कांग्रेस का एक और मज़बूत पिलर गिर गया। गुलाम नबी आज़ाद शुक्रवार को कांग्रेस से ‘आजाद’ हो गए। उन्होंने कांग्रेस से 49 साल पुराना रिश्ता खत्म करते हुए पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा देते हुए गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पांच पन्नों की चिट्ठी लिखी। इस चिट्ठी का लब्बो-लुबाब ये है कि राहुल गांधी के चक्कर में पार्टी की इतनी दुर्दशा हो गई है। उन्होंने सीधे-सीधे बिना किसी लाग लपेट के कहा कि राहुल ‘अपरिपक्व’ हैं, उनकी हरकतें ‘बचकानी’ है वे ‘अनुभवहीन चाटुकारों’ से घिरे हैं।
राहुल गांधी के व्यवहार को ‘बचाकाना’ बताते हुए आजाद ने लिखा.. ‘दुर्भाग्य से राहुल गांधी की राजनीति में एंट्री और खासतौर से जनवरी 2013 के बाद जब वे आपके द्वारा उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए, उन्होंने पार्टी में मौजूद सलाह-मशविरे के सिस्टम को खत्म कर दिया। सभी वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को साइडलाइन कर दिया गया और अनुभवहीन चाटुकारों की मंडली पार्टी को चलाने लगी।’
आजाद ने लिखा ‘इस अपरिपक्वता का सबसे बड़ा उदाहरण राहुल गांधी द्वारा मीडिया के सामने सरकार के अध्यादेश को फाड़ना था। उस अध्यादेश को चर्चा के बाद कांग्रेस कोर ग्रुप में शामिल किया गया था और बाद में देश के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केद्रीय मंत्रिमंडल ने सर्वसम्मति से उसे पास किया था। देश के राष्ट्रपति ने उस अध्यादेश पर मुहर लगाई थी। उनके इस ‘बचकाने’ व्यवहार ने प्रधानमंत्री और भारत सरकार के अधिकारों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था। 2014 में यूपीए की हार के लिए यह घटना सबसे ज्यादा जिम्मेदार थी। उस समय पार्टी दक्षिणपंथी ताकतों और कुछ बेईमान कॉरपोरेट् हितों द्वारा चलाए जा रहे बदनामी और आक्षेप के अभियान झेल रही थी।’
पार्टी की चुनावी हार के घावों पर नमक छिड़कते हुए आजाद ने लिखा-‘ 2014 से आपके नेतृत्व और बाद में राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस दो लोकसभा चुनावों में बुरी तरीके से पराजित हुई है। 2014 से 2022 के बीच हुए 49 विधानसभा चुनावों में से पार्टी को 39 में हार का सामना करना पड़ा है। केवल चार राज्यों में पार्टी चुनाव जीतने में सफल रही है और 6 बार गठबंधन की स्थिति में आने में सफल रही है। दुर्भाग्य से आज कांग्रेस केवल दो राज्यों में शासन कर रही है और दो अन्य राज्यों में गठबंधन सरकार में सहयोगी की भूमिका में है।
आजाद ने इस बात की ओर इशारा किया कि कैसे राहुल गांधी और उनकी चाटुकारों की मंडली पार्टी के पुराने लोगों को परेशान कर रही है। उन्होंने लिखा, ‘2019 के चुनावों के बाद से पार्टी की हालत खराब होती गई है। राहुल गांधी ने जल्दबाजी में अध्यक्ष का पद छोड़ दिया और विस्तारित कार्यसमिति की बैठक में पार्टी के लिए अपने प्राण देनेवाले पार्टी के सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों का अपमान होने से पहले आपने अंतरिम अध्यक्ष के रूप में पदभार ग्रहण किया । जिसे आप पिछले तीन साल से संभाले हुए हैं।’
उन्होंने लिखा कि कैसे राहुल की मंडली रिमोट कंट्रोल से कांग्रेस को चला रही है और फैसले उनके पीए और सुरक्षा गार्ड ले रहे हैं। आजाद ने लिखा, ‘इससे भी बुरी बात यह है कि जिस ‘रिमोट कंट्रोल मॉडल’ ने यूपीए सरकार की संस्थागत अखंडता को ध्वस्त किया अब वही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में लागू हो गया। जबकि पार्टी में आप सिर्फ एक नाममात्र की व्यक्ति रह गई हैं और सारे अहम फैसले राहुल गांधी या उनसे भी बदतर उनके सुरक्षा गार्ड और पीए द्वारा लिए जा रहे थे।
गुलाम नबी आजाद ने इस बात का उल्लेख किया कि कैसे ग्रुप-23 के उनके सहयोगियों और उन्हें राहुल गांधी के आसपास की मंडली द्वारा निशाना बनाया गया और उनकी निंदा की गई। आजाद ने लिखा, ‘2020 के अगस्त में जब मैंने और पूर्व केंद्रीय मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों सहित 22 अन्य वरिष्ठ सहयोगियों ने आपको पार्टी के अंदर आ रही गिरावट को लेकर चिट्ठी लिखी तो मंडली के लोगों ने अपने चाटुकारों को हम पर हमला करने के लिए भेज दिया। जितनी बुरी तरह से अपमानित किया जा सकता है, अपमानित किया गया। वास्तव में एआईसीसी चलाने वाली मंडली के निर्देश पर ही जम्मू में मेरा अर्थी जुलूस निकाला गया। जिन लोगों ने यह अनुशासनहीनता की उनका एआईसीसी के महासचिवों और राहुल गांधी ने दिल्ली में स्वागत किया था। इसके बाद उसी मंडली ने अपने गुंडों को कपिल सिब्बल के घर पर हमला करने के लिए उकसाया जो संयोग से आपका बचाव कर रहे थे। आपको और आपके परिजनों को चूक और कमीशन के कथित हमलों से बचा रहे थे।
आजाद ने लिखा’ 23 सीनियर नेताओं द्वारा एकमात्र किया गया अपराध यह था कि उन्होंने पार्टी की चिंता की। पार्टी के हित में आपको पार्टी की कमजोरियों की वजह और उसे दूर करने के उपाय, दोनों के बारे में बताया। दुर्भाग्य से उन पर रचानत्मक और सहयोगात्मक तरीके से विचार करने के बजाय विस्तारित सीडब्ल्यूसी की विशेष तौर बुलाई गई बैठक में हमारे साथ दुर्व्यवहार किया गया, हमें अपमानित किया गया, हमें अपशब्द कहे गए, शर्मिंदा किया गया।’
कांग्रेस में मौजूदा चुनाव प्रक्रिया को एक ‘तमाशा’ बताते हुए, आजाद ने लिखा, “दुर्भाग्य से, कांग्रेस पार्टी की हालत ऐसी हो गई है कि अब पार्टी का नेतृत्व संभालने के लिए प्रॉक्सी को सहारा दिया जा रहा है। इस तरह के प्रयोग का विफल होना निश्चित है क्योंकि पार्टी इतनी व्यापक रूप से नष्ट हो गई है जहां से वापसी नहीं हो सकती। इसके अलावा, जिसे चुना जाएगा वह एक तार पर लटके हुए कठपुतली से ज्यादा कुछ नहीं होगा।’
राहुल गांधी को एक अगंभीर शख्स बताते हुए आजाद ने लिखा,’बदकिस्मती से राष्ट्रीय स्तर पर हमने राजनीति की जगह बीजेपी के लिए और राज्यों में क्षेत्रीय दलों के लिए छोड़ दी है। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि पिछल 8 साल में नेतृत्व ने एक अगंभीर शख्स को पार्टी के शीर्ष स्थान पर थोपने की कोशिश की है। संगठन के अंदर चुनाव प्रक्रिया एक दिखावा है। देश में कहीं भी किसी भी स्तर पर संगठन के स्तर पर चुनाव नहीं हुए हैं।’
आजाद ने लिखा, ‘एआईसीसी के चुने हुए लेफ्टिनेंटों को 24 अकबर रोड पर बैठकर एआईसीसी चलाने वाली मंडली द्वारा तैयार की गई लिस्ट पर साइन करने के लिए मजबूर किया गया। किसी बूथ, ब्लॉक, जिले या राज्य में किसी भी जगह पर मतदाता सूची प्रकाशित नहीं की गई, न नामांकन आमंत्रित किए गए, न जांच की गई, न मतदान केंद्र बनाए गए और न चुनाव हुए। एआईसीसी नेतृत्व पार्टी के साथ बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी को अंजाम देने के लिए जम्मेदार है। पार्टी अतीत के खंडहर होते जा रहे इतिहास पर पकड़ बनाए रखे जो कभी एक राष्ट्रीय आंदोलन था, जिसने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी और आजादी दिलाई। क्या आजादी के 75 वें वर्ष में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस लायक है? यह एक ऐसा सवाल है जो एआईसीसी नेतृत्व को खुद से पूछना चाहिए।
अगर संक्षेप में कहें तो गुलाम नबी आजाद की यह चिट्ठी कांग्रेस के उस स्तर को उजागर करती है जिस स्तर तक पार्टी में गिरावट आई है। पहली बार कांग्रेस के किसी सीनियर नेता ने इस्तीफा देते हुए गांधी परिवार के कामकाज की पोल खोल दी है। यह चिट्ठी पार्टी की अंदर की उन बीमारियों की डिटेल रिपोर्ट प्रतीत होती है जिससे पार्टी बुरी तरह पीड़ित है। चूंकि लगाए गए आरोप बेहद गंभीर थे इसलिए राहुल गांधी और उनकी सोशल मीडिया टीम ने इस चिट्ठी के सार्वजनिक होने के कुछ ही मिनटों के भीतर आजाद पर तुरंत हमला कर दिया। जयराम रमेश से लेकर अशोक गहलोत और अजय माकन, भूपेश बघेल से लेकर पवन खेड़ा तक सबने आजाद को सत्ता चाहने वाला, देशद्रोही और कृतघ्न बताते हुए हमला किया। वहीं इसके विपरीत नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला ने कांग्रेस नेताओं को आत्ममंथन करने की सलाह दी कि आखिर क्यों आजाद जैसे वफादार नेता को इस्तीफा देना पड़ा। फारूक अब्दुल्ला ने कहा, आजाद को छोटा मत समझो, उन्हें वापस लौटने के लिए मनाने की कोशिश करो और अगर नेताओं का पलायन जारी रहा, तो कांग्रेस का अस्तित्व खत्म हो जाएगा।’
कांग्रेस नेता इसके बाद भी बेफिक्र रहे। जयराम रमेश ने ट्वीट किया,’ एक शख्स जिसके साथ कांग्रेस नेतृत्व द्वारा सबसे ज्यादा सम्मान के साथ व्यवहार किया गया है उसने अपने शातिर व्यक्तिगत हमलों से धोखा दिया है जो उसके असली चरित्र को उजाकर करता है। जीएनए (गुलाम नबी आजाद) का डीएनए ‘मोडी-फाइड’ है।’
फिलहाल सोनिया गांधी , राहुल और प्रियंका गांधी विदेश में हैं, लेकिन राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों और कांग्रेस के अन्य नेताओं की प्रतिक्रियाओं से साफ है कि पार्टी नेतृत्व आजाद को मनाने के मूड में नहीं है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदाई भाषण के दौरान राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद की तारीफ की और भावुक हो गए, तो कांग्रेस नेताओं ने आजाद पर ‘बीजेपी का एजेंट’ होने का आरोप लगाया। पार्टी ने उन्हें राज्यसभा का टिकट देने से इनकार कर दिया और उनके बजाय इमरान प्रतापगढ़ी को राज्यसभा में भेज दिया। मोदी ने एक काबिल मुख्यमंत्री के तौर पर आजाद की तारीफ की थी, लेकिन राहुल गांधी और उनकी मंडली को मोदी की यह तारीफ पसंद नहीं आई।
कांग्रेस नेताओं को यह समझना चाहिए कि क्यों शुक्रवार को फारूक अब्दुल्ला ने गुलाम नबी आजाद की तारीफ की। फारूक अब्दुल्ला सियासत और उम्र में गुलाम नबी आजाद से सीनियर हैं। दोनों अलग-अलग पार्टियों में हैं। फिर भी वो ग़ुलाम नबी की इज्जत करते हैं। गुलाम नबी जब 24 साल के थे तब कांग्रेस में आए थे। अब 73 साल के हैं। उन्होंने पूरी जिंदगी कांग्रेस में निकाल दी। ब्लॉक में यूथ कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ता से लेकर CWC तक, हर स्तर पर काम किया। ये सही है कि वो मंत्री रहे, मुख्यमंत्री रहे, राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे, कांग्रेस के महासचिव रहे। ये पद कांग्रेस ने उन्हें उनकी काबिलियत के आधार पर दिए। प्रशासनिक और राजनीतिक अनुभव के कारण वे इन पदों के हकदार थे।
गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे पर कांग्रेस के नेताओं ने जिस तरह की प्रतिक्रिया दी और जो बातें कहीं उनसे गुलाम नबी आजाद की चिट्ठी में लिखी एक-एक बात सही साबित होती है। उसी से पता चलता है कि कांग्रेस की हालत इतनी बुरी क्यों हो गई। कांग्रेस के किसी नेता ने उन मुद्दों पर विचार करने की जरूरत नहीं समझी जो गुलाम नबी आजाद और उनके G-23 के सहयोगियों ने उठाए थे। इसके बजाय कांग्रेस के नेता तो इस्तीफे की टाइमिंग पर सवाल उठाने लगे। ऐसे समय में जब सोनिया, राहुल और प्रियंका विदेश तब इस्तीफा क्यों दिया? कुछ नेता गुलाम नबी आजाद की नीयत पर शक करने लगे। कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं ने गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे को नरेंद्र मोदी से जोड़ने की कोशिश की और इसे बीजेपी की साजिश करार दिया।
किसी ने कहा कि मोदी के आंसुओं का कर्ज चुका रहे हैं। किसी ने कहा कि मोदी ने पद्मविभूषण दे दिया और गुलाब नबी आज़ाद का सरकारी आवास कॉन्टिन्यू कर दिया, इसलिए गुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस छोड़ दी। गुलाम नबी आजाद के लिए ये सब बहुत छोटी बातें हैं और ऐसी बातें छोटी सोच वाले ही कर सकते हैं। उनके बारे में ये कहना कि वो कांग्रेस में रहकर मोदी के एजेंट की तरह काम कर रहे थे। इस बात को साबित करता है कि कांग्रेस के नेता, मोदी के अलावा कुछ देख ही नहीं पाते। कुछ लोगों ने ये कहा कि गुलाम नबी आजाद को ऐसे वक्त पर सवाल नहीं उठाने चाहिए थे जब सोनिया गांधी बीमार हैं और राहुल गांधी देश से बाहर हैं।
मेरा कहना है कि कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत संगठन में अनुभवी नेताओं की मौजूदगी रही है। गुलाम नबी आज़ाद जैसे लोग जिन्होंने कई साल सरकारें आते-जाते देखी हैं, हार को जीत में बदलते देखा है। अगर आज वाकई में कांग्रेस मोदी से लड़ना चाहती है तो उसे ऐसे तजुर्बेकार नेताओं की जरूरत है। गुलाम नबी आज़ाद ने अपनी ज़िंदगी के 49 साल पार्टी को दिए हैं। इसका जिक्र उन्होंने सोनिया गांधी को लिखे अपने पांच पन्नों चिट्ठी में विस्तार से किया है।
गुलाम नबी आज़ाद इंदिरा गांधी, राजीव गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक सभी सरकारों में मंत्री रहे। उन पर कभी उंगली नहीं उठी। इसलिए आज ये कहना ठीक नहीं है कि वह एहसान-फरामोश हैं। पार्टी को उनकी जरूरत नहीं है। कांग्रेस को कोई फायदा नही है। इस समय तो कांग्रेस को जरूरत है कि वो अपने सारे नेताओं को संभालकर रखे। चाहे वो अनुभवी नेता हों या फिर नए ज़माने के लीडर हों। अगर कांग्रेस गुलाम नबी आज़ाद के योगदान को नहीं पहचानती, उनका सम्मान नहीं कर सकती तो इसे पार्टी का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।
वैसे राष्ट्रीय स्तर पर गुलाम नबी आजाद के जाने का कांग्रेस पर क्या असर होगा ये तो वक्त के साथ कांग्रेस के लोगों को पता लगेगा लेकिन जम्मू कश्मीर में कांग्रेस के खात्मे की शुरूआत हो गई। जम्मू कश्मीर में कांग्रेस के कुल छह विधायक थे लेकिन शुक्रवार को गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के पांच विधायकों ने भी पार्टी छोड़ दी। आजाद पहले ही संकेत दे चुके हैं कि वह जम्मू-कश्मीर में एक पार्टी बनाएंगे। गुलाम नबी के इस कदम का पहला असर जम्मू कश्मीर की सियासत पर पड़ेगा। जम्मू कश्मीर में पिछले चुनाव 2014 में हुए थे। उस वक्त कांग्रेस ने 12 सीटें जीतीं थी। उनमें से तीन सीटें अब लेह लद्दाख में चली गईं। कांग्रेस के जो नौ विधायक बचे थे उनमें से तीन पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं। अब बचे हुए छह में से पांच भी पार्टी छोड़ गए। जो एक विधायक कांग्रेस के साथ रह गया है वो इसलिए क्योंकि राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले उसे जम्मू-कश्मीर कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था।
गुलाम नबी आज़ाद जम्मू कश्मीर के ऐसे अकेले नेता हैं जिनकी पकड़ घाटी के साथ जम्मू रीजन में भी है। जम्मू की 12 विधानसभा सीटों पर ग़ुलाम नबी आज़ाद का अच्छा असर है। इसीलिए जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के बड़े नेता गुलाम नबी के जाने से परेशान हैं। गुलाम नबी आजाद पक्के कश्मीरी हैं। इंसानियत और ईमानदारी उनमें कूट-कूटकर भरी है। मैं आज़ाद साहब को तब से जानता हूं जब वो यूथ कांग्रेस के लीडर थे। उनकी रग-रग में कांग्रेस बसी है। वो इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के सिपाही रहे हैं। मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि वो कभी कांग्रेस छोड़ेंगे, क्योंकि मैं इतने साल से उन्हें बहुत करीब से जानता हूं।
उन्होंने कभी भी कांग्रेस और उसकी लीडरशिप के बारे में आलोचना का एक लफ्ज नहीं कहा। इसीलिए जब शुक्रवार को उन्होंने इस्तीफा दिया तो मुझे वो शेर याद आ गया ‘कुछ तो मजबूरियां रही होंगी…यूं ही कोई बेवफा नहीं होता।’ आज़ाद साहब के इस कदम से कांग्रेस को जम्मू-कश्मीर में बहुत नुकसान होगा।
जब आजाद मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कश्मीर में वर्क कल्चर बदल दिया था। विकास के बहुत सारे काम किए थे। कश्मीर घाटी और जम्मू दोनों जगह आज भी लोग उनके काम को याद करते हैं और आज़ाद साहब की बहुत इज्जत करते हैं। कश्मीर में चुनाव होने वाले हैं। अगर गुलाम नबी आज़ाद अपनी अलग पार्टी बनाते हैं तो वो कश्मीर में चुनाव के सारे समीकरण बदल सकते हैं। आज के वक्त में वह कश्मीर के अवाम की उम्मीदों का एक चेहरा बन सकते हैं।