काशी में बाबा विश्वनाथ का सैकड़ों साल पुराना शिवलिंग मिल गया। मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा बनाई गई ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाना से सदियों पुराना शिवलिंग जैसा विशाल पत्थर मिलने से शिवभक्तों में जबरदस्त उत्साह है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन सोमवार को वाराणसी में ‘हर-हर महादेव’ के नारे लगाने वाले भक्तों के साथ हिंदू समुदाय में खुशी का माहौल है। ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग की मौजूदगी से इस सर्वे में एक बड़ा ट्विस्ट आ गया है।
हिंदू पक्ष के वकीलों का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग पानी में डूबा हुआ था। उसके चारों तरफ एक नौ इंच की दीवार बनाई गई थी। दीवार दिखने में ऐसी थी जैसे वजू के लिए बने तालाब में फव्वारा लगा हो। लेकिन ये फव्वारा नहीं था । यह शिवलिंग को कवर करने के लिए या छुपाने के लिए दीवार बनाई गई थी और फिर इसमें पानी भर दिया गया। वर्षों से कोई तालाब के बीच में कभी गया नहीं इसलिए शिवलिंग के अस्तित्व का पता नहीं चला। लेकिन अदालत के आदेश पर कोर्ट कमिश्नर्स की मौजूदगी में शिवलिंग एक बार फिर दुनिया के सामने आ गया। इस पूरी घटना की वीडियो रिकॉर्डिंग हुई।
जिस वक्त यह शिवलिंग मिला उस वक्त अदालत में याचिका दाखिल करने वाली पांचों महिलाएं, उनके वकील, अंजुमन इंतजामिया मस्जिद के नुमाइंदें, मुस्लिम पक्ष के वकील और वाराणसी के बड़े अफसर वहां मौजूद थे। हालांकि मुस्लिम पक्ष के लोग इस दावे को गलत बता रहे हैं। लेकिन जब सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर को इस बात की जानकारी दी गई तब उन्होंने तुरंत ज्ञानवापी परिसर के उस क्षेत्र को सील करने का आदेश दिया और कहा कि वहां किसी को जाने की इजाजत न दी जाए ।
मंगलवार को भारी पुलिस बल के बीच स्थानीय मुस्लिमों ने इस मस्जिद के अंदर शांतिपूर्वक नमाज अदा की। वहीं कोर्ट के द्वारा नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर ने सर्वे रिपोर्ट दाखिल करने के लिए दो दिनों का समय मांगा है। इस मामले के प्रतिवादियों में से एक अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद (एआईएम) के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ने याचिकाकर्ता राखी सिंह के वकील हरिशंकर जैन पर तालाब के अंदर एक फव्वारे के एक हिस्से को ‘शिवलिंग’ के रूप में पारित कराने का आरोप लगाया। मस्जिद कमिटी के वकील अभयनाथ यादव ने कहा- ‘मैं यह देखकर हैरान हूं कि याचिकाकर्ताओं के वकील दावा कर रहे हैं कि ज्ञानवापी परिसर के अंदर एक शिवलिंग पाया गया जबकि सच्चाई यह है कि कोर्ट द्वारा नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर ने अभी तक अपनी रिपोर्ट जमा भी नहीं की है।’
सोमवार को हिंदू भक्तों में खुशी का माहौल रहा। याचिकाकर्ता राखी सिंह के वकील हरिशंकर जैन ने ‘शिवलिंग’ मिलने को एक बहुत अहम सबूत बताया और कोर्ट से इसकी सुरक्षा के लिए पूरे क्षेत्र को सील करने का अनुरोध किया। उन्होंने उस परिसर में मुसलमानों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने और नमाजियों की संख्या को एक बार में 20 तक सीमित करने की भी मांग की। हिंदू पक्ष के वकीलों में से एक डॉ. सोहन लाल आर्य ने कहा, ‘बाबा मिल गए। जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ..इशारों में पूरी बात समझ लीजिए’।
वाराणसी के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट कौशल राज शर्मा ने कहा कि चूंकि वजूखाना में पहले से ही स्टील एंगल और जाली की बाड़ लगी है और तीन जगहों से एंट्री प्वाइंट बने हुए हैं, इसलिए स्थानीय प्रशासन को इस एरिया को सील करने के लिए किसी तरह के अतिरिक्त प्रयास में कोई समस्या नहीं है। उन्होंने कहा कि पास ही में सीआरपीएफ का वॉच टावर लगाया गया है।
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वे का आदेश स्थानीय अदालत ने तब दिया था जब पांच हिंदू महिला याचिकाकर्ताओं ने ज्ञानवापी परिसर की बाहरी दीवार के साथ देवी श्रृंगार गौरी और अन्य देवताओं की रोजाना पूजा करने का अधिकार मांगा था। हिंदू पक्ष के वकील डॉ. सोहन लाल आर्य ने कहा, ‘हमें हमारे बाबा मिल गए. जिनका इंतजार नंदी महाराज सैकड़ों साल से कर रहे थे’।
यह कहे जाने पर कि मुस्लिम पक्ष इस दावे को काल्पनिक बता रहा है, उन्होंने कहा, ‘अब सब कुछ पता चल गया है। जितनी उम्मीद की थी, उससे कहीं ज्यादा सबूत हमारे पास हैं…आज का दिन हमारे लिए बड़ा है। शिवलिंग मिलते ही पूरा परिसर ‘हर-हर महादेव’ से गूंज उठा। लोग नाचने लगे… अब हम 75 फीट लंबी और 30 फीट चौड़ी जो पश्चिमी दीवार है और श्रृंगार गौरी के सामने 15 फीट ऊंचे मलबे की जांच के लिए एक आयोग की मांग करेंगे। उस मलबे में निश्चित तौर पर हमें शिलाखंड, देवी-देवताओं की प्रतिमा का जो है ध्वंस है..वो सब का सब मिलेगा।’
जैसे ही वकीलों का यह दावा सामने आया तो देश भर में करीब 450 साल पहले औरंगजेब के शासन के दौरान जो हुआ था, उसे लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जाने लगीं। साढ़े चार सौ साल पहले का इतिहास एक बार फिर सामने आ गया। दावा किया गया कि चार फीट व्यास का शिवलिंग खोज लिया गया है, लेकिन जमीन के अंदर यह कितना दब गया है, इसका फिलहाल कोई अंदाजा नहीं है।
लेकिन इतना तो तय है कि वजूखाने के बीचों-बीच पानी के अंदर कीचड़ में धंसा शिवलिंग मिला है। सर्वे टीम के एक अन्य सदस्य सदस्य विष्णु जैन ने बताया कि नमाज से पहले वजू के लिए आने वाले नमाजियों ने शिवलिंग को पानी में डूबा हुआ जरूर देखा होगा क्योंकि पानी का लेवल कभी-कभार नीचे चला जाता है। कोर्ट की तरफ से नियुक्त कमिश्नरों ने करीब 250 जीबी की वीडियोग्राफी पूरी कर ली है।
जब आप सर्वे टीम के सदस्य आरपी सिंह की बात सुनेंगे तो सारी तस्वीर बिल्कुल साफ हो जाएगी। हिन्दू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी परिसर के बाहर जो नंदी की मूर्ति है उसके ठीक सामने काशी विश्वनाथ का प्राचीन शिवलिंग था। कल जो शिवलिंग मिला है वह बिल्कुल नंदी के ठीक सामने 83 फीट की दूरी पर मिला है और इस जगह पर फिलहाल मस्जिद का वजूखाना है। आमतौर पर शिव मंदिरों में शिवलिंग से इतनी ही दूरी पर नंदी की मूर्ति होती है। जहां तक फव्वारे की बात कही जा रही है तो आरपी सिंह ने बताया कि वह शिवलिंग ही है। उन्होंने कहा कि पहले सर्वे टीम को भी यही लगा था कि ये फव्वारा है लेकिन फव्वारे का कहीं कोई पानी से कनेक्शन नहीं था। शिवलिंग छिपाने के लिए फव्वारे जैसी दीवार को बनाया गया था।
दो दिनों के बाद अदालत में पेश की जानेवाली सर्वे रिपोर्ट से उन सबूतों का भी पता चलेगा जो तहखाने में पाए गए। एक अन्य वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने कहा कि जब वजूखाने से पानी को निकाला गया तब वहां दरवाजे जैसी चीज नजर आ रहा थी..लेकिन सर्वे कमीशन को तोड़फोड़ करने की इजाजत नहीं होती इसलिए फिलहाल उस जगह को छोड़ दिया गया है।
एतिहासिक तथ्य तो ये है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मजिस्द बनवाई गई। काशी विश्वनाथ की पौराणिकता इतिहास की किताबों से भी पुरानी है। स्कन्द पुराण और शिवपुराण में इसका वर्णन है। आधुनिक इतिहासकारों के पास भी एक हजार साल पुराना अभिलेख है जिसके आधार पर दावा किया जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के मूल स्वरूप को 1194 में मोहम्मद गौरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने तुड़वा दिया था। इसके बाद 1230 में गुजरात के एक व्यापारी ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। इसके बाद कई बार इस मंदिर को तोड़ा गया और कई बार इसे फिर से बनवाया गया।
हालांकि ज्ञानवापी मस्जिद किसने बनवाई इसको लेकर इतिहासकारों के मत अलग-अलग हैं।लेकिन इस बात को सब मानते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर के मौजूदा स्वरूप का निर्माण 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था। मंदिर में सोने के जो 3 गुंबद हैं, वो 1839 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने लगवाए थे। आज भी ज्ञानवापी मस्जिद को देखने के बाद कोई भी यही कहेगा कि मंदिर तोड़कर इसे बनाया गया है।
यही वजह है कि कोई भी मुस्लिम नेता या पैरोकार यह नहीं कह रहा है कि वहां मदिर नहीं था। सब यह कह रहे हैं कि वहां क्या था इससे मतलब नहीं है, मतलब इस बात से है कि आज वहां क्या है। ज्यादातर मुस्लिम नेता 1991 के धार्मिक पूजा स्थल अधिनियम (Religious Worship Act) का हवाला दे रहे हैं। इसमें कहा गया है कि अयोध्या को छोड़कर आजादी के वक्त जहां जो धार्मिक स्थल जैसा था, वो वैसा रहेगा। अब उसमें किसी तरह का बदलाव नहीं होगा और उसे कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जाएगा।
ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग मिलने के तुरंद बाद एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया: ‘दिसंबर1949 में बाबरी मस्जिद में जो हुआ था, यह उस अध्याय की पुनरावृति है। यह आदेश अपने आप में मस्जिद के धार्मिक स्वरूप को बदल देता है। यह 1991 के एक्ट का उल्लंघन है। ऐसी मेरी आशंका थी और यह सच हो गया।’ उन्होंने कहा-‘ज्ञानवापी मस्जिद थी…है.. और कयामत तक रहेगी’। ओवैसी ने अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद के इस दावे को दोहराया कि परिसर से शिवलिंग नहीं मिला है बल्कि यह फव्वारे का हिस्सा है। जम्मू-कश्मीर पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा, ‘वे अब मस्जिदों में भगवान ढूंढ रहे हैं, इसलिए वे हमारी मस्जिदों के पीछे पड़े हुए हैं। पहले उन्होंने अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई और अब ज्ञानवापी। वे हमें उन सभी मस्जिदों की सूची दें, जिन्हें वे ध्वस्त करना चाहते हैं।’
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने औवैसी और महबूबा मुफ्ती को जवाब दिया। हालांकि गिरिराज ने कहा कि मैं ज्यादा ना बोलूं तभी ठीक रहेगा। अगर बोला तो ओबैसी और महबूबा की जुबान बंद हो जाएगी। गिरिराज सिंह ने कहा कि जब मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं तो भगवान मस्जिदों में ही मिलेंगे। लेकिन अब एक बार फिर कानून का राज है और हिन्दुओं को न्याय मिल रहा है।
असदुद्दीन ओवैसी और महबूबा मुफ्ती ने जो कहा वो उनकी पॉलिटिकल लाइन है लेकिन वो जो कह रहे हैं वो एक जनरल बात है। उनका आरोप है कि बीजेपी के लोग जानबूझ कर मस्जिदों को लेकर विवाद खड़े कर रहे हैं, वो मस्जिदों के पीछे पड़ गए हैं। लेकिन अगर खासतौर पर ज्ञानवापी केस की बात करें तो ये सियासी तर्क कमजोर दिखाई देते हैं। ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में सर्वे कराने का फैसला कोर्ट का है। अदालत के आदेश पर सर्वे हुआ, किसी सरकार या बीजेपी के कहने पर नहीं।
औवेसी ने 1991 में बने कानून का भी जिक्र किया जिसके मुताबिक 1947 से पहले जो धार्मिक स्ट्रक्चर जैसा था वैसा ही रहेगा। उसके नेचर में कोई बदलाव नहीं होगा। इसमें दो बातें हैं। पहली बात ये है कि 1991 से पहले यानि 1947 से लेकर 1991 तक ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी की रोज पूजा होती थी। 1991 में इस पर पाबंदी लगी। फिर बाद में एक दिन पूजा की इजाजत मिली। अगर इसे कानून के लिहाज से देखा जाए तो 1947 के बाद की स्थिति बहाल रहनी चाहिए, यानि वहां रोज श्रृंगार गौरी की पूजा होनी चाहिए।
दूसरी बात ये है कि ओवैसी कानून को लेकर भी आधी बात बता रहे हैं। उनकी बात आधी सही है। बीजेपी के नेताओं ने कहा कि औवैसी ये बताना भूल गए कि इसी कानून में कुछ छूट भी (Exemptions) है। वो छूट ये है कि अगर कोई स्ट्रक्चर 100 साल से भी ज्यादा पुराना है तो वो इस कानून के दायरे से बाहर होगा। ज्ञानवापी मस्जिद में जो शिवलिंग मिला है उसके बारे में दावा है कि साढ़े चार सौ साल पुराना है। अगर ये बात साबित हो जाती है तो फिर यह स्ट्रक्चर 1991 के कानून के दायरे से बाहर होगा। लेकिन मुझे लगता है कि इस मामले में सियासत तो होगी। उसे कोई नहीं रोक सकता।