बीजेपी में नहीं जाएंगे सचिन पायलट
राजस्थान के बाग़ी कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने बुधवार को साफ कहा कि वह भारतीय जनता पार्टी में नहीं जा रहे हैं। पायलट ने कहा कि राजस्थान में कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लाने के लिए उन्होने कड़ी मेहनत की है और वह पार्टी नहीं छोडेंगे। पायलट के बीजेपी में न जाने का पायलट का ये ऐलान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के उस आरोप के जवाब में था जिसमें उन्होने कहा था कि पायलट बीजेपी के साथ साजिश कर राज्य में उनकी सरकार को गिराना चाहते हैं। गहलोत ने यब भी आरोप लगाया था कि हरियाणा में पायलट के साथी विधायकों को होटल में रखवाने के पीछे बीजेपी का हाथ है।
गहलोत ने राज्य विधानसभा के स्पीकर को पत्र भेजकर पायलट और उनके 18 साथी विधायकों की सदस्यता को खत्म करने के लिए कहा है। स्पीकर की तरफ से इन सभी विधायकों के घरों के बाहर डिसक्वालीफिकेशन नोटिस चिपका दिए गए हैं । पायलट और उनके साथी विधायकों पर अनुशासनहीनता और विधायक दल की बैठकों में हिस्सा न लेने के आरोप लगाए गए हैं।
राजस्थान में अभी राजनीतिक लड़ाई लम्बी चलेगी, वैसे मंगलवार को पहला राउंड अशोक गहलोत के पक्ष में रहा। सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री पद तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया गया जबकि पायलट के दो अन्य सहयोगियों, विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा, को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया।
कांग्रेस आला कमान इस वक्त मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पीछे मजबूती से खड़ा है। राज्य में यूथ कांग्रेस, एनएसयूआई और सेवा दल के अध्यक्षों को बदलकर पायलट के समर्थकों को बाहर कर दिया गया है।
पायलट को बरखास्त किए जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा में शक्तिपरीक्षण की मांग की है । आंकड़ों के खेल में अभी गहलोत का खेमा आगे नज़र आ रहा है, लेकिन आगे क्या स्थिति बनेगी, ये अभी कहना कठिन है।
बीजेपी ने आरोप लगाया है कि गहलोत ने कई विधायकों को कैद कर रखा है । इस इल्जाम को साबित करने वाला एक वीडियो सामने आया। राजस्थान ट्राईबल पार्टी के जो दो विधायक सरकार के साथ थे, उन्होने तय किया है कि वे वोटिंग के समय तटस्थ रहेंगे । इसके फौरन बाद सरकार का रुख बदल गया, कल तक जो विधायक खुले आम घूम रहे थे, उनके घरों के बाहर पुलिस का पहरा लगा दिया गया।
कांग्रेस पार्टी की “यूथ ब्रिगेड”, खासकर जतिन प्रसाद, शशि थरूर, दीपेन्द्र हुडा और प्रिया दत्त, पायलट के खिलाफ कार्रवाई से दुखी हैं। इन युवा नेताओं ने ट्वीट करते हुए कहा है कि सचिन पायलट के हटाए जाने की स्थिति को टाला जा सकता था। शशि थरूर ने सचिन पायलट को कांग्रेस का एक श्रेष्ठ और मेधावी (best and brightest) नेता बताते हुए कहा कि उन्हें हटाये जाने से उन्हे दुख पहुंचा है। थरुर ने लिखा कि पायलट को हटाने की बजाय उन्हें कांग्रेस में सबके साथ मिलकर पार्टी को एक धारदार हथियार के रूप में विकसित करना चाहिए था। थरूर का ये बयान कांग्रेस में युवा पीढी के नेताओं के दुख को बड़े साफ तरीके से दर्शाता है।
अब सवाल पूछे जा रहे हैं कि सचिन पायलट ने कांग्रेस हाईकमान के खिलाफ क्यों विद्रोह किया। सचिन पायलट कांग्रेस में रहकर बेचैन क्यों थे। असली बात ये है कि उन्हें लगता है कि राजस्थान की राजनीति में उनका अस्तित्व खतरे में हैं, उन्हें खत्म करने की कोशिश हो रही है, वह नाम के डिप्टी सीएम थे लेकिन उन्हें पूरी तरह साइडलाइन कर दिया गया था । वो मानते हैं कि अगर उन्होंने अब आवाज नहीं उठाई तो वो कहीं के नहीं रहेंगे लेकिन ये महसूस करने वाले सचिन पायलट अकेले नहीं हैं., सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया नहीं है।
कांग्रेस में पूरी की पूरी नई जनरेशन के लोग दीपेन्द्र हुड्डा, मिलिन्द देवड़ा, जितिन प्रसाद ऐसे तमाम नेता हैं, जो सचिन पायलट को साइड लाइन किए जाने से परेशान हैं, इन्हीं के लिए सचिन ने कहा कि ‘सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं हो सकता’।
लेकिन इस मामले में सबसे बड़ी चुनौती राहुल गांधी के सामने हैं । ये सारे के सारे नेता राहुल गांधी की टीम का हिस्सा थे । हम रोज देखते थे कि ये राहुल को मजबूत करने के लिए काम कर रहे थे, नई कांग्रेस बनाना चाहते थे । मजे की बात ये है कि अब कहा जा रहा है कि अब सचिन पायलट से बात की जाएगी, राहुल गांधी उनकी बात सुनेंगे, लेकिन मंत्रिमंडल से बरखास्त विश्वेन्द्र सिंह ने मंगलवार को जो शेर ट्वीट किया, उसके बाद राहुल गांधी से कुछ कहने की जरूरत नहीं हैं । ये शेर था, “काट कर जुबान मेरी, कह रहा है वो ज़ालिम, अब तुझे इजाज़त है, हाल ए दिल सुनाने की
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Round One goes to Ashok Gehlot in Rajasthan battle
The first round of the political battle in Rajasthan went to Chief Minister Ashok Gehlot on Tuesday. His bete noire Sachin Pilot was dismissed from the posts of Deputy Chief Minister and state Congress chief, while two of his close associates, Vishwendra Singh and Ramesh Meena, were sacked from the cabinet.
Chief Minister Ashok Gehlot is presently in a strong position. He has the party high command behind him, and he has managed to garner the support of most of the Congress MLAs, whom he has kept in a resort. All the heads of state Youth Congress, NSUI and Seva Dal have been replaced and Pilot’s supporters have been shown the door.
With this, the Congress high command has effectively shut the doors on Sachin Pilot and his supporters. Pro-Gehlot MLAs passed a resolution calling for strict action against the rebels and immediately after Chief Minister Gehlot went to Raj Bhavan to submit letters for dismissal of the three ministers. Simultaneously, the name plate and posters of Sachin Pilot displayed at the state Congress office were immediately removed.
Pilot reacted on Twitter saying “you can harass Truth, but you cannot defeat Truth”. The Congress high command alleged that Pilot was trying to dislodge the Congress government in Rajasthan while entering into a conspiracy with the BJP.
Soon after Pilot’s exit, there was a flurry of meetings in BJP camp. The party demanded an immediate trial of strength in the assembly, while its senior leaders were in touch with Pilot to persuade him to join the BJP. There were reports that two MLAs belonging to Bharatiya Tribal Party have been kept under police surveillance. The party had initially support Gehlot, but later decided to stay neutral during the floor test. Several leaders of the Congress “youth brigade”, Jitin Prasada,Shashi Tharoor and Priya Dutt in particular, tweeted to say that the exit of Sachin Pilot could have been avoided.
Questions are being asked on why Sachin Pilot revolted against the Congress high command. Pilot was finding himself uncomfortable. He was beginning to realize that his very existence in Rajasthan politics was being eroded by the Gehlot camp. He was Deputy Chief Minister only in name. In reality, he had been completely sidelined in administrative matters. That is when he decided to revolt, just like his former associate Jyotiraditya Scindia in Madhya Pradesh.
Scindia and Pilot are not the only two leaders who are unhappy with the Congress dispensation. They are several more among the next generation of leaders – Jitin Prasada, Deependra Hooda, Milind Deora, Shashi Tharoor – to name a few. Most of them were part of Team Rahul during his initial days as party chief, but now they find themselves completely sidelined. These young leaders were toiling hard to project the party as the New Congress headed by Rahul Gandhi, but their efforts went in vain.
The main challenge now is not before Sachin Pilot, but before Rahul Gandhi. It is he who has to chalk out his future road map in the party. One of Pilot’s close associates, Vishwendra Singh tweeted an evocative Urdu couplet after his dismissal: “Kaat kar meri zubaan, jeh raha hai wo zaalim, ab tujhe ijaazat hai, haal-e-dil sunane ki”. (After slashing off my tongue, the tyrant says, you are now allowed to speak). This effectively sums up the mood in the Sachin Pilot camp.
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सचिन पायलट के खिलाफ आर या पार की लड़ाई में कांग्रेस क्यों उतरी ?
मंगलवार को कांग्रेस आला कमान ने राजस्थान के बाग़ी नेता सचिन पायलट को दो बड़े झटके दिए। पायलट को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री, दोनों पदों से हटा दिया गया। साथ ही पायलट के दो समर्थक मंत्रियों – विश्वेन्द्र सिंह और रमेश मीणा की भी छुट्टी कर दी गई। इस घटना के बाद राजस्थान में गुर्जर बहुल इलाकों, जैसे दौसा, अजमेर, भीलवाडा, धौलपुर, टोंक, सवाई माधोपुर और भरतपुर में प्रदर्शनों की आंशंका को देखते हुए हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है।
इससे पहले कांग्रेस विधायक दल की बैठक एक होटल रिज़ॉर्ट में हुई, जहां पायलट और उनके साथियों के खिलाफ अनुशासन की कार्रवाई करने का प्रस्ताव पास किया गया। इसके फौरन बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राज भवन गए और राज्यपाल को अपने बाग़ी मंत्रियों को छुट्टी कराने और अपने पक्ष में विधायकों के प्रस्ताव वाले पत्र सौंपे।
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि सचिन पायलट से छह बार बात हई, उन्हें मनाने की कोशिश की गई, लेकिन कांग्रेस को लगता है कि वह भाजपा के साथ मिलकर सरकार गिराने के षडयंत्र में शामिल हैं. सुरजेवाला ने कहा कि प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष और प्रदेश सेवा दल अध्यक्ष के पदों से भी सचिन पायलट के समर्थकों को हटा दिया गया है और उनके स्थान पर नयी नियुक्तियां की गई है।
मंत्रिमंडल से छुट्टी किए जाने के बाद पायलट के खासमखास विश्वेन्द्र सिंह ने एक शेर ट्वीट किया – ‘काट कर मेरी ज़ुबान, कह रहा है वो ज़ालिम, अब तुझे इजाज़त है, हाले दिन सुनाने की। ‘
पायलट और उनके साथी मंत्रियों की छुट्टी करके कांग्रेस आला कमान यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि पार्टी में नेता के खिलाफ बग़ावत को बरदाश्त नहीं किया जाएगा, पर सवाल ये है कि अगर पायलट अपने 18 या 20 विधायकों के साथ पार्टी छोडकर चले भी जाएंगे, तो क्या मुख्यमंत्री गहलौत की कुर्सी सलामत रहेगी ?
अभी तक किसी को मालूम नहीं है कि अंकों का गणित कहां जाकर रुकेगा । सबके मन में सवाल है कि क्या अशोक गहलोत की सरकार बचेगी और अगर सरकार बच गई तो सचिन पायलट क्या कांग्रेस में रहेंगे । फिलहाल जो समीकरण दिख रहे हैं, जिस तरह से अशोक गहलोत ने विधायकों का मैनेजमेंट किया है, विधायक दल की बैठक में विधायकों की जो संख्या है और पार्टी हाईकमान का जो रुख है, उसके हिसाब से ज्यादातर विधायकों का समर्थन अभी अशोक गहलोत क साथ हैं, पार्टी हाईकमान का आशीर्वाद भी गहलोत के साथ हैं, इसलिए कम से कम मौजूदा हालात में, गहलोत की सरकार को फिलहाल कोई खतरा नहीं दिख रहा है । फिलहाल अशोक गहलोत सचिन पायलट पर भारी दिख रहे हैं ।
राजस्थान की राजनीति में क्या हो रहा है, ये समझने के लिए आपको सचिन पायलट की बजाय राहुल गांधी की तरफ देखना होगा। राहुल गांधी जब कांग्रेस अध्यक्ष थे तो ज्योतिरादित्य सिंधिय़ा, सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा जैसे नेता उनके आसपास दिखाई देते थे । इसमें कोई दो राय नहीं है कि जब देश भर में कांग्रेस की नाव डूब रही थी, उस वक्त सचिन पायलट राजस्थान की गली गली में घूमे, पार्टी को खड़ा किया, उन्हें पूरा यकीन था कि अगर कांग्रेस जीती तो वही मुख्यमंत्री बनेंगे। जैसे मध्य प्रदेश में सिंधिया को यकीन था कि वह मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन जब मौका आया तो राहुल गांधी ने अशोक गहलोत और कमलनाथ को चुना।
उस वक्त सचिन पायलट खून का घूंट पीकर रह गए लेकिन अब सचिन को लग रहा है कि वो भले ही उपमुख्यमंत्री हैं लेकिन सरकार में उनकी चलती नहीं और ऊपर से अशोक गहलोत इस कोशिश में लगे है कि सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटा दिया जाय। सचिन पायलट के करीबी कहते हैं कि अशोक गहलोत मुख्यमंत्री हैं लेकिन उनके बेटे वैभव गहलोत का दखल बढ़ गया है। गहलोत अपने बेटे को राजनीति में आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, इसी बात से सचिन नाराज हैं।
बिल्कुल यही मध्य प्रदेश में हुआ था । ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मेहनत की, जब सरकार बनाने का मौका आया तो कमलनाथ को कुर्सी पर बैठाया गया, ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष तक नहीं बनाया, दिग्बिजय सिंह के बेटे को मंत्री बनाया गया, कमलनाथ का बेटा नकुलनाथ लोकसभा का सदस्य बन गया लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्य प्रदेश से राज्य सभा का टिकट देने से भी इनकार कर दिया गया । इसलिए ज्योतिरादित्य ने मौका देखकर ताकत दिखा दी, कांग्रेस की सरकार गिर गई ।
सचिन पायलट की नाराजगी जायज है। उन्हें लगता है कि राहुल गांधी ने चुनाव जीतने के लिए उनका इस्तेमाल किया और फिर किनारे फेंक दिया। वो अपना दुख कहते तो किससे कहते।
आज हालत ये है कि कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं को लगता है कि राहुल गांधी के व्यवहार की वजह से उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को खोया, अब अगर सचिन पायलट को नहीं मनाया गया तो आज नहीं तो कल राजस्थान में भी सरकार ज्यादा दिन चला पाना मुश्किल होगा ।
एक नोट करने वाली बात और है कि प्रियंका गांधी ने पहली बार उत्तर प्रदेश के बाहर राष्ट्रीय स्तर पर किसी झगड़े में सीधा दखल दिया है और सचिन पायलट से बात की ।
असल में कांग्रेस को शरद पवार से सीखना चाहिए । बगावत करने वाले अजीत दादा पवार के साथ उन्होंने कैसा व्यवहार किया । कांग्रेस के नेता कहते हैं कि सिंधिया के मामले में जो गलती हुई, वो सचिन पायलट के मामले में नहीं होनी चाहिए लेकिन वो ये क्यों भूल जाते हैं कि सचिन पायलट के पीछे सिंधिया का भी हाथ हो सकता है ।
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Why leaders like Scindia, Sachin Pilot are deserting Congress party
On a day of hectic political activity in Jaipur and New Delhi, Rajasthan chief minister Ashok Gehlot, facing rebellion from his deputy CM Sachin Pilot, hurriedly called a meeting of Congress MLAs at his residence on Monday, and then packed them off in buses to a resort in a bid to prevent desertions. Congress leaders, including Rahul Gandhi, Priyanka Gandhi Vadra, P. Chidambaram, spoke to Sachin Pilot and tried to persuade him to call off his political battle against Gehlot.
The number game is still unclear. Though Gehlot claimed the support of 107 MLAs in a house of 200, Pilot managed to keep his camp intact. The BJP called for a floor test in the assembly in order to put an end to the political drama. In a fast changing scenario, Gehlot seems to have a upper hand in the majority stakes.
Sachin Pilot is insisting on 50 per cent posts for his supporters in the state cabinet and state-run corporations, his continuance as state party chief and ‘full freedom’ in administrative work for him and his supporters.
In order to understand why Sachin Pilot revolted against the party leadership, one should not look at this young leader. One must look at the style of working of Rahul Gandhi.
When Rahul took over as Congress president, he had young leaders like Jyotiraditya Scindia, Sachin Pilot and Milind Deora with him as top lieutenants. At a time when the party’s political fortunes were dipping fast across India, it was Sachin Pilot who traversed the length and breadth of Rajasthan to garner public support.
Pilot was under the impression that he would be made the chief minister, if the Congress won in Rajasthan. Similarly, in Madhya Pradesh, Jyotiraditya Scindia was under the false impression that he would be made the chief minister, if the Congress returned to power. But when the time for picking up the chief ministers came, Rahul Gandhi opted for Ashok Gehlot and Kamal Nath. At that time, Sachin Pilot tried his best to suppress his unhappiness over this selection, but now he has realized that though he was given the ornamental post of Deputy CM, he had practically no say in government. The entire political power in Rajasthan is concentrated in the hands of the chief minister.
As a counter move, Chief Minister Gehlot was trying his best to dislodge Pilot from the post of state party chief. Pilot’s supporters allege that the chief minister was trying to promote his son Vaibhav Gehlot as a power centre. This was a clear affront to Pilot, who had put in years of toil to galvanize the party in Rajasthan.
A similar thing happened in Madhya Pradesh. Jyotiraditya Scindia toured the entire state to shore up the party’s position, but after the election results were out, it was Kamal Nath who was made the chief minister. Scindia was not even made the state party chief. Digvijay Singh’s son was made a minister, while Kamal Nath’s son Nakul Nath was made a party MP. Scindia was even denied a party ticket to become a Rajya Sabha member.
Scindia bided his time, and at an opportune moment, he displayed his political power by walking out of the Congress with his supporters, and joined the BJP. This resulted in the fall of Kamal Nath’s government.
I think, Sachin Pilot’s unhappiness is justified. He believes that Rahul Gandhi used him as a pawn to bring the Congress to power in Rajasthan and then cast him aside. The situation has now come to such a pass that several senior Congress leaders feel that it was Rahul’s style of working that caused Scindia to leave, and now Pilot wants to follow his path. They believe that if the issues raised by Pilot are not addressed soon, the party may soon have to sit in the opposition in Rajasthan.
There was one point to take note of on Monday. Priyanka Gandhi Vadra, who had confined herself to Uttar Pradesh politics, stepped in to persuade Sachin Pilot. This was her first interference in sorting out political disputes in the party on a national level.
Congress leaders should learn a lesson from NCP chief Sharad Pawar. The Maratha strongman’s nephew Ajit Pawar not only revolted, but formed a government with BJP for a few days, and yet Sharad Pawar did not lose his cool. He calmly persuaded him to return, forgave him, and gave him a place of prominence in the coalition government in Maharashtra.
Congress leaders say that the party leadership must not commit the same mistake with Pilot as it did with Scindia. But they forget one thing. It could be Scindia who might be advising Pilot on what to do in the coming weeks.
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विकास दुबे को वही सजा मिली जो एक खूंखार अपराधी को मिलनी चाहिए
शुक्रवार सुबह कानपुर के पास हुई गोलीबारी में उत्तर प्रदेश के खूंखार गैंगस्टर विकास दुबे की मौत से उत्तर प्रदेश में अपराध के इतिहास का एक घिनौना अध्याय समाप्त हो गया। शहीद हुए पुलिसकर्मियों के परिवारों ने जहां पुलिस कार्रवाई की प्रशंसा की, ऐसे राजनीतिक दल हैं जिन्होंने आरोप लगाया है कि एनकाउंटर ‘फर्ज़ी’ और ‘पूर्वनियोजित’ था।
कुछ लोग ये साबित करने में लगे हैं कि पुलिस को विकास को गोली नहीं मारनी चाहिए थी। वो सवाल पूछ रहे हैं पुलिस ने एनकाउंटर क्यों किया? कैसे किया? जो लोग साधु-संतों की हत्या पर खामोश रहे वो एक बर्बर- खूंखार हत्यारे की मौत पर सवाल पूछ रहे हैं। अब एक हिस्ट्रीशीटर की मौत पर आंसू बहा रहे हैं, जिसने 8 उत्तर प्रदेश पुलिसकर्मियों की निर्दयता और बर्बरता से हत्या कर कर दी।
सवाल पूछे जाने चाहिए लोकतंत्र में सबको सवाल पूछने का हक है और पुलिस को जवाब भी देना चाहिए, कई सवाल हैं।
पुलिस ने रास्ते में विकास दुबे की गाड़ी क्यों बदली?
यूपी पुलिस ने बताया कि क्यों गैंगस्टर विकास दुबे की उस गाड़ी को बदला गया जिसमें वह बैठा हुआ था। पुलिस ने बताया कि स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर के तहत गाड़ी को बदला गया ताकि दूसरों को यह पता न चले कि आरोपी किस गाड़ी में बैठा हुआ है।
पुलिस की गाड़ी कैसे पलट गई?
पुलिस ने यह भी बताया कि गाड़ी के ठीक सामने कैसे गाय-भैंसों का झुंड आ गया, और टकराने से बचने के प्रयास में गाड़ी पलट गई, जिससे अपराधी को भागने का मौका मिला। पुलिस ने यह भी बताया कि एसटीएफ के काफिले का पीछा कर रहीं मीडिया की गाड़ियों को रोका नहीं गया था बल्कि उन्हें एक टोल प्लाजा पर नियमित और जरूरी जांच के लिए रुकना पड़ा था।
उसे हथकड़ी क्यों नहीं लगाई गई थी?
पुलिस ने यह भी बताया कि अदालतों की तरफ से हथकड़ी को लेकर पहले ही कुछ दिशा निर्देश दिए गए हैं और उन्हीं को ध्यान में रखते हुए विकास को हथकड़ी नहीं लगाई गई थी। दिशानिर्देशों के मुताबिक आरोपी को तबतक हथकड़ी नहीं लगाई जा सकती जबतक यह जरूरी न हो। वह गाड़ी के अंदर 2 पुलिस इंस्पेक्टरों के बीच बैठा हुआ था।
लेकिन एक सवाल मेरा भी है, सवाल पूछने वाले कौन हैं? सवाल पूछने वालों की नीयत क्या है? कहीं उनका इरादा मौके का फायदा उठाकर योगी आदित्यनाथ को कठघरे में खड़े करने का तो नहीं? योगी का मकसद बिलकुल साफ है, वे पहले दिन से कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में पुलिस का इकबाल कायम रहना चाहिए। 8 पुलिस वालों की क्रूरता से हत्या करने वाला अगर बच जाए तो फिर कौन पुलिसकर्मी अपराधियों को रोकने के लिए अपनी जान दांव पर लगाएगा।
जरा सोचिए अगर गाड़ी पलटने के बाद विकास दुबे भाग निकलता तो कितना शोर मचाया जाता, कितना बडा तूफान आ जाता। इसीलिए मैं कहता हूं कि आज उन लोगों की तरफ देखना चाहिए जिनके परिवार वालों ने अपने जवान बेटे को, किसी ने अपने पति तो किसी ने पिता को खोया है।
हमें जानना चाहिए कि मारे गए पुलिसकर्मियों के परिवारजन एनकाउंटर को लेकर पुलिस की कही बात में खामियां देखने के बजाय क्या कह रहे हैं। हमें उन लोगों को भी सुनना चाहिए, जिनके परिवार के सदस्यों को विकास दुबे के गुर्गों ने मार दिया था और प्रताड़ित करते थे। न्याय की आस में वर्षों से इन लोगों की आंख के आंसू सूख गए थे। आज जब उन्हें विकास दुबे के मारे जाने की खबर मिली, तो आंखों में खुशी के आंसू आ गए, पुलिस वालों को फूलमाला पहना कर उनका स्वागत किया।
जिस पुलिस को विकास दुबे कुछ नहीं समझता था उसी पुलिस की गोली का शिकार हो गया। यूपी पुलिस से बचने के लिए विकास दुबे महाकाल के दरबार में गया था, लेकिन महाकाल ने भी उसकी अर्जी ठुकरा दी। उसे वहीं सजा मिली, जो एक हत्यारे को, दुर्दान्त अपराधी को मिलनी चाहिए। विकास दुबे ने जिस तरह से सरकार को, सिस्टम को, पूरी पुलिस फोर्स को चुनौती दी, जिस तरह से पुलिसवालों पर हमला किया, उसके बाद उसका यही होना था।
उसकी मौत के बाद हालात ये हो गए कि अब उसके माता पिता भी उसके साथ नहीं हैं, घरवालों ने लाश लेने से इंकार कर दिया, उसकी लाश को कंधा देने वाले चार लोग भी नहीं मिले। विकास की मौत की खबर सुनकर उसके पिता ने कहा कि पुलिस ने ठीक किया, अच्छा किया उसे मार दिया, क्योंकि वो किसी का सगा नहीं था। उसने हमेशा लोगों को कष्ट दिया, मां बाप को भी नहीं बख्शा। विकास दुबे के पिता ने कहा कि वो तो उसके अंतिम संस्कार में भी नहीं जाएंगे, मां ने भी कानपुर आकर बेटे का चेहरा देखने से इंकार कर दिया। सोचिए, मां बाप तक अपने बेटे की मौत पर दुखी नहीं हैं।
विकास दुबे के एनकाउंटर पर पुलिस के बयान को लेकर अधिकतर विपक्षी दलों ने सवाल उठाए हैं। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की, जबकि समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि मुठभेड़ “राज छिपाने के लिए” की गई। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उर्दू शेर पोस्ट किया – ‘कई जवाबों से अच्छी है ख़ामोशी उसकी, न जाने कितने सवालों की आबरू रख ली’।
खूंखार विकास दुबे के एनकाउंटर पर जो लोग राजनैतिक फायदा उठाने में लगे हैं, उनसे मैं यही कहूंगा कि एनकाउंटर पर सवाल उठाएं, जांच की मांग करे उसमें कोई बात नहीं, लेकिन इस पर सियासत बाद में करें। अभी तो शहीद पुलिसवालों के परिवार के बारे में सोचें जिनकी उसने क्रूरता से हत्या की थी। हम सबको एक बात तो समझनी पडेगी, माननी पडेगी कि विकास दुबे जैसे अपराधी की न कोई जाति होती है, न धर्म, न कोई पार्टी। ऐसे अपराधी तो सबका इस्तेमाल करते हैं और इसी इस्तेमाल को रोकने की जरुरत है।
सारी बातें देखने के बाद एक बात तो साफ है विकास दुबे एक शातिर अपराधी था। इस क्रिमिनल ने अपने जाति का फायदा उठाया, कभी समाजवादी पार्टी का, कभी बीएसपी का तो कभी बीजेपी के नेताओ का फायदा उठाया। इसने पूरे इलाके में आतंक फैलाया, जोर जबरदस्ती से चुनाव जीते, पुलिसवालों को मुखबिर बना लिया, ना मां-बाप की परवाह की और न बच्चों की।
जिस दिन उसने ड्यूटी पर गए पुलिसवालों की हत्या की उसी दिन साबित हो गया कि उसे किसी का डर नहीं था। कई लोग कहते हैं कि अगर वो पकड़े जाने के बाद जेल जाता, तो न उसके खिलाफ गवाह मिलते और न सबूत। पुलिसवाले उसको सजा दिलाने के लिए अदालतों के चक्कर लगाते और इस बात की कोई गारंटी न रहती कि वो पेरोल पर आकर और पुलिसवालों को न मारता।
इसलिए उसके एनकाउंटर पर सवाल उठाने से पहले ये सोचना चाहिए कि ऐसे लोगों को सजा दिलाना कितना मुश्किल काम है। ऐसे लोग समाज के लिए कितने बड़े नासूर हैं और उन्हें सजा मिले ये कितना जरूरी है। आपने विकास के पिता की बात सुनी, वो खुद कह रहे थे, कि बेटा समाज के लिए खतरा था, उसने बूढ़े मां बाप की कभी सेवा नहीं की, सिर्फ कष्ट दिए। समाज का कलंक बन चुके ऐसे खरतनाक अपराधियों को सजा जरूर मिलनी चाहिए।
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Vikas Dubey got his punishment that every dreaded criminal deserves
The death of dreaded UP gangster Vikas Dubey in a shootout near Kanpur on Friday morning brings to a close, a sordid chapter in the state’s crime history. While families of eight policemen slain by the gangster in a deadly ambush praised the police action, there are political parties which have alleged that the encounter was ‘fake’ and ‘preplanned’.
Some activists have argued why the Special Task Force men fired at a criminal who was unable to escape. They are raising questions about the encounter. These same activists were silent when a violent mob lynched two sadhus near Palghar in Maharashtra, but are now shedding tears over the death of a history-sheeter who murdered eight UP policemen in cold blood, and in a brutal manner.
I agree everybody has the right to ask questions in a democracy and the police must give answers.
Why did police change his vehicle?
The UP police described how the vehicle in which gangster Vikas Dubey was sitting was changed because of a standard operation procedure, so that others should not know in which vehicle the accused was travelling.
How did police vehicle slipped?
The police also explained how a herd of cattle came right in front of the vehicle, and in trying to avoid hitting them, the vehicle upturned, giving the criminal a chance to escape. The police also explained that the media vehicles which were following the STF convoy were not stopped, but had to halt at the toll plaza for the routine mandatory checks.
Why wasn’t he handcuffed?
The police also explained that Vikas was not handcuffed because of certain guidelines given by courts in the past. According to these guidelines, an accused need not be handcuffed unless it is absolutely required. He was sitting between two police inspectors inside the vehicle.
I have also a question to ask. Who are the people who are raising questions and what is their motive? Do they have a political motive in putting UP chief minister Yogi Adityanath in the dock? Yogi’s motive has been clear right from day one. He had been saying that the majesty of UP police must remain strong, it must not be diluted through political interference. If a gangster who murders eight policemen escapes to live a comfortable life, whether inside jail or outside, tell me, which policeman will dare to risk his life to catch a criminal?
Imagine the storm and pandemonium that would have been created, had Vikas Dubey fled after the vehicle upturned. That is why, I insist that citizens should first look towards the families of those eight innocent policemen who were ambushed and murdered in cold blood. Some of them have lost their sons, some have lost their husbands and fathers.
We should listen to what the family members of these slain policemen are saying, instead of finding loopholes in the police version about the encounter. We should also listen to those, whose family members were tortured and murdered by Vikas Dubey’s henchmen in the past. These people had no hope for justice and their tears have dried over the years. When they got news of the death of the gangster, tears of happiness flowed from their eyes. Some of them welcomed local policemen by garlanding them.
I want to say that gangster Vikas Dubey, who cared two hoots for the police and the system, had to face police bullets because of his atrocious acts. He had gone to Lord Mahakaal in the hope of survival, but the Lord rejected his plea. He got his punishment that every dreaded criminal deserves. He had challenged the government, the system and the entire police force by ambushing policemen.
He was a man reviled even by his own family members. His parents refused to come to his funeral. On hearing news of his son’s death, Vikas’ father said, police has done the right thing because he always tortured people and did not even spare his parents.
Most of the opposition parties have questioned the police version about the encounter. BSP supremo Mayawati demanded a probe under Supreme Court’s supervision, while Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav alleged that the encounter was done “to hide secrets”. Congress leader Rahul Gandhi posted an Urdu couplet to say that ‘silence is better than many answers, as it protects the honour of the one to whom questions are addressed’.
I want to tell the leaders who are trying to make political capital out of this, to limit their queries to the encounter only. They have the right to demand a probe, but they should keep politics out of this for now, at least, because it concerns the image and honour of the state police force. They should instead think about the families of slain policemen who were killed by Dubey’s henchmen. They must understand that a criminal has no caste, no religion, no political party. A criminal is always used by others and this needs to be stopped. Criminalization of politics must stop.
To sum up: Vikas Dubey was, no doubt, a hardened criminal. He took advantage of his caste, and helped Samajwadi Party, BSP and some BJP leaders too. He had created a reign of terror in his locality, used muscle power and intimidation during elections, hired several policemen as his moles inside the force, never cared two hoots for his old parents, nor his children.
The day he ambushed eight policemen it was clear that he had no fear of law. Some people even say that even if he was put behind bars and court proceedings were launched, nobody would have dared to appear as witness again him. Instead policemen would have been making rounds of courts to prepare a case against the gangster. There was no guarantee that he would not have murdered more policemen, had he come out on parole.
Those who are raising questions about the encounter must understand that it is very difficult for the prosecution to get a dreaded don like him convicted in court. You have heard what Vikas’ father said. He said, his son was a danger to society. Punishment must be meted out to such hardened criminals who are a blot on society.
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कैसे हुआ खूंखार हत्यारा विकास दुबे का नाटकीय अंत
खूंखार हत्यारा विकास दूबे का अंत भी आत्मसमर्पण की तरह नाटकीय रहा। उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर विकास दुबे को मध्य प्रदेश पुलिस ने उज्जैन के महाकाल मंदिर के बाहर गुरुवार सुबह नाटकीय अंदाज में गिरफ्तार किया था। बाद में उसे उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स को सौंपा गया जो अपने काफिले की गाड़ियों में उसे कानपुर वापस लेकर आ रहे थे।
शुक्रवार की सुबह, कानपुर शहर के बाहरी इलाके बर्रा के पास सड़क किनारे वह गाड़ी पलट गई जिसमें पुलिसकर्मियों के साथ विकास दुबे बैठा हुआ था। पुलिस के मुताबिक, गैंगस्टर ने एक पुलिसकर्मी का हथियार छीना और भागने का प्रयास किया, अन्य एसटीएफ कर्मियों ने उसे घेर लिया।
पुलिस के मुताबिक, उसे आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया, मुठभेड़ में विकास दुबे को गोलियां लगी और वह घायल हो गया। विकास और चार अन्य घायल पुलिसकर्मियों को कानपुर के लाला लाजपत काय अस्पताल ले जाया गया, जहां गैंगस्टर को मृत घोषित किया गया।
इसके साथ ही 2 जुलाई की रात विकास दुबे के बिकरू गांव में 8 पुलिसकर्मियों की निर्मम हत्या के साथ शुरु हुए घिनौने नाटक का अन्त हो गया। इस गैंगस्टर ने पुलिस के जाल से बचने के लिए 5 राज्यों में 1500 किलोमीटर तक भागदौड़ की थी। उसने उज्जैन में भगवान महाकाल की पूजा के बाद आत्मसमर्पण किया, इस डर से कि कहीं एनकाउन्टर में उसका खात्मा न हो जाय।
गैंगस्टर ने शिप्रा नदी में सुबह स्नान किया, मंदिर के गेट पर एक वीआईपी पास खरीदा, सुबह की ‘आरती’ में भाग लिया और फिर आकर लोगों के बीच चिल्लाया कि वही है “विकास दुबे, कानपुरवाला”, इसके बाद मंदिर के सुरक्षाकर्मियों ने उसे कसकर पकड़ लिया। मंदिर में मौजूद महिला श्रद्धालुओं ने बताया कि कैसे विकास और उनके दो साथी मंदिर के अंदर ‘आरती’ का वीडियो ले रहे थे, जबकि मंदिर के अंदर मोबाइल फोन लेकर जाना प्रतिबंधित है।
प्रत्यक्षदर्शियों ने यह भी कहा कि, वीआईपी टिकट खरीदने के बाद, विकास मंदिर के पिछले दरवाजे से घुसना चाहता था, लेकिन जब अनुमति नहीं मिली तो वह श्रद्धालुओं की कतार में शामिल हो गया। उसने मंदिर के बाहर एक सेल्फी वीडियो भी लिया और हिरासत में लेने के बाद एक पुलिसकर्मी के साथ अपना फोन नंबर साझा किया।
जाहिर है, विकास दुबे का समय पूरा हो चुका था, उसके गुर्गे या तो एनकाउंटर में मारे जा चुके थे या उत्तर प्रदेश पुलिस की पकड़ में आ चुके थे।
पकड़े जाने के बाद उसने बताया था कि कैसे 3 जुलाई की रात उसने पुलिसकर्मियों की निर्मम हत्या की योजना बनाई थी। विकास ने बताया था कि उसे पुलिस की दबिश की सूचना एक दिन पहले ही लग गई थी और वह इसके लिए अपने गुर्गों के साथ तैयार हो चुका था। उसने बताया कि कैसे उसके एक गुर्गे ने सर्किल ऑफिसर मिश्रा का पांव कुल्हाड़ी से काट दिया, कैसे वह 50 लीटर किरोसिन तेल से पुलिसकर्मियों के शवों को जलाना चाहता था लेकिन ऐसा कर नहीं सका क्योंकि पुलिस फोर्स पहुंच चुकी थी।
मैं हैरान हूं, जब लोगों ने गुरुवार को उज्जैन में उसकी गिरफ्तारी को “पूर्वनियोजित सरेंडर” बताया, और अब उसकी मौत के बाद वहीं लोग इसे “हत्या या फर्जी एनकाउंटर” बता रहे हैं। मैं ऐसे लोगों से अपील करूंगा कि एक बार उन 8 पुलिसकर्मियों के परिवारों के बारे में सोचें जिन्हें विकास दुबे के गुर्गों ने निर्दयता से मार दिया। विकास दुबे ने सार्वजनिक जगह पर अपने सरेंडर की योजना बनाई थी क्योंकि उसे एनकाउंटर में मारे जाने का डर था। उसे लगा कि खुद को मध्य प्रदेश पुलिस को सौंपकर उसने अपनी जान बचा ली। उसने उत्तर प्रदेश के अपराधियों की तरह अपना वसूली का अखाड़ा जेल से चलाने की योजना भी बना रखी थी। लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया।
हम सभी को यह समझना चाहिए कि अपराधी की कोई जाति नहीं होती, कोई धर्म नहीं होता। एक अपराधी हमेशा प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था की खामियों का गलत इस्तेमाल करने की कोशिश करता है। उत्तर प्रदेश पुलिस के अंदर विकास दुबे के मुखबिर थे। उसकी मौत के साथ उत्तर प्रदेश में अपराध के इतिहास का एक और शर्मनाक अध्याय समाप्त हुआ।
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How Vikas Dubey met his dramatic end
The end was as dramatic as the surrender. Dreaded UP gangster Vikas Dubey was taken into custody by Madhya Pradesh police outside the famous Mahakaal temple in Ujjain in a dramatic manner on Thursday morning. He was later handed over to UP Special Task Force who were bringing him in a convoy of vehicles to Kanpur.
On early Friday morning, the vehicle in which Dubey was sitting with policemen overturned on the roadside near Barra on the outskirts of Kanpur city. According to police, the gangster snatched a policeman’s weapon and tried to flee. He was surrounded by other STF personnel.
According to police, he was asked to surrender, and in the encounter that ensued, Vikas was shot at and injured. Vikas and four other injured policemen were rushed to LLR hospital in Kanpur, where the gangster was declared brought dead.
With this, the curtains have now fallen on the sordid drama that began with the bloodbath of eight policemen in Vikas Dubey’s Bikra village on July 2 night. The gangster, while escaping the police dragnet, went across five states and covered 1,500 kilometres before he surrendered in Ujjain after worshipping Lord Mahakaal.
The gangster took an early morning bath in Shipra river, bought a VIP pass at the temple gate, attended morning ‘aarti’ and then came out to declare to the world that he was “Vikas Dubey, Kanpurwallah”, with temple security guards holding him tightly. Female devotees who were at the temple revealed how Vikas and his two companions were taking video of the ‘aarti’ inside the shrine, even though taking a cellphone inside the temple is prohibited.
Witnesses also said, Vikas, after buying a VIP ticket, sought backdoor entrance, but on being denied, he joined the queue of devotees to enter the shrine. He also took a selfie video outside the temple, and shared his phone number to a policeman, after he was taken into custody.
Clearly, Vikas Dubey was running out of time, as his lieutenants were either being killed in encounters or nabbed by UP police.
In custody, he revealed how he planned the bloodbath of policemen on July 2 night in his village near Kanpur. Vikas revealed, he had got information about the police raid a day before, and he was prepared with his lieutenants. He revealed how one of his men cut off the leg of Circle Officer Mishra with an axe, how he wanted to set fire to the bodies of slain policemen with 50 litres of kerosene, but could not do so because police reinforcement had arrived.
I am amazed when people described his arrest in Ujjain on Thursday as “arranged surrender”, and now, after his death, the same people are describing this as a “murder and fake encounter”. I will appeal to such people to give a thought to the families of those eight policemen who were killed in cold blood by Vikas Dubey’s henchmen.
Vikas Dubey had planned his surrender in public, because he was afraid of being killed in encounter. He thought he has saved his skin by handing himself over to MP police. He had also planned to run his extortion ring from jail like other criminals in UP. But fate willed otherwise.
It is time we realize that a criminal has no caste, no religion. A criminal always tries to misuse the loopholes in the administrative and judicial systems for his own ends. Vikas Dubey had his moles inside the UP police force. With his death, ends a sordid chapter in the annals of crime in Uttar Pradesh.
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जाति की आड़ में अपराधियों को महिमामंडित करना बन्द करें
गुरुवार को मध्य प्रदेश के उज्जैन में उत्तर प्रदेश के खूंखार गैंगस्टर विकास दुबे की गिरफ्तारी के साथ, आखिरकार पिछले 6 दिन से इस हत्यारे की अलग-अलग राज्यों में हो रही तलाश खत्म हुई। कानून को ताक पर रखने वाले इस मुजरिम को अब कानून का सामना करना पड़ेगा। देश का कानून ही तय करेगा कि इस गैंगस्टर को कौन सी सज़ा दी जाय, क्योंकि उसने अनेक लोगों का कत्ल किया है।
मैं आज एक ऐसी बात कहना चाहता हूं जो कोई नहीं कहेगा, ऐसी बात जो जानते सब हैं, आपस में ऐसी बातें करते भी हैं, लेकिन सार्वजनिक तौर पर इस मुद्दे पर बात नहीं करते । आज मैं ये बात करूंगा क्योंकि यह जरूरी है और अगर इस मुद्दे पर अब भी बात नहीं की गई तो इससे देश का, समाज का, व्यवस्था का, और हम सबका बहुत नुकसान होगा।
मैं बात करना चाहता हूं, जाति को लेकर बंटते हुए समाज की, जाति के नाम पर अपराध की, अपराधियों की अनदेखी की । मैं दो दिन से सोशल मीडिया पर देख रहा हूं, बहुत से लोगों से सुन रहा हूं., वीडियो और कमेंट देख रहा हूं, कि लोग हत्यारे की, दुर्दांत अपराधी की जाति देख रहे हैं., जाति के आधार पर उसका समर्थन कर रहे हैं, मुझे बड़े दुख के साथ ये कहना पड़ रहा है कि उत्तर प्रदेश में आठ पुलिस वालों की जघन्य हत्या करने वाले विकास दुबे को लेकर कुछ लोग जाति का सवाल उठा रहे हैं । अगर साफ साफ कहूं तो चूंकि विकास दुबे एक ब्राह्मण है सिर्फ इसीलिए ब्राहम्ण समाज में कुछ लोग ऐसे हैं, जो उसे हीरो बता रहे हैं। किसी ने उसे शेर कहा, किसी ने हत्यारे की जांबाजी को सलाम किया, मैं हैरान हूं कि कुछ लोग ही सही, लेकिन समाज में ऐसे लोगों हैं जो अपराधी की गुनाह नहीं उसकी जाति देख रहे हैं.। ये बहुत ही शर्म की बात है.।
हम हमेशा कहते हैं कि अपराधी की कोई जाति नहीं होती, .समाज के लोग अपराधी को सिर्फ क्रिमिनिल की नजर से देखते हैं, लेकिन ये कड़वा सच है कि कि यूपी और बिहार मे आज भी जाति के नाम पर सारा खेल होता है, इसीलिए आज ब्राह्मणों के बीच, उत्तर प्रदेश में, बिहार में, खूंखार अपराधी विकास दुबे का महिमा मंडन करने की कोशिश की गई ।
आज मैं इस तरह की सोच रखने वालों की आत्मा को जगाना चाहता हूं, इस तरह की बातें करने वालों की आंखें खोलना चाहता हूं, विकास दुबे ने जो अपराध किया है, वह घिनौना है, उसका गुनाह नाकाबिले बर्दाश्त है, उसे सजा भी मिलेगी, लेकिन अगर कोई जाति के नाम पर, ब्राह्मण होने के नाम पर, उसकी मदद करने की कोशिश करेगा, उसका समर्थन करेगा, तो वह भी अपराधी होगा, गुनहगार होगा ।
विकास दुबे जैसे अपराधी का समर्थन करना, जाति के नाम पर समर्थन करना, उसे हीरो बताना समाज के प्रति गुनाह है । इस तरह से सोचने वालों को ये नहीं भूलना चाहिए कि विकास दुबे ने आठ पुलिस वालों की हत्या पूरी प्लानिंग के साथ और निर्ममता के साथ की, और वह ये गुनाह सिर्फ इसलिए कर पाया कि कुछ पुलिस वालों ने ही मुखबिरी की थी। ये सब पुलिसकर्मी भी जांच के दायरे में हैं, लेकिन मुझे पता चला कि विकास दुबे के साथ साथ इन पुलिस वालों की जाति की भी खूब बात हो रही है, इसलिए आज मैं आपको एक ऐसे पुलिस अफसर की बात बताना चाहता हूं, जो खुद ब्राह्मण हैं, जिन्होंने खुद बिना जाति देखे बड़े बड़े अपराधियों का काम तमाम किया है, जो खुद बिहार पुलिस के महानिदेशक हैं, सबसे सीनियर पुलिस ऑफिसर हैं….गुप्तेश्वर पांडे कानपुर में पुलिस वालो की ह्त्या से आहत हैं और जब से उन्होंने ये देखा कि कुछ लोग सिर्फ जाति के कारण, सिर्फ ब्राह्मण होने के कारण विकास दुबे जैसे दुर्दांत अपराधी का समर्थन कर रहे हैं., तो गुप्तेश्वर पांडे खुद को रोक नहीं पाए, अपना दर्द, अपना गुस्सा, अपनी चिंता कैमरे के सामने जाहिर कर दी ।
गुप्तेश्वर पांडे ने बुधवार को विकास दुबे जैसे अपराधियों का महिमामंडन करने की प्रवृति की आलोचना की। गुप्तेश्वर पांडे ने जनता से अपील की कि वह “अपराध की संस्कृति” को बढावा न दें और अपराधियों को हीरो न बनाएं. उन्होने कहा, “क्या हमें उसकी आरती उतारनी चाहिए? यह शर्म की बात है कि आठ पुलिसकर्मियों की हत्या करने के बाद ऐसा शातिर अपराधी भाग निकला। क्या विकास दुबे एक शेर है, या भगत सिंह है, या नेताजी, या अशफाकुल्लाह खान है ? ”
गुप्तेश्वर पांडे की बात वाकई में दिल को छूने वाली है, समाज की आंखें खोलने वाली हैं। खासतौर पर उन लोगो को तो एक बार नहीं गुप्तेश्वर पांडे की बात बार बार सुननी चाहिए जो सिर्फ ब्राह्मण होने के कारण पुलिस वालों के हत्यारे विकास दुबे को शेर बता रहे हैं, हीरो बता रहे हैं। गुप्तेश्वर पांडे पुलिस अफसर की तरह नहीं बोले, बिहार पुलिस के मुखिया की तरह नहीं बोले, उन्होंने समाज के एक संवेदनशील इंसान की तरह अपनी वेदना समाज के साथ शेयर की, समाज को आइना दिखाने की कोशिश की, लोगों की आत्मा को झकझोरने की कोशिश की।
इसके लिए गुप्तेश्वर पांडे की तारीफ होनी चाहिए। आमतौर पर अफसर, खासतौर पर पुलिस अफसर अपराधियों के बारे में, आपराधियों की जाति के बारे में इस तरह से खुलसकर बोलने से बचते हैं। लेकिन गुप्तेश्वर पांडे ने जो कहा बिल्कुल सही कहा। इस पर विचार करने, इस पर अमल करने की जरूरत है। उनकी ये बात सही है कि अपराधी की कोई जाति नहीं होती, कोई धर्म नहीं होता। अपराधी पहले शार्टकट से पैसा कमाने के लिए, बिना मेहनत के ऐशो आराम की जिंदगी के लिए अपराध करता है। इसके बाद अपने गुनाहों को छुपाने के लिए गुनाह करता है। फिर बचने के लिए जाति का सहारा लेता है,लेकिन वो किसी का सगा नहीं होता।
विकास दुबे को ही देख लें,उसने किसको मारा? संतोष शुक्ला कौन थे? पंडित थे। विकास दुबे ने जिन पुलिस वालों को निर्ममता से मारा उसमें DSP देवेंद्र मिश्रा कौन थे? ब्राह्मण ही थे। विकास दुबे के चक्कर में एनकाउंटर में कल उसका जो साथी मारा गया, अमर दुबे, वो भी ब्राह्मण था। चौबेपुर थाने के जो पुलिस वाले विकास दुबे के लिए पुलिस की ही मुखबिरी करते थे, जो अब जेल में है, SHO विनय तिवारी और दारोगा कृष्णपाल मिश्रा, ये दोनों भी ब्राह्मण हैं। और तो और विकास दुबे ने अपने कजिन पर, अपने भाई पर जानलेवा हमला करवाया। कहने का मतलब ये है कि अपराधी अपराधी होता है। वो अपने फायदे के लिए, अपने बचाव के लिए, शील्ड की तरह अपनी जाति का इस्तेमाल कर सकता है।
सबसे ज्यादा चिंता की बात तो ये है कि समाज में जाति का जहर तो पहले से था, लेकिन सिस्टम में जाति का जहर इस कदर घुस गया है,ये विकास दुबे के मुखबिरों के नाम देखकर पता चला।
विकास दुबे की गिरफ्तारी के साथ, निश्चित रूप से सारे परतें खुलने वाली हैं। यूपी पुलिस में कई ऐसे थे जो इस गैंगस्टर के लिए मुखबिरी का काम कर रहे थे और गैंगस्टर से पूछताछ करने के बाद उनके चेहरे से नकाब उतर जाएगा। समय आ गया है कि अब पुलिस में काम कर रहे घर के भेदियों की पहचान की जाय और उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाय।
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Stop glorifying a gangster because of his caste
With the early dawn arrest of dreaded UP gangster Vikas Dubey in Ujjain, Madhya Pradesh on Thursday, the curtain is finally drawn over the inter-state hunt for the mass murderer. The outlaw will now have to face the law. The law of the land will ultimately come down heavily on this extortionist gangster, who has murdered scores of people in his life.
I am, however, amazed to find some people on social media eulogizing this gangster because of his caste. Normally, in public, people avoided making mention of caste, but in private, they speak much about the caste denomination of criminals and policemen.
I am raising this issue here because it is my firm conviction that such a pernicious tendency needs to be nipped in the bud, otherwise it will cause irreparable harm to society and the present system.
I have gone through many comments in social media where people have supported this dreaded gangster because of his Brahmin caste. I am filled with sadness because this man was the mastermind of that fateful ambush in which eight UP policemen lost their lives, when they went to his house to arrest him. These policemen were murdered in cold blood, and yet there are people who are praising this despicable act.
These people are trying to glorify Vikas Dubey as a hero, a tiger and a fighter, only because of his caste, and yet they ignore that Dubey has committed a heinous act, which cannot be accepted under any circumstance in a civil society.
A criminal has no caste and people in civil society must identify a criminal not by his caste, but by his acts. I want to convey my message to the conscience of people who are openly supporting Vikas Dubey. He is a criminal, an extortionist, who must meet his logical end. Supporting Vikas Dubey because of his caste is, in itself, a crime against society. People should know that Dubey had meticulously planned the bloody ambush of UP policemen with the help of his moles in the police force.
I want to praise Gupteshwar Pandey, the Director General of Bihar Police. He is the senior most police officer in Bihar, a no-nonsense officer who has put many criminals behind bars without ever going through their caste credentials. On Wednesday, Gupteshwar Pandey criticized this tendency of eulogizing a criminal like Vikas Dubey.
Gupteshwar Pandey appealed to people not to encourage the “culture of crime” and “hero worshipping” of criminals. “Should we offer prayers to him?”, he asked. “It is such a shame that such seasoned criminals escaped after killing eight policemen. ..Is Vikas Dubey a tiger? Or like Bhagat Singh, or Netaji, or Ashfaqullah Khan?”
Gupteshwar Pandey’s words have touched the chords of my heart. This should serve as an eye opener to society, particularly those who eulogize Vikas Dubey as a tiger because of his Brahmin caste. Pandey spoke not as a police officer, but as a sensitive citizen of society. He shared his pain with society and tried to show mirror to all of us about the grim realities that exist today.
Pandey’s comments should be praised, because normally, senior police officers avoid making comments about criminals and their caste in public. Pandey was right when he said that a criminal has no caste, no religion: a criminal’s sole motive is to earn money through shortcuts and live a life of luxury. Such criminals do not have any sympathy for others, even for people from his own caste.
Look at the names of people whom Dubey killed. One was Santosh Shukla, who belonged to his own caste. He killed DSP Devendra Mishra, he was also a Brahmin. The SHO of Chaubepur police station Vinay Tiwari and inspector Krishnapal Mishra, who acted as his moles, and are now under arrest, are also Brahmins. Vikas Dubey carried out a murderous attack on his cousin, who was a Brahmin. In a nutshell, a criminal’s sole motive is crime, and not caste or religion.
The poison of caste that exists in our society has now seeped into our system, and this should be cause for worry. If one goes through the names of moles in police force, who helped Vikas Dubey, it will surprise all, because most of the policemen belonged to his own caste.
With Vikas Dubey’s arrest, the can of worms is certainly going to spill out in the open. There were many in the UP police force who were working as informers for this gangster and they will certainly be exposed after the gangster is thoroughly interrogated. It is time that black sheep in the police force are identified and weeded out.
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चीन अब दुनिया के सामने खुद को सताया हुआ दिखाने की कोशिश क्यों कर रहा है ?
अब इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि चीन के सैनिक लद्दाख में गलवान घाटी के पेट्रोलिंग प्वाइंट 14 से पीछे हट गए हैं। वे अपने टेंट उखाड़ चुके हैं और अपनी आर्टिलरी को भी वापस ले जा चुके हैं। गोगरा हॉट स्प्रिंग से भी पीछे हटने की प्रक्रिया अगले कुछ दिनों में पूरी हो जाएगी, वहां चीनी सैनिक अपने ढांचों को हटा रहे हैं।
मज़े की बात यह है कि चीनी मीडिया अब अपनी सेना को दुनिया के सामने पीड़ित के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है। चीनी सरकार नियंत्रित मीडिया ने आरोप लगाया कि भारत ने लद्दाख में युद्ध का माहौल बनाया और ‘विस्तारवादी’ इरादा भी भारत का था। चीनी मीडिया यह बताने की पूरी कोशिश कर रहा है कि उपग्रह से ली गई तस्वीरों में गलवान घाटी में दिखाए गए ढांचे भारतीय सेना के हैं। चीन के सरकारी टेलीविजन सीसीटीवी ने आरोप लगाया कि LAC के पास भारतीय सैनिकों का बड़ा जमावड़ा था और भारतीय प्रधानमंत्री खुद सैनिकों की होंसला अफजाई करने के लिए बॉर्डर पर गए।
चीन के सरकारी मीडिया ने आगे आरोप लगाया कि यह भारत है जिसने 59 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया और चीन के साथ व्यापार पर बंदिशें लगाई। चीनियों ने यह भी आरोप लगाया है कि भारत ने अमेरिका से हाथ मिलाया और रूस से विमान तथा हथियार खरीदने का ऐलान किया । भारत को युद्ध उन्मादी तथा चीन को निर्दोष बताने के लिए चीनी मीडिया भारत में फ्रांस से खरीदे गए राफेल विमान, रूस से खरीदे गए टैंक और ब्रह्मोस मिसाइल की तस्वीरें दिखा रहा है।
चीन के टीवी पर जो कुछ कहा जा रहा है , उसे ठीक से समझने की जरूरत है। सब जानते हैं कि चीन में टीवी पर वही दिखाया जाता है जो सरकार चाहती है, वहां सरकार का मीडिया पर पूरा कन्ट्रोल है। यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का मीडिया पर पूर्ण नियंत्रण है और टीवी पर दिखाए जाने वाले सारे शो शीर्ष अधिकारियों की मंजूरी के बाद दिखाए जाते है।
चीन के टीवी शो पर एंकर ने अपने एक्सपर्ट गेस्ट से छह सवाल पूछे, गलवान में जो घटना हुई उसका जिम्मेदार कौन है? भारत के साथ सरहद पर जून में ही टकराव क्यों होता है? हिन्दुस्तान दूसरे देशों से हथियार क्यों खरीद रहा है ? इन सवालों में अजीत डोवल की मीटिंग का भी जिक्र हुआ, ये भी सवाल उठाया गया कि भारत ने चाइनीज ऐप्स बंद कर दिए, इसका कितना नुकसान होगा?
फिर एक सवाल ये था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फ्रंट लाइन पर पहुंचे, इसका क्या असर होगा? इन सारे सवालों के जवाब एक्सपर्ट्स ने दिए। चीन के सरकारी मीडिया द्वारा बुलाए गए विशेषज्ञों ने भी अपना काम किया , अपने देश की नीतियों का बचाव करते हुए प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दिया।
चीन के टीवी पर चर्चा से जो तस्वीर उभरती है, उसका मतलब साफ है, पहली बात ये कि चीन इस बात से खासा नाराज है कि गलवान के इलाके में भारत ने इन्फ्रास्ट्रक्चर क्यों बनाया, दूसरा चीन को इस बात की तकलीफ है कि भारत और अमेरिका के रिश्ते इतने गहरे कैसे हो गए, खासतौर पर ऐसे वक्त में जब चीन और अमेरिका के रिश्ते खराब हैं। साथ ही रूस से हथियार खरीदकर भारत ने जो माहौल बनाया, इसका भी असर चीन पर हुआ, तीसरा चीन को उसके ऐप्स पर लगी पाबंदी से भी चोट लगी और चौथी बात ये कि भारत ने चाइना से ट्रेड को लेकर जो रोक लगाई उसका भी चीन पर गहरा असर हुआ और इसके बाद चीन को सबसे ज्यादा परेशानी इस बात से हुई कि नरेन्द्र मोदी ने फ्रंटलाइन पर जाकर जवानों का हौंसला बुलंद किया।
इन सब बातों का चीन का अपना इंटरप्रिटेशन हैं, ये दिखाने का कि कैसे भारत उसे परेशान कर रहा हैं। लेकिन इन सब का ये असली मतलब नहीं है, सच्चाई तो ये है कि इन्ही सारी बातों से परेशान होकर या कहें कि घबरा कर चीन ने अपनी फौज को पीछे बुलाने का फैसला किया। ये नरेन्द्र मोदी की डिप्लोमैसी की, वॉर प्रिप्रेशन की जीत है और फ्रंटफुट पर खेलने की नीति का नतीजा है। इसीलिए चीन डर कर भागा है। लेकिन अब अपनी एंब्रैसमेंट को छुपाने के लिए खुद को विक्टिम बता रहा है।
हालांकि चीन की ये सब चालबाजी काम नहीं आएगी क्योंकि भारत के पास अब चीन की हर चाल और उसकी हर चतुराई का जवाब है। चीन ये ना सोचे कि फिलहाल उसकी फौज पीछे हट गई है और जब हिन्दुस्तान की सेना थोड़ा रिलैक्स हो जाएगी तो पलटवार करेगा, अगर इस बार चीन ने ऐसा किया कि तो उसे मुंह की खानी पड़ेगी।
60 सालों में पहली बार चीन को टकराव वाली जगहों से हटने के लिए मजबूर होना पड़ा है। ऐसा इसलिए हो सका क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी ने मज़बूती दिखाई । वे सैनिकों को प्रेरित करने के लिए सीमा पर गये।
ऐसे नाजुक समय में 130 करोड़ जनता वाले देश के चुने हुए नेता मोदी को बॉर्डर पर जाकर सैनिकों को संबोधित करने का पूरा अधिकार है और तानाशाही को मानने वाले चीन को इसका विरोध करने का कोई हक़ नहीं है। चीन के सरकारी मीडियाका ये कहना भी सही है कि पीएम मोदी ने अपनी सेना को हमले का पलटवार करने की खुली छूट दे रखी है। ये सही है कि सशस्त्र बलों को निर्देशित किया गया था कि वे स्थिति और माहौल के आधार पर मौके पर सही निर्णय लें, दिल्ली से आदेश मिलने का इंतजार न करें। भारत में निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकार ने सशस्त्र बलों के पीछे अपनी पूरी ताकत लगा दी, और संकट के समय ऐसा करना कोई गलत काम नहीं है।
चीनी मीडिया इस बात का भी हवाला दे रहा है कि उनके देश पर बेवजह आरोप लगाए जा रहे हैं, चीन का आरोप हैं ये है कि LAC के पास भारत सड़क, पुल, हवाई पट्टी और हेलीपैड का निर्माण कर रहा था। चीनी मीडिया पूरी सच्चाई नहीं बता रहा। हमारी सेना का LAC पर नो मैन्स लैंड इलाके पर कब्जा करने का कोई इरादा नहीं है, जबकि चीनियों ने गैर कानूनी तरीके से अतिक्रमण करके ऐसा किया। अब जब चीनी सेना ने भारत की सेना की ताक़त और इरादों को देखा, तो उसने पीछे हटना सही समझा और अब उल्टे ये आरोप लगा रहा है कि भारत आक्रामक है।
सीमा पर पीछे हटने की प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद भारतीय सुरक्षाबल इस समय सतर्क हैं और चीन के सैनिकों की मूवमेंट पर पैनी नजर बनाए हुए हैं। दिन के समय सेना के जवान और अधिकारी चीनी क्षेत्र पर नजर रखते हैं, जबकि रात में, हमारे मिग-29 लड़ाकू विमान, अपाचे हेलीकॉप्टर और चिनूक हैवी लिफ्ट हेलीकॉप्टर निगरानी कर रहे हैं।
कहते हैं, दूध का जला छाछ को फूंक फूंक कर पीता है। असल में चीन के मामले में भारत दूध का जला है। एक बार नहीं कई बार जला है। 1962 में भी चीन की फौज पहले गलवान वैली से वापस लौटी थी, हमने चीन पर भरोसा किया था, और चीन ने पीठ में छुरा घोंप दिया, पलटवार किया। लेकिन अब वक्त बदल गया है, भारत बदल गया है। इसलिए अब चीन की हर चाल का जबाब देने की तैयारी है।
चीन की नई चाल क्या है ये भी आपको बताता हूं। चीन ने पैंगोंग सो इलाके में एक्विजिशन रडार तैनात किए हैं, चीन ने लोकल लोगों को रेकी करने के लिए रिक्रूट किया है ताकि हमारे जवानों की मूवमेंट पर नजर रखी जा सके। इसके अलावा चाइना ने अपने 73 एवियेशन ब्रिगेड के साथ एक्सरसाइज की है
हालांकि हमारी सेना भी चीन की हर हरकत पर नजर रखे हुए है। चीन जितना गडबड करेगा, उसे उतना ही नुकसान होगा। चीन को समझ लेना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी ने दुनिया को अब ड्रैगन को काबू करने का रास्ता दिखा दिया है। अब तो अमेरिका ने भी साफ कह दिया कि वो चाइनीज एप्स को बैन करने पर विचार कर रहा हैं। अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट माइक पोंपियो ने कहा है ट्रंप एडमिनिस्ट्रेशन TikTok समेत कई चाइनीज एप्स पर बैन लगा सकता है। पोम्पिओ ने कहा, ” अगर आप चाहते हैं कि आपकी निजी जानकारी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के हाथ चली जाए तो ही आप ऐप्स को डाउनलोड करें…… हम इसे बहुत गंभीरता से ले रहे हैं”।
भारत में 59 चाइनीज ऐप्स पर बैन लगा तो चीन को 3 लाख 71 हजार करोड़ का नुकसान हुआ। अगर अमेरिका ने भी ऐसे कदम उठाए तो चीन का क्या हाल होगा।
अमेरिका, भारत से सबक सीख रहा है और चीन को सबक सिखा रहा है। पूरी दुनिया में नरेन्द्र मोदी की कूटनीति और रणनीति की तारीफ हो रही है। अब समय आ गया है कि चीन अपनी आक्रामक और विस्तारवादी हरकतों से बाज आये।
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How Chinese media is playing the victim card before the world
Official sources have now confirmed that Chinese troops have withdrawn from Patrolling Point 14 of Galwan Valley in Ladakh. They have dismantled their tents and taken away their artillery. The disengagement process in Gogra-Hot Springs is expected to be complete within the next few days, as dismantling of Chinese structures continue.
The most interesting part is that the Chinese state media is now trying to project its army as the victim before the world. Chinese state-controlled media has alleged that it was India which created a war scenario in Ladakh and that India has ‘expansionist’ designs. The Chinese media is trying hard to point out that the structures shown in Galwan Valley in satellite images belong to Indian army. The official Chinese television CCTV has alleged there was large deployment of Indian troops near the LAC and that the Indian Prime Minister himself went to the border to address his troops.
The Chinese state media further alleged that it was India which banned 59 Chinese apps and imposed restrictions on trade with China. The Chinese have also alleged that India has joined hands with the US and is buying aircraft and weapons from Russia. Chinese media is also showing pictures of Rafale aircraft bought by India from France and MiG-29 fighters, BrahMos missiles and tanks bought from Russia, to project India as a warmonger and China as an innocent victim.
One needs to understand the psychology behind this move by Chinese state-controlled media. It is an open secret that the Chinese Communist Party has full control over media and every show is carefully designed and approved by top bosses.
In one show, the anchor asked six questions from expert guests, about what exactly happened in Galwan valley, who was responsible for the violent clashes, why border confrontations take place in June every year, and why India is buying weapons and aircraft from other world powers. The questions also made mention of National Security Adviser Ajit Doval’s talks with Chinese Foreign Minister Wang Yi, why India banned 59 Chinee apps and the financial losses that this step would entail.
There was also one question about Prime Minister Narendra Modi’s sudden visit to the Ladakh border and its consequences. The experts handpicked by Chinese state media dutifully replied to each of these questions defending their country’s policies.
The picture that emerges from this Chinese TV discussion is (1) China, for the first time, is concerned over India building infrastructure near the Line of Actual Control, (2) China is worried over India-US friendship at a time when China-US friendship is on the rocks, and India’s timely decision to buy Sukhoi and MiG-29 aircraft from Russia has also irked the Chinese, and finally (4) the Indian ban on 59 Chinese apps and restrictions on Chinese imports has hurt its industry. The icing on the cake was when Prime Minister Modi made a sudden visit to the border to boost the morale of his jawans.
The Chinese have their own interpretations about all these issues and their state media is trying to project that India is causing worries for China. The real meaning lies somewhere else. China withdrew its troops from border flashpoints because of Modi’s astute diplomacy, massive war preparations and India playing on the front foot. This was the reason behind China withdrawing its troops. The Chinese were afraid of worldwide embarrassment and that is why its state-controlled media is now playing the ‘innocent victim’ card to cover up for its army’s lapses.
China’s wily stunts will no more work because India has the answer to each such stunt. The Chinese leadership and its People’s Liberation Army must not harbour the illusion that now that troops have withdrawn from flashpoints, the Indian armed forces will relax and then the PLA will strike again. If the Chinese army does so, it should be ready to face a big, big surprise.
For the first time in the last 60 years, China has been forced to withdraw from flash points. This was because Prime Minister Modi was leading from the front. He went to the border to galvanize the troops.
As a leader of a nation of 130 crore people, Modi has the right to address his troops at the border at a critical time, and China should not crib. The Chinese state media is also correct when it says that PM Modi has given a free hand to his army to repel attacks. Yes, the officers of armed forces were directed that they should take the right decision on the spot, depending on the situation and context, and they should not wait for green signals from Delhi. The elected democratic government in India put its full might behind the armed forces, and there is nothing wrong in it when such a critical situation arises.
The Chinese media is also cribbing that its country is facing all sorts of allegations, but the real fact is that it was India which was building roads, bridges , air strips and helipads near the LAC. The Chinese media is correct on this score, but it did not reveal the whole truth. Our army had no intention of occupying No Man’s Land area at the LAC, which the Chinese did by committing unlawful transgressions. Now that the Chinese army has witnessed India’s military build-up, it opted for the retreat option, and in the bargain, it is now making the counter-charge that India is the aggressor.
Despite the beginning of disengagement process, the Indian armed forces are on their toes, keeping a hawk’s eye on Chinese troop movement. During the daytime, army jawans and officers keep watch on the Chinese side, while at night, our MiG-29 fighter jets, Apache helicopters and Chinook heavy lift helicopters are carrying out surveillance in darkness.
There is a proverb in Hindi: “Doodh ka jalaa, chaachh phoonk phoonk kar peeta hai” (once bitten, twice shy). Not even twice, several times. In July 1962, Chinese troops withdrew from Galwan valley. India trusted the Chinese, but they stabbed India in the back, by launching a full-scale war in October the same year. The times have now changed. India has changed. India is ready to repay China back with its own coin.
Let me reveal what the Chinese army is doing now despite the disengagement process. It has installed an acquisition radar at Pangong lake and has hired some local people for the purpose of reconnaissance, to keep an eye on our troop movements. In addition, China has conducted an exercise with its 73 Aviation Brigade.
It is time China must understand that the more mischief it does, the swifter the response it should expect from India. Modi has shown the world how to keep the Chinese dragon under the leash. Even the US is now toeing India’s line. US Secretary of State Mike Pompeo has said that his country was “looking at banning Chinese” social media apps, including TikTok. “People should only download the apps if you want your private information in the hands of Chinese Communist Party…we are taking this very seriously”, Pompeo added.
The Chinese social media app companies have incurred huge losses because of India’s ban on 59 Chinese apps. If the US takes a similar step, imagine the financial loss that the Chinese companies may have to incur.
So, it’s now in the reverse direction. The US is taking the cue from India to teach the Chinese a lesson. The whole world has appreciated Narendra Modi’s diplomatic and strategic initiatives. It’s time that the Chinese learn the right lesson and desist from adventurist and expansionist designs.
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