Rajat Sharma

क्या मोदी रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता करेंगे ?

AKBआज सारी दुनिया की निगाहें भारत की ओर हैं। दुनिया भारत को इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर देख रही है। शुक्रवार को रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग का 38 वां दिन था और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। मोदी ने लावरोव से कहा कि भारत रूस और यूक्रेन के बीच शांति स्थापित करने की कोशिशों में हर तरह के योगदान के लिए तैयार है। लावरोव मोदी के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का खास संदेश लेकर आए थे।

जहां एक ओर रूस चाहता है कि भारत यूक्रेन संकट के मामले में मध्यस्थता करे, वहीं अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूर रहे और पुतिन के विरोध में पश्चिमी गुट में शामिल हो जाए। ब्रिटेन भी चाहता है कि भारत को यूरोपीय देशों के साथ खड़े होना चाहिए जो रूस के आक्रमण का विरोध कर रहे हैं। चीन भी भारत के साथ शांति चाहता है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी अचानक दिल्ली के दौरे पर पहुंचे थे। उधर, पाकिस्तान में एक बड़े राजनीतिक संकट का सामना कर रहे प्रधानमंत्री इमरान खान भी बार-बार भारत की आज़ाद विदेश नीति की तारीफ कर रहे हैं और यह चाहते हैं कि उनका देश भी भारत की तरह किसी बाहरी दबाव में न आए।

रूस के विदेश मंत्री ने दिल्ली में कहा, ‘भारत की अपनी आजाद विदेश नीति है और यह सही मायने में आजाद और अपने हितों को सबसे ऊपर रखने वाली है…अगर भारत रूस से कुछ भी खरीदना चाहता है तो हम इस पर चर्चा के लिए तैयार हैं।’

लावरोव की यह टिप्पणी अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह की भारत, रूस और चीन के बारे में की गई विवादास्पद टिप्पणी के मद्देनजर आई है।

अमेरिकी डिप्टी एनएसए दलीप सिंह ने भारत को आंख दिखाने की कोशिश की। दलीप सिंह को बायडेन प्रशासन ने रूस के खिलाफ अन्तरराष्ट्रीय पाबंदियों को लागू कराने के लिए नियुक्त किया है। भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला से मुलाकात के बाद दलीप सिंह ने दिल्ली में संवाददाताओं से कहा था, ‘ चीन रऊस से जितना ज्यादा फायदा उटाएगा, उतना ही यह भारत के लिए कम अनुकूल होगा। मुझे नहीं लगता कि कोई भी इस बात पर यकीन करेगा कि अगर चीन ने एक बार फिर वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन किया तो रूस भारत की रक्षा के लिए दौड़ा आएगा।’ राजनयिक हलकों में इस तरह की टिप्पणी को परोक्ष रूप से धमकी माना जाती है।

भारत ने शुक्रवार को इस संबंध में अमेरिका को स्पष्ट संदेश दे दिया, जब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लावरोव से मुलाकात की और इस मुलाकात के बाद लावरोव ने पीएम मोदी से मुलाकात की। कूटनीतिक भाषा और लहज़े में इससे ज्यादा साफ संकेत और कुछ नहीं हो सकता था। भारत ने बिना कुछ बोले, बिना कुछ कहे डिपलोमैसी की भाषा में अमेरिका को कड़ा संदेश दे दिया। भारत का संदेश था- जहां तक विदेश नीति का संबंध है, हमें डराया नहीं जा सकता। पीएम मोदी के शब्दों में-‘भारत न किसी से आंख उठाकर बात करेगा, न किसी से आंख झुका कर बात करेगा, भारत आंख में आंख डाल कर बात करेगा।’

अमेरिका भारत को यह डर दिखाने की कोशिश कर रहा है कि जैसे रूस ने यूक्रेन की सीमा का अतिक्रमण किया वैसे ही चीन भी भारत की सीमा का अतिक्रमण कर सकता है। लेकिन अमेरिका यह भूल गया कि भारत, यूक्रेन नहीं है। यह बात चीन भी समझता है और अमेरिका को भी समझनी चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी का दृष्टिकोण स्पष्ट है, नीयत साफ है और नीति भी साफ है। हम वही करेंगे जिसमें भारत का फायदा है। न किसी पर दबाव डालेंगे और न किसी के दबाव में आएंगे।

अमेरिका के डिप्टी एनएसए ने शायद यह सोचा था कि भारत इस तरह की धमकी से डर जाएगा और वह रूस के साथ अपनी दोस्ती से पैर पीछे खींच लेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। भारत के साथ तेल के सौदे पर रूस के विदेश मंत्री ने कहा- ‘हम भारत को किसी भी तरह के सामान की आपूर्ति करने के लिए तैयार रहेंगे जो भारत खरीदना चाहता है.. मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि अवैध और एकतरफा प्रतिबंध लगाकर पश्चिम द्वारा बनाई गई कृत्रिम बाधाओं को दूर करने का कोई रास्ता निकाला जाएगा।’

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है । 24 फरवरी को रूस ने जब यूक्रेन पर हमला किया, तब से लेकर अब तक भारत स्पॉट टेंडर के जरिए डिसकाउंट पर रूस से तेल खरीद रहा है। उस समय से लेकर अभी तक भारत ने भारी डिस्काउंट के साथ 1 करोड 30 लाख बैरल रूसी तेल खरीदा है। तुलना कीजिए, वर्ष 2021 की पूरी अवधि में भारत ने रूस से कुल 1 करोड़ 60 लाख बैरल तेल की खरीद की थी।

रूस के खिलाफ अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के कारण अन्य देश रूस से तेल नहीं खरीद सकते । अमेरिकी प्रशासन के एक सीनियर अधिकारी ने हाल ही में कहा था कि रूस से तेल खरीद में उल्लेखनीय वृद्धि होने पर ही भारत खुद को जोखिम से घिरा पा सकता है… भारत द्वारा रूस से तेल खरीदे, इस पर अमेरिका को कोई आपत्ति नहीं है बशर्ते वह पिछले वर्षों की तुलना में अपनी खरीद में कोई ज्यादा बढ़ोत्तरी न करे ।”

अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण रूस भारत के साथ अपने द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाना चाहता है। लावरोव ने शुक्रवार को कहा कि पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को दरकिनार करने के लिए अब भारत और रूस रुबल और रूपए में व्यापार करने पर बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत के साथ रूबल-रुपये का व्यापार वर्षों पहले शुरू हुआ था और अब पश्चिमी के पेमेंट सिस्टम को दरकिनार करने के प्रयास तेज किए जाएंगे।

कुल मिलाकर संक्षेप में कहें तो भारत अपने राष्ट्रीय हितों को सबसे ऊपर रखते हुए अपनी विदेश नीति पर चलेगा। बाहरी ताकतों के धमकाने या डराने का कोई असर नहीं होनेवाला है। अपनी ओर से भारत ने रूस से कहा है कि यूक्रेन में युद्ध खत्म कर जल्द से जल्द शांति बहाली के उपाय किए जाने चाहिए। वहीं लावरोव ने कहा-‘भारत एक महत्वपूर्ण देश और उन्हें इस बात का पूरा यकीन है कि भारत यूक्रेन के साथ रूस के विवाद को सुलझाने में निष्पक्ष और न्यायसंगत भूमिका निभा सकता है। भारत ने अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के लिए एक न्यायसंगत और तर्कसंगत दृष्टिकोण अपनाया है और वह इस तरह की (शांति) प्रक्रिया का समर्थन कर सकता है।

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