जिस तरह से कोलकाता की मासूम बेटी के साथ बर्बरता से पूरा देश हिल गया, उसी दर्द की गूंज सुप्रीम कोर्ट में भी सुनाई दी. सुप्रीम कोर्ट ने भी ममता सरकार से वही सवाल पूछे जो आम जनता के मन में हैं. कोर्ट ने भी जघन्य अपराध को लेकर वही संवेदना दिखाई जो लोगों में हैं. कोर्ट की टिप्पणियों में पुलिस की लापरवाही को लेकर वही गुस्सा झलका, जो प्रोटेस्ट करने वाले डॉक्टर्स की जुबान पर हैं. सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्देश दिए, उससे लोगों का भरोसा बढ़ेगा. लोगों को लगेगा कि जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले को सुन रहा है, CBI से रिपोर्ट मांग रहा है, तो फिर इंसाफ तो मिलेगा. अब ममता बनर्जी के ऊपर भी दबाव है. वो दबाव अब दिखाई भी दे रहा है. कोलकाता पुलिस अब तक जिस संदीप घोष का नाम तक लेने में कतरा रही थी, अब पुलिस उसी पूर्व प्रिंसिपल के खिलाफ एक के बाद एक केस दर्ज कर रही है. ये सुप्रीम कोर्ट के सख्त रूख के असर का पहला सबूत है. और अब CBI जिस तेजी से इस घिनौने और भयानक अपराध में शामिल लोगों की एक-एक कड़ी जोड़ रही है, उससे लगता है कि हकीकत जल्दी ही सामने आएगी. हालांकि CBI के पास अब सिर्फ 36 घंटे का वक्त है. सुप्रीम कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट सौंपनी है. इतने कम वक्त में CBI पूरी हकीकत पता लगा लेगी, ये उम्मीद तो नहीं करनी चाहिए लेकिन 22 अगस्त को तृणमूल कांग्रेस के उन नेताओं को जवाब जरूर मिल जाएगा जो बार बार पूछ रहे थे कि अब CBI बताए कि उसने पांच दिन की जांच में क्या किया? क्या पता लगाया? कोलकाता पुलिस की जांच में कौन सी खामियां देखीं? हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि बंगाल के केस को एक अलग केस की तरह नहीं देखना चाहिए. इस केस से ये उजागर हो गया कि हमारे डॉक्टर्स किन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं, हमारी व्यवस्था में कितनी गड़बडियां हैं? इसलिए इस केस से सबक लेकर उन सारी गड़बडियों को दूर करने की कोशिश होनी चाहिए. ये बात सही है कि अगर डॉक्टर्स आवाज न उठाते, सड़कों पर प्रोटेस्ट न करते, तो कोर्ट और सरकार का ध्यान कभी इस बात पर नहीं जाता कि डॉक्टर्स किस तरह के हालात में काम करते हैं. ज्यादातर अस्पतालों में proper rest rooms नहीं हैं. कहीं bed नहीं हैं तो कहीं पर्दे नहीं हैं. लड़कियों को भी ऐसे ही हालात में रहना और सोना पड़ता है. पुरुष और महिला डॉक्टर्स के अलग अलग टॉयलेट नहीं हैं. कहीं गंदगी है तो कहीं भयानक गर्मी होती है. सुरक्षा की दष्टि से देखें तो CCTV कैमरे नहीं हैं. हालांकि सारे अस्पताल ऐसे नहीं हैं पर ज्यादातर सरकारी अस्पतालों का यही हाल है. उम्मीद तो है कि सुप्रीम कोर्ट ने जो टास्क फोर्स बनाई है वो इन सब बातों पर ध्यान देगी और डॉक्टर्स की सुविधा और सुरक्षा को लेकर कुछ व्यावहारिक सुझाव देगी. इस पूरे प्रोटेस्ट का एक और पहलू है. वो है इलाज के अभाव में तड़पते मरीज़. डॉक्टर्स की हड़ताल की वजह से अस्पतालों में बुरा हाल है. पिछले दो दिन में मेरी जानकारी में ऐसे कई केस आए हैं, जहां मरीज को ICU में एडमिट करने की जरूरत है लेकिन ICU में डॉक्टर्स नहीं हैं, इसीलिए उन्हें भर्ती नहीं किया जा रहा. emergency face करने वाले मरीजों की तो तादाद बहुत ज्यादा है. इसीलिए डॉक्टर्स को सुप्रीम कोर्ट की अपील मान लेनी चाहिए, अपना प्रोटेस्ट खत्म करके अस्पतालों में लौटना चाहिए. देश भर में लाखों मरीज इलाज के अभाव में तड़प रहे हैं. उनका ध्यान रखना, उनका इलाज करना हमारे डॉक्टरों की जिम्मेदारी भी है और फर्ज़ भी.