भारत को तालिबान से बातचीत क्यों करनी चाहिए ?
अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच चल रही लड़ाई की वजह से लगभग पूरा अफगानिस्तान इस वक्त मैदान-ए-जंग में तब्दील होता जा रहा है। इंडिया टीवी के डिफेंस एडिटर मनीष प्रसाद इस समय कैमरापर्सन बलराम यादव के साथ अफगानिस्तान में हैं, और वे वहां से अमेरिका और नाटो फोर्सेज के जाने के बाद हो रही इस जंग की पल-पल की जानकारी भेज रहे हैं। मंगलवार की रात काबुल, कंधार, हेरात, जलालाबाद, मजार-ए-शरीफ और गजनी समेत अफगानिस्तान के तमाम शहरों में लोग सड़कों पर निकल आए और अफगान सरकार के प्रति एकजुटता दिखाते हुए ‘अल्लाहू अकबर’ के नारे लगाए।
दहशत का माहौल बनाने और लोगों की आवाज को खामोश करने के लिए तालिबान ने काबुल में कार्यवाहक रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह मोहम्मदी के घर पर कार बम से अटैक कर दिया। मोहम्मदी अपने घर पर हुए इस हमले में बाल-बाल बच गए। रक्षा मंत्री के घर पर हमला करके तालिबान ने काबुल के सबसे सुरक्षित इलाके में अपनी मौजदूगी का सबूत दे दिया। देर रात तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने इस आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी ली।
बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया था कि किस तरह काबुल में तालिबान द्वारा किए गए विस्फोट के बाद अफगान सुरक्षा बलों ने जवाबी हमले किए। तालिबान ने काबुल में रक्षा मंत्री के घर पर हमला सोची समझी रणनीति के तहत किया था। दरअसल, बिस्मिल्लाह खान मोहम्मदी ने अफगानिस्तान के लोगों से अपील की थी कि तालिबान के खिलाफ जो जंग चल रही है उसमें अफगान सुरक्षा बलों का हौसला बढ़ाने के लिए सभी लोग रात 9 बजे घरों से बाहर निकले और एक साथ ‘अल्लाहु अकबर’ के नारे लगाएं। इसके जवाब में तालिबान ने मंत्री के घर पर ही हमला बोल दिया। एक तरफ तालिबान हमलावरों से मुठभेड़ चल रही थी, तो दूसरी तरफ हजारों अफगान सड़कों पर उतर आए थे और नारे लगा रहे थे। इन लोगों में अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह भी शामिल थे।
मनीष प्रसाद ने बताया कि हमले को तालिबान के 4 हमलावरों ने अंजाम दिया, जिनमें से एक ने खुद को कार धमाके में उड़ा लिया, और बाकी के 3 ने अफगान सुरक्षा बलों पर गोलीबारी की। इसके बाद हुई मुठभेड़ में तीनों हमलावरों और 4 नागरिकों की जान चली गई और 20 अन्य घायल हो गए। विस्फोट के बाद लगी आग में अफगान सांसद मरियम कुफी का घर जलकर खाक हो गया। उनके घर में मौजूद बॉडीगार्ड मारा गया। मरियम कुफी ने सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगाई थी, जबकि उस समय वह सुरक्षा बलों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए बाहर निकलकर नारे लगा रही थीं। हमले से बेपरवाह हजारों अफगान नागरिक मौजूदा शासन के साथ एकजुटता दिखाने के लिए काबुल की सड़कों पर उतर आए थे। लोग पैदल और गाड़ियों में अफगानिस्तान का झंडा लेकर घरों से निकल पड़े और हर गली, चौक, चौराहे पर ‘अल्लाहु अकबर’ की गूंज सुनाई देने लगी।
मंगलवार को हेलमंद, गजनी और हेरात सूबों में तालिबान और अफगान सुरक्षाबलों के बीच भीषण लड़ाई हुई। पिछले 24 घंटों में अफगान सेना के हवाई हमलों में लगभग 200 तालिबान लड़ाके मारे गए हैं। वहीं, समांगन प्रांत में भी करीब 40 तालिबान लड़ाके मारे गए। तालिबान ने हेरात में भारत द्वारा बनाए गए सलमा डैम को नुकसान पहुंचाने के इरादे से हमला किया था, लेकिन अफगान सुरक्षा बलों ने इसे नाकाम कर दिया।
हमारे डिफेंस एडिटर मनीष प्रसाद और कैमरापर्सन बलराम यादव ने बुधवार को पूरा दिन इस लड़ाई को देखने के लिए अफगान सुरक्षा बलों के साथ बिताया। अफगान सेना अब हाईटेक हथियारों से लैस है और वह तालिबान की गोली का जवाब गोली से और रॉकेट का जवाब रॉकेट से दे रही है। इंडिया टीवी की टीम उन जगहों पर भी गई जहां अफगान आर्मी के कमांडो की ट्रेनिंग चल रही है। ट्रेनिंग सेंटर्स में सभी कमांडो को बताया जा रहा था कि कैसे किसी इलाके को सैनिटाइज करना है, तालिबान का खात्मा करना है और जहां-जहां तालिबान ने कब्जा किया है उन इलाकों को दोबारा कैसे हासिल करना है।
मनीष प्रसाद ने बताया कि इस वक्त अफगानिस्तान के दक्षिणी और पश्चिमी हिस्सों में तालिबान का दबदबा है। उसके लड़ाके वहां मौजूद हैं और उन्होंने एक बड़े इलाके पर कब्जा कर रखा है, लेकिन अफगान सेना इलाके पर दोबारा कब्जे के लिए लड़ रही है। अफगान फोर्सेज का दावा है कि हेलमंड प्रोविंस की राजधानी लश्कर गाह में तालिबान को काफी नुकसान हुआ। यहां हुई लड़ाई में तालिबान के कई सीनियर कमांडर मारे गए और हवाई हमलों में उनके हथियारों और गोला-बारूद का एक बड़ा डिपो भी उड़ा दिया गया। दक्षिणी अफगानिस्तान में अफगान सेना के कमांडो पूरे ऑपरेशन को लीड कर रहे हैं और पिछले 24 घंटों में यहां तालिबान के 90 से ज्यादा लड़ाके मारे गए हैं। इसके अलावा तालिबान को सपोर्ट करने आए पाकिस्तान के आतंकवादियों का भी सफाया हो रहा है।
अफगान कमांडो के हमलों से बचने के लिए तालिबान लड़ाके आम नागरिकों को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। तालिबान के ये लड़ाके दुकानों, घरों और बाजारों के अंदर पोजिशन लेकर आम लोगों को बंधक बना रहे हैं, ताकि अफगान फोर्सेज के हमलों से बचाव किया जा सके। मनीष प्रसाद ने अफगानिस्तान की सेना के जिन कमांडरों से बात की, उन्होंने कहा कि उनका मकसद बिल्कुल साफ है: एक गोली, एक तालिबान।
इस समय अफगानिस्तान की स्थिति काफी जटिल और उलझी हुई है। इसमें कई सारे बड़े खिलाड़ी हैं जिनमें अमेरिका, चीन पाकिस्तान और रूस शामिल हैं। यही वजह है कि भारत को इस मामले में हर कदम फूंक-फूंककर रखना पड़ रहा है। अमेरिका चाहता है कि भारत अपनी फौज अफगानिस्तान में भेज दे। उसने 2 दशकों के बाद अपनी आर्मी तो वापस बुला ली और चाहता है कि भारत इस जंग में शामिल हो। भारत की नीति शुरू से ही साफ रही है कि वह किसी भी हालत में अपनी सेना अफगानिस्तान में नहीं भेजेगा। भारत ने पहले भी अफगानिस्तान की फौज को ट्रेनिंग दी है, साजो-सामान दिया है, गोला-बारूद दिया है और ये आगे भी चलता रहेगा।
भारतीय रणनीतिकार इस बात को समझते हैं कि अमेरिका अफगनिस्तान में भारत का ‘इस्तेमाल’ करने की कोशिश कर रहा है, और वे इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं कि अमेरिका ने अपने दूत जमलय खलीलजाद द्वारा शुरू की गई तालिबान के साथ हुई शांति वार्ता से भारत को दूर रखा था। अगर अमेरिका की नीयत साफ होती तो झगड़ा सुलझाने की कोशिश में भारत की अहम भूमिका हो सकती थी। ऐसे में भारत अफगानिस्तान मुद्दे को सुलझाने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकता था।
जैसे अमेरिका चाहता है कि अफगानिस्तान में शांति बनाने की कोशिश में भारत उसकी मदद करे, वैसे ही पाकिस्तान चाहता है कि चीन उसकी मदद करे। वहीं, चीन को डर है कि अगर काबुल में तालिबान का कब्जा हो गया तो चीन का शिनचियांग प्रोविंस उसके हाथ से निकल जाएगा। बड़े लंबे वक्त से वहां के उइगर मुसलमान अपना अलग मुल्क बनाना चाहते हैं। चीन को लगता है कि अगर तालिबान काबुल में आ गया तो उइगर मुसलमान जोश में आ जाएंगे और चीन में जेहाद छेड़ देंगे। इसी डर की वजह से चीन ने तालिबान के नेताओं को अपने यहां बुलाकर उनसे वादा लिया कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल चीन के खिलाफ नहीं होगा और वे उइगर जिहाद को सपोर्ट नहीं करेंगे।
पाकिस्तान की समस्या थोड़ी अलग है, और वह समस्या ये है कि तालिबान उसी की खड़ी की हुई मुसीबत है। बेनजीर भुट्टो के शासनकाल में पाकिस्तान ने ही नब्बे के दशक के दौरान अफगानिस्तान पर कब्जा करने के लिए तालिबान के लड़ाकों को ट्रेनिंग दी थी, उनकी मदद की थी, उन्हें भड़काया था। पाकिस्तान अभी भी क्वेटा, बलूचिस्तान में तालिबान के बड़े मंत्रियों और और कमांडरों को पनाह दे रहा है, जिसे ‘क्वेटा शूरा’ के नाम से जाना जाता है। यह पाकिस्तान ही है जो अफगानिस्तान के अंदर हमले करने में हक्कानी की मदद कर रहा है। पाकिस्तान को डर है कि अगर तालिबान काबुल में सत्ता में आ जाता है तो वह पठान या पश्तून राजनीति के केंद्र पेशावर पर भी अपना दावा ठोक सकता है।
तालिबान बाहरी नहीं हैं, वे भी अफगान ही हैं लेकिन कट्टर हैं। ज्यादातर तालिबान पश्तून हैं, जो शरीयत कानून में यकीन रखते हैं और एक इस्लामी सल्तनत कायम करने का ख्वाब देखते हैं। पाकिस्तान ने पश्तूनों को तालिबानियों का साथ देने के लिए भेज दिया था, लेकिन मुश्किल तब हो गई जब अफगानिस्तान के लोगों ने पाकिस्तानी तालिबानियों को मार कर उनकी लाशें वापस पाकिस्तान भेज दीं। इसीलिए अब पाकिस्तान फंस गया है। वह न तो वापस भाग सकता है और न ही और पाकिस्तानियों को अफगानिस्तान भेज सकता है।
इस पूरे मामले में भारत का पक्ष बिल्कुल साफ है। हम जंग में कहीं नहीं हैं, न अफगानिस्तान की सरकार के साथ और न ही तालिबान के साथ। भारत अफगानिस्तान के लोगों के साथ है क्योंकि हमारा वहां के लोगों के साथ सदियों पुराना रिश्ता है। इसलिए भारत ने एक बात साफ कर दी है कि अफगानिस्तान में जंग से कोई रास्ता नहीं निकलेगा। कोई भी सरकार जबरदस्ती अफगानिस्तान के लोगों पर नहीं थोपी जा सकती। रास्ता सिर्फ बातचीत से ही निकल सकता है। बात करने से ही शांति स्थापित होगी, इसलिए बात करना जरूरी है। मुझे लगता है कि इसके लिए अगर भारत को तालिबान से भी बात करनी पड़े, तो करनी चाहिए। अफगानिस्तान में अमन बना रहे, इसी में भारत का हित है।
Why India must speak to the Taliban in Afghanistan
Almost the whole of Afghanistan is gradually turning into a war zone with the Afghan Defence Force fighting battles against Taliban. India TV Defence Editor Manish Prasad is presently in Afghanistan with cameraperson Balram Yadav, sending updates on the war that is raging after US and Nato forces left. On Tuesday night, thousands of Afghans came to the streets of Kabul, Kandahar, Herat, Jalalabad, Mazaar-e-Sharif and Ghazni, and shouted ‘Allahu Akbar’ slogans as a mark of solidarity towards the Afghan government.
The Taliban, in order to create a reign of terror, carried out car bomb attack in Kabul, near the house of acting Defence Minister Bismillah Mohammadi. The minister survived the attack on his compound in what is regarded as the most fortified locality of Kabul. Late in the night, the Taliban spokesperson Zabiullah Mujahid claimed responsibility for the suicide attack.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Wednesday night, we showed visuals of Afghan forces carrying out retaliatory attack after the blast carried out by Taliban inside Kabul. The attack on the Defence Minister’s compound was part of a well-coordinated Taliban strategy with the aim of striking terror among the residents of Kabul. It was Bismillah Khan Mohammadi who had appealed to people to come out of their homes and offices at 9 pm on Tuesday night and shout ‘Allahu Akbar’ slogan. The Taliban zeroed in on the minister’s residence, in retaliation. While encounter with Taliban attackers was going on, thousands of Afghans, undeterred, came to the streets and chanted slogans. Among them was Afghan vice president Amrullah Saleh.
Manish Prasad reported that there were four Taliban attackers, one of whom blowed himself up inside the vehicle, while the other three fired at Afghan forces. In the encounter that followed, the remaining three were killed, and four civilians lost their lives. Twenty others were injured. Afghan MP Maryam Kufi’s house was gutted in the fire that occurred after the blast. Her bodyguard was killed. Maryam Kufi appealed for help on social media, even though she was busy taking part in slogan shouting on the streets. Undeterred by the attack, thousands of Afghans came out on the streets of Kabul to express solidarity with the current regime. They came on foot, and in vehicles, carrying the Afghan flag, and were shouting ‘Allahu Akbar’.
On Tuesday, there was fierce fighting in Helmand, Ghazni and Herat provinces. Nearly 200 Taliban fighters have died in aerial attacks carried out by Afghan army during the last 24 hours. In Samangan province, nearly 40 Taliban fighters were killed. Afghan army foiled a Taliban attack to blow up the famous Salma dam, built by India in Afghanistan.
Our defence editor Manish Prasad and cameraperson Balram Yadav spent the whole day on Wednesday with Afghan security forces to witness the fighting that is going on. The Afghan forces are now better equipped with hi-tech weapons, and they are responding to Taliban attacks, bullet to bullet, rocket to rocket. India TV team also visited a centre where Afghan commandos were being trained how to sanitize an area, neutralize the enemy and recapture the locality.
Manish Prasad reports that the Taliban is presently in a strong position in southern and western parts of Afghanistan. They have captured a large territory, but the Afghan forces are fighting back to recapture. In an air strike on Lashkar Gah, capital of Helmand province, a large ammunition depot belonging to Taliban was blown up and several Taliban commanders were killed. Afghan army commandos are leading the operations in the south, killing more than 90 Taliban fighters during the last 24 hours. Pakistani jihadi elements, who have crossed the border to provide support to Taliban, are also being killed in large numbers.
Taliban fighters are using civilians as human shields to avoid attacks from Afghan commandos. Taliban fighters are taking shelter inside shops, homes and markets, taking civilians as hostages, to deflect attacks from Afghan forces. The Afghan army commanders, to whom Manish Prasad spoke, said, their only aim is: One bullet, One Taliban.
The Afghanistan situation, at the moment, seems to be very much complex and complicated. There are several key players: US, China, Pakistan and Russia. India has to walk through this diplomatic minefield, carefully. The US wants India to send its army to join the war inside Afghanistan. It withdrew its army after two decades and wants India to join the war. India’s policy has been clear from the beginning: It is not going to send its army to Afghanistan, but will continue to provide training and weapons to the Afghan forces.
Indian strategists feel that the US is trying “to use” India in Afghanistan, but they cannot overlook the fact that the US had kept India away from the peace talks that were initiated by its envoy Zalmay Kalilzad with the Taliban. Had the intentions of the US been honest, their strategists could have co-opted India into the talks that went on for several years. India could then have played a dominant role in resolving the Afghanistan issue.
On the other hand, Pakistan is leaning on its all-weather ally China for help in Afghan affairs. The Chinese planners are wary. They know that if the Taliban recaptures Kabul, the Muslim Uighur separatists will ensure that Xinjiang breaks away from China. These separatists will surely give a jihad call in Xinjiang. It was for this reason that the Chinese Foreign Minister Wang Yi invited a top Taliban delegation to China and extracted the promise from them that Afghan soil will not be used against China by Uighur Muslim separatists.
Pakistan’s own problem is a bit different. It was Pakistan during Benazir Bhutto’s regime, which had trained, aided and abetted Taliban forces to capture Afghanistan during the Nineties. It is Pakistan which is still providing shelter to the top Taliban ministers and commanders in Quetta, Baluchistan, popularly known as the “Quetta Shura”. It is Pakistan which is helping the Haqqanis in carrying out attacks inside Afghanistan. Pakistan fears that a resurgent Taliban, if it comes to power in Kabul, may lay claim over Peshawar, the nerve centre of Pathan or Pashtun politics.
The Taliban in Afghanistan are not outsiders. They are mostly Pashtun, who believe in medieval period’s fundamentalist Islamic Shariat code, with dreams of establishing an Islamic sultanate. Pakistan send Pashtuns from its own territory to Afghanistan, but in return, the Afghans have killed most of the Pakistanis and sent their bodies back home. Pakistan is, therefore, in a ‘Catch-22’ situation, it can neither withdraw, nor move ahead.
India’s policy is quite clear: We are not a party in this war, nor are we taking sides for and against the present Afghan regime or the Taliban. India stands with the Afghan people. We have centuries-old relationship with the Afghan people. That is why, India has said, war is not the way out of this imbroglio. Nobody can forcibly thrust a regime on the Afghan people. Dialogue is the only way out. Only dialogue can bring peace. I feel, if India has to negotiate with the Taliban, it must do so and must not close its doors. An Afghanistan at peace will be in India’s interest.
मोदी के सामने न कोई चुनौती है और न ही कोई दावेदार?
2024 के लोकसभा चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और अन्य दो राज्यों में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए दिल्ली के सियासी हलकों में रिश्ते और समीकरण बनाने की कोशिशें जारी है।
मंगलवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 17 विपक्षी दलों के नेताओं को ब्रेकफास्ट मीटिंग में बुलाया था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने इसमें शामिल नहीं होने का फैसला किया। राहुल की इस ब्रेकफास्ट मीटिंग में सिर्फ 15 पार्टियों के नेता शामिल हुए। बैठक के बाद राहुल अन्य सांसदों के साथ साइकिल पर सवार होकर संसद पहुंचे। ऐसा मीडिया की अटेंशन पाने के लिए किया गया ताकि तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा जा सके।
राहुल गांधी को जब भी लगता है उन्हें मोदी के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा मिल गया है, तो वह विपक्षी पार्टियों के नेताओं को चर्चा के लिए आमंत्रित करते हैं, हालांकि ऐसी बैठकों से कुछ भी ठोस नहीं निकल पाता। आजकल राहुल को लगता है कि वह पैगसस स्पाइवेयर के मुद्दे पर मोदी को घेर सकते हैं। इसी सवाल पर पिछले 2 हफ्ते से लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही ठप पड़ी हुई है क्योंकि विपक्षी दल कामकाज में लगातार बाधा पैदा कर रहे हैं। ब्रेकफास्ट मीटिंग में राहुल गांधी ने सभी नेताओं से कहा कि यदि सारी पार्टियां हाथ मिला लेंगी तो सरकार असहमति की आवाज को दबा नहीं पाएगी।
ब्रेकफास्ट मीटिंग में एनसीपी के प्रतिनिधि शामिल तो हुए, लेकिन दोपहर में उनकी पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार ने गृह मंत्री अमित शाह के साथ बंद कमरे में बैठक की। इस बीच राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने दिल्ली में शरद यादव से मुलाकात की। बाद में उन्होंने मीडिया से कहा कि बिहार में विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को उनके बेटे तेजस्वी यादव से हाथ मिला लेना चाहिए। तेजी से हो रहे इन घटनाक्रमों से एक सवाल उभरकर सामने आता है: क्या विपक्ष मोदी के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बना सकता है?
ब्रेकफास्ट मीटिंग में राहुल गांधी ने दावा किया कि लगभग 60 प्रतिशत भारतीय मतदाता विपक्षी दलों के साथ हैं और इन दलों के नेताओं को लोगों की आवाज उठानी चाहिए। राहुल ने कहा कि अगर हम एकजुट रहें तो सरकार हमारी आवाज को दबा नहीं सकती। ब्रेकफास्ट मीटिंग में विपक्षी दलों के करीब 100 सांसद शामिल हुए। बैठक में यह साफ था कि इनमें से अधिकांश क्षेत्रीय दल अपने खुद के एजेंडे पर चल रहे थे जबकि राहुल ने उन्हें 3 मुद्दों पर एकजुट होने की मांग की: किसानों का विरोध प्रदर्शन, पेगासस स्पाइवेयर विवाद और महंगाई। बैठक में भाग लेने वाली पार्टियों में तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना, द्रमुक, सीपीएम, सीपीआई, आरजेडी, समाजवादी पार्टी, जेएमएम, नेशनल कॉन्फ्रेंस, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, आरएसपी, केरल कांग्रेस (एम), एलजेडी और आरएसपी शामिल थीं।
राहुल गांधी की आदत है कि एक बार जो डायलॉग उन्हें पसंद आ जाता है, उस वह बार-बार दोहराते रहते हैं। मंगलवार को उन्होंने बार-बार कहा कि विपक्षी दल 60 प्रतिशत भारतीय मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और उन्हें एकजुट होना ही चाहिए। पिछले हफ्ते जब राहुल किसानों का मुद्दा उठाने के लिए अचानक ट्रैक्टर पर सवार होकर संसद के लिए निकल पड़े थे, तो खूब मीडिया अटेंशन मिला था। मंगलवार को एक ट्रक में भरकर साइकिलें लाई गईं और अन्य सांसदों के साथ राहुल गांधी साइकिल चलाकर संसद पहुंचे। बताने की जरूरत नहीं है कि यहां भी काफी मीडिया अटेंशन मिला।
संसद में अन्य विपक्षी दलों के साथ मिलकर कांग्रेस पैगसस विवाद की जांच के लिए दबाव डाल रही है। राहुल और उनके सलाहकारों को लगता है कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर वे विपक्षी पार्टियों को एकजुट कर सकते हैं, हालांकि अभी तक ऐसा कुछ नजर आ नहीं पाया है। राहुल को समझा दिया गया है कि अब जमाना बदल गया है और कांग्रेस अपने दम पर बीजेपी को लोकसभा चुनावों में नहीं हरा सकती। इसके लिए उन्हें अन्य पार्टियों से गठबंधन करना पड़ेगा और कांग्रेस को भी थोड़ा नीचे उतरना पड़ेगा।
राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस के दबदबे के दिन चले गए हैं। राहुल गांधी को यह कैलकुलेशन करके समझाया गया है कि यदि 38 पर्सेंट वोट लेकर बीजेपी 303 लोकसभा सीटें जीत सकती है और नरेंद्र मोदी 2-2 बार प्रधानमंत्री बन सकते हैं तो कांग्रेस भी वापसी कर सकती है। कांग्रेस को पिछले लोकसभा चुनावों में 20 फीसदी वोट मिले थे और अगर वह क्षेत्रीय दलों को साथ ले ले तो बात बन सकती है। लेकिन सच तो यह है कि सियासत यूं गणित के जोड़-घटाने से नहीं चलती।
हालांकि इस फॉर्मूले में कई सियासी दिक्कतें हैं जिन्हें ध्यान में रखना होगा। एक तो यह कि ममता बनर्जी जैसी सक्षम नेता, जो अपने दम पर 3-3 बार मुख्यमंत्री बनीं, कांग्रेस के पीछे-पीछे क्यों चलेंगी? राहुल गांधी को अपना नेता क्यों मानेंगी? दूसरी बात ये कि पिछले 7 सालों में नरेंद्र मोदी ने भारतीय राजनीति की दिशा और दशा दोनों बदल दी है। अब पुराने जमाने के फॉर्मूले नहीं चलते। आपको याद होगा कि पिछले लोकसभा चुनावों में अखिलेश यादव और मायावती ने ‘बबुआ’ और ‘बुआ’ बनकर हाथ मिलाया था, लेकिन यूपी में बीजेपी के बाजीगर के सामने दोनों पार्टियों का दम निकल गया था। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं। नरेंद्र मोदी अपने कामों के जरिए यह साबित कर चुके हैं कि इस समय एक भी ऐसा नेता नहीं है जो राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें चुनौती दे सके। और एक बात साफ है कि जब तक वह वहां हैं: टॉप पर कोई वैकेंसी नहीं है।
मुझे याद है कि एक इंटरव्यू में नरेंद्र मोदी ने मुझसे कहा था, ‘कांग्रेस के नेता ये समझ ही नहीं पाते कि मैं किस तरफ जा रहा हूं। मैं एक तरफ जा रहा होता हूं और वे दूसरी तरफ गोलियां बरसाते हैं।’ और ये बात सही है कांग्रेस ने पिछले 7 साल मे जब-जब मोदी को घेरने की कोशिश की, जब-जब कोई मुद्दा बनाया, वह कामयाब नहीं हुई। इसलिए ब्रेकफास्ट मीटिंग से विपक्षी एकता के नाम पर खबरें बन सकती हैं, ट्रैक्टर पर और साइकिल पर बैठकर सड़क पर आने से तस्वीरें खिंच सकती हैं पर मोदी के लिए फिलहाल कोई बड़ा चैलेंज दिखाई नहीं देता। सारी क्षेत्रीय पार्टियां, सारे छोटे-छोटे दल अपने हिसाब से और अपने फायदे के लिए बयानबाजी करते हैं। जिसको जहां कुर्सी दिखाई देती है वह वहां समझौता कर लेता है। अब वह जमाना गया जब विचारधारा के नाम पर हाथ मिलाए जाते थे।
अमित शाह से मिले पवार
मैं ऐसा मंगलवार को जो हुआ उसके कारण कह रहा हूं। एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और उनकी पार्टी के कुछ सांसद सुबह राहुल की ब्रेकफास्ट मीटिंग में शामिल हुए, लेकिन सियासी गलियारों में चर्चा का दौर तब शुरू हुआ जब दोपहर में शरद पवार गृह मंत्री अमित शाह से मिलने पहुंच गए।
एनसीपी नेताओं ने इसकी वजह तो ये बताई कि यह मुलाकात महाराष्ट्र में बाढ़ के बाद पैदा हुए हालात और महाराष्ट्र के कोऑपरेटिव फेडरेशन्स की स्थिति के बारे में चर्चा करने के लिए हुई क्योंकि कोऑपरेशन मंत्रालय की जिम्मेदारी अमित शाह के पास है। बारामती समेत वेस्टर्न महाराष्ट्र में काफी सहकारिता समितियां हैं और सूबे की कोऑपरेटिव्स में शरद पवार और उनके लोगों का अच्छा दखल है, लेकिन जब विपक्ष एकजुट होकर सरकार को घेरने की रणनीति बना रहा हो, उस वक्त शरद पवार अमित शाह के पास पहुंच जाएं तो सवाल उठेंगे ही। इसलिए एनसीपी के नेता नवाब मलिक ने सफाई देते हुए कहा कि कोऑपरेटिव बैकों को लेकर सरकार ने जो नियम बनाए हैं, उनमें कुछ प्रैक्टिल प्राब्लम हैं। उन्होंने कहा कि इसको लेकर शरद पवार ने कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री से भी मुलाकात की थी और मंगलवार को अमित शाह से भी मिलकर सहकारी बैंकों की दिक्कतों के बारे में बताया। नबाव मलिक ने यह भी कहा कि बीजेपी और एनसीपी की विचारधारा बहुत अलग है और दोनों पार्टियां कभी साथ नहीं आ सकतीं।
शरद पवार इस समय देश के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक हैं। वह ऐसे नेता हैं जो एक तीर से कई शिकार करने के लिए जाने जाते हैं। इसलिए शरद पवार जब किसी बड़े नेता से मिलते हैं तो उनकी रणनीति का अनुमान लगाना आसान नहीं है। नवाब मलिक भले ही कह रहे हों कि बीजेपी और एनसीपी की सोच अलग है और दोनों पार्टियां कभी साथ नहीं आ सकतीं, लेकिन मुझे लगता है कि आजकल राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। न दोस्त, न दुश्मन, न विचार और न विचारधारा। कुछ भी हो सकता है। एनसीपी और शिवसेना की भी विचारधारा नहीं मिलती, लेकिन आज दोनों साथ-साथ हैं और मिलकर सरकार चला रहे हैं। सियासत में वक्त के साथ सब बदलता है।
मुझे आज भी याद है कि 2 साल पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में एच.डी. कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में, सोनिया गांधी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक, सारे विपक्षी नेता मौजूद थे। उसी मंच पर सोनिया गांधी ने मायावती को गले लगाया था। ऐसा लगा था जैसे कोई बड़ा और एकजुट विपक्ष बनने जा रहा है। लेकिन मंगलवार को राहुल गांधी की ब्रेकफास्ट मीटिंह में न तो बहुजन समाज पार्टी के नेता आए और न ही अकाली दल या आम आदमी पार्टी के। एनडीए से बाहर निकलने के बाद अकाली दल अब बीजेपी के बिल्कुल खिलाफ खड़ा है फिर भी उसने राहुल की बैठक में हिस्सा लेने से परहेज किया। दरअसल, अगले साल पंजाब विधानसभा चुनाव में मुख्य लड़ाई अकाली दल और कांग्रेस के बीच होगी और यही बात बीएसपी पर भी लागू होती है। इसलिए वे जनता को गलत संकेत भेजने से बचते रहे।
शरद यादव से मिले लालू
समय के साथ सिर्फ सियासत ही नहीं बल्कि सियासी रिश्ते भी बदलते रहते हैं। मंगलवार को चारा घोटाले के दोषी लालू प्रसाद यादव अपने पुराने सियासी दुश्मन शरद यादव से गले मिले। शरद यादव और लालू यादव ऐक्टिव पॉलिटिक्स से दूर हैं, लेकिन दोनों मिलकर तीसरे मोर्चे की संभावनाएं तलाश रहे हैं। लालू ने सोमवार को अपने समधी और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की थी, लेकिन कोई बयान नहीं दिया। मंगलवार को लालू ने मीडिया से बात की। उन्होंने कहा, ‘देश को एक नए विकल्प की जरूरत है। बिहार में तेजस्वी ने अकेले मुकाबला किया और एक नया विकल्प (विधानसभा चुनावों के दौरान) देने की कोशिश की। बिहार के दिवंगत दलित नेता रामविलास पासवान के असली उत्तराधिकारी चिराग पासवान ही हैं। तेजस्वी और चिराग को अब साथ-साथ आ जाना चाहिए।
यह बात तो सही है कि लालू यादव सजयाफ्ता हैं। भ्रष्टाचार के मामले में 3 साल की सजा काट चुके हैं, इसलिए सक्रिय राजनीति में वापस नहीं आ सकते और चुनाव नहीं लड़ सकते, लेकिन राजनीति में सक्रिय तो रह ही सकते हैं। लालू वही कर रहे हैं। वह देश की सियासत की नब्ज को पहचानते हैं। उनके पास काफी अनुभव है। खासकर वह उत्तर प्रदेश और बिहार में सामाजिक समीकरणों और राजनीति में जाति का महत्व समझते हैं। यही वजह है कि लालू अब जातिगत जनगणना की बात कर रहे हैं। इस मुद्दे को वह अब और हवा देंगे और साथ ही जाति के आधार पर जनगणना को मुद्दा बनाकर तीसरे मोर्चे की संभावना तलाशेंगे।
PM Modi : No challenge, no vacancy?
In Delhi, efforts are going on in political circles to carry out permutation and combinations among parties with an eye on next year’s assembly elections in UP, Punjab, Uttarakhand and two other states in the run-up to the 2024 Lok Sabha elections.
On Tuesday, Congress leader Rahul Gandhi invited floor leaders of 17 opposition parties at a breakfast meeting, but BSP and Aam Aadmi Party leaders chose not to attend. Leaders of only 15 parties attended. After the meeting, Rahul rode a bicycle with other MPs to attend Parliament. This was a ploy to gain media attention in order to corner Prime Minister Narendra Modi on the issue of fuel price rise.
Whenever Rahul Gandhi feels he has got a big issue to challenge Modi, he invites opposition party leaders for discussion, though nothing concrete emerges out of such meetings. The Congress leader presently feels he can corner Modi on the Pegasus spyware issue. For the last two weeks, normal work in both houses of Parliament has come to a standstill as opposition parties continue with disruptions. At the breakfast meeting, Rahul Gandhi told the floor leaders that if all parties joined hands, the government will not be able to suppress the voices of dissent.
NCP representative attended the breakfast meeting, but in the afternoon their party supremo Sharad Pawar has busy in a closed door meeting with Home Minister Amit Shah. Meanwhile, RJD chief Lalu Prasad Yadav called on Sharad Yadav in Delhi. He later told media that Late Ramvilas Paswan’s son Chirag Paswan should join hands with his son Tejashwi Yadav to strengthen opposition unity in Bihar. All these fast moving developments bring forth the question: Can the opposition forge a united front against Modi?
At the breakfast meeting, Rahul Gandhi claimed that nearly 60 per cent of Indian voters are with the opposition parties, and leaders of these parties must not hesitate to raise the voice of the people. Government cannot suppress our voice, if we stay united, said Rahul. Nearly 100 MPs belonging to opposition parties attended the breakfast meeting. It was clear at the meeting that most of these regional parties were pursuing their own agenda, even as Rahul sought to unite them on three issues: Farmers’ protest, Pegasus spyware controversy and price rise. Parties that attended the meeting included Trinamool Congress, NCP, Shiv Sena, DMK, CPI(M), CPI, RJD, SP, JMM, National Conference, Indian Union Muslim League, RSP, Kerala Congress (M), LJD and RSP.
Rahul has this habit of repeating the dialogue that he likes best. On Tuesday, he repeatedly said that opposition parties represented 60 per cent of Indian voters and they must unite. Last week, Rahul rode a tractor to Parliament to highlight farmers’ issue, and got media attention. On Tuesday, a truck load of bicycles were brought and Rahul, along with other MPs, rode the bicycles to Parliament. Needless to say, these visuals grabbed media attention.
Inside Parliament, the Congress, along with other opposition parties, is pressing for a probe into the Pegasus controversy. Rahul and his advisers feel that this is one issue on which they can forge opposition unity, which has been elusive till know. Rahul has been advised that his party cannot win any Lok Sabha election on its own, and will have to depend on alliance with other parties.
The days of Congress dominance in national politics are over. His advisers have explained that if Narendra Modi can be elected Prime Minister twice by cornering 38 per cent votes and winning 303 Lok Sabha seats, then Congress can also make a comeback, since it garnered 20 per cent votes in the last LS elections. He has been told by advisers that regional parties could be the key to Congress’ success. Politics, however, is a different ball game. Elections are not won on the basis of mathematical calculations.
There are several political conundrums which have to be taken into account. One, why should Trinamool supremo Mamata Banerjee, who won three assembly elections on her own, kow-tow to the Congress? Why should she accept Rahul as her leader? Two, in the last seven years of his rule, Narendra Modi has changed the landscape and direction (‘dasha’ and ‘disha’) of Indian politics. Old formulae do not work anymore. Remember, in the last elections, Akhilesh and Mayawati joined hands as ‘babua and bua’, but both the parties had to bite the dust in front of the BJP juggernaut in UP. There are many more such examples. Modi has proved by his actions that there is not a single leader who has the persona to challenge him on the national level. And, till the time he is there, one thing is clear: There is no vacancy at the top.
In one of my interviews with the Prime Minister, Modi had once said, “Congress leaders just fail to perceive in which direction I am moving. I move in one direction, and they start firing towards some other direction”. It is a fact that in the last several years, whenever the Congress and other opposition parties tried to corner Modi on any one issue, they failed miserably. Breakfast meetings can be good headlines on opposition unity, riding a tractor or a bicycle can make good visuals, but as of now, there is no big challenge before Modi. All the smaller and regional parties, issue statements that suits their objectives, and they compromise as soon as they sniff power. The days of joining hands on the basis of ideologies are over.
Pawar meets Amit Shah
I am saying this because of what happened on Tuesday. NCP supremo Sharad Pawar’s daughter Supriya Sule and some of her party MPs attended Rahul’s breakfast meeting in the morning, but, by afternoon, political circles were agog over the afternoon meeting between Sharad Pawar and Home Minister Amit Shah.
On the face of it, NCP leaders said, the meeting was about Central aid to Maharashtra for natural disasters and for helping cooperative banks in the state, since Amit Shah has recently taken over as the Minister for Cooperation. Sharad Pawar and his men control most of the cash-rich cooperatives in Maharashtra, but, at a time, when the opposition leaders had gathered at a meeting, Pawar’s meeting with Amit Shah was bound to spread rumours. NCP spokesperson Nawab Malik said, Pawar had discussed the problems being faced by cooperative banks in Maharashtra with the Prime Minister a few days ago, and Tuesday’s meeting with Amit Shah was a sequel. On his part, Nawab Malik added: “BJP and NCP are ideologically apart, and there is no question of the two coming together”.
Sharad Pawar is a politician with rich experience. He is known in political circles as a man who can hit different targets using a single arrow. When Pawar meets a strong politician, it is very difficult to gauge the extent of his strategic move. Nawab Malik may say, both parties gave different ideologies, but in today’s politics, nothing is permanent. Neither friends, nor foes, nor ideologies, nor thinking. Anything can happen. NCP and Shiv Sena were ideologically poles apart, but today, they are running a coalition government. In politics, things change with time.
I still remember, two years ago, at H. D. Kumaraswamy’s oath ceremony as Karnataka chief minister, the entire phalanx of opposition leaders was present, from Sonia Gandhi, to Arvind Kejriwal. Sonia had then publicly hugged Mayawati. It appeared as if a big, united opposition was in the making. But on Tuesday, neither BSP, nor AAP, nor Akali Dal was present. Akali Dal, after exiting NDA, is now BJP’s political foe, and yet, it avoided attending Rahul’s meeting, because the main fight in Punjab assembly polls next year will be between Akali Dal and Congress. The same applies to BSP. That is why they avoided sending wrong signals to the public.
Lalu meets Sharad Yadav
With time, not only politics, but relationships between politicians too undergo a change. On Tuesday, Lalu Prasad Yadav, convicted in fodder scam case, hugged his old foe Sharad Yadav. Though both the old politicians have kept away from active politics, they are still exploring ways and means to forge a Third Front. Lalu had met his ‘samadhi’ Samajwadi Party founder Mulayam Singh Yadav on Monday, but he refrained from speaking to the media. On Tuesday, Lalu spoke to the media. He said, “the nation needs a new alternative. In Bihar, Tejashwi fought and tried to give a new alternative (during assembly elections). Chirag Paswan is the real successor of Ramvilas Paswan, the late Dalit leader from Bihar. Both Tejashwi and Chirag must now join hands.”
Lalu Prasad Yadav is a convict. He has already spent three years in jail on corruption charges. Because of electoral ban, he cannot join active politics and contest elections, but there is no bar on remaining active in politics. With his vast experience, Lalu can feel the pulse of the national politics. He has a good knowledge about caste equations in Bihar, and is, therefore, demanding that a fresh caste census be carried out in the state. Naturally, he is going to explore a Third Front by harping on the demand for caste census.
बहादुर बेटियों की जीत से एक-न-एक दिन ज़रूर वर्ल्ड चैंपियन हॉकी टीम बनेगी
सोमवार का दिन हर भारतवासी के लिए बेटियों पर गौरव करने वाला दिन था। हम उन बेटियों को सलाम करते हैं जिन्होंने टोक्यो ओलंपिक में हॉकी के मैदान पर इतिहास रच दिया। क्वॉर्टर फाइनल मुकाबले में दुनिया की दूसरे नंबर की टीम ऑस्ट्रेलिया को हराकर देश की बेटियां ओलंपिक हॉकी के सेमीफाइनल में पहुंची हैं। टोक्यो ओलंपिक में मेडल की उम्मीद जगाकर इन बेटियों ने हर भारतीय का दिल जीत लिया। महिला हॉकी टीम ने जो कारनामा किया उसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। ऑस्ट्रेलिया जैसी ताकतवर टीम से मुकाबला था। कोई नहीं सोच रहा था कि इंडिया की महिला हॉकी टीम ऑस्ट्रेलिया को हरा देगी। लेकिन हमारी बेटियों ने वह कर दिखाया जो अब से पहले कभी नहीं हुआ था। ओलंपिक में भारत की महिला हॉकी टीम पिछले 40 सालों में पहली बार सेमीफाइनल में पहुंची।
महिला हॉकी टीम की इस उपलब्धि को बताते-बताते कमेंटेटर रोने लगे। पूरे देश ने जश्न मनाया। यह कमाल का क्षण था। सबसे बड़ी बात ये है कि हमारी टीम की लड़कियां जिन हालात और परिस्थितियों से मुकाबला कर, इस मुकाम तक पहुंची हैं, वह देख कर अपनी टीम पर और भी गर्व होता है। ज्यादातर लड़कियां ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं। आप जब उनकी ज़िंदगी के बारे में जानेंगे तो हैरान हो जाएंगे।
सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में मैंने देश की महिला हॉकी टीम की खिलाड़ियों के पारिवारिक जीवन के बारे में बताने की कोशिश की। ये खिलाड़ी झारखंड, ओडिशा, हरियाणा, पंजाब और मणिपुर के गांवों से निकलकर अपनी स्पीड और स्किल का प्रदर्शन करने के लिए टोक्यो तक पहुंची हैं। उनका वहां तक पहुंचना किसी चमत्कार से कम नहीं है। जब इन लड़कियों ने खेलना शुरू किया था तो किसी के पास जूते नहीं थे, तो किसी के पास हॉकी स्टिक खरीदने तक के पैसे नहीं थे। उनमें से एक ने तो बांस की हॉकी बनाकर खेल की प्रैक्टिस की और ओलंपिक तक पहुंच गई।
कुछ लड़कियों की मां और बहनें बड़े शहरों में दूसरों के घरों में काम करती थीं, और उन्हें ट्रेनिंग के लिए पैसे भेजती थीं। एक लड़की के पिता ने अपनी बेटी की हॉकी स्टिक खरीदने के लिए ऑटोरिक्शा चलाया। सोमवार को पिता की आंखों में खुशी के आंसू थे। उन्हें ये भी नहीं पता था कि सेमीफाइनल में उनकी बेटी का सामना किस टीम से होगा। उन्होंने कहा कि वह केवल इतना ही जानते हैं कि मेरी बेटी ने देश का नाम रोशन कर दिया।
इन बेटियों की ऐसी-ऐसी कहानियां हैं, जिन्हें आप सुनेंगे तो इन्हें खड़े होकर सलाम करेंगे। इन बहादुर बेटियों के पारिवारिक जीवन की ऐसी ही कुछ कहानियां मैं आपको बताने जा रहा हूं।
सबसे पहले मैं आपको ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हुए मैच में इकलौता गोल करने वाली गुरजीत कौर की कहानी सुनाता हूं। गुरजीत कौर ने सोमवार को मैच के दूसरे क्वॉर्टर के 8वें मिनट में ड्रैग फ्लिक से गोल मारकर ऑस्ट्रेलिया को बैकफुट पर ला दिया था। वह टीम में आमतौर पर टीम में डिफेंडर की पोजिशन पर खेलती हैं। उनका काम विरोधी टीम के खिलाड़ी को गोल पोस्ट तक पहुंचने से रोकना, उन्हें टैकल करना और फिर बॉल को दोबारा अपनी टीम के खिलाड़ियों को पास देना है, यानी उनका मेन फोकस कनेक्टिविटी पर होता है। लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि हॉकी स्टिक से इतने बड़े मैच में गोल दागने वाली, इतिहास रचने वाली गुरजीत के गावं में आज भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कनेक्टिविटी नहीं है। 25 साल की गुरजीत पंजाब में अमृतसर के अजनाला इलाके के मियादी कला गांव की रहनेवाली हैं। उनके परिवार में किसी ने हॉकी स्टिक नहीं पकड़ी थी और किसानी करने वाला उनका परिवार सिर्फ खेतों तक का रास्ता जानता था।
गुरजीत की जिद थी कि उन्हें हॉकी में नाम रोशन करना है, इसलिए पिता को झुकना पड़ा। उन्होंने तरनतारन के बोर्डिंग स्कूल में गुरजीत का ऐडमिशन करवाया, लेकिन बेटी को हॉकी की प्रैक्टिस करवाना इतना आसान नहीं था। घरवालों ने बेटी की हॉकी किट खरीदने के लिए, उसकी कोचिंग के लिए अपनी मोटरसाइकिल तक बेच दी। इसके बाद गुरजीत ने भी हॉकी की फील्ड पर अपनी पहचान बनाना शुरू कर दिया। उन्हें देश के लिए खेलने का पहला मौका 2014 में सीनियर नेशनल कैंप में मिला था, हालांकि वह टीम में अपनी जगह पक्की नहीं कर पाई थी। लेकिन 3 साल बाद, 2017 में, वह इंडियन टीम का हिस्सा बन गईं।
सलीमा टेटे भारतीय महिला हॉकी टीम में डिफेंडर के रूप में खेलती हैं। उनका परिवार झारखंड के सिमडेगा जिले के बड़कीछापर गांव में एक झोपड़ी में रहता है। सलीमा ने बचपन से बांस को हॉकी बनाकर खेल की प्रैक्टिस की। खुद हॉकी खिलाड़ी रह चुके और अब खेती-किसानी कर रहे उनके पिता सुलक्षण टेटे के पास इतने पैसे नहीं थे कि उन्हें हॉकी स्टिक खरीदकर दे सकें। सलीमा के परिवार में 5 बहनें और एक भाई हैं। घर की हालत ऐसी नहीं थी कि बेटी को स्पोर्ट्स में भेज सकें, लेकिन सलीमा टेटे के परिवार ने बचपन में ही उनका टैलेंट पहचान लिया। उनकी प्रैक्टिस के लिए पैसे की कमी न हो, इसलिए बड़ी बहन और भाई मजदूरी करने बाहर चले गए।
सलीमा का यह पहला ओलंपिक था लेकिन भारतीय टीम के साथ उनका शानदार प्रदर्शन कई साल से जारी है। 2016 में वह पहली बार भारतीय जूनियर टीम में चुनी गई। उसी साल सलीमा को अंडर-18 एशिया कप के लिए उपकप्तान बनाया गया। 2018 में अर्जेंटीना में हुए यूथ ओलंपिक में सलीमा कप्तान थीं और उनकी लीडरशिप में टीम ने सिल्वर मेडल जीता था। उनके मेडल जीतकर वापस आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे मुलाकात की थी और उन्हें उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीर्वाद दिया था।
कहते हैं कि सलीमा जब हॉकी की वर्ल्ड चैंपियनशिप खेलने गईं तो उनके पास ट्रॉली बैग नहीं था. कुछ परिचितों ने किसी से पुराना बैग लेकर दिया। उनके पास पॉकेट मनी भी नहीं थी तो फेसबुक पर मुहिम चलाकर पॉकेट मनी का इंतजाम किया गया, और उस बार भी वह जीत कर लौटी थीं। सलीमा चूंकि नेशनल लेवल पर कई टूर्नामेंट खेल चुकी हैं, इसलिए उन्हें सरकारी नौकरी मिल गई है। उनकी छोटी बहन महिमा ने भी हॉकी में हाथ आजमाया, लेकिन आगे नहीं जा पाईं। महिमा का कहना है कि उनकी ख्वाहिश है कि सलीमा टोक्यो से गोल्ड मेडल लेकर घर आएं।
टीम में झारखंड की एक और बेटी हैं खूंटी जिले की निक्की प्रधान। उनके पिता एक पुलिस कांस्टेबल थे, जो अब रिटायर हो चुके हैं। उन्होंने बेटी के सपने को पूरा करने में खूब मेहनत की। बेटी को हॉकी खेलने का शौक था तो हॉकी दिलवा दी, लेकिन वक्त नहीं दे पाए। पुलिस की नौकरी में परिवार के लिए वक्त नहीं बचता था, इसलिए मां ही बेटी के साथ जाती थीं। कोच का सपोर्ट मिल गया तो थोड़ी आसानी हो गई। उनकी मां ने बताया कि एक बार वह बेटी के साथ रांची गई थीं। बेटी स्टेट लेवल पर रांची के स्टेडियम में मैच खेल रही थी, लेकिन पुलिसवालों ने उन्हें स्टेडियम में नहीं घुसने दिया। निक्की की मां ने बार-बार बताया कि उनकी बेटी मैच खेल रही है, लेकिन किसी ने उनकी बात पर यकीन नहीं किया। इसलिए सोमवार को जब उन्होंने अपनी बेटी की टीम को ऑस्ट्रेलिया से ओलंपिक मैच जीतते हुए देखा, तो उनकी आंखों में आंसू आ गए।
हमारी जो महिला हॉकी टीम ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंची है, उसमें 9 खिलाड़ी हरियाणा से हैं। उनमें से सबसे खास हैं टीम की ‘दीवार’, सविता पूनिया, जो दुनिया की सर्वश्रेष्ठ महिला गोलकीपरों में से एक है। झारखंड की लड़कियों की तुलना में हरियाणा के खिलाड़ी आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति में हैं। इसके अलावा हरियाणा सरकार ने खिलाड़ियों को हॉकी, मुक्केबाजी, कुश्ती और कई अन्य खेलों में महारत हासिल करने के लिए बेहतर बुनियादी ढांचा प्रदान किया है। 30 साल की सविता सिरसा की रहने वाली हैं। जब वह मुश्किल से 17 साल की थीं, तभी उन्होंने राष्ट्रीय टीम के लिए क्वॉलिफाई कर लिया था। उनके पिता ने 20,000 रुपये में उनके लिए एक हॉकी किट खरीदी थी।
सविता एक अनुभवी खिलाड़ी हैं। वह अब तक 100 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुकी हैं। उन्होंने 2009 में जूनियर एशिया कप और 2013 में महिला एशिया कप में हिस्सा लिया था। 2014 में वह इंचियोन एशियाई खेलों में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली टीम का हिस्सा थीं। 2016 में उन्होंने जापान की तरफ से एक के बाद एक कई पेनल्टी कॉर्नर्स को नाकाम कर दिया था जिससे भारत की 1-0 की बढ़त बरकरार रही और टीम ने रियो ओलंपिक के लिए क्वॉलिफाई कर लिया 2018 में उन्होंने एशिया कप और वर्ल्ड कप में हिस्सा लिया।
सोमवार को सविता पूनिया ने दीवार की तरह खड़ी रहकर भारत को ऑस्ट्रेलिया के 7 पेनल्टी कॉर्नर्स से बचाया। उन्होंने 2 फील्ड गोल भी रोके। मैच के दूसरे 2 क्वॉर्टर्स में ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों का दबदबा था, लेकिन हमारी टीम का डिफेंस काफी मजबूत था और उनकी सारी कोशिशें नाकाम रहीं। जैसे ही टीम ने सेमीफाइनल में जगह बनाई, सिरसा के जोधका गांव में उनके घर पर जश्न का माहौल हो गया।
महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के शाहबाद मारकंडा की रहने वाली हैं। 27 साल की रानी के पिता रिक्शा चलाते थे, भाई कारपेंटर का काम करता था। पिता को 80 रुपए दिहाड़ी मिलती थी, मां दूसरों के घरों में मेड का काम करती थी। रानी ने 6 साल की उम्र से हॉकी खेलना शुरू कर दिया था। शुरू-शुरू में उनका परिवार उन्हें हॉकी खेलने की इजाजत देने में झिझक रहा था, क्योंकि उनके माता-पिता के पास उनकी डाइट और ट्रेनिंग का इंतजाम करने के लिए पैसे नहीं थे। यहां तक कि उनकी बिरादरी ने भी उनके शॉर्ट्स में हॉकी खेलने पर आपत्ति जताई थी। रानी ने टूटी हुई हॉकी स्टिक से प्रैक्टिस की और फिर सीनियर खिलाड़ियों से पुरानी हॉकी स्टिक उधार लेकर खेलना शुरू किया।
आज के जमाने में जब ओलंपिक खिलाड़ियों की डाइट का पूरा हिसाब-किताब रहता है, कार्बोहाइड्रेट, फैट और कैलोरीज का पूरा चार्ट मेंटेन करना पड़ता है, डाइट प्लान को फॉलो करना पड़ता है, रानी अपनी भूख को शांत रखने के लिए जेब में चने रखकर प्रैक्टिस करती थीं। जब वह ट्रेनिंग के लिए एकेडमी जाती थीं तो उस वक्त हर खिलाडी से कहा जाता था कि आधा लीटर दूध पीना जरूरी है, लेकिन परिवार की हालत ऐसी नहीं थी कि रोज आधा लीटर दूध बेटी को दे सके। इसलिए रानी रामपाल 200 मिलीलीटर दूध में पानी डालकर उसे आधा लीटर बनाती थीं और फिर उसे पीकर हॉकी के मैदान में ट्रेनिंग करती थीं। 2020 में उन्हें पद्म श्री और भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया गया।
हॉकी फॉरवर्ड वंदना कटारिया 29 साल की हैं और उत्तराखंड के हरिद्वार के पास स्थित रोशनाबाद की रहने वाली हैं। हालांकि अब उनके परिवार की हालत पहले से अच्छी है, लेकिन बचपन में उन्होंने पेड़ की टहनी से हॉकी खेलना सीखा। वंदना की काबिलियत का अंदाजा आपको उनके क्वॉलिफाइंग राउंड के प्रदर्शन के बारे में जानकर लगेगा। उन्होंने साउथ अफ्रीका के खिलाफ मैच में 3 गोल दागे और ओलंपिक में हैट्रिक लगाने वाली पहली महिला खिलाड़ी बन गईं। वंदना का हॉकी खेलने का सफर आसान नही था। उनकी मां और भाई-बहनों ने उके हॉकी खेलने का विरोध किया, लेकिन पिता नाहर सिंह उनके साथ खड़े रहे।
वंदना ने भी मेहनत में कोई कमी नहीं छोड़ी, लेकिन मलाल इस बात का है कि बेटी की इस सफलता को देखने के लिए पिता नाहर सिंह इस दुनिया में नहीं है। 3 महीने पहले ही अचानक उनका निधन हो गया। चूंकि वंदना ओलंपिक की ट्रेनिंग के लिए बेंगलुरू में हॉकी कैंप में थीं, इसलिए वह पिता की मौत पर घर भी नहीं पहुंच सकीं। उनके परिवार ने सोमवार को कहा कि वंदना खेल के मैदान पर पिता की आखिरी ख्वाहिश पूरा करने के लिए खेल रही हैं। वंदना 200 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुकी हैं। वह 2014 में हुए एशियाई खेलों में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थीं। 2013 में हुए वर्ड कप जूनियर हॉकी टूर्नामेंट में उन्होंने भारत की तरफ से सबसे ज्यादा गोल दागे थे।
सोमवार की जीत ने हिट हिंदी फिल्म ‘चक दे! इंडिया’ की यादें ताजा कर दीं। 2007 में बनी इस फिल्म में सुपरस्टार शाहरुख खान ने एक शानदार भूमिका अदा की थी। लेकिन वह एक कहानी थी, उसमें जो हुआ वह ऐक्टिंग थी, लेकिन सोमवार को जो हमने देखा वह असलियत थी, उसकी स्क्रिप्ट किसी ने नहीं लिखी थी। लेकिन वह मुकाबला, उस टीम में खेलने वाली लड़कियों की कहानी, उनकी जिंदगी की सच्चाई और फिल्म के कैरेक्टर्स की कहानी काफी-मिलती जुलती है।
फिल्म में कोच कबीर खान की टीम वर्ल्ड चैंपियनशिप खेलने के लिए ऑस्ट्रेलिया जाती है, शुरुआती मैचों में बुरी तरह हारती है, लेकिन इसके बाद ऐसा कमबैक करती है कि फाइनल अपने नाम कर लेती है। टोक्यो ओलंपिक में हमारी टीम नीदरलैंड, जर्मनी और ब्रिटेन से शुरुआती 3 मैच हार गई, और जब उम्मीदें टूट रही थीं, तब डच कोच सोजर्ड मारिन ने खिलाड़ियों को प्रेरित करने के लिए एक फिल्म दिखाई, उन्हें मोटिवेट करने के लिए एक लंबी स्पीच दी, और फिर खिलाड़ियों ने जोरदार वापसी की। उन्होंने क्वॉर्टर फाइनल में पहुंचने के लिए, जहां उनका मुकाबला ऑस्ट्रेलिया से हुआ, आयरलैंड और साउथ अफ्रीका को धूल चटाई। उसके बाद जो हुआ वह इतिहास है।
इसमें कोई शक नहीं कि 3 बार वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतने वाली ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हमारी महिला हॉकी टीम सोमवार को चैंपियन की तरह खेली। जब गुरजीत ने 22वें मिनट में एकमात्र गोल दागा तो ऑस्ट्रेलियाई टीम के पास अभी 38 मिनट का समय बचा था, लेकिन हमारी बहादुर लड़कियां सविता पूनिया के नेतृत्व में चट्टान की तरह खड़ी रहीं। हमारी लड़कियों ने भी अटैकिंग हॉकी खेली और विरोधियों को बराबरी करने का मौका ही नहीं दिया।
सोमवार की जीत कोई तुक्का नहीं थी, हमारी लड़कियां इस जीत की हकदार थीं। मैच खत्म होने के बाद ऑस्ट्रेलियाई लड़कियां सदमे में थीं। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या हो गया। हॉकी के मैदान पर हमारी टीम की जीत का जश्न और ऑस्ट्रेलियाई टीम की आंखों में आंसू, ये वे तस्वीरें हैं जिन्हें हम कभी भुला नहीं पाएंगे।
बुधवार को जब हमारी टीम सेमीफाइनल में अर्जेंटीना से भिड़ेगी तो एक अरब से भी ज्यादा भारतीयों की दुआएं और शुभकामनाएं उसके साथ होंगी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारी टीम ओलंपिक मेडल जीतकर आती है या नहीं, वह पहले से ही भारतीयों के दिलों पर राज कर रही है। सोमवार की जीत ने एक ऐसी भारतीय टीम की नींव रख दी है, जो आने वाले समय में वर्ल्ड चैंपियन होगी, जो गोल्ड जीतेगी और जिसे कोई हरा नहीं पाएगा।
How our brave girls have laid the foundation for a world champion hockey team
Monday was a day of pride for all Indians, a day when every Indian was proud of our daughters. We salute our girls who scripted history on the hockey field in Tokyo Olympics. For the first time, our girls reached the Olympic hockey semi-final by defeating World No.2 Australia in the quarter final. By doing so, they won the heart of every Indian. Nobody expected our girls to do wonders against the mighty Australian team, but our girls did the unprecedented. They entered the hockey semi-final for the first time in 40 years.
It was heartening to watch the Indian commentator weeping in joy. It was a wonderful moment. This, from a team of players, who hail from poor and rural background, who had faced numerous obstacles in life, before touching the pinnacle of glory. Watching them play warms the cockles of the heart of every Indian.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Monday night, I tried to reveal details about the family life of some of our women hockey players, who hail from nondescript villages of Jharkhand, Odisha, Haryana, Punjab and Manipur, and reached Tokyo to display their speed and skill. This was nothing but a moment of magic. Some of these girls, in their early life, did not have shoes or hockey sticks to play with. One of them used bamboo stick for practising hockey.
Some of the girls had their mom and sisters working in big cities, who used to send them money for training. One girl’s father drove auto to purchase a hockey stick for his daughter. The father had tears of joy in his eyes on Monday. He did not know the name of the team her daughter will face in the semi-final. He said, he only knew this much: My daughter has brought accolades for my nation.
I am narrating some of the details about the family life of these brave girls here.
First, the star of the day, 25-year-old Gurjit Kaur, who hails from Ajnala near Amritsar, Punjab. In the eighth minute of the second quarter, her drag flick scored the solitary goal that brought the Australians on the backfoot. Normally, she plays as defender, and her main focus is connectivity, that is, passing on the ball to the forwards. You will be surprised to know, Gurjit’s village, Miyadi Kalan, lacks transport connectivity, even today. None in her family every played hockey, and her family members only knew the bylanes going to the fields.
Gurjit was firm in her aim to learn hockey, and her father had to admit her to a boarding school in Taran Taran. His father sold the lone family motorbike to fund her training and purchase a hockey kit for her. Gradully, Gurjit made her mark in hockey and she got her first chance to join the National seniors hockey camp in 2014. She could not fine a place in the national team, but three years later, in 2017, she was inducted into the national team.
Salima Tete plays as defender in the Indian women’s hockey team. Her family lives in a hut in Badkichapara village of Simdega district of Jharkhand. Since childhood, Salima practised hockey with a bamboo stick as his father Sulakshan Tete, a former hockey player turned farmer, could not afford to buy her a hockey stick. She has five sisters and a brother. In order to send her funds for practising hockey, her brother and sister went to the nearby town to earn money as labourers.
This was Salima’s first exposure to Olympics. In 2016, she was included in the Indian junior team and was made vice-captain of the Under-18 Indian girls’ hockey team. In 2018, Salima was the captain of the Indian girls’ hockey team at Youth Olympics held in Argentina, and her team won a silver medal. On her return, Prime Minister Narendra Modi met her and blessed her for a bright future.
There is a story about Salima, who did not have a trolley bag when went to the World Championship. Somebody gave her an old bag. She had no pocket money for sustenance. A Facebook appeal brought in pocket money for her. Salima has not got a government job. Her younger sister Mahima also tried her hand at hockey, but could not move ahead. Mahima says, her wish is that Salima should bring home a gold medal from Tokyo.
There is another daughter from Jharkhand in the team, Nikki Pradhan from Khunti district. Her father was a police constable, now retired, who gave her all assistance to go ahead and achieve her goal. Since her father was in the police, he could not give much time, and her mother helped Nikki. Her mother recounts an incident when she was not allowed to enter a stadium in Ranchi, where a state level hockey match was going on, and her daughter was playing. She told policemen guarding the gates that her daughter was playing inside, but nobody listened. On Monday, Nikki’s mom had tears of joy in her eyes when she saw the team trouncing Australia on TV.
There are nine girls from Haryana in the women’s hockey team. Foremost among them is “the wall”, Savita Punia, one of the best female goalkeepers of the world. Players from Haryana are better placed economically, compared to the girls from Jharkhand. Moreover, Haryana government has provided better infrastructure to players to excel in hockey, boxing, wrestling and several other disciplines. Thirty year old Savita hails from Sirsa. She qualified for national team when she was barely 17. Her father bought her a hockey kit for Rs 20,000.
Savita is experienced. She has played more than 100 international games till now. She took part in Junior Asia Cup in 2009 and in the Women’s Asia Cup in 2013. In 2014, she was part of the team that won the bronze at the Incheon Asian Games. In 2016, she withstood a barrage of penalty corners from Japan, to help India hold on to a 1-0 lead and qualify for Rio Olympics. In 2018, she took part in the Asia Cup and World Cup.
On Monday, Savita Punia stood like a wall and saved India from seven penalty corners from Australia. She also stopped two field goals. The Australians were dominating the last two quarters, but our defence stood rock solid and foiled all their attempts. There was celebrating at her house in Jodhka village in Sirsa, when the team entered the semi-final.
The women’s team captain Rani Rampal hails from Shahbad Markanda of Kurukshetra district, Haryana. Twenty seven year old Rani’s father was a rickshaw puller earning Rs 80 a day. Her brother was a carpenter, while her mother used to work as a maid in several houses. She started playing hockey from the age of six. Initially, her family was hesitant in allowing her to play hockey, because her parents had no money to pay for her diet and training. Even her community objected to her playing in shorts. She started practising with a broken hockey stick and then used to borrow old hockey sticks from senior players.
At a time when Olympians work on a fixed diet, taking care of carbohydrates, fats and calories, Rani used to carry roasted black grams in her pockets to satiate her hunger. During practice, every player was told to consume at least half a litre of milk daily. Rani’s family could not afford this luxury. Rani used to take 200 ml milk, mix it with water and drink. In 2020, she was awarded Padma Shri and Rajiv Gandhi Khel Ratna, the highest sporting honour in India.
Hockey forward Vandana Katariya is 29 years old, and hails from Roshnabad near Haridwar, Uttarakhand. Though her family is well-off now, during her childhood, she used to break a branch from a tree, and used it as a hockey stick. This was the girl who scored three goals against South Africa during the qualifying round, thus becoming the first female player to score a hat trick in Olympic hockey. Her beginning was quite difficult. Her mother and siblings opposed her playing hockey, but her father Nahar Singh stood by her.
Three months ago, Nahar Singh died, and he was not there to savour the moment of joy on Monday. During her father’s death, Vandana was at the hockey camp in Bengaluru and she could not attend his funeral. Her family members said on Monday that she is now playing to fulfil the wishes of his father. Vandana has played more than 200 international matches. She was part of Team India that won a bronze at 2014 Asian Games. She was the top goal scorer at the 2013 World Cup Junior Hockey tournament.
Monday’s win brough memories of the hit Hindi movie ‘’Chak De! India’, made in 2007, in which super star Shahrukh Khan played a stellar role. The difference is: the movie was a scripted one, but what happened on Monday, was the real one. Nobody had written the script, but the stories of the girls playing hockey, both in the movie and in real life, were similar to a large extent.
In the film, coach Kabir Khan’s team goes to Australia for the World Championship, loses badly in the opening matches, but makes a startling comeback to win the Cup. At the Tokyo Olympics, our team lost the first three matches to Netherlands, Germany and Britain, and when hopes were receding, Dutch coach Sjoerd Marijne showed the players a movie for inspiration, gave a motivational speech, and then the players bounced back with vigour. They beat Ireland and South Africa, to reach the quarter-final, where they met the Australians. The rest is history.
There is no doubt that our women’s hockey team played like champions on Monday against Australia, which had won the world championship thrice. When Gurjit scored the lone goal in the 22nd minute, the Australians had 38 minutes with them to level the score, but our gallant girls stood like a rock, led by Savita Punia. Our girls also played attacking hockey and gave no space to the opponents to equalize.
Monday’s win was not a fluke, it was a well-deserved victory for our girls. At the end of the game, the Australian girls were shocked, they did not know what hit them. For decades, we shall never forget the historic visuals of our girls rejoicing after the win, while the Australian girls were returning to the pavilion, with tears in their eyes.
On Wednesday, when our team will face Argentina in the final, they will be carrying the wishes and prayers of more than a billion Indians with them. It does not matter the least, whether our team returns with an Olympic medal or not. The girls are already ruling the hearts of Indians. Monday’s win has laid the foundation for a future world champion Indian team, which will emerge as unbeatable in the years to come.