संसद में मंगलवार को विपक्ष के 49 और सांसदों को सस्पेंड कर दिया गया. इन्हें मिला कर दोनों सदनों में अब तक कुल 141 विपक्षी सांसद सस्पेंड किये जा चुके हैं. मंगलवार को सस्पेंड होने वालों में डॉ. फारूक़ अब्दुल्ला, सुप्रिया सुले, मनीष तिवारी, डिम्पल यादव, सुदीप बंद्योपाध्याय शामिल हैं. सोमनार को 78 सांसद सस्पेंड हुए थे. इनमें जयराम रमेश, रणदीप सुरजेवाला, के सी वेणुगोपाल, अधीर रंजन चौधरी, प्रमोद तिवारी, रामगोपाल यादव, कणिमोली, गौरव गोगोई, दयानिधि मारन और सोगत राय शामिल थे. इन सभी सांसदों को शीताकालीन सत्र के बाकी दिनों के लिए सस्पेंड किया गया. असल में विपक्ष संसद की सुरक्षा में सेंध के मामले में चर्चा की मांग को लेकर हंगामा कर रहा है. विपक्ष संसद की सुरक्षा में सेंध लगाये जाने के मामले में गृह मंत्री अमित शाह के बयान पर अड़ा है. विरोधी दलों का कहना है कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री संसदीय परंपराओं की अनदेखी कर रहे हैं, संसद की सुरक्षा में सेंध जैसे गंभीर मसले पर संसद के बाहर बयान दे रहे हैं, जबकि परंपरा के मुताबिक जब सत्र चल रहा हो तो इस तरह के मुद्दे पर सरकार को पहले संसद में अपनी बात कहनी चाहिए. चूंकि सरकार के कई महत्वपूर्ण विधेयक लम्बित हैं, सरकार जल्द से जल्द ये सारे बिल पास करवाना चाहती है और विपक्ष सरकार को वॉकओवर देने को तैयार नहीं है, इसीलिए सोमवार को दोनों सदनों में विरोधी दलों के सदस्य प्लेकार्डस लेकर पहुंचे थे. सदन की कार्यवाही शुरू होते ही विरोधी दलों के सासंदों ने नारेबाजी शुरू कर दी. लोकसभा में स्पीकर ने और राज्यसभा में सभापति ने बार बार सासंदों को समझाने की कोशिश की, नाम लेकर चेतावनी दी लेकिन जब विपक्ष के सासदों के रवैए पर कोई असर नहीं पड़ा तो लोकसभा से 33 और राज्यसभा से 45 सांसदों को सस्पेंड किया गया और आखिरकार दोनों सदनों की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित करनी पड़ी. इतनी बड़ी संख्या में विरोधी दलों के सांसदों का निलम्बन वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन विरोधी दलों के जो सांसद कह रहे हैं कि इससे पहले संसदीय इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ, उन्हें मैं याद दिला दूं कि 1989 में जब राजीव गांधी की सरकार थी, उस वक्त विरोधी दलों के सांसद इंदिरा गांधी की हत्या पर बने ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट को सदन में पेश करने की मांग कर रहे थे. इसी बात को लेकर हंगामा हो रहा था. उस वक्त एक दिन में लोकसभा के 63 सांसदों का सस्पेंड किया गया था. उस वक्त भी मैंने कहा था कि विरोधी दलों के खिलाफ ये कार्रवाई गलत है. आज भी कह रहा हूं ये कार्रवाई स्वस्थ लोकतन्त्र के लिहाज से ठीक नहीं है लेकिन इसमें सिर्फ सरकार जिम्मेदार नहीं है. सिर्फ स्पीकर या सभापति को दोष देना ठीक नहीं है. विरोधी दलों के सांसद प्लाकार्ड लेकर आए, नारे लगाए, सदन के बीचोंबीच आकर हंगामा किया, सभापति की बात नहीं मानी. इसके बाद सरकार को उन्हें सस्पेंड करने की मांग करने का मौका मिला. बीजेपी ने जाल बुना और विरोधी दलों के सांसद उस जाल में खुशी खुशी कूदकर फंस गए, वो ये समझ ही नही पाये कि इस एक्शन से ज्यादा सियासी नुकसान विपक्ष का ही होगा क्योंकि दिल्ली में विपक्षी इंडिया एलायन्स की जो मीटिंग हो रही है, उससे पहले इतनी बड़ी संख्या में सांसदों के निलम्बन से मीटिंग का एजेंडा पटरी से उतर जाएगा.
विपक्षी गठबंधन : कांग्रेस पर दवाब बढ़ा
दिल्ली के अशोका होटल में मंगलवार को करीब 28 विरोधी दलों के शीर्ष नेताओं की बैठक हुई. इस बैठक में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मल्लिकार्जन खर्गे, शरद पवार, लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, अरविन्द केजरीवाल, ममता बनर्जी, एम. के.स्टालिन, उद्धव ठाकरे, फारूक़ अब्दुल्ला, आदि नेता पहुंचे. बैठक में मुख्यत: सीटोंके बंटलवारे की निति पर चर्चा होगी. बैठक से एक दिन पहले ममता बनर्जी ने कहा कि विपक्षी गठबंधन का नेता कौन होगा, प्रधानमंत्री का चेहरा कौन होगा, ये चुनाव नतीजे आने के बाद तय होगा. रही बात सीटों के बंटवारे की, तो इस पर ज़ोर रहेगा कि विपक्ष की तरफ से हर सीट के लिए एक उम्मीदवार खड़ा किया जाय. लालू यादव ने अपनी चिरपरिचित अंदाज़ में कहा कि सभी पार्टियां एकजुट हैं, सब लोग दिल्ली पहुंच रहे हैं, सब मिलकर मोदी सरकार को उखाड़ फेंकेंगे. विरोधी दलों के गठबंधन के सारे नेता ये मान रहे हैं कि मिलकर लड़ेंगे. मिलकर ही मोदी को हराया जा सकता है लेकिन कोई ये बताने को तैयार नहीं है कि मोदी के मुकाबले चेहरा किसका होगा? गठबंधन का नेता कौन होगा? इसका एक ही जवाब है कि नेता के नाम का फैसला चुनाव के बाद होगा. लेकिन कौन कितनी सीटों पर लड़ेगा? इसका फैसला तो चुनाव से पहले ही करना होगा लेकिन इसमें भी मुश्किल है. सर्वसम्मती से कुछ तय होगा, इसकी उम्मीद कम है क्योंकि इससे पहले तीन बैठकों में सीटों के बंटवारे पर इसलिए बात नहीं हो पाई क्योंकि उस वक्त कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में चुनाव जीता था, इसलिए कांग्रेस की दावेदारी मजबूत थी. सहयोगी दल उस वक्त तैयार नहीं थे. अब तीन राज्यों में कांग्रेस बुरी तरह हारी है, इसलिए कांग्रेस की स्थिति कमजोर है. अब ममता बनर्जी, अरविन्द केजरीवाल, नीतीश कुमार, शरद पवार और उद्धव ठाकरे अपने अपने राज्यों में कांग्रेस को कम से कम सीटें देने की बात कहेंगे. अखिलेश यादव जैसे नेता कांग्रेस से उन राज्यों में ज्यादा सीटें मांगेगे जिनमें कांग्रेस मजबूत है. अब गठबंधन का दबाव कांग्रेस पर है. और कांग्रेस इस दवाब के आगे कितना झुकती है, इस पर मोदी-विरोधी मोर्चे का भविष्य निर्भर होगा.