IS UTTARAKHAND UNIFORM CIVIL CODE ANTI-ISLAMIC ?
The BJP government in Uttarakhand has fulfilled its promise by bringing the Uniform Civil Code bill in the Assembly. Once it is passed by the legislature and the President gives her assent, it will become law and Uttarakhand will become India’s first state to enact the uniform civil code. Muslim organizations have threatened to challenge the law in courts as they feel it goes against the Muslim Personal Law. The UCC Bill has fixed 18 years for women and 21 years for men as the minimum age limit for marriage, and any breach of this provision shall entail jail up to six months and/or Rs 25,000 fine. Some of the provisions of the bill are: Registration of marriages shall be mandatory, polygamy and bigamy have been prohibited, Halala, iddat, triple talaq as per Islamic Shariah have been banned, no divorce shall be allowed within one year of marriage, all live-in couples shall have to register within one month of relationship, by providing no objection certificates from their parents, registrar shall verify live-in details to establish validity of relationship, any child born of live-in relationship shall be considered legitimate, live-in couple must inform officials if they terminate their relationship, and any woman deserted by her live-in partner shall be entitled to maintenance. The bill, with seven schedules and 392 sections, focuses on four key areas – divorce, marriage, live-in relationship and inheritance. All India Muslim Personal Law Board member Maulana Khalid Rashid Firangi Mahali, Uttarkhand Imam Organization chief Mufti Raees opposed the bill and alleged that it was being enacted in order to harass Muslims. Congress has sought time to study the provisions of the bill. Here I want to remind: when the Prime Minister Narendra Modi brought a law to abolish triple talaq in 2019, similar objections were raised by Muslim clerics, but Muslim women welcomed the law. They supported Modi and the Muslim clerics became silent. Similar objections are being raised this time against the UCC bill. Those opposing the bill are not pointing at any legal infirmities. They are only raising two questions: One, it is targeted against Muslim community since, according to them, Islam gives equal rights to women and women have rights on the properties of their husbands and fathers. Islamic Shariah also prohibits divorcing wives without any valid reason. These provisions are already there in the UCC bill. Then how can the clerics say, it is against Islam? Two, this law addresses the question of live-in relationships. We have already seen how many live-in partners have suffered and some of them were brutally murdered, like Shradha Walkar. This law stipulates mandatory registration of all live-in couples, informing parents about the relationships has also been made compulsory. This law will dissuade those who cheat women by hiding their real identities and then discard them. Such a law will reduce atrocities on female live-in partners. Moreover, this law has not changed the meaning of ‘nikaah’(marriage), nor has it changed Islamic traditions, nor has it declared talaq as illegal. This law has not curtailed the rights of men. It has only strengthened the rights of women. I, therefore, think to describe this Uniform Civil Code Bill as anti-Islamic is illogical. It is akin to insulting Islamic teachings. I, however, feel that this law should not be passed in a hurry. There must be open debate on each and every provision of the bill. All stakeholders must get the right to express their views. Secondly, extra efforts must be made to convince the Muslims that this bill will also benefit their community and make their lives better. This law is for enforcing equal rights, and it is not meant to target any community.
क्या उत्तराखंड का समान नागरिक कानून इस्लाम विरोधी है ?
उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता कानून लाने का वादा पूरा किया. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने UCC बिल विधानसभा में पेश किया. जब ये कानून बन जाएगा तो समान नागरिक संहिता लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य होगा. इस विधेयक के मुताबिक, अब उत्तराखंड में बिना तलाक दिए दूसरी शादी करने पर पूरी तरह पाबंदी होगी. शादी, तलाक और उत्तराधिकार के नियम सबके लिए बराबर होंगे. अभी इन मामलों में अलग अलग धर्मों के लिए अपनी अपनी परंपराएं हैं. मुसलमानों को चार शादियों की इजाज़त है लेकिन समान संहिता लागू होने के बाद ऐसा नहीं होगा. अब सभी धर्मों के लोगों के लिए शादी और तलाक़ के नियम एक जैसे होंगे और महिलाओं को पति या पिता की संपत्ति में बराबरी का हक होगा. अब मुस्लिम महिलाएं भी बच्चे गोद ले सकेंगी, गोद लेने के नियम भी एक जैसे होंगे. सबसे बड़ी बात ये है कि अब उत्तराखंड में लिव-इन रिलेशनशिप को भी शादी की तरह सामाजिक सुरक्षा दी गई है. लिव-इन कपल्स को रजिस्ट्रेशन कराना होगा. कांग्रेस ने यूनीफॉर्म सिविल कोड लागू करने वाले इस बिल का विरोध नहीं किया लेकिन पार्टी ने इस विधेयक पर गहराई से विचार करने के लिए मोहलत मांगी. बिल में शादी की न्यूनतम आयु सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया है. सभी धर्मों में शादी के वक्त लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल होनी चाहिए. नियम तो पहले भी यही था लेकिन इसका अनुपालन नहीं हो रहा था. लेकिन अब उत्तराखंड में रहने वाले हर मजहब के लोगों को इसका सख्ती से पालन करना होगा. ये कानून सप्तपदी, आशीर्वाद, निकाह, पवित्र बंधन, आनंद विवाह अधिनियम, स्पेशल मैरिज एक्ट या आर्य विवाह अधिनियम, किसी भी तरह से होने वाली शादी पर लागू होगा. शादी किसी भी रीति रिवाज से हुई हो, लेकिन उसका रजिस्ट्रेशन कराना अब सबके लिए जरूरी होगा. उत्तराखंड का कोई भी निवासी मजहब की आड़ लेकर तलाक नहीं दे सकता. बिल में ये प्रावधान किया गया है कि शादी होने के एक साल तक कोई भी शख्स तलाक़ का आवेदन फाइल नहीं कर सकता. अब तलाक़ के मजहबी तरीके मान्य नहीं होंगे, कानूनी तरीके से ही तलाक़ लेना होगा. तलाक़ के बाद रजिस्ट्रेशन कराना भी जरूरी होगा. बिल में बहुविवाह और पुनर्विवाह को गैरकानूनी करार दिया गया है. इसके लिए सख्त सज़ा और जुर्माना तय किया गया है. कोई शख्स अगर गैरकानूनी तरीके से तलाक़ देता है तो उसे 6 महीने जेल की सजा होगी और 50 हजार रुपये जुर्माना देना पड़ेगा. एक पत्नी के होते हुए कोई दूसरी शादी करता है तो उसे 3 साल की सजा और 1 लाख रुपये जुर्माना देना होगा. इस बिल में लिव-इन पार्टनर्स के लिए भी नियम बनाए गए हैं. लिव इन में रहने वाले कपल्स को अब रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा. अगर एक महीने के भीतर रजिस्ट्रेशन के बिना लिव-इन पार्टनर्स साथ रहते हैं तो 10 हजार रुपये जुर्माना या 3 महीने की सजा हो सकती है. लिव इन में रहते समय अगर कोई संतान होती है तो उसे लीगल माना जाएगा. उसकी देखभाल की जिम्मेदारी भी दोनों लिव-इन पार्टनर्स की होगी. इसके अलावा पेरेंट्स की प्रॉपर्टी में भी बच्चे का अधिकार होगा. अगर लिव-इन रिलेशनशिप टूटती है तो दोनों पार्टनर्स को इसकी जानकारी रजिस्ट्रार को देनी होगी. दोबारा रजिस्ट्रेशन कराना भी जरूरी होगा. मुस्लिम संगठन इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ साथ बहुत से मौलाना इस कानून को इस्लामिक परंपराओं के खिलाफ बता रहे हैं. उत्तराखंड इमाम संगठन के अध्यक्ष मुफ्ती रईस ने कहा कि ड्राफ्ट कमेटी ने मुसलमानों की राय को नजरअंदाज़ किया. मुफ्ती रईस ने कहा कि ये कानून सिर्फ मुसलमानों को परेशान करने के लिए लाया जा रहा है क्योंकि अगर ये कानून सबके लिए है तो फिर इससे अनुसूचित जनजातियों को अलग क्यों रखा गया. मैं याद दिला दूं कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीन तलाक़ के खिलाफ कानून बनाया था, उस वक्त भी इसी तरह की बातें कही गईं थी. लेकिन मुस्लिम महिलाओं ने इसका स्वागत किया, मोदी का समर्थन किया तो मौलाना, मौलवी खामोश हो गए. अब UCC को लेकर उसी तरह का विरोध हो रहा है. हालांकि जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं वो कानून में कमियां नहीं बता रहे हैं. वे सिर्फ दो सवाल उठा रहे हैं. पहला, ये कानून मुसलमानों के खिलाफ है. जो लोग ये बात कह रहे हैं वो ये भी कहते हैं कि इस्लाम में पहले ही महिलाओं को बराबरी का हक दिया गया है, पति की संपत्ति में पत्नी को, पिता का जायदाद में बेटी को हक़ दिया जाता है. बिना किसी कारण के पत्नी को छोड़ना गुनाह है. यही बातें तो इस कानून में कही गई है. फिर ये इस्लाम के खिलाफ कैसे हो गया? दूसरी और बड़ी बात ये है कि आजकल लिव-इन का चलन बढ़ा है. इसके कारण तमाम तरह की दिक्कतें सामने आ रही है. हमने श्रद्धा वालकर जैसे कई केस देखे. इस कानून में अब लिव-इन का रजिस्ट्रेशन जरूरी कर दिया गया है. माता पिता को इसकी जानकारी देना जरूरी है. इस तरह के प्रावधान से जो लोग अपनी पहचान छुपा कर लड़कियों से संबंध बनाते हैं या परिवार को बिना बताए साथ रहते हैं और बाद में लड़की को छोड़ देते हैं, वे ऐसा नहीं कर पाएंगे क्योंकि ये लीगली binding होगी. इससे लड़कियों पर होने वाले अत्याचार रूकेंगे. इस कानून में न निकाह का मतलब बदला है, न रिवाज़ बदले हैं, न तलाक़ को गैरकानूनी बनाया गया है, न पुरूषों के हक़ कम किए गए हैं. बस महिलाओं के मिलने वाले अधिकारों को मजबूत बनाया गया है, कानूनी बनाया गया है. इसलिए मुझे लगता है कि यूनीफॉर्म सिविल कोड को इस्लाम के खिलाफ बताना बेमानी है, इस्लामिक शिक्षाओं का अपमान है. हालांकि मुझे लगता है कि इस कानून को जल्दबाजी में पास नहीं करना चाहिए. इस पर खुली बहस होनी चाहिए, सबको अपनी बात कहने का मौका मिलना चाहिए. दूसरा, मुसलमानों को ये समझाने का विशेष प्रयास होना चाहिए कि ये कानून उनके फायदे के लिए है, ये उनकी जिंदगी को बेहतर बनाएगा, ये कानून बराबरी के अधिकार के लिए है, किसी को निशाना बनाने के लिए नहीं.
मोदी का लक्ष्य : ‘अब की बार, 400 पार’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में विरोधी दलों को करारा जवाब दिया. अपने दस साल के काम गिनाए और फिर ऐलान किया कि तीसरी बार भी उन्हीं की सरकार बनेगी. मोदी ने कहा कि उन्हें पूरा यक़ीन है कि देश की जनता NDA को चार सौ से ज्यादा और बीजेपी को कम से कम 370 सीटें देगी. मोदी ने कहा कि विपक्ष की जो हालत है, वो जिस रास्ते पर चल रहे हैं, उससे लगता है कि अगले चुनाव के बाद वो दर्शक दीर्घा में पहुंच जाएंगे. संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा चल रही थी. मोदी ने हर प्रश्न का उत्तर दिया. बहस के दौरान विरोधी दलों के सासंदों ने ED, CBI के एक्शन पर सवाल उठाए, विरोधियों को निशाना बनाने का इल्जाम लगाया, मंहगाई का मुद्दा उठाया, भ्रष्टाचार की बात की, राम मंदिर का मुद्दा उठाया, सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का इल्जाम लगाया, देश के संघीय ढांचे को तोड़ने का आरोप लगाया, मोदी को तानाशाह बताया. प्रधानमंत्री ने सबका जवाब दिया और सटीक जवाब दिया. साफ-साफ कहा कि न ED का एक्शन रुकेगा, न भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जंग थमेगी. मोदी ने कहा कि जिन लोगों ने देश को लूटा है, उन्हें देश का माल लौटाना ही पड़ेगा. मोदी परिवारवाद पर फिर से बोले. मोदी ने साफ साफ बताया कि परिवारवाद क्या है, वो किस तरह के परिवारवाद पर हमला करते हैं. जो लोग बीजेपी के नेताओं के बेटों या परिवार वालों का नाम लेकर बीजेपी पर परिवारवाद का आरोप लगाते थे, मोदी ने उन्हें पहली बार जवाब दिया. कहा, कि राजनाथ सिंह या अमित शाह परिवारवादी राजनीति का प्रतीक नहीं हैं, वो कोई पार्टी नहीं चलाते. प्रधानमंत्री ने कहा कि भव्य राम मंदिर भारत की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है. वो अपने तीसरे टर्म में अगले एक हजार साल के लिए सांस्कृतिक और समृद्ध भारत की नींव रखेंगे. मोदी ने एक तरह से लोकसभा में खड़े होकर बीजेपी के कैंपेन की टोन सैट कर दी, विरोधी दलों के लिए लंबी लकीर खींच दी. मोदी के भाषण में ज़बरदस्त आत्मविश्वास झलक रहा था. आम तौर पर मोदी इस तरह सीटों की बात नहीं करते लेकिन विरोधी दल बार-बार कहते हैं कि हम इकट्ठे हो जाएंगे और इस बार मोदी को हराएंगे..मोदी ने उसी का जवाब दिया. मोदी ने विपक्ष के हर सवाल का जवाब दिया. मोदी-विरोधी गठबंधन के नेताओं का एक आरोप ये है कि मोदी ने विरोधी दलों के नेताओं के खिलाफ CBI और ED का इस्तेमाल किया, उन्हें डराया. सोमवार को भी हेमंत सोरेन और केजरीवाल ने यही आरोप लगाया. मोदी ने साफ-साफ कहा कि चाहे कोई कुछ भी कहे, कहने दो जो कहता रहे, वो देश में लूटने वालों के खिलाफ वो एक्शन लेते रहेंगे. उन्होंने ये भी गिना दिया कि बीते 10 साल में ED ने कितनी सम्पति जब्त की है और UPA सरकार के दस साल के शासन में कितनी प्रॉपर्टी ज़ब्त की गई, मेरी कमीज तुम्हारी कमीज़ से कितनी सफेद है, ये दिखा दिया. मोदी ने विरोधी दलों को बेरोजगारी के आरोप पर भी आईना दिखाया. उन्होंने उदाहरण दे-दे कर समझाया कि पिछले 10 साल में उनकी सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर, पोर्ट्स पर, एयरपोर्ट्स पर, मेक इन इंडिया पर जिस तरह से काम किया है, मुद्रा योजना के तहत लोगों के खाते में सीधे मदद पहुंचाई, इन सबसे रोजगार के नए-नए अवसर पैदा हुए हैं और आने वाले दिनों में ये कई गुना बढेंगे. मोदी ने उस जमाने की याद दिलाई जब मनोज कुमार की फिल्म ‘रोटी कपड़ा और मकान’ का गाना ‘महंगाई मार गई’ बहुत हिट हुआ था. मोदी ने आंकड़े देकर बताया कि पहले कांग्रेस के ज़माने में महंगाई का क्या हाल होता था. जब इसे लोग डायन मंहगाई कहते थे. और अब उनकी सरकार ने किस तरह कीमतों पर कंट्रोल करके रखा है. मोदी ने कहा कि दुनिया भर के मुल्कों में, दो-दो युद्ध और कोरोना जैसी भयानक महामारी का सामना करने के बाद बहुत से देशों का बुरा हाल है, पर हमारे देश में जरूरी चीजों के दाम नियंत्रण में हैं. और बहुत जल्द हम दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे. कुल मिलाकर ये कह सकते हैं कि मोदी ने आने वाले चुनावों के लिए अपनी पार्टी को बात दिया कि लोगों से जाकर क्या कहना है.
MODI’S TARGET : “AB KI BAAR, 400 PAAR”
The assertion by Prime Minister Narendra Modi in Lok Sabha that he and his party would return to office in May this year with a landslide victory of more than 370 seats, and that his NDA alliance would cross the 400 mark reflects his strong confidence. Normally Modi refrains from speaking about the number of seats his party is going to win in any election. His assertion appears to be his reply to the claims being made by the opposition parties that they would unite and defeat BJP in this year’s Lok Sabha polls. In his last major speech in the current Lok Sabha, Modi dealt with all major issues raised by the opposition. One oft-repeated charge levelled by the opposition is about the government misusing investigation agencies like CBI and ED against leaders in order to “intimidate” them. Even on Monday, former Jharkhand CM Hemant Soren, currently in ED custody, and Delhi CM Arvind Kejriwal made the same allegation. Modi told the Lok Sabha that come what may, and whatever leaders may say, his government would continue to take action against those who looted the nation’s money. Modi gave in Parliament a comparison of properties seized by ED during the last ten years of his rule (Rs 1 lakh crore) and during 10 years of UPA rule (Rs 5000 crore). Modi emphatically said, neither the action against the corrupt will stop nor would they be allowed to go scot-free. The money they looted from the nation will have to be returned, he said. In his speech, Modi outlined the achievements of his government during the last ten years and confidently said that he would form his government for the third time. Modi described the opposition alliance as a non-starter which is “out of alignment” and said that the Congress “may have to shut shop”. In a swipe at the opposition, he said, “I think after the next election they may have to find a seat in the visitors’ gallery”. Modi also explained his version of ‘dynastic politics’. He said, “we are not opposed to more than one person from the same family entering politics. What we describe as dynastic politics is a situation, when the family controls the party and the family’s interest becomes paramount. Family-controlled parties are not good for democracy”. In a way, Modi set the tone for his party’s forthcoming election campaign and drew a longer line for the opposition. In his 100-minute speech, Modi spoke six times about winning a third term. Modi also spoke about employment and price rise issues. He said, despite two wars and Covid pandemic, which have damaged the economies of many other countries, prices are under control in India and very soon, India is going to become the world’s third largest economy. Modi reminded how during former PM Indira Gandhi’s rule, inflation rate had once touched 30 per cent. On employment, Modi explained how new job opportunities have multiplied because of infrastructure projects like ports, airports, highways, etc. and loans under Mudra Yojana are being given to youths directly. Modi’s speech, in a way, is his message which the party workers to going to convey to the masses as the dates of Lok Sabha elections approach nearer.
GYANVAPI : AVOID POINTING FINGERS AT JUDICIARY
The controversy over Gyanvapi complex in Varanasi is getting complicated with reports that eight idols have been placed in Vyas Ji Ka Tehkhana (cellar) below the complex. Meanwhile, Muslim clerics have started pointing fingers at the judiciary. Ten idols were found during survey of Gyanvapi complex, and these were kept by Archeological Survey of India in the district treasury. After the district court ordered puja inside the southern cellar, eight of these idols were taken out and placed inside the cellar on Friday. Prayers are now being offered before these idols. Already Muslim outfits are unhappy over the fresh developments. On Friday, clerics from All India Muslim Personal Law Board, Jamiat Ulama e Hind, Jamaat-e-Islami Hind said at a press conference, “enough is enough”. They said, the community had accepted the Supreme Court verdict in Ayodhya case in 2019, but they are now losing patience. Top Muslim community leaders Maulana Arshad Madani, principal of Darul Uloom, Deoband, Khalid Saifullah Rahmani, president, AIMPLB, Malik Motasim Khan of Jamaat-e-Islami Hind, and Kamal Farooqui of AIMPLB, said they have lost confidence in court verdicts because, according to them, “courts are giving biased orders”. The Islamic scholars warned that this trend could vitiate the atmosphere in the country. Jamaat vice-president Malik Motasim Khan alleged that the “bureaucracy judiciary and the entire system is working at the behest of the government and Muslims are fast losing patience.” A time will come, he said, when Muslims will not even listed to the voice of their own leaders and this could be harmful for the nation. Jamiat chief Maulana Arshad Madani blamed the Supreme Court’s 2019 Ayodhya verdict as the “main cause of present turmoil”. He said, if such verdicts are going to come, “it will be better to set fire to books on jurisprudence”. One can understand the unhappiness among Muslim clerics over the manner in which puja was resumed in the cellar of Gyanvapi mosque. But there are many such aggressive elements in their ranks, who will rather not listen to reason. The matter is presently before the Allahabad High Court, and hearing in this case will resume on February 6. Even before the hearing is over, it will be unjustified to say that the bureaucracy and judiciary are working under government’s pressure. One case related to Gyanvapi had gone to the Supreme Court earlier, and the apex court had given relief to the Muslim side and ordered that the ‘Wazukhana’ be sealed. The apex court had stayed scientific testing of a Shivling-type stone found in the ‘Wazukhana’. I think, the Muslim side should think a hundred times before pointing fingers at the judiciary. I was surprised to find a moderate cleric like Maulana Mehmood Madani using strong language. AIMIM chief Asaduddin Owaisi went to the extent of blaming Prime Minister Narendra Modi for this dispute. This will create unnecessary problems. I had said on Thursday that the matter should be sorted out through dialogue and restraint is the need of the hour.
ज्ञानवापी : न्यायपालिका पर उंगलियां न उठाएं
काशी में ज्ञानवापी परिसर को लेकर हो रहा विवाद और बढ़ गया है. ये खबर आई कि ज्ञानवापी परिसर में मौजूद व्यास जी के तहखाने में आठ मूर्तियां स्थापित कर दी गईं. ज्ञानवापी के सर्वे में दस मूर्तियां मिली थीं. ASI ने इन मूर्तियों को ट्रेजरी में रखवा दिया था. कोर्ट का फैसला आने के बाद इनमें से आठ मूर्तियों को ट्रेजरी से निकाल कर फिर से व्यास जी के तहखाने में पहुंचा दिया गया. इनकी अब विधिवत पूजा अर्चना, भोग, आरती हो रही है. लेकिन काशी में जो हो रहा है, उसको लेकर मुस्लिम संगठनों में बहुत ज्यादा नाराजगी है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा ए हिन्द, जमात ए इस्लामी जैसे संगठनों के मौलानाओं ने साफ साफ कह दिया कि अयोध्या में समझौता कर लिया, कड़वा घूंट पी लिया, अब और बर्दाश्त नहीं करेंगे. मौलाना अरशद मदनी, मौलाना महमूद मदनी, मौलाना सैफुल्ला रहमानी, मलिक मोहतसिम और कमाल फारुक़ी जैसे मुस्लिम स्कॉलर्स ने कहा कि अब उन्हें कोर्ट के फैसलों पर भी यकीन नहीं हैं क्योंकि अदालतें एकतरफा फैसले दे रही हैं. अगर यही होता रहा तो देश का माहौल खराब होगा. हालांकि इस बीच अंजुमन इतंजामिया कमेटी की तरफ हाईकोर्ट में अपील भी की गई, वाराणसी कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की मांग की गई, लेकिन हाईकोर्ट से फिलहाल कोई राहत नहीं मिली. हाईकोर्ट अब 6 फरवरी को इस केस की सुनवाई करेगा. इसे हिन्दू पक्ष ने अपनी कानूनी जीत बताया है लेकिन सवाल ये है कि आस्था और कानूनी दांव पेंचों के बीच उलझा ये मसला क्या फिर से देश में हिन्दू मुसलमानों के बीच दूरियां बढ़ाएगा और क्या मौलाना, मुस्लिम संगठनों के नेता और राजनीतिक पार्टियों के नेता इस मामले में आग में घी डालने का काम कर रहे हैं. शुक्रवार को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा ए हिन्द, जमाते इस्लामी ए हिंद जैसे मुस्लिम संगठनों के नेताओं ने कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए, वाराणसी जिला जज के आदेश को पक्षपातपूर्ण बताया, मोदी सरकार पर निशाना साधा. जमीयत उलेमा ए हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि अब देश में जो हो रहा है, उसकी वजह सिर्फ अयोध्या विवाद के बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला है. मदनी ने कहा कि अब अगर ऐसे ही फैसले होने हैं तो कानून की किताबों को आग लगा देनी चाहिए. जमात ए इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष मलिक मोहतशिम ने कहा कि देश की अफसरशाही, न्यायपालिका और पूरी व्यवस्था सरकार के इशारों पर काम कर रही है, मुसलमानों का सब्र टूट रहा है, अब वो वक्त ज्यादा दूर नहीं है जब मुसलमान अपने नेताओं की बात भी नहीं सुनेंगे, अगर ऐसा हुआ तो देश को बहुत नुकसान होगा. मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि अदालतों में एकतरफा फैसले हो रहे हैं, ये जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला सिस्टम ठीक नहीं हैं. क्योंकि लाठी वही रहती है लेकिन लाठी का इस्तेमाल करने वाले हाथ बदलते हैं. ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में जिस तरह से पूजा शुरू हुई, उसको लेकर मौलानाओं में जो नाराज़गी है, वो समझी जा सकती है. उनके यहां भी ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो आक्रामक हैं, जिनको समझाना मुश्किल होगा. लेकिन मामला हाईकोर्ट के सामने है. 6 फरवरी को सुनवाई होनी है. उससे पहले ये कहना कि अफसरशाही और न्यायपालिका दोनों सरकार के दबाव में हैं, ठीक नहीं है. क्य़ोंकि ज्ञानवापी से जुड़ा एक मामला पहले भी सुप्रीम कोर्ट में गया था. सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम पक्ष को राहत मिली थी. वज़ूखाना सील किया गया था. वज़ूखाने में मिली शिवलिंग जैसी आकृति की जांच पर रोक लगी थी. इसलिए मुझे लगता है कि न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाने से किसी को भी सौ बार सोचना चाहिए. मुझे तो इस बात पर हैरानी हुई कि मौना महमूद मदनी जैसे moderate लोगों ने भी काफी सख्त भाषा का इस्तेमाल किया है. और ओवैसी ने तो इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी को घसीटने की कोशिश की. मुझे लगता है ऐसी बातों से समस्या और बढ़ेगी. कल भी मैंने कहा था कि इस विवाद को आपसी बातचीत से, संयम और विवेक से हल करने की ज़रूरत है.
ज्ञानवापी विवाद : हिन्दू, मुसलिम दोनों पक्ष संयम बरतें
काशी के ज्ञानवापी परिसर में मौजूद व्यास जी के तहखाने में 31 साल बाद पूजा अर्चना और दर्शन शुरू हो गया. बुधवार को वाराणसी के जिला जज ने प्रशासन को सात दिन के भीतर तहखाने में पूजा अर्चना के इंतजाम कराने और रास्ते में लगी बैरिकेडिंग को हटाने का आदेश दिया. प्रशासन ने कुछ ही घंटों के भीतर आदेश का पालन कर दिया. रात बारह बजे तहखाना खुल गया, आसपास लगी बैरिकेडिंग हट गईं, जो लोहे की जाली लगी थी, उसे काट दिया गया, गंगा जल से तहखाने की सफाई हुई, शुद्धिकरण हुआ, काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट की तरफ से तहखाने में पुजारी के तौर पर गणेश्वर शास्त्री की नियुक्ति भी हुई और साढ़े तीन बजे वाराणसी के कमिश्नर, डीएम, पुलिस की मौजूदगी में पांच पुजारियों ने विग्रहों की पूजा की. 31 साल बाद व्यास जी के तहखाने में घंटा, घडियाल और शंख बजे. करीब डेढ़ घंटे तक चली पूजा के वक्त इस तहखाने में पीढ़ियों से पूजा कर रहे व्यास परिवार के जीतेंद्र व्यास और उनके बेटे भी मौजूद थे. हांलाकि रात साढ़े तीन बजे व्यास जी के तहखाने में मंगला आरती हुई, उस वक्त चुनिंदा लोगों को ही अंदर जाने की अनुमति थी लेकिन जैसे ही लोगों को खबर मिली कि व्यास जी के तहखाने में पूजा हो रही है तो बड़ी संख्या में लोग रात में ही वहां पहुंच गए. इन लोगों को अंदर तो नहीं जाने दिया गया लेकिन भक्तों ने काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में खड़े होकर ही व्यास तहखाने के दर्शन किए. मुस्लिम पक्ष के लोगों को ये उम्मीद नहीं थी कि रात में ही तहखाना खुल जाएगा लेकिन जैसे ही ज्ञानवापी मस्जिद इंतजामिया कमेटी के लोगों को इसकी खबर लगी तो तुरंत हरकत में आए. वाराणसी से लेकर दिल्ली तक खलबली मची. मुस्लिम पक्ष के वकील रात तीन बजे सुप्रीम कोर्ट की तरफ दौड़े, कोर्ट के रजिस्ट्रार को बताया कि मामला गंभीर है, इसलिए इसी वक्त अपील करनी है. मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चन्द्रचूड ने सुबह साढ़े 4 बजे सुनवाई की और मुस्लिम पक्ष को हाईकोर्ट में अपील करने का निर्देश दिया. शुक्रवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तहखाने के पूजा पर स्टे देने से इंकार कर दिया. इस मसले पर अब सोमवार को फिर सुनवाई होगी. मुस्लिम पक्षकार मुख्तार ने कहा कि इस केस में इंसाफ नहीं किया गया. उन्होंने सवाल किया कि ज्ञानवापी से जुड़े मुस्लिम पक्ष के केस लटकाए जा रहे हैं और हिन्दू पक्ष के मामलों में तुरंत फैसला सुना दिया जा रहा है और प्रशासन भी इतनी जल्दीबाजी दिखा रहा है कि उन्हें अपील का भी मौका नहीं मिल रहा. दिल्ली में गुरुवार को जमीयत उलेमा ए हिंद के दफ्तर मे तमाम मुस्लिम संगठनों के मौलानाओं और नेताओं की इमरजेंसी मीटिंग हुई. बैठक में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी, महमूद मदनी के अलावा जमात-ए-इस्लामी हिंद, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमात-ए-अहले हदीस के प्रतिनिधि मौजूद थे. AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी मीटिंग में पहुंचे. तय हुआ कि मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाया जाएगा. उधर, मौलाना तौकीर रज़ा ने तीखी बात कह दी. उन्होंने इल्जाम लगाया कि अदालतें सरकार के दवाब में फैसले दे रही हैं. तौकीर रज़ा ने कहा कि अब उन्हें डर है कि कहीं मुस्लिम नौजवान उलेमाओं के कन्ट्रोल से बाहर न हो जाएं, उसके बाद देश में जो हालात होंगे, वो भयानक होंगे और वो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहते. ज्ञानवापी का मामला बहुत नाज़ुक है. ये सही है कि व्यास जी के तहखाने में 1993 तक पूजा होती थी. ये भी सही है कि कोर्ट ने उसी परंपरा को बहाल किया है. ये फैसला अदालत का है. ये किसी राजनीतिक दल या सरकार का फैसला नहीं है. पूजा शुरू हुई, उसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन ये सब ठीक होते हुए भी इस मामले को बहुत समझदारी से डील करना जरूरी है. क्योंकि मुस्लिम समाज के लोग इसे शक की निगाह से देखेंगे. बहुत सारे ऐसे तत्व हैं जो कहेंगे, पहले बाबरी मस्जिद ले ली, अब ज्ञानवापी मस्जिद पर कब्जा करेंगे. बहुत सारे ऐसे तत्व हैं जो कोर्ट के फैसले को मोदी और य़ोगी का फैसला बताएंगे. बार बार लोगों से कहेंगे कि जिला जज का आखिरी कार्य दिवस था, वो अगले दिन रिटायर होने वाले थे, इसलिए गलत फैसला दिया गया. कोई मुस्लिम नौजवानों को भड़काने की कोशिश करेगा. और हमने देख लिया है कि कुछ लोगों ने ये कहना शुरू भी कर दिया कि अब मुस्लिम नोजवानों को रोकना मुश्किल होगा. मुझे लगता है कि इस तरह के बयानों से बचना चाहिए और किसी भी हालत में सामाजिक सौहार्द बिगड़ने से रोकना चाहिए. हिन्दू पक्ष के लोगों को, साधू संतों को, समाज के प्रबुद्ध लोगों को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो कहा था, उसे याद रखना चाहिए. मोदी ने कहा था कि ये विजय का नहीं, विनय का समय है. हिन्दू समाज को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की बात भी याद रखनी चाहिए. मोहन भागवत ने पिछले साल दशहरा रैली में कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग ढूंढना ठीक नहीं है. क्योंकि आपका दावा कितना भी सही हो, कितना भी न्याय संगत हो, कितनी भी भावनाएं उससे जुड़ी हों, लेकिन मुस्लिम समाज की संवेदनाओं को भी समझने की भी जरूरत है. और मुस्लिम संगठनों के नेताओं को भी बोलने से पहले सामाजिक सौहार्द का ध्यान रखना चाहिए.
GYANVAPI : BOTH HINDUS, MUSLIMS MUST EXERCISE UTMOST RESTRAINT
After a gap of 31 years, worship of Shringar Gauri and other deities resumed inside the southern cellar of Gyanvapi mosque complex in Varanasi, in the early hours of Thursday. This follows an order from District Judge Ajaya Krishna Vishvesha allowing prayers inside the cellar, which had been locked after the Babri mosque demolition in Ayodhya. The divisional commissioner Kaushal Raj Sharma has clarified that only priests, and not devotees, will be allowed inside the cellar. The steel barricades to isolate the mosque for security purposes, has been cut to create a passage for priests to enter the cellar. On Friday, the Allahabd High Court refused to give relief to the Muslims side, represented by Anjuman Intezamia Masjid Committee, seeking a stay on pooja being performed inside the cellar. A single bench of Justice Rohit Ranjan Aggarwal directed the Advocate General to ensure law and order within and outside the Gyanvapi mosque complex in view of the latest developments. The cellar was washed with Ganga water, purification rites were performed and at around 3.30 am on Thursday morning, prayers were offered by priests led by Ganeshwar Shastri, deputed by Shri Kashi Vishwanath Temple rust. All this happened in the presence of Varanasi divisional commissioner, the district collector and police chief. The cellar, called Vyas Ji Ka Tehkhana, is owned by Vyas family, and the family members expressed happiness over the resumption of pooja. The idols inside the cellar include a Shivling, Hanuman and Ganesh idols, and the idol of Ma Ganga riding a crocodile. The cellar is located below the disputed Wazukhana, right opposite the huge Nandi idol of Kashi Vishwanath temple. On early Thursday morning, the Muslim side approached the Chief Justice of India D Y Chandrachud, seeking an urgent hearing, but the apex court directed them to first file an appeal before the High Court. The Muslim side argued that since Places of Worship Act is in force since 1991, there was no point on raising fresh disputes over places of worship. On Thursday, Muslim clerics and leaders met in an emergency meeting at Jamiat Ulama E Hind head office. It was attended by Maulana Arshad Madni, Mehmood Madni, leaders from Jamaat-e-Islami Hind, All India Muslim Personal Law Board and Jamaat-e-Ahle-Hadees. AIMIM chief Asaduddin Owaisi also attended. The Gyanvapi mosque controversy is a sensitive issue. It is a fact that prayers were being offered inside the cellar till 1993. It is also a fact that the district court has only restored that tradition. Since it is an order from the court, and not from any government or political party, there should be no objection over resumption of pooja. Given this, one needs to deal with the issue with caution and understanding. The Muslim community will view this development with suspicion. There are many such elements who will allege that the Babri mosque was first demolished, and it is now the turn of Gyanvapi mosque. There are many elements who will try to project this as a step taken by PM Modi and CM Yogi. Already there are posts circulating in social media attributing malafide motives to the district judge, who issued this order on the last working day of his service. Already, some Muslim clerics like Maulana Tauqir Raza, are trying to create tension in the minds of Muslim youths over this issue. The maulana has threatened that if such developments continue, it would be difficult for elders of Muslim community to keep the temper of youths under control. I think, Muslim clerics should refrain from giving such provocative statements. They must not allow anybody to disturb social harmony, at any cost. Sadhus and saints, and intellectuals from Hindu side should also remember what Prime Minister Narendra Modi had said on January 22 after the consecration ceremony of Ram Lalla idol in Ayodhya. Modi had then said, this is not the time of ‘vijay’ (victory), but of ‘vinay’ (humility). Hindu society must also remember what RSS chief Mohan Bhagwat had said on Dussehra. He had said, it will be wrong to hunt for Shiv Linga under each mosque. Whatever may be the claims, howsoever justified and linked to religious sentiments, one must try to take into consideration the sensitivities of Muslim community too. Muslim clerics and leaders, on their part, should also keep social harmony in mind before making incendiary remarks.
सोरेन की गिरफ्तारी झारखंड की राजनीति को नया मोड़ देगी
झारखंड की राजधानी रांची में इस समय ज़बरदस्त राजनीतिक हलचल है. बुधवार रात को हेमंत सोरेन ने अपनी गिरफ्तारी से कुछ मिनट पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, अपनी जगह कैबिनेट मिनिस्टर चपंई सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा के उपाध्यक्ष चंपई सोरेन को विधायक दल का नेता बना दिया.प्रवर्तन निदेशालय ने इस्तीफे के तुरंत बाद राज भवन में ही हेमंत सोरेन को हिरासत में ले लिया. बुधवार रात को करीब साढ़े 8 बजे घटनाक्रम तेजी से बदला. JMM, कांग्रेस और RJD के विधायक अचानक मुख्यमंत्री आवास से निकल कर राजभवन गए. इसके बाद हेमंत सोरेन भी राज्यपाल से मिलने पहुंच गए. उन्होंने एक हाथ से अपना इस्तीफा पेश किया और दूसरे हाथ से राज्यपाल के सामने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. हालांकि हेमंत सोरेन के साथ पहुंचे सभी विधायकों से राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन की मुलाकात नहीं हुई, सिर्फ कुछ विधायक ही अंदर गए, लेकिन विधायकों ने ये एलान कर दिया कि चंपई सोरेन को विधायक दल का नेता चुन लिया गया है और सरकार बनाने का दावा भी पेश कर दिया है. अब राज्यपाल को नई सरकार को शपथ दिलानी चाहिए. अब सवाल है, झारखंड में नई सरकार का गठन कब होगा? चंपई सोरेन को राज्यपाल शपथ के लिए कब बुलाएंगे? बुलाएंगे भी या नहीं? इतना तो तय है कि जब हेमंत सोरेन को भरोसा हो गया कि उनकी गिरफ्तारी पक्की है, उन्होंने इस्तीफा देने और बिना देर किए चंपई सोरेन को अपनी कुर्सी पर बैठाने कै फैसला किया, क्योंकि हेमंत सोरेन नहीं चाहते थे कि राज्यपाल को या केन्द्र सरकार को दखलंदाजी का कोई मौका मिले. हेमंत सोरेन ने राजनीतिक दांवपेंच खूब चले. जिस वक्त ED की टीम मुख्यमंत्री आवास पहुंची, उस वक्त हेमंत सोरेन ने सरकार को समर्थन करने वाले विधायकों को घर पर बुला रखा था. रांची के मोरहाबादी मैदान में पार्टी के कार्यकर्ताओं की भीड़ इक्कठी कर ली. इसके बाद झारखंड के गृह सचिव अविनाश कुमार को हटा दिया. उनका अतिरिक्त भार मुख्य सचिव एल खंगायते को सौंप दिया और फिर दिल्ली में मुख्यमंत्री के घर पर थापा मारने वाले ED के अफसरों के खिलाफ SC/ST एक्ट के तहत FIR दर्ज करवा दी. लेकिन ये सारी कवायद उनकी कुर्सी नहीं बचा सकी. 67 साल के चंपई सोरेन झारखंड़ मुक्ति मोर्चा के बड़े और पुराने नेता हैं. 2005 से अब तक चार बार लगातार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं. झांरखड राज्य के लिए आंदोलन के वक्त शिवू सोरेन के साथ रहे हैं. झारखंड बनने के बाद अर्जुन मुंडा की सरकार में मंत्री रहे. फिर हेमंत सोरेन की सरकार में 2010 से 2013 तक मंत्री रहे. इसके बाद हेमंत सोरेन जब दोबारा मुख्यमंत्री बने तो उन्हें फिर से मंत्री बनाया गया. चम्पई सोरेन हेमंत सोरेन के विश्वासपात्र हैं. दावा ये किया जा रहा है कि कल विधायक दल की मीटिंग में हेमंत सोरेन ने विधायकों से दो कागज़ों पर दस्तखत करवाए थे. एक में कल्पना सोरेन को विधायक दल का नेता चुने जाने का प्रस्ताव था और दूसरे में चंपई सोरेन को विधायक दल का नेता चुने जाने का प्रस्ताव था. बुधवार को पता चला कि चूंकि कल्पना सोरेन के नाम पर परिवार में विवाद था, उसके बाद हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया. JMM के नेताओं का दावा है कि तीनों पार्टियों के 47 विधायक राजभवन के बाहर मौजूद थे और वे किसी भी वक्त राज्यपाल के सामने पेश होने के लिए तैयार हैं, लेकिन राज्यपाल ने बुधवार शाम को मना किया था. बहरहाल हेमंत सोरेन के सारे दांवपेंच फेल हो गए. दो महीने तक भागने के बाद वो ED के शिंकजे में आ गए. अब उनसे ED की हिरासत में पूछताछ की जाएगी. हालांकि हेमंत सोरेन ने ED से कह दिया था, वक्त भी मेरा, जगह भी मेरी, आना है तो आ जाओ, गिरफ्तारी होने पर क्या करना है, इसकी तैयारी कर ली गई थी. अफसरों के तबादले कर दिए गए. ED वालों पर केस दर्ज करा दिया गया, MLA’s के लिए बसें मंगा ली, राज्यपाल से समय मांगा. हेमंत सोरेन चाहते थे, जो होना है, उनके राज्य में हो, इसलिए वह दिल्ली से छुपकर रांची आए थे. वो गिरफ्तारी का पूरा-पूरा राजनीतिक फायदा उठाना चाहते हैं. ED के एक्शन को एक आदिवासी पर मोदी के जुल्म के रूप में प्रोजेक्ट करना चाहते हैं. इसके लिए SC-ST एक्ट का भी इस्तेमाल किया. बड़ी संख्या में आदिवासियों को इकट्ठा भी किया, लेकिन सब कुछ करके भी वो ED की टीम को डरा नहीं सके, अपनी कुर्सी बचा नहीं सके. पूरी ताकत लगाकर भी अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री नहीं बना सके. हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी झारंखड की राजनीति को नया मोड़ देगी. अब ED के सामने एक बड़ी चुनौती होगी – एक मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया है, एक आदिवासी को कुर्सी से उतरना पड़ा. अदालत में इस केस को पुख्ता तरीके से साबित करना होगा.
SOREN’S ARREST : A NEW TURN TO JHARKHAND POLITICS
A big political crisis is brewing in Jharkhand after the resignation of Chief Minister Hemant Soren, who was arrested by Enforcement Directorate on Wednesday night, minutes after he handed over his resignation letter to the Governor. A state-wide bandh call was given by the Jharkhand Mukti Morcha on Thursday, while the Supreme Court has agreed to hear a petition challenging his arrest on Friday. After evading interrogation for the last two months, Soren was arrested by ED after seven hours of marathon questioning, during which he reportedly gave evasive answers in the land scam. Even as questioning was going on, an FIR was lodged by Jharkhand Police against ED officials under Prevention of SC/ST Atrocities Act on the basis of a complaint sent by Soren. Buses were chartered to carry MLAs to Raj Bhavan, where a letter claiming election of JMM vice-president Champai Soren as the legislative party leader was submitted. Though Champai Soren has not yet been invited to form government till now, there are reports that the MLAs may be sent to some other state to stop ‘poaching’ amid speculations that all is not well in the JMM over the choice of chief minister. Hemant Soren had been evading ED summons because he wanted ED to question and arrest him on his own territory. The motive behind this was to garner political advantage among tribal voters who are considered as traditional supporters of JMM. Hemant Soren wants to convey the message that a tribal leader like him is being harassed by Modi government. He tried his best to make his wife Kalpana Soren as the CM, but there were rumblings in his own family and party, with other claimants pitching in. Minutes before his arrest, a video message from Hemant Soren was posted on social media, which said, “The ED has come to arrest me today. After questioning me for the entire day, they have decided to arrest me in a planned manner, on an issue which is not linked to me. They (ED) found no evidence, they even tried to tarnish my image by conducting raids in Delhi.” In Hindi, a poetic tweet was posted by the outgoing CM, which read: “This is a break. Life is a long battle. I have fought and I will fight every moment, but I will never beg for compromise. I shall not be afraid, whether in defeat or victory….I will not forget the pain in the hearts of my people. I will never accept defeat. Jai Jharkhand.” The arrest of Hemant Soren will surely give a new turn to Jharkhand politics. It will also be a challenge for Enforcement Directorate, which has arrested a chief minister, who is a tribal leader. ED will have to convincingly prove its charges against Hemant Soren in court.