सोमवार की रात मेरे प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने आपको, भारतीय टेलीविजन पर पहली बार, काबुल के नज़दीक बगराम जेल के अंदर की तस्वीरें दिखाई। अमेरिकी सेना ने करीब बीस साल तक इस जेल में कई हज़ार खूंखार आतंकवादियों को रखा था। 15 अगस्त को जब तालिबान के सड़ाके काबुल में दाखिल हुए, और पूरे अफगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया, तब पुल-ए-चरखी में बगराम बेस के पास बनी इस जेल के दरवाजे खोल दिए गए। इस जेल में आईएसआईएस (खुरासान), अल कायदा, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, लश्कर-ए-झंगवी और तहरीके-तालिबान पाकिस्तान के सैकड़ों खूंखार आतंकवादी कैद थे।
तालिबान के कमांडरों ने इन सभी दहशतगर्दों को जेल से रिहा कर दिया। जेल में कई ऐसे आतंकवादी थे जिनका भारत से कनेक्शन था। इनमें केरल के वे 14 युवक भी थे जो इराक जाकर इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) में शामिल होना चाहते थे, लेकिन अफगान सुरक्षा बलों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। गिरफ्तारी के बाद इन युवकों को अमेरिकी सेना के हवाले कर दिया गया था और अमेरिकी सेना ने इन्हें बगराम जेल में कैद कर रखा था। अब नौजवानों का कोई अता पता नहीं है। किसी के पास इस बात की कोई पक्की जानकारी नहीं है कि सारे दहशतगर्द कहां चले गए। दावा ये किया जा रहा है कि इनमें से कुछ आतंकवादी तालिबान में शामिल हो गए जबकि कुछ दहशतगर्द पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में भी देखे गए। ये दहशतगर्द आगे चल कर कश्मीर घाटी में खूनखराबा कर सकते हैं।
इन आतंकियों की बगराम जेल से रिहाई के बाद भारत के लिए खतरा अब बढ़ गया है। जेल से बाहर निकले इन आतंकियों में आईएसआईएस (खुरासान) का चीफ मौलवी अब्दुल्ला उर्फ असलम फारूकी भी शामिल है। फारूकी काबुल के गुरुद्वारा हर राय साहिब में हुए आतंकी हमले का मास्टरमाइंड था। मार्च 2020 में इस गुरुद्वारे में हुए आतंकी हमले में एक आत्मघाती हमलावर ने 25 सिख श्रद्धालुओं की जान ले ली थी। असलम फारूकी को अप्रैल में अफगान सुरक्षाबलों ने नांगरहार प्रांत से गिरफ्तार किया था। हक्कानी नेटवर्क से असलम फारूकी के करीबी रिश्ते हैं और उसका बेस भी पाकिस्तान में है। ऐसी खबरें हैं कि वह इस वक्त पाकिस्तान में अपने अड्डे पर लौट गया है।
पता ये भी चला है कि बगराम की जेल में तहरीक-ए-तालिबान का सरगना फकीर मोहम्मद भी कैद था और 15 अगस्त के बाद वो भी जेल से निकल गया। इसी तरह वकास महसूद, हमज़ा महसूद, ज़रकावी महसूद, जैयतुल्ला महसूद, कारी हमीदुल्ला, हमीद महसूद और मजहर महसूद जैसे दहशतगर्द भी अब आजाद घूम रहे हैं। बगराम जेल में जैश-ए-मोहम्मद के भी कई दहशतगर्द बंद थे लेकिन अब वो दोबारा पीओके पहुंच गए हैं। इनमें एक आतंकी वकार था जो बगराम जेल से सीधे जब पीओके पहुंचा तो उसकी वापसी पर उसके साथिय़ों ने हवा में फायरिंग करते हुए जश्न मनाया ।
इस्लामिक स्टेट ( ISIS) की मोस्ट वांटेड महिला आतंकवादी आफिया सिद्दीकी भी इसी जेल में कैद थी और अब वो भी आजाद है। कई हजार कैदी जब बगराम जेल से बाहर निकले तो उन्हें आगे का रास्ता दिखाने वाले तालिबान के लड़ाके ही थे। कई दहशतगर्दों को तो खुद तालिबान के लड़ाके पाकिस्तान सरहद तक छोड़कर आए। ऐसी भी खबरें हैं कि कई ऐसे आतंकवादी भी थे जिन्होंने जेल से रिहा होने की खुशी में तालिबान के लड़ाकों का हाथ चूम लिया।
रविवार को तालिबान कमांडर्स ने पाकिस्तानी और तुर्की के मीडिया रिपोर्टर्स को बगराम जेल में दाखिल होने की इजाजत दी। तुर्की के एक रिपोर्टर ने कहा- जेल छोडने से पहले अफगान सुरक्षाकर्मियों ने सभी कोठरियों पर ताले जड़ दिए थे। जेल के सभी दरवाजे बंद कर दिए गए थे। सुरक्षाकर्मी जब हमगराम जेल से चले गए तब कुछ कैदी जेल तोड़कर निकल भागे और बाकी कैदियों को तालिबान ने आजाद कर दिया।
अमेरिकी सेना का बगराम एयर बेस काबुल से कोई पच्चीस किलोमीटर दूर है। यह एयर बेस हजारों एकड़ में फैला है। पत्रकार जब पहली बार कैमरे के साथ इस जेल के अंदर गए तो वहां का नज़ारा देख कर चौक गए। अमेरिकी नियंत्रण के समय बगराम जेल में छह से सात हजार कैदियों के लिए चौबीसों घंटे सुरक्षा व्यवस्था थी। इस जेल में ज्यादातर आतंकवादी ही कैद थे। लेकिन अब यह जेल खाली है। जेल परिसर के अंदर इस वक्त सिर्फ कुछ तालिबान कमांडरों की रिहाइश है।
अमेरिकी सेना ने इस जेल को दो हिस्सों में बांट रखा था- एक हिस्सा आम कैदियों के लिए था जबकि दूसरा हिस्सा आइसोलेशन वार्ड था, जिसमें खूंखार आतंकवादियों को रखा जाता था। बगराम बेस की जेल को आमतौर पर अफगानिस्तान का ग्वांतानामो बे कहा जाता था। यहां हर खूंखार आतंकी के लिए छोटे-छोटे सेल थे। एक बड़े हॉल में 30 आतंकियों को कैद रखा जाता था।
इस जेल में 84 वॉच टावर (बुर्ज़) थे जिन पर अमेरिकी सेना के स्नाइपर्स तैनात थे। 2 जुलाई को अमेरिकी सेना चुपके से बगराम जेल छोड़कर निकल गई। अमेरिकी सेना ने बगराम छोड़ने से पहले वहां के एयर बेस को निष्क्रिय कर दिया था। उन्होंने वहां की पावर सप्लाई काट दी। इतना ही नहीं अमेरिकी सेना ने इसकी कोई सूचना अफगान सुरक्षा बलों को भी नहीं दी ताकि वो वैकल्पिक इंतजाम कर सकें। अफगान सुरक्षा बलों ने करीब एक महीने तक इस जेल की पहरेदारी की और जब तालिबान के लड़ाके पहुंचे तो जान बचाने के लिए जेल से भाग गए ।
बगराम जेल के अंदर एक बड़ा कंट्रोल रूम था जहां से वीडियो कैमरों के जरिए कैदियों पर चौबीसों घंटे नजर रखी जाती थी। हर सेल और हॉल की छत पर लोहे की जालियां लगी थी जिनसे अमेरिकी सैनिक चौबीसों घंटे कैदियों पर नज़र रखते थे। 15 अगस्त को जब तालिबान ने काबुल में राष्ट्रपति के महल पर कब्जा कर लिया तो अफगान सैनिक बगराम जेल से भाग गए । जेल से भागने से पहले सैनिकों ने सारे दरवाजे बंद कर दिए। उस समय इस जेल में करीब 5 हजार कैदी थे। इन कैदियों में कई तो भाग गए जबकि बाकी कैदियों को तालिबान ने आजाद कर दिया।
यहां गौर करनेवाली बात ये है कि 9/11 के आतंकवादी हमलों के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपनी फौज इसलिए भेजी थी कि वो अलकायदा के नेटवर्क को नेस्तनाबूद करना चाहता था। अमेरिकी सेना और उसकी खुफिया एजेन्सी ने दुनिया भर से अलकायदा के आतंकियों को पकड़ने में अपना काफी समय और मैनपावर का उपयोग किया था। कई आतंकियों को क्यूबा के पास ग्वांतानामो बे जेल भेज दिया गया जबकि बाकी को बगराम जेल में रखा गया था। अब बगराम जेल से वो कैदी भाग निकले हैं जिनको पकड़ने में अमेरिका ने काफी दिमाग लगाया था और कड़ी मेहनत की थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब फिर से अलकायदा तंज़ीम सक्रिय हो जाएगी? क्या इस्लामिक स्टेट फिर से उठ खड़ा होगा? इन सवालों के जवाब मिलने अभी बाकी हैं।
भारत के लिए बड़ा खतरा ये है कि पाकिस्तान के टुकड़ों पर पलने वाले लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-झंगवी के दहशतगर्द अफगानिस्तान की जेलों से रिहा कर दिए गए हैं। क्या ये आतंकी कश्मीर और भारत के अन्य हिस्सों में सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करेंगे? जाहिर है कि आईएसआई और पाकिस्तानी फौज इनका इस्तेमाल अब भारत के खिलाफ करने की पूरी कोशिश करेगी। दूसरी तरफ अमेरिकी खुफिया विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि चीन बगराम एयर बेस पर कब्जा करने की फिराक में है। अगर यह एयरबेस चीन के कब्जे में आ गया तो पाकिस्तान इस एय़रबेस का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करना चाहेगा क्योंकि कश्मीर की नियंत्रण रेखा से इस एयरबेस की दूरी महज 460 किलोमीटर है।