प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बायडेन के साथ अपनी पहली व्यक्तिगत मुलाकात की। व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में यह मुलाकात पहले से निर्धारित थी और इसके लिए एक घंटे का वक्त तय किया गया था। लेकिन जब दोनों नेता मिले तो यह मुलाकात 90 मिनट से ज्यादा समय तक चली।
इस मीटिंग के बाद भारत और अमेरिका की तरफ से एक संयुक्त बयान जारी किया गया जिसमें दोनों नेताओं की ओर से कहा गया कि, अमेरिका और भारत वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ साझा लड़ाई में एक साथ खड़े हैं, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव (UNSCR) 1267 प्रतिबंध समिति द्वारा प्रतिबंधित समूहों सहित सभी आतंकवादी समूहों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करेंगे। इसके साथ ही 26/11 मुंबई हमलों के अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाने का आह्वान किया गया।
सूत्रों के मुताबिक, ‘दोनों नेताओं ने छद्म आतंकवाद की निंदा की और आतंकवादी समूहों को साजोसामान, वित्तीय या सैन्य सहयोग न देने पर जोर दिया जिसका इस्तेमाल आतंकवादी हमले करने या उसकी योजना बनाने में किया जा सकता है।’ मोदी और बायडेन के बीच द्विपक्षीय वार्ता के दौरान काउंटर टेररिज्म पर ज्यादा जोर था। वहीं, अफगानिस्तान में पाकिस्तान द्वारा निभाई गई नुकसानदेह भूमिका और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस पर संज्ञान लेने की जरूरतों पर भी दोनों देशों के बीच सहमति बनी।
विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला, जो कि इस द्विपक्षीय वार्ता के समय वहां मौजूद थे, ने कहा ‘पाकिस्तान जो अपने आप को एक सूत्रधार (अफगानिस्तान में अमेरिका के लिए) के रूप में पेश कर रहा है, कई मायनों में उन समस्याओं को पैदा करने वाला है जिससे हम अपने पड़ोस में निपट रहे हैं।’
श्रृंगला ने कहा कि पीएम मोदी और राष्ट्रपति बायडेन के बीच भारत-अमेरिका द्विपक्षीय बैठक और ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान तथा अमेरिका के क्वाड शिखर सम्मेलन दोनों के दौरान अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका पर और सावधानीपूर्वक नजर रखने पर बात हुई। उन्होंने कहा, ‘दोनों चर्चाओं में यह बात स्पष्ट रही कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका पर और सावधानीपूर्वक नजर रखी जाए।’ हालांकि उन्होंने इस पर विस्तार से कुछ नहीं बताया।
क्वाड शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी ने कहा कि यह ग्रुप ‘दुनिया की भलाई के लिए एक शक्ति’ के तौर पर काम करेगा। साथ ही ये भी घोषणा की गई कि भारत अगले महीने (अक्टूबर) से कोरोना वैक्सीन का निर्यात फिर से शुरू करेगा। भारत अक्टूबर के अंत तक 80 लाख जैनसेन कोरोना वैक्सीन की डोज उपलब्ध कराएगा, जिसका निर्माण भारतीय कंपनी बायोलॉजिकल ई द्वारा क्वाड वैक्सीन इनीशिएटिव के तहत किया जाएगा। भारत इस पहली खेप के 50 प्रतिशत हिस्से का फाइनैंस खुद करेगा।
क्वाड देशों ने COVAX के माध्यम से फाइनैंस की जानेवाली वैक्सीन के अलावा वैश्विक स्तर पर 1.2 बिलियन से ज्यादा वैक्सीन डोज दान करने का संकल्प लिया। पीएम मोदी ने एक कॉमन अंतरराष्ट्रीय यात्रा प्रोटोकॉल का प्रस्ताव रखा जिसमें कोविड वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट को मान्यता देना भी शामिल था। इस प्रस्ताव की क्वाड के नेताओं ने खूब सराहना की। जापान भारत के साथ मिलकर कोरोना वैक्सीन और दवाओं से जुड़े भारतीय हेल्थकेयर सेक्टर में 100 मिलियन डॉलर के निवेश को बढ़ाने का काम करेगा।
पीएम मोदी और बायडेन की द्विपक्षीय वार्ता का मुख्य फोकस चीन था। अमेरिका के राष्ट्रपति ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की तरफ से पेश चुनौती का जिक्र किया। हालांकि क्वाड के संयुक्त बयान में चीन का खुले तौर पर नाम नहीं लिया गया, लेकिन क्वाड नेताओं के बीच चीन की हरकतों और क्षमताओं को लेकर एक समझ नजर आ रही थी।
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा समर्थित अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में क्वाड देशों को चेतावनी दी थी कि अगर वे ‘चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका के साथ मिलकर हद से आगे बढ़ेंगे तो वह उन्हें दंडित करने में कोई संकोच नहीं करेगा। ग्लोबल टाइम्स ने इस संपादकीय को व्हाइट हाउस में मोदी-बायडेन की मीटिंग की पूर्व संध्या पर प्रकाशित किया था।
अखबार ने अपने संपादकीय में कहा, ‘अमेरिका क्वाड और AUKUS को चीन पर लगाम कसने वाले कुटिल गिरोहों में बदलने का इरादा रखता है। हम अन्य क्षेत्रीय देशों से अपील करते हैं कि वे वॉशिंगटन के बहकावे में न आएं। उन्हें चीन के खिलाफ अमेरिका के भू-राजनीतिक प्यादे या वॉशिंगटन के लिए बलि का बकरा बनने से इनकार कर देना चाहिए।’ संपादकीय का लहजा साफ तौर पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सरकार के मूड को दर्शाता है। भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के अमेरिका के करीब आने से चीन चिढ़ा हुआ है। दूसरी ओर, अफगानिस्तान में सत्ता हथियाने के लिए तालिबान की मदद करने और उसे उकसाने में पाकिस्तान की भूमिका के विश्व शक्तियों के संज्ञान में आने के बाद उसे अमेरिका ने बुरी तरह से खारिज कर दिया है। प्रधानमंत्री इमरान खान अभी तक राष्ट्रपति जो बायडेन से मुलाकात नहीं कर पाए हैं।
वहीं दूसरी तरफ, 135 करोड़ भारतीयों के नेता के रूप में प्रधानमंत्री मोदी की व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति जो बायडेन के साथ हुई मीटिंग ने दुनिया भर की बड़ी शक्तियों का ध्यान आकर्षित किया है। गले लगाने के इरादे से एक-दूसरे के पास आने की बायडेन और मोदी की तस्वीरों और वीडियो ने साफ तौर से अमेरिकी नीति निर्माताओं के बीच भारत के रूतबे और बढ़े हुए कद का सबूत है। अन्य पूर्व भारतीय प्रधानमंत्रियों की वॉशिंगटन यात्राओं के दौरान अब तक ऐसा देखने को नहीं मिला था।
मोदी इससे पहले 2014 और 2016 में दो बार बायडेन से मिल चुके हैं। उस समय बायडेन अमेरिका के उपराष्ट्रपति हुआ करते थे। दोनों नेताओं के बीच संबंध हमेशा सौहार्दपूर्ण रहे हैं। जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति थे, तब मोदी 4 बार अमेरिका गए थे। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ मोदी के काफी अच्छे रिश्ते रहे हैं। मोदी ने खुद 2019 में मेरे शो ‘सलाम इंडिया’ में इस बात का जिक्र किया था कि कैसे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें अमेरिकी इतिहास के मशहूर लम्हों की एक झलक दिखाने के लिए खुद पूरा व्हाइट हाउस घुमाया था।
शुक्रवार को, बायडेन ने भारत-अमेरिका संबंधों में एक नया अध्याय शुरू किया और दोनों देशों के सामने कुछ सबसे कठिन चुनौतियों का सामना करने के लिए, जिनमें कोविड महामारी और एक आक्रामक विश्व शक्ति के रूप में चीन के उभार का खतरा शामिल हैं, इन संबंधों को और अधिक ऊंचाइयों पर ले जाने का वादा किया। दोनों नेताओं ने किसी अन्य देश का जिक्र करने से परहेज किया, लेकिन उनका फोकस साफ था। बायडेन ने भारत में पूर्वजों के बारे में एक पुरानी कहानी दोहराता हुए कहा कि उन्होंने सुना है कि मुंबई में 5 बायडेन हुआ करते थे। उन्होंने कहा, ‘मजाक से हटकर बात की जाए तो भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को मजबूत और घनिष्ठ होना ही है।’
अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ मोदी की द्विपक्षीय वार्ता, और क्वाड चौकड़ी के बीच सबसे पुराने नेता के रूप में उनकी भागीदारी ने एक बात को रेखांकित किया है: कि भारत उपमहाद्वीप की भूराजनीति पर हावी है, और अमेरिका भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को एक उच्च स्तर पर ले जाने की जरूरत को समझता है। पाकिस्तान, जो कि अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद दुनिया के सामने अपना प्रभाव फैला रहा था, अब एक मुश्किल विकल्प का सामना कर रहा है: उसे यह तय करना है कि वह किसकी तरफ जाएगा- अमेरिका या चीन? अफगानिस्तान में 2 दशकों तक अमेरिकी सेना के ‘सहयोगी’ के रूप में मदद करने के बाद अब सच्चाई सबके सामने आ गई है। पाकिस्तान ने ही पूरे तालिबान नेतृत्व को पनाह दी, तालिबान के लड़ाकों को ट्रेनिंग दी, और अमेरिकी सेना की वापसी के बाद जब तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता संभाली तब उसकी पूरी मदद की और उसे बढ़ावा दिया था।
अमेरिका अब अब यह बात मानता है कि भारत दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले लोकतंत्र के रूप में, एक बड़ी ताकत है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारत को विश्व भू-राजनीति के केंद्र में लाने का श्रेय अपने पिछले 7 सालों के शासन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए अथक प्रयासों को जाता है। अमेरिका ने महसूस किया है कि भारत के पास ज्ञान की शक्ति का एक विशाल भंडार है, जिसकी अमेरिकी उद्योग को आवश्यकता है। भारत टीकों का दुनिया का सबसे बड़ा निर्माता है, और भारतीय कंपनियां पूरी दुनिया में अपनी मौजूदगी को जाहिर कर रही हैं। भारत को अब और नजरअंदाज करना मुश्किल है। इसके अलावा, भारत में एक अरब से ज्यादा उपभोक्ता हैं, जो कि अमेरिकी निवेश के लिए एक मौके की तरह हैं।
मुझे याद है कि जब मोदी अभी प्रधानमंत्री नहीं बने थे, तो सबसे ज्यादा सवाल उनकी विदेश नीति की क्षमता को लेकर खड़े किए गए थे। किसी ने कहा कि एक ‘चायवाला’ दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों से कैसे बात करेगा, किसी ने कहा कि वह गुजरात के अलावा कुछ नहीं जानते तो विदेश नीति कैसे चलाएंगे। कुछ लोगों ने सवाल किया कि क्या ओबामा उन्हें अमेरिका जाने के लिए वीजा देंगे। पिछले 7 सालों में मोदी ने इन सभी विरोधियों को पूरे विश्वास के साथ करारा जवाब दिया है।
लगातार 3 अमेरिकी राष्ट्रपतियों बराक ओबामा, डोनाल्ड ट्रंप और जो बायडेन ने जिस तरह से मोदी का व्हाइट हाउस में स्वागत किया, उससे हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा हो गया। मोदी ने अपनी व्यावहारिक राजनीति और व्यक्तिगत केमिस्ट्री से दुनिया के नेताओं को चौंका दिया है। यह देखकर अच्छा लगता है कि विदेश में रहने वाले भारतीय मोदी की इसलिए जमकर तारीफ करते हैं कि उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री के कद को ऊंचाई दी है।
मोदी की लगातार विदेश यात्राओं के ने विदेश में रहने वाले भारतीयों को उन देशों के लोगों की नज़र में इज्जत बढ़ाई है। मोदी आज दुनिया के सबसे लोकप्रिय राजनेताओं में से एक हैं। वह बार-बार कहते हैं कि उन्हें यह दर्जा इसलिए मिला है क्योंकि भारत की 135 करोड़ जनता उनके पीछे है।