ब्लैक फंगस, व्हाइट फंगस और कोरोना वायरस के खिलाफ जारी है जंग
केंद्र ने गुरुवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से म्यूकरमाइकोसिस, जिसे ब्लैक फंगस के नाम से भी जाना जाता है, को महामारी रोग अधिनियम 1897 के तहत अधिसूच्य बीमारी बनाने का निर्देश दिया। केंद्र का यह निर्देश इस घातक बीमारी से देशभर में 126 लोगों की जान जाने की खबर सामने आने के बाद सामने आया है। देश के विभिन्न राज्यों से अभी तक इस बीमारी के आधिकारिक तौर पर 5,500 मामले सामने आए हैं।
ब्लैक फंगस के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रमुख दवा लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी की दिल्ली और 9 अन्य राज्यों में भारी कमी देखने को मिल रही है। हालात को देखते हुए केंद्र सरकार ने फार्मा कंपनियों से युद्धस्तर पर इस दवा का उत्पादन बढ़ाने के लिए कहा है। दिल्ली में ब्लैक फंगस से पीड़ित 200 से ज्यादा मरीज अलग-अलग अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं। इन मरीजों में से ज्यादातर 50 साल से ऊपर के हैं। 90 मरीजों की मौत के साथ महाराष्ट्र इस बीमारी से सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य है, इसके बाद हरियाणा में 14 लोगों की जान गई है। इस बीच बिहार की राजधानी पटना में व्हाइट फंगस के मरीज मिलने की खबर सामने आई है।
एम्स द्वारा ब्लैक फंगस रोग का पता लगाने और इसके इलाज के बारे में गाइडलाइंस जारी करने के साथ ही मैंने गुरुवार रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में डॉक्टर निखिल टंडन से इस महामारी से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर बात की। डॉ. निखिल एंडोक्रिनोलॉजी, मेटाबॉलिज्म ऐंड डायबिटिज डिपार्टमेंट के हेड हैं और उन्हें फंगल इंफेक्शन का एक्सपर्ट माना जाता है।
इंटरव्यू के दौरान डॉ. टंडन ने कुछ बातें स्पष्ट रूप से कहीं: नंबर एक, ब्लैक फंगस और व्हाइट फंगस कोई नई बीमारियां नहीं हैं। फंगस हमारे आसपास हमेशा से रहा है, लेकिन पहले इससे जुड़े एक-दो मामले सामने आते थे, लेकिन कोविड-19 के इलाज में स्टेरॉयड्स के इस्तेमाल की वजह से ब्लैक फंगस का फैलाव हुआ। जो लोग डायबिटिज से पीड़ित हैं, जिनकी इम्युनिटी कमजोर है, उन्हें इसका खतरा ज्यादा है। यह ब्लैक फंगस छोटी-छोटी रक्त वाहिकाओं और केशिकाओं पर हमला करता है।
दूसरी बात, यदि इस बीमारी को वक्त रहते पहचान लिया जाए तो मरीज को बचाया जा सकता है। डॉक्टर टंडन ने लोगों को सलाह दी कि खांसी, जुकाम और बुखार जैसे लक्षणों में खुद दवा न लें, क्योंकि सेल्फ मेडिकेशन से ब्लैक फंगस का खतरा बहुत बढ़ जाएगा। दूसरी बात, उन्होंने कहा कि अगर आंख लाल हो, चेहरे पर सूजन आए, दो-दो इमेज दिखें, चेहरे पर स्पॉट्स पड़ें तो इन लक्षणों को नजरअंदाज न करें। डरना नहीं हैं, लेकिन डॉक्टर के पास तुरंत जाएं और अपनी जांच कराएं। इस बीमारी का इलाज घर में नहीं हो सकता। इस बीमारी का इलाज केवल हॉस्पिटल में हो सकता है। डॉ. टंडन ने यह भी बताया कि लोगों को कोविड-19 से ठीक होने के बाद क्या सावधानियां बरतनी चाहिए। केंद्र और राज्य दोनों सरकारें अब ब्लैक फंगस नाम की इस बीमारी को लेकर सतर्क हैं और सभी राज्यों को इसकी प्रमुख दवा के पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे हैं।
पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में व्हाइट फंगस के मामले सामने आए हैं। इस अस्पताल में ब्लैक फंगस के भी लगभग 50 मरीजों का इलाज चल रहा है। गुरुवार को व्हाइट फंगस के 4 नए मामले सामने आए। व्हाइट फंगस के इन मामलों ने पटना के इस अस्पताल के डॉक्टरों कों चिंता में डाल दिया। यह बीमारी पहले लंग्स और चेस्ट कैविटी पर हमला करती है, औऱ इसके बाद शरीर के अन्य अंगों में फैल जाती है।
हमारे पटना के रिपोर्टर नीतीश चंद्र ने बताया कि व्हाइट फंगस के सभी मरीजों में एक ही जैसे शुरुआती लक्षण देखने को मिले हैं। इन्हें पहले खांसी हुई और फिर बुखार हो गया। जब ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल कम होने लगा, तो HRCT स्कैन किया गया, जिसमें मरीजों के फेफड़ों पर धब्बे नजर आए। इस बीमारी के लक्षण वही हैं जो कोविड-19 के किसी मरीज के होते हैं। लेकिन हैरानी की बात ये थी कि जब इन रोगियों की सारी रैपिड एंटीजेन और RT-PCR रिपोर्ट निगेटिव आई, लेकिन फेफड़ों पर दिख रहे धब्बों ने डॉक्टरों को बेहद जरूरी सुराग दे दिए।
इनमें से एक मरीज खुद डॉक्टर थे, इसलिए उन्होंने पहले फंगल इन्फेक्शन के टेस्ट करने के लिए कहा। इसके बाद स्पोटम टेस्ट किया गया, यानी कि बलगम की जांच की गई, कल्चर टेस्ट किया गया. तब उसमें व्हाइट फंगस का पता चला। इसके बाद उन्हें फंगल इन्फेक्शन की दवा दी गई और वह सिर्फ 3 दिन में ही ठीक हो गए। हमारे रिपोर्टर ने इस बीमारी को मात देने वाले डॉक्टर बसंत कुमार से बात की। उन्होंने बताया कि उन्हें पूरा अंदाजा था कि उन्हें फंगल इन्फेक्शन हुआ है। इसलिए जब कोरोना का टेस्ट निगेटिव आया, तो उन्होंने फंगल इन्फेक्शन टेस्ट करवाने पर जोर दिया, और यह बीमारी वक्त पर पकड़ में आ गई।
व्हाइट फंगस एक फंगल इंफेक्शन है, इसे वैज्ञानिक भाषा में कैंडिडोसिस भी कहते हैं और यह मानव शरीर के नम त्वचा वाले भागों में फैलता है। यह सबसे ज्यादा उन लोगों पर अटैक करता है जिनकी इम्युनिटी कम है। यह बीमारी कीमोथेरेपी या एंटीबायोटिक इलाज का एक दुष्प्रभाव भी हो सकती है। फंगस आमतौर पर पानी में, हवा में, जमीन की सतह पर पाई जाती है। छोटे बच्चे जब डायपर पहनते हैं, तो उन्हें रैशेज हो जाते हैं, वहीं कुछ लोगों के मुंह में छाले पड़ जाते हैं। यह सब फंगस की मौजूदगी के चलते ही होता है। इस तरह के फंगल इन्फेक्शन हल्की-फुल्की दवाओं से ठीक हो जाते हैं, लेकिन यदि संक्रमण फेफड़ों तक पहुंच जाए तो मामला घातक हो जाता है। ब्लैक फंगस की तरह व्हाइट फंगस भी उन्हीं लोगों पर सबसे ज्यादा अटैक करता है जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है, या जो डायबिटिज, एड्स या कैंसर से पीड़ित हैं। डॉक्टरों का कहना है कि घर में ऑक्सीजन सिलिंडर का इस्तेमाल करने वाले लोगों द्वारा डिस्टिल्ड वॉटर की जगह नल के साधारण पानी का इस्तेमाल करने से भी ऑक्सीजन लेते समय नाक और गले के जरिए फेफड़ों में फंगस का संक्रमण हो सकता है।
केंद्र सरकार ने कहा है कि ब्लैक फंगस और व्हाइट फंगस से पीड़ित सभी मरीजों के इलाज के लिए मल्ट-डिसिप्लिनरी अप्रोच की जरूरत है। इस टीम में आंख के सर्जन, ENT स्पेशलिस्ट, जनरल सर्जन और न्यूरो सर्जन समेत कई अन्य एक्सपर्ट डॉक्टर्स होने चाहिए। स्वास्थ्य मंत्रालय और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने सभी सरकारी अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों और निजी अस्पतालों द्वारा व्हाइट फंगस और ब्लैक फंगस के सभी मामलों की जांच, निदान और प्रबंधन के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए हैं। दिल्ली, गुरुग्राम, मुंबई, अहमदाबाद, लखनऊ और महाराष्ट्र, हरियाणा और बिहार के अन्य शहरों से नए मामले रोजाना सामने आ रहे हैं।
दिल्ली सरकार ने LNJP, GTB और राजीव गांधी अस्पताल में ब्लैक फंगस के लिए अलग से वॉर्ड बनाने की तैयारी शुरु कर दी है। अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में ब्लैक फंगस के 400 से ज्यादा मरीज भर्ती हैं। लगभग सभी राज्यों में डॉक्टरों और मरीजों को लिपोसोमल इंजेक्शन की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
राज्यों में फंगल इन्फेक्शन के मामले सामने आने के बीच केंद्र ने गुरुवार को कोरोना वायरस के ट्रांसमिशन को लेकर एक अलर्ट जारी किया। भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय ने ‘स्टॉप द ट्रांसमिशन, क्रश द पैंडेमिक’ शीर्षक से एक अडवाइजरी जारी की। इसमें लोगों को आगाह किया गया है कि कोविड-19 से पीड़ित व्यक्ति की छींक से निकलने वाली छोटी बूंदें 2 मीटर के क्षेत्र में गिर सकती हैं और इससे निकलने वाली फुहार (एयरोसोल) 10 मीटर दूर तक जा सकती है।
अडवाइजरी के मुताबिक, ‘हमेशा याद रखें: जिन लोगों में कोई लक्षण नहीं दिखते, वे भी वायरस फैला सकते हैं। कोविड-19 के वायरस का प्रकोप कम करने में खुली हवादार जगह अहम भूमिका निभा सकती है और एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे में संक्रमण फैलने के खतरे को कम कर सकती है। अच्छे वेंटिलेशन के चलते वायरस को फैलने से रोकने में मदद मिल सकती है। खिड़कियों और दरवाजों को बंद करके एयर कंडीशनर चलाने से संक्रमित हवा कमरे के अंदर ही रह जाती है और ऐसे में किसी संक्रमित कैरियर से दूसरे में ट्रांसमिशन का खतरा बढ़ जाता है।’ अडवाइजरी में दफ्तरों, प्रेक्षाग्रहों, शॉपिंग मॉल आदि में गेबल-फैन प्रणाली और रोशनदानों की भी सिफारिश की गई है। इसमें कहा गया है, ‘फिल्टरों को लगातार साफ करना चाहिये और जरूरत हो, तो उन्हें बदल देना चाहिए।’
अडवाइजरी में कहा गया है कि जब कोई संक्रमित बोलता, गाता, हंसता, खांसता या छींकता है, तो वायरस थूक या नाक के जरिये हवा में तैरते हुये स्वस्थ व्यक्ति तक पहुंच जाते हैं। संक्रमण के फैलने का यह पहला जरिया है। ‘एक संक्रमित शख्स द्वारा उत्सर्जित बूंदें विभिन्न सतहों पर गिरती हैं (जहां वे लंबे समय तक जीवित रह सकती हैं)। दरवाजे के हैंडल, लाइट स्विच, टैबलेट, कुर्सियों और फर्श जैसी जगहों, जिन्हें एक से ज्यादा लोग इस्तेमाल करते हैं, को ब्लीच और फिनाइल जैसे कीटाणुनाशक से बार-बार साफ करने की सलाह दी जाती है।’
अडवाइजरी में कहा गया है, अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्तर पर टेस्टिंग और आइसोलेशन को बढ़ाना होगा। किसी इलाके में बाहरी लोगों के प्रवेश से पहले रैपिड एंटीजन टेस्ट करना जरूरी है, और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को भी एन95 मास्क जरूर पहनना चाहिए। केंद्र का लक्ष्य है कि प्रतिदिन कोरोना के 45 लाख टेस्ट किए जाएं। रैपिड एंटीजन किट खरीदने के आदेश जारी कर दिए गए हैं। इससे कोविड-19 से संक्रमित लोगों का जल्द पता लगाने और उनका इलाज करने में मदद मिलेगी।
ये बात सही है कि देश में पिछले हफ्ते तक हालात बहुत खराब थे और महामारी की दूसरी लहर में लोगों ने बहुत दुख झेले। इन डेढ़ महीनों के दौरान ऑक्सीजन सप्लाई और ऑक्सीजन सिलिंडर की भारी कमी थी। लोगों को अस्पताल में बेड और आईसीयू वेंटिलेटर की तलाश में दर-दर भटकना पड़ा। लोगों को श्मशान घाट के बाहर अपने प्रियजनों के दाह संस्कार के लिए लंबी कतारों में इंतजार करना पड़ा। लेकिन अब हालात थोड़े बेहतर हुए हैं। अस्पताल में बेड की कोई कमी नहीं है। अधिकांश अस्पतालों में अब बेड उपलब्ध हैं। भारतीय रेलवे, भारतीय वायु सेना और नौसेना द्वारा किए गए अथक प्रयासों की बदौलत अब ऑक्सीजन भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। सेना और अर्धसैनिक बलों ने जरूरतमंदों के इलाज के लिए कोविड अस्पताल बनाए हैं।
कोरोना के मामलों में कमी आई है लेकिन इसके साथ-साथ हम सबकी जिम्मेदारी और बढ़ गई हैं। अब हम सबको इस बात के लिए कमर कसनी है कोरोनो को फिर सिर ना उठाने दें। इसलिए जरा भी शक हो तो टेस्ट कराना जरूरी है, आइसोलेशन जरूरी है। लेकिन ध्यान रहे सेल्फ मेडीकेशन बिल्कुल न करें। ये खतरे को कई गुना बढ़ाता है। और सबसे जरूरी बात, मास्क आपका कवच है और इसे हल्के में न लें। बेहतर होगा कि डबल मास्क पहनें जिससे आपकी नाक और मुंह पूरी तरह से ढके हों। आप बचे रहेंगे तभी देश भी बचा रहेगा। अगली सबसे जरूरी चीज वैक्सीनेशन है। हर भारतीय का टीकाकरण जरूरी है। इस समय वैक्सीन की कमी भले ही हो, लेकिन केंद्र सरकार ने कहा है कि अगले महीने से वैक्सीन की ज्यादा डोज उपलब्ध होंगी। अगले तीन महीनों में वैक्सीनेशन तेज होगा। जब तक कम से कम 70 पर्सेंट लोगों का वैक्सीनेशन नहीं हो जाएगा तब तक कोरोना से जंग जारी रहेगी।
The battle against Black Fungus, White Fungus and Coronavirus
The Centre on Thursday directed all state and UT governments to declare Mucormycosis, known as ‘Black Fungus’, a notifiable disease under the Epidemic Diseases Act, after reports came about 126 deaths due to this deadly disease till now across India. Nearly 5,500 cases have been officially reported till now from different states.
The key drug, Liposomal amphotericin B, used for treatment of Black Fungus, has now become scarce in Delhi and nine other states and the Centre has asked pharma companies to ramp up production on a war scale. In Delhi, there are more than 200 patients suffering from Black Fungus undergoing treatment in different hospitals. Most of them are aged above 50 years. Maharashtra is the worst-hit state with 90 deaths so far, followed by 14 deaths in Haryana. Meanwhile, reports came in of White Fungus surfacing in Patna, the capital of Bihar.
With the AIIMS issuing guidelines about detection and treatment of Black Fungus disease, I spoke to Dr Nikhil Tandon, Head of department of endocrinology, metabolism and diabetes, in my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Thursday night, about various issues relating to this deadly epidemic. He is considered an expert on fungal infection.
During the interview, Dr Tandon made some points clearly: One, neither black fungus nor white fungus are new diseases, there are fungii in our environment, but earlier there were very, very few such fungus-related cases, but due to widespread use of strong steroids during Covid-19 treatment, the black fungus surfaced and targeted mostly diabetics, who have lower immunity. This black fungus attacks the small blood vessels and capillaries.
Two, timely detection of the disease can save a patient. Dr Tandon advised people not to self-medicate if they have problems like cough, cold and fever. Secondly, he asked people to be on the look out for symptoms like red eyes, swollen face, blurred images and spots on face. Do not be scared, go to a specialist and get yourself checked through different tests. This disease cannot be treated at home. It can be treated only in hospitals. Dr Tandon also explained what precautions people should take after recovering from Covid-19. Both the Centre and state governments are now alert about Black Fungus disease, and efforts are being made to provide adequate stocks of the key drug to all states.
White Fungus disease has been detected in Patna Medical College hospital, where nearly 50 Black Fungus patients are undergoing treatment. On Thursday, four new cases of White Fungus were detected. Doctors in the Patna hospital became worried when they noticed this deadly white fungus disease, which attacks the lungs and the chest cavity first, and then spreads to other organs in the body.
Our Patna reporter Nitish Chandra reported that in all the white fungus patients, the initial symptoms were cough followed by fever. When the oxygen saturation level started dipping, HRCT scan was carried out, which showed patches on lungs of patients. The symptoms were similar to those of Covid-19 patients. The surprising part was that all Rapid Antigen and RT-PCR tests conducted on these patients showed negative, but the patches on lungs gave vital clues to doctors.
One of the patients was a doctor himself, who insisted on getting his sputum tests done through culture, and the white fungus was detected. He was given anti-fungal drugs, and he recovered within three days. Our reporter spoke to the doctor Dr Basant Kumar, who said, he had a clear inkling that he has caught a fungal infection. When the Covid-19 test showed negative, he insisted on fungal infection test, and the fungus was caught in time.
White fungus is basically one, which is also known as Candidosis, that grows in moist skin parts of a human body. It basically surfaces due to weakened immune system, but can also be a side-effect of chemotherapy or antibiotic treatment. Fungi are generally found in water, air and surface. When kids wear diapers, they get skin rashes, while some people get ulcers inside their mouth. These are due to presence of fungus. Such fungi are treated with normal medicines, but if the fungus reaches the lungs, it becomes deadly. Both black fungus and white fungus attack those who have a weakened immune system, or those who are suffering from diabetes, AIDS or cancer. Doctors say, use of ordinary tap water in place of distilled water by people using oxygen cylinders in home, can also cause fungus infection in the lungs through nose and throat while inhaling oxygen.
The Centre has said that a multi-disciplinary approach is required for treatment of all black fungus and white fungus patients. Eye surgeons, ENT specialists, general surgeon and neuro surgeons should be part of this team. Health Ministry and Indian Council of Medical Research has formulated guidelines to be followed by all government hospitals, medical colleges and private hospitals for screening, diagnosis and management of all black fungus and white fungus cases. New cases are being reported daily from Delhi, Gurugram, Mumbai, Ahmedabad, Lucknow, and other cities of Maharashtra, Haryana and Bihar.
Delhi government has started preparing separate black fungus wards in LNJP hospital, GTB Hospital and Rajiv Gandhi Hospital. More than 400 black fungus patients are presently admitted in Ahmedabad Civil Hospital. Doctors and patients in almost all states are facing problem of availability of Liposomal injections.
With fungal infections spreading in states, the Centre on Thursday issued an alert about Coronavirus transmission. The office of the Principal Scientific Adviser to the Government of India issued an advisory titled “Stop the Transmission, Crush the Pandemic”. It cautioned people about aerosols carrying the deadly virus can travel in air up to a distance of 10 metres.
The advisory said: “Always Remember: People who show no symptoms can also spread the virus”. Proper ventilation can prevent the spread of the virus. Running air conditioners while keeping windows and doors shut, traps infected air inside the room, and increases risk of transmission from an infected carrier to others.” The advisory also recommended use of gable fan systems and roof ventilators in offices, auditoriums, shopping malls and other closed public spaces. “Frequent cleaning and replacement of filters is highly recommended.”
On aerosol and droplet transmission, the advisory said, saliva and nasal discharges in the form of droplets and aerosols by an infected person in the primary mode of virus transmissions. “Droplets emitted by an infected person land on various surfaces (where they can survive for a long time). As such, frequent cleaning of high contact points such as door handles, light switches, tablets, chairs and the floor with disinfectants like bleach and phenyl is recommended.”
The advisory said, community level testing and isolation will have to be ramped up in semi-urban and rural areas. Rapid antigen tests are a must for outsiders entering a locality, and wearing of N95 mask by health workers is essential. The Centre has a target of achieving 45 lakh Covid tests daily. Orders have been issued to procure rapid antigen kits. This will help in early detection and treatment of people infected with Covid-19.
It is a fact that thousands of people faced hardships and ordeals till last week due to the deadly second wave of the pandemic. There were severe shortages of oxygen supply and oxygen cylinders during those one and half months. They had to run from pillar to post in search of hospital beds and ICU ventilators. They had to wait in long queues with the bodies of their dear ones for cremation outside crematoriums. The situation has now turned for the better. There is no shortage of hospital beds. In most of the hospitals, beds are now available. Oxygen is now available in plenty, thanks to the wartime-like efforts made by Indian Railways, Indian Air Force and Navy. Army and paramilitary forces set up Covid hospitals to treat the needy.
Now that the situation has somewhat eased, let us vow never to drop our guard and be eternally vigilant against this deadly virus. Get yourself tested at the first hint of any Covid symptom, and isolate yourself immediately. Please do not self-medicate. It enhances the risks by several times. Consult a doctor. Do not take your mask lightly. Better wear a double mask which should fully cover your nose and mouth. The nation can survive only if all of us survive. The next important part is: vaccination. Every Indian needs to be vaccinated. The stocks of vaccines may be low presently, but the Centre has promised to bring in more stocks by next month. The next three months will witness a flurry of vaccination doses. Our war against Corona shall continue till the time 70 percent of Indians are not vaccinated.
ब्लैक फंगस नाम की नई जानलेवा चुनौती
आज मैं आपसे एक ऐसी बीमारी के बारे में बात करना चाहता हूं जिसने लोगों को बहुत डरा दिया है। यह घातक बीमारी है ब्लैक फंगस, जिसे म्यूकोरमाइकोसिस के नाम से जाना जाता है। यह देश के कई राज्यों में तेजी से फैल रही है। इसके मरीजों की संख्या अब हजारों में पहुंच चुकी है। कई राज्यों और शहरों से इसके केस सामने आ रहे हैं। महाराष्ट्र में डेढ़ हजार से ज्यादा और गुजरात में एक हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, उत्तराखंड, पंजाब और दिल्ली में यह बीमारी तेजी से फैल रही है। केंद्र सरकार के पास भी अभी इसे लेकर सही आंकड़ा नहीं हैं कि पूरे देश में ब्लैक फंगस के कितने मामले सामने आए हैं। केंद्र सरकार को राज्यों से प्राप्त आंकड़ों का अभी आकलन करना है। राजस्थान और तेलंगाना की सरकारों ने ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर दिया है। ब्लैक फंगस के मामले उन मरीजों में पाए जा रहे हैं जो कोरोना से संक्रमित हुए थे और उन्हें इलाज के दौरान स्टेरॉयड दिया गया था। यह बीमारी उन लोगों को अपनी चपेट में ले रही है जो डायबिटीज और कैंसर के मरीज हैं।
बुधवार की रात एम्स (AIIMS) के राजेंद्र प्रसाद सेंटर फॉर ऑप्थेल्मिक स्टडीज ने एम्स कोविड वॉर्ड में इस बीमारी का जल्द पता लगाने और इसकी रोकथाम के लिए गाइडलाइंस जारी किए। मरीजों और उनकी देखभाल करने वालों को इस बीमारी के शुरुआती लक्षण या संकेतों को लेकर अलर्ट रहना चाहिए। एम्स की गाइलडाइंस के मुताबिक: हाई रिस्क कोरोना मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टरों को इन मरीजों की पहचान करने के लिए कहा गया है (1) अनियंत्रित डायबिटीज, डायबिटिज केटोएसिडोसिस वाले रोगी और डायबिटीज के वैसे रोगी जिन्हें स्टेरॉयड या टोसीलिज़ुमैब दिया गया (2) ऐसे रोगी जो इम्यून-सप्रेसैंट्स ले रहे हों कैंसर का इलाज करा रहे हैं, और पुरानी बीमारी से पीड़ित हों (3) हाई डोज वाले स्टेरॉयड या लंबे समय तक स्टेरॉयड या टोसीलिज़ुमैब का इस्तेमाल करनेवाले रोगी (4) कोरोना से पीड़ित मरीज और (5) ऐसे मरीज जो ऑक्सीजन मास्क या वेंटिलेटर के जरिये ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं।
मरीजों और उनकी देखभाल करने वालों को खतरे के इन संकेतों पर नजर रखनी चाहिए: (1) नाक से काला पदार्थ निकलना, पपड़ी जमना या खून बहना (2) नाक का बंद होना (3) सिरदर्द या आंखों में दर्द (4) आंखों के आसपास सूजन, लाली, अचानक कम दिखना, आंख बंद करने में कठिनाई, आंख खोलने में असमर्थता (5) चेहरे का सुन्न होना या झुनझुनी सनसनी, चबाने या मुंह खोलने में परेशानी।
मरीजों को भी ये सलाह दी गई है कि वे नियमित तौर पर खुद पर नजर रखें और अलर्ट रहें। (1) खुद को अच्छी रोशनी में चेक करें कि चेहरे के किसी हिस्से में सूजन तो नहीं है, खासतौर से नाक, गाल, आंखों के आसपास, कहीं कुछ काला जैसा तो नहीं दिख रहा, कुछ सख्त तो नहीं हो रहा और छूने पर दर्द तो नहीं। इसके साथ ही (2) मुंह या नाक के अंदर कालापन और सूजन का पता लगाने के लिए टॉर्च का इस्तेमाल करें। अगर किसी रोगी को इनमें से किसी भी लक्षण का पता चलता है तो उसे तुरंत नेत्र रोग विशेषज्ञ या ईएनटी विशेषज्ञ से संपर्क कर उनकी सलाह लेनी चाहिए। कभी भी बिना डॉक्टर की सलाह लिए स्टेरॉयड, एंटीबायोटिक या एंटी-फंगल दवाएं नहीं लेनी चाहिए।
दिल्ली में भी म्यूकोरमाइकोसिस या ब्लैक फंगस तेजी से फैल रहा है। बुधवार तक एम्स में 80 से 100 मरीज, सर गंगाराम अस्पताल में करीब 50 (16 भर्ती के लिए इंतजार कर रहे थे), मैक्स अस्पताल में 25 मरीज, लेडी हार्डिंग अस्पताल में 12, आरएमएल अस्पताल में 5, अपोलो अस्पताल में 10 मरीज और आकाश अस्पताल में 20 मरीज भर्ती थे। डॉक्टरों का कहना है कि यह रोग घातक है, और सर्जरी के बाद चेहरे की गंभीर विकृति पैदा कर सकता है। रोगी अपनी दृष्टि खो सकते हैं। हरियाणा के सभी मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में म्यूकोरमाइकोसिस के लिए अलग वॉर्ड बनाए गए हैं।
जो कोरोना की बीमारी को हराकर अपने घर लौटे थे, वे अब फंगल इंफेक्शन के शिकार हो गए है। आंखों की दृष्टि कमजोर हो गई, धुंधला दिखने लगा। किसी की नाक से खून निकलने लगा या फिर किसी को सीने में दर्द और बुखार की शिकायत हुई। ये सारे लक्षण ब्लैक फंगस के हैं। दिल्ली के मूलचंद अस्पताल में तो ब्लैक फंगस की वजह से एक मरीज की मौत भी हो गई। एम्स में न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट की हेड डॉ. पद्मा श्रीवास्तव का कहना है कि इस बीमारी से निपटने के लिए एम्स ट्रामा सेंटर और एम्स झज्जर में अलग से वॉर्ड भी बनाए गए हैं। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दिनों में एम्स में हर दिन 20 से ज्यादा ब्लैक फंगस के मामले सामने आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि चिंता की बात ये है कि अब ऐसे नौजवानों में भी ब्लैक फंगस के लक्षण दिखने लगे हैं जो डायबिटिक नहीं है, जिनकी डायबिटीज की कोई हिस्ट्री नहीं है। जिन्हें ऑक्सीजन नहीं लगा, जो होम आइसोलेशन में थे, उन्हें भी ब्लैक फंगस अपनी चपेट में ले रहा है।
देश में ब्लैक फंगस से प्रभावित राज्यों की लिस्ट में इस वक्त सबसे ऊपर महाराष्ट्र है। यहां ब्लैक फंगस के सबसे ज्यादा मरीज़ मिले है। महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि राज्य में अब तक म्यूकरोमाइकोसिस के 1500 मरीज मिले हैं। इऩमें से 500 लोग ठीक भी हो चुके हैं, लेकिन 850 से ज्यादा ऐसे मरीज हैं जिनका इलाज अब भी चल रहा है। इस संक्रमण से अबतक 90 लोगों की मौत हुई है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि बीमारी के इलाज के लिए जिस दवा एम्फोटेरेसिन बी की जरूरत होती है, उसकी अब कमी होने लगी है। ये दवा देश में पहले से बनाई जाती है लेकिन पहले इतने मामले सामने नहीं आए थे इसलिए डिमांड ज्यादा नहीं थी। महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि उन्हें रोजाना कम से कम 6000 वायल्स की जरूरत है और इसका प्रोडक्शन करनेवाली कंपनी को 1.9 लाख इंजेक्शन का ऑर्डर दे दिया गया है। वहीं दिल्ली सरकार ने 1 लाख इंजेक्शन वायल्स का ऑर्डर दिया है।
राजस्थान सरकार ने तो ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर दिया गया है। राज्य में बुधवार तक ब्लैक फंगस के 750 से ज्यादा मरीज सामने आ चुके है। अकेले जयपुर में 100 से ज्यादा केस मिले हैं। जोधपुर में ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या 50 से ज्यादा है। हालात को देखते हुए राजस्थान सरकार ने जयपुर के सवाई मानसिह अस्पताल में ब्लैक फंगस की विशेष ओपीडी शुरू की है। इन मरीजों के लिए अलग वॉर्ड शुरू किया गया है। ब्लैक फंगस को सरकार ने चिरंजीवी बीमा योजना में शामिल कर लिया है और इसके तहत अब राजस्थान के लोगों को ब्लैक फंगस के इलाज के लिए 5 लाख तक का कवर मिल सकेगा। राजस्थान सरकार ने इस बीमारी के इलाज के लिए केंद्र सरकार से एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन की 50 हजार डोज की मांग की है।
ब्लैक फंगस की दवा के रूप में जो लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन दिया जाता है उसका प्रोडक्शन देश में सिर्फ नौ कंपनियां करती हैं। इसकी डोज मरीज के वजन के हिसाब से तय होती है। आमतौर पर एक मरीज को साठ से अस्सी इंजेक्शन और कई बार को सौ से ज्यादा इन्जेक्शन की जरूरत पड़ती है। अब चूंकि अचानक मरीजों की संख्या हजारों में पहुंच गई है इसलिए दवा की किल्लत स्वाभाविक है। सिप्ला, सनफार्मा, भारत सीरम, रैनबैक्सी, लाइफ केयर, इंटास और क्रिटिकल केयर जैसी कंपनियां इस इंजेक्शन को बनाती हैं लेकिन उन्हें भी इसका प्रोडक्शन बढ़ाने में कम से कम दस से पंद्रह दिन का वक्त लगेगा, क्योंकि इस दवा को बनाने में जिस साल्ट की जरूरत होती है उसको इंपोर्ट करने में वक्त लगेगा।
ब्लैक फंगस की दवा के रूप में जो लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन दिया जाता है उसका प्रोडक्शन देश में सिर्फ नौ कंपनियां करती हैं। इसकी डोज मरीज के वजन के हिसाब से तय होती है। आमतौर पर एक मरीज को साठ से अस्सी इंजेक्शन और कई बार को सौ से ज्यादा इन्जेक्शन की जरूरत पड़ती है। अब चूंकि अचानक मरीजों की संख्या हजारों में पहुंच गई है इसलिए दवा की किल्लत स्वाभाविक है। सिप्ला, सनफार्मा, भारत सीरम, रैनबैक्सी, लाइफ केयर, इंटास और क्रिटिकल केयर जैसी कंपनियां इस इंजेक्शन को बनाती हैं लेकिन उन्हें भी इसका प्रोडक्शन बढ़ाने में कम से कम दस से पंद्रह दिन का वक्त लगेगा, क्योंकि इस दवा को बनाने में जिस साल्ट की जरूरत होती है उसको इंपोर्ट करने में वक्त लगेगा।
कुल मिलाकर कहें तो ब्लैक फंगस से डरने की नहीं बल्कि लड़ने की जरूरत है। हर शख्स को इससे सावधान रहने की जरूरत है। साथ ही ब्लैक फंगस के बारे में कुछ बातें जान लेना जरूरी है। एक तो डॉक्टर्स ये बताते हैं कि कोरोना के सीरियस पेशेंट्स को इलाज के दौरान जो स्टेरॉयड दिए जाते हैं, उनसे शुगर लेवल बढ़ता है और अगर कोई डायबिटिक है तो उसे ब्लैक फंगस का खतरा सबसे ज्यादा होता है। मैंने पहले ही इस ब्लॉग की शुरुआत में एम्स की गाइडलाइंस के बारे में बता दिया है। इसलिए लोगों को एकदम सावधान रहना चाहिए। अगर आप उन लक्षणों को नोटिस करते हैं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। डॉक्टर्स भी इसे लेकर हैरान हैं। वो ये पता लगाने में लगे हैं कि कहीं ये कोरोना वायरस का नया रूप या कोई नया म्यूटेंट तो नहीं है।
मैंने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अधिकारियों से बात की,उन्होंने बताया कि DCGI (ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया) ने कई इंडियन फार्मा कंपनियों को एम्फोटेरिसिन इंजेक्शन बनाने की इजाजत दी थी और ये कंपनियां दवा के लिए जरूरी साल्ट इम्पोर्ट कर पिछले साल तक दवा का निर्माण कर रही थीं लेकिन फिर इस अनुमति को वापस ले लिया गया। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने सरकार से कहा है कि ब्लैक फंगस के इलाज के लिए इस इंजेक्शन को इमरजेंसी शॉर्ट टर्म उत्पादन की अनुमति दे देनी चाहिए ताकि इसे अपने देश में प्रोड्यूस किया जा सके और ब्लैक फंगस से लड़ा जा सके।
A new deadly challenge called Black Fungus
The new deadly Black Fungus disease, known as Mucormycosis, is spreading fast in several states of India as the number of cases now runs into several thousands. Reports of Black Fungus disease have started coming from several cities and states.
More than 1,500 cases from Maharashtra and more than a thousand cases from Gujarat have been reported. The disease is spreading fast in Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, Haryana, Rajasthan, Bihar, Uttarakhand, Punjab and Delhi. The Centre is yet to tabulate statistics about black fungus from all states.
Rajasthan and Telangana governments have declared Black Fungus as a notified disease under Epidemic Act. Black Fungus cases are seen among patients who were infected with Covid and were given steroids during treatment. This disease is striking those who are patients of diabetes and cancer.
On Wednesday night, AIIMS Rajendra Prasad Centre for Opthalmic Studies released guidelines for early detection and prevention of this disease in the AIIMS Covid Ward. Patients and their caretakers must be on the lookout for particular signs to help early detection.
According to the AIIMS guidelines: Physicians treating “high risk” Covid patients have been asked to identify (1) Patients with uncontrolled diabetes, diabetic ketoacidosis, and diabetics on steroids or tocilizumab, (2) Patients on immune-suppressants or anti-cancer treatment, and patients with chronic debilitating illness (3) patients on high dose steroids and or long duration of steroids or tocilizumab (4) severe Covid cases and (5) Patients on oxygen support – nasal sprongs, by mask, or on ventilator.
Patients and their caretakers must be on the look out for these danger signs: (1) abnormal black discharge or crust, or bleeding from the nose (2) nasal blockage (3) headache or eye pain (4) swelling around the eyes, double vision, redness of eye loss of vision, difficulty in closing eye, inability to open the eye, prominence of eye (5) facial numbness or tingling sensation, difficulty in chewing or opening the mouth.
Patients have also been advised to conduct regular elf-examinations. These include (1) a full face examination in daylight for facial swelling – especially of the nose, cheeks, around the eyes – or black discoloration, hardening, and pain on touch; as well as (2) oral and nasal examinations using a torch to check for blackening and swelling inside the mouth or nose. If a patient detects any of these signs, he or she must consult an ophthalmologist or ENT specialist immediately and not self-medicate with steroids, antibiotic or anti-fungal drugs.
Mucormycosis is spreading fast in Delhi too. Till Wednesday, there were 80 to 100 patients admitted in AIIMS, nearly 50 in Sir Gangaram hospital (with 16 others waiting for admission), 25 in Max hospital, 12 in Lady Hardinge hospital, five in RML Hospital, 10 in Apollo hospital and nearly 20 patients in Akash Hospital. Doctors say, this disease is fatal, and can cause severe disfiguration of the face after surgery. The patients may lose their vision. Separate wards for mucormycosis have been set up in all medical college hospitals of Haryana.
Black fungus patients are mainly those who had fully recovered from Covid-19 and had returned home, but due to fungal infection they soon had a blurry vision, had fever, cough and bleeding from nose. One black fungus patient has died in Delhi’s Moolchand Hospital. According to Dr Padma Shrivastav, Head of Neurology in AIIMS, separate black fungus wards have been created at AIIMS Trauma Centre and at AIIMS Jhajjar. She said, almost 20 black fungus cases are being reported daily in AIIMS. She said, the most worrying part now is that the black fungus has started targeting young people, who had no diabetic history, never came into contact with any wet surface, never took oxygen, and were in home isolation.
Maharashtra now leads the list of black fungus cases in India. Till now, more than 1,500 black fungus cases have been reported across Maharashtra, according to the state health minister. Nearly 500 of them have recovered, and another 850 patients are presently undergoing treatment. Ninety black fungus patients have died till now. The state health minister said, there is severe shortage of Amphotericin-B injections, used for treating black fungus patients. Earlier, when the disease was not rampant, there was hardly any demand, but now, the state needs 6,000 vials on daily basis. Maharashtra government has ordered 1.9 lakh vials while Delhi government has placed order for one lakh vials of this key medicine.
Rajasthan, which has declared black fungus as an epidemic, has reported more than 750 patients till Wednesday. Out of these, more than 100 patients are in Jaipur alone, while there are 50 patients in Jodhpur. A special OPD has been set up at Sawai Man Singh hospital in Jaipur. All black fungus patients have been included in Chiranjeevi scheme, under which they will get medical cover up to Rs 5 lakh. The state government has sought 50,000 vials of Amphotericin-B from the Centre, due to severe shortage.
Only nine pharma companies in India produce Liposomal amphotericin-B injections. The doses are decided based on the weight of the patient. On average, a patient may require 60 to 80 vials, or even more of this drug. Since the number of patients are now in thousands, there is acute shortage of this drug. Pharma companies like Cipla, Sun Pharma, Bharat Serum, Ranbaxy, Lifecare, Intas, and Critical Care may take 10 to 15 days to ramp up production of this injection, because the salt needed for production needs to be imported.
In Gujarat, more than 1,100 black fungus cases have been reported from Ahmedabad, Surat, Rajkot and Vadodara. Many of the patients have lost their vision. Doctors say, one patient needs 120 vials for a full treatment. Though the state government has sent 5,000 vials to each city, it appears to be inadequate. In Madhya Pradesh, 421 black fungus patients have been detected till Tuesday, but the number jumped to 570 by Wednesday. Most of the cases have been reported from Bhopal, Indore and Gwalior.
To sum up: We need not fear, but fight the Black Fungus. Everybody needs to be careful. According to doctors, steroids given to critical Covid patients during treatment cause hike in sugar level, and if one is a diabetic, the risks of catching the fungus are heavy. I have already given the guidelines and precautions prepared by AIIMS in the beginning of this blog. One should go through them carefully, and be on guard. If you notice those symptoms, get in touch with a doctor immediately. Doctors are still perplexed about whether it could be another variant of the Coronavirus.
I spoke to Indian Medical Association officials, who said that Indian pharma companies were manufacturing this drug by importing salts till last year, but the DCGI (Drugs Controller General of India) later withdrew the permission. IMA officials said, the Centre should give permission for emergency short term production of this drug. Indian pharma companies need to boost production of this key drug on an immediate basis so that we can win the battle against mycormucosis.
कोरोना वायरस के ‘सिंगापुर वेरिएंट’ नाम की कोई चीज ही नहीं है
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार को उस समय एक डराने वाली बात कह दी जब उन्होंने कहा कि सिंगापुर में कोविड -19 वायरस का एक नया वेरिएंट पाया गया है और इसके चलते भारत में महामारी की तीसरी लहर आ सकती है। केजरीवाल ने कहा, यह नया वेरिएंट बच्चों के लिए बेहद खतरनाक है और उन्होंने केंद्र से सिंगापुर के साथ हवाई सेवाओं को तुरंत बंद करने की मांग की। केजरीवाल के बयानों से नाराज सिंगापुर सरकार ने बुधवार को भारतीय उच्चायुक्त को तलब कर अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया।
सिंगापुर के विदेश मंत्री वी. बालाकृष्णन ने ट्वीट किया, ‘नेताओं को तथ्यों पर टिके रहना चाहिए। वायरस का कोई ‘सिंगापुर वेरिएंट’ नहीं है।’ भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ट्वीट किया, ‘कुछ लोगों के गैर-जिम्मेदाराना बयानों से हमारी दीर्घकालिक साझेदारी को नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए मैं स्पष्ट कर देता हूं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री का बयान पूरे भारत का बयान नहीं है।’ नागर विमानन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने ट्वीट किया, ‘केजरीवाल जी, सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानें मार्च 2020 से ही बंद हैं। सिंगापुर के साथ हमारा ‘एयर बबल’ तक नहीं है। सिर्फ वंदे भारत मिशन के तहत दोनों देशों के बीच कुछ उड़ानें जारी हैं ताकि वहां फंसे भारतीयों को वापस लाया जा सके। आखिरकार, ये हमारे अपने ही लोग हैं।’
केजरीवाल के बयानों के चलते महामारी की तीसरी लहर को लेकर अटकलें लगनी शुरू हो गईं। कोरोना की पहली लहर के दौरान बुजुर्गों की जान ज्यादा गई थी, मौजूदा दूसरी लहर में नौजवान पुरुष एवं महिलाओं की भी मौत हो रही है, ऐसे में अगर तीसरी लहर बच्चों को निशाना बनाएगी तो क्या होगा? एक बार मुझे भी लगा कि खतरा तो वाकई में बड़ा है, लेकिन तथ्यों को देखने के बाद ऐसा लगता है कि केजरीवाल की आशंकाएं निराधार हैं।
सिंगापुर में आखिर हुआ क्या था? रविवार को सिंगापुर में कोरोना वायरस से संक्रमण के 38 नए मामले मिले थे, जो कि पिछले 8 महीनों के दौरान एक दिन में संक्रमण के मामलों की सबसे बड़ी संख्या है। संक्रमित पाए गए लोगों में कुछ बच्चे भी शामिल थे जो एक ट्यूशन सेंटर के क्लस्टर से जुड़े थे। सोमवार को सिंगापुर में 21 नए मामले सामने आए। इसके तुरंत बाद एहतियाती तौर पर सभी प्राइमरी एवं सेकंडरी स्कूलों और जूनियर कॉलेजों को 28 मई तक के लिए बंद कर दिया गया। सिंगापुर के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, ‘पहली बार भारत में मिला B.1.617 स्ट्रेन बच्चों को ज्यादा प्रभावित करता है।’ उन्होंने बताया कि संक्रमण की चपेट में आए बच्चों में से कोई भी गंभीर रूप से बीमार नहीं है।
B.1.617 स्ट्रेन पिछले साल अक्टूबर में सबसे पहले भारत में मिला था, और इसलिए यह कहना गलत होगा कि अब उस स्ट्रेन का सिंगापुर वेरिएंट सामने आया है। सिंगापुर की आबादी 57 लाख है और वहां अब तक कोरोना के 61,000 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। यहां इस बीमारी से अब तक सिर्फ 31 लोगों की मौत हुई है। अब चूंकि वायरस ने सिंगापुर में फिर से अपना सिर उठा लिया है, इसलिए स्कूल, जिम, शॉपिंग मॉल और रेस्तरां बंद कर दिए गए हैं। सिंगापुर की सरकार अब जल्दी से जल्दी 16 साल तक के बच्चों के वैक्सीनेशन की तैयारी कर रही है, लेकिन इस वायरस को ‘सिंगापुर वेरिएंट’ कहना गलत होगा। सिंगापुर में अब तक कोरोना वायरस का कोई नया वेरिएंट नहीं मिला है।
एक्सपर्ट्स की बातें सुनने के बाद ऐसा लग रहा है कि सिंगापुर से भारत आने वाले लोगों से बच्चों को वायरस का कोई खतरा नहीं है। बच्चों के माता-पिता को जल्द से जल्द वैक्सीन लगवा लेनी चाहिए ताकि वे अपनी संतानों को सुरक्षा दे सकें। मुझे उम्मीद है कि निकट भविष्य में बच्चों को भी भारत में वैक्सीन लगाई जाएगी।
इस बीच भारत में महामारी के चलते 1,000 से भी ज्यादा डॉक्टरों की जान जा चुकी है। यह हम सभी के लिए गंभीर चिंता की बात होनी चाहिए। पहली लहर के दौरान कोरोना वायरस के संक्रमण से लगभग 740 डॉक्टरों की जान गई थी, और मौजूदा दूसरी लहर के दौरान, पिछले एक महीने में 270 डॉक्टरों की मौत हुई है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मुताबिक, कोरोना के चलते लगभग रोज ही 20 से 25 डॉक्टर अपनी जान गंवा रहे हैं।
सोमवार की रात मुझे जाने-माने कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर के. के. अग्रवाल की मौत की दुखद खबर मिली, जिन्होंने दिल्ली के एम्स अस्पताल में कोरोना से एक लंबी लड़ाई लड़ी। डॉक्टर अग्रवाल को मैं लंबे वक्त से जानता था। वह एक अच्छे और संवेदनशील इंसान थे, और उन्होंने अपना अधिकांश समय सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया था। पिछले एक साल से वह सोशल मीडिया पर लोगों को कोरोना वायरस से होने वाले खतरों के बारे में जागरूक कर रहे थे। पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित डॉक्टर के. के. अग्रवाल ने कोविड टीकाकरण के बारे में भी जागरूकता फैलाने की कोशिश की। उनका जाना चिकित्सा जगत के लिए एक बड़ा झटका है। उन्होंने हृदय संबंधी समस्याओं का सामना कर रहे लोगों के भले के लिए हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया की स्थापना की थी।
इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना काल में हमारे डॉक्टर्स ने देवदूतों की तरह काम किया है। मैं ऐसे कितने सारे लोगों को जानता हूं जो हॉस्पिटल में भर्ती रहे, और जब वापस आए तो मुझे बताया कि डॉक्टर्स कैसे दिन-रात मरीजों को ठीक करने में लगे रहते हैं, कितनी मेहनत करते हैं। ऐसे ही फर्ज़ निभाते हुए जिन डॉक्टरों ने अपनी जान दी, मैं तो उन्हें शहीद मानता हूं और अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देता हूं।
एक सीनियर डॉक्टर ने मुझे बताया कि पिछली बार हम अपने ज्यादातर मरीजों को बचाकर घर भेज रहे थे, लेकिन मौजूदा दूसरी लहर के दौरान लोगों की जान बचाना मुश्किल हो रहा है। एक डॉक्टर ने विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि कोरोना का वायरस जब नौजवानों को पकड़ता है तो 6-7 दिन तक उन्हें पता ही नहीं चलता क्योंकि उनकी इम्युनिटी अच्छी होती है। कई बार नौजवान लक्षण होने के बावजूद ये सोचकर हॉस्पिटल नहीं जाते कि 2-4 दिन में ठीक हो जाएंगे। जब तक वे हॉस्पिटल पहुंचते हैं तब तक देर हो चुकी होती है। वायरस उनके फेफड़ों को प्लास्टिक की तरह जकड़ चुका होता है और ऐसे में उन्हें ठीक कर पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। इसलिए मैं नौजवानों से कहूंगा कि मामूली से मामूली लक्षण दिखते ही डॉक्टर की सलाह लें और इस वायरस को टालने की कोशिश ना करें। वे डॉक्टर के पास जितनी जल्दी पहुंचेंगे, उनके ठीक होने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी।
Covid pandemic: There is nothing called ‘Singapore variant’
Delhi chief minister Arvind Kejriwal created a scare on Tuesday when he said that a new variant of Covid-19 virus has been found in Singapore and that it could result in a third wave of pandemic in India. Kejriwal said, the new variant was extremely dangerous for children and asked the Centre to halt air services with Singapore immediately. Kejriwal’s comments raised the heckles of Singapore government on Wednesday, which called the Indian High Commissioner to register its strong protest.
The Singapore Foreign Minister V. Balakrishnan tweeted: “Politicians should stick to facts! There is no “Singapore variant”. India’s External Affairs Minister Dr. S. Jaishankar tweeted: “…irresponsible statements from those who should know better can damage long-standing partnerships. So let me clarify – Delhi CM does not speak for India.” Civil Aviation Minister Hardeep Singh Puri tweeted: “Kejriwal ji, international flights have been closed since March 2020. We do not even have an ‘air bubble’ arrangement with Singapore. There are only a few flights – Vande Bharat Missions – to bring back Indians stranded there. After all, these are our own people.”
Kejriwal’s remarks triggered speculations about the third wave of pandemic. During the first wave, mostly elderly people lost their lives, during the current second wave even well-built, young men and women died, and what if the third wave targeted children? For some time, even I was worried over this line of thinking, but after going through facts, it appears that Kejriwal’s fears are unfounded.
What exactly happened in Singapore? On Sunday, authorities in Singapore confirmed 38 locally-transmitted Covid cases, the highest daily count in eight months. Some of the cases involved children linked to a cluster at a tuition centre. On Monday, 21 locally transmitted fresh cases were reported. Soon afterwards, all primary and secondary schools and junior colleges were closed down till May 28 as a precautionary measure. The Singapore Health Minister said, “the B.1.617 strain, first detected in India, appears to affect children more”. He pointed out none of the affected children was seriously ill.
The B.1.617 strain was first traced in India in October last year, and therefore, it would be incorrect to say that a Singapore variant of that strain has emerged. Singapore has a population of 57 lakhs and till now more than 61,000 Covid cases have been reported. Only 31 people died of Covid-19. Now that the virus has again reared its head, schools, gyms, shopping malls and restaurants have been closed down. Children below the age of 16 will now be vaccinated, but it would be incorrect to describe the virus as a ‘Singapore variant’. No new variant of Coronavirus has been found in Singapore.
After listening to experts, I can safely say that there is no risk to our children from people coming to India from Singapore. Moreover, parents must get themselves vaccinated at the earliest so that they can provide protection to their children. I am hopeful about children, too, getting vaccinated in India in the near future.
Meanwhile, in India, the pandemic has taken a toll of more than 1,000 doctors. This should be a matter of grave concern for all of us. During the first wave, nearly 740 doctors died of Covid-19, and during the current second wave, 270 doctors have lost their lives in the last one month. According to Indian Medical Association, 20 to 25 doctors are dying of Covid almost daily.
On Monday night, I got the sad news of the passing away of eminent cardiologist Dr K K Agrawal, who fought a long battle against Covid in AIIMS, Delhi. A nice and sensitive person, he devoted most of his time for social causes, and during the last one year, he had been educating people on social media about the dangers from Coronavirus. A Padma Shri awardee, Dr K K Agrawal also strived for spreading awareness about Covid vaccination. His passing away is a big blow to the medical fraternity. He had set up the Heart Care Foundation of India for the benefit of people having cardiac problems.
Doctors who are working tirelessly in hospitals tending to Covid-19 patients are the real ‘angels’. I have heard from many people, who recovered in hospitals and returned to narrate stories about how doctors were toiling day and night. If doctors lose their lives, I would consider them as ‘martyrs’, and offer my humble tributes.
A senior doctor told me, how during the first wave, they used to make patients recover and send them back to their homes, but during the current second wave, it has become a tough task to save lives. One doctor explained, when the virus enters a young person’s body, the infected person does not come to know about it because of strong physique and immunity. Sometimes, young people do not go for treatment, expecting to recover on their own within two or four days. By the time, they reach hospital in a critical stage, the deadly virus cells stick to their lungs like plastic, and it becomes a very difficult job to make them recover. I would therefore advise all young persons to consult a doctor the moment they notice the slightest symptoms. The sooner they consult a doctor, the better the chances for recovery.
खुलासा: पीएम केयर्स फंड से भेजे गए वेंटिलेटर्स अस्पतालों में क्यों फांक रहे हैं धूल?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को देशभर के अस्पतालों में पड़े 50 हजार से ज्यादा वेंटिलेटर के इस्तेमाल और उनकी उपयोगिता पर लेकर संदेह जताया। उन्होंने पहले हिंदी और फिर अंग्रेजी में ट्वीट किया, ‘पीएम केयर्स के वेंटिलेटर और स्वयं पीएम में कई समानताएं हैं- दोनों का हद से ज़्यादा झूठा प्रचार,- दोनों ही अपना काम करने में फ़ेल, – ज़रूरत के समय, दोनों को ढूंढना मुश्किल।’ जिस समय देश के अस्पतालों में कोरोना के हजारों मरीज वेंटिलेटर पर जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं, ऐसे समय में राहुल की इस टिप्पणी को लेकर सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं का तूफान मच गया।
स्वाभाविक रूप से हर किसी के मन में यह सवाल उठा कि क्या ये वेंटिलेटर काम करते हैं? हो सकता है कि आपको किसी नेता की सोशल मीडिया टाइमलाइन से इसके सही जवाब नहीं मिले हों, लेकिन इंडिया टीवी ने केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न राज्य सरकारों को पिछले साल सप्लाई किए गए 50,000 वेंटिलेटर्स को लेकर एक तहकीकात की।
पिछले साल जब महामारी फैली थी तब देश में केवल 16 हजार वेंटिलेटर थे। लेकिन बाद में युद्धस्तर पर इनका निर्माण हुआ और इनकी खरीद के बाद राज्य सरकारों को 50 हजार वेंटिलेटर दिए गए थे। पिछले हफ्ते अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में मैंने दिखाया था कि कैसे केंद्र द्वारा भेजे गए वेंटिलेटर्स का इस्तेमाल नहीं हुआ और ये पूरी तरह पैक ही रह गए थे। राजस्थान, पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के जिला अस्पतालों के स्टोररूम में ये वेंटिलेटर्स धूल फांक रहे थे। कुछ अस्पतालों के अधिकारियों ने ट्रेंड टेक्नीशियंस और एनेस्थेटिक स्टाफ की कमी का हवाला दिया जबकि कुछ राज्य सरकारों की शिकायत थी कि अधिकांश वेंटिलेटर्स की क्वॉलिटी खराब थी और वे किसी काम के नहीं थे।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स ने इस बात की पूरी पड़ताल की कि ये वेंटिलेटर किन कंपनियों से खरीदे गए, इनमें क्या खामियां थीं और ये कंपनियां वेंटिलेटर्स के उचित रखरखाव के लिए सर्विस क्यों नहीं दे रही थीं। मुझे लगता है कि इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स द्वारा की गई पड़ताल से सामने आई सच्चाई राहुल गांधी की आंखें खोलने के लिए पर्याप्त है।
सबसे पहले पंजाब की बात करते हैं जहां कांग्रेस पार्टी सत्ता में है। मोदी सरकार ने पीएम केयर्स फंड से 119 वेंटिलेटर गुरु नानक देव अस्पताल, अमृतसर भेजे थे। यहां के स्वास्थ्य अधिकारी ने शिकायत की कि 47 वेंटिलेटर काम नहीं कर रहे हैं, लेकिन उनका ये बयान गुमराह करनेवाला था। वेंटिलेटर बनाने वाली AgVu कंपनी के एक इंजीनियर ने कैमरे पर इंडिया टीवी के रिपोर्टर को दिखाया कि कैसे कुछ वेंटिलेटर से टयूबिंग गायब थे और कितने ऐसे वेंटिलेटर धूल फांक रहे थे जो कि इस्तेमाल के लिए बिल्कुल फिट हैं, लेकिन इनका उपयोग नहीं किया जा रहा है। वेंटिलेटर को उचित आईसीयू के वातावरण की जरूरत होती है जहां चौबीसों घंटे बिजली हो और नियमित रूप से कम प्रेशर वाली ऑक्सीजन सप्लाई हो। इन सबके अलावा वेंटिलेटर को ऑपरेट करने के लिए ट्रेन्ड स्टाफ को होना सबसे जरूरी है।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर फरीदकोट के गुरु गोविंद सिंह मेडिकल कॉलेज अस्पताल गए, जहां उन्हें पीएम केयर्स फंड से भेजे गए 62 वेंटिलेटर स्टोर रूम के अंदर कबाड़ की तरह पड़े मिले। अस्पताल प्रशासन का कहना था कि ये वेंटिलेटर काम नहीं कर रहे हैं। इन वेंटिलेटर का निर्माण पीएसयू कंपनी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) द्वारा किया गया था। शिकायत मिलने पर इसके इंजीनियरों ने अस्पताल का दौरा किया। इन इंजीनियरों ने जब जांच की तो पता चला कि इस्तेमाल किए जा रहे अधिकांश वेंटिलेटर के पार्ट्स बदले ही नहीं गए थे, जबकि कुछ अन्य वेंटिलेटर में ऑक्सीजन सेंसर या फ्लो सेंसर या बैक्टीरिया सेंसर काम नहीं कर रहा था। दरअसल इन पार्ट्स को नियमित रूप से बदलने की जरूरत होती है। सेंसर बदलते ही 5 वेंटिलेटर काम करने लगे। बीईएल ने केंद्र को लिखी चिट्ठी में उन परिस्थितियों के बारे में बताया है जिसके चलते इन वेंटिलेटर का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा था।
अस्पताल को न केवल AgVa हेल्थकेयर के वेंटिलेटर की आपूर्ति की गई, बल्कि ज्योति सीएनसी ऑटोमेशन द्वारा निर्मित 50 वेंटिलेटर भी मिले। उनके वेंटिलेटर भी काम नहीं कर रहे थे। हमारे रिपोर्टर ने ज्योति सीएनसी के अधिकारियों से बात की। उन्होंने अपने इंजीनियरों को अस्पताल भेजा। इंजीनियर्स ने इसकी जांच की और बताया कि ऑक्सीजन की सप्लाई को वेंटिलेटर से जोड़ने के लिए कोई ऑक्सीजन कनेक्टर नहीं था। ऑक्सीजन कनेक्टर ही गायब थे। अब ऐसे में वेंटिलेटर के काम करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
पीएम केयर्स फंड से 809 वेंटिलेटर पंजाब भेजे गए, जिनमें से केवल 532 को इंस्टॉल किया गया और 277 वेंटिलेटर को पैकिंग से निकाला तक नहीं गया। पिछले साल, आंध्र प्रदेश में पांच हजार वेंटिलेटर भेजे गए, महाराष्ट्र और यूपी को 4,000 से ज्यादा जबकि राजस्थान में 1,900 वेंटिलेटर भेजे गए। कर्नाटक को 2,000 से अधिक और 3,400 वेंटिलेटर गुजरात भेजे गए। इनमें से दो राज्यों राजस्थान और पंजाब, जहां कांग्रस का शासन है, को छोड़कर बाकी किसी राज्य ने वेंटिलेटर की गुणवत्ता पर सवाल नहीं उठाया। राजस्थान और पंजाब को वेंटिलेटर की सप्लाई करने वाली कंपनियां वही थीं जिन्होंने अन्य राज्यों को वेंटलेटर्स की सप्लाई की थी।
इन वेंटिलेटर्स को सप्लाई करने वाली कंपनियों के जवाब पढ़ने के बाद कुछ तथ्य साफ तौर पर सामने आते हैं। पहला, कुछ अस्पतालों में वेंटिलेटर्स को खोला भी नहीं गया, वे अनपैक्ड ही रह गए। यहां तक कि जब कोरोना की दूसरी लहर तबाही मचा रही थी उस समय भी ये वेंटिलेटर्स अस्पताल के स्टोर रूम में धूल फांक रहे थे। कुछ अस्पताल वेंटिलेटर ऑपरेट करने के लिए ऑक्सीजन प्वाइंट सेट करने में विफल रहे। कुछ अस्पतालों में वेंटिलेटर को ऑपरेट करने के लिए कोई ट्रेंड टेक्नीशियन या एनेस्थेटिक स्टाफ नहीं था। राजस्थान के एक सरकारी अस्पताल ने तो अपने वेंटिलेटर को कोरोना मरीजों से पैसे वसूलने के लिए एक प्राइवेट अस्पताल को किराए पर दे दिया था। कुछ अस्पतालों में सर्विसिंग और मेंटेनेंस की कमी थी तो कुछ अस्पतालों में कुछ छोटे स्पेयर पार्ट्स या सेंसर को बदलने की जरूरत थी। इन सबको अस्पताल प्रशासन अपने स्तर पर ठीक करा सकता था।
ऊपर बताई गई कमियों के कारण कोई यह नहीं कह सकता कि पीएम केयर्स फंड से भेजे गए सभी वेंटिलेटर खराब थे और इस्तेमाल के लायक नहीं थे। राज्यों को दिए गए 50 हजार वेंटिलेटर्स में से 49 हजार से ज्यादा वेंटिलेटर पहले से ही काम कर रहे हैं, और इनसे लोगों की जान बच रही है। राहुल गांधी को इस तरह की टिप्पणी करने से बचना चाहिए था कि सभी वेंटिलेटर ‘अपना काम करने में फेल’। इस तरह की टिप्पणी करके वह उन परिवारों के मन में शंका के बीज बो रहे हैं, जिनके परिवार के लोग, रिश्तेदार या अन्य करीबी लोग वेंटिलेटर पर हैं। 85 प्रतिशत वेंटिलेटर जो काम कर रहे हैं, उन्हें कोरोना की दूसरी लहर से बहुत पहले पहले ही खरीद लिया गया था और राज्यों को भेज दिया गया था। इस तरह के एक्शन की तारीफ की जानी चाहिए और जहां कहीं भी कमियां हैं, उन्हें उचित ऑडिट के जरिए दूर करने की जरूरत है।
यही वजह है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने केंद्र द्वारा विभिन्न राज्यों को दिए गए वेंटिलेटर के इन्स्टॉलेशन और ऑपरेशन का ‘तत्काल ऑडिट’ करने का आदेश दिया है। पीएम केयर्स फंड ने पिछले साल राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सरकार द्वारा संचालित कोविड अस्पतालों में 50 हजार वेंटिलेटर्स की आपूर्ति के लिए 2,000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। इन वेंटिलेटर्स का इस्तेमाल नहीं कर पाने के लिए जवाबदेही तय की जानी चाहिए। पीएम ने जरूरत पड़ने पर हेल्थ वर्कर्स को वेंटिलेटर ऑपरेट करने की ट्रेनिंग देने का भी आह्वान किया है। अभी महामारी के ऐसे समय में राजनीतिक दलों को स्वास्थ्य के मुद्दों का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए।
Revealed: Why ICU ventilators sent from PM CARES Fund were lying unused in hospitals
On Monday, Congress leader Rahul Gandhi made a generalized comment raising doubts about the efficacy of more than 50,000 ventilators spread across India. He tweeted, first in Hindi and then in English: “There’s a lot common between PMCares ventilator and the PM himself: – too much false PR, – don’t do their respective jobs, – nowhere in sight when needed”. This led to a storm of reactions and comments on social media, at a time when thousands of Covid-19 patients are fighting for their lives in hospitals, using ventilators.
Naturally, the question in everybody’s mind was: Do the ventilators work? You may not get the right answers from any politician’s social media timelines, but India TV carried out an investigation about the 50,000-odd ventilators supplied by the Centre to different state governments last year.
Last year, when the pandemic broke, there were only 16,000 ventilators in India, but after rapid manufacture and procurement, 50 thousand ventilators were distributed among the states. Last week in my prime time show ‘Aaj Ki Baat’, I had shown how ventilators sent by the Centre were lying unused and packed, gathering dust in storerooms of district hospitals of Rajasthan, Punjab, Bihar, UP and MP. Some hospital officials cited lack of trained technicians and anaesthetic staff, while some state governments complained that most of the ventilators were of inferior quality and unusable.
India TV reporters carried out investigations to find out from which companies these ventilators were procured, what were the defects and why these companies were not providing proper service and maintenance. The investigation reports filed by India TV reporters should be sufficient for Rahul Gandhi to open up his eyes to the bitter truth.
First, Punjab where Congress party is in power. Modi government had sent 119 ventilators from PM CARES Fund to Guru Nanak Dev Hospital, Amritsar. The Health Officer complained that 47 of the ventilators were not working, but he was misleading. An engineer of AgVu company that manufactured the ventilators, showed to India TV reporter on camera, how tubings were missing from some ventilators, and how many of the ventilators are gathering dust and are not being used, even though they were fit for operation. Ventilators need proper ICU ambience, round-the-clock power and regular low pressure oxygen supply. Above all, ventilators need trained personel to operate.
India TV reporter went to Guru Gobind Singh Medical College Hospital in Faridkot where he found 62 ventilators sent from PM CARES Fund lying like scrap inside the store room. The hospital administration had claimed that these ventilators were not working. These ventilators were manufactured by Bharat Electronics Ltd, a PSU company, whose engineers visited the hospital after receiving complaints. The engineers found that in most of the ventilators being used, the parts had not been changed, while in some other ventilators, the oxygen sensor or the flow sensor or bacteria sensor was not working. These parts need to be changed regularly. Once the sensors were changed, five ventilators started working. BEL has, in a letter to the Centre, explained the circumstances in which these ventilators were not being used.
Not only were AgVa Healthcare ventilators supplied to the hospital, but also 50 ventilators manufactured by Jyoti CNC Automation were also supplied. Their ventilators too were not working. Our reporter spoke to officials of Jyoti CNC. They sent their engineers to the hospital. After hospital visit, their engineers said that there was no oxygen connector to link oxygen supply to the ventilator. The oxygen connectors were missing. How can one expect the ventilators to work?
From PM CARES Fund, 809 ventilators were also sent to Punjab, out of which only 532 were installed and 277 ventilators are lying unopened. Last year, five thousand ventilators were sent to Andhra Pradesh, more than 4,000 each to Maharashtra and UP, 1,900 ventilators were sent to Rajasthan, more than 2,000 to Karnataka, and 3,400 ventilators were sent to Gujarat. Except for two states, Rajasthan and Punjab, both ruled by Congress, none of the remaining states raised questions about the quality of the ventilators. The companies that supplied ventilators to these states were the same which supplied ventilators to other states.
After going through the replies of the companies that supplied these ventilators, some facts stand out clearly. One, in some of the hospitals, the ventilators were not even unpacked. They were just dumped inside the hospital store rooms gathering dust, even as the second wave of pandemic was sweeping India. Some hospitals failed to set up oxygen points to operate the ventilators. In some hospitals, there were no trained technicians or anaesthetic staff to handle the ventilators. One government hospital in Rajasthan had even loaned out its ventilators on rent to a private hospital to mint money from Covid-19 patients. In some hospitals, there was complete lack of servicing and maintenance. In some hospitals, some small spare parts or sensors were required to be changed. All these could have been handled easily by the hospital administration.
Because of the deficiencies mentioned above, none can say that all the ventilators sent from PM CARES Fund were faulty and not up to the mark. Out of 50,000 ventilators given to states, more than 49,000 ventilators are already working, saving people’s lives. Rahul Gandhi should have avoided making the generalized remark that all the ventilators “were not doing their jobs”. By making such sweeping remark, he would be sowing seeds of doubts in the minds of those families, whose near and dear ones are on ventilators. The 85 per cent ventilators that are working were procured in advance, much before the second wave, and sent to states, must before the pandemic took a dangerous form. Such an action needs to be appreciated, and wherever there are deficiencies, they need to be addressed through proper audit.
That is why, Prime Minister Narendra Modi has ordered an “immediate audit” of installation and operation of ventilators provided by the Centre to different states. PM CARES Fund had allocated Rs 2,000 crore for supplying 50,000 ventilators to government-run Covid hospitals in states and union territories last year, and accountability for non-use of these ventilators must be fixed. The PM has also called for providing refresher training for properly operating ventilators to healthcare workers if necessary. It’s time that political parties should stop politicizing emergency health care issues during pandemic.
अफवाहों से बचें, वैक्सीनेशन को सफल बनाने के लिए एकजुट होकर काम करें
कोरोना वायरस के नए मामलों में शुक्रवार को कमी आई, और दूसरी तरफ वैक्सीनेशन के मोर्चे पर अमेरिका से कुछ अच्छी खबरें आईं। पिछले 24 घंटे में देशभर में कोरोना के 3,26,332 नए मामले सामने आए, लेकिन कोरोना से मरनेवालों की संख्या अभी भी बहुत ज्यादा है। पिछले 24 घंटे में देश भर में 3,883 लोगों की मौत हो गई। कोरोना के नए मामलों में गिरावट तो दिख रही है लेकिन यह कह पाना अभी बेहद मुश्किल है कि कब यह संख्या तेजी से नीचे जाएगी।
प्रभावित राज्यों की बात करें तो कर्नाटक ने महाराष्ट्र को पीछे छोड़ दिया है। कर्नाटक प्रभावित राज्यों की लिस्ट में सबसे ऊपर आ गया है। यहां 24 घंटे में कुल 41, 779 नए मामले सामने आए जबकि 373 लोगों की मौत हो गई।वहीं महाराष्ट्र में 39,923 मामले सामने आए जबकि 695 लोगों की मौत हो गई। केरल 34,694 नए मामलों के साथ तीसरे नंबर पर है, यहां 93 मौतें हुईं। तमिलनाडु 31,892 मामलों के साथ चौथे नंबर पर है और यह 288 लोगों की जान चली गई। आंध्र प्रदेश में 22,018 नए मामले आए और 96 मौतें हुईं। प्रभावित राज्यों की लिस्ट में यह पांचवें स्थान पर है। ऐसा लगता है कि दक्षिण भारत के अधिकांश राज्यों को इस महामारी की दूसरी लहर ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है।
देश के पूर्वी हिस्से में पश्चिम बंगाल 20,846 नए मामलों और 136 मौतों के साथ सबसे ऊपर है । उत्तर प्रदेश में नए मामलों में कमी आई है। उत्तर प्रदेश में 15,747 नए मामले आए और 312 लोगों की मौत हुई है। राजस्थान में 14,289 नए मामले सामने आए और 155 मौतें हुईं, जबकि हरियाणा में 10,608 नए मामले और 164 मौतें हुईं। ये आंकड़े बताते हैं कि दूसरी लहर में थोड़ी गिरावट दिख रही है, लेकिन खतरा अभी बना हुआ है। दिल्ली में शुक्रवार को 8,506 नए मामले सामने आए और 289 मौतें हुईं। एक महीने में पहली बार ऐसा हुआ है जब दिल्ली में एक दिन में कोरोना के 10,000 से कम मामले दर्ज किए गए ।
भारत जहां कोरोना की तबाही झेल रहा है वहीं अमेरिका से अच्छी खबर ये आई कि वहां के लोगों को मास्क से मुक्ति मिल गई है। अब अमेरिका में मास्क लगाना जरूरी नहीं हैं। लोग बिना मास्क के भी बाहर निकलते सकते हैं, एक दूसरे से हाथ मिला सकते हैं, एक दूसरे को गले लगा सकते हैं। इसका ऐलान खुद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने किया। बाइडन ने कहा कि “ यह बड़ी कामयाबी है। अमेरिका के लिए बहुत बड़ा दिन है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को जल्द से जल्द वैक्सीन लगाने में हमारी असाधारण सफलता से यह संभव हुआ है।’
जब से कोरोना महामारी फैली है उसके बाद पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन उपराष्ट्रपति कमला हैरिस सहित अपनी टीम के साथ बिना मास्क के नजर आए। रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (सीडीसी) की नई गाइडलाइंस का जिक्र करते हुए बाइडन ने कहा कि वैक्सीन की पूरी डोज ले चुके लोगों को कोरोना से संक्रमित होने का खतरा बहुत ही कम है। राष्ट्रपति ने कहा कि अगर आपने वैक्सीन की पूरी डोज ले ली है तो आपको मास्क पहनने की जरूरत नहीं है। आप बिना मास्क पहने या बिना सोशल डिस्टेंसिंग के भी बड़ी या छोटी इनडोर और बाहरी गतिविधियों में भाग ले सकते हैं। इस गाइडलाइन में अभी-भी भीड़भाड़ वाली जगहों जैसे बसों में, विमान, अस्पताल, जेल, शेल्टर होम में मास्क लगाने की अपील की गई है लेकिन जो लोग वैक्सीन की पूरी डोज ले चुके हैं उनके लिए सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत नहीं है।
अमेरिका ने यह सफलता अपने आक्रामक वैक्सीनेसन अभियान की वजह से हासिल की। अमेरिका की कुल 33 करोड़ आबादी में से 10.5 करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन हो चुका है। यानी 30 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी है। इन लोगों में एंटीबॉडी डेवलप हो चुकी है। धीरे धीरे हर्ड इम्युनिटी डेवलप हो रही है। बड़ी बात ये भी है कि अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने 12 साल और इससे ऊपर के बच्चों को भी फाइज़र की कोरोना वैक्सीन लेगाने की इजाजत दे दी है। इसका मतलब है कि दफ्तर, कार्यस्थलों और स्कूलों को फिर से उनलोगों के लिए खोलने का रास्ता साफ हो जाएगा जो वैक्सीन की पूरी डोज ले चुके हैं।
अमेरिका में महामारी शुरू होने के बाद से कोरोना के मामले पिछले साल सितंबर के बाद से अब सबसे कम हैं, अप्रैल के बाद से मौतों की संख्या भी सबसे कम है, वहीं टेस्ट की पॉजिटिविटी रेट भी सबसे कम है। यही वजह है कि अमेरिका ने अपने उन नागरिको को मास्क नहीं पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग नहीं अपनाने की इजाजत दे दी है जो वैक्सीन की पूरी डोज ले चुके है।
अमेरिका में वैक्सीनेशन प्रोग्राम 14 दिसंबर को शुरू हुआ था। पूरे 6 महीने में अमेरिका ने अपने दस करोड़ लोगों को वैक्सीनेट किया यानि बीस करोड़ वैक्सीन की डोज लोगों को दी गई। भारत में वैक्सीनेशन 16 जनवरी को शुरू हुआ था। चार महीने में यहां 18 करोड़ वैक्सीन डोज दी जा चुकी हैं। लेकिन हमारी जनसंख्या बहुत बड़ी है। अमेरिका के 33 करोड़ की तुलना में हमारे यहां 137 करोड़ से भी ज्यादा लोग है। हर्ड इम्युनिटी के लिए कम से कम 70 करोड़ लोगों को वैक्सीनेट करना जरूरी है, इसका मतलब वैक्सीन की 140 करोड़ डोज देनी होगी। यह आसान काम नहीं है।
केंद्र सरकार का दावा है कि इस साल के आखिर तक देश में कोरोना वैक्सीन की 216 करोड़ डोज उपलब्ध हो जाएंगी। वैक्सीन का प्रोडक्शन और सप्लाई बढ़ाने में पूरी ताकत लगा दी गई हैं। फिर भी सवाल तो यही है कि हमारे देश में कोरोना के खौफ से आज़ादी कब मिलेगी। कोई भी यह निश्चित तौर पर नहीं कह सकता कि हम कब अपने लक्ष्य को प्राप्त करेंगे।
जब तक लोग खुद वैक्सीन लगवाने के लिए आगे नहीं आएंगे, अफवाहों पर यकीन करेंगे, तब तक कोरोना से मुक्ति की बात हम कैसे सोच सकते हैं। इनमें अनपढ़, पढ़े लिखे लोग, डॉक्टर और हेल्थ वर्कर्स भी शामिल हैं। क्या आप यकीन करेंगे कि आज भी हमारे देश में बहुत से लोग ऐसे हैं जो कह रहे हैं कि कोरोना का टीका ‘मौत का टीका’ है। यह सरकार की साजिश है। कोरोना की वैक्सीन देकर लोगों को मारा जा रहा है। बिहार में कई जगहों पर वैक्सीनेशन के लिए गए स्वास्थ्यकर्मियों की ग्रामीणों ने पिटाई कर दी। ऐसे दृश्यों को देखकर मैं हैरान रह गया। एक तरफ बड़ी संख्या में लोग कोरोना से मर रहे हैं और दूसरी तरफ लोग वैक्सीन लेने को तैयार नहीं हैं।
मैंने राजस्थान, दिल्ली और बिहार में अपने रिपोर्टर्स से यह पता लगाने के लिए कहा कि गांवों और शहरों की झुग्गियों में रहने वाले आम कम पढ़े-लिखे या अनपढ़ लोग कोरोना वैक्सीन बारे में क्या सोचते हैं। वैक्सीन के बारे में आम लोगों से उन्हें जो प्रतिक्रिया मिली, और जो मैंने अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में शुक्रवार की रात दिखाई, वह चौंकाने वाली थी।
अजमेर से 14 किलोमीटर दूर स्थित केसरपुरा गांव में पिछले 10 दिनों में कोरोना से 15 लोगों की मौत हो चुकी है। 1,300 की आबादी वाले इस गांव में लोगों को वैक्सीन लगाने के लिए राज्य सरकार ने हेल्थ वर्कर्स की एक टीम भेजी, लेकिन किसी भी गांववाले ने वैक्सीन नहीं लगवाई। इस गांव में वैक्सीन की सिर्फ एक डोज लगी, और वह भी एक हेल्थ वर्कर को। पास के ही लहरी गांव में भी ज्यादातर लोगों ने टीका लगवाने से मना कर दिया। इन गांवों में यह अफवाह फैला दी गई थी कि वैक्सीन लगवाने से मौत हो रही है। अजमेर जैसे अच्छी-खासी आबादी वाले जिले में वैक्सीन की सिर्फ 5 लाख डोज ही लग पाई हैं।
हमने अपने रिपोर्टर भास्कर मिश्रा को पूर्वी दिल्ली में अक्षरधाम के पास स्थित यमुना खादर इलाके की झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों से बात करने के लिए भेजा। यहां के अधिकांश निवासियों का कहना था कि उन्होंने सुना है कि वैक्सीन लगवाने के बाद लोग बीमार पड़ रहे हैं इसलिए उन्होंने टीका नहीं लगवाया। उनमें से कुछ ने कहा कि मेहनत-मजदूरी करने वाले लोगों को कोरोना नहीं होता, और केवल एसी में रहने और काम करने वाले ही वायरस के संक्रमण का शिकार होते हैं।
बिहार में मुंगेर जिले के अफजल नगर गांव में पिछले 15 दिनों में 10 लोगों की मौत हो गई। जिन लोगों की मौत हुई, उनमें कोरोना के लक्षण थे। हमारे संवाददाता ने बताया कि अब भी गांव के 100 लोग ऐसे हैं जिन्हें खांसी और बुखार जैसे लक्षण हैं, लेकिन न तो वे कोरोना टेस्ट करवाते हैं और न ही उनका वैक्सीन लगवाने में कोई इंटरेस्ट है। इसी तरह 10 हजार की आबादी वाले पास के खुदिया गांव में भी लोग टीका नहीं लगवा रहे। पता चला कि एक हफ्ते पहले यहां कोरोना की जांच और वैक्सीनेशन के लिए कैंप लगाया गया था। हेल्थ डिपार्टमेंट के लोग ग्रामीणों को समझाते रहे, लेकिन एक भी आदमी टीका लगवाने नहीं आया। गांव के कुछ लोगों का कहना था कि वैक्सीन लगवाएंगे तो शरीर पर छाले पड़ेंगे, त्वचा मांस से अलग होकर गिरने लगेगी और मौत हो जाएगी।
सिर्फ कम पढ़े-लिखे ग्रामीण ही नहीं, बल्कि अच्छे-खासे पढ़े-लिखे लोग भी वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार नहीं है। जब भारत ने स्वास्थ्यकर्मियों के लिए अपना टीकाकरण अभियान शुरू किया, तो केवल 37 प्रतिशत ही वैक्सीन लगवाने के लिए आगे आए, और इसमें भी 4 महीने लग गए। अभी भी शत-प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मियों ने वैक्सीन नहीं लगवाई है। मैं ऐसे कई डॉक्टर्स को जानता हूं जिन्हें अभी तक वैक्सीन की दोनों डोज लग जानी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने नहीं लगवाई। यहां तक कि एक यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर भी, जिन्हें मैं व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं, कह रहे थे कि थोड़े दिन और देख लेते हैं।
हमारे नेताओं ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा था कि ये बीजेपी की वैक्सीन है, मैं नहीं लगवाऊंगा। कांग्रेस की सरकारों के कई मुख्यमंत्रियों ने इसे ‘मोदी वैक्सीन’ कहा था। उन्होंने वैक्सीन की एफिकेसी पर सवाल उठाए थे। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में आसपास मौत का तांडव देखने के बाद अब तमाम नेताओं के सुर बदल गए हैं। वे अब कोरोना के टीकों की तत्काल सप्लाई की मांग कर रहे हैं।
हमारा टीकाकरण अभियान तभी सफल हो सकता है जब लोग खुद वैक्सीन लगवाने के लिए आगे आएं। अगर लोग वैक्सीन लगाने वाले स्वास्थ्यकर्मियों पर पत्थर फेंकेंगे औऱ उनसे लिखित में ‘गारंटी’ मांगेंगे कि वैक्सीन लगवाने से वे कोरोना का शिकार नहीं बनेंगे, तो सरकारें क्या कर पाएंगी? अजमेर जिले में 5 लाख से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगाई गई, और अभी तक उनमें से किसी की भी मौत नहीं हुई, लेकिन फिर भी अफवाह फैला दी गई वैक्सीन लगवाने से लोगों की मौत हो रही है। जिन गांवों में मुस्लिम आबादी ज्यादा है, वहां यह अफवाह फैला दी गई कि वैक्सीन के जरिए मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। हैरानी की बात ये है कि लोग सुनी-सुनाई और वॉट्सऐप, यूट्यूब एवं फेसबुक के जरिए फैलाई जा रही इस तरह की आधारहीन अफवाहों पर यकीन भी कर रहे हैं।
जिन लोगों को अभी भी कोरोना वैक्सीन को लेकर कोई शंका है, उन्हें मिसाल के तौर पर अमेरिका की तरफ देखना चाहिए। यह मुल्क कोरोना के मामलों और इससे होने वाली मौतों के नजरिए से एक साल से भी ज्यादा समय तक पहले नंबर पर था। अमेरिका ने वैक्सीनेशन को गंभीरता से लिया और अब वे एक ऐसी स्थिति में आ गए हैं जिसमें वैक्सीन लगवा चुके लोगों के लिए मास्क पहनना और सोशल डिस्टैंसिंग बनाए रखना जरूरी नहीं है।
मैं सही सोच रखने वाले सभी भारतीयों से अपील करता हूं कि वे लोगों में कोविड के टीके के बारे में जागरूकता फैलाएं और सभी तरह की निराधार अफवाहों का खात्मा करें। यदि अमेरिका वैक्सीनेशन चैलेंज में सफल होता है तो भारत भी हो सकता है। जब तक भारतीय खुद वैक्सीनेशन सेंटर्स पर नहीं आएंगे, तब तक कोई भी सरकार उन्हें वैक्सीन लगवाने के लिए मजबूर नहीं कर सकती । हम जितनी जल्दी 70 करोड़ भारतीयों को वैक्सीन की दोनों डोज देने का लक्ष्य हासिल करेंगे, उतनी जल्दी हम कोरोना के इस दानव को हरा पाने में कामयाब होंगे। हमें इस लक्ष्य को पाने के लिए अपना पूरा जोर लगाना होगा। कम से कम वैक्सीनेशन के मुद्दे पर हम सब अपने सियासी, व्यक्तिगत या धार्मिक द्वेष को पीछे छोड़ दें । वैक्सीन जरूर लगवाएं।
Dispel all baseless rumours, let all of us work unitedly on the vaccination front
On Friday, when India reported a dip in fresh Covid-19 cases to 3.2 lakhs, there was some good news from the US and also from the vaccination front. 3,26,332 new cases were reported during the last 24 hours across India, while the fatalities figure remained high at 3,883. There appears to be a steady decline in fresh cases but it is difficult to predict when the numbers would dip at a steep angle.
State-wise, Karnataka has now overtaken Maharashtra. On Friday, Karnataka reported 41,779 new cases and 373 deaths, Maharashtra was second with 39,923 cases and 695 deaths, Kerala was third with 34,694 cases and 93 deaths, Tamil Nadu fourth with 31,892 cases and 288 deaths, and Andhra Pradesh fifth with 22,018 new cases and 96 deaths. It appears as if the pandemic second wave is lashing most parts of South India.
In the East, West Bengal leads with 20,846 new cases and 136 deaths, while the figures are dropping in Uttar Pradesh, which reported 15,747 new cases and 312 deaths. Rajasthan reported 14,289 new cases and 155 deaths, while Haryana reported 10,608 new cases and 164 deaths. These figures indicate that the second wave is showing a slight decline, but the risks remain. Delhi reported 8,506 new cases and 289 deaths on Friday. For the first time in over a month, the national capital has recorded less than 10,000 Covid cases in a day.
US President Joe Biden described it as a “great day for America”, when he announced from the White House that “fully vaccinated” Americans are now allowed not to wear masks in public places and in most outdoor settings. Biden himself alongwith his team including US Vice President Kamala Harris appeared without masks for the first time since the pandemic broke. Biden referred to Center for Disease Control and Prevention’s latest guidelines, which say, anyone who is fully vaccinated can participate in indoor and outdoor activities, large or small, without wearing a mask or physically distancing. The guidelines still call for wearing masks in crowded places like buses, planes, hospitals, prisons and homeless shelters, but removing the need for social distancing for those who are fully vaccinated.
This success was achieved because of aggressive vaccination campaign which paid off. 10.5 crore out of America’s total 33 crore population are now fully vaccinated. They have already developed antibodies and herd immunity is also gradually becoming possible. The US FDA has now allowed Pfizer, Moderna vaccination for children above the age of 12 years. This means, the path for reopening offices, workplaces and schools will now be open for all “fully vaccinated” Americans. Covid cases in the US are at the lowest since September, deaths are at their lowest since April and the test positivity rate is at its lowest since the pandemic began. That is why, the US has allowed all vaccinated Americans not to wear masks and keep physical distancing. Despite being a superpower, the US had recorded 3.3 crore Covid-19 cases and nearly 6 lakh deaths due to the pandemic. The situation has now completely changed for the better.
The US had started its vaccination program on December 14 last year and in a span of six months it used more than 20 crore vaccine doses to fully vaccinate 10.5 crore Indians. Vaccination began in India on January 16 and in the last four months, we administered 18 crore doses. This figure is too small compared to our 137 crore population. To achieve herd immunity, India requires 140 vaccine doses to ‘fully vaccinate’ nearly 70 crore Indians. This is really a tall order. The Centre claims it will make 216 crore doses available by December. Even if the government pulls out all stops to boost manufacture and procurement of vaccine doses, nobody can say with certainty when we will attain our objective.
This is because of widely prevalent scepticism about vaccines among large section of Indians, even among literate, well-read people, which include many of our doctors and healthcare workers. There are many people in India who still say openly that Corona vaccine is a ‘death vaccine’. They say, it is a “government conspiracy” to eliminate people. In several places of Bihar, villagers have thrashed health workers who went to vaccinate people. I was shocked when I saw the visuals. On one hand, people are dying of Covid-19 in large numbers and on the other hand, people are unwilling to take vaccine.
I asked my reporters in Rajasthan, Delhi and Bihar to find out what common semi-literate or illiterate people living in villages and city slums think about Covid vaccines. The feedback that they got from common people about vaccines, and which I showed in my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Friday night was shocking.
In Kesarpura village, 14 km from Rajasthan’s Ajmer city, 15 people died of Covid during the last ten days. In this village of 1,300 residents, the state government sent a team with vaccine stocks, but not a single villager took the vaccine. Only one person, and that too, a health worker, took the jab. In adjoining Lahri village too, most of the villagers refused to get themselves vaccinated. A baseless rumour was spread in these villages that anybody who takes the vaccine, may die. Only 5 lakh doses were administered in a well populated district like Ajmer.
We sent our reporter Bhaskar Mishra to Yamuna Khadar slums near Akshardham in east Delhi to speak to slum dwellers. Most of them said, they have heard people falling sick after taking vaccine and that is why they did not take the dose. Some of them said, labourers do not get infected with the virus, and that only those who live and work in air-conditioned rooms get the virus.
In Afzal Nagar village of Munger district, Bihar, there were 10 Covid-related deaths in the past two weeks. Our reporter said, there were still more than a hundred villagers who has symptoms of fever and cough, but not a single one of them took the RT-PCR test nor showed any interest in vaccines. In neighbouring Khudia village having nearly 10,000 residents, a Covid vaccination and detection camp was held a week ago. The health workers consistently pleaded with villagers to take the vaccine, but none agreed. There were some villagers who said, if they take the dose, the skin would fall off from their body and they may die.
Not only semi-literate villagers, but well-read people are also trying to avoid taking the vaccine. When India launched its vaccination drive for health workers, only 37 per cent of them came forward to take the vaccine, and that too, in a span of four months. Cent per cent vaccination is yet to be achieved among India’s health workers. I personally know some doctors who are yet to complete their double dose. Even a university vice-chancellor I personally know, had a wait-and-watch attitude. Our political leaders added grist to the mill. Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav described Covid vaccine as a ‘BJP vaccine’. Some Congress chief ministers described it as ‘Modi vaccine’. They were questioning the efficacy of these vaccines. But after the second wave of pandemic brought thousands of deaths in its wake, most of the leaders have now changed their views. They are now clamouring for urgent supply of Covid vaccines.
Our vaccination campaign can be a success only when people, on their own, come forward to take the doses. If people start stoning vaccination workers and demand a ‘guarantee’ in writing that they will not fall prey to Covid, then how can the government help? More than 5 lakh people took vaccine doses in Ajmer district, and yet none of them died, but people are still spreading rumours saying people are drying after taking vaccine. In Muslim-populated villages, baseless rumours are being spread about their community being targeted in the name of vaccination. The worrying part is that villagers continue to believe in such baseless rumours that are being spread through word of mouth, WhatsApp, YouTube and Facebook social media platforms.
Those who still have doubts about Covid vaccines should look towards the American example. America topped the world’s chart for more than a year as far as Covid cases and number of deaths were concerned. They seriously took up the vaccination challenge, and now they have come to a stage where they have asked their people not to wear mask and maintain physical distancing.
I appeal to all right thinking Indians to spread awareness about Covid vaccines among people and dispel all baseless rumours. If America can succeed in taking up the vaccination challenge, India can too. Until and unless, Indians come to vaccination centres voluntarily, no government can force them to take vaccines. The sooner we achieve our objective of vaccinating 70 crore Indians with both the doses, we will not be able to defeat the devil. Let us all work wholeheartedly towards achieving that objective. At least, on vaccination issue, leave aside all political, personal or religious grudges. Go out and get yourselves vaccinated.
कोरोना महामारी के बीच वैक्सीनेशन को लेकर आई अच्छी खबर
देशभर में कोरोना के ताजा मामलों में गुरुवार को गिरावट देखी गई लेकिन रोजाना हो रही मौतों की संख्या अभी भी ज्यादा है। पिछले 24 घंटे में कोरोना के 3,43,144 नए मामले सामने आए जबकि इस घातक संक्रमण से 4 हजार लोगों की मौत हो गई। इस दौरान 3,44,776 मरीज स्वस्थ हुए और उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया। देशभर में कोरोना के कुल 37,04,893 एक्टिव मामले हैं। वहीं शुक्रवार सुबह तक देशभर में कुल 17.92 करोड़ लोगों को कोरोना की वैक्सीन दी जा चुकी है।
प्रभावित राज्यों की लिस्ट में महाराष्ट्र अभी भी सबसे ऊपर है। यहां कोरोना के 42,582 नए मामले आए जबकि 850 लोगों की मौत हुई। कर्नाटक में 35,297 नए मामले आए और 344 मौतें हुईं, तमिलनाडु में 30,621 नए मामले आए और 297 लोगों की मौत हो गई, आंध्र प्रदेश में 22,399 नए मामले आए और 89 मौतें हुई, पश्चिम बंगाल में 20,839 नए मामले आए और 129 लोगों की मौत हो गई। उत्तर प्रदेश में 17,775 नए मामले आए और 281 लोगों की मौत हुई, राजस्थान में 15,867 नए मामले आए और 159 मौतें हुईं जबकि बिहार में कोरोना के कुल 7,752 नए मामले सामने आए। वहीं उत्तराखंड में 7,217 नए मामले आए और 122 लोगो की मौत हो गई। मध्य प्रदेश में 8,419 नए मामले आए और 74 लोगों की मौत हुई। तेलंगाना में कोरोना के 4,693 नए मामले आए जबकि 33 लोगों की मौत हुई वहीं देश के छोटे राज्यों में से एक गोवा में 2,491 नए मामले सामने आए और 63 लोगों की मौत हो गई।
गोवा मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में गुरुवार को एक दुखद घटना हुई। यहां ऑक्सीजन सप्लाई में कमी के चलते 15 और मरीजों की मौत हो गई। मंगलवार को ऑक्सीजन की कमी के कारण इस अस्पताल में कोरोना के 26 मरीजों की मौत हो गई थी। अधिकारियों के मुताबिक आधी रात से सुबह आठ बजे तक अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई बंद रही जिससे कोरोना के 15 मरीजों की जान चली गई।
दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में हालात सुधरे हैं, लेकिन बेंगलुरू में हालात अभी भी खराब है। दिल्ली की बात करें तो गुरुवार को 10,489 नए मामले सामने आए और 308 लोगों की मौत हुई। यहां पॉजिटिविटी रेट गिरकर 14.3 प्रतिशत हो गया है और कुल 77,717 एक्टिव मामले हैं। दिल्ली में ऑक्सीजन की जरूरत भी अब कम हो गई है और दिल्ली सरकार ने अपने बचे हुए ऑक्सीजन स्टॉक को अन्य राज्यों को देने की पेशकश की है।
केंद्र सरकार ने गुरुवार को ऐलान किया कि इस साल अगस्त से दिसंबर तक 18 वर्ष से ज्यादा उम्र के सभी नागरिकों के लिए कोरोना वैक्सीन की करीब 217 करोड़ डोज उपलब्ध होंगी। नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी. के. पॉल ने कहा, 95 करोड़ भारतीय ऐसे हैं जिनकी उम्र 18 वर्ष से ज्यादा है। इस बीच वैक्सीन की 51.6 करोड़ डोज का ऑर्डर दे दिया गया है। ये वैक्सीन जुलाई तक उपलब्ध हो जाएगी।
अगस्त से दिसंबर के बीच भारत में कोरोना वैक्सीन की जो 216.8 करोड़ डोज उपलब्ध होने की उम्मीद है इनमें ज्यादातर वैक्सीन का उत्पादन अपने देश में ही होगा। सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड की 75 करोड़ डोज उपलब्ध कराएगी। देश में निर्मित भारत बायोटेक की कोवैक्सीन की 55 करोड़ डोज मिलेगी। इसी तरह बायो वैक्सीन (Bio E subunit) की 21 करोड़ डोज, नोवावैक्स वैक्सीन की 20 करोड़ डोज, रूस में डिवेलप की गई स्पुतनिक V वैक्सीन की 15 करोड़ डोज उपलब्ध हो जाएगी। यही नहीं, जाएडस कैडिला डीएनए वैक्सीन की 5 करोड़ डोज, बी.बी. नेजल वैक्सीन की 10 करोड़ डोज, जिनोवा (Gennova mRNA) वैक्सीन की 6 करोड़ डोज उपलब्ध होंगी। स्वास्थ्य मंत्रालय को उम्मीद है कि अगले साल के शुरुआती 3 महीने तक देश में वैक्सीन की 300 करोड़ डोज उपलब्ध होंगी।
फार्मा कंपनी डॉक्टर रेड्डीज लैब भारत में रूस की स्पुतनिक V वैक्सीन का प्रोडक्शन करेगी। इस वैक्सीन का प्रोडक्शन जुलाई में शुरू हो जाएगा। रूस की यह वैक्सीन परीक्षण के दौरान 92 प्रतिशत प्रभावी रही है। इस बीच वैक्सीनेशन पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (NTAGI) ने सिफारिश की है कि कोविशील्ड की दूसरी डोज 12 से 16 हफ्ते के अंतराल के बाद लगाई जाए। इससे पहले दोनों डोज के बीच 4 से 6 हफ्ते का गैप होता था।
मेडिकल जर्नल द लैंसेट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविशील्ड की 2 डोज के बीच 12 हफ्तों यानी 3 महीने का अंतर होने से इसका असर बढ़ जाता है। भारत में एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड वैक्सीन का प्रोडक्शन करने वाले सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के CEO अदार पूनावाला भी कह चुके हैं कि अगर वैक्सीन के 2 डोज के बीच 2-3 महीने का अंतर रखा जाए, तो वैक्सीन 90 पर्सेंट तक असरदार हो जाती है। ब्रिटेन और कनाडा में कोरोना वैक्सीन की दूसरी डोज 4 महीने बाद दी जा रही है। NTAGI ने सलाह दी है कि जो लोग कोविड-19 से ठीक हो गए हैं, उन्हें 6 महीने के गैप के बाद ही वैक्सीन की डोज दी जानी चाहिए, क्योंकि कोरोना से रिकवर होने के बाद करीब 6 महीने तक शरीर में एंडीबॉडीज रहती हैं।
केंद्र द्वारा दिसंबर तक वैक्सीन की 216 करोड़ डोज उपलब्ध कराने के इरादे की घोषणा के साथ ही अब सबकुछ साफ हो गया है। इसके साथ ही सरकार ने वैक्सीन का स्टॉक कम होने पर राजनीतिक विरोधियों द्वारा फैलाई जा रही आशंकाओं और निराशाओं को एक झटके में खत्म कर दिया है। सरकार की तरफ से वैक्सीन को लेकर जो भरोसा दिलाया गया है उससे साफ है कि सरकार के पास वैक्सीन को लेकर नीति भी है और सबको टीका लगे इसकी नीयत भी है। लेकिन अकेले केंद्र सरकार की कोशिशों से कोरोना को नहीं हराया जा सकता है, इसके लिए राज्यों के स्तर पर भी उतनी ही कोशिश की जरूरत है। राज्यों को सुनिश्चित करना होगा कि उन ग्रामीणों और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों को भी वैक्सीन लगाई जाए, जो कोविन ऐप का इस्तेमाल नहीं करते।
हमने अपनी रिपोर्टर गोनिका अरोड़ा को दिल्ली के कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज के पास स्थित एक झुग्गी बस्ती में भेजा। वहां की झुग्गियों में रहनेवाले अधिकांश लोगों ने कहा कि उन्हें वैक्सीन लगाने के लिए कहने के लिए प्रशासन का कोई भी आदमी नहीं आया। इनमें से अधिकांश लोगों के पास स्मार्टफोन नहीं थे। इन लोगों की मांग है कि उनकी बस्ती में भी वैक्सीनेशन सेंटर बनाया जाए और आाधार कार्ड देखकर वैक्सीन दी जाए। उस झुग्गी में वैक्सीन के बारे में आधारहीन अफवाहें भी फैलाई जा रही थीं। मुंबई में इंडिया टीवी के रिपोर्टर राजीव कुमार मछुआरों के मोहल्ले मच्छीमार नगर गए। वहां रहने वाले मछुआरों को CoWin ऐप पर अपना नाम दर्ज कराने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। अधिकांश मछुआरे वैक्सीनेशन के लिए गए थे, लेकिन नाम दर्ज नहीं होने के कारण वैक्सीन लगवाए बगैर लौट आए। गरीबों और वंचितों को आसानी से वैक्सीन उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकारों को बिल्कुल जमीनी स्तर पर काम करना होगा।
दिल्ली में अब तक लगभग 100 वैकसीनेशन सेंटर्स को वैक्सीन न होने के चलते बंद कर दिया गया है, जबकि मुंबई ने स्टॉक की कमी के कारण 45 वर्ष से कम उम्र के लोगों का वैक्सीनेशन बंद कर दिया है। भारत में अब तक 21 करोड़ लोगों ने CoWin ऐप पर अपना नाम रजिस्टर कराया है, लेकिन वे वैक्सीन लगवाने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। गुरुवार को ही 22 लाख से ज्यादा लोगों ने वैकसीनेशन के लिए अपना नाम रजिस्टर कराया। देशव्यापी वैक्सीनेशन का यह अभियान वाकई में बहुत बड़ा है, और इसके लिए केंद्र, राज्यों और निजी क्षेत्र के बीच करीबी तालमेल की जरूरत है।
हमारे यहां वैक्सीन की इतनी ज्यादा जरूरत है कि पूरी दुनिया में जितनी वैक्सीन इस वक्त बन रही है वो भी हम यदि खरीद लें, तो भी 18 साल से ज्यादा के लोगों को लगाने के लिए पूरी नहीं पड़ेगी। सच तो यह है कि दुनिया के बाजार में वैक्सीन उपलब्ध ही नहीं है। सिर्फ चीन की कंपनी सिनोफार्म के टीके उपलब्ध हैं, लेकिन सरकार ने अभी तक चीनी वैक्सीन को मंजूरी नहीं दी है। अमेरिकी वैक्सीन निर्माता फाइजर ने भारत में आवेदन किया था, लेकिन बाद में अपना आवेदन वापस ले लिया क्योंकि उसने मांग की थी कि भारत में उसे किसी भी तरह की लीगल लायबिलिटी से सुरक्षा दी जाए। अमेरिका में एस्ट्राजेनेका (कोविशील्ड) की लगभग 2 करोड़ खुराकें उपलब्ध हैं, लेकिन FDA ने अभी तक उन्हें भारत को सप्लाई करने के लिए मंजूरी नहीं दी है। बाल्टीमोर में जिस कंपनी ने यह वैक्सीन बनाई थी, वह अब FDA से जुड़े विवाद में उलझी हुई है। जब तक कंपनी इसकी एफिकेसी में सुधार नहीं करती, तब तक यह वैक्सीन अमेरिका में ही पड़ी रहेगी।
Covid pandemic: Good news from the vaccination front
India on Thursday reported a fall in the number of fresh Covid-19 cases, but the death figures continue to be high. During the last 24 hours, 3,43,144 fresh Covid cases and 4,000 deaths were reported across India, 3,44,776 patients were discharged from hospitals, and the number of active cases stood at 37,04,893. Till Friday morning 17.92 crore people have been vaccinated across India.
In the state list, Maharashtra continues to lead with 42,582 fresh Covid cases and 850 deaths, Karnataka with 35,297 fresh cases and 344 deaths, Tamil Nadu with 30,621 deaths and 297 deaths, Andhra Pradesh with 22,399 fresh cases and 89 deaths, West Bengal with 20,839 fresh cases and 129 deaths, Uttar Pradesh with 17,775 fresh cases and 281 deaths, Rajasthan with 15,867 fresh cases and 159 death, Bihar with 7,752 fresh cases, Uttarakhand with 7,217 fresh cases and 122 deaths, Madhya Pradesh with 8,419 fresh cases and 74 deaths, Telangana with 4,693 fresh cases and 33 deaths, and the small state of Goa with 2,491 fresh cases and 63 deaths.
There was a tragic incident on Thursday in Goa Medical College Hospital, where 15 more patients died due to lack of oxygen supply. On Tuesday, 26 Covid patients had died in this hospital due to lack of oxygen. According to officials, oxygen supply stopped from midnight till 8 am, killing 15 Covid-19 patients.
The situation has improved in the metros like Delhi and Mumbai, but it continues to be worse in Bengaluru. 10,489 fresh cases were reported in Delhi on Thursday and 308 deaths took place. The positivity rate has dropped to 14.3 per cent. There are presently 77,717 active cases in Delhi, and Delhi government has offered to give its surplus oxygen stocks to other states.
The Centre announced on Thursday that nearly 217 doses of Covid vaccines will be available for all Indians above the age of 18 years from August to December this year. Dr V K Paul, member, Niti Aayog said, there are 95 crore Indians who are above the age of 18. Meanwhile, 51.6 crore doses have been ordered which will be available till July.
Out of 216.8 crore doses planned till December, Serum Institute of India will supply 75 crore Covishield doses, Bharat Biotech will provide 55 crore Covaxin doses, Bio E subunit will provide 30 crore doses, Novavax vaccine 20 crore doses, Sputnik V 15.6 crore doses, Zydus Cadilla DNA 5 crore doses, BB nasal vaccine 10 crore doses and Gennova mRNA 6 crore doses. By the first quarter of next year, nearly 300 crore doses will be available, according to Health Ministry.
Pharma company Dr Reddy’s Lab will manufacture Russian Sputnik V vaccine doses in India. Production will begin in July. This Russian vaccine has been 92 per cent effective during trials. Meanwhile, the National Technical Advisory Group on Immunisation (NTAGI) has recommended second Covishield dose after a gap of 12 to 16 weeks. Earlier, the gap was four to six weeks.
A report in the medical journal Lancet has observed that Covishield vaccine will be more effective if the second dose is given after a gap of three months. Serum Institute of India CEO Adar Poonawalla has also said, there should be two to three months gap between two doses of Covishield. In Britain and Canada, Covishield second dose is being given after a gap of four months. The NTAGI has advised that people who have recovered from Covid-19 should be given vaccine doses only after a gap of six months, because antibodies remain inside the body from the date of recovery till six months.
With the Centre announcing its intention to make 216 crore doses available till December, the roadmap is now clear. This has nixed the doubts and pessimism being spread by political naysayers as stocks of vaccine doses ran out. Prime Minister Narendra Modi and his government is quite clear on this point. Every Indian will be administered Covid vaccine and all-out efforts shall be made to procure, manufacture and distribute vaccines. But state governments will have to pull up their socks to see that the vaccines are administered to villagers and slum dwellers who do not have access to CoWin app.
We sent our reporter Gonika Arora to a slum area in Delhi near Commonwealth Games village. Most of the slum dwellers said, nobody from the administration came to tell them to get vaccinated. Most of these dwellers did not have smart phones. Many of them said that it would be better if the local administration come to their locality and administer vaccines on the basis of Aadhar cards. There were also baseless rumours floating about the vaccines in that slum area. India TV reporter Rajiv Kumar in Mumbai went to Muachhimar, fishermen’s locality. They had no information about getting their names registered on CoWin app. Most of the fishermen went for vaccination, but came back empty handed because their names were not registered. State governments will have to do a lot of micro-tasking to ensure that the poor and unprivileged get vaccinated easily.
As of now, nearly 100 vaccination centres have been closed down in Delhi due to non-availability of vaccines, while Mumbai has stopped vaccinating people below the age of 45 years due to lack of stocks. Till now, 21 crore people in India have registered their names on CoWin app, but are waiting for their vaccines. On Thursday alone, more than 22 lakhs people registered their names for vaccination. The nationwide vaccination drive is indeed massive, and it requires close coordination between the Centre, the states and private sector.
Let me make a point here. Even if all the vaccines in countries across the world are added up, it will be less than what India requires for its huge population above the age of 18. The harsh reality is that vaccines are just not available in the world market. Only Sinopharm Chinese vaccines are available, but the government has not yet given clearance to the Chinese vaccine. US vaccine manufacturer Pfizer had applied in India, but later withdrew its application, because it had sought protection from legal liabilities. About nearly 2 crore Astra Zeneca (Covishield) doses available in the US, the FDA is yet to give approval for supplying them to India. The company in Baltimore that manufactured this doses is now embroiled in a dispute involving the FDA. The doses may continue to remain in the US, unless the company improves its efficacy.