कल मैंने हिंदुओं के खिलाफ शरजील उस्मानी के जहरीले बयानों को सुना। शरजील अलीगढ़ में अपने जहरीले बयानों के बाद सुर्खियों में आया था। उस पर भड़काऊ बयान देने के कई मामले दर्ज हैं।
पुणे पुलिस ने मंगलवार को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इस पूर्व छात्र नेता के खिलाफ FIR दर्ज कर ली है। उसके ऊपर 30 जनवरी 2021 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद की बैठक में हिंदुओं के खिलाफ भड़काऊ बयान देने का आरोप है। इस भाषण का वीडियो देखने और मामले की प्राथमिक जांच के बाद उस्मानी के खिलाफ IPC की धारा 153 A (विभिन्न समूहों के बीच संप्रदाय के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत एक मामला दर्ज किया गया है।
शरजील उस्मानी को यूपी पुलिस ने दिसंबर 2019 में अलीगढ़ में भड़काऊ भाषण देने और दंगा भड़काने के आरोपों में गिरफ्तार किया था, जिसके बाद अदालत ने उसे जमानत पर रिहा कर दिया था। तब से अलीगढ़ जिले में उसके प्रवेश करने पर रोक लगी हुई है। अब शरजील देशभर में मुसलमानों के बीच भड़काऊ भाषण देने में व्यस्त है।
मंगलवार रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने आपको शरजील के जहरीले भाषण का वीडियो दिखाया था। इस वीडियो में वह हिंदुओं को लेकर भड़काऊ बातें कह रहा था और बदला लेने की धमकी भी दे रहा था। आखिर उसने ऐसा क्या कहा था?
शरजील ने मोदी विरोधी और लेफ्ट समर्थक बुद्धिजीवियों की एक बैठक को संबोधित करते हुए कहा, ‘मैं राष्ट्रवाद को नहीं मानता हूं। मैं इस बात को बिल्कुल साफ कर देता हूं और मैं खासतौर पर यही बात करने आया हूं। इससे पहले मैं हल्की-फुल्की बात कर रहा था। आज मैं साफ-साफ कहना चाहता हूं कि हिंदुस्तान में हिंदू समाज बुरी तरीके से सड़ चुका है। 14 साल के जुनैद हाफिज को चलती ट्रेन में एक भीड़ 31 बार चाकू मारकर कत्ल कर देती है, लेकिन कोई 14 साल के बच्चे को बचाने नहीं आता है। दूसरों की लिंचिंग करने वाले ये लोग हमारे और आपके बीच में से आते हैं, लेकिन अब यह इतना नॉर्मल हो गया है कि कोई भी इस तरह की लिंचिंग पर सवाल नहीं उठाता।’
उसने कहा, ‘पहले हिंदुस्तान में मुसलमान को कत्ल करने के लिए वजह चाहिए होती थी। तब वे कहते थे कि ये इंडियन मुजाहिदीन से जुड़ा हुआ था, ये सिमी का मेंबर है। ऐसी कहानियां बनाई जाती थीं कि फलाने बम धमाके में इसका लिंक रहा होगा। उसके बाद मुसलमानों को कत्ल करना या उनके ऊपर जुल्म करना जायज करार दिया जाता था। अब वे मुसलमानों को मार देते हैं, इसके लिए उन्हें किसी बहाने की जरूरत नहीं है।’
शरजील ने कहा, ‘कोई गोश्त खा रहा है, बकरी है, चिकन है या बीफ है, कोई फर्क नहीं, मार देंगे। आप ट्रेन में जा रहे हैं, सीट मांगेंगे, नहीं दोगे तो मार देंगे। यह धमकी है हमारी तरफ से हिंदू समाज के लोगों के लिए। आप समझिए इस बात को। इंसान कितना भी कमज़ोर हो, कोई भी ज़िंदा चीज़ चाहे वह इंसान हो या जानवर, अगर आप उसकी ज़िंदगी से खिलवाड़ करेंगे तो पलट कर एक बार जवाब ज़रूर देगा। अमूमन छिपकली किसी को काटती नहीं, छेड़ कर देखिए दो बार, काट लेगी। तो इतना भी न करिए कि पलटकर जवाब देना पड़े। एल्गार का मतलब होता है जंग का ऐलान, और जंग का ऐलान तभी कर सकते हैं जब हमारे बीच में लोग शहादत देने के लिए तैयार हों, बलिदान देने को तैयार हों।
एएमयू का यह पूर्व छात्र नेता यहीं पर नहीं रुका। एल्गार परिषद की बैठक में उसने आगे कहा, ‘हिंदुस्तान में पिछले 6 सालों में इस्लाम और मुसलमानों पर लगातार हमले हुए हैं। कोई भी हमारे मज़हब पर कुछ भी बोलकर जा सकता है। चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी में इसी महीने एक सेमिनार हुआ, जिसमें एक स्पीकर ने खुले तौर पर कहा कि इंसान कुरान पढ़ेगा तो हैवान बन जाएगा। हम अगले चार सालों में एक हिंदू राष्ट्र बनाएंगे और उसके बाद आप देखिएगा कि मुसलमानों की कोई औकात नहीं रह जाएगी। ये जो लोग हैं आपके (हिंदू) समाज को इस तरीके से सड़ा रहे हैं और आपके बच्चे ऐसे समारोहों में जा रहे हैं। हमारी (मुसलमानों की) उंगली दोनों की तरफ होगी। आप खींचकर अपने लोगों को वहां से निकालिए और हम खींचकर अपने लोगों को ऐसी जगहों से निकालेंगे।’
शरजील उस्मानी ने ये बातें नक्सल समर्थक लेखिका अरुंधति रॉय, पूर्व आईपीएस अफसर एस एम मुशरफ और रिटायर्ड जज बी जी कोलसे पाटिल की मौजूदगी में कहीं। ये बयान दिवंगत बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना द्वारा शासित राज्य में दिए गए, जो कभी हिंदुत्व पर अपना पेटेंट होने का दावा करती थी और बीजेपी की तुलना में कहीं ज्यादा कट्टरपंथी थी। लेकिन देखिए, राजनीतिक मजबूरियों ने शिवसेना को कितना बदल दिया।
केसरिया बाने को अपनी पहचान बताने वाली शिवसेना अब अपने गढ़ पुणे में दिए गए शरजील उस्मानी के जहरीले बयानों पर चुप रहने को मजबूर है। छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर बनी शिवसेना अब इस मुद्दे पर खामोश है और शरजील के बयानों की निंदा करने के लिए कोई भी शिवसैनिक केसरिया झंडा लेकर सड़कों पर नहीं उतरा।
शरजील का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद एक स्थानीय वकील ने पुणे के स्वारगेट पुलिस स्टेशन में एक FIR दर्ज करवाई है। बीजेपी भी इस मुद्दे पर आक्रामक हो गई है और उसने आरोप लगाया है कि शिवसेना-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-कांग्रेस की महाविकास आघाड़ी सरकार उस्मानी के खिलाफ नरम रुख अख्तियार कर रही है।
शिवसेना के खिलाफ सबसे तीखी टिप्पणी भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने की। उन्होंने कहा, ‘एक बाहरी व्यक्ति महाराष्ट्र में आता है और हिंदू समुदाय की भावनाओं का अपमान करता है। क्या महाराष्ट्र में मुगलों का शासन है, कि कोई भी आकर हिंदुओं का अपमान करके बगैर किसी कार्रवाई का सामना किए चला जाता है?’
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिखे एक पत्र में फडणवीस ने कहा, ‘30 जनवरी को पुणे में एल्गार परिषद के कार्यक्रम में शरजील उस्मानी द्वारा हिंदू समुदाय के खिलाफ दिया गया बयान अपमानजनक, आपत्तिजनक और बेहद गंभीर है। इस पर राज्य सरकार को तुरंत सख्त कदम उठाने की जरूरत है। उसके द्वारा दिया गया बयान आपत्तिजनक और सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने वाले थे। जब यह पता था कि एल्गार परिषद के पिछले कार्यक्रमों में क्या हुआ था, तो इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए थी। शरजील के भाषण से अब यह साफ हो गया है कि इस कार्यक्रम को अनुमति प्रदान करना कितना गलत था। यदि कार्यक्रम के लिए अनुमति दी गई थी तो वहां होने वाली चीजों को अनदेखा करना ठीक बात नहीं है।’
कुछ इसी तरह की बात एनसीपी के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र सरकार के मंत्री छगन भुजबल ने कही। उन्होंने कहा कि (उस्मानी को) बोलते वक्त संयमित रहना चाहिए था और जब धर्म की बात हो तो शब्दों का चयन सोच-समझकर करना चाहिए था।
अगर यह बाला साहेब ठाकरे का जमाना होता तो महाराष्ट्र की धरती पर, पुणे जैसे सांस्कृतिक शहर में कोई ऐसी बात कहकर नहीं जा सकता था। शिवसेना इसे हल्के में नहीं लेती लेकिन इस वक्त महाराष्ट्र में शिवसेना का चीफ मिनिस्टर है, उद्धव ठाकरे की सरकार है। इसके बाद भी उस्मानी के खिलाफ एक्शन की बात तो दूर, शिवसेना का कोई नेता इस भड़काऊ बयान की निंदा तक करने के लिए सामने नहीं आया। 2018 में इसी शिवसेना ने एल्गार परिषद के पहले कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोगों को राष्ट्र-विरोधी और आतंकवादी कहा था। शिवसेना ने तब एल्गार परिषद की तुलना अल कायदा से की थी।
उद्धव ठाकरे को एक बार फिर पढ़ना चाहिए कि उस वक्त शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में क्या-क्या लिखा गया था। शिवसेना तब बीजेपी के साथ थी और उसने खुलकर कड़ा रुख अपनाया था, लेकिन अब समय बदल गया है। अब कांग्रेस और एनसीपी के साथ शिवसेना का गठबंधन है और अपनी सरकार बचाने के लिए पार्टी ने चुप रहने का फैसला किया है। इस चुप्पी के पीछे राजनीतिक मजबूरी है। पहले शिवसेना के नेता कुर्सी के लिए बोलते थे, और अब कुर्सी को बचाने के लिए चुप रहते हैं। शिवसेना की खामोशी ये साबित करती है कि राजनीति में विचारधारा कोई मायने नहीं रखती। सत्ता के समीकरण ही पार्टी के विचार और पार्टी की विचारधारा तय करते हैं।