केंद्र सरकार और किसानों के बीच बातचीत जल्द से जल्द शुरू होनी चाहिए
हरियाणा-दिल्ली सीमा पर 50,000 से ज्यादा किसानों के इकट्ठा होने, और पंजाब, यूपी एवं हरियाणा से राष्ट्रीय राजधानी की ओर तमाम अन्य किसानों के बढ़ने से हालात अब तनावपूर्ण हो गए हैं। दिल्ली पुलिस ने किसानों को बुराड़ी मैदान में धरने की इजाजत दे दी है और सारी व्यवस्था भी कर दी है, लेकिन किसानों के कुछ धड़े मध्य दिल्ली के रामलीला मैदान की ओर मार्च करने पर जोर दे रहे हैं। कोविड-19 महामारी का प्रकोप किसानों में न फैले इसके लिए दिल्ली पुलिस बुराड़ी मैदान में पहुंचे किसानों के ट्रैक्टरों को सैनिटाइज कर रही है।
शुक्रवार को दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर पुलिस और किसानों के बीच झड़पें हुईं। किसानों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए पुलिस को हल्के लाठीचार्ज के साथ-साथ आंसू गैस और वॉटर कैनन का इस्तेमाल करना पड़ा। दिल्ली-बहादुरगढ़ हाईवे पर स्थित टिकरी बॉर्डर पर किसान पुलिसवालों से भिड़ गए। वहां पर भी लाठीचार्ज हुआ और आंसू गैस के गोले दागे गए। दिल्ली-गुरुग्राम हाईवे, पीरागढ़ी, मुकरबा चौक और धौला कुआं पर भारी ट्रैफिक जाम लग गया क्योंकि किसान सेंट्रल दिल्ली की तरफ बढ़ने पर जोर दे रहे थे।
वर्तमान में जारी गतिरोध से निकलने का एकमात्र रास्ता यही है कि केंद्र और किसानों के प्रतिनिधियों के बीच जल्द से जल्द बातचीत की शुरुआत की जाए। अगर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, जो किसानों के हितों के समर्थकों में से एक हैं, बातचीत की पहल करते हैं तो किसान संगठनों के नेता उन पर भरोसा कर सकते हैं। कोई नहीं चाहता कि दिल्ली की कड़ाके की ठंड में पुलिस किसानों पर पानी की बौछार मारे या उनपर लाठियां बरसाएं। यदि सरकार किसान नेताओं को समझाने में कामयाब हो जाती है, तो एक रास्ता निकल सकता है। राष्ट्रीय हित को देखते हुए न तो सरकार, और न ही किसानों को किसी तरह की जिद पकड़नी चाहिए।
सारी बातें सुनने के बाद लगता है कि मोटे तौर पर किसानों की दो शिकायतें हैं, या कहें तो उनके मन में दो तरह के डर हैं। एक तो यह कि उन्हें नया कानून MSP की गारंटी नहीं देता, और दूसरा यह कि नए कानून से मंडियां खत्म हो जाएंगी और वो अपनी फसल बेचने के लिए पूरी तरह बड़े कॉरपोरेट्स पर निर्भर हो जाएंगे। MSP का शक इसलिए पैदा हुआ क्योंकि आज भी ज्यादातर राज्यों में किसानों को फसलों के लिए सरकार द्वारा तय किया गया न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा है। जहां MSP 1800 रुपये प्रति क्विंटल है, वहां वे अपनी फसल 800 रुपये प्रति क्विंटल में बेचने पर मजबूर हैं।
किसानों की शिकायत है कि उन्हें मक्का, धान, सरसों समेत कई अन्य फसलों पर MSP नहीं मिलता है। इसके लिए कई तरह के सुझाव आए हैं। एक तो यह है कि MSP न देने वालों के खिलाफ, कम दाम पर फसल खरीदने वालों के खिलाफ ऐक्शन हो, उन्हें पकड़ा जाए। दूसरा सुझाव मध्य प्रदेश सरकार की ‘भावान्तर’ योजना को लेकर है, जिसके तहत यदि किसान को MSP से कम दाम पर फसल बेचनी पड़ती है, तो MSP और फसल के भाव का अन्तर राज्य सरकार देगी। किसान नेताओं का कहना है कि अगर ये योजना पूरे देश में लागू कर दी जाए तो किसानों को काफी राहत मिलेगी।
जहां तक कृषि उत्पादन बाजार समितियों (APMC) की मंडियों का सवाल है, तो नए कानूनों में कहीं भी उनको खत्म करने का कोई प्रावधान नहीं है। नए कानून किसानों को ‘मंडियों’ से इतर खरीदारों को अपनी फसल बेचने के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था प्रदान करते हैं और यह किसानों पर निर्भर करता है कि वे अपनी उपज को बेहतर दाम पर बेचने के लिए किसी भी सिस्टम को चुन सकते हैं। नए कानून ‘मंडियों’ को खत्म करने की बात नहीं करते हैं। वे केवल किसानों को अपनी फसल बेचने की एक ‘वैकल्पिक सुविधा’ प्रदान करते हैं। ‘मंडियां’ वैसे ही चलती रहेंगी, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि जो लोग किसानों को उकसा और भड़का रहे थे, वे तो अपने मकसद में कामयाब हो गए, और जिन्हें किसानों को समझना था, वे नाकाम रहे।
मुझे नहीं लगता कि नरेंद्र मोदी की सरकार किसान विरोधी है और बड़े कॉरपोरेट्स के हाथों में खेल रही है। दोनों पक्षों को जल्द से जल्द बातचीत शुरू कर देनी चाहिए और वर्तमान गतिरोध को दूर करना चाहिए। किसान हमारे अन्नदाता हैं और वे देश को ताकत देते हैं, जैसा कि इस साल देखने को मिला जब कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते सारी औद्योगिक गतिविधियां ठप्प पड़ गई थीं। भारत में एक भी शख्स की मौत भूख से नहीं हुई, और न ही खाने और आवश्यक वस्तुओं की कोई कमी देखने को मिली, जैसा कि लॉकडाउन की घोषणा पर आशंका व्यक्त की गई थी। इसके लिए देश के किसानों को सलाम है।
अंत में मैं पुलिसकर्मियों को भी सल्यूट करना चाहता हूं जो बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं। वे किसानों के ही बेटे हैं। पथराव, आगजनी और हिंसक झड़पों के बावजूद हमारे पुलिसकर्मियों ने कमाल का संयम दिखाया। किसानों की तरह पुलिसवालों को भी कड़ाके की ठंड लगती है, और उन्हें लंबे समय तक ड्यूटी करनी पड़ती है, ईंट-पत्थरों का सामना करना पड़ता है। उनके भी परिवार हैं, बाल-बच्चे हैं। एक तरफ तो उन्हें आदेश हैं कि हमले कर रहे प्रदर्शनकारियों को रोकना है, दूसरी तरफ उन पर बंदिश है कि किसी तरह का बल प्रयोग नहीं करना है। हमें अपने किसानों और पुलिसकर्मियों, दोनों के लिए पूरी सहानुभूति होनी चाहिए। हमें उम्मीद है कि जल्द से जल्द एक शांतिपूर्ण समाधान निकलेगा।
Talks between farmers and Centre must begin at the earliest
With more than 50,000 farmers assembled at the Haryana-Delhi border, and many more farmers on their way from Punjab, UP and Haryana to the national capital, the situation has now become tense. Delhi Police has offered Burari ground to farmers for staging their sit-in and all arrangements have been made, but some sections of farmers are insisting on marching towards Ramlila Maidan in central Delhi. Tractors of farmers who have reached Burari ground are being sanitized by Delhi Police to prevent outbreak of Covid-19 pandemic among farmers.
On Friday, there were clashes between police and farmers at Delhi’s Singhu border and police had to use mild lathi charge, tear gas and water cannons to stop farmers from advancing. At Tikri border, on Delhi-Bahadurgarh highway, farmers clashed with police and there was lathi charge and tear gas shells were used. There were massive traffic jams on Delhi-Gurugram highway, Peeragarhi, Mukarba Chowk and Dhaula Kuan as farmers insisted on moving towards central Delhi.
The only way out of the present impasse is immediate start of negotiations between the Centre and farmers’ representatives. If Defence Minister Rajnath Singh, one of the proponents of farmers’ interests, takes the initiative for talks, leaders of farmers’ organization may trust him. No one wants police to fire water cannons and resort to lathi charge on farmers in Delhi’s cold winter. If the government manages to persuade farmer leaders, a way out can be found. Neither the government, nor the farmers’ leaders should insist on remaining adamant, in the national interest.
The farmers have two main demands, or if we can say, two main points for apprehension. One, the new farm laws do not guarantee Minimum Support Prices for them, and Two, if the new laws are enforced, the agriculture ‘mandis’ (markets) will be abolished and farmers will be fully dependent on the whims and fancies of big corporates.
The farmers are apprehensive about abolition of MSPs because it is a fact that in many states, farmers do not even get the minimum support prices fixed by the Centre. They are forced to sell their produce at Rs 800 per quintal, even if the government fixes the MSP at Rs 1800. Farmers complain that they do not get MSPs for paddy, maize, mustard and some other crops. Several suggestions have been made in this regard, particularly the ‘Bhaavaantar’ scheme of Madhya Pradesh government, where the state government compensates for the difference between MSP and the price at which produce is being sold by farmers. Farmers’ leaders say that if this scheme is implemented across the country, farmers will get a lot of relief.
As far as Agriculture Produce Marketing Committees(APMC) ‘mandis’ are concerned, nowhere in the new laws is there any provision for their abolition. The new laws only provide a window for farmers to sell their crops to buyers outside the ‘mandis’ and it is up to the farmers to opt for whichever system that is offering him a better price. The new laws do not provide for abolition of ‘mandis’. They only provide ‘alternate facility’ for farmers to sell their crops. The ‘mandis’ will continue to function, but the misfortune is that those who have misled the farmers have gained an upper hand, while those who were supposed to convince the farmers, failed to do so.
I do not think Narendra Modi’s government is anti-farmer and is playing into the hands of big corporates. Let both sides join the negotiations at the earliest and the present impasse is removed. Farmers are our ‘annadatas’ (providers of food) and they provide the heft and strength to the nation, as was seen this year when the Covid-19 pandemic broke, and all industrial activity came to a standstill. Not a single person in India died of starvation nor was there any shortage of food and essential commodities, as was feared when the lockdown was announced. Hats off to our farmers.
In the end, I also want to salute our policemen who are doing a great job. They are also the sons of farmers, and despite stoning, arson and violent clashes, our policemen practised exemplary restraint. Like farmers too, policemen shiver in cold and they have to do long hours of duty, facing brickbats and stones. They too have their families to look after. On one hand they have to face the full brunt of attacks from protesters, and on the other, they have to practice maximum restraint because of orders from their superiors. We should have full sympathy for both the farmers and our policemen. Let us hope that a peaceful solution will emerge at the earliest.
कैसे नेता और बिचौलिए किसानों को कर रहे हैं गुमराह
केंद्र द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर पंजाब के हजारों आंदोलनकारी किसान गुरुवार को हरियाणा बॉर्डर क्रॉस कर गए और अब दिल्ली बॉर्डर पार करने की कोशिश कर रहे हैं। पंजाब से आए इन किसानों के जत्थे में हरियाणा के किसान भी शामिल हो गए। अंबाला के पास हरियाणा-पंजाब सीमा पर किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने पानी की बौछार (वॉटर कैनन) और आंसू गैस का इस्तेमाल किया लेकिन दिल्ली मार्च कर रहे इन प्रदर्शनकारियों पर पुलिस के इन हल्के बल प्रयोगों का खास असर नहीं हुआ और इन लोगों ने पुलिस की तरफ से लगाए गए तमाम बैरियर्स को ध्वस्त कर दिया। लोहे के बैरिकेड्स, सीमेंट के बैरियर, रेत को बोरियां और ट्रक के टायरों को भी अपने रास्ते से हटाते चले गए।
हरियाणा के भिवानी में शुक्रवार को सड़क हादसे में एक किसान की मौत हो गई। यह किसान प्रदर्शनकारियों के जत्थे के साथ दिल्ली की ओर रहा था तभी तेज रफ्तार ट्रक किसान की ट्रैक्टर ट्रॉली में जा घुसा। किसान की मौके पर ही मौत हो गई। नाराज किसानों ने हाईवे को जाम कर दिया। वे शव को हाईवे पर रखकर विरोध जताने लगे। इन नाराज किसानों को जाम खत्म करने के लिए समझाना पुलिस के लिए बेहद मुश्किल था। दिल्ली में किसानों के लिए अस्थायी जेल बनाने की कोशिश के तहत कई स्टेडियमों को अस्थायी जेलों में बदलने की तैयारी की जा रही है वहीं हरियाणा और यूपी से दिल्ली जानेवाली मेट्रो सेवाओं को रद्द कर दिया गया है।
पंजाब से लेकर हरियाणा और दिल्ली तक लोग किसानों के प्रदर्शन की वजह से जाम में फंसे। पूरी यातायात व्यवस्था चरमरा गई। इतना ही नहीं सड़क पर उतरे किसानों को भी दिक्कत हुई और पुलिस को भी मुसीबत हुई। ये सब हुआ किसानों की नाराजगी को लेकर। किसानों का गुस्सा कानून को लेकर है और उनके अपने कारण और तर्क भी हैं। लेकिन इस नाराजगी को कृषि मंत्रालय के साथ बातचीत कर दूर किया जा सकता था। हालांकि किसानों के गुस्से की वजह कानून को लेकर फैलाई गई गलतफहमियां ज्यादा हैं। सरकार की तरफ से किसानों के नेताओं को 3 दिसंबर को मीटिंग के लिए बुलाया गया है। इस मीटिंग में बातचीत से रास्ता निकल भी सकता है। लेकिन इसी बीच किसानों के दिल्ली मार्च की कॉल दे दी गई। किसानों के सामने सबसे बड़ा मुद्दा न्यूनतम समर्थन मूल्य ( एमएसपी) का है। किसान चाहते हैं कि एमएसपी कानून का हिस्सा बने। सरकार का तर्क ये है कि एमएसपी हमेशा से प्रशासनिक फैसला रहा है और ये कभी कृषि कानून का हिस्सा नहीं रहा।
किसानों की शिकायत है कि मक्का, कपास और दालें एमएसपी से कम दाम पर खरीदी जा रही हैं। सरकार का दावा है कि अगर कोई एमएसपी से कम दाम पर फसल खरीदता है तो कानून के तहत ये अपराध है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने चैलेंज करते हुए कहा कि किसी किसान को एमएसपी से कम दाम मिला तो वे राजनीति छोड़ देंगे। असल में एमएसपी और मंडियों के सारे मु्ददों में ऐसी कोई बात नहीं है जिसका हल बातचीत से नहीं निकल सके। लेकिन इसके लिए सरकार और किसान दोनों की नीयत साफ होनी चाहिए।
मुझे लगता है कि इस मामले में दोनों की नीयत साफ है। फिर आप कहेंगे कि दिक्कत क्या है? दरअसल दिक्कत बिचैलियों की है…बीच में पैसा खाने वालों की है। ये लोग सदियों से किसानों का हक खा रहे हैं।मोदी सरकार इसी दिक्कत को दूर करने की कोशिश कर रही है और किसानों को बिचौलियों से मुक्ति दिलाने के लिए कानून लाई। अब सरकार और किसानों के बीच बिचौलिए आ गए जो ये नहीं चाहते कि मामला खत्म हो। ये बिचौलिए सरकार और किसानों के बीच टकराव देखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि यह कानून वापस लिया जाए जिससे उनके पैसे बनें। इसलिए ये लोग कृषि कानून का पुरजोर विरोध कर रहे हैं और किसानों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। असल में ये लोग ऐसे हालत बनाना चाहते हैं कि किसान सड़कों पर उतरें और पुलिस से टकराव हो ताकि वो कह सकें कि ये सरकार किसानों पर जुल्म कर रही है, किसानों को लाठी मार रही है, आंसू गैस चला रही है और पानी की बौछार कर रही है।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, प्रियंका गांधी, रणदीप सुरजेवाला और कांग्रेस के दूसरे नेताओ के ट्वीट देख लीजिए, उनके बयान सुन लीजिए तो आपको आसानी से पता चल जाएगा कि इस मामले में किस स्तर पर राजनीति हो रही है। ये लोग किसानों के गुस्से को भड़काने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। आंदोलन कर रहे किसानों को समझना चाहिए और उन नेताओं और बिचौलियों की पहचान करनी चाहिए जो अपने फायदे के लिए उनका इस्तेमाल कर रहे हैं।
किसानों और किसान संगठनों को ये बात समझनी चाहिए और बिचौलियों से दूर रहना चाहिए।उन्हें सीधे सरकार से बात करके और टकराव से दूर रह कर सबके भले का रास्ता निकालना चाहिए। वैसे भी यह कोरोना महामारी का वक्त है। इस समय सड़क पर निकलना ठीक नहीं है। कोरोना ऐसी बीमारी है जो एक से हजारों में फैल सकती है। अगर ऐसा हुआ, तो किसानों के परिवारों में दिक्कत आ सकती है।
How politicians, middlemen are misguiding farmers
Thousands of agitating farmers from Punjab crossed Haryana on Thursday and are now trying to enter Delhi demanding repeal of the three farm laws enacted by the Centre. They have been joined by farmers in Haryana. Water cannons, tear gas were used to stop farmers at the Haryana-Punjab border near Ambala, but the protesters removed iron barricades, cement barriers, piles of sandbags and even deflated tyres of trucks lined up to stop the protesters marching towards Delhi.
On Friday, there was commotion in Bhiwani, Haryana, when a speeding truck crashed into a farmer’s tractor trolley killing him on the spot. The farmers laid the victim’s body on the highway in protest. Police had a tough time persuading the farmers to move on. In Delhi, several stadiums are being kept ready to accommodate farmers in temporary jails, while Metro services from Haryana and UP to Delhi have been suspended.
Thousands of motorists, commuters and common citizens in Punjab, Haryana and Delhi were inconvenienced because of disruption of traffic. The farmers may have valid reasons to register their protest against the farm laws, but these can be ironed out through discussions with the Agriculture ministry. The Centre has already invited farmers for talks on December 3, but the farmers’ Delhi march has precipitated matters. The farmers are demanding that minimum support price system must be incorporated in the farm law, but the fact is that, for decades, minimum support pricing system has been part of administrative decisions taken by the Centre. It was never part of any farm law.
The farmers are complaining that maize, cotton and pulses are being purchased from them at prices lower than the MSPs. The Centre has clarified that if anybody purchases farm produces at prices lower than the MSP, it is legally a crime. Haryana chief minister Manohar Lal Khattar has challenged that he would quit politics if any farmer came forward and proved that his produce was bought a prices lower than the MSP. Actually, the issues relating to MSPs and agricultural marketing committees (mandis) are such which can be ironed out through talks, provided that both the government and farmers’ organisations are sincere about their intentions.
I think that the intentions are sincere on both sides, but the problem has been complicated by middlemen who had been milking farmers for centuries. The Modi government wants to eliminate middlemen so that farmers can get fair remuneration for their produce. It was with this intention that the government had brought the new farm laws, but middlemen are trying to muddy waters. They are strongly opposing the new laws and are therefore trying to misguide and mislead the farmers. Middlemen want that the new laws be withdrawn and they would be happy to see farmers being lathicharged and teargassed so that they can portray them as victims.
One can easily realize the amount of politicization that is going on, if one reads the twitter handles of Punjab CM Capt Amarinder Singh, and Congress leaders like Priyanka Gandhi and Randeep Surjewala. They are trying their best to fan anger among farmers. The agitating farmers must realize who are the politicians and middlemen who are trying to misuse them for their own benefit.
Farmers’ organisation should avoid falling into the trap of middlemen, and start direct talks with the Centre for the benefit of all stakeholders. Already Delhi is going through the third big wave of Covid pandemic and the farmers should avoid coming out on the streets for their own safety. The virus can infect thousands even if a handful of people are infected, and this may really cause worries to the families of farmers waiting for them to return home.
दिल्ली के दंगे ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान देश को बदनाम करने की साजिश थी
दिल्ली की एक सेशन कोर्ट ने दिल्ली दंगों की साजिश रचने के मामले में शरजील इमाम, उमर खालिद और फैजान खान के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा दायर पूरक आरोप पत्र (सप्लिमेंट्री चार्जशीट) पर संज्ञान लिया है। इस साल फरवरी महीने में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे हुए थे। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने कहा कि तीन आरोपियों के खिलाफ ऐक्शन के लिए आरोप पत्र में पर्याप्त चीजें थी। इन सभी को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया गया। इन लोगों पर आर्म्स ऐक्ट और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने (प्रिवेंशन ऑफ डैमेज टू पब्लिक प्रॉपर्टीज ऐक्ट) के तहत भी मामला दर्ज किया गया है।
जिन अपराधों के तहत अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने इस मामले में संज्ञान लिया है, उनमें गैरकानूनी गतिविधियां, आतंकवादी गतिविधियां, आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन जुटाना, गैरकानूनी तरीके से भीड़ जुटाना, दंगा, अपराधियों को शरण देना, पूजा स्थल को नष्ट करना, हत्या, हत्या का प्रयास, घरों में तोड़फोड़, जालसाजी, डकैती और धोखाधड़ी के मामले शामिल हैं। इस मामले में अगली सुनवाई अब 22 दिसंबर को होगी।
200 पन्नों की सप्लिमेंट्री चार्जशीट में दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया है कि जेएनयू छात्र नेता उमर खालिद ने उत्तरी-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की रिमोट कंट्रोलिंग की थी। इन दंगों में 53 लोग मारे गए। आरोप पत्र में कहा गया है कि उमर खालिद ने भारत की छवि खराब करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान हिंसा की साजिश रची। पुलिस ने आरोप लगाया है कि उमर खालिद ने चांद बाग और जाफराबाद जैसे हॉटस्पॉट को चुना जहां आसानी से दंगे भड़काए जा सकते थे। चार्जशीट में कहा गया है कि उमर खालिद ने अपने समर्थकों की एक बैठक में दंगों की साजिश की पूरी रूप-रेखा बताई थी।
दिल्ली दंगों की इस साजिश को समझने के लिए कुछ तारीखों को याद रखना जरूरी है। पहली तारीख है 4 दिसंबर 2019, इसी दिन से दिल्ली में आग लगाने की साजिश शुरू हो गई थी। इसकी वजह ये थी कि 4 दिसंबर 2019 को ही कैबिनेट ने सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल को संसद में पेश करने की सहमति दी थी। इसके बाद शरजील इमाम ने उमर खालिद के साथ मिलकर दिल्ली, अलीगढ़ और अन्य शहरों में इसका विरोध करने के लिए मुस्लिम छात्रों को एकजुट करना शुरू कर दिया।
शरजील इमाम ने 5-6 दिसंबर को जेएनयू के मुस्लिम स्टूडेंट्स का एक वॉट्सऐप ग्रुप बनाया। इसका नाम उसने MSJ (मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑफ जेएनयू) रखा। इस ग्रुप में 70 मेंबर्स थे। पुलिस का कहना है कि ये ग्रुप बनाया भले ही शरजील ने था लेकिन इसका आइडिया उमर खालिद का था। शरजील इमाम सांप्रदायिक जहर से भरे हुए भाषण देने में माहिर है और इसीलिए उमर खालिद ने उसे मुस्लिम छात्रों को संबोधित करने के लिए आगे किया।
पुलिस का कहना है कि इस वॉट्सऐप ग्रुप की चैट को अच्छी तरह स्टडी करने से यह साफ हो जाता है कि दिल्ली में चक्का जाम करने की स्ट्रैटिजी शरजील इमाम की थी। इसके बाद दिल्ली में चक्का जाम से शुरू हुआ हंगामा कई जिंदगियों और संपत्तियों को बर्बाद करके दंगों पर जाकर खत्म हुआ। चूंकि 9 नंबवर को राम मंदिर के मुद्दे पर फैसला आया था, इसलिए 6 दिसंबर 2019 को ही दिल्ली की अलग-अलग मस्जिदों में बाबरी मस्जिद के नाम पर पैंपलेट्स बांटे गए। शरजील इमाम ने JNU के बाद जामिया के छात्रों का वॉट्सऐप ग्रुप बनाया और इस ग्रुप का नाम SOJ (स्टूडेंट्स ऑफ जामिया मिल्लिया) रखा गया। शरजील इमाम के कहने पर दिल्ली की जामा मस्जिद और निजामुद्दीन इलाकों में भी भड़काऊ पोस्टर्स बांटे गए थे।
अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दोनों ग्रुप्स में हुई बातचीत और मुसलमानों को बांटे गए पैंम्फलेट्स के स्क्रीनशॉट्स दिखाए थे। इन वॉट्सऐप चैट्स में कहां कितने पर्चे बांटे गए हैं और कितना खर्च हुआ जैसी चीजें डिस्कस की जा रही थीं। 13 दिसंबर को जामिया में CAA के खिलाफ छात्रों के विरोध प्रदर्शन का आयोजन इसी ग्रुप के द्वारा किया गया था। इस प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में लगभग 20 पुलिसवाले घायल हो गए थे। चार्जशीट में शरजील इमाम द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषण की पूरी ट्रांसक्रिप्ट मौजूद है। अपने इस भाषण में उसने दिल्ली में ‘चक्का जाम’ करने और फल, दूध एवं सब्जियों की सप्लाई बंद करने की धमकी दी थी।
चार्जशीट के मुताबिक, शरजील और उमर खालिद ने इसी के बाद CAA विरोधी प्रदर्शनों की आड़ में बेहद ही व्यस्त मथुरा रोड को ब्लॉक करने की योजना बनाई। 15 दिसंबर को एक बस में आग लगा दी गई और जामिया के छात्रों ने जमकर पथराव किया। पुलिस का कहना है कि शरजील इमाम ही इन विरोध प्रदर्शनों के पीछे का मास्टरमाइंड था। चार्जशीट के मुताबिक, शरजील ने जामिया जाकर स्टूडेंट्स को CAA के नाम पर भड़काया जिसके बाद दंगे जैसे हालात बन गए। इन घटनाओं में 35 पुलिसवालों समेत कई लोग घायल हुए, 2 पुलिस बूथ को जला दिया गया और पास में स्थित न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में हिंसा हुई।
CAA विरोधी प्रदर्शनों को और व्यापक बनाने के लिए शरजील इमाम ने 11 दिसंबर को और फिर जनवरी 2020 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) का दौरा किया। AMU में उसने छात्रों को संबोधित करते हुए राष्ट्र विरोधी और सांप्रदायिक बातें कहीं। 16 जनवरी को AMU में अपने भाषण में शरजील ने असम को देश के बाकी हिस्सों से काटकर भारत को अलग करने की धमकी दी थी। इंडिया टीवी के पास उस भड़काऊ भाषण का टेप है।
पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक, 15 दिसंबर 2019 को ही शाहीन बाग में धरने की प्लानिंग शुरू हुई थी। शरजील इमाम ने जामिया के अरशद वारसी के साथ मिलकर शाहीन बाग में धरने का खाका खींचा। रोड ब्लॉक करने की प्लानिंग में AMU के छात्र भी मौजूद थे। ये लोग अल हबीबी मस्जिद के पास धरने पर बैठ गए और पूरे शाहीन बाग और आसपास के इलाकों में CAA-NRC के लेकर भड़काने वाले पैंफलेट्स बांटे, मस्जिदों के जरिए अनाउंसमेंट करवाया। शुरुआत में शाहीन बाग के लोग इस तरह के धरने-प्रदर्शन के खिलाफ थे, इसलिए आयोजकों को 300 बांग्लादेशी मुस्लिम महिलाओं को ‘किराए’ पर लाकर धरने पर बैठाना पड़ा।
दिल्ली पुलिस ने एक वॉट्सऐप चैट पेश किया है जिसमें शरजील ने अपने भाई मुजम्मिल से कहा था कि शाहीन बाग के धरने का मास्टरमाइंड वह खुद है। दिल्ली पुलिस के मुताबिक, उमर खालिद ने ही शरजील इमाम से कई मस्जिदों और उनके मौलानाओं से संपर्क करने को कहा था ताकि CAA के खिलाफ प्रदर्शन के लिए और ज्यादा लोगों को लामबंद किया जा सके। चार्जशीट के मुताबिक, शरजील इमाम और उमर खालिद ने दिल्ली यूनिवर्सिटी और AMU में पढ़ने वाले मुस्लिम छात्रों के वॉट्सऐप ग्रुप भी बनाए। शाहीन बाग में जैसे ही महिलाओं का धरना शुरू हुआ, शरजील और उमर खालिद वहां से हट गए, और फिर जामिया में छात्रों द्वारा उपद्रव में तेजी लाने के लिए 10 जनवरी को JNU में एक मीटिंग हुई। जामिया की छात्रा आफरीन के साथ हुई बातचीत में शरजील ने हांगकांग में हो रहे प्रदर्शनों की स्ट्रैटिजी पर सैकड़ों की संख्या में लोगों को धरना स्थलों पर लाने की बात कही।
व्हाट्सएप चैट्स के जरिए दिल्ली पुलिस ने यह साबित करने की कोशिश की है कि शरजील इमाम और उनके सहयोगियों ने ही कांग्रेस सांसद शशि थरूर की जेएनयू विजिट के दौरान ‘नारा-ए-तकबीर अल्लाह-हू-अकबर’ और ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ के नारे लगाए थे। शरजील ने 12 जनवरी को अपने फेसबुक पेज पर भी लिखा था कि शशि थरूर JNU जाने वाले हैं, इसलिए उनके सामने नारेबाजी की जाए। पिछले साल 28 दिसंबर को दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप (DPSG) और जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी नाम से 2 वॉट्सऐप ग्रुप्स बनाए गए थे। उमर खालिद DPSG ग्रुप का हिस्सा था, जिसमें उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा को अंजाम देने की पूरी प्लानिंग की गई थी। पुलिस ने अपने आरोपों के समर्थन में उमर खालिद के मोबाइल फोन से डिजिटल सबूत इकट्ठा किए हैं।
उमर खालिद दिल्ली दंगों की साजिश रची थी, लेकिन साथ ही उसने खुद को इससे दूर रखने की प्लानिंग भी की थी ताकि वह साबित कर सके कि दंगों से उसका कोई लेना-देना नहीं है। इसके लिए उसने 24 फरवरी को नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली मे दंगे भड़कने से एक दिन पहले ही पटना के लिए फ्लाइट बुक की थी। पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक, यह उमर खालिद के लिए एक ‘Paid get Away’ जैसा था। हालांकि उसकी यह तरकीब काम नहीं आई, क्योंकि पुलिस ने उमर खालिद के खिलाफ ऐसे मजबूत डिजिटल सबूत जुटाए हैं, जिनसे पता चलता है कि दिल्ली में दंगों की साजिश रचने में उसका अहम रोल था।
पुलिस का कहना है कि दंगों से ठीक एक दिन पहले 23 फरवरी 2020 को उत्तरी दिल्ली के जहांगीरपुरी की कुछ महिलाएं उत्तरी-पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद और सीलमपुर पहुंचीं, CAA विरोधी प्रदर्शन किया, पुलिस से भिड़ीं और उनके ऊपर मिर्च पाउडर फेंका। तब तक दिल्ली में कम से कम 25 प्रोटेस्ट साइट्स तैयार हो चुकी थीं। लोगों को जुटाने के लिए शरजील इमाम 15 जनवरी को उत्तरी-पूर्वी दिल्ली के खुरैजी गया। वह एक दूसरे वॉट्सऐप ग्रुप के साथ कॉन्टैक्ट करके एक और प्रोटेस्ट साइट तैयार करने की कोशिश कर रहा था।
11 फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा की तारीखों की आधिकारिक तौर पर घोषणा कर दी गई। इसके बाद षड्यंत्रकारियों ने तय किया कि जब 24 और 25 फरवरी को ट्रंप भारत की धरती पर होंगे, तभी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा भड़काई जाएगी। पुलिस के मुताबिक, उमर खालिद ने ही दिल्ली दंगों की प्लानिंग की थी। अलग-अलग वॉट्सऐप ग्रुप के मेंबर्स हाइपरऐक्टिव हो गए और चक्का जाम के साथ-साथ पुलिस के साथ टकराव की तैयारी करने लगे।
चार्जशीट की सारी डिटेल देखने के बाद ये तो साफ है कि तीन तलाक, राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, CAA और NRC जैसे मुद्दों का इस्तेमाल बहुत ही चतुराई और चालाकी से लोगों को भड़काने में किया गया। पूरी दुनिया में भारत को बदनाम करने के लिए दिल्ली में दंगे कराने की साजिश रची गई। पुलिस के पास इस बात के सबूत हैं कि जब डोनाल्ड ट्रंप भारत में मौजूद थे तभी प्लानिंग के साथ दंगे कराए गए क्योंकि उस समय पूरी दुनिया की निगाहें हिंदुस्तान पर थीं, इंटरनेशनल मीडिया यहां मौजूद था।
शाहीन बाग का धरना हो, जाफराबाद का प्रोटेस्ट हो, अलीगढ़ के छात्रों का विरोध हो, या भारत के कुछ अन्य शहरों में हो रहे प्रदर्शन हों, सभी एक ही तरह की कहानी कहते हैं। इन सबका एकमात्र उद्देश्य यही था कि दुनिया को ऐसा दिखाया जाए कि भारत में मुसलमानों पर जुल्म हो रहा है और उनकी आवाज दबाई जा रही है। इसके लिए महिलाओं को आगे किया गया, बुजुर्गों को सर्दी में सड़क पर बैठाया गया, जगह-जगह आग लगाई गई, पुलिस पर पथराव किया गया और ‘किराए’ के प्रदर्शनकारी लाए गए।
दिल्ली पुलिस के लिए कोर्ट में अपने इन आरोपों को साबित करना और ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का पर्दाफाश करना एक बड़ी चुनौती होगी। इसका मकसद देश को तोड़ने की साजिश रचने वालों को सजा दिलाने और उन्हें उनके अंजाम तक पहुंचाने का होना चाहिए।
Delhi riots: Conspiracy to defame India during Trump visit
A sessions court in Delhi on Tuesday took cognizance of the supplementary charge sheet filed by Delhi Police against Sharjeel Imam, Umar Khalid and Faizan Khan in connection with the Delhi riots conspiracy case. The communal riots took place in north-east Delhi in February this year. Additional Sessions Judge Amitabh Rawat said there was sufficient material in the charge sheet to proceed against the three accused, all arrested under Unlawful Activities Prevention Act. They have also been booked under Arms Act and Prevention of Damage to Public Properties Act.
The offences under which the Additional Sessions Judge took cognizance include unlawful activities, terrorist act, raising funds for terrorist act, unlawful assembly, rioting, harbouring offenders, destruction of place of worship, murder, attempt to murder, wrongful restraint, house breaking, forgery, dacoity and cheating. Further hearing will take place on December 22.
In its 200-page supplementary charge sheet, Delhi Police has alleged that JNU student leader Umar Khalid “had remotely controlled” the riots in N.E. Delhi that killed 53 people. It was alleged that he orchestrated the violence to coincide with the India visit of US President Donald Trump in order to malign India’s image. The police has alleged that Umar Khalid selected the hot spots like Chand Bagh and Jaffrabad from where “riots would be precipitated”. The charge sheet says, Khalid had outlined the conspiracy on riots at a meeting of his supporters.
In order to understand the extent of this deep rooted conspiracy, one had to remember certain dates. On December 4, 2019, as Parliament approved the Citizenship Amendment Bill, the conspiracy was put into action. Sharjeel Imam and Umar Khalid started mobilizing Muslims students in Delhi, Aligarh and other cities to oppose the law. On December 5-6, Sharjeel created a WhatsApp group named MSJ (Muslim students of JNU). It has 70 members. Though Sharjeel created the group, it was Umar Khalid’s idea, says police. Sharjeel was a fiery orator who could rouse communal frenzy and it was Khalid who encouraged him to address meetings of Muslim students.
After going through the chats on this WhatsApp group, police says, it was Sharjeel Imam who had planned the ‘chakka jam’ stir in Delhi. This later ended up with communal violence in which lives and properties were lost. The Ayodhya dispute judgement had come from Supreme Court on November 9 and on December 6 (Babri demolition day) pamphlets were distributed in Muslim localities to incite violence. Sharjeel Imam set up another WhatsApp group, this time named SOJ(Students of Jamia Millia). It was at his instance that provocative pamphlets were distributed near Jama Masjid of Old Delhi and Nizamuddin.
In my prime time show Aaj Ki Baat, we showed screenshots of chats that took place in both groups and of pamphlets that were distributed among Muslims. Number of pamphlets printed and distributed, and the costs were discussed in these chats. On December 13, students’ protest against CAA was organized in Jamia by this group, and in the violence nearly 20 policemen were injured. The charge sheet contains the full transcript of the inflammatory speech by Sharjeel Imam, in which he threatened ‘chakka jam’ in Delhi and stopping of supplies of fruits, milk and vegetables to the capital.
According to the charge sheet, Sharjeel and Umar Khalid now planned to block the arterial Mathura Road in the guise of anti-CAA protests. On December 15, a bus was set on fire and there was stone pelting by Jamia students. Police says, it was Sharjeel Imam who was the mastermind behind these protests. Two police booths were set on fire, nearly 35 policemen were injured and there was violence in nearby New Friends Colony.
In order to spread anti-CAA protests, Sharjeel Imam visited Aligarh Muslim University on December 11 and in January, where he gave anti-national and communal speeches to students. It was on January 16 that Sharjeel in his speech at AMU threatened to dismember India by cutting off Assam from rest of the country. India TV has the tape of that inflammatory speech.
On December 15, planning began for Muslim women to stage a sit-in at Shaheen Bagh. Sharjeel Imam and Arshad Warsi of Jamia jointly planned the sit-in, and AMU student leaders took part in the meeting where it was planned to block traffic at Shaheen Bagh. Anti-CAA/NRC pamphlets were distributed in Shaheen Bagh and surrounding localities and announcements were made from loudspeakers at mosques. In the beginning, the residents of Shaheen Bagh opposed the sit-in, and the organizers had to bring nearly 300 Bangladeshi Muslim women “on hire” to stage the sit-in.
Delhi Police has produced WhatsApp chat in which Sharjeel told his brother Muzammil that he was the mastermind behind Shaheen Bagh sit-in. According to Delhi Police, it was Umar Khalid who asked Sharjeel to get in touch with maulanas of different mosques in order to mobilize more people for anti-CAA protests. The charge sheet says, Sharjeel and Umar Khalid also created WhatsApp groups of Muslim students from Delhi University and AMU. As the women’s dharna at Shaheen Bagh continued, Sharjeel and Khalid left the site, and on January 10, there was a meeting in JNU to intensify students’ stir in Jamia. In chats with Jamia student Afreen, Sharjeel spoke of bringing people in hundreds to the protest sites on the lines of Hong Kong demonstrations.
Through WhatsApp chats, Delhi Police has sought to prove that it was Sharjeel Imam and his associates who chanted ‘Naara-e-Takbir Allahu Akbar’ and ‘La Ila Il Illaha’ during Congress MP Shashi Tharoor’s visit to JNU. On January 12, Sharjeel wrote on Facebook asking his supporters to shout slogans during Tharoor’s visit. On December 28 last year, two WhatsApp groups, Delhi Protest Support Group(DPSG) and Jamia Coordination Committee were created. Umar Khalid was part of DPSG group, where the planning to carry out violence in North-East Delhi was put in motion. Police have collected digital evidences from Umar Khalid’s cellphone to support its charge.
Umar Khalid was part of planning of Delhi violence, but also shrewdly kept himself aloof from the activity. On February 24 this year, when communal violence started in north-east Delhi, Umar Khalid in order to create a strong alibi booked his flight ticket for Patna a day before. The charge sheet says, this seems to be “a paid getaway” for Umar Khalid. His alibi failed to conceal strong digital evidences which establish that it was he who orchestrated communal violence in Delhi.
According to police, on February 23, a day before the riots, some Muslim women from Jahangirpuri in North Delhi reached Jaffrabad and Seelampur, in North-East Delhi, staged anti-CAA protests, and threw chilli powder at policemen. By then, there were 25 different protest sites across the capital. In order to mobilize people, Sharjeel Imam visited Khureji in north-east Delhi on January 15. He was trying to create another protest site by keeping in touch with another WhatsApp group.
On February 11, dates of India visit of US President Donald Trump were officially announced, and the conspirators now planned to foment communal violence on February 24 and 25, when Trump would be on Indian soil. It was Umar Khalid who, according to Delhi Police, prepared the planning for Delhi riots. Members of different WhatsApp groups became hyperactive, and protests and disturbances were planned.
After going through the detailed charge sheet, I have come to the conclusion that the conspirators used volatile issues like abolition of Triple Talaq, Citizenship Amendment Act, NRC and the historic Supreme Court verdict on Ayodhya dispute, to prepare a cocktail that could create communal conflagration in the national capital, and that too, at a time, when members of the US media corps will be present on Indian soil with their President.
They had a one-point agenda: to embarrass Prime Minister Narendra Modi in the eyes of world leaders. The Shaheen Bagh dharna, Jaffrabad protest, Aligarh students’ protest, protests in some other cities of India, all tell a single tale. The only objective was to defame India before the world by projecting the lie that Muslims are being subjected to atrocities and their voice is being suppressed. Muslim women were brought to the forefront, old, aged and infirm women were brought to protest sites during winter, buses and vehicles were stoned and set on fire, and demonstrators were brought ‘on hire’.
It will be a big challenge for Delhi Police to prove its charges in court and expose the ‘tukde tukde’ gang. The objective must be to punish those conspiring to divide this nation and bring this sordid episode to a logical conclusion.
सही वक्त पर उठाए गए मोदी के कदम से कोरोना से यूं बचीं लाखों जानें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को यह साफ कर दिया कि सरकार कोविड-19 का टीकाकरण कब होगा और कौन-सा टीका लगाया जाएगा, इसके मुद्दे पर वैज्ञानिकों और नियामकों की सलाह का पालन करेगी। अभी तक एक भी वैक्सीन कैंडिडेट को फाइनलाइज किया नहीं गया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि लोगों के टीकाकरण में सुरक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण होगी जितनी कि इसकी रफ्तार।
मुख्यमंत्रियों के साथ हुई वीडियो मीटिंग में पीएम मोदी ने कहा, हमारी प्राथमिकता यही रहेगी कि टीका हर भारतीय तक पहुंचे। उन्होंने कहा, नेता नहीं बल्कि वैज्ञानिक और नियामक ही टीके के चयन और वितरण के लिए समय सीमा तय करेंगे। उन्होंने कहा कि कुछ लोग टीके को लेकर सियासत करने की कोशिश कर रहे हैं, हालांकि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया।
गौरतलब है कि राहुल गांधी ने अपने हालिया ट्वीट में कहा था, ‘पीएम मोदी को देश को बताना चाहिए: 1. सभी कोविड वैक्सीन कैंडिडेट्स में भारत सरकार किसे और क्यों चुनेगी? 2. वैक्सीन सबसे पहले किसे मिलेगी और इसके वितरण की रणनीति क्या होगी? 3. मुफ्त टीकाकारण सुनिश्चित करने के लिए क्या पीएमकेयर्स फंड का इस्तेमाल किया जाएगा? 4. कब तक सभी भारतीयों को टीका लग जाएगा?’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘भारत सरकार टीके की तैयारियों को लेकर हर बात पर बारीकी से नजर रखे हुए है, हम सबके संपर्क में भी हैं। और अभी ये तय नहीं है कि वैक्सीन की एक डोज होगी, दो डोज होंगी या तीन डोज होंगी। ये भी तय नहीं है कि इसकी कीमत कितनी होगी, उसकी कीमत कितनी होगी, ये कैसी होगी। यानि अभी भी इन सारी चीजों के सवालों के जवाब हमारे पास नहीं हैं, क्योंकि जो इसके बनाने वाले हैं, दुनिया में जिस प्रकार के कॉर्पोरेट वर्ल्ड हैं, उनका भी कम्पिटिशन है। दुनिया के देशों के भी अपने-अपने डिप्लोमैटिक इंटेरेस्ट होते हैं। WHO से भी हमें इंतजार करना पड़ता है तो हमें इन चीजों पर वैश्विक सन्दर्भ में ही आगे बढ़ना पड़ेगा। हम इंडियन डिवेलपर्स और मैन्युफैक्चरर्स के साथ भी संपर्क में हैं। इसके अलावा ग्लोबर रेग्युलेटर्स, अन्य देशों की गवर्नमेंट्स, मल्टिलैटरल इंस्टिट्यूशंस और साथ ही अंतरराष्ट्रीय कंपनियों, सभी के साथ जितना संपर्क बढ़ सके, यानी रियल टाइम कम्यूनिकेशन हो, इसके लिए पूरा प्रयास, एक व्यवस्था बनी हुई है।’
पीएम ने कहा, ‘कोरोना के खिलाफ अपनी लड़ाई में हमने शुरुआत से ही एक-एक देशवासी का जीवन बचाने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। अब वैक्सीन आने के बाद भी हमारी प्राथमिकता यही होगी कि सभी तक कोरोना की वैक्सीन पहुंचे, इसमें तो कोई विवाद हो ही नहीं सकता है। लेकिन कोरोना की वैक्सीन से जुड़ा भारत का अभियान, अपने हर नागरिक के लिए एक प्रकार से नेशनल कमिटमेंट की तरह है। इतना बड़ा टीकाकरण अभियान स्मूद हो, सिस्टमैटिक हो, और सस्टेंड हो, ये लंबा चलने वाला है, इसके लिए हम सभी को, हर सरकार को, हर संगठन को एकजुट हो करके, कोऑर्डिनेशन के साथ एक टीम के रूप में काम करना ही पड़ेगा।’
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘वैक्सीन को लेकर भारत के पास जैसा अनुभव है, वो दुनिया के बड़े-बड़े देशों को नहीं है। हमारे लिए जितनी ज़रूरी रफ्तार है, उतनी ही जरूरी सुरक्षा भी है। भारत जो भी वैक्सीन अपने नागरिकों को देगा, वो हर वैज्ञानिक कसौटी पर खरी होगी। जहां तक वैक्सीन के डिस्ट्रीब्यूशन की बात है तो उसकी तैयारी भी आप सभी राज्यों के साथ मिलकर की जा रही है। वैक्सीन प्राथमिकता के आधार पर किसे लगाई जाएगी, ये राज्यों के साथ मिल करके एक मोटा-मोटा खाका अभी आपके सामने रखा है।’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘लेकिन फिर भी ये निर्णय तो हम सब मिलकर ही करेंगे, हर राज्यों के सुझाव का महत्व इसमें बहुत रहेगा क्योंकि आखिरकर उनको अंदाज है कि उनके राज्य में कैसे होगा, हमें कितने अतिरिक्त कोल्ड चेन स्टोरेज की जरूरत रहेगी। केंद्र सरकार ने राज्यों से कुछ समय पहले आग्रह किया था कि स्टेट लेवल पर एक स्टीयरिंग कमिटी एवं स्टेट और डिस्ट्रिक्ट लेवल पर टास्क फोर्स का और मैं तो चाहूंगा कि ब्लॉक लेवल तक हम जितना जल्दी व्यवस्थाएं खड़ी करेंगे और किसी न किसी एक व्यक्ति को काम देना पड़ेगा।’
वैक्सीन की कीमत के सवाल पर पीएम मोदी ने कहा, ‘कौन-सी वैक्सीन कितनी कीमत में आएगी, ये भी तय नहीं है। मूल भारतीय वैक्सीन अभी दो मैदान में आगे है। लेकिन बाहर के साथ मिल करके हमारे लोग काम कर रहे हैं। दुनिया में जो वैक्सीन बन रही हैं वे भी मैन्युफैक्चरिंग के लिए भारत के लोगों के साथ ही बात कर रहे हैं, कंपनियों के साथ। लेकिन इन सारे विषयों में हम जानते हैं कि 20 साल से मान लीजिए कोई दवाई पॉप्युलर हुई है, 20 साल से लाखों लोग उसका उपयोग कर रहे हैं। लेकिन कुछ लोगों को उसका रिएक्शन आता है, आज भी आता है, 20 साल के बाद भी आता है, तो ऐसा इसमें भी संभव है। निर्णय वैज्ञानिक तराजू पर ही तोला जाना चाहिए। निर्णय उसकी जो अथॉरिटी हैं उनकी ही सर्टिफाइड व्यवस्था से होना चाहिए।’
प्रधानमंत्री ने साथ ही मुख्यमंत्रियों को ढिलाई न बरतने के लिए आगाह करते हुए कहा, ‘मैंने पहले ही कहा वैक्सीन अपनी जगह पर है, वो काम होना है, करेंगे। लेकिन कोरोना की लड़ाई जरा भी ढीली नहीं पड़नी चाहिए, थोड़ी सी भी ढिलास नहीं आनी चाहिए। यही मेरी आप सबसे रिक्वेस्ट है।’
अभी तक भारत ने कोरोना के प्रकोप का मुकाबला कैसे किया, इसकी पूरी तस्वीर रखते हुए मोदी ने कहा, ‘पहले चरण में बड़ा डर था, खौफ था, किसी को ये समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो जाएगा और पूरी दुनिया का ये हाल था। हर कोई पैनिक में था और उसी हिसाब से हर कोई रिएक्ट कर रहा था। हमने देखा प्रांरभ में आत्महत्या तक की घटनाएं घटी थीं। पता चला कोरोना हुआ तो आत्महत्या कर ली।’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘इसके बाद धीरे-धीरे दूसरा चरण आया। दूसरे चरण में लोगों के मन में भय के साथ-साथ दूसरों के लिए संदेह भी जुड़ गया। उनको लगने लगा कि इसको कोरोना हो गया मतलब कोई गंभीर मामला है, दूर भागो। एक प्रकार से घर में भी नफरत का माहौल बन गया। और बीमारी की वजह से समाज से कटने का डर लोगों को लगने लगा। इस कारण कोरोना के बाद कई लोग संक्रमण को छिपाने लगे। उनको लगा ये तो बताना नहीं चाहिए, नहीं तो समाज से मैं कट जाऊंगा। अब उसमें से भी धीरे-धीरे समझे लोग, इससे बाहर आए।’
पीएम ने आगे कहा, ‘इसके बाद आया तीसरा चरण। तीसरे चरण में लोग काफी हद तक संभलने लगे। अब संक्रमण को स्वीकारने भी लगे और बताने भी लगे कि मुझे ये तकलीफ है, मैं आइसोलेशन कर रहा हूं, मैं क्वॉरन्टाइन कर रहा हूं, आप भी करिए। यानि एक प्रकार से लोग भी अपने-आप लोगों को समझाने लगे। देखिए, आपने भी देखा होगा कि लोगों में अधिक गंभीरता भी आने लगी, और हमने देखा कि लोग अलर्ट भी होने लगे। और इस तीसरे चरण के बाद हम चौथे चरण में पहुंचे हैं। जब कोरोना से रिकवरी का रेट बढ़ा है तो लोगों को लगता है कि ये वायरस नुकसान नहीं कर रहा है, ये कमजोर हो गया है। बहुत से लोग ये भी सोचने लगे हैं कि अगर बीमार हो भी गए तो ठीक हो ही जाएंगे। इस वजह से लापरवाही का ये स्टेज बहुत व्यापक हो गया है।’
पीएम मोदी ने कहा, ‘इसलिए मैंने हमारे त्योहारों की शुरूआत में ही खासतौर पर राष्ट्र के नाम संदेश दे करके, सबको हाथ जोड़ करके प्रार्थना की थी कि ढिलाई मत बरतिए क्योंकि कोई वैक्सीन नहीं है, दवाई नहीं है हमारे पास। एक ही रास्ता बचा है कि हम हरेक को कैसे अपने-आप बचाएं और हमारी जो गलतियां हुई, वो ही एक खतरा बन गया, थोड़ी ढिलाई आ गई। इस चौथे चरण में लोगों को कोरोना की गंभीरता के प्रति हमें फिर से जागरूक करना ही होगा। हमें फैटेलिटी रेट को एक प्रतिशत से भी नीचे और पॉजिटिविटी रेट को 5 प्रतिशत के दायरे में लाना ही होगा।’
इस बात में कोई शक नहीं कि मोदी की लीडरशिप ने लाखों जिंदगियों को कोरोना वायरस के प्रकोप से बचाया है। उन्होंने समय रहते ऐक्शन लिया, लॉकडाउन लगाया और सारी दुनिया ने इसका लोहा माना। कोरोना वायरस की वैक्सीन लोगों तक पहुंचाने के सवाल पर नेताओं को राजनीति नहीं करनी चाहिए। यह एक ऐसा मुद्दा है जो राष्ट्रहित से जुड़ा है।
सभी मुख्यमंत्री चाहते हैं कि वैक्सीन प्रत्येक देशवासी तक जल्दी से जल्दी और कम से कम खर्चे में पहुंचे। लेकिन राहुल गांधी की आदत थोड़ी अलग है। वह अपनी मोदी विरोध की आदत से बाज नहीं आए और इस मामले में भी राजनीति पर उतर आए। प्रधानमंत्री ने उनका नाम लिए बिना ही सारे सवालों के जवाब दे दिए। पीएम मोदी ने इस दौरान एक शेर कहा जिसका जिक्र मैं करना चाहूंगा, ‘हमारी किश्ती भी वहां डूबी जहां पानी कम था।’ उन्होंने कहा कि ये स्थिति हमें नहीं आने देनी है।
मैं इस बात को भी समझता हूं कि अधिकांश लोग घरों में बैठे-बैठे, अकेले रहते-रहते थक गए हैं, लेकिन हमें थोड़ी सावधानी और हिम्मत से काम लेने की जरूरत है। वैक्सीन के आने के बाद ही लोग खुलेआम घूम सकते हैं।
Corona pandemic: How Modi’s timely action saved millions of lives
Prime Minister Narendra Modi on Tuesday made it clear that the government will follow the advice of scientists and regulators on the issue of timing and choice of Covid-19 vaccine, and, as of now, no single vaccine candidate has been finalized. He also clarified that safety will be as crucial as speed in vaccinating people.
In his closing remarks at the video meeting with chief ministers, Modi said, the priority will be to ensure that the vaccine reaches every Indian. He said, scientists and regulators, not politicians, will decide the time frame for vaccine selection and distribution. He said, some people were trying to politicize the vaccine issue, but did not name any body.
It may be recalled that Congress leader Rahul Gandhi in his recent tweet had said: “The PM must tell the nation 1. Of all the Covid vaccine candidates, which one will the GOI choose and why? 2. Who will get the vaccine first and what will be the distribution strategy 3. Will PM Cares Fund be used to ensure free vaccination 4. By when will all Indians be vaccinated?”
The Prime Minister in his remarks said: “The government is closely monitoring the developments and we are in touch with all. It is still not decided whether it will be a single dose, a double dose or a triple dose vaccine. The prices are yet to be decided. I do not have answers to all these questions at this moment, because there is competition in the corporate world of vaccine manufacturers. Many countries have their own diplomatic interests. We have to wait for WHO to move ahead in the global context. We are also in touch with Indian developers and manufacturers. We have a system in place for real time communication with global regulators, other governments, multilateral institutions, and international companies.
“Since the beginning, our topmost priority is for saving the lives of every Indian. When the vaccine comes, our priority shall be to provide the vaccine to every Indian. There can be no dispute about this and it is our national commitment. We would like the massive vaccination programme to be smooth, systematic and sustained, because it will take a long time to complete. All of us will have to work in coordination like a team.”
The PM said, “as far as vaccination is concerned, India has a vast experience, which even the big countries do not have. For us, safety is as crucial as speed. The vaccine that we will give to our citizens must stand tested on scientific parameters. For distributing the vaccines, we will work with the states and have chalked out a plan for prioritizing whom to give the vaccine first. We had asked the states to set up steering committee and task forces at state and district level, and even at the block level for better distribution.”
On the pricing issue, Modi said, “nothing is clear at the moment about price of vaccine. Two Indian vaccine candidate are also in the field. But we are also working with those making vaccines outside India. We must know that if a medicine is popular among millions for last 20 years, it can have reaction on some people even today, or after 20 years. This can happen here too. So any vaccine candidate which will be selected must pass the scientific test. The decision will be taken by authorities who will certify the vaccine.”
The Prime Minister cautioned the chief ministers not to be complacent. “The vaccine will come at its own time, but there should be no let-up in our war against Corona, not even the slightest let-up. This is my request to all of you.”
Summarizing how India has fought the Corona pandemic so far, Modi said: “In the first stage, there was fear because nobody knew much about the unknown pandemic. There was widespread panic and everybody was reacting in his own manner. We even found people committing suicide when they found themselves Covid positive. In the second stage, suspicious added to fear in the minds of people. People started shunning those who were found positive, and concealed their infection out of fear of social stigma.
“In the third stage, people started gaining confidence and informed everybody that they have been found positive and were in quarantine. In the fourth stage, when millions of people started recovering, there was a sense of complacency and a false notion spread that the virus has weakened and there was nothing to fear. Because of this negligence, the pandemic has spread fast in the fourth stage. I had appealed to people with folded hands in my address to the nation on the eve of festival season to be careful, but carelessness has cost us badly….We must bring the fatality rate below one per cent and the positivity rate to five per cent.”
There is not an iota of doubt that Modi’s leadership saved millions of lives from Corona pandemic. He took timely action in clamping lockdown and this has been accepted by the world at large as a correct decision. On the issue of Covid vaccine, leaders must avoid politicizing the issue which relates to national interest. On Tuesday, neither Modi nor the chief minister indulged in politicizing the issue.
All of them wanted that the vaccine must reach every Indian in the shortest possible time at affordable cost. But Rahul Gandhi’s habit is a bit different. He tried to politicize the issue and stuck to his anti-Modi agenda. The Prime Minister replied to each of his points that he raised, without naming him. I have quoted Modi’s replies to each of his questions at the beginning of this blog. I would also like to quote the couplet that Modi used in his remarks, about “Aisa na ho jaye ki hamari kashti bhi wahin doobi jahaan paani kam tha”(our boat sank at the place where the water was not deep). We must not allow this to happen.
I agree most of us are tired and exhausted by staying in home for such a long period, but let us have some patience and restraint. The vaccine will come at the right time and then people can roam free.
आ रही है कोरोना की वैक्सीन, तब तक सावधानी बरतें
आखिर वह खुशखबरी आ ही गई जिसका बेसब्री से दुनिया के लोग इंतजार कर रहे थे। कोरोना की वैक्सीन (टीका) तैयार है और फरवरी तक भारत में स्वास्थ्यकर्मियों, बुजुर्गों और कोरोना संक्रमण के सबसे ज्यादा खतरे वाले लोगों को इस टीके की पहली खुराक प्राथमिकता के आधार पर दी जाएगी। बाकी के लोगों को टीकाकरण के लिए मार्च या अप्रैल तक इंतजार करना पड़ेगा। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी-एस्ट्राजेनेका कोविड -19 वैक्सीन को पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) द्वारा तैयार किया जा रहा है। एसआईआई ने सरकार से इस वैक्सीन के लिए इमरजेंसी अप्रूवल मांगी है। उम्मीद की जा रही है कि दिसंबर अंत तक उसे हरी झंडी मिल जाएगी। कंपनी के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा कि अब तक करीब 4 करोड़ खुराक का स्टॉक जमा कर लिया गया है और जनवरी तक यह स्टॉक बढ़कर करीब 10 करोड़ खुराक हो जाएगी।
कोविशिल्ड नाम की यह वैक्सीन बाजार में प्रति खुराक 500 से 600 रुपये की दर से उपलब्ध होगी, वहीं सरकार के लिए यह 220 से 300 रुपये में उपलब्ध होगी। हर व्यक्ति को वैक्सीन की दो खुराक दी जाएगी। यह वैक्सीन 70 प्रतिशत प्रभावी है और अगर दूसरी डोज़ भी ली जाती है तो इसका प्रभाव 90 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। इस वैक्सीन को रखने के लिए फ्रीज़र की जरूरत नहीं होगी। फ्रिज में 2 से 8 डिग्री तापमान में भी इसे रखा जा सकता है इसलिए वैक्सीन को प्रिजर्व करने, स्टोर करने और उसे ट्रंसपोर्ट करने में मौजूदा हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में कोई बदलाव नहीं करना पड़ेगा। कोई नए इंतजाम नहीं करने होंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बातचीत कर टीकाकरण की देशव्यापी रणनीति और रूपरेखा तैयार करेंगे। हालांकि पूरी योजना स्वास्थ्य विभाग के शीर्ष अधिकारियों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों, योजना आयोग और अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा पहले से ही तैयार कर ली गई है।
उधर अमेरिका में फाइज़र कंपनी ने ऐलान किया है उसने सरकार से वैक्सीन के लिए इमरजेंसी अप्रूवल (आपातकालीन स्वीकृति) मांगी है और अगर11 दिसंबर तक उसे अप्रूवल मिल जाता है तो वैक्सीन की पहली खुराक 12 दिसंबर से लोगों को दिए जाएंगे। कुल मिलाकर कर कहें तो अमेरिका और अन्य देशों में अगले 18 दिनों में कोरोना वैक्सीन वितरित किया जाने लगेगा। वहीं भारत में हमें करीब 70 दिनों तक इंतजार करना होगा। एस्ट्राजेनेका की कोविशिल्ड वैक्सीन फाइजर और मॉडर्ना द्वारा बनाए गई वैक्सीन की तुलना में सस्ती है। फाइजर के एक वैक्सीन की कीमत 1,500 रुपये हो सकती है, जबकि एक मॉडर्ना वैक्सीन की कीमत 2,775 रुपये तक हो सकती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को दिल्ली, महाराष्ट्र, बंगाल और केरल समेत आठ राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ एक लंबी बैठक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की। ये आठ राज्य कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। इन मुख्यमंत्रियों से कहा गया है कि वे शहर के भीड़-भाड़ वाले बाजारों में कोरोना को लेकर जारी दिशा-निर्देशों को सख्ती से लागू करें और अगर जरूरी हो शहरों में रात के कर्फ्यू को लागू करें। आपको बता दें कि दिल्ली में एक सप्ताह में कोरोना वायरस से 777 मौतें हुई हैं, जबकि उससे पहले के सप्ताह में यह संख्या 625 थी। दिल्ली में कोरोना महामारी से अब तक 8,391 लोगों की मौत हो चुकी है।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात और असम की सरकारों निर्देश दिया कि वे कुछ आत्ममंथन करें और दिसंबर की तैयारी करें, जब यह महामारी अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच जाएगी। कोरोना के मामलों में उछाल के बावजूद शादियों, त्यौहारों, पार्टियों और सार्वजनिक समारोहों की इजाजत देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर राज्यों ने सही तरीके से तैयारी नहीं की तो दिसंबर में हालात और खराब होंगे।
अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने सोमवार को आपको दिखाया कि कोरोना पीड़ितों के शवों को दफनाने के लिए कब्रिस्तानों में जगह कम पड़ रही है और वहां पर शवों को दफनाने के लिए जेसीबी मशीनों की मदद ली जा रही है। ठीक इसी तरह दिल्ली के श्मशानों में भी मृतकों के परिजनों को तुरंत अंतिम संस्कार करने के लिए कहा जा रहा है ताकि अधिक शवों के अंतिम संस्कार के लिए जगह बनाई जा सके। दिल्ली पुलिस और सिविल डिफेंस के स्वयंसेवकों को उन लोगों के चालान के लिए तैनात किया गया है जो लोग सार्वजनिक जगहों पर भी मास्क नहीं पहनते हैं। इस महामारी से निपटने में सबसे बड़ी समस्या ऐसे लोगों का गैर जिम्मेदाराना रवैया है जो सार्वजनिक जगहों पर बिना मास्क पहने घूमते हैं।
खतरे की बात ये है कि यह महामारी भीड़-भाड़ वाले महानगरों के अलावा उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे उन छोटे राज्यों में भी फैल रही है, जहां आबादी का घनत्व कम है। हिमाचल सरकार ने अपने राज्य में कोरोना फैलने की सबसे बड़ी वजह पर्यटकों के आगमन को बताया है। कुछ जगहों पर तो पूरा का पूरा गांव ही कोरोना से ग्रस्त मिला है। शिमला, मंडी, कांगड़ा और कुल्लू में रात का कर्फ्यू लगाया गया है।
यह वायरस कैसे फैलता है इसके लिए अमेरिका के एक उदाहरण से समझना काफी होगा। एक आदमी जिसे यह नहीं मालूम है कि वह कोरोना से ग्रस्त है और वह एक शादी में शामिल होता है। इसके बाद उस शादी में शामिल होने वाले लगभग 177 लोग कोविड पॉजिटिव पाए जाते हैं और उनमें से सात लोगों की मौत हो गई। इसमें सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि जिन सात लोगों की कोरोना से मौत हुई वे लोग शादी समारोह में शामिल नहीं हुए थे। ये लोग केवल उन लोगों से मिले थे जो शादी समारोह में शामिल हुए थे। नतीजा ये हुआ कि अपनी जान गंवा बैठे।
अब चूंकि शादियों का मौसम शुरू हो चुका है इसलिए देशभर में लोग शादी समारोहों में व्यस्त होने लगे हैं। आप सभी से मेरा अनुरोध है कि कृपया शादियों की भीड़भाड़ से दूर रहें। आप अनजाने में इस वायरस से खुद भी ग्रस्त हो सकते हैं और अन्य लोगों में भी इसे फैला सकते हैं। इसलिए कृपया भीड़ वाली जगहों से दूर रहें। हमेशा मास्क पहनें और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखें। अपने हाथों को बार-बार धोएं या सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें। जब तक टीकाकरण शुरू नहीं होता है तब तक यही उपाय हम सभी की सुरक्षा का एकमात्र रास्ता है।
Vaccine is coming: Till then, follow Covid norms
At last, the good news has come. The Covid vaccine is ready, and by February the first vaccine shots will be given, on priority, to healthcare workers, Covid patients and aged people in India. Others in India will have to wait for the vaccine till March or April. The Oxford University-AstraZeneca Covid-19 vaccine will be manufactured by Pune-based Serum Institute of India, which is going to seek emergency regulatory approval from the government. It hopes to get the go-ahead by end of December. The company has so far stocked around 4 crore doses, and will have around 10 crore doses by January, says Adar Poonawalla, the company’s CEO.
Named Covishield, it will be available in market at Rs 500-600 per dose and at Rs 220-300 for the government. Every person is required to take two doses of the vaccine, which is 70 per cent effective. The efficacy of this vaccine will rise to 90 per cent, if the half dose is followed by a full dose. The vaccine can be transported and stored between 2 degree Celsius to 8 degree Celsius, which India can afford to preserve, store and transport in tropical conditions.
Prime Minister Narendra Modi, in consultations with 30 chief ministers, will outline and approve the nationwide strategy to vaccinate people across India. The plan has already been prepared by health experts and top officials of Health Ministry, Planning Commission and other government bodies.
In the USA, Pfizer has announced that it has sought emergency approval from the government, and if received by December 11, the first shots of its vaccine will be given to people from December 12 onwards. In a nutshell, the Covid vaccine will be distributed in USA and other countries in the next 18 days, and in India, we will have to wait for 70 days. The AstraZeneca Covishield vaccine is cheaper than the vaccines developed by Pfizer and Moderna. A Pfizer vaccine may cost Rs 1,500, while a Moderna vaccine may cost up to Rs 2,775.
On Tuesday, the Prime Minister had a long video meeting with chief ministers of eight states, including Delhi, Maharashtra, Bengal and Kerala, which are presently the worst affected by Covid pandemic. The chief ministers have been told to enforce Covid norms strictly at crowded market places of metros, and to enforce night curfew in selected cities, if required. There were 777 Covid-related deaths in Delhi in one week, up from 625 in the previous week. Till now, 8,391 people have died of Covid pandemic in Delhi.
On Monday, the Supreme Court directed the governments of Delhi, Maharashtra, Gujarat and Assam to “take time to introspect” and prepare for December, when the pandemic will be at its worst. The apex court hauled up the government of Gujarat for allowing weddings, festivals, parties and public gatherings despite a surge in Covid cases. “Worse things will happen in December if states are not well prepared”, the Supreme Court said.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’, we showed on Monday how JCB machine is being used in cemeteries to create more space to bury bodies of Covid victims. Similarly, in Delhi’s crematoriums, relatives of the dead are being asked to collect the ashes immediately in order to create space for more bodies to be cremated. Delhi Police and Civil Defence volunteers have been deployed to challan people who do not wear masks in public. The biggest problem in tackling the pandemic is the ‘attitude’ of several people who are being highly irresponsible, by moving in public without masks.
The worst part is that apart from the crowded metros, the pandemic is spreading to smaller states where the population density is less, like Uttarakhand and Himachal Pradesh. The HP government has blamed tourists who came from outside and spread the virus. In some cases, an entire village was full of Covid patients. Night curfew has been imposed in Shimla, Mandi, Kangru and Kullu.
Let me give one example from the USA to describe how the virus spreads. A man, who did not knew that he was carrying the virus, attended a wedding. Nearly 177 people who attended the wedding were later found Covid positive. Out of them, seven persons died. The most surprising part was that all these seven persons had not attended the wedding. They had only met people who had attended the wedding, but ended up losing their lives.
Since the wedding season has already begun, people in India will be busy attending the weddings. My request to all is: please stay away from weddings. You can be an unsuspecting receiver of virus. Please stay away from crowded places. Always wear masks and maintain social distancing. Wash your hands frequently with sanitizer. That is the least all of us can do. Till the time we are not vaccinated, this is the only mode of safety. For all of us.
मोदी के साहस ने पाकिस्तान के आतंकी हमलों से निपटने की रणनीति बदली
देश की खुफिया एजेंसियों ने पाकिस्तान की साजिश के बारे में बहुत बड़ा और हैरान करनेवाला खुलासा किया है। नगरोटा में शुक्रवार को जिन चार आंतकवादियों को सुरक्षाबलों ने मार गिराया, वे 26/11 मुंबई आतंकी हमले की बरसी पर एक बड़ा आंतकवादी हमला करने की साजिश को आंजाम देने वाले थे। खुफिया एजेंसियों के शीर्ष सूत्रों ने इन आतंकियों के खतरनाक मंसूबों का खुलासा किया है। पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के ये चारों आतंकी ‘कुछ बड़ा’ करना चाहते थे। इन आतंकियों के पास से भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक बरामद हुए। आपको याद दिला दें कि 26 नंबवर 2008 को मुबंई में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हमला किया था। इस हमले में 174 बेगुनाह लोगों की मौत हुई थी जबकि 300 लोग घायल हुए थे। ये आतंकवादी नाव के जरिए मुंबई पहुंचे थे और शहर के 12 अहम ठिकानों को निशाना बनाकर भारी तबाही मचाई थी।
शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुरक्षा और खुफिया अधिकारियों के साथ हाई लेवल की मीटिंग की और ट्वीट किया: ‘पाक स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के 4 आतंकवादियों का मारा जाना और उनके पास बड़ी मात्रा में हथियारों और विस्फोटकों की बरामदगी से यह पता चलता है कि वे एक बड़े हमले और भारी तबाही मचाने के इरादे से आए थे जिसे विफल कर दिया गया है। एक बार फिर हमारे सुरक्षा बलों ने अदम्य साहस, बहादुरी, पेशेवर रूख का प्रदर्शन किया। इस बहादुरी और सतर्कता के लिए सुरक्षाबलों को धन्यवाद जिन्होंने जम्मू कश्मीर में जमीनी स्तर की लोकतांत्रिक कवायद को निशाना बनाने की साजिश को नाकाम कर दिया।’
आंतरिक सुरक्षा को लेकर पीएम मोदी की हाई लेवल मीटिंग में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, विदेश सचिव हर्षवर्धन शिंगला, इंटेलीजेंस ब्यूरो और रॉ के चीफ मौजूद थे। मीटिंग के बाद किसी तरह का कोई औपचारिक बयान तो जारी नहीं किया गया लेकिन ये जानकारी मिली है कि इस मीटिंग में प्रधानमंत्री को शुक्रवार के ऑपरेशन के बारे में और इससे पहले मिले इंटेलीजेंस इनपुट्स के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। सूत्रों का कहना है कि खुफिया एजेंसियों ने आतंकवादियों और उनके पाक स्थित हैंडलर्स के बीच हो रही बातचीत को रिकॉर्ड किया था। इस बातचीत में सारी साजिश का जिक्र हुआ था। इस रिकॉर्डिंग से पता चला कि आंतकवादी कहां से घुसे हैं और किस तरफ बढ़ रहे हैं। इसके बाद ही आंतकवादियों को ट्रैक करके उन्हें मार गिराया गया।
पहली बार प्रधानमंत्री ने किसी आतंकवादी घटना को लेकर अपने ट्वीट में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का नाम लिया है। सुरक्षा बलों की बहादुरी की तारीफ करते हुए प्रधानमंत्री ने साफ तौर पर 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के दौरान और अब सुरक्षा बलों की आतंक के प्रति प्रतिक्रिया में आए बदलाव को जाहिर कर दिया। जिस मुस्तैदी से हमारे सुरक्षा बलों ने पाकिस्तान के मंसूबों को नेस्तनाबूत किया है, उसकी जितनी तारीफ की जाए वो कम है। इससे पता चलता है कि भारत कितना बदल गया है। हमारी फौज का रिस्पॉन्स कितना बदला है और अब खुफिया जानकारी कितनी सही मिल रही है, नगरोटा का एनकाउंटर इसका ज्वलंत उदाहरण है।
मुझे आज भी याद है कि वर्ष 2008 में जब 26/11 का हमला हुआ था तो पाकिस्तानी आतंकवादी नाव में बैठकर आए थे। आतंकवादी मुंबई में घुसे और सीएसटी रेलवे स्टेशन पर भारी तबाही मचाई। होटल ताज पैलेस, द ओबेरॉय ट्राईडेंट होटल नरीमन हाउस, चबाड हाउस, लियोपोल्ड कैफे, कामा अस्पताल, मेट्रो सिनेमा और चार अन्य जगहों पर आतंकवादियों ने गोलियों की बौछार कर दी, लोगों को मार डाला। लेकिन उस दिन सबके चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थी। 18 घंटे तक तो किसी को पता ही नहीं था कि हमलावर कौन हैं? कहां से आए हैं? कोई इसे गैंगवार समझ रहा था तो कोई इसे कुछ सिरफिरों का काम बता रहा था। अगले दिन 12 बजे के बाद पता चला कि आतंकवादी पाकिस्तान से आए थे।
26/11 हमले में आतंकवादियों के पाकिस्तानी होने का कैसे पता चला ये भी मैं आपको बता दूं। मुंबई के ओबेरॉय होटल से एक आतंकवादी ने इंडिया टीवी को फोन किया था और कहा था कि वो अपनी बात बताना चाहता है। उस दौरन आतंकवादियों की डायलेक्ट (बोली), भाषा सुनकर पता चला कि वो पाकिस्तानी थे। इसके बाद खुफिया एजेंसियों ने ताज और ओबरॉय से होने वाली सारी बातचीत को टैप किया। तब पता चला कि इन दहशतगर्दों को पाकिस्तान में बैठे हैंडलर निर्देश दे रहे थे।
नरेन्द्र मोदी की लीडरशिप ने अब सबकुछ बदल दिया है। हमारी खुफिया जानकारी अधिक सटीक है, सुरक्षा बल अधिक सतर्क हैं, आतंक के प्रति उनका रिस्पॉन्स तेज और अधिक प्रभावी है। इस बार आतंकवादियों के प्लान की एक-एक डिटेल खुफिया एजेंसियों के पास एडवांस में थी। उनके ट्रक को पकड़ा गया। आतंकवादियों को मार दिया गया, गोला-बारुद बरामद कर लिया गया और इस बात के सबूत भी इकट्ठे कर लिए गए कि वो पाकिस्तानी थे। अगर देश के प्रधानमंत्री का इरादा मजबूत हो, नीयत साफ हो और हिम्मत हो तो फिर हर खतरे से लड़ा जा सकता है और ये नगरोटा की घटना से साबित भी होती है।
Modi’s courage has changed how we respond to Pakistan terror attacks
Pakistan-based terror outfit Jaish-e-Mohammed wanted to carry out “something big” on the anniversary of 26/11 Mumbai terror attacks by sending four terrorists with huge cache of weapons and grenades from Jammu border. This was revealed by top intelligence sources on Friday. For those who would like to recall, on November 26, 2008, ten Pakistani terrorists sneaked into Mumbai in boats, and carried out mayhem at twelve major landmarks of the city killing 174 people and wounding more than 300 others.
On Friday, Prime Minister Narendra Modi held a top level meeting of security and intelligence officials and then tweeted: “Neutralising of 4 terrorists belonging to Pakistsan-based terrorist organization Jaish-e-Mohammed and the presence of large cache of weapons and explosives with them indicates that their efforts to wreak major havoc and destruction have once again thwarted. Our security forces have once again displayed utmost bravery and professionalism. Thanks to their alertness, they have defeated a nefarious plot to target grassroots level democratic exercises in Jammu and Kashmir.”
The review meeting with top security brass was attended by Home Minister Amit Shah, National Security Adviser Ajit Doval, foreign secretary, Intelligence Bureau director and RAW chief. Intelligence sources say that our operatives had intercepted conversations between the four slain terrorists and their Pakistani handlers across the border. Based on these intercepts, our security forces were ready to eliminate them, and they did with professional competence. Sources said, the PM was given a detailed report about how our intelligence operatives kept track of the movement of the terrorists leading to their elimination.
The Prime Minister has, for the first time, named the Pakistani terror outfit Jaish-e-Mohammed in his tweet. By praising the bravery and professionalism of our security forces, he has clearly indicated the sea change that has come in the response of our security forces compared to their response during the 2008 Mumbai terror attacks. India has changed a lot since 2008. Our security forces are now swift in their response as soon as they get specific intelligence inputs. This was evident at the Nagrota encounter.
On the contrary, I still remember those dark days when Pakistani terrorists reached Mumbai coast in boats, went up to the major landmarks of the city unchallenged, causing mayhem at Chhatrapati Shivaji Terminus railway station, The Oberoi Trident hotel, The Taj Palace and Tower, Nariman House, Chabad House, Leopold Café, Cama Hospital, Metro Cinema and four other spots. They were indiscriminately killing people and for nearly 18 hours our security forces had no idea about which terror outfit they belonged to. Most of the top security officials in Mumbai at that time were completely puzzled. Some were describing the attackers as part of some crime gangs, some others were describing the attackers as looney characters. It was only around noon the following day that it was clear that they were terrorists who had come from Pakistan.
It so happened that one of the terrorists at Oberoi Trident hotel rang up India TV’s office in Noida and said he wanted to disclose something. The dialect and the accent of the terrorist made it clear that he was a Pakistani. Soon afterwards, intelligence agencies recorded all telephonic calls at the Oberoi and Taj hotels, and it was then revealed that the terrorists were getting live instructions over phone from their handlers sitting in Pakistan.
Narendra Modi’s leadership has completely changed how India responds to Pakistan sponsored terror attacks. Our intelligence is more accurate, security forces are more alert, their response to terror is quicker and more effective. Since the Prime Minister of India has a strong will, a clear vision and courage, we, the people, and our security forces can face all grave threats with poise and dedication. This is what happened at Nagrota.