सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों में चल रहे मंदिर मस्जिद के मामलों में एक बड़ा आदेश दिया. निचली अदालतें अब मंदिर मस्जिद से जुड़े मामलों में कोई अंतरिम या अंतिम फैसला नहीं सुनाएंगी. कहीं किसी मस्जिद के सर्वे का आदेश नहीं देंगे. फिलहाल मंदिर मस्जिद को लेकर कोई नया केस किसी कोर्ट में शुरू नहीं होगा. जो पुराने केस चल रहे हैं, उनमें निचली अदालत सुनवाई तो कर सकती हैं, लेकिन कोई आदेश नहीं दे सकती.
सुप्रीम कोर्ट ने 1991 के पूजा स्थल अधिनियम को लेकर फाइल की गई अर्जियों पर सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार को चार हफ्ते में इस मामले में जवाब देने को कहा है और अगली सुनवाई तक मंदिर मस्जिद के विवादों में निचली अदालतों को कोई आदेश देने से रोक दिया.
हालांकि वादियों ने मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान और शाही ईदगाह, धार में भोजशाला विवाद, जौनपुर की अटाला मजिस्द, अजमेर में ख्वाजा की दरगाह में शिवलिंग के विवाद जैसे 18 मामलों में लोअर कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की थी, सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों की कार्रवाई पर रोक लगाने से तो इंकार कर दिया , पर लोअर कोर्ट को आदेश दे दिया है कि वो सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई तक इस तरह के किसी मामले में कोई प्रभावी आदेश न दें.
अबपूजा स्थल अधिनियम 1991 पर केन्द्र सरकार को चार हफ्तों में अपना पक्ष पेश करना है.. उसके अगले चार हफ्तों में वादियों को केन्द्र सरकार के पक्ष पर जवाब देने का मौक़ा मिलेगा, यानी कम से कम अगले दो महीनों तक मंदिर मस्जिद से जुड़े विवादों पर ब्रेक रहेगा.
मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को अपनी बड़ी जीत बता रहा है. हिन्दू पक्ष का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ प3क्रिया का अनुपालन किया है, ये आदेश कोई बड़ी बात नहीं है.
वकील सुप्रीम कोर्ट के आदेश की व्याख्या अपने हिसाब से कर रहे हैं, कानूनी दांव पेंचों की बात कर रहे हैं, लेकिन मोटी बात ये है कि प्लेसज ऑफ वर्शिप एक्ट ये कहता है कि 1947 में जिस धार्मिक स्थान का जो करैक्टर था, वो बरकरार रहेगा. उसे बदला नहीं जा सकता, यानि जो मस्जिद थी, वो मस्जिद रहेगी, जो मंदिर था, वो मंदिर रहेगा.
जब से ज्ञानवापी केस में लोअर कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया, उसके बाद अचानक इस तरह के मामलों की बाढ़ सी आ गई. मथुरा के अलावा धार की भोजशाला में सर्वे का आदेश दिया गया. फिर संभल में सर्वे का आदेश अर्जी देने के दो घंटे के भीतर आ गया. इस चक्कर में संभल में हिंसा हुई, पांच लोगों की मौत हो गई.
अजमेर में ख्वाजा की दरगाह को लेकर अर्जी फाइल हो गई. विष्णुशंकर जैन और हरिशंकर जैन ने कह दिया कि उन्होंने ऐसी कम से कम दर्जन फाइलें और तैयार कर रखी हैं. इसीलिए मुस्लिम पक्षकार सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और सुप्रीम कोर्ट से उन्हें राहत मिली.
अब कम से कम जब तक सुप्रीम कोर्ट 1991 के प्लेसज ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधानिकता पर अंतिम फैसला नहीं करता, तब तक तो इस तरह के विवादों पर रोक रहेगी और भरोसा करना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट ऐसा फैसला करेगा जिसके बाद हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग खोजने का सिलसिला और मंदिर मस्जिद के मुद्दे पर सियासी हंगामा हमेशा के लिए बंद होगा.