अगर आप यह जानना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों के आंदोलन के बारे में क्या सोचते हैं, तो आपको वह भाषण सुनना चाहिए जो उन्होंने बुधवार को लोकसभा में दिया था। लोकसभा में दिए गए अपने 90 मिनट के इस भाषण में उन्होंने लोगों के इस संदेह को दूर करने की पूरी कोशिश की कि क्या नए कृषि कानूनों से मंडियों और एमएसपी सिस्टम का खात्मा हो जाएगा।
मोदी ने यह भी बताया कि नए कृषि कानूनों को मानने के लिए किसानों किसानों को मजबूर किया जाएगा या नहीं। उन्होंने उन आरोपों पर भी पलटवार किया जिनमें कहा गया था कि सरकार किसानों के आंदोलन को कुचलना चाहती है। प्रधानमंत्री ने इस बात का भी जिक्र किया कि कैसे किसानों के आंदोलन के नाम पर टोल प्लाजा और मोबाइल फोन टॉवर्स को नुकसान पहुंचाया गया। उन्होंने पूछा कि नक्सलियों की रिहाई और खालिस्तान के समर्थन में लहराए गए पोस्टरों का किसान आंदोलन से क्या लेना-देना है।
अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में मैंने पिछले दो महीनों के दौरान कई बार बताया था कि किस तरह माओवादियों और जिहादियों का समर्थन करने वाले ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग के लोग किसानों के बीच घुसपैठ कर चुके हैं। मैंने तब साफ-साफ कहा था कि किसानों के आंदोलन को हाइजैक करने की कोशिश की जा रही है। मोदी ने अपने भाषण में बताया कि किसानों के आंदोलन की पवित्रता को भंग करने के लिए ‘आंदोलनजीवी’ कैसी-कैसी कोशिशों में लगे हुए हैं।
उसी समय मैंने किसान नेताओं से इन हाइजैकर्स को आंदोलन से दूर रखने का आग्रह किया था, लेकिन नेताओं ने उनके प्रति नरम रुख अपनाया। अब वही किसान नेता कह रहे है कि गणतंत्र दिवस पर हिंसा करने वालों से उनका कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन अब देर हो चुकी है। ‘आंदोलनजीवियों’ ने किसान नेताओं की छवि को धूमिल कर दिया है। इन सबके बावजूद प्रधानमंत्री ने बुधवार को कहा कि सरकार अभी भी दिल्ली के बॉर्डर्स पर धरने पर बैठे किसानों के मन से सभी शंकाओं दूर करने के लिए तैयार है।
मोदी ने एक बार फिर कहा कि कानून लागू हुए 6 महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, लेकिन न मंडियां खत्म हुईं, न MSP बंद हुई और न ही कॉरपोरेट ने किसी किसान की जमीन पर जबरन कब्जा किया। किसानों को सरकार पर भरोसा रखना चाहिए। यह कभी भी किसानों का अहित नहीं होने देगी।
जहां तक मुझे याद है, प्रधानमंत्री ने बुधवार को सातवीं बार ये बात कही है कि न मंडिया खत्म हुई हैं और न MSP बंद हुई है। बल्कि सरकार तो मंडियों को और मजबूत कर रही है, उनका आधुनिकीकरण कर रही है। जो लोग अपना उत्पाद मंडियो में ही बेचना चाहते हैं, उनके लिए मोदी ने कहा कि वे उसे वहां बेचने के लिए स्वतंत्र हैं और सरकार ने सिर्फ इतना ही किया है कि किसानों को अपनी इच्छा के मुताबिक उत्पाद बेचने के लिए कुछ और विकल्प दे दिए हैं।
इस सवाल पर कि किसानों ने कभी भी इन नए कानूनों की मांग नहीं की, मोदी ने कहा कि यह आमतौर पर एक पुरानी मानसिकता है। उन्होंने कहा, उनकी सरकार केवल मांग होने पर कानून बनाने की पुरानी मानसिकता पर यकीन नहीं करती है। उन्होंने कहा, ‘हम यथास्थिति पर भरोसा नहीं करते हैं। हम भविष्य की तरफ देखते हैं। हमने किसानों के भविष्य को देखते हुए ईमानदारी से ये निर्णय लिए हैं।’ इसके बाद मोदी ने पूछा, ‘इसके बाद मोदी ने पूछा, ‘क्या किसी ने तीन तलाक के उन्मूलन के लिए कानून बनाने के लिए कहा था? क्या किसी ने शिक्षा के अधिकार की मांग की थी? क्या किसी ने भोजन का अधिकार मांगा था? हम कानून तभी बनाएंगे जब कोई मांग करेगा, यह एक सामंती सोच है।’
कांग्रेस नेता राहुल गांधी और वामपंथी दलों द्वारा लगाए गए आरोपों का जवाब देते हुए कि मोदी अंबानी और अडानी जैसे अपने ‘जिस तरह देश का पेट भरने के लिए किसान जरूरी हैं, उसी तरह हर हाथ को काम देने के लिए उद्योग और उद्योगपति जरूरी हैं। हम देश की प्रगति में निजी क्षेत्र के योगदान की उपेक्षा नहीं कर सकते।’
मोदी ने याद दिलाया कि कैसे प्राइवेट सेक्टर ने दुनिया में सबसे सस्ती दरों पर फोन, वॉइस और वीडियो डेटा उपलब्ध करवाकर टेलिकॉम सेक्टर का चेहरा बदल दिया है। उन्होंने कहा, ‘जब प्राइवेट सेक्टर आता है तो प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और लोगों को उचित दर पर अच्छी क्वॉलिटी का सामान और सर्विस मिलती है। चाहे वह टेलिकॉम सेक्टर हो, इलेक्ट्रॉनिक गुड्स सेक्टर हो, ऑटोमोबाइल सेक्टर हो या टेक्सटाइल सेक्टर। हर जगह प्राइवेट कंपनियों के आने से फायदा तो आम लोगों को ही हुआ है। इससे लोगों को रोजगार भी मिला और उत्पादों एवं सेवाओं की कीमतें भी कम हुईं।’
मोदी ने कहा, ‘आजादी के बाद हमारे देश में 28 प्रतिशत भूमिहीन किसान थे। 10 साल पहले 2011 में जो जनगणना हुई, उसके मुतबिक इस वक्त देश में 58 प्रतिशत खेतिहर मजदूर हैं। इस दशा को बदलने की जरूरत है, और यह तब होगा जब यथास्थिति को बदला जाए। किसानों का जीवन सुधारने के लिए, छोटे किसानों को मजबूत करने के लिए, सिर्फ सरकारी फंड से, सरकार की निधि से काम नहीं चलेगा। कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र से बड़े पैमाने पर फंड्स की जरूरत है, नई तरह की खेती को अपनाना होगा। निजी संस्थाएं भी देश की प्रगति में अहम भूमिका निभाती हैं इसलिए उन्हें कोसना, गाली देना ठीक नहीं।’
मोदी ने सही कहा। यदि प्राइवेट सेक्टर कृषि के क्षेत्र में प्रवेश करता है तो बुनियादी ढांचे में सुधार होगा, छोटे और सीमांत किसानों को बेहतर रोजगार मिलेगा और बड़े किसानों को उनकी फसलों के लिए ज्यादा कीमत मिलेगी। नए कृषि कानून एक औसत किसान को अपनी फसल पैदा करने और बेचने के लिए बेहतर विकल्प मिलेंगे।
सदन में उस समय शोर-शराबे का माहौल बन गया जब कांग्रेस के सांसदों ने प्रधानमंत्री के भाषण के समय टोका-टाकी शुरू कर दी। कांग्रेस सांसदों का हंगामा 20 मिनट से भी ज्यादा समय तक चलता रहा। जब शोर-शराबा करते हुए कांग्रेस सांसदों ने वॉकआउट कर दिया, उसके बाद ही प्रधानमंत्री अपना भाषण जारी रख पाए। हंगामे को देखकर मुझे बुरा लगा। आमतौर पर ये परंपरा है कि जब प्रधानमंत्री बोलते हैं, सदन में शान्ति होती है
मैंने मोदी को एक दिन पहले ही राज्यसभा में बोलते हुए देखा था। तब कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के विदाई भाषण को देते हुए 14 साल पहले की एक घटना को याद करके उनकी आंखों में आंसू आ गए थे। उस घटना के बारे में बात करते हुए दोनों नेताओं की आंखें छलक आई थीं। यह भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है, और यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है। उस समय दोनों तरफ से भावनाओं के ज्वार में एक गरिमा नजर आई, जब देश के नेता विपक्ष के नेता की तारीफ कर रहे थे और उनकी आंखों में आंसू थे। लोकसभा में स्थिति इसके विपरीत थी। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सांसदों ने पीएम के जवाब सुनने का संयम नहीं दिखाया। मोदी ने बार-बार कहा भी, शुरू में हंसकर टालने की कोशिश की, लेकिन कांग्रेस के नेता नहीं माने। आखिर में राहुल गांधी ने कांग्रेस के सांसदों के साथ वॉकआउट कर दिया।
मोदी ने इसका जिक्र करते हुए कहा कि कांग्रेस एक ‘डिवाइडेड और कंफ्यूज पार्टी’ लग रही है। उन्होंने कहा, ‘देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का हाल ऐसा हो गया है कि उसका राज्यसभा का तबका एक तरफ चलता है और लोकसभा का तबका दूसरी तरफ चलता है। ऐसी पार्टी न तो खुद का भला कर सकती है और न ही देश की समस्याओं के समाधान के लिए कुछ सोच सकती है।’
कांग्रेस के सांसदों को मोदी का पूरा भाषण सुनना चाहिए था। उन्हें पता चल जाता कि मोदी किसानों का सम्मान करते हैं, किसानों को विकल्प देना चाहते हैं कि या तो वे पुराने सिस्टम के साथ चलें या नए सिस्टम का विकल्प चुनें। मोदी ने किसानों के आंदोलन को प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाया है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार अभी भी किसानों से बातचीत करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा, किसानों को आंदोलन करने का पूरा हक है, लेकिन उन्हें ‘आंदोलनकारी’ और ’आंदोलनजीवी’ के बीच का अंतर पता होना चाहिए। उन्होंने कहा कि टोल प्लाजा तोड़े जाने, मोबाइल फोन टॉवर्स को नुकसान पहुंचाने और तिरंगे का अपमान करने की घटनाओं ने किसानों की छवि को नुकसान पहुंचाया है।
अब समय आ गया है कि किसान नेता तीनों कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग की अव्यवहारिकता को समझें, सरकार के साथ बातचीत शुरू करें और आंदोलन खत्म करें।