तालिबान ने मंगलवार को मुल्ला मुहम्मद हसन अखुन्द को प्रधानमंत्री बनाकर अपनी अन्तरिम सरकार का ऐलान कर दिया । अखुन्द वही शख्स है जिसने 2001 में बामियान की विश्व प्रसिद्ध बुद्ध मूर्तियों को तोपों से उड़ाने का आदेश दिया था। अखुन्द का नाम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा जारी सैंक्शन लिस्ट में है। वह तालिबान की सबसे ताकतवर कौंसिल, रहबरी शूरा, का प्रमुख है। 1996 से 2001 तक तालिबान की पिछली हुकूमत के दौरान अखुन्द विदेश मंत्री और उप प्रधानमंत्री था। अखुन्द तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक है। मुल्ला उमर की मौत का ऐलान दो साल बाद उस वक्त किया गया था, जब वह अमेरिकी हमलों के डर से छिप गया था। इसी दौरान मुल्ला उमर की मौत हो गई थी।
तालिबान के सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को उप प्रधानमंत्री बनाया गया है, वो इससे पहले प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार था। मुल्ला अब्दुस सलाम हनफ़ी को भी उप प्रधानमंत्री बनाया गया है। मुल्ला बरादर ने दोहा में अमेरिका के साथ हुई बातचीत में तालिबान का नेतृत्व किया था। इसी बातचीत के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सारे सैनिकों को वापस बुला लिया। तालिबान के पिछले शासन में उप रक्षामंत्री रहे बरादर को 2010 में पाकिस्तान में गिरफ्तार किया गया था लेकिन आठ साल बाद उसे रिहा कर दिया गया था। बरादर मुल्ला उमर का बहुत करीबी था और मुल्ला उमर ने ही उसे ‘बरादर’ (भाई) उपनाम दिया था।
इसी तरह पाकिस्तान की दहशतगर्द तन्ज़ीम हक्कानी नेटवर्क का चीफ और मोस्ट वांटेड आतंकी सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्री बनाया गया है। भारत से नफरत करनेवाला सिराजुद्दीन हक्कानी 2008 में काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर कराए गए भयंकर आतंकी हमले का मास्टरमाइंड था। इस हमले में 58 लोगों की मौत हुई थी। हक्कानी के सिर पर अमेरिका ने 50 लाख डॉलर (36.8 करोड़ रुपए) का इनाम रखा था। वह एफबीआई की मोस्ट वांटेड लिस्ट में है और उसे ‘विशेष रूप से ग्लोबल टेररिस्ट नामित’ किया गया है। एक और मोस्ट वांटेड आतंकवादी खलील हक्कानी को शरणार्थी विभाग का मंत्री बनाया गया है। हक्कानी नेटवर्क पर संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और भारत ने प्रतिबंध लगा रखा है।
तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर का बेटा मोहम्मद याकूब अब अफगानिस्तान का रक्षा मंत्री बना है। वह तालिबान के रक्षा आयोग का प्रमुख है। तालिबान की उदारवादी आवाज माने-जाने वाले आमिर खान मुत्तकी को विदेश मंत्री बनाया गया है। मुत्तकी तालिबान की पिछली हुकूमत में संस्कृति, शिक्षा और सूचना मंत्री था। वह तालिबान की उस टीम का हिस्सा था जिसने दोहा में अमेरिका के साथ बातचीत की थी।
शेर मुहम्मद अब्बास स्तानिकज़ई को उप विदेश मंत्री बनाया गया है। इंडियन मिलिट्री एकेडमी, देहरादून में ट्रेनिंग के दौरान उसके साथी उसे ‘शेरू’ के नाम से पुकारते थे। उसके आईएसआई से बेहद करीबी संबंध रहे हैं। तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद को उप सूचना मंत्री बनाया गया है।
तालिबान की 33 सदस्यीय अंतरिम सरकार में 12 लोग ऐसे हैं जिन्हें ग्वांतानामो बे स्थित अमेरिकी जेल में कैद करके रखा गया था । इनमें सूचना मंत्री मुल्ला खैरुल्लाह ख्वैरख्वाह, बॉर्डर और जनजातीय मामलों के मंत्री मुल्ला नूरुल्लाह नूरी, थल सेनाध्यक्ष कारी फसीहुद्दीन बदख्शानी और खुफिया निदेशक अब्दुल हक वसीक शामिल हैं। वसीक ने ग्वांतानामो बे स्थित अमेरिकी जेल में 12 साल बिताए थे।
तालिबान कैबिनेट के सदस्यों की लिस्ट पर एक नज़र डालने से साफ हो जाता है कि यह सरकार या तो आतंकवादियों से भरी हुई है या फिर आतंकी सरगनाओं से। इस अंतरिम सरकार में ज्यादातर पश्चिमी और पूर्वी पश्तून कबीलों के नेताओं का वर्चस्व है। इस लिस्ट पर पाकिस्तान के ISI की स्पष्ट छाप नजर आ रही है पाकिस्तान के थलसेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा ने कुछ दिन पहले खुद स्पष्ट किया था कि उनका देश तालिबान की सरकार बनाने में मदद करेगा। आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद ने काबुल में खास भूमिका निभाई। उन्होंने तालिबान के अलग-अलग कबीलों के नेताओं के बीच मतभेद को खत्म कर उन्हें एक साथ लाने का काम किया। लेकिन अभी-भी अफगानिस्तान में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो तालिबानी निज़ाम में पश्तूनों के वर्चस्व से नाराज़ हैं।
काबुल से लेकर हेरात तक मंगलवार को उस समय गुस्सा फूटा, जब अफगान महिलाएं विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए सड़कों पर उतरी। तालिबान के सिपाहियों ने महिलाओं को तितर-बितर करने के लिए उन्हें लाठियों से पीटा और हवा में फायरिंग भी की। ये प्रदर्शनकारी काबुल में पाकिस्तानी दूतावास के बाहर ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ जैसे नारे लगा रहे थे।
प्रदर्शनकारी पाकिस्तानी सेना द्वारा पंजशीर घाटी में नॉर्दन अलायंस रेजिस्टेंस फोर्स के ठिकानों पर बमबारी के खिलाफ भी नारे लगा रहे थे। तालिबान के सिपाहियों ने प्रदर्शनकारियों को डराने के लिए हवा में जबरदस्त फायरिंग की। 15 अगस्त को जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया था उसके बाद से यहां इतनी ज़बरदस्त फायरिंग नहीं देखी गई थी। तालिबान लड़ाकों ने टीवी कैमरापर्सन और पत्रकारों को बंदी बना लिया। हालांकि बाद में उन्हें छोड़ दिया। प्रदर्शनकारियों, खासतौर से महिलाओं ने बहादुरी का सबूत दिया और तालिबान की धमकियों और मारपीट का पूरी दृढ़ता से सामना किया।
महिलाओं को डंडों से पीटने की तस्वीरों से पूरी दुनिया में तालिबानी क्रूरताओं का संदेश गया है। प्रदर्शनकारी महिलाएं जान हथेली पर लेकर घरों से बाहर निकली थीं। परिवारवालों से कहकर आई थीं कि जिंदा वापस आएंगी या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं, क्योंकि सामने तालिबान था। इसीलिए काबुल की गलियों में जब महिलाएं अपने हुकूक की मांग को लेकर आगे बढ़ रहीं थी तो तालिबान ने इन्हें रोकने की काफी कोशिश की। दस मीटर से भी कम फासले से महिलाओं के ठीक सामने तालिबान ने गोलियों की बौछार शुरू कर दी। लेकिन हिम्मत दिखाते हुए महिलाओं ने फिर भी नारे लगाने बंद नहीं किए, उनके कदम नहीं रुके। हेरात में भी तालिबान लड़ाकों ने महिला प्रदर्शनकारियों को घेर लिया और उन्हें अज्ञात स्थान पर ले गए।
पाकिस्तान दुनिया को यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि नया तालिबान पुराने से अलग है, लेकिन पिछले तीन हफ्तों में हुई ज्यादातर घटनाएं कुछ और ही इशारा कर रही हैं। दुनिया ने महसूस किया है कि तालिबान की इस सफलता के पीछे पाकिस्तानी सेना और आईएसआई है। वे पिछले बीस साल से उन्हें शरण दे रहे थे। उन्हें पैसा, हथियार और नौजवान मुहैया करा रहे थे। वही पाकिस्तान अब तालिबान को एक ऐसा पेश कर रहा है मानो वो मुल्क में हुकूमत चलाने के मामले में गंभीर है। लेकिन दुनिया इस तथ्य को नज़रअन्दाज़ नहीं कर सकती कि तालिबान के लड़ाकों को पाकिस्तानी फौज के कमांडरों ने ही जंग लड़ने की ट्रेनिंग दी है।
पाकिस्तानी मंत्री खुलेआम कह रहे हैं कि उन्होंने तालिबान लड़ाकों को खाना खिलाया, कपड़े दिए, उन्हें युद्ध लड़ने की तरकीबें सिखाई और उन्हें पैसे भी दिए। आईएसआई प्रमुख खुद यह संदेश देने के लिए काबुल पहुंचे कि वे सरकार बनाने में तालिबान की मदद करने आए हैं। पाकिस्तानी मंत्रियों ने यहां तक दावा किया कि उनकी सेना ने पंजशीर घाटी में दाखिल होने में तालिबान की मदद की और पाकिस्तानी सैनिकों ने अहमद मसूद के ठिकानों पर हमले भी किए । अफगानिस्तान की आम जनता इन घटनाओं को करीब से देख रही है, अपने घरेलू मामलों में हो रही दखलन्दाज़ी से वह पाकिस्तान से काफी नाराज़ हैं। आम अफगान पाकिस्तान को एक नया अदृश्य हमलावर मानते हैं।
तालिबान के प्रति अपने जुड़ाव को दुनिया भर के सामने देखा कर पाकिस्तान खुद को भारत से इक्कीस साबित करना चाहता है। लेकिन अफगानिस्तान की अवाम इस बात को देख चुकी है, कैसे भारत ने पिछले बीस साल के दौरान काबुल में संसद भवन बनाया, अफागनिस्तान में बड़े बड़े बांध बनाए, शहरों को हाईवे से जोड़ा और पूरे मुल्क में बिजली का जाल बिछाया। अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत ने बहुत बड़ा योगदान किया है। 15 अगस्त तक पाकिस्तान हाशिए पर था, लेकिन जब तालिबान ने बिजली की रफ्तार से पूरे मुल्क पर कब्ज़ा कर लिया , तो पाकिस्तान और चीन खुल कर तालिबान के पक्ष में सामने आ गए। चीन और पाकिस्तान दोनों का मक़सद एक ही है। वो बै, अफगानिस्तान में भारत के हितों को नुकसान पहुंचाना और परोक्ष रूप से कश्मीर घाटी में हिंसा भड़काने की कोशिश करना, जहां आर्टिकल 370 खत्म किए जाने के बाद पिछले दो साल से ज्यादा समय से शांति है।