हंगामा करने वाले सांसदों को देश कभी माफ नहीं करेगा
राज्यसभा में रविवार को 2 कृषि विधेयकों के पारित होने के दौरान विपक्षी सांसदों ने जमकर हंगामा किया। उनमें से कुछ सेक्रेट्री जनरल की मेज पर चढ़ गए, तो कई अन्य चेयरमैन के पोडियम पर जाकर खड़े हो गए। कुछ विपक्षी सांसदों ने डिप्टी चेयरपर्सन हरिवंश की माइक को तोड़ दिया, उन्हें लगातार परेशान करते रहे, सदन के वेल में कागजात को फाड़ा और मार्शलों के साथ दुर्व्यवहार किया। उनमें से कुछ ने डिप्टी चेयरपर्सन पर कागजात और रूलबुक फेंका, साथ ही उन्हें धमकियों और गालियों से डराने की कोशिश भी की।
विपक्षी सांसद मांग कर रहे थे कि कृषि विधेयकों को एक हाउस कमिटी को भेजा जाए, लेकिन उनके पास पर्याप्त संख्याबल नहीं था। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के मुताबिक, फार्म बिलों का विरोध करने वाले सांसदों की संख्या 70 के आसपास थी, जबकि 110 सांसद इसके समर्थन में थे। विपक्ष द्वारा हंगामा किए जाने के कारण कोई विभाजन नहीं किया जा सका। यह भारत के 70 साल लंबे संसदीय इतिहास के सबसे अंधेरे क्षणों में से एक था। देश इन सांसदों को उनके गैरजिम्मेदाराना और शर्मनाक आचरण के लिए कभी माफ नहीं करेगा। राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने सोमवार को हंगामा करने वाले 8 सांसदों को एक सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया। सदन के स्थगित होने के बाद ये सभी सांसद संसद परिसर के अंदर ही धरने पर बैठ गए।
मंगलवार की सुबह देश ने देखा कि डिप्टी चेयरपर्सन हरिवंश अपने घर से चाय लेकर धरनास्थल पर आए और सभी निलंबित सांसदों को खुद चाय पिलाई। यह हरिवंश की मानवता थी। यह उनके बड़े दिल और उच्च नैतिक मूल्यों को दिखाता है। जो कानून बनाते हैं वे ही नियमों की धज्जियां उड़ाने लगेंगे, शिष्टाचार की परवाह नहीं करेंगे, तो वे आम आदमी से सम्मान की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? यदि सांसद अपने खुद के पीठासीन अधिकारी की इज्जत नहीं करेंगे, माइक तोड़ेंगे और कागजात फाड़ेंगे, तो क्या उन्हें लगता है कि आम आदमी उनके इस व्यवहार को देखकर खुश होगा? राज्यसभा को हाउस ऑफ एल्डर्स कहा जाता है, जहां विभिन्न क्षेत्रों के बेहद अनुभवी और पढ़े-लिखे सदस्य सारे राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहां बैठते हैं और कानून बनाते हैं।
हंगामा करने वाले सांसद ये भी भूल गए थे कि वे कोरोना के समय में सोशल डिस्टैंसिंह के नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। वे जानबूझकर उन सारे सख्त प्रोटोकॉल्स तोड़ रहे थे जिन्हें कार्यवाही के सुचारू संचालन के लिए संसद के दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों ने सावधानीपूर्वक तैयार किया था। हंगामा करने वाले सांसदों को एक सप्ताह के लिए निलंबित करने की राज्यसभा के सभापति की कार्रवाई सही दिशा में उठाया गया कदम है। प्रत्येक राजनेता को असहमति व्यक्त करने, विरोध व्यक्त करने और लोगों की आवाज उठाने का हक है, लेकिन सदन के भीतर इन सांसदों ने जिस तरह का व्यवहार किया है वह पूरी तरह से अस्वीकार्य है।
ऐसा नहीं है कि सरकार कृषि बिलों को लेकर चिंताओं और आशंकाओं को दूर करने की कोशिश नहीं कर रही है। प्रधानमंत्री ने खुद कई बार कहा है कि न तो कृषि उपज विपणन समितियों (APMC), जिन्हें मंडी भी कहा जाता है, को बंद किया जाएगा और न ही अनाज और अन्य उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की व्यवस्था को खत्म किया जाएगा। कई राज्यों में किसानों के बीच आधारहीन अफवाहें फैलाई जा रही हैं और उन्हें विपक्षी नेताओं द्वारा गुमराह किया जा रहा है।
कृषि विधेयकों के मुद्दे पर कांग्रेस डबल गेम खेल रही है। कुछ समय पहले ही डॉक्टर मनमोहन सिंह ने ‘मंडियों’ को खत्म करने की वकालत की थी। अजय माकन ने राहुल गांधी के बगल में बैठकर पार्टी के 2019 के चुनावी घोषणापत्र को जारी किया था जिसमें मंडियों को खत्म करने और कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को बढ़ावा देने का वादा किया गया था।। यहां तक कि कपिल सिब्बल ने संसद में अपने भाषण के दौरान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और ‘मंडियों’ को खत्म करने के पक्ष में भी बात की थी।
यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने इस तरह की रणनीति अपनाई है। जब 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण बिल लाई थी, तो राहुल गांधी ने गवर्नमेंट को ‘सूट-बूट की सरकार’ कहा था। उन्होंने तब आरोप लगाया था कि मोदी सरकार अडानियों और अंबानियों की मदद कर रही है, और किसानों से कहा था कि सरकार उनके खेतों को उद्योगपतियों को सौंप देगी। यह मोदी के शासन का पहला साल था, और किसानों में गलतफहमी न फैले इसलिए सरकार ने विपक्ष के सामने झुकते हुए भूमि अधिग्रहण विधेयक को वापस ले लिया।
लेकिन अब वक्त बदल गया है। भारत के किसानों ने अब देख लिया है कि मोदी सरकार ने पिछले 6 सालों में कैसे उनकी मदद की है। फसल बीमा से लेकर मृदा कार्ड तक, प्रत्येक किसान के खाते में 6,000 रुपये सीधे ट्रांसफर करने से लेकर एमएसपी में भारी वृद्धि तक, मोदी सरकार ने किसानों के लिए बहुत कुछ किया है। अब भारतीय कृषि का चेहरा बदलने के लिए सरकार ये नए बिल लेकर आई है। कृषि उत्पादों की बिक्री पर लगी सारी रुकावटों को हटाने के बाद किसानों की औसत आय में निश्चित तौर पर वृद्धि होगी। किसानों के मुनाफे का अधिकांश हिस्सा खुद डकार लेने वाले बिचौलिए और कमीशन एजेंट हमेशा के खत्म हो जाएंगे। इस तरह किसानों के हिस्से का मुनाफा उनकी ही जेब में जाएगा।
यह निश्चित रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था का चेहरा बदल देगा, और इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जो वर्तमान में COVID महामारी के कारण संघर्ष कर रही है। बिचौलियों का जमाना अब बीत चुका है, बेहतर होगा कि विपक्षी दल इस बात को समझ लें और किसानों के हित में बोलना शुरू करें। जहां तक मोदी सरकार की बात है, तो यह संसद में विपक्ष से निपट चुकी है और अब सड़क पर भी उनका सामना करने के लिए तैयार है।
Nation will never forgive the erring MPs
On Sunday, opposition MPs in Rajya Sabha created bedlam during the passage of two farm bills. Some of them stood on the Secretary General’s table, several others stood on the podium of the Chairman, yanked the Deputy Chairperson Harivansh’s mike, heckled him continuously, tore papers in the well of the House and misbehaved with the marshals. Some of them hurled papers and rule books at the Deputy Chairperson and tried to intimidate him with threats and abuses.
The opposition MPs were demanding that the bills be sent to a House Committee, but they lacked the numbers. According to Law Minister Ravi Shankar Prasad, only over 70 MPs opposed the bills, while 110 members supported the bills. No division could be carried out because of bedlam created by the opposition.
This was one of the dark moments in India’s 70-year-long parliamentary history. The nation will never forgive the MPs for their irresponsible and shameful conduct. The Rajya Sabha Chairman M. Venkaiah Naidu on Monday suspended the eight erring MPs for a week. These MPs sat on dharna inside Parliament premises after the House was adjourned.
On Tuesday morning, the nation watched as the Deputy Chairperson Harivansh brought tea from his home, came to the dharna site, and personally offered tea to the suspended MPs. This was a humane gesture from Harivansh. It displays his large heartedness and high moral values.
If lawmakers break their own rules, throw decorum to the wind, how can they expect respect from the common man? If MPs start insulting their own presiding officer, break mikes and tear up papers, do they think the common people will appreciate their behavior? Rajya Sabha is known as the House of Elders, where members with vast experience and knowledge in different fields, representing all the states, sit and frame laws.
Those MPs who indulged in hooliganism forgot that they were violating social distancing norms in the time of Corona. They were deliberately breaking all strict protocols that were meticulously prepared by the presiding officers of both Houses of Parliament for smooth conduct of proceedings. The action of the Rajya Sabha Chairman in suspending the erring MPs for a week is a step in the right direction. Every political leader has the right to question, to oppose, to express dissent and to convey the voice of the people, but the manner in which these MPs behaved inside the House is totally unacceptable.
It is not that the government is not trying to allay to fears and apprehensions being expressed over the farm bills. The Prime Minister himself has time and again said that neither the agricultural produce marketing committees (APMCs), known as mandis, will not be abolished, nor the MSPs (minimum support price) of cereals and other produces will be discontinued. Farmers in many states are being fed baseless rumours and they are being misguided by opposition leaders.
The Congress is playing a double game on the farm bills issue. In the recent past, former Prime Minister Dr Manmohan Singh had advocated abolition of ‘mandis’, Ajay Maken, with Rahul Gandhi sitting beside him, had released the party’s 2019 election manifesto promising abolition of ‘mandis’ and promotion of contract farming. Even Kapil Sibal had spoken in favour of contract farming and abolition of ‘mandis’ during his speech in Parliament.
This is not the first time that Congress has indulged in such tactics. In 2014, when the Narendra Modi government had brought the land acquisition bill, Rahul Gandhi had described the government as ‘suit-boot ki sarkar’. He had then alleged that the Modi government was helping the Adanis and Ambanis, and had told farmers that the government would hand over their farmland to industrialists at a pittance. It was the first year of Modi’s rule, and in order to assuage the feelings of farmers, the government, bowing to opposition, withdrew the land acquisition bill.
But now, the times have changed. Farmers in India have seen how Modi government has helped them during the last six years. From crop insurance, to soil card, from direct transfer of Rs 6,000 to the account of each farmers to big hikes in MSPs, Modi government has done a lot for farmers. Now, it has come with these new bills to transform Indian agriculture. The average income of farmers is bound to go up after removal of all restrictions on sale of farm produce. The middlemen and commission agents, who were cornering most of the farmers’ profits, will be removed forever, and farmers will pocket the profits.
This will definitely change the face of rural economy, and it will have a bandwagon effect on Indian economy which is presently struggling due to COVID pandemic. The days of middlemen are gone and it would be better if the opposition parties realize this and start speaking in the interest of the farmers. On its part, the Modi government has tackled the opposition in Parliament, and it is now ready to face them in the streets.
मोदी के तीनों कृषि बिल निश्चित तौर पर किसानों के हित में हैं
संसद द्वारा इस हफ्ते पारित तीन कृषि विधेयकों को लेकर निहित स्वार्थों के चलते कुछ समूह और कुछ राजनीतिक दल, जिनमें मुख्य रूप से कांग्रेस शामिल है, किसानों के मन में संदेह और आशंकाएं पैदा कर रहे हैं। हालांकि कुछ किसान संगठनों ने 25 फरवरी को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया है, लेकिन कई राजनीतिक दलों और उनके किसान संगठनों ने पहले ही विभिन्न राज्यों में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में बीजेपी की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने भी विधेयकों का विरोध किया है और उनकी मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को तीनों कृषि विधेयकों के बारे में किसानों को गुमराह करने के लिए विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस पर हमला बोला। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बिहार में कई परियोजनाओं की शुरुआत करते हुए मोदी ने इस कदम को ‘ऐतिहासिक’ बताया और आरोप लगाया कि तथाकथित किसानों के विरोध प्रदर्शनों को उन ‘बिचौलियों’ ने हवा दी है जिनके व्यावसायिक हितों को इन विधेयकों से चोट पहुंचेगी। उन्होंने किसानों से कहा कि वे बिचौलियों द्वारा फैलाई जा रही आधारहीन अफवाहों पर ध्यान न दें और इन बिलों का समर्थन करें क्योंकि इससे उनकी कमाई में वृद्धि होगी और बिचौलियों का खात्मा होगा।
प्रधानमंत्री ने किसानों को आश्वासन दिया कि गेहूं, चावल और अन्य कृषि उपज की न्यूनतम समर्थन मूल्य खरीद जारी रहेगी और कृषि विपणन निकायों (कृषि मंडियों) की व्यवस्था को खत्म नहीं किया जाएगा। मोदी ने कहा कि ये तीन कृषि बिल पिछले 7 दशकों में किसानों पर थोपे गए प्रतिबंधों से मुक्त करेंगे। मोदी ने कहा, ‘ऐसी पार्टियां हैं जिन्होंने दशकों तक देश पर शासन किया है और अब किसानों को गुमराह करने की कोशिश कर रही हैं। इन दलों ने पिछले चुनाव के दौरान अपने घोषणापत्र में इन उपायों का वादा किया था, लेकिन अब जब एनडीए ने ऐसा किया तो वे इसका विरोध कर रहे हैं।
आइए, एक-एक करके तीनों विधेयकों को समझते हैं। सबसे पहले, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक एक इको-सिस्टम बनाएगा जहां एक किसान भारत में कहीं भी अपनी उपज बेच सकता है। इसके अंतर्गत इंटर-स्टेट और इंट्रा-स्टेट ट्रेडिंग, यहां तक कि इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग की भी इजाजत होगी। किसान विपणन में आने वाली लागत पर बचत करेंगे। वर्तमान व्यवस्था के तहत एक किसान केवल APMC या एक पंजीकृत लाइसेंसधारी या राज्य सरकार के माध्यम से ही अपनी उपज बेच सकता है। वह अपनी उपज को ई-ट्रेडिंग या इंट्रा-स्टेट ट्रेडिंग के माध्यम से नहीं बेच सकता है। विपक्ष का कहना है कि किसानों को एपीएमसी से पर्याप्त कीमत मिलती थी, बाजार विनियमित होता था और राज्य सरकारें मंडी शुल्क कमाती थीं। सरकार का कहना है कि APMC और MSP को खत्म नहीं किया जाएगा और यह व्यवस्था जारी रहेगी।
दूसरी बात, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक के चलते रिस्क किसानों से ट्रांसफर होकर उन लोगों पर शिफ्ट हो जाएगा जो उनके साथ कॉन्ट्रैक्ट अग्रीमेंट करेंगे। कॉन्ट्रैक्ट खेती के लिए एक राष्ट्रीय ढांचा प्रदान किया जाएगा। एक किसान अपनी उपज को निश्चित दरों पर बेचने के लिए कंपनियों, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों और बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ अनुबंध या कॉन्ट्रैक्ट कर सकता है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग अग्रीमेंट में कृषि उत्पादों के ग्रेड, गुणवत्ता, मानकों और कीमतों के लिए नियम और शर्तें निर्धारित होंगी। सरकार का कहना है भले ही उत्पादों की कीमत में गिरावट आ जाए, किसानों को समझौते में तय दरों के अनुसार ही भुगतान किया जाएगा। समझौते में बोनस और प्रीमियम का भी प्रावधान होगा।
इस बिल का विरोध करने वालों का कहना है कि भले ही रेट की गारंटी दी गई हो, लेकिन कीमत तय करने के तरीके के बारे में कोई स्पेसिफिक मैकेनिज्म नहीं बताया गया है। उन्हें डर है कि प्राइवेट कॉर्पोरेट किसानों का शोषण कर सकते हैं। उनका कहना है कि अधिकांश कृषि क्षेत्र असंगठित हैं और उनके पास बड़े कॉर्पोरेट्स से डील करने के लिए संसाधनों की कमी है। वर्तमान में, किसान की उपज पूरी तरह से मॉनसून, उत्पादन से संबंधित अनिश्चितताओं और बाजार की जरूरतों पर निर्भर करती है। इसमें बहुत ज्यादा रिस्क है और किसान को अपनी उपज पर पूरा फायदा नहीं मिलता है। भारत में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कोई नई बात नहीं है। गन्ने की खेती और मुर्गीपालन के क्षेत्र में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पहले से ही चल रही है।
तीसरा है आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक। भारत में अधिकांश कृषि उत्पादों का सरप्लस है, लेकिन आवश्यक वस्तु अधिनियम के कारण कोल्ड स्टोरेज, गोदामों, प्रोसेसिंग और निर्यात में कम निवेश होता है। जब भी किसी फसल का उत्पादन काफी ज्यादा होता है तो किसान कीमतों में गिरावट और खेतों में अनाज और सब्जियों के सड़ने के कारण अच्छे रिटर्न पाने में असफल रहते हैं। नया विधेयक युद्ध, प्राकृतिक आपदाओं, अत्यधिक मूल्य वृद्धि और अन्य स्थितियों को छोड़कर उत्पादन, भंडारण, आवाजाही और वितरण पर सरकारी नियंत्रण को खत्म कर देगा। यह कोल्ड स्टोरेज और फूड सप्लाई चेन को आधुनिक बनाने में मदद करेगा, और अंततः किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के हित में होगा। किसी भी उत्पाद के स्टॉक की सीमा तभी लागू होगी जब उसकी कीमत दोगुनी हो जाएगी। खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है। विपक्ष का कहना है कि ऐसा करने पर निर्यातक, प्रोसेसर और व्यवसायी फसल के सीजन में जमाखोरी का सहारा लेंगे और इसके चलते कीमतें अस्थिर हो जाएंगी। खाद्य सुरक्षा खत्म हो जाएगी। आलोचकों का कहना है कि इससे बड़े पैमाने पर जमाखोरी और ब्लैकमार्केटिंग को बढ़ावा मिलेगा।
इनमें से ज्यादातर आशंकाएं निराधार हैं। APMC और न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था जारी रहेगी, अंतर सिर्फ इतना होगा कि किसानों को अपने राज्य के अंदर या बाहर, दोनों ही जगहों पर अपनी उपज को खरीदारों को अच्छी कीमत पर बेचने का बेहतर विकल्प मिलेगा। नए कृषि कानून किसानों को बिचौलियों और कमीशन एजेंटों के चंगुल से मुक्त कर देंगे। किसानों को उनकी मेहनत और निवेश की अधिकतम कीमत मिलेगी। ऐसी आशंकाएं जताई जा रही हैं कि कॉर्पोरेट्स किसानों की जमीन हड़प लेंगे, लेकिन नए कानून में यह साफ किया गया है कि कॉर्पोरेट्स की भूमिका केवल उपज की खरीद तक ही सीमित रहेगी और वे न तो किसानों की ज़मीन खरीद सकते हैं और न ही उसे पट्टे पर ले सकते हैं। पंजाब में पेप्सिको पहले से ही आलू की सप्लाई के लिए किसानों के साथ मिलकर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर रही है और यही मॉडल देश के अन्य राज्यों में भी लागू होगा।
यह भी आशंका जताई जा रही है कि किसानों को अपनी उपज की कीमत पाने के लिए कॉर्पोरेट्स के चक्कर लगाने होंगे। नए कानून में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसानों से सीधे फसल खरीदने वाली कंपनियों को तुरंत भुगतान करना होगा और ईकॉ-मर्स के जरिए किया गया भुगतान ज्यादा से ज्यादा 3 दिन में किसान के अकाउंट में पहुंच जाना चाहिए।
कांग्रेस ने अपने पिछले चुनावी घोषणापत्र में किसानों के लिए इन उपायों का वादा किया था। फरवरी 2011 में जब डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, उन्होंने एक बेहतर मार्केटिंग चेन बनाने के लिए डिलीवरी सिस्टम को आधुनिक बनाने का आह्वान किया था। उन्होंने तब निजी क्षेत्र को कृषि क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए कहा था। लेकिन अब कांग्रेस ने पूरी तरह से यू-टर्न ले लिया है और अब वह इन विधेयकों को ‘किसान विरोधी’ बता रही है। यह साफ तौर पर वोट बैंक की राजनीति है। सरकार द्वारा किसानों को विधेयकों के प्रावधानों को समझाने के लिए समय मिलने से पहले ही कांग्रेस ने अफवाहों का बाजार गर्म कर दिया।
पिछले 6 सालों से विपक्ष साइडलाइन है, लेकिन अब उसे किसानों के मुद्दे पर सरकार को घेरने का मौका मिल गया है। इस साल बिहार में चुनाव होने वाले हैं और 2022 में पंजाब में भी इलेक्शन होने हैं। इन दोनों ही राज्यों में किसानों का वोट डिसाइडिंग फैक्टर होता है। पीएम मोदी को इस बात का पूरा श्रेय जाता है कि वह किसानों के मन से भय और आशंकाओं के बादलों को दूर करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
Modi’s three farm bills are definitely pro-farmer
Doubts and apprehensions are being created in the minds of farmers by vested interest groups and some political parties, mainly the Congress, over three farm bills passed by Parliament this week. While some farmers’ organizations have given a call for ‘Bharat Bandh’ on February 25, several political parties and their farmers’ wings have already launched protests in different states. Shiromani Akali Dal, an ally of BJP in NDA, has opposed the bills and its minister Harsimrat Kaur Badal has resigned from the cabinet.
On Friday, Prime Minister Narendra Modi lashed out at the opposition, particularly the Congress, for misleading farmers about the three farm bills. Launching several projects in poll-bound Bihar through video conferencing, Modi described the measure as “historic” and alleged that so-called farmers’ protests have been engineered by “middlemen”, whose business interests will be hurt. He told farmers not to listen to baseless rumours being floated by middlemen, and support these bills because it will enhance their earnings will the elimination of middlemen.
The Prime Minister assured farmers that Minimum Support Price procurement of wheat, rice and other farm produces will continue and agricultural marketing bodies (Krishi mandi) will not be abolished. Modi said, the three farm bills will liberate farmers from many restrictions imposed over the years in the last seven decades. “There are parties who have ruled the country for decades and are now trying to misguide the farmers. These parties had promised these measures in their manifestos during the last election, but now that the NDA has done it, they are opposing it”, Modi said.
Let us examine the three bills one by one. Firstly, Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill will create an eco-system where a farmer can sell his produce anywhere in India. Inter-state and intra-state trading, even electronic trading, will be allowed. Farmers will save on marketing costs. At present, a farmer can sell his produce only through APMC or a registered licensee or the state government. He cannot sell through e-trading or intra-state trading. The opposition says, farmers used to get adequate prices from APMC, the market is regulated and the state government used to earn mandi fees. The government says, APMCs and MSPs will not be abolished, they will continue.
Secondly, The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement of Price Assurance and Farm Services Bill will provide for shifting of risks from farmers to those who enter into contract agreement with them. A national framework will be provided for contract farming. A farmer can enter into contract with companies, processors, wholesalers, exporters and big retailers to sell his produce at fixed rates. The contract farming agreement will stipulate terms and conditions for grades, quality, standards and prices of agricultural produces. Government says, even if the price drops, farmers will get money as per rates decided in the agreement. There will also be provisions for bonus and premium in the agreement. Those opposed to this bill say, even if the rates are guaranteed, no specific mechanism has been mentioned as to how the price will be decided. They fear that private corporates may exploit the farmers. They say, most of the farming sector is unorganized and they lack resources to take on big corporates. Presently, a farmer’s produce fully depends on monsoon, uncertainties relating to production and need for a favourable market. The risks are heavier and a farmer does not get full return on his produce. Contract farming is not new in India. In sugarcane and poultry sectors, contract farming is already in place.
Third, Essential Commodities (Amendment) Bill. In India, there is a surplus of most agricultural produces, but due to the Essential Commodities Act, there is less investments in cold storage, godowns, processing and exports. Whenever there is a bumper crop, the farmers fail to get good returns due to fall in prices, and grains and vegetables rot in fields. The new bill will end government control on production, storage, movement and distribution, except during war, natural calamities, exorbitant price rise and other conditions. This will help in modernizing cold storage and food supply chains, and will ultimately help both farmers and consumers. Stock limit will apply only when the price of a produce doubles. Foodgrains, pulses, oilseeds, edible oil, onion and potatoes have been removed from essential commodities list. Opposition says, if this is done, exporters, processors and businessmen will resort to hoarding during crop season and this will destabilize prices. Food security will end. Critics say, this will lead to rampant hoarding and blackmarketing.
Most of these apprehensions are baseless. APMCs and minimum support price regime will continue, the only difference will be that farmers will get better options of selling their produce at a higher rate to buyers, both from inside or outside the state. The new farm laws will break the shackles put on farmers by middlemen and commission agents. Farmers will get maximum price for their labour and investment. Fears have been raised about corporates grabbing farmers’ land, but the new law clearly limits the corporates to purchase of produce only, they cannot buy, mortgage or take farmers’ land on lease. In Punjab, Pepsico is already into contract farming with farmers for supply of potatoes and this model will replicate in other states too.
Fears have been raised about farmers having to run after the corporates to get back their earnings. The new law clearly stipulates that farmers must get their money within three working days if they sell through e-commerce, and corporates that buy produces directly must pay the farmers on the spot.
Congress had promised these measures for farmers in its last election manifesto. In February 2011, when Dr Manmohan Singh was PM, he had called for modernizing delivery system in order to create a better marketing chain. He had then asked the private sector to enter the farm sector. But now, the Congress has down a complete U-turn and is now describing the bills as ‘anti-farmer’. It is clearly indulging in vote-bank politics. The Congress had activated its rumour mills even before the government could get time to explain the provisions of the bills to the farmers.
For the last six years, the opposition has been in the sidelines, but it has now come out with the farmers’ issue to corner the government. Elections are due in Bihar this year and elections in Punjab are due in 2022. In both these states, farmers as a bloc are the deciding factor during elections. It goes to Modi’s credit that he is trying his best to dispel the clouds of fear and doubt from the minds of farmers.
चीन के साथ जारी संघर्ष में यूं ड्रैगन की मदद की कोशिश कर रहा है पाकिस्तान
कश्मीर में पुलवामा जैसे एक बड़े आतंकी हमले की साजिश गुरुवार को सुरक्षाबलों की मुस्तैदी के चलते नाकाम हो गई। भारतीय सेना के जवानों ने गदिकल के पास स्थित कारेवा में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों के पास से 52 किलोग्राम विस्फोटक जब्त करके उनके नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया। इन विस्फोटकों को 416 पैकेटेस में छिपाकर पानी की 2 टंकियों में डुबो दिया गया था। सेना के सूत्रों ने बताया कि आतंकवादियों ने ओवरग्राउंड वर्कर्स की मदद से विस्फोटकों के इन पैकेट्स को घाटी में डिस्ट्रिब्यूट किया था ताकि पुलवामा में एक बड़े आतंकी हमले को अंजाम दिया जा सके।
अवंतीपोरा के पास गदिकल में जम्मू-कश्मीर पुलिस, सेना और CRPF के संयुक्त तलाशी अभियान में छापेमारी के दौरान विस्फोटक के ये पैकेट्स जब्त किए गए। इन पैकेट्स को एक जंगल के पास स्थित पौधों की एक नर्सरी में 250 लीटर के 2 बड़े प्लास्टिक टैंक्स के अंदर रखा गया था। हमारे जवान अंडरग्राउंड प्लास्टिक वॉटर टैंक्स के अंदर गए जहां उन्हें विस्फोटकों के 416 पैकेट मिले, जिनमें से हरेक का वजन 125 ग्राम था। साथ ही एक अन्य प्लास्टिक वॉटर टैंक में छिपाए गए लगभग 50 डेटोनेटर भी बरामद हुए।
इन विस्फोटकों को संक्षेप में सुपर-90 या एस-90 कहा जाता है। आपको याद होगा कि पिछले साल फरवरी में पुलवामा में एक आतंकी द्वारा अंजाम दिए गए आत्मघाती हमले में CRPF के 40 जवान शहीद हो गए थे, जिसके चलते देशव्यापी आक्रोश फैल गया था। बाद में भारतीय वायुसेना ने जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान के बालाकोट में स्थित आतंकी ठिकानों पर बम बरसाकर उन्हें तबाह कर दिया था।
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने कुछ दिन पहले ही आगाह किया था कि पाकिस्तान लद्दाख में भारत के खिलाफ जारी सैन्य गतिरोध में चीन की मदद करने के लिए देश के अंदर एक बड़े आतंकी हमले को अंजाम देने की कोशिश कर सकता है। पुलवामा जैसे एक और हमले को अंजाम देने की यह साजिश उसी रणनीति का हिस्सा लगती है। जिस स्थान पर गुरुवार को विस्फोटक पाए गए थे, वह नेशनल हाइवे के करीब था और उस जगह से लगभग 9 किलोमीटर दूर था जहां पुलवामा में पिछले साल आत्मघाती हमला हुआ था।
जनरल बिपिन रावत की बात सही साबित हो रही है। यदि आतंकवादी भारतीय सेना के काफिले पर एक और बड़ा हमला करने में कामयाब हो जाते, तो भारत को जवाबी कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ता, जैसा कि उसने बालकोट में किया था। अपने ‘पक्के दोस्त’ चीन की मदद के लिए पाकिस्तान इस समय भारत के खिलाफ ‘दूसरा मोर्चा’ खोलने के लिए उकसावे की कार्रवाई करने पर तुला हुआ है। सेना प्रमुख जनरल एम. एम. नरवणे नियंत्रण रेखा पर हमारी सेना की तैयारियों का आकलन करने के लिए गुरुवार को श्रीनगर में थे।
चाहे कुछ भी हो, यदि पाकिस्तान संघर्ष के लिए उकसाता है तो भारतीय सशस्त्र बलों में देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए 2 मोर्चों पर एक साथ लड़ने की क्षमता है। हमारी सेना का मनोबल ऊंचा है। हमारे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को राज्य सभा को बताया कि धरती की कोई भी ताकत हमारी सेना को वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास पट्रोलिंग करने से नहीं रोक सकती। उन्होंने कहा है कि हमारी सेना लद्दाख में चीनी सेना की ओर से किए गए कुकृत्यों का मुंहतोड़ जवाब में सक्षम है। हमारे सैनिक LAC और LOC के पास किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
How Pakistan is trying to help China in ongoing tussle
A major Pulwama-style terror attack was averted on Thursday in Kashmir when Indian army jawans seized 52 kg explosives from Jaish-e-Muhammad terrorists in Karewa near Gadikal area. The explosives were hidden in 416 packets and were kept submerged inside two water tanks. Army sources said that the explosive packets were distributed through overground workers in the Valley by terrorists with a plan to use them to carry out a major attack in Pulwama.
In a joint search operation by J&K Police, army and CRPF in Gadikal near Avantipora, the explosive packets were seized during a raid. These were kept inside two big 250 litre plastic tanks in a plant nursery near a forest. Our jawans went inside the underground plastic water tanks and found 416 packets, each packet containing 125 grams of explosives. Nearly 50 detonators were found hidden inside the other plastic water tank.
The explosives are called Super-90 or S-90 in short. It may be recalled that 40 CRPF jawans were martyred in a suicide attack by a terrorist in February last year in Pulwama, which caused nationwide outrage. Indian Air Force had to bomb terrorist hideouts in Balakot inside Pakistan in retaliation.
Chief of Defence Staff Gen. Bipin Rawat had cautioned a few days ago that Pakistan may try to carry out a big terror attack inside India in order to help China in the latter’s ongoing military standoff against India in Ladakh. This plot to carry out another Pulwama-style attack appears to be part of that strategy. The spot where the explosives were found on Thursday was close to the National Highway and nearly nine kilometre away from the spot where the Pulwama suicide attack took place last year.
Gen. Bipin Rawat’s words seem to be prophetic. Had the terrorists managed to carry out another major attack on Indian army convoy, India would have been forced to retaliate like it did in Balakot. Pakistan is bent on carrying out provocation, in order to start a “second front” against India to help its “iron friend” China. The Army chief Gen. M. M. Narwane was in Srinagar on Thursday to assess the preparedness of our forces on the Line of Control.
Come what may, if Pakistan provokes a conflict, Indian armed forces have the capability to fight simultaneously on two fronts in order to protect national sovereignty and territorial integrity. The morale of our armed forces is high. Our Defence Minister Rajnath Singh told the Rajya Sabha on Thursday that no power on earth can stop our army from patrolling near the Line of Actual Control. He has said that our forces are capable of repelling misadventure on part of Chinese army in Ladakh. Our troops are in a state of full preparedness both near the LAC and LoC.
सीमा पर बेमन से तैनात हैं चीनी सैनिक
आधिकारिक सूत्रों ने अब इस बात की पुष्टि कर दी है कि भारतीय और चीनी सैनिकों ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पैंगोंग झील और चुशुल के पास 7 से 11 सितंबर के बीच कई बार चेतावनी के तौर पर 100 से 200 राउंड गोलियां दागी थीं। यह घटना विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच मॉस्को में हुई मुलाकात के कुछ दिन पहले हुई थी। इस मुलाकात में दोनों ने तनाव को कम करने के लिए एक पांच सूत्री योजना पर सहमति व्यक्त की थी जो अभी भी कागजों पर ही है।
गोलीबारी की यह घटना तब हुई जब चीनी सैनिकों ने 7 और 8 सितंबर को भड़काऊ तरीके से पहले फायरिंग की, जिसके बाद भारतीय सैनिकों ने भी जवाबी फायरिंग करते हुए वॉर्निंग शॉट्स लगाए। भारतीय सेना के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने हमारे डिफेंस एडिटर मनीष प्रसाद को घटना के बारे में बताते हुए इस बात की पुष्टि की है। वरिष्ठ अधिकारियों ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय जवानों ने चीनी पक्ष को निशाना बनाकर वॉर्निंग शॉट्स नहीं दागे थे, लेकिन संदेश साफ था। यदि दुश्मन गोलीबारी करने का ठान ही लेता है, तो हमारी सेना के जवान उसे मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार हैं।
सेना के अधिकारियों ने खुलासा किया कि चीनी सैनिकों ने पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे से हवा में फायरिंग की क्योंकि वे कम से कम 24 फीचर्स (पहाड़ की चोटियों) से भारतीय जवानों को किसी भी कीमत पर पीछे हटाना चाहते थे। 1962 के बाद पहली बार हमारे जवानों रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण उन चोटियों पर अपनी पोस्ट बना ली है, जहां वे पहले पट्रोलिंग नहीं किया करते थे। इन चोटियों पर तैनात हमारे सैनिक अब चीनी टुकड़ी की हरकतों पर लगातार नजर रख सकते हैं।
इंडिया टीवी को पता चला है कि जब हमारे जवान फिंगर थ्री के पश्चिमी हिस्से की तरफ बढ़ रहे थे, तो उसी दौरान चीनी सैनिक फिंगर 3 और फिंगर 4 के बीच के इलाके को कब्जा करने, उसको डॉमिनेट करने की नीयत से आगे बढ़ रहे थे। इस उकसावे वाली कार्रवाई के चलते लगभग 100-200 राउंड गोलियां हवा में दागी गईं। पहले चीन की तरफ से ताबड़तोड़ फायरिंग की गई, जिसका मुंहतोड़ जवाब देते हुए हमारे जवानों में भी वॉर्निंग शॉट्स दागे।
हमारे डिफेंस एडिटर के मुताबिक, पहली बार 7 सितंबर को चुशूल सब सेक्टर में गोलियां चलीं, जबकि पैंगोंग झील पर फायरिंग की घटना 8 सितंबर को हुई थी। हमारे जवानों को अतिक्रमण के लिए आगे आ रहे चीनियों को पीछे धकेलने के लिए फायरिंग करनी पड़ी। इस घटना के 2 दिन बाद 10 सितंबर को दोनों विदेश मंत्री मॉस्को में मिले थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमारे सशस्त्र बलों को जवाबी कार्रवाई के लिए हालात के हिसाब से फैसले लेने की छूट दे रखी है। शर्त सिर्फ इतनी है कि: हमारे जवानों पहले फायर नहीं करेंगे, वे एलएसी क्रॉस नहीं करेंगे, लेकिन अगर दुश्मन गड़बड़ी करता है तो ऐक्शन लेने में देरी भी नहीं करेंगे। चीन के जनरलों को यह अंदाजा हो गया है कि उनकी कोई भी चाल काम नहीं आ रही है। इसलिए वे अब युद्धाभ्यास के पुराने वीडियो जारी करके प्रॉपेगेंडा वॉर का सहारा ले रहे हैं।
बुधवार को जारी किए गए युद्धाभ्यास के वीडियो में से एक के बारे में दावा किया गया कि ये वीडियो वेस्टर्न सिचुआन प्रोविंस का है जहां पर चीनी PLA की 77वीं ग्रुप आर्मी ने आर्मर यूनिट, एयर डिफेंस और आर्टिलरी यूनिट के साथ लाइव फोर्स कंफ्रंटेशन एक्सरसाइज को अंजाम दिया। इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई थी कि यह युद्धाभ्यास कब हुआ। चीनी सेना के फाइटर एयरक्राफ्ट और अटैक हेलिकॉप्टर्स के अधिकांश वीडियो एडिटेड होते हैं।
चीनी सेना इस बात पर भी फर्जी प्रॉपेगेंडा फैला रही है कि भारत के जवान सब जीरो टेंपरेचर के साथ-साथ कोरोना वायरस की चुनौती का भी सामना करेंगे। हमारे डिफेंस एडिटर ने चीन के इस झूठ का पर्दाफाश करते हुए विजुअल्स भेजे हैं कि भारतीय सेना किस तरह प्रभावी तरीके से फॉरवर्ड बेस पर सभी जवानों और अफसरों की स्क्रीनिंग को अंजाम दे रही है। एक स्पेशल ट्रांजिट फैसिलिटी का निर्माण किया गया है जहां अफसरों और जवानों की फिजिकल स्क्रीनिंग के साथ-साथ उनके सामान की भी जांच होती है। पूरी तरह से मेडिकली सर्टिफाई होने के बाद ही इन जवानों को फॉरवर्ड पोस्ट पर आगे जाने की इजाजत दी जाती है।
कुल मिलाकर हालत कुछ ऐसी दिखती है: चीन की सेना आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए है, हम कोरोना वायरस महामारी से लड़ रहे हैं, और हमारे अफसरों और जवानों को सब-जीरो टेम्परेचर में लड़ाई के लिए तैयारी करनी पड़ रही है। यह सब आसान नहीं है लेकिन हमारे उन अफसरों और जवानों के जज्बे को सलाम है जो दुश्मन से टकराने के लिए बेताब हैं।
मैंने कई ऐसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों से बात की जो लद्दाख के बर्फीले इलाकों में काम कर चुके हैं। उनमें से एक ने बहुत ही दिलचस्प बात बताई। उन्होंने कहा कि चीन भले ही कितना भी प्रॉपेगेंडा कर ले, लेकिन उनके जनरल्स यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि उनके युवा अफसरों और जवानों में वह जज्बा नहीं है जो पहाड़ की चोटियों पर लड़ाई लड़ने के लिए जरूरी है। उनके अंदर अपने देश, अपनी सेना के लिए लड़ने-मरने का जज्बा ही नहीं है।
सेना के रिटायर्ड अफसर ने इसकी वजह भी बताई कि युवा चीनी अफसरों और जवानों में अपने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने का जज्बा क्यों नहीं है। उन्होंने कहा कि चीन में ज्यादातर युवा अफसर और जवान मजबूरी के चलते सेना में शामिल होते हैं। चीन में सभी युवाओं के लिए सेना में शामिल होना अनिवार्य है। इनमें ऐसे भी युवा शामिल हैं जो चीन के अमीर परिवारों से ताल्लुक रखते हैं और विलासिता का जीवन जीने के आदी है। फिर भी उन्हें एक निश्चित अवधि के लिए सेना में अपनी सेवाओं देनी पड़ती हैं। ये युवा अफसर और जवान अपनी जल्दी-जल्दी अपना कंपलसरी पीरियड पूरा करके ऐशो-आराम की अपनी उस जिंदगी में वापस लौटना चाहते हैं जिसके वे आदी हैं।
यही वजह है कि उनके अंदर देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने का जज्बा ही नहीं है। दूसरी ओर, हमारे युवा अफसरों और जवानों का मनोबल हमेशा ऊंचा रहता है। वे अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए मौत से भी लड़ने के लिए तैयार रहते हैं। ये जोश, ये हौसला, ये जज्बा हमारी फौज की सबसे बड़ी ताकत है। देश अपने उन बहादुर अफसरों और जवानों को सलाम करता है जो हमारी सीमाओं की रक्षा के लिए वहां तैनात हैं।
Unwilling Chinese soldiers
Official sources have now confirmed that Indian and Chinese troops fired 100 to 200 warning shots in the air several times between September 7 and 11 near Pangong lake and Chushul at the Line of Actual Control in eastern Ladakh. The incident took place days before Foreign Minister S. Jayashankar met Chinese foreign minister Wang Yi in Moscow and agreed on a five-point plan to defuse tensions that still remains on paper.
The firings took place when chinese troops first fired warning shots in a provocative manner on September 7 and 8, and Indian troops fired warning shots in retaliation. This was confirmed by some senior Indian army officers while giving details to our Defence Editor Manish Prasad. The senior officers clarified that Indian jawans did not fire warning shots towards the Chinese side, but the message was clear. If the enemy resorts to firing, our army jawans are ready to respond.
Army officers revealed that the Chinese troops fired warning shots in air from the northern bank of Pangong lake because they were desperate to dislodge Indian jawans from at least 24 features (heights). For the first time since 1962, our jawans have set up posts on strategic heights in places where they never patrolled in the past. Our troops are now in a position to keep a watch on Chinese troop movements.
India TV has learnt that when our jawans were moving towards the western side of Finger three, Chinese troops came ahead between Finger 3 and Finger 4 to dominate the area. Due to this transgression, nearly 100 to 200 warning shots had to be fired. At first, the firing was intense from the Chinese side, and then our jawans retaliated by firing warning shots.
According to our Defence Editor, the first warning shots were fired on September 7 in Chushul sub-sector, while firing of warning shots at Pangong lake took place on September 8. Our jawans had to fire in the air to force the Chinese to retreat from committing transgressions. Two days later, on September 10, the two foreign ministers met in Moscow.
Prime Minister Narendra Modi has given a free hand to our armed forces to retaliate, depending on the situation. The only conditions are: our jawans must not fire first, they must not cross the LAC, but if the enemy creates trouble, they should not wait to act. The Chinese generals have realized that their moves are not working any more. They have now resorted to propaganda war by releasing old videos of war drills.
One of the war drill videos released on Wednesday related to a live force confrontation exercise in which the 77th group of Chinese PLA, along with armoured units, air defence and artillery units took part in south western Sichuan province. No mention was made about when the war exercise took place. Most of the Chinese army videos of fighter aircraft and attack helicopters are edited.
The Chinese army is also carrying out fake propaganda over how Indian jawans will face sub zero temperature and Coronavirus pandemic together. Our Defence Editor has sent us visuals of how Indian army is effectively carrying out screening of all officers and jawans at forward bases. A special transit facility has been created where the officers and jawans undergo physical screening along with scrutiny of their baggages. Only after full medical clearances, these jawans are allowed to move toward forward posts.
The situation overall looks like this: the Chinese army is carrying out aggressive postures, we have the Coronavirus pandemic on our hands, and our officers and jawans have to prepare for a conflict in sub-zero temperature. It’s a tall order nevertheless, but hats off to the morale of our officers and jawans that they are raring to go against the enemy.
I spoke to several senior army officers who had worked in the icy regions of Ladakh. One of them revealed an interesting fact. The Chinese may well carry out fake propaganda war, but their generals clearly know that their young officers and soldiers lack the morale required to fight battles on mountain tops. They clearly lack the will to fight for their country, their army.
The retired army officer explained the reason why young Chinese officers and soldiers are unwilling to offer the supreme sacrifice for their country. He said, most of the young officers and soldiers in China join the army due to compulsions. Joining the army is mandatory in China for all youths. Among these youths are those who are the scions of rich Chinese families, accustomed to living a life of luxury. Yet they have to serve the army for a definite period. These young officers and soldiers are in a hurry to complete their compulsory service and return to the luxurious life they are accustomed to.
This is the reason why they do not want to give the supreme sacrifice for their nation. On the other hand, the morale of our young army officers and jawans has always been high. They are ready to fight even Death in order to protect their motherland. It is this level of morale that is prevalent in our armed forces. The nation salutes our brave officers and jawans who are out there to protect our borders.
चीन है कि मानता नहीं
भारत और चीन के बीच लद्दाख में जारी गतिरोध पर मंगलवार को संसद में पहला आधिकारिक बयान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दिया। अपने बयान में रक्षा मंत्री ने कहा, चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर यथास्थिति को एकतरफा बदलने की कोशिश कर रहा है, जबकि भारत इस विवाद का शांतिपूर्ण हल करना चाहता है। भारत अपनी क्षेत्रीय अखंडता के प्रश्न पर कोई समझौता नहीं करेगा। राजनाथ सिंह ने कहा कि विवाद की वजह चीन का निरन्तर आक्रामक रुख है। चीन एलएसी को लेकर बने मैकेनिज्म को नहीं मान रहा है, वह पूरी तरह से इसकी अवहेलना कर रहा है। चीन ने भारी तादाद में सैनिकों और हथियारों की तैनाती कर दी है। रक्षा मंत्री ने साफ-साफ कहा कि भारत किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है। चीनी सैनिकों के साथ कई बार झड़प के बावजूद भारतीय सैनिकों का मनोबल ऊंचा है। रक्षा मंत्री ने कहा, चीन का कदम दोनों देशों के बीच अतीत में हुए समझौतों की अवहेलना है।
राजनाथ सिंह ने कहा कि चीन ने एलएसी के पार भारी तादाद में सैनिकों और हथियारों की तैनाती कर दी है। भारतीय सेना ने चीन के इस सैन्य जमावड़े के जवाब में पर्याप्त कदम उठाए हैं। उन्होंने यह माना कि भारत इस समय ‘पूर्वी लद्दाख में चुनौती का सामना कर रहा है’, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इन चुनौतियों के बारे में विस्तार से नहीं बताया कि यह एक संवेदनशील मुद्दा है। राजनाथ सिंह ने नपे-तुले शब्दों में संसद में जो कुछ कहा उसका मतलब समझने की जरूरत है। चीन लगातार आंखें दिखा रहा है और हमलावर की मुद्रा में है। एलएसी को लेकर अब तक जो परंपरा रही है या जो मैकेनिज्म बना है या फिर जो भी समझौते हुए हैं, चीन उसका पालन नहीं कर रहा है। चीन ने सरहद पर फौज को तैयार कर रखा है। भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद जमा किए हुए है।
भारत ने इस मुद्दे के समाधान के लिए राजनयिक और सैन्य स्तर पर कई बार बात की। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल ने कोशिश की। राजनाथ सिंह ने चीन के रक्षामंत्री से बात की। एस. जयशंकर ने चीन के विदेश मंत्री से बात की, लेकिन चीन कुछ भी मानने को तैयार नहीं है। मंगलवार को राजनाथ सिंह ने साफ-साफ संकेत दिए कि चीन कोई बात सुनने को तैयार नहीं है। न किसी तर्क को मानने को तैयार है, न किसी समझौते को और न अपने वादे को। इसीलिए हमारी फौज ने भी बराबर की तैयारी की है। राजनाथ सिंह ने जो कहा, उसका एक बड़ा मतलब ये है कि सीमा पर जंग के हालात से इनकार नहीं किया जा सकता। इसकी संभावना लगातार बनी हुई है। क्योंकि चीन कुछ भी मानने को तैयार नहीं है।
अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में मंगलवार की रात हमने आपको अपने डिफेंस एडिटर मनीष प्रसाद और कैमरपर्सन चंद्रभान द्वारा लिए गए एक्सक्लूसिव विजुअल्स को दिखाया कि कैसे हमारी थल सेना और वायुसेना लद्दाख में एलएसी के पास पूरी तरह से मुस्तैद है। चीन से लगी सरहद पर हमारी सेना की तैयारियां देखकर अहसास होता है कि हमारी फौज कितनी एडवांस प्लानिंग करती है। कितनी बहादुरी से.. कितने साइंटिफिक तरीके से प्लानिंग की गई है और हमारी फौज कितनी सक्षम हैं। साथ ही इन तस्वीरों से ये भी समझ में आता है कि रक्षा मंत्रालय ने 16 हजार फीट की ऊंचाई पर तैनात जवानों के सपोर्ट के लिए कितने बड़़े पैमाने पर इंतजाम किए हैं।
सेना के अधिकारियों और जवानों के मनोबल को देखकर विश्वास होता है कि हमारी सीमाएं सुरक्षित हैं। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि फॉरवर्ड बेस पर जिंदगी बहुत मुश्किल होती है। कितने भी इंतजाम कर लें, कितनी भी सुविधाएं दे दें, हड्डियां गलाने वाली कड़ाके की ठंड है और कुछ दिन बाद तो वहां बर्फ ही बर्फ होगी। ऑक्सीजन का लेवल और कम हो जाएगा, सांस लेना मुश्किल होगा। हमारे सैनिकों के पास इस मौसम से लड़ने का साजो-सामान है। खाने-पीने का इंतजाम और गोला बारूद है। लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि ऊंची चोटियों पर खतरा भी बेईंतहा है।
सरहद पर तैयरियों की तस्वीरों को देखकर अपनी फौज के अफसरों और सैनिकों की बहादुरी पर गर्व होता है। ये सही है कि उनकी हिम्मत देखकर हौसला बढ़ता है और याद आता है कि उनसे जब-जब पूछा जाता है कि ‘हाऊज द जोश’… सभी बहादुर अफसर और जवान कहते हैं -‘हाई सर’। इस जोश के साथ पूरे देश को खड़ा रहने की जरूरत है। इस जज्बे को बार-बार सलाम करने की जरूरत है ताकि हमारे बहादुर सिपाहियों, जांबाजों को ये पता रहे कि पूरा देश उनके पीछे खड़ा है।
‘आज की बात’ में मंगलवार रात हमने आपको फॉरवर्ड बेस पर तैयारियों की तस्वीरें दिखाई। फॉरवर्ड लोकेशन्स पर ऐसी तैयारियां हैं, जैसी पहले कभी नहीं थी। राशन डिपो भरे हुए हैं। दवाओं का पूरा स्टॉक है। फ्यूल डिपो फुल हैं। ग्लोबमास्टर और चिनूक हैलीकॉप्टर दिन में कई-कई बार सामान के साथ फॉरवर्ड बेस पर पहुंच रहे हैं। आसमान में मिसाइलों से लैस जंगी जहाज लगातार चक्कर लगा रहे हैं। सरहद पर सेना के ठिकानों पर इतना गोला-बारूद और राशन पहुंचा दिया गया है कि अगर चीन कोई गड़बड़ी करता है और मौसम खराब होने के कारण सप्लाई लाइन कटती है तो भी हमारे सैनिकों को न तो हथियारों और गोला बारूद की कमी होगी और न ही खाने-पीने की चीजें कम पड़ेंगी। पूरी सर्दी अगर सप्लाई बंद रहे तो भी कोई दिक्कत नहीं होगी।
सरहद पर बर्फीले ऊंचाई वाले इलाकों में अधिकारियों और जवानों के लिए 18 हजार से 20 हजार फीट की ऊंचाई पर टेंट लगाए गए हैं। ये ऐसे टेंट हैं जो माइनस 50 डिग्री तापमान में भी जवानों को सर्दी से बचाएंगे.। इन टेंट्स में सोलर लाइट्स और हीटर के अलावा इनमें थ्री लेयर सूट्स, कैमोफ्लाज जैकेट, एवलांच किट से लेकर पूरी मेडिकल सप्लाई मौजूद है। ऐसे टेंट्स भी मौजूद हैं जो हमारे जवानों को भीषण सर्दी से बचाएंगे और अगर मौसम की वजह से कोई हादसा हो जाता है तो फिर ऐसी सूरत में भी जवानों को रेस्क्यू करने के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। और बड़ी बात ये भी है कि एलएसी पर टेंशन को देखते हुए कम-से-कम 12 से 14 महीने तक राशन का स्टॉक जमा हो चुका है। यानी अगर चीन के साथ आगे लिमिटेड वॉर होता भी है या ऐसे हालात बनते हैं, तो फिर हमारे जवानों के लिए राशन की कोई दिक्कत नहीं होगी। सप्लाई लाइन जारी रहेगी।
हमें उम्मीद है कि चीन के जनरलों को ये अहसास होगा कि वे कैसी मूर्खता करने जा हैं। यदि वे अपने अड़ियल रूख पर कायम रहते हैं तो एकमात्र विकल्प सीमित युद्ध है। हमारे बहादुर जवान दुश्मन को कुचलने के लिए तैयार हैं।
China is not willing to listen to reason
In the first official statement in Parliament on the India-China military standoff in Ladakh, Defence Minister Rajnath Singh on Tuesday said, China is trying to unilaterally alter the status quo on the Line of Actual Control, while India wants to peacefully resolve the ongoing confrontation. Singh said, India is fully prepared to deal with any situation and the morale of Indian troops remains high despite several face-offs with the Chinese troops. “The Chinese actions reflect a disregard of our various bilateral agreements”, the Defence Minister said.
Singh said that the Indian armed forces have taken adequate counter-measures to match the Chinese military buildup across the LAC. He admitted that India “is facing a challenge in eastern Ladakh” this time, but did not elaborate saying he “would not go into sensitive operational issues”. The Defence Minister’s words in Parliament were carefully modulated and balanced, but it reveals how China is resorting to aggressive postures with massive military buildup and had been making frequent attempts at incursions.
India has tried its best to resolve the issue, both militarily and diplomatically. Both National Security Adviser Ajit Doval and Foreign Minister S. Jaishankar spoke to Chinese Foreign Minister Wang Yi, and our Defence Minister spoke to his Chinese counterpart, but China is not yielding. It is unwilling to listen to reason. The statement made by our Defence Minister clearly indicates that a warlike situation on the LAC cannot be immediately ruled out. The possibilities remain because Chine is not yielding.
In our prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Tuesday night, we showed exclusive visuals, taken by our Defence Editor Manish Prasad and cameraperson Chandra Bhan, of how our army and air force are in a state of preparedness near the LAC in Ladakh. Looking at the visuals on preparedness of our armed forces, we cannot but marvel at the extensive, scientific and minute planning made by our strategists. The Defence Ministry, on its part, has provided all facilities to our brave jawans, manning our posts at heights of more than 16,000 feet.
Looking at the morale of our officers and jawans, we can be rest assured that our borders are safe and secure in capable hands. One should not forget that life at such altitudes is not easy. Winter is fast approaching, and our jawans will have to face biting cold weather, in which oxygen levels drop and it is even difficult to breath normally. Our troops are ready with adequate food provisions, ammunitions and weapons to take on the enemy.
We should indeed be proud of our officers and jawans, when we watch the visuals of their state of preparedness. To all questions relating to ‘How’s the josh’, these brave officers and jawans always reply “High, sir”. Such is their tenacity and morale. All of us must salute them for their bravery so that they may know that the entire nation stands solidly behind them. Our government is confident and the ‘josh’ of our officers and jawans is high.
The visuals from a forward location shown on Tuesday night in ‘Aaj Ki Baat’ clearly show our troops have enough stocks of food, medicines, ammunitions, weapons and fuel. Our Globemaster transport aircraft and Chinook choppers are constantly supplying essentials to our troops deployed at the frontline. The planning is so meticulous that even if there is bad weather and the supply line is disrupted, our troops will be left with enough essentials to last the whole winter.
This is unprecedented in our army’s history. Tents have been erected for our officers and jawans at heights of 18-20,000 feet. These tents can withstand biting winter in temperature as low as minus 50 degree Celsius. Three-layered suits, camouflage jackets, solar heaters and lights, avalanche kits along with medical supplies, top quality food provisions that can last for almost a year have been provided to our troops. Even if there is a limited war, our troops are fully equipped with arms, ammunitions and provisions to last the entire duration of the conflict.
Let us hope that the Chinese military leaders realize the folly that they are going to commit. If they do not yield from their intransigent position, the only option left is a limited war. Our valiant armed forces are ready to give a crushing blow to the enemy.
चीन की जेनहुआ डेटा कंपनी से जुड़े लोगों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं
सोमवार को हुआ यह रहस्योद्घाटन कि एक चीनी कंपनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल की मदद से 10,000 से ज्यादा भारतीयों, जिनमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, बड़े राजनेता और उनके करीबी लोग शामिल हैं, के डेटा को इकट्ठा करने और उनकी मूवमेंट पर नजर रखने में लिप्त रही है, एक बड़ी चिंता का कारण बन गया है।
चीनी कंपनी जेनहुआ डेटा इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक टेक्नोलॉजी फर्म है जिसका हेडक्वॉर्टर शेनजेन में है। यह कंपनी चीन की खुफिया, सैन्य और सुरक्षा एजेंसियों के साथ काम करने का दावा करती है। कंपनी ने इन टूल्स को भारतीय राजनेताओं, सैन्य अधिकारियों, मून मिशन और मार्स मिशन के वैज्ञानिकों, परमाणु ऊर्जा विशेषज्ञों, उद्योगपतियों, मुख्यमंत्रियों और ओपिनियन मेकर्स की निगरानी के लिए डिजाइन करके काम में लगाया था। इस लिस्ट में तमाम सांसदों, विधायकों और कई शहरों के महापौरों के नाम शामिल हैं।
कोई भी आसानी से अंदाजा लगा सकता है कि चीनी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां भारत के VVIPs से जुड़ीं इन तमाम जानकारियों का क्या करती होंगी। घरेलू नीतियों को प्रभावित करने के इरादे से इन जानकरियों के इस्तेमाल से कहीं ज्यादा बड़ा खतरा मनोवैज्ञानिक युद्ध का है। चीनी कंपनी ने उन लोगों का डेटा इकट्ठा किया है जो भारत की हुकूमत में असर रखते हैं।
कंपनी ने जिन लोगों का डेटा इकट्टा किया है उनकी लिस्ट दिमाग को हिलाकर रख देने वाली है: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, कई केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, शिवराज सिंह चौहान, अशोक गहलोत, कैप्टन अमरिंदर सिंह, योगी आदित्यनाथ, नवीन पटनायक, हेमंत सोरेन, त्रिवेंद्र रावत, उद्धव ठाकरे, लगभग 350 सांसद, सीडीएस जनरल बिपिन रावत, तीनों सेनाओं के प्रमुख, सशस्त्र बलों के लगभग 60 वरिष्ठ सेवारत अधिकारी और सशस्त्र बलों से रिटायर हो चुके 15 सीनियर अफसर। इस लिस्ट में भारत के चीफ जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस ए. एम. खानविलकर, सीएजी जी. सी. मुर्मू, उद्योगपति रतन टाटा और गौतम अडानी के नाम भी शामिल हैं। मकसद साफ है: चीनी कंपनी डेटा इकट्ठा करके उसे रिसर्च के लिए चीनी खुफिया एजेंसियों को सौंप रही थी। इसे ‘हाइब्रिड वॉरफेयर’ कहा जाता है।
इस चीनी कंपनी की स्थापना अप्रैल 2018 में हुई थी। कंपनी के चीन के विभिन्न शहरों में लगभग 20 प्रोसेसिंग सेंटर्स हैं। चीनी सरकार और चीनी सेना इसके सबसे बड़े क्लाइंट्स हैं। कंपनी राजनीति, व्यापार, न्यायपालिका, सरकार, प्रौद्योगिकी, मीडिया और सिविल सोसाइटी से जुड़े लोगों को टारगेट करती है। कंपनी इनमें से हरेक शख्स की सोशल मीडिया पर की जा रही गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखती है: वे सोशल मीडिया पर क्या लिख रहे हैं, क्या लाइक कर रहे हैं और लोग उनकी पोस्ट पर क्या कमेंट कर रहे हैं। कंपनी इन लोगों की लाइव लोकेशन ट्रैक करती है, उनकी फ्रेंड लिस्ट पर नजर रखती है: कुल मिलाकर यह कंपनी किसी शख्स के सारे डिजिटल फुटप्रिंट्स पर नजर रखती है। इस डेटा के आधार पर कंपनी एक इंफॉर्मेशन लाइब्रेरी तैयार करती है और इसे चीनी सुरक्षा एजेंसियों के साथ साझा किया जाता है। ये सारी गतिविधियां भारत के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2011 के प्रमुख प्रावधानों का साफ तौर से उल्लंघन करती हैं।
हाइब्रिड वॉरफेयर एक प्रकार का छद्म युद्ध या प्रॉक्सी वॉर है जिसका उद्देश्य दुश्मन पर मनोवैज्ञानिक प्रभुत्व हासिल करना है। हाइब्रिड वॉर में पारंपरिक युद्ध के साथ साइबर युद्ध और मनोवैज्ञानिक युद्ध को मिलाया जाता है। यह लड़ाई हथियारों से नहीं लड़ी जाती। इसका उद्देश्य दुश्मन देश के लोगों की सोच में बदलाव लाना होता है। हाइब्रिड वॉर के तहत अफवाहें, गलत जानकारियां और फेक न्यूज फैलाई जाती है और इसका मकसद सेना का इस्तेमाल किए बिना प्रभुत्व हासिल करना होता है। उदाहरण के लिए, 2006 में लेबनान युद्ध के दौरान हिजबुल्लाह ने मनोवैज्ञानिक युद्ध के तहत गलत जानकारियों और तथ्यों का इस्तेमाल किया था और आम जनता को गुमराह किया था।
जेनहुआ डेटा इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सिर्फ भारत के नेताओं का डेटा इकट्ठा नहीं कर रही है। चीन ने एक विशाल वैश्विक डेटाबेस बनाया है जिसका इस्तेमाल खुफिया ऑपरेशन के लिए किया जाता है। चीन दुनिया भर के 24 लाख लोगों की जासूसी कर रहा था जिनमें से लगभग 10,000 भारत के हैं। यह चीनी कंपनी ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री समेत देश के 35 हजार लोगों की जासूसी कर रही थी। कंपनी की लिस्ट में अमेरिका के बड़े राजनेताओं और उद्योगपतियों समेत देश के कुल 52 हजार लोगों के नाम शामिल हैं। जेनहुआ डेटा चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और इसकी सुरक्षा एजेंसियों से सीधे जुड़ी हुई है। भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, इंडोनेशिया और मलेशिया ऐसे कुछ देश हैं जहां यह कंपनी जासूसी में शामिल रही है। इस कंपनी ने भारत में आतंकवाद, नशीले पदार्थों की तस्करी, वित्तीय गड़बड़ी और भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों का डेटा भी इकट्ठा किया है। चीन भारत के इन दुश्मनों को आसानी से ब्लैकमेल कर सकता है।
मुझे उम्मीद है कि कम्युनिकेशंस और आईटी मिनिस्ट्री जासूसी करने और डेटा इकट्ठा करने के काम में लिप्त इस चीनी कंपनी से जुड़े लोगों के नापाक मंसूबों को ध्वस्त करने के लिए सख्त कदम उठाएगी और उन्हें उनके अंजाम तक पहुंचाएगी। यह काम जितनी जल्दी हो उतना ही अच्छा होगा।
Take stringent steps against those associated with Chinese Zhenhua Data company
The revelation on Monday that a Chinese company has been indulging in data mining and tracking of movement through Artificial Intelligence tools of more than 10,000 Indians, including the President, Prime Minister, top politicians and people in their close circles, has now become a major cause for worry.
The Chinese company Zhenhua Data Information Technology, a Shenzhen-based technology firm which claims to work with intelligence, military and security agencies of China, had designed and deployed these tools to monitor Indian political leaders, army officers, Moon mission and Mars mission scientists, atomic energy experts, industrialists, chief ministers and opinion makers. Names of scores of MPs, MLAs and city mayors are in the list.
One can easily guess what Chinese intelligence and security agencies will do with this huge mass of information relating to VVIPs from India. The bigger threat is psychological warfare judging from the intent to use such information to influence domestic policy. The Chinese company has mined data of people who have a say in India’s governance.
The list of people whose data have been mined is mind boggling: President Ramnath Kovind, PM Narendra Modi, Congress President Sonia Gandhi, several union ministers, chief ministers Mamata Banerjee, Shivraj Singh Chouhan, Ashok Gehlot, Capt. Amrinder Singh, Yogi Adityanath, Naveen Patnaik, Hemant Soren, Trivendra Rawat, Uddhav Thackeray, nearly 350 MPs, CDS Gen. Bipin Rawat, all three service chiefs, nearly 60 senior serving officers of armed forces and 15 retired senior armed force officers. The list also includes Chief Justice of India S. A. Bobde, Justice A M Khanwilkar, CAG G. C. Murmu, industrialists Ratan Tata and Gautam Adani. The motive is clear: the Chinese company was mining data and handing them over to Chinese intelligence agencies for research. This is called ‘hybrid warfare’.
Set up in April, 2018, this Chinese company has nearly 20 processing centres in different cities of China. The Chinese government and Chinese army are its biggest customers. The company targets politics, business, judiciary, government, technology, media and civil society. The company keeps a watchful eye on social media activities of each of these individuals: what they write, what they like and what comments do people give on their posts. The company tracks live locations of these individuals, their friend lists: in short, all the digital footprints of an individual are kept under watch by this company. An information library is created and this is shared with Chinese security agencies. All these activities clearly violate the major provisions of India’s Information Technology Act, 2011.
Hybrid warfare is a sort of proxy war intended to gain psychological dominance over the enemy. In hybrid war, tools of conventional war are blended with psychological operations and cyber war. It is not fought with weapons. The aim is to bring about change in the mindset of people of the enemy country. Rumours, fake news and misinformation are spread through hybrid warfare and the aim is to gain dominance without use of military. For example, during the Lebanon war in 2006, Hezbollah used fake news and information to carry out psychological war and misguide the general public.
Zhenhua Data Information Technology’s data mining of leaders is not confined to India alone. China has created a big global data base that is used for intelligence operations. China had been keeping surveillance on 2.4 million individuals across the world, out of which nearly 10,000 belong to India. Nearly 35,000 individuals in Australia including their Prime Minister, had been kept under surveillance by this Chinese company. The list includes 52,000 Americans including top politicians and businessmen. Zhenhua Data is directly connected with the Communist Party of China and its security agencies. India, US, Australia, UK, Canada, Indonesia and Malaysia are some of the countries where this company keeps surveillance. This company has also done data mining of individuals in India found involved in terrorism, narcotic smuggling, financial bungling and corruption. China can easily blackmail these individuals who are enemies of India.
I hope Communications and IT Ministry will take stringent steps to put an end to the nefarious activities of people associated with this Chinese company engaged in surveillance and data mining, and take them to task. The sooner, the better.