केंद्र ने 40 किसान यूनियनों को बुधवार को बातचीत के नए दौर के लिए आमंत्रित किया है। सरकार ने कहा है कि वह सभी मुददों का तार्किक हल निकालना चाहती है जो सभी को मान्य हों। शाम होते-होते किसान नेताओं ने कहा कि उन्हें जो खत मिला है उसकी भाषा ‘अस्पष्ट’ है, क्योंकि तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने के तौर तरीके जानने के लिए उन्होने सरकार को पत्र लिखा था।
मुझे नहीं लगता कि बुधवार की बातचीत से समाधान का की रास्ता निकलेगा क्योंकि किसान नेताओं ने पहले ही इसे फेल करने का प्लान तैयार कर लिया है। अपनी चिट्ठी में उन्होंने बातचीत के एजेंडा में साफतौर पर तीनों कानूनों को निरस्त करने की मांग की थी। साफ है कि किसान नेता संशोधनों पर बातचीत करने के लिए तैयार ही नहीं हैं और वे चाहते हैं कि तीनों कानूनों को निरस्त कर दिया जाए। सीधा सा मतलब है कि बातचीत शुरू होने से पहले ही उसे फेल कर दिया जाय।
दूसरी बात, किसान नेताओं ने अपने खत में पूछा था कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली लागू करने के लिए नया कानून कब बनाएगी और दिल्ली-NCR में एयर क्वॉलिटी मेंटेनेंस पर अध्यादेश कब लाएगी। यहां भी किसी तरह के बीच का रास्ता निकलने की कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि हर साल तय होने वाला MSP पूरी तरह एक प्रशासनिक फैसला है और पहले भी कभी इसे लकर कानून नहीं बनाया गया । केंद्र ने हालांकि वादा किया है कि वह इस बात की लिखित गारंटी देने के लिए तैयार है कि MSP सिस्टम आगे भी जारी रहेगा।
साफ है कि किसान नेताओं की सरकार को भेजी गई चिट्ठी बातचीत से रास्ता निकालने की नीयत से नहीं, बल्कि गतिरोध बनाए रखने के इरादे से लिखी गई है। अब सवाल ये है कि वे कौन लोग हैं जो चाहते हैं कि बातचीत फेल हो जाए और किसान दिल्ली के बॉर्डर्स पर अपना धरना अगले महीने भी जारी रखें?
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सोमवार को आरोप लगाया कि मोदी-विरोधी ताकतें किसानों का इस्तेमाल कर रही है। तोमर ने कहा कि इन ताकतों ने अतीत में नागरिकता संशोधन कानून, ट्रिपल तालक उन्मूलन और धारा 370 निरस्त करने जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने की कोशिश की थी, लेकिन सफल नहीं हो पाए थे, और वे अब तीनों कृषि कानूनों के विरोध के नाम पर किसानों को ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं। तोमर ने कहा कि मोदी विरोधी ताकतें किसानों के मन में भ्रम पैदा करना चाहती हैं।
तोमर की बात सही है। विपक्षी दल, खासतौर पर लेफ्ट के नेता यह बिल्कुल नहीं चाहते कि किसान आंदोलन खत्म हो। मैं एक उदाहरण देना चाहूंगा। पिछले 16 दिनों से लेफ्ट के कार्यकर्ताओं ने राजस्थान में शाहजहांपुर के पास दिल्ली-जयपुर हाईवे को बंद कर रखा है। इस हाईवे को बंद करने वाले लोग किसान नहीं हैं, बल्कि वे लाल झंडे और बैनर थामे और ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ जैसे आपत्तिजनक नारे लगाने वाले लेफ्ट पार्टियों के कार्यकर्ता हैं।
सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने दिखाया था कि कैसे लाल झंडा थामे लेफ्ट पार्टी के कार्यकर्ता अचानक कैमरा देख कर हरे रंग की टोपियां और पगड़ी पहन लेते हैं और MSP की बातें करने लगते हैं। वे किसान नहीं हैं। वे न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में कुछ भी नहीं जानते , लेकिन कैमरे पर आते ही झूठे दावे करने लगते हैं कि किस तरह उन्हें MSP पर घाटा हो रह है।
लेफ्ट के इन कार्यकर्ताओं को यही सिखाया गया है कि मोदी के खिलाफ नारे लगाओ, झूठे दावे करो, कैमरे पर किसानों के मुद्दे के बारे में बातें करो, लेकिन हकीकत में ये किसान नहीं हैं। उनका खेती-किसानी से कोई लेना-देना नहीं हैं। यह पूछे जाने पर कि राजनीतिक कार्यकर्ता होते हुए भी वे क्यों किसानों का चोला ओढ़े हुए हैं, उनका जवाब था कि हम पहले किसान हैं और फिर नेता हैं। शाहजहांपुर और आसपास के इलाकों में रहने वाले किसान इन ‘नकली’ किसानों का हाईवे पर धरना देख कर हैरान हैं।
आम लोगों का यह मानना है कि दिल्ली के सिंघू बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर पर धरना देने वाले असली किसान हैं। लेकिन मैं उन्हें बताना चाहूंगा कि दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे किसानों में भी बड़ी संख्या में लेफ्ट के कार्यकर्ता हैं। उनमें से ज्यादातर लोगों का खेती-किसानी से कोई नाता नहीं है। आंदोलन की स्क्रिप्ट लेफ्ट के ही लोग तैयार करते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि वे दिल्ली के बॉर्डर्स पर लाल झंडे का इस्तेमाल नहीं करते। ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग के लोग भी किसानों के बीच घुसपैठ कर चुके हैं।
सिंघू बॉर्डर पर सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक पुतला जलाया गया। इस बीच अचानक एक महिला ने चप्पल से पुतले को पीटना शुरू कर दिया और पीएम के बारे में अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। मीडिया के लोगों ने जब उससे पूछा तो उसने बताया कि उसका नाम शमीम चौधरी है और वह दिल्ली में एक प्रॉपर्टी डीलर है। उसने कहा कि वह किसानों के साथ एकजुटता दिखाने वहां आई थी। इस महिला की तरह कई प्रॉपर्टी डीलर और आढ़तिए (बिचौलिए) भी इस आंदोलन में किसान बने बैठे हैं।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने सोमवार को कहा कि उनकी पार्टी किसानों के आंदोलन का समर्थन जरूर करती है लेकिन इसमें उनके दल का कोई नेता या कार्यकर्ता शामिल नहीं है। यह साफतौर पर गुमराह करने की कोशिश है क्योंकि उनकी पार्टी के नेता पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से किसानों के आंदोलन की स्क्रिप्ट लिख रहे हैं, और पार्टी सुप्रीमो कह रहे हैं कि इस आंदोलन में वह और उनका दल शामिल ही नहीं है।
सीताराम येचुरी कितना सच बोल रहे हैं, कितना झूठ, अब उस पर कुछ कहने की जरूरत नहीं है। येचुरी कह रहे हैं कि वह तो चाहते हैं कि सरकार और किसानों की बातचीत का रास्ता निकले, लेकिन ऑल इंडिया किसान सभा का नेतृत्व करने वाले उनकी खुद की पार्टी के नेता हन्नान मोल्लाह का साफ कहना है कि जब तक तीनों कानूनों को वापस नहीं ले लिया जाता तब तक आंदोलन खत्म नहीं होगा।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार सोमवार को दिल्ली आए और उन्होंने येचुरी से मुलाकात की। पवार ने यह भी कहा कि चूंकि किसानों ने खुद ही तय किया है कि वे राजनीतिक दलों को अपने आंदोलन में शामिल नहीं करेंगे, इसलिए उनकी पार्टी इस आंदोलन को बाहर से सपोर्ट तो कर रही है, लेकिन इस आंदोलन से दूर है। चाहे कांग्रेस हो, NCP हो या CPI-M हो, कोई नहीं चाहता कि बातचीत सफल हो बल्कि उनकी ख्वाहिश है कि किसानों का आंदोलन जारी रहे। बातचीत के एक बार फेल होने के बाद विरोधी दलों को मोदी को निशाना बनाने के लिए खुलकर सामने आने का मौका मिलेगा।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी पहले ही अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को भौंचक छोड़कर नए साल की छुट्टी मनाने इटली चले गए हैं। तीन दिन पहले ही राहुल गांधी ने राष्ट्रपति भवन के बाहर कहा था कि किसान पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि ‘वीर तुम बढ़े चलो’ और खुद छुट्टी मनाने विदेश चले गए। सोमवार को कांग्रेस की स्थापना की 135वीं वर्षगांठ थी। इस मौके पर राहुल छुट्टी पर भारत से बाहर थे, पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी की सेहत साथ नहीं दे रही है, इसलिए पार्टी मुख्यालय पर स्थापना दिवस कार्यक्रम में 80 साल के नेता ए. के. एंटनी ने कांग्रेस का झंडा फहराया।
अचानक विदेश यात्रा पर निकल जाना राहुल गांधी के लिए आसान हो सकता है, लेकिन उनकी पार्टी के नेताओं को अपने नेता का बचाव करने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कांग्रेस के नेता इस बात से भी परेशान हैं कि राहुल गांधी ने दो करोड़ किसानों के दस्तख्त वाले ज्ञापन राष्ट्रपति को सौंपने का दावा किया था, लेकिन अब इस बात के सबूत सामने आ गए हैं कि इसमें बहुत सारे दस्तखत फर्जी थे। कांग्रेस के नेताओं को ही नहीं पता कि किसानों से दस्तखत कराने की ये मुहिम कब चली, ये दस्तखत कहां से आए और कितने किसानों ने दस्तखत किए? इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स ने जब इस बारे में कांग्रेस नेताओं से बात की, तो किसी के पास दस्तखत मुहिम के बारे में कोई ठीक ठीक जानकारी नहीं थी और सबके बयान अलग-अलग थे।
विदेश जाकर छुट्टियां मनाना राहुल गांधी का निजी मामला हो सकता है, लेकिन हैरानी तब होती है जब वह विदेश से ट्वीट करके किसानों से ‘वीर तुम बढ़े चलो’ कहते हैं। एक तरफ पार्टी एक के बाद एक लगातार चुनाव हार रही है, दूसरी तरफ पार्टी को रास्ता दिखाने वाला कोई नेता नहीं है। सोनिया गांधी का स्वास्थ्य उनका साथ नहीं दे रहा और राहुल गांधी न तो खुद पार्टी की कमान संभालते हैं और न ही किसी दूसरे सक्षम नेता को कमान संभालने देते हैं। पिछले 6 सालों से उनका एक सूत्री कार्यक्रम है – नरेंद्र मोदी का विरोध करना ।
किसान भले ही दिल्ली के बॉर्डर पर शांतिपूर्ण ढंग से धरने पर बैठे हुए हैं, लेकिन कांग्रेस शासित पंजाब में मोबाइल सर्विस देने वाली एक कंपनी को निशाना बनाते हुए मनसा, मोगा, फिरोजपुर और तरनतारन जैसी जगहों पर असामाजिक तत्वों ने मोबाइल टॉवरों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है। उन्होंने 32 मोबाइल टॉवरों का बिजली का कनेक्शन काट दिया जिसके चलते 114 अन्य टॉवरों की सेवाएं ठप हो गई। अब तक कुल 433 मोबाइल टॉवरों की मरम्मत की जा चुकी है और पिछले कुछ दिनों में कुल मिलाकर कुल 1536 टॉवरों की मरम्मत की गई । पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों के भेष में तोड़फोड़ करने वाले असामाजिक तत्वों की धरपकड़ के लिए पुलिस को सख्त निर्देश दिए हैं।
ये सच है कि किसानों को विरोध करने और शांतिपूर्ण आंदोलन करने का हक तो है, लेकिन किसी तरह की हिंसा को बरदाश्त नहीं किया जाएगा । अगर इसी तरह की तोड़फोड़ जारी रही तो धरने पर बैठे किसान आम जनता की हमदर्दी खो देंगे। यदि किसान रिलायंस जियो का विरोध करना चाहते हैं तो करें, लेकिन मोबाइल टॉवर्स में तोडड़फोड करना ठीक नहीं है। पंजाब के किसानों को पता होना चाहिए कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ही रिलायंस ग्रुप को अपने राज्य में पूंजी लगाने के लिए आमंत्रित किया था और राज्य में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग शुरू करवाई थी।
शरद पवार और पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह जानते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग, भंडारण पर पाबंदी खत्म करने और देश में कहीं भी अनाज और सब्जी बेचने-खरीदने का हक़ देने वाले इन कृषि कानूनों से आखिरकार किसानों को ही फायदा पहुंचेगा । पवार और मनमोहन सिंह, दोनों ने वही कानून लाने की कोशिश की थी जो मोदी ने अब लागू किए हैं, लेकिन उस वक्त उन्हें अमीर बिचौलियों की तरफ से कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। देश के ज्यादातर किसान इन्हीं बिचौलियों पर निर्भर हैं और ये बिचौलिये ही किसान आंदोलन के पीछे हैं। ऐसे में वामपंथी दल भी अपने फायदे के लिए बिचौलियों के साथ हो गए हैं। यही वजह है कि किसी भी पार्टी की सरकार अतीत में इन बेहद जरूरी कृषि सुधारों को लाने की हिम्मत नहीं दिखा पाई।
नरेंद्र मोदी एक अलग तरह के नेता, उनमें जोखिम उठाने का जज़्बा है। मोदी के खिलाफ इस तरह का विरोध कोई पहली बार नहीं हो रहा। चाहे नोटबंदी हो, धारा 370 हो, या CAA हो, मोदी के विरोधियों ने उन्हें हर बार घेरने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाए। अगर बाकी नेताओं से तुलना की जाए, तो नरेंद्र मोदी के पक्ष में दो बड़ी बातें है – पहली, मोदी के पास करोड़ों लोगों का जन समर्थन है और दूसरी बात, मोदी में ये हुनर है कि वह अपनी बात करोडों जनता तक पहुंचाने का माद्दा रखते हैं । इसीलिए आज भी लोगों को यकीन है कि मोदी आंदोलन कर रहे किसानों को भी समझा पाने में सफल होंगे।
मोदी पहले ही काम पर लग चुके हैं। सोमवार को उन्होंने 100वीं किसान रेल, जो कि एक रेफ्रिजरेटेड ट्रेन है, शुरू की, जो महराष्ट्र से सीधे बंगाल तक फलों और सब्जियों को ले जाएगी। महाबलेश्वर और पालघर के किसान अब स्ट्रॉबेरी उगा रहे हैं, जिसे किसान रेल से देश के अन्य राज्यों में भेजा जा रहा है।
मुझे लगता है कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जो किसान दिल्ली के बॉर्डर पर कड़ाके की ठंड में एक महीने से धरने पर बैठे हैं, उन्हें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और सोचना चाहिए कि क्या वे सही रास्ते पर हैं? दोहरे मापदंड अपनाने वाले राजनीतिक दल कहीं अपने निहित स्वार्थों के लिए उन्हें गुमराह तो नहीं कर रहे हैं ? किसानों को चाहिए कि वे इन कृषि कानूनों को अमल में लाने के लिए कम से कम एक साल की मोहलत दें , और अगर उन्हें इन सुधारों में खामियां नज़र ये, तो वे फिर से अपनी आवाज़ उठा सकते हैं। यदि किसान सही रास्ते पर चलेंगे तो उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाएगी।