अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी पर कब्जे की लड़ाई फिलहाल जारी है। यहां तालिबान और अहमद मसूद की अगुवाई वाली नॉर्दन अलायंस रेजिस्टेंस फोर्स के बीच घमासान जंग जारी है। सोमवार को जहां तालिबान ने पंजशीर के गवर्नर ऑफिस पर अपना झंडा फहराने का वीडियो रिलीज किया, वहीं नॉर्दन अलायंस ने बताया कि तालिबान के लड़ाकों ने सिर्फ पंजशीर घाटी के प्रवेश द्वार के पास एक सड़क और खाली दफ्तर पर कब्जा किया है।
अफगान पत्रकार नतीक मलिकज़ादा ने इस बात की पुष्टि की है कि पंजशीर घाटी पर तालिबान का कब्जा मुकम्मल होना अभी बहुत दूर की बात है। मलिकजादा ने लिखा है कि तालिबान ने गवर्नर के जिस ऑफिस पर कब्जा किया है वह मुख्य सड़क पर है जबकि पंजशीर के अंदरूनी इलाकों या अन्य दूसरी घाटियों तक तालिबान के लड़ाके अभी नहीं पहुंच पाए हैं। उन्होंने बताया कि कई पहाड़ी चोटियों पर अभी भी मसूद के लड़ाकों का कब्जा है और वे तालिबान को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
ऐसी भी खबरें आई हैं कि पंजशीर घाटी पर कब्जे की लड़ाई में पाकिस्तान की फौज भी तालिबान का साथ दे रही है। पिछले कुछ दिनों में नॉर्दन एलायंस ने तालिबान को भारी नुकसान पहुंचाया था। नॉर्दन अलायंस रेजिस्टेंस फोर्स के जवानों ने तालिबान के 650 से ज्यादा लड़ाकों को मार गिराया था। इस नुकसान के बाद पाकिस्तान की एयरफोर्स ने नॉर्दन एलायंस के लड़ाकों पर जबरदस्त बमबारी की और तालिबान के लिए आगे बढ़ने का रास्ता बनाया। मसूद के ठिकानों पर बमबारी करने के लिए पाकिस्तानी एयरफोर्स के ड्रोन और लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया गया। वहीं, मंगलवार को पंजशीर घाटी में तालिबान के 5 ठिकानों पर हवाई हमले की भी खबरें भी आई थीं।
गौर करने वाली बात यह है कि तालिबान का पूरी पंजशीर घाटी पर कब्जा करने का दावा अभी तक हकीकत में नहीं बदल पाया है। तालिबान समर्थक मीडिया ने अपनी खबरों में कहा था कि नॉर्दन अलायंस के नेता अहमद मसूद और अमरुल्ला सालेह पड़ोसी देश ताजिकिस्तान भाग गए हैं, लेकिन अहमद मसूद ने इन रिपोर्ट्स को खारिज करते हुए कहा, ‘हम पंजशीर में हैं और जंग अभी भी जारी है।’ रेजिस्टेंस ग्रुप ने हालांकि माना है कि उसके आधिकारिक प्रवक्ता फहीम दश्ती, मसूद के चचेरे भाई जनरल अब्दुल वदूद और मसूद के सबसे भरोसेमंद लोगों में से एक सालेह मोहम्मद रेगिस्तानी जंग में मारे गए हैं।
19 मिनट के अपने ऑडियो संदेश में अहमद मसूद ने आरोप लगाया कि उनकी रेजिस्टेंस फोर्स के जवानों की लड़ाई सिर्फ तालिबान के लड़ाकों से ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के सैनिकों से भी है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी एयरफोर्स के ड्रोन और लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल रविवार की रात को रेजिस्टेंस फोर्स के ठिकानों पर बमबारी करने के लिए किया गया था। मसूद ने दावा किया कि नेशनल रेजिस्टेंस फोर्स के लड़ाकों ने दो ड्रोन मार गिराए। उन्होंने माना कि हमले में उनके परिवार के कुछ सदस्य मारे गए हैं, लेकिन वह खुद पंजशीर घाटी में हैं, और सुरक्षित हैं। उन्होंने कसम खाई कि वह अपने खून की आखिरी बूंद तक तालिबान से जंग लड़ते रहेंगे।
तालिबान और नेशनल रेजिस्टेंस फोर्स के बीच जारी जंग में पाकिस्तान की संलिप्तता तो तभी साफ हो गई जब पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद बगैर किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अचानक काबुल पहुंच गए। उनके आने के बाद तालिबान और मसूद के आदमियों के बीच चल रही जंग ने एकाएक तेजी पकड़ ली है। पंजशीर घाटी की लड़ाई में भारी नुकसान झेलने के बाद तालिबान ने एक वक्त तो अपने लड़ाकों को वापस बुलाने का फैसला कर लिया था, लेकिन तभी ISI चीफ काबुल पहुंचे और लड़ाई ने एक नया मोड़ ले लिया। रेजिस्टेंस के नेताओं ने जंग में मारे गए तालिबान लड़ाकों के शवों से बरामद पाकिस्तान के राष्ट्रीय पहचान पत्र एवं अन्य दस्तावेजों को दिखाया, जिससे साफ पता चलता है कि तालिबान की आड़ में पाकिस्तानी सैनिक भी इस जंग में साथ-साथ लड़ रहे हैं।
तालिबान ने फिलहाल भले ही पंजशीर घाटी में घुसपैठ कर ली है, लेकिन हो सकता है कि आगे चलकर वह खतरनाक स्थिति में फंस जाए। पंजशीर घाटी के सिर्फ एक-तिहाई हिस्से पर ही उसका कब्जा हो पाया है। अब यह बात पूरी दुनिया जानती है कि पंजशीर घाटी में जारी जंग में पाकिस्तान न सिर्फ तालिबान की मदद कर रहा है बल्कि उसे उकसा भी रहा है। पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री शेख रशीद अहमद ने परोक्ष रूप से स्वीकार किया कि पंजशीर घाटी में मौजूद रेजिस्टेंस फोर्स की चौकियों पर पाकिस्तान की एयरफोर्स ने बमबारी की।
पाकिस्तान के मंत्री तालिबान के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश में दुनिया भर का दौरा कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, तालिबान पंजशीर घाटी पर कब्जा करने के लिए बेताब है क्योंकि सर्दियां शुरू हो जाने पर अधिकांश रास्ते बर्फ से ढक जाएंगे और सड़कें फिर अगले साल अप्रैल में ही फिर से खुल पाएंगी।
ऐसी खबरें हैं कि तालिबान के शीर्ष नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने इस लड़ाई में पाकिस्तान की मदद मांगी। इसके बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा से बात की और उनसे ISI चीफ लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को मदद के लिए काबुल भेजने की गुजारिश की। .
बदले में पाकिस्तान ने तालिबान नेताओं के साथ एक सौदा किया। पाकिस्तान ने तालिबान से गुजारिश की कि वह अफगानिस्तान की जेलों से सारे आतंकवादियों को रिहा न करे। ISI चीफ ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के लड़ाकों और अन्य आतंकवादियों की एक लिस्ट सौंपी जो अफगानिस्तान की जेलों में बंद हैं और जिनकी रिहाई पाकिस्तान कतई नहीं चाहता। तालिबान के नेताओं ने पाकिस्तान की यह गुजारिश तुरंत मान ली और इसके बाद पाकिस्तान ने पंजशीर में तालिबान की मदद के लिए अपनी एयरफोर्स को भेजा।
इस वक्त अफगानिस्तान में, और खासकर पंजशीर के मामले में प्रॉपगैंडा वॉर पूरे जोर-शोर से चल रही है। तालिबान वीडियो जारी करके पंजशीर के गवर्नर हाउस पर कब्जा करने का दावा करता है, लेकिन थोड़ी ही देर बाद अमरुल्ला सालेह और अहमद मसूद तालिबान के दावों को झूठा साबित करने वाले वीडियो जारी कर देते हैं।
नॉर्दन अलायंस दावा करता है कि उसने तालिबान के कमांडर्स को मार गिराया है, और इसके थोड़ी देर बाद तालिबान अपने उस कमांडर की वीडियो जारी कर देता है जिसमें दावा किया जाता है कि उनका कमांडर जिंदा है और पंजशीर में है। लेकिन ये कोई नहीं जानता कि ये वीडियो नए हैं या पुराने। इसी तरह नॉर्दन अलायंस के नेता अपने जिंदा होने के सबूत देते हैं और दावा करते हैं कि वे भागे नहीं हैं बल्कि तालिबान के लड़ाकों को ढेर कर रहे हैं।
दूसरी तरफ तालिबान नॉर्दन अलायंस के लड़ाकों के हथियार समेत सरेंडर करने का वीडियो जारी कर देता है। कुल मिलाकर दोनों तरह से प्रॉपेगैंडा वॉर चल जबर्दस्त चल रहा है और ये पता लगाना मुशकिल है कि कौन झूठ बोल रहा है और किसकी बात सच है, लेकिन एक बात साफ है कि पंजशीर वैली पर तालिबान का पूरा कब्जा नहीं हुआ है।
ये भी सही है कि तमाम कोशिशों के बाद भी तालिबान अभी तक अफगानिस्तान में अपनी सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाया है। रोज ही नए-नए नाम सामने आ रहे हैं। सोमवार को कहा गया कि रहबारी शूरा के प्रमुख मुल्ला मुहम्मद हसन अखुंद अफगानिस्तान के नए प्रमुख होंगे जबकि मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब को रक्षा मंत्री और सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्री बनाया जाएगा। कुछ ऐसी भी खबरें आई हैं कि नई सरकार की घोषणा 11 सितंबर को की जाएगी, क्योंकि इसी दिन अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन ने अमेरिका की धरती पर इतिहास का सबसे बड़ा आतंकी हमला किया था।
सच तो यह है कि सत्ता पर अपना दबदबा कायम करने के लिए कई गुट लगे हुए हैं। इसमें एक कांधार गुट है जिसका नेतृत्व तालिबान के सर्वोच्च नेता मुल्ला हैबतुल्लाह अखुंदजादा के साथ-साथ मुल्ला याकूब कर रहे हैं, दूसरा सिराजुद्दीन हक्कानी की सरपरस्ती वाला पाकिस्तान समर्थित हक्कानी नेटवर्क है, और तीसरा मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के नेतृत्व वाला दोहा राजनीतिक तालिबान गुट है।
ऐसी भी खबरें थीं कि हक्कानी ग्रुप के नेताओं के साथ हुई लड़ाई में बरादर जख्मी हो गए थे। पाकिस्तान चाहता है कि हक्कानी नेटवर्क के नेता नई सरकार में अहम पदों पर काबिज हों, ताकि ISI अफगानिस्तान की हुकूमत के जरूरी फैसलों पर असर डाल सके। पाकिस्तान के नेताओं और वहां की सेना के अफसरों को लगता है कि अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद उसकी भौगोलिक स्थिति ने उसे प्रासंगिक बना दिया है और दुनिया में फिर उसकी बात होने लगी है।
यही वजह है कि पाकिस्तान के मंत्री अब खुलकर दावा करने लगे हैं कि पिछले दो दशकों के दौरान पाकिस्तान ने तालिबान के नेताओं को संरक्षण दिया। वे खुलेआम कह रहे हैं कि पाकिस्तान ने ही उन्हें पनाह दी, पैसे दिए, हथियार दिए और यहां तक कि जंग लड़ने के लिए लड़ाके भी दिए। लेकिन काबुल में सरकार बनवाना और फिर उसे चलाना इतना आसान नहीं है।
अफगानिस्तान और तालिबान को जानने वाले लोग बताते हैं कि जो भी सरकार बनेगी वह ज्यादा दिन तक चल नहीं पाएगी। तालिबान के अलग-अलग गुटों में आपसी लड़ाई और सरकार पर कंट्रोल करने की तकरार को ज्यादा दिन टाला नहीं जा सकेगा, और अंतत: पाकिस्तान को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा।