पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने केंद्र के नए कृषि कानूनों के बारे में एक ऐसा खुलासा किया है, जो पिछले 9 महीनों से आंदोलन कर रहे किसान नेताओं को चौंका कर रख देगा। सिद्धू ने अनजाने में वह काम कर दिया जो कांग्रेस और बीजेपी नेता अब तक नहीं कर पाए थे। सिद्धू ने खुलासा किया कि 2013 में पंजाब में तत्कालीन प्रकाश सिंह बादल की अकाली-बीजेपी गठबंधन सरकार ने सूबे की विधानसभा में जो कृषि कानून पेश किए थे, वे केंद्र के नए कृषि कानूनों से काफी मेल खाते हैं।
सिद्धू ने कहा कि नए कृषि कानूनों के ‘नीति-निर्माता’ बादल (प्रकाश सिंह और सुखबीर सिंह) थे। उन्होंने पंजाब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग ऐक्ट और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर केंद्र के कानून के बीच कई समानताएं गिनाईं। उन्होंने नए कृषि कानूनों की तारीफ करते हुए प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर बादल और हरसिमरत कौर बादल के वीडियो भी दिखाए।
सिद्धू ने कहा, नए कृषि कानूनों की नीति, अवधारणा और ढांचा बादल परिवार के दिमाग की उपज थी, केंद्र सरकार ने तो सिर्फ इस कानून की नकल की थी। सिद्धू ने कहा, ‘इसका बीज उन्होंने (बादल ने) बोया था, यह उनका आइडिया था जिसे पहले पंजाब में लागू किया गया, और फिर वे इसे पूरे भारत में लागू करवाने के लिए बीजेपी के पास ले गए। अगर पंजाब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग ऐक्ट आत्मा है, तो मोदी सरकार का कृषि कानून सिर्फ इसका शरीर है।’
सिद्धू ने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में इन कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा के किसान नेताओं को यह बात मालूम होनी चाहिए कि पंजाब में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से जुड़े कानून का खाका पंजाब में अकाली सरकार ने तैयार किया था। सिद्धू ने अकाली दल को ‘किसानों का दुश्मन’ करार देते हुए कहा कि ‘अपने पापों को छिपाने के लिए’ अकाली दल ने इस मुद्दे पर केंद्र की एनडीए सरकार से अपना नाता तोड़ लिया, लेकिन यह कड़वी सच्चाई छिपी नहीं रह सकी।
सिद्धू ने जो कहा वह सही है। पंजाब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कानून को बादल सरकार ने 2013 में पंजाब विधानसभा में पेश किया था, और यह पास भी हो गया था। सबसे ज्यादा हैरानी बात तो यह है कि इस बात का जिक्र न तो पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किया और न ही शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल और हरसिमरत कौर ने। यहां तक कि किसान नेताओं राकेश टिकैत और गुरनाम सिंह चढूनी भी अपनी जनसभाओं में इस पर कभी नहीं बोले।
सिद्धू ने तत्कालीन बादल सरकार द्वारा बनाए गए पंजाब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग ऐक्ट की प्रतियां दिखाईं। उन्होंने कहा कि इस ऐक्ट के सेक्शन में MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का कोई जिक्र नहीं है। उन्होंने कहा कि खरीदार के पास MSP या बाजार (मंडी) मूल्य से कम कीमत पर फसल खरीदने का लाइसेंस है। 2 मुख्य फसलों, गेहूं और चावल सहित 108 फसलों की एक अनुसूची को ऐक्ट में शामिल किया गया था। आम तौर पर पंजाब में गेहूं और चावल की खरीद केंद्र द्वारा MSP रेट पर की जाती है।
सिद्धू ने कहा कि बिल के सेक्शन 4 में कॉन्ट्रैक्ट के उल्लंघन के मामलों को नौकरशाहों द्वारा देखने का प्रावधान है। इसकी वजह से किसान कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन होने पर अदालतों का दरवाजा नहीं खटखटा सकते हैं। इस बिल में किसानों पर 5,000 रुपये से लेकर 5 लाख रुपये तक के जुर्माने और धोखाधड़ी के मामलों में एक महीने की कैद का प्रावधान है। इसमें नौकरशाही को भू-राजस्व के रूप में बकाया वसूल करने का भी अधिकार दिया गया है।
सेक्शन 6 में प्रावधान है कि किसान न तो अपनी जमीन बेच सकता है और न ही इस पर लोन ले सकता है। बिल में कॉरपोरेट्स को किसानों को यह बताने का अधिकार है कि किस बीज का इस्तेमाल करना है और जमीन पर खेती कैसे करनी है। बिल में यह भी प्रावधान है कि कॉरपोरेट्स या उनके एजेंट सीधे किसान के खेत से ही फसल उटा सकते हैं, और इस तरह मंडियों में जाने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी।
सिद्धू ने कहा कि केंद्र के अनुबंध कृषि कानून में भी एमएसपी की कोई गारंटी नहीं है, विवादों का निपटारा न्यायपालिका की बजाय नौकरशाहों द्वारा किया जाएगा, दीवानी अदालतों में जाने पर रोक है जो कि संविधान की भावना के खिलाफ है, और इसमें अनिवार्य रजिस्ट्रेशन का प्रावधान है। उन्होंने कहा, ‘केंद्र का कृषि कानून छोटे-मोटे बदलावों के साथ पंजाब के कृषि कानून की कार्बन कॉपी है।’
सिद्धू ने कहा कि केंद्र सरकार जब नया कृषि कानून लेकर आई थी तब अकाली नेताओं ने काफी तेजी दिखाई थी। सर्वदलीय बैठक में सुखबीर सिंह बादल ने विधेयकों का विरोध नहीं किया था, बल्कि उन्होंने तो इनकी तारीफ की थी। केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री के रूप में हरसिमरत कौर बादल ने नए कृषि विधेयकों के मसौदे पर दस्तखत किया था।
सिद्धू ने कहा कि शुरुआत में अकाली नेताओं को यह लगता था कि किसानों को नए बिल ठीक से समझ में नहीं आए हैं। लेकिन पंजाब में जनता के भारी दबाव के बाद हरसिमरत कौर को मोदी कैबिनेट से इस्तीफा देना पड़ा। 17 सितंबर को सुखबीर बादल ने यहां तक कहा था कि उनकी पार्टी ने मोदी सरकार से नाता तोड़ा है, लेकिन एनडीए से नहीं।
अब सवाल यह उठता है कि अगर पंजाब की अकाली सरकार द्वारा बनाया गया कृषि कानून वाकई में किसानों के खिलाफ हैं, तो कांग्रेस की सरकार ने उन्हें रद्द क्यों नहीं किया? पंजाब में पिछले पांच साल से कैप्टन अमरिंदर सिंह की कांग्रेस सरकार है। नवजोत सिंह सिद्धू भी कुछ समय तक इस सरकार में मंत्री रहे हैं। उन्होंने कानून को निरस्त करने की मांग क्यों नहीं की? ये कहना आसान है कि ये कानून अकालियों ने बनवाए थे, ये काले कानून हैं, तो फिर कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू ने इस कानून को रद्द क्यों नहीं करवाया।
किसान नेताओं को यह समझना होगा कि कृषि कानूनों को लेकर तीनों पार्टियां अंदर से सब एक हैं। इसे अकाली दल ने बनाया, कांग्रेस ने चलाया और बीजेपी ने इसे पूरे देश में आगे बढ़ाया। अकाली दल हो, कांग्रेस हो या बीजेपी हो, ये कानून तो सब बनाना चाहते थे। फर्क सिर्फ इतना है कि बीजेपी आज भी इन कानूनों को डिफेंड कर रही है जबकि इन कानूनों को बनाने और चलाने वाले अकाली दल और कांग्रेस पंजाब में किसानों का मूड देखकर बदल गए हैं।
जहां तक सिद्धू की बात है तो उनका बदलना तो आम आदमी ने कई बार देखा है। देश के लोगों ने उन्हें बीजेपी में रहते हुए कांग्रेस, गांधी परिवार और उसकी नीतियों पर करारा तंज कसते हुए देखा है, लेकिन कांग्रेस का दामन थामते ही वह नरेंद्र मोदी पर हमला बोलने लगे। 2013 में सिद्धू कहते थे कि “ कांग्रेस मुन्नी से ज्यादा बदनाम है, आगे-आगे मनमोहन सिंह और पीछे चोरों की बारात है “, लेकिन अब सिद्धू के सुर बदले हुए हैं।
किसानों को यह बात समझनी होगी कि उनके आंदोलन को सियासत ने पटरी से उतार दिया है। आंदोलन में सियासत जितना ज्यादा घुसती जाएगी, उनका आंदोलन उतना ही कमजोर होता जाएगा। आजकल किसान नेता राकेश टिकैत अपनी जनसभाओं में किसानों की मांगों से ज्यादा राजनीति और राजनेताओं की बात करते हैं। बुधवार को उन्होंने AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी को ‘बीजेपी का चचाजान’ बता दिया।
उधर, कोलकाता की भवानीपुर सीट से उपचुनाव लड़ रहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने चुनाव प्रचार में किसान आंदोलन को पूरा सपोर्ट देने की बात कर रही हैं। वह ये भी बता रही हैं कि कैसे उन्होंने कई बार किसानों की जनसभाओं को संबोधित किया है और उनके धरने में शामिल होने के लिए अपना प्रतिनिधिमंडल भी भेजा। ममता ने गुरुद्वारों में भी जाना शुरू कर दिया है। ममता यह सब इसलिए कर रही हैं क्योंकि भवानीपुर चुनावक्षेत्र में 40 प्रतिशत गैर बंगाली मतदाता हैं जिनमें ज्यादातर सिख और गुजराती हैं।
कुल मिलाकर बात ये है कि सियासी लीडरान किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर अपने विरोधियों पर निशाना साध रहे हैं। ये नेता अपने स्वार्थ साधने के लिए किसानों का इस्तेमाल कर रहे हैं।