Rajat Sharma

My Opinion

राम मंदिर ट्रस्ट द्वारा हाल में किए गए भूमि सौदे में क्या घोटाला हुआ है?

akb fullउत्तर प्रदेश में अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनावों की गर्मी अयोध्या में बन रहे राम मंदिर तक पहुंच गई है। कुछ विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट ने 2 करोड़ रुपये की जमीन बाजार मूल्य ने 9 गुना ज्यादा कीमत पर खरीदी है। ट्रस्ट ने आरोप को ‘राजनीति से प्रेरित और भ्रामक’ बताते हुए तुरंत खारिज कर दिया।

ट्रस्ट पर आरोप लगाया गया कि जमीन के इस टुकड़े को पहले 2 करोड़ रुपये में खरीदने के लिए रजिस्टर्ड किया गया था, और सिर्फ 10 मिनट के अंदर इसी जमीन को 18.5 करोड़ रुपये में ट्रस्ट को बेच दिया गया। आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने इस सौदे की CBI और ED से जांच कराने की मांग की, जबकि समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक पवन पांडेय ने इसे एक बड़ा घोटाला बताया। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी, कांग्रेस के दोनों नेताओं ने ट्विटर पर इसे ‘अधर्म’ और ‘पाप’ करार दिया। राहुल ने ट्वीट किया, ‘श्रीराम स्वयं न्याय हैं, सत्य हैं, धर्म हैं। उनके नाम पर धोखा अधर्म है!’ प्रियंका ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘करोड़ों लोगों ने आस्था और भक्ति के चलते भगवान के चरणों में चढ़ावा चढ़ाया। उस चंदे का दुरुपयोग अधर्म है, पाप है, उनकी आस्था का अपमान है।’

इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स ने इस पूरे मामले की तहकीकात की, बिक्री के दस्तावेज देखे और इसमें शामिल लोगों से बात की। जहां राम मंदिर बन रहा है, यह उसके परिसर से लगती हुई जमीन है और पास में ही अयोध्या रेलवे स्टेशन है। यह कोई एकलौती जमीन नहीं है जो ट्रस्ट ने खरीदी है। राम मंदिर परिसर के पास काफी जमीनें मार्केट रेट पर खरीदी गई हैं। जिस जमीन को लेकर सवाल खड़े किए गए हैं उसे भी मार्केट रेट पर खरीदा गया है। इसे बाकायदा रजिस्टर कराया गया, सारा भुगतान ऑनलाइन हुआ, स्टांप ड्यूटी पे की गई और कहीं भी एक पैसे के कैश का लेनदेन नहीं हुआ।

3 महीने पहले, 18 मार्च 2021 को श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने सुल्तान अंसारी और रविमोहन तिवारी से 12,080 स्क्वेयर मीटर, यानी कि एक हेक्टेयर से कुछ ज्यादा, जमीन खरीदी। 18 मार्च 2021 को शाम 7.15 बजे पर 18.5 करोड़ रुपये में इस जमीन का सौदा हुआ। लेकिन इस सौदे से 5 मिनट पहले, 7.10 बजे इसी जमीन का एक और सौदा इसकी मूल मालकिन कुसुम पाठक और सुल्तान अंसारी के बीच हुआ। अंसारी ने ये जमीन कुसुम पाठक से 2 करोड़ रुपये में खरीदी और 5 मिनट बाद वही जमीन 18.5 करोड़ रुपये में बेच दी। दोनों ही सौदों के गवाह एक ही थे। गवाह के तौर पर इन दोनों सौदों में अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्रा के हस्ताक्षर हैं। समाजवादी पार्टी के नेता पवन पांडे इन दोनों सेल डीड के कागजात लेकर सामने आए और सवाल किया कि ऐसा क्या हुआ जिससे 2 करोड़ रुपये में खरीदी गई जमीन की कीमत सिर्फ 5 मिनट में 18.5 करोड़ रुपये हो गई।

हमारी संवाददाता रुचि कुमार अयोध्या गईं और बताया कि इस सौदे की जड़ें 10 साल पहले हुए एक समझौते तक जाती हैं। उन्होंने बताया कि प्रस्तावित राम मंदिर से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह जमीन उन लोगों को देने के लिए अधिग्रहित की जा रही थी, जो मुख्य मंदिर के लिए जमीन का अधिग्रहण होने के बाद विस्थापित हुए थे। ट्रस्ट के सचिव चम्पत राय ने सोमवार को जारी एक बयान में कहा कि अयोध्या विवाद पर 2019 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद अयोध्या में जमीन की कीमतें कई गुना बढ़ गई हैं। ट्रस्ट के एक अधिकारी ने कहा, ‘वर्तमान रेट लगभग 5,000 रुपये प्रति स्क्वेयर फीट है, और 12,000 स्क्वेयर मीटर से भी बड़े प्लॉट के लिए मार्केट रेट लगभग 60 करोड़ रुपये है।’

हुआ यूं कि 2011 में जमीन के मूल मालिकों, कुसुम पाठक और हरीश कुमार पाठक, ने सुल्तान अंसारी के पिता नन्हे अंसारी के साथ 2 करोड़ रुपये का एक अग्रीमेंट किया था। इसके बाद ये डील लगातर रिन्यू होती रही, लेकिन इस जमीन की रजिस्ट्री नहीं हुई थी, क्योंकि इसे लेकर कोर्ट में केस चल रहा था। पहले इसे वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी बताया गया, फिर इस जमीन के नए दावेदार सामने आए। इस तरह कोर्ट केस चलता रहा और अंसारी परिवार डील रिन्यू करता रहा। सितंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के 2 महीने पहले इस जमीन को 2 करोड़ रुपये में बेचने का समझौता हुआ। नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद अयोध्या में जमीन की कीमतें आसमान छूने लगीं। यही नहीं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘न्यू अयोध्या प्लान’ को मंजूरी दी, जिसके तहत अयोध्या में एयरपोर्ट से लेकर कई और बड़े डिवेलपमेंट प्रॉजेक्ट्स पर काम शुरू हुआ। इस सबके बीच जब श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इस जमीन को खरीदने की इच्छा जताई तो सुल्तान अंसारी ने कहा कि वह इसे मार्केट रेट से ही बेचेंगे। सुल्तान अंसारी एक बिल्डर हैं, और उन्होंने 2011 में पाठक परिवार के साथ एक डील की थी। चूंकि जमीन पर कानूनी अड़चन खत्म हो चुकी थी, इसलिए तीनों पक्ष, पाठक, अंसारी और ट्रस्ट एक साथ आए और बिक्री को रजिस्टर्ड कराने का फैसला किया। जहां तक दोनों सेल डीड में ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्रा और अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय के साइन होने की बात थी, तो ट्रस्ट का सदस्य और अयोध्या के मेयर होने के नाते राम मंदिर से जुड़े ज्यादातर डील में इन्हीं के हस्ताक्षर होते हैं।

विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने इंडिया टीवी की संवाददाता को बताया कि 2019 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले ही इस जमीन का सर्किल रेट 5.85 करोड़ रुपये था। अयोध्या में 2017 के बाद से ही सर्किल रेट नहीं बढ़ाए गए हैं। सर्किल रेट आम तौर पर मार्केट रेट से कम ही होता है। न्यू अयोध्या प्लान के बनने के साथ ही जमीन की कीमतों में स्वाभाविक तौर पर कम से कम 3 गुना की वृद्धि हुई, और इसी हिसाब से अंसारी को 18.5 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। यह कहना कि गलत होगा कि सेल डीड पर साइन होने के 5 मिनट के अंदर ही जमीन की कीमत बढ़ गई। जमीन की कीमत पिछले 10 साल से बढ़ रही थी।

इस सवाल का कोई मतलब नहीं है कि सेल डीड में गवाह कौन थे। जो जमीन 10 साल पहले 2 करोड़ रुपये में बेची गई थी, बढ़ी हुई कीमतों के कारण उसे ट्रस्ट को 18.5 करोड़ रुपये में बेचा गया। एक जमाना था जब भारत में स्टांप फीस से बचने के लिए जमीन के सौदे में दिए जाने वाले पैसों में से कुछ चेक के द्वारा और और बाकी नकद देकर रजिस्ट्री करवा ली जाती थी। वे दिन गए 20 करोड़ रुपये की जमीन को कागज पर 2 करोड़ रुपये में बेचा दिखाया जाता था। अब जमाना बदल गया है और हर शहर में सर्किल रेट फिक्स हैं। दूसरी बात ये कि स्टांप पेपर, कोर्ट फीस के साथ-साथ पूरी पेमेंट आजकल या तो ऑनलाइन होती है या फिर चेक से होती है, और इसमें कैश स्वीकार नहीं किया जाता।

समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी के नेताओं द्वारा लगाया गया ‘घोटाले’ का आरोप अर्धसत्य पर आधारित हैं। जमीन की कीमत 5 मिनट में नहीं बल्कि 10 साल में बढ़ी है। राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के खिलाफ ‘घोटाले’ का आरोप टिकने वाला नहीं है। चूंकि उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए राम मंदिर निश्चित रूप से प्रमुख चुनावी मुद्दों में से एक होने जा रहा है। ट्रस्ट के सचिव चम्पत राय पर लगाए जा रहे ‘घोटाले’ के आरोप राजनीति से प्रेरित हैं. चम्पत राय का पूरा जीवन त्याग और तपस्या की मिसाल है, वह राम जन्मभूमि के लिए समर्पित रहे हैं और एक अच्छे चरित्र के धनी हैं। कोई नहीं मानेगा कि वह कभी एक पैसे की भी हेराफेरी कर सकते हैं। चम्पत राय तो कहते हैं कि ‘मैं अपनी आखिरी सांस तक भगवान राम के लिए काम करूंगा, चाहे जो हो जाए।’ उत्तर प्रदेश में चुनावी बुखार तेजी से बढ़ता जा रहा है तो ऐसे आरोप कई बार लगेंगे, बार-बार लगेंगे, और इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता।

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Is there a scam in recent land deal by Ram Temple Trust ?

AKB The heat of next year’s UP assembly elections appears to have reached the Ayodhya Ram temple, with some opposition parties alleging that Shri Ram Janmabhoomi Teertha Kshetra Trust has purchased Rs 2 crore worth land at nine times the market price. On Monday, the Trust promptly rejected the allegation as “politically motivated and misleading.”

It was alleged that the piece of land was first registered for purchase at Rs 2 crore, and within ten minutes, the plot was resold to the Trust at Rs 18.5 crore. Aam Aadmi Party leader Sanjay Singh demanded that the CBI and ED must probe this deal, while former Samajwadi Party MLA Pawan Pandey described it as a big scam. Both Congress leaders Rahul Gandhi and Priyanka Gandhi Vadra took to Twitter to describe this as a “sin”. Rahul tweeted: “Shri Ram is truth, justice and dharma incarnate, And to steal in his name is anti-dharma”. Priyanka tweeted: “Crores of people gave donations out of faith and devotion. Misuse of donations is ‘adharma’, sin and insult to faith.”

India TV reporters spoke to the parties involved and went through the sale documents. The exact location of the plot of land is near the Ayodhya railway station adjoining the Ram Temple premises. This is not the only plot that the Trust has purchased. Several other plots were purchased at market rates. The controversial plot was also bought at market rate. The entire payment for land and stamp uty was made through online and no cash was given.

Three months ago, on March 18, 2021, the Trust purchased 12,080 sq. metres of land (slightly more than a hectare from Sultan Ansari and Ravimohan Tiwari. The deal was struck at 7.15 pm on that day for Rs 18.5 crore. But five minutes before this sale, at 7.10 pm, another sale was done for the same piece of land between the original owner Kusum Pathak and Sultan Ansari. Ansari bought the land from Kusum Pathak for Rs 2 crore, and five minutes later, sold the same land to the Trust for Rs 18.5 crore. The witnesses were the same for both deals. The Mayor of Ayodhya Rishikesh Upadhyay and the member of the Trust Anil Mishra signed the registered sale deeds as witnesses. Samajwadi Party leader Pawan Pandey produced copies of both sale deeds and questioned how the same piece of land bought at Rs 2 crore was sold after five minutes at Rs 18.5 crore.

Our reporter Ruchi Kumar went to Ayodhya and reported that the deal goes back to an agreement that was struck 10 years ago. She reported that the plot of land located 2 km away from the proposed Ram temple, was being acquired to distribute among people who were displaced after the land for the main temple was acquired. The secretary of the trust, Champat Rai, in a statement issued on Monday, pointed out that land prices in Ayodhya have increased manifold after the 2019 Supreme Court judgement on Ayodhya dispute. “The present rate is almost Rs 5,000 per sq.ft., and for the 12,000-plus sq. metre plot, the market rate is roughly Rs 60 crore”, said a Trust official.

It so happened that in 2011, the land’s original owners – Kusum Pathak and Harish Kumar Pathak – had entered into an agreement with Sultan Ansari’s father Nanhe Ansari for Rs 2 crore. The agreement was being renewed for 10 years, but the sale was not registered at that time due to ongoing litigation. The land was first described as Waqf property, and later more claimants came up. The Ansari family continued to renew the agreement with Pathak family. In September 2019, two months before the SC verdict came, an agreement to sell was signed for Rs 2 crore. In November, 2019, after the Supreme Court gave its verdict, land prices in Ayodhya skyrocketed. UP chief minister Yogi Adityanath gave approval to New Ayodhya Plan, that included building of an airport and several other development projects. When the Trust expressed its willingness to buy the land, the Ansaris said they would like to sell it at market rate. Sultan Ansari is a local builder, and he had struck a deal with Pathak family way back in 2011. Since the litigation over the land was over, all the three parties, the Pathaks, Ansaris and the Trust came together, and decided to get the sale registered. Rishikesh Updhyay, the mayor of Ayodhya, and Anil Mishra, a member of the Trust, had been signed all the sale deeds for land acquired for the Trust.

The working president of Vishwa Hindu Parishad, Alok Kumar told India TV reporter that even before the SC judgement came in 2019, the circle rate for this piece of land was Rs 5.85 crore. There had been no increase in land circle rates in Ayodhya since 2017. Normally, circle rates are considered lower than the prevailing market rates. With the New Ayodhya Plan being worked out, land prices naturally increased by at least three times, and on this basis, Rs 18.5 crore was paid to Ansari. To say, that the price of land rose within signing of the sale deed in five minutes is incorrect. The land price had been rising over the last ten years.

The question over who were witnesses in the sale deeds are immaterial. Because of spiralling land prices, the land that was sold for Rs 2 crore ten years ago, was sold to the Trust for Rs 18.5 crore. Land deals in India used to be registered in the past, by paying part of the amount in cash and part in cheque, in order to conceal the real sale amount and evade stamp duty. Gone are the days when Rs 20 crore worth land was shown as sold for Rs 2 crore on paper. Times have changed and circle rates are fixed in every city. Secondly, stamp duty is now payable online and not accepted in cash.

The allegations of ‘scam’ made by SP and AAP leaders are based on half truths. The price of land increased not in five minutes, but over ten years. The charge of ‘scam’ against Ram Janmabhoomi Teerth Kshetra Trust is not going to stick. Since the UP assembly elections are scheduled for next year, the Ram temple is surely going to be one of the major election issues. The allegations of ‘scam’ that are being levelled against Champat Rai, secretary of the Trust, are politically motivated. Champat Rai’s entire life has been one of sacrifice, devoted to the cause of Ram Janmabhoomi, and he has a sterling character. Nobody will believe a word about Champat Rai making money on the sly. Champat Rai had been saying that “I will work for Lord Ram till my last breath, come what may”. Nobody can help, because the election fever in UP is fast approaching, and charges are going to be made by vested interests, left and right.

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यूपी विधानसभा चुनावों के लिए क्या है योगी की रणनीति?

akbउत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अन्य शीर्ष नेताओं से मुलाकात की। इसके साथ ही यूपी की लीडरशिप को लेकर चल रही सभी अटकलों पर विराम लग गया। जो राजनीतिक पंडित ये अटकलें लगा रहे थे कि उत्तर प्रदेश में अगला विधानसभा चुनाव योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में लड़ा जाएगा या नहीं, उन्हें जवाब मिल गया। जो लोग दावा कर रहे थे कि पीएम मोदी योगी के काम करने के तरीके से नाखुश हैं, उन्होंने अब कयास लगाना बंद कर दिया है। अब यह तय है कि उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ ही बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे।

दिल्ली में पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा के साथ योगी की इस बात को लेकर चर्चा हुई कि चुनाव के लिए रोड मैप कैसे बनाया जाए और संगठन को कैसे गियर अप किया जाए। उत्तर प्रदेश में बीजेपी के ब्राह्मण नेता और ब्राह्मण समाज के गैर राजनीतिक नेता कई दिनों से शिकायत कर रहे हैं कि सूबे में ब्राह्मणों की उपेक्षा की जा रही है। जब उन्हें बताया जाता है कि सरकार में दिनेश शर्मा उपमुख्यमंत्री हैं, श्रीकांत शर्मा, ब्रजेश पाठक, रीता बहुगुणा जैसे बड़े-बड़े ब्राह्मण चेहरे मंत्री हैं, तो वे कहते हैं कि ये लोग सरकार का हिस्सा तो हैं, लेकिन सरकार में उनकी चलती नहीं है। पार्टी नेतृत्व ने यह विश्वास दिलाने की कोशिश की है कि ब्राह्मण समुदाय की उपेक्षा नहीं की जाएगी। इसके अलावा पार्टी हाईकमान ओबीसी कुर्मी समुदाय की बड़ी नेता अनुप्रिया पटेल की नाराजगी को दूर करने की कोशिश कर रहा है। अति पिछड़े मल्लाह समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले संजय निषाद से भी कई राउंड की बातचीत की गई है। पार्टी नेतृत्व आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए जातिगत समीकरण को जोड़ने की कोशिश कर रहा है।

जहां तक योगी आदित्यनाथ का सवाल है, मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि किसी भी पार्टी के लिए एक ऐसे लीडर को बनाना, जिसकी पूरे देश में स्वीकार्यता हो, कोई आसान काम नहीं होता। पिछले 2-3 साल में बीजेपी ने अरुण जेटली, सुषमा स्वारज और मनोहर पर्रिकर जैसे कई नेताओं को खो दिया जो बरसों की मेहनत के बाद पार्टी का राष्ट्रीय चेहरा बने थे। पिछले 5-6 सालों में अमित शाह एक ताकतवर राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरकर आए हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश में पहले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनावों में पार्टी के झंडे गाड़कर अपनी छाप छोड़ी। उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद पिछले 3-4 साल में योगी आदित्यनाथ ने भी राष्ट्रीय स्तर पर खुद की छाप छोड़ी है। वह बीजेपी की राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा बने और बंगाल, महाराष्ट्र, ओडिशा और कर्नाटक विधानसभा चुनावों में पार्टी के स्टार कैम्पेनर बनाए गए। यह सोचना गलत है कि बीजेपी नेतृत्व योगी को यूपी की लीडरशीप से हटाकर उन्हें साइडलाइन कर देगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात को बड़े अच्छे से समझते हैं कि एक नेता को राष्ट्रीय पहचान हासिल करने में सालों लग जाते हैं और ऐसे नेताओं का उपयोग पार्टी के राजनीतिक आधार को बढ़ाने के लिए भलीभांति किया जाना चाहिए।

ममता के पास वापस क्यों गए मुकुल रॉय?

इस बीच पश्चिम बंगाल में शुक्रवार को हुए राजनीतिक घटनाक्रम में बीजेपी उपाध्यक्ष मुकुल रॉय और उनके बेटे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस में वापस लौट आए। मुकुल रॉय 2017 में पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले पहले तृणमूल नेता थे। उनके बीजेपी में शामिल होने के बाद बंगाल विधानसभा चुनावों से पहले टीएमसी के कई विधायकों और अन्य नेताओं ने भगवा दल का दामन थाम लिया था।

मुकुल रॉय ने इस बार बीजेपी के टिकट पर कृष्णानगर दक्षिण से चुनाव जीता था। ममता के भारी बहुमत से सत्ता बरकरार रखने के साथ ही अब तृणमूल से बीजेपी में गए नेताओं की ‘घर वापसी’ शुरू हो गई है। ममता बनर्जी ने शुक्रवार को कहा कि वह उन नेताओं का तृणमूल में स्वागत करेंगी जिन्होंने बीजेपी में शामिल होने के बाद भी अच्छा बर्ताव किया है। मुकुल रॉय शारदा घोटाले और नारदा स्टिंग में अभी भी आरोपी हैं।

रॉय ने शायद तृणमूल इसलिए छोड़ी क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि एक तो सीबीआई उन पर हाथ डालने से बचेगी, और दूसरा बंगाल बीजेपी का कोई बड़ा नेता न होने की वजह से उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाएगा। लेकिन उनकी कोई भी उम्मीद पूरी नहीं हुई। न तो दोनों घोटालों से उनके नाम हटे और न ही बीजेपी ने उन्हें सीएम उम्मीदवार बनाया। बंगाल विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार के साथ ही मुकुल रॉय के सामने एक और बड़ी चुनौती है। वह अपने बेटे को सूबे की सियासत में खड़ा करना चाहते हैं।

इसके अलावा मुकुल रॉय को उस समय भी बुरा लगा जब नंदीग्राम में ममता बनर्जी को हराने वाले शुभेंदु अधिकारी को विपक्ष का नेता बना दिया गया। मुकुल रॉय पर तृणमूल कांग्रेस की नजर बराबर लगी हुई थी। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान मुकुल रॉय ने ममता बनर्जी के खिलाफ एक लफ्ज़ भी नहीं कहा था। जब मुकुल रॉय के बेटे ने फेसबुक पर बीजेपी को नसीहत दी कि जनता के समर्थन से आई सरकार की आलोचना करने वालों को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए, तब तृणमूल कांग्रेस ने इस सिग्नल को कैच कर लिया, और पिता-पुत्र की जोड़ी को पार्टी में शामिल होने के लिए न्योता दे दिया। मुकुल रॉय अब कम से कम उम्मीद कर सकते हैं कि उनके बेटे का राजनीतिक भविष्य संवर जाएगा।

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What’s Yogi’s plan for elections in UP?

AKB All speculations about UP leadership were put to rest on Friday after Chief Minister Yogi Adityanath met Prime Minister Narendra Modi and other top BJP leaders in Delhi. Several political pundits, who were speculating whether the BJP will go into next year’s crucial UP assembly elections under Yogi’s leadership or not, have now got their answers. Those who were claiming that the PM was unhappy with Yogi’s style of working have now stopped speculating. It is now certain that Yogi Adityanath will be BJP’s chief ministerial candidate in the next UP assembly polls.

The fulcrum of all discussions that Yogi had with Modi, Home Minister Amit Shah and BJP chief J P Nadda in Delhi was how to prepare the road map and gear up the party organisation for the polls. Over the last few months, there have been complaints from non-political and BJP leaders from UP’s Brahmin community that they were being ignored in the state dispensation. They were told that the deputy CM Dinesh Sharma, other ministers Shrikant Sharma, Brajesh Pathak and Rita Bahuguna belonged to Brahmin community, but these leaders complained that though they were part of the government, they had no say in the ruling dispensation. The party leadership has promised that the Brahmin community will not be ignored any more. Moreover, the party high command is also listening to the grievances of Anupriya Patel of Apna Dal, who represents the OBC Kurmi community. Talks were held with Sanjay Nishad, who represents the most backward Mallah (boatmen) community. The party leadership is addressing issues relating to caste equation in view of the forthcoming polls.

About Yogi Adityanath, I can only say that it is not an easy task to project a leader acceptable to all on national level. During the past 2-3 years, BJP lost several national stalwarts like Arun Jaitley, Sushma Swaraj and Manoj Parrikar. In the last five years, Amit Shah emerged as a powerful national leader. He left an indelible imprint by spearheading the party in scoring incredible success in the last UP assembly and Lok Sabha elections. After becoming the UP CM, Yogi Adityanath too left his own imprint on the national level during the last 3-4 years. He became part of BJP’s national identity and was made star campaigners during the Bengal, Maharashtra, Odisha and Karnataka assembly polls. It would be incorrect to speculate that the BJP leadership would sideline Yogi by removing him from UP leadership. Prime Minister Narendra Modi realizes that it takes years for a leader to gain national prominence and such leaders must be used to the optimum by the party in widening its political base.

Why did Mukul Roy go back to Mamta?

Meanwhile, there was political development in West Bengal, where BJP vice-president Mukul Roy and his son returned to Chief Minister Mamata Banerjee’s Trinamool Congress on Friday. Mukul Roy was the first Trinamool leader to quit the party in 2017 and joined the BJP. His exit triggered an exodus of MLAs and other leaders from TMC to BJP before the Bengal assembly polls.

Mukul Roy won the assembly election on BJP ticket from Krishnagar South. With Mamata retaining power by a huge majority, the reverse exodus has now begun. Mamata Banerjee said on Friday that she would welcome homecoming of those leaders who have behave properly even after joining the BJP. Mukul Roy continues to be an accused in Saradha scam and Narada sting.

Roy probably left the TMC, because he expected that the CBI would avoid putting the heat on him, and secondly, since there was no big leader in Bengal BJP, he would be projected as the chief ministerial candidate. Neither of his expectations materialized. He continues to be an accused in both scams and the BJP did not project him as a CM candidate. With BJP’s defeat in assembly polls, Mukul Roy now had another task in his hand. He wants to project his son in state politics.

Moreover, Mukul Roy was peeved when Suvendu Adhikari, who defeated Mamata Banerjee in Nandigram, was made the Leader of Opposition. Trinamool Congress was keeping a close watch on him. Throughout the election campaign, Mukul Roy never uttered a word against Mamata Banerjee. When Roy’s son posted on his Facebook timeline that state BJP leader should stop criticizing Mamata and her party, now that she has won, Trinamool Congress caught the right signals, and invited the father-son duo to join the party. Mukul Roy can now at least hope that his son would now have a safe political future under Mamata’s leadership.

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चीन में बैठे धोखेबाज़ों ने 5 लाख भारतीयों से कैसे ठगे करोड़ों रुपये

akbआज मैं लोगों को चीन के उन ठगों के बारे में सावधान करना चाहता हूं जिन्होंने भारत में लोगों का पैसा दोगुना करने का वादा किया और इस चक्कर में भारतीयों के हजारों करोड़ रुपये लूटकर चलते बने। इन ठगों ने लगभग 5 लाख भारतीयों की मेहनत की कमाई पर डाका डाला है। भारत के भोले-भाले लोगों ने कम समय में ज्यादा पैसा कमाने की उम्मीद में इन चीनी ऐप्स को 50 लाख से ज्यादा बार डाउनलोड किया था। जिस बड़े पैमाने पर ठगी की इन घटनाओं को अंजाम दिया गया, उससे साफ पता चलता है कि यह एक जानलेवा चीनी वित्तीय वायरस की तरह था जो ऐसे समय मे भारतीयों के पैसे लूटने की कोशिश कर रहा था, जब घातक चीनी कोरोना वायरस उपमहाद्वीप में अपने पांव पसार रहा था।

पूरे फाइनेंशियल रैकेट का भंडाफोड़ तब हुआ जब दिल्ली पुलिस ने इन चीनी ऐप्स के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई करते हुए भारत में 12 लोगों को गिरफ्तार किया। उनमें से ज्यादातर अपने चीनी आकाओं या चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के एजेंट हैं जिन्होंने चीन में बैठे अपने मास्टरमाइंड्स को शेल कंपनियों के जरिए निवेशकों का पैसा इधर से उधर करने में मदद की।

चीन की कुछ कंपनियों ने Google Play Store पर EZPlan और Power Bank जैसे फ्रॉड ऐप्स को उतारा और 24 से 35 दिनों के भीतर इन्वेस्ट किए गए पैसे को दोगुना करने का लालच दिया। 300 रुपये से लेकर 10 लाख रुपये तक के निवेश पर प्रति घंटा या दैनिक आधार पर रिटर्न की पेशकश की गई थी। शुरुआत में पैसे लगाने वाले लोगों का भरोसा जीतने के लिए छोटी रकम पर रिटर्न दिया गया और उसके बाद लंबा हाथ मारा गया। एक समय तो चीनी ऐप्स इतने लोकप्रिय हो गए थे Play Store पर सबसे पॉप्युलर ऐप्स में Power Bank नंबर 4 पर था।

इन ऐप्स में पैसा लगाने वाले सैकड़ों लोगों द्वारा दिल्ली पुलिस में शिकायत करने के बाद एक युवा साइबर सेल अधिकारी को चीनी नेटवर्क में घुसपैठ करने और विभिन्न खातों में पैसे के ट्रांसफर के बारे में पता लगाने के काम पर लगाया गया था। चीनी नेटवर्क में घुसपैठ के बाद दिल्ली पुलिस लिंक पेमेंट गेटवे, यूपीआई, ट्रांजेक्शन आईडी और घोटालेबाजों द्वारा इस्तेमाल किए गए बैंक खातों की पहचान करने में कामयाब हो गई। कई कनेक्टेड सेलफोन नंबरों का पता चला जिनमें से ज्यादातर की जड़ें चीन में मिलीं। अब तक 25 शेल कंपनियों की पहचान की जा चुकी है जिनके जरिए घोटाले के पैसे को चीन ट्रांसफर किया जा रहा था।

दिल्ली पुलिस ने पहले संदिग्ध शेख रॉबिन को पश्चिम बंगाल के उलुबेरिया से गिरफ्तार किया। दो चार्टर्ड एकाउंटेंट, रौनक बंसल और अविक केडिया को दिल्ली और गुरुग्राम से पकड़ा गया, जबकि 5 अन्य आरोपियों उमाकांत आकाश जॉय्स, वेद चंद्र, हरिओम, अरविंद और अभिषेक मंसारमानी को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया। वे इन शेल कंपनियों के निदेशक के रूप में काम कर रहे थे। दो और आरोपियों, शशि बंसल और मिथिलेश शर्मा को फर्जी कंपनियां और बैंक खाते उपलब्ध कराने के आरोप में पकड़ा गया । दिल्ली एयरपोर्ट से एक तिब्बती महिला को भी गिरफ्तार किया गया।

दिल्ली पुलिस के कमिश्नर एस. एन. श्रीवास्तव के मुताबिक, पुलिस ने विभिन्न बैंक खातों और पेमेंट गेटवे में 11 करोड़ रुपये फ्रीज कर दिए और चार्टर्ड एकाउंटेंट अविक केडिया के गुरुग्राम स्थित घर से 97 लाख रुपये नकद जब्त किए हैं। उन्होंने अपने चीनी आकाओं के लिए 110 से अधिक शेल कंपनियां बनाई थीं। वह अपने चीनी मास्टरमाइंड से शेल कंपनियां बनाने के लिए 3 लाख रुपये लेता था। एक अन्य चार्टर्ड अकाउंटेंट रौनक बंसल सारे लेन-देन का रिकॉर्ड रखता था, और क्रिप्टोकरंसी के माध्यम से अपने चीनी आकाओं को पैसे ट्रांसफर करता था।

जांच के दौरान पता चला कि उनका ‘हेडक्वॉर्टर’ पश्चिम बंगाल में उलुबेरिया के पास कहीं था, जहां से वे बंगाल, ओडिशा, असम और अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों में लोगों को निशाना बनाते थे। बाद में उन्होंने दिल्ली एनसीआर और अन्य राज्यों में अपना जाल फैलाया। पुलिस ने कहा, पावर बैंक ऐप ने खुद को बेंगलुरु स्थित स्टार्टअप के रूप में पेश किया, जबकि EZPlan भारत में स्थित इसी नाम की अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध था। इन दोनों ऐप्स के सर्वर चीन में थे।

ये ठग लोगों से उनके व्हाट्सऐप और टेलीग्राम नंबरों पर रैंडमली कॉन्टैक्ट करते थे, और जो भारतीय इसमें रूचि दिखाते थे उनको फर्जी बैंक खातों की खरीद, शेल कंपनियां बनाने, चीनी ऐप्स को सर्कुलेट और प्रमोट करने और पैसे ट्रांसफर करने के लिए अपने पार्टनर्स के रूप में काम पर रख लेते थे। इन ऐप्स को कई YouTube चैनलों पर भी प्रमोट किया गया था, जबकि पैसा लगाने वाले संभावित भारतीयों को बल्क एसएमएस के जरिए चैट लिंक भेजे गए थे।

एक बार किसी ने ऐप पर अपना नाम रजिस्टर कर लिया, तो उसे बार-बार आकर्षक रिटर्न पाने के लिए पैसा लगाने को कहा गया, और लोग इनके झांसे में आ गए। दिल्ली के वजीराबाद लेकर से बिहार के बांका तक, बंगाल के बोलपुर से लेकर कर्नाटक के बेल्लारी तक, भोले-भाले लोगों से उनका पैसा ठग लिया गया। उनमें से ज्यादातर को इन अर्निंग ऐप्स के बारे में WhatsApp और Facebook से पता चला था।

इन ठगों के काम करने का तरीका बेहद आसान था। एक बार जब कोई शख्स ऐप को डाउनलोड करता है और अपना बैंक डिटेल रजिस्टर करता है, तो उसे शुरुआती रकम के रूप में 6 रुपये मिलते थे। 300 रुपये का निवेश करने पर एक दिन में 10 पर्सेंट मनीबैक, और २४ दिनों के बाद इन्वेस्ट किए गए पैसे को दोगुना करने की पेशकश की जाती थी। इस ऐप को कम से कम 10 दोस्तों या रिश्तेदारों को फॉरवर्ड करने वाले लोगों को इन्सेंटिव अलग से देने की बात कही गई। उन्होंने लोगों को एक निश्चित शुल्क का भुगतान करने पर करोड़पति बनने के सपने दिखाए। शुरुआत में ऐप ने लोगों को रिटर्न में पैसे भी दिए, लेकिन जैसे ही किसी ने ज्यादा पैसा लगाया, तो रिटर्न के साथ-साथ अकाउंट भी बंद हो गया और ऐप्स से संपर्क करने का कोई जरिया भी नहीं बचा।

दिल्ली पुलिस अब तक 200 करोड़ रुपये की ठगी का रिकॉर्ड निकाल चुकी है। पैसों का यह ट्रांसफर 2 पेमेंट गेटवे के जरिए हुआ है। पुलिस का मानना है कि पूरा घोटाला कई हजार करोड़ रुपये का हो सकता है क्योंकि उम्मीद है कि ठगी का शिकार हुए कई और लोग अपनी इन्वेस्टमेंट की डिटेल भेजेंगे।

पावर बैंक, लाइटनिंग पावर बैंक, EZMoney, सन फैक्ट्री, पॉकेट वॉलेट नाम के अर्निंग ऐप्स से लोगों को निवेश दोगुना करने का लालच देते हुए व्हाट्सएप और फेसबुक मैसेंजर के जरिए मैसेज भेजे गए। यदि आपको इन चाइनीज ऐप्स से कोई मैसेज मिलता है तो उन्हें तुरंत डिलीट कर दें। किसी भी कीमत पर अपना नाम और बैंक डिटेल्स न बताएं। वे शिकार के लिए घूमतीं भूखी शार्क की तरह हैं। चीन में बैठे मास्टरमाइंड कोरोना लॉकडाउन के चलते अपने घरों में बैठे लाखों भारतीयों के हालात का फायदा उठा रहे थे।

अपने जाल में फंसाने के लिए इन कंपनियों ने लोगों को अपने ऐप पर एक घंटा बिताने की एवज में पहले 6 से 10 रुपये दे दिए। इसके बाद पैसा लगाने वालों का लालच बढ़ा तो उनसे कहा गया कि वे 300 रुपये, 3000 रुपये और यहां तक कि 30,000 रुपये भी कमा सकते हैं। कंपनी ने कहा कि यदि निवेशक इन ऐप्स की स्कीम में अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भी जोड़ते हैं तो उनके द्वारा लगाए गए पैसे दोगुने हो जाएंगे। दिल्ली पुलिस ने कहा, इन कंपनियों के पीछे जो लोग थे वे खुद को डिजिटल मार्केटिंग का ग्लोबल लीडर बताते थे। कभी-कभी वे अपनी कंपनियों को टेक स्टार्टअप कहते थे तो कई बार वे अपनी कंपनियों सर्विस प्रोवाइडर बताकर लूट लेते थे।

दिल्ली पुलिस ने इन सारे चाइनीज ऐप्स पर करवाई की है और इंटरनेट की मदद से इन्हें बैन करवा दिया है। गूगल ऐप स्टोर को भी दिल्ली पुलिस ने लिखा है कि इस तरह के ऐप्स को स्टोर में जगह देने से पहले उनकी जांच करें। लेकिन दिक्कत यह है कि यदि ऐसे कुछ ऐप्स हटा भी दिए जाते हैं, तो भी फ्रॉड करने वाले नए नामों वाले ऐप्स के साथ वापस आ जाएंगे। इस चीनी वायरस का कोई स्थायी समाधान नहीं है।

इस समस्या का एकमात्र समाधान यह है कि लोग जल्दी पैसा कमाने के लालच में न पड़ें और ऐसे धोखेबाजों के संपर्क में आने से बचें। यदि कोई पहले ही ठगा जा चुका है तो उसे तुरंत पुलिस से संपर्क करके सारी डिटेल देनी चाहिए। यदि उनका पैसा भारत में ही है और बाहर नहीं गया है तो इस बात की काफी संभावना है कि उन्हें उनका पैसा वापस मिल जाए। अगर पैसा चीन को ट्रांसफर कर दिया गया है, तो इसके वापस मिलने की संभावना न के बराबर है।

महामारी के इस वक्त में साइबर क्राइम के मामले पूरे भारत में उछाल पर हैं। 2019 में साइबर ठगी के 1,94,000 मामले सामने आए थे। महामारी के दौरान 2020 में यह संख्या बढ़कर 11,58,000 हो गई। 25 अप्रैल से 24 मई तक, जब कोरोना की दूसरी लहर अपने पीक पर थी, एक महीने में अकेले दिल्ली पुलिस को साइबर क्राइम की 791 शिकायतें मिली थीं। इस दौरान कुल 596 FIR दर्ज की गईं। अब इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पूरे देश में किस पैमाने पर और कितनी तादाद में साइबर क्राइम करने वाले गैंग ऐक्टिव हैं। इस सबसे अपने आप को बचाने का एक ही तरीका है कि आप ऐसे किसी भी संदिग्ध ऐप के संपर्क में आने से बचें जो आपसे आपके पैसे को दोगुना करने का वादा करता हो। लालच में मत पड़िए, अपनी मेहनत की कमाई को लुटने से बचाने का यही एकमात्र तरीका है।

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How masterminds sitting in China duped 5 lakh Indians of crores of rupees

AKB Today I would like to caution people about Chinese scamsters who promised to double the money of investors in India and, in the process, wiped out the earnings of Indians amounting to several thousand crores. Nearly 5 lakh Indians have been cheated. More than 50 lakh downloads of these Chinese apps were made by gullible investors in India in the hope of earning a quick profit. The scale of operation clearly indicates it was like a deadly Chinese financial virus that was trying to rob Indians of their money, at a time when the deadly Chinese Coronavirus was sweeping the subcontinent.

The entire financial racket was busted when Delhi Police, in a major crackdown against these Chinese apps, arrested 12 people in India. Most of them are agents of their Chinese masters or chartered accountants who helped in siphoning off investors’ money through shell companies to their masterminds sitting in China.

Some China-based entities floated malicious apps like EZPlan and Power Bank on Google Play Store, offering to double returns on investments within 24 to 35 days. The returns were offered on hourly or daily basis with investments ranging from Rs 300 to Rs 10 lakh. Initially, the payouts were made on small amounts to win the trust of investors and then the major siphoning took place. The Chinese apps became so popular that at one point of time, Power Bank was ranking at No.4 among popular apps on Play Store.

After hundreds of investors complained to Delhi Police, a young cyber cell officer was deputed as decoy to infiltrate the Chinese network and find out about the transfers of money to different accounts. With the help of this decoy, police was able to identify link payment gateways, UPIs and transaction IDs, and bank accounts used by the scamsters. Several connected cellphone numbers were traced, mostly originating from China. Till now, 25 shell companies have been identified through which the scam money was being transferred to China.

Delhi Police picked up the first suspect, Sheikh Robin from Uluberia, West Bengal. Two chartered accountants, Ronak Bansal and Avik Kedia were picked up from Delhi and Gurugram, while five others, Umakant Akash Joys, Ved Chandra, Hari Om, Arvind and Abhishekh Mansaramani, were arrested from Delhi. They were acting as directors of these shell companies. Two more persons, Sashi Bansal and Mithilesh Sharma, were caught for providing bogus companies and bank accounts. A Tibetan woman was also held from Delhi airport.

According to Delhi Police Commissioner S. N. Shrivastava, police has blocked Rs 11 crore in various bank accounts and payment gateways and Rs 97 lakh cash was seized from the Gurugram house of one of the chartered accountants Avik Kedia. He had set up more than 110 shell companies for his Chinese masters. He used to charge Rs 3 lakhs from his Chinese masterminds for creating shell companies. The other chartered accountant Ronak Bansal used to keep track of all transactions, and transfer money through cryptocurrency to his Chinese masters.

During investigation, it was found that their ‘headquarter’ was somewhere near Uluberia in West Bengal, from where they used to target people in Bengal, Odisha, Assam and other north eastern states. Later they spread their tentacles to Delhi NCR region and other states. Police said, Power Bank app projected itself as a Bengaluru-based startup, while EZPlan was available on its website of the same name, based in India. The servers of both these apps were located in China.

The scamsters used to randomly contact people on their WhatsApp and Telegram numbers, and hired interested Indians as their partners for procuring bogus bank accounts, creating shell companies, circulating and promoting the Chinese apps and transferring money. These apps were also promoted on several YouTube channels, while chat links were sent through bulk SMS to prospective Indian investors.

Once the investor registered his name on the apps, he was repeatedly asked to invest money to earn lucrative returns, and people fell for the bait. From Wazirabad, Delhi, to Banka(Bihar), Bolpur(Bengal) to Bellary (Karnataka), gullible investors were cheated of their money. Most of them came to know about these money-making apps from WhatsApp and Facebook.

The modus operandi was simple. Once a person downloaded the app and registered his bank details, he used to get Rs 6 as initial amount. Ten per cent moneyback was offered in one day on investing Rs 300, and double the money invested after 24 days. The apps offered incentives to those who forwarded the app to at least ten friends or relatives. They promised to make people millionaires, if one paid a certain fees to become a VIP member. Initially, the apps paid money to investors, but once a large amount was invested, the investors lost track of the contact persons from the apps and the shell bank accounts are found closed.

Till now, Delhi Police has calculated the amount of siphoning money at Rs 200 crore. These transfers took place through two gateways. Police believe the entire scam could run into several thousand crores as more investors are expected to send details of their investments.

Messages were sent from earning apps named Power Bank, Lightning Power Bank, EZMoney, Sun Factory, Pocket Wallet, through WhatsApp and Facebook Messenger to targets offering to double their investments. If you get any message from these Chinese apps, delete them immediately. Do not share your name and bank details at any cost. They are like moving sharks waiting for the kill. The Chinese masterminds were taking advantage of millions of Indians sitting in their homes, due to pandemic lockdowns, unable to move out.

To sweeten the bait, these companies offered Rs 6 to Rs 10 for spending one hour on the earning app. Investors were lured to earn Rs 300, Rs 3000 and Rs 30,000. The company offered to double the money invested if the investors roped in his friends and relatives to these apps. Delhi Police said, the big honchos of these companies used to project themselves as global leaders of digital marketing. They used to call their companies as tech startups. They used to introduce their companies as service providers.

Delhi Police has blocked all these malicious Chinese apps in India with help from internet. Google App Store has been asked by Delhi Police not to keep these malicious apps in the store, and check antecedents before adding them in store. But the problem is, even if a few malicious apps are removed, the scamsters will return with apps having new names. There is no permanent solution to this Chinese virus.

The only solution is: people should stop being greedy in their urge for earning quick money and avoid any contact with such scamsters. If anybody has been duped, he or she must contact Delhi Police immediately and provide details. There is a slim chance that they may get their money back only if it is in India. If the money has been transferred to China, there is negligible chance of getting back the money.

Already cyber crimes are on the rise across India during this pandemic period. In 2019, 1,94,000 cyber crimes were reported. It jumped to 11,58,000 in 2020 during the pandemic period. When the second wave was at its peak, Delhi Police cyber crime cell got 791 complaints within a span of one month, from April 25 to May 24. 596 FIRs were filed during this period. This is clear indication of cyber crime gangs active across India. The only way to protect yourself is to avoid contacts with any such questionable app that promises you to double your money. Shun greed: this is the only way to prevent being duped of your hard earned money.

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अंगदान के मौजूदा कानूनों में बदलाव की जरूरत

vlcsnap-error474आज मैं सूरत की 46 वर्षीय महिला कामिनी पटेल के परिजनों को सलाम करना चाहता हूं। कामिनी को ब्रेन हैमरेज के बाद ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया था। मानवता दिखाते हुए परिजनों ने ब्रेन डेड हो चुकीं कामिनी पटेल के शरीर से ऑर्गन हार्वेस्टिंग की इजाजत दे दी। अधिकारियों ने भी तत्परता दिखाई और बेहद ही सावधानी से सड़क एवं हवाई मार्ग द्वारा अंगों को अहमदाबाद, मुंबई और हैदराबाद भेजा जिससे 7 लोगों को नई जिंदगी मिल गई।

कामिनी पटेल सूरत के बारडोली तालुका की रहने वाली थीं। उसके दिल, फेफड़े, लीवर, किडनी और आंखों को तुरंत 3 अलग-अलग शहरों में मौजूद डोनर्स के पास भेजा गया। कामिनी को 19 मई को हाई ब्लड प्रेशर की वजह से ब्रेन हैमरेज हुआ था। उन्हें सूरत के शेल्बी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां न्यूरोसर्जन्स ने सर्जरी की थी।

वह लगातार कोमा में रहीं और 5 जून को डॉक्टरों की एक टीम ने उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया। कामिनी के पति भरत पटेल एक किसान हैं। वह एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और अमेरिका स्थित एक ग्रुप का हिस्सा हैं जो कोविड -19 पीड़ितों की मदद करने में सक्रिय रहा है। डोनेट लाइफ नाम के एक एनजीओ ने कामिनी के परिवार से संपर्क किया और उनके पति और 2 बेटे ऑर्गन हार्वेस्टिंग के लिए राजी हो गए।

इसके बाद बेहद ही सावधानी से ऑपरेशन की प्लानिंग की गई और इसे मुस्तैदी के साथ अंजाम दिया गया। दिल को सूरत से मुंबई भेजा जाना था और 4 घंटे के भीतर ही इसका ट्रांसप्लांट होना था, दोनों फेफड़े हैदराबाद भेजे जाने थे, और किडनी एवं लीवर अहमदाबाद में डोनर्स को दिए जाने थे ताकि इनको वक्त रहते मरीजों के शरीर में ट्रांसप्लांट किया जा सके। इस ऑपरेशन के हर हिस्से को सावधानी से अंजाम देना था। कामिनी के परिजनों ने अंतिम बार उन्हें हॉस्पिटल के बेड पर लेटे देखा, उनके बेटे अपनी मां के पैरों पर सिर रखकर रोए और फिर बाहर आ गए। इसके तुरंत बाद डॉक्टरों की टीम ICU में गई और ऑर्गन हार्वेस्टिंग शुरू कर दी जिसमें ऑर्गन्स को प्रिजर्व करने का प्रोसेस भी शामिल था। इसके साथ ही, अहमदाबाद, मुंबई और हैदराबाद में डॉक्टरों की टीम ऑर्गन्स के आने बाद उनके ट्रांसप्लांट के लिए आईसीयू में तैयार थी।

पूरे ऑपरेशन को नेशनल ऑर्गन ऐंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (NOTTO) से जुड़े गुजरात के स्टेट ऑर्गन ऐंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (SOTTO) की मदद से कोऑर्डिनेट किया गया था। चूंकि हार्ट को लेने वाला कोई नहीं था, इसलिए इसे मुंबई के एच.एन. रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल भेज दिया गया। वहीं, पूरे पश्चिमी क्षेत्र में फेफड़ों की जरूरत भी किसी मरीज को नहीं थी, इसलिए इन्हें हैदराबाद के KIMS अस्पताल में एक 31 वर्षीय महिला मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट करने के लिए भेजा गया। एक किडनी अहमदाबाद के स्टर्लिंग अस्पताल में भर्ती मरीज को भेजी गई, जबकि उनकी आंखें सूरत के लोक दृष्टि आई बैंक को दान कर दी गईं।

रात के अंधेरे में शहर के सन्नाटे को चीरती ऐंबुलेंस एक स्पेशल कॉरिडोर के जरिए ऑर्गन को एयरपोर्ट तक ले गई, ताकि उसे हवाई मार्ग से मुंबई भेजा जा सके। आमतौर पर सूरत एयरपोर्ट रात को बंद रहता है, यहां से फ्लाइट्स की आवाजाही नहीं होती है, लेकिन चूंकि दो जिंदगियों का सवाल था, पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने चार्टर्ड फ्लाइट्स के जरिए दिल और फेफड़ों को क्रमश: मुंबई और हैदराबाद पहुंचाने के लिए एयरपोर्ट को खोल दिया। सूरत से हैदराबाद की 940 किलोमीटर की दूरी 150 मिनट में पूरी की गई। कामिनी की किडनी और लीवर को 3 घंटे के भीतर एक स्पेशल कॉरिडोर के जरिए सड़क मार्ग से अहमदाबाद पहुंचाया गया। रात में ही अहमदाबाद में एक महिला को कामिनी पटेल की किडनी लगा दी गई, जबकि उनका लीवर 58 साल के एक मरीज को मिल गया।

हैदराबाद के KIMS हॉस्पिटल में 31 वर्षीय महिला मरीज नैना पाटिल के परिवार के लोग आज कामिनी को देवी का दर्जा दे रहे हैं। नैना 18 अप्रैल को कोरोना वायरस की चपेट में आ गई थीं। उन्हें 22 अप्रैल को जलगांव के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन हालत में कोई सुधार नहीं होने के कारण उन्हें KIMS अस्पताल में भर्ती कराने के लिए हैदराबाद ले जाना पड़ा। इस अस्पताल में 15 दिनों तक उनका इलाज चला, लेकिन इस दौरान उनके दोनों फेफड़े बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके थे। उनके पति ने ऑर्गन डोनेशन के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं से संपर्क किया लेकिन कई दिनों तक कोई जवाब नहीं मिला।

कई दिन के इंतजार के बाद दुआ कबूल हुई। अचानक 6 जून को नैना के पति के पास सूरत से फोन आया। KIMS अस्पताल के डॉक्टरों ने तुरंत सारे जरूरी परीक्षण किए, और सूरत के डॉक्टरों को जानकारी दी कि ट्रांसप्लांट हो सकता है। दो-ढाई घंटे में फेफड़े हवाई मार्ग के जरिए हैदराबाद पहुंचे और उसी रात उन्हें ट्रांसप्लांट कर दिया गया। नैना और उनके परिवार के लोग उनकी जान बचाने के लिए कामिनी पटेल के परिजनों को धन्यवाद कहते नहीं थक रहे हैं।

आमतौर पर सूरत से अहमदाबाद तक के 260 किलोमीटर के सफर को सड़क मार्ग के जरिए पूरा करने में 5 घंटे का वक्त लगता है। लेकिन 6 जून को ‘ग्रीन कॉरिडोर’ के कारण यह दूरी 3 घंटे में ही तय हो गई। अहमदाबाद के किडनी डिजीज ऐंड रिसर्च सेंटर में 31 साल की एक महिला को किडनी की जरूरत थी। इसी महिला के शरीर में सूरत से आई किडनी ट्रांसप्लांट की गई। जबकि उनकी दूसरी किडनी अहमदाबाद के स्टर्लिंग अस्पताल में 27 साल की एक महिला को लगाई गई। उनका लिवर अहमदाबाद के ही 58 साल के एक मरीज को लगाया गया।

हमें मानवता की यह महान सेवा करने के लिए कामिनी पटेल के परिजनों की सराहना करनी चाहिए। आमतौर पर हमारे समाज के एक बड़े हिस्से में अंगदान को एक सोशल टैबू माना जाता है, इसमें रीति-रिवाज और परंपरा आड़े आ जाते हैं और इसका विरोध करने की जरूरत है। एक परिवार ने ऑर्गन डोनेशन का फैसला किया, एक महिला के अंग दान किए गए और 5 लोगों को नई जिंदगी मिल गई। इसके अलावा 2 और लोग उस महिला की आंखों से फिर से देख सकेंगे। आपको जानकर दुख होगा कि हमारे देश में 40 लाख लोगों में सिर्फ 5 लोग ही अंगदान करते हैं, जबकि अमेरिका में 40 लाख में से 128 और स्पेन में 188 लोग ऑर्गन्स डोनेट करते हैं।

AIIMS के ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गनाइजेशन (ORBO) के मुताबिक, हमारे देश में हर साल 1.5 से 2 लाख लोगों को किडनी ट्रांसप्लाट की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ 8000 ट्रांसप्लांट्स ही हो पाते हैं। इसी तरह हर साल 40 से 50 हजार लिवर ट्रांसप्लांट के केस आते हैं, लेकिन मुश्किल से सिर्फ 1,500 लोगों को ही लिवर मिल पाता है। देश में एक साल में कम से कम 15 हजार हार्ट ट्रांसप्लांट्स के केस आते हैं, लेकिन सिर्फ 250 लोगों को ही दिल मिल पाता है। 2.5 लाख ऐसे लोग हैं जिन्हें हर साल कॉर्निया ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ 60,000 लोगों को ही कॉर्निया मिल पाता है।

लोगों को मौत के बाद अंगदान के लिए प्रेरित करने के लिए सामाजिक जागरूकता की जरूरत है। हालांकि एक दिक्कत और है, जीवित लोगों के लीवर ट्रांसप्लांट्स से जुड़े कई मामलों में कानूनी प्रक्रियाओं में काफी वक्त लग जाता है। इसका प्रोसेस इतना लंबा है, इतना कॉम्प्लिकेटेड है कि ज्यादातर मामलों में फाइल जब तक इस टेबल से उस टेबल तक पहुंचती है, और कमिटी डोनेशन को अप्रूवल देती है, तब तक मरीज की मौत हो जाती है।

आज मैंने 45 साल के एक मरीज को लिवर ट्रांसप्लांट के लिए मदद करने की कोशिश की। उनके परिवार में एक बूढ़े पिता और 2 छोटे-छोटे बच्चे हैं, और पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनके ऊपर है। उनकी पत्नी अपना लीवर डोनेट करने के लिए तैयार थीं, लेकिन उनका ब्लड ग्रुप नहीं मिलता। अब मैचिंग ब्लड ग्रुप के जो डोनर मिले हैं वह दूर के रिश्तेदार हैं। डॉक्टर्स तैयार हैं और जल्दी ट्रांसप्लांट करना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए मेडिकल बोर्ड का अप्रूवल चाहिए जो आसान नहीं है। असल में ऑर्गन डोनेशन के लिए जो कानून बने हैं, वे पुराने वक्त के हिसाब से बने हैं और अब उनमें बदलाव की जरूरत है। जब तक इन कानूनों में बदलाव नहीं किया जाता, बड़े पैमाने पर ऑर्गन ट्रांसप्लांट करना बहुत मुश्किल है।

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Organ donation laws are outdated, they need to be changed

akbToday I want to salute the family members of a 46-year-old woman Kamini Patel from Surat, who was declared brain dead after a severe brain haemorrhage. In a benevolent act of humanity, the family members allowed organ harvesting from her body. The timely plan, organized meticulously by officials both by road and air, gave a fresh lease of life to seven lives in Ahmedabad, Mumbai and Hyderabad.

Kamini Patel hailed from Bardoli taluka of Surat. Her heart, lungs, liver, kidney and eyes were immediately sent to donors spread in three different cities. Kamini had a severe brain haemorrhage on May 19 due to high blood pressure. She was rushed to Shelby Hospital in Surat, where neurosurgeons performed a surgery.

She continued to remain in coma and on June 5, a committee of doctors declared her brain dead. Kamini’s husband Bharat Patel is a farmer and as a social activist, he is part of a US-based group that has been active in providing support to Covid-19 victims. An NGO called Donate Life got in touch with the family, and her husband and two sons agreed for organ harvesting.

And then, the most meticulously planned operation was executed with precision. The heart was to be sent from Surat to Mumbai and transplanted within four hours, both the lungs were to be sent to Hyderabad, and kidney and liver were to be given to donors in Ahmedabad for immediate transplant in the bodies of recipients. Every part of this operation had to be executed meticulously. Kamini’s family members had a last look at her near dead body, her sons wept at her feet, and then came out. Soon after, team of doctors entered the ICU and started organ harvesting that involved preserving the organs needed for transplant. Simultaneously, teams of doctors in Ahmedabad, Mumbai and Hyderabad were ready in ICUs for receiving the organs for transplant.

The entire operation was coordinated with the help of Gujarat’s State Organ and Tissue Transplant Organisation(SOTTO), which is connected to National Organ and Tissue Transplant Organisation (NOTTO). Since there were no takers for the heart, it was sent to H. N. Reliance Foundation Hospital in Mumbai. Since there were no takers for the lungs in the entire western region, they were sent to a 31-year-old woman recipient in KIMS Hospital in Hyderabad. One kidney was sent to a patient in Sterling Hospital in Ahmedabad, while her eyes were donated to the Lok Drishti Eye Bank in Surat.

The heart was harvested first. It was transported 300 km away to Mumbai within a span of exactly 100 minutes. At the dead of night, an ambulance carried the organ to airport through a special corridor, for being sent to Mumbai by air. Normally Surat airport remains closed for night operations, but on this special night, police and local administration got the airport opened, for transporting the heart and lungs by chartered flights to Mumbai and Hyderabad respectively. The 940-km distance from Surat to Hyderabad was completed within 150 minutes. Kamini’s kidney and liver were transported to Ahmedabad by road, through a special corridor, within three hours. A woman patient in Ahmedabad got the donated kidney the same night through transplantation. A 58-year-old patient got her liver transplanted.

At the RIMS Hospital in Hyderabad, family members of 31-year-old woman patient Naina Patil are today literally worshipping Kamini as a saviour goddess. Naina was infected with Covid-19 on April 18. She was admitted to a Jalgaon hospital on April 22 but since there was no improvement, she had to be airlifted to Hyderabad to be admitted to RIMS. She was treated in RIMS for 15 days, but by that time, both her lungs were badly damaged. Her husband got in touch with organ donation NGOs and waited for several days.

Ultimately, Fate smiled and on June 6, Naina’s husband got a call from Surat. Doctors at RIMS Hospital immediately carried out tests, and told their Surat counterparts that the transplant was feasible. The lungs reached Hyderabad by air within two and a half hours, and both the organs were transplanted the same night. Naina and her family members have thanked Kamini Patel’s family for acting as a Good Samaritan in saving her life.

The distance from Surat to Ahmedabad is roughly 260 km and on normal days it takes at least five hours to reach Ahmedabad. On June 6, a ‘green corridor’ was created and the distance was covered in less than three hours. At Kidney Disease Research Centre in Ahmedabad, Kamini’s kidney was transplanted in the body of a 31-year-old woman, while another kidney was transplanted in the body of a 27-year-old woman in Sterling Hospital, Ahmedabad. The liver was transplanted in the body of a 58-year old patient in the same city.

We must praise the family members of Kamini Patel for doing a great service to humanity. Normally, in large sections of our society, donating organs is considered a social taboo, and this needs to be countered. A woman, on her death bed, donates all her organs, giving fresh lease of life to five persons, and eyesight to two others. But, in India, only five out of 4 million people donate their organs, while the average donors in USA is 128 and in Spain 188 out of 4 million people.

According to AIIMS Organ Retrieval Banking Organization (ORBO), every year 1.5 to two lakh people require kidney transplant, but hardly 8,000 kidney transplants are carried out. Every year, 40 to 50,000 liver transplant cases come up, but hardly 1,500 livers are available for transplant. Every year, nearly 15,000 heart transplants are required, but hardly 250 hearts are available from donors. More than 2.5 lakh people need cornea transplants, but hardly 60,000 get cornea transplants.

Social awareness is needed to motivate people to donate their organs after death. In several cases involving kidney transplants from people who are alive, legal processes are time taking. By the time, a recipient gets organ from a relative donor, he or she dies before the committee approves the donation.

Today, I tried to help a 45-year-old patient in getting a liver transplant. He had an old father and two small kids to look after, and was the sole earning member of his family. His wife was ready to donate her liver to her husband but their blood groups did not match. A matching blood group donor, who was a distant relative, was available. Doctors were ready for transplant, but it is very difficult to get approval from the medical board. Laws relating to organ donations are outdated and need to be changed. Unless these laws are changed, it is very difficult to carry out organ transplants on a large scale.

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मौत के सौदागर बेच रहे हैं नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन

AKb (1)आज मैं सूरत और इंदौर के कुछ बेईमान व्यापारियों के एक गिरोह के बारे में बात करना चाहता हूं। इस गिरोह ने पिछले महीने महामारी की दूसरी लहर के पीक पर होने के दौरान गंभीर रूप से बीमार कोविड -19 मरीजों के रिश्तेदारों को हजारों नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बेचे। सूरत और इंदौर की पुलिस ने अब तक इस जानलेवा रैकेट में शामिल 40 लोगों को गिरफ्तार किया है। एक ऐसे समय में जब रेमडेसिविर इंजेक्शन भारी मांग के चलते बाजारों से गायब हो गए थे, इन लोगों ने लगभग एक लाख नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बनाने और उन्हें जरूरतमंद कोरोना मरीजों को बेचने की प्लानिंग की थी।

ये लोग वास्तव में मौत के सौदागर हैं। कोरोना से पीड़ित उन बेचारे मरीजों के बारे में सोचिए जो महामारी की पीक के दौरान अपने जिंदगी के लिए लड़ रहे थे और उनके रिश्तेदार रेमडेसिविर इंजेक्शन के वायल्स खरीदने के लिए भागदौड़ कर रहे थे। इंदौर पुलिस ने अब तक इस रैकेट में शामिल 29 लोगों को गिरफ्तार किया है जबकि सूरत पुलिस की गिरफ्त में 11 लोग आए हैं। गिरोह के सदस्य ग्लूकोज के साथ नमक मिलाकर नकली इंजेक्शन बना रहे थे और उन्हें असली रेमडेसिविर के वायल्स के रूप में बेच रहे थे। सिर्फ 3 दिन के भीतर इस गैंग के लोगों ने एक करोड़ रुपये की कमाई की और 15 दिनों में उनकी कमाई 3 करोड़ रुपये हो गई। एक इंजेक्शन बनाने में, शीशी खरीदने में और उस पर रेमडेसिविर का नकली होलोग्राम लगाकर सप्लाई करने में कुल 40 से 50 रुपये का खर्च आया, और इस एक इंजेक्शन को 5,000 से लेकर 50,000 रुपये तक में बेचा गया। इंदौर पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि इस गैंग ने करीब एक लाख नकली रेमडेसिविर वायल्स को तैयार करने और उन्हें बाजार में उतारने की प्लानिंग की थी।

पुलिस ने अस्पतालों से नकली इंजेक्शन के कारण मरने वाले कोरोना के 19 मरीजों की जानकारी जुटाई है और 4 अन्य राज्यों के अस्पतालों के रिकॉर्ड की जांच की जा रही है। इस गैंग ने गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नकली इंजेक्शन बेचे थे। गैंग के एक सदस्य सुनील ने पुलिस को बताया कि उसने अकेले 1,200 नकली इंजेक्शन बेचे थे, जिनमें से 700 इंजेक्शन जबलपुर सिटी हॉस्पिटल में और बाकी के 500 इंजेक्शन इंदौर में रिटेलर्स को बेचे गए थे।

ये नकली इंजेक्शन गुजरात के सूरत में स्थित के फार्म हाउस में बनाए जा रहे थे। इंदौर पुलिस को इस रैकेट के बारे में संयोग से उस समय पता चला जब उसने दिनेश चौधरी और धीरज सजनानी नाम के 2 लोगों को गिरफ्तार किया। इन दोनों के कब्जे से नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन की कई शीशियां मिली थीं। जब पूछताछ हुई तो इन्होंने अपने एजेंट असीम भाले और प्रवीण का नाम लिया। पुलिस ने इन्हें भी पकड़ लिया। जब चारों से पूछा गया कि नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन कहां से आया, तो इन्होंने मध्य प्रदेश में नकली इंजेक्शन के मेन सप्लायर सुनील मिश्रा का नाम लिया। पुलिस ने सुनील मिश्रा को भी धर दबोचा और पूछताछ में उसने गिरोह के मास्टरमाइंड्स कौशल वोरा और पुनीत शाह का नाम ले लिया। गैंग के लोगों ने कबूल किया कि उन्होंने गुजरात में भी अलग-अलग शहरों में एजेंट्स के जरिए करीब 5000 नकली इंजेक्शन बेचे थे। पुलिस ने बताया कि इंदौर में करीब 700 लोगों को नकली इंजेक्शन बेचे गए, और जिन्हें ये नकली इंजेक्शन लगा उनमें से 10 लोगों की मौत हो गई। इन आंकड़ों में इजाफा हो सकता है क्योंकि पुलिस अभी और हॉस्पिटल रिकॉर्ड्स को खंगाल रही है।

मध्य प्रदेश के एक अन्य शहर जबलपुर में एक प्राइवेट अस्पताल का मालिक ही इस रैकेट में शामिल था। सुनील मिश्रा और जबलपुर सिटी हॉस्पिटल के डायरेक्टर सरबजीत सिंह मोखा के बीच डील हुई। सुनील में 7 से 8 हजार रुपये के बीच एक वायल की कीमत के हिसाब से 500 नकली इंजेक्शन अस्पताल को दिए। उसने यहां कुल मिलाकर 40 लाख रुपये कमाए, जबकि हॉस्पिटल ने अपना मार्जिन निकालकर इन्हें मरीजों को और भी ज्यादा रेट में बेचा। कोरोना के कम से कम 200 मरीजों को नकली इंजेक्शन लगाए गए, जिनमें से 9 मरीजों की मौत हो गई।

डॉक्टर भी असली और नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन के वायल्स में अंतर क्यों नहीं कर पाए? दरअसल, इस गैंग के लोगों ने नकली इंजेक्शन बनाने से पहले पूरी स्टडी की थी। उन्होंने हूबहू असली जैसा ही इंजेक्शन बनाया। कौशल वोरा और पुनीत शाह जल्द से जल्द ढेर सारा पैसा कमाना चाहते थे। उस वक्त रेमेडेसिविर इंजेक्शन सिर्फ उन्हीं लोगों को बेचा जा रहा था जिसके पास कोरोना पॉजिटिव की रिपोर्ट होती थी। असली इंजेक्शन हासिल करने के लिए इन दोनों ने नकली कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट तैयार करवाई, और उस रिपोर्ट के आधार पर प्रशासन से एक असली रेमडेसिविर इंजेक्शन ले लिया। चूंकि ये दोनों मेडिकल लाइन से जुड़े थे, इसलिए इन्हें पता था कि यदि सिर्फ ग्लूकोज शीशी में भरेंगे तो डिस्टिल्ड वाटर मिलाते ही वह पूरी तरह घुल जाएगा, जबकि रेमडेसिविर इंजेक्शन थोड़ा गाढ़ा होता है। इसे गाढ़ा करने के लिए इन लोगों ने ग्लूकोज के साथ नमक मिलाया। ये लोग ये समझ रहे थे कि अगर थोड़ी मात्रा में नमक और ग्लकोज का घोल का इंजेक्शन मरीज को दिया भी जाएगा तो तुरंत किसी तरह का कोई खतरा नहीं होगा और उसकी जान तुरंत नहीं जाएगी। इन लोगों ने इंजेक्शन की पैकिंग और शीशी पर लगे रैपर वापी से लिए और वायल्स पर दवा की डिटेल लिखा हुआ स्टिकर मुंबई से खरीदा। जैसे ही इन्हें रैपर, स्टिकर और शीशियों की सप्लाई मिली, इन दोनों मास्टरमाइंड्स ने नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन ‘तैयार करना’ शुरू कर दिया।

इंदौर के एक अस्पताल के डॉक्टरों ने सबसे पहले रैकेट की कारगुजारियों को पकड़ा। एक मरीज को इंजेक्शन देते समय डॉक्टरों ने नोटिस किया कि इंजेक्शन की शीशी में सामान्य से ज्यादा सॉल्ट है और यह आसानी से लिक्विड में नहीं मिल रहा है। इस बारे में फिर पुलिस को सूचना दी गई और शीशियों को जांच के लिए भेज दिया गया। जांच के दौरान पता चला कि शीशी में रेमडेसिविर दवा की जगह नमक और ग्लूकोज है। मरीजों के परिवार वालों से बात करके पुलिस नकली इंजेक्शन बेचने वालों तक पहुंची, और उन्होंने एजेंटों और वैक्सीन को बनाने वालों के नाम ले लिए। कड़ी मशक्कत और खोजबीन करके इंदौर पुलिस ने उन 650 कोरोना मरीजों के परिवार वालों को ढूंढ़ निकाला, जिन्हें ये नकली इंजेक्शन बेचे गए थे।

सूरत की एसपी उषा राडा ने हमारे रिपोर्टर निर्णय कपूर को बताया कि पुलिस को सूरत के पास स्थित पिंजरत गांव के फॉर्म हाउस से, जहां नकली इंजेक्शन बनाने की फैक्ट्री चलाई जा रही थी, 63 हजार खाली वायल्स और हजारों नकली स्टीकर बरामद किए गए। मुंबई पुलिस ने नकली स्टिकर और खाली शीशियों के सप्लायर का पता लगाने में मदद की, जो कि वापी से पकड़े गए।

ये सारी डिटेल्स लिखते हुए मुझे काफी दुख हो रहा है। जरा सोचिए, ऐसे समय में जब महामारी की जानलेवा दूसरी लहर के चलते लाखों लोगों की जिंदगी दांव पर लगी थी और देश एक गंभीर चुनौती का सामना कर रहा था, कुछ ऐसे भी धोखेबाज थे जो संजीवनी समझे जा रहे एक इंजेक्शन को बेचकर पैसा कमाने में लगे थे। उस दर्द के बारे में सोचें जो कोरोना से पीड़ित मरीजों के परिवार वालों को उस समय झेलना पड़ा था, जब उनके करीबी सांस लेने के लिए छटपटा रहे थे और उनकी जान इस इंजेक्शन से बच सकती थी। एक-एक इंजेक्शन के लिए मरीजों के परिवार वाले कोई भी कीमत देने को तैयार थे, लेकिन जिस इंजेक्शन को उन्होंने संजीवनी समझकर खरीदा था, वह असल में मौत के कारोबारियों द्वारा तगड़ा मुनाफा कमाने के लिए बेचा गया नकली इंजेक्शन था।

उन परिवारों की मानसिक पीड़ा के बारे में सोचिए जिन्हें पता चला होगा कि उनके प्रियजनों की मौत नकली इंजेक्शन लगाए जाने के चलते हुई। यदि इंदौर के डॉक्टरों ने वक्त रहते इन नकली रेमडेसिविर इंजेक्शनों को नहीं पहचाना होता, तो और भी कई लोगों की जानें जा सकती थीं। मैं इस रैकेट का भंडाफोड़ करने का अच्छा काम करने वाली इंदौर और सूरत पुलिस को भी धन्यवाद देना चाहता हूं। उन्होंने बड़ी चतुराई से पूरे मामले की जांच की, चुपचाप सारे तार जोड़े और अपराधियों को गिरफ्तार किया।

मासूमों की जान से खेलना एक ऐसा पाप है जिसकी जितनी भी सजा दी जाए, वह कम है। लेकिन एक बात आपसे कहना चाहता हूं। दवा खरीदते समय थोड़ा सतर्क रहें। आपको बेवकूफ बनाकर पैसा कमाने के लिए कई शिकारी इंतजार कर रहे हैं। कृपया स्टिकर और बाकी की डिटेल्स को ध्यान से देखें, और हमेशा उसी केमिस्ट की दुकान से खरीदें जो ऑथराइज्ड हो।

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Merchants of death: Selling fake Remdesivir vials

akbToday I want to speak about a gang of unscrupulous traders based in Surat and Indore, who sold several thousand fake Remdesivir injections to relatives of critical Covid-19 patients when the second wave of pandemic was at its peak last month. Both Surat and Indore Police have so far arrested 40 persons involved in this deadly racket. They had planned to make nearly one lakh fake Remdesivir injections and sell them to needy Covid patients, at a time when Remdesivir injections were not available in the market due to a big surge in demand.

These people are, literally, merchants of death. Think of the poor Covid patients who were fighting for their lives during the peak of pandemic and their relatives desperate to procure vials of Remdesivir injection. Till now, Indore Police has arrested 29 and Surat Police has nabbed 11 persons involved in this racket. The gang members were making fake injections by mixing salt with glucose and passing them off as genuine Remdesivir vials. Within five days, the gang members earned Rs one crore, and in fifteen days, their earnings went up to Rs three crore. They spent Rs 40 to 50 on fake hologram stickers of Remdesivir manufacturers, and sold each vial from Rs 5,000 to Rs 50,000. Indore Police officials said, the gang had planned to make nearly one lakh fake Remdesivir vials ready to be unloaded in the market.

Police have collected information from hospitals about 19 Covid-19 patients dying due to fake injections, and hospital records in four other states are being checked. The gang had sold fake injections in Gujarat, Madhya Pradesh, Maharashtra, Uttar Pradesh and Chhattisgarh. One gang member Sunil told police that he had alone sold 1,200 fake injections, out of which 700 were sold to Jabalpur city hospital and the remaining 500 were sold to retailers in Indore.

The fake injections were being manufactured in a farm house in Surat, Gujarat. Indore police stumbled upon the racket when it arrested two persons Dinesh Chaudhary and Dhiraj Sajnani and found fake Remdesivir vials in their possession. They disclosed the names of two agents, Asim Bhale and Praveen, who were also taken into custody. On interrogation, the four named Sunil Mishra as the main supplier of fake injections in MP. It was Sunil Mishra who revealed the names of the two masterminds, Kaushal Vora and Puneet Shah. The gang members confessed they had sold nearly 5,000 fake injections in different cities of Gujarat. Of the 700 fake vials sold in Indore, ten patients died in hospitals, according to police. The figures may rise as more hospital records are being checked by police.

In Jabalpur, another city in Madhya Pradesh, the owner of a private hospital was involved in this racket. Sunil Mishra struck a deal with Jabalpur City Hospital director Sarabjit Singh Mokha. Mishra supplied nearly 500 fake injections at the rate of Rs 7,000-8,000 per vial. He made a clean profit of Rs 40 lakh in this deal, while the hospital charged patients exorbitant sums for supplying these fake vials. At least 200 fake vials were administered to Covid-19 patients, and out of them nine died.

Why doctors failed to differentiate between the genuine and fake Remdesivir vials? The adulterators had done proper spade work in advance. Kaushal Vora and Puneet Shah wanted to make a quick buck. At that time, Remdesivir was being sold to only those who had Covid-19 positive test reports with them. The manufacturers made a fake Covid positive report, and procured a genuine Remdesivir vial. Since both were in the pharma trade, they knew that mixing glucose with distilled water would give an almost similar look, though the genuine vial had a thick liquid shape. For thickness, they added salt to the liquid. The adulterators were certain that patients would not die if they were injected with glucose and salt. They arranged for vials and wrappers from a supplier in Vapi and procured fake stickers from Mumbai. As soon as the vials, wrappers and stickers arrived, the two masterminds started ‘manufacturing’ fake Remdesivir injections.

Doctors in an Indore hospital were the first to smell the racket. While injecting in the body of a patient, doctors noticed that the salt was not easily mixing with the liquid. Police was informed and the vials were sent for test. During test, it was found that the vial contained salt and glucose, instead of Remdesivir drug. Police spoke to relatives of patients and arrested the sellers, who, in turn, named the agents and manufacturers. After much spade work and search, Indore police managed to trace the relatives of 650 Covid patients, who were sold fake injections.

Surat SP Usha Rada told our reporter Nirnay Kapoor that nearly 63,000 empty vials, and thousands of fake stickers were seized from the adulteration factory located in a farm house in Pinjarat village near Surat. Mumbai Police helped in tracing suppliers of fake stickers and empty vials who were located in Vapi.

I feel sad while writing these details. Imagine, at a time when the entire nation was facing a grave challenge to the lives of millions of people from the deadly second wave of pandemic, there were charlatans who were out to make money by selling a vital injection that could have saved people’s lives. Think of the trauma the relatives of Covid-19 patients had to go through, when their near and dear ones were struggling for breath, and needed this injection to save their lives. These relatives were desperate to get hold of a single Remdesivir vial that could save their near and dear ones, but the merchants of death were waiting, ready to pounce upon them, sell them fake ones, and make a clean profit.

Think of the mental agony families had to go through when they heard that their near and dear ones had died after being administered an injection, that turned out to be fake. Had the alert doctors in Indore not checked the fake Remdesivir injections in time, more lives could have been lost. I also want to thank the Indore and Surat Police for doing a good job in busting this racket. They investigated the entire racket minutely and arrested those who were in league with these unscrupulous people.

For playing with lives of innocent people, I think whatever punishment that is given by law to these gang members will be insufficient. For others, I have a piece of advice: Please be careful when you buy a medicine. There are sharks waiting, ready to fool you and make money. Please check the stickers and other manufacturing details carefully, and always buy medicines from an authorized chemist shop.

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सभी के लिए मुफ्त वैक्सीन का स्वागत है, पर क्या हमारे पास पर्याप्त स्टॉक है?

AKB4प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को ऐलान किया कि उनकी सरकार सभी राज्यों को मुफ्त कोविड वैक्सीन देगी, इस घोषणा का लगभग सभी मुख्यमंत्रियों ने स्वागत किया। मोदी ने 18 साल से अधिक आयु के सभी भारतीयों को मुफ्त वैक्सीन देने का ऐलान भी किया । 21 जून से टीका लगाने का काम पूरी तरह से केंद्र सरकार के हाथ में होगा। प्राइवेट अस्पतालों को वैक्सीन की 25 फीसदी डोज उपलब्ध कराई जाएगी और वे हर डोज पर अधिकतम 150 रुपये का सर्विस चार्ज ले सकेंगे।

प्रधानमंत्री की घोषणा का हालांकि सभी ने स्वागत किया है, लेकिन सवाल यह उठता है कि केंद्र वैक्सीन की सारी डोज कैसे और कब तक खरीदेगा? कोविड टीकों को लेकर चल रही निराधार अफवाहों के कारण आबादी का एक बड़ा हिस्सा वैक्सीन लगवाने को लेकर आनाकानी भी कर रहा है। अब तक पूरे भारत में वैक्सीन की 23 करोड़ से ज्यादा डोज लगाई जा चुकी हैं।
राष्ट्र के नाम अपने संबोधन के दौरान मोदी ने सही कहा कि कुछ महीने पहले केंद्र सरकार द्वारा वैक्सीन की खरीद और वितरण की सारी जिम्मेदारी लेने पर सवाल उठाए गए थे। उन्होंने कहा कि केंद्र ने 16 जनवरी से 45 साल से ऊपर के लोगों के लिए मुफ्त टीकाकरण अभियान शुरू किया था, लेकिन इसमें सिर्फ इसलिए बदलाव किया गया क्योंकि कई राज्यों ने कहा कि वे खुद वैक्सीन खरीदना चाहते हैं। कई राज्य सरकारों ने 18 साल से ऊपर की उम्र के सभी वयस्कों को वैक्सीनेशन के लिए एलिजिबल न होने को लेकर भी सवाल उठाए थे।

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘राज्यों ने वैक्सीन विकेंद्रीकरण की मांग की थी। अब उन्हें इस काम में आने वाली मुश्किल का अहसास होने लगा है। अब राज्य सरकारों को वैक्सीन भेजे जाने से एक सप्ताह पहले इस बारे में सूचित किया जाएगा कि उन्हें कितनी डोज मिलेगी। टीकों के मुद्दे पर मतभेद या बहस नहीं होनी चाहिए।’

यह सच है कि राहुल गांधी, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं ने उस समय मांग की थी कि वैक्सीन की खरीद को डिसेंट्रलाइज कर दिया जाए और राज्यों को देश-विदेश से इसे खरीदने का अधिकार दिया जाए क्योंकि संविधान के तहत स्वास्थ्य राज्य का विषय है। जब राज्य सरकारों को कम से कम 25 पर्सेंट डोज खरीदने के लिए कहा गया, तो उन्हें इसमें होने वाली मुश्किलें समझ में आईं। इसके बाद राज्यों ने अपना रुख बदलते हुए कहा कि वैक्सीन की खरीद को सेंट्रलाइज्ड कर दिया जाए।

मैं इसके बारे में आपको थोड़ा विस्तार से बताता हूं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 9 अप्रैल क

Free vaccination for all is welcome, but do we have enough stocks?

aaj ki baatPrime Minister Narendra Modi’s announcement on Monday to procure and distribute free Covid vaccines to all state governments has been welcomed by almost all the chief ministers. Modi has announced free vaccines to all Indians above the age of 18 years and this will come into effect from June 21. Private hospitals shall have access to 25 per cent vaccine doses and they can collect a maximum service charge of Rs 150 per dose.

While the PM’s announcement has been welcomed by all, the question arises as to how Centre would procure all the vaccine doses and by what time? There is also the issue of vaccine hesitancy among a large section of population due to prevailing baseless rumours above Covid vaccines. Till now, more than 23 crore doses have been administered across India.

Modi was right when he said in his address to the nation that questions were raised several months ago about Centre holding all the reins of procurement and distribution of vaccines. He pointed out that the Centre had launched a free vaccination drive for people above 45 years from January 16, but this was changed only because several of the states said they wanted to procure vaccines themselves. Several state governments also raised questions why all adults above 18 were not being made eligible for vaccination.

“States demanded vaccine decentralization. Now they have started to realize the difficulty involved in this work. State governments will now be informed about the number of vaccine doses they will get a week before they are sent. There must not be differences or debates over the issue of vaccines”, the Prime Minister said.

It is true leaders like Rahul Gandhi, Mamata Banerjee and Arvind Kejriwal had at that time demanded that vaccine procurement be decentralized and states should be given powers to procure them from inside India or outside because health is a state subject under the Constitution. When state governments were asked to procure at least 25 per cent doses, they understood the difficulties involved and then switched their stands to say that the Centre should centralize procurement.

Let me explain it in details. On April 9, Congress leader Rahul Gandhi wrote a letter to PM Modi insisting that state governments should be given powers to procure Covid vaccines. But after a month Rahul tweeted ‘vaccine purchase should be centralised’. Several opposition leaders led by Congress leader Anand Sharma raised the issue of federalism, but on May 10, Congress president Sonia Gandhi told a meeting of opposition parties that the Centre was running away from its responsibility by putting the onus of vaccine procurement on state governments. On February 24, when West Bengal was in the thick of an election battle, chief minister Mamata Banerjee wrote a letter to the PM requesting him to allow states to buy Covid vaccines from their own funds. After winning the elections in May, Mamata switched her stand and said the Centre must procure vaccines and distribute them free to the states.

Similarly, Delhi chief minister Arvind Kejriwal said in March this year that the entire vaccination process should be decentralized and if this was done, his government would inoculate the entire population of Delhi. But after the second wave of pandemic lashed the capital in April, Kejriwal changed his stand in May and said that the Centre should procure Covid vaccines and distribute them to the states.

It is clear that chief ministers and opposition leaders first demanded that vaccination drive should be decentralized but later changed made a U-turn and are now blaming PM Modi for the slowing down of vaccination drive.

Let me put it bluntly. From January onwards, when the vaccination drive was on at full throttle, opposition leaders and chief ministers apprehended that the entire credit for the drive would be cornered by Narendra Modi. Out of sheer bravado, some state governments started claiming that they would float e-tenders, buy Covid vaccines and inoculate their population. But when vaccine manufacturers and suppliers told them in plain language that they would deal only with the Centre, these states climbed down from their stand and agreed to the Centre taking up the responsibility of procurement and distribution of vaccines.

The Congress has still not learnt a lesson. On Monday, hours after the PM’s address to the nation, Congress spokesperson Randeep Surjewala asked why the Centre was constantly changing its vaccine policy. Probably, Surjewala may have not read Punjab CM Capt. Amrinder Singh’s tweet in which he wrote: “Thank PM @narendramodi Ji for acceding to our request for central procurement and distribution of vaccines for all age-groups. I had written twice to @narendramodi Ji on this issue and to @drharshvardhan Ji suggesting this as the only feasible solution to Covid vaccine crisis.”

Right from Day One there had been attempts by politicians to create confusion and suspicions in the mind of people on the issue of Covid vaccines. Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav described it as “BJP vaccine” and vowed not to get himself inoculated. But today he changed his stand saying that it’s a government vaccine and he is going to take it. I remember some politicians complained that there were no proper trials of the vaccine doses.But now they are saying our vaccines are effective. But their stand against vaccine has done the damage. There are many cases where people have refused to get vaccinated due to rumours.

The biggest plus point is that most of the doctors and health workers had got themselves vaccinated in the first phase of the drive. Now that the Prime Minister has promised to give free vaccines to all Indians above the age of 18, the question arises: Can we have enough doses in time? I have a few details to share.

Serum Institute of India, which makes Covishield vaccine, has said it will supply 6.5 crore doses in June and it may go up to 7 crore in July. From September till December, SII will manufacture 11.5 crore doses every month. Bharat Biotech, which makes Covaxin, has said it will make 2.5 crore doses in June, will triple the production in July, and till September, it will make 7.5 crore doses every month. From October, it will manufacture 10 crore doses every month. By that time, three more factories will start making vaccine doses. Seven pharma companies will manufacture Russian Sputnik V vaccine doses. Six companies including Zydus Cadilla and Biological E will start vaccine production in India from September. Their vaccines in different stages of approval at this moment.

Overall, India will have 10 crore doses in June, 17 crore in July and 20 crore doses in August. From September onwards, more than 42 crore doses will be available every month. In December, more than 54 crore doses will be available. If all goes well, by December, we will be having 216 crore doses in all, which is enough to vaccinate all Indians.

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