कर्नाटक हाईकोर्ट की तीन जजों की फुल बेंच ने मंगलवार को अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि हिजाब इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है, यह कोई अनिवार्य मजहबी लिबास नहीं है। हिजाब से जुड़ी सारी याचिकाओं को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने के राज्य सरकार के आदेश को बरकरार रखा।
चीफ जस्टिस ऋतुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एम दीक्षित और जस्टिस ज़ैबुन्निसा मोहिउद्दीन क़ाजी की तीन-सदस्यीय फुल बेंच ने अपने 129 पन्नों के आदेश में उन याचिकाओं को खारिज कर दिया जिसमें यह कहा गया था कि शैक्षणिक संस्थाओं में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध अनुच्छेद 14 (समानता), अनुच्छेद 15 (आस्था को लेकर कोई भेदभाव नहीं), अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन है।
हाईकोर्ट ने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि हिजाब पहनने की कथित प्रथा का पालन नहीं किया जाता है, जो हिजाब नहीं पहनते वे पापी बन जाते हैं, ऐसा भी नहीं है कि इस्लाम अपना गौरव खो देता है और यह एक धर्म नहीं रह जाता है। याचिकाकर्ता इस संबंध में अपनी दलील और सबूत देने में पूरी तरह से विफल रहे हैं। वे यह साबित नहीं कर पाए कि इस्लाम में हिजाब पहनना एक ऐसी धार्मिक प्रथा है जिसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता और यह एक ‘अनिवार्य धर्मिक प्रथा’ है।’
हाईकोर्ट ने कहा, स्कूल की तरफ से ड्रेस का निर्धारण करना ‘संवैधानिक रूप से स्वीकार किया गया एक उचित प्रतिबंध है, जिसपर छात्र आपत्ति नहीं कर सकते… (अगर हिजाब की इजाजत दी गई तो) फिर तो स्कूल की ड्रेस समान नहीं रहेगी। इससे सामाजिक तौर पर अलगाव की भावना पैदा होगी जो कि नहीं होना चाहिए। सभी अधिकारों को उसकी प्रासंगिक परिस्थितियों के मुताबिक देखा जाना चाहिए। स्कूल ‘योग्य सार्वजनिक स्थान हैं’… (जो ) अपने स्वभाव से ही सामान्य अनुशासन और मर्यादा के नुकसान को बचाने के लिए व्यक्तिगत अधिकारों के दावे को खारिज करते हैं।’
अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा, ‘शायद ही यह तर्क दिया जा सकता है कि हिजाब एक परिधान या पोशाक का मामला है, इसे इस्लामी आस्था के लिए मौलिक माना जा सकता है…. धर्म जो भी हो, शास्त्रों में जो कुछ भी कहा गया हो, यह पूरी तरह से अनिवार्य नहीं हो जाता है। इसी तरह से अनिवार्य धार्मिक प्रथा की अवधारणा गढ़ी गई है।’
हाईकोर्ट ने कहा, ‘अगर तार्किक रूप से धर्म के लिए सब कुछ अनिवार्य होता तो इस तरह की अवधारणा जन्म नहीं लेती। इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने शायरा बानो मामले में इस्लाम में तीन तलाक की 1,400 साल पुरानी दुखदाई प्रथा को बैन किया। हाईकोर्ट ने कहा कि कुरान में बताई गई बातों को हदीस द्वारा एक जरूरी आदेश में नहीं बदला जा सकता, जिसे कुरान का पूरक माना जाता है।’
हाईकोर्ट की बेंच ने कहा, ‘याचिकाकर्ताओं द्वारा जिस सूरा का उल्लेख किया गया था उसके निहितार्थ को समझाते हुए किसी भी मौलाना द्वारा अदालत के सामने कोई हलफनामा नहीं रखा गया, और इस बात का भी उल्लेख नहीं किया गया था कि याचिकाकर्ता कितने समय से हिजाब पहन रहे थे।’
कर्नाटक हाईकोर्ट ने तीन बुनियादी सवालों पर अपना फ़ैसला सुनाया। पहला तो ये कि हिजाब, इस्लाम का जरूरी हिस्सा है या नहीं? दूसरा ये कि क्या सरकार और स्कूल कॉलेज को ड्रेस कोड तय करने का हक़ है या नहीं? और तीसरा क्या ड्रेस कोड लागू करना छात्रों के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ हैं?
कोर्ट ने हिजाब को लेकर तस्वीर बिल्कुल साफ़ कर दी। कोर्ट ने कहा कि हिजाब, इस्लाम का बुनियादी हिस्सा बिल्कुल नहीं है। कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि हिजाब एक पर्दा है जिसे मुस्लिम महिलाएं आम तौर पर पहनती हैं। हिजाब शब्द की उत्पत्ति अरबी शब्द हजाबा है, जिसका मतलब होता है ‘छिपाना’ । इस हिसाब से हिजाब का मतलब हुआ पर्दा या दीवार। हिजाब का इस्तेमाल आमतौर पर महिलाएं सार्वजनिक रूप से दूसरों से अपना चेहरा छिपाने के लिए करती हैं।
तीन जजों की बेंच ने पूरी स्टडी और रिसर्च के बाद फैसला दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि कुरान में हिजाब शब्द का ज़िक्र ही नहीं है। हालांकि कुछ मुस्लिम विद्वानों ने अपनी किताबों में इसका इस्तेमाल ज़रूर किया है। जैसे इस्लामिक क़ानून के जानकार अब्दुल्लाह यूसुफ़ अली ने कुरान की व्याख्या वाली अपनी किताब में जिलबाब का ज़िक्र किया है जो एक तरह से बाहरी पोशाक या लंबा गाउन या चोगा है, जो या तो पूरे शरीर को या फिर गर्दन से सीने तक को ढकने में काम आता है। अब्दुल्ला यूसुफ़ अली ने अपनी किताब में यह भी लिखा है कि पैगंबर हज़रत मुहम्मद के घर में भी हिजाब या पर्दे का इस्तेमाल उनके निधन से पांच या छह साल पहले ही शुरू हुआ था। उससे पहले पर्दा करना अनिवार्य नहीं था।
प्रगतिशील इस्लामी विद्वान इस मत से सहमत हैं। कुछ दिन पहले केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान इंडिया टीवी स्टूडियो आए थे और एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा, कुरान में हिजाब का जिक्र नहीं है। खान ने कहा, मध्य युग में मुस्लिम महिलाओं को महिला दासियों से अलग करने के लिए अरब देशों में हिजाब या पर्दे का इस्तेमाल शुरू हुआ। उन्होंने कहा कि इसका इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है।
मैंने कोर्ट के 129 पेज के आदेश को विस्तार से पढ़ा है। कोर्ट ने फ़ैसले के पेज नंबर 86 में लिखा है कि याचिकाकर्ताओं ने एक गंभीर मामले को उठाया मगर इसे साबित करने के लिए कोई तर्क नहीं दिए। कुरान का हवाला तो दिया मगर अपनी बात को सही साबित करने के लिए किसी मौलाना का हलफ़नामा तक नहीं दिया जो यह कहे कि याचिकाकर्ताओं की बात इस्लामिक क़ानून के हिसाब से सही है। हाईकोर्ट आदेश के पेज नंबर 87 में लिखा है कि हिजाब सिर्फ़ पहनावे का मामला है और यह इस्लाम मानने की बुनियादी शर्त नहीं है । कोर्ट ने तमाम मुस्लिम विद्वानों की धार्मिक किताबों का जिक्र किया लेकिन बहुत से मौलाना यह मानने को तैयार नहीं हैं। वह ये भी नहीं बताते कि कुरान में कहां लिखा है कि हिजाब जरूरी है। बस इतना कहते हैं कि यह सब मुसलमानों के खिलाफ सियासी चाल है।
मजलिय इत्तेहादुल मुसलमीन के चीफ असदुद्दीन ओवैसी, पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती, समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी और शफीकुर रहमान बर्क जैसे नेताओं ने आरोप लगाया है कि यह मुस्लिम लड़कियों को उच्च शिक्षा से दूर रखने के लिए एक रणनीति का हिस्सा है। पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया और मुंबई की रजा अकादमी जैसे कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों ने ‘इस्लाम खतरे में है’ का हौआ खड़ा कर दिया। उनका तर्क है कि हाईकोर्ट केवल न्यायिक मुद्दों का फैसला कर सकता है, धार्मिक मामलों का नहीं।
कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनका कहना है कि मुस्लिम लड़कियों द्वारा हिजाब पहनना व्यक्तिगत पसंद का मामला है और व्यक्तिगत आजादी से जुड़ा हुआ है । ऐसे लोगों को हाईकोर्ट के उस फैसले को पूरा पढ़ना चाहिए जिसमें हर सवाल का बेहद पारदर्शी जवाब दिया गया। तीन जजों की फुल बेंच में एक प्रख्यात मुस्लिम महिला जज जयबुन्निसा मोहिउद्दीन खाजी भी शामिल थीं। जो लोग इस फैसले पर सवाल उठाने की कोशिश कर रहे हैं दरअसल ये लोग पब्लिक को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।
मैं इस मामले में बड़ी-बड़ी बातें नहीं कहना चाहता। छोटी सी बात है कि मुस्लिम लड़कियों को पढ़ने का पूरा-पूरा मौका मिलना चाहिए। कोशिश इस बात की होनी चाहिए कि वो अच्छी तालीम लें, तरक्की करें और बड़े-बड़े ओहदों पर पहुंचें। अगर उनके एक हाथ में कुरान हो तो दूसरे में कंप्यूटर हो। वो हिजाब पहनें या पर्दा करें, यह उनकी व्यक्तिगत पसंद है, इस पर कोई पाबंदी नहीं होनी चाहिए, लेकिन क्लास रूम के बाहर। जब वो क्लास रूम में पहुंचे तो सिर्फ किताब हो, हिजाब नहीं। वहां सब स्टूडेंट हों। हम धर्म को शिक्षा से दूर रखें।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक बड़े खतरे की तरफ इशारा किया। एक ऐसा खतरा जो लड़कियों की तालीम में रूकावट बन सकता है। हाईकोर्ट ने कहा है कि कुछ ताकतें हैं जो देश में अस्थिरता पैदा करना चाहती हैं, मुल्क में माहौल को खराब करने की कोशिश कर रही हैं ऐसी ताकतों को समझने और उनके मंसूबों को नाकाम करने की जरूरत है। हाईकोर्ट ने कहा- ‘जिस तरीके से हिजाब विवाद सामने आया उससे इस बहस को बल मिलता है कि कुछ ‘अदृश्य हाथ’ सामाजिक शांति और सौहार्द बिगाड़ने के लिए लगे हैं। अधिक विस्तार में कहने की जरूरत नहीं है।’
अदालत की बात बिल्कुल सही है। कर्नाटक के एक कॉलेज ने हिजाब पर पाबंदी लगाई थी और यह कोई बड़ा मसला नहीं था। लेकिन इसे हिन्दू-मुसलमान का रंग दे दिया गया। उडूपी जिले के एक कॉलेज के मामले को देश के शहर-शहर तक पहुंचा दिया गया। अलीगढ़ से लेकर इंदौर, उज्जैन, लखनऊ, आजमगढ़, जामनगर, सूरत, पटना, जयपुर जैसे तमाम शहरों में विरोध प्रदर्शन होने लगे। एक कॉलेज के मामले को पूरे देश में एंटी मुस्लिम मुद्दा बनाकर पेश कर दिया गया। यह बड़ी साजिश है और कोर्ट ने बिल्कुल सही कहा। मैं तो इससे एक कदम और आगे की बात कहना चाहता हूं। मुझे लगता है कि कुछ लोग नरेन्द्र मोदी की मुखालफत में किसी भी हद तक जा सकते हैं। हिजाब के मुद्दे पर भी ऐसी कोशिश हुई लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले ने इस साजिश के मंसूबे पर पानी फेर दिया।