संसद में बुधवार तक 143 सदस्यों का निलम्बन हो चुका है, भारत के संसदीय इतिहास में कभी इतनी बड़ी संख्या में सासदों को सदन से बाहर नहीं किया गया, विरोधी दलों ने इसे सरकार की तानाशाही का सबूत बताया, लेकिन इसी बीच ममता बनर्जी की पार्टी के सांसद कल्याण बनर्जी और राहुल गांधी ने ऐसा कारनामा कर दिया जिसने निलंबन के मुद्दे को पीछ छोड़ दिया. मंगलवार को संसद परिसर में तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने दूसरे निलम्बित सांसदों के बीच खड़े होकर राज्यसभा के सभापति जगदीप धनकड़ की मिमिक्री की, उपराष्ट्रपति का मज़ाक उड़ाया. कल्याण बनर्जी की मिमिक्री पर विपक्ष के सांसदों ने ठहाके लगाए और सामने खड़े होकर राहुल गांधी ने अपने फोन पर इसका वीडियो बनाया. कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से इस वीडियो को सोशल मीडिय़ा पर अपलोड किया गया. बीजेपी ने विपक्ष के नेताओं को संवैधानिक पदों की गरिमा का सम्मान करने की नसीहत दी. जाट एसोशिएशन ने जगदीप धनकड़ के अपमान को पूरे जाट समुदाय का अपमान बताया. सरकार की तरफ से कल्याण बनर्जी और राहुल गांधी के खिलाफ एक्शन की मांग की गई. कांग्रेस डिफेंसिव पर आ गई. राहुल गांधी की नासमझी ने विपक्ष की रणनीति पर पानी फेर दिया और सरकार को आक्रामक होने का मौका दे दिया. इसमें तो कोई दो राय नहीं कि कल्याण बनर्जी ने जो किया, वो किसी भी नज़रिए से सही नहीं हैं – संवैधानिक मर्यादा के लिहाज से, संसद के नियमों के हिसाब से, संवैधानिक पदों की गरिमा के पैमाने से, और राजनीतिक मर्यादा की नज़र से. किसी भी तरह से कल्याण बनर्जी की हरकत को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता. राहुल गांधी तो खुद को सबसे बड़ा नेता मानते हैं. क्या राहुल को सभापति या स्पीकर के पद की गरिमा के बारे में नहीं मालूम? राहुल गांधी को चाहिए था कि वो कल्याण बनर्जी को मिमिक्री करने से रोकते. लेकिन उन्होंने रोकने की बजाय वीडिया बनाया. ये राहुल की नामसमझी का सबूत है. उन्हें पता ही नहीं होता कि वो क्या कर रहे हैं, और जो कर रहे हैं उसका क्या असर होगा. कल्याण बनर्जी और राहुल गांधी की इस हरकत का सबसे बड़ा नुकसान विपक्ष को ही हुआ. विरोध दल बड़ी संख्या में सांसदों के सस्पेंशन को मुद्दा बना रहे थे, सरकार पर तानाशाही का इल्जाम लगा रहे थे, लोगों की सहानुभूति भी विपक्ष के साथ थी, लेकिन अब इस हरकत ने सारा गुड़ गोबर कर दिया. अब सासंदों का सस्पेंशन का मुद्दा तो पीछे रह गया, अब बीजेपी के नेता मांग कर रहे हैं कि कल्याण बनर्जी और राहुल गांधी को हर हालत में राज्यसभा के सभपति जगदीप धनकड़ से मांफी मांगनी होगी. साथ ही मुझे लगता है कि 143 सासंदों को संसद से निलम्बित कर देना, इतनी बडी संख्या में सांसदों को सस्पेंड करना दुर्भाग्यपूर्ण है. लेकिन इसके लिए सरकार और विपक्ष दोनों बराबर के जिम्मेदार हैं. विपक्ष के सांसद इरादतन राज्यसभा और लोकसभा में प्लेकार्ड लेकर नारबाजी करने आये ताकि उन्हें सस्पेंड कर दिया जाए और वे बाहर जाकर ये इल्जाम लगा सके कि सरकार ने संसद को विपक्ष विहीन कर दिया, विपक्ष की आवाज़ संसद में बिल्कुल बंद कर दी. संसद में IPC, CrPC, Indian Evidence Act जैसे पुराने कानूनों को बदल कर नये विधेयक लाये गये हैं, ऐसे बिल अगर विपक्ष की चर्चा और सहयोग के बगैर पास हो गए तो ये लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है. बेहतर होता विपक्ष थोड़ा संयम दिखाता, चर्चा में हिस्सा लेता, और सरकार भी थोड़ा बड़ा दिल दिखाती, गृह मंत्री संसद की सुरक्षा में सेंध की जांच के बारे में बयान देते, जो बात उन्होंने पार्लियामेंट के बाहर कही, वही सदन में कह देते, तो शायद रास्ता निकल आता. लेकिन दोनों पक्ष अड़े हुए हैं और इससे नुकसान आम लोगों का हो रहा है. संसदीय प्रणाली को हो रहा है, हमारी संसदीय परंपराओं का हो रहा है, जो अच्छा नहीं है.
INDIA गठबंधन : नेता की तलाश
सांसदों के सस्पेंशन का बड़ा असर विरोधी दलों के INDIA अलायन्स की मीटिंग में भी दिखाई दिया. सबसे पहले इसी मुद्दे पर चर्चा हुई. सांसदों के सस्पेंशन पर मोदी विरोधी मोर्चे की मीटिंग में एक निंदा प्रस्ताव पारित किया गया. प्रस्ताव में कहा गया कि विरोधी दलों के खिलाफ सरकार के रवैए की पूरी ताकत के साथ विरोध करेंगे, मिलकर आवाज उठाएंगे. प्रस्ताव तो पारित हो गया लेकिन जिन सवालों के जवाब खोजने के लिए मीटिंग बुलाई गई थी, उस पर न कोई फैसला हुआ, न कोई प्रस्ताव पास हुआ. मीटिंग में 28 पार्टियों के नेता मौजूद थे लेकिन नेताओं ने जो बातें पटना में हुई पहली मीटिंग में कहीं थी, वही चौथी मीटिंग के बाद कही. सिर्फ एक घटना हुई. ममता बनर्जी ने कांग्रेस को टेंशन में डालने वाली एक चाल चल दी. ममता ने मीटिंग में ये प्रस्ताव रख दिया कि मोदी के मुकाबले प्रधानमंत्री पद के लिए विरोधी दलों की तरफ से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को प्रोजैक्ट किया जाए. ममता की बात सुनकर सोनिया गांधी, राहुल गांधी, नीतीश कुमार, लालू यादव, सीताराम येचुरी और अखिलेश यादव जैसे नेता सकते में आ गए. शरद पवार, उद्धव ठाकरे जैसे नेता चुपचाप बैठे रहे. स्थिति को संभाला खऱगे ने. खरगे ने कहा कि MP होंगे, तो PM बनेंगे, इसलिए पहले MPs तो जुटा लें, इसके बाद PM कौन होगा, इस पर बात करेंगे. खरगे ने कहा कि गठबंधन का नेता कौन होगा, प्रधानमंत्री कौन होगा, इसका फैसला चुनाव नतीजे आने के बाद होगा. तीन घंटे की मीटिंग के बाद जब विरोधी दलों के नेता बाहर निकले तो ज्यादातर नेताओं ने अंदर क्या बात हुई, इस पर बोलने से इंकार कर दिया. अब सवाल ये है कि MPs को जिताने का जुगाड़ तो तब होगा, जब सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय हो जाएगा. पता ये लगा है कि इस मामले में भी ममता ने खुलकर बात की. मीटिंग में ममता ने साफ कहा कि पहले ही बहुत देर हो चुकी है, अब और देर नहीं होनी चाहिए, दिसंबर के आखिर तक या फिर जनवरी के पहले हफ्ते तक सीट शेयरिंग पर फैसला हो जाना चाहिए, क्योंकि अब चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं है. ज्यादातर पार्टियों ने इस पर सहमति जताई. कांग्रेस को अंदाजा था कि इस मुद्दे पर बात होगी, इसलिए कांग्रेस ने मीटिंग शुरू होने से पहले ही एक गठबंधन समन्वय कमेटी बनाने का एलान कर दिया. इसमें अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और मुकुल वासनिक सहित कुल पांच लोग हैं. फिर मीटिंग में फैसला हुआ कि गठबंधन में शामिल पार्टियां अपनी-अपनी कमेटी बनाएंगी, कमेटी के नेता सीट शेयरिंग पर बात करेंगे, फैसला करेंगे, अगर कहीं कोई दिक्कत होगी तो पार्टियों के बड़े नेता मिलकर रास्ता निकालेंगे और जनवरी के आखिर तक सीट शेयरिंग हो जाएगी. न पीएम के चेहरे पर फैसला हुआ, न सीटों का बंटवारा हुआ, न कोई फॉर्मूला निकला. तो फिर तीन घंटे की मीटिंग में हुआ क्या? इसका जवाब भी खरगे ने दिया. खरगे ने कहा कि जल्दी ही गठबंधन के सभी नेता एक मंच पर दिखाई देंगे, कम से कम आठ बड़ी साझा जनसभाएं होगी जिसमें गठबंधन में शामिल सभी दलों के नेता शामिल होंगे. ये बात सही है कि लालू यादव, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव मीटिंग से सबसे पहले निकले, उन्होंने किसी से कोई बात नहीं की. इससे समझ आया कि ये सारे नेता ममता के प्रस्ताव से नाराज थे. मल्लिकार्जुन खरगे को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का ओरिजिनल आइडिया केजरीवाल का था. केजरीवाल ने ममता बनर्जी से बात की और उनसे ये नाम पेश करने को कहा. केजरीवाल और ममता दोनों को लगता है कि राहुल गांधी को अगर गठबंधन के नेता के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाएगा, तो इसका नुकसान होगा, बीजेपी इसका फायदा उठाएगी. लेकिन अगर खरगे को प्रोजेक्ट किया जाएगा, तो एक दलित और अनुभवी नेता का चेहरा सामने होगा, जिसे काउंटर कर पाना बीजेपी के लिए मुश्किल होगा. लेकिन कांग्रेस ने इस आइडिया को पैदा होने से पहले ही दफन कर दिया. चुनाव से पहले ही राहुल की दावेदारी पर ताला लगाना कांग्रेस को सूट नहीं करता है. इसलिए प्रधानमंत्री पद का चेहरा कौन होगा, इस पर कांग्रेस ने कोई फैसला नहीं होने दिया. लालू की समस्या अलग है. वो चाहते हैं, गठबंधन में नीतीश कुमार लीडर बनें, पटना छोड़ें, दिल्ली आएं, ताकि मुख्यमंत्री की कुर्सी तेजस्वी के लिए खाली हो. पर चार-चार मीटिंग हो चुकी, लालू कुछ करवा नहीं पाए. कुल मिला कर मंगलवार को कुछ खास नहीं हुआ. ज्यादातर बातें वही हुई, जो पटना की पहली मीटिंग में हुई थीं. मैंने एक दिन पहले ही कहा था कि सांसदों के निलम्बन का मुद्दा मोदी विरोधी मोर्चे की मीटिंग को पटरी से उतार देगा. मीटिंग में ज्यादातर चर्चा सस्पेंशन और मोदी के तानाशाही की हुई. न तो नेता पर फैसला हो पाया, न ही सीट शेयरिंग का कोई फॉर्मूला निकल पाया. बस यही कहा गया कि मोदी के खिलाफ मिलकर लड़ेंगे, मोदी को हराने के लिए मिलकर कैंपेन करेंगे. लेकिन उनको अंदाजा ही नहीं है कि मोदी किस दिशा में आगे निकल चुके हैं.