शुक्रवार को, मैंने अल जज़ीरा नेटवर्क पर भारत के बारे में एक खबर देखी, खबर की हेडलाइन थी, “भारत के गुड़गांव में शुक्रवार की नमाज़ वाली जगह पर मुसलमानों को जाने से रोका गया।” मिडिल ईस्ट में अलजज़ीरा एक बड़ा न्यूज नेटवर्क है जिसका मुख्यालय कतर में है। मुझे हैरानी हुई कि दिल्ली के नजदीक गुरुग्राम की एक स्थानीय घटना को एक विदेशी न्यूज नेटवर्क ने ऐसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया मानो भारत में मुसलमानों की नमाज़ पढ़ने की आज़ादी छीन ली गई हो।
मैने इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स को इस स्थानीय घटना की तह तक जाने के लिए गुरुग्राम भेजा। जब डिटेल में गए तो पता चला कि बात बिल्कुल लोकल हैं। गुरुग्राम के सेक्टर 12ए में हर जुमे को मुस्लिम समुदाय के लोग सरकारी जमीन पर नमाज पढ़ने के लिए इकट्ठा होते हैं, और शांति से चले जाते हैं। लंबे वक्त से स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे थे। शुक्रवार को कुछ हिन्दू संगठनों ने उसी जगह पर गोवर्धन पूजा का ऐलान किया था, बात इतनी थी, जिसका फसाना बना दिया गया। लेकिन इस घटना को इस तरह पेश किया गया कि जैसे पूरे भारत में मुसलमानों पर जुल्म हो रहा है और मुसलमानों को नमाज पढ़ने से रोका जा रहा है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है।
अल जज़ीरा ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि गुरुग्राम में मुसलमानों को नमाज़ पढ़ने से रोका गया। ये भी कहा गया कि जगह मुसलमान नमाज़ अदा करते थे वहां पर हिंदूवादी संगठनों ने अपना धार्मिक आयोजन किया। खबर में बताया गया कि स्थानीय प्रशासन ने पहले 37 सार्वजनिक जगहों पर मुसलमानों को नमाज पढ़ने की इजाजत दी थी, लेकिन अब इनमें से आठ जगहों पर नमाज पढने पर रोक लगा दी गई है। अल जजीरा ने जिस हेडर के साथ ये खबर छापी, उसमें लिखा था “इस्लामोफोबिया” (इस्लाम का भय). साफ तौर पर, दुनिया को गुमराह करने की कोशिश की जा रही थी कि भारत में मुसलमानों को दबाया जा रहा है और उन्हें नमाज नहीं पढ़ने दी जा रही।
इस पूरे घटनाक्रम में ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि अल जज़ीरा की रिपोर्ट को AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने हाथोंहाथ लपक लिया। ओवैसी ने तुरंत ट्वीट किया, “गुड़गांव में शुक्रवार की नमाज के खिलाफ विरोध प्रदर्शन इस बात का सटीक उदाहरण है कि ये “प्रदर्शनकारी” कितने कट्टरपंथी हो गए हैं। यह मुसलमानों के प्रति साफ नफरत है। अपने मज़हब को मानना और हफ्ते में एक बार 15-20 मिनट के लिए जुम्मे की नमाज अदा करना कैसे किसी के खिलाफ हो सकता है?” ओवैसी ने अपने ट्वीट में अल जज़ीरा को भी टैग किया।
मुझे तो हैरानी इस बात पर हुई कि कैसे ओवैसी जैसे वकील बिना तथ्यों की गहराई में गए अल जज़ीरा की खबर पर मुहर लगा देते हैं। हैरानी इसलिए भी, क्योंकि आम तौर पर अन्रराष्ट्रीय मंचों पर ओबैसी हमेशा भारत के हक़ में परचम उठाते हैं। भारत के खिलाफ बात करने वालों को उतनी ही कड़ाई से जबाव देते हैं, जितने तीखे अंदाज में वह नरेन्द्र मोदी का विरोध करते हैं। लेकिन, गुरुग्राम की जमीनी हकीकत क्या है, ये मैं आपको बताता हूं।
गुरुग्राम के सेक्टर 12ए में शुक्रवार को दो हिंदू संगठनों, विश्व हिंदू परिषद और संयुक्त हिंदू संघर्ष समिति ने HUDA (हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण) के प्लॉट पर टेंट लगाया था। सैंकड़ों हिंदू भक्तों द्वारा गोवर्धन (भगवान कृष्ण) की एक मूर्ति रखी गई थी। मुसलमानों ने शांति बनाए रखने के लिए दूसरी जगह इकट्ठा होकर नमाज़ पढने का फैसला किया। कुछ मुसलमान तो हिन्दुओं के साथ ‘प्रसाद’ बांटने में भी शामिल हो गए और माहौल पूरी तरह से तनाव मुक्त था। न तो कोई टकराव हुआ और न ही कोई हंगामा।
ये सही है कि सेक्टर 47 में मुसलमान नमाज़ अदा नहीं कर सके क्योंकि पुलिस को शांति भंग होने की आशंका थी। अल जज़ीरा नेटवर्क ने इस बात का जिक्र तो किया, लेकिन इस बात का जिक्र नहीं किया कि शुक्रवार को ही गुरुग्राम में 20 सार्वजनिक स्थलों पर मुसलमानों ने जुमे की नमाज अदा की। न तो अल जज़ीरा और न ही ओवैसी ने यह बात कही। कुछ मुसलमानों ने सेक्टर 12ए में भी खुले में नमाज़ अदा की, लेकिन इस बात को भी नजरअंदाज कर दिया गया।
हमारे संवाददाताओँ ने स्थानीय मुसलमानों से बात की, जिन्होंने बताया कि पहले मुसलमान गुरुग्राम में 100 से अधिक सार्वजनिक स्थानों पर जुमे की नमाज अदा करते थे, लेकिन कुछ जगहों पर स्थानीय निवासियों ने पुलिस से शिकायत की। पुलिस, आरडब्ल्यूए और मुसलमानों के बीच बातचीत के बाद, गुरुग्राम में 37 सार्वजनिक स्थानों पर मुसलमानों को जुमे की नमाज़ अदा करने की अनुमति देने का निर्णय लिया गया। लेकिन स्थानीय निवासियों की तरफ से और शिकायतें आईं, और अंत में, मुसलमानों को 22 सार्वजनिक स्थानों पर जुमे की नमाज़ अदा करने की अनुमति दी गई।
BJP नेता कपिल मिश्रा ने बताया कि किसी के पास 37 सार्वजनिक जगहों पर नमाज़ पढने की लिखित अनुमति नहीं थी। कपिल मिश्रा का दावा है कि ये परमीशन 2018 में रमजान के दौरान सिर्फ एक दिन के लिए दी गई थी, बस इसी को आधार बनाकर स्थानीय मुसलमान सरकारी जमीन पर खुले में जुम्मे की नमाज़ पढ़ते रहे।
गुरुग्राम प्रशासन ने भी इस बात की पुष्टि की कि मुस्लिमों को 22 सार्वजनिक स्थानों पर जुमे की नमाज अदा करने की कोई लिखित अनुमति नहीं दी गई थी। प्रशासन का कहना है कि चूंकि सिर्फ ‘जुमे’ के दिन नमाज पढने का मसला था, इसलिए कोई सख्ती नहीं की गई।
हमारे रिपोर्टर ने एक स्थानीय मुस्लिम नेता हाजी हारिस से बात की, जिन्होंने कहा कि चूंकि जुमे की नमाज अदा करने वाले मुसलमानों की संख्या लगातार बढ रही है, इसलिए मस्जिदों के अंदर नमाज़ मुश्किल हो गया था। उन्होंने कहा, जुमे की नमाज अदा करने वालों में ज्यादातर प्रवासी मजदूर थे, न कि स्थानीय मुस्लिम।
एक अन्य मुस्लिम नेता हाजी शहज़ाद ने कहा कि गुरुग्राम में कई मस्जिदें बंद हो चुकी हैं, कहीं भैंस बांध दी, तो कहीं चारा भरा हुआ है, इस वजह से लोग खुले में नमाज़ अदा करते हैं। हमारे रिपोर्टर ने स्थानीय आरडब्ल्यूए पदाधिकारियों से बात की, जिन्होंने कहा, पहले दो चार लोग पार्क में नमाज पढने आते थे, फिर दो दर्जन आने लगे और अब सैकड़ों लोग आते हैं। इस वजह से सड़कें बंद हो जाती है और चूंकि सबके सब बाहरी होते हैं, इसलिए सुरक्षा को लेकर आशंका बनी रहती हैं।
मुझे यहां एक स्थानीय विवाद को लेकर इतने विस्तार में बात इसलिए करनी पड़ी क्योंकि ऐसी घटनाओं के जरिए ही पूरी दुनिया में भारत की सेक्युलर छवि को खऱाब करने की कोशिश की जाती है। इसी तरह की स्थानीय घटनाओं को बढ़ाचढ़ा कर पेश किया जाता है। इसी एक घटना के आधार पर अब असद्दुदीन ओबैसी जैसे कुछ लोग ये पूछ रहे हैं कि मुसलमानों से इतनी नफरत क्यों है। ओवैसी और उनके जैसे लोग तर्क दे रहे हैं कि हफ्ते में एक दिन सरकारी जमीन पर बैठकर कोई इबादत कर लेगा तो क्या चला जाएगा, वो लोग नमाज पढ़ने जाते हैं, सरकारी जमीन पर कब्जा तो नहीं कर रहे हैं।
ओवैसी अपनी जगह ठीक हो सकते हैं, लेकिन जब इबादत के लिए मस्जिद, मंदिर और चर्च बने हैं तो फिर सरकारी जमीन पर बैठकर इबादत करने की क्या जरूरत है? इसी तरह से तो विवाद ख़ड़े होते हैं। किसी भी धर्म के लोगो को सार्वजनिक जगहों पर प्रार्थना करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। क्या ओवैसी को यह जानकारी है कि इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, ट्यूनीशिया और फ्रांस में भी मुस्लिमों को सार्वजनिक जगहों पर नमाज की अनुमति नहीं है? इंडोनेशिया तो सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश है, लेकिन फिर भी वहां पर मुस्लिमों को सड़क पर बैठकर नमाज पढ़ने की अनुमति नहीं है।
कानून सभी धर्मो के मानने वालों पर बराबर लागू होना चाहिए। सरकारी जमीन, सड़क, पार्क में या किसी भी सार्वजनिक जगह पर पूजा, नमाज, या इबादत की इजाज़त किसी को नहीं मिलनी चाहिए। अगर कोई इस तरह का काम करता है तो उसे समझाने की जिम्मेदारी पुलिस की है। इस तरह के मामलों में हिंदू या मुस्लिम नेताओं के कूदने की भी जरूरत नहीं है। अगर मुस्लिम नियमों का उल्लंघन करें तो हिंदुओं को भी बदले में वैसा ही करने का अधिकार नहीं मिल जाता। कानून सभी के लिए समान है। इन छोटी घटनाओं से टकराव होता है और देश की बड़ी बदनामी होती है।