मंगलवार को पूरी दुनिया ने उन तस्वीरों को देखा जिनमें चीन की सेना लद्दाख में पैंगोंग झील के पास बने अपने बंकर और स्ट्रक्चर्स को तोड़ रही है, तंबूओं को उखाड़ रही है, सड़कों और हेलीपैड का नामोनिशान मिटा रही है। इन तस्वीरों को देखकर हर भारतीय को यकीनन अपनी फौज पर नाज होगा, उसके दिल को सुकून मिलेगा। ये तस्वीरें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कूटनीतिक और रणनीतिक कदमों की सफलता को दिखाती हैं, जिन्होंने चीन जैसी विश्व शक्ति को वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास से अपनी सेना को वापस बुलाने के लिए मजबूर कर दिया।
भारत की फौज चीन की हर हरकत पर नजर रख रही है और पूरी प्रक्रिया की मॉनिटरिंग हो रही है। रक्षा सूत्रों के मुताबिक, फिंगर 4 और 8 के बीच चीनी सेना ने अब तक एक एंटी-एयरक्राफ्ट रेजिमेंट के साथ-साथ एक हजार सैनिकों, 150 इन्फैंट्री कॉम्बैट वीइकल्स, 100 टैंट और 120 सांगड़ (अस्थायी बंकरों) को पहाड़ की चोटियों से हटा लिया है। साथ ही, 362 और 363 बॉर्डर गार्ड रेजिमेंट के सैनिकों को भी चीन की सेना ने वापस बुला लिया है। पीएलए के 6 मोटराइज्ड डिवीजन ने अपने सभी लॉजिस्टिक्स को मंजूरी दे दी है और उम्मीद की जा रही है कि अगले 5 दिनों में अप्रैल के पहले वाली स्थिति बहाल हो जाएगी।
रेचेन ला में में भी चीन की सेना ने 600-700 सैनिकों, 150 इंफैंट्री कॉम्बैट वीइकल्स, 120 टैंकों वाली 3 टैंक रेजिमेंटों को वापस पीछे भेज दिया है। इसके साथ ही अपने 10 रडार सेट्स के साथ 2 एंटी-एयरक्राफ्ट रेजिमेंटों की टुकड़ियों, प्री-फैब्रिकेटेड टेंटों और 10 लॉजिस्टिक स्टेशनों को भी चीन की सेना ने हटा लिया है। चीनियों ने उन जगहों का भी नामो-निशान मिटा दिया है जहां हथियार और गोला-बारूद रखे जाते थे। 4 हाईलैंड मोटराइज्ड इन्फैंट्री डिवीजन, 11 और 12 मोटराइज्ड इन्फैंट्री रेजिमेंट से जुड़े एक हजार से भी ज्यादा सैनिकों को पीछे भेज दिया गया है।
भारतीय सेना ड्रोन्स, वीडियोग्राफी, डिजिटल मैपिंग और फिजिकल वैरिफिकेशन के जरिए चीन के सैनिकों की वापसी की इस पूरी प्रक्रिया पर नजर बनाए हुए है। चीन ने भी दुनिया को यह दिखाने के लिए कि वह शांति चाहता है, अपनी सेना की वापसी की तस्वीरों को शेयर किया है। ये तस्वीरें एक नए भारत की झलक दिखाती हैं जो अपना अतीत पीछे छोड़कर तेजी से उभर रहा है। एक ऐसा नया भारत, जो अपनी सेना के साथ-साथ अपनी आर्थिक और कूटनीतिक ताकत का इस्तेमाल करके एक महाशक्ति को अपने सैनिकों के कदम वापस पीछे खींचने के लिए मजबूर कर सकता है।
इस बात को पूरी दुनिया जानती है कि चीन विस्तारवादी है, और वह दूसरों की जमीन पर कब्जा कर लेता है। दुनिया यह मानती भी है कि चीन ने एक बार कहीं पांव जमा दिए तो पीछे नहीं खींचता, फिर चाहे वह दक्षिण एशिया के इलाके हों या दक्षिण चीन सागर के। लद्दाख से चीन के सैनिकों की वापसी भारत की दृढ़ इच्छा शक्ति, सैन्य शक्ति और सटीक डिप्लोमैसी की झलक दिखाती है जिसके पीछे एक मजबूत राजनीतिक नेतृत्व है। पिछले 50 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है। चीन की सेना ने 14 दिनों के भीतर अपने कब्जे वाले इलाकों को खाली करने का वादा किया था, लेकिन हैरानी की बात यह है कि चीन ने 4 दिन के भीतर ही पूरा इलाका खाली कर दिया है। उसके सैनिक अपने हथियार और साजो-सामान समेटकर इस इलाके से जा चुके हैं। इसके साथ ही भारत के लोगों का 9 महीने लंबा इंतजार खत्म हो गया है जो चीनी सैनिकों को वापस जाते हुए देखना चाहते थे।
इन तस्वीरों को नरेंद्र मोदी के उन आलोचकों को देखना चाहिए जो सैनिकों की वापसी के मुद्दे पर बवाल मचा रहे थे। इन नेताओं ने नरेंद्र मोदी की नीयत पर सवाल खड़े किए थे। राहुल गांधी को भी ये तस्वीरें खासतौर पर देखनी चाहिए। चार दिन पहले हुई अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में वह नरेंद्र मोदी को ‘कायर’ कह रहे थे। राहुल ने कहा था कि नरेंद्र मोदी चीन से डरते हैं और उन्होंने भारत की जमीन चीन को दान में दे दी है। अब जो तस्वीरें सामने आई हैं उसके बाद अब राहुल क्या कहेंगे? क्या ये तस्वीरें भी फर्जी हैं और कैमरे झूठ दिखा रहे हैं?
अब तक होता ये था कि चीन भारत के सब्र का इम्तेहान लेता था। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब भारत ने चीन के सब्र को तोड़ा है और उसके गुरूर को मिट्टी में मिलाया है। इसी का नतीजा है कि चीन ने भारत के इलाके में जो बंकर बनाए थे, उन्हें चाइनीज आर्मी खुद तोड़ रही है। क्या पिछले महीने तक कोई ये कल्पना कर सकता था कि भारत की डिप्लोमैसी के सामने मजबूर होकर सुपरपावर चीन अपनी गलती मानेगा और उसे सुधारेगा? पेंगोंग झील के आसपास के इलाके में चीन ने जेसीबी मशीन चला कर पूर इलाके को समतल कर दिया है।
एक तरफ LAC से चीनी फौज के पीछे हटने की तस्वीरें आती हैं, और दूसरी तरफ चीन में 6 महीने से ज्यादा वक्त से फंसे 2 जहाज, एम. वी. जग आनंद और एम. वी. अनास्तासिया, मंगलवार को वापस लौटते हैं। इसके साथ ही बीते 6 महीने से ज्यादा वक्त से चीन के चंगुल में फंसे 39 हिंदुस्तानियों की वतन वापसी होती है। क्या ये महज इत्तेफाक है? ये बिल्कुल इत्तेफाक नहीं है बल्कि भारत के मजबूत इरादों और साफ नीयत वाली लीडरशिप का असर है और देश की आर्थिक एवं कूटनीतिक ताकत के सामरिक इस्तेमाल की कामयाबी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्रालय और शिपिंग मिनिस्ट्री की लगातार कोशिशों के बाद चीन के पास समुद्र में फंसे इन भारतीय नाविकों की वापसी संभव हो पाई। इन नाविकों ने भारत की जमीन पर कदम रखने के बाद कहा कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बहुत आभारी हैं। ये नाविक 6 महीने से चीन के चक्कर में फंसे थे। इन लोगों ने 6 महीने से जमीन नहीं देखी थी और -3 डिग्री सेल्सियस के तापमान में समुद्र में खड़े जहाज में ठिठुर रहे थे। चीन उन्हें न तो अपनी जमीन पर उतरने की इजाजत दे रहा था, और न ही वापस लौटने दे रहा था। चीन ने इन लोगों को न तो दवा दी और न ही किसी प्रकार की मेडिकल हेल्प। शिपिंग कंपनियां जहाजों में फंसे नाविकों को रिप्लेस करने को तैयार थीं, माल सहित जहाजों को चीन से वापस लाने को भी तैयार थीं, लेकिन चीनी अफसर इसकी भी इजाजत नहीं दे रहे थे।
मैं इन नाविकों की वापसी को भारतीय कूटनीति की जीत मानता हूं। मुझे नरेंद्र मोदी के वे शब्द याद आ रहे हैं जो उन्होंने तब कहे थे जब 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान मैंने उनका इंटरव्यू लिया था। मोदी ने कहा था, ‘मैं न तो किसी से नजर झुकाकर बात करूंगा, न किसी से नजर उठाकर बात करूंगा, मैं नजर मिलाकर बात करूंगा।’ यह एक नए भारत, एक मजबूत भारत और एक ऐसे भारत की व्याख्या है जिसे कोई भी अन्य देश हल्के में नहीं ले सकता।