Rajat Sharma

क्या 2024 तक किसी एक नेता के नाम पर सहमत हो पाएंगे विपक्षी दल?

akbपैगसस विवाद की जांच की मांग को लेकर विपक्षी दल कार्यवाही में लगातार व्यवधान डाल रहे हैं, जिसके कारण संसद का मॉनसून सत्र पिछले 10 दिनों से ठप है। गुरुवार को राज्यसभा में विपक्षी सदस्यों ने कार्यवाही बाधित करने के लिए जोर-जोर से तालियां बजाईं, तो लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के सांसदों ने पर्चे फाड़कर उन्हें हवा में उछाल दिया।

जहां सरकार दावा कर रही है कि वह सदन के अंदर सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार है, वहीं विरोधी दल भी कह रहे हैं कि वे सभी मुद्दों पर चर्चा करना चाहते हैं। फिर चर्चा क्यों नहीं हो रही? यह गतिरोध क्यों है? विपक्ष के सांसद क्यों जोर-जोर से ताली बजा रहे हैं, कागज फाड़ रहे हैं, मंत्री से आंसर शीट छीन रहे हैं और हंगामा कर रहे हैं।

मकसद साफ है: विपक्ष पैगसस स्पाइवेयर के मुद्दे पर सरकार को घेरना चाहता है, लेकिन विरोधी दल अलग-अलग स्वरों में बात कर रहे हैं। एक पक्ष सदन के अंदर बहस चाहता है, दूसरा चाहता है कि एक संयुक्त संसदीय समिति जांच करे, और तीसरा सुप्रीम कोर्ट के जज की निगरानी में जांच चाहता है। वहीं, केंद्र अपने रुख को लेकर स्पष्ट है। वहीं, केंद्र अपने रुख को लेकर स्पष्ट है। वह चाहता है कि विपक्ष ठोस सबूत पेश करे क्योंकि अफवाह के आधार पर जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।

बुधवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संसद में विपक्षी नेताओं की बैठक बुलाकर लीड लेने की कोशिश की। बैठक में कांग्रेस, शिवसेना, एनसीपी, समाजवादी पार्टी, आरजेडी, आम आदमी पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भाग लिया। इसमें तृणमूल कांग्रेस के नेता शामिल नहीं हुए। बैठक के तुरंत बाद विपक्षी सदस्यों ने लोकसभा के अंदर पर्चे फाड़े और उन्हें हवा में उछाल दिया। तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने सदन के अंदर ‘खेला होबे’ के नारे लगाए। सदन स्थगित होने के बाद विपक्षी सांसदों ने संसद से विजय चौक तक मार्च किया और फिर मीडिया को संबोधित किया। इस दौरान राहुल गांधी के साथ शिवसेना नेता संजय राउत, एनसीपी नेता सुप्रिया सुले, समाजावदी पार्टी नेता रामगोपाल यादव और डीएमके एवं आरजेडी के नेता मौजूद थे। राहुल गांधी ने कहा कि वह सरकार से सिर्फ 2 सवालों के जवाब चाहते हैं। एक, सरकार ने इजरायल से पैगसस स्पाइवेयर खरीदा या नहीं, और दूसरा, सरकार ने पैगसस के जरिए भारत के लोगों की जासूसी की या नहीं?

लगभग उसी समय, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने मोदी सरकार का मुकाबला करने की रणनीति तैयार करने के लिए अपनी पार्टी के सांसदों की बैठक बुलाई थी। बाद में टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने साफ कहा कि मोदी के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व सिर्फ ममता बनर्जी ही कर सकती हैं। उन्होंने कहा, मोदी का कोई विकल्प है तो वह ममता बनर्जी हैं, क्योंकि ‘वह लीडर नंबर 1’ हैं। इसके तुरंत बाद ममता बनर्जी ने अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से उनके आवास 10 जनपथ पर मुलाकात की। 45 मिनट तक चली इस मीटिंग में राहुल गांधी भी शामिल हुए। मीडिया को संबोधित करते हुए तृणमूल सुप्रीमो ने कहा, सभी विपक्षी दलों को हाथ मिलाना होगा और मिलकर काम करना होगा। हालांकि उन्होंने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया कि क्या वह विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं।

फिलहाल विपक्ष का नेतृत्व करने की दौड़ में 3 दावेदार दिखाई दे रहे हैं: राहुल गांधी, ममता बनर्जी और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार। दिलचस्प बात यह है कि ये तीनों नेता अपनी अलग-अलग रणनीति बना रहे हैं। पवार समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव के साथ लेकर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का हालचाल लेने पहुंच गए। विपक्षी नेताओं में पवार सबसे अनुभवी और सक्रिय नेता हैं। उन्हें पता है कि लालू यादव भले ही बीमार हों और पिछले कई सालों से सक्रिय राजनीति से दूर हों, लेकिन उन्हें कमजोर नेता नहीं समझना चाहिए। अगर लालू की बेटी मीसा भारती ने इस मुलाकात के बारे में ट्वीट नहीं किया होता तो यह सीक्रेट ही रहती।

राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए 2 बातें साफ हैं। एक तो यह कि विपक्ष जल्दी शांत होने वाला नहीं है और संसद की कार्यवाही में बाधा डालता रहेगा। न ही सरकार विपक्ष की मांगों के आगे झुकने को तैयार है। आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के हाथों से पर्चा छीनकर फाड़ने वाले तृणमूल सांसद शांतनु सेन को पूरे सेशन के लिए सस्पेंड कर दिया गया, लेकिन लोकसभा में बुधवार को सदन के अंदर पर्चे फाड़कर स्पीकर की चेयर की तरफ फेंकने वाले सांसदों पर फिलहाल कोई ऐक्शन नहीं हुआ है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला पहले ही विपक्षी नेताओं को बुलाकर चेतावनी दे चुके हैं कि वह गलती करने वाले सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। सरकार ने फैसला किया है कि सभी विधेयकों को संसद में पारित करवाया जाएगा, भले ही विपक्षी सदस्य शोर-शराबा करें या व्यवधान पैदा करें।

दूसरी बात ये कि अब लगभग तय है कि 13 अगस्त तक मॉनसून सेशन के दौरान संसद में हंगामा भी होगा, और सरकारी काम भी होगा, सिर्फ चर्चा नहीं होगी। विपक्ष इसके लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराएगा और सरकार कहेगी कि विरोधी दल ही चर्चा नहीं चाहता। इसके अलावा कांग्रेस के नेता इस बात को लेकर परेशान हैं कि ममता बनर्जी, जो कि अभी दिल्ली में हैं, लीड लेने की कोशिश कर सकती हैं और इसीलिए पिछले कुछ दिनों में राहुल गांधी की ऐक्टिविटी और विजिबिलिटी बढ़ गई है। एक दिन वह किसानों के मुद्दे को उजागर करने के लिए पार्टी के सांसदों के साथ संसद में ट्रैक्टर पर सवार होकर आए तो बुधवार को उन्होंने विजय चौक तक मार्च में विपक्षी सांसदों का नेतृत्व किया। कांग्रेस नेता नहीं चाहते कि ममता एकजुट विपक्ष के प्रतीक के रूप में उभरें।

दूसरी तरफ तृणमूल सांसद चाहते हैं कि ममता निर्विवाद रूप से विपक्ष की नेता के रूप में उभरें। यह सच है कि ममता ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी की चुनावी मशीन को कड़ी टक्कर दी और उसे करारी हार का सामना करना पड़ा। ममता बनर्जी बंगाल में मिली अपनी जीत का इस्तेमाल राष्ट्रीय स्तर पर मोदी के खिलाफ हवा बनाने में करना चाहती हैं। कुछ लोग कहेंगे कि 2024 के आम चुनावों में अभी 3 साल बाकी हैं, लेकिन ममता ने खुद इसका जवाब दिया और कहा कि बीजेपी को हराने के लिए विपक्षी दलों को अभी से तैयारी करनी होगी। यह भी सही है कि ममता विरोधी दलों के मोर्चे से कांग्रेस को अलग भी नहीं रखना चाहती हैं। इसीलिए उन्होंने 10 जनपथ पर सोनिया और राहुल गांधी से मुलाकात को खास तरजीह दी।

इस समय चल रहे सियासी खेल के एक और बड़े खिलाड़ी शरद पवार हैं। वह विपक्षी नेताओं में सबसे अनुभवी हैं और उनकी काबिलियत के बारे में नरेंद्र मोदी भी जानते हैं और ममता बनर्जी भी। अपने लंबे राजनीतिक जीवन में पवार को प्रधानमंत्री बनने के कई मौके मिले, लेकिन वह हर बार चूक गए। 2 बातें उनके खिलाफ जाती हैं: एक तो उनकी उम्र काफी हो गई है और दूसरी उनकी पार्टी एनसीपी काफी हद तक सिर्फ महाराष्ट्र तक ही सीमित है। लेकिन हमने पहले भी देखा है कि जब विपक्षी दलों के मोर्चे बनते हैं तो उनमें न किसी नेता की उम्र देखी जाती है और न ये देखा जाता है कि पार्टी छोटी है या बड़ी। ऐसे में सिर्फ यह देखा जाता है कि किसके नाम पर सब लोग सहमत होते हैं।

चाहे शरद पवार हों या ममता बनर्जी, दोनों इस बात को समझते हैं कि नेतृत्व के मुद्दे पर सभी विपक्षी नेताओं को एक ही नाम पर सहमत करना टेढ़ी खीर है। दूसरे, नरेंद्र मोदी से मुकाबला करना आसान नहीं है। मोदी एक मजबूत नेता हैं और उनके पास एक दमदार पार्टी संगठन है जो भारत के हर राज्य में फैल चुका है। मोदी को चुनाव लड़ने की कला में महारत हासिल है। उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत के दम पर ही अपनी ताकत बढ़ाई है। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में मिली हार जरूर एक झटका थी, लेकिन मोदी एक ऐसे नेता हैं जो हार से कभी निराश नहीं होते। न ही वह सभी विरोधी दलों के हाथ मिलाने की बात से परेशान नजर आते हैं।

2024 के लोकसभा चुनाव अभी 3 साल दूर हैं। ऐसे में कहा नहीं जा सकता कि तब तक कितने विपक्षी दल साथ रह पाएंगे, और क्या वे सभी किसी एक को अपना नेता मानेंगे। इसका अंदाजा लगाना अभी मुश्किल है।

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