कोरोना महामारी के बीच गंगा नदी में क्यों मिलीं तैरती लाशें
भारत में बुधवार को एक बार फिर कोरोना के 3.5 लाख से ज्यादा नए मामले सामने आए। इसके साथ ही भारत दुनिया में इस घातक महामारी से सबसे बुरी तरह प्रभावित देश बना हुआ है। दूसरे नंबर पर ब्राजील है जहां पिछले 24 घंटों में सिर्फ 25,200 नए मामले सामने आए हैं। लगातार दूसरे दिन इस बीमारी के चलते अपनी जान गंवाने वाले मरीजों की संख्या 4 हजार के पार रही। बुधवार को कोविड-19 से पीड़ित 4,136 मरीजों ने दम तोड़ दिया।
एक तरफ जहां मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में खतरा कुछ कम हुआ है, वहीं दूसरी तरफ बेंगलुरु में हालात बद से बदतर हो गए हैं। भारत के ग्रामीण इलाकों में भी महामारी का प्रसार हुआ है और इसे लेकर काफी चिंताएं हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक के तमाम गांवों में कोरोना वायरस से संक्रमण के नए मामले देखने को मिल रहे हैं।
पिछले 24 घंटों के दौरान महाराष्ट्र में कोरोना वायरस से संक्रमण के 46,781 नए मामले सामने आए और 816 लोगों की मौत हुई। केरल में 43,529 नए कोरोना संक्रमित मिले और 95 मरीजों की जान गई। इसी तरह कर्नाटक में 39,998 नए मामले मिले और 517 मौतें हुईं, तमिलनाडु में 30,355 नए मरीज मिले और 293 की जान गई, आंध्र प्रदेश में 21,452 नए मामले सामने आए और 89 लोगों की मौत हुई, पश्चिम बंगाल में 20,377 नए मामले सामने आए और 135 की मौत हुई, उत्तर प्रदेश में 18,125 नए मरीज मिले जबकि 329 मरीजों की जान गई, रजास्थान में 16,384 नए केस मिले और 164 की मौत हुई, गुजरात में 11,017 नए मामले सामने आए और 102 की जान गई, मध्य प्रदेश में 8,970 नए केस मिले और 84 मरीजों की मौत हुई और उत्तराखंड में 7,749 नए संक्रमित मिले और 109 लोगों की जान गई।
महाराष्ट्र की सरकार ने पूरे राज्य में 31 मई तक लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा की है। देश में ऐसे 13 राज्य हैं जहां शहरी इलाकों के मुकाबले गांव-देहात से कोरोना के नए मामले ज्यादा सामने आ रहे हैं। गांव के लोग उचित बुनियादी ढांचे के अभाव में अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में ग्रामीण इलाकों में होने वाली तमाम मौतें आंकड़ों में दर्ज ही नहीं हो पा रही हैं।
उत्तर प्रदेश के गांव-देहात में श्मशान घाटों पर दिन-रात लाशें जलाई जा रही हैं। जैसे कि यही काफी नहीं था, कोविड -19 के चलते अपनी जान गंवाने वाले कई मरीजों की लाशें गंगा नदी में फेंक दी गईं। सबसे पहले कई लाशों को गाजीपुर में गंगा नदी के किनारों पर देखा गया, और इनकी संख्या 22 से 52 तक बताई गई। उत्तर प्रदेश के बलिया में गंगा के किनारे 12 लाशें पाई गईं, जबकि पड़ोसी राज्य बिहार के बक्सर में स्थित चौसा घाट पर 71 लाशें गंगा में तैरती हुईं मिलीं।
गाजीपुर और बक्सर दोनों ही जिलों के डीएम ने इस बात से इनकार किया कि ये लाशें उनके स्थानीय लोगों की हैं। नदी के किनारों पर निगरानी के लिए ड्रोन कैमरे तैनात किए जा रहे हैं। बिहार के DGP ने कहा कि बक्सर में नदी में 71 लाशें तैरती हुईं मिली थीं, और मंगलवार की शाम जब बक्सर के ही महादेव घाट पर नदी में जाल लगाया गया तो 6 और लाशें बरामद हुईं। बिहार पुलिस चीफ ने दावा किया कि इसके बाद कोई शव नहीं मिला है। पुलिस नावों में सवार होकर गश्त लगा रही है और लोगों से अपील कर रही है कि वे शवों को नदी में न फेंकें।
उत्तर प्रदेश सरकार ने गाजीपुर के सभी 18 श्मशान घाटों पर पुलिस की तैनाती कर दी है। पुलिस और राजस्व विभाग की 20 से अधिक टीमें नदी के किनारों पर गश्त कर रही हैं। गाजीपुर में अब तक गंगा किनारे मिले 23 शवों का अंतिम संस्कार किया जा चुका है। गाजीपुर में श्मशान घाट के कर्मचारियों ने इंडिया टीवी के संवाददाता को बताया कि कुछ दिन पहले तक रोजाना 90 से ज्यादा लाशें दाह संस्कार के लिए आती थीं, इसलिए काफी दबाव था। ऐसे में कुछ लोगों ने इंतजार करने की बजाय अपने प्रियजनों के शवों को सीधे गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। उन्होंने बताया कि अब प्रेशर कम हो गया है और रोजाना 20 से 22 शवों का दाह संस्कार किया जा रहा है।
नदी में तैरती लाशों के इन वीडियो ने देश के अधिकांश लोगों की आत्मा को झकझोर कर रख दिया है। ये दिखाता है कि लोगों ने दाह संस्कार के दौरान मानवता की भावना को कैसे भुला दिया और शवों को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। यह सब एक दिन में नहीं हुआ। स्थानीय लोगों की मानें तो नदियों में शवों का विसर्जन कम से कम 10 से 15 दिनों तक चलता रहा। गंगा के किनारे रहने वाले लोगों को अब जाकर अपने बंधु-बांधवों द्वारा किए गए पापों का अहसास हुआ है। स्थानीय अधिकारी लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने करने की कोशिश कर रहे हैं और उनसे शवों का उचित अंतिम संस्कार करने का अनुरोध कर रहे हैं। जिला प्रशासन को चौकन्ना रहना होगा क्योंकि खतरा अभी टला नहीं है। अभी भी महामारी हजारों गांवों में फैलती जा रही है।
दिल दहलाकर रख देने वाली इन घटनाओं के बीच ऐसी और रिपोर्ट्स सामने आई हैं जिनमें पीएम केअर्स फंड के तहत केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए महंगे वेंटिलेटर्स पर विभिन्न जिला अस्पतालों में या तो धूल जम रही है, या उन्हें प्राइवेट हॉस्पिटल्स को किराए पर दिया जा रहा है।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर मनीष भट्टाचार्य ने बताया कि राजस्थान के भरतपुर जिला अस्पताल को केंद्र की तरफ से कुल 60 वेंटिलेटर मिले थे, जिनमें से 40 का ‘इस्तेमाल’ अस्पताल द्वारा किया जा रहा है और 10 वेंटिलेटर्स को एक स्थानीय निजी अस्पताल को 60 हजार रुपये प्रतिमाह, या 2 हजार रुपये प्रतिदिन की दर से किराए पर दिया गया है। यह पूछे जाने पर कि ऐसे समय में जबकि महामारी पूरे उफान पर है, इन वेंटिलेटर्स का इस्तेमाल जिला अस्पताल में क्यों नहीं हो रहा है, अस्पताल के अधिकारियों ने कहा कि चूंकि ऑक्सीजन प्वाइंट्स नहीं थे और स्टाफ की भी कमी है, इसलिए इन वेंटिलेटर्स को प्राइवेट हॉस्पिटल को किराए पर देने का फैसला किया गया।
केंद्र ने पंजाब सरकार को 809 वेंटिलेटर भेजे थे, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि सूबे के जिला अस्पतालों में 150 से ज्यादा वेंटिलेटर बेकार पड़े हैं। कुछ वेंटिलेटर तो स्टोर रूम में पड़े हैं, जबकि कुछ अस्पतालों में इन्हें चलाने के लिए स्पेशलिस्ट ही नहीं है।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर पुनीत परिंजा ने बताया कि फरीदकोट मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में 62 वेंटिलेटर बेकार पड़े हुए थे। AAP के एक स्थानीय विधायक ने सोशल मीडिया पर इन अन्यूज्ड वेंटिलेटर्स की तस्वीरें डालीं और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से यह सुनिश्चित करने की अपील की कि इन वेंटिलेटर्स को कोविड रोगियों के लिए इस्तेमाल किया जाए। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक ने दावा किया कि 90 वेंटिलेटर काम नहीं कर रहे थे और अब उनकी मरम्मत की जा रही है।
पंजाब के मुक्तसर साहिब में कोरोना के 3000 से ज्यादा ऐक्टिव केस हैं जबकि वेंटिलेटर्स की संख्या सिर्फ 11 है। इन वेंटिलेटर्स का भी इस्तेमाल नहीं हो पा रहा था क्योंकि ऐसे प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी थी जो इन्हें चला सकें। जनपद के सिविल सर्जन ने बताया कि पूरे जिला अस्पताल में एक भी ऐसा स्पेशलिस्ट नहीं है जो इन वेंटिलेटर्स को चला सके। उन्होंने बताया कि अब बाहर से सिर्फ एक या दो सप्ताह के लिए स्पेशलिस्ट बुलाए जा रहे हैं।
केंद्र सरकार सिर्फ इतना कर सकती है कि वेंटिलेटर खरीद कर राज्यों को भेज दे, और राज्य इन्हें जिला अस्पतालों को दे दें। ये वेंटिलेटर एक साल पहले भेजे गए थे जब महामारी की पहली लहर चल रही थी। इन वेंटिलेटरों को चलाने के लिए तकनीशियनों और प्रशिक्षित कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए पूरे एक साल का वक्त था, लेकिन राज्य सरकारों ने ऐसा नहीं किया।
इसके बारे में सोचिए। पिछले साल जुलाई में भरतपुर के सरकारी अस्पताल में 40 वेंटिलेटर्स पहुंच गए थे, लेकिन इनमें से सिर्फ 20 वेंटिलेटर्स के लिए ही ऑक्सीजन प्वाइंट का इंतजाम हुआ। जिला प्रशासन चाहता, हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन चाहता तो पिछले साल ही कई और ऑक्सीजन प्वाइंट्स बनवाए जा सकते थे, लेकिन किसी ने इस बारे में नहीं सोचा। ये महंगे वेंटिलेटर 10 महीने से भी ज्यादा समय तक अस्पताल के स्टोर रूम में यूं ही पड़े रहे, जबकि बाहर मरीज एक-एक सांस के लिए जूझ रहे थे।
ये संयोग की बात है जिन दो राज्यों में पीएम केयर्स फंड से मिले वेंटिलेटर्स को लेकर हेराफेरी हुई, उन दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं। कांग्रेस के जो नेता लगभग रोजाना PM CARES फंड पर सवाल उठाते हैं, उन्हें अब अपनी राज्य सरकारों से पूछना चाहिए कि ये वेंटिलेटर्स अस्पतालों के स्टोर रूम में धूल क्यों फांक रहे थे।
Covid Pandemic: Why dead bodies were found floating in river Ganga
India continues to be the world’s worst Covid affected country with Wednesday’s figure of fresh cases again crossing 3.5 lakhs at 3,62,720. Brazil comes second which reported only 25,200 fresh cases during last 24 hours. For the second consecutive day, the daily death toll in India has crossed 4,000 at 4,136 fatalities.
While the crisis has somewhat eased in metros like Mumbai and Delhi, it has become more acute in Bengaluru. There is much concern over the spread of the pandemic in rural areas of India’s great hinterland. Villages after villages in UP, MP, Rajasthan, Bihar, West Bengal, Kerala, Tamil Nadu and Karnataka are reporting fresh Covid-19 cases.
During the last 24 hours, Maharashtra reported 46,781 fresh cases and 816 deaths, Kerala reported 43,529 fresh cases and only 95 deaths, Karnataka 39,998 fresh cases and 517 deaths, Tamil Nadu 30,355 fresh cases and 293 deaths, Andhra Pradesh 21,452 fresh cases and 89 deaths, West Bengal 20,377 fresh cases and 135 deaths, Uttar Pradesh 18,125 fresh cases and 329 deaths, Rajasthan 16,384 fresh cases and 164 deaths, Gujarat 11,017 fresh cases and 102 deaths, Madhya Pradesh 8.970 fresh cases and 84 deaths and Uttarakhand 7749 and 109 deaths, among others.
Maharashtra government has announced extension of state wide lockdown till May 31. There are 13 states from where more Covid cases have been reported from rural areas compared to urban. With villagers fighting for their lives in the absence of proper infrastructure, there have been a large number of fatalities in rural areas, unreported.
The cremation grounds in rural areas of UP are working day and night, and to add to the miseries, many bodies of Covid-19 victims have been thrown into river Ganga. Several bodies were first sighted at the banks of river Ganga in Ghazipur with different versions putting the figures between 22 and 52. Twelve bodies were found on Ganga bank in Ballia, UP, while 71 floating bodies were found in river Ganga at Chausa Ghat in Buxar, neighbouring Bihar.
The district collectors of both Ghazipur and Buxar denied that these bodies belonged to local residents. Drone cameras are being deployed at the river banks. The Director General of Bihar Police said that 71 floating bodies were recovered at Buxar, and after huge nets were laid at Mahadev Ghat in Buxar on Tuesday evening, six more bodies were noticed. The Bihar police chief claimed that no new bodies have yet been found. Police in patrolling boats are appealing to people not to throw dead bodies into the river.
The UP government has posted police in all the 18 cremation grounds in Ghazipur. More than 20 teams of police and revenue department are patrolling the river banks. 23 bodies found near the Ganga bank in Ghazipur have been cremated so far. Cremation staff in Ghazipur told India TV reporter that a few days ago, the pressure was heavy with more than 90 bodies coming for cremation daily. Some of the relatives decided not to wait and immersed the bodies of their dear ones in the river Ganga. The pressure has now eased, and daily 20 to 22 cremations are taking place.
The disturbing videos of floating bodies in the river have shocked most of the people in India. They depict how people during cremation, lost their sense of humanity, and decided to immerse the bodies in the flowing river. This did not happen on a single day. The immersion of bodies in rivers took place for at least 10 to 15 days, if local villagers are to be believed. People living along the banks of Ganga have now realized the sins that their brethren have committed. Local officials are trying to create awareness among them and requesting them to cremate the bodies. The district administrations must be vigilant, because the danger is not over. The pandemic is spreading across thousands of villages.
In the midst of all these macabre happenings, more reports have come about how costly ventilators sent from the Centre under PM CARES Fund to different district hospitals are either gathering dust, or are being given on hire to private hospitals.
India TV reporter Manish Bhattacharya reported that the Bharatpur district hospital in Rajasthan had received 60 ventilators from the Centre, out of which 40 are being ‘used’ by the hospital, and 10 ventilators have been loaned on hire to a local private hospital for Rs 60,000 a month, which comes to Rs 2,000 per day. Asked why these ventilators were not being used in the district hospital, at a time when the pandemic is at its peak, the hospital officials said that there were no more oxygen points available and there was lack of staff. The officials then decided to loan these ventilators on hire to a private hospital.
The Centre sent 809 ventilators to Punjab government, but the shocking fact is that more than 150 ventilators are lying unused in the district hospitals. Some are lying in store rooms, while there is no staff to operate these ventilators in some hospitals.
India TV reporter Punit Parinja reported that 62 ventilators were lying unused in Faridkot Medical College hospital. A local AAP MLA put pictures of these unused ventilators on social media and appealed to chief minister Capt. Amrinder Singh to ensure that the ventilators are used for Covid patients. The hospital medical superintendent claimed that 90 ventilators were not working and they were now being repaired.
In Muktsar Sahib, Punjab, there are only 11 ventilators with more than 3,000 active Covid cases. These ventilators could not be used due to lack of trained staff who could operate them. The district civil surgeon said that there was not a single specialist in the district hospital who could operate these ventilators. Specialists are now being called for one or two weeks only from outside, he added.
On its part, the Centre can only procure ventilators and send them to states and from there to district hospitals. These ventilators were sent a year ago when the pandemic was in its first stage. There was one year’s time left to hire technicians and trained staff to operate these ventilators, but this was not done by the state governments.
Think about it. Forty ventilators had reached Bharatpur district hospital in July last year. Oxygen points were arranged for only 20 ventilators. More oxygen points could have been arranged in the hospital and this was not a big task. Nobody even thought about that, and these costly ventilators lay in store rooms unused for more than 10 months, while patients outside were struggling to breathe.
It is pertinent to point out here that both these cases of negligence took place in Congress-ruled states of Rajasthan and Punjab. Congress leaders, who question the operation of PM CARES Fund almost daily, should now ask their state governments, why these ventilators lay unused in hospital store rooms.
शहरों से लेकर गांवों तक कैसे फैल रही है कोरोना महामारी
सबसे पहले आपको एक अच्छी खबर बता दूं कि कोरोना की दूसरी लहर में कमी के आसार दिख रहे हैं। लगातार दूसरे दिन संक्रमण के नए मामले 3.5 लाख (3,48,371) से नीचे रहे और मार्च के बाद पहली बार लगातार तीसरे दिन एक्टिव मामलों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। एक्टिव मामलों में 4 हजार की कमी आई है और कुल आंकड़ा 3.7 लाख हो गया है। वहीं कोरोना संक्रमण से होनेवाली मौत का आंकड़ा बढ़ गया है। मंगलवार को कुल 4205 लोगों की कोरोना से मौत हो गई जो अबतक एक दिन में सबसे ज्यादा है। इस महामारी की शुरुआत के बाद से मंगलवार तक देशभर में कोरोना से कुल ढाई लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
अब कई लोग ये कह सकते हैं कि चूंकि कई जगह RTPCR रिपोर्ट आने में देर हो रही है, कुछ जगहों पर टेस्टिंग भी कम हो रही है, इसलिए हो सकता है कि ये फैक्ट सही तस्वीर ना दिखाएं। वैसे ये बात तो सही है कि कुछ जगहों पर कोरोना की रिपोर्ट देरी से आ रही है। दरअसल तथ्य ये है कि रोजाना 15 लाख से 18 लाख के बीच टेस्ट हो रहे हैं और इसमें कोई कमी नहीं आई है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक देश के 18 राज्यों में एक ठहराव सा नजर आ रहा है। इनमें आंध्र प्रदेश, बिहार, हरियाणा और उत्तराखंड के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और दिल्ली शामिल हैं, जो महामारी के कारण पिछले दो महीनों से बुरी तरह झुलस रहे थे। फिर भी 26 राज्य ऐसे है जहां पॉजिटिविटी रेट 15 प्रतिशत से ज्यादा है।
कर्नाटक में कोरोना के नए मामलों में तेज उछाल देखने को मिल रहा है। बेंगलुरु ने संक्रमण के मामलों में पुणे को पीछे छोड़ दिया है। मुंबई, नागपुर, पुणे जो पहले कोरोना के हॉटस्पॉट हुआ करते थे और जहां से रोजाना 10,000 से ज्यादा नए मामले आते थे, लेकिन अब इन शहरों मे संक्रमण के मामलों में गिरावट आई है। कल मुंबई से केवल 1,717 मामले आए, नागपुर से 2,243 मामले सामने आए, जबकि पुणे में पॉजिटिविटी रेट 42 फीसदी से घटकर 23 फीसदी हो गई है।
केंद्र सरकार ने कहा कि जिस तरह मुंबई और पुणे के प्रशासन ने काम किया वो दूसरे राज्यों के लिए उदाहरण है। अब ये मुंबई मॉडल क्या है? दो करोड़ की आबादी वाला मुंबई शहर एक महीने पहले तक कोरोना का केंद्र था, लेकिन आज यहां 2000 से भी कम मामले आ रहे हैं। मुंबई में जब कोरोना के मामले बढ़े तो वहां लोगों को दिल्ली की तरह बेड और ऑक्सीजन के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ा। मुंबई में जैसे ही कोरोना के केस बढ़ने लगे तो पूरी मुंबई को 24 वार्ड्स में बांट दिया गया। हर वॉर्ड का एक कोरोना कंट्रोल रूम बनाया गया। हर कंट्रोल रूम में डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ और एंबुलेंस तैनात किए गए। सैकड़ों एसयूवी को एंबुलेंस में बदला गया। हर वॉर्ड के कंट्रोल रूम में मरीज़ों के टेस्ट रिपोर्ट भेजे जाते थे। हर कंट्रोल रूम को ये पता रहता था कि उनके वॉर्ड में कितने केस बढ़े। कंट्रोल रूम में बैठे डॉक्टर मरीज़ों के संपर्क में रहते थे और उन्हें गाइड करते थे। जिसे हॉस्पिटल बेड या ऑक्सीजन बेड की जरूरत पड़ती थी उसे भर्ती कराने में मदद करते थे। इसलिए मुंबई में आईसीयू बेड और ऑक्सीजन के लिए उतनी चीख-पुकार नहीं मची। अच्छी प्लानिंग का ही नतीजा है कि मुंबई में हालात काबू में आते दिखाई दे रहे हैं।
देश के बड़े शहरों में तो हालात सुधर रहे हैं लेकिन अब असली चिंता गांवों की है, क्योंकि गांव में कोरोना तेजी से फैल रहा है। ऐसे 13 राज्य हैं जहां शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में कोरोना के मामलों की संख्या ज्यादा है। इनमें महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, उत्तराखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, झारखंड और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं। इस बात की आशंका है कि दूर-दराज गांवों से कोरोना के मामले सामने नहीं आ रहे हैं क्योंकि टेस्टिंग उस स्तर पर नहीं हो पा रही है, लोग भी उतने जागरूक नहीं है। केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, गुजरात और उत्तर पूर्व के मिज़ोरम, मणिपुर, नागालैंड और त्रिपुरा सहित 11 राज्यों में कोरोना के जो नए मामले आ रहे हैं, उनमें ज्यादातर ग्रामीण इलाकों से हैं।
मंगलवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि कैसे झोलछाप डॉक्टर मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में खुले मैदान में पेड़ों के नीचे कोरोना से संक्रमित ग्रामीणों का इलाज कर रहा था। किसी को बदन दर्द की शिकायत थी, किसी को खांसी बुखार आ रहा था। यानी ज्यादातर ऐसे मरीज़ थे जिन्हें कोरोना के लक्षण थे। झोलछाप डॉक्टर ग्रामीणों को बुखार और मल्टीविटामिन कैप्सूल देकर इलाज कर रहा था। इस झोलाछाप डॉक्टर के पिता के पास रजिस्टर्ड डॉक्टर की डिग्री थी लेकिन उसके पास कोई डिग्री नहीं थी। उसने पिता के साथ काम करके अनुभव से सारी चीजें सीखी थी।
मध्य प्रदेश के रतलाम में तो हालत और खराब नजर आई। यहां के मेडिकल कॉलेज का हाल ये था कि मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने के लिए बेड उपलब्ध नहीं थे। सारे बेड्स फुल हो चुके थे,इसीलिए जो लोग कोरोना के लक्षण लेकर अस्पताल पहुंच रहे थे, उनको कॉरिडोर में ही मेकशिफ्ट अरेंजमेंट करके लिटा दिया गया। यहां लाइन से कोरोना के संदिग्ध मरीज थे। डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों की कमी के कारण मरीजों को भाग्य भरोसे छोड़ दिया गया था।
मध्य प्रदेश के गांवों जैसा हाल यूपी में भी है। यूपी के गांवों में भी कोरोना महामारी अपना प्रकोप दिखा रही है। उन्नाव, कानपुर, बाराबंकी और आगरा सहित कई जिलों के गांवों से कोरोना फैलने की खबर आ रही है। आगरा के कुरगवां गांव में पिछले 20 दिन में 14 लोगों की मौत से हड़कंप मच गया है। गांववाले डर गए हैं। कुरगवां गांव में 15 अप्रैल के बाद से लोगों में कोरोना के लक्षण दिखाई दिए। लेकिन लोगों ने इन लक्षणों को हल्के में लिया और ये लापरवाही काफी भारी पड़ी। स्वास्थ्य विभाग की टीम को कुरगवां भेजा गया। स्वास्थ्य विभाग की टीम घर-घर जाकर चेकअप कर रही है। अब तक 22 लोगों की रिपोर्ट पॉजीटिव आई है। गांव के कुछ लोगों ने बताया कि कुरगवां में कोरोना इंफेक्शन फैलने की बड़ी वजह लापरवाही है। बीमार लोगों ने सावधानी नहीं बरती।
कमोबेश यही हालेत पड़ोसी राज्य राजस्थान में भी है। इंडिया टीवी रिपोर्टर ने दौसा के जोड़ा गांव का दौरा किया। इस गांव में करीब 45 लोग कोरोना पॉजिटिव हैं। कई लोग ऐसे हैं जिनका टेस्ट भी नहीं हुआ है। कोरोना का ऐसा खौफ है कि लोग घरों में बंद हैं। कुछ लोग तो खेतों में बनी झोपड़ियों में रह रहे हैं। गांव में कई लोग ऐसे हैं जो खांसी, जुकाम और बुखार से पीड़ित हैं लेकिन टेस्ट नहीं होने की वजह से साफ नहीं हो पा रहा है कि वो कोरोना पॉजिटिव हैं या नहीं। इस गांव में पिछले10 दिन में 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
गांवों में महामारी का खतरा ज्यादा इसलिए है क्योंकि वहां बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा की कमी है। देश में करीब 6 लाख से ज्यादा गांव हैं, जिनमें करीब 80-85 करोड़ लोग रहते हैं। यहां लोग टेस्ट करने से डरते हैं, उन्हें लगता है टेस्ट रिपोर्ट पॉज़िटिव आईे तो गांव वाले बहिष्कार कर देंगे, अछूत समझा जाएगा। लोग सरकारी अस्पताल में जाने से कतराते हैं, गांव मे रहकर ही इलाज कराना चाहते हैं। इसलिए राज्य सरकारों को चाहिए कि गांवों में रैपिड एंटीजेन टेस्ट की संख्या बढ़ाए और कोरोना के लक्षण दिखते ही लोगों को आइसोलेट किया जाए। ये बड़ी चुनौती है लेकिन इसके अलावा कोई रास्ता भी नहीं है। क्योंकि अगर गांवों में कोरोना फैला तो उसे कंट्रोल करने में बहुत वक्त लग जाएगा।
ग्रामीण इलाकों में महामारी के खतरे अधिक हैं, क्योंकि उनमें से अधिकांश में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है। पूरे भारत में 6 लाख से अधिक गांवों में 80 से 85 करोड़ लोग रहते हैं, जहां स्वास्थ्य सुविधा दुर्लभ है। राज्य सरकारों को गांवों में बड़े पैमाने पर रैपिड एंटीजन टेस्ट करवाने चाहिए और जिन लोगों का पॉजिटिव टेस्ट किया जाता है, उन्हें महामारी फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया जाए। यदि वायरस ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर फैलता है, तो सरकारों के लिए यह बहुत मुश्किल काम होगा।
How Covid pandemic is spreading from metros to villages
First, the good news. The second wave of Covid-19 pandemic is showing hopeful signs of decline, with the daily count of fresh cases below 3.5 lakh (3,48,371) for the second consecutive day. Active Covid-19 cases have also dipped for the third consecutive day, for the first time since March. Active cases dipped by 4,000 to settle at 3.7 lakhs, but the number of Covid-related deaths jumped to 4,205 on Tuesday, the highest single day toll recorded till now. As of Tuesday, the cumulative death toll across India has crossed 2.5 lakh since the beginning of the pandemic.
Sceptics may say that the number of tests may have declined, or there could be delay in release of RT-PCR reports. Bur facts prove otherwise. The number of tests being carried out is between the range of 15 to 18 lakhs daily, and it has not declined. There are definite signs of the pandemic plateauing in 18 states of India, according to Health Ministry. These include Andhra Pradesh, Bihar, Haryana and Uttarakhand apart from Maharashtra, Gujarat, Rajasthan and Delhi, which were rocked for the last two months due to the pandemic. Yet, 26 states still have over 15 per cent positivity.
With Karnataka reporting a huge daily spike in cases, Bengaluru has left Pune behind to become the Covid-19 capital. Mumbai, Nagpur, Pune were the early hot spots which used to report more than 10,000 fresh cases daily, but the numbers have now declined. Only 1,717 cases were reported yesterday from Mumbai, 2,2434 cases from Nagpur, while positivity rate in Pune has declined from 42 per cent to 23 per cent. The Health Ministry on Tuesday admitted that the Mumbai and Pune models were shining examples, which should be followed by other cities. Night curfew, lockdown, travel restrictions have played a major part in bringing a decline in the number of cases.
What was the Mumbai model? A city with 2 crore population was India’s Covid epicentre till last month. Unlike Delhi, people in Mumbai did not have to go out to hunt for hospital beds and oxygen cylinders. The entire city was divided into 24 wards having their own control rooms. Doctors, medical staff and ambulance were kept ready at each control room. Hundreds of SUVs were converted into ambulances. Control room of every ward had details about patients, including their RT-PCR reports. The doctors used to be in touch with the patients on phone consistently. Patients who required oxygen or hospital beds were helped by the control room. There was no hue and cry about ICU beds in Mumbai hospitals. This is an ideal case of perfect planning.
Now, there are signs of the pandemic spreading to rural areas. There are 13 states where the number of Covid cases is more in rural areas compared to cities. These include Maharashtra, Chhattisgarh, Odisha, Uttarakhand, Bihar, Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, Andhra Pradesh, Haryana, Jharkhand and Arunachal Pradesh. There are fears that more Covid cases may go unreported now from far off villages. The rural share in daily cases is rising in 11 states including Kerala, Karnataka, Tamil Nadu, West Bengal, Gujarat and in the north eastern states of Mizoram, Manipur, Nagaland and Tripura.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Tuesday night, we showed how a quack was treating Covid infected villagers under trees in and in an open field in Vidisha district of Madhya Pradesh. The quack was treating villagers by giving them anti-fever tablets and multivitamin capsules. He was also giving them saline drips. Local villagers said, they were helpless because they were unable to visit nearby primary health centres or district hospitals. The quack’s father had a registered medical practitioner degree, and the son learnt the ropes of the trade through experience.
In contrast, in Ratlam district hospital of MP, Covid patients were lying in corridors because of lack of beds. They were left to their own fate because of less number of doctors and healthcare staff.
The pandemic has spread to Unnao, Kanpur, Barabanki, Agra and other districts of UP, apart from the vast hinterland in eastern Uttar Pradesh. In one village of Agra district, 14 Covid patients died in the last 20 days. Panic spread among the villagers when people started dying. Medical team was rushed to Kurgawan village, where door-to-door tests were carried out, and 22 villagers were found Covid positive. Some villagers told the team that negligence on part of those infected was the reason behind the spread of the virus.
A similar situation prevails in neighbouring Rajasthan. India TV reporter visited Joda village of Dausa, where villagers have locked themselves indoors out of fear of the pandemic. Several villagers have set up thatched huts in the midst of fields, to avoid infection. More than 60 people have died in the village in the last 10 days. Most of the villagers have symptoms of fever, bodyache, cough and cold, but they are yet to undergo tests.
The pandemic hazards are more in rural areas because most of them lack basic health infrastructure. 80 to 85 crore people live in more than 6 lakh villages across India, where health facility is a rarity. The state governments must carry out massive rapid antigen tests in villages and isolate those who are tested positive, in order to arrest the spread of the pandemic. If the virus spreads extensively in rural areas, it will be a very difficult job for the governments to contain.
भीड़ कैसे बन रही है कोरोना वायरस फैलने की वजह
कोरोना महामारी को लेकर सोमवार को थोड़ी राहत रही। देशभर में नए मामलों की संख्या 4 लाख के आंक़ड़े से नीचे रही जो पिछले चार दिनों से लगातार बढ़ रही थी। पिछले 24 घंटों में करीब 3.66 लाख नए मामले सामने आए हैं जबकि सक्रिय मामलों की संख्या में केवल 9 हजार की उछाल दर्ज की गई है। पिछले 55 दिनों से नए मामलों में लगातार आ रहे उछाल के बाद यह कमी देखने को मिली है। देश के 18 राज्यों में लॉकडाउन औऱ नाइट कर्फ्यू जैसी पाबंदियां लगी हुई हैं …उसकी वजह से रफ्तार में कुछ कमी आती दिख रही है।
सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने आपको दिखाया कि कैसे यूपी के बदायूं में एक मौलाना के जनाजे में बड़ी संख्या में लोग जमा हुए। यहां जब जिला काज़ी हजरत शेख अब्दुल हमीद मोहम्मद सालिम उल कादरी, जिन्हें सलीम मियां के नाम से भी जाना जाता था, का आखिरी जनाजा निकला तो सारे नियम धरे के धरे रह गए। यहां हजारों लोग जनाजे में इकट्ठा हो गए। कब्रिस्तान तक आखिरी सफर के दौरान बदायूं की गलियों में कहीं पांव रखने तक की जगह नहीं थी। यह ऐसे समय में हो रहा था जब योगी सरकार ने पूरे राज्य में 17 मई तक कर्फ्यू को बढ़ा दिया है।कोरोना की चेन ब्रेक करने के लिए पाबंदियां लगाई जा रही हैं। लोगों को भीड़ न करने की सलाह दी जा रही है। सख्ती बढाई जा रही है। शादी और अंतिम संस्कार में लोगों की एंट्री सीमित कर दी गई। अंतिम संस्कार में सिर्फ 20 लोगों को इजाजत है लेकिन भीड़ देखकर ऐसा लगा जैसे 20 हजार लोग इकट्ठा हो गए और कब्रिस्तान पहुंच गए।
इस तरह की अऩुशासनहीनता कोरोना को खुला आमंत्रण देना है। वायरस की जिस चेन को ब्रेक करने के लिए इतनी मेहनत हो रही है, इस जनाज़े ने उनपर पानी फेर दिया। पुलिस द्वारा बार-बार भीड़ इकट्ठा न होने की अपील के बावजूद, हजारों लोग अपने घरों से बाहर आए और अंतिम संस्कार में शामिल हुए।
ऐसी स्थिति किसी खास राज्य या शहर तक ही सीमित नहीं है। इस तरह कोरोना को फैलाने वाली भीड़ तो लगातार जुट रही है। ओडिशा के बेरहामपुर में सोमवार को एक मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर सैकड़ों महिला श्रद्धालुओं की भीड़ सड़क पर आ गई। आपको याद होगा इसी तरह की तस्वीरें कुछ दिन पहले गुजरात के साणंद जिले से आई थीं। यहां महिलाएं सिर पर मटका लेकर इसलिए घर से बाहर निकली थीं क्योंकि उनके गांव में 15 दिन से कोरोना का कोई केस नहीं आया था। वो भगवान का शुक्रिया अदा करने गई थीं। लेकिन ओडिशा के बेरहामपुर में नए मंदिर का उद्घाटन होना था लिहाजा लॉकडाउऩ की परवाह किए बगैर महिलाएं इकट्ठा हुईंऔर मंदिर की तरफ चल पड़ीं। लेकिन जैसे ही इस बात की जानकारी जिला प्रशासन को लगी तुरंत सीनियर अफसर मौके पर पहुंचे। एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट ने मंदिर के पुजारियों से बात की, लोगों को बताया कि धारा 144 लगा हुआ है, चार से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर पाबंदी है। लोगों को वापस भेजा और फिर मंदिर के गेट को लॉक करवा दिया।
हरिद्वार से भी इसी तरह की तस्वीरें आई। यहां गंगा घाट पर अस्थि विसर्जन और कर्मकांड के लिए रोजाना सैकड़ों लोग आ रहे हैं। इनमें से ज्यादातर वे लोग हैं जिनके रिश्तेदारों की हाल में कोरोना के चलते मौत हुई है। उत्तराखंड में लॉकडाउन लगा हुआ है और सख्त पाबंदिया हैं, लेकिन इसके बावजूद लोग मानने को तैयार नहीं हैं। कोई हरियाणा से पहुंचा है, कोई दिल्ली से तो कोई मध्य प्रदेश से। आपको याद होगा कि हाल में हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन हुआ था और बड़ी तादाद में श्रद्धालु इकट्ठे हुए थे। इसका नतीजा ये हुआ कि कोरोना तेजी से फैला। आंकड़ों पर नजर डालें तो ये डरानेवाले हैं। एक अप्रैल से सात मई तक उत्तराखंड में एक लाख तीस हजार से ज्यादा नए केस सामने आए। यानी जितने केस अभी तक पूरे राजय में रिकॉर्ड किए उसके 50 परसेंट से ज्यादा केस तो इस एक महीने में ही सामने आए। इतना ही नहीं उत्तराखंड में कोरोना से अब तक 3400 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। अकेले सोमवार को राज्य में 5,541 नए मामले सामने आए जबकि एक्टिव मामलों की संख्या 74,480 है।
उधर बिहार में वैक्सीनेशन सेंटर्स पर काफी भीड़ उमड़ रही है। पटना, जहानाबाद, मधुबनी, बेगूसराय और अन्य जिलों में 18 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों का वैक्सीनेश शुरू हो चुका है। लोग वैक्सीन लगवाने का इंतजार कर रहे हैं। रजिस्ट्रेशन के बाद लोगों को जो टाइम स्लॉट दिया गया, उस वक्त उन्हें वैक्सीन नहीं लगी, इसका नतीजा ये हुआ कि वैक्सीनेशन सेंटर्स पर लोगों की भारी भीड़ नजर आई। यहां सोशल डिस्टेंसिंग की जमकर धज्जियां उड़ाई गई। इस तरह से कोरोना फैलने का खतरा और भी बढ़ेगा। वैक्सीनेशन सेंटर्स पर भीड़ बढ़ने के बाद हालात को काबू में लाने के लिए पुलिस भेजनी पड़ी। वैक्सीनेशन सेंटर्स पर भीड़ इकट्ठी न हो, इसके लिए सख्त प्रोटोकॉल लागू करने की जरूरत है।
भीड़ चाहे जनाज़े के लिए इकट्ठा हो या कर्मकांड के लिए या फिर वैक्सीनेशन के लिए, ये अपराध है। क्योंकि भीड़ जमा कर आप एक आपदा को निमंत्रण दे रहे हैं। और याद रखें कि कोरोना वायरस मंदिर और मस्जिद में फर्क नहीं करता। भीड़ हिंदू लगाएं या मुसलमान, कोरोना का वायरस कोई भेदभाव नहीं करता। वायरस के शिकार ऑक्सीजन से तड़पते लोग हर धर्म के हैं, हर वर्ग के हैं। श्मशान में चिताओं के लिए जगह कम है तो कब्रिस्तान में भी लाशों को इंतजार करना पड़ रहा है। अगर ऐसे समय में हजारों लोग इकट्ठा होंगे, कोरोना फैलाएंगे तो फिर वे सरकार को दोषी नहीं ठहरा सकते।
ऐसे लोगों को मैं चेतावनी देना चाहता हूं कि खतरा अब पहले से ज्यादा बड़ा है। कोरोना वायरस लगातार अपने रूप खतरनाक तरीके से बदल रहा है। इसके नए-नए वेरिएंट्स सामने आ रहे हैं। ये पहले से भी ज्यादा जानलेवा हैं। मैंने कई डॉक्टर्स से बात की। वे मानते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर का पीक अभी आना बाकी है, इसीलिए बहुत सावधान रहने कीजरूरत है। दूसरी लहर के बाद तीसरी लहर भी आ सकती है, उसका सामना करने के लिए तैयार करनी है। मैं अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल ने कोरोना की जो नई गाइडलाइंस जारी की उसके बारे में एक बात बताना चाहता हूं। अमेरिका की हेल्थ अथॉरिटी का कहना है कि अब ये वायरस हवा में फैल गया है, एयर बॉर्न हो चुका है। अब तक तो 6 फीट की दूरी की बात होती थी, लेकिन नए रिसर्च से पता चला है कि अब दो गज की दूरी भी इस वायरस के संक्रमण की चेन रोकने में कारगर साबित नहीं होगी। ये वायरस मिस्ट पार्टिकल के तौर पर ट्रांसमिट होने के साथ-साथ फैलता है। यानी अगर कोई कोरोना पॉजिटिव मरीज है और वो सांस के साथ जब रेस्पिरेट्री फ्लूड बाहर छोड़ता है तो ये वायरस मिस्ट पार्टिकल के रूप में हवा में काफी देर तक रहता है। खासकर उन जगहों पर ज्यादा खतरा है जहां खराब वेंटिलेशन हैं। ऐसे में ये एरोसॉल काफी वक्त तक तैरता रहता है और एक-ेएक मीटर से ज्यादा दूरी को कवर करते हुए हवा में फैलकर दूसरे लोगों को इंफेक्शन दे सकता है।
सोमवार को बिहार के बक्सर और यूपी हमीरपुर से दिल दहलानेवाली तस्वीरें आईं। यहां गंगा नदी में लाशें बहती दिखाई दीं। बक्सर जिले के चौसा के महादेव घाट पर सोमवार को गांववालों ने करीब 30 तैरती हुई आधी जली हुई लाशें देखी। कुछ ग्रामीणों ने लाशों की संख्या150 बताई लेकिन जिला प्रशासन ने लाशों की संख्या 30 होने की बात कही। बक्सर के डीएम ने कहा कि ये लाशें स्थानीय लोगों की नहीं हैं। ये उत्तर प्रदेश से बहकर आ रही हैं क्योंकि जिस तरह शव फूले हुए हैं उसे देखकर लग रहा है कि इन्हें 5 से 6 दिन पहले गंगा में प्रवाहित किया गया होगा। स्थानीय प्रशासन ने इन शवों का अंतिम संस्कार कराया।
गंगा में बहती ये लाशें कितनी महामारी फैलाएंगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। कौन कह सकता है कि वायरस को ये कहां-कहां ले जाएंगी? ये सही है कि आजकल अंतिम संस्कार करना मुश्किल है। शव को श्मशान तक ले जाना भी मुश्किल है। वहां जलाने के लिए जगह मिल पाना तो और भी मुश्किल है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि शवों को कोरोना का कैरियर बना दिया जाए। जब कोरोना जैसी महामारी फैली हो तब लाशों को गंगा में फेंकना कितना बड़ा अपराध है, इसका तो अंदाजा लगाना भी मुश्किल है।
कोरोना की दूसरी लहर ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बड़ी तबाही मचाई है। यहां पिछले तीन हफ्ते में 18 कार्यरत प्रोफेसरों की कोरोना की वजह से मौत हो चुकी है। ये हाल तब है जब AMU के पास अपना मेडिकल कॉलेज है। यानी इन प्रोफेसरों को इलाज वक्त पर मिल गया लेकिन फिर भी बचाया नहीं जा सका। अगर नॉन टीचिंग स्टाफ को भी मिला दिया जाए तो इस दौरान करीब 45 लोगों की जान जा चुकी है। मौत की इस बेकाबू रफ्तार ने AMU प्रशासन की नींद उड़ा दी है। अब अलीगढ़ के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कालेज की तरफ से ICMR के डायरेक्टर को एक चिट्ठी लिखकर जांच कराने की मांग की गई है। चिट्ठी में लिखा गया है कि उन्हें शक है कि अलीगढ़ के सिविल लाइन्स इलाके में कोरोना वायरस का नया वैरिएंट एक्टिव है, इसकी जांच कराई जाए। आपको बता दें कि सिविल लाइंस इलाके में ही AMU का ज्यादातर स्टाफ रहता है। हालांकि, नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल ने कहा है कि जिन प्रोफेसरों की मौत हुई उनमें 15 ऐसे थे जो कोरोना के मरीज या संदिग्ध थे, और तीन प्रोफेसरों की मौत अन्य वजहों से हुई।
कोरोना की दूसरी लहर ने अगर हमें हर रोज़ मौत का खौफ दिखाया तो इसके साथ ही इसने ये भी दिखाया इंसान लालच में किस हद तक गिर सकता है। चंद पैसों के लालच में वह लाश और कफन का सौदा कर सकता है। ऐसी ही एक खबर उत्तर प्रदेश के बागपत जिले से आई। यहां कुछ लोग अंतिम संस्कार के लिए लाई गई लाशों के शरीर से कफन. कपड़े, शॉल और चादरें तक उतार लेते थे। इन कपड़ों को धोकर, नया स्टिकर लगाकर मार्केट में बेच देते थे। इस पूरे धंधे का सरगना प्रवीण जैन नाम का व्यापारी था। श्मशान और कब्रिस्तान से कफन और कपड़े चुराने के बदले ये रोजाना 300 रुपये की मजदूरी देता था। पुलिस ने इनके पास से 520 चादर, 127 कुर्ते, 140 कमीज, 34 धोती, 12 शॉल और 52 साड़ियां बरामद की है। ये सोचकर ही गुस्सा आता है कि कोई इंसान किसी लाश से कफन भी नोच सकता है।
कफन चोरों के बाद खून से कमाई करनेवाले भी सक्रिय हैं। कुछ लोगों ने प्लाज्मा को कमाई का जरिया बना लिया है। महाराष्ट्र के नागपुर में प्लाज्मा की एक यूनिट 15 से 20 हज़ार के बीच बिक रही है। हालांकि सरकार ने एक यूनिट का रेट साढ़े पांच से छह हज़ार के बीच तय कर रखा है.लेकिन इस वक्त शायद ही कोई चीज हो जो सही दाम पर मिल रही है। कोरोना के इलाज में काम आने वाली हर चीज की ब्लैकमार्केटिंग की जा रही है।
कोरोना काल में लोगों को किस-किस तरह लूटा जा रहा है, ये सुनकर यकीन ही नहीं होता है। धोखेबाज और लुटेरे अपनी चालबाजियों से बाज नहीं आ रहे हैं। मध्य प्रदेश के जबलपुर लाइफ सेविंग रेमडेसिविर इंजेक्शन का काला धंधा एक हॉस्पिटल का संचालक चला रहा था। जबलपुर सिटी हॉस्पिटल में मरीजों को नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाए जा रहे थे। ये सब हॉस्पिटल के संचालक सरबजीत सिंह मोखा के इशारे पर हो रहा था। इस रैकेट के तार गुजरात से जुड़े थे। जबलपुर के इस रैकेट का खुलासा तब हुआ जब गुजरात पुलिस ने नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन रैकेट की जांच के लिए जबलपुर आई। जांच में पता चला कि नकली इंजेक्शन का सौदा इंदौर में हुआ था जहां कोरोना रोगी की पत्नी को नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन देकर उससे 40 हजार रुपये लिए गए थे। पुलिस का कहना है कि सिटी हॉस्पिटल के संचालक सरबजीत सिंह मोखा ने नकली इंजेक्शन का काला खेल अपने एक कर्मचारी देवेश चौरसिया और भगवती फार्मा सेल्स के मालिक सपन जैन के साथ मिलकर खेला था। पुलिस ने इन तीनों के खिलाफ गंभीर धाराओं में केस दर्ज कर लिया है। तीनों आरोपियों की तलाश जारी है।
‘आज की बात’ में हमने उस महिला के बारे में बताया जो रेमडेसिविर इंजेक्शन खरीदने के चक्कर में धोखेबाजी का शिकार हो गई। उससे ऑनलाइन पैसे जमा करवा लिए गए और जिस शख्स ने रेमडेसिविर देने का वादा किया था वो गायब हो गया। इसी तरह के एक और ेमामले में दिल्ली की एक अन्य महिला को भी धोखेबाजों ने 15 हजार रुपये का चूना लगाया। इस महिला को दो ऑक्सीजन सिलेंडर देने का वादा किया गया था। इसी तरह नेशनल लेवल की निशानेबाज आयशा फलक के साथ भी धोखा हुआ। उनसे ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए 5 हजार रुपये लिए गए लेकिन आयशा को सिलेंडर नहीं मिला।
जमाखोरी, मुनाफाखोरी और धोखाधड़ी से पैसा कमाना बहुत गलत काम है। पुलिस को ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ाई से कार्रवाई करनी चाहिए और उन्हें ऐसी सजा दी जानी चाहिए कि कोई दूसरा व्यक्ति फिर ऐसी हरकत करने की हिमाकत न कर सके। नकली इंजेक्शन बेचने को अमानवीय और आपराधिक कृत्यों में गिना जाना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि राज्य सरकारें ऐसे मुनाफाखोरों और धोखेबाजों के बारे में लोगों को अलर्ट करेंगी जो हर जगह, खासकर सोशल मीडिया पर घात लगाए रहते हैं।
How crowds are acting as super spreaders of Coronavirus
There appeared to be some relief from the rising surge in fresh pandemic cases on Monday, when the number of fresh Covid-19 cases went below the 4-lakh mark after a consistent rise for the last four days. Nearly 3.66 lakh fresh cases were reported during the last 24 hours, while there was jump of only 9,000 odd active cases. This happened after a big surge for the last 55 days. Lockdown and night curfew are in force in 18 states because of which there has been lesser number of cases compared to previous weeks.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Monday night, we showed how huge crowd of mourners joined the funeral of a Muslim cleric in Badayun of Uttar Pradesh. It was the funeral of the district Qazi, Hazrat Sheikh Abdul Hamid Mohammed Salim ul Qadri known popularly as Salim Miyan. The narrow streets of the town were packed with mourners following the cortege. This congregation took place despite the state government extending curfew through UP till May 17. Weddings, social gatherings have been prohibited and only up to 20 mourners are allowed at a funeral, but the Badayun incident was really shocking. The crowd was anywhere up to 20,000. Such an act of indiscipline is nothing but a sure invitation to the virus. All efforts at breaking the virus chain came to nought with this huge crowd. Despite frequent appeals from the police not to congregate, thousands came out of their homes and joined the funeral.
This is not confined to a particular town or state. In Berhampur town of Odisha, hundreds of women devotees came out to join a gathering on the occasion of a temple inauguration on Monday. You may remember the huge gathering of women devotees carrying pots on their heads in Sanand district of Gujarat a few days ago for thanksgiving to God for not ‘allowing’ a single Covid case in their village. In Berhampur, however, the executive magistrate spoke to the temple priests, sent the women devotees home and locked the temple.
In the holy city of Haridwar, hundreds of people coming daily to the Ganga river ghats to perform religious rites in memory of their relatives who died recently due to Covid-19. Disregarding all restrictions, hundreds of devotees from Delhi, Haryana, UP and Madhya Pradesh are daily performing rituals and taking a dip in the river. You may remember the huge Kumbh Mela that took place last month, which later acted as a super spreader. From April 1 till May 7, there were more than 1.3 lakh Covid-19 cases in Uttarakhand. This figure is double the number of Covid-19 cases recorded in the state till April 1. There have been more than 3,400 Covid-related deaths in Uttarakhand. On Monday alone, there were 5,541 new cases in the state. The number of active cases stands at 74,480, as of Monday.
There were huge crowds of people above the age of 18 years in Patna, Jehanabad, Madhubani, Begusarai and other district towns who were waiting for their turn for vaccination. There was no social distancing worth the name, and such congregations will surely help in the spread of the virus. Police had to be sent to stop scuffles breaking among the crowd for vaccination. There is urgent need to apply strict protocol to discourage congregation of people at vaccination centres.
Congregation of people in whatever form, whether for religious rites or for mass vaccination is a sure invite to disaster. Remember, Coronavirus does not differentiates between Hindus or Muslims or any other communities, it strikes whenever there is a big crowd. The new Indian variant is a deadly one, whose reach is bigger and faster. If thousands of people congregate at one place, if the virus spreads, they will be no point blaming the government.
Let me strike a note of warning: the danger is now deadlier. It strike so fast that the patient does not even get time to protect. Several doctors, I spoke to, said, the second wave is yet to achieve its peak. The third wave of pandemic is inevitable. The American Center for Disease Control and Prevention has already warned that the Coronavirus is now airborne. Even six-feet distancing will not help in breaking the virus chain. New research says, this virus is now spread in the form of mist particles, and is particularly active in those homes where there is poor ventilation. In such spaces, the virus, in the form of aerosol, stays for a longer duration and can spread to distances more than a metre.
On Monday, the most worrying visuals came from Buxar in Bihar and Hamirpur in UP. Nearly 30 floating half-burnt bodies were found by villagers at Mahadev ghat in Chausa village of Buxar district on Monday. Some villagers counted the number of floating bodies at 150, but the district administration puts the number at 30. The district magistrate of Buxar said these bodies were not of local residents, but appeared to be of those who were dumped in the river Ganga nearly three to four days ago in neighbouring Uttar Pradesh. The local administration has now got the floating bodies cremated.
Think about how these floating bodies of Covid patients could act as carriers of virus. Throwing bodies of Covid patients in river is a criminal act. I understand there is severe constraint of time and space at cremation grounds and graveyards, but throwing dead bodies in a river is nothing short of a crime.
The second wave of pandemic has taken a severe toll of teachers in Aligarh Muslim University. At least 18 sitting professors of AMU have died during the past three weeks. AMU has its own medical college campus, these professors were given treatment on time but could not be saved. Till now, 45 persons, including non-teaching staff have died in AMU. The chief of the medical college has written a letter to ICMR (Indian Council for Medical Research) head fearing that a new variant of Coronavirus appears to be active in the Civil Lines area of Aligarh. He has sent the medical samples to ICMR for further probe. However, the principal of Nehru Medical College has said that among the dead professors, there were 15 who were Covid patients or Covid suspects, and three professors died due to other causes.
In the midst of gloom and sadness, comes report of an unscrupulous businessman collecting shrouds, bed sheet, kurta, sari, and shawls from the bodies of Covid-19 victims, repackaging them with stickers and selling them in the market of Baghpat, UP. The mastermind, Praveen Jain, used to pay Rs 300 daily to vagrants who collect such clothes discarded from bodies before cremation. Police have seized 520 bed sheets, 127 kurtas, 140 shirts, 34 dhoti, 12 shawls and 52 sarees from this businessman. Such visuals evoke anger and revulsion in our minds.
In Nagpur, Maharashtra, blood plasma is being sold for Rs 15-20,000 per unit, while the state government has fixed the rate of Rs 5,500-6,000. Due to strong demand, black marketers are making a killing in the market by fleecing relatives of Covid-19 patients.
Fraudsters too are active. The director of Jabalpur City Hospital Sarabjit Singh Mokha, the owner of a pharma sales firm Sapan Jain and a hospital employee were part of a gang that used to give fake Remdesivir injections to Covid-19 patients. All three are absconding. The racket was busted when Gujarat police team came to Jabalpur while probing the sale of fake injections. In Indore, two fake Remdesivir injections were sold for Rs 40,000 to the wife of a Covid-19 patient by a cheat, who is absconding.
In ‘Aaj Ki Baat’, we mentioned the case of a lady, who was duped by a trickster by collecting money online for Remdesivir injections. The trickster has since vanished. Another lady in Delhi was duped of Rs 15,000 by an online trickster who promised to deliver two oxygen cylinders, which never came. A national level shooter Ayesha Falak was duped of Rs 5,000 in a similar manner who had promised to deliver oxygen cylinders.
Making money through hoarding, profiteering and fraud, is an unpardonable act. Police must act stringently against such people and they should be punished in a such a manner that others would think twice before committing such an act. Selling of fake injections should count among the most inhuman and criminal acts. I hope state governments will alert people about such profiteers and tricksters who are lurking everywhere, particularly on social media.
अस्पतालों में क्यों धूल फांक रहे हैं सैकड़ों वेंटिलेटर ?
कोरोना वायरस पूरे देश में तबाही मचा रहा है। हालात बेहद गंभीर हैं। शुक्रवार को एक बार फिर 4 लाख से ज्यादा (4,01,078) नए मामले सामने आए। यह लगातार तीसरा दिन है जब संक्रमण के नए मामलों की संख्या 4 लाख के आंकड़े को पार कर गई है। वहीं शुक्रवार को कोरोना से 4,187 लोगों की मौत हो गई। यह एक दिन में कोरोना संक्रमण से होनेवाली सबसे ज्यादा मौत है। कर्नाटक में यह महामारी तेजी से फैल रही है। यहां 48,781 नए मामले सामने आए हैं जबकि 592 लोगों की मौत हुई है। अकेले बेंगलुरु में कोरोना ने 346 लोगों की जान ले ली।
प्रभावित राज्यों की सूची में महाराष्ट्र अभी-भी सबसे ऊपर है। यहां कोरोना वायरस के 54,022 नए मामले आए और 898 लोगों की मौत हो गई। केरल में 38,460 ताज़ा मामले आए और 54 लोगों की मौत हुई। उत्तर प्रदेश में 28,076 नए मामले आए और 372 लोगों की जान चली गई। तमिलनाडु में 26,465 नए मामले आए औरे 197 मौतें हुई। पश्चिम बंगाल में 19,216 नए मामले आए और 112 लोगों की मौत हो गई। राजस्थान में 18,231 मामले आए और 164 मौतें हुईं। आंध्र प्रदेश में 17,188 मामले आए और 73 मौतें हुईं। हरियाणा में 13,876 नए मामले आए और 162 लोगों की मौत हो गई। बिहार में 13,466 ताजा मामले आए। मध्य प्रदेश में 11,708 नए मामले आए और 84 मरीजों ने दम तोड़ दिया। उत्तराखंड में 9,642 नए मामले आए और 137 मौतें हुईं। पंजाब में 8,367 नए मामले आए और 165 मौतें हुईं। तेलंगाना में 5,559 नए मामले आए और 41 लोगों की जान चली गई। एक अनुमान के मुताबिक इस महामारी की पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर में रोजाना नए मामलों की संख्या चार गुना ज्यादा है।
कर्नाटक और दिल्ली जैसे राज्यों में अस्पतालों के बेड कोरोना मरीजों से भरे पड़े हैं। इन राज्यों ने केंद्र से ऑक्सीजन सप्लाई का कोटा बढ़ाने की मांग की है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को दावा किया कि राजधानी में ऑक्सीजन की आपूर्ति की स्थिति में सुधार हुआ है। लेकिन कई अस्पतालों में अभी भी आईसीयू बेड और वेंटिलेटर की कमी है। आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि बिहार और यूपी के कई जिला अस्पतालों में सैकड़ों वेंटिलेटर्स का इस्तेमाल ही नहीं हो रहा है क्योंकि यहां टैक्नीशियन नहीं हैं, एनेस्थीसिया में ट्रेंड कर्मचारियों की कमी है। इन वेंटिलेटर्स की पैकिंग भी नहीं खोली गई है। डिब्बों में बंद ये वेंटिलेटर अस्पतालों में धूल फांक रहे हैं।
शुक्रवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने आपको उत्तर प्रदेश के बिजनौर अस्पताल का दृश्य दिखाया जहां मरीजों के रिश्तेदार डॉक्टरों से गुहार लगा रहे थे कि मरीज की जान बचा लीजिए, ऑक्सीजन दे दीजिए, वेंटिलेटर का इंतजाम कर दीजिए, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था। कोई मदद नहीं मिली। मरीज की जान बचाने के लिए परिवार वाले खुद इधर उधर भाग रहे थे। कुछ रिश्तेदार खुद ही मरीज को CPR देने की कोशिश कर रहे थे तो कोई पीठ ठोंककर मरीज का ऑक्सीजन लेवल बढ़ाने की कोशिश कर रहा था। वार्ड में दो-तीन मरीजों की हालत गंभीर थी और उन्हें वेटिलेंटर की सख्त जरूरत थी। लेकिन मरीजों को कोई मदद नहीं मिल रही थी।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर ने जब मामले की पड़ताल की तो पता चला कि सीएमओ ने पिछले साल 50 लाख रुपये की लागत से 24 वेंटिलेटर खरीदे थे। अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) ने इस बात को स्वीकार किया कि 24 वेंटिलेटर्स की खरीद के बाद इनमें से 10 वेंटिलेटर्स को खोल कर फिट किया गया था लेकिन इन्हें चलाने के लिए कोई ट्रेंड स्टाफ नहीं था इसलिए इनका इस्तेमाल नहीं हो पाया। सीएमएस ने कहा कि अस्पताल में कोई एनेस्थेटिस्ट नहीं था जो इन वेंटिलेटर्स को चला सके। सीएमएस ने अब बिना इस्तेमाल हुए इन वेंटिलेटर्स को मुरादाबाद जिला अस्पताल में शिफ्ट करने का फैसला लिया है।
यह जिला अस्पतालों को चलाने वाले सिस्टम की घोर लापरवाही और उदासीनता है। राज्य सरकार ने वेंटिलेटर्स भेजे और ये अस्पताल के स्टोर में ही रखे रह गए। इनका इस्तेमाल नहीं हो पाया। इन वेंटिलेटर्स को चलाने के लिए नियुक्त कर्मचारियों को ट्रेंड करने की कोशिश तक नहीं की गई और कोरोना मरीजों की दर्दनाक मौत होती रही।
ये अकेले बिजनौर का ही मामला नहीं है। ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि कैसे यूपी के फिरोजाबाद जिला अस्पताल के स्टोर रूम में 67 वेंटिलेटर पैक रखे हुए हैं। हमारे रिपोर्टर को पता चला कि 114 नए वेंटिलेटर पिछले साल पीएम केयर्स फंड से खरीदे गए थे। अस्पताल के अधिकारियों के मुताबिक इन वेंटिलेटर्स का उपयोग करने की कोई जरूरत नहीं हुई इसलिए इन्हें अन्य जिला अस्पतालों में भेजने का निर्णय लिया गया। अस्पताल के सीएमओ ने हमारे रिपोर्ट से झूठ बोला कि ये सभी वेंटिलेटर चालू हालत में हैं। हमारे रिपोर्टर को पता चला कि केवल 47 वेंटिलेटर्स की पैकिंग खोली गई और इनका इस्तेमाल किया गया जबकि बाकी के वेंटिलेटर्स अभी भी पैक हैं। यानी कुल 67 वेंटिलेटर स्टोर रूम के अंदर धूल फांक रहे थे। अब अस्पताल प्रमुख ने कुछ उन वेंटिलेटर्स को अन्य जिला अस्पतालों में शिफ्ट करने के लिए उच्चाधिकारियों को चिट्ठी लिखी है जिनका इस्तेमाल नहीं किया जा सका है। यह चिट्ठी अब स्वास्थ्य विभाग की फाइलों में कहीं दबी पड़ी है।
जब ऑक्सीजन या वेंटिलेटर की कमी के कारण कोरोना मरीजों की मौत हो जाती है तो उनके परिवारवाले सरकार को दोषी ठहराते हैं। लेकिन सरकार इससे ज्यादा क्या कर सकती है? सरकार वेंटिलेटर दे सकती है, ऑक्सीजन उपलब्ध करा सकती है, ऑक्सीजन के टैंकर पहुंचा सकती है, अस्पतालों में बेड लगवा सकती है लेकिन अगर अस्पताल टैक्नीशियन की कमी का बहाना करके एक साल तक वेंटीलेटर को स्टोर रूम में रखे रहे तो कोई भी सरकार क्या कर सकती है?
बिहार में भी यही स्थिति है। कई जिले ऐसे हैं जहां के सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर तो हैं, कागजों पर वेंटिलेटर की एंट्री भी है, लेकिन ये वेंटिलेटर कभी स्टोर रूम से बाहर ही नहीं निकले। इनके ऊपर चढ़ा हुआ कवर कभी हटा ही नहीं। आज तक ये किसी मरीज की जिंदगी बचाने के काम नहीं आए। उदाहण के तौर पर दरभंगा के बेनीपुर अनुमंडल अस्पताल में पिछले साल कोरोना काल में जो चार नए वेंटिलेटर स्वास्थ्य विभाग ने मुहैया कराया था, उसे कई महीने बीत जाने के बाद भी आज तक इंस्टॉल तक नहीं किया गया। अस्पताल के प्रभारी का कहना है कि इस अस्पताल में कोई आईसीयू नहीं है, इसलिए वेंटिलेटर्स को इन्सटॉल नहीं किया गया। इसके अलावा वेंटलेटर्स के रखरखाव और इस्तेमाल के लिए कोई ट्रेंड कर्मचारी भी नहीं है।
हमने देखा कि पिछले दो हफ्तों के दौरान विदेशों से मदद के तौर पर 400 से ज्यादा वेंटिलेटर आए, लेकिन अ्ब प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री हर जिला अस्पताल में जाकर यह नहीं देख सकते कि इन वेंटिलेटर्स का उपयोग किया जा रहा है या नहीं। ये काम तो अस्पताल प्रशासन को करना है। उनको ये तय करना है कि वेंटिलेटर मौजूद है तो फिर उसे ऑपरेट करने वाले का इंतजाम भी करना चाहिए। इसे लेकर जिला प्रशासन से बात करे। इसी तरह इंडिया टीवी रिपोर्टर ने दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल से दृश्य दिखाए, जहां 27 वेंटिलेटर बेड लगाए गए थे। ये सारे वेंटिलेटर पिछले साल खरीदे गए थे। लेकिन ये सिर्फ सजावट का सामान बन कर रह गए। वजह एक ही हैं: इन्हें भी ऑपरेट करने के लिए जिस मैन पावर की जरूरत है, वो इतने बड़े अस्पताल में उपलब्ध नही है।
बिहार के गोपालगंज सदर अस्पताल में छह आईसीयू वेंटिलेटर बेड हैं, लेकिन ये सभी लाल कपड़े से ढंके हुए हैं। ये वेंटिलेटर चालू हालत में हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल नहीं किया जा सका है क्योंकि इसे चलानेवाला कोई ट्रेंड स्टाफ नहीं है। अस्पताल के सिविल सर्जन ने कहा कि उन्होंने कई बार स्वास्थ्य मंत्री को टेक्नीशियनों की नियुक्ति के लिए चिट्ठी भेजी लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। यही हालत बिहार के शिवहर, खगड़िया और सासाराम के जिला अस्पतालों की है। शिवहर जिला अस्पताल के स्टोर रूम में छह वेंटिलेटर को स्क्रैप की तरह डंप किया गया था। लगभग सभी मामलों में अस्पताल अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने टेक्नीशियनों की नियुक्ति के लिए जिले के अधिकारियों को चिट्ठी भेजी थी लेकिन जिले के अधिकारियों ने इसे राज्य के स्वास्थ्य विभाग में भेज दिया और वहां पर फाइलें अटक गईं।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स राजस्थान के जिला अस्पतालों में गए और वहां भी ऐसा ही दृश्य देखा। चूरू जिला अस्पताल में 20 से अधिक वेंटिलेटर बेकार पड़े हैं। करोड़ों रुपये के ये वेंटिलेटर्स धूल फांक रहे थे। कुछ तो बाथरूम के पास बनी जगह पर रखे हुए थे। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि वेंटिलेटर को जगह की कमी के कारण वॉशरूम के पास रखा गया था। भरतिया अस्पताल के कोविड नोडल अधिकारी डॉ. साजिद खान का कहा है कि जब भी जरूरत होती है तब कोरोना मरीजों को वेंटिलेटर और बीएपीपी दिया जा रहा है। डॉ. साजिद का दावा है कि अस्पताल में 67 वेंटिलेटर है जिनमें से एक ख़राब हालत में है। 15 वेंटिलेटर अभी इन्स्टॉल नहीं किया गया है जबकि 51 वेन्टिलेटर इनस्टॉल हैं। इन वेंटिलेटर्स से आईसीयू और मेडिकल आईसीयू में काम लिया जा रहा है।
जयपुर के पास कोटपुतली में तो हालत ये है कि यहां कई वेंटिलेटर्स पिछले एक साल से डिब्बे में बंद हैं। उन्हें इंस्टॉल करने के लिए किसी ने जहमत नहीं उठाई। जिला कलेक्टर ने कहा कि ऑक्सीजन की सप्लाई में कमी के कारण इनका उपयोग नहीं किया जा रहा था। उन्होंने इस्तेमाल में नहीं आए वेंटिलेटर्स को जयपुर के एसएमएस मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भेजने की बात कही।
एक तरफ सरकारी अस्पतालों में वेंटीलेटर बेकार पड़े हैं, मरीज़ ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ रहे हैं तो दूसरी ओर यूपी, बिहार और राजस्थान के अस्पतालों में सैकड़ों वेंटिलेटर्स धूल फांक रहे हैं। महामारी के इस दौर में मरीजों के परिवार वालों को लूटने के लिए मुनाफाखोरों और ब्लैक मार्केटिंग करने वालों का गिरोह भी सक्रिय है। हमने आपको दिखाया था कि दिल्ली पुलिस ने एक रेस्टोरेंट में छापा मारकर 419 ऑक्सीजन कन्संट्रेटर बरामद किया था। पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया था। इन लोगों से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने खान मार्केट के मशहूर खान चाचा रेस्टोरेंट पर छापा मारा और वहां पुलिस को 96 ऑक्सीजन कन्संट्रेटर मिले। खान मार्केट के ही एक और रेस्टोरेंट टाउन हॉल से पुलिस ने 9 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स बरामद किए। खान मार्केट के दोनों रेस्टोरेंट दिल्ली के बड़े कारोबारी नवनीत कालरा के हैं। फिलहाल नवनीत कालरा फरार है। पुलिस 24 घंटे के अंदर तीन रेस्टोरेंट्स से 524 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स बरामद कर चुकी है। दिल्ली पुलिस के मुताबिक ये ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स विदेशों से इंपोर्ट किए गए थे। इन्हें कई कंपनियों द्वारा मंगाया गया था। दिल्ली पुलिस के मुताबिक इस गैंग ने विदेश से 650 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर मंगाए थे, जिनमें से 125 कंसंट्रेटर्स बेचे जा चुके थे जबकि 524 ऑक्सीजन कन्संट्रेटर पुलिस ने बरामद कर लिया।
ऐसे समय में जब कोरोना महामारी से लोग तड़प-तड़पकर मर रहे हैं, कुछ लोग थोड़े से पैसे के लालच में लोगों की ज़िंदगी से खेल रहे हैं। ये मौत के सौदागर हैं और ऐसे लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए और कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। महामारी तेजी से फैल रही और रोजाना इससे जुड़े आंकड़े का मैं अपने ब्लॉग के शुरुआत में उल्लेख करता हूं ताकि इस संकट की भयावहता को लोग समझें। कृपया भीड़ से दूर रहें, डबल मास्क पहनें, सोशल डिस्टेंसिंग अपनाएं, हाथों को धोते रहें। क्योंकि कोरोना से बचना है तो सावधानी बरतनी पड़ेगी। जब हरिद्वार में कुंभ मेला शुरू हुआ तो उस वक्त भी मैंने कहा था कि कुंभ के आयोजन को रद्द करना चाहिए क्योंकि इससे इंसानों की जिंदगी पर असर पड़ता है, और आज की तारीख में इंसानों की जिंदगी से ज्यादा जरूरी कुछ नहीं है। आस्था बाद में हो जाएगी। मेले बाद में लग जाएंगे। कुंभ का आयोजन हुआ और कोरोना विस्फोट के कारण इसे बीच में खत्म करना पड़ा। इसलिए अब मेरी मुस्लिम भाईयों से अपील है कि इस बार ईद पूरे जोश से मनाएं, लेकिन घर में रहकर मनाएं, बाहर न निकलें, लोगों से न मिलें। क्योंकि अगर गले नहीं मिले तो बच जाएंगे, गले मिले तो कोरोना गले लग जाएगा।
Why scores of ventilators lie unused in hospitals?
With 4.01 lakh fresh Covid-19 cases reported across India on Friday, the situation continues to be grim. It was for the third consecutive day that the number of fresh Covid-19 cases has crossed the 4 lakh mark. On Friday, India recorded its highest ever single day death toll of 4,187, crossing the four thousand mark for the first time. The pandemic is spreading fast in Karnataka which reported 48,781 fresh cases and 592 deaths, of them 346 fatalities in Bengaluru alone.
Maharashtra continues to lead the states’ tally with 54,022 fresh cases and 898 deaths, Kerala 38,460 fresh cases and 54 deaths, Uttar Pradesh 28,076 new cases and 372 deaths, Tamil Nadu 26,465 new cases and 197 deaths, West Bengal 19,216 cases and 112 deaths, Rajasthan 18,231 cases and 164 deaths, Andhra Pradesh 17,188 cases and 73 deaths, Haryana 13,876 new cases and 162 deaths, Bihar 13,466 fresh cases, Madhya Pradesh 11,708 cases and 84 deaths, Uttarakhand 9,642 cases and 137 deaths, Punjab 8,367 cases and 165 deaths, and Telangana 5,559 new cases and 41 deaths. According to one estimate, the number of daily cases in second wave are four times more compared with last year’s first wave of pandemic.
With states like Karnataka and Delhi seeking more oxygen supply quota from the Centre, hospital beds are full with Covid-19 patients. Delhi chief minister Arvind Kejriwal claimed on Friday that the oxygen supply position in the capital has improved. But many hospitals still face shortage of ICU beds and ventilators. You will be astonished to know that there are hundreds of ventilators lying unpacked, unused in several district hospitals of UP and Bihar, due to lack of staff trained in anaesthesia.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Friday night, we showed visuals from UP’s Bijnore hospital, where patients were imploring doctors for oxygen, but none was ready to listen. Some relatives were themselves giving CPR to patients, while some others were thumping the back of patients to revive them. There were at least 3 critical patients who required immediate intervention with ventilators, but there was none available.
When India TV reporter probed further, he found the chief medical superintendent of the hospital admitting that the CMO had purchased 24 ventilators at a cost of Rs 50 lakh last year, out of which 10 were opened and installed, but the rest were lying packed because of lack of trained staff. The 10 ventilators that were opened were is working condition but lying unused, because there was no trained staff to handle them. The chief medical superintendent said there was no anaesthetist in the hospital who could handle these ventilators. The CMS has now decided to shift all these unused ventilators to Moradabad district hospital.
This is gross negligence and sheer apathy on part of the system that runs these district hospitals. The state government sent the ventilators, they remained unused in the hospital store, nobody bothered to get trained staff appointed to handle these ventilators, and Covid patients were dying painful deaths.
Bijnore is not alone. In ‘Aaj Ki Baat’, we showed how 67 ventilators were lying packed in the store room of UP’s Firozabad district hospital. Our reporter found out that 114 new ventilators were purchased last year from PM CARES Fund, but, according to hospital officials, ‘since there was no need for using these ventilators’, it was decided to send them to some other district hospital. The CMO of the hospital lied when he told our reporter that all these ventilators were in working condition. Our reporter found out that only 47 ventilators were opened and used, while the remaining still remained packed. In all, 67 ventilators were accumulating dust, lying inside the store room. The hospital chief wrote a letter to higher ups requesting them to take away the unused ventilators for some other district hospitals. The letter now lies somewhere in the files of the health department.
When Covid patients die due to lack of oxygen or ventilator, their relatives blamed the government. The government, on its part, can send ventilators and oxygen tankers to hospitals, but if hospital authorities, citing lack of trained staff, fail to use the ventilators, then who should be held accountable?
Same is the situation in Bihar. There are reports that in many district hospitals, entries have been made in stock registers about existence of ventilators, but these never saw the light of the day. They are still lying unpacked in store rooms. Even the polythene covers on these ventilator packs have not been removed. In one instance, the state health department sent four new ventilators to the Benipur subdivisional hospital of Darbhanga district, Bihar last year during the first wave of epidemic. The hospital in-charge says, since there is no ICU in this hospital, these ventilators were never installed. Moreover, there was no trained staff for operation and maintenance.
During the past two weeks, we have seen more than 400 ventilators have come as aid from other countries, but how can a Prime Minister or a Chief Minister visit each district hospital to check whether these ventilators are being used? It is the duty of the hospital administration to ensure they remain operational for the benefit of patients. It is their responsibility to appoint trained staff to handle ventilators. India TV reporter showed visuals from Darbhanga Medical College Hospital, where 27 ventilator beds had been installed, but these were mere show pieces. The ventilators were purchased last year during the pandemic. Not a single ventilator bed was used because of one single reason: lack of trained staff to handle such equipment.
At the Gopalganj Sadar hospital in Bihar, there are six ICU ventilator beds, but all of them are covered with red cloth. The ventilators are in working condition, but cannot be used because there is no trained staff to operate them. The civil surgeon of the hospital said that he had sent request for appointment of technicians to the Health Minister several times, but there has been no response. The same is the situation in Sheohar, Khagaria and Sasaram district hospitals of Bihar. Six ventilators were dumped like scrap in the store room of Sheohar district hospital. In almost all the cases, the hospital authorities said they had sent requests for appointing technicians to the district authorities, who, in turn, forwarded them to the state health department, where the files have got stuck.
India TV reporters visited district hospitals of Rajasthan, where they noticed a similar scene. More than 20 ventilators are lying unused in Churu district hospital. Some of these ventilators worth crores of rupees, had been dumped near a hospital washroom. The hospital chief said, the ventilators had been kept near the washroom because of lack of space. Dr Sajid Khan, the Covid nodal officer of state-run Bhartia Hospital claimed, Covid patients were being given ventilators and BiPap whenever required, 15 ventilators are ‘uninstalled’, one ventilator was defective, and remaining 51 ventilators are being used in ICU.
In Kotputli near Jaipur, several ventilators bought last year remain unused. The district collector said, these were not being used because of lack of oxygen supply. He promised to send the unused ventilators to Jaipur’s SMS Medical College hospital.
On one hand, Covid-19 patients are dying for want of oxygen, and on the other hand, scores of ventilators are lying unopened, unused in district hospitals of UP, Bihar and Rajasthan. Profiteers and black marketers are making a killing by selling oxygen cylinders and oxygen concentrators to the needy at exorbitant prices. Delhi Police seized 419 oxygen concentrators from the outlets and godown of a businessman, Navneet Kalra, who is now absconding. 96 oxygen concentrators were seized from the famous Khan Chacha restaurant in south Delhi’s post Khan Market, while nine others were seized from another sister outlet. In all, 524 oxygen concentrators were seized from three outlets by police. The businessman alongwith his partner had imported 650 oxygen concentrators, out of which he had sold 125 concentrators at exorbitant prices.
Profiteers and hoarders in this age of pandemic must be given stringent punishment by law. The pandemic is spreading fast and the daily statistics of fresh cases that I give at the beginning of my blog daily is to underscore the enormity of the crisis. Please stay away from crowds, wear double masks if at all you need to go outside, and maintain hand hygiene. During the Kumbh Mela in Haridwar, I had warned that this could act as a super spreader and it did. Eid-ul-Fitr is coming, and I request all our Muslim friends to maintain social distance while celebrating the festival. Celebrate this year’s Eid in your homes, avoid coming out in the open and hugging others. By hugging a Covid positive person, you could be inviting the virus to your body. Stay safe and alert.
कोरोना महामारी: तेज करनी होगी वैक्सीनेशन की रफ्तार
कोरोना महामारी का कहर पूरे देश में जारी है। संक्रमण के नए मामलों की रफ्तार थमने का नाम नहीं ले रही और मौत के आंकड़े इस घातक संक्रमण की डरावनी तस्वीर पेश कर रहे हैं। गुरुवार को एक बार फिर कोरोना के नए मामलों ने एक नया रिकॉर्ड बनाया।
देशभर में कोरोना के 4 लाख 14 हजार से ज्यादा मामले सामने आए जबकि 24 घंटे में इस संक्रमण ने करीब 4 हजार (3,927) लोगों की जान ले ली। पिछले 10 दिनों से कोरोना संक्रमण से रोजाना मरनेवालों की संख्या तीन हजार से ऊपर रही है। कोरोना के कारण हर घंटे औसतन 150 भारतीयों की मौत हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के साप्ताहिक अनुमान के मुताबिक, दुनिया में कोरोना के रोजाना नए मामलों में 46 प्रतिशत भारत से हैं। वहीं दुनिया में इस घातक संक्रमण से रोजाना होनेवाली मौतों की बात करें तो रोज़ाना 25 प्रतिशत मौतें भारत में हो रही है।
प्रभावित राज्यों की सूची में महाराष्ट्र अभी भी सबसे आगे है। कल यहां कोरोना के कुल 62,194 नए मामले सामने आए हैं जबकि 853 लोगों की मौत हुई । महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर कर्नाटक है जहां कल 49,058 नए मामले आए और 328 लोगों की मौत हुई । केरल में 42,464 नए मामले आए और 63 मौतें हुई, उत्तर प्रदेश में 26,780 नए मामले आए और 353 मौतें हुईं हैं। तमिलनाडु की बात करें तो यहां 24,898 नए मामले आए हैं और 195 लोगों की मौत हुई है। आंध्र प्रदेश में 21,954 नए मामले आए और 72 मौतें हुईं, राजस्थान में 17,532 नए मामले आए और 161 मौतें हुई, छत्तीसगढ़ में 13,846 नए मामले आए और 212 लोगों की मौत हुई। गुजरात में 12,545 नए मामले आए और 123 लोगों की जान चली गई। मध्य प्रदेश में 12,421 नए मामले सामने आए और 86 लोगों की मौत हो गई। पंजाब में कुल 8,874 नए मामले आए और 154 मौतें हुईं और उत्तराखंड में 8,517 नए मामले सामने आए और 151 लोगों की मौत हो गई।
महामारी के फैलाव से यह साफ है कि देश के दक्षिणी, पश्चिमी और उत्तरी राज्यों को कोरोना की दूसरी लहर की जबर्दस्त मार झेलनी पड़ रही है। गुरुवार रात तक पूरे देश में 16.48 करोड़ लोगों को कोरोना वैक्सीन की डोज दी जा चुकी है, लेकिन भारत की बड़ी आबादी की तुलना में यह आंकड़ा बेहद कम है। अभी बहुत कुछ करना बाकी है। वैक्सीन की पर्याप्त स्टॉक खड़ा करने के साथ-साथ बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन अभियान शुरू करने की जरूरत है।
अच्छी खबर ये है कि अमेरिका से कच्चा माल भारत आ चुका है जिसकी मदद से दो करोड़ कोविशिल्ड डोज तैयार होंगे। अमेरिका, यूरोपीय संघ, कनाडा और न्यूजीलैंड ने कहा है कि वे वैक्सीन पर इंटेलेक्चु्अल प्रॉपर्टी राइट ( बौद्धिक संपदा अधिकार) हटाने के लिए चर्चा करने को तैयार हैं, लेकिन जर्मनी, ब्रिटेन, जापान और स्विट्जरलैंड ने इसका विरोध किया है। यदि पेटेंट किए गए वैक्सीन पर बौद्धिक संपदा अधिकार हटा लिया जााता है या माफ किया जाता है, तो इससे भारत और अन्य विकासशील देशों को फाइजर, मॉडर्ना, और नोवोवैक्स जैसे पेटेंट वाले वैक्सीन के निर्माण को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
इस बीच, दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में ऑक्सीजन की सप्लाई पहले से कुछ बेहतर तो हुई है, हालांकि इस बारे में अभी कुछ साफ नहीं कहा जा सकता है। तमिलनाडु सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट को कल बताया कि उसके पास अस्पतालों के लिए केवल एक दिन का ऑक्सीजन स्टॉक बचा है। दिल्ली सरकार को गुरुवार को 730 मीट्रिक टन ऑक्सीजन मिली। इसके बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट को धन्यवाद दिया।
ऑक्सीजन सप्लाई बढ़ने के बावजूद दिल्ली और कुछ पड़ोसी राज्यों में ऑक्सीजन सिलेंडर, कंसंट्रेटर्स, दवाईयों की जमाखोरी और ब्लैक मार्केटिंग जारी है। गुरुवार रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि पुराने और इस्तेमाल किए गए आग बुझाने की मशीन का मेकओवर कर इसे ऑक्सीजन सिलेंडर बनाकर बेचा जा रहा है। आग बुझाने वाला सिलेंडर लाल रंग का होता है और ऑक्सजीन का सिलेंडर काले रंग का होता है। इसलिए सबसे पहले इन लाल सिलेंडर को काले रंग में रंगा जाता है। ऊपर वाले हिस्से को सफेद या सिल्वर कलर में पेंट किया जाता है ताकि यह बिल्कुल असली सिलेंडर जैसा दिखे। इसके बाद ये जालसाज आग बुझाने वाले सिलेंडर का नोजल हटाकर ऑक्सीजन सप्लाई करने वाला नोजल लगा देते हैंऔर फिर इसे नया ऑक्सीजन सिलेंडर बता कर बेच देते हैं। दिल्ली के शाहदरा में ऑक्सीजन सिलेंडर के तौर पर ऐसे सिलेंडर कोरोना मरीजों के रिश्तेदारों को बेचा जा रहा है। दिल्ली पुलिस ने तीन लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया और 532 आग बुझाने वाले सिलेंडर जब्त किए। इन सिलेंडर्स को ऑक्सीजन सिलेंडर के रूप में बदलने के लिए फैक्ट्री में रखा गया था। 72 नकली ऑक्सीजन सिलेंडर भी जब्त किए गए। जरा सोचिए कि ये कितना खतरनाक काम है। ये नकली ऑक्सीजन सिलेंडर 15,000 से 17,000 रुपये में बेचे जा रहे थे।
इस तरह के सिलेंडर्स से मरीज की जान के साथ ही उसके परिवार वालों की जान को भी खतरा है। ऐसे सिलेंडर्स ऑक्सीजन रीफिलिंग सेंटर्स में काम करने वाले कर्मचारियों की जान भी ले सकते हैं। पुलिस ने इस गिरोह के जिन सदस्यों को गिरफ्तार किया वे कबाड़ियों से इन सिलेंडर्स को खरीदते थे। असल में आग बुझाने वाले सिलेंडर में कार्बन डाईऑक्साइड भरी होती है। इन सिलेंडर्स को भले ही बाहर से रंग दिया जाए लेकिन अन्दर से इनकी सफाई तो नहीं होती है। अगर कचरा , लोहे का बुरादा हुआ या किसी भी तरह की गंदगी हुई तो मरीज की जान जा सकती है। चूंकि ये सिलेंडर एक निश्चित प्रेशर वाली क्षमता के होते हैं और अगर उसमें उस क्षमता से ज्यादा गैस भर दी गई तो ब्लास्ट हो सकता है। इसलिए खतरा बड़ा है। कोरोना मरीजों के रिश्तादारों से मेरी यह अपील है कि कृपया सावधान रहिए। अगर कोई इस तरह के सिलेंडर बेच रहा है तो बिल्कुल मत खरीदिए, पुलिस को खबर दे दीजिए।
उधर, लोधी कॉलोनी के एक रेस्तरां में दिल्ली पुलिस ने छापा मारकर ऑक्सीजन की ब्लैक मार्केटिंग करने वाले एक रैकेट का भंडाफोड़ किया। यहां ऑक्सीजन कॉन्सन्ट्रेटर्स को मनमाने दाम पर बेचा जा रहा था। इस गिरोह के लोग चीन से ऑक्सीजन कॉन्स्ट्रेटर्स 20 से 25 हजार रुपए में मंगा कर उन्हें ऑनलाइन 60 से 70 हजार रुपए में बेच रहे थे। पुलिस को छापे में यहां से 9 लीटर और 5 लीटर की क्षमता वाले ऑक्सीजन कॉन्सन्ट्रेटर्स के 32 बॉक्स मिले। इसके साथ ही थर्मल स्कैनर का एक बॉक्स और N95 मास्क के भी कई बॉक्स पुलिस ने बरामद किए। पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया।
इस वक्त केवल दिल्ली में ही नहीं बल्कि दिल्ली के आसपास के इलाकों में भी ऐसे गिरोह सक्रिय हैं जो ऑक्सीजन के सिलेंडर्स की ब्लैकमार्केटिंग कर रहे हैं। एक-एक ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए तीन से चार गुना तक कीमत वसूल रहे हैं। गुरुग्राम में ड्रग कंट्रोलर डिपार्टमेंट और पुलिस ने मिलकर तीन लोगों को गिरफ्तार किया। इनके पास से 260 ऑक्सीजन सिलेंडर्स बरामद हुए। इन सिलेंडर्स को मुंबई से एक ट्रक में लाया गया था और गुरुग्राम के बादशाहपुर में सामुदायिक केंद्र के पास इन्हें मनमानी कीमतों पर बेचा जा रहा था। इस गिरोह के लोग एक सिलेंडर के लिए 30 से 34 हजार रुपए तक वसूल रहे थे।.हैरानी की बात ये है कि छापे से पहले सिर्फ दो घंटे में इस गिरोह ने 250 सिलेंडर बेच भी दिए थे।
बुधवार की रात मैंने ‘आज की बात’ में दिखाया था कि कैसे मुंबई के पास उल्हासनगर के घरों में अनहाइजीनिक तरीके से आरटी-पीसीआर टेस्ट में इस्तेमाल की जानेवाली कॉटन स्वैब बड्स बनाई जा रही थी। जांच में पता चला कि उल्हासनगर के संत ज्ञानेश्वर इलाके में इस तरह से घरों में कोरोना टेस्ट में काम आने वाली कॉटन बड्स एक साल से बनाई जा रही थी। यानि पिछले साल जब कोरोना पीक पर था, उस वक्त से ही यहां काम शुरू हो गया था। इस खबर का असर ये हुआ कि इस इलाके में बनी कॉटन बड्स जहां-जहां सप्लाई की गई हैं, उन सब जगहों पर मौजूदा किट से कोरोना टेस्ट बंद कर दिया गया है। उल्हासनगर पुलिस की 7 टीम, महानगरपालिका की 6 और एफडीए की 4 टीमों ने संत ज्ञानेश्वर नगर पहुंचकर घरों की तलाशी ली। यहां से बड़ी संख्या में कॉटन बड्स को जब्त किया गया। किट बनाने के काम में लगे छह लोगों से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने कॉन्ट्रैक्टर महेश केसवानी उर्फ रबरवाला के खिलाफ केस दर्ज कर लिया। महेश केसवानी ने ही उल्हासनगर में रहने वाले गरीब परिवारों को किट बनाने का काम दिया था। पुलिस ने महेश केसवानी के ऑफिस, गोदाम और अलग-अलग ठिकानों पर छापे मारे। फिलहाल महेश केसवानी फरार है और पुलिस उसे तलाश रही है।
इस रैकेट की जांच के लिए उल्हासनगर नगरपालिका ने एक जांच कमेटी बनाई है। मुझे उम्मीद है कि स्थानीय पुलिस कॉन्ट्रै्क्टर महेश केसवानी को जल्द से जल्द गिरफ्तार करेगी, क्योंकि वह मुख्य अपराधी है। सोचिए जिन लोगों को एक कॉटन बड बनाने के लिए सिर्फ दो पैसे मिले रहे हों। सौ कॉटन बड बनाने पर सिर्फ दो रुपए मिल रहे हों, वो सैनेटाइजर कैसे खरीदेंगे? जहां बड बन रही है उस जगह को ये लोग कैसे सैनेटाइज करेंगे? ये लोग कॉटन को स्टरलाइज करेंगे और ग्लब्स पहनकर कॉटन बड को पैक करेंगे, इसकी उम्मीद करना भी बेकार है। इनलोगों का इसमें कोई कसूर नहीं हैं। कसूरवार तो वो कॉन्ट्रैक्टर है, जिसने कॉटन बड बनवाने का काम इन लोगों को दिया। इस कॉन्ट्रैक्टर को जितनी जल्द गिरफ्तार किया जाए उतना अच्छा होगा। इस तरह के लोगों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए कि भविष्य में कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा कारोबार करने का दुस्साहस न कर सके।
Covid Pandemic: Speed up vaccination
The pandemic surge continues. The number of daily fresh Covid-19 cases in India touched another peak with over 4.14 lakh cases reported on Thursday, while the number of Covid-related deaths during the last 24 hours almost touched four thousand (3,927). For the last 10 days, the daily number of deaths has been consistently high at over three thousand. An average of 150 Indians are dying every hour due to Covid-19. According to WHO weekly estimate, 46 per cent of daily fresh cases are from India, while more than 25 per cent of Covid-related deaths are also from India.
Maharashtra continues to lead the state tally with 62,194 new cases and 853 deaths. Karnataka is second with 49,058 new cases and 328 deaths, Kerala 42,464 new cases and 63 deaths, Uttar Pradesh 26,780 new cases and 353 deaths, Tamil Nadu 24,898 new cases and 195 deaths, Andhra Pradesh 21,954 new cases and 72 deaths, Rajasthan 17,532 cases and 161 deaths, Chhattisgarh 13,846 new cases and 212 deaths, Gujarat 12,545 new cases and 123 deaths, Madhya Pradesh 12,421 new cases and 86 deaths, Punjab 8,874 cases and 154 deaths and Uttarakhand 8,517 new cases and 151 deaths.
The spread of the pandemic clearly indicates that states in southern, western and northern regions are facing the full brunt of the second wave. By Thursday night, 16.48 crore Indians were administered Covid vaccine doses, but this cumulative total is very small compared to India’s population. Much remains to be done. A massive vaccination drive needs to be launched, backed by adequate stocks of vaccine doses.
The good news is that components to produce 20 million Covishield doses have arrived from USA. The US, European Union, Canada and New Zealand have said they are ready to discuss waiver of intellectual property rights on vaccines, but Germany, UK, Japan and Switzerland have opposed. If the IPR on patented vaccines is waived, it will help India and other developing countries to boost manufacture of patented vaccines like Pfizer, Moderna and Novovax.
Meanwhile, the oxygen supply in Delhi-NCR region appears to be better, though it is unpredictable. Tamil Nadu government has told the Madras High Court that it has only one day’s oxygen stock left for hospitals. Delhi chief minister Arvind Kejriwal has thanked the Prime Minister, Supreme Court and Delhi High Court after the city government received 730 metric tonnes of oxygen on Thursday.
In spite of increase in oxygen supply, rampant blackmarketing, hoarding and profiteering in oxygen cylinders, concentrators and vital medicines continue in Delhi and some neighbouring states. In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Thursday night, we showed how old and used fire extinguishers, normally red in colour, are being painted black, the old fire extinguisher nozzles being removed and oxygen nozzles fitted, filled with oxygen and then being sold to unsuspecting relatives of Covid patients as oxygen cylinders in Shahdara, Delhi. Delhi Police arrested three persons and seized 532 fire extinguishers which had been kept in the factory for being repainted as oxygen cylinders. 72 fake oxygen cylinders were also seized. Think about the magnitude of this racket. These fake oxygen cylinders were being sold at Rs 15,000 to Rs 17,000 each.
There are potential risks of blasts from fake oxygen cylinders, because genuine oxygen cylinders are completely different from fire extinguishers. The gang members who were nabbed by police had been procuring these old extinguishers from scrap dealers. These fire extinguishers are not cleaned, there could be dust and iron particles inside, and if oxygen is filled and given to a patient, there are risks of the patient choking to death. These extinguishers have a certain level of air pressure, and if more oxygen is filled, it can cause a blast. I would appeal to relatives of Covid patients to be on alert and inform police if unscrupulous traders try to sell fire extinguishers as oxygen cylinders.
In a Lodhi Colony restaurant, Delhi Police busted a profiteering racket. This gang was importing Chinese oxygen concentrators at Rs 20-25,000 each, and then selling them online for Rs 60-70,000 each. During the raid, 32 boxes containing 419 oxygen concentrators of 5 litre and 9 litre capacities, a box of thermal scanners and several boxes containing N95 masks were seized and four persons were arrested.
Drug Controller department staff in Gurugram arrested three persons with 260 oxygen cylinders, which had been brought in a truck from Mumbai. They were selling cylinders worth Rs 12,000 at Rs 34,000 each near a village community centre in Badshahpur. By the time the raid was conducted, the black marketers had already sold 250 oxygen cylinders within a matter of two hours.
On Wednesday night, I had shown in ‘Aaj Ki Baat’ how cotton swabs used for RT-PCR tests were being made in hygienic conditions in a slum in Ulhasnagar near Mumbai. On further investigation, it appeared that this racket was going on since May last year, when the first wave of pandemic was at its peak. After India TV’s investigation was telecast, RT-PCR tests at centres where these cotton swabs were supplied, have been stopped. Seven teams of Ulhasnagar police, six teams of Ulhasnagar municipality and four FDA teams carried out searches in the entire locality. A large number of stocks was seized, but the outsourcing contractor Mahesh Keswani alias Rubberwala is absconding. Police raided his office, home and godowns in search of more stocks.
An inquiry committee has been set up by the local municipality to probe this racket. I expect the local police to nab the contractor Mahesh Keswani at the earliest, because he is the main culprit. He may reveal to police where the stocks of RT-PCR cotton swab packs were sent. I understand the plight of poor people who toiled in their homes to make these cotton swabs. They were being paid a measly Rs 2 for making 100 cotton swabs. Nobody can expect these poor labourers to purchase gloves and sanitize their surroundings while making cotton swabs. The sooner the contractor is nabbed, the better. Such a trader must be given exemplary punishment so that others may not dare to do such an act in future.
कोरोना महामारी: लोगों के जीवन से खिलवाड़ करनेवालों पर सख्ती होनी चाहिए
देशभर में बुधवार को कोरोना वायरस के 4 लाख 13 हजार नए मामले सामने आए वहीं आधिकारिक तौर पर इस घातक वायरस के संक्रमण ने 3,980 लोगों की जान ले ली। देश में पॉजिटिविटि रेट 24.4 प्रतिशत है, इसका मतलब ये है कि कोरोना के हर 100 टेस्ट में 24.4 मामले पॉजिटिव पाए जा रहे हैं। एक्टिव मामलों की बात करें तो ये संख्या करीब 35.7 लाख है। कोरोना को लेकर आंकड़ों की यह स्थिति तब है जबकि टेस्टिंग में गिरावट आई है। कल कुल 15.4 लाख टेस्टिंग हुई जबकि इससे पहले वाले दिन 16.6 लाख टेस्टिंग हुई थी।
केंद्र ने बुधवार को कहा कि कोरोना वायरस के यूके वैरिएंट के मामलों में कमी आ रही है लेकिन महाराष्ट्र में पाया गया डबल म्यूटेंट वैरिएंट कोरोना के नए मामलों में उछाल की मुख्य वजह है। भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. के. विजय राघवन ने बुधवार को कहा कि महामारी की तीसरी लहर भी आनी तय है। उन्होंने नए वेरिएंट के खिलाफ निगरानी को मजबूत करने और वैक्सीन को अपग्रेड करने की बात कही। राघवन के मुताबिक इस वायरस ने इम्यूनिटी को भंग करने के लिए ‘हिट एंड रन’ रणनीति को अपनाया है। अधिकांश भारतीयों में पहली लहर और टीकाकरण के बाद इम्यूनिटी विकसित हुई थी।
इस गंभीर हालत के बीच मुंबई के पास उल्हासनगर में एक झुग्गी में बच्चों द्वारा आरटी-पीसीआर टेस्ट किट में उपयोग होनेवाले बिना स्टेरलाइज किए हुए कॉटन स्वैब बड्स बनाने की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई। यह किट निर्माताओं की तरफ से की गई आपराधिक लापरवाही का मामला है। हमारे एक दर्शक ने जब बच्चों द्वारा स्वैब बड्स बनाने का विडियो भेजा तो हमारे रिपोर्टर राजीव सिंह संत ज्ञानेश्वर नगर कैंप नंबर 2 में गए। वहां उन्होंने कई घरों में महिलाओं और बच्चों को फर्श पर बैठेकर कॉटन बड्स बनाते हुए देखा। ये लोग इन बड्स को कागज के एक लिफाफे में पैक कर रहे थे। इन बड्स का उपयोग आरटी-पीसीआर टेस्ट के दौरान किया जाता है। इसके जरिए लोगों के नाक और गले से स्वैब के नमूने लिए जाते हैं।
इन टेस्ट किट के पेपर पर तो बड़ी कंपनियों का नाम लिखा रहता है लेकिन ये बड़ी कंपनियां स्वैब बड्स बनाने का काम छोटे वेंडर्स को आउटसोर्स कर देती हैं। ये वेंडर्स झुग्गियों में लोगों को स्वैब बड्स का काम दे देते हैं जहां इसे बनाने के लिए स्वच्छता के मानकों की बहुत परवाह नहीं की जाती। यहां एक हजार स्वैब सैंपल बड्स बनाने का ऑर्डर पूरा करने पर 20 रु का मेहनताना दिया जाता है। चूंकि हमारे रिपोर्टर ने यहां जाने से पहले पुलिस और एफडीए अधिकारियों को अलर्ट कर दिया था इसलिए इनकी भी एक संयुक्त टीम वहां पहुंच गई। इस टीम उन सभी स्वैब बड्स को जब्त कर लिया जिन्हें एक डिब्बे में पैक कर वेंडर्स को भेजा जाना था।
यहां कॉटन स्वैब बड्स का निर्माण स्टेरलाइज्ड कंडीशन में नहीं हो रहा था जो इसके निर्माण की पहली शर्त है। इस तरह के काम से जुड़े जोखिम का अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं। आरटी-पीसीआर टेस्ट कराने आए लोगों के नाक और गले से सैंपल लेने के लिए बड्स डाले जाते हैं। ऐसे में इस तरह के बड्स कोरोना वायरस के संभावित वाहक हो सकते हैं। क्योंकि इस इलाके में कोरोना के कई मामले सामने आए थे। यह काम पिछले कई महीनों से चल रहा था लेकिन स्थानीय अधिकारियों ने इसकी कोई सुध नहीं ली।
मैंने महाजन डायग्नोस्टिक इमेजिंग सेंटर्स के संस्थापक डॉ. हर्ष महाजन से इस तरह से स्वैब बड्स किट बनाने और इससे जुड़े जोखिमों के बारे में बात की। उन्होंने इस तरह से स्वैब बड्स बनाने को अपराध से कम नहीं बताया। और वह भी महाराष्ट्र जैसे राज्य में यह हो रहा जो पिछले कई महीनों से महामारी की दूसरी लहर का केंद्र बना हुआ है।
उन्होंने कहा- ‘आमतौर पर इस तरह के कॉटन स्वैब को हाइजेनिक और स्टेराइल (जीवाणु रहित) वातावरण में बनाया जाना चाहिए था।इस तरह का वातावरण हमें ऑपरेशन थिएटर के अंदर मिलता है। लोगों के नाक और गले के अंदर इन स्वैब बड्स को डालने से न केवल आरटी-पीसीआर रिपोर्ट गलत मिलेगी बल्कि बैक्टीरिया के संक्रमण का खतरा भी होगा। हम सपने में भी नहीं सोच सकते कि हमारे देश में इस तरह से कॉटन स्वैब बड्स का निर्माण हो रहा है।’
आमतौर पर इस तरह की किट को बनाने का पूरी प्रक्रिया मशीन से होती है। मशीनें पूरी तरह से स्टेरलाइज होती हैं। बड्स बनाने में इस्तेमाल होने वाली कॉटन स्टरलाइज्ड होती है। मशीन ही कॉटन से बड बनाती है और फिर उस पर प्लास्टिक लपेटने का काम भी मशीन करती है। पैकिंग भी मशीनों से होती है। पैकिंग के बाद जिस जगह पर इन बड्स को रखा जाता है, वो जगह भी पूरी तरह से सैनेटाइज होती है। पूरी प्रक्रिया में कहीं हाथ का इस्तेमाल नहीं होता, कोई इंसानी दखल नहीं होता। लेकिन मुनाफा कमाने की होड़ में बड़ी कंपनियां छोटे-छोटे वेंडर्स को सप्लाई का ऑर्डर दे देती हैं। ये वेंडर्स कॉटन स्वैब बड्स के निर्माण में इसके मानकों का कोई ख्याल नही रखते। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है जिसे कड़े कदम उठाकर रोकने की जरूरत है।
बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने यह भी दिखाया कि कैसे डॉक्टरों और नर्सों द्वारा इस्तेमाल सर्जिकल ग्लव्स को कबाड़ी की दुकान से खरीदने के बाद इसे धोकर रीपैक किया जा रहा था। दिल्ली के पास गाजियाबाद के लोनी इलाके में एक फैक्ट्री में यह काम बड़े आराम से किया जा रहा था। इंडिया टीवी की रिपोर्टर विजय लक्ष्मी ने बताया कि पुराने ग्लब्स का काला कारोबार करने वाले कचरा इकट्ठा करने वालों को पैसे देकर हॉस्पिटल के बाहर से, वैक्सीनेशन सेंटर के कूड़े से ये ग्लब्स इकट्ठे करवाते थे। कबाड़ी के यहां से यूज्ड ग्लब्स खरीदते थे। फैक्ट्री में पुराने ग्लब्स को धोया जाता था और इन्हें डिब्बों में पैक करके बेचा जाता था। इन लोगों ने ट्रॉनिका सिटी इलाके में एक फैक्ट्री को किराए पर लिया और फिर यहां पर ग्लव्स को साफ करने वाली मशीनें लगाईं और धंधा शुरू कर दिया। पुलिस को जब इस रैकेट का पता चला तो छापे की कार्रवाई हुई। पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया। इनके पास से 98 बोरी इस्तेमाल किए हुए सर्जिकल ग्लव्स मिले, इसके अलावा 60 बोरी ऐसी थी जिनमें धुले हुए दस्ताने थे। ये पैक होकर मार्केट में जाने के लिए तैयार थे। पुलिस इस मामले में अन्य लोगों की भूमिका की भी जांच कर रही है।
डॉ. हर्ष महाजन ने इस्तेमाल किए सर्जिकल ग्लव्स को ‘मौत का हथियार’ बताया। उन्होंने डिस्ट्रीब्यूटर्स और स्टॉकिस्टों की पूरी चेन की पहचान करने का आह्वान किया जो यूज किए हुए गलव्स को सर्जिकल ग्लव्स के रूप में बेच रहे थे। उन्होंने कहा, ‘इस तरह के लोगों ने केवल मुनाफा कमाने के लिए अपनी अंतरआत्मा को मारकर हजारों लोगों के स्वास्थ्य को खतरे में डालने का काम किया है।’
जो लोग इस्तेमाल किए हुए ग्लव्स को धो-पोछकर फिर से बेच रहे हैं। वो समाज के दुश्मन हैं। इस तरह से इंफेक्शन नहीं फैलेगा तो और क्या होगा? थोड़े से पैसे के लालच में ये लोग कितना बड़ा पाप कर रहे हैं, किस तरह लोगों में बीमारियां फैलाने का काम करते हैं, ये देखकर दुख होता है। जब-जब देश में किसी चीज की डिमांड बढ़ती है तो उसे लेकर बेईमानी शुरू हो जाती है।उसी की कालाबाजारी शुरू हो जाती है। लोग नकली सामान बनाकर बेचने लगते हैं। ये भी नहीं सोचते कि उनकी काली करतूत किसी की जान ले सकती है।
दिल्ली पुलिस कमिश्रर एस एन श्रीवास्तव ने नकली रेमडेसिविर को लेकर बड़ा खुलासा किया। उन्होंने बताया कि रेमडेसिविर के नाम पर कुछ लोग उत्तराखंड के अलग-अलग इलाकों में नकली दवा बनाने का काम कर रहे थे। सात लोगों का एक पूरा गिरोह एक्टिव था। ये लोग हरिद्वार, रुडकी और कोटद्वार जैसे इलाकों में अवैध फैक्ट्री में नकली रेमडेसिविर बना रहे थे और उसे कोविप्री के नाम से मार्केट में बेच रहे थे। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने बताया कि ये लोग एक-एक इंजेक्शन को 20 हजार रुपए में बेच रहे थे। फैक्ट्री से 196 इंजेक्शन जब्त किए गए..लेकिन पता ये भी चला कि इन लोगों ने छापे से पहले कम से कम 2000 इंजेक्शन बेच दिए थे। 3000 और नकली इंजेक्शन भेजने की पूरी तैयारी हो चुकी थी। इसके लिए शीशी तैयार कर ली गई थी लेकिन इससे पहले पुलिस पहुंच गई।
यही हाल ऑक्सीजन सिलेंडर का है। आक्सीजन सिलेंडर की खूब ब्लैक मार्केटिंग हो रही है। लखनऊ पुलिस ने कई जगहों पर छापे मारे और ऑक्सीजन सिलेंडर को ब्लैक में बेचने के मामले में 10 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। गोमतीनगर एक्सटेंशन और जानकीपुरम इलाके में इनके ठिकानों से 225 ऑक्सीजन सिलेंडर्स बरामद हुए। एक-एक सिलेंडर 35 हजार रुपए का बेचा जा रहा था। इन लोगों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए।
ऑक्सीजन की इस किल्लत के बीच अब अच्छी खबरें भी आ रही हैं। दिल्ली के दो बड़े अस्पतालों एम्स और राम मनोहर लोहिया (RML) में पीएम केयर फंड से ऑक्सीजन के दो बड़े प्लांट लगाए गए हैं। ये ऑक्सीजन प्लांट DRDO ने कोयम्बटूर की ट्राईटेंड नाम की कंपनी के साथ मिलकर बनाया है। ये प्लांट सीधे वातावरण (Atmosphere)से ऑक्सीजन बनाते हैं। ये प्लांट्स चौबीस घंटे ऑक्सीजन की सप्लाई कर सकते हैं। हर प्लांट एक घंटे में 1,000 लीटर मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकता है, जो रोजाना 190 मरीजों को 5 लीटर ऑक्सीजन देने के लिए पर्याप्त है। कुल मिलाकर, दिल्ली में पांच ऐसे ऑक्सीजन प्लांट बनाए जाएंगे।
कोरोना महामारी में देश को विदेशी मदद भी मिल रही है। इंडियन नेवी का युद्धपोत INS तलवार बहरीन से लिक्विड ऑक्सीजन के दो क्रायोजनिक कंटेनर्स लेकर मैंगलोर पहुंचा। इसके अलावा INS ऐरावत सिंगापुर से और INS कोलकाता कुवैत से लिक्विड ऑक्सीजन, ऑक्सीजन से भरे सिलेंडर, क्रायोजनिक टैंक और दूसरे मेडिकल उपकरण लेकर भारत आ रहे हैं। नेवी के एक और युद्धपोत INS शार्दुल को ऑक्सीजन कंटेनर लाने के लिए कोच्चि से कुवैत भेजा गया है।
अबतक नेवी ने नौ युद्ध पोतों को अलग-अलग बंदरगाहों पर ऑक्सीजन लाने के लिए भेजा है। नेवी ऑपरेशन समुद्र सेतु – 2 के तहत विदेशों से मदद लाने के काम में लगी है। ऑस्ट्रेलिया से भी भारत को मदद मिल रही है। एक चार्टर्ड फ्लाइट वेंटीलेटर्स और 43 ऑक्सीजन कंसंटेर्स लेकर दिल्ली पहुंचा है। भारतीय वायुसेना का C-17 ग्लोबमास्टर विमान ऑस्ट्रेलिया से चेन्नई पहुंचा है। इस विमान में चार खाली क्रायोजनिक ऑक्सीजन कंटेनर्स हैं।
लेकिन इस तरह की तमाम कोशिशें भी मौजूदा संकट के सामने छोटी पड़ रही है। सावधानी बरतने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। लोगों से मेरी यही अपील है कि जल्द से जल्द वैक्सीन लें, अपने घरों में रहें, मास्क पहनें और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें।
Covid pandemic: Those playing with lives of people must be sternly dealt with
On Wednesday, India reported nearly 4.13 lakh fresh Covid-19 cases across the country, and there were 3,980 Covid-related deaths reported officially. The positivity rate stood at 24.4 per cent, meaning that out of 100 tests conducted, 24.4 cases were reported Covid positive. As of now, there are roughly 35.7 lakh active cases pending. This, at a time, when testing in India has dropped to 15.4 lakh, down from 16.6 lakh tests done on the previous day.
The Centre on Wednesday said the UK variant of Coronavirus is declining in proportion across India, but the double mutant variant, found in Maharashtra, is the main cause for the current surge in Covid-19 cases.
The principal scientific adviser to the Government of India, Prof K. VijayRaghavan said on Wednesday that a third wave of the pandemic is inevitable. He called for strengthening surveillance and upgrading of vaccines against new variants. According to him, the pathogen has adopted “hit and run” tactics to breach immunity that most of the Indians had developed during the first wave and also due to vaccination.
Amidst this grim scenario came a shocking report about manufacture of non-sterilized cotton swab buds used in RT-PCR test kits by children at a slum in Ulhasnagar near Mumbai. This is a case of criminal negligence by kit manufacturers. After we received a video of children making these cotton buds from an alert viewer, our reporter Rajiv Singh went to Sant Dnyaneshwar Nagar Camp Number 2, where he found women and children sitting on the floor in several homes, making cotton buds and then packing them in paper envelopes. These cotton buds are used for inserting into the nostril and throat of people to take swab samples for RT-PCR test.
These test kits are, on paper, ‘manufactured’ by big companies, but they outsource the work to small vendors, who, in turn, get these swab buds made in slums under unhygienic condition. The families get Rs 20 for making 1,000 swap sample buds. Since our reporter had alerted police and FDA officials, their joint team arrived and seized all the cotton swab kits that had been packed in cartons for dispatch to the vendor.
None of these cotton swab buds were being made in sterilized condition. Think of the enormity of the risks involved. These cotton swab buds are inserted into the nostril and throat of unsuspecting people who come for RT-PCR tests. These could be potential carriers of Coronavirus, and that too, from a locality where there had been many cases of Covid-19 infection. This work has been going on for the last several months without any surveillance on part of the local authorities.
I spoke to Dr Harsh Mahajan, founder of Mahajan Diagnostic Imaging Centres, about the risks involved in making such kits under non-sterilized conditions. He described the making of such contaminated swaps as nothing short of a crime, and that too, from a state like Maharashtra, which had been the epicentre of the second wave of pandemic since last several months.
“Normally such cotton swabs should have been made under hygienic and sterile conditions that we find inside operation theatres. By inserting these swabs inside the nostril and throat of people, they will not only get incorrect RT-PCR reports, but also run the risk of getting bacterial infections. We cannot even imagine in our dreams, our country manufacturing such cotton swabs under unhygienic conditions”, he said.
Normally, cotton swabs used in RT-PCR tests are made in a mechanized manner, untouched by human hands. Swab buds are made on machines from sterilized cotton, the packing is done by machines, and the place where these buds are stored is sanitized. There is no human involvement at any stage, but with an eye on profits, some of these companies have started outsourcing this work to small vendors who get them made under unhygienic conditions. This is a dangerous trend which needs to be stopped through stringent action.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Wednesday night, we also showed how surgical gloves discarded by doctors and nurses are purchased from ragpickers and junk dealers, and are being recycled and packed in Tronica City, Ghaziabad, near Delhi.
India TV reporter Vijay Laxmi reported how the recyclers rented a closed factory, installed washing machines and dryers, collected used gloves and masks from outside hospitals and vaccination centres, washed them with water, and then repacked them for sale. Local police arrested three persons, seized nearly 175 bags full of used gloves collected from hospitals, and 80 boxes packed with recycled and packed surgical gloves. The number of used gloves seized ran into several lakhs. Police is trying to identify the role of others involved in this chain.
Dr Harsh Mahajan described these recycled surgical gloves as “weapons of death”. He called for identifying the entire chain of distributors and stockists who were selling them as new surgical gloves. “Such recyclers and traders have put their conscience on sale by putting the health of thousands of people at risk”, he added.
In my view, traders who recycle and sell used surgical gloves are enemies of society. They are committing a grave sin by spreading infection among people. Such inhuman practices thrive only when there is a huge surge in demand and manufacturers and traders cut corners to make a killing in the market. They forget that they are risking the lives of thousands of people.
Delhi Police Commissioner S. N. Shrivastava has revealed how a gang of seven persons set up an illegal factory in Kotdwar, Uttarakhand to manufacture fake Remdesivir injection vials under the name “Covipri”. By the time they were caught, they had already sold nearly 2,000 such fake Remdesivir injections at the rate of Rs 20,000 per vial. 196 fake vials and 3,000 empty vials were seized from the spot.
In Lucknow, police arrested 10 black marketers who were selling oxygen cylinders at exorbitant rates. 225 oxygen cylinders were seized from their hideouts in Gomtinagar Extension and Janakipuram. They were selling each oxygen cylinder for Rs 35,000. These black marketers much face the full brunt of law and must be given exemplary punishment.
On the brighter side, two oxygen plants have now been installed at the AIIMS and Ram Manohar Lohia Hospital, both run by the Central government, in Delhi, with financial aid from PM CARES Fund. These have been installed by DRDO along with its partner Trident Pneumatics, a Coimbatore-based company. These plants will produce oxygen round-the-clock. Each plant can produce 1,000 litre of medical oxygen in one hour, enough to provide 5 litres of oxygen to 190 patients daily. In all, five such oxygen plants will be set up in Delhi.
Indian Navy’s warship INS Talwar reached Mangaluru from Bahrain on Wednesday carrying two cryogenic containers containing liquid oxygen. Two more warships INS Airavat from Singapore and INS Kolkata from Kuwait are coming to India carrying liquid oxygen, cylinders, cryogenic tanks and other medical equipment. Another warship INS Shardul has been sent from Kochi to Kuwait to bring liquid oxygen to India.
As of now, nine Indian Navy warships have been sent to different ports to bring liquid oxygen under Operation Samudra Setu-II. A chartered Qantas flight came to Delhi from Sydney carrying 1,056 ventilators and 43 oxygen concentrators. A C-17 Globemaster aircraft of Indian Air Force came to Chennai from Australia carrying four empty cryogenic oxygen containers.
But such a humongous effort is looking small in front of the crisis. There is no option but to be careful. I would appeal to people to get themselves vaccinated at the earliest, stay in their homes, wear masks and practise social distancing.