शुक्रवार सुबह कानपुर के पास हुई गोलीबारी में उत्तर प्रदेश के खूंखार गैंगस्टर विकास दुबे की मौत से उत्तर प्रदेश में अपराध के इतिहास का एक घिनौना अध्याय समाप्त हो गया। शहीद हुए पुलिसकर्मियों के परिवारों ने जहां पुलिस कार्रवाई की प्रशंसा की, ऐसे राजनीतिक दल हैं जिन्होंने आरोप लगाया है कि एनकाउंटर ‘फर्ज़ी’ और ‘पूर्वनियोजित’ था।
कुछ लोग ये साबित करने में लगे हैं कि पुलिस को विकास को गोली नहीं मारनी चाहिए थी। वो सवाल पूछ रहे हैं पुलिस ने एनकाउंटर क्यों किया? कैसे किया? जो लोग साधु-संतों की हत्या पर खामोश रहे वो एक बर्बर- खूंखार हत्यारे की मौत पर सवाल पूछ रहे हैं। अब एक हिस्ट्रीशीटर की मौत पर आंसू बहा रहे हैं, जिसने 8 उत्तर प्रदेश पुलिसकर्मियों की निर्दयता और बर्बरता से हत्या कर कर दी।
सवाल पूछे जाने चाहिए लोकतंत्र में सबको सवाल पूछने का हक है और पुलिस को जवाब भी देना चाहिए, कई सवाल हैं।
पुलिस ने रास्ते में विकास दुबे की गाड़ी क्यों बदली?
यूपी पुलिस ने बताया कि क्यों गैंगस्टर विकास दुबे की उस गाड़ी को बदला गया जिसमें वह बैठा हुआ था। पुलिस ने बताया कि स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर के तहत गाड़ी को बदला गया ताकि दूसरों को यह पता न चले कि आरोपी किस गाड़ी में बैठा हुआ है।
पुलिस की गाड़ी कैसे पलट गई?
पुलिस ने यह भी बताया कि गाड़ी के ठीक सामने कैसे गाय-भैंसों का झुंड आ गया, और टकराने से बचने के प्रयास में गाड़ी पलट गई, जिससे अपराधी को भागने का मौका मिला। पुलिस ने यह भी बताया कि एसटीएफ के काफिले का पीछा कर रहीं मीडिया की गाड़ियों को रोका नहीं गया था बल्कि उन्हें एक टोल प्लाजा पर नियमित और जरूरी जांच के लिए रुकना पड़ा था।
उसे हथकड़ी क्यों नहीं लगाई गई थी?
पुलिस ने यह भी बताया कि अदालतों की तरफ से हथकड़ी को लेकर पहले ही कुछ दिशा निर्देश दिए गए हैं और उन्हीं को ध्यान में रखते हुए विकास को हथकड़ी नहीं लगाई गई थी। दिशानिर्देशों के मुताबिक आरोपी को तबतक हथकड़ी नहीं लगाई जा सकती जबतक यह जरूरी न हो। वह गाड़ी के अंदर 2 पुलिस इंस्पेक्टरों के बीच बैठा हुआ था।
लेकिन एक सवाल मेरा भी है, सवाल पूछने वाले कौन हैं? सवाल पूछने वालों की नीयत क्या है? कहीं उनका इरादा मौके का फायदा उठाकर योगी आदित्यनाथ को कठघरे में खड़े करने का तो नहीं? योगी का मकसद बिलकुल साफ है, वे पहले दिन से कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में पुलिस का इकबाल कायम रहना चाहिए। 8 पुलिस वालों की क्रूरता से हत्या करने वाला अगर बच जाए तो फिर कौन पुलिसकर्मी अपराधियों को रोकने के लिए अपनी जान दांव पर लगाएगा।
जरा सोचिए अगर गाड़ी पलटने के बाद विकास दुबे भाग निकलता तो कितना शोर मचाया जाता, कितना बडा तूफान आ जाता। इसीलिए मैं कहता हूं कि आज उन लोगों की तरफ देखना चाहिए जिनके परिवार वालों ने अपने जवान बेटे को, किसी ने अपने पति तो किसी ने पिता को खोया है।
हमें जानना चाहिए कि मारे गए पुलिसकर्मियों के परिवारजन एनकाउंटर को लेकर पुलिस की कही बात में खामियां देखने के बजाय क्या कह रहे हैं। हमें उन लोगों को भी सुनना चाहिए, जिनके परिवार के सदस्यों को विकास दुबे के गुर्गों ने मार दिया था और प्रताड़ित करते थे। न्याय की आस में वर्षों से इन लोगों की आंख के आंसू सूख गए थे। आज जब उन्हें विकास दुबे के मारे जाने की खबर मिली, तो आंखों में खुशी के आंसू आ गए, पुलिस वालों को फूलमाला पहना कर उनका स्वागत किया।
जिस पुलिस को विकास दुबे कुछ नहीं समझता था उसी पुलिस की गोली का शिकार हो गया। यूपी पुलिस से बचने के लिए विकास दुबे महाकाल के दरबार में गया था, लेकिन महाकाल ने भी उसकी अर्जी ठुकरा दी। उसे वहीं सजा मिली, जो एक हत्यारे को, दुर्दान्त अपराधी को मिलनी चाहिए। विकास दुबे ने जिस तरह से सरकार को, सिस्टम को, पूरी पुलिस फोर्स को चुनौती दी, जिस तरह से पुलिसवालों पर हमला किया, उसके बाद उसका यही होना था।
उसकी मौत के बाद हालात ये हो गए कि अब उसके माता पिता भी उसके साथ नहीं हैं, घरवालों ने लाश लेने से इंकार कर दिया, उसकी लाश को कंधा देने वाले चार लोग भी नहीं मिले। विकास की मौत की खबर सुनकर उसके पिता ने कहा कि पुलिस ने ठीक किया, अच्छा किया उसे मार दिया, क्योंकि वो किसी का सगा नहीं था। उसने हमेशा लोगों को कष्ट दिया, मां बाप को भी नहीं बख्शा। विकास दुबे के पिता ने कहा कि वो तो उसके अंतिम संस्कार में भी नहीं जाएंगे, मां ने भी कानपुर आकर बेटे का चेहरा देखने से इंकार कर दिया। सोचिए, मां बाप तक अपने बेटे की मौत पर दुखी नहीं हैं।
विकास दुबे के एनकाउंटर पर पुलिस के बयान को लेकर अधिकतर विपक्षी दलों ने सवाल उठाए हैं। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की, जबकि समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि मुठभेड़ “राज छिपाने के लिए” की गई। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उर्दू शेर पोस्ट किया – ‘कई जवाबों से अच्छी है ख़ामोशी उसकी, न जाने कितने सवालों की आबरू रख ली’।
खूंखार विकास दुबे के एनकाउंटर पर जो लोग राजनैतिक फायदा उठाने में लगे हैं, उनसे मैं यही कहूंगा कि एनकाउंटर पर सवाल उठाएं, जांच की मांग करे उसमें कोई बात नहीं, लेकिन इस पर सियासत बाद में करें। अभी तो शहीद पुलिसवालों के परिवार के बारे में सोचें जिनकी उसने क्रूरता से हत्या की थी। हम सबको एक बात तो समझनी पडेगी, माननी पडेगी कि विकास दुबे जैसे अपराधी की न कोई जाति होती है, न धर्म, न कोई पार्टी। ऐसे अपराधी तो सबका इस्तेमाल करते हैं और इसी इस्तेमाल को रोकने की जरुरत है।
सारी बातें देखने के बाद एक बात तो साफ है विकास दुबे एक शातिर अपराधी था। इस क्रिमिनल ने अपने जाति का फायदा उठाया, कभी समाजवादी पार्टी का, कभी बीएसपी का तो कभी बीजेपी के नेताओ का फायदा उठाया। इसने पूरे इलाके में आतंक फैलाया, जोर जबरदस्ती से चुनाव जीते, पुलिसवालों को मुखबिर बना लिया, ना मां-बाप की परवाह की और न बच्चों की।
जिस दिन उसने ड्यूटी पर गए पुलिसवालों की हत्या की उसी दिन साबित हो गया कि उसे किसी का डर नहीं था। कई लोग कहते हैं कि अगर वो पकड़े जाने के बाद जेल जाता, तो न उसके खिलाफ गवाह मिलते और न सबूत। पुलिसवाले उसको सजा दिलाने के लिए अदालतों के चक्कर लगाते और इस बात की कोई गारंटी न रहती कि वो पेरोल पर आकर और पुलिसवालों को न मारता।
इसलिए उसके एनकाउंटर पर सवाल उठाने से पहले ये सोचना चाहिए कि ऐसे लोगों को सजा दिलाना कितना मुश्किल काम है। ऐसे लोग समाज के लिए कितने बड़े नासूर हैं और उन्हें सजा मिले ये कितना जरूरी है। आपने विकास के पिता की बात सुनी, वो खुद कह रहे थे, कि बेटा समाज के लिए खतरा था, उसने बूढ़े मां बाप की कभी सेवा नहीं की, सिर्फ कष्ट दिए। समाज का कलंक बन चुके ऐसे खरतनाक अपराधियों को सजा जरूर मिलनी चाहिए।
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