अब यह बात बिल्कुल साफ हो गई है कि कांग्रेस और लेफ्ट सहित कई राजनीतिक दल किसानों को दिल्ली के बॉर्डर पर बीते एक महीने से जारी धरने को खत्म न करने के लिए भड़का रहे हैं। वे नहीं चाहते कि किसान नेता केंद्र के साथ बातचीत करें, कोई रास्ता निकालें और अपने घर जाएं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और वामपंथी किसान यूनियन के नेता हन्नान मोल्लाह के बयानों से ये बात साफ हो गई है। दोनों ने साफ-साफ कहा कि किसान तब तक अपना आंदोलन जारी रखेंगे जब तक कि तीनों नए कृषि कानूनों को वापस नहीं ले लिया जाता।
राहुल गांधी ने गुरुवार को अपनी पार्टी के 2 अन्य नेताओं, गुलाम नबी आजाद और अधीर रंजन चौधरी के साथ राष्ट्रपति से मुलाकात की और उन्हें एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें उन्होंने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग रखी। ये नेता अपनी पार्टी के सांसदों के साथ विजय चौक से राष्ट्रपति भवन तक मार्च करना चाहते थे, लेकिन कोरोनो वायरस महामारी के चलते दिल्ली पुलिस ने इन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। राष्ट्रपति ने कांग्रेस के सिर्फ 3 नेताओं को उन्हें ज्ञापन देने की इजाजत दी। प्रियका गांधी समेत कांग्रेस के तमाम नेताओं ने बैरीकेड पार करके आगे बढ़ने की कोशिश की तो पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया। कुछ देर बाद हिरासत में लिए गए सभी नेताओं को छोड़ दिया गया।
राहुल गांधी ने राष्ट्रपति भवन के बाहर दावा किया कि उन्होंने राष्ट्रपति को जो ज्ञापन सौंपा है उस पर 2 करोड़ किसानों ने हस्ताक्षर किए हैं। ज्ञापन में पार्टी ने संसद का एक विशेष सत्र बुलाकर तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग की है। इसके बाद राहुल फिर से वही पुराने आरोप दोहराने लगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन कृषि कानूनों के जरिए अपने 2 या 3 ‘उद्योगपति दोस्तों’ को फायदा पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन किसान ये सब बर्दाश्त नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस आंदोलनकारी किसानों के साथ खड़ी है।
अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में गुरुवार की रात हमें हमने 9 साल पहले किसानों के मुद्दों पर राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह द्वारा दिए गए 3 भाषणों की वीडियो क्लिप दिखाई थी।
16 दिसंबर, 2011 को उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद में राहुल गांधी किसानों को ‘ओपेन मार्केट’ के फायदे गिना रहे थे। उस समय यूपीए की सरकार सत्ता में थी और डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। राहुल ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था, ‘आलू उगाने वाले किसानों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। भारत में लगभग 60 प्रतिशत सब्जियाँ उचित भंडारण की कमी के कारण सड़ जाती हैं। हम रिटेल सेक्टर में FDI लाना चाहते हैं ताकि किसान अपनी उपज सीधे खरीदारों को बेच सकें, लेकिन विपक्ष ने हमें इस बिल को संसद में लाने से रोक दिया। क्यों? क्योंकि विपक्ष किसान विरोधी है।’
पिछले 6 सालों से हम राहुल गांधी को लगातार ये आरोप लगाते हुए देख रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंबानी और अडानी जैसे उद्योगपतियों के इशारे पर काम कर रहे हैं, लेकिन इसके पहले 10 साल तक रहे यूपीए शासन के दौरान क्या हुआ? उस वक्त सिर्फ राहुल गांधी ही नहीं बल्कि कांग्रेस का हर बड़ा नेता कृषि के क्षेत्र में निजी और विदेशी निवेश के पक्ष में बोल रहा था।
4 नवंबर 2012 को दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस की एक रैली को संबोधित करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने कहा था, ‘रिटेल व्यापार में विदेशी निवेश की अनुमति देने के हमारी सरकार के फैसले पर काफी बहस हुई है। मेरा, कांग्रेस पार्टी का और हमारी सरकार का मानना है कि ये फैसला हमारे देश के हित में है, जिससे आम जनता और किसानों दोनों को फायदा होगा। आज किसानों की फसल का एक बहुत बड़ा हिस्सा बर्बाद हो जाता है। हम ट्रांसपोर्ट और स्टोरेज की सुविधाएं नहीं दे पाते हैं। रिटेल व्यापार में विदेशी निवेश से इन सुविधाओं को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। हमारे किसान भाई-बहनों को उनकी फसल के बेहतर दाम मिल सकते हैं, क्योंकि वो उसे बाजारों तक पहुंचा सकेंगे। आम जनता को सब्जी और फल सस्ते दामों पर मिल पाएंगे।’
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तो कई मौकों पर बिल्कुल साफ-साफ लफ्जों में कहा था कि किसान इसलिए गरीब है क्योंकि उसे फसल के सही दाम नहीं मिलते। उन्होंने कहा था, ‘किसान इसलिए गरीब हैं क्योंकि उन्हें मंडियों का गुलाम बना दिया गया है, और उन्हों फसल की बेहतर कीमत तभी मिलेगी जब उन्हें बिचौलियों के चंगुल से मुक्त कराया जाएगा। और ऐसा तभी होगा जब किसानों को ये हक दिया जाए कि वो मंडी के बाहर जहां चाहें, जिसे चाहें और जिस रेट पर चाहें अपनी फसल बेच सकते हैं।’
3 अक्टूबर 2012 को सोनिया गांधी ने कहा था, ‘किसानों की पैदावार सस्ते से सस्ते दामों पर खरीदी जाती है और शहर में महंगे से महंगे दामों में बेची जाती है। मैं पूछना चाहती हूं कि किसानों का हक नहीं बनता है कि उनके पैदावार की सही कीमत उन्हें मिले? क्या शहर के आम इंसान का ये हक नहीं बनता है कि रोजमर्रा के जरूरत की चीजें उन्हें भी सही दाम पर मिले? यह कब संभव होगा? यह तभी संभव है कि जब किसान बिना किसी बिचौलिये के अपनी पैदावार सीधे शहर तक पहुंचा सकें।
इन बयानों को सुनते हुए किसी को भी ऐसा लग सकता है कि मोदी सरकार का कोई मंत्री कृषि कानूनों का बचाव कर रहा है। राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह, तीनों नेता कह रहे हैं कि किसानों को मंडी के बाहर फसल बेचने का हक मिलना चाहिए और बिचौलियों का खात्मा होना चाहिए। तीनों नेताओं ने कृषि क्षेत्र में विदेशी और निजी निवेश के समर्थन में भी बात की थी। लेकिन आज राहुल गांधी अपनी उस बात के बिल्कुल उलट बात कह रहे हैं जो उन्होंने 9 साल पहले कही थी।
राहुल गांधी के आरोपों पर पलटवार करते हुए भारतीय जनता पार्टी के नेता सुधांशु त्रिवेदी ने गुरुवार को कहा, ‘कांग्रेस को यह बताना चाहिए कि उसने 32 साल पहले पेप्सी और नेस्ले इंडिया को किसानों से सीधे फसलों की खरीद की इजाजत क्यों दी थी।’
बीजेपी की ये बात सही है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और प्राइवेट सेक्टर को खेती के काम में इनवॉल्व करने का काम कांग्रेस सरकार ने 32 साल पहले किया था। बीजेपी की ये बात भी सही है कि राहुल, सोनिया और डॉक्टर मनमोहन सिंह कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और कृषि क्षेत्र में निजी एवं विदेशी निवेश के पक्ष में बार-बार बोला करते थे। जब वे सत्ता में थे तो उन्होंने खेती में बिचौलियों की भूमिका को खत्म करने का आह्वान किया था।
फिर यह यू-टर्न क्यों? मेरे ख्याल से राहुल गांधी को लगता है कि पिछले एक महीने से धरने पर बैठे पंजाब, हरियाणा और यूपी के किसानों को 9 साल पहले उनके और उनकी पार्टी के नेताओं द्वारा कही गई बातें याद नहीं होंगी। राहुल और उनकी पार्टी के नेता केवल किसानों और केंद्र के बीच जारी गतिरोध का सियासी फायदा उठाना चाहते हैं।
कांग्रेस और लेफ्ट का एकमात्र एजेंडा किसानों के कंधों पर बंदूक रखकर केंद्र पर निशाना साधना है। उन्हें न तो किसानों के हित से कोई मतलब है, और न ही MSP या ’मंडियों’ से। इसीलिए राहुल अपने भाषणों में अंबानी और अडानी को घुसा देते हैं, तो लेफ्ट पार्टियां देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद शरजील इमाम और वरवरा राव की रिहाई की मांग करने लगती हैं।
जो असली किसान हैं उन्हें मेरी सलाह है कि उन्हें संतुलित दृष्टिकोण के साथ मुद्दों को समझना होगा। उन्हें ये देखना होगा कि उनके हित में क्या है। टकराव में या बातचीत में, टकराव का रास्ता छोड़कर बातचीत का रास्ता निकालने में ही सबकी भलाई है। किसानों को चाहिए कि वो किसी भी राजनीतिक दल को इस आंदोलन का फायदा ना उठाने दें, क्योंकि जब तक इन राजनीतिक दलों का स्वार्थ बना रहेगा वे इस मामले का हल नहीं निकलने देंगे।