Rajat Sharma

हरियाणा और जम्मू कश्मीर: मोदी पास, राहुल फेल

AKB30 जम्मू कश्मीर और हरियाणा के चुनाव नतीजों ने सबको चौंकाया. दोनों राज्यों की जनता ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया. दोनों राज्यों में स्पष्ट जनादेश दिया. लेकिन हरियाणा के चुनाव नतीजे तो ऐसे हैं कि जिसकी उम्मीद न बीजेपी को थी और न कांग्रेस को. बड़े बड़े सेफोलॉजिस्ट्स ने भी इस तरह के नतीजों की उम्मीद नहीं की थी. हरियाणा में 57 साल में पहली बार किसी पार्टी को लगातार तीसरी बार सरकार बनाने का मौका मिला है. बीजेपी हरियाणा में 90 में से 48 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएगी. इतनी बड़ी जीत से बीजेपी के नेता भी चौंके और इतनी बुरी हार ने कांग्रेस को भी चौंकाया. कांग्रेस के नेता तो जीत के जश्न की तैयारी कर चुके थे, ढ़ोल-नगाड़े बजने लगे थे, पटाखे फूटने लगे थे, जलेबियां छन रही थीं, शंख बज रहे थे लेकिन दिन के बारह बजते बजते कांग्रेस के बारह बज गए. सब धरा रह गया और शाम होते-होते कांग्रेस ने EVM पर सवाल उठा दिए. कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि कांग्रेस को जनता ने नहीं, EVM ने हराया, हरियाणा के नतीजे स्वीकार्य नहीं हैं. कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि जिन विधानसभा सीटों में EVMs की बैटरी 99 परसेंट थी, वहीं कांग्रेस हारी, जहां EVMs की बैटरी साठ सत्तर परसेंट थी, वहां कांग्रेस जीती. ये इत्तेफाक नहीं हो सकता. लेकिन कुमारी सैलजा ने कहा कि जो होना था हो गया, रोने से काम नहीं चलेगा, अब कांग्रेस आला कमान की जिम्मेदारी है कि हार के कारणों का पता लगाए.

लेकिन अब सबके मन में एक ही सवाल है कि आखिर ये ऐतिहासिक उलटफेर हुआ कैसे? कांग्रेस से कहां गलती हुई? बीजेपी की कौन सी रणनीति काम कर गई? कांग्रेस सिर्फ हरियाणा में नहीं हारी. जम्मू कश्मीर में भी भले ही नेशनल कांन्फ्रेंस और कांग्रेस कं गठबंधन को बहुमत मिला हो लेकिन वहां भी कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा. हरियाणा और जम्मू कश्मीर के नतीजों में राहुल गांधी के लिए क्या संदेश है?

हरियाणा

इसमें दो राय नहीं कि हरियाणा में नरेंद्र मोदी की जीत बीजेपी के लिए संजीवनी का काम करेगी. बीजेपी के जिन नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपनी पार्टी की क्षमता पर शक़ होने लगा था, उनमें नई हिम्मत का संचार होगा. जिन लोगों के मन में ये सवाल था कि क्या मोदी की लोकप्रियता कम हुई है, उनको जवाब मिल गया होगा. जैसे बीजेपी को इस जीत की उम्मीद नहीं थी, वैसे ही कांग्रेस को इस हार की ज़रा भी आशंका नहीं थी.

ये हार कांग्रेस के उन नेताओं का मनोबल गिराएगी जिन्हें ये भरोसा हो चला था कि राहुल गांधी को कोई ऐसी शक्ति मिल गई है जिससे वो कांग्रेस को पुनर्जीवित कर देंगे. अब उन्हें लग रहा होगा कि राहुल की जड़ी-बूटी तो फेक निकली. हरियाणा में कांग्रेस ने सारी ताकत झोंक दी थी. लड़ाई इस बात के लिए नहीं हो रही थी कि पार्टी कितनी सीटें जीतेगी. संघर्ष इस बात पर होने लगा था कि जीत के बाद मुख्यमंत्री कौन बनेगा? जो राहुल गांधी सोच रहे थे कि अब वो एक के बाद एक प्रदेश जीतते जाएंगे और मोदी को हरा देंगे, उन्हें झटका लगेगा. जिन राहुल गांधी को मोदी के कंधे झुके हुए लगने लगे थे, उन्हें सपने में अब 56 इंच की छाती दिखाई देगी.

हरियाणा की ये जीत नरेंद्र मोदी में भी नई ऊर्जा का संचार करेगी और अब बीजेपी झारखंड और महाराष्ट्र में नए जोश के साथ लड़ेगी. महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस की bargaining power कम हो जाएगी. अब एक हरियाणा की जीत INDI अलायंस में राहुल गांधी की ताकत को कम कर देगी. मंगलवार को ही अलायंस के पार्टनर्स ने ये कहना शुरू कर दिया कि जहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर होती है, वहां कांग्रेस का जीतना मुश्किल हो जाता है. लेकिन सवाल ये है कि कांग्रेस की हार की वजह क्या है? इस सवाल का जवाब खोजने में कांग्रेस के नेताओं को वक्त लगेगा क्योंकि अभी वो हार के सदमे से ही नहीं उबरे हैं.

मोदी की ये बात सही है कि कांग्रेस जब-जब चुनाव हारती है तो EVM पर सवाल उठाती है, चुनाव आयोग पर इल्जाम लगाती है, ये ठीक नहीं है. केजरीवाल की ये बात सही है कि हरियाणा में कांग्रेस को अति आत्मविश्वास ले डूबा. कांग्रेस के नेता जीत पक्की मान चुके थे. राहुल को ये समझा दिया गया कि किसान बीजेपी के खिलाफ हैं, विनेश फोगाट के आने से जाटों और महिलाओं का वोट पक्का है, अग्निवीर स्कीम के कारण नौजवान भी बीजेपी के खिलाफ हैं, इसलिए अब बीजेपी की लुटिया डूबनी तय है. माहौल ऐसा बनाया गया मानो कांग्रेस की वापसी पक्की है.

इसका असर ये हुआ कि कुर्सी का झगड़ा शुरू हो गया. रणदीप सुरजेवाला कैथल से बाहर नहीं निकले और कुमारी सैलजा घर बैठ गईं. इसका कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ. इस बार हरियाणा की जनता ने स्पष्ट संदेश दे दिया कि जो ज़मीन पर काम करेगा, जनता उसका साथ देगी. दूसरी बात, अब क्षेत्रीय और छोटी-छोटी परिवारवादी पार्टियों का दौर खत्म हो गया. जनता ने चौटाला परिवार को घर बिठा दिया. BSP और केजरीवाल को भी भाव नहीं दिया.

ये सही है कि शुरू में ऐसा लग रहा था कि हवा बीजेपी के खिलाफ है, दस साल की anti-incumbency थी लेकिन नरेन्द्र मोदी ने चुपचाप, खामोशी से रणनीति बनाई. सारा फोकस इस बात पर शिफ्ट कर दिया कि चुनाव सिर्फ हरियाणा का नहीं है, ये चुनाव बीजेपी और कांग्रेस के बीच किसी एक को चुनने का है, परिवारवाद और जातिवाद के खिलाफ चुनाव है, चुनाव नामदार और कामदार के बीच है. मोदी का फॉर्मूला काम आया और हरियाणा ने इतिहास रच दिया.

जम्मू कश्मीर

जम्मू कश्मीर के चुनाव नतीजे भी चौंकाने वाले हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस को उम्मीद से ज्यादा सीटें मिली और कांग्रेस का परफॉर्मेंस उम्मीद से ज्यादा खराब रहा. नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन ने 90 में से 48 सीटें जीतकर साफ बहुमत हासिल कर लिया. हालांकि इसमें कांग्रेस की सिर्फ 6 सीटें है, बाकी 42 सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जीती. दिलचस्प बात ये है कि जम्मू की 43 सीटों में बीजेपी ने 29 सीटों पर जीत हासिल की है जबकि कश्मीर घाटी में उसका खाता भी नहीं खुल पाया. इस चुनाव में सबसे बड़ा झटका महबूबा मुफ्ती की पार्टी को लगा. महबूबा की पार्टी पीडीपी को सिर्फ 3 सीटों पर जीत हासिल हुई.

जम्मू में बीजेपी की जीत कोई बड़ी बात नहीं है. हैरानी की बात ये है कि कश्मीर घाटी में मोदी सरकार ने जम कर काम किया, पत्थरबाज गायब हो गए, दुकानें खुलने लगीं, सैलानी आने लगे, शिकारे चलने लगे, सिनेमा घर खुले, अस्पतालों में मुफ्त इलाज मिलने लगा. ऐसे कई काम गिनाए जा सकते हैं जिससे कश्मीर के लोगों को सुकून मिला, वे चैन की जिंदगी जीने लगे. बहुत सारे रिपोर्टर्स ने जब कश्मीर के लोगों के इंटरव्यू किए तो उन लोगों ने कैमरे पर इन बातों को माना. ये भी माना की आर्टिकल 370 हटने के बाद ये सब सुधार हुआ. लेकिन सब कुछ मानने के बाद वही लोग ये कहने में जरा भी नहीं हिचकिचाए कि वो मोदी को वोट नहीं देंगे. इसका पूरा फायदा नेशनल कॉन्फ्रेंस को मिला. हालांकि बीजेपी को वोट तो नहीं मिले लेकिन इस बात का सुकून मिला होगा कि कम से कम लोगों ने उनके काम की सराहना तो की. अब फारूक़ और उमर अब्दुल्ला की मुसीबत ये होगी कि उन्होंने लोगों से वादा तो कर दिया कि वो आर्टिकल 370 वापस लाएंगे, लेकिन वो ये काम नहीं कर पाएंगे क्योंकि ये फैसला लेने का हक़ सिर्फ देश की संसद को है. इसलिए जबतक फारूक़ और उमर अब्दुल्ला की सरकार रहेगी, उन्हें लोगों को इस बात का जवाब देना पड़ेगा.

मोदी बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत हैं. मोदी हर चुनाव को पूरी शिद्दत के साथ लड़ते हैं, पूरी मेहनत करते हैं. हरियाणा की जीत अब मोदी को झारखंड और महाराष्ट्र के लिए रणनीति बनाने में मदद करेगी. मोदी की जीत से महाराष्ट्र और झारखंड में बीजेपी के कार्यकर्ताओं में नया विश्वास जागृत होगा. महाराष्ट्र के महायुती गठबंधन में बीजेपी की bargaining power बढ़ेगी. झारखंड में भी पार्टी और हिम्मत से लड़ेगी. सबसे बड़ा संदेश ये है कि लोकसभा चुनाव के दौरान आरक्षण को लेकर कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों ने जो नैरेटिव खड़ा किया था, जो डर दलितों के मन में पैदा किया था, उस डर को खत्म करने में बीजेपी कामयाब हुई है. आने वाले दिनों में आप देखेंगे कि मोदी बाकी समस्याओं को एक-एक करके हल करेंगे. जैसे पेंशन स्कीम को नया रूप देकर सर्वसम्मत बनाया, वैसे किसानों, नौजवानों, रोजगार से जुड़े मुद्दों को एक-एक करके हल किया जाएगा. ये मोदी का आगे का रोडमैप है, जिसके संकेत मिलने लगे हैं.

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