आजाद भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि पूरा का पूरा मंत्रिमंडल ही बदल दिया गया और नई कैबिनेट में ज्यादातर नए चेहरों को जगह मिली। यह अनोखा प्रयोग मंगलवार को गुजरात में हुआ। बीजेपी ने रूपाणी कैबिनेट के सभी 22 मंत्रियों को हटा दिया और उनकी जगह 24 नए मंत्रियों ने शपथ ली। इनमें अधिकांश नए चेहरे ऐसे थे जो पहली बार विधायक बने हैं।
जिन मंत्रियों को हटाया गया उनमें कई पुराने कार्यकर्ता और बीजेपी के बड़े-बड़े प्रभावशाली नेता हैं। उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल, प्रदीप सिंह जडेजा, सौरव पटेल, भूपेन्द्र सिंह चुडास्मा, कौशिक पटेल, दिलीप ठाकोर, जयेश रादडिया, आरसी फालदू जैसे तमाम दिग्गज नेताओं का पत्ता कट गया। इन राजनीतिक हस्तियों का न केवल अपने निर्वाचन क्षेत्र में बल्कि पूरे इलाके में जबरदस्त प्रभाव है। इनमें से कई नेताओं का नाम तो रविवार को उस वक्त तक मुख्यमंत्री पद के लिए लिया जा रहा था जब अचानक भूपेंद्र पटेल को विधायक दल का नेता चुन लिया गया।
ऐसे राजनीतिक दिग्गजों को कैबिनेट से हटाना, उन्हें समझाना, मनाना और पद छोड़ने के लिए राजी करना कोई आसान काम नहीं था। इनमें से हर नेता ने अपनी पूरी उम्र सियासत में निकाल दी। इनके पास गुजरात में दो दशकों से ज्यादा भाजपा के शासन का अनुभव था। ऐसे में अनुभवी और असरदार नेताओं को हटाकर पूरे मंत्रिमंडल का चेहरा बदल देना, ये बहुत बड़ा प्रयोग है। मुख्यमंत्री समेत सारे मंत्रिमंडल को एक साथ बदलने का काम पहली बार हुआ है, इसलिए राजनीति के पंडित हैरान हैं। इतने ताकतवर नेताओं को हटाकर जिन्हें मंत्री बनाया गया उनमें मुख्यमंत्री समेत करीब एक दर्जन विधायक ऐसे हैं जिन्हें सरकार चलाने का कोई अनुभव नहीं है।
गांधीनगर में जब गुजरात के राज्यपाल ने नए मंत्रियों को शपथ दिलाई तो समारोह में मौजूद, नए मंत्री, पूर्व मंत्री समेत सभी लोग हैरत में थे। पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल तो सबसे पहले राजभवन पहुंचने वाले लोगों में शामिल थे। राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने 10 कैबिनेट और 14 राज्यमंत्रियों को शपथ दिलाई। 14 राज्य मंत्रियों में 5 के पास स्वतंत्र प्रभार रहेगा। जिन विधायकों को मंत्री बनाया गया है उनमें से सिर्फ 3 राजेंद्र त्रिवेदी, राघो जी पटेल और किरीट सिंह राणा ऐसे हैं जो इससे पहले मंत्री रह चुके हैं। बाकी के 21 विधायक पहली बार मंत्री बने हैं। राजेंद्र त्रिवेदी को मंत्री पद की शपथ लेने के लिए मंगलवार को स्पीकर के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। वहीं जीतू वघानी भी पहली बार मंत्री बने हैं। वे इससे पहले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं।
भूपेंद्र पटेल के मंत्रिमंडल में पटेल समाज को सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व मिला है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल खुद पाटीदार समाज से आते हैं और उनकी कैबिनेट में पाटीदार यानी पटेल समुदाय के 8 मंत्री बनाए गए हैं। ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) कैटेगरी में आने वाले कोली, ठाकोर और क्षत्रिय समाज से 8 मंत्रियों को जगह दी गई है। अनुसूचित जाति और ब्राह्मण समाज से 2-2 मंत्री बनाए गए हैं। एक मंत्री जैन समुदाय का भी बनाया गया है। अगर क्षेत्र के हिसाब से देखें तो सौराष्ट्र, दक्षिण गुजरात और मध्य गुजरात से सात-सात नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है जबकि उत्तर गुजरात से 3 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई है।
आमतौर पर मंत्रिमंडल में जातिगत समीकरण और क्षेत्रीय संतुलन देखे जाते हैं। यह दशकों से चला आ रहा परंपरागत तरीका है। लेकिन इस परंपरा को गुजरात कैबिनेट गठन में तोड़ दिया गया। बीजेपी में सिर्फ 2 अहीर विधायक हैं और दोनों रूपाणी कैबिनेट में मंत्री थे। लेकिन पूरी कैबिनेट को बदलने के चलते इन दोनों का भी मंत्री पद चला गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शपथ ग्रहण के बाद नए मंत्रियों को ट्वीट करके बधाई दी। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट में लिखा-‘गुजरात सरकार में मंत्री पद की शपथ लेनेवाले पार्टी के सभी साथियों को बधाई। ये वे उत्कृष्ट कार्यकर्ता हैं जिन्होंने सार्वजनिक सेवा और पार्टी के विकास के एजेंडे को बढ़ाने में अपना जीवन समर्पित किया है। उन्हें आनेवाले कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं।’
अपने करियर में मैंने बहुत से मंत्रिमंडल बनते और मुख्यमंत्री बदलते देखे, लेकिन ये पहली बार देखा कि मुख्यमंत्री के साथ-साथ सारे मंत्रियों को बदल दिया गया। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। असल में ऐसा फैसला करने के लिए बहुत हिम्मत और मजबूत इरादा चाहिए। ऐसे फैसले को लागू करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और राजनीतिक साहस की जरूरत होती है, और ये काम सिर्फ नरेंद्र मोदी जैसा लीडर ही कर सकता है।
मंत्रिमंडल बनाने में सौ तरह के झंझट होते हैं। तमाम तरह के गुणा-भाग और अन्य समीकरणों को ध्यान में रखना पड़ता है। कौन पार्टी का कितना पुराना लीडर है। कहीं कोई मंत्री ना बनाए जाने से नाराज होकर पार्टी छोड़ तो नहीं जाएगा? किसके साथ कितने विधायक हैं। कहीं कोई कैबिनेट में शामिल नहीं किए जाने से नाराज होने के बाद चुनाव में नुकसान तो नहीं पहुंचाएगा? कौन सा नेता किस जाति का है और किस जाति का कितना प्रभाव है। जिस नेता को ड्रॉप किया जा रहा है वो किस इलाके से आता है। उस इलाके में उस नेता का असर कैसा है? पार्टी का उस नेता के इलाके में सपोर्ट बेस क्या है। अगर ज्यादा है तो कम होने का डर और अगर कम है तो न बढ़ने का खतरा, बहुत सारी बातें देखनी पड़ती हैं। लेकिन नरेंद्र मोदी ने ऐसी किसी बात की परवाह नहीं की।
नरेंद्र मोदी 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और 7 साल से देश के प्रधानममंत्री हैं। गुजरात की राजनीति में वो सबको जानते हैं। वह गुजरात के हर नेता और प्रमुख पार्टी कार्यकर्ता को जानते हैं। जिन 22 मंत्रियों को हटाया गया है उनमें से कई मोदी के करीबी रहे हैं। कितनों ने मोदी के साथ काम किया है और वो मोदी के खासम-खास माने जाते थे।
लेकिन अपने करीबियों को भी मंत्री पद से हटाने के लिए जो साहस चाहिए वो हर किसी में नहीं होता। मोदी में वह साहस है। मोदी ने कभी ऐसी बातों की परवाह नहीं की कि कौन करीब है और कौन दूर है। जहां तक सरकार चलाने के लिए अनुभव की बात है तो जब 2001 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे तो खुद उन्हें भी सरकार चलाने का कोई अनुभव नहीं था। जब उन्हें सीएम बनाया गया तो उससे पहले वे विधायक तो छोड़िए, कभी कॉरपोरेटर, पार्षद या सांसद भी नहीं रहे थे। उस समय उन्हें व्यावहारिक तौर पर कोई ऐसी जानकारी नहीं थी कि नौकरशाही कैसे काम करती है।
नरेंद्र मोदी सीधे मुख्यमंत्री बने और वह भी केशुभाई पटेल जैसे अनुभवी और कद्दावर नेता को हटाकर उन्हें सीएम की कुर्सी सौंपी गई। इसके बाद नरेंद्र मोदी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने अपनी पार्टी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। लेकिन ये कहते वक्त यह भी ध्यान रखना पड़ेगा कि हर कोई मोदी नहीं होता, न हो सकता है। हर किसी में मोदी जैसी हिम्मत, मोदी जैसा विजन नहीं होता। नरेंद्र मोदी ने पूरी कैबिनेट को बदलकर देश की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ा है। उन्होंने एक नए इतिहास की इबारत लिखी है। इसका देश की राजनीति पर दूरगामी असर होगा।