Rajat Sharma

मौत के सौदागर बेच रहे हैं नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन

AKb (1)आज मैं सूरत और इंदौर के कुछ बेईमान व्यापारियों के एक गिरोह के बारे में बात करना चाहता हूं। इस गिरोह ने पिछले महीने महामारी की दूसरी लहर के पीक पर होने के दौरान गंभीर रूप से बीमार कोविड -19 मरीजों के रिश्तेदारों को हजारों नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बेचे। सूरत और इंदौर की पुलिस ने अब तक इस जानलेवा रैकेट में शामिल 40 लोगों को गिरफ्तार किया है। एक ऐसे समय में जब रेमडेसिविर इंजेक्शन भारी मांग के चलते बाजारों से गायब हो गए थे, इन लोगों ने लगभग एक लाख नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बनाने और उन्हें जरूरतमंद कोरोना मरीजों को बेचने की प्लानिंग की थी।

ये लोग वास्तव में मौत के सौदागर हैं। कोरोना से पीड़ित उन बेचारे मरीजों के बारे में सोचिए जो महामारी की पीक के दौरान अपने जिंदगी के लिए लड़ रहे थे और उनके रिश्तेदार रेमडेसिविर इंजेक्शन के वायल्स खरीदने के लिए भागदौड़ कर रहे थे। इंदौर पुलिस ने अब तक इस रैकेट में शामिल 29 लोगों को गिरफ्तार किया है जबकि सूरत पुलिस की गिरफ्त में 11 लोग आए हैं। गिरोह के सदस्य ग्लूकोज के साथ नमक मिलाकर नकली इंजेक्शन बना रहे थे और उन्हें असली रेमडेसिविर के वायल्स के रूप में बेच रहे थे। सिर्फ 3 दिन के भीतर इस गैंग के लोगों ने एक करोड़ रुपये की कमाई की और 15 दिनों में उनकी कमाई 3 करोड़ रुपये हो गई। एक इंजेक्शन बनाने में, शीशी खरीदने में और उस पर रेमडेसिविर का नकली होलोग्राम लगाकर सप्लाई करने में कुल 40 से 50 रुपये का खर्च आया, और इस एक इंजेक्शन को 5,000 से लेकर 50,000 रुपये तक में बेचा गया। इंदौर पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि इस गैंग ने करीब एक लाख नकली रेमडेसिविर वायल्स को तैयार करने और उन्हें बाजार में उतारने की प्लानिंग की थी।

पुलिस ने अस्पतालों से नकली इंजेक्शन के कारण मरने वाले कोरोना के 19 मरीजों की जानकारी जुटाई है और 4 अन्य राज्यों के अस्पतालों के रिकॉर्ड की जांच की जा रही है। इस गैंग ने गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नकली इंजेक्शन बेचे थे। गैंग के एक सदस्य सुनील ने पुलिस को बताया कि उसने अकेले 1,200 नकली इंजेक्शन बेचे थे, जिनमें से 700 इंजेक्शन जबलपुर सिटी हॉस्पिटल में और बाकी के 500 इंजेक्शन इंदौर में रिटेलर्स को बेचे गए थे।

ये नकली इंजेक्शन गुजरात के सूरत में स्थित के फार्म हाउस में बनाए जा रहे थे। इंदौर पुलिस को इस रैकेट के बारे में संयोग से उस समय पता चला जब उसने दिनेश चौधरी और धीरज सजनानी नाम के 2 लोगों को गिरफ्तार किया। इन दोनों के कब्जे से नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन की कई शीशियां मिली थीं। जब पूछताछ हुई तो इन्होंने अपने एजेंट असीम भाले और प्रवीण का नाम लिया। पुलिस ने इन्हें भी पकड़ लिया। जब चारों से पूछा गया कि नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन कहां से आया, तो इन्होंने मध्य प्रदेश में नकली इंजेक्शन के मेन सप्लायर सुनील मिश्रा का नाम लिया। पुलिस ने सुनील मिश्रा को भी धर दबोचा और पूछताछ में उसने गिरोह के मास्टरमाइंड्स कौशल वोरा और पुनीत शाह का नाम ले लिया। गैंग के लोगों ने कबूल किया कि उन्होंने गुजरात में भी अलग-अलग शहरों में एजेंट्स के जरिए करीब 5000 नकली इंजेक्शन बेचे थे। पुलिस ने बताया कि इंदौर में करीब 700 लोगों को नकली इंजेक्शन बेचे गए, और जिन्हें ये नकली इंजेक्शन लगा उनमें से 10 लोगों की मौत हो गई। इन आंकड़ों में इजाफा हो सकता है क्योंकि पुलिस अभी और हॉस्पिटल रिकॉर्ड्स को खंगाल रही है।

मध्य प्रदेश के एक अन्य शहर जबलपुर में एक प्राइवेट अस्पताल का मालिक ही इस रैकेट में शामिल था। सुनील मिश्रा और जबलपुर सिटी हॉस्पिटल के डायरेक्टर सरबजीत सिंह मोखा के बीच डील हुई। सुनील में 7 से 8 हजार रुपये के बीच एक वायल की कीमत के हिसाब से 500 नकली इंजेक्शन अस्पताल को दिए। उसने यहां कुल मिलाकर 40 लाख रुपये कमाए, जबकि हॉस्पिटल ने अपना मार्जिन निकालकर इन्हें मरीजों को और भी ज्यादा रेट में बेचा। कोरोना के कम से कम 200 मरीजों को नकली इंजेक्शन लगाए गए, जिनमें से 9 मरीजों की मौत हो गई।

डॉक्टर भी असली और नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन के वायल्स में अंतर क्यों नहीं कर पाए? दरअसल, इस गैंग के लोगों ने नकली इंजेक्शन बनाने से पहले पूरी स्टडी की थी। उन्होंने हूबहू असली जैसा ही इंजेक्शन बनाया। कौशल वोरा और पुनीत शाह जल्द से जल्द ढेर सारा पैसा कमाना चाहते थे। उस वक्त रेमेडेसिविर इंजेक्शन सिर्फ उन्हीं लोगों को बेचा जा रहा था जिसके पास कोरोना पॉजिटिव की रिपोर्ट होती थी। असली इंजेक्शन हासिल करने के लिए इन दोनों ने नकली कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट तैयार करवाई, और उस रिपोर्ट के आधार पर प्रशासन से एक असली रेमडेसिविर इंजेक्शन ले लिया। चूंकि ये दोनों मेडिकल लाइन से जुड़े थे, इसलिए इन्हें पता था कि यदि सिर्फ ग्लूकोज शीशी में भरेंगे तो डिस्टिल्ड वाटर मिलाते ही वह पूरी तरह घुल जाएगा, जबकि रेमडेसिविर इंजेक्शन थोड़ा गाढ़ा होता है। इसे गाढ़ा करने के लिए इन लोगों ने ग्लूकोज के साथ नमक मिलाया। ये लोग ये समझ रहे थे कि अगर थोड़ी मात्रा में नमक और ग्लकोज का घोल का इंजेक्शन मरीज को दिया भी जाएगा तो तुरंत किसी तरह का कोई खतरा नहीं होगा और उसकी जान तुरंत नहीं जाएगी। इन लोगों ने इंजेक्शन की पैकिंग और शीशी पर लगे रैपर वापी से लिए और वायल्स पर दवा की डिटेल लिखा हुआ स्टिकर मुंबई से खरीदा। जैसे ही इन्हें रैपर, स्टिकर और शीशियों की सप्लाई मिली, इन दोनों मास्टरमाइंड्स ने नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन ‘तैयार करना’ शुरू कर दिया।

इंदौर के एक अस्पताल के डॉक्टरों ने सबसे पहले रैकेट की कारगुजारियों को पकड़ा। एक मरीज को इंजेक्शन देते समय डॉक्टरों ने नोटिस किया कि इंजेक्शन की शीशी में सामान्य से ज्यादा सॉल्ट है और यह आसानी से लिक्विड में नहीं मिल रहा है। इस बारे में फिर पुलिस को सूचना दी गई और शीशियों को जांच के लिए भेज दिया गया। जांच के दौरान पता चला कि शीशी में रेमडेसिविर दवा की जगह नमक और ग्लूकोज है। मरीजों के परिवार वालों से बात करके पुलिस नकली इंजेक्शन बेचने वालों तक पहुंची, और उन्होंने एजेंटों और वैक्सीन को बनाने वालों के नाम ले लिए। कड़ी मशक्कत और खोजबीन करके इंदौर पुलिस ने उन 650 कोरोना मरीजों के परिवार वालों को ढूंढ़ निकाला, जिन्हें ये नकली इंजेक्शन बेचे गए थे।

सूरत की एसपी उषा राडा ने हमारे रिपोर्टर निर्णय कपूर को बताया कि पुलिस को सूरत के पास स्थित पिंजरत गांव के फॉर्म हाउस से, जहां नकली इंजेक्शन बनाने की फैक्ट्री चलाई जा रही थी, 63 हजार खाली वायल्स और हजारों नकली स्टीकर बरामद किए गए। मुंबई पुलिस ने नकली स्टिकर और खाली शीशियों के सप्लायर का पता लगाने में मदद की, जो कि वापी से पकड़े गए।

ये सारी डिटेल्स लिखते हुए मुझे काफी दुख हो रहा है। जरा सोचिए, ऐसे समय में जब महामारी की जानलेवा दूसरी लहर के चलते लाखों लोगों की जिंदगी दांव पर लगी थी और देश एक गंभीर चुनौती का सामना कर रहा था, कुछ ऐसे भी धोखेबाज थे जो संजीवनी समझे जा रहे एक इंजेक्शन को बेचकर पैसा कमाने में लगे थे। उस दर्द के बारे में सोचें जो कोरोना से पीड़ित मरीजों के परिवार वालों को उस समय झेलना पड़ा था, जब उनके करीबी सांस लेने के लिए छटपटा रहे थे और उनकी जान इस इंजेक्शन से बच सकती थी। एक-एक इंजेक्शन के लिए मरीजों के परिवार वाले कोई भी कीमत देने को तैयार थे, लेकिन जिस इंजेक्शन को उन्होंने संजीवनी समझकर खरीदा था, वह असल में मौत के कारोबारियों द्वारा तगड़ा मुनाफा कमाने के लिए बेचा गया नकली इंजेक्शन था।

उन परिवारों की मानसिक पीड़ा के बारे में सोचिए जिन्हें पता चला होगा कि उनके प्रियजनों की मौत नकली इंजेक्शन लगाए जाने के चलते हुई। यदि इंदौर के डॉक्टरों ने वक्त रहते इन नकली रेमडेसिविर इंजेक्शनों को नहीं पहचाना होता, तो और भी कई लोगों की जानें जा सकती थीं। मैं इस रैकेट का भंडाफोड़ करने का अच्छा काम करने वाली इंदौर और सूरत पुलिस को भी धन्यवाद देना चाहता हूं। उन्होंने बड़ी चतुराई से पूरे मामले की जांच की, चुपचाप सारे तार जोड़े और अपराधियों को गिरफ्तार किया।

मासूमों की जान से खेलना एक ऐसा पाप है जिसकी जितनी भी सजा दी जाए, वह कम है। लेकिन एक बात आपसे कहना चाहता हूं। दवा खरीदते समय थोड़ा सतर्क रहें। आपको बेवकूफ बनाकर पैसा कमाने के लिए कई शिकारी इंतजार कर रहे हैं। कृपया स्टिकर और बाकी की डिटेल्स को ध्यान से देखें, और हमेशा उसी केमिस्ट की दुकान से खरीदें जो ऑथराइज्ड हो।

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