मंगलवार की सुबह एक बुरी खबर आई. जिसने भी वीडियो देखा, उसके मुंह से आह निकल गई. दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर एक ड्राइवर उल्टी दिशा में 8 किलोमीटर तक तेजी से बस भगाते हुए आया, सामने से आती महिन्द्रा टीयूवी बस से टकराई और देखते ही देखते छह बेगुनाह लोगों की मौत हो गई. दो लोग अस्पताल में में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं. इस परिवार की कोई गलती नहीं थी, न ओवर स्पीडिंग कर रहे थे, न लेन चेंज कर रहे थे, न रॉंन्ग साइड पर चल रहे थे, लेकिन अचानक रॉंन्ग साइड से एक बस आ गई. कार चलाने वाला कुछ कर पाता, इससे पहले हादसा हो गया और पूरा परिवार तबाह हो गया. बस का ड्राइवर सिर्फ पांच मिनट बचाने के चक्कर में एक्सप्रेस वे पर रॉन्ग साइड से गाड़ी ले गया. ये सिर्फ एक सड़क दुर्घटना का मामला नहीं है, दुर्घटनाएं तो रोज़ होती हैं, लेकिन मंगलवार की सुबह जो हुआ उसने पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए. एक्सप्रेस वे पर कैमरे लगे हैं, हर वक्त मॉनिटरिंग का दावा किया जाता है, पैट्रोलिंग होती है, फिर एक ड्राइवर आठ किलोमीटर तक रॉंन्ग साइड पर बस चलाता रहा तो उसे रोका क्यों नहीं गया? उसे गलत दिशा मे आते समय पकड़ा क्यों नहीं गया? सवाल ये भी है कि क्या इस तरह की गलती करने वाला, दूसरों की जिंदगी को खतरे में डालने वाला सिर्फ गैर-इरादतन हत्या, ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन जैसे मामले में थोड़े दिन जेल में रह कर छूट जाएगा? क्या इतनी सजा काफी है? जिस परिवार के छह लोगों की मौत हुई, वे मेरठ के रहने वाले थे और राजस्थान में भगवान का दर्शन करने मंदिर जा रहे थे. दुर्घटना के बाद पुलिस ने गैस कटर से काट कर शवों को बाहर निकाला. मेरठ निवासी दो भाई, नरेंद्र और धर्मेन्द्र अपने पूरे परिवार के साथ खाटू श्याम जी के दर्शन करने जा रहे थे. उन्हें मेरठ से गुड़गांव जाना था, वहां से अपनी बहन को साथ लेना था और फिर खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए जाना था. नरेंन्द्र की पत्नी अनीता, दो बेटे हिमांशु और दीपांशु, नरेंद्र के छोटे भाई धर्मेन्द्र, धर्मेन्द्र की पत्नी बबिता, उनके दो बच्चे, बेटी वंशिका और 8 साल का बेटा गाड़ी में थे. हादसे में नरेंद्र और उनके पूरे परिवार की मौत हो गई. धर्मेन्द्र की पत्नी और बेटी की मौत हो गई. धर्मेन्द्र और उनके बेटे गंभीर रूप से घायल हैं. अब सवाल ये उठता है कि इस त्रासदी के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या सिर्फ ड्राइवर की गलती है? क्या टोल नाके पर बैठे कर्माचरियों की, पैट्रोलिंग टीम की, .सीसीटीवी मॉनिटरिंग टीम की कोई जिम्मेदारी नहीं है? नरेंद्र के रिश्तेदारों का कहना है कि इस हादसे के लिए हाइवे पर टोल वसूलने वाली कंपनी और प्रशासन ज़िम्मेदार है, क्योंकि ये बस अक्सर रॉन्ग साइड से गुज़रती थी, अगर किसी ने पहले इसे रोका होता, एक्शन लिया होता, तो शायद 6 जानें बच सकती थी. ये बात तो सही है कि क्या टोल पर बैठे कर्मचारियों का काम सिर्फ टोल वसूलना है? क्या रॉन्ग साइड पर आने वाली गाडियों को रोकने की जिम्मेदारी प्रशासन की नहीं है? पता लगा कि जिस बस की वजह से हादसा हुआ, वह एक टूर ऐंड ट्रैवल्स कंपनी की है. पहले ये एक स्कूल बस थी, अभी एक प्राइवेट कंपनी के कर्मचारियों को लाने-ले जाने का काम कर रही थी. पुलिस को पता लगा कि इस बस का 18 बार पहले भी चालान हो चुका था, कभी ओवर स्पीडिंग, कभी सही ट्रैफिक लेन में नहीं चलने की वजह से, और कभी ख़तरनाक तरीक़े से ड्राइविंग करने के लिए. 18 बार चालान के बावजूद इस बस को सड़क पर चलने दिया गया. हमारे देश में हाइवे और एक्सप्रेस वे बन रहे हैं, जितनी अच्छी सड़कें बन रही है, हादसे भी उतने ज्यादा बढ़ रहे हैं. आपको जानकार हैरानी होगी कि हमारे देश में हर साल डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों की जान सड़क हादसों में चली जाती है. दुनिया में सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं भारत में होती हैं. मैंने ‘आप की अदालत’ में सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी से एक बार इसी विषय पर पूछा था. गडकरी ने बताया कि उन्हें ये मानने में कोई संकोच नहीं कि 8-9 साल से मंत्री रहने के बावजूद वे सड़क हादसों की संख्या कम नहीं करा पाए. उन्होने मूलत: 4 बातें बताई. एक, रोड इंजीनियरिंग के जडरिये उन ब्लैक स्पॉट्स का पता लगाना, जहां अक्सर हादसे होतें हैं, और वहां अंडरपास और पुल बनाना, (2) कार इंजीनियरिंग के ज़रिए सबी वहानों में 6 एयर बैग लगाने की अनिवार्यता लागू कराना, और पीछे की सीठ पर भी सेट बेलट की अनिवार्यता लागू कराना (3) सख्त ट्रैफिक कानून बनाना, ताकि लोगों को बिना थ्योरी और प्रैक्टिकल टेस्ट के ड्राइविंग लाइसेंस न देना, और (4) अपने अपने लेन में गाड़ी चलाने के बारे में जागरूकता पैदा करना. गड़करी ने कहा कि भारत के 3 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद का नुकसान सड़क हादसों की वजह से होता है. गड़करी ने मुझे एक और हैरान करने वाली बता बताई. उन्होंने कहा कि एक बार उन्होंने महाराष्ट्र में सरकारी बसों के ड्राइवर्क की आंखों की जांच करवाई. पता लगा कि चालीस परशेंट बस ड्राइवर्स ठीक से देख नहीं देख सकते थे. ज्यादातर को कैटरेक्ट (मोतियाबिंद) की बीमारी थी. कुछ तो एक आंख से पूरे तरह अंधे थे. उस वक्त एक मंत्री की गाड़ी का ड्राइवर एक आंख से अंधा था. उसे दिखाई नहीं देता था, वो अंदाजे से गाड़ी चला रहा था. गडकरी का कहना था कि हालात आज भी नहीं बदले हैं अब सोचिए, जिस देश में सरकारी गाडियों के ड्राइवर्स का ये हाल हो, वहां सड़क पर चलने वालों की जिंदगी भगवान भरोसे ही होगी. गड़करी की ये बात सही है कि हमारे देश में आसानी से ड्राइविंग लाइसेंस मिल जाता है और उसके बाद ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर सजा भी बहुंत ज्यादा नहीं होती, हजार सौ रूपए देकर छूट जाते हैं. जबकि दूसरे देशों में ट्रैफिक नियम सख्त हैं और सजा भी ज्यादा है. नॉर्वे में गति सीमा से ज्य़ादा तेज़ चलाने पर 65 हज़ार रुपए तक का जुर्माना है , शराब पीकर गाड़ी चलाने और रेड लाइट जंप करने पर लाखों का जुर्माना है. कनाडा के ओंटैरियो में अगर दो साल के भीतर किसी ड्राइवर का दो बार चलान होता है, तो उसका ड्राइविंग लाइसेंस दो महीने के लिए निलंबित कर दिया जाता है. अगर कोई पांच बार रॉन्ग साइड पर गाड़ी ड्राइव करता हुआ पकड़ा जाता है, तो लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है. ब्रिटेन में ट्रैफिक नियम तोड़ने पर अगर तीन साल के अंदर अगर किसी के ऊपर 12 पेनाल्टी लगती है, तो उसका लाइसेंस छह महीने के लिए सस्पेंड कर दिया जाता है. बार बार ओवरस्पीडिंग करने पर लाइसेंस छह महीने के लिए सस्पेंड कर दिया जाता है. ब्रिटेन में शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले को जेल भेज दिया जाता है. अमेरिका में भी ट्रैफिक नियम तोड़ने पर 15 से 25 हज़ार रुपए का जुर्माना होता है, और अगर कोई गति सीमा से ज़्यादा तेज़ गाड़ी चलाता है, तो उस पर पेनाल्टी लगती जाती है. 12 प्वाइंट होने पर लाइसेंस सस्पेंड कर दिया जाता है. क्रोएशिया, जापान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और चीन में ड्राइविंग लाइसेंस से पहले लर्नर लाइसेंस दिया जाता है और ड्राइविंग लाइसेंस तभी कन्फर्म होता है, जब कोई ड्राइवर 100 से 200 घंटे की ड्राइविंग पूरी कर ले. मुझे लगता है कि हमारे देश में भी ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनने चाहिए और इन कानूनों का ईमानदारी से पालन करवाने की जरूरत है, तभी इस तरह के हादसों पर रोक लग सकती है.
बृज भूषण : न्याय होना ही चाहिए
दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट में दिल्ली पुलिस ने पहलवान बेटियों के यौनशोषण के आरोपों में जो चार्जशीट फाइल की है, उससे भारतीय कुश्ती फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह की मुश्किलें बढ़ गई है. दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में कहा गया है कि बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन शोषण के इल्जाम में केस चलाने के लिए पर्याप्त आधार है. बृजभूषण के खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है. बृजभूषण का अपराध सजा के काबिल है. चार्जशीट में 108 लोगों के बयान दर्ज हैं, 21 लोगों ने पीड़ित महिला पहलवानों के पक्ष में गवाही दी है, इसमें 6 लोगों ने 164 के तहत अपनी गवाही दर्ज कराई है. गवाही देने वालों में पहलवानों के परिवार के लोग भी शामिल हैं. बृजभूषण के खिलाफ 13 जून को दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की थी. एक हजार पन्नों की चार्जशीट में यौन उत्पीड़न, महिला का शील भंग करने के इरादे से हमला करना या बल प्रयोग करना और बुरे इरादे से महिला का पीछा करने जैसी संगीन धाराएं लगाई गईं हैं. चार्जशीट के आधार पर कोर्ट ने बृजभूषण शरण सिंह को 18 जुलाई को पेश होने का समन पहले ही जारी कर दिया था. कांग्रेस ने मांग की है कि बृजभूषण को उनके पद से और पार्टी से तुरंत हटाया जाय और उन्हें गिरफ्तार किय़ा जाय. बृजभूषण के केस में ये कहा जा सकता है कि ये तो होना ही था. उनपर जो आरोप लगे हैं वो बेहद संगीन हैं, लेकिन बृजभूषण ने कभी भी इन आरोपों की परवाह नहीं की. उनका जो रवैया रहा है, वो गैरजिम्मेदाराना, ज़िद्दी और अपनी छवि के मुताबिक बाहुबली जैसा रहा है. इससे सरकार की छवि खराब हुई, भारतीय कुश्ती का नाम खराब हुआ. मैडल जीतने वाली, देश का नाम रौशन करने वाली पहलवान बेटियों को प्रताड़ना झेलनी पड़ी. इसलिए बृजभूषण के खिलाफ केस तो चलना ही चाहिए था, लेकिन इस मामले में न्याय हो इतना ही काफी नहीं है, न्याय होता हुआ दिखना भी चाहिए, क्योंकि इस केस की एक-एक बात सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है. इस मामले में दिल्ली पुलिस की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए गए थे, लेकिन चार्जशीट देखकर ये लगता है कि दिल्ली पुलिस ने इस मामले की तहकीकात ठीक से की, और गवाहों के बयान इतने पुख्ता हैं कि अब बृज भूषण शरण सिंह का बचना मुश्किल होगा.