गौतम अडानी ग्रुप की कंपनियों के मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में आज लगातार दूसरे दिन हंगामा हुआ। विपक्षी नेताओं ने हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट के मद्देनजर सरकारी बैंकों से अडानी ग्रुप को लोन देने के मामले में कथित ‘वित्तीय अनियमितताओं’ पर चर्चा की मांग की। विपक्ष के इन आरोपों को अडानी ग्रुप पहले ही पूरी तरह नकार चुका है।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी नेता पूरे मामले की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति के गठन की मांग कर रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने उन सभी बैंकों से ब्योरा मांगा है, जिन्होंने अडानी ग्रुप को लोन दिया है। गौतम अडानी ने साफ किया है कि उनकी कंपनियों ने कोई वित्तीय अनियमितता नहीं की है और इसके सभी लेन-देन पक्के हैं। उन्होंने यह भी साफ किया कि उनकी कंपनियों ने किसी भी भुगतान में चूक नहीं की है और न ही किसी को वित्तीय नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने यह भी ऐलान किया है कि बाजार में मौजूदा उतार-चढ़ाव के कारण पूरी तरह से सब्सक्राइब होने के बावजूद अपना FPO वापस ले रहे हैं।
अब सवाल यह उठता है कि क्या शॉर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग के पास अडानी ग्रुप के शेयर हैं? क्या किसी विदेशी रिसर्च फर्म की रिपोर्ट को बिना जांचे परखे सच मान लेना सही है? या, क्या हमें RBI और SEBI पर भरोसा करना चाहिए?
कांग्रेस ने सवाल उठाया है कि अडानी ग्रुप के शेयरों में LIC और SBI ने भारी निवेश क्यों किया। LIC और SBI दोनों ने कहा है कि उन्हें किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ है। क्या अडानी का मुद्दा विपक्ष के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने का एक बहाना भर है? इसे समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि अडानी ग्रुप के कारोबार, उसके शेयर मूल्य और संपत्ति में वृद्धि तब भी हुई थी जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी।
यहां तक कि मोदी के पिछले 9 वर्षों के शासन के दौरान कांग्रेस शासित राज्य सरकारों ने भी अडानी ग्रुप को अपने राज्यों में परियोजनाओं में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया है।
अडानी को लेकर विपक्ष का हमला कोई नई बात नहीं है। जब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट नहीं आई थी, तब भी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी कहते थे कि अंबानी-अडानी की सरकार है, और आरोप लगाते थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दोनों बड़े उद्योगपतियों के लिए काम कर रहे हैं। शेयर बाजार में अडानी ग्रुप के शेयरों की कीमतों में भारी गिरावट के बाद अब विपक्ष को मोदी पर हमला करने के लिए एक नया बहाना मिल गया है।
यह तो साफ है कि अडानी की तरक्की उस जमाने में शुरू हुई जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और गुजरात में चिमनभाई पटेल की सरकार थी। इसके बाद नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान, डॉक्टर मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री रहते हुए अडानी ने नए-नए बिजनेस खड़े किए, ब्रैंड वैल्यू बनाई और जबरदस्त ग्रोथ हासिल की।
फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जमाने में जब इंफ्रास्ट्रक्चर ने रफ्तार पकड़ी तो गौतम अडानी ने भी रफ्तार पकड़ी और पोर्ट्स, पावर प्लांट्स समेत अन्य प्रॉजेक्ट्स में हाथ डाला। राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर अजय आलोक कहते हैं कि गौतम अडानी सक्सेज स्टोरी तो बच्चों के बतानी चाहिए, वह काफी प्रेरणादायक है। गौतम आडानी ने कांग्रेस के शासन के दौरान 2 करोड़ रुपये से कारोबार शुरू किया था और वह मनमोहन सिंह की सरकार के वक्त तक 80,000 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाले कारोबारी बन गए थे।
यह बात सही है कि अडानी की कंपनी को राजीव गांधी, डॉक्टर मनमोहन सिंह, चिमनभाई पटेल, उद्धव ठाकरे, अशोक गहलोत और यहां तक कि केरल में पिनराई विजयन की सरकारों में काम मिला है। इन सरकारों ने कोई गलत काम नहीं किया, लेकिन जिस तरह गौतम अडानी को लेकर आरोप लग रहे हैं, जो बयान दिए जा रहे हैं, वे सुनने के बाद यह साफ है कि सारा मामला पॉलिटिकल ज्यादा है और फाइनेंशियल कम। गौतम अडानी का दावा है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में जो इल्जाम लगाए गए हैं, वे 15 से 20 साल पुराने मामले हैं और इनमें पहले ही अडानी ग्रुप को सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट भी मिल चुकी है।
भारतीय जीवन बीमा निगम ने गुरुवार को साफ कर दिया कि अडानी ग्रुप की कंपनियों में उसका निवेश उसके कुल मार्केट इन्वेस्टमेंट का महज एक फीसदी है। अगर अडानी ग्रुप मार्केट वैल्यू जीरो भी हो जाती है, तो भी LIC के डूबने का कोई खतरा नहीं है। LIC ने कहा, उसने अडानी ग्रुप की कंपनियों में 30,127 करोड़ रुपये का इन्वेस्टमेंट किया है, जिसकी मार्केट वैल्यू सोमवार को 56,142 करोड़ रुपये थी।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने कहा कि उसने अडानी ग्रुप को 2.6 बिलियन डॉलर यानि करीब 21 हजार करोड़ रुपए का लोन दे रखा है, लेकिन अभी तक अडानी ग्रुप की तरफ से एक बार भी कोई किश्त डिफॉल्ट नहीं हुई है। बैंक ने कहा कि अडानी ग्रुप के जो एसेट गारंटी के तौर पर उसके पास हैं, उसके हिसाब से उसका इन्वेस्टमेंट सुरक्षित है।
पंजाब नेशनल बैंक ने कहा कि उसने अडानी ग्रुप को 7,000 करोड़ रुपये का कर्ज दिया है। कई प्राइवेट बैंकों ने भी अडानी ग्रुप को लोन दिया है। अगर सारे भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बैंकों का कर्ज भी मिला लिया जाए, तो भी सिर्फ गौतम अडानी की अपनी निजी संपत्ति उससे ज्यादा है। अडानी की नेटवर्थ, बैंकों के कर्ज से ज्यादा है। उनकी कंपनियों में पर्याप्त कैश फ्लो है। पिछले कुछ साल के दौरान अडानी ग्रुप की आमदनी के मुकाबले लोन भी कम हुआ है, इसलिए डिफाल्ट होने का सवाल ही नहीं है।
मोटी बात यह है कि न तो मोदी के दुश्मनों की संख्या कम है, और न ही अडानी की तरक्की से जलने वाले लोगों की कमी है। हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट तो मोदी और अडानी, दोनों को निशाने पर लेने का एक बहाना भर है। कुछ लोग ऐसा इंप्रेशन बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि अडानी की तरक्की सिर्फ एक बुलबुला है जो फूटने वाला है और उनका बिजनेस खत्म हो जाएगा, लेकिन वे बस लोगों को गुमराह कर रहे हैं। अडानी ग्रुप डूबने वाला नहीं है।
मैं आपको बताता हूं कि आखिरकार गौतम अडानी के बिजनेस की वैल्यू क्या है, उनके असेट्स क्या हैं। अडानी ग्रुप के पास भारत में गंगावरम, मुंद्रा और हजीरा जैसे पोर्ट्स हैं। अडानी ग्रुप केरल के विंझिजम में सिंगापुर और कोलंबो जैसे डीप वाटर पोर्ट बना रहा है। देश भर में अडानी ग्रुप के थर्मल पावर यूनिट्स हैं जो 13 हजार 500 मेगावाट पावर जेनरेट होती है और इसमें से ज्यादातर क्लीन एनर्जी की कैटिगरी में आती है। अडानी ग्रुप के पास 650 मेगावाट सोलर पावर बनाने की क्षमता है। इसकी 18 हजार सर्किट किलोमीटर की ट्रांसमिशन लाइंस और 30,000 MVA की ट्रांसफर कैपिसिटी एशिया में सबसे ज्यादा है।
अडानी के पास देश के 6 एयरपोर्ट हैं, इसके अलावा मुंबई एयरपोर्ट में हिस्सेदारी है। 2025 में शुरू होने वाले नवी मुंबई एयरपोर्ट को भी अडानी की कंपनी ऑपरेट करेगी। टॉप सीमेंट कंपनी ACC और अंबुजा अडानी ग्रुप के पास हैं। मुंद्रा में स्थित भारत का सबसे बिजी स्पेशल इकनॉमिक जोन अडानी ग्रुप के पास है। इस ग्रुप के पास ऑस्ट्रेलिया में कोयले की खदान है जिससे भारत के पावर प्लांट्स में भी हाई ग्रेड कोयले की सप्लाई होती है। अडानी ग्रुप NTPC की अडंर कंस्ट्रक्शन सोलर और विंड एनर्जी प्लांट का पार्टनर भी है।
अपनी फ्लैगशिप कंपनी अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड के तहत आने वाली कंपनियों जैसे अडानी पोर्ट्स, अडानी पावर, अडानी ग्रीन एनर्जी, अडानी विल्मर, अडानी टोटल गैस के जरिए अडानी ग्रुप ने भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट और इकॉनमिक ग्रोथ में भी काफी योगदान दिया है।
मैं अंत में एक बात कहना चाहता हूं कि अडानी एक उद्योगपति हैं। इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता की उनकी दौलत कम हो रही है या ज्यादा। लेकिन अडानी ने जो पोर्ट्स बनाए, थर्मल पावर स्टेशंस बनाए, एयरपोर्ट्स बनाए, ये अडानी ने अपने घर में इस्तेमाल करने के लिए नहीं बनाए। ये देश की संपति हैं।
उद्योगपति कोई भी हो, अगर राजनीतिक कारणों से हम उन पर हमला करेंगे तो इसमें देश का कितना नुकसान है, इसके बारे में भी एक बार जरूर सोचना चाहिए। पूरी दुनिया में लोग अपने वेल्थ क्रिएटर्स को सपोर्ट करते हैं, उनका सम्मान करते हैं, लेकिन हमारे यहां लोग किसी के भी पीछे पड़ जाते हैं, किसी पर भी शक करते हैं, विवाद पैदा करते हैं। मुझे लगता है कि इस सोच को बदलने की जरूरत है।