वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने जब सोमवार को विकासोन्मुखी बजट पेश किया तो शेयर बाजार ने 2,315 अंकों की भारी उछाल के साथ इसका स्वागत किया। वहीं विपक्ष ने यह सवाल उठाया कि क्या इस बजट से लोगों को रोज़गार मिलेगा। क्या इस बजट से रोजगार की संभावनाएं ज्यादा पैदा होंगी?
इंडिया टीवी पर मेरे प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में सीतारामन ने सोमवार रात को कहा कि उन्हें पूरा भरोसा है कि कृषि और इंफ्रास्ट्रक्चर पर सरकार जो भारी भरकम पैसे खर्च करेगी, उसका अर्थव्यवस्था पर काफी अच्छा असर पड़ेगा।
सीतारामन ने कहा कि आम तौर पर अर्थशास्त्री यह मानते हैं कि इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च होनेवाले हर एक रूपये पर दो से ढाई रुपये का वैल्यू मिलता है। इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले से ही इसमें रोजगार मिलने लगता है। रोजगार मिलने का यह क्रम इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर काम शुरू होने के दो से पांच साल तक मिलता रहेगा। इससे जहां संपत्ति का सृजन होता है वहीं लोगों को रोजगार भी मिलता है। इससे सीमेंट और स्टील जैसे कोर सेक्टर में भी रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी क्योंकि इनके पास भी इंफ्रा प्रोजेक्ट्स से ऑर्डर आते हैं। इसे virtuous cycle कहते हैं। एक से दूसरा और दूसरे से तीसरा जुड़ा हुआ है। इस तरह से अर्थव्यवस्था को गति मिलती है।
सीतारामन ने विपक्ष के इस आरोप को खारिज कर दिया कि बजट में गरीब और मध्यम वर्ग के लिए उस तरह कुछ भी नहीं दिया गया है जैसे महामारी के दौरान अमेरिका ने हर परिवार को 2000 डॉलर तक के चेक दिए थे। वित्त मंत्री ने याद दिलाया कि फिछले साल लॉकडाउन लागू करने के 48 घंटे के अन्दर सरकार ने गरीबों, जरूरतमंदों, विकलांगों और वृद्धों के बैंक खातों में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए किस्तों में पैसे भेजना शुरू कर दिया था। “ हमने उससे एक सबक सीखा। क्योंकि जिन लोगों को पैसा मिला उन लोगों ने उसे तुरंत खर्च नहीं किया। मैं इसके लिए उन्हें जिम्मेदार या दोषी नहीं ठहरा रही हूं। लेकिन इस महामारी को लेकर उस समय अनिश्चितता थी इसलिए लोगों ने उस वक्त पैसे को बचाना मुनासिब समझा। लोगों के हाथों में पैसा डालना कोई सीधा सादा समाधान नहीं है। ”
सीतारामन ने कहा, “ मैं उस देश का नाम नहीं लूंगी लेकिन जिन देशों ने अपने जीडीपी का 15 फीसदी तक पैसा महामारी के दौरान खर्च कर दिय़ा, और अपने कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजने के एवज में कॉर्पोरेट्स को इन्सेंटिव दिया, वही देश अब अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए टैक्स बढ़ा रहे हैं। इसके विपरीत हमने इस बजट में टैक्स की दरों को नहीं बढ़ाया और न ही हमने कीमतें बढ़ाई हैं। “
निर्मला सीतारामन ने उन आलोचकों को जवाब दिया, जो यह सवाल कर रहे थे कि सरकार अपने राजकोषीय घाटे की भरपाई कैसे करेगी। सीतारामन ने कहा: “ इन लोगों ने तो महा मारी के समय पहले हमसे कहा कि आप करेंसी प्रिंट करो, राजकोषीय घाटे और रेटिंग एजेंसियों के बारे में चिंता मत करो। अब यही लोग राजकोषीय घाटे को लेकर सवाल उठा रहे हैं। मैं अधिक खर्च करने के पक्ष में थी और मैंने तब कहा था कि अगर मैंने अभी खर्च नहीं किया तो विकास रूक जाएगा। हमें खर्च करने में संकोच नहीं है।’
यह पूछे जाने पर कि सरकार अधिक खर्च करने के लिए पैसे का इंतजाम कैसे करेगी, सीतारामन ने कहा, ‘हां, मैंने इस साल कर्ज लेने के कैलेंडर की घोषणा की है, हम अगले साल भी कर्ज लेने की घोषणा करेंगे, हम उचित दरों पर कर्ज लेने के लिए आरबीआई के साथ चर्चा कर रहे हैं। सरकार ज़रूर कर्ज लेगी। हमारा उद्देश्य एक सीमा तक कर्ज लेना है, और फिर धीरे-धीरे राजकोषीय घाटे को कम करना है ताकि अर्थव्यवस्था की रफ्तार में कोई बाधा न आए।’
अपने बजट में, सीतारामन ने इतिहास में पहली बार स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 137 प्रतिशत वृद्धि का प्रस्ताव रखा है, लेकिन इसमें से 35,000 करोड़ रुपये कोरोना की वैक्सीन पर खर्च किए जाएंगे। स्वास्थ्य सेवा को गति देने के लिए एक नई योजना- ‘प्रधानमंत्री आत्म निर्भर स्वस्थ भारत योजना’ शुरू की जाएगी। इसी तरह, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के लिए बजट में सबसे ज्यादा 18 प्रतिशत की वृद्धि करके अब तक की सबसे बड़ी राशि 1.18 लाख करोड़ रुपये का प्रस्ताव रखा गया है। इससे इस साल 11 हजार किलोमीटर तक नेशनल हाईवे बनाने के लक्ष्य को पूरा किया जाना है। इसके तहत छह-लेन हाईवे, स्पीड राडार और नए एक्सप्रेस वे बनाए जाएंगे। इस इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) बाजार से 65,000 करोड़ रुपये जुटाएगा और प्रतिदिन 40 किलोमीटर हाईवे बनाने का लक्ष्य पूरा किया जाएगा।
यह बताने की कोई जरूरत नहीं है कि निर्मला सीतारामन ने इस बजट को जिन परिस्थितियों में बनाया वे कोई आम परिस्थितियां नहीं हैं। देश पिछले एक साल से कोरोना के संकट से जूझ रहा है, और इस एक साल के दौरान लॉकडाउन के चलते इंडस्ट्री बंद रहीं, सरकार की आमदनी के स्रोत सीमित रह गए और खर्चे बेतहाशा बढते रहे। लॉकडाउन के दौरान हर हिंदुस्तानी को खाना खिलाने की जिम्मेदारी सरकार पर थी। जैसा कि मोदी और सीतारामन ने कहा, सरकार पिछले एक साल के दौरान पहले ही 5 आर्थिक पैकेजों की घोषणा कर चुकी है जो 5 ‘मिनी बजट’ की तरह थे। पिछले एक साल में हमने सीतारामन को 20 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज के बारे में बताते हुए 5 बार सुना। ऐसे में इस बजट के लिए बहुत कुछ नहीं बचा था, और अधिकांश लोग इनकम टैक्स, कॉर्पोरेट टैक्स और इनडायरेक्ट टैक्स में भारी बढ़ोतरी की आशंका जता रहे थे। बढ़ती कीमतों और मुद्रास्फीति के बारे में भी आशंकाएं थीं, जबकि इन्फ्रा सेक्टर को लगता था कि फंड की कमी के चलते रफ्तार कम हो जाएगी। कई तरह की सब्सिडी खत्म होने की भी बात चल रही थी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
निर्मला सीतारामन ने इस बजट में कमाल कर दिया। इसीलिए मुझे लगा कि ये एक पॉजिटिव बजट है और इसमें कोई निगेटिविटी नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो सोचा वह निर्मला सीतारामन ने इंम्पलिमेंट किया। आम आदमी पर कोई नया बोझ नहीं डाला। सरकार ने अपनी इनकम के नए रास्ते खोजे, रोजगार के ज्यादा अवसर बनाए, ‘वोकल फॉर लोकल’ को ध्यान में रखा और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में पूरे विश्वास के साथ कदम आगे बढ़ाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसीलिए यह कहते हुए बजट की सराहना की कि यह एक ‘एक प्रो-ऐक्टिव बजट है जो धन सृजन के साथ-साथ जनकल्याण को भी बढ़ावा देगा।’
2020 पूरी दुनिया के लिए एक बेहद मुश्किल साल था और कोरोना वायरस की महामारी के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित किया। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने यह एक बड़ी चुनौती थी, जिन्हें यह सुनिश्चित करना था कि महामारी या फिर भुखमरी के चलते 135 करोड़ भारतीयों की जान न जाए। और प्रधानमंत्री मोदी ने इस चुनौती का सामना बखूबी किया। आज महामारी काफी हद तक नियंत्रण में है, वैक्सीनेशन का काम शुरू हो गया है और अर्थव्यवस्था खड़ी होती नजर आ रही है। सिर्फ किसान दो महीने से भी ज्यादा वक्त से ‘धरने’ पर बैठे हैं, और मोदी ने किसानों के हितों का भी ध्यान रखा है। बजट के जरिए उन्होंने किसानों को संदेश भी दिया है कि सरकार उनकी आय में 150 प्रतिशत की वृद्धि करने के लिए प्रतिबद्ध है।
इसी तरह मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में सरकार स्वैच्छिक ऑटो स्क्रैपिंग पॉलिसी के साथ आई है, जिसके तहत 20 साल से अधिक पुराने सभी वाहन ऑटोमेटेड टेस्ट से गुजरेंगे और उन्हें स्क्रैप कर दिया जाएगा। इससे 50,000 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होगा और पिछले साल लॉकडाउन का बहुत बुरा असर झेलने वाली ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में ज्यादा नौकरियां पैदा होंगी। उस समय बिक्री लगभग बन्द रहने के कारण देश भर में कारों के हजारों शोरूम बन्द हो गए थे।
कुल मिलाकर बजट को देखते हुए मुझे लगता है कि 3 ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर सरकार अपना ध्यान केंद्रित कर रही है: स्वास्थ्य, कृषि और बुनियादी ढांचा। ये तीनों सेक्टर सरकार के लिए बड़ी चुनौती हैं। कोरोना वायरस की महामारी ने हमें ये अहसास दिला दिया कि देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का काफी अभाव है। पीपीई किट, वेंटिलेटर, टेस्टिंग फैसिलिटी, ऑक्सीजन सिलेंडर और अन्य जरूरी मेडिकल इक्विपमेंट्स भी नहीं थे। डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक्स की भारी कमी थी। कई जिलों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या भी काफी कम थी। पीपीई किट, वेंटिलेटर के निर्माण और टेस्टिंग फैसिलिटी को तैयार करने में पिछले एक साल में असाधारण तेजी नजर आई है।
इसी तरह कृषि के क्षेत्र में सरकार ने 3 ऐतिहासिक कानून बनाए, लेकिन विपक्ष ने स्वयंभू किसान नेताओं के साथ मिलकर इन कानूनों के बारे में किसानों को गुमराह करने की पूरी कोशिश की, और उनका यह काम अभी भी जारी है। सरकार ने 11 दौर की बातचीत के जरिए किसानों की भावनाओं को समझने की पूरी कोशिश की, और 18 महीने के लिए कानूनों को होल्ड पर रखने का भी ऑफर दिया, लेकिन फिर भी किसान नेताओं ने अपना जिद्दी और अड़ियल रवैया नहीं छोड़ा। इसके नतीजे में किसान 2 महीने से भी ज्यादा समय से धरने पर बैठे हैं, और इस दौरान हिंसा और तिरंगे के अपमान के चलते देश की छवि भी धूमिल हुई है। सरकार किसानों की आशंकाओं को दूर करने की लगातार कोशिश कर रही है, और प्रधानमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि यदि किसान बातचीत को फिर से शुरू करना चाहते हैं तो वह केवल ‘एक कॉल दूर’ हैं।
इंडस्ट्री की बात करें तो फैक्ट्रियों में माल बन रहा है, ट्रांसपोर्टेशन भी हो रहा है लेकिन मॉल्स खाली बड़े हैं और ज्यादातर दुकानों पर खरीदार नहीं हैं। ट्रांसपोर्ट सेक्टर, टेक्सटाइल से लेकर खिलौने के कारोबार तक में मंदी नजर आ रही है क्योंकि ग्राहकों के पास सामान खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। कोरोना के कारण लोगों ने बाहर खाना बंद कर दिया है, इससे होटल और फूड इंडस्ट्री बुरी तरह प्रभावित हुई है। लोग बाहर नहीं जा रहे हैं जिसके चलते टूरिज्म सेक्टर बर्बाद हो गया है। लोगों ने प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट करना कम कर दिया है, जिससे रियल एस्टेट सेक्टर कमजोर हुआ है। ये सभी ऐसे सेक्टर हैं जो बड़ी संख्या में रोजगार देते हैं। यही वजह है कि सरकार सड़क, रेलवे, बंदरगाह और हवाई अड्डों जैसी बुनियादी सुविधाओं पर बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च करने जा रही है ताकि रोजगार पैदा हो सकें।
एक बार अर्थव्यवस्था की हालत सुधरेगी, और लोगों की जेब में पैसा होगा तो दुनिया भर की कंपनियां बिजनस के लिए भारत आएंगी। सरकार ने इस बजट के जरिए यही पहिया घुमाने की पूरी कोशिश की है। इसलिए विरोधी दल भले ही कहें कि बजट में कुछ भी नया नहीं है, मुझे लगता है कि यह बजट निश्चित रूप से हमारी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने की ताकत देगा। भारतीय अर्थव्यवस्था में जरूर उछाल आएगा, यह एक बार फिर अपने पैरों पर खड़ी होगी, और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य के साथ एक नए भारत का निर्माण होगा जिसपर हम सभी गर्व करेंगे।