RSS के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद और धर्मनिरेक्षता शब्दों को हटाने पर विचार करने का सुझाव दिया है. होसबाले ने कहा कि आंबेडकर संविधान में ये दोनों शब्द जोड़ने के खिलाफ थे, लेकिन इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के समय ये दो शब्द संविधान के प्रस्तावना में जोड़ दिए. इनका कोई मतलब नहीं हैं. ये शब्द संविधान की मूल भावना नहीं है. इसलिए अब इन दोनों शब्दों को संविधान से हटाने पर विचार होना चाहिए.
कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने RSS के सुझाव को समर्थन किया. कहा, ये दोनों शब्द भारत की संस्कृतिक विरासत के अनुरूप नहीं हैं, भारत सर्वधर्म समभाव में विश्वास करता है.
चूंकि बिहार में चुनावी माहौल है, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि संविधान को खत्म करना ही बीजेपी और RSS का एजेंडा है. गाहे-बगाहे RSS के नेताओं की जुबान पर दिल की बात आ जाती है. लेकिन विरोधी दल RSS और बीजेपी का ये ख्वाब कभी पूरा नहीं होने देंगे.
पिछले कई महीनों से संविधान की कॉपी जेब में लेकर घूम रहे राहुल गांधी को तो मानो मुंह मांगी मुराद मिल गई. उन्होंने तुरंत संघ पर वार किया. राहुल गांधी ने लिखा कि RSS का नक़ाब फिर से उतर गया..संविधान इन्हें चुभता है क्योंकि वो समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है. RSS-BJP को संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहिए..वो बहुजनों और ग़रीबों से उनके अधिकार छीनकर उन्हें दोबारा ग़ुलाम बनाना चाहते हैं.
कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि होसबाले ने सिर्फ अंबेडकर की राय का उल्लेख किया. सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि बीजेपी के नेता कुछ भी कहें, हकीकत यही है कि आरक्षण को खत्म करना और संविधान में बदलाव करना, बीजेपी का छिपा हुआ एजेंडा है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि संविधान की कॉपी लहराने वाले न संविधान को समझते हैं न संविधान के भाव को, ऐसे लोगों के लिए सिर्फ अपना परिवार ही सब कुछ है, ऐसे लोगों से बचकर रहने की जरूरत है.
जयशंकर का इशारा राहुल गांधी की तरफ थी. गांधी को तो मौका मिलना चाहिए. वो संविधान से जुड़ी हर बात को संविधान खत्म करने की साजिश बता देते हैं. बहुजनों के अधिकार और आरक्षण से जोड़ देते हैं.
असल में फितूर तो उनके दिमाग में है. होसबाले ने जो कहा वो गलत नहीं हैं, लेकिन सामने बिहार का चुनाव है, इसलिए कांग्रेस और RJD को मौका मिल गया, उन्होंने इसे मुद्दा बना दिया. वरना राहुल गांधी हों या तेजस्वी यादव, इन लोगों को शायद ये पता ही नहीं होगा कि संविधान में सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्द जोड़ने पर खूब बहस हुई थी.
पंडित नेहरू और डॉ अंबेडकर सेक्युलरिज्म के कट्टर समर्थक थे लेकिन पश्चिमी देशों की नकल करके संविधान में सेक्युलर शब्द जोड़ने के खिलाफ थे. इसीलिए उस वक्त ये शब्द संविधान में नहीं जोड़ा गया.
सोशलिस्ट शब्द जोड़ने के लिए भी 15 नंबवर 1948 को प्रोफेसर के. टी. शाह ने संशोधन पेश किया था, लेकिन ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ. आंबेडकर ने इसे अस्वीकार कर दिया. उस वक्त आंबेडकर ने कहा था कि संविधान को ऐसे दस्तावेज के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए जो किसी social और economic ideology को आने वाली पीढ़ियोंपर थोपता हो
लेकिन इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के दौरान 42वीं संविधान संशोधन किया और संविधान की प्रस्तावना में सोशलिस्ट और सेक्युलर शब्द जोड़ दिए.
इसलिए दत्तात्रेय होसबोले ने जो कहा वो तथ्यात्मक रूप से बिल्कुल सही है. लेकिन विरोधी दलों ने जैसे लोक सभा चुनाव के दौरान बीजेपी के कुछ नेताओं के बयानों को उठाकर बीजेपी पर संविधान को खत्म करने का इल्जाम लगाया, इसे बड़ा मुद्दा बनाया, इसका विपक्ष को फायदा हुआ, वैसे ही अब बिहार के इलैक्शन से पहले होसबाले के बयान को हवा देकर एक बार फिर बीजेपी को घेरने की कोशिश होगी. इसीलिए दत्तात्रेय होसबाले के बयान पर इतनी हायतौबा मचाई जा रही है.
बिहार में वोटर वेरिफिकेशन : EC को मोहरा न बनाएं
चुनाव आयोग ने बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के वैरीफिकेशन का अभियान शुरू किया है. EC के कर्मचारी घर-घऱ जाकर वोटर्स की नागरिकता और जन्म से जुड़े दस्तावेजों का वैरीफिकेशन करेंगे.
आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों ने इल्जाम लगाया कि आयोग का ये अभियान गरीब, दलित और पिछड़े वर्ग के वोटर्स के नाम वोटर लिस्ट से काटने की साजिश है. ये सब बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है..
चुनाव आयोग ने जो मुहिम शुरू की है, उसका मकसद EPIC (electors photo identity card) नंबर से वोटर लिस्ट का मिलान करना है. चुनाव आयोग की बेवसाइट पर दो फॉर्म अपलोड किए गए हैं.
इसमें बिहार के वोटर्स अपनी लेटेस्ट फोटो, अपना एपिक नंबर और दूसरे दस्तावेज अपलोड कर सकते हैं. जो लोग ऑनलाइन फॉर्म नहीं भर सकते, उनकी मदद के लिए चुनाव आयोग के कर्मचारी घर- घर जाएंगे, फॉर्म भरवाएंगे और कागज़ात अपलोड करेंगे. इस फॉर्म की एक कॉपी वोटर को भी दी जाएगी. राशन कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, बैंक पासबुक, जाति प्रमाण पत्र या जन्म प्रमाणपत्र, ऐसे 11 कागजात हैं, जिनमें से यदि एक भी आपके पास है, तो आपका वैरीफिकेशन हो जाएगा.
जो लोग आज वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन पर सवाल उठा रहे हैं, ये वही लोग हैं जो महाराष्ट्र में चुनाव से पहले वोटर लिस्ट वेरिफाई ना करने का आरोप लगा रहे थे.
एक तरफ कहते हैं कि वोटर लिस्ट सही, दुरुस्त हो, ये चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है, दूसरी तरफ वे वोटर लिस्ट के वेरिफिकेशन को साजिश बता रहे हैं..
अगर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी निकली तो यही लोग चुनाव आयोग पर आरोप लगाएंगे. इसलिए अगर चुनाव आयोग चुनाव से पहले वोटर लिस्ट की गड़बडियों को दूर करने की कोशिश कर रहा है तो भी चुनाव आयोग को गाली दी जाए, ये तो ठीक नहीं हैं.
कुछ दिन पहले ममता बनर्जी ने बंगाल में एक एपिक नंबर पर दो-दो, तीन-तीन वोटर कार्ड बनाए जाने का मुद्दा उठाया था. अपनी पार्टी के डेलीगेशन को दिल्ली भेजा था. उस वक्त भी चुनाव आयोग पर इल्जाम लगाए थे. चुनाव आयोग ने माना था कि कुछ मामलों में गड़बडियां हैं, जिन्हें सुधारा जाएगा.
चूंकि बिहार में चुनाव हैं, इसलिए एपिक नंबर का मिलान किया जा रहा है. वोटर लिस्ट को वैरीफाई किय़ा जा रहा है, तो इसमें गलत क्या है?
चूंकि चुनाव आयोग रोज-रोज सियासी सवालों के जबाव दे नहीं सकता इसीलिए विपक्ष के लिए चुनाव आयोग एक सॉफ्ट टारगेट है. राहुल गांधी लंबे समय से चुनाव आयोग को टारगेट कर रहे हैं, उसकी विश्वसनीयता पर हमला कर रहे हैं. आज तेजस्वी यादव भी उसी मुहिम में शामिल हो गए.
मुझे लगता है कि सियासी झगड़े में चुनाव आयोग को मोहरा बनाना एक संवैधानिक संस्था को कमजोर करने की कोशिश करना लोकतंत्र के लिए अच्छी परंपरा नहीं है.
उद्धव, राज ठाकरे क्यों साथ आये ?
महाराष्ट्र की प्राइमरी कक्षाओं में हिन्दी थोपे जाने का आरोप लगा कर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे 5 जुलाई को मुंबई में साझा रैली करेंगे. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि महाराष्ट्र के लोग हिन्दी विरोधी नहीं है लेकिन प्राइमरी कक्षाओं में हिन्दी पढाने का फैसला गलत है.
बीजेपी नेता आशीष शेलार ने कहा कि स्कूलों में हिंदी भाषा को कंपल्सरी नहीं किया गया है , वो ऑप्शनल है. इसलिए विरोध करना ठीक नहीं है.
मराठी भाषा का मुद्दा महाऱाष्ट्र के लिए भावनात्मक है. खासतौर पर मुंबई के लोग भाषा को लेकर touchy हैं. और BMC के चुनाव करीब है. इसीलिए उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे इस मुद्दे को हवा दे रहे हैं.
महाराष्ट्र सरकार के आदेश ने दोनों भाइयों को साथ आने का बहाना दे दिया. जहां तक कांग्रेस और शरद पवार के रुख का सवाल है तो उद्धव कई बार ये संकेत दे चुके हैं कि BMC के चुनाव में उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी. इसीलिए शरद पवार और कांग्रेस ने हिन्दी के खिलाफ आंदोलन में उद्धव को समर्थन तो किया है, लेकिन आंदोलन में साथ आने की वादा नहीं किया.
मैंने कल ही कह दिया था कि भले ही देवेन्द्र फणवीस ने हिन्दी को ऑप्शनल लैंग्वेज बनाया है, लेकिन उद्धव ठाकरे ने मराठी की अस्मिता का मुद्दा बना दिया है और BMC के चुनाव में बीजेपी को इसका नुकसान हो सकता है..