Rajat Sharma

क्या विपक्ष कभी नीतीश को अपना पीएम उम्मीदवार स्वीकार करेगा?

AKBबिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरुवार को ऐलान किया कि उनका नया मंत्रिमंडल 15 अगस्त के बाद शपथ लेगा, और 24 एवं 25 अगस्त को राज्य विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाएगा। नई महागठबंधन सरकार विधानसभा में अपना बहुमत साबित करेगी और एक नये विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा। विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस भेजा जा चुका है। नए मंत्रियों को दिए जाने वाले विभागों के बारे में गठबंधन सहयोगियों के बीच एक व्यापक समझ बन गई है।

इस बीच, इस बात के साफ संकेत हैं कि नीतीश कुमार दिल्ली पर नजरें गड़ाए हुए हैं और राष्ट्रीय राजनीति में कदम रख सकते हैं। बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी, जिन्होंने 10 साल तक नीतीश कुमार की सरपरस्ती में उपमुख्यमंत्री के रूप में काम किया, ने खुलासा किया कि नीतीश ने बीजेपी का साथ छोड़ने का फैसला इसलिए किया क्योंकि बीजेपी हाईकमान ने उपराष्ट्रपति बनाए जाने के उनके अनुरोध को नहीं माना था। सुशील मोदी ने कहा कि जेडीयू के नेताओं ने इस बारे में बीजेपी नेतृत्व से मुलाकात भी की थी, लेकिन ये बात नहीं मानी गयी। सुशील मोदी ने कहा, ‘अगर बीजेपी ने नीतीश को उपराष्ट्रपति बना दिया होता, तो वह एनडीए नहीं छोड़ते और बीजेपी का गुणगान कर रहे होते।’ नीतीश कुमार ने इन आरोपों को ‘बेकार की बातें’ करार दिया।

सुशील मोदी की इस बात में दम है कि नीतीश कुमार अब दिल्ली की राजनीति करना चाहते हैं। जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेने के साथ ही यह मुद्दा अब खत्म हो गया है। नीतीश कुमार की नजर पीएम पद पर है, और वह बीजेपी विरोधी ताकतों को लामबंद करने की योजना बना रहे हैं। नीतीश कुमार का दिल्ली की तरफ कूच करने का इरादा तेजस्वी यादव को भी सूट करता है। बिहार का मुख्यमंत्री बनने का उनका सपना ऐसे ही पूरा हो सकता है।

सुशील मोदी ने एक और दिलचस्प खुलासा किया। उन्होंने कहा कि जब गृह मंत्री अमित शाह ने नीतीश कुमार को दो दिन पहले फोन किया था और उनसे पूछा था कि उनकी पार्टी के नेता ललन सिंह बीजेपी विरोधी बयान क्यों दे रहे हैं, तो नीतीश कुमार ने जवाब दिया था कि ‘हमारे ललन सिंह आपके गिरिराज जैसे हैं। उनके बयान को ज्यादा महत्व मत दीजिए, चिंता मत कीजिए।’ नीतीश कुमार ने अमित शाह को झांसे में रखा और अगले ही दिन गठबंधन को तोड़ दिया।

बीजेपी नेतृत्व को पूरा भरोसा है कि नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में नाकाम साबित होंगे। बीजेपी नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार, जो 2014 में बिहार से अपनी पार्टी के लिए 40 में से सिर्फ 2 लोकसभा सीटें जीत पाए थे, उन्हें अन्य विपक्षी दल कभी भी गंभीरता से नहीं लेंगे। हालांकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि नीतीश कुमार के अचानक विपक्षी खेमे में घुसने से बीजेपी नेताओं को गहरी चोट लगी है, और इसका दर्द उनके बयानों में दिखाई भी दे रहा है। बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बुधवार को कहा कि ‘विपक्ष नीतीश कुमार को चने के झाड़ पर चढ़ा रहा है।’

राष्ट्रीय फलक पर इस समय विपक्षी खेमे में क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व है, और यह खेमा नीतीश कुमार के हर कदम को गौर से देख रहा है। एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने कहा, नीतीश कुमार ने बीजेपी की चाल को समझकर वक्त रहते जो फैसला किया, उसकी तारीफ की जानी चाहिए। पवार ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने इससे पहले भी अकाली दल और शिवसेना जैसे अपने पूर्व सहयोगियों को कमजोर किया, लेकिन नीतीश कुमार ने जैसे को तैसा जबाव दिया। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने भी नीतीश कुमार के इस कदम का स्वागत किया। शिवसेना नेता अरविंद सावंत ने आरोप लगाया कि बीजेपी क्षेत्रीय दलों को कभी पनपने नहीं देना चाहती।

इसी तरह की प्रतिक्रियाएं ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और के. चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति की ओर से आईं। केसीआर की बेटी के. कविता ने कहा, ‘बिहार में हुआ सियासी घटनाक्रम पूरे देश के लिए एक शुभ संकेत है और नीतीश कुमार के इस कदम की तारीफ होनी चाहिए।’ AAP सुप्रीमो और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से जब पूछा गया कि क्या उनकी पार्टी पीएम पद के लिए नीतीश कुमार का समर्थन करेगी, तो उन्होंने कहा: ‘लोकसभा चुनाव में अभी वक्त है। तब की तब देखी जाएगी।’

जितनी पार्टियों ने बिहार में हुए बदलाव को ‘देश में बदलाव की शुरूआत’ बताया, ‘बीजेपी की उल्टी गिनती की शुरूआत’ बताया, वे सभी पार्टियां पूरी ताकत के साथ नरेन्द्र मोदी का विरोध करती हैं। शरद पवार, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, के. चन्द्रशेखर राव और अरविन्द केजरीवाल जैसे नेता मोदी के खिलाफ बोलने का कोई मौका नहीं छोड़ते।

चूंकि नीतीश ने बीजेपी को झटका दिया है इसलिए अब सभी नीतीश की तारीफ कर रहे हैं, उन्हें देश को दिशा दिखाने वाला बता रहे हैं। नीतीश भी विरोधी दलों की एकता की बात कर रहे हैं। लेकिन जैसे ही यह सवाल पूछा जाएगा कि क्या ये सारे नेता नीतीश को नेता मानने को तैयार हैं, क्या नीतीश को मोदी के मुकाबले प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर पेश करने के लिए तैयार हैं, इस सवाल का जबाव मिलने से पहले ही विपक्षी एकता टूट जाएगी। यही आज विपक्ष की हकीकत है।

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