अंबाला एयरबेस पर पांच राफेल लड़ाकू विमानों के आगमन के साथ ही भारतीय वायुसेना को 20 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद वह उपलब्धि हासिल होनेवाली है जिसे उसने अपनी मारक क्षमता के लिए कभी ‘गेम चेंजर’ बताया था। यह विमान ऐसे समय में आ रहा है जब भारत ने लद्दाख सीमा पर चीन की आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए बहुआयामी रणनीति शुरू की है। राफेल विमानों को निर्धारित समय से पहले वायुसेना के बेड़े में शामिल करना इस बहुआयामी रणनीति का केवल एक आयाम है, इसके अलावा टेक्नोलॉजिकल फ्रंट और बिजनेस फ्रंट पर भी रणनीति अपनाई जा रही है।
भारत में दवाओं, मेडिकल इक्यूपमेंट्स (चिकित्सा उपकरण) और दवाओं के रॉ मेटेरियल का सबसे बड़ा सप्लायर चीन है और अगर वो यह सोच रहा है कि सप्लाई बंद कर देगा या कम कर देगा तो भारत का क्या होगा? दरअसल केंद्र सरकार ने चीन की कंपनियों को सरकारी टेंडर हासिल करने पर बैन लगा दिया है और इसी का बदला लेने के लिए चीन इस तरह की धमकी दे रहा है। लेकिन चीन की इस धमकी के जवाब में मोदी सरकार ने सोमवार को फार्मा और मेडिकल इक्यूपमेंट्स क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई योजनाओं की घोषणा की। लेकिन सबसे पहले बात करते हैं राफेल के बारे में।
राफेल जंगी जहाज 7000 किलोमीटर का सफर तय करते हुए हिंदुस्तान आ रहे हैं। सोमवार को इन विमानों ने फ्रांस के Bordeaux के पास Merignac एयरबेस से उ़डान भरी। इन विमानों को भारतीय वायुसेना के ट्रेंड फाइटर पायलट्स ही उड़ाकर हिंदुस्तान ला रहे हैं। सोमवार की रात अबु धाबी के अल दफरा एयरबेस पर स्टॉपेज के बाद ये विमान 29 जुलाई को अंबाला एयरबेस पर उतरेंगे। ये पांचों विमान यहां गोल्डन एरोज़ स्क्वॉड्रन का हिस्सा बनेंगे। वैसे तो फ्रांस में 10 राफेल पूरी तरह रेडी हैं,लेकिन अभी पांच विमान ही आ रहे हैं। जबकि बाकी विमानों पर इंडियन एयरफोर्स के पायलट्स को ट्रेनिंग दी जा रही है। यानी जरूरत पड़ने पर उन्हें भी हिंदुस्तान लाया जा सकता है। मोदी सरकार द्वारा चार साल पहले फ्रांस से कुल 36 राफेल जेट विमान खरीदे गए थे। पांच विमानों को डिलीवरी के बाद 2021 तक बाकी बचे सारे विमान भी आ जाएंगे।
राफेल एक Semi Stealth प्लेन (विमान) है। इसका मतलब यह है कि यह जंगी जहाज अगर दुश्मन की सीमा में दाख़िल हो गया, तो भी वो उसके Radar पर आसानी से नज़र नहीं आएगा। जबकि अगर दुश्मन का कोई विमान हमारी सीमा में आने की कोशिश करेगा तो राफेल में लगे रडार उसे 200 किलोमीटर दूर से ही पहचान लेंगे। खास बात ये है कि इसका रडार एक बार में 40 टारगेट को ट्रैक कर सकता है और उनमें से दुश्मन के 8 विमानों को एक साथ एंगेज कर सकता है, उनपर अटैक कर सकता है। जहां तक इंजन की बात है तो राफेल में M-88 इंजन लगे हैं, ये इंजन क़रीब 100 कारों के बराबर पावर पैदा करते हैं। राफेल एक बार में 9 हजार किलो से ज्यादा बम और मिसाइल लेकर उड़ सकता है। इसकी मैक्सिमम स्पीड 2200 किलोमीटर प्रति घंटा है।
दो दिन पहले ही राफेल को लेकर एक बड़ा डेवलपमेंट भी हुआ है। सरकार ने इस फाइटर प्लेन को और पावरफुल बनाने का फैसला किया। अब इसमें HAMMER मिसाइलें भी लगाई जाएंगी। HAMMER का पूरा नाम है- (Highly Agile Modular Munition Extended Range) हाइली एजाइल मॉड्यूलर म्यूनिशन एक्सटेंडेड रेंज मिसाइल। यह मीडियम रेंज का एयर टू ग्राउंड वेपन है। राफेल विमान में एक साथ 6 हैमर मिसाइल फिट की जा सकती है। हैमर से 60 से 70 किलोमीटर रेंज तक किसी भी तरह के टारगेट को तबाह किया जा सकता है। यह मिसाइल लद्दाख जैसे पहाड़ी इलाकों में भी मजबूत से मजबूत शेल्टर और बंकरों को तबाह कर सकती है। हैमर मिसाइल की लंबाई 3 मीटर है और इसका वजन 330 किलो है। यह मिसाइल GPS और इंफ्रारेड तकनीक से लैस है। यह अपने दुश्मन को ढूंढकर Accuracy के साथ पूरी तरह से ध्वस्त कर सकती है। दिन हो या रात, हर मौसम में दुश्मन पर अचूक निशाना लगानेवाली यह मिसाइल वर्टिकली भी टारगेट को एंगेज कर सकती है।
हैमर मिसाइल के साथ-साथ राफेल का एक और खतरनाक हथियार है स्टॉर्म शैडो क्रूज मिसाइल (Storm Shadow Cruise missile)। इस मिसाइल की रेंज 550 किलोमीटर है। यानी ब्रह्मोस Cruise missile से दोगुना रेंज। इस मिसाइल के जरिए पूरा पाकिस्तान, हिंदुस्तान की जद में होगा। इसके साथ वेस्टर्न तिब्बत में चीन के एयरबेस भी टारगेट पर आ जाएंगे। सबसे बड़ी बात तो ये है कि राफेल के हथियार ऐसे हैं, जिन्हें इस्तेमाल करने के लिए enemy line को क्रॉस करने की जरूरत नहीं है। यानी बिना दुश्मन के इलाके में गए हुए टारगेट को हिट किया जा सकता है।
स्टॉर्म शैडो के अलावा राफेल मीटियोर (Meteor) मिसाइल से भी लैस रहेगा। ये मिसाइल दुनिया की सबसे ख़तरनाक Beyond Visual Range missile मानी जाती है। मीटियोर एयर टू एयर मिसाइल है, यानी हवा में ही टारगेट का खात्मा कर सकती है। इस मिसाइल की रेंज 150 किलोमीटर है। इसका मतलब ये है कि पाकिस्तान के फाइटर प्लेंस अपने एयरबेस से टेक ऑफ करते ही राफेल की जद में आ जाएंगे। इतना ही नहीं जरूरत पड़ने परअपनी सीमा में रहते हुए चीन के शिनजियांग प्रोविंस पर भी निशाना लगाया जा सकता है क्योंकि राफेल फाइटर जेट में स्काल्प (SCALP) मिसाइल भी लोड होगी। इस मिसाइल की रेंज 300 किलोमीटर है।
ऐसे समय में जब मिग, सुखोई और मिराज लद्दाख सीमा पर आसमान में गश्त कर रहे हैं और चीनी सैनिकों की हरकतों पर नजर रख रहे हैं, राफेल विमानों के आने से निश्चित रूप से भारतीय वायु सेना का मनोबल बढ़ेगा। हमारी एयर पावर में जबरदस्त इजाफा होगा। हालांकि, कुछ ऑफिशियल सोर्सेज का कहना है कि राफेल विमानों को पूरी तरह से ऑपरेशनल करने में कम से कम दो महीने का समय लगेगा।
टेक्नोलॉजिकल फ्रंट की बात करें तो भारत ने सोमवार को 59 चाइनीज ऐप्स के 47 क्लोन्स को बैन कर दिया। दरअसल चीन लगातार चालाकी दिखा रहा है और भारत उसकी चतुराई को फेल कर रहा है। मोदी सरकार ने टिकटॉक, हैलो और कैम स्कैनर जैसे 59 ऐप्स पर पाबंदी लगा दी थी। इन ऐप्स को भारत में बैन कर दिया था। चीन ने बहुत शोर मचाया लेकिन जब कुछ नहीं हुआ तो चीन ने चालाकी दिखाई। जिन ऐप्स को भारत सरकार ने बैन किया था उनके क्लोन्स को मार्केट में उतार दिया। जैसे टिकटॉक की जगह…टिकटॉक लाइट ….हेलो की जगह हेलो लाइट एप्लिकेशंस को लॉन्च कर दिया। लेकिन भारत सरकार ने फिर डिजिटल स्ट्राइक कर दी। जितने ऐप्स के क्लोन या कॉपी ऐप मार्केट में आए थे उन सभी 47 ऐप्स की पहचान करके क्लोन एप्लिकेशंस को बैन कर दिया। यानी अब ये ऐप्स भी डाउनलोड नहीं की जा सकेंगी ना ही अपडेट हो पाएंगी। जिन एप्लिकेशंस पर प्रतिबंध लगाया गया है उनमें टिकटॉक और हेलो के क्लोन के अलावा….शेयरइट…बीगो और VFY का क्लोन भी शामिल है। इनके नाम शेयरइट लाइट…बीगो लाइट ..और वीएफवाई लाइट हैं। सरकार का कहना है कि ये ऐप्स भी नियमों और डेटा प्रोटोकॉल का वॉयलेशन कर रहे थे। इनपर गोपनीयता कानून का उल्लंघन और डेटा चोरी का आरोप लग रहा था। इसीलिए सिक्योरिटी प्वाइंट ऑफ व्यू से Ministry of Electronics and Information Technology ने इनपर बैन लग दिया है। मोदी सरकार ने इन 47 ऐप्स को मिलाकर अब तक 106 चाइनीज एप्लिकेशंस को बैन कर दिया है। भारत सरकार अब ऐप्स को रैगुलेट करने के लिए डिटेल कानून बना रही है। इस कानून के तहत देश के लोगों की पर्सनल डिटेल्स और दूसरी जरूरी जानकारी के अलावा देश के बारे में जानकारी और सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। इसके अलावा जो विदेशी ऐप्स होंगे उनको डेटा देश से बाहर ले जाने से रोका जाएगा। चूंकि कानून बनने में तो वक्त लगेगा, इसलिए सरकार ने फिलहाल दूसरे प्रोविजन्स का इस्तेमाल करके चाइनीज ऐप्स पर पांबदी लगा दी है।
फार्मास्यूटिकल फ्रंट पर सोमवार को कई बड़े फैसले लिए गए। चीन की तरफ से बल्क ड्रग्स (दवा के कच्चे माल) फॉर्मूलेशन के निर्यात को रोकने के खतरे का मुकाबला करने के लिए आत्मनिर्भरता स्कीम की शुरुआत हुई। मोदी सरकार ने देश में ही बल्क ड्रग्स और दवा के दूसरे मैटिरियल को बनाने के लिए चार योजनाओं की शुरुआत का ऐलान किया है। इसके तहत अब देश में ही दवा का कच्चा माल तैयार करने के लिए मेडिकल डिवाइस पार्क और बल्क ड्रग पार्क बनाए जाएंगे। जो नई यूनिट तैयार होंगी उनके लिए सरकार की तरफ से प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव दिया जाएगा। इसमें 53 क्रिटिकल बल्क ड्रग्स यानी दवा के कच्चे माल को तैयार करने लिए 6 साल तक सरकार आर्थिक मदद भी करेगी। इसके लिए सरकार की तरफ से 6940 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं। इसके अलावा 3 बल्क ड्रग्स पार्क बनाने के लिए अलग से 3000 करोड़ का फंड रिलीज किया गया है। दवाओं की डोमेस्टिक मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए भी सरकार ने 3420 करोड़ रुपए निर्धारित किए हैं। इसमें भी पांच साल का इंसेंटिव दिया जाएगा। इसके साथ-साथ 4 मेडिकल पार्क बनाए जाएंगे। जिन 4 राज्यों में ये बनेंगे उन्हें केंद्र सरकार की तरफ से 100-100 करोड़ रुपए की फंडिंग की जाएगी। कुल मिलाकर सरकार 14 हजार करोड़ का इंवेस्टमेंट करेगी। इसके अलावा अलग से 78 हजार करोड़ के इंवेस्टमेंट की उम्मीद कर रही है। इसके जरिए 2.5 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलने की भी बात कही गई है।
इस बीच, गृह मंत्रालय चीनी कंपनियों की ओर से मिले करीब 200 निवेश प्रस्तावों की बारीकी से जांच कर रहा है। इन कंपनियों ने सिक्योरिटी क्लियरेंस मांगी है। इस साल अप्रैल में लागू हुए नए नियमों के तहत भारत के साथ जिस देश की भी जमीनी सीमा लगती है उसे निवेश (FDI) से पहले भारत सरकार की मंजूरी लेना अनिवार्य है।
एक बात साफ है कि नरेन्द्र मोदी ने बड़ी चतुराई से चीन को तीन तीन मोर्चों- डिफेंस, टेक्नोलॉजी और बिजनेस पर घेरा हुआ है। चीन को बॉर्डर पर अतिक्रमण और भारतीय जवानों पर धोखे से हमला करने का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। दूसरी तरफ दुनिया के बड़े-बड़े मुल्क इस वक्त भारत के साथ खड़े हैं। अब सवाल ये है कि जब पूरी दुनिया चीन के खिलाफ है तो भी चीन के तेवर हमलावर क्यों है?
दक्षिण चीन सागर में कई दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ चीन का टकराव है। इस इलाके के जल क्षेत्र पर अपना दावा करने के लिए चीन कृत्रिम रूप से समुद्र में द्वीपों का निर्माण कर रहा है। चीन दुनिया के बड़े-बड़े देशों की अपील के बावजूद हांगकांग में लोकतंत्र को कुचल रहा है, और इतना ही नहीं उसने लद्दाख सीमा पर अतिक्रमण कर भारत के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है।
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गतिरोध के मुद्दे पर दुनिया के बड़े-बड़े मुल्क इस वक्त भारत के साथ खड़े हैं। असल में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और वहां की फौज पर अब पूरी तरह से शी जिंनपिंग का आधिपत्य है…डोमिनेशन है। कोर लीडर के तौर पर विदेश नीति भी अब शी जिंगपिंग की नीति है।आईलैंड बनाना, साउथ चाइना सी में ताकत दिखाना, हॉंगकॉंग में टकराव भारत की सीमा पर दो-दो हाथ, ये सब शी जिनपिंग की इस नई पॉलिसी का नतीजा है ताकि शी जिंगपिंग अपने देश में अपनी ताकत बनी रहे।
चीन मानता है कि वो एक वर्ल्ड पावर है, बहुत बड़ी शक्ति है और समय-समय पर दुनिया को इसका एहसास कराने के लिए टकराना पड़ता है लेकिन शी जिंगपिंग को शायद इस बात का एहसास नहीं कि अब वर्ल्ड ऑर्डर बदल चुका है। अब अमेरिका खुलकर चीन के सामने खड़ा है। ह्यूस्टन में चीन के हाईकमीशन को बंद करना कोई छोटा फैसला नहीं है। ये मानकर कि कोरोना वायरस चीन ने फैलाया… ब्रिटेन, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी अब खुलकर चीन के खिलाफ बोल रहे हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि नरेन्द्र मोदी इस समय दुनिया के फ्रंटलाइन लीडर्स में शरीक हैं। जब चाइना ने भारत से टकराने का प्लान बनाया था तो उसे न तो नरेन्द्र मोदी की मजबूती का एहसास था और न भारत की फौज की ताकत का अंदाजा। अब जब दोनों बातें पता चल गई तो चीन इस टकराव से पीछे हटने का ऐसा रास्ता ढूंढ रहा है कि इज्जत भी बनी रहे और मुसीबत से छुटकारा भी मिले। (रजत शर्मा)