Rajat Sharma

ट्रम्प, मोदी, भारत और पड़ोसी देश

AKB डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज की. कमला हैरिस को बड़े मार्जिन से हराया. अमेरिका में 132 साल बाद ऐसा हुआ है जब एक बार चुनाव हारने के बाद कोई पूर्व राष्ट्रपति दोबारा राष्ट्रपति चुनाव जीता हो. ये कारनामा करने वाले ट्रंप अमेरिकी इतिहास में दूसरे राष्ट्रपति हैं. बड़ी बात ये है कि स्विंग स्टेटस में भी ट्रंप को एकतरफा जीत मिली. नतीजे आने के बाद ट्रंप ने निर्वाचित उपराष्ट्रपति जे डी वेंस और परिवार के सदस्यों के साथ समर्थकों को संबोधित किया. ट्रंप ने कहा, वो अगले चार साल तक बिना रुके, बिना थके अमेरिका की बेहतरी के लिए काम करेंगे. ट्रंप ने कहा कि आने वाले चार साल अमेरिका के लिए स्वर्णिम होंगे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहले सोशल मीडिया पर ट्रम्प को बधाई दी और उसके बाद टेलीफोन पर ट्रंप को जीत की बधाई दी. सूत्रों के मुताबिक, फोन पर बातचीत के दौरान ट्रम्प ने भारत को “एक शानदार देश” और मोदी को “एक शानदार नेता” बताया, “जिन्हें दुनिया भर के लोग प्यार करते हैं.”
सवाल ये है कि अमेरिका में सत्ता परिवर्तन से हमारे देश और हमारे पड़ोसी देशों पर क्या असर होगा ? क्या मोदी और ट्रंप की अंतरंग मित्रता दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत करने में काम आएगी? ट्रंप व्यापारी हैं और एक ज़बरदस्त सौदेबाज़ हैं. क्या ट्रंप के आने से भारत के व्यापार पर असर पड़ेगा? ट्रंप अमेरिका में प्रवेश करने वालों के बारे में सख्त नीति बनाए जाने के हिमायती हैं. क्या इसका असर अमेरिका जाने वाले भारतीयों पर पड़ेगा?
ट्रंप की सत्ता में वापसी को अमेरिका के राजनीतिक इतिहास की सबसे ज़बरदस्त वापसी में रूप में देखा जा रहा है. 2020 में जो बाइडेन से चुनाव हारने के बाद ट्रंप ने एक के बाद एक कई मुश्किलों का सामना किया. समर्थकों ने, रिपब्लिकन पार्टी के बड़े नेताओं ने ट्रंप का साथ छोड़ दिया था, लेकिन ट्रंप ने हार नहीं मानी और वो एक बार फिर से अमेरिका के बिग बॉस बन गए. पिछले चार साल में ट्रंप ने तमाम राजनीतिक और अदालती चुनौतियों का सामना किया. और आखिर में सभी चुनौतियों को मात देकर उन्होंने ऐतिहासिक जीत दर्ज की. इस जीत ने अमेरिका को एक मजबूत स्थिति में ला दिया है. अब वहां सरकार को लेकर कोई अनिश्चितता नहीं है. ट्
ट्रंप की जीत का असर पूरी विश्व व्यवस्था पर दिखाई देगा. ट्रंप रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त कराने की कोशिश करेंगे. इसमें भारत की भूमिका अहम हो सकती है. नरेंद्र मोदी पिछले कुछ महीनों में तीन बार पुतिन से और दो बार जेलेंस्की से मिलकर शांति का रास्ता निकालने की कोशिश कर चुके हैं. ट्रंप की जीत का असर अरब जगत और इजरायल के रिश्तों पर भी पड़ेगा.
भारत के संदर्भ में ट्रंप की जीत को दो तरीके से देखा जा सकता है. एक तो ट्रंप और मोदी के रिश्ते के लिहाज से. जाहिर है कि कमला हैरिस के मुकाबले ट्रंप से मोदी के रिश्ते ज्यादा व्यक्तिगत हैं, पुराने हैं. दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते और समझते हैं. ट्रंप की कूटनीति का अंदाज व्यक्ति आधारित है. व्यक्तिगत रिश्तों पर वो जोर देते हैं और ट्रंप ये कह चुके हैं कि नरेंद्र मोदी उनके दोस्त हैं और एक मजबूत नेता हैं. इस सोच का फायदा भारत को मिलेगा.
दूसरा पैमाना है, भारत की कूटनीतिक जरूरतें. भारत को चीन हमेशा चुनौती देता रहा है. अब ट्रंप और मोदी की दोस्ती का असर यहां दिखाई देगा. कनाडा में जस्टिन ट्रूडो भारत के लिए नई मुसीबत बन गए हैं. वो खालिस्तानियों का समर्थन करते हैं. बायडेन प्रशासन कनाडा का समर्थन करता हुआ दिखाई दे रहा था. अब ये समीकरण भी बदलेंगे और इस मामले में भारत और ज्यादा मजबूत होगा.
इन सबसे ऊपर, ट्रंप का ये कहना कि मैं इंडिया का फैन हूं और हिंदुओं का फैन हूं. अगर मेरी जीत होती है, व्हाइट हाउस में हिंदुओं का एक सच्चा दोस्त होगा. किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने पिछले 200 साल में इस तरह की बात नहीं कही और इसका असर नजर आएगा. ट्रंप ने बयान दिया था, जिसमें कहा था, “मैं हिंदुओं का बहुत बड़ा फ़ैन हूं और मैं भारत का भी बहुत बड़ा फ़ैन हूं. मैं सीधे सीधे ये बात कहते हुए शुरुआत करना चाहता हूं कि अगर मैं राष्ट्रपति चुना जाता हूं तो व्हाइट हाउस में भारतीय समुदाय और हिंदुओं का एक सच्चा दोस्त होगा. मैं इसकी गारंटी देता हूं.”
बांग्लादेश

ट्रंप ने इसी तरह का जज्बा हिंसा के शिकार बांग्लादेश के हिन्दुओं के लिए भी दिखाया था. इसीलिए इस बात में कोई शक नहीं है कि अमेरिका में ट्रंप की जीत का असर भारत के पड़ोसी पाकिस्तान और बांग्लादेश पर भी असर होगा. कुछ-कुछ असर तो आज ही दिखने लगा. बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने ट्रंप को जीत की बधाई दी.
शेख हसीना इस वक्त दिल्ली में हैं. उन्होंने कहा कि वो ट्रंप के साथ मिलकर काम करने को तैयार हैं. अवामी लीग की अध्यक्ष के नाते शेख हसीना के इस बयान के बड़े मतलब हैं. क्योंकि बांग्लादेश में इस वक़्त मुहम्मद यूनुस की अन्तरिम सरकार है. यूनुस क्लिंटन परिवार के करीबी हैं. बाइडेन प्रशासन की मदद से उन्होंने बांग्लादेश में तख्ता पलट करवाया, अन्तरिम सरकार के मुखिया बने. लेकिन, बांग्लादेश को लेकर ट्रंप का रुख़ बिल्कुल साफ़ है.
ट्रंप ने दिवाली के दिन ट्वीट करके, बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले की कड़ी निंदा की थी. ट्रंप ने लिखा था कि जो बाइडेन और कमला हैरिस ने दुनिया भर के हिंदुओं की अनदेखी की, लेकिन वो ऐसा नहीं होने देंगे. ट्रंप ने वादा किया कि राष्ट्रपति बनने पर वो हिंदुओं की हिफ़ाज़त के लिए काम करेंगे, जबरन धर्म परिवर्तन रोकेंगे. इसीलिए, ट्रंप की जीत से बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के लिए ख़तरे की घंटी बज गई है. इसी पृष्ठभूमि में शेख हसीना के बयान को समझने की जरूरत है.

पाकिस्तान
जहां तक पाकिस्तान का सवाल है, ट्रंप के जीतने से इमरान ख़ान के समर्थक बहुत ख़ुश हैं, ख़ुशी मना रहे हैं और उम्मीद जता रहे हैं कि ट्रंप, इमरान ख़ान को जेल से छुड़वाएंगे. लेकिन ट्रंप ने इमरान ख़ान के साथ बैठकर कहा था कि पाकिस्तान में आतंकियों को पनाह दी जाती है और वो आतंक के इन अड्डों का सफ़ाया करेंगे. अपने पिछले कार्यकाल में ट्रंप ने पाकिस्तान के आतंकवादी अड्डों के बारे में कड़ा रुख़ अपनाया था. पाकिस्तान को मिलने वाली 24 अरब डॉलर की मदद रोक दी थी.
चीन
भारत के तीसरे पड़ोसी चीन में भी ट्रंप की जीत को लेकर चिंता है. अपने पिछले कार्यकाल में ट्रंप ने चीन के साथ व्यापार युद्ध छेड़ दिया था. चीन से आयात होने वाले सामानों पर भारी कस्टम ड्यूटी लगा दी थी. चीन की कंपनियों की डांच कड़ी कर दी थी. इससे दोनों देशों के कारोबार पर असर हुआ था. इसीलिए ट्रंप की वापसी पर चीन के रवैसे में तनाव नज़र आया. नतीजा आने के बाद चीन ने सधी प्रतिक्रिया दी. चीन के विदेश मंत्रीलय की प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका में कोई भी राष्ट्रपति बने उससे फ़र्क़ नहीं पड़ता, चीन अपनी पुरानी नीति पर चलता रहेगा और ये चाहेगा कि पारस्परिक सम्मान का भाव हो.

यूरोप मध्य पूर्व
ट्रंप की जीत से यूरोपीय देशों के नेता भी असमंजस में है. बालांकि यूरोपीय देशों के राजनेताओं ने ट्रम्प को बधाई दी, लेकिन हकीकत ये है कि ट्रंप की जीत से यूरोपीय देशों के नेता कुछ परेशान हैं. अपने पिछले कार्यकाल में ट्रंप ने कहा था कि यूरोप को अपनी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ख़ुद उठानी चाहिए. अमेरिका कब तक उनका बोझ उठाए. उन्होंने जर्मनी में तैनात अमेरिकी सैनिकों का ख़र्च भी मांगा था. इसीलिए अब अगर अमेरिका का रूख बदला, अगर ट्रंप अपनी पुरानी नीति पर लौटे, तो दुनिया के तमाम सामरिक समीकरण गड़बड़ा सकते हैं. यूरोप के नेताओं को इसी बात की चिंता है.
यूरोप की चिंता यूक्रेन युद्ध को लेकर है. ट्रंप अपने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान यूक्रेन युद्ध की आलोचना करते रहे. वो कहते रहे कि ये बेकार की जंग है और राष्ट्रपति बनने पर वो एक दिन में ये युद्ध ख़त्म करा देंगे. ट्रंप ने अपने विजय भाषण में भी यही बात दोहराई. उन्होंने कहा कि वो युद्ध लड़ने के लिए नहीं, युद्ध बंद कराने के लिए चुनाव जीते हैं. रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने ट्रंप को जीत की बधाई नहीं दी, लेकिन क्रेमलिन ने कहा कि ट्रंप की नीति और नीयत देखकर ही रूस अपना रुख तय करेगा.
लेकिन ईरान ज़रूर सदमे में है. ट्रंप के चुनाव जीतने की ख़बर आई, तो ईरान की करेंसी रियाल में भारी गिरावट आई. ट्रंप की जीत से ईरान के लिए ख़तरा और बढ़ गया है क्योंकि ईरान को लेकर ट्रंप बहुत सख़्त नीति पर चलते रहे हैं. पिछले कार्यकाल में ट्रंप ने ईरान के साथ परमाणु समझौते से अमेरिका को अलग कर लिया था. ईरान पर नए प्रतिबंध लगा दिए थे और ईरान पर बमबारी की धमकी दी थी. इस बार ग़ाज़ा में युद्ध चल रहा है. इज़राइल लेबनान में हिज़्बुल्लाह से जंग लड़ रहा है. ऐसे में आशंका है कि अमेरिका सीधे तौर पर कुछ कर सकता है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने युद्ध को लेकर बड़ी बात कही. एस जयशंकर ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि अमेरिका अब किसी जंग का हिस्सा बनेगा. बल्कि उल्टा हो सकता है. ट्रंप के राज में अमेरिका दुनिया के तमाम इलाक़ों से अपनी सेनाएं हटा सकता है. विदेश मंत्री ने कहा कि अमेरिका ने दूसरों के झगड़ों से पीछे हटने की शुरूआत बराक ओबामा के दौर में ही कर दी थी, बाइडेन ने अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना वापस बुला ली और ट्रंप तो खुलकर ये कहते हैं कि वो किसी जंग में शामिल नहीं होंगे. जयशंकर की ये बात सही है कि अमेरिका किसी नए झगड़े में नहीं पड़ना चाहता. इस बात को दुनिया के वो सारे मुल्क समझते हैं जो किसी ना किसी युद्ध में उलझे हुए हैं.

Get connected on Twitter, Instagram & Facebook

Comments are closed.