देश के कई शहरों में शुक्रवार को मुसलमानों ने विरोध प्रदर्शन किया जिससे ‘हिजाब’ विवाद ने और जोर पकड़ लिया है। वहीं इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह उचित समय पर सभी याचिकाओं पर विचार करेगा।
चीफ जस्टिस एन. वी. रमन्ना ने कहा, ‘हम देख रहे हैं कि क्या हो रहा है। आपको भी यह सोचना चाहिए कि क्या इसे राष्ट्रीय स्तर पर लाना उचित है। हम संवैधानिक तौर पर बाध्य हैं और अगर मौलिक या संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होता है तो केवल एक नहीं बल्कि हर समुदाय के अधिकारों की हम रक्षा करेंगे। हम उचित समय पर इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे।’
चीफ जस्टिस ने कहा- अभी मैं केस की मेरिट पर कुछ नहीं कहना चाहता। इन चीजों को व्यापक स्तर पर न फैलाएं।… इसे सांप्रदायिक या राजनीतिक न बनाएं, पहले संवैधानिक सवालों पर हाईकोर्ट को फैसला करने दें।
चीफ जस्टिस एन. वी. रमन्ना, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कर्नाटक हाईकोर्ट के अंतरिम आदेश को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में उन शिक्षण संस्थानों में धर्मिक कपड़े पहनने पर रोक लगा दी है जिनमें यूनिफॉर्म पहले से निर्धारित है। याचिकाओं पर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल बहस कर रहे थे। हिजाब विवाद पर ये याचिकाएं दो मुस्लिम छात्राओं, आयशात शिफा और तरीन बेगम और यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बी.वी. श्रीनिवास की ओर से दाखिल की गई थी। इन याचिकाओं में मुसलमानों के ‘धार्मिक अधिकार’ को लागू करने की मांग की गई थी। कर्नाटक हाईकोर्ट में इस मामले पर अगली सुनवाई सोमवार को होगी।
इस बीच शुक्रवार को सूरत, मालेगांव, अलीगढ़, अमरावती और लातूर जैसे शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए जबकि मुंबई, हैदराबाद, दिल्ली, भोपाल और लुधियाना की कई मस्जिदों में इमामों ने इस मुद्दे पर अपनी बात रखी और मुस्लिम छात्राओं के ‘हिजाब’ पहनने के अधिकार का बचाव किया।
उधर, महाराष्ट्र के मालेगांव में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने शुक्रवार को मुस्लिम महिलाओं की एक बड़ी मीटिंग बुलाई। इस मीटिंग में बुर्का पहनी हजारों महिलाएं शामिल हुई और उन्हें यह बताया गया कि हिजाब या बुर्का पहनना उनका धार्मिक अधिकार और कर्तव्य है। इस मीटिंग में वक्ताओं ने कहा, यह पैगंबर का आदेश था कि सभी मुस्लिम महिलाओं को बुर्का या हिजाब पहनना चाहिए और धरती का कोई कानून इसे रोक नहीं सकता। जमीयत ने शुक्रवार को ‘हिजाब दिवस’ मनाने का ऐलान किया था जिसके चलते नासिक और मालेगांव में सुरक्षा बढ़ा दी गई थी।
मालेगांव की मीटिंग को एआईएमआईएम के विधायक मुफ्ती इस्माइल ने भी संबोधित किया। वहीं शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी मालेगांव में विरोध प्रदर्शन किया। एआईएमआईएम ने अमरावती में जिला कलेक्ट्रेट के बाहर धरना दिया। यह धरना मुस्लिम महिलाओं द्वारा दिया। महाराष्ट्र में लातूर के पास उदगीर में जमीयत के बैनर तले हिजाब को लेकर मुस्लिम महिलाओं द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया। एआईएमआईएम के बैनर तले गुजरात के सूरत में महिलाओं ने मौन मार्च निकाला। वहीं मुंबई के भिंडी बाजार स्थित हांडीवाली मस्जिद में शुक्रवार की नमाज में शामिल होने पहुंचे लोगों ने विरोध के तौर पर काली पट्टी बांध रखी थी।
अब जरा एक नजर इस बात पर डालते हैं कि हिजाब को लेकर प्रगतिशील मुस्लिम बुद्धिजीवी क्या सोचते हैं। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने शुक्रवार को इंडिया टीवी को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि ‘अगर समाज द्वारा हिजाब को एक अनिवार्य प्रथा के तौर पर स्वीकार किया जाता है तो मुस्लिम महिलाओं के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अंत में कुल मिलाकर देश पर बुरा असर पड़ेगा, क्योंकि ऐसी स्थिति में हमरा देश मुस्लिम महिलाओं द्वारा किए जा रहे अच्छे कामों से वंचित रह जाएगा।’
आरिफ मोहम्मद खान ने कहा, ‘अगर ‘हिजाब’ को सामाजिक मान्यता के रूप में स्वीकार किया जाता है, तो हम पुराने दिनों में वापस आ जाएंगे जब महिलाओं की भूमिका उनके घरों तक ही सीमित थी, ‘चिराग-ए-खाना (घर के अंदर दीपक) , या ‘शम-ए-महफिल’ (महफिल में मनोरंजन करने वाली) जैसी भूमिका रह जाएगी। उन आधुनिक मुस्लिम महिलाओं का क्या होगा जो एक दिन में 20 मरीजों की देखभाल करती हैं? क्या आप उन्हें ‘चिराग-ए-खाना’ कहेंगे? वह समाज के लिए एक ‘चिराग’ (रोशनी) है। क्या आप उन महिलाओं को ‘शम-ए-महफिल’ कहेंगे जो आज लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं और देश के लिए अपनी जान देने को तैयार हैं?’
शुक्रवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया कि कैसे एक चरमपंथी मुस्लिम संगठन ने कुछ मुस्लिम छात्राओं का ब्रेनवॉश किया और उनके जरिए ‘हिजाब’ का मुद्दा उठाया। दरअसल, इन लड़कियों ने इससे पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के एक विरोध मार्च में हिस्सा लिया था। जिसके बाद इस्लामी चरमपंथियों ने उन्हें एबीवीपी को छोड़कर मुस्लिम छात्रों के संगठन में शामिल होने के लिए कहा था। काफी सूझबूझ से योजना बनाने के बाद इसे अंजाम दिया गया। उडुपी के महिला कॉलेज की जो 6 लड़कियां हिजाब पहनकर आने की जिद पर अड़ गई थीं वे सभी मुस्लिम छात्र संगठन कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) की सक्रिय सदस्य हैं।
इन लड़कियों की पूरी क्रोनोलॉजी काफी रोचक है। दरअसल पूरा विवाद चार महीने पहले अक्टूबर माह से शुरू हुआ था। पिछले साल 29 अक्टूबर को उडुपी के मणिपाल में एबीवीपी के एक विरोध प्रदर्शन में हिजाब विवाद से जुड़ी 6 लड़कियां शामिल हुई थी। यह विरोध-प्रदर्शन एबीवीपी ने रेप की घटना के विरोध में किया था। उस वक्त की कुछ तस्वीरें और वीडियो भी सामने आए जिनमें हिजाब पहनी तीन लड़कियां दिख रही हैं। हमारे संवाददाता टी. राघवन की रिपोर्ट के मुताबिक, इन मुसलिम लड़कियों की तस्वीरें सामने आने के बाद कट्टरपंथी संगठन पॉपुलर फ्रन्ट ऑफ इंडिया (PFI) और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) के लोग एक्टिव हो गए। इन लोगों ने एबीवीपी के प्रदर्शन में शामिल इन लड़कियों और उनके माता-पिता से मुलाकात की और उन्हें एबीवीपी से अलग होने के लिए कहा। इन लड़कियों को समझाया गया कि इस्लाम में महिलाओं को ऐसे प्रदर्शन में हिस्सा लेने की इजाज़त नहीं है और अगर लड़कियां सक्रियता दिखानी चाहती हैं तो फिर इस्लाम की हिफाज़त के लिए आगे आएं।
7 नवम्बर को इन 6 लड़कियों को पीएफआई के समर्थन वाले स्टूडेंट विंग कैम्पस फ्रन्ट ऑफ इंडिया (सीएफआई) में शामिल कर लिया गया। पहले इन लड़कियों का कोई सोशल मीडिया अकाउंट नहीं था। नवंबर के पहले हफ्ते में इन लड़कियों ने ट्विटर पर अपना अकाउंट बनाया और फिर जिन मुद्दों को लेकर सीएफआई लड़ता है, उसी के हिसाब से ट्वीट करना शुरू कर दिया।
सोशल मीडिया एक्टिविस्ट विजय पटेल ने इन लड़कियों की ट्विटर पर होनेवाली गतिविधियों की पूरी पड़ताल की। विजय पटेल का कहना है कि सीएफआई में शामिल होने के बाद ही लड़कियों का झुकाव कट्टरपंथ की तरफ हुआ। ये लड़कियां सोशल मीडिया के जरिए सीएफआई का एजेंडा फैलाने लगीं। दिसंबर के पहले हफ्ते में अचानक देखा गया कि ये 6 लड़कियां क्लास रूम के अंदर भी हिजाब पहनकर आने लगीं। कॉलेज टीचर्स ने जब आपत्ति जताई तो इन लड़कियों ने उडुपी के डिप्टी कमिश्नर को ज्ञापन दे दिया और कॉलेज में हिजाब पहनने की इजाजत देने की मांग की।
शुरुआत में डिप्टी कमिश्नर ने मामले की जांच की बात कहते हुए कुछ दिनों तक इन लड़कियों को हिज़ाब पहनकर बैठने की अनुमति दी लेकिन इसी दौरान कॉलेज में पढ़नेवाले हिंदू लड़के इसके विरोध में खड़े हो गए। चेतावनी दी गई कि अगर उडुपी महिला कॉलेज में लड़कियों को हिजाब पहनकर क्लास रूम में बैठने की अनुमति दी गयी तो वे भी भगवा गमछा पहनकर कॉलेज आएंगे। यहीं से पूरा विवाद आगे बढ़ने लगा। हिंदू लड़के भी भगवा गमछा पहनकर कॉलेज आने लगे। 27 दिसंबर से इन मुस्लिम लड़कियों ने ‘हिजाब’ पहनकर कैंपस के बाहर ‘धरना’ देना शुरू कर दिया। सीएफआई के लोगों ने इन लड़कियों की पूरी मदद की। जल्द ही यह विवाद उडुपी के अन्य कॉलेजों में भी फैल गया। हिज़ाब बनाम भगवा प्रदर्शन की शुरुआत हो गई। धीरे-धीरे एक सोची समझी प्लांनिग के तहत इसे पूरे राज्य में फैलाकर एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना दिया गया। अब हालात यह है कि कर्नाटक में कॉलेज 15 फरवरी तक बंद कर दिए गए हैं वहीं सुरक्षाबलों ने शुक्रवार को उडुपी में फ्लैग मार्च किया।
यहां इस बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है कि हिजाब पहनकर स्कूल-कॉलेज जाने के लिए उकसाने वाले कौन हैं ? हिजाब पर एक कॉलेज में लगी रोक को मुसलमानों पर जुल्म करार देने वाले कौन हैं ? हिजाब को कुरान की हिदायत बताकर, एक स्कूल-कॉलेज के मसले को इस्लाम पर हमला बताने वाले लोग कौन हैं? स्टूडेंट्स को हिजाब के नाम पर खड़ा करने वाले कौन हैं? वे कौन लोग हैं जो ‘हिजाब’ मुद्दे पर मुसलमानों को लामबंद करने की कोशिश कर रहे हैं?
35 साल से उडुपी के इस कॉलेज में कोई लड़की हिजाब पहनकर नहीं आती थी लेकिन एक दिन ये लड़कियां एक वकील के साथ आईं और इतना बड़ा विवाद खड़ा हो गया। लड़कियों के साथ जो वकील आया वह सीएफआई से जुड़ा था। सीएफआई चरमपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का स्टूडेंट विंग है।
पीएफआई वही जेहादी संगठन है जिसके सदस्यों ने केरल में वर्ष 2010 में ईशनिंदा के आरोप में एक प्रोफेसर टीजे जोसेफ के हाथ काटे थे। प्रोफेसर टीजे जोसेफ न्यूमैन कॉलेज, थोडुपुझा में एक क्रिश्चियन अल्पसंख्यक संस्थान में मलयालम पढ़ाते थे। यह संस्थान महात्मा गांधी विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त है। प्रोफेसर जोसेफ ने एक प्रश्न पत्र सेट किया था जिसमें कथित तौर पर उन्होंने पैगंबर का अपमान किया था।
क्या यह सिर्फ संयोग है कि हिजाब प्रोटेस्ट के पीछे PFI है? या फिर यह एक प्रयोग है जो PFI दोहराना चाहती है। एक ऐसा प्रयोग जिसके तहत हिजाब के नाम पर देशभर में आंदोलन खड़ा करने का रास्ता कुछ लोगों को दिखाई देता है। हिजाब पर स्कूल-कॉलेजों में लगी रोक को मुसलमानों पर जुल्म करार देने का इरादा एक सोची समझी साजिश है जिसका देश के आम मुसलमान से कोई लेना-देना नहीं है। आपको याद होगा कि पीएफआई का नाम शाहीन बाग को लेकर भी काफी आया था। ये वही लोग हैं जिन्होंने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर धरने का आयोजन किया था। और अब हिजाब को बहाना बनाया जा रहा है।
चूंकि यह सवाल ऐसे वक्त में उठाया गया है जब यूपी में चुनाव हैं तो राजनीतिक दलों में इस बात की भी होड़ शुरू हो गई है कि कौन मुसलमानों का कितना बड़ा हिमायती है। भड़काने वाले बयान दिए जा रहे हैं। समाजवादी पार्टी की एक नेता ने कहा कि हिजाब पर हाथ डालने वालों के हाथ काट देने चाहिए। पिछले कुछ दिनों में तरह-तरह के व्हाट्सअप मैसेज सर्कुलेट हुए। पैटर्न वही पुराना है लेकिन लगता है कि इस बार लोग समझ चुके हैं, इसलिए बात ज्यादा नहीं बढ़ी। लेकिन इस पूरे मामले में पाकिस्तान को भारत को बदनाम करने का मौका मिला और उसने भारत की छवि खराब करने की कोशिश की। इसलिए सबको सावधान रहने की ज़रूरत है। यह मामला कोर्ट के सामने है। सबको अदालत पर भरोसा रखना चाहिए।