लखनऊ के भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी इकाना स्टेडियम में शुक्रवार को एक भव्य समारोह में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में एक नई सरकार ने शपथ ली. इस नये मंत्रिमंडल के गठन पर 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने की रणनीति की छाप स्पष्ट दिखाई दे रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी समेत कई केंद्रीय मंत्री, कई राज्यों के मुख्यमंत्री और हजारों बीजेपी समर्थक, योगी और उनके कैबिनेट मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह के साक्षी बने। उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार 5 साल तक रहे किसी मुख्यमंत्री ने लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ ली। इस मौके को खास बनाने के लिए पूरे राज्य में जश्न मनाया गया और कई जगहों पर धार्मिक अनुष्ठान किए गए।
सभी की निगाहें योगी के 32 नए मंत्रियों पर थीं और उन 26 मंत्रियों के बारे में भी काफी चर्चा थी जिनकी इस बार छुट्टी हो गई। दिनेश शर्मा की जगह कभी बसपा में रहे ब्रजेश पाठक को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। ये दोनों नेता ब्राह्मण हैं। यूपी में बीजेपी के ओबीसी चेहरे के रूप में उभरे केशव प्रसाद मौर्य को चुनाव में हार के बावजूद उपमुख्यमंत्री के रूप में बरकरार रखा गया। जिन मंत्रियों की छुट्टी हुई उनमें आशुतोष टंडन, श्रीकांत शर्मा, सिद्धार्थ नाथ सिंह, 8 बार विधायक सतीश महाना, बीजेपी का मुस्लिम चेहरा मोहसिन रजा समेत कई अन्य नाम शामिल हैं।
योगी की टीम में सवर्ण जातियों के 21 और अन्य पिछड़ी जातियों के 20 मंत्रियों को शामिल कर एकदम सही सन्तुलन ऱखा गया। इसके अलावा 8 दलित मंत्री बनाए गए हैं, साथ ही अनुसूचित जनजाति, मुस्लिम और सिख समुदाय से एक-एक मंत्री बनाया गया है। उच्च जाति के मंत्रियों में 7 ब्राह्मण, 6 ठाकुर, 2 भूमिहार, 5 वैश्य और एक कायस्थ हैं। 20 ओबीसी मंत्रियों में 4 कुर्मी, 3 जाट, 2 निषाद, 2 लोध और सैनी, गुर्जर, तेली, मौर्य, गडरिया, कुम्हार, यादव, राजभर और कश्यप जाति के एक-एक मंत्री शामिल हैं।
बीजेपी के दोनों सहयोगी दल, निषाद पार्टी और अपना दल, दोनों को नए मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व दिया गया है। विद्यार्थी परिषद के पूर्व छात्र नेता रहे दानिश आजाद अंसारी अकेले मुस्लिम मंत्री हैं, जिन्होंने मोहसिन रजा की जगह ली है। गुजरात आईएएस कैडर के पूर्व नौकरशाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद एके शर्मा को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है, जबकि चुनाव लड़ने के लिए वीआरएस लेने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी और कानपुर के पूर्व पुलिस चीफ असीम अरुण को स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री बनाया गया है।
शपथ समारोह का आयोजन यह संदेश देने के लिए किया गया था कि ये तो सेमीफाइनल की जीत का जश्न है, फाइनल तो 2024 लोकसभा चुनाव में होगा।
इस मेगा इवेंट के सियासी असर का अंदाजा उन सभी वरिष्ठ बीजेपी नेताओं की कतार देखकर लगाया जा सकता है, जिन्होंने शपथ समारोह में शिरकत की। पार्टी के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि इस आयोजन का तत्काल प्रभाव गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में पड सकता है, जहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
संक्षेप में इसे 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों की शुरुआत कहा जा सकता है। यूपी में पार्टी को मिली लगातार बड़ी सफलता को देखते हुए योगी निश्चित रूप से कल के हीरो थे।
मोदी ने योगी को अपनी टीम और इस कार्यक्रम की योजना बनाने के लिए खुली छूट दी थी। स्टेडियम में बने विशाल मंच की पृष्ठभूमि में ‘शपथ, शपथ, शपथ: राष्ट्रवाद की, सुशासन की, सुरक्षा की, विकास की’ लिखा हुआ था। ये शब्द, जिनका इस्तेमाल मोदी और योगी ने अपने यूपी अभियान के दौरान प्रभावी ढंग से किया था, 2024 में पार्टी के चुनावी एजेंडा, रोडमैप और लक्ष्य का आधार बन सकते हैं।
यह रोडमैप मंत्रियों के चुनाव में साफ झलकता है। केशव प्रसाद मौर्य सिराथू से अपना चुनाव हार गए थे, लेकिन उन्हें फिर से उपमुख्यमंत्री बनाया गया क्योंकि उन्होंने ही 2017 और इस साल के विधानसभा चुनावों में पिछड़ी जातियों की लामबंदी का नेतृत्व किया था। वह 2017 में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष थे और उन्होंने पार्टी को सत्ता में लाने के लिए कड़ी मेहनत की थी। इसीलिए पार्टी आलाकमान ने उन्हें चुनाव हारने के बावजूद इस बार भी नंबर दो की पोजीशन पर रखा है।
ब्रजेश पाठक को उपमुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने एक साथ कई संदेश दिए हैं। पहला, पार्टी नौजवान नेताओं को तरजीह देगी, दूसरा, पार्टी क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों का भी ख्याल रखेगी, यानी एक ब्राह्मण के स्थान पर दूसरे ब्राह्मण को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। तीसरा संदेश यह है कि पार्टी प्रतिभा और प्रतिबद्धता का सम्मान करेगी, और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि कौन किस पार्टी से आया है। ब्रजेश पाठक पहले BSP में थे, लोकसभा के सदस्य रहे और काफी मुखर सांसद के रूप में जाने जाते थे। बाद में उन्होंने मायावती का खेमा छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गए। चुनाव जीतकर वह विधानसभा के सदस्य बने और उन्हें योगी की सरकार में मंत्री बना दिया गया। उन्होंने अपनी काबलियत साबित की है।
योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छाप बिल्कुल साफ देखी जा सकती है। मंत्रियों का चुनाव क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों के हिसाब से दुरूस्त है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिस तरह से इस बार ज्यादा नौजवान विधायक चुनकर आए हैं, उसी तरह मंत्रिमंडल में भी नए और अनुभवी नेताओं का बेहतर कॉबिनेशन है। पूरे शपथग्रहण के दौरान मोदी और योगी के बीच अच्छी केमिस्ट्री दिखाई दी, और करीब सवा घंटे तक दोनों नेता मंच पर एक दूसरे से गुफ्तगू करते दिखे। दोनों नेताओं के बीच की केमिस्ट्री से साफ था कि अगले लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी के रोडमैप की रूपरेखा तैयार हो चुकी है।
असल में यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजन था कि यूपी में योगी की इस ऐतिहासिक जीत के जश्न को राजभवन के हॉल में राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच मनाने के बजाय पार्टी कार्यकर्ताओं से भरे स्टेडियम में एक भव्य समारोह में मनाया जाए।
मोदी जानते हैं कि यूपी में यह चुनावी जीत उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं के कड़े और अथक प्रयासों का नतीजा है। इसलिए, उन्होंने फैसला किया कि पार्टी कार्यकर्ताओं को शपथ समारोह के जश्न में भागीदार बनाया जाना चाहिए। इसका मकसद कार्यकर्ताओं में और ज्यादा जोश पैदा करना था ताकि 2 साल बाद होने वाले लोकसभा चुनावों के दौरान उन्हें अच्छी तरह से लामबंद किया जा सके। यही मोदी का स्टाइल है।
सिर्फ चुनाव जीतना ही मंत्री पद के लिए एकमात्र पैमाना नहीं था। लिस्ट बनाते समय एक प्रमुख पैमाना यह भी रखा गया कि संगठन के लिए किसने कितनी कड़ी मेहनत की है। मिसाल के तौर पर दयाशंकर सिंह अब तक पार्टी संगठन के लिए काम कर रहे थे और उन्हें पहली बार मंत्री बनाया गया। उनकी पत्नी स्वाति सिंह, जो पिछली बार मंत्री थीं, को टिकट नहीं दिया गया था, और इस बार दयाशंकर सिंह को बलिया शहर सीट से समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेता नारद राय के खिलाफ खड़ा किया गया था। सिंह को समाजवादी पार्टी के नेता को हराने का इनाम मिला है।
मोदी और योगी दोनों के सामने अब यह चुनौती है: 2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में बड़ी चुनावी जीत कैसे हासिल की जाए। योगी जानते हैं कि उन्हें लोकसभा चुनाव में पिछली बार से बेहतर प्रदर्शन करना होगा, पिछला रिकॉर्ड तोड़ना होगा। यूपी में कांग्रेस का लगभग सफाया हो चुका है और मायावती की बहुजन समाज पार्टी की हालत पहले से ज्यादा खराब हो गई है और वह अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
उत्तर प्रदेश में सबसे कठिन चुनौती अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से मिलेगी। पार्टी ने इस बार यूपी में अपना वोट शेयर और सीटों की संख्या बढ़ाई है। इस बात को बीजेपी नेतृत्व भी जानता है। चाहे वह कैबिनेट का गठन हो, या अगले 2 सालों के लिए सरकार का रोडमैप, मुख्य उद्देश्य यही होगा कि 2024 का लोकसभा चुनाव कैसे जीता जाए।