opened up to the public, with senior citizens given priority.
Rumours were spread in abundance. Some said, the vaccines were not prepared without adequate trials. Some political leaders labelled it as “BJP vaccine”. Some busybodies spread rumours among Muslims that pig fat has been used to manufacture the vaccine.
The result was, in several states, people in villages and small towns, menacingly threatened, and in some cases, beat up healthcare workers who had gone for vaccination drive. Healthcare workers had to run for their lives. Yet, lower level healthcare workers, particularly ASHA workers, persisted in their efforts to inoculate villagers.
When the deadly second wave of pandemic came in April and May this year, millions were infected with Coronavirus, hospitals ran out of beds, vital medicines and oxygen supply, and bodies of Covid victims piled up in mortuaries, crematoriums and burial grounds. A frantic populace yearned for vaccines. The demand for vaccines suddenly shot up, but the vaccine production rate was limited.
Vaccine production is a complicated process. The manufacturers had not anticipated a sudden hike in demand. State governments were now demanding more and more vaccines, and some stooped to low-level politics. Some non-BJP state governments alleged that the Centre was discriminating between BJP-ruled and non-BJP-ruled states.
By August, vaccine production picked up, and simultaneously, vaccination figures went up. India crossed daily 1 crore (1.08 crore) vaccination figure on August 27, and 1.41 crore on August 31. The peak of 2.5 crore was reached on Friday. The process still continues and for those who are still sceptic about India’s vaccination capability, I want to cite some facts and figures.
First, there are 175 countries in the world with a total population of less than 2 crore. In other words, the number of Indians vaccinated on Friday surpasses the total population of 175 countries.
Second, by administering doses to 79 crore Indians, India is now Number 1 in the list of countries with vaccinated population. Even in the list of people who have had double doses, India is still No.1 with 18.8 crore people who have been given double doses. USA is second with 18 crore Americans having double doses. In the list, there is Brazil with 7.5 crore, Japan 6.5 crore, Germany 5.2 crore, United Kingdom 4.4 crore, France 4.3 crore people who have been administered double doses.
Hence it is not justified to underestimate India’s achievement in Covid vaccination. Vaccines are now available aplenty, and by November, India will have administered 100 crore doses to its people.
ऐसा करने का साहस सिर्फ मोदी में ही है!
आजाद भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि पूरा का पूरा मंत्रिमंडल ही बदल दिया गया और नई कैबिनेट में ज्यादातर नए चेहरों को जगह मिली। यह अनोखा प्रयोग मंगलवार को गुजरात में हुआ। बीजेपी ने रूपाणी कैबिनेट के सभी 22 मंत्रियों को हटा दिया और उनकी जगह 24 नए मंत्रियों ने शपथ ली। इनमें अधिकांश नए चेहरे ऐसे थे जो पहली बार विधायक बने हैं।
जिन मंत्रियों को हटाया गया उनमें कई पुराने कार्यकर्ता और बीजेपी के बड़े-बड़े प्रभावशाली नेता हैं। उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल, प्रदीप सिंह जडेजा, सौरव पटेल, भूपेन्द्र सिंह चुडास्मा, कौशिक पटेल, दिलीप ठाकोर, जयेश रादडिया, आरसी फालदू जैसे तमाम दिग्गज नेताओं का पत्ता कट गया। इन राजनीतिक हस्तियों का न केवल अपने निर्वाचन क्षेत्र में बल्कि पूरे इलाके में जबरदस्त प्रभाव है। इनमें से कई नेताओं का नाम तो रविवार को उस वक्त तक मुख्यमंत्री पद के लिए लिया जा रहा था जब अचानक भूपेंद्र पटेल को विधायक दल का नेता चुन लिया गया।
ऐसे राजनीतिक दिग्गजों को कैबिनेट से हटाना, उन्हें समझाना, मनाना और पद छोड़ने के लिए राजी करना कोई आसान काम नहीं था। इनमें से हर नेता ने अपनी पूरी उम्र सियासत में निकाल दी। इनके पास गुजरात में दो दशकों से ज्यादा भाजपा के शासन का अनुभव था। ऐसे में अनुभवी और असरदार नेताओं को हटाकर पूरे मंत्रिमंडल का चेहरा बदल देना, ये बहुत बड़ा प्रयोग है। मुख्यमंत्री समेत सारे मंत्रिमंडल को एक साथ बदलने का काम पहली बार हुआ है, इसलिए राजनीति के पंडित हैरान हैं। इतने ताकतवर नेताओं को हटाकर जिन्हें मंत्री बनाया गया उनमें मुख्यमंत्री समेत करीब एक दर्जन विधायक ऐसे हैं जिन्हें सरकार चलाने का कोई अनुभव नहीं है।
गांधीनगर में जब गुजरात के राज्यपाल ने नए मंत्रियों को शपथ दिलाई तो समारोह में मौजूद, नए मंत्री, पूर्व मंत्री समेत सभी लोग हैरत में थे। पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल तो सबसे पहले राजभवन पहुंचने वाले लोगों में शामिल थे। राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने 10 कैबिनेट और 14 राज्यमंत्रियों को शपथ दिलाई। 14 राज्य मंत्रियों में 5 के पास स्वतंत्र प्रभार रहेगा। जिन विधायकों को मंत्री बनाया गया है उनमें से सिर्फ 3 राजेंद्र त्रिवेदी, राघो जी पटेल और किरीट सिंह राणा ऐसे हैं जो इससे पहले मंत्री रह चुके हैं। बाकी के 21 विधायक पहली बार मंत्री बने हैं। राजेंद्र त्रिवेदी को मंत्री पद की शपथ लेने के लिए मंगलवार को स्पीकर के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। वहीं जीतू वघानी भी पहली बार मंत्री बने हैं। वे इससे पहले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं।
भूपेंद्र पटेल के मंत्रिमंडल में पटेल समाज को सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व मिला है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल खुद पाटीदार समाज से आते हैं और उनकी कैबिनेट में पाटीदार यानी पटेल समुदाय के 8 मंत्री बनाए गए हैं। ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) कैटेगरी में आने वाले कोली, ठाकोर और क्षत्रिय समाज से 8 मंत्रियों को जगह दी गई है। अनुसूचित जाति और ब्राह्मण समाज से 2-2 मंत्री बनाए गए हैं। एक मंत्री जैन समुदाय का भी बनाया गया है। अगर क्षेत्र के हिसाब से देखें तो सौराष्ट्र, दक्षिण गुजरात और मध्य गुजरात से सात-सात नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है जबकि उत्तर गुजरात से 3 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई है।
आमतौर पर मंत्रिमंडल में जातिगत समीकरण और क्षेत्रीय संतुलन देखे जाते हैं। यह दशकों से चला आ रहा परंपरागत तरीका है। लेकिन इस परंपरा को गुजरात कैबिनेट गठन में तोड़ दिया गया। बीजेपी में सिर्फ 2 अहीर विधायक हैं और दोनों रूपाणी कैबिनेट में मंत्री थे। लेकिन पूरी कैबिनेट को बदलने के चलते इन दोनों का भी मंत्री पद चला गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शपथ ग्रहण के बाद नए मंत्रियों को ट्वीट करके बधाई दी। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट में लिखा-‘गुजरात सरकार में मंत्री पद की शपथ लेनेवाले पार्टी के सभी साथियों को बधाई। ये वे उत्कृष्ट कार्यकर्ता हैं जिन्होंने सार्वजनिक सेवा और पार्टी के विकास के एजेंडे को बढ़ाने में अपना जीवन समर्पित किया है। उन्हें आनेवाले कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं।’
अपने करियर में मैंने बहुत से मंत्रिमंडल बनते और मुख्यमंत्री बदलते देखे, लेकिन ये पहली बार देखा कि मुख्यमंत्री के साथ-साथ सारे मंत्रियों को बदल दिया गया। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। असल में ऐसा फैसला करने के लिए बहुत हिम्मत और मजबूत इरादा चाहिए। ऐसे फैसले को लागू करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और राजनीतिक साहस की जरूरत होती है, और ये काम सिर्फ नरेंद्र मोदी जैसा लीडर ही कर सकता है।
मंत्रिमंडल बनाने में सौ तरह के झंझट होते हैं। तमाम तरह के गुणा-भाग और अन्य समीकरणों को ध्यान में रखना पड़ता है। कौन पार्टी का कितना पुराना लीडर है। कहीं कोई मंत्री ना बनाए जाने से नाराज होकर पार्टी छोड़ तो नहीं जाएगा? किसके साथ कितने विधायक हैं। कहीं कोई कैबिनेट में शामिल नहीं किए जाने से नाराज होने के बाद चुनाव में नुकसान तो नहीं पहुंचाएगा? कौन सा नेता किस जाति का है और किस जाति का कितना प्रभाव है। जिस नेता को ड्रॉप किया जा रहा है वो किस इलाके से आता है। उस इलाके में उस नेता का असर कैसा है? पार्टी का उस नेता के इलाके में सपोर्ट बेस क्या है। अगर ज्यादा है तो कम होने का डर और अगर कम है तो न बढ़ने का खतरा, बहुत सारी बातें देखनी पड़ती हैं। लेकिन नरेंद्र मोदी ने ऐसी किसी बात की परवाह नहीं की।
नरेंद्र मोदी 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और 7 साल से देश के प्रधानममंत्री हैं। गुजरात की राजनीति में वो सबको जानते हैं। वह गुजरात के हर नेता और प्रमुख पार्टी कार्यकर्ता को जानते हैं। जिन 22 मंत्रियों को हटाया गया है उनमें से कई मोदी के करीबी रहे हैं। कितनों ने मोदी के साथ काम किया है और वो मोदी के खासम-खास माने जाते थे।
लेकिन अपने करीबियों को भी मंत्री पद से हटाने के लिए जो साहस चाहिए वो हर किसी में नहीं होता। मोदी में वह साहस है। मोदी ने कभी ऐसी बातों की परवाह नहीं की कि कौन करीब है और कौन दूर है। जहां तक सरकार चलाने के लिए अनुभव की बात है तो जब 2001 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे तो खुद उन्हें भी सरकार चलाने का कोई अनुभव नहीं था। जब उन्हें सीएम बनाया गया तो उससे पहले वे विधायक तो छोड़िए, कभी कॉरपोरेटर, पार्षद या सांसद भी नहीं रहे थे। उस समय उन्हें व्यावहारिक तौर पर कोई ऐसी जानकारी नहीं थी कि नौकरशाही कैसे काम करती है।
नरेंद्र मोदी सीधे मुख्यमंत्री बने और वह भी केशुभाई पटेल जैसे अनुभवी और कद्दावर नेता को हटाकर उन्हें सीएम की कुर्सी सौंपी गई। इसके बाद नरेंद्र मोदी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने अपनी पार्टी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। लेकिन ये कहते वक्त यह भी ध्यान रखना पड़ेगा कि हर कोई मोदी नहीं होता, न हो सकता है। हर किसी में मोदी जैसी हिम्मत, मोदी जैसा विजन नहीं होता। नरेंद्र मोदी ने पूरी कैबिनेट को बदलकर देश की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ा है। उन्होंने एक नए इतिहास की इबारत लिखी है। इसका देश की राजनीति पर दूरगामी असर होगा।
Only Modi has the guts to do it!
For the first time in the history of independent India, an entire cabinet was dropped and was replaced by ministers, most of them first-timers. This novel experiment took place on Tuesday in Gujarat. Twenty-four “new faces”, most of them first-time MLAs, were sworn in, replacing all 22 ministers of the erstwhile Vijay Rupani cabinet.
Among the ministers dropped were several heavyweights, like former deputy CM Nitin Patel, Pradipsinh Jadeja, Saurabh Patel, Bhupendrasinh Chudasama, Kaushik Patel, Dilip Thakore, Jayesh Radadia and R C Faldu. These political heavyweights commanded tremendous influence not only in their constituency but in the entire region, and several of them were in the running for the post of Chief Minister, when Bhupendra Patel was suddenly selected for the job on Sunday.
To remove such political heavyweights from the cabinet and persuading them to quit was a tough job. Each one of them had decades of experience in governance during more than two decades of BJP’s rule in Gujarat. Political pundits are stunned over the sudden replacement of the entire cabinet. Among the newcomers, nearly a dozen ministers, including the Chief Minister, are first-time legislators, who have no experience in governance.
At the oath taking ceremony in Gandhinagar, most of the new ministers and former ministers along with other guests looked surprised over the new development. Former CM Vijay Rupani and former deputy CM Nitin Patel were among the first to arrive at the Raj Bhavan. Ten ministers of cabinet rank and 14 ministers of state, among them five with independent charge, were sworn in. Among the new ministers, three, Rajendra Trivedi, Raghavji Patel and Kirit Singh Rana, had been ministers in the past. The remaining 21 have become ministers for the first time. Rajendra Trivedi had to resign from the post of Speaker on Tuesday, to take oath as a minister. Jitu Vaghani, a first timer, has been the state party unit chief.
The Patel community has been given the largest representation in the cabinet. There are eight ministers from Patidar Patel community apart from the CM, who himself hails from Patidar community. Eight ministers from OBC (other backward classes) have been inducted from Koli, Thakore and Kshatriya caste groups. Two each have been inducted from scheduled caste and Brahmins, and one from Jain community. Region wise, there are seven ministers each from Saurashtra, central and south Gujarat, and three from north Gujarat.
Normally, composing a cabinet based on region and caste is the traditional method, followed since decades, but this time, the Ahir community lost its representation because of replacement of all ex-ministers. There are only two Ahir MLAs in BJP, and both were ministers in Rupani cabinet. Both of them have been dropped.
In his congratulatory tweet, Prime Minister Narendra Modi said: “Congratulations to all Party colleagues who have taken oath as Ministers in the Gujarat Government. These are outstanding Karyakartas who have devoted their lives to public service and spreading our Party’s development agenda. Best wishes for a fruitful tenure ahead.”
In my career, I have seen many chief ministers replaced by their party leaderships, but this is the first time that the entire cabinet including the chief minister was replaced. This has never happened before. One requires strong will power and political courage to implement such a decision. Only a leader of Narendra Modi’s calibre can make such an audacious experiment.
Making a cabinet is not an easy task. Several permutations and combinations are kept in mind while forming a cabinet. While dropping some one with experience, one has to take into account whether the leader may quit the party in a huff. One should also keep in mind whether by dropping a minister, supporters in his constituency may take up a warring path. The support base of a leader is weighed before he or she is made a minister. But Narendra Modi did not bother at all about such ifs and buts.
Modi was chief minister of Gujarat for 13 years. He has been prime minister for the last seven years. He knows each and every leader and prominent party worker in Gujarat. He personally knows all the 22 ministers who were dropped. Several of them are still close to him and had worked with him when he was the CM.
Not every leader can muster courage to drop ministers who are supposed to be very close. Modi has that courage. He did not bother, which leader was close to him and who was not. As far as experience in governance is concerned, Modi himself had no such experience when he was made the CM in 2001. He was never a corporator, a councillor, an MLA or an MP when he was made the CM. At that time, he had practically no insider knowledge about how a bureaucracy functions.
Modi was made the CM by removing a heavyweight politician with decades of experience like Keshubhai Patel. Once Modi was made CM, he never looked back. He took his party to newer heights. While saying this, one has to exercise some caution. Not every person can become a Narendra Modi. One may require vision and courage to match him. Modi has added a new chapter to India’s legislative history by replacing an entire cabinet. This is bound to have repercussions on Indian politics, in future.
सियासत के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं किसान
पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने केंद्र के नए कृषि कानूनों के बारे में एक ऐसा खुलासा किया है, जो पिछले 9 महीनों से आंदोलन कर रहे किसान नेताओं को चौंका कर रख देगा। सिद्धू ने अनजाने में वह काम कर दिया जो कांग्रेस और बीजेपी नेता अब तक नहीं कर पाए थे। सिद्धू ने खुलासा किया कि 2013 में पंजाब में तत्कालीन प्रकाश सिंह बादल की अकाली-बीजेपी गठबंधन सरकार ने सूबे की विधानसभा में जो कृषि कानून पेश किए थे, वे केंद्र के नए कृषि कानूनों से काफी मेल खाते हैं।
सिद्धू ने कहा कि नए कृषि कानूनों के ‘नीति-निर्माता’ बादल (प्रकाश सिंह और सुखबीर सिंह) थे। उन्होंने पंजाब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग ऐक्ट और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर केंद्र के कानून के बीच कई समानताएं गिनाईं। उन्होंने नए कृषि कानूनों की तारीफ करते हुए प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर बादल और हरसिमरत कौर बादल के वीडियो भी दिखाए।
सिद्धू ने कहा, नए कृषि कानूनों की नीति, अवधारणा और ढांचा बादल परिवार के दिमाग की उपज थी, केंद्र सरकार ने तो सिर्फ इस कानून की नकल की थी। सिद्धू ने कहा, ‘इसका बीज उन्होंने (बादल ने) बोया था, यह उनका आइडिया था जिसे पहले पंजाब में लागू किया गया, और फिर वे इसे पूरे भारत में लागू करवाने के लिए बीजेपी के पास ले गए। अगर पंजाब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग ऐक्ट आत्मा है, तो मोदी सरकार का कृषि कानून सिर्फ इसका शरीर है।’
सिद्धू ने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में इन कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा के किसान नेताओं को यह बात मालूम होनी चाहिए कि पंजाब में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़े कानून का खाका पंजाब में अकाली सरकार ने तैयार किया था। सिद्धू ने अकाली दल को ‘किसानों का दुश्मन’ करार देते हुए कहा कि ‘अपने पापों को छिपाने के लिए’ अकाली दल ने इस मुद्दे पर केंद्र की एनडीए सरकार से अपना नाता तोड़ लिया, लेकिन यह कड़वी सच्चाई छिपी नहीं रह सकी।
सिद्धू ने जो कहा वह सही है। पंजाब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कानून को बादल सरकार ने 2013 में पंजाब विधानसभा में पेश किया था, और यह पास भी हो गया था। सबसे ज्यादा हैरानी बात तो यह है कि इस बात का जिक्र न तो पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किया और न ही शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल और हरसिमरत कौर ने। यहां तक कि किसान नेताओं राकेश टिकैत और गुरनाम सिंह चढूनी भी अपनी जनसभाओं में इस पर कभी नहीं बोले।
सिद्धू ने तत्कालीन बादल सरकार द्वारा बनाए गए पंजाब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग ऐक्ट की प्रतियां दिखाईं। उन्होंने कहा कि इस ऐक्ट के सेक्शन में MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का कोई जिक्र नहीं है। उन्होंने कहा कि खरीदार के पास MSP या बाजार (मंडी) मूल्य से कम कीमत पर फसल खरीदने का लाइसेंस है। 2 मुख्य फसलों, गेहूं और चावल सहित 108 फसलों की एक अनुसूची को ऐक्ट में शामिल किया गया था। आम तौर पर पंजाब में गेहूं और चावल की खरीद केंद्र द्वारा MSP रेट पर की जाती है।
सिद्धू ने कहा कि बिल के सेक्शन 4 में कॉन्ट्रैक्ट के उल्लंघन के मामलों को नौकरशाहों द्वारा देखने का प्रावधान है। इसकी वजह से किसान कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन होने पर अदालतों का दरवाजा नहीं खटखटा सकते हैं। इस बिल में किसानों पर 5,000 रुपये से लेकर 5 लाख रुपये तक के जुर्माने और धोखाधड़ी के मामलों में एक महीने की कैद का प्रावधान है। इसमें नौकरशाही को भू-राजस्व के रूप में बकाया वसूल करने का भी अधिकार दिया गया है।
सेक्शन 6 में प्रावधान है कि किसान न तो अपनी जमीन बेच सकता है और न ही इस पर लोन ले सकता है। बिल में कॉरपोरेट्स को किसानों को यह बताने का अधिकार है कि किस बीज का इस्तेमाल करना है और जमीन पर खेती कैसे करनी है। बिल में यह भी प्रावधान है कि कॉरपोरेट्स या उनके एजेंट सीधे किसान के खेत से ही फसल उटा सकते हैं, और इस तरह मंडियों में जाने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी।
सिद्धू ने कहा कि केंद्र के अनुबंध कृषि कानून में भी एमएसपी की कोई गारंटी नहीं है, विवादों का निपटारा न्यायपालिका की बजाय नौकरशाहों द्वारा किया जाएगा, दीवानी अदालतों में जाने पर रोक है जो कि संविधान की भावना के खिलाफ है, और इसमें अनिवार्य रजिस्ट्रेशन का प्रावधान है। उन्होंने कहा, ‘केंद्र का कृषि कानून छोटे-मोटे बदलावों के साथ पंजाब के कृषि कानून की कार्बन कॉपी है।’
सिद्धू ने कहा कि केंद्र सरकार जब नया कृषि कानून लेकर आई थी तब अकाली नेताओं ने काफी तेजी दिखाई थी। सर्वदलीय बैठक में सुखबीर सिंह बादल ने विधेयकों का विरोध नहीं किया था, बल्कि उन्होंने तो इनकी तारीफ की थी। केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री के रूप में हरसिमरत कौर बादल ने नए कृषि विधेयकों के मसौदे पर दस्तखत किया था।
सिद्धू ने कहा कि शुरुआत में अकाली नेताओं को यह लगता था कि किसानों को नए बिल ठीक से समझ में नहीं आए हैं। लेकिन पंजाब में जनता के भारी दबाव के बाद हरसिमरत कौर को मोदी कैबिनेट से इस्तीफा देना पड़ा। 17 सितंबर को सुखबीर बादल ने यहां तक कहा था कि उनकी पार्टी ने मोदी सरकार से नाता तोड़ा है, लेकिन एनडीए से नहीं।
अब सवाल यह उठता है कि अगर पंजाब की अकाली सरकार द्वारा बनाया गया कृषि कानून वाकई में किसानों के खिलाफ हैं, तो कांग्रेस की सरकार ने उन्हें रद्द क्यों नहीं किया? पंजाब में पिछले पांच साल से कैप्टन अमरिंदर सिंह की कांग्रेस सरकार है। नवजोत सिंह सिद्धू भी कुछ समय तक इस सरकार में मंत्री रहे हैं। उन्होंने कानून को निरस्त करने की मांग क्यों नहीं की? ये कहना आसान है कि ये कानून अकालियों ने बनवाए थे, ये काले कानून हैं, तो फिर कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू ने इस कानून को रद्द क्यों नहीं करवाया।
किसान नेताओं को यह समझना होगा कि कृषि कानूनों को लेकर तीनों पार्टियां अंदर से सब एक हैं। इसे अकाली दल ने बनाया, कांग्रेस ने चलाया और बीजेपी ने इसे पूरे देश में आगे बढ़ाया। अकाली दल हो, कांग्रेस हो या बीजेपी हो, ये कानून तो सब बनाना चाहते थे। फर्क सिर्फ इतना है कि बीजेपी आज भी इन कानूनों को डिफेंड कर रही है जबकि इन कानूनों को बनाने और चलाने वाले अकाली दल और कांग्रेस पंजाब में किसानों का मूड देखकर बदल गए हैं।
जहां तक सिद्धू की बात है तो उनका बदलना तो आम आदमी ने कई बार देखा है। देश के लोगों ने उन्हें बीजेपी में रहते हुए कांग्रेस, गांधी परिवार और उसकी नीतियों पर करारा तंज कसते हुए देखा है, लेकिन कांग्रेस का दामन थामते ही वह नरेंद्र मोदी पर हमला बोलने लगे। 2013 में सिद्धू कहते थे कि “ कांग्रेस मुन्नी से ज्यादा बदनाम है, आगे-आगे मनमोहन सिंह और पीछे चोरों की बारात है “, लेकिन अब सिद्धू के सुर बदले हुए हैं।
किसानों को यह बात समझनी होगी कि उनके आंदोलन को सियासत ने पटरी से उतार दिया है। आंदोलन में सियासत जितना ज्यादा घुसती जाएगी, उनका आंदोलन उतना ही कमजोर होता जाएगा। आजकल किसान नेता राकेश टिकैत अपनी जनसभाओं में किसानों की मांगों से ज्यादा राजनीति और राजनेताओं की बात करते हैं। बुधवार को उन्होंने AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी को ‘बीजेपी का चचाजान’ बता दिया।
उधर, कोलकाता की भवानीपुर सीट से उपचुनाव लड़ रहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने चुनाव प्रचार में किसान आंदोलन को पूरा सपोर्ट देने की बात कर रही हैं। वह ये भी बता रही हैं कि कैसे उन्होंने कई बार किसानों की जनसभाओं को संबोधित किया है और उनके धरने में शामिल होने के लिए अपना प्रतिनिधिमंडल भी भेजा। ममता ने गुरुद्वारों में भी जाना शुरू कर दिया है। ममता यह सब इसलिए कर रही हैं क्योंकि भवानीपुर चुनावक्षेत्र में 40 प्रतिशत गैर बंगाली मतदाता हैं जिनमें ज्यादातर सिख और गुजराती हैं।
कुल मिलाकर बात ये है कि सियासी लीडरान किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर अपने विरोधियों पर निशाना साध रहे हैं। ये नेता अपने स्वार्थ साधने के लिए किसानों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
How politicians are using farmers for achieving their own ends
Punjab Congress president Navjot Singh Sidhu has made a disclosure about the Centre’s new farm laws which should surprise farmer leaders agitating for the last nine months. Sidhu unwittingly did the work which Congress and BJP leaders failed to do till now. Sidhu disclosed that in 2013 the then Parkash Singh Badal’s Akali-BJP coalition government in Punjab had introduced farm laws in the state assembly, which have close resemblance with the Centre’s new farm laws.
He said, Badals (Parkash Singh and Sukhbir Singh) were the ‘neeti-nirmatas’(policymakers) of new farm laws. He listed several similarities between the Punjab Contract Farming Act and the Centre’s law on contract farming. He even played videos of Parkash Singh Badal, Sukhbir Badal and Harsimrat Kaur Badal praising the new farm laws.
Sidhu said, the policy, concept and structure of new farm laws were the brainchild of Badal family, which the Centre had only copied. He said, “they (Badals) sowed the seed, it was their idea implemented first in Punjab, and then they took this idea to the BJP for execution across India. While Punjab Contract Farming Act is the soul, Modi government’s farm law is only the body.”
Sidhu said, farmer leaders of Samyukta Kisan Morcha who have been agitating against these laws in western UP, Haryana and Punjab, should know that the blueprint of contract farm law was prepared in Punjab by Akali government. Describing Akali Dal as the “enemy of farmers”, Sidhu said, in order “to hide its sins”, the Akali Dal walked out of NDA government at the Centre on this issue, but the hard fact cannot remain hidden.
What Sidhu said is correct. The Punjab Contract Farming Law was introduced by Badal government in Punjab assembly in 2013, which was passed. The strangest part is that neither Punjab chief minister Capt Amarinder Singh, nor SAD chief Sukhbir Singh Badal and Harsimrat Kaur, and nor farmer leaders Rakesh Tikait and Gurnam Singh Chadhuni ever mentioned this fact at their public meetings.
Sidhu showed copies of the Punjab Contract Farming Act prepared by the then Badal government. In this Act, he said, there is no mention of MSP (minimum support price) in Section 5. The buyer, he said, has licence to buy crops at prices lower than the MSP or market (mandi) price. A schedule of 108 crops, including the two main crops – wheat and rice – was included in the Act. Normally, in Punjab, wheat and rice are procured by the Centre at MSP rates.
The bill, Sidhu said, also provided in section 4 for bureaucrats to handle cases of violation of contract. It prevented farmers from approaching courts if the contract was violated. The bill provided for fines on farmers ranging from Rs 5,000 to Rs 5 lakh and one month imprisonment in cases of frauds. Bureaucracy was given powers to collect arrears as land revenue.
Section 6 provides for disallowing farmers from selling or taking loan by hypothecating land. The bill gave rights to corporates to tell farmers which seeds to use and how to cultivate land. The bill provided for corporates or their agents directly lifting crops from land, thus eliminating the need to go to ‘mandis’ (markets).
In the Centre’s contract farming law, Sidhu said, there is no MSP guarantee, settlement of disputes will be made by bureaucrats and not the judiciary, there is bar on jurisdiction of civil courts which is against the spirit of the Constitution, there is provision for mandatory registration. “The Centre’s farm law is a carbon copy of the Punjab law with minor alterations”, he said.
When the Centre brought the new farm laws, Sidhu said, Akali leaders made a quick turnaround. At the all party meeting Sukhbir Singh Badal did not oppose the bills. On the contrary, he praised them. Harsmirat Kaur Badal, as Union Food Processing Minister, had signed the draft copies of the new farm bills.
Sidhu said, initially, the Akali stand was that farmers did not understand the new bills. But after public pressure in Punjab, Harsimrat Kaur had to resign from Modi cabinet. On September 17, Sukhbir Badal said his party has resigned from Modi government, but not from NDA.
The question now arises: if the Contract Farming Act passed by Punjab assembly during Badals’ tenure was anti-farmer, why didn’t the Congress government repeal the Act? The Congress led by Captain Amarinder Singh is in power in Punjab for the last five years. Sidhu was also part of the government for some time. Why didn’t he demand repealing of the law? To say that this law as ‘a black law’, and it was brought by Akalis, is alright, but why didn’t Capt. Amarinder Singh and Sidhu got the law repealed?
Farmer leaders should know. The new contract farming law was conceptualized and passed by Akalis, the Congress government carried on with the law and the BJP has now formalized it throughout India. Akali Dal, Congress and BJP – all the three parties are actually in favour of the contract farming law. The only difference is that, BJP is now defending the new farm law, while the Akali Dal and Congress, which had introduced, passed and continued with this law in Punjab, have changed their colours. Both these parties, after seeing mood of Punjab farmers, have changed their political stand.
As far as Sidhu is concerned, the common Indian knows how he changed his political colour overnight. The people of India have seen him lashing out at the Congress, the Gandhi family and its policies, when he was in the BJP, but later, he did a somersault, and after joining the Congress, he started lambasting Narendra Modi. Till 2013, Sidhu was saying at public meetings that Congress has “become more ‘badnaam’ than Munni” (alluding to a popular Bollywood song) and that ‘Manmohan Singh as PM is leading ‘choron ki baaraat’ (procession of thieves), but now Sidhu has changed his tune.
Farmers must realize that their cause has now been bedevilled by politics. The more politics makes an entry, the weaker their agitation is going to become. Nowadays farmer leader Rakesh Tikait is speaking more about politics and politicians than about farmers’ demands at his public meetings. On Wednesday, he described AIMIM chief Asaduddin Owaisi as ‘BJP’s Chachajaan’.
In Kolkata, West Bengal chief minister Mamata Banerjee, contesting her byelection from Bhabanipur is pointing out how she addressed farmer gatherings several times and sent her leaders in a delegation to join their dharna. Mamata has also started visiting gurdwaras. The reason: there are nearly 40 per cent non-Bengali voters, mostly Sikhs and Gujaratis, in the constituency.
The moot point is: politicians of all hues are using the shoulders of farmers to train their guns at their political rivals. Politicians are using the farmers to further their own ends.
दिल्ली, मुंबई, यूपी में सीरियल ब्लास्ट की नापाक साजिश कैसे हुई नाकाम
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और इंटेलिजेंस ब्यूरो ने उत्तर प्रदेश एटीएस की मदद से देश को दहलाने की एक बड़ी साजिश को नाकाम कर दिया है। मंगलवार को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने यह खुलासा किया कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और दाऊद इब्राहिम गैंग दशहरा उत्सव, रामलीला या नवरात्रि उत्सव के दौरान दिल्ली, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में सीरियल ब्लास्ट की साजिश रच रहे थे। ये भीड़-भाड़ वाली जगहों को निशाना बनाना चाहते थे।
इससे पहले कि ये लोग अपने मंसूबों में कामयाब होते, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इस आतंकी मॉड्यूल के छह गुर्गों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस को इनके पास से आरडीएक्स वाली आईईडी, ग्रेनेड, बेरेटा पिस्टल और कारतूस मिले हैं। अब तक एक किलो आरडीएक्स जब्त किया जा चुका है।
जिन छह आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया है उनके नाम हैं-जान मोहम्मद शेख उर्फ समीर कालिया, यह मुंबई का रहनेवाला है। दिल्ली के जामिया नगर का ओसामा उर्फ सामी, रायबरेली का मूलचंद उर्फ शाजू, प्रयागराज का जीशान कमर, बहराइच का मोहम्मद अबु बकर और लखनऊ के बख्शी तालाब का रहनेवाला मोहम्मद आमिर जावेद। इन सभी को दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कई शहरों में हुई छापेमारी के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया। हथियार और विस्फोटक प्रयागराज से बरामद हुए हैं।
पूछताछ में यह पता चला कि ओसामा 22 अप्रैल को सलाम एयर की फ्लाइट पकड़कर लखनऊ से मस्कट (ओमान) के लिए रवाना हो गया था। मस्कट में ओसामा की मुलाकात जीशान से हुई। जीशान भी ट्रेनिंग लेने आया था। मस्कट में इन दोनों की मुलाकात 15 से 16 बांग्लादेशियों से हुई। बाद में इन्हें छोटे-छोटे ग्रुप में बांट दिया गया। ओसामा और जीशान को एक ग्रुप में रखा गया था।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि ओसामा और जीशान को ओमान के मस्कट से छोटी-छोटी नावों के जरिए ग्वादर बंदरगाह के पास जिवानी शहर ले जाया गया। वहां एक पाकिस्तानी अधिकारी ने इनका स्वागत किया और इन्हें सिंध प्रांत के थट्टा स्थित एक फॉर्म हाउस में ले जाया गया। इस फॉर्म हाउस में तीन पाकिस्तानी थे। इनमें दो, हमजा और जब्बार पाकिस्तानी सेना का यूनिफॉर्म पहने हुए था। ओसामा और जीशान को यहां पर 15 दिन तक दोनों को एके 47 चलाने और बम धमाके करने और रोजाना इस्तेमाल की जानेवाली चीजों का उपयोग कर विस्फोटक बनाने की ट्रेनिंग दी गई।
ये दोनों पाकिस्तानी सैनिक एक लेफ्टिनेंट या मेजर रैंक के आईएसआई अधिकारी के निर्देश पर काम कर रहे थे। इन दोनों ट्रेंड आतंकवादियों को ब्लास्ट वाली जगह की टोह लेना, आईईडी लगाने के लिए जगह का चुनने का काम सौंपा गया था। ओसामा को ओखला से और मोहम्मद अबू बकर को सराय काले खां से गिरफ्तार किया गया। जीशान कमर, आमिर जावेद और मूलचंद उर्फ साजू को यूपी एटीएस की मदद से गिरफ्तार किया गया।
अधिकारियों ने बताया कि अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के भाई अनीस इब्राहिम का इसमें एक्टिव रोल रहा है। अनीस इब्राहिम ने अपने गुर्गों के जरिए आईईडी, ग्रेनेड, पिस्तौल और कारतूस को देश के अंदर तक पहुंचाया। पाकिस्तान से विस्फोटक हिंदुस्तान में पहुंचाने औऱ ब्लास्ट किए जाने तक बम को छिपाकर रखने की जिम्मेदारी अनीस इब्राहिम और उसके गुर्गों पर थी। अंडरवर्ल्ड की मदद से ये आरडीएक्स औऱ आईईडी प्रयागराज तक पहुंचे जहां इसे छिपाकर सुरक्षित रखा गया था।
दिल्ली, मुंबई और यूपी के शहरों में ब्लास्ट के लिए इन विस्फोटकों और हथियारों को आतंकवादियों को सौंपने का काम जान मोहम्मद शेख और मूलचंद उर्फ शाजू को दिया गया था। पुलिस ने बताया कि त्योहारों के दौरान भीड़-भाड़ वाली जगहों पर इन विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जाना था।
अधिकारियों ने बताया कि कराची के पूर्व में थट्टा वही जगह है जहां 26/11 मुंबई हमले के आरोपी अजमल कसाब को आईएसआई और पाकिस्तान नेवी की ऐलीट फोर्स, स्पेशल सर्विस ग्रुप ने ट्रेनिंग दी थी। इससे पहले पाकिस्तान आतंकी ट्रेनिंग के लिए दुबई रूट का इस्तेमाल करता था, इसी रास्ते सेआतंकियों को लाया और वापस भेजा जाता था। लेकिन पहली बार ओमान के रूट का इस्तेमाल किया गया है। इसके साथ ही बड़ी बात ये है कि त्योहारी सीजन में सीरियल ब्लास्ट की आईएसआई की इस पूरी साज़िश में 1993 मुंबई ब्लास्ट के बाद पहली बार दाऊद के अंडरवर्ल्ड गिरोह का एक्टिव रोल नज़र आया है।
सुरक्षा अधिकारियों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर इस टेरर मॉडयूल से दो बातें सामने आती हैं। पहला ये कि आईएसआई कैसे आसानी से दिल्ली और यूपी के 22 साल से 30 साल के लड़कों को रेडिक्लाइज करके उन्हें मस्कट के जरिए पाकिस्तान पहुंचा रही है। चूंकि पिछले कुछ साल में एलओसी (नियंत्रण रेखा) पर सेना ने काफी सख्ती कर बढ़ा दी है इसलिए आईएसआई ने फ्लाइट के जरिेए लड़कों को पाकिस्तान में ट्रेनिंग के लिए भेजने का नया रास्ता निकाला है।
दूसरी बात ये है कि जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के स्लीपर सेल का नेटवर्क कमजोर पड़ा है। ऐसे में आईएसआई ने दाऊद के अंडरवर्ल्ड नेटवर्क को एक्टिव किया है। लेकिन अच्छी बात ये रही कि इंटेलीजेंस एजेंसीज़ औऱ पुलिस की मुस्तैदी से ब्लास्ट के प्लान को वक्त रहते फेल कर दिया गया। इसके लिए दिल्ली पुलिस, यूपी पुलिस के साथ-साथ इंटेलीजेंस एजेंसीज की तारीफ होनी चाहिए।
How ISI’s sinister plot to carry out serial blasts in Delhi, Mumbai, UP was foiled
Delhi Police Special Cell and Intelligence Bureau, with help from UP ATS, on Tuesday foiled a sinister plot hatched by Pakistan spy agency ISI and Dawod Ibrahim gang to carry out serial blasts in Delhi, Maharashtra and Uttar Pradesh during Ramlila, Navratri and Dussehra festival.
The Special Cell of Delhi Police arrested six operatives of a terror module and recovered several RDX based IEDs, grenades, Beretta pistols and cartrdiges. Till now, one kg of RDX explosive has been seized.
The six terrorists are: Jaan Mohammad Sheikh alias Sameer Kallya of Mumbai, Osama alias Sami of Jamia Nagar, Delhi, Moolchand alias Shaaju of Rae Bareli, Zeeshan Qamar of Prayagraj, Mohammad Abu Bakar of Bahraich and Mohammed Amir Javed of Bakshi Talab, Lucknow. All of them were nabbed during raids in Delhi and several towns of UP. The explosives and weapons were seized from Prayagraj.
Interrogation revealed that Osama had left for Muscat, Oman by Salaam Air flight from Lucknow on April 22, where he met Zeeshan Qamar who had also come to join the training. In Muscat, the two Indians met 15 to 16 Bangladeshis, who were later divided into sub-groups. Osama and Zeeshan were put in one group.
Official sources said, Osama and Zeeshan were taken in small boats from Muscat, Oman by sea to Jiwani town near Gwadar sea port, where they were welcomed by a Pakistani official and taken to a farm house in Thatta of Sind province. There were three Pakistanis in the farm house. Two of them, Hamza and Jabbar, wearing Pakistani army uniform, trained them for 15 days in the use of AK-47 rifles and making of improvised explosive devices using items of daily use.
These two Pakistani soldiers were working under instructions from a Lieutenant or Major rank ISI officer. The two trained terrorists were tasked to carry out reconnaissance and chose locations for planting IEDs. Osama was nabbed from Okhla, and Mohammed Abu Bakar was arrested from Sarai Kale Khan. Zeeshan Qamar, Amir Javed and Moolchand alias Saaju were nabbed with the help of UP Anti-Terrorist Squad.
Underworld don Dawood Ibrahim’s brother Anees Ibrahim was instrumental in transporting these IEDs, grenades, pistols and cartridges through their operatives to India, officials said. The explosives and weapons were sent to Prayagraj to be kept safely.
Jaan Mohammad Sheikh and Moolchand alias Shaaju were tasked to hand over these explosives and weapons to terrorists for use in Delhi, Mumbai and other places of UP. The explosives were to be used near large gatherings during festivals, police said.
Indian officials pointed out that Thatta, located east of Karachi, is the same place where 26/11 Mumbai terror attack accused Ajmal Kasab was trained by ISI and Pakistani Navy elite force, Special Service Group. Earlier, Pakistan used the Dubai route to bring probable terrorists for training, but for the first time, Oman has been used, officials pointed out. Also, for the first time since 1993 Mumbai blasts, Dawood’s underworld gang appeared to be in nexus with the ISI for carrying out these deadly serial blasts during festive season this year.
Two conclusions arise from the information given by Indian security officials.
One, it has now become easy for the ISI to radicalize Indian youths, call them to foreign lands and from there, take them to Pakistan for training in use of rifles and explosives. Since crossing the Line of Control on India-Pakistan border is difficult due to strict surveillance by BSF and army over the past several years, the ISI has preferred the air route.
Two, since Jaish-e-Mohammad and Lashkar-e-Taiba networks have now become weak, the ISI has chosen the help of Dawood’s underground gang. Delhi Police, UP ATS and intelligence agencies need a pat on their back for foiling this sinister plot in the nick of time.
बगराम जेल से निकले दहशतगर्द अब भारत के लिए मुसीबत बन सकते हैं
सोमवार की रात मेरे प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने आपको, भारतीय टेलीविजन पर पहली बार, काबुल के नज़दीक बगराम जेल के अंदर की तस्वीरें दिखाई। अमेरिकी सेना ने करीब बीस साल तक इस जेल में कई हज़ार खूंखार आतंकवादियों को रखा था। 15 अगस्त को जब तालिबान के सड़ाके काबुल में दाखिल हुए, और पूरे अफगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया, तब पुल-ए-चरखी में बगराम बेस के पास बनी इस जेल के दरवाजे खोल दिए गए। इस जेल में आईएसआईएस (खुरासान), अल कायदा, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, लश्कर-ए-झंगवी और तहरीके-तालिबान पाकिस्तान के सैकड़ों खूंखार आतंकवादी कैद थे।
तालिबान के कमांडरों ने इन सभी दहशतगर्दों को जेल से रिहा कर दिया। जेल में कई ऐसे आतंकवादी थे जिनका भारत से कनेक्शन था। इनमें केरल के वे 14 युवक भी थे जो इराक जाकर इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) में शामिल होना चाहते थे, लेकिन अफगान सुरक्षा बलों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। गिरफ्तारी के बाद इन युवकों को अमेरिकी सेना के हवाले कर दिया गया था और अमेरिकी सेना ने इन्हें बगराम जेल में कैद कर रखा था। अब नौजवानों का कोई अता पता नहीं है। किसी के पास इस बात की कोई पक्की जानकारी नहीं है कि सारे दहशतगर्द कहां चले गए। दावा ये किया जा रहा है कि इनमें से कुछ आतंकवादी तालिबान में शामिल हो गए जबकि कुछ दहशतगर्द पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में भी देखे गए। ये दहशतगर्द आगे चल कर कश्मीर घाटी में खूनखराबा कर सकते हैं।
इन आतंकियों की बगराम जेल से रिहाई के बाद भारत के लिए खतरा अब बढ़ गया है। जेल से बाहर निकले इन आतंकियों में आईएसआईएस (खुरासान) का चीफ मौलवी अब्दुल्ला उर्फ असलम फारूकी भी शामिल है। फारूकी काबुल के गुरुद्वारा हर राय साहिब में हुए आतंकी हमले का मास्टरमाइंड था। मार्च 2020 में इस गुरुद्वारे में हुए आतंकी हमले में एक आत्मघाती हमलावर ने 25 सिख श्रद्धालुओं की जान ले ली थी। असलम फारूकी को अप्रैल में अफगान सुरक्षाबलों ने नांगरहार प्रांत से गिरफ्तार किया था। हक्कानी नेटवर्क से असलम फारूकी के करीबी रिश्ते हैं और उसका बेस भी पाकिस्तान में है। ऐसी खबरें हैं कि वह इस वक्त पाकिस्तान में अपने अड्डे पर लौट गया है।
पता ये भी चला है कि बगराम की जेल में तहरीक-ए-तालिबान का सरगना फकीर मोहम्मद भी कैद था और 15 अगस्त के बाद वो भी जेल से निकल गया। इसी तरह वकास महसूद, हमज़ा महसूद, ज़रकावी महसूद, जैयतुल्ला महसूद, कारी हमीदुल्ला, हमीद महसूद और मजहर महसूद जैसे दहशतगर्द भी अब आजाद घूम रहे हैं। बगराम जेल में जैश-ए-मोहम्मद के भी कई दहशतगर्द बंद थे लेकिन अब वो दोबारा पीओके पहुंच गए हैं। इनमें एक आतंकी वकार था जो बगराम जेल से सीधे जब पीओके पहुंचा तो उसकी वापसी पर उसके साथिय़ों ने हवा में फायरिंग करते हुए जश्न मनाया ।
इस्लामिक स्टेट ( ISIS) की मोस्ट वांटेड महिला आतंकवादी आफिया सिद्दीकी भी इसी जेल में कैद थी और अब वो भी आजाद है। कई हजार कैदी जब बगराम जेल से बाहर निकले तो उन्हें आगे का रास्ता दिखाने वाले तालिबान के लड़ाके ही थे। कई दहशतगर्दों को तो खुद तालिबान के लड़ाके पाकिस्तान सरहद तक छोड़कर आए। ऐसी भी खबरें हैं कि कई ऐसे आतंकवादी भी थे जिन्होंने जेल से रिहा होने की खुशी में तालिबान के लड़ाकों का हाथ चूम लिया।
रविवार को तालिबान कमांडर्स ने पाकिस्तानी और तुर्की के मीडिया रिपोर्टर्स को बगराम जेल में दाखिल होने की इजाजत दी। तुर्की के एक रिपोर्टर ने कहा- जेल छोडने से पहले अफगान सुरक्षाकर्मियों ने सभी कोठरियों पर ताले जड़ दिए थे। जेल के सभी दरवाजे बंद कर दिए गए थे। सुरक्षाकर्मी जब हमगराम जेल से चले गए तब कुछ कैदी जेल तोड़कर निकल भागे और बाकी कैदियों को तालिबान ने आजाद कर दिया।
अमेरिकी सेना का बगराम एयर बेस काबुल से कोई पच्चीस किलोमीटर दूर है। यह एयर बेस हजारों एकड़ में फैला है। पत्रकार जब पहली बार कैमरे के साथ इस जेल के अंदर गए तो वहां का नज़ारा देख कर चौक गए। अमेरिकी नियंत्रण के समय बगराम जेल में छह से सात हजार कैदियों के लिए चौबीसों घंटे सुरक्षा व्यवस्था थी। इस जेल में ज्यादातर आतंकवादी ही कैद थे। लेकिन अब यह जेल खाली है। जेल परिसर के अंदर इस वक्त सिर्फ कुछ तालिबान कमांडरों की रिहाइश है।
अमेरिकी सेना ने इस जेल को दो हिस्सों में बांट रखा था- एक हिस्सा आम कैदियों के लिए था जबकि दूसरा हिस्सा आइसोलेशन वार्ड था, जिसमें खूंखार आतंकवादियों को रखा जाता था। बगराम बेस की जेल को आमतौर पर अफगानिस्तान का ग्वांतानामो बे कहा जाता था। यहां हर खूंखार आतंकी के लिए छोटे-छोटे सेल थे। एक बड़े हॉल में 30 आतंकियों को कैद रखा जाता था।
इस जेल में 84 वॉच टावर (बुर्ज़) थे जिन पर अमेरिकी सेना के स्नाइपर्स तैनात थे। 2 जुलाई को अमेरिकी सेना चुपके से बगराम जेल छोड़कर निकल गई। अमेरिकी सेना ने बगराम छोड़ने से पहले वहां के एयर बेस को निष्क्रिय कर दिया था। उन्होंने वहां की पावर सप्लाई काट दी। इतना ही नहीं अमेरिकी सेना ने इसकी कोई सूचना अफगान सुरक्षा बलों को भी नहीं दी ताकि वो वैकल्पिक इंतजाम कर सकें। अफगान सुरक्षा बलों ने करीब एक महीने तक इस जेल की पहरेदारी की और जब तालिबान के लड़ाके पहुंचे तो जान बचाने के लिए जेल से भाग गए ।
बगराम जेल के अंदर एक बड़ा कंट्रोल रूम था जहां से वीडियो कैमरों के जरिए कैदियों पर चौबीसों घंटे नजर रखी जाती थी। हर सेल और हॉल की छत पर लोहे की जालियां लगी थी जिनसे अमेरिकी सैनिक चौबीसों घंटे कैदियों पर नज़र रखते थे। 15 अगस्त को जब तालिबान ने काबुल में राष्ट्रपति के महल पर कब्जा कर लिया तो अफगान सैनिक बगराम जेल से भाग गए । जेल से भागने से पहले सैनिकों ने सारे दरवाजे बंद कर दिए। उस समय इस जेल में करीब 5 हजार कैदी थे। इन कैदियों में कई तो भाग गए जबकि बाकी कैदियों को तालिबान ने आजाद कर दिया।
यहां गौर करनेवाली बात ये है कि 9/11 के आतंकवादी हमलों के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपनी फौज इसलिए भेजी थी कि वो अलकायदा के नेटवर्क को नेस्तनाबूद करना चाहता था। अमेरिकी सेना और उसकी खुफिया एजेन्सी ने दुनिया भर से अलकायदा के आतंकियों को पकड़ने में अपना काफी समय और मैनपावर का उपयोग किया था। कई आतंकियों को क्यूबा के पास ग्वांतानामो बे जेल भेज दिया गया जबकि बाकी को बगराम जेल में रखा गया था। अब बगराम जेल से वो कैदी भाग निकले हैं जिनको पकड़ने में अमेरिका ने काफी दिमाग लगाया था और कड़ी मेहनत की थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब फिर से अलकायदा तंज़ीम सक्रिय हो जाएगी? क्या इस्लामिक स्टेट फिर से उठ खड़ा होगा? इन सवालों के जवाब मिलने अभी बाकी हैं।
भारत के लिए बड़ा खतरा ये है कि पाकिस्तान के टुकड़ों पर पलने वाले लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-झंगवी के दहशतगर्द अफगानिस्तान की जेलों से रिहा कर दिए गए हैं। क्या ये आतंकी कश्मीर और भारत के अन्य हिस्सों में सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करेंगे? जाहिर है कि आईएसआई और पाकिस्तानी फौज इनका इस्तेमाल अब भारत के खिलाफ करने की पूरी कोशिश करेगी। दूसरी तरफ अमेरिकी खुफिया विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि चीन बगराम एयर बेस पर कब्जा करने की फिराक में है। अगर यह एयरबेस चीन के कब्जे में आ गया तो पाकिस्तान इस एय़रबेस का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करना चाहेगा क्योंकि कश्मीर की नियंत्रण रेखा से इस एयरबेस की दूरी महज 460 किलोमीटर है।
Bagram prison: How release of terrorists by Taliban can cause troubles for India
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Monday night, we showed, for the first time ever on Indian television, visuals inside the Bagram prison near Kabul, that held several thousand terrorists during the last 20 years. The doors of the prison at Pul-e-Charkhi were opened after Taliban swept to power across Afghanistan by August 15.There were dreaded terrorists from ISIS(K), Al Qaeda, Jaish-e-Mohammed, Lashkar-e-Taiba, Lashkar-e-Jhangvi and Tehreek-i-Taliban inside the prison.
Taliban fighters freed all these terrorists from the prison. They included 14 youths from Kerala who had wanted to join the Islamic State in Iraq, but were arrested by Afghan security forces. These youths were handed over to US army, who kept them captive inside Bagram prison. After the Taliban took over, all these 14 Keralite youths are now missing. There is no concrete information about terrorists who were freed from jail. There are reports that some of them have joined Taliban ranks, while some other terrorists were seen in Pakistan Occupied Kashmir, ready to cross over to the Valley to cause mayhem.
India faces high risks after the release of these terrorists. Among those who escaped include ISIS(Khorasan) chief Moulvi Abdullah alias Aslam Farooqui, mastermind of the infamous terror attack on Gurdwara Har Rai Sahib in Kabul in which 25 Sikh devotees were killed by a suicide bomber in March 2020. Aslam Farooqui was arrested on April 4, 2020, in Nangarhar province by Afghan security forces. Aslam Farooqui, who has close links with Haqqani network, has his base inside Pakistan and he has reportedly returned to his base after escape.
Among those released from Bagram prison include Tereek-e-Taliban chief Faqir Mohammed. He, along with other terrorists Waqas Mehsud, Hamza Mehsud, Zarkawi Mehsud, Zaitullah Mehsud, Qari Hamidullah, Hamid Mehsud and Mazhar Mehsud, are now free. There were also several Jaish terrorists in Bagram jail. They are now back in Pakistan Occupied Kashmir. Among them was terrorist Waqar, who was welcomed with gunfire, when he returned to POK, straight from Bagram air base.
Islamic State female terrorist Aafia Siddiqui is also free. She was help captive in Bagram prison. In several cases, Taliban fighters personally escorted many of these terrorists right up to the Pakistan border. There were reports of several dreaded terrorists kissing the hand of Taliban fighters, after release.
Pakistani and Turkish media reporters were allowed access into Bagram prison by Taliban commanders on Sunday. One Turkish reporter said, former Afghan jail warders had closed all the gates and doors of the jail, before leaving their posts on August 15. Several terrorists broke free and escaped, while the rest were released by Taliban.
Bagram air base set up by the US army is 25 km from Kabul, spread over thousands of acres. When reporters walked inside the jail for the first time with cameras, the visuals were astonishing. There was round-the-clock security to guard six to seven thousand inmates, mostly terrorists. The prison is now vacant. Only a few Taliban commanders are staying inside the complex.
The US army had divided the prison into two parts – one, was for common prisoners, while the other had isolation wards for dreaded terrorists. The Pul-e-Charkhi prison at Bagram base was commonly known as Afghanistan’s Guantanamo Bay. There was small cells for each dreaded terrorist and there were halls in which 30 terrorists were kept captive.
The prison had 84 watch towers manned by snipers of US army. On July 2, American troops quietly left the Bagram prison, when they dismantled their air base. They disconnected power supply and left, without informing the Afghan security forces for making alternative arrangements. Afghan forces guarded the prison for one month, and they too abandoned the jail, when Taliban fighters reached Bagram.
There was a large control room inside Bagram prison from where round-the-clock surveillance was being kept on prisoners through video cameras. On the roof of every cell and hall were iron nets, from which US troops guarded the prisoners round-the-clock. On August 15, when Taliban fighters occupied the Afghan presidential palace, Afghan troops abandoned the Bagram prison and locked all doors and gates. There were nearly 5,000 inmates inside the jail at that time. Several of them escaped, while the Taliban freed the rest.
It is pertinent to note here that after the 9/11 terror attacks on America, the US army and intelligence invested much of its time and men on nabbing Al Qaeda terrorists across the globe. Many were sent to Guantanamo Bay near Cuba, while the remaining were held captive in Bagram prison. With Al Qaeda terrorists now free, the question arises: Will there be a resurrection of Al Qaeda? Will the Islamic State revive? These questions beg answers.
For India, there are multiple risks. Dreaded Jaish-e-Mohammed, Lashkar-e-Taiba and Lashkar-e-Jhangvi terrorists have been freed from Bagram base. Will they pose dangers for Indian security in Kashmir and the rest of India? The ISI and Pakistani security agencies are bound to use these terrorists against India. Already, US intelligence experts have predicted that China has its eyes on Bagram air base. If Taliban allows Chinese troops to enter Bagram, Pakistan is bound to use this air base which is hardly 460 km away from our Line of Control in Kashmir.
काबुल में पाकिस्तान की कठपुतली सरकार
अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार उन आतंकी चेहरों से भरी है जिन्हें अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने ‘मोस्ट वांटेड’ घोषित कर रखा है। आतंक के ये चेहरे अब अफगानिस्तान की सरकार में मंत्री पद संभालने की तैयारी में हैं। लेकिन सही मायने में देखा जाए तो यह सरकार पाकिस्तान चलाएगा। पाकिस्तान अपने ब्यूरोक्रैट्स को भेजकर नई तालिबान सरकार को शासन चलाने में मदद करेगा।
यह खुलासा किसी और ने नहीं बल्कि पाकिस्तान के वित्त मंत्री शौकत तरीन ने संसद की स्टैंडिंग कमेटी को संबोधित करते हुए किया। तरिन ने कहा, ‘अफगानिस्तान में कई विभागों को चलाने के लिए पाकिस्तान से लोगों को भेजा जा सकता है’। तारीन ने यह भी कहा कि पाकिस्तान अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तानी रुपये में व्यापार करेगा, क्योंकि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के पास अमेरिकी डॉलर की भारी कमी है। अफगानिस्तान में पिछले शासन के दौरान, अफगानी मुद्रा पाकिस्तानी रुपये की तुलना में मजबूत थी, लेकिन अमेरिकी सैनिकों के जाने के बाद अफगानी मुद्रा निचले स्तर पर पहुंच गई है, और पाकिस्तान इस आर्थिक संकट का फायदा उठाने की पूरी कोशिश करेगा।
वित्त मंत्री शौकत तरीन के इस बयान को लेकर जब पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी से पूछा गया तो उन्होंने कहा- हम अफगानिस्तान को ‘तन्हा’ कैसे छोड़ सकते हैं? वहीं पाकिस्तान के गृह मंत्री शेख राशिद ने कहा, ‘तालिबान हमारे दोस्त हैं, इसमें छिपाने की क्या बात है?’
पहले से ही ऐसी खबरें हैं कि पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी आईएसआई ने अफगानिस्तान की पिछली सरकार द्वारा जमा किए गए अधिकांश गोपनीय डेटा को अपने कब्जे में ले लिया है। काबुल में पाकिस्तान से मानवीय सहायता पहुंचाने वाले तीन सी-130 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट गोपनीय दस्तावेजों को लेकर वापस रवाना हुए हैं। इनमें खासतौर से अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय से जुड़े गोपनीय दस्तावेज हैं। भारत की सुरक्षा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि आईएसआई इन गोपनीय दस्तावेजों का अध्ययन कर इसे समझेगी और इसका इस्तेमाल अपने स्वार्थ के लिए करेगी। अब ये अहम डेटा कई खुफिया सोर्स को खतरे में डाल सकते हैं जिन्होंने अफगानिस्तान में काम किया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक डेटा हासिल करने के इस पूरे ऑपरेशन को काबुल में पाकिस्तान के राजदूत मंसूर अहमद ने को-ऑर्डिनेट किया था।
पिछले 20 वर्षों में अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य कार्रवाई के दौरान पाकिस्तान की आईएसआई तालिबान के नेताओं और लड़ाकों को अपने यहां पनाह दे रही थी और उनकी मदद कर रही थी। अब सारे भेद खुल चुके हैं। पाकिस्तान की आईएसआई के डीजी फैज हमीद ने तालिबान के विभिन्न गुटों को एकजुट करने के लिए अचानक काबुल का दौरा किया। पाकिस्तानी एयरफोर्स के विमानों ने पंजशीर घाटी में अहमद मसूद के ठिकानों पर हमला किया और तालिबान लड़ाकों को घाटी में दाखिल होने में मदद की। अब जबकि तालिबान की सरकार बन गई है, पाकिस्तानी नेता और मंत्री खुले तौर पर कह रहे हैं कि वे अपने लोगों को भेजकर शासन चलाने में तालिबान की मदद करेंगे।
पहले से ही पाकिस्तान के मिलिट्री एयरक्राफ्ट कंधार, खोस्त और काबुल में मानवीय सहायता प्रदान करने की आड़ में लैंड कर रहे हैं। लेकिन उनका असली मकसद कुछ और है। पाकिस्तान के मिलिट्री एडवाइजर तालिबान को सशस्त्र सेना के तौर पर स्थापित करने में मदद कर रहे हैं। इतना ही नहीं तालिबान के लड़ाके अब सीधे पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों से आदेश ले रहे हैं।
पाकिस्तान में चमन बॉर्डर से कंधार की दूरी मुश्किल से 115 किमी है। सिर्फ दो घंटे में ट्रक से सामान पहुंच जाता है। जितनी देर में ट्रक सामान लेकर एयरपोर्ट पहुंचते हैं, फिर उन्हें एयरक्राफ्ट में लोड और अनलोड किया जाता है, उतनी देर में तो ट्रक कंधार पहुंच जाएंगे। सवाल ये है कि पाकिस्तान अपने मिलिट्री ट्रांसपोर्ट विमानों को कंधार क्यों भेज रहा है? इसी तरह अफगानिस्तान के खोस्त प्रोविंस से पाकिस्तान बॉर्डर की दूरी सिर्फ 33 किलोमीटर है। मुश्किल से एक घंटे में खाने-पीने का सामान और जरूरी दवाएं पहुंचाई जा सकती है। फिर भी मिलिट्री विमानों का उपयोग किया जा रहा है।
ऐसी खबरें हैं कि इन मिलिट्री विमानों में अमेरिका में बने हथियार और अन्य अत्याधुनिक सामान तस्करी कर पाकिस्तान लाए जा रहे हैं। गुरुवार की रात ‘आज की बात’ शो में मैंने दिखाया था कि कैसे कराची, लाहौर, पेशावर और गुजरांवाला में दुकानदार अमेरिका में बने हथियार और सामान को ‘माल-ए-गनीमत’ के रूप में खुलेआम बेच रहे हैं। तालिबान द्वारा हथियाए गए अमेरिकी हथियारों की तस्करी के बारे में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई अच्छी तरह से वाकिफ है।
इस बीच पंजशीर घाटी से बुरी खबर आई है जहां तालिबान ने रसद सप्लाई के सारे रूट बंद कर दिए हैं। लाखों लोग भूख-प्यास से तड़प रहे हैं। हालांकि अफगान नेशनल रेजिस्टेंस फोर्स का दावा है कि पंजशीर के 60 प्रतिशत हिस्से पर अभी-भी उनका कब्जा है। तालिबान की मदद करते हुए पाकिस्तान एयरफोर्स के विमान अभी-भी घाटी के अंदर अहमद मसूद के ठिकानों पर बमबारी कर रहे हैं।
पंजशीर घाटी से हजारों लोग अपना सामान बांधकर, घरबार छोड़कर भागने को मजबूर हो गए हैं। वहां वाहनों की लंबी कतारें लगी हैं। तालिबान के लड़ाकों ने उनके निकलने के रास्ते को रोक दिया है। इस बीच शुक्रवार को पंजशीर से एक बुरी खबर आई कि तालिबान ने अमरुल्ला सालेह के भाई रोहुल्लाह सालेह को प्रताड़ित करने के बाद उसकी हत्या कर दी।
चाहे वो कंधार हो, काबुल या फिर पंजशीर घाटी, अफगानिस्तान के लोग बेहद हैरान-परेशान हैं। उनके पास ना खाना है, ना पानी। न दवाएं हैं और ना अन्य जरूरी चीजें। बैंक बंद हैं, लोग एटीएम से पैसे नहीं निकाल पा रहे हैं। ट्रांसपोर्ट बंद हैं। दुकानों में सामान नहीं है। चारों ओर बदहाली है, लोगों की जेब में पैसे नहीं हैं। घर के बाहर खौफ का माहौल है। लोग अपने घरों से बाहर निकलने से डरते हैं कि कहीं ऐसा न हो कि उन्हें तालिबान की बर्बरता का सामना करना पड़े।
वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान घड़ियाली आंसू बहा रहा है। वह कह रहा है कि उसे अफगानिस्तान के लोगों और वहां की अर्थव्यवस्था की चिंता है। लेकिन पाकिस्तान की अपनी सूरत-ए-हाल क्या है? वहां की अर्थव्यवस्था का क्या हाल है? वहां कितनी बेबसी है ये सबको पता है। हमारे यहां कहावत है ‘घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने’। पाकिस्तान की अपनी अर्थव्यवस्था अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है और अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को सुधारने की प्लानिंग कर रहा है। जिस पाकिस्तान में अपनी सरकार ठीक से नहीं चलती, रोज झगड़े होते हैं, वहां के मंत्री अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार चलाने के दावे कर रहे हैं।
असलियत ये है कि आईएसआई और पाकिस्तान की फौज ने मिलकर तालिबान को काबुल की सत्ता तक पहुंचा दिया है। पाकिस्तान की एय़र फोर्स ने तालिबान को पंजशीर में दाखिल होने के लिए कवर दिया। तालिबान की नई सरकार में हक्कानी नेटवर्क का दबदबा है। दुनिया के जाने-माने दहशतगर्द तालिबान की सरकार में मंत्री हैं। आईएसआई प्रमुख ने हक्कानी आतंकी नेटवर्क के प्रमुख को गृह मंत्री बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है। दोहा में तालिबान ने महिलाओं को मानवाधिकार और समान अधिकार देने के जो वादे किए थे, उनसे वो मुकर गया है। पूरी दुनिया इन हरकतों को देख रही है। अब देखना ये है कि अमेरिका और उसके नाटो (NATO) सहयोगी कब तक हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहेंगे।
Pakistan’s puppet government in Kabul
The Taliban government in Afghanistan, packed with terrorists declared as ‘most wanted’ by the US and UN, may have Afghan faces as ministers, but the government will actually be run by Pakistani advisers. Pakistan will be handholding the new Taliban government by sending its bureaucrats to help in governance.
This was revealed by none other than Pakistan finance minister Shaukat Tarin, while addressing the Senate Standing Committee. Tarin said, “people could be sent from Pakistan to run various affairs in Afghanistan”. Tarin also said that Pakistan will trade with Afghanistan in Pakistani rupees, as there is a severe crunch of US dollars under Taliban regime. During the previous Afghan regime, the Afghani currency was stronger than the Pakistani rupee, but after the US troops left, the Afghani currency has hit a new low, and Pakistan will try to take advantage of the economic crisis.
Asked about Shaukat Tarin’s comments, Pakistan’s Information Minister Fawad Chaudhry said, we cannot leave Taliban ‘tanha’ (alone), while Interior Minister Sheikh Rashid said, Taliban are our friends. “Why should we hide this fact?”, he added.
Already, there are media reports that Pakistan’s spy agency ISI has taken away most of the confidential data that were collected by the previous Afghan regime. Three C-130 army transport aircraft that delivered humanitarian aid from Pakistan in Kabul, left carrying bag loads of secret, classified Afghan documents, particularly from the National Directorate of Security. These were in the form of printed secret documents, hard disks and digital data. Indian security sources say, the ISI will decipher these classified documents and use it for its own ends. These valuable data can put several intelligence sources who had worked in Afghanistan at risk. The entire operation, according to media reports, was coordinated by Pakistan ambassador in Kabul Mansoor Ahmed.
Pakistan’s ISI had been sheltering and aiding Taliban leaders and fighters, when they were hiding for the last 20 years. The cat is now out of the bag. Pakistan ISI D-G Faiz Hameed suddenly visited Kabul to bring different Taliban groups on a single page, for forming a government. Pakistani air force planes strafed Ahmed Massoud’s position inside Panjshir valley and helped Taliban fighters to enter. Now that the Taliban government has been formed, Pakistani leaders and ministers are openly saying that their country would help Taliban in governance by sending Pakistanis to run departments.
Already, Pakistani military aircraft are landing in Kandahar, Khost and Kabul frequently, ostensibly in the guise of providing humanitarian assistance. But the real objective is different. Pakistani military advisers are helping Taliban to set up a full-fledged well-armed army. Taliban fighters are now taking orders directly from Pakistani army officials.
The distance from Chaman border outpost in Pakistan to Kandahar is hardly 115 km, and humanitarian aid can easily be sent through trucks by road in roughly two hours. Then why are Pakistani army aircraft being used to cover a distance of 115 km? Similarly, the distance between Pakistan border and Khost in Afghanistan is hardly 33 km. Yet, military aircraft are being used to airlift humanitarian aid like food and medicines.
There are reports that US made weapons, and other ultra-modern accessories are being smuggled to Pakistan in these military aircraft. On Thursday night, in ‘Aaj Ki Baat’ show, I had shown how shopkeepers in Karachi, Lahore, Peshawar and Gujranwala are openly selling US made weapons and accessories as “maal-e-ganimat” (war booty). Pakistan army and ISI are well aware about smuggling of US weapons captured by Taliban.
Meanwhile, bad news have come from Panjshir valley, where lakhs of people are starving after all food supply routes have been closed by Taliban. The Afghan national resistance force claims it still controls 60 per cent of the valley. Pakistan air force aircraft are still being used to bomb Ahmed Massoud’s positions inside the valley, in order to give the Taliban an upper hand.
There are long queues of vehicles, with families carrying their belongings, waiting to flee from the valley, but Taliban fighters have stopped their exit routes. On Friday, news came about the brutal assassination of resistance leader Amrullah Saleh’s brother Rohullah Saleh, who was tortured before he was shot dead by Taliban fighters.
The common man in Afghanistan is facing severe shortage of food, medicines and other essential commodities. Banks are closed and people are unable to withdraw cash from ATMs. Shops have run out of groceries, medicines and other essentials. The man on the street in Kabul and other Afghan cities is penniless. People fear to step out of their homes lest they face brutalities from Taliban.
On the other hand, the leaders of Pakistan are shedding crocodile tears over the state of Afghanistan’s economy. But what is the state of Pakistan’s economy? Pakistani leaders are living in a world of make believe. There is a proverb: ‘If wishes were horses, beggars would ride’. In Hindi, it is “ghar me nahin daane, amma chali bhunaane”. Pakistan’s own economy is in a precarious state and it is planning to improve Afghan economy.
Already Pakistan has managed to install Taliban as the new rulers of Afghanistan. Its air force helped Taliban to march into Panjshir valley. Its ISI chief managed to install the chief of Haqqani terror network as the home minister. Taliban has failed to implement its promise made in Doha for ensuring human rights and equal rights for women. The world is watching all these developments. It is now upon the United States and its NATO allies, what next steps they intend to take.