योगी जी, हाथरस कांड के दोषियों को बिना देरी किए फांसी दिलाएं
उत्तर प्रदेश के हाथरस में 19 साल की एक दलित युवती के साथ गैंगरेप और क्रूरता की घटना से पूरे देश में गुस्सा है। युवती ने 2 हफ्ते तक मौत से लड़ते हुए मंगलवार को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में दम तोड़ दिया। देश की एक बेटी की जान चली गई, वह हैवानियत की शिकार हुई, उसकी हड्डियां तोड़ दी गईं, उसकी जीभ काटने की कोशिश हुई, वह मौत से जूझती रही, लेकिन मंगलवार को वह ज़िन्दगी की जंग हार गई। इस बेटी के साथ जो कुछ हुआ, वह दिल दहला देने वाला है, सुन कर रूह कांप उठती है, रौंगटे खड़े हो जाते हैं। इसके बाद पुलिस, प्रशासन का जो रवैया था, डाक्टरों की जो लापरवाही थी, वह किसी अपराध से कम नहीं है।
मंगलवार की रात को मैने ‘आज की बात’ में हाथरस की इस बेटी का बयान सुनाया, उसकी मां ने जो कहा, उसे दिखाया, पुलिस कैसे इन लोगों के बयानों से बाल की खाल निकाल रही है, ये भी बताया। मैंने दिखाया कैसे पूरे मामले पर पुलिस लीपापोती करने की कोशिश कर रही है, और सबसे दुख की बात, एक बेटी की मौत पर कैसे सियासत हो रही है।
घटना 14 सितम्बर की है। हाथरस जिले के चांदपा इलाके के एक गांव में यह युवती अपनी मां के साथ खेत में घास काटने गई थी। उसी समय चार युवक इस युवती को घसीट कर बाजरे के खेत में ले गए, जहां उसके साथ न सिर्फ सामूहिक दुष्कर्म किया, बल्कि पीट-पीट कर उसकी हड्डियां तोड़ दीं और उसकी जीभ काटने की कोशिश की। बेटी की चीख सुन कर उसकी मां वहां पहुंची। तब तक बलात्कारी वहां से भाग चुके थे। मां ने अपनी साड़ी से बेटी के नग्न शरीर को ढका। पुलिस घटनास्थल पर नहीं गई। मां-बेटे घायल युवती को लेकर थाने गए। वहीं पुलिस ने युवती को फौरन अस्पताल भेजने की बजाय युवती के परिजनों से घटना के बारे में विस्तार से पूछने लगे। क्या हुआ, कैसे हुआ, कौन-कौन थे, क्या सबूत हैं, खेत में क्या करने गए थे, आदि, आदि। पुलिस को बिलकुल रहम नहीं आया। तब इस दलित परिवार ने अपनी बेटी को स्वास्थ्य केन्द्र ले जाने का प्रबंध किया, जहां से उसे तुरंत अलीगढ़ मेडिकल कालेज रेफर कर दिया गया। तब तक काफी देर हो चुकी थी, युवती की हालत बिगड़ चुकी थी, उसे सोमवार को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल लाया गया, जहां एक दिन बाद उसकी मौत हो गई। इस पूरे प्रकरण के दौरान, स्थानीय पुलिस का जो व्यवहार रहा उसके बारे में यह कहा जा सकता है कि वह बेहद शर्मनाक और संवेदनहीन था।
मंगलवार की रात सफदरजंग अस्पताल में उस वक्त खूब ड्रामा हुआ, जब यूपी पुलिस ने परिवार वालों के विरोध के बावजूद शव को बाहर निकाल लिया। पुलिस ने माता-पिता और परिवार वालों की गैर-मौजूदगी में बूल गढ़ी गांव के पास बुधवार सुबह करीब ढाई बजे युवती का अंतिम संस्कार कर दिया। अंतिम संस्कार देखने के लिए पुलिस 30-40 ग्रामीणों को ही अपने साथ लेकर आई थी। परिवार के सदस्यों को न तो दिल्ली में और न ही गांव में युवती के शव को आखिरी बार देखने का अवसर दिया गया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को कहा कि राज्य के गृह सचिव की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय एसआईटी पूरे मामले की जांच करेगी और सात दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। योगी ने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेप के आरोपियों के खिलाफ ‘सख्त कार्रवाई’ करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि इस मामले की सुनवाई जल्दी ही फास्ट ट्रैक कोर्ट में होगी।’
अपने शो ‘आज की बात’ में मंगलवार की रात मैंने आपको वह ऑडियो सुनाया जिसमें पीड़िता अपने साथ हुए जघन्य वारदात के साथ ही रेप के आरोपियों का नाम बता रही है। उसकी जीभ कटी हुई थी और वह टूटे-फूटे लब्जों में बयान दे रही थी। उसकी रीढ़ हड्डी टूटी थी इसलिए कई अंग काम नहीं कर रहे थे और लड़की को पैरालिसिस हो गया था। इसके बाद भी इस लड़की ने हिम्मत करके कैमरे के सामने अपनी आपबीती बता दी थी।
शुरुआत में स्थानीय पुलिस ने केवल एक युवक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी लेकिन काफी विरोध के बाद पुलिस को तीन अन्य आरोपियों के नाम जोड़ने पड़े। युवती ने घटना के एक सप्ताह बाद अपने बयान में सभी चार आरोपियों के नाम का खुलासा किया। जीभ में गंभीर घाव के कारण वह शुरू में बोल नहीं पा रही थी।
इस वारदात के सभी चारों आरोपी अब हिरासत में हैं और कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और चंद्रशेखर आजाद की भीम आर्मी जैसी राजनीतिक पार्टियां अब विरोध प्रदर्शनों के जरिए राजनीतिक लाभ बटोरने की कोशिश कर रही हैं। समाजवादी पार्टी और बसपा सुप्रीमो मायावती ने सिर्फ ट्वीट करते हुए सरकार के खिलाफ बयान दिए है। फिलहाल ये लोग हवा का रूख भांप रहे हैं। क्रूरता और गैंगरेप की ये घटना आठ साल पहले निर्भया के साथ दिल्ली में हुई ऐसी ही घटना की याद दिलाती है। उस समय देशव्यापी विरोध प्रदर्शन हुए और सरकार को यौन उत्पीड़न के मामलों को रोकने के लिए कड़े कानून बनाने पड़े थे। इस मामले में दोषियों को सजा दिलाने में सात साल लग गए। एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद इस साल मार्च में निर्भया केस के दोषियों को फांसी दी गई थी।
हाथरस मामले में आईजी, डीएम और एसपी समेत लोकल पुलिस ने शुरुआत में इस बात से इनकार किया था कि लड़की के साथ रेप हुआ है। एक सीनियर अधिकारी ने दावा किया कि क्लिनिकल जांच में रेप का कोई सबूत नहीं मिला। वे इस बात पर अड़े रहे कि युवकों ने केवल लड़की के साथ दुर्व्यवहार किया है। लेकिन बाद में जनता के जबरदस्त दबाव के बाद सीनियर पुलिस अधिकारियों ने यह माना कि पीड़िता के साथ गैंगरेप हुआ था।
एक सीनियर अधिकारी ने दावा किया कि लड़की की जीभ आरोपियों ने नहीं काटी। इनका कहना था कि आरोपियों ने गला दबाया इसलिए दांतों के बीच आकर जीभ खुद कट गई। इस अधिकारी ने यह भी सवाल उठाया कि अगर पूरी जीभ कटी होती तो लड़की बयान कैसे देती? इससे ज्यादा शर्मनाक और दुखद रवैया और कुछ नहीं हो सकता। इससे ज्यादा संवेदनशून्यता और क्या हो सकती है? उस बेटी की तो जान चली गई और पुलिस अफसर जीभ की बात कर रहे हैं। वह बेटी तड़प-तड़प कर मर गई और अधिकारी रीढ़ की हड्डी की बात कर रहे हैं। चूंकि युवती और उसका परिवार गरीब है, क्या यह उचित है कि पुलिस जो चाहे सो बयान दे दे?
मैं नेताओं के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता। अधिकांश नेताओं की नजर वोट पर है, उनके पास बेटी के माता-पिता और परिवार के सदस्यों के प्रति नकली हमदर्दी है। इसलिए नेताओं के बारे में कुछ कहना बेकार है। पुलिस की संवेदनशीलता के बारे भी मैंने आपको बता दिया। आपको बता दिया कि स्थानीय प्रशासन और पुलिस का क्या कहना था। मुझे अभी भी सीएम योगी आदित्यनाथ से उम्मीद है। मेरी योगी आदित्यनाथ से उम्मीद है कि वह इस बात को समझेंगे। इस बेटी के परिवार को और प्रदेश के लोगों को उम्मीद है कि योगी हाथरस की बेटी को जल्द से जल्द इंसाफ दिलाएंगे और इसमें देरी नहीं होगी।
Yogi must ensure that Hathras rapists are hanged without any delay
The nation is outraged over the horrific gangrape and torture of a 19-year-old Dalit girl, who succumbed to injuries in Delhi’s Safdarjang Hospital on Tuesday. Along with millions of Indians, I am deeply perturbed over the brutal manner in which four youths gangraped the girl in a field, then beat her up causing severe spinal injuries leaving her in a paralysed state, and tried to cut off her tongue.
The victim lay naked in the field groaning and it was her mother who came and covered her with her saree. For 15 days, the girl fought with death and ultimately succumbed to injuries in Delhi. The local administration did not come to her help. Throughout this period, the behaviour of local police was shoddy and insensitive, to say the least.
Let me put all the facts in perspective. On September 14 morning, the girl and her mother had gone to the field in Chandpa area to cut grass, when four youths pounced upon the girl, tied her face with a dupatta, took her to a ‘bajra’ (millet) field, gangraped her and beat her up severely causing spinal injuries. The unconscious girl was rescued by her mother. The local police did not reach the spot. She was taken by her family members to the police station.
The local police, instead of sending her to a hospital immediately in an ambulance to save her life, started questioning the victim’s family members in detail about the gangrape incident. Throughout this period, the girl was lying on the floor groaning, due to severe injuries. When the family members finally took her to the local health centre, she was immediately referred to Aligarh medical college, where her condition started deteriorating. Ultimately, the girl was brought to Delhi’s Safdarjang Hospital, where she died a day after being admitted.
On Tuesday night, there was more drama at Safdarjang Hospital, when UP police whisked away the victim’s body, despite protests by her family members, and cremated her at around 2.30 am at a funeral ground near Bool Garhi village, in the absence of her parents and close family members. Only a handful of villagers were brought by police to watch the cremation. The immediate family members were not allowed to have a last look at the girl either in Delhi or in their village before cremation.
UP chief minister Yogi Adityanath on Wednesday said that a three-member Special Investigation Team headed by state Home Secretary, will probe the entire case and submit its report within seven days. Yogi said, Prime Minister Narendra Modi has called for “strictest action” against the rape accused, and a fast track court will take up the case soon.
In my prime time show ‘Aaj Ki Baat’ on Tuesday night, I had played the audio of the victim describing the horrendous incident and naming the rapists. She was barely able to speak because of severe injuries to her tongue and also because of severe spinal injuries that caused paralysis.
Initially, the local police filed an FIR against only one youth, but they had to add the names of three others after public protests. The victim revealed the name of all four rapists while giving her statement a week after the incident. She was unable to speak initially because of serious injuries to her tongue.
All the four accused are now in custody, and political parties of different hues, like the Congress, Aam Aadmi Party and Chandrashekhar Azad’s Bhim Army, are now trying to make political capital out of it by organizing protests. The Samajwadi Party and BSP supremo Mayawati have, till now, kept a low profile by posting tweets condemning the incident.
This horrific gangrape and murder reminds us of a similar tragedy in Delhi with Nirbhaya, eight years ago. At that time, there were nationwide protests and the government had to make stringent laws to curb cases of sexual assault. It took seven years to bring the rapists to justice. The convicts were hanged in March this year after a prolonged legal battle.
In the Hathras case, the local police, including the IG, DM and SP initially denied that there was any rape. One senior official claimed that no evidence of rape was found after clinical examination. They stuck to the theory that the youths only misbehaved with the girl. But later, after tremendous public pressure, senior police officials admitted that the victim was gang raped.
One senior police official claimed that the assailants did not try to cut off the girl’s tongue. The official said, her tongue injury was caused because it came between her two jaws in course of assault. The officer questioned how the girl could have given her statement if her tongue was cut off. This is really shameful and insensitive to the core. On one hand, the girl died because of grave injuries and on the other hand, this police officer was saying how she could speak if her tongue was cut off. Since the girl and her family come from a poor family, the police officials thought they could get away by making such insensitive remarks.
I do not want to say much about our politicians. Most of them have an eye on the vote, and they have fake sympathy towards the girl’s parents and family members. You have heard what the local administration and police had to say. I have still hope from UP CM Yogi Adityanath. Let us hope he ensures that justice is given to the girl’s family and the perpetrators of this dastardly crime are hanged till death. The sooner, the better.
केंद्र को किसानों की शंकाएं दूर करनी चाहिए
नए कृषि कानून को लेकर किसानों के विरोध की आड़ में कुछ विपक्षी दलों द्वारा सड़कों पर ड्रामेबाजी की जा रही है। सोमवार को कड़ी सुरक्षा वाले दिल्ली के इंडिया गेट के पास राजपथ पर पंजाब यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने एक ट्रैक्टर में आग लगा दी। पुलिस के भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बावजूद सुबह करीब 7.30 बजे कुछ कारों के काफिले के साथ एक ट्रक राजपथ पर पहुंचा जिसमें एक पुराना ट्रैक्टर था। ट्रक से ट्रैक्टर को सड़क पर उतारा गया और प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के कोई कदम उठाने से पहले ही ट्रैक्टर में आग लगा दी। दमकलकर्मियों ने मौके पर पहुंचकर आग की लपटों को बुझाया।
इस पूरी घटना का वीडियो पंजाब यूथ कांग्रेस के फेसबुक पेज पर लाइव किया गया था और कुछ प्रदर्शनकारियों ने वीडियो को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी पोस्ट किया था। दिल्ली पुलिस ने यूथ कांग्रेस के पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन पंजाब यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बरिंदर ढिल्लों फरार है।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स जब ट्रैक्टर से जुड़े सारे तथ्यों को जोड़ते हुए मामले की तह तक पहुंचे तब पता चला कि यह ट्रैक्टर पंजाब यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ता संदीप भुल्लर के नाम पर रजिस्टर्ड था। भुल्लर ने यह ट्रैक्टर दस दिन पहले ही एक किसान से खरीदा था। चूंकि कुछ दिन पहले (20 सितंबर को) पंजाब के फरीदकोट में और डेरा बस्सी में विरोध प्रदर्शन के दौरान ट्रैक्टर को आग लगाने की तस्वीरें आई थी। जब पुराने वीडियो को देखा गया तो उससे पता चला कि जिस ट्रैक्टर को डेरा बस्सी में जलाया गया था, उसी ट्रैक्टर में दिल्ली में आग लगाई गई। ट्रैक्टर का रजिस्ट्रेशन नंबर भी मैच कर गया। आधे जले हुए ट्रैक्टर को एक ट्रक में दिल्ली लाया गया था, और फिर सोमवार को इंडिया गेट के पास इसमें आग लगा दी गई।
कांग्रेस द्वारा विभिन्न राज्यों में इस तरह की फर्जी ड्रामेबाजी आम लोगों के मन में एक ऐसी धारणा बनाने के लिए की जा रही है ताकि लोगों को यह लगे कि किसान नए कृषि कानून के विरोध में अपने ट्रैक्टर जला रहे हैं। फिलहाल किसानों का विरोध प्रदर्शन केवल पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्सों तक ही सीमित रह गया है और स्थानीय नेताओं, बिचौलियों और कमीशन एजेंट्स जिनकी कमाई नए कृषि कानूनों के कारण बुरी तरह से प्रभावित हो रही है, प्रदर्शनकारी किसानों का हर तरह से समर्थन कर रहे हैं, हर स्तर पर उनकी मदद भी कर रहे हैं।
पंजाब और हरियाणा में आम किसानों को अफवाहों के जरिए गुमराह किया जा रहा है। किसानों से कहा जा रहा है कि एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समिति) की मंडियां बंद हो जाएंगी और सरकार किसानों की उपज के लिए एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय करना बंद कर देगी। केंद्र सरकार ने समय-समय पर इन अफवाहों को निराधार बताया और खारिज कर दिया।
पंजाब में किसानों के विरोध प्रदर्शन की अगुवाई खुद वहां के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कर रहे हैं। वे सोमवार को पंजाब में शहीद भगत सिंह के पैतृक गांव खटकर कलां में 45 विधायकों और छह सांसदों के साथ धरने पर बैठे। इन लोगों ने केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और नए कानूनों को किसानों के गले में फांसी का फंदा बताया। उन्होंने कहा कि इससे जनवितरण प्रणाली पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। कैप्टन ने कहा कि जिन राज्यो में इस तरह के कानून पहले से लागू हैं, जहां मंडियों को पहले ही खत्म किया जा चुका है, वहां के किसानों की हालत सरकार को देखनी चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि क्या कॉरपोरेट घराने गरीबों को सब्सिडी पर अनाज देंगे? कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि उनकी सरकार नए कृषि कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों को यह नहीं बताया कि उनकी अपनी पार्टी कांग्रेस ने 2019 के चुनाव घोषणापत्र में एपीएमसी से मुक्त करने का वादा किया था। वो सारी बातें जो कांग्रेस ने उस वक्त अपने चुनाव घोषणापत्र में कही थीं, अमरिंदर ने उसका जिक्र नहीं किया। हालांकि ये भी सही है कि कांग्रेस के नेता आज से नहीं बल्कि पिछले दस साल से मंडियों को खत्म करने के पक्ष में दलीलें दे रहे थे। उस वक्त बीजेपी के लोग इसका विरोध करते थे। लेकिन अब बीजेपी की सरकार ने जब वही स्टैंड ले लिया जो पहले कांग्रेस का था, तो कांग्रेस अपने पुराने स्टैंड को किसान विरोधी क्यों बता रही है? कांग्रेस क्यों कृषि बिल का जोरदार विरोध कर रही है?
यहां तक कि बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी और केंद्र की एनडीए सरकार में शामिल शिरोमणि अकाली दल भी एनडीए से अलग हो गया। शिरोमणि अकाली दल के नेताओं को नए कृषि कानून पर अपना जनाधार खिसकता हुआ नजर आया, उन्हें लगा कि इससे उनका किसानों का वोट बैंक टूट जाएगा इसलिए एनडीए से नाता तोड़ लिया। मैंने अपने रिपोर्टर को पंजाब और हरियाणा के गांवों में भेजा और सीधे किसानों से बात करने को कहा। किसानों का कहना है कि अगर मंडी खत्म हुई, आढ़तिए खत्म हुए तो नुकसान किसानों का होगा। क्योंकि किसानों का आढ़तियों से पीढ़ियों का रिश्ता होता है। बुरे वक्त में या जरूरत के वक्त में आढ़तिए किसानों की मदद करते हैं। अगर आढ़तिए खत्म हो गए तो किसान कहां जाएंगे।
ऐसा लग रहा है कि देश की कृषि में बदलाव को लेकर सरकार की बात अबतक पंजाब और हरियाणा के किसानों तक नहीं पहुंची है। किसान ये कह रहे हैं कि कुछ सालों तक कंपनियां उनकी फसल ज्यादा दाम में खरीदेंगी। जब मंडियां खत्म हो जाएंगी तो फिर कंपनियों की मोनोपॉली (एकाधिकार) होगी और फिर किसान औने-पौने दामों पर अपनी फसलें बड़ी-बड़ी कंपनियों को बेचने के लिए मजबूर होंगे। मुझे लगता है कि किसानों की शंकाओं को दूर करने के लिए कुछ और क्लेरीफिकेशन देने की जरूरत है.. हर पहलू को स्पष्ट करने और किसानों की बात सुनने की जरूरत है। क्योंकि जहां-जहां अटकलें लगाई जाती हैं, वहां अविश्वास बढ़ता है और इससे बचने का जितनी जल्दी उपाय करेंगे उतना बेहतर होगा।
Centre must remove fears from the minds of farmers
Fake dramas are being enacted on the streets by some opposition parties in the guise of farmers’ protest against farm bills. On Monday, a tractor was set ablaze by Punjab Youth Congress workers in the high-security zone of Delhi’s Rajpath, near India Gate. Despite presence of heavy police security, a few cars along with a truck carrying a tractor reached the spot at around 7.30 am. The tractor was dropped on the road from the truck, and the agitators set it ablaze even before the police could react. Fire brigade personnel reached the spot and doused the flames.
The video of the incident was posted live on the Facebook page of Punjab Youth Congress and some of the protesters also posted the video on their social media platforms. Delhi Police arrested five Youth Congress workers but Punjab Youth Congress president Barinder Dhillon is absconding.
India TV reporters pieced together facts relating to this tractor. It was found that the tractor was registered in the name of Sandeep Bhullar, a Punjab Youth Congress worker. He had purchased this tractor from a farmer nearly ten days ago. The tractor was first set ablaze in Dera Bassi, Punjab during a Congress farmers’ agitation on September20. The half-burnt tractor was brought to Delhi in a truck, and it was set ablaze again on Monday near India Gate.
Fake dramas like this are being organized by the Congress in different states to create an impression in the minds of common people that farmers are setting their tractors on fire in protest over the new farm bills. Farmers’ protests at present are confined only to some parts of Haryana and Punjab and there are allegations that local politicians, middlemen and commission agents, whose earnings are going to be adversely affected because of the new farm laws, are providing support to the agitating farmers.
The common farmers in Punjab and Haryana are being misled with rumours that the APMC (agricultural produce marketing committee) mandis will be closed down and the government will discontinue fixing of MSP (minimum support price) for foodgrains and other produces. The Centre has time and again rejected these rumours as baseless.
The farmers’ protests in Punjab are being openly led by the Congress chief minister Capt. Amarinder Singh, who sat on dharna on Monday with 45 MLAs and six MPs in Khatkar Kalan, the native village of Shaheed Bhagat Singh in Punjab. The Punjab CM described the new farm laws as “draconian” and alleged that the new farm laws would mean the end of public distribution system. He questioned whether corporate houses will subsidize foodgrains for the poor. He said, his government would challenge the new farm laws in Supreme Court.
What Capt. Amarinder Singh did not tell the farmers was that his own party Congress had promised to do away with APMCs in its 2019 election manifesto. For the last ten years, Congress leaders had been calling for putting an end to ‘kisan mandis’ and they were then being opposed by BJP leaders. Now that the BJP government has brought the new laws, the Congress has decided to oppose them tooth and nail.
Even the Shiromani Akali Dal, which was part of NDA government at the Centre, walked out as it found the ground slipping from under its feet. The SAD leaders feared a backlash from their farmers’ vote bank. I sent our reporter to speak to farmers in Haryana and Punjab. They said that they trusted their commission agents (aadhatiya) more because their families have been doing business with them for several generations. The farmers said, in times of financial distress, these commission agents used to help them with loans, but if they are removed from the scene altogether, farmers will have nowhere to go to.
It appears that the Centre’s message about transforming Indian agriculture is yet to reach the farmers in Punjab and Haryana. Farmers fear that in the beginning the corporates would start buying their produce at higher rates, but after the mandis cease to exist, the corporates will start dictating terms and will lower the prices, because they will then be having a monopoly. The farmers will then be forced to sell their grains to corporates at throwaway rates.
I feel that more clarifications need to be given to farmers in order to remove apprehensions from their minds. Rumours and speculations lead to mistrust, and the sooner this is avoided, the better.
सुशांत की मौत का मामला: सीबीआई को जांच के बारे में बताना चाहिए
बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत का परिवार सीबीआई द्वारा अभिनेता की मौत मिस्ट्री की जांच में अबतक कोई ठोस प्रगति नहीं होने से उलझन में है। इसकी आंशका मैंने उसी दिन जताई थी जिस दिन सुशान्त की मौत के केस में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB)की एंट्री हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सुशान्त की मौत मामले की जांच सीबीआई को सौंपी थी। लेकिन जिस तरह से इस केस में एनसीबी एक्टिव हुई। उसके कारण सुशान्त की मौत की मिस्ट्री का केस पीछे छूट गया। एनसीबी ने जांच को पूरी तरह से ड्रग्स एंगल की ओर मोड़ दिया। अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती और उसका भाई ड्रग्स लेने के आरोप में अब अपने सहयोगियों के साथ जेल में है। वहीं इस कड़ी में दीपिका पादुकोण, सारा अली खान और श्रद्धा कपूर जैसी बॉलीवुड की अभिनेत्रियां एनसीबी के सामने हैं।
शुक्रवार को सुशांत के पिता के.के सिंह के वकील विकास सिंह ने मीडिया से कहा कि परिवार में इस बात को लेकर निराशा है कि जांच सही दिशा में नहीं जा रही है। उन्होंने कहा, ‘जांच होनी थी सुशांत की मौत की, लेकिन जिस तरह से जांच हो रही है उससे आशंका लग रही है कि सुशान्त की मौत का सच सामने आएगा भी या नहीं, सच्चाई कब पता लगेगी यह कोई नहीं कह सकता।’ उन्होंने कहा कि एनसीबी की जांच अब मुंबई पुलिस वाली जांच जैसी बनकर रह गई है। सभी स्टार्स को बुलाया जा रहा है और सुशांत का केस पीछे छूट गया है।
वकील विकास सिंह ने कहा, ‘एम्स के डॉक्टर ने मुझे बताया कि सुशांत की मौत गला घोंटने से हो सकती है। सीबीआई की जांच सही ट्रैक पर नहीं है। मैं यह नहीं कहूंगा कि मैं सीबीआई से खुश नहीं हूं, लेकिन सुशांत की मौत के मामले को कम महत्व मिलने से चिंतित हूं। एम्स फॉरेंसिक बोर्ड के रिस्पॉन्स को सार्वजनिक किया जाए, इससे सुशांत के परिवार को संतुष्टि मिलेगी। ‘
सुशांत परिवार के वकील ने आगे कहा, ‘आज हमलोग असहाय महसूस कर रहे हैं, हम ये नहीं जानते कि इस केस की जांच किस दिशा में जा रही है। एक महीने से ज्यादा का वक्त बीतने के बाद आज तक सीबीआई ने अपनी जांच के बारे में कुछ नहीं कहा, एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ये नहीं बताया कि अबतक की जांच में उन्होंने क्या पाया। मैं जांच की रफ्तार से खुश नहीं हूं।’
विकास सिंह का कहना है कि एनसीबी बिना किसी ठोस कारण के बड़े-बड़े स्टार्स को समन कर रही है, पूछताछ कर रही है, जबकि इन स्टार्स के खिलाफ कोई केस बनता ही नहीं हैं। विकास सिंह ने एक और बड़ी बात कही। उन्होंने कहा, ‘रिया एक आरोपी है और आरोपी के बयान के आधार पर किसी को भी आरोपी कैसे बनाया जा सकता है? किसी को भी पूछताछ के लिए कैसे बुलाया जा सकता है? जिस तरह से पहले मुंबई पुलिस सुशांत के केस को लटका रही थी अब वही भूमिका एनसीबी की है।’
सुशांत की मौत के बाद उस समय मुंबई पुलिस बड़े-बड़े डायरेक्टर्स, प्रोड्यूसर्स और बड़ेृ-बड़े फिल्म स्टार्स को पूछताछ के लिए बुलाने लगी थी जिनका सुशांत की मौत से कोई मतलब नहीं था। यह पूरा मामला ऑफ द ट्रैक चला गया है। अगर इस वक्त जांच को ट्रैक पर नहीं लाया गया तो फिर न्याय मिलना मुश्किल है।’
इस बीच, एम्स फॉरेंसिक पैनल के प्रमुख डॉ. सुधीर गुप्ता ने गला घोंटने के आरोप को खारिज कर दिया है। डॉ. गुप्ता ने कहा, ‘लिगेचर मार्क और घटनास्थल का जायजा लेकर हत्या या आत्महत्या के किसी नतीजे तक नहीं पहुंचा जा सकता। डॉक्टरों के लिए यह मुश्किल है, और आम लोगों के लिए तो यह असंभव है कि वे तस्वीरों पर लिगेचर मार्क्स देखकर हत्या या आत्महत्या के नतीजे तक पहुंच सकें।
डॉक्टर सुधीर गुप्ता की ये बात सही लगती है कि तस्वीर देखकर इस नतीजे पर पहुंचना नामुमकिन है कि किसी की मौत आत्महत्या है या हत्या। लेकिन सवाल ये है कि सीबीआई इस मामले में खामोश क्यों है? सुशांत मौत मामले की जांच में सीबीआई ने अब तक हुई प्रगति के बारे में क्यों नहीं बताया? एनसीबी द्वारा अभिनेत्रियों को पूछताछ के लिए बुलाकर सुशांत की मौत मामले से पब्लिक का ध्यान हटाकर इसे ड्रग्स एंगल पर केंद्रित किया गया है।
जिस केस को लेकर पब्लिक में इतनी उत्सुकता है, उसकी जांच होने के बजाय दूसरी बातों की जांच हो रही है। लोग तो ये जानना चाहते हैं कि क्या सुशांत ने आत्महत्या की या उसकी हत्या हुई? मुंबई की पुलिस ने भी इस सवाल का जवाब नहीं दिया था और मुंबई पुलिस ‘नेपोटिज्म’ के नाम पर बड़े-बड़े फिल्म स्टार्स को बुलाकर उनसे पूछताछ करने लगी थी। एनसीबी अभिनेता और ड्रग पेडलर्स के बीच ड्रग नेक्सस की जांच करने लगी।
हैरत तो इस बात की है कि शुरू में तो सीबीआई ने तेजी दिखाई थी। सीबीआई की टीम तुरंत मुंबई पहुंच गई थी और रोज-रोज सुशांत के घर के स्टाफ को बुलाया जा रहा था। रिया, उसके भाई, मौजूदा और पूर्व स्टाफ से घंटों पूछताछ की गई है। इस केस से जुड़े अन्य लोगों से भी पूछताछ हुई लेकिन उसके बाद कुछ नहीं हुआ। एम्स की फॉरेंसिक टीम का दावा है कि उसने अपनी रिपोर्ट तैयार कर ली है, लेकिन सीबीआई इस रिपोर्ट को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि सुशांत के परिवार के सदस्यों को इस केस की जांच को लेकर शक है। इसलिए सीबीआई को इस जांच में अबतक हुई प्रगति का खुलासा करना चाहिए।
Sushant death mystery: CBI must come out clean about its probe
Bollywood actor Sushant Singh Rajput’s family is now sceptical about any concrete progress made in the actor’s death mystery probe by the CBI. I had expressed this apprehension the day the Narcotics Control Bureau gave a complete 360-degree turn to the probe by diverting it towards the drugs angle. Actor Rhea Chakraborty and her brother are now in jail along with their associates on drug abuse charge, and there is now a line-up of Bollywood actors like Deepika Padukone, Sara Ali Khan and Shraddha Kapoor before the NCB.
On Friday, Vikas Singh, lawyer of K. K. Singh, father of Sushant Singh, told the media that the family is disappointed now that the investigation has been derailed. He said, ‘the family feels that the probe is going in such a way that the truth is not going to come out. The NCB probe has now become a Mumbai Police type investigation. All the stars are being called and Sushant’s case has taken a back seat.’
The lawyer said, ‘the AIIMS doctor told me that Sushant’s death could be due to strangulation. The CBI investigation is not on track. I will not say I am not happy with CBI, but I am worried about Sushant’s death case getting lesser importance. Let the AIIMS forensic board’s response be made public. This is what will satisfy his family.’
The family lawyer further said, ‘today we are helpless, we do not know in which way the case investigation is going. Till today, CBI has not done a single press briefing to reveal what they have found so far. I am not happy with the speed of the investigation.’
Vikas Singh said, the NCB is summoning big stars without any concrete reason. Moreover no case is made against these stars. He pointed out that Rhea Chakraborty was an accused. “How can others be summoned and charged based on the statements of an accused? It seems the NCB is playing the same role that was being played by Mumbai Police soon after Sushant’s death. Mumbai Police had then called several directors, producers and actors who had nothing to do with Sushant’s death. The entire probe is going off track. If it’s not brought back on track, we cannot expect justice.”
Meanwhile, Dr Sudhir Gupta, head of the AIIMS forensic panel, has rejected allegation of strangulation. Dr Gupta said, “no conclusion or conclusive opinion on homicide or suicide can be made looking at ligature marks and at the scene of occurrence. It is difficult for doctors, and next to impossible for general people to reach a conclusion by seeing ligature marks on photographs.”
Dr Gupta’s views may be correct but the question arises why the CBI about the progress made so far in its investigation into Sushant’s death mystery. Attention of the public has been diverted from the actor’s death mystery to the drugs angle by NCB summoning top female actors for questioning.
The people at large, who loved actor Sushant Singh Rajput, only wanted to know whether he committed suicide or was it a case of murder? Mumbai Police tried to give a ‘nepotism’ angle to its probe and questioned a long list of producers and directors. The NCB took up the probe into drug nexus between actors and drug peddlers.
The most surprising part is that the CBI made a swift beginning. Its team of experts reached Mumbai and questioned Rhea, her brother, current and former assistants of Sushant Singh and other people connected with this case. The AIIMS forensic team claims it has prepared its report, but the CBI is unwilling to accept this report. It is because of this Sushant’s family members have doubts about the probe. It is time CBI should come out clean and reveal the progress made so far in its probe.
Sushant death mystery: CBI must come out clean about its probe
Bollywood actor Sushant Singh Rajput’s family is now sceptical about any concrete progress made in the actor’s death mystery probe by the CBI. I had expressed this apprehension the day the Narcotics Control Bureau gave a complete 360-degree turn to the probe by diverting it towards the drugs angle. Actor Rhea Chakraborty and her brother are now in jail along with their associates on drug abuse charge, and there is now a line-up of Bollywood actors like Deepika Padukone, Sara Ali Khan and Shraddha Kapoor before the NCB.
On Friday, Vikas Singh, lawyer of K. K. Singh, father of Sushant Singh, told the media that the family is disappointed now that the investigation has been derailed. He said, ‘the family feels that the probe is going in such a way that the truth is not going to come out. The NCB probe has now become a Mumbai Police type investigation. All the stars are being called and Sushant’s case has taken a back seat.’
The lawyer said, ‘the AIIMS doctor told me that Sushant’s death could be due to strangulation. The CBI investigation is not on track. I will not say I am not happy with CBI, but I am worried about Sushant’s death case getting lesser importance. Let the AIIMS forensic board’s response be made public. This is what will satisfy his family.’
The family lawyer further said, ‘today we are helpless, we do not know in which way the case investigation is going. Till today, CBI has not done a single press briefing to reveal what they have found so far. I am not happy with the speed of the investigation.’
Vikas Singh said, the NCB is summoning big stars without any concrete reason. Moreover no case is made against these stars. He pointed out that Rhea Chakraborty was an accused. “How can others be summoned and charged based on the statements of an accused? It seems the NCB is playing the same role that was being played by Mumbai Police soon after Sushant’s death. Mumbai Police had then called several directors, producers and actors who had nothing to do with Sushant’s death. The entire probe is going off track. If it’s not brought back on track, we cannot expect justice.”
Meanwhile, Dr Sudhir Gupta, head of the AIIMS forensic panel, has rejected allegation of strangulation. Dr Gupta said, “no conclusion or conclusive opinion on homicide or suicide can be made looking at ligature marks and at the scene of occurrence. It is difficult for doctors, and next to impossible for general people to reach a conclusion by seeing ligature marks on photographs.”
Dr Gupta’s views may be correct but the question arises why the CBI about the progress made so far in its investigation into Sushant’s death mystery. Attention of the public has been diverted from the actor’s death mystery to the drugs angle by NCB summoning top female actors for questioning.
The people at large, who loved actor Sushant Singh Rajput, only wanted to know whether he committed suicide or was it a case of murder? Mumbai Police tried to give a ‘nepotism’ angle to its probe and questioned a long list of producers and directors. The NCB took up the probe into drug nexus between actors and drug peddlers.
The most surprising part is that the CBI made a swift beginning. Its team of experts reached Mumbai and questioned Rhea, her brother, current and former assistants of Sushant Singh and other people connected with this case. The AIIMS forensic team claims it has prepared its report, but the CBI is unwilling to accept this report. It is because of this Sushant’s family members have doubts about the probe. It is time CBI should come out clean and reveal the progress made so far in its probe.
महाराष्ट्र में कोरोना वायरस का प्रकोप बेहद भयावह है
गुरुवार की रात अपने शो ‘आज की बात’ में मैंने ओम प्रकाश शेटे, जो कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के ओएसडी हुआ करते थे, का एक वायरल वीडियो दिखाया था। वह इस वीडियो में सूबे के कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की दुर्दशा के बारे में बता रहे थे। इसमें वह एक जगह कहते हैं, ‘मुझे बेहद बुरा लगता है, कई बार सो नहीं पाता। आम आदमी खुद को कोविड से बचा पाने में असमर्थ है। हम अब तक 17 लाख लोगों की सेवा कर चुके हैं, लेकिन लोग अभी भी मर रहे हैं। हर दिन 600 के करीब मैसेज आते हैं। मदद की मांग करते तमाम लोगों का जवाब देते-देते मैं थक चुका हूं। बहुत सारे लोग मर रहे हैं। अदालत से मेरा अनुरोध है कि वह इस टेक्निकल एरर को दूर करे।’
ये टेक्निकल एरर या तकनीकी त्रुटि क्या है? फडणवीस जब सीएम थे, तब मुख्यमंत्री कार्यालय में एक चिकित्सा सहायता प्रकोष्ठ था। जो गरीब आदमी महंगा इलाज करा पाने में असमर्थ थे, वे आवेदन भेजते थे और उन्हें मुख्यमंत्री सहायता कोष से वित्तीय सहायता जारी कर दी जाती थी। शेटे वह शख्स थे जो इन ऐप्लिकेशंस पर ऐक्शन लेते थे। जब उद्धव ठाकरे सीएम बने तो उन्होंने मुख्यमंत्री राहत कोष से चिकित्सा सहायता जारी करना बंद कर दिया। हजारों गरीब लोग, जिन्हें कोरोना वायरस के इलाज के लिए मदद चाहिए थी, अब अपनी जान गंवा रहे हैं क्योंकि शेटे अब कुछ नहीं कर सकते। महाराष्ट्र में कोरोना वायरस के चलते हुई मौतों की बड़ी संख्या के पीछे यह एक प्रमुख कारण है।
बॉम्बे हाई कोर्ट की एक बेंच जिसमें चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस गिरीश कुलकर्णी शामिल थे, ने धार्मिक पूजा स्थलों को खोलने को लेकर दी गई एक पिटीशन को खारिज करते हुए इसी वायरल वीडियो का जिक्र किया था। चीफ जस्टिस ने कहा, ‘हम सिर्फ इतना कह सकते हैं कि हालात बेहद चिंताजनक हैं विशेषकर संख्याओं को देखते हुए, जो कि रोज बढ़ रही हैं। हमें कई संदेश मिले हैं जिनमें यह बात कही गई है कि महाराष्ट्र की स्थिति वास्तव में खराब है।’ वॉट्सऐप के जरिए कोर्ट को भेजे गए ओम प्रकाश शेटे के वीडियो का जिक्र करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा, ‘यदि इस वीडियो में जो भी कहा गया है वह प्रामाणिक और सत्य है, तो हमें लगता है कि जल्द से जल्द कुछ किया जाना चाहिए। इस वीडियो की ऑथेंटिसिटी चेक करने और यह पता लगाने की जरूरत है कि क्या यह शख्स वाकई में मुख्यमंत्री चिकित्सा सहायता प्रकोष्ठ का अधिकारी है।’
भारत में कोरोना वायरस के मामलों की कुल संख्या में महाराष्ट्र का हिस्सा लगभग 20 प्रतिशत का है। भारत में कोरोना वायरस से संक्रमण के 58.2 लाख मामलों में से 12.6 लाख महाराष्ट्र से हैं। महाराष्ट्र के कुल कोविड मरीजों में से 9.56 लाख ठीक हो चुके हैं। भारत में कोरोना वायरस से हुई 92,290 मौतों में से 33,886 मौतें महाराष्ट्र में हुई हैं। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक कोविड की लिस्ट में क्रमश: दूसरे, तीसरे और चौथे नंबर पर आते हैं।
मुंबई शुरू से ही कोरोना का हॉटस्पॉट रहा है, और वहां कोविड के मामलों की संख्या लगातार बढ़ती रही है। मुंबई समेत महाराष्ट्र के अन्य शहरों में सोशल डिस्टैंसिंग के नियमों की अभी भी अनदेखी की जा रही है। हमारे पास मुंबई की लोकल ट्रेन्स की कुछ तस्वीरें और विजुअल्स सामने आए हैं, जिनमें कोचेज के अंदर वैसी ही भीड़ नजर आ रही है जैसी महामारी के पहले के दिनों में दिखा करती थी। इन ट्रेनों में अधिकांश यात्रियों ने मास्क भी नहीं पहना था, और वे ट्रेन के कोच में खड़े होने के लिए एक-दूसरे से धक्का-मुक्की करते नजर आ रहे थे।
अफसरों का तर्क था कि गुरुवार को भारी बारिश होने के चलते कम लोकल ट्रेनें चली थीं, जिसके चलते यात्रियों की भारी भीड़ हो गई थी। लेकिन हकीकत यह है कि जब शुक्रवार को मौसम सामान्य था, तब भी लोकल ट्रेनों में ऐसी ही भीड़ देखी गई। यात्री कैमरे पर यह कहते हुए नजर आए कि यदि वे बसों में यात्रा करेंगे तो उन्हें और भी ज्यादा भीड़ झेलनी होगी।
कोरोना वायरस की महामारी को काबू में करने के लिए महाराष्ट्र सरकार को मुंबई और अन्य अंदरूनी इलाकों में ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। शुक्रवार को महाराष्ट्र में कोरोना वायरस से संक्रमण के 21,029 नए मामले सामने आए। गुरुवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साथ अपनी वर्चुअल मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें उन 20 जिलों पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी थी, जहां महामारी तेजी से फैल रही है। भारत में कुल मिलाकर 60 जिले ऐसे हैं जहां से कोविड के लगभग 80 प्रतिशत मामले सामने आए हैं। उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री से वादा किया कि उनकी सरकार महामारी के प्रसार को कंट्रोल में करने के लिए पूरी कोशिश करेगी।
लेकिन ठाकरे को एक बेहद बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर कहां है? अस्पताल कहां हैं, ऑक्सिजन सिलिंडर्स कहां हैं और महामारी से निपटने के लिए जिन डॉक्टरों और हेल्थकेयर वर्कर्स की जरूरत है, वे कहां हैं? सबसे बड़ी बात कि कोरोना से निपटने के लिए मार्च और अप्रैल में जो इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाया गया था उनका इस्तेमाल क्यों नहीं हो रहा है? नागपुर में भी कमोबेश यही हालात हैं। कोरना वायरस से संक्रमित मरीजों के लिए अस्पताल में बेड्स की कमी है, ऑक्सिजन सिलिंडर्स भी पर्याप्त संख्या में नहीं हैं और सबसे बड़ी बात कि डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की भारी कमी है।
मुझे पता लगा कि नागपुर में 5 इमारतों को कोविड अस्पताल में बदल दिया गया था। उनमें बेड्स की व्यवस्था हुई, ऑक्सिजन सप्लाई का इंतजाम हुआ और सारे मेडिकल इक्विपमेंट्स लगाए गए, लेकिन इस कोविड अस्पताल में अब ताला लग चुका है। स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि डॉक्टरों और पैरा-मेडिकल स्टाफ की कमी है, जिसके चलते इस अस्पताल को बंद कर दिया गया है। उद्धव ठाकरे को युद्धस्तर पर ऐसी सभी खामियों को ठीक करने की जरूरत है।
Covid pandemic in Maharashtra is alarming
In my show ‘Aaj Ki Baat’ on Thursday night, I showed a viral video of Om Prakash Shete, who used to be OSD to former Maharashtra chief minister Devendra Fadnavis, describing the plight of Covid-19 victims in the state. At one point, Shete broke down saying “I feel very bad, cannot sleep at times. The common man is unable to save himself from Covid. We have served 17 lakh people till now, but still people are dying. Every day 600 people die. I feel exhausted after replying to umpteen number of requests from people for assistance. Many people are dying. It is my request to the court to remove this technical error.”
What is the technical error? When Fadnavis was chief minister, there was a medical assistance cell in the Chief Minister’s Office. Poor people who were unable to get costly medical treatment, used to send applications, and financial assistance was released to them from the Chief Minister’s Relief Fund. Shete was the man who used to clear these applications. When Uddhav Thackeray became the CM, he discontinued release of medical assistance from the Chief Minister’s Relief Fund. Thousands of poor people, who needed assistance for treatment of Covid, are now dying because Shete is helpless. This is one major reason why the Covid death toll in Maharashtra is high.
It was this viral video which the Bombay High Court bench consisting of Chief Justice Dipankar Datta and Justice Girish Kulkarni referred to while disposing of an application for opening up place of religious worship. The Chief Justice said, “we can just say that the situation is alarming especially if we look at the numbers, which are rising daily. We have received numerous messages stating that the situation in Maharashtra is really bad.”
Referring to Om Prakash Shete’s video that was sent to the court through WhatsApp, the Chief Justice said, “if the contents of this video are authentic and true, then we think something should be done at the earliest…but for that you (Advocate General) need to verify the authenticity of this video and ascertain if this man is indeed the officer of the Chief Minister’s Medical Assistance Cell.”
Maharashtra accounts for nearly 20 per cent of total number of Covid cases in India. Out of 58.2 lakh Covid cases in India, Mahrashtra accounts for 12.6 lakh. Out of these, 9.56 lakh people recovered in Maharashtra. Out of 92,290 Covid related deaths in India, Maharashtra accounts for 33,886 deaths. Andhra Pradesh, Tamil Nadu and Karntaka come second, third and fourth respectively in the Covid list.
Mumbai has been the Corona hotspot since the beginning, and there has been a consistent rise in the number of Covid cases. Social distancing norms are still being ignored in Mumbai and other cities of Maharashtra. We have visuals of crowds inside Mumbai’s suburban trains similar to those that we used to see in pre-pandemic days. Most of the commuters do not wear masks, and they jostle one another in order to gain a foothold inside the train coach.
Officials argued that since it rained heavily on Thursday, fewer suburban trains ran because of which there were huge crowds of commuters. But the fact remains that even when the weather was normal on Friday, similar crowds were seen in suburban trains. Commuters were saying on camera that they would face more crowds if they travelled in buses.
Maharashtra government needs to pay more attention to arrest the spread of Covid pandemic, both in Mumbai and in the hinterland. On Friday, 21,029 new Covid cases were reported from Maharashtra. In his video meeting with Maharashtra chief minister Uddhav Thackeray on Thursday, Prime Minister Narendra Modi advised him to focus on those 20 districts where the pandemic is spreading. In all, there are 60 districts in India which account for nearly 80 per cent of Covid cases. Uddhav Thackeray had promised the PM that his government would put in its best to control the spread of pandemic.
But Thackeray is facing a Himalayan challenge. Where is the infrastructure? Where are the hospitals, where are the oxygen cylinders and where are the doctors and healthcare workers needed to tackle the pandemic? Above all, why is the infrastrutcture that was created in March and April to tackle Corona not being used? The same situation is prevalent in Nagpur. Covid patients are facing shortage of hospital beds, there are inadequate number of oxygen cylinders, and above all, there is acute scarcity of doctors and healthcare workers.
I know for a fact that five buildings in Nagpur were converted into a Covid hospital. It was equipped with beds, oxygen cylinders and medical equipments. But this Covid hospital is now locked. Local officials say there is lack of doctors and para-medical staff, because of which this hospital has been locked. Uddhav Thackeray needs to fix all such loopholes, on a war footing.
चीन पहले अपने वादे को निभाए
बुधवार की रात अपने शो ‘आज की बात’ में मैंने पहली बार आपको अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास सैनिकों की तैनाती के दृश्य दिखाए। भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी एलएसी में से 1,080 किलोमीटर का हिस्सा अकेले अरुणाचल प्रदेश में पड़ता है। यहां से तिब्बत बिल्कुल करीब है। तिब्बत के पठार के अधिकांश हिस्से को अरुणाचल के एलएसी से आसानी से देखा जा सकता है। कई प्वाइंट्स पर तो हालात ये है कि भारत और चीन के जवान एक दूसरे को आमने-सामने देख सकते हैं और बात कर सकते हैं।
चीन के बारे में जैसा आप जानते हैं कि वह 50 के दशक से ही अरूणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताने की कोशिश करता रहा है। चीन अरुणाचल प्रदेश को ‘दक्षिणी तिब्बत’ का हिस्सा बताकर इसे भारत के एक राज्य के रूप में मान्यता नहीं देता है। देश के टीवी दर्शकों ने अबतक अपने टीवी स्क्रीन पर एलएसी को लेकर ज्यादातर दृश्य लद्दाख का ही देखा है जो कि पश्चिमी सेक्टर में पड़ता है। उन्होंने एलएसी के पूर्वी सेक्टर में पड़ने वाले अरुणाचल प्रदेश का दृश्य कम ही देखा है। जबकि टेंशन तो पूरी एलएसी पर है। अरूणाचल प्रदेश से लगती चीन की सीमा पर भी दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। इंडिया टीवी रिपोर्टर अनुपम मिश्रा कैमरामैन सुजीत दास के साथ एलएसी तक गए और उस जगह की तस्वीरें भेजी हैं, जहां से सिर्फ दो सौ मीटर की दूरी पर हिन्दुस्तान और चीन के जवान एक-दूसरे के सामने मोर्चा संभाले खड़े हैं।
मै आपको बता दूं कि इस वक्त अरुणाचल प्रदेश में एलएसी पर पचास हजार जवान तैनात हैं। पांच हजार आईटीबीपी के जवानों की तैनाती है, जो अधिक ऊंचाई वाले इलाके, मुश्किल हालात में सर्वाईव करने में और जंग करने में माहिर हैं। इस इलाके में राफेल के साथ सुखोई-30, मिग-29 और मिराज-2000 जैसे फाइटर जेट भी लगातार उड़ान भर रहे हैं। चीन की तरफ भी सैनिकों की तैनाती जबरदस्त है।
अरुणाचल प्रदेश में सरहद तक पहुंचना आसान नहीं है। हमारे रिपोर्टर और कैमरामैन भारत-चीन एलएसी के आखिरी प्वॉइंट तक पहुंचे, जहां से चीन की चोटियां, चीन की सरहद, चीन का पहाड़ी इलाका बिल्कुल साफ-साफ नजर आ रहा था। यहां पर भी अतिरिक्त सैनिकों की पूरी तैनाती हो चुकी है। लगातार ऊंचाई वाले इलाके में फॉरवर्ड पोस्ट की तरफ जवानों का मूवमेंट भी हो रहा है। हैवी आर्टिलरी गन समेत तमाम सेना के कई अहम हथियार और युद्ध के साजो-सामान भी तैनात किए जा चुके हैं।
सुरक्षा और रणनीतिक दृष्टिकोण से हम आपको इस बात की बारीक डिटेल दे नहीं सकते कि किस तरह के युद्ध के हथियार और साजो-सामान यहां इकट्ठा किए गए हैं लेकिन मैं इतना बता सकता हूं कि इस वक्त अरुणाचल में भारत और चीन के बीच एलएसी पर हमारी सेना बिल्कुल अलर्ट है। आर्मी के लिए सप्लाई लाइन लगातार चालू है। आने वाले ठंड के मौसम को देखते हुए रसद और अन्य दूसरे सामान यहां पहुंचाए जा रहे हैं। इस इलाके का सबसे बड़ा दुश्मन मौसम है। सर्दियों के दौरान, बर्फबारी और भूस्खलन के बीच जीना बेहद मुश्किल होता है। दिन में यहां न्यूनतम तापमान माइनस 10 डिग्री रहता है तो वहीं रात में यह घटकर माइनस 20 डिग्री तक चला जाता है। लेकिन तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी हमारे जवान चीनी सैनिकों की हर चाल पर पहाड़ की ऊंचाइयों से नजर रख रहे हैं।
एलएसी पर जारी तनाव के बीच चीन की ओर से लगातार विभिन्न तरह के संकेत भेजे जा रहे हैं। सोमवार की रात को चीनी सेना द्वारा तिब्बत की राजधानी ल्हासा में हवाई हमले का सायरन बजाया गया था। सायरन बजने के बाद अफसरा-तफरी मच गई और लोग बंकर्स की तरफ भागे। दरअसल, साफतौर पर यह चीन की सेना (पीएलए) की चाल थी। इस तरह की हरकत दुश्मन को दबाव में लाने और विरोधी को अचानक चौंका कर गलत कदम उठाने के लिए मजबूर करने के लिए की जाती है। चीन ने इस हरकत के जरिए हमारी वायुसेना का रिएक्शन देखने और परखने की कोशिश की। लेकिन भारतीय सेना के अफसर और जवान चीन की इस चाल में नहीं फंसे। कोई जवाब नहीं दिया गया। लेकिन ये सही है कि हमारी आर्मी और एयरफोर्स पूरी तरह तैयार है। बुधवार को राफेल की गगनभेदी गर्जना लद्दाख में सुनाई दी। राफेल लड़ाकू विमानों ने लद्दाख में एलएसी के पास उड़ान भरी जिसे देखकर लोग रोमांचित हो उठे।
हालांकि, भारत और चीन के बीच अग्रिम मोर्चे पर और सैनिक नहीं भेजे जाने को लेकर सहमति बनी है लेकिन चीन ने जो पचास हजार जवान पूर्वी लद्दाख के अलग-अलग फ्रिक्शन प्वाइंट पर तैनात कर रखा है, उसे कब पीछे हटाएगा इसपर कुछ भी स्पष्ट नहीं है। चीन ने जो फाइटर जेट्स, गोला बारूद, एंटी टैंक मिसाइल आदि हाथियार इकट्ठा कर रखा है उसे चीनी सैनिक अपने साथ कब पीछे ले जाएंगे इसपर बात अटकी हुई है। कुल मिलाकर, राष्ट्रपति शी जिनपिंग के संयुक्त राष्ट्र में यह दावा करने के बावजूद कि उनका देश न तो कोल्ड वार चाहता है और न ही हॉट वार, चीनी सेना के जनरलों के रवैये और इरादे में कोई बदलाव नहीं आया है।
भारतीय सेना की खुफिया इकाई के पास पूरी जानकारी है कि चीन ने सरहद के पास कितने जवानों को तैनात किया है। कहां- कहां पर कौन से हथियार फिट किए गए हैं। कौन-कौन से फाइटर जेट तैनात किए गए हैं और हकीकत ये है कि शी जिंनपिंग के शान्ति के बयान के बाद भी एलएसी पर तैनात चीन के जवानों की संख्या कम नहीं हुई है, बल्कि बढ़ गई है। एलएसी की तरफ हथियारों के मूवमेंट का सिलसिला बंद नहीं हुआ है। इसीलिए हमारी तरफ से चीन को साफ-साफ कहा गया है कि पहले चीन पीछे हटे, जवानों की, टैंकों और अन्य हथियारों की तैनाती को कम करे और इसके सबूत दे। उन सबूतों को जब हमारी सेना वैरीफाई कर लेगी, उसके बाद ही शान्ति हो सकती है, तभी तनाव कम हो सकता है। अन्यथा यह गतिरोध जारी रहेगा। अब यह चीन पर निर्भर करता है कि वह अपने वादे पर अमल कर शांति की राह बनाना चाहता है या फिर गतिरोध को बरकरार रखना चाहता है।
China must act on what it has promised
In my show ‘Aaj Ki Baat’ on Wednesday night, for the first time, I showed ground visuals of our troops deployed near the Line of Actual Control in Arunachal Pradesh. Out of 3,488 kilometre long LAC between India and China, Arunachal Pradesh alone accounts for 1,080 kilometres. Most of the Tibetan plateau can be seen from LAC in Arunachal Pradesh. At some points, Indian jawans and Chinese soldiers have even close eyeball contact and can speak to each other.
China has been claiming Arunachal Pradesh as “Southern Tibet” since the Fifties and has, till now, refused to accept this full-fledged state as Indian territory. Television viewers in India have so far seen the LAC on their screens mostly from Ladakh in the western sector, and they have rarely seen visuals from the eastern sector in Arunachal Pradesh, where both the armies are guarding the LAC. India TV reporter Anupam Mishra along with cameraperson Sujit Das took ground visuals from as near as 200 metres where Indian jawans and Chinese soldiers have been deployed facing each other.
The Indian army has deployed nearly 50,000 troops in Arunachal Pradesh sector with almost 5,000 Indo-Tibetan Border Police personnel also stationed to guard the LAC. These jawans are trained to guard our frontiers at high altitudes and can survive in cold winter. Indian Air Force has deployed Rafale, Sukhoi-30, Mirage-2000 and MiG-29 aircraft which are regularly carrying out sorties. China has also deployed a sizable number of troops.
Our reporter and cameraperson reached the last point of LAC from where the mountain peaks and hilly terrain under Chinese control can be clearly seen. Heavy artillery guns and other strategic assets have been deployed along with additional troops in this sector and there is constant movement of troops on the Indian side.
Due to operational and tactical reasons, we cannot share the minute details of the strategic assets here. Our armed forces are on full alert and the supply lines are active. Our troops are preparing for a long haul during snowfall this winter. Weather is the biggest enemy here and during winter, the very act of survival in the face of snowfall and landslides is a tough task. In daytime, the minimum temperature is minus 10 deg C and at night it drops to minus 20 deg C. Our jawans are keeping a hawk’s eye from mountain heights on Chinese troop movements.
In the midst of tension across the LAC, the Chinese leadership is constantly sending out mixed signals. On Monday night, air raid sirens were sounded in Lhasa, the capital of Tibet, by Chinese army. Clearly, the PLA is trying to test waters by sounding false air raid sirens. The Chinese are also trying to test the reaction time of our armed forces, but the Indian army is not going to fall in their trap by over-reacting. Rafale jet fighters carried out sorties near the LAC in Ladakh on Wednesday to the delight of Indians watching the aircraft.
Though India and China have agreed not to make further deployment of troops in forward areas, there is still no clarity on whether China will reduce its 50,000-strong troops in Tibet adjoining Ladakh sector. There is no information about whether China will reduce its deployment of jet fighters, artillery guns, tanks and other heavy weapons in forward areas. Overall, there has been no change in the attitude and intent of Chinese army generals despite President Xi Jinping claiming in the UN that his country neither wants a Cold War, nor a hot war.
Indian army intelligence is keeping a close watch on Chinese troops and strategic assets deployment. Till now, there has been no reduction in troops or weapons by China near the LAC. On the contrary, troops and weapon deployment is being increased at some points. India has clearly told China to reduce its troop deployment and withdraw its tanks, artillery pieces and jet fighter from forward areas. This must be verifiable. Once the reduction in deployment is verified, one can look forward to reduction in tension on India-China border. Otherwise, the standoff will continue. It is now up to China whether it wants to ‘walk the talk’.
जमीनी हालात को समझने लगा है चीन
भारत और चीन के बीच लद्दाख में कोर कमांडर लेवल की छठे दौर की बैठक के बाद कुछ सकारात्मक संकेत उभरकर सामने आए हैं। दोनों देशों में इस बात पर सहमति बनी है कि अब सरहद पर फौज की संख्या नहीं बढ़ाई जाएगी। अग्रिम मोर्चे पर और अधिक सैनिक नहीं भेजे जाएंगे। सोमवार को करीब 14 घंटे तक चली बैठक में दोनों पक्षों की बीच बनी सहमति को लेकर संयुक्त बयान जारी किया गया। दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए है कि (1) जमीनी स्थिति को एकतरफा बदलने की कोशिश या कोई भी ऐसी कार्रवाई जो हालात को जटिल कर सकती है, उससे बचें (2) गलतफहमियों से बचें और शांति बनाए रखने के लिए कम्यूनिकेशन को मजबूत करें। (3) समस्याओं को उचित ढंग से सुलझाने के लिए व्यावहारिक उपाय करें और संयुक्त रूप से शांति बहाल करने की कोशिश करें और (4) जल्द से जल्द कमांडर लेवल की सातवें दौर की बातचीत शुरू हो।
हालांकि, एलएसी से सैनिकों की वापसी के मुद्दे पर कोई सफलता नहीं मिली है। भारतीय सेना के सूत्रों ने बताया है कि दोनों पक्षों के बीच डिसएंग्जेमेंट और डी-एस्केलेशन के मुद्दे पर बातचीत का शायद ही कोई आधार था। दूसरी ओर, सैन्य और राजनयिक स्तर की बातचीत की आड़ में चीन की पीएलए सीमा के पास लॉजिस्टिक्स निर्माण और सैनिकों की तैनाती में जुटी है।
पीएलए का कहना है कि पैंगोंग झील के दक्षिणी तट की चोटियों से भारत को सबसे पहले अपने सैनिकों को हटाना चाहिए। भारतीय जवान अभी पैंगोंग झील के दक्षिणी तट के पास ठाकुंग से लेकर गुरुंग हिल तक के हिस्से पर अपना कंट्रोल बनाए हुए हैं। स्पंगगुर गैप, मगर हिल, मुखपारी, रेजांग ला और रेछिन ला तक कई अहम चोटियों पर भारतीय सैनिक तैनात हैं। इन ऊंची चोटियों से भारतीय सैनिक चीन की हर हरकत पर नजर रख सकते हैं। चीन की सड़कें, चीनी सैनिकों के पोस्ट, मोल्दो में चीनी सैनिकों का जमावड़ा, इन सबपर भारतीय सैनिकों की पैनी नजर है। भारत का कहना है कि चीन को डेपसांग, पैंगोंग झील और गोगरा हॉट स्प्रिंग्स से अपने सैनिकों को हटाना चाहिए, लेकिन चीन की सेना इसके लिए तैयार नहीं है।
असल में चीन को लेकर हमेशा रहस्य बना रहता है। सच कभी पता नहीं चलता, क्योंकि चीन से कभी पूरी जानकारी सामने नहीं आती
। इसलिए चीन के
इरादों की थाह पाना हमेशा मुश्किल होता है। चीन शांति की बात तो करता है, लेकिन साथ ही भारतीय जवानों पर हमले के लिए अपने सैनिकों को आयरन रॉड लेकर भी भेज देता है। संयुक्त राष्ट्र में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि वो किसी तरह का तनाव नहीं चाहते हैं। उन्होंने कहा, ‘चीन का किसी भी देश के साथ न तो कोल्ड वार और न ही हॉट वार का इरादा है।’ लेकिन लद्दाख से सटे तिब्बत में शी की सेना ने भारत को डराने के लिए स्टील्थ जेट लड़ाकू विमान, बम वर्षक विमान और हमलावर हेलीकाप्टर्स की खेप के साथ-साथ बड़ी संख्या में सैनिकों का जमावड़ा कर रखा है। चीनी कम्युनिस्ट नेतृत्व के साथ समस्या यह है कि न तो चीन के लोग इनके इरादों पर भरोसा करते हैं और न ही चीन को विश्व मंच पर उन गरीब अफ्रीकी और दक्षिण अमेरिकी देशों का ही समर्थन मिल पा रहा है जिन्हें वह अरबों डॉलर कर्ज के रूप में देता रहा है।
चीन की अर्थव्यवस्था बदहाली के दौर से गुजर रही है और कोविड -19 महामारी फैलाने में संदिग्ध भूमिका के कारण चीन दुनिया भर में अलग-थलग भी पड़ गया है। चीन में एक्सपोर्ट लगभग बंद है, कारोबार बंद हो रहे हैं, लोग नाराज हैं। शी जिनपिंग के राजनीतिक विरोधी भी उनके खिलाफ माहौल बना रहे हैं। इन सारी बातें से ध्यान हटाने के लिए जिनपिंग ने भारत के खिलाफ मोर्चा खोला, टेंशन क्रिएट किया ताकि राष्ट्रवादी भावनाओं का लाभ मिल सके, लेकिन यहां भी कामयाबी नहीं मिली।
चीन के साथ समस्या यह है कि वह एलएसी के पास अपनी हरकतों से भारत को डराने में विफल रहा और अब जमीन और हवा दोनों पर उसे भारतीय सेनाओं की ताकत का सामना करना पड़ रहा है। शी जिनपिंग ने अपनी सेना को एक ऐसे जाल में फंसा दिया है जिससे पीछे हटना मुश्किल है। इसीलिए, चीन की पीएलए डीपसांग, पैंगोंग और गोगरा हॉट स्प्रिंग्स में अपनी पोजीशन से पीछे हटने को तैयार नहीं है। यदि उनके सैनिक पीछे हटते हैं, तो वे अपने देशवासियों को क्या मुंह दिखाएंगे।
कोर कमांडर्स की बातचीत के दौरान केवल एक बात पर सहमति बनी और दोनों मुल्कों की तरफ से कहा गया है कि अब सीमा (अग्रिम मोर्चे) पर फौज नहीं बढ़ाई जाएगी। शी जिनपिंग के सामने मुश्किल ये है कि चीन इतना आगे बढ़ चुका है कि उसको फेस सेविंग का रास्ता भी नहीं मिल रहा है। यही वजह है कि चीन भारतीय सैनिकों से लद्दाख की उन चोटियों से हटने पर जोर दे रहा है, जिसे भारतीय सेना के बहादुर जवानों ने एक ही रात में अपने नियंत्रण में ले लिया था।
सोमवार को कमांडर लेवल की मीटिंग में भारत ने चीन को साफ-साफ कह दिया कि अब सिर्फ बातें करने से काम नहीं चलेगा। क्योंकि चीन अपनी बात पर कायम नहीं रहता है इसलिए वह सबसे पहले पुरानी स्थिति बहाल करे। समयबद्ध तरीके से पीछे हटे, अप्रैल वाली यथास्थिति बहाल करे, उसके बाद ही टेंशन कम हो सकती है। भारत की मजबूत पोजीशन और कड़े रूख का ही असर है कि चीन के राष्ट्रपति को संयुक्त राष्ट्र में कहना पड़ा कि वो टेंशन नहीं चाहते। किसी तरह का युद्ध नहीं चाहते।
फिलहाल, दोनों देशों के बीच सरहद पर सैनिकों की संख्या नहीं बढ़ाने पर सहमति बन गई हैं। अगर अग्रिम मोर्चे पर और सैनिक नहीं भेजकर इस समझौते का पालन किया जाता है तब उम्मीद तो करनी चाहिए कि अब एलएसी पर टेंशन कम होगी। लेकिन न तो हमारी फौजी तैयारी कम होगी, न तैनाती कम होगी। क्योंकि चीन की बात पर तब तक यकीन नहीं किया जा सकता, जब तक चीन अपनी सेना को पीछे हटा ना ले और हमारी फौज इसकी पूरी तरह से पुष्टि ना कर दे।
China Feels The Heat
One positive sign that has emerged from the sixth round of Corps Commander level talks between India and China in Ladakh is that both sides have agreed not to send more troops to forward areas. In talks that went on for 14 hours on Monday, the two sides in a joint statement agreed (1) avoid unilateral changes on ground, or any action that can complicate the situation, (2) avoid misunderstandings and misjudgments and strengthen communication to maintain peace (3) take practical measures to solve problems properly and jointly safeguard peace and tranquility and (4) hold the seventh round of military commander level talks as soon as possible.
However, there was no breakthrough on the issue of withdrawing troops from LAC. Indian army sources said that there was hardly any meeting ground between the two sides over the issue of disengagement and de-escalation. On the other hand, the Chinese PLA is using the cover of military and diplomatic level talks to carry out logistics build-up and beef up its troops near the border.
The PLA is demanding that India should first withdraw its troops from tactical heights that it gained on the southern bank of Pangong lake. Indian jawans are presently in control of several tactical heights on the ridgeline stretching from Thakung near southern bank of Pangong lake to Gurung Hill, Spanggur Gap, Magar Hill, Mukhpari, Rezang La and Reqin La. From these heights, Indian troops can keep watch on Chinese positions, roads and the Chinese military garrison in Moldo. India has demanded that China should disengage its troops from Depsang, Pangong lake and Gogra Hot Springs, but the Chinese army is unwilling.
It is always difficult to fathom Chinese intentions that are mostly wrapped in the cloak of mystery. It can talk of peace and tranquility, but at the same time, can also send its troops armed with iron clubs and steel rods to attack Indian jawans. At the United Nations, the Chinese President Xi Jinping said “China has no intention of fighting either a Cold War or a hot war with any country”, but in Tibet adjoining Ladakh, its army has amassed stealth jet fighters, bombers, attack helicopters and a huge concentration of troops to intimidate India. The problem with the Chinese communist leadership is that neither the Chinese people trust its intentions nor has China able to garner support at world forums despite pumping in billions of dollars as loans to poor African and South American countries.
The Chinese economy is in bad shape and China is almost isolated in the world because of its questionable role in spreading Covid-19 pandemic. Exports from China are down, industries and businesses are closing down and Xi’s political rivals are secretly gunning for him. In order to divert the attention of Chinese people, Xi opted to ratchet up border tension with India in order to take advantage of Chinese nationalistic sentiments.
The problem with China is that it failed to intimidate India near the LAC by committing transgressions and is now facing the might of Indian armed forces, both on land and in air. Xi Jinping has drawn his army into a trap from which it is difficult to retreat. That is why, the Chinese PLA is unwilling to withdraw from its positions in Depsang, Pangong and Gogra Hot Springs. If their troops withdraw, they will have to face ignominy before their own countrymen.
The only point agreed upon during talks was that India and China will not send more troops to forward areas. Xi Jinping’s problem is that the Chinese army has stretched itself too much and it badly needs a face saving device. That is why, China is insisting on Indian troops to withdraw from the tactical heights in Ladakh that its brave jawans achieved in a single night.
In Monday’s commander level talks, India bluntly told China that mere talks will not do, because China has not been fulfilling the promises that it had made in earlier talks. The Indian side insisted that China, in a time bound manner, must agree to status quo ante, the position where its troops were stationed in April this year. This is the only way to reduce tensions completely. It is because of India’s firm stand that the Chinese President had to tell at the UN that it does not want to create tension, nor does it seek a war.
If the first step towards not sending fresh troops to forward areas is implemented, one can hope that tensions near the LAC in Ladakh may gradually subside provided that no fresh friction takes place. Our army jawans will not lower their guard, and all the preparations and deployment will still be in place. China cannot be trusted, until and unless it pulls out its troops from forward areas, and our army confirms that it has done so.